धर्म एवं ज्योतिष
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
19 Apr, 2025 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- कुटुम्ब की चिन्तायें मन व्यग्र रखें, किसी के कष्ट के कारण हानि अवश्य ही होगी।
वृष राशि :- भाग्य का सितारा साथ देगा, बिगड़े हुये कार्य अवश्य ही बनेंगे, ध्यान दें।
मिथुन राशि :- इष्ट-मित्रों से तनाव, क्लेश व अशांति, कार्य-व्यवसाय में बाधा होगी।
कर्क राशि :- दैनिक कार्यगति अनुकूल, परिश्रम अधिक करना पड़ेगा तथा फल कम मिलेगा।
सिंह राशि :- योजनायें पूर्ण हों, सुख के साधन बनें, तनाव, क्लेश, अशांति से बचें।
कन्या राशि :- बड़े-बड़े लोगों से मेल-मिलाप एवं समस्यायें सुधरें, सुख के कार्य अवश्य होंगे।
तुला राशि :- साधन-सम्पन्नता के योग बनें तथा कुटुम्ब में क्लेश, हानि अवश्य होगी।
वृश्चिक राशि :- असमंजस बना रहे, प्रभुत्व वृद्धि तथा कार्यगति अनुकूल अवश्य होगी।
धनु राशि :- असमर्थता का वातावरण क्लेश युक्त रखे, अवरोध, विवाद से बचकर चलें।
मकर राशि :- धन लाभ, आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा तथा बिगड़े कार्य बन जायेंगे।
कुंभ राशि :- इष्ट-मित्र सुख वर्धक होंगे, बड़े-बड़े लोगों से मेल-मिलाप अवश्य होगा।
मीन राशि :- मनोवृत्ति संवेदनशील हो, धन और शक्ति नष्ट हो, मानसिक व्यग्रता बनेगी।
निगेटिव एनर्जी और बुरी नजर को खत्म करने के लिए इस दिन करें यह खास व्रत, पुराणों में भी लिखा है महत्व!
18 Apr, 2025 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू कैलेंडर का दूसरा महीना वैशाख होता है. इस माह में किए गए धार्मिक कार्यों का कई गुना फल प्राप्त होने की मान्यता है. इस माह में प्रदोष व्रत का आगमन दो बार होता है. वैशाख कृष्ण पक्ष के प्रदोष व्रत को करने से जीवन में खुशहाली का आगमन होता है. वैशाख कृष्ण पक्ष के प्रदोष व्रत को विधि विधान से पूर्ण करने पर भगवान शिव और माता पार्वती प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं. इस दिन भगवान शिव की आराधना, स्तोत्र, मंत्रो का जाप करने से सभी बाधाएं, समस्याएं खत्म हो जाती हैं और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. वैशाख कृष्ण पक्ष के प्रदोष व्रत का महत्व स्कंद पुराण में वर्णित है.
क्या कहना है एक्सपर्ट का
इसकी ज्यादा जानकारी देते हुए उत्तराखंड हरिद्वार के ज्योतिषी पंडित श्रीधर शास्त्री बताते हैं कि वैशाख कृष्ण पक्ष का प्रदोष व्रत बेहद ही खास और विशेष फल देने वाला होता है. स्कंद पुराण में वैशाख कृष्ण पक्ष के प्रदोष व्रत के महत्व का वर्णन किया गया है. इस प्रदोष व्रत को करने से बुरे प्रभाव और नकारात्मक ऊर्जा पूर्ण रूप से खत्म हो जाती है. भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित यह व्रत बेहद ही खास और विशिष्ट महत्व वाला है.
इस मंत्र का करें जाप
इस व्रत के दिन भगवान शिव की आराधना, रुद्राष्टक स्तोत्र, पशुपत्येष्टक स्तोत्र, शिव तांडव स्तोत्र, शिव महिम्न आदि स्तोत्र का पाठ, एकाक्षरी मंत्र ‘ॐ नमः शिवाय’ का जाप, भगवान शिव के संपुट मंत्र का जाप करने से जीवन सुखमय हो जाता है और कार्यों में आ रही बाधा, रुकावट, नकारात्मक ऊर्जा, डर से मुक्ति आदि सभी में विशिष्ट लाभ प्राप्त होते हैं. साल 2025 में वैशाख कृष्ण पक्ष का प्रदोष व्रत 25 अप्रैल शुक्रवार के दिन होगा. वैदिक पंचांग के अनुसार 25 अप्रैल को प्रदोष व्रत की उदया तिथि होगी. उदया तिथि 25 अप्रैल को होने से यह व्रत 25 अप्रैल को करना शुभ होगा.
मोहिनी एकादशी के दिन भूलकर भी न करें ये काम, लगेगा पाप, व्यर्थ हो जाएगा सारा पूजा-पाठ!
18 Apr, 2025 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सभी 24 एकादशी में मोहिनी एकादशी का अपना महत्व होता है. मोहिनी एकादशी के व्रत को करने से मोह माया के सभी बंधन कट जाते हैं और व्यक्ति के जीवन में सुख समृद्धि, खुशहाली का आगमन होता है. मोहिनी एकादशी का व्रत करने से मोह माया से छुटकारा मिल जाता है और सांसारिक सुखों की प्राप्ति होने की धार्मिक मान्यता बताई गई है.
हिंदू धार्मिक ग्रंथो के अनुसार अगर मोहिनी एकादशी का व्रत विधि विधान से किया जाए तो अनेक लाभ मिलते हैं लेकिन व्रत विधि विधान से नहीं किया जाता तो जीवन में अनेक समस्याएं घर कर लेती हैं और कई जन्मों तक इसका दोष दूर नहीं होता है. मोहिनी एकादशी व्रत के दिन कुछ वस्तुओं का सेवन और कुछ कार्य करने वर्जित बताए गए हैं.
इन चीजों से रहें दूर
24 एकादशी में मोहिनी एकादशी का व्रत वैशाख मास शुक्ल पक्ष में एकादशी तिथि के दिन किया जाता है. मोहिनी एकादशी पर भगवान विष्णु की आराधना, पूजा पाठ, स्तोत्र का पाठ, मंत्रों का जाप आदि करने से मोह माया के सभी बंधन टूट जाते हैं, ऐसी मान्यता है.
लेकिन अगर इस एकादशी पर तामसिक वस्तुएं प्याज, लहसुन, अंडा, मांस, शराब, चावल आदि का सेवन किया जाए तो साधक के जीवन में समस्याएं आनी शुरू हो जाती हैं साथ ही इसका पाप जन्मों जन्म तक दूर नहीं होता है.
इन नियमों का करें पालन
वह आगे बताते हैं कि अगर साधक द्वारा भूलवश भी वर्जित वस्तुओं का सेवन किया जाता है तो उसका जीवन नरक के समान हो जाता है. शास्त्रों के अनुसार मोहिनी एकादशी व्रत से 24 घंटे पूर्व ही इन सभी तामसिक वस्तुओं का सेवन बंद करना जरूरी होता है. व्रत को करने के दौरान मन में पवित्रता और भक्ति भाव का होना भी जरूरी होता है.
अगर व्रत के दिन किसी साधक के मन में ईर्ष्या, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार आदि हो तो उसे व्रत का कोई लाभ नहीं मिलता बल्कि इसके विपरीत पाप लगता है. साल 2025 में मोहिनी एकादशी का व्रत 8 मई को होगा और इन वस्तुओं का सेवन 7 मई से ही बंद करना होगा. पंडित श्रीधर शास्त्री बताते हैं कि मोहिनी एकादशी व्रत का पालन 7 मई की संध्याकाल से शुरू होगा जिसका समापन द्वादश यानि 9 अप्रैल की सुबह तक होगा.
इस रत्न से बढ़ जाता है प्रॉपर्टी और रियल एस्टेट का काम,ये लोग बिल्कुल भी ना पहनें! साढ़ेसाती के प्रभाव से मिलेगी मुक्ति
18 Apr, 2025 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
ज्योतिष शास्त्र में रत्न का विशेष महत्व होता है. अधिकतर लोगों में मान्यता है कि रत्न धारण करने से उनकी किस्मत बदल जाती है. जीवन में आ रही समस्याओं से छुटकारा मिल जाता है. ज्योतिष शास्त्र में कुल 84 प्रकार के रत्नों का विवरण मिलता है. हर राशि एवं ग्रह के लिये अलग अलग रत्न पहनने का नियम है. रत्न को पहनने में हमें बहुत सावधानी रखनी चाहिये. कोई रत्न अच्छा होने पर जितने अच्छे परिणाम देता है उससे अधिक खराब होने पर बुरे परिणाम देता है.ऐसा ही एक रत्न है मूंगा, जिसे पहनने से जीवन में ऊर्जा, साहस एवं पुलिस, सेना तथा प्रॉपर्टी के कामों में लाभ मिलता है.
क्या है मूंगा रत्न (Coral) : मूंगा समुद्र में पाए जाने वाला एक कीमती रत्न है. यह लाल, गुलाबी, नारंगी, गेरुआ, सिंदूरी और सफेद रंग में पाया जाता है. जन्म कुंडली में मंगल ग्रह के कमजोर होने की स्थिति में उसे बल देने के लिए मूंगा धारण किया जाता है. यह समुद्र की गहराई में पाए जाने वाली एक विशेष प्रकार की लकड़ी होता है.
ज्योतिष शास्त्र में रत्न का विशेष महत्व होता है. अधिकतर लोगों में मान्यता है कि रत्न धारण करने से उनकी किस्मत बदल जाती है. जीवन में आ रही समस्याओं से छुटकारा मिल जाता है. ज्योतिष शास्त्र में कुल 84 प्रकार के रत्नों का विवरण मिलता है. हर राशि एवं ग्रह के लिये अलग अलग रत्न पहनने का नियम है. रत्न को पहनने में हमें बहुत सावधानी रखनी चाहिये. कोई रत्न अच्छा होने पर जितने अच्छे परिणाम देता है उससे अधिक खराब होने पर बुरे परिणाम देता है.ऐसा ही एक रत्न है मूंगा, जिसे पहनने से जीवन में ऊर्जा, साहस एवं पुलिस, सेना तथा प्रॉपर्टी के कामों में लाभ मिलता है.आइये मूंगा रत्न के बारे में विस्तार से जानते हैं.
क्या है मूंगा रत्न (Coral) : मूंगा समुद्र में पाए जाने वाला एक कीमती रत्न है. यह लाल, गुलाबी, नारंगी, गेरुआ, सिंदूरी और सफेद रंग में पाया जाता है. जन्म कुंडली में मंगल ग्रह के कमजोर होने की स्थिति में उसे बल देने के लिए मूंगा धारण किया जाता है. यह समुद्र की गहराई में पाए जाने वाली एक विशेष प्रकार की लकड़ी होता है.
इस मूलांक के जातक कर सकते हैं धारण : जिन जातकों का मूलांक 9 है यानि किसी भी माह की 9,18, 27 तारीख को जन्म लेने वाले जातक मूंगा रत्न धारण कर सकते हैं.
साढ़ेसाती से बचाव के लिये करें धारण : वर्ष 2025 का मूलांक 9 है. मेष राशि के जातकों की साढ़ेसाती शुरू हुई है. उन्हें शनि के कुप्रभाव से सिर्फ मंगलदेव ही मुक्ति दिला सकते हैं. मेष राशि के जातक मूंगा रत्न धारण करके मंगल को मजबूत करें. इससे उन्हें साढ़ेसाती के प्रभाव से राहत मिलेगी.
इस व्यवसाय के लोग करें धारण : जो लोग प्रॉपर्टी डीलिंग, रीयल एस्टेट से सम्बंधित व्यवसाय में हैं वो लोग जन्म कुंडली में मंगल की स्थिति जांच कर मूंगा रत्न अवश्य धारण करें. इससे उनके व्यवसाय में जबरजस्त बढ़ोत्तरी होगी.
महाभारत: पांडवों का वो पूर्वज राजा, जो पुरुष से बना मोहक स्त्री, दोनों रूप में पैदा किए बच्चे
18 Apr, 2025 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
महाभारत और पुराणों में कई ऐसे रहस्यमयी और चमत्कारिक चरित्र हैं, जिनके जीवन में ऐसा बदलाव हो गया कि विश्वास ही नहीं होगा. पांडवों के पूर्वंज एक ताकतवर राजा थे इल, जिन्हें सुद्युम्न भी कहा जाता था. वह मनु की पुत्री इला के वंश से जुड़े हुए थे. इल बहुत बहादुर और पराक्रमी राजा थे. लेकिन एक शाप के कारण वह पुरुष से मोहक स्त्री बन गए. ऐसी स्त्री जिसकी सुंदरता इतनी अप्रतिम थी कि देखकर कोई भी रीझ जाए.
ये वो राजा थे जिनके पुरुष से स्त्री बनने की कहानी भीष्म ने तब युधिष्ठिर को सुनाई जब महाभारत के युद्ध के बाद वह शयशैया पर लेटे थे. भीष्म को इच्छामृत्यु का वरदान मिला हुआ था. लिहाजा वह मृत्यु से पहले युधिष्ठर को राजधर्म को लेकर सारी शिक्षाएं दे रहे थे. ऐसा उन्हें इसलिए करना पड़ा, क्योंकि युधिष्ठिर युद्ध में इतने लोगों की मृत्यु के बाद राजा नहीं बनना चाहते थे.
हालांकि वह सवाल युधिष्ठिर ने बहुत अजीब सा ही पूछा था लेकिन उन्हें जवाब मिला. सवाल था, “पितामह, क्या ऐसा हो सकता है कि कोई व्यक्ति एक समय पुरुष हो और फिर स्त्री बन जाए – और दोनों रूपों में संतान भी पैदा करे? क्या यह धर्मसंगत है?”
भीष्म मंद – मंद मुस्कुराए. भीष्म – “धर्म के रहस्य अपार हैं, वत्स. सुनो, एक सच्ची कथा कहता हूं, जो अपने ही वंश की है. इस वंश को पहले चंद्र वश के नाम से जाना जाता था, इसमें एक ऐसा पराक्रमी राजा हुआ, जिसने दोनों रूपों में जीवन जिया, वह था – राजा इल.
पांडवों के पूर्वजों में एक शुरुआती राजा थे इल. वह पराक्रमी थे, कुशल शासक थे. लोग उनसे खुश थे. (image generated by leonardo ai)
इल प्रतापी राजा थे. लेकिन जब वह स्त्री बने तो इतनी मोहक स्त्री बने कि वन में उनकी सुंदरता पर तपस्या करने आए एक देवता का मन डोल गया. उसने इस मोहक स्त्री से प्रेम निवेदन ही नहीं किया बल्कि उससे शादी भी की. इससे एक ऐसा वीर पुत्र हुआ, जिसने फिर वंश की बागडोर संभाली. वंश को मजबूत किया. ये कथा भागवत पुराण, महाभारत (आदिपर्व) और देवीभागवत पुराण में विस्तार से मिलती है.
राजा इल शिकार खेलने जंगल गया, भटक गया
पूरी कहानी इस तरह है. एक बार राजा सुद्युम्न (इल) अपने मंत्रियों और सैनिकों के साथ शिकार खेलने के लिए वन में गए. वह घने जंगल में भटक गये. भटकते – भटकते उस जगह पहुंच गया, जहां भगवान शिव और पार्वती के एकांतवास करते थे. वहां किसी को आने की इजाजत नहीं थी.
जिस समय राजा इल उस जगह पहुंचे, तब भगवान शिव और माता पार्वती प्रेमालाप में लीन थे. इसी वजह से वह जगह किसी के लिए भी वर्जित थी.
तब उन्हें स्त्री बन जाने का श्राप मिला
शिव के गणों ने सुद्युम्न यानि राजा इल को रोकने की कोशिश की, लेकिन वह कहां मानने वाले थे. सबसे लड़ते – भिड़ते, गिरते गिराते अंदर चला गया. जैसे ही पार्वती ने राजा को वहां आते देखा, वह क्रोधित हो उठीं. माता पार्वती ने श्राप दिया कि वह स्त्री बन जाएंगे.
शिव के शाप से ऐसा हुआ
इस कहानी को दूसरी तरह से भी कहा जाता था. इस वन का नाम था श्रीकांता वन. शिव ने ये शाप दे रखा था कि “जो भी पुरुष इस वन में प्रवेश करेगा, वह स्त्री बन जाएगा.”
वह मोहक स्त्री बन गए
इल जैसे ही उस वन की सीमा में दाख़िल हुए. उनके शरीर में बदलाव होने लगा. मांसपेशियां कोमल हो गईं, आवाज़ मधुर, चाल लचकदार – देखते ही देखते वह मोहक और सुंदर स्त्री बन गए यानि अब वो इला थीं. जब राजा इला के सैनिकों और मंत्रियों ने उन्हें देखा तो चकित रह गए. अब इला ऐसी स्त्री थीं, जो अपनी पुरानी सारी यादें भूल चुकी थीं.
बुध उन्हें देख मुग्ध हुए और प्रेम कर बैठे
इला स्त्री रूप में वन में भ्रमण कर रही थीं. कुछ भ्रमित, कुछ लज्जित. तभी उन्हें देखा बुध ने, जो चंद्रदेव और अप्सरा तारा के पुत्र थे. वह स्वर्गलोक से पृथ्वी पर तपस्या के लिए आए हुए थे. बुध इला पर मोहित हो गए. इला ने भी स्वयं को एक सामान्य स्त्री मान लिया था – दोनों के बीच प्रेम हुआ. फिर विवाह.
फिर इला ने एक बेटे को जन्म दिया
कुछ समय बाद इला ने एक पुत्र को जन्म दिया – पुरुरवा. यह वही हैं जिन्होंने अप्सरा उर्वशी से शादी की. वह महान शासक और प्रतापी राजा बने.
फिर एक महीने पुरुष और एक महीने स्त्री
इसी बीच श्राप का समय पूरा हो गया तो इला को अपने पूर्वजन्म की याद आई, जब वह प्रतापी राजा थे. उन्हें अपने परिवार की याद आने लगी. वह बेचैन रहने लगी. बुध समझ गए कि इला की आत्मा अभी पूरी तरह से शांत नहीं है. उन्होंने ध्यान लगाया, ऋषियों से सहायता मांगी. ऋषियों ने यज्ञ किया. शिव जी से प्रार्थना की. वो प्रसन्न हुए और बोले, “इला अब हर एक मास में अपना रूप बदल सकेंगे यानि वह एक माह पुरुष रहेंगे और एक माह स्त्री.
दोनों रूपों में उन्हें बच्चे पैदा हुए
अब राजा इल का जीवन दो रूपों में बंट गया. जब वे पुरुष होते, तो राज्य चलाते. जब स्त्री होते, तो तपस्या और पारिवारिक जीवन में लीन रहते. दोनों रूपों में उन्हें संतानें प्राप्त होती रहीं, जिससे चंद्रवंश का विस्तार हुआ.
तब भीष्म ने युधिष्ठिर से क्या कहा
युधिष्ठिर को यह कथा सुनाकर भीष्म बोले, “वत्स, ये कथा ये बताती है कि आत्मा का कोई लिंग नहीं होता. पुरुष और स्त्री – ये केवल शरीर की अवस्थाएं हैं, आत्मा तो ब्रह्मरूप है.”
अब आइए पुरुरवा के बारे में भी जान लीजिए. पुरुरवा से शादी रचाने वाली अप्सरा उर्वशी थी. वह स्वर्ग की एक प्रसिद्ध अप्सरा थीं, जिनके सौंदर्य और नृत्यकला की ख्याति थी. उर्वशी ने पुरुरवा से विवाह के लिए कुछ शर्तें रखी थीं, जिनका उल्लंघन होने पर वह स्वर्ग लौट गईं. पुरुरवा पांडवों के पूर्वज थे . पांडवों का वंश पुरुरवा से कई पीढ़ियों बाद आता है.
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
18 Apr, 2025 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- तनावपूर्ण वातावरण से बचिये, स्त्री-शरीर कष्ट, मानसिक बेचैनी अवश्य होगी।
वृष राशि :- अधिकारियों के समर्थन से सुख होगा, कार्यगति विशेष अनुकूल अवश्य होगी।
मिथुन राशि :- भोग-एश्वर्य की प्राप्ति के बाद तनाव, क्लेश व अशांति अवश्य होगी, ध्यान रखें।
कर्क राशि :- अधिकारियों का समर्थन फलप्रद होगा, भाग्य साथ दे, बिगड़े कार्य अवश्य बनेंगे।
सिंह राशि :- परिश्रम सफल हो, व्यवसाय गति मंद हो, आर्थिक योजना पूर्ण अवश्य होगी।
कन्या राशि :- कार्य-व्यवसाय गति मंद, व्यर्थ परिश्रम, कार्य में बाधा के योग बनेंगे।
तुला राशि :- किसी दुर्घटना से बचें, चोटादि का भय होगा, कार्य-व्यवसाय अनुकूल बनेगा।
वृश्चिक राशि :- कार्यगति अनुकूल रहे, लाभांवित कार्ययोजना बनेगी तथा बाधा अवश्य होगी।
धनु राशि :- कुछ प्रतिष्ठ के साधन बनेंगे किन्तु हाथ में कुछ न लगे, कार्य अवरोध होगा।
मकर राशि :- अधिकारी वर्ग से तनाव, क्लेश व अशांति, कार्य अवरोध होगा।
कुंभ राशि :- मनोबल बनाये रखें, योजना पूर्ण हों तथा नया कार्य अवश्य प्रारंभ होगा।
मीन राशि :- दैनिक कार्यगति उत्तम, कुटुम्ब से सुख, समय उत्तम बनेगा।
अक्षय तृतीया पर सोना खरीदना होता है शुभ
17 Apr, 2025 07:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में अक्षय तृतीया तिथि का महत्व विशेष माना जाता है। अक्षय तृतीया पर अबूझ मुहू्र्त होता है। इस दिन किसी भी समय शुभ कार्य किए जाते हैं। इस शुभ तिथि पर सोना, संपत्ति, भवन और गाड़ी खरीदना शुभ होता है। आइए आपको बताते हैं अक्षय तृतीया के दिन घर में किन चीजों को नहीं रखना चाहिए।
सनातन धर्म में अक्षय तृतीया को बेहद शुभ दिन माना जाता है। ज्योतिष के अनुसार, इस दिन सोना-चांदी जैसी कीमती वस्तुओं की खरीदारी करने से सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। पंचांग के अनुसार, वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया मनाई जाती है। हिंदू धर्म में अक्षय तृतीया विशेष महत्व माना जाता है। ज्योतिष के अनुसार, अक्षय तृतीया पर अबूझ मुहूर्त होता है, इस दिन शुभ कार्य किए जाते हैं। अक्षय तृतीया पर सोना, संपत्ति, भवन और गाड़ी खरीदना शुभ होता है। माना जाता है कि इस दिन कोई भी खरीदी हुई चीजे अक्षय यानी कभी नष्ट नहीं होने वाली फल देती है। हालांकि, केवल धन की खरीदारी ही नहीं, वास्तु शास्त्र के अनुसार कुछ चीजें होती है, जो इस दिन से पहले घर से हटा दें, वरना दुर्भाग्य और आर्थिक तंगी का कारण बन जाता है।
ये सामान बाहर करें
बंद पड़ी घड़ियां
वैसे समय का ठहर जाना ही रुकावट का संकेत होता है, जो घड़ियां खराब हो चुकी हैं लेकिन भावनात्मक लगाव के कारण आप उन्हें संभालकर रखे हुए हैं। अब घर से बाहर करें। बंद पड़ी घड़ियां नकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करती है और जीवन में प्रगति के लिए बाधा बन जाती है।
फटे-पुराने और गंदे कपड़े
अगर आपके घर में फटे-पुराने या गंदे कपड़े पड़े हैं, तो उन्हें अक्षय तृतीया से पहले ही फेंक दें। क्योंकि ये आर्थिक तंगी के कारण बन जाते हैं। इसके साथ ही भाग्य भी कमजोर हो जाता है। फटे कपड़ों को न तो पहनें और न ही घर पर संजोकर रखें।
सूखे पौधे और मुरझाए फूल
यदि आपके घर में सूखे पौधों या मुरझाए फूलों का होना दुर्भाग्य का प्रतीक माना जाता है। गुलदस्तों में सूख चुके फूलों को तुरंत हटा दें। मरे इंडोर प्लांट्स को भी उखाड़कर फेंक दें। इस दिन हरे-भरे पेड़ों को जीवंत बनाएं रखें।
टूटी-फूटी झाडू
झाडू को धन और लक्ष्मी से जुड़ा माना गया है। टूटी-फूटी झाड़ू को घर में न रखें। इससे जीवन में रुकावट पैदा होती है। इसके अलावा यह यह नकारात्मक ऊर्जा का भी स्रोत मानी जाती है। अक्षय तृतीया पर नई झाड़ू को खरीदना शुभ माना जाता है।
टूटी चप्पल और बेकार पड़ा सामान
अगर आपके घर में जूतों-चप्पल टूटी रखी हैं, तो आप इन्हें घर से बाहर फेंक दें। क्योंकि टूटी चप्पल दुर्भाग्य को आकर्षित करती है। ऐसी वस्तुएं घर में नकारात्मक और अव्यवस्था लाती है। इसके अतिरिक्त, घर में रखा टूटा-फूटा औऱ बेकार सामान को भी बाहर फेंक दें। प्लास्टिक, लोहे, स्टील के पुराने डिब्बे, अखबरों को ढेर, यह सब लक्ष्मीजी की कृपा को दूर कर देती हैं।
पंचमुखी हनुमान जी की मूर्ति या तस्वीर रखने पर करें इन नियमों का पालन
17 Apr, 2025 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में पंचमुखी हनुमान को साहस, शक्ति और रक्षा का प्रतीक माना जाता है। हनुमान जी के पांच मुखों वाली मूर्ति विशेष रूप से पूजनीय होती है। हनुमान जी के पांच मुख अलग-अलग देवताओं के रूप को प्रदर्शित करते हैं। लेकिन बहुत से लोग घरों में भी पंचमुखी हनुमान जी की मूर्ति या तस्वीर रखते हैं।हनुमान जी के पांच मुख उत्तर दिशा में वराह मुख, दक्षिण दिशा में नरसिंह, पश्चिम में गरुड़, आकाश की तरफ हयग्रीव मुख और पूर्व दिशा हनुमान जी का प्रतिनिधित्व करते हैं।
कहा जाता है कि अगर पंचमुखी हनुमान जी की पूजा सही तरीके व सम्मान से नहीं की जाए, तो इसको भूलकर भी घर के मंदिर में नहीं रखना चाहिए। ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक पंचमुखी हनुमान जी की तस्वीर या मूर्ति घर में रखने के विशेष नियम बताए गए हैं। दरअसल, पंचमुखी हनुमान जी का स्वरूप अधिक ऊर्जा और शक्ति का प्रतीक है। जो घर के सामान्य वातावरण के लिए अनुकूल नहीं होता है।
घर में क्यों नहीं रखनी चाहिए पंचमुखी हनुमान जी की तस्वीर
हनुमान जी का पंचमुखी स्वरूप उग्रता और सुरक्षा का प्रतीक माना जाता है। इसको घर में रखने से घर का माहौल अशांत और उग्र हो सकता है। खासकर यदि पंचमुखी हनुमान जी की विधि-विधान से पूजा न की जाए। पंचमुखी हनुमान जी की पूजा करना आसान नहीं होता है, इनकी पूजा के कुछ विशेष नियम होते हैं। ऐसे में सब लोग इन नियमों का सभी लोग पालन नहीं कर पाते हैं। अगर पंचमुखी हनुमान जी की पूजा में कोई कमी होती है, तो इससे जीवन में नकारात्मकता बढ़ सकती है।
पंचमुखी हनुमान जी की मूर्ति के लिए विशेष स्थान
बता दें कि घर में पंचमुखी हनुमान जी की मूर्ति या तस्वीर को रखने से सही दिशा और स्थान का चयन जरूर कर लें। ज्योतिष और वास्तु के मुताबिक गलत दिशा और स्थान पर हनुमान जी के इस पवित्र स्वरूप की स्थापना करने से घर में पॉजिटिव ऊर्जा की जगह वास्तु दोष पैदा हो सकता है।
अक्सर लोग पंचमुखी हनुमान जी की मूर्ति को घर के मुख्य द्वार पर लगा देते हैं। लेकिन यह स्थान उपयुक्त नहीं माना जाता है। ऐसा करने से उनकी ऊर्जा का सही से उपयोग नहीं हो पाता है और अंजाने में मूर्ति का अपमान भी हो सकता है। हनुमान जी के इस स्वरूप को घर में रखने का उद्देश्य बुरी शक्तियों से बचाव होता है और सकारात्मकता को बढ़ावा देना है। कहां रखनी चाहिए पंचमुखी हनुमान जी की मूर्ति
पंचमुखी हनुमान जी की पूजा मंदिरों में की जाती है। जहां पर उनकी ऊर्जा का प्रबंधन सही तरीके से हो सकता है। पंचमुखी हनुमान की मूर्ति मंदिरों में रखना सबसे अच्छा माना जाता है। जिससे कि उनकी नियम से पूजा की जा सके। कुछ व्यावसायिक स्थलों पर पंचमुखी हनुमान जी की मूर्ति रखने से बिजनेस में मुनाफा हो सकता है, साथ ही यह मूर्ति नकारात्मक ऊर्जा से भी रखा करती है।
अष्टविनायक वरदविनायक मंदिर में लगातार जल रहा एक दीपक
17 Apr, 2025 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
रायगढ़ जिले के कोल्हापुर में महड़ गांव में है अष्टविनायक तीर्थ का चौथा मंदिर वरदविनायक श्री गणेश मंदिर जहां सालों से एक दीप लगातार जल रहा है। अष्ट विनायक में चौथे गणेश हैं श्री वरदविनायक। यह मंदिर महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के कोल्हापुर क्षेत्र में एक सुन्दर पर्वतीय गांव है महड़। इसी गांव में श्री वरदविनायक मंदिर स्थित है। यहां प्रचलित मान्यता के अनुसार वरदविनायक भक्तों की सभी कामनों को पूरा होने का वरदान प्रदान करते हैं। इस मंदिर में नंददीप नाम का एक दीपक है जो 1892 से लगातार प्रज्जवलित है। वरदविनायक का नाम लेने मात्र से ही सारी कामनाओं को पूरा होने का वरदान प्राप्त होता है। इस मंदिर में माघी चतुर्थी पर विशेष पूजा होती है। इसके अतिरिक्त भाद्रपद की गणेश चतुर्थी से लेकर अनंत चतुर्दशी तक भी विशेष उत्सव होता है जिसे देखने भक्तों का हुजूम उमड़ता है।
मंदिर से जुड़ी कहानी
पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन काल में एक संतानहीन राजा था। अपने दुख के निवारण के लिए वो ऋषि विश्वामित्र की शरण में गया और सलाह मांगी। ऋषि ने उसे श्री गणेश के एकाक्षरी मंत्र का जाप करने के लिए कहा। राजा ने एेसा ही किया आैर भक्ति भाव गजानन की पूजा करते हुए उनके मंत्र का जाप किया। मंत्र के प्रभाव आैर गणपति के आर्शिवाद से उसका रुक्मांगद नाम का सुंदर पुत्र हुआ जो अत्यंत धर्मनिष्ठ भी था। युवा होने पर एक बार शिकार के दौरान जंगल में घूमते हुए रुक्मांगद, ऋषि वाचक्नवी के आश्रम में पहुंचा। यहां ऋषि की पत्नी मुकुंदा राजकुमार के पुरुषोचित सौंदर्य को देख कर उस पर मोहित हो गर्इ आैर उससे प्रणय याचना की। धर्म के मार्ग पर चलने वाले रुक्मांगद ने इसे अस्वीकार कर दिया आैर तुरंत आश्रम से चला गया। दूसरी आेर ऋषि पत्नी उसके प्रेम में पागल जैसी हो गर्इ। उसकी अवस्था के बारे में जान कर देवराज इंद्र ने इसका लाभ उठाने के लिए रुक्मांगद का भेष धारण कर मुकुंदा से प्रेम संबंध बनाये, जिससे वो गर्भवती हो गर्इ। कुछ समय बाद उसने ग्रिसमाद नामक पुत्र को जन्म दिया। युवा होने पर अपने जन्म की कहानी जान कर इस पुत्र ने मुकुंदा को श्राप दिया कि वो कांटेदार जंगली बेर की झाड़ी बन जाये। इस पर मुकुंदा ने भी अपने बेटे को श्राप दिया कि वो एक क्रूर राक्षस का पिता बनेगा। उसी समय एक आकाशवाणी से पता चला कि मुंकुदा की संतान का पिता वास्तव में इंद्र है। दोनों माता आैर पुत्र अत्यंत लज्जित हुए आैर मुकुंदा एक कांटेदार झाड़ी में बदल गर्इ जबकि उसका पुत्र पुष्पक वन में जाकर श्री गणेश की तपस्या करने लगा। बाद में प्रसन्न हो गणेश जी ने उसे त्रिलोकविजयी संतान का पिता बनने आैर एक वर मांगने का आर्शिवाद दिया। तब ग्रिसमाद ने कहा कि वे स्वयं यहां विराजमान हों आैर प्रत्येक भक्त की मनोकामना पूर्ण करें। इसके बाद उसने भद्रका नाम से प्रसिद्घ स्थान पर मंदिर का निर्माण किया और श्री गणेश यहां वरदविनायक के रूप में प्रतिष्ठित हुए।
मंदिर का स्थापत्य
वर्तमान वरदविनायक मंदिर के बारे में कहा जाता है की इसका निर्माण 1725 में सूबेदार रामजी महादेव बिवलकर ने करवाया था। मंदिर का परिसर सुंदर तालाब के एक किनारे बना हुआ है। ये पूर्व मुखी अष्टविनायक मंदिर पूरे महाराष्ट्र में काफी प्रसिद्ध है। यहां गणपति के साथ उनकी पत्नियों रिद्धि और सिद्धि की मूर्तियां भी स्थापित हैं। मंदिर के चारों तरफ चार हाथियों की प्रतिमायें बनार्इ गर्इ हैं। मंदिर के ऊपर 25 फीट ऊंचा स्वर्ण शिखर निर्मित है। इसके नदी तट के उत्तरी भाग पर गौमुख है। मंदिर के पश्चिम में एक पवित्र तालाब बना है। मंदिर में एक मुषिका, नवग्रहों के देवताओं की मूर्तियां और एक शिवलिंग भी स्थापित है। अष्टविनायक वरदविनायक मंदिर के गर्भगृह में भी श्रद्धालुओं को जाने की अनुमति है।
भगवान शिव हैं महायोगी
17 Apr, 2025 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भगवान शिव की जिंदगी के हर पहलू से कुछ न कुछ सीखा जा सकता है लेकिन यहां हम कुछ उनसे जुड़ी कुछ ऐसी बातों का जिक्र कर रहे हैं। जिन्हें, कोई व्यक्ति अपनी जिंदगी में आत्मसात करते है तो उसे सफल होने से कोई नहीं रोक सकता है।रखें आत्म नियंत्रण : भगवान शिव शांत भी रहते हैं और विनाशकारी भी, लेकिन वह अपने ऊपर पूरा आत्मनियंत्रण रखते हैं। यदि कोई मनुष्य उनकी इस बात को आत्मसात करे तो जीवन में काफी आगे तक जा सकता है।
शांत रहें और अपना कार्य करते रहें : शिव को महायोगी कहा जाता है। वह घंटों और युगों तक ध्यान अवस्था में रहते हैं। और ध्यान में मानव कल्याण के लिए कार्य करते हैं। यदि कोई मनुष्य उनकी इसी सीख से शांत रहकर अपने कार्य को करते रहें तो सफल होने से कोई नहीं रोक सकता है।
ध्यान रखें भौतिक सुख लंबे समय का साथी नहीं : शिव का स्वरूप भभूतधारी है। वह बाघ की खाल पहने हुए हैं। उनके हाथों में त्रिशूल है। वह भौतिक वस्तुओं से दूर रहते हैं। यदि कोई मनुष्य भौतिक जीवन की लालसा को त्याग कर अपने कर्म पर ध्यान दे तो वो न केवल सफल होगा बल्कि उसकी प्रशंसा चारो तरफ की जाती है।
नकारात्मकता से रहें दूर : भगवान शिव ने दुनिया बचाने के लिए समुद्र मंथन से निकले जहर को अपने कंठ में सुशोभित किया। इससे तमाम तरह की नकारात्मकता का अंत हुआ और दुनिया का सर्वनाश होने से बच गया। कहने का आशय यह है कि यदि हम भी अपने आस-पास मौजूद नकारात्मकता यानी बुराई का अंत करें तो सकारात्मक माहौल हमारे आस-पास हमेशा रहेगा।
इच्छाएं सीमित रखें : कहते हैं इच्छाओं का कभी अंत नहीं होता। यानी जो आपके पास है। उसमें ही हंसी-खुशी जिंदगी जीएं तो जीवन स्वर्ग की तरह हो जाएगा। भगवान शिव संन्यासियों की तरह जीवन जीते हैं। वह इच्छाओं से परे हैं। यदि कोई उनकी इन बातों को आत्मसात करे। तो सफलता उनके कदमों तले होगी
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
17 Apr, 2025 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- अपने व्यय पर नियंत्रण रखें, चिन्ता, भ्रमण तथा अशांति से बचें, कष्ट होगा।
वृष राशि :- कोई शुभ समाचार हर्षप्रद रखे, थकावट, बेचैनी तथा धन अच्छा व्यय होगा।
मिथुन राशि :- कुटुम्ब से तनाव, क्लेश व अशांति तथा मानसिक विभ्रम अवश्य होगा।
कर्क राशि :- अशुद्ध गोचर रहने से विशेष कार्य स्थगित रखें तथा व्यय अनायास होगा।
सिंह राशि :- स्त्री-वर्ग से कष्ट व चिन्ता, व्यय, व्यवसाय व कार्य उत्तम बन जायेंगे।
कन्या राशि :- अधिकारियों के तनाव तथा क्लेश से बचिये, दैनिक कार्यगति में बाधा होगी।
तुला राशि :- अशुद्ध गोचर रहने से विशेष कार्य स्थगित रखें, अग्नि-चोटादि का भय होगा।
वृश्चिक राशि :- अशुद्ध गोचर रहने से विशेष कार्य में बाधा होगी, बने कार्य बिगड़ सकते हैं।
धनु राशि :- व्यावसाय में बेचैनी तथा तनाव बनेगा, परिश्रम विफल होगा, शांत रहें।
मकर राशि :- चोट, कष्टादि का भय, अशुद्ध गोचर रहने से कार्य की हानि होगी।
कुंभ राशि :- स्त्री-वर्ग से तनाव, क्लेश व अशांति तथा मानसिक विभ्रम होगा।
मीन राशि :- समय ठीक नहीं विशेष कार्य स्थगित रखें तथा अनायास विभ्रम से अवश्य बचें।
अक्षय तृतीया पर 82 साल बाद ऐसा संयोग, करें ये काम, चमक जाएगी किस्मत
16 Apr, 2025 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में अक्षय तृतीया (Akshay Tritiya) के पर्व का विशेष धार्मिक महत्त्व है. हर साल वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को ये महापर्व मनाया जाता है. शास्त्रों में इस तिथि को ईश्वरीय तिथि कहा गया है. कहा जाता है कि इस दिन किए गए पुण्य काम का अक्षय फल मिलता है. इस बार अक्षय तृतीया पर कई शुभ संयोग बन रहे हैं. ज्योतिषियों का मानना है कि करीब 82 साल बाद ऐसा अद्भुत योग है, जो इस दिन को और शुभ बना रहे हैं. वैदिक हिंदू पंचांग के अनुसार, इस बार अक्षय तृतीया का महापर्व 30 अप्रैल को मनाया जाएगा. इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग के साथ शोभन योग का संयोग भी बन रहा है. इस दिन रवि योग भी है, जो पूरे रात्रि रहेगा.
सभी सिद्धियों की प्राप्ति
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभाग के प्रोफेसर विनय पांडेय कहते हैं कि सर्वार्थ सिद्धि योग में पूजा से सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती है. 30 अप्रैल को दोपहर 12 बजकर 02 मिनट से शोभन योग की शुरुआत हो रही है. शाम 4 बजकर 16 मिनट से रवि योग भी लग रहा है.
हर काम के लिए शुभ
पंचांग के अनुसार, इस बार वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि की शुरुआत 29 अप्रैल 2025 को शाम 5 बजकर 32 मिनट से हो रहा है, जो अगले दिन यानी 30 अप्रैल को दोपहर 2 बजकर 25 मिनट तक रहेगा. ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, 30 अप्रैल को ही अक्षय तृतीया के पर्व मनाया जाएगा.
धार्मिक मान्यता है कि इस दिन किए गए किसी भी शुभ कार्य का अक्षय फल मिलता है. इसलिए इस दिन बिना मुहूर्त के शादी, मुंडन, अन्नप्रासन सहित सभी मांगलिक कार्य किए जाते हैं.
पूजा के बाद भूलकर भी न करें ये 9 काम! पुण्य की जगह बनेंगे पाप के भागी! यहां जानें कौनसे हैं वे कार्य?
16 Apr, 2025 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
पूजा का समय घर में सबसे शांत, पवित्र और ऊर्जावान होता है. जब भी हम भगवान की आराधना करते हैं, तो उसका असर सिर्फ हमारे मन पर नहीं, हमारे पूरे शरीर और वातावरण पर भी पड़ता है. लेकिन अक्सर लोग पूजा के बाद कुछ ऐसे काम कर बैठते हैं, जो इस पवित्र ऊर्जा को नष्ट कर सकते हैं. अगर आप सच में चाहते हैं कि आपकी पूजा का पूरा फल मिले, तो इन बातों का ध्यान रखना बेहद ज़रूरी है. आइए जानते हैं
1. किसी को श्राप देना
अगर आप पूजा के बाद किसी को कोसते हैं या बुरा कहते हैं, तो वो आपके अपने ही जीवन में परेशानी खड़ी कर सकता है. इसलिए इस समय वाणी पर नियंत्रण रखना चाहिए.
2. मांस या शराब का सेवन
पूजा के बाद शुद्धता बनाए रखना जरूरी है. ऐसे में मांस या मदिरा का सेवन करने से मन और शरीर की शुद्धता नष्ट होती है.
3. नाखून या बाल काटना
पूजा करने के बाद शरीर और मन दोनों विशेष ऊर्जा में होते हैं. ऐसे में नाखून या बाल काटना शुभ नहीं माना जाता. इससे नकारात्मकता बढ़ सकती है.
4. किसी का अपमान करना
पूजा के बाद मन शांत और कोमल होता है. ऐसे में अगर आप किसी से गलत तरीके से बात करते हैं या उसका अपमान करते हैं, तो आपके द्वारा की गई पूजा का असर खत्म हो सकता है.
5. साधु संत का अपमान
अगर कोई संत या साधु पूजा के समय या बाद में आपके घर आता है, तो उसे दरवाजे से लौटाना बहुत ही अशुभ माना जाता है.
6. भोग तुरंत न खाना
भगवान को चढ़ाया गया भोग थोड़ा रुक कर ही खाना चाहिए. तुरंत ग्रहण करने से उसका आध्यात्मिक महत्व कम हो सकता है.
7. शारीरिक संबंध बनाना
इस समय शरीर शांत अवस्था में होता है और ऊर्जा अंदर की ओर केंद्रित रहती है. इसलिए पूजा के तुरंत बाद इस प्रकार की गतिविधियों से बचना चाहिए.
8. नमक युक्त भोजन
पूजा के तुरंत बाद नमक वाला खाना खाना भी ठीक नहीं माना गया है. इससे शरीर की ऊर्जा असंतुलित हो सकती है.
9. पैर धोना
पूजा के तुरंत बाद पैर धोने से भी पूजा का असर कम हो सकता है. इसलिए थोड़ी देर रुककर ही स्नान या पैर धोने जैसे काम करें.
8 महीने जल से डूबा रहता है काशी का यह मंदिर, एक श्राप की वजह से 9 डिग्री के एंगल पर झुका
16 Apr, 2025 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भोलेनाथ के त्रिशूल पर टिका वाराणसी शहर या काशी निराली है, निराली हैं यहां की गलियां और निराले हैं ‘बाबा की नगरी’ के मंदिर भी. काशी की धरती पर कदम रखते ही आपको कई ऐसी चीजें दिखेंगी, जिसे देखकर आप हैरत में पड़ जाएंगे. किसी पतली सी गली में हर साल तिल के बराबर बढ़ते तिलभांडेश्वर विराजमान हैं, तो कहीं गंगा को स्पर्श करता 9 डिग्री के एंगल पर झुका प्राचीन रत्नेश्वर महादेव का मंदिर. विदेशी हों या स्वदेशी सैलानी, अद्भुत नगरी को देखकर बोल पड़ते हैं ‘का बात हौ गुरु’. इस प्राचीन मंदिर को देखकर इटली के पीसा टॉवर की याद आपको आएगी लेकिन यह मंदिर पीसा टॉवर से भी ज्यादा झुका हुआ है.
9 डिग्री के एंगल पर झुका रत्नेशवर मंदिर
काशी के ज्योतिषाचार्य, यज्ञाचार्य एवं वैदिक कर्मकांडी पं. रत्नेश त्रिपाठी ने रत्नेश्वर महादेव के मंदिर के बारे में विस्तार से जानकारी दी. उन्होंने बताया है कि भगवान शिव के मंदिर को देखकर आपको आश्चर्य होगा. 9 डिग्री के एंगल पर झुका रत्नेशवर मंदिर बनारस के 84 घाटों में से एक सिंधिया घाट पर स्थित है. गुजराती शैली में बने इस मंदिर में गजब की कलाकृति उत्कीर्ण है. नक्काशी के साथ इसके अनोखेपन को देखने के लिए दुनियाभर से लोग यहां आते हैं. इस मंदिर को मातृ ऋण महादेव, काशी का झुका मंदिर या काशी करवात के नाम से भी जाना जाता है.
अहिल्याबाई ने दिया श्राप
ज्योतिषाचार्य ने यह भी जानकारी दी कि मंदिर का निर्माण कैसे हुआ. पं. त्रिपाठी ने बताया कि रानी अहिल्याबाई ने गंगा किनारे की यह जमीन अपनी दासी रत्नाबाई को दी थी, जिसके बाद रत्नाबाई ने इस मंदिर का निर्माण करने की योजना बनाई और उसे पूरा भी किया. रानी अहिल्याबाई ने केवल जमीन नहीं बल्कि मंदिर निर्माण के लिए उन्हें धन भी दिया था. निर्माण पूरा होने के बाद जब अहिल्याबाई वहां पहुंचीं तो वह मंदिर की खूबसूरती से मोहित हो गईं और दासी से बोलीं “मंदिर को कोई नाम देने की जरूरत नहीं है. लेकिन रत्नाबाई ने इसे अपने नाम से जोड़ते हुए रत्नेश्वर महादेव का नाम दे दिया. इससे अहिल्याबाई नाराज हो गईं और उन्होंने श्राप दे दिया और मंदिर झुक गया.
सावन में बाबा के दर्शन संभव नहीं
काशी के वासी और श्रद्धालु सोनू अरोड़ा ने मंदिर के बारे में रोचक जानकारी दी. उन्होंने बताया कि हम लोग बाबा के दर्शन के लिए हमेशा आते हैं. लेकिन भोलेनाथ को प्रिय सावन के महीने में रत्नेश्वर महादेव में दर्शन-पूजन नहीं हो पाता. वजह है सावन के महीने में गंगा नदी का बढ़ता जलस्तर. गर्भगृह में गंगा का जल आ जाता है, जिससे बाबा के दर्शन संभव नहीं हो पाते. 12 महीनों में से लगभग 8 महीने तक यह मंदिर जल में डूबा रहता है, जिससे दर्शन संभव नहीं हो पाता है.
रत्नेश्वर मंदिर को लेकर अन्य कथा
रत्नेश्वर मंदिर को लेकर एक दंत कथा भी प्रचलित है. कहा जाता है कि राजा मानसिंह के एक सेवन में अपनी मां रत्नाबाई के लिए एक मंदिर बनवाया था. मंदिर बनवाने के बाद सेवक के अंदर घमंड आ गया और घोषणा करने लग गया कि उसने अपनी मां का कर्ज चुका दिया था. यह बात जितना वह बोलता गया, मंदिर उतना ही झुकता गया. लेकिन मां के ऋण से कभी मुक्त नहीं हुआ जा सकता इसलिए यह मंदिर टेढ़ा हो गया.
शुरू हुआ वैशाख का महीना, इसमें कर लें ये छोटे-छोटे काम, बनने लगेंगे हर कार्य, मिलेगी कृष्ण कृपा
16 Apr, 2025 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू कैलेंडर के अनुसार दूसरा माह 14 अप्रैल से प्रारंभ हो चुका है और यह वैशाख का महीना कहलाता है. इस माह को कई लोग माधव मास भी कहते हैं. क्योंकि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार वैशाख माह में मुख्य रूप से भगवान श्रीकृष्ण व विष्णु जी की आराधना की जाती है. मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु को वैशाख का महीना बहुत प्रिय होता है.
हिंदी महीनों में वैशाख की गिनती सबसे शुभ मास में की जाती है. वहीं ज्योतिषशास्त्र के अनुसार अगर इस महीने कुछ विशेष उपाय कर लिये जाएं तो व्यक्ति को इससे पुण्य व शुभ फलों की प्राप्ति होती है. कि वैशाख के महीने में किन-किन चीजों का दान करना चाहिए और कौन से कार्य करने से बचना चाहिए.
वैशाख माह में जरूर करें ये कार्य, मिलेगा पुण्य
वैशाख माह में पूजा-पाठ ,स्नान और दान का बहुत
महत्व है. यह समय है जब आप छोटे-छोटे कार्य से भी बड़े पुण्य प्राप्त कर सकते हैं, इसलिए वैशाख के पवित्र माह में ये कार्य करना चाहिए
जल का दान करें
तेज धूप में राहगीरों के लिए प्याऊ लगवाना या उन्हें शीतल जल पिलाना पुण्यदायी होता है. वैशाख का महीना बहुत गर्म होता है ऐसे में सिर्फ इंसान ही नहीं बल्कि पशु-पक्षियों के लिए भी दाना-पानी रखना बेहद पुण्य का काम माना जाता है. इसलिए इस माह ये कार्य जरूर करें.
फलों का दान
इस महीने गरीबों को आम, खरबूजा जैसे फल जो की शरीर में पानी की पूर्ति करते हैं ऐसे फलों का दान करना बेहद अच्छा माना जाता है.
जूते-चप्पल का दान करना
जूते-चप्पल का दान करना बहुत शुभ माना जाता है. इससे न केवल उनकी दुआ लगती हैं बल्कि सौभाग्य भी बढ़ता है और तो और कुंडली में मौजूद खराब शनि की स्थिति में भी सुधार होता है.
वैशाख माह में भूलकर भी ना करें ये काम
वैशाख माह में तेज गर्मी होती है ऐसे में कुछ बातों पर ध्यान देने से स्वास्थ्य और धर्म दोनों की रक्षा होती है. जब सूर्य सिर के ऊपर होता है उस समय बाहर निकलने से बचें.
वैशाख के महीने में तली-भुनी व मसालेदार चीजों से दूरी बनाकर रखें और जितना हो सके हल्का, सादा और ठंडक देने वाला भोजन करें.
वैशाख के महीने में देर रात भोजन करने से बचें, क्योंकि यह आपका पाचन बिगड़ता है और धार्मिक दृष्टि से देखा जाए तो भी यह अनुचित माना गया है.
इस माह में जमीन पर सोना अच्छा माना जाता है यह न केवल स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है बल्कि यह विनम्रता और तपस्या का प्रतीक भी है.