धर्म एवं ज्योतिष
लगती थी तगड़ी भूख, साधु ने बताई ऐसी ट्रिक, बरसने लगे एकादशियों के फल
3 Jun, 2025 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में एकादशी का काफी महत्त्व है. एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है. इस दिन भगवान विष्णु के निमित्त व्रत और पूजा पाठ करने पर सभी मनोकामनाएं बिना मांगे ही पूर हो जाती हैं. साल में 24 एकादशी तिथि का आगमन होता है. एकादशी का व्रत करने से जीवन में चल रही सभी समस्याएं और बाधाएं खत्म हो जाती हैं. सभी एकादशियों का अपना अलग-अलग महत्त्व है. ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी का व्रत करने से सभी एकादशियों का फल प्राप्त होता है. पौराणिक कथा के अनुसार, निर्जला एकादशी माता कुंती और पांडवों से जुड़ी हुई है.
कुंती और भीम से कनेक्शन
पंडित श्रीधर शास्त्री बताते हैं कि ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष में निर्जला एकादशी का व्रत किया जाता है. सभी एकादशी तिथि के दिन विष्णु भगवान की पूजा अर्चना, आराधना, स्त्रोत और व्रत आदि करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस एकादशी का महत्त्व महाभारत से जुड़ा हुआ है. माता कुंती साल में होने वाली सभी एकादशियों का व्रत विधि विधान से करती थीं. भीम अपनी भूख पर नियंत्रण न रखने के कारण कोई भी व्रत नहीं कर पाते. इसका समाधान जानने के लिए भीम ने महर्षि वेदव्यास के सामने अपनी समस्या रखी. वेदव्यास ने कहा कि ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष में निर्जला एकादशी का आगमन होता है. यदि इस एकादशी का व्रत किया जाए तो सभी 24 एकादशी का फल प्राप्त होता है. भीम ने पहली बार निर्जला एकादशी का व्रत किया, जिस कारण उन पर विष्णु भगवान की कृपा सदैव बनी.
सबसे कठिन व्रत
निर्जला एकादशी का व्रत विधि विधान से करने पर सभी एकादशियों का फल प्राप्त होता है और विष्णु भगवान की कृपा सदैव बनी रहती है. निर्जला एकादशी का व्रत सबसे कठिन और विशेष फल प्रदान करने वाला होता है. इस दिन सबसे पहले ब्रह्म मुहूर्त में उठकर व्रत का संकल्प करके स्नान आदि करते हैं. पूरे दिन बिना खाए पिए रहकर विष्णु भगवान की पूजा पाठ, आराधना और महा फलदायक मंत्र “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” का 108 या अपनी सामर्थ्य के अनुसार जाप करने पर सभी समस्याएं खत्म हो जाती हैं. साल 2025 में निर्जला एकादशी का व्रत 6 और 7 जून को किया जाएगा, जिसमें गृहस्थ जीवन में रहने वाले साधक 6 जून और साधु संत 7 जून को निर्जला एकादशी का व्रत करके पुण्य अर्जित कर सकते हैं.
चमत्कारी है ये मंदिर...जहां शांत हुआ भगवान शिव का रौद्र रूप, ब्रह्मांड की आई जान में जान
3 Jun, 2025 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
उत्तराखंड की देवभूमि ऋषिकेश आध्यात्मिकता, प्राकृतिक सौंदर्य और सांस्कृतिक विविधता का अनूठा संगम है. यह तीर्थनगरी योग और ध्यान के लिए जितनी प्रसिद्ध है, उतनी ही यहां स्थित प्राचीन मंदिरों के लिए भी जानी जाती है. इन्हीं मंदिरों में से एक है– वीरभद्र मंदिर, जो ऋषिकेश के आमबाग आईडीपीएल कॉलोनी क्षेत्र में है. यह मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि इसका ऐतिहासिक और पौराणिक महत्त्व भी अत्यंत गहरा है. Local 18 के साथ बातचीत में इस मंदिर के पुजारी प्रदोष थपियाल बताते हैं कि वीरभद्र मंदिर को सैकड़ों साल पुराना माना जाता है. इसकी मान्यता सीधे भगवान शिव से जुड़ी है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब दक्ष प्रजापति ने अपने यज्ञ में भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया और माता सती ने उसी अपमान के कारण यज्ञ अग्नि में अपने प्राण त्याग दिए, तब भगवान शिव ने क्रोध में आकर अपने जटाओं को पृथ्वी पर पटका. उसी से उत्पन्न हुए उनके रौद्र अवतार वीरभद्र. वीरभद्र ने दक्ष के यज्ञ को विध्वस्त कर दिया और पूरे ब्रह्मांड में भय व्याप्त हो गया.
रौद्र और शांत दोनों रूपों की पूजा
कहा जाता है कि यहीं ऋषिकेश के वीरभद्र क्षेत्र में भगवान शिव ने वीरभद्र को शांत किया था, तभी से यह स्थान वीरभद्र शिवलिंग के रूप में प्रतिष्ठित हुआ और एक मंदिर का स्वरूप ले लिया. वीरभद्र मंदिर का यह शिवलिंग स्वयंभू माना जाता है. यहां भगवान शिव के रौद्र और शांत दोनों स्वरूपों की पूजा होती है. मंदिर की वास्तुकला प्राचीन शैली की है. परिसर में प्रवेश करते ही श्रद्धालु आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव करते हैं. यह मंदिर स्थानीय लोगों की आस्था का केंद्र तो है ही, देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए भी खास स्थान है.
सावन में जमघट
स्थानीय लोग मानते हैं कि यहां दर्शन मात्र से जीवन के संकट कट जाते हैं और शिव कृपा से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. वीरभद्र मंदिर में सावन के महीने और श्रावण सोमवार को भी बड़ी संख्या में भक्त जुटते हैं और जलाभिषेक कर भोलेनाथ का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. हर वर्ष महाशिवरात्रि पर यहां एक विशाल और भव्य मेला आयोजित किया जाता है. इस मेले में दूर-दराज से श्रद्धालु पहुंचते हैं और रात्रि जागरण, भजन-कीर्तन और विशेष पूजा अनुष्ठानों का आयोजन होता है. यह मेला न केवल धार्मिक गतिविधियों का मंच होता है, बल्कि यहां सांस्कृतिक प्रस्तुतियां और स्थानीय हस्तशिल्प की झलक भी देखने को मिलती है.
क्या धरती पर आने वाली है आपदा? उज्जैन महाकाल मंदिर से मिला बड़ा संकेत, पुजारी ने बताया शिवजी का इशारा
3 Jun, 2025 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
विश्व प्रसिद्ध बाबा महाकाल के दरबार में करोड़ो लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है. यहां मंदिर को लेकर सैकड़ो मान्यता प्रचलित है, जो समय-समय पर देखने को मिलती है. नोतपा के दौरान भी मौसम में गर्मी नही ठंडी हवा के साथ आंधी-तूफान देखनें को मिला. इसी बीच, महाकाल मंदिर में एक अप्रत्याशित घटना हुई. तेज हवा के कारण महाकालेश्वर मंदिर के शिखर पर लगा सोने का ध्वज अचानक गिर गया, जिससे महाकाल के श्रद्धांलु तरह-तरह की बात सामने आ रही है.
दरअसल, यह पूरा मामला दो से तीन दिन पुराना बताया जा रहा है. इस घटना में अच्छी बात यह रही कि किसी को चोट नहीं आई. लेकिन, इस घटना ने मंदिर प्रशासन की सावधानी और व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं. ध्वज को फिर से लगाने का काम शुरू हो गया है. वहीं, पुजारी मान रहे हैं कि ये अनिष्ट के भी संकेत होते हैं. हालांकि यहां भगवान स्वंय विराजमान हैं तो ऐसी संभावना कम है.
जानिए कब गिरा ध्वज?
दो-तीन दिन पहले तेज हवा चलने से उज्जैन मे कहीं जगह आंधी-तूफान देखने वाली स्थिति थी. हो सकता है जब यह ध्वज ढीला होगया होगा और नीचे गिर गया. यह ध्वज सालों से भक्ति और परंपरा का प्रतीक रहा है. दो-तीन दिन पहले तेज हवा चलने से यह ढीला हो गया और नीचे गिर गया. जब यह घटना हुई, तब मंदिर में सैकड़ों भक्त दर्शन के लिए मौजूद थे. मंदिर प्रशासन ने तुरंत उस जगह को खाली करा लिया और गिरे हुए ध्वज को सुरक्षित रख लिया.
महाकाल के आगे नहीं हो सकता अनिस्ट
मंदिर के पुजारि महेश शर्मा नें बताया कि यह घटना बहुत ही असामान्य है. यह धार्मिक रूप से चिंता का विषय है. परंपरा के अनुसार, गिरे हुए ध्वज को फिर से लगाया जाएगा. इसके लिए शिखर पर मचान बांधकर ध्वजा लगाने का काम चल रहा ह, लेकिन महाकाल स्वयंम मृत्यु को हरने वाले कहे गए है. उनके रहते कुछ अनिस्ट नहीं हो सकता है. इसलिए यह भन्ति ना रखें की कुछ गलत होने वाला है.
कालों के काल है भगवान महाकाल
मंदिर के पुजारी ने इस घटना पर अपना जवाब देते हुए स्पस्ट कर दिया वैसे, तो बाबा महाकाल कालों के काल हैं. वे खुद सभी प्रकार की विपत्तियां को दूर करने वाले हैं. परंतु शिखर का ध्वज गिरने की घटना को यदि अनिष्ट माना जा, तो इसके लिए सभी को भक्ति भाव पूजन पाठ व ध्यान करना चाहिए.
आज का राशिफल: जानिए क्या कहती हैं आपकी किस्मत की सितारे
3 Jun, 2025 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- तनाव, रोग, उदर विकार, लाभ, राजभय, पारिवारिक समस्या उलझी रहेंगी।
वृष राशि :- शत्रुभय, सुख, मंगल कार्य, विरोध, मामले-मुकदमे में जीत की सम्भावना रहेगी।
मिथुन राशि :- कुसंगत से हानि, विरोध, व्यय, यात्रा व सामाजिक कार्यों में सावधानी रखें।
कर्क राशि :- पराक्रम, कार्यसिद्ध, व्यापार लाभ, सामान्य लाभ हो सकता है, कार्य बनेंगे।
सिंह राशि :- तनाव, प्रवास से बचें, विरोध, चिन्ता, राजकार्य में प्रतिष्ठा मिल सकती है।
कन्या राशि :- भूमि लाभ, स्त्री सुख, हर्ष, प्रगति, स्थिति में सुधार, लाभ की गति बढ़ेगी।
तुला राशि :- प्रगति, वाहन भय, भूमि लाभ, कलह, कुछ अच्छे कार्य भी होंगे, लाभ होगा।
वृश्चिक राशि :- कार्य सिद्ध, विरोध, लाभ, कष्ट, हर्ष, व्यय होगा, व्यापार में सुधार, कार्य होगा।
धनु राशि :- यात्रा में हानि, मातृ-पितृ कष्ट, व्यय, उन्नति में कुछ कमी, व्यवस्था की अनुभूति।
मकर राशि :- शुभ कार्य, वाहनादि रोगभय, धार्मिक कार्य, कुछ अच्छे कार्य हो सकते हैं, ध्यान रखें।
कुंभ राशि :- अभिष्ट सिद्धी, राजभय, कार्य बाधा, सामाजिक कार्यों से लाभ होगा।
मीन राशि :- अल्प हानि, रोगभय, सम्पत्ति लाभ, राजकार्य में विलम्ब, परेशानी होगी।
भगीरथ के पुरखों को तारने पृथ्वी पर आई थीं गंगा, अपने पितरों के लिए गंगा दशहरा पर करें ये उपाय, मिलेगा मोक्ष!
2 Jun, 2025 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में हर साल ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा का त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन गंगा मैया की पूजा-अर्चना की जाती है. मान्यता है कि गंगा दशहरा के अवसर पर गंगा नदी में स्नान करने से व्यक्ति को अनजाने में की गई गलतियों के लिए पाप से मुक्ति मिलती है. शुभ फलों की प्राप्ति होती है.
इसके अलावा, गंगा दशहरा पितृ पूजा के लिए भी जाना जाता है. क्योंकि, मांग गंगा का धरती पर अवतरण भगरीरथ के पूरखों की मुक्ति के लिए ही हुआ था. इसी क्रम में उज्जैन के आचार्य आनंद भारद्वाज ने बताया कि अगर गंगा दशहरा पर आप गंगाजी में जाकर स्नान नहीं कर पा रहे तो निराश न हों. घर पर कुछ अचूक उपाय से गंगा स्नान के बराबर ही पुण्य प्राप्त किया जा सकता है. पितरों को भी प्रसन्न किया जा सकता है.
कब मनाया जाएगा गंगा दशहरा
वैदिक पंचांग के अनुसार, गंगा दशहरा की दशमी तिथि की शुरुआत 4 जून को रात 11:55 बजे होगी और यह तिथि 6 जून को रात 2:14 बजे समाप्त होगी. उदया तिथि के अनुसार, इस साल गंगा दशहरा का पर्व 5 जून, 2025 को मनाया जाएगा.
जरूर करें ये काम, पूर्वज का मिलेगा आशीर्वाद
गंगा दहशरा के दिन जो लोग गंगा स्नान नहीं कर सकते हैं, फिर भी अपने पितृ को तृप्त करना चाहते हैं तो सबसे पहले इस दिन स्नान करते वक्त जल में गंगाजल मिला लेना चाहिए. उसके बाद स्नान करें. काला तिल और सफेद पुष्प लेकर पितृ का तर्पण करें. पितृ चालीसा का पाठ करें.
यह दिन पितृ को प्रसन्न करने के लिए बेहद शुभ है. इस दिन पितरों के निमित्त तर्पण करें, क्योंकि राजा भगीरथ पितृ की तृप्ति के लिए ही मां गंगा को धरती पर लाए थे. इस दिन पितृ तर्पण, पिंडदान, दान, श्राद्ध और दीपदान जरूर करना चाहिए.
इस दिन संध्या के समय पीपल वृक्ष के नीचे पितृ के नाम से दीपदान करें. ऐसा करने से आपको घर बैठे ही पितृ दोष से मुक्ति मिल जाएगी और पितृ प्रसन्न होंगे, जिससे घर में सुख-समृद्धि की वृद्धि होगी और वंश पर सकारात्मक असर पड़ेगा.
जिस नदी के जल को नीम करौली बाबा ने बना दिया घी, विवेकानंद भी उसके किनारे लगा चुके ध्यान
2 Jun, 2025 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
उत्तराखंड के नैनीताल का कैंची धाम आज देशभर में आस्था का एक प्रमुख केंद्र बन चुका है. हर साल लाखों श्रद्धालु यहां बाबा नीम करौली बाबा के दर्शन और उनके चमत्कारों की अनुभूति के लिए पहुंचते हैं. बाबा के जीवन से जुड़ी कई चमत्कारी कथाएं लोगों के बीच आज भी जीवित हैं. ऐसी ही एक कहानी उत्तरवाहिनी शिप्रा नदी से जुड़ी है, जो आज भी कैंची धाम के पास बहती है और रहस्य, श्रद्धा और शांति का प्रतीक मानी जाती है.
कहते हैं कि एक बार कैंची धाम में 15 जून को होने वाले वार्षिक भंडारे के दौरान अचानक घी की भारी कमी हो गई. भक्तों में चिंता का माहौल था क्योंकि प्रसाद के लिए घी अनिवार्य था. आसपास के क्षेत्रों से घी मंगाने की कोशिशें नाकाम रहीं. तब बाबा नीम करौली ने शिप्रा नदी से जल लाने का आदेश दिया. भक्तों ने जैसे ही नदी से जल लाकर बाबा के सामने रखा, बाबा ने उस जल को आशीर्वाद देते हुए कहा “अब यह घी है, जाओ और इससे प्रसाद बनाओ.” आश्चर्य की बात यह थी कि वह जल सचमुच घी में बदल गया. उसी घी से मालपुए बनाए गए और भंडारा सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ. भंडारे के बाद बाबा ने कहा कि जितना घी हमने शिप्रा से लिया था उतना घी वापिस शिप्रा को देकर आओ, जिसके बाद घी को शिप्रा नदी में वापस डाल दिया गया.
मोक्षदायिनी, पाप नाशिनी
यह चमत्कार शिप्रा नदी की धार्मिक और आध्यात्मिक महत्ता को और भी बढ़ा देता है. भवाली से होकर बहने वाली यह शिप्रा नदी एक उत्तरवाहिनी नदी है, यानी यह दक्षिण से उत्तर की ओर बहती है. भारत में अधिकतर नदियां उत्तर से दक्षिण की ओर बहती हैं, इसलिए उत्तरवाहिनी नदियों को अत्यंत पवित्र और दुर्लभ माना जाता है. स्कंद पुराण के मानसखंड में इस नदी का विशेष उल्लेख मिलता है और इसे मोक्षदायिनी तथा पाप नाशिनी कहा गया है.
सदियों बाद भी उतनी पवित्र
शिप्रा कल्याण समिति के अध्यक्ष जगदीश नेगी बताते हैं कि इस नदी का उद्गम भवाली के श्यामखेत स्थित देवदार और चीड़ के जंगलों से होता है. भवाली शहर के लिए यह नदी जीवनरेखा है. कहा जाता है कि बाबा नीम करौली अक्सर शिप्रा नदी के किनारे एक पत्थर पर बैठकर साधना किया करते थे. स्वामी विवेकानंद ने भी उत्तराखंड यात्रा के दौरान इसी नदी के तट पर ध्यान लगाया था. आज भी यह नदी श्रद्धालुओं के लिए उतनी ही पवित्र है जितनी सदियों पहले थी. इसे केवल एक नदी नहीं, बल्कि आस्था और चमत्कार की धारा के रूप में देखा जाता है, जिसे बचाए रखना सबकी जिम्मेदारी है.
जिन महिलाओं में होती हैं ये आदतें, वो अपने ही हाथों से कर देती हैं अपना घर बर्बाद, जानें चाणक्य की ये खास बातें
2 Jun, 2025 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
आचार्य चाणक्य भारत के प्राचीनतम और सबसे बुद्धिमान नीतिशास्त्रियों में से एक माने जाते हैं. उन्होंने जीवन के हर पहलू को बहुत ध्यान और गहराई से समझा और बताया कि इंसान की आदतें उसका आने वाला समय तय करती हैं. उनके मुताबिक, एक महिला पूरे घर की जान होती है, वो चाहे तो अपने परिवार को खुशहाल बना सकती है और अगर उसके बर्ताव में गड़बड़ हो, तो वही घर परेशानी से भर सकता है. चाणक्य नीति में ऐसी महिलाओं के बारे में बताया गया है, जिनकी कुछ बुरी आदतें परिवार की शांति, इज्जत और तरक्की को धीरे-धीरे खत्म कर देती हैं. ये बातें किसी को नीचा दिखाने के लिए नहीं, बल्कि लोगों को सच्चाई समझाने और सुधार की ओर ले जाने के लिए कही गई हैं. आज के समय में भी इन बातों का मतलब उतना ही जरूरी है जितना पुराने जमाने में था. आइए जानते हैं चाणक्य की उन नीतियों के बारे में.
1. जरूरत से ज्यादा खर्च करने की आदत
आचार्य चाणक्य के अनुसार, अगर कोई महिला सोच-समझकर पैसे खर्च नहीं करती और हर चीज पर जरूरत से ज्यादा पैसा उड़ाती है, तो घर की आर्थिक हालत बिगड़ सकती है. चाहे पति कितना भी कमा ले, अगर पत्नी फिजूलखर्च करती हो तो पैसे कभी टिक नहीं पाते. कपड़े, गहने, मेकअप, सजावट जैसी चीजों में बिना जरूरत के खर्च करना घर को धीरे-धीरे कंगाल बना सकता है.
2. हर बात पर गुस्सा और झगड़ा करना
अगर कोई महिला हमेशा गुस्से में रहती है और छोटी-छोटी बातों पर झगड़ती है, तो घर का माहौल खराब हो जाता है. आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जिस घर में रोज लड़ाई-झगड़ा होता है, वहां लक्ष्मी यानी पैसा और बरकत नहीं टिकती. ऐसा घर शांति और सुख से खाली हो जाता है.
3. हर किसी की बुराई करना
आचार्य चाणक्य के अनुसार, जो महिला दूसरों की बुराई करने, पड़ोसियों की बातें करने और अपने घर की बातें बाहर कहने की आदत में लगी रहती है, वो अपने परिवार की इज्जत को खुद ही खराब कर देती है. इससे रिश्तों में दरार आती है और समाज में परिवार की छवि भी खराब होती है.
4. अपने पैसे या सुंदरता का घमंड करना
जो महिला अपनी सुंदरता, पैसे या परिवार की शोहरत पर घमंड करती है, वो धीरे-धीरे अकेली रह जाती है. घमंड से कोई किसी की इज्जत नहीं करता. जब घर में प्यार की जगह अहंकार आ जाता है, तो रिश्ते टूटने लगते हैं. चाणक्य ने कहा है कि घमंड करने वाली औरत अपने ही हाथों से अपना घर बर्बाद कर सकती है.
5. पति की कमाई को कम समझना
अगर कोई महिला अपने पति की कमाई से खुश नहीं रहती, उसे ताने देती है या दूसरों से तुलना करती है, तो इससे पति का मन टूट जाता है. वो दुखी हो जाता है और रिश्तों में खटास आने लगती है. चाणक्य कहते हैं कि ऐसी स्त्री अपने ही घर की नींव को हिला देती है. धीरे-धीरे परिवार में तनाव और पैसों की तंगी बढ़ जाती है.
आज का राशिफल: जानिए क्या कहती हैं आपकी किस्मत की सितारे
2 Jun, 2025 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- किसी शुभ समाचार के मिलने का योग है, व्यवसायिक स्थिति ठीक होगी|
वृष राशि :- मनोवृत्ति संवेदनशील रहेगी, कार्यगति अनुकूल चिन्ता कम अवश्य होगी|
मिथुन राशि :- किसी प्रलोभन से हानि, मनोवृत्ति संवेदनशील रहेगी तथा कार्यगति उत्तम होगी|
कर्क राशि :- अनायास यात्रा में उद्विघ्नता बने, स्त्री वर्ग से कुछ वाद विवाद परेशानी बनेगी|
सिंह राशि :- विरोधियों के षड़यंत्र से मानसिक परेशानी होगी तथा बेचैनी बढ़ेगी ध्यान रखे|
कन्या राशि :- शारीरिक कष्ट, राजभय तथा व्यापार उद्योग धंधे में अड़चन के बाद लाभ होगा|
तुला राशि :- व्यवसाय योग निश्चय, धार्मिक कार्य, कष्ट, व्यय परेशानी बनेगी|
वृश्चिक राशि :- बाधा, उलझने, लाभ यात्रा से कष्ट तथा व्यय अनाप शनाप अवश्य होगा|
धनु राशि :- शत्रु भय मुकदमे में जीत, रोग भय, व्यय होगा, व्यापार में सुधार अवश्य होगा|
मकर राशि :- व्यापार में लाभ, शत्रु भय, धन सुख, धार्मिक खर्च बनेंगे, लाभ होगा।
कुंभ राशि :- कलह, व्यर्थ खर्च, सफलता प्राप्त, विरोधी असफल रहेंगे, व्यापार बढ़ेगा।
मीन राशि :- स्वजन सुख, पुत्र चिन्ता, सुख की हानि, व्यापार की स्थिति अच्छी बनी रहेगी|
महाभारत: अर्जुन नहीं बल्कि इस पांडव ने किया द्रौपदी से सच्चा प्यार, नहीं देख पाता था आंखों में आंसू
1 Jun, 2025 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
लोगों को लगता होगा कि द्रौपदी से सबसे ज्यादा प्यार अर्जुन ने किया होगा, हकीकत में ऐसा नहीं है. बल्कि पांडवों में एक भाई ऐसा था, जिसने जीवनभर द्रौपदी के लिए सबकुछ किया. वह कभी उसकी आंखों में ना तो आंसू बर्दाश्त कर पाता था और ना ही उसका दुख. जिंदगीभर उसके दुखसुख में साथ खड़ा रहा. हां, ये बात अलग है कि द्रौपदी ने सबसे ज्यादा प्यार अर्जुन से किया लेकिन अर्जुन से धोखा भी मिला. तो क्या आपको मालूम है कि कौन है वो पांडव भाई, जिसने उसे सबसे ज्यादा चाहा.
द्रौपदी ने शर्त रखी थी कि जिस घर में वह पांचों पांडव भाइयों के साथ रहती है, इसमें कोई पांडव दूसरी स्त्री को लेकर नहीं आएगा. इस शर्त को सबसे पहले जिसने तोड़ा, वो अर्जुन ही थे, जो जब सुभद्रा को शादी करके उसी महल में लाए तो द्रौपदी बहुत नाराज हुई थी. शादी दूसरे पांडव भाइयों ने किया लेकिन उनकी पत्नियां अलग महलों में रहती थीं. हम आपको बताते हैं कि किस पांडव ने उससे ऐसी मोहब्बत की कि कभी उसकी आंखों में आंसू नहीं देख पाया. बाकि पांडवों ने तो केवल पति की ही भूमिका ज्यादा निबाही.
महाभारत में द्रौपदी और पांडवों के संबंधों के बारे में बहुत विस्तार से बताया गया है. जब द्रौपदी स्वयंवर के बाद पांचों पांडवों के साथ घर आई तो उसे लगा था कि वह केवल अर्जुन की पत्नी बनेगी लेकिन कुंती ने ऐसी बात कह दी कि उसे पांचों भाइयों की पत्नी बनना पड़ा. इससे वह शुरू में बहुत दुखी हुई लेकिन फिर इस भूमिका के साथ खुद को ढाल लिया.
पांचों पांडव द्रौपदी को प्रेम और सम्मान देते थे, लेकिन एक पांडव ऐसा भी था, जो वास्तव में उससे इतना सच्चा प्यार करता था कि उसके लिए सबकुछ करने को तैयार रहता था. ये ऐसा पांडव था, जिसने हमेशा द्रौपदी की हर इच्छा पूरी की. क्या आप अंदाजा लगा सकते हैं कि ये पांडव कौन था. वैसे हम ये बता देते हैं कि द्रौपदी ने हमेशा पांचों भाइयों में सबसे ज्यादा अगर किसी को चाहा तो वो अर्जुन थे लेकिन अर्जुन से बदले में वैसा प्यार नहीं मिला.
वो पांडव द्रौपदी के लिए सबकुछ करने को तैयार रहता था
तो वो कौन सा पांडव था, जो वाकई उसके लिए आसमान से तारे तोड़ लाने के लिए तैयार रहता था. समय आने पर उसने एक बार नहीं बल्कि कई बार द्रौपदी के लिए ऐसे ऐसे काम किए, जो किसी पांडव ने नहीं किए.
हर पग पर साथ खड़ा होता था, संबल देता था
ये भीम थे, जिन्हें द्रौपदी से सबसे अधिक प्रेम करने वाला माना जाता है. जब भी द्रौपदी अपमानित या दुखी होती थीं, भीम हमेशा उनकी मदद के लिए खड़े रहते थे. जुए के बाद द्रौपदी के चीरहरण की घटना के दौरान भीम ने दुर्योधन और दुःशासन को खुलेआम उनकी मृत्यु की शपथ ली, तब युधिष्ठिर ने तो उसे दाव पर ही लगा दिया था तो दूसरे भाई चुपचाप उसका ये अपमान देखते रह गए.
कठिन से कठिन काम किए
वनवास के दौरान जब कीचक ने द्रौपदी का अपमान किया, तो भीम ने बिना किसी हिचकिचाहट के उसे मार डाला. भीम ने द्रौपदी की हर इच्छा पूरी करने का प्रयास किया.वनवास के दौरान द्रौपदी के लिए भीम ने कुबेर के जंगल से सौगंधिका फूल लाने का कठिन काम किया. इन दुर्लभ फूलों को पाने के लिए भीम ने कुबेर के वन (गंधमादन पर्वत) तक का कठिन रास्ता तय किया. इस यात्रा में उन्होंने यक्षों और राक्षसों का वध किया और फूल लाकर द्रौपदी की इच्छा पूरी की.
द्रौपदी के लिए प्रतिज्ञा ली और पूरा किया
द्रौपदी के चीरहरण का बदला लेने के बाद भीम ने महाभारत के युद्ध में दुःशासन को मारकर उसके रक्त से अपनी प्रतिज्ञा पूरी की. वनवास के दौरान वह लगातार द्रौपदी को ये आश्वासन देते थे कि सभी कौरवों को उनके कृत्यों के लिए दंडित जरूर करेंगे. ऐसा उन्होंने किया भी. युद्ध के दौरान, भीम ने दुर्योधन सहित कई कौरवों को मारा. द्रौपदी के अपमान का बदला लेने के लिए उन्होंने दुर्योधन की जंघा तोड़ी, जैसा उन्होंने चीरहरण के समय प्रतिज्ञा की थी.
भीम ने द्रौपदी को वनवास में बार-बार सांत्वना दी. उसकी इच्छाओं को पूरा करने के लिए हरसंभव प्रयास किया. उनका प्रेम और समर्पण निःस्वार्थ और गहरा था, जो उन्हें द्रौपदी के सबसे करीबी और विश्वासपात्र पांडव के रूप में पेश करता है. भीम का प्रेम न केवल उनके कार्यों में बल्कि उनके शब्दों और भावनाओं में भी प्रकट होता है. द्रौपदी खुद भीम के साथ खुद को सबसे ज्यादा सुरक्षित महसूस करती थी.
भीम ने द्रौपदी को सबसे अधिक समर्पित और निःस्वार्थ प्रेम किया. उनके प्रेम में द्रौपदी की हर खुशी और दुख का ख्याल रखना था.उनके काम भी साबित करते हैं कि उन्होंने द्रौपदी के सम्मान और सुख के लिए अपनी पूरी शक्ति झोंक दी.
अर्जुन ने कई शादियां की और कई बार प्यार
जहां अर्जुन के साथ द्रौपदी के रिश्ते की सवाल है तो निश्चित तौर पर द्रौपदी पांचों पांडवों में सबसे ज्यादा प्यार और लगाव अर्जुन से रखती थी. हालांकि अर्जुन वैसा कभी नहीं किया, जो कुछ करने के लिए भीम हमेशा तत्पर रहते थे. इसके उलट अर्जुन ने कई बार दूसरी स्त्रियों से प्यार किया और शादियां भी कीं. पांडवों में सबसे ज्यादा पत्नियां उन्हीं की थीं. अर्जुन के इस स्वाभाव से द्रौपदी ने कई बार अपना गुस्सा उनके प्रति जाहिर किया.
वनवास के दौरान जब अर्जुन ने दूसरी शादियां कीं (जैसे सुभद्रा से), तो द्रौपदी थोड़ी असुरक्षित महसूस करती थीं. अर्जुन का प्रेम द्रौपदी के प्रति अधिक संवेदनशील और नियंत्रित था. उन्होंने द्रौपदी के प्रति आदर तो बनाए रखा, लेकिन उनके जीवन में अन्य प्राथमिकताएं (जैसे युद्ध और धर्म) भी महत्वपूर्ण थीं.
युधिष्ठिर भावनात्मक दूरी रखते थे
युधिष्ठिर का द्रौपदी के प्रति प्रेम कर्तव्य और धर्म पर आधारित था. वह उससे सीमित प्यार करते थे बल्कि उनके प्यार पर इसलिए अक्सर सवाल उठा दिया जाता है क्योंकि ये वही थे, जिन्होंने उसे जुए में दाव पर लगा दिया था. युधिष्ठिर ने द्रौपदी को हमेशा सम्मान दिया, लेकिन उनका प्रेम अधिक औपचारिक और नियंत्रित था. वह द्रौपदी के प्रति एक भावनात्मक दूरी रखते थे. युधिष्ठिर ने द्रौपदी को भावनात्मक सहारा देने में भीम या अर्जुन की तरह सक्रिय भूमिका नहीं निभाई.
नकुल और सहदेव ने द्रौपदी को सम्मान और स्नेह दिया, लेकिन उनका प्रेम अधिक भाईचारे या मित्रता जैसा प्रतीत होता है. वे द्रौपदी की इच्छाओं का पालन करते थे. सहायता के लिए तैयार रहते थे. लेकिन उनका प्रेम वैसा कतई नहीं था, जैसा भीम का था. वहीं द्रौपदी का उनके प्रति प्रेम स्नेह मातृभाव जैसा ज्यादा लगता है.
तब द्रौपदी युधिष्ठिर और अर्जुन की ओर से टूट गई थी
द्रौपदी तब भी युधिष्ठिर और अर्जुन की ओर से टूट गई थी जब विराट प्रदेश में अज्ञातवास में रहते हुए कीचक ने उस पर गलत निगाह डालकर उसको परेशान करना शुरू किया. तब जब उसने युधिष्ठिर से शिकायत की तो उन्होंने इसे बर्दाश्त करने की सलाह दी थी, अन्यथा लोगों को पता चल सकता था कि पांडव अज्ञातवास में कहां रह रहे हैं. अर्जुन ने भी तब युधिष्ठिर की बातों से सहमति जताई थी. तब भीम ही ऐसे पांडव थे, जो द्रौपदी के काम आए. उन्होंने रात में धोखे से कीचक को एकांत जगह बुलाकर उसकी हत्या कर दी. द्रौपदी को भी मालूम था अगर वह कभी दुखी होगी या उसको कभी कोई जरूरत पडे़गी तो केवल भीम ही काम आएंगे.
ऐसे पुरुष का कोई अपमान नहीं कर सकता, जिसमें हों ये 4 गुण, जान लीजिए महात्मा विदुर की ये खास बातें
1 Jun, 2025 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
महात्मा विदुर महाभारत के उन महान पात्रों में से एक थे, जिन्होंने धर्म, न्याय और सच्चाई की मिसाल कायम की. महात्मा विदुर एक बुद्धिमान, शांत और निर्भीक व्यक्ति थे. उन्होंने कभी भी सत्ता या लालच के सामने अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया. उनकी नीतियां आज भी लोगों को जीवन जीने की सही दिशा देती हैं. विदुर नीति में उन्होंने कई ऐसी बातें बताई हैं, जो आज के समय में भी उतनी ही कारगर हैं. उन्हीं में से एक नीति के अनुसार, ऐसा पुरुष जिसमें चार खास गुण होते हैं, उसका कोई भी व्यक्ति अपमान नहीं कर सकता. ये गुण व्यक्ति को समाज में सम्मान, पहचान और स्थिरता प्रदान करते हैं. आइए जानें वे चार महान गुण कौन से हैं.
1. संयम
महात्मा विदुर के अनुसार, संयम ही असली ताकत है. जो व्यक्ति अपने क्रोध, इच्छाओं और व्यवहार पर काबू रखता है, वही सच्चे अर्थों में मजबूत होता है. संयमी व्यक्ति कभी भी गलत निर्णय नहीं लेता और न ही किसी को जानबूझकर नुकसान पहुंचाता है. वह सोच-समझकर बात करता है और हर परिस्थिति में शांति बनाए रखता है. संयम हमें गहरे संकट से भी बचा सकता है.
2. ज्ञान
ज्ञान केवल किताबों में नहीं होता, बल्कि अनुभव और व्यवहार में भी होता है. महात्मा विदुर के अनुसार, जिस पुरुष के पास सच्चा और व्यवहारिक ज्ञान होता है, उसे समाज हमेशा आदर देता है. ज्ञान इंसान को विनम्र बनाता है और उसे सही निर्णय लेने की क्षमता देता है. ज्ञानी व्यक्ति से कोई बहस नहीं कर सकता क्योंकि वह हमेशा तर्क के साथ और शांति से बोलता है.
3. धैर्य
आज की तेज रफ्तार जिंदगी में धैर्य रखना एक बड़ी कला है. महात्मा विदुर के अनुसार, जो इंसान धैर्यवान होता है, वह हर परिस्थिति में अपने आप को संभाल सकता है. कठिन समय में भी वह घबराता नहीं, बल्कि स्थिरता से आगे बढ़ता है. धैर्य से ही बड़ा काम होता है और समाज में एक मजबूत छवि बनती है. धैर्यविहीन व्यक्ति अक्सर खुद को ही नुकसान पहुंचाता है.2. ज्ञान
ज्ञान केवल किताबों में नहीं होता, बल्कि अनुभव और व्यवहार में भी होता है. महात्मा विदुर के अनुसार, जिस पुरुष के पास सच्चा और व्यवहारिक ज्ञान होता है, उसे समाज हमेशा आदर देता है. ज्ञान इंसान को विनम्र बनाता है और उसे सही निर्णय लेने की क्षमता देता है. ज्ञानी व्यक्ति से कोई बहस नहीं कर सकता क्योंकि वह हमेशा तर्क के साथ और शांति से बोलता है.
3. धैर्य
आज की तेज रफ्तार जिंदगी में धैर्य रखना एक बड़ी कला है. महात्मा विदुर के अनुसार, जो इंसान धैर्यवान होता है, वह हर परिस्थिति में अपने आप को संभाल सकता है. कठिन समय में भी वह घबराता नहीं, बल्कि स्थिरता से आगे बढ़ता है. धैर्य से ही बड़ा काम होता है और समाज में एक मजबूत छवि बनती है. धैर्यविहीन व्यक्ति अक्सर खुद को ही नुकसान पहुंचाता है.
4. चरित्र
किसी भी व्यक्ति का असली गहना उसका चरित्र होता है. महात्मा विदुर का मानना था कि अच्छा चरित्र इंसान को हर तरह के अपमान से बचाता है. अगर किसी का चरित्र साफ है, तो दुनिया भी उसे आंख उठाकर नहीं देखती. उसका आदर सब करते हैं, चाहे वो अमीर हो या गरीब. एक अच्छा चरित्र समाज में स्थायी सम्मान दिलाता है.
आज का राशिफल: जानिए क्या कहती हैं आपकी किस्मत की सितारे
1 Jun, 2025 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- कार्य लाभ, आशानुकूल सफलता का हर्ष तथा रुके कार्य अवश्य ही बनेंगे।
वृष राशि :- कार्य योजना पूर्ण होगा, शुभ समाचार से मन प्रसन्न हो, सोचे कार्य अवश्य ही बनेंगे।
मिथुन राशि :- कार्य व्यवसाय में थकावट, बैचेनी, कुछ असफलता के साधन अवश्य ही बनेंगे।
कर्क राशि :- दैनिक व्यवसाय गति मंद रहे, असमर्थता का वातावरण अवश्य बना ही रहेगा।
fिसंह राशि :- आलोचना से बचिए, कार्यकुशलता से पूर्ण संतुष्ट तथा संतोष बना ही रहेगा।
कन्या राशि :- भोग ऐश्वर्य में समय बीतें, शारीरिक थकावट बेचैनी कार्य में बढ़े ध्यान दे।
तुला राशि :- मित्र वर्ग विशेष फलप्रद रहे, आशानुकूल सफलता से संतोष होगा।
वृश्चिक राशि :- मित्र वर्ग विशेष फलप्रद रहे, कार्य में सफलता प्राप्त होगी, रुके कार्य बनेंगे।
धनु राशि :- तनाव पूर्ण वार्तालाप चलती रहेगी तथा सुखवर्धक योग अवश्य होगा।
मकर राशि :- कार्य वृत्ति में सुधार, सामाजिक कार्य में मान प्रतिष्ठा अवश्य ही बन जाएगी।
कुंभ राशि :- कार्य व्यवसाय गति मंद, चोट आदि का भय रहेगा तथा मानसिक तनाव बनेगा।
मीन राशि :- आशानुकूल सफलता का हर्ष, बिगड़े कार्य की योजना अवश्य ही बनेगी।
मेष राशि :- कार्य लाभ, आशानुकूल सफलता का हर्ष तथा रुके कार्य अवश्य ही बनेंगे।
वृष राशि :- कार्य योजना पूर्ण होगा, शुभ समाचार से मन प्रसन्न हो, सोचे कार्य अवश्य ही बनेंगे।
मिथुन राशि :- कार्य व्यवसाय में थकावट, बैचेनी, कुछ असफलता के साधन अवश्य ही बनेंगे।
कर्क राशि :- दैनिक व्यवसाय गति मंद रहे, असमर्थता का वातावरण अवश्य बना ही रहेगा।
fिसंह राशि :- आलोचना से बचिए, कार्यकुशलता से पूर्ण संतुष्ट तथा संतोष बना ही रहेगा।
कन्या राशि :- भोग ऐश्वर्य में समय बीतें, शारीरिक थकावट बेचैनी कार्य में बढ़े ध्यान दे।
तुला राशि :- मित्र वर्ग विशेष फलप्रद रहे, आशानुकूल सफलता से संतोष होगा।
वृश्चिक राशि :- मित्र वर्ग विशेष फलप्रद रहे, कार्य में सफलता प्राप्त होगी, रुके कार्य बनेंगे।
धनु राशि :- तनाव पूर्ण वार्तालाप चलती रहेगी तथा सुखवर्धक योग अवश्य होगा।
मकर राशि :- कार्य वृत्ति में सुधार, सामाजिक कार्य में मान प्रतिष्ठा अवश्य ही बन जाएगी।
कुंभ राशि :- कार्य व्यवसाय गति मंद, चोट आदि का भय रहेगा तथा मानसिक तनाव बनेगा।
मीन राशि :- आशानुकूल सफलता का हर्ष, बिगड़े कार्य की योजना अवश्य ही बनेगी।
महाभारत: स्वर्ग में दुर्योधन को देखते ही क्यों भड़क उठे थे युधिष्ठिर, फिर क्या हुआ, क्यों बताए गए 21 तरह के नरक
31 May, 2025 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
जब युधिष्ठिर सशरीर स्वर्ग पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि वहां हर तरह का वैभव, आनंद और सुख-सुविधाएं हैं. अप्सराएं हैं. सुख की बयार है लेकिन उन्होंने जब दुर्योधन को भी वहां सुख भोगते देखा, तो वह क्षुब्ध हो गए. वह भड़क गए. तब उन्होंने क्या कहा. क्यों भड़कते हुए स्वर्ग में रहने से ही इनकार कर दिया.
युधिष्ठिर तो यही सोचकर स्वर्ग में पहुंचे थे कि वहां वो अपने भाइयों और द्रौपदी को दिखेंगे. इसके बजाए उन्होंने वहां दुर्योधन और कौरवों को देखा. उससे स्वर्ग आने का उनका सारा उत्साह ही चला गया. गुस्सा आने लगा.
इसी वजह से वह दुर्योधन के सामने ही भड़क उठे. उन्होंने क्रोध में इंद्र से कहा, जिसने अधर्म किया, भरी सभा में द्रौपदी का अपमान किया, अपने स्वार्थ के लिए अपने बड़ों और गुरुजनों तक का आदर नहीं किया, जिसने भीषण युद्ध कराकर हजारों निर्दोषों का संहार करवाया, वह कैसे स्वर्ग में जगह कैसे मिल सकती है.
युधिष्ठिर ने इसी बात पर क्रोधित होकर कहा था, “मैं ऐसे पापी के साथ इस स्वर्ग में नहीं रह सकता. अगर दुर्योधन स्वर्ग में है, तो मुझे इस स्वर्ग की जरूरत नहीं.” उन्हें लगा कि यदि धर्म-अधर्म का यह न्याय है, तो फिर इस स्वर्ग में रहने का कोई मूल्य नहीं. दरअसल, युधिष्ठिर धर्मराज कहलाते थे. उनका जीवनभर का विश्वास यही रहा कि धर्म ही सबसे ऊपर है. उन्हें अपने जीवन की समस्त पीड़ाओं और अपनों की मृत्यु का कारण दुर्योधन के अन्याय में दिखता था.
दुर्योधन आदत के उलट शांत रहा
हालांकि जब वह दुर्योधन के सामने ही उस भड़क रहे थे तो उन्होंने उसको शांत भी देखा. वह हमेशा की तरह पांडवों से मुकाबला करता हुआ और उनके खिलाफ कुछ बोलता भी नजर नहीं आया. बल्कि युधिष्ठिर की इन बातों को सुनकर भी उसने अनसुना कर दिया.
युधिष्ठिर ने जब दुर्योधन को स्वर्ग में सुख भोगते हुए देखा तो युधिष्ठिर के लिए स्वर्ग का आकर्षण ही खत्म हो गया. उन्होंने इंद्र से कहा, “अगर दुर्योधन स्वर्ग में है, तो मैं नरक जाना पसंद करूंगा. कम से कम वहां वे लोग होंगे जिन्होंने धर्म की रक्षा की होगी. अधर्म के विरोध में अपने प्राण गंवाए होंगे.”
तब इन्द्र और यमराज ने उन्हें समझाया कि दुर्योधन ने अपने जीवन में क्षत्रिय धर्म के अनुसार युद्ध में वीरगति पाई थी. उसने वीरता, पराक्रम और शासन के कर्तव्यों का पालन भी किया, इसलिए उसे उसके पुण्य कर्मों का फल स्वर्ग में मिल रहा है. इसे तरीके से जानने के बाद युधिष्ठिर का मन शांत हो पाया.
पांडव क्यों नरक में
अब आइए जानते हैं कि जब युधिष्ठिर स्वर्ग पहुंचे तो पांडव और द्रौपदी उन्हें वहां क्यों नहीं मिले. जब पांडव और द्रौपदी महाप्रस्थान के लिए हिमालय की ओर गए, तो एक-एक कर द्रौपदी और पांडव मार्ग में गिरते गए. केवल युधिष्ठिर अपने शरीर सहित स्वर्ग जा पाए. दरअसल भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव के साथ द्रौपदी को पहले नरक ले जाया गया. हालांकि कुछ देर के लिए सही.
तब युधिष्ठिर को नरक में ले जाया गया
युधिष्ठिर को जब स्वर्ग के बाद नरक में ले जाया गया, तो उन्होंने वहां अपने भाइयों (भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव) और द्रौपदी को कष्ट भोगते देखा. ये देखने के बाद उन्हें फिर गुस्सा आ गया. क्योंकि उनके भाई और पत्नी धर्मनिष्ठ और सत्यनिष्ठ थे, फिर भी उन्हें नरक में कष्ट सहना पड़ रहा था. युधिष्ठिर ने इसे भी अन्याय माना. इस स्थिति पर गुस्सा जताया.
हालांकि युधिष्ठिर को बात में पता चला कि वास्तव में ऐसा था नहीं, ये केवल माया थी, जो उनकी परीक्षा के लिए रची गई. उनके भाई और पत्नी कुछ देर के लिए जरूर नरक में गए थे लेकिन अब वो वास्तव में स्वर्ग में ही हैं.
महाभारत में स्वर्ग और नरक के बारे में क्या कहा गया
महाभारत में स्वर्ग और नरक के बारे में विस्तार से लिखा गया है. खासकर स्वर्गारोहण पर्व और आनुशासनिक पर्व में. महाभारत के वनपर्व के अध्याय 42 में स्वर्ग को सुखों का स्थान लिखा गया है. जहां कामधेनु, कल्पवृक्ष, अप्सराएं और दिव्य भोग हैं. तो महाभारत के आनुशासनिक पर्व में में कहा गया है कि हिंसा, झूठ, चोरी, ब्रह्महत्या, गुरुद्रोह आदि पाप करने वालों को यमलोक में कष्ट भोगने पड़ते हैं. महाभारत में 21 प्रकार के नरक बताए गए हैं.
महाभारत में 21 प्रकार के नरक का उल्लेख, विशेष रूप से गरुड़ पुराण और विष्णु पुराण जैसे ग्रंथों के संदर्भ में, कर्मों और पापों के परिणामों को समझाने के लिए किया गया है. ये नरक अलग तरह के पापों के लिए अलग-अलग दंडों को दिखाते हैं. हर अलग तरह के पाप के लिए एक विशिष्ट नरक का वर्णन किया गया है, जो उस पाप की गंभीरता और नेचर दिखाता है. यमराज, जो मृत्यु और न्याय के देवता हैं, उनके दूत लोगों उनके कामों के आधार पर अलग नरकों में ले जाते हैं.
कब से शुरू हो रहा सावन? इस बार कितने होंगे सोमवार
31 May, 2025 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
धार्मिक नगरी उज्जैन के कण-कण में भगवान शिव का वास है. रोजाना यहां सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं और राजा के रूप में पूजे जानें वाले भगवान महाकाल के दर्शन करते हैं. बाबा के दरबार में वैसे तो हर दिन पूजा पाठ के लिए भक्तों की भीड़ रहती है, लेकिन सावन माह में पड़ने वाले सोमवार के दिन बाबा महाकाल के दर्शन पूजन का विशेष महत्व है. आइए जानते हैं कि इस बार सावन के महीने की शुरुआत कब हो रही है.
कि वैदिक हिंदू पंचांग के मुताबिक, इस बार सावन महीने की शुरुआत 11 जुलाई से होगी. वहीं, इस माह का समापन 09 अगस्त को होगा.
सावन में कितने पड़ेंगे सोमवार
पहला सोमवार- 14 जुलाई
दूसरा सोमवार- 21 जुलाई
तीसरा सोमवार- 28 जुलाई
चौथा सोमवार- 4 अगस्त
जानिए कब-कब देंगे उज्जैन के राजा दर्शन
– पहली सवारी : 14 जुलाई
– दूसरी सवारी : 21 जुलाई
– तीसरी सवारी : 28 जुलाई
– चौथी सवारी : 4 अगस्त
– पांचवी सवारी : 11 अगस्त
– छठी या शाही सवारी : 18 अगस्त
सावन सोमवार का विशेष महत्व
अवंतिका नगरी के राजा बाबा महाकाल का सावन में सोमवार का विशेष महत्व है. इस दिन सावन सोमवार को बाबा महाकाले विशेष रूप के दर्शन तो होते ही हैं. साथ में सावन के हर सोमवार को महाकाल की सवारी भी निकाली जाती है, जिसमें बाबा महाकाल को विभिन्न वाहनों पर सजाकर नगर भ्रमण पर ले जाया जाता है. बाबा महाकाल की शाही सवारी दिव्य और अलौकिक होती है.
एक झलक पाने आतुर रहते भक्त
भगवान महाकाल जैसे ही राजसी ठाठ बाट से निकलते हैं. वैसे ही प्रभु के आगमन मे सैकड़ों लोग तरह-तरह के स्वागत करके अपने बाबा का स्वागत करते हैं. उज्जैन के राजा को मंदिर के बहार आते ही उज्जैन पुलिस दुवारा गॉर्ड ऑफ ऑनर दिया जाता है. इस सुनहरे पल पर भक्त नाचते -जुमते नज़र आते हैं.
क्या घर की दिशा बिगाड़ रही है आपकी रीढ़? जानें इस खास दिशा के असरदार उपाय, दिशा सुधारें और पाएं राहत
31 May, 2025 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
अक्सर जन्मकुंडली में सब कुछ अच्छा होते हुए भी शादी के कई सालों बाद भी घर में संतान का योग नहीं बनता है. ज्योतिष के अलावा भी कुछ ऐसे संयोग हैं, जिनकी वजह से अक्सर घरों में बच्चे नहीं होते या होने से पहले या होकर खत्म हो जाते हैं. इसके लिए घर का वास्तु भी काफी हद तक ज़िम्मेदार होता है. आइए जानते हैं कौन से ऐसे वास्तु कारण हैं, जो ये समस्या उत्पन्न करते हैं, साथ ही जानेंगे इसके आसान उपाय .हड्डी की रीढ़ से जुड़ी समस्या आजकल बहुत आम हो गई है. यह समस्या कई बार हमारे घर के माहौल और उसकी दिशा-निर्देशों से भी जुड़ी हो सकती है, अगर आप या आपके परिवार के किसी सदस्य को रीढ़ की हड्डी से परेशानी हो रही है, तो जरूरी है कि आप अपने घर की दिशा और उसमें रखे सामान पर ध्यान दें. विशेषकर घर का दक्षिण-पश्चिम भाग, जिसका हमारे स्वास्थ्य और संतुलन पर खास प्रभाव होता है. इस विषय में अधिक जानकारी दे रहे हैं
दक्षिण-पश्चिम दिशा और उसका महत्व
दक्षिण-पश्चिम दिशा को हमारे घर में स्थिरता और मजबूती का प्रतीक माना जाता है. यदि इस क्षेत्र में कोई असंतुलन हो जाए, तो इसका सीधा असर हमारे स्वास्थ्य, विशेष रूप से हड्डी और रीढ़ की हड्डी पर पड़ सकता है. ऐसे असंतुलन कई कारणों से हो सकते हैं, जैसे इस दिशा में अत्यधिक भारी सामान रखना, दीवारों में क्षतिग्रस्त स्थान होना या वहां हरे रंग के पौधे रखना.
घर के दक्षिण-पश्चिम हिस्से की जांच कैसे करें?
अगर रीढ़ की हड्डी में समस्या हो रही है, तो सबसे पहले अपने घर के दक्षिण-पश्चिम हिस्से की जांच करें. देखें कि वहां कोई दीवार क्षतिग्रस्त तो नहीं है, या कहीं दीवार पर कीलें जड़ी हुई तो नहीं हैं, यदि दीवार में कोई कील लगी हो, तो उसे निकालकर उस जगह को सफेद सीमेंट से ठीक कर लें. इससे दीवार मजबूत होगी और वातावरण में स्थिरता आएगी.
भारी सामान का प्रभाव
घर के दक्षिण-पश्चिम हिस्से में भारी वस्तुएं रखने से भी परेशानी हो सकती है, यदि आपने वहां भारी अलमारी, तिजोरी या अन्य भारी सामान रखा है, तो संभव है कि यह आपके शरीर, खासकर रीढ़ की हड्डी पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा हो. ऐसे सामान को वहां से हटाकर किसी और सुरक्षित स्थान पर रख दें.
पौधों और रंगों का ध्यान रखें
कुछ लोग घर की सजावट के लिए दक्षिण-पश्चिम दिशा में हरे रंग के पौधे या फूल लगाते हैं, लेकिन यह सही नहीं है. हरे रंग के पौधे इस दिशा में समस्या बढ़ा सकते हैं. इसलिए अगर वहां हरे पौधे हैं, तो उन्हें हटा दें. इसके बजाय, आप इस दिशा में पीले रंग का बल्ब लगा सकते हैं. पीला रंग सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाता है और आपको आराम का अनुभव कराता है.
संक्षेप में उपाय
1. दीवारों की मरम्मत – यदि दीवार में कील लगी हो या कोई क्षति हो तो उसे ठीक करें.
2. भारी सामान हटाएं – दक्षिण-पश्चिम हिस्से से भारी सामान हटा दें.
3. हरे पौधे निकालें – इस दिशा में हरे रंग के पौधे न रखें.
4. पीले रंग का बल्ब लगाएं – पीला बल्ब ऊर्जा को संतुलित करता है.
ध्यान रहे कि गंभीर समस्या के लिए डॉक्टर से सलाह लेना भी जरूरी है. घर की दिशा और सजावट केवल सहायक उपाय हैं, वे उपचार का विकल्प नहीं हैं. इसलिए संतुलित जीवनशैली और समय पर चिकित्सा सलाह लेना सबसे जरूरी है.
संतान सुख में आ रही रुकावट? घर की इस खास दिशा को हल्का और शांत बनाएं, जानिए घर की इसका असली प्रभाव
31 May, 2025 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हर इंसान अपने घर में सुकून, प्यार और तरक्की चाहता है. हम सभी अपने परिवार के साथ मिलकर ऐसा माहौल बनाना चाहते हैं जहां हर दिन नए उजाले के साथ शुरुआत हो और हर रात सुकून के साथ खत्म हो. मगर कई बार ऐसा होता है कि बिना किसी कारण के घर में तनाव बना रहता है, काम बनते-बनते रुक जाते हैं या फिर लंबे समय से संतान सुख नहीं मिल पा रहा होता है. ऐसे ही हालात में कई बार हम बाहरी कारणों को जिम्मेदार मानते हैं, लेकिन असल वजह हमारे घर के अंदर ही छिपी होती है दिशाओं का संतुलन. इस विषय में अधिक जानकारी दे रहे हैं
घर की हर दिशा का अपना एक अलग असर होता है. इनमें से एक बहुत खास दिशा होती है ईशान कोण, यानी उत्तर-पूर्व और पूर्व के बीच की दिशा. इसे अंग्रेज़ी में East-North-East कहा जाता है. इस दिशा को अक्सर लोग नज़रअंदाज़ कर देते हैं, जबकि यही वो कोना होता है जहां से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश होता है.
जब ये दिशा साफ, हल्की और शांत होती है, तो घर में सुख-शांति बनी रहती है. खासतौर से जो लोग मां-बाप बनने की कोशिश में हैं या संतान सुख चाहते हैं, उनके लिए ये दिशा बहुत अहम मानी जाती है.
स्टोर रूम या भारी सामान
लेकिन जब इस जगह पर टॉयलेट, स्टोर रूम या भारी सामान रखा होता है, या फिर इस दिशा में लाल, पीला या ग्रे रंग का ज्यादा इस्तेमाल हो जाता है, तो इसका असर सीधा घर की खुशहाली पर पड़ता है. कई बार महिलाओं को बार-बार गर्भधारण में दिक्कत आती है, या संतान से जुड़ी समस्याएं बनी रहती हैं, जिसकी असली वजह यही ऊर्जा अवरोध हो सकता है.
दिशा को हल्का और साफ रखें
इसलिए सबसे पहले इस दिशा को हल्का और साफ रखें. यहां सफेद, हल्के नीले या क्रीम रंग का इस्तेमाल फायदेमंद होता है. अगर यहां किचन या बाथरूम बना हुआ है और उसे हटाना संभव नहीं है, तो वास्तु उपायों से संतुलन बनाने की कोशिश करें.
पुराना तनाव खत्म
आप देखेंगे कि जब ये दिशा सही हो जाती है, तो घर में बिना किसी बड़े बदलाव के ही माहौल बदलने लगता है. घर में बच्चों की हंसी गूंजने लगती है, पुराना तनाव खत्म होता है और एक नई ऊर्जा महसूस होती है.