धर्म एवं ज्योतिष
जहां श्रीराम ने खाया था शबरी का बेर! शिवरीनारायण में आज भी मौजूद है वो पत्तल जैसा पेड़!
18 May, 2025 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
छत्तीसगढ़ का शिवरीनारायण धाम सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि रामभक्ति की उस सजीव स्मृति का केन्द्र है, जहां आज भी श्रद्धा के साथ जुड़ी पौराणिकता को लोग अपनी आंखों से महसूस कर सकते हैं. कहा जाता है कि यहीं माता शबरी ने अपने आराध्य श्रीराम को प्रेमपूर्वक झूठे बेर खिलाए थे, और वे बेर जिस पत्तल में रखे गए थे, वह पत्तल जैसी पत्तियों वाला वृक्ष आज भी यहां मौजूद है, जिसे कृष्णवट के नाम से जाना जाता है.
त्रिवेणी संगम और गुप्त प्रयाग की महिमा
शिवरीनारायण को “गुप्त प्रयाग” भी कहा जाता है क्योंकि यहां तीन नदियोंमहानदी, शिवनाथ और जोक का त्रिवेणी संगम होता है. प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर इस क्षेत्र का हर कोना रामायण काल की यादें संजोए हुए है. यह स्थान भगवान जगन्नाथ जी के मूल स्थान के रूप में भी प्रतिष्ठित है.
वही पत्तल, वही पेड़… आज भी मौजूद है कृष्णवट
मंदिर परिसर में स्थित ‘कृष्णवट’ वृक्ष को देखकर श्रद्धालु आज भी भावविभोर हो जाते हैं. यह कोई साधारण बरगद का पेड़ नहीं हैइसकी हर पत्ती दोना (पत्तल) के आकार की होती है. स्थानीय संत त्यागी जी महाराज बताते हैं कि माता शबरी ने इन्हीं पत्तों से बने दोने में बेर रखकर श्रीराम को भेंट किए थे.
यह पेड़ हर युग में वर्णित मिलता है, और इसलिए इसे “अक्षय वट” भी कहा जाता है.
शबरी और राम का प्रेमनाम भी बना शिवरीनारायण
पौराणिक मान्यता के अनुसार, ‘शबरी’ और ‘नारायण’ के मिलन से यह स्थान ‘शबरीनारायण’ कहलाया, जो समय के साथ ‘शिवरीनारायण’ में परिवर्तित हो गया. इस स्थल का उल्लेख सतयुग में बैकुंठपुर, त्रेतायुग में रामपुर, और द्वापरयुग में नारायणपुरी के रूप में होता है. यहां मतंग ऋषि का आश्रम और शबरी की तपोभूमि भी रही है.
आज की पीढ़ी के लिए संदेश
ऐसे स्थलों की खास बात यह है कि ये न सिर्फ आस्था का प्रतीक होते हैं, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान भी बनाते हैं. शिवरीनारायण का कृष्णवट वृक्ष, श्रीराम और शबरी की वह कथा जो सिर्फ पढ़ने-सुनने की नहीं, प्रत्यक्ष अनुभव करने लायक है.
श्रीकृष्ण के देह त्यागने के बाद देवी रुक्मिणी और अन्य पत्नियों का क्या हुआ?
18 May, 2025 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भगवान विष्णु का 8वां अवतार और 16 कलाओं के स्वामी भगवान श्रीकृष्ण का एक श्राप की वजह से देह त्यागना पड़ा, या फिर ये कहें कि कृष्णजी का पृथ्वी लोक पर समय पूरा हो गया था इसलिए उनको वापस बैकुंठ धाम जाना पड़ा. पौराणिक कथाओं के अनुसार, श्रीकृष्ण को जरा नामक एक बहेलिए ने पैर में तीर मारा दिया था. दरअसल श्रीकृष्ण के तलवे पर पद्म चिन्ह था और जिस समय बहेलिये ने उनके तलवे पर तीर चलाया, वे पैर पर पैर रख कर लेटे हुए थे और उनके पैर स्वर्ण मृग की तरह चमक रहे थे. वही पैर दूर से देखने पर हिरण लग रहे था, जिसकी वजह से बहेलिए ने तलवे पर तिर मार दिया. तलवे पर लगे तीर की वजह से श्रीकृष्ण देह त्यागकर बैंकुंठ धाम चले गए.
महाभारत युद्ध के बारे में तो हम सभी जानते हैं लेकिन क्या आपको पता है कि श्रीकृष्ण जब अपने धाम वापस चले गए थे, तब द्वारका नगरी और उनकी पटरानियों का क्या हुआ. श्रीकृष्ण के धाम जाने के बाद क्या उनकी पत्नियां भी धाम चली गई थीं. आइए विस्तार से जानते हैं इस कथा के बारे में…
अर्जुन ने किया अंतिम संस्कार
श्रीकृष्ण जब देह त्यागकर चले गए थे, तब द्वारका समुद्र में समा गई और कृष्ण के सभी पुत्र गृहयुद्ध में मारे गए, जिसने यादव वंश के पूर्ण विनाश का कारण बना. श्रीकृष्ण की बसाई द्वारका नगरी और उनके वंशज की ऐसी हालात देखकर अर्जुन काफी रोने लगे. अर्जुन ने ही श्रीकृष्ण और अन्य सभी यदुवंशियों का अंतिम संस्कार भी किया. रुक्मिणी और जाम्बवंती श्रीकृष्ण की चिता में प्रवेश कर सती हो गईं. वहीं सत्यभामा ने वन में जाकर गुरुओं और ऋषियों से आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया. उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण के ध्यान में लीन होकर तपस्या की और अंततः उनके लोक को प्राप्त किया. श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम की पत्नी रेवती ने भी देह त्याग कर दिया. अर्जुन जब द्वारका से निकले तब श्रीकृष्ण की अन्य पत्नियां और बाकी यदुवंशियों की स्त्रियां भी खुद के पास बचा हुआ धन रखकर अर्जुन के साथ चल दीं.
लालसा से भरे हुए थे लोग
जब जानकारी मिली की अर्जुन के पास काफी मात्रा में धन दौलत है तो रास्ते में गांव के लोगों और लुटेरों का जमावाड़ा लगने लगा. अर्जुन महिलाओं और धन-संपदा के साथ निकलने लगे लेकिन सभी लोग धन को देख देखकर ललचाने लगे. उस समय अर्जुन अकेले थे और चारों तरफ लालसा और ईर्ष्या से भरे हुए लोग मौजूद थे, जो धन और महिलाओं को लूटना चाहते थे. जैसे जैसे अर्जुन आगे बढ़ते, उनके साथ साथ गांव वाले और लुटेरे भी आगे चलने लगे. हालांकि लुटेरे खुद अर्जुन के डर की वजह से आगे नहीं जाना चाहते थे इसलिए उन्होंने गांव वालों को धन और स्त्रियों का लालच दिया था. लेकिन अर्जुन इस बात से पूरी तरह अनजान थे कि ये लोग हमला कर देंगे इसलिए वे बेफ्रिक होकर चलते गए.
पूरी तरह विफल रहे अर्जुन
रास्ते में ग्रामीणों का साथ मिलकर लुटेरों ने अर्जुन और महिलाओं पर हमला बोल दिया और लूटपान करने लगे. अर्जुन सभी से लड़ने का प्रयास कर रहे थे लेकिन लुटेरों की संख्या बहुत ज्यादा थी. चारों तरफ लूटपाट देखकर अर्जुन को क्रोध आया और उन्होंने गांडीव उठा लिया और लुटरों पर दिव्य बाणों का प्रयोग करना चाहा लेकिन अर्जुन से कोई अस्त्र चल ही नहीं रहा था. अर्जुन मंत्र बोल बोल बोलकर दिव्याशास्त्र बुला रहे थे लेकिन कोई दिव्याशास्त्र प्रकट ही नहीं हुआ. अर्जुन का गांडीव भी सामान्य धनुष के जैसा बन गया था और अर्जुन के द्वारा किए गए सभी प्रयास विफल हो गए. अर्जुन अपने आसपास बेबस होकर देखते रह गए और वह महिलाओं और धन-संपदा को लूटकर ले गए.
शनिवार समेत भूलकर भी इन दिनों ना काटें नाखून, मां लक्ष्मी होंगी नाराज, बैठे बिठाए लग जाएगी लंका
18 May, 2025 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
धर्म शास्त्रों में नहाने से लेकर खाने तक और जाने लेकर नाखून काटने तक. हर चीज के नियम बनाए गए हैं और इन नियमों का पालन करने से ही जीवन में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है और घर में भी सुख-शांतचि रहती है. ज्योतिष शास्त्र में नाखून काटने को लेकर कुछ नियम बनाए गए हैं, इन नियमों को ध्यान में रखेंगे तो ना सिर्फ कष्टों से मुक्ति मिलेगी बल्कि इसका प्रभाव कुंडली में मौजूद ग्रह-नक्षत्रों पर भी पड़ता है. नाखून काटने के ज्योतिषीय नियम, परंपरा, शास्त्रों और लोकविश्वासों से जुड़े हुए हैं. इन नियमों का उद्देश्य स्वास्थ्य, स्वच्छता और आध्यात्मिक ऊर्जा को संतुलित रखना होता है. आइए जानते कौन से दिन नाखून काटना शुभ होता है और कौन से नाखून काटने से अशुभ होता है…
सोमवार का दिन
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, सोमवार के दिन नाखून काटना अशुभ माना जाता है. सोमवार का दिन भगवान शिव के साथ चंद्र देव को समर्पित है. इसलिए इस दिन नाखून काटने से कुंडली में चंद्रमा की स्थिति प्रतिकूल होती है और मन में नकारात्मक विचार आते हैं और माता के साथ भी संबंध खराब होने का खतरा बना रहता है.
मंगलवार का दिन
मंगलवार का दिन बजरंगबली और ग्रहों के सेनापति मंगल ग्रह को समर्पित है. इस दिन भूलकर भी नाखून नहीं काटने चाहिए. मान्यता है कि इस दिन नाखून काटना अशुभ माना जाता है. मंगल ग्रह का संबंध रक्तस ऊर्जा, साहस आदि से है इसलिए इस दिन दिन नाखून काटने से रक्त संबंधी रोग होने का खतरा बना रहता है और निर्णय लेने में भी समस्या होती है.
बुधवार का दिन
बुधवार के दिन नाखून काटना शुभ माना जाता है. इस दिन नाखून काटने से जल्द ही अच्छा लाभ मिलता है और नौकरी व कारोबार में अच्छी तरक्की भी होती है. बुधवार का दिन बुध ग्रह से है, जो बुद्धि, नौकरी, कारोबार, ज्ञान, भाग्य आदि का प्रतिनिधित्व करते हैं. बुधवार के दिन नाखून काटने से कुंडली में बुध ग्रह की स्थिति मजबूत होती है.
गुरुवार का दिन
गुरुवार का दिन भगवान विष्णु और देवताओं के गुरु बृहस्पति को समर्पित है इसलिए गुरुवार के दिन भूलकर भी नाखून नहीं काटने चाहिए. ऐसा करने से कुंडली में गुरु की स्थिति कमजोर होती है और गुरु ज्ञान, आस्था, भाग्य, धन आदि का प्रतिनिधित्व करते हैं और नाखून काटने से इन सभी चीज की हानि होती है.
शुक्रवार का दिन
शुक्रवार के दिन नाखून काटना शुभ माना जाता है. शुक्रवार का दिन माता लक्ष्मी और भौतिक सुख-सुविधा के स्वामी शुक्र ग्रह को समर्पित है. शुक्र ग्रह सौंदर्य, ऐश्वर्य, धन, संपदा, समृद्धि और स्वच्छता से जुड़ा हुआ है इसलिए इस दिन नाखून काटने से कुंडली में शुक्र ग्रह की स्थिति मजबूत होती है और माता लक्ष्मी का भी आशीर्वाद बना रहता है.
शनिवार का दिन
अगर आप शनिवार के दिन नाखून काटते हैं तो ऐसा करने से बचें. मान्यता है कि शनिवार के दिन नाखून काटने से शारीरिक कष्ट होता है. शनिवार का दिन न्याय के देवता और कर्म के कारक ग्रह शनिदेव को समर्पित है इसलिए इस दिन नाखून काटने से शारीरिक और मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है. साथ ही कुंडली में शनि ग्रह की स्थिति भी कमजोर होती है, जिससे कई तरह के दोष लगने का खतरा बना रहता है.
रविवार का दिन
रविवार के दिन भूलकर भी नाखून काटने से बचना चाहिए. रविवार का दिन ग्रहों के राजा सूर्यदेव को समर्पित है और सूर्य आत्मा, तेज, प्रशासन आदि से संबंधित हैं. अगर आप रविवार के दिन नाखून काटते हैं तो आपको प्रशासन संबंधित परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है.
समय के अनुसार नियम
सूर्यास्त के बाद नाखून काटने से बचना चाहिए. ज्योतिष में रात्रि समय को तामसिक ऊर्जा से जुड़ा माना गया है और सूर्यास्त के समय अगर आप नाखून काटते हैं इससे नकारात्मक ऊर्जा प्रभावित कर सकती है.
इन त्योहार और तिथियों पर ना काटें
अमावस्या और पूर्णिमा के दिन नाखून काटने से बचना चाहिए. साथ ही बिस्तर पर नाखून काटने से धन की हानि होती है. धार्मिक दृष्टि से पवित्र दिन जैसे एकादशी, गुरु पूर्णिमा, नवरात्रि, आदि त्योहार और शुभ तिथियों पर नाखून काटना वर्जित माना जाता है.
नाखून कहां और कैसे फेंकें
कटे हुए नाखूनों को इधर-उधर नहीं फेंकना चाहिए. इसे नकारात्मक ऊर्जा फैलाने वाला माना जाता है इसलिए नाखून को हमेशा मिट्टी में दबाना या ढककर कूड़ेदान में डालना उचित होता है.
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
18 May, 2025 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- कार्य बाधा, स्वभाव में उद्विघ्नता, दु:ख अवश्य ही बनेगा, ध्यान दें।
वृष राशि :- आरोप से बचें, कार्यगति मंद रहेगी, क्लेश व अशांति अवश्य बनेगी।
मिथुन राशि :- योजनाऐं पूर्ण होंगी, धन लाभ होगा, आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा।
कर्क राशि :- मित्र सुखवर्धक होंगे, कार्यगति में सुधार होवे, चिन्ताऐं कम होंगी।
fिसंह राशि :- सामर्थ्य और धन अस्त-व्यस्त हो, सतर्कता से कार्य अवश्य ही निपटा लेवें।
कन्या राशि :- मनोबल उत्साह वर्धक हो, कार्यगति में सुधार होवे, चिन्ता कम हो।
तुला राशि :- मान-प्रतिष्ठा के साधन बनेंगे, स्त्री से सुख-शांति अवश्य ही बन जायेगी।
वृश्चिक राशि :- अग्नि-चोटादि का भय, व्यर्थ भ्रमण, धन व्यय होगा, रुके कार्य बनेंगे।
धनु राशि :- मानसिक क्लेश व अशांति, मानसिक विभ्रम, क्लेश तथा भय बना ही रहेगा।
मकर राशि :- विवादग्रस्त होने से बचें, तनाव व क्लेश, मानसिक अशांति बनेगी।
कुंभ राशि :- धन लाभ, आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा, इष्ट मित्र सुखवर्धक होगा।
मीन राशि :- भोग-ऐश्वर्य की प्राप्ति, समय उल्लास से बीते तथा मनोवृत्ति उत्तम रहेगी।
महाभारत: कृष्ण के दुनिया से कूच करते ही क्यों खत्म हुई अर्जुन के गांडीव की शक्ति, तब उन्होंने धनुष किसे दिया
17 May, 2025 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
महाभारत युद्ध में अर्जुन को दुनिया के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के तौर पर याद किया जाता है. उस युद्ध में पांडवों की जीत का सबसे बड़ा सेहरा उन्हीं पर था. इससे पहले भी अर्जुन ने बार- बार अपने तीर और धनुष से अपनी श्रेष्ठता ऐसी जाहिर की कि बड़े से बड़ा योद्धा और बड़ी से बड़ी सेना भी उनके छूटते तीरों के सामने हार मान जाती थी. इन्हीं अर्जुन के तीर धनुष ने बाद में जवाब दे दिया. वो लाख तीन धनुष चलाते रहे लेकिन साधारण से डाकुओं ने उन्हें हरा दिया.
ये बात हैरान जरूर करती है लेकिन है सच. जब अर्जुन कृष्ण के निधन के बाद द्वारिका गए तो वहां से लौटते हुए उनका बुरा हाल हो गया. वह उनके महल की सैकड़ों महिलाओं को हिफाजत में लेकर हस्तिनापुर लौट रहे थे. वजह ये थी कि कृष्ण के निधन के बाद द्वारिका का डूबना शुरू हो गया था. ये समुद्र में समाने लगी थी. ऐसे में अर्जुन से सभी ने कहा कि वह इन महिलाओं को लेकर हस्तिनापुर ले जाएं, वहां ये सुरक्षित रहेंगी.
साधारण डाकुओं को भी नहीं हरा पाए
लेकिन लौटते समय रास्ते में उन्होंने देखा कि उनके तीर-धनुष की धार खत्म हो चुकी थी. उनकी धनुर्विद्या गायब हो गई. इसने जवाब दे दिया. कृष्ण के निधन के बाद हस्तिनापुर लौटते हुए उनका दस्युओं का सामना हुआ. दस्यु अर्जुन के साथ जा रही कई महिलाओं को उठा ले गए. अर्जुन कुछ नहीं कर सके. उन्होंने धनुष पर तीर चढ़ाए लेकिन वो चल ही नहीं रहे. चल भी रहे थे तो इनका असर नहीं हो रहा था.
कृष्ण के निधन का क्या असर पड़ा
इसका कारण उनकी धनुर्विद्या में कमी नहीं, बल्कि गहरे आध्यात्मिक, मनोवैज्ञानिक और दैवीय वजहें. दरअसल अर्जुन की धनुर्विद्या की जबरदस्त ताकत का प्रमुख स्रोत भगवान कृष्ण की कृपा और उपस्थिति थी. कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था. युद्ध में उनके सारथी के रूप में मार्गदर्शन किया था. उनकी गंभीर शक्ति और युद्ध-कौशल में कृष्ण का आशीर्वाद महत्वपूर्ण था. कृष्ण के निधन के बाद वह दैवीय समर्थन समाप्त हो गया, जिसके कारण अर्जुन की शक्ति कमजोर पड़ गई.
गांडीव धनुष की शक्ति खत्म हो गई
अर्जुन का गांडीव धनुष उन्हें अग्निदेव से मिला था. ये दैवीय अस्त्र था. यह धनुष कृष्ण की मौजूदगी के साथ दैवीय उद्देश्य के लिए काम करता था. युद्ध के बाद और कृष्ण के निधन के बाद गांडीव की शक्ति का उद्देश्य खत्म हो गया. इस वजह से ये धनुष केवल एक साधारण हथियार बन गया, जिसके कारण अर्जुन इसे पहले की तरह प्रभावी ढंग से उपयोग नहीं कर पाए.
बेहद चमत्कारी है ये हनुमान मंदिर, बरगद के पेड़ पर मौली बांधने से पूरी होती है पुत्र की मनोकामना! रामायण से है कनेक्शन
17 May, 2025 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भारत में धर्म और आस्था का रिश्ता बेहद गहरा है. यहां हर मंदिर के साथ कोई न कोई कहानी जुड़ी होती है, जो लोगों को वहां जाने के लिए प्रेरित करती है. ऐसा ही एक विशेष मंदिर पंजाब के अमृतसर शहर में स्थित है श्री बड़ा हनुमान मंदिर. यह मंदिर न केवल अपनी मान्यताओं के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि एक अनोखे मेले की वजह से भी पूरे देश में चर्चित है. इस मेले में बच्चे लंगूर बनकर आते हैं और भगवान हनुमान के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं. ये मंदिर रामायण काल का है और जिसके साक्ष्य आज भी मंदिर में मौजूद हैं. इस मंदिर में केवल भारत नहीं बल्कि दुनिया भर से श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं. मान्यता है कि इस मंदिर में संतान प्राप्ति की मनोकामना पूरी होती है.
यह मंदिर पंजाब में कहां स्थित है?
श्री बड़ा हनुमान मंदिर, अमृतसर में स्थित है और स्वर्ण मंदिर से मात्र 2 किलोमीटर की दूरी पर है. यह मंदिर श्री दुर्ग्याणा तीर्थ परिसर के अंतर्गत आता है, जहां हर साल हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं.
मंदिर से जुड़ी मान्यता क्या है?
इस मंदिर की सबसे विशेष बात यह है कि यहां हनुमान जी की प्रतिमा बैठी हुई मुद्रा में है, जो बहुत कम मंदिरों में देखने को मिलती है. मान्यता है कि यही वह स्थान है जहां रामायण काल में भगवान राम की सेना और लव-कुश के बीच युद्ध हुआ था. इस युद्ध के दौरान हनुमान जी को लव-कुश ने एक बरगद के पेड़ से बांध दिया था. आज भी वह पेड़ मंदिर परिसर में मौजूद है, जिसे देखने श्रद्धालु विशेष रूप से आते हैं.
मान्यता है कि यह मंदिर उस पवित्र भूमि पर बना है, जहां रामायण काल में लव-कुश और भगवान राम की सेना के बीच युद्ध हुआ था. रामायण काल में जब भगवान श्री राम जी ने अश्वमेघ यज्ञ के लिए घोड़ा छोड़ा तो लव और कुश ने इस घोड़े को वटवृक्ष से बांध दिया. उस समय हनुमान जी अश्वमेध यज्ञ के घोड़े को छुड़ाने आए थे, जिसे लव-कुश ने पकड़ा था और हनुमान जी को वटवृक्ष से बांध दिया था. लव और कुश से बातचीत के दौरान हनुमान जी को एहसास हुआ कि ये उनके प्रभु श्री राम की संतान हैं.
मान्यता है कि हनुमान जी बंधन के मुक्त होने के बाद भगवान श्री राम ने उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहा था कि जहां पर उनकी संतान का मिलन हुआ है. वहां पर जो भी व्यक्ति संतान की प्राप्ति की कामना करेगा, वह अवश्य पूरी होगी.
पूरी होती है संतान प्राप्ति की मनोकामना
मान्यता है कि जो दंपत्ति संतान सुख की प्राप्ति के लिए यहां सच्चे मन से बजरंगबली के इस मंदिर में प्रार्थना करते हैं, उनकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है. जिन लोगों के घर में बेटा नहीं होता है, वे यहां आकर पेड़ पर मौली बांधते हैं और बेटे की मन्नत मांगते हैं और जब उनकी झोली संतान सुख से भर जाती है, तो वे भगवान को धन्यवाद देने के लिए अपने बच्चों को लंगूर बनाकर इस मंदिर में लाते हैं. यह भगवान को धन्यवाद देने की एक अनोखी परंपरा है.
लंगूर मेले में क्या होता है?
यह मेला हर साल शारदीय नवरात्रि की पहली नवरात्रि से प्रारंभ होता है और पूरे दस दिनों तक चलता है. इस दौरान अमृतसर का वातावरण पूरी तरह भक्तिमय हो जाता है. दूर-दूर से आए श्रद्धालु अपने बच्चों को लंगूर के रूप में सजाते हैं. इस दौरान सैकड़ों बच्चे लंगूर बनते हैं और हनुमान जी के प्रति अपनी श्रद्धा जताते हैं.
नियमों का करते हैं पालन
मंदिर के पुजारी के अनुसार, लंगूर बनने वाले बच्चों और उनके माता-पिता को इन 10 दिन तक कठोर नियमों का पालन करना होता है.
लंगूर बने बच्चे और उनके माता-पिता को जमीन पर ही सोना होता है.
माता-पिता को ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है.
उन्हें सात्विक भोजन करना पड़ता है, जिसमें प्याज और लहसुन का भी परहेज होता है.
लंगूर बने बच्चों को नंगे पैर रहना होता है.
वे अपने घर के अलावा किसी और के घर के अंदर नहीं जा सकते हैं.
चाकू से काटी हुई चीज नहीं खा सकते हैं.
न ही सुई और कैंची का इस्तेमाल कर सकते हैं.
अपरा एकादशी पर करें ये 3 अचूक उपाय, किस्मत पलटने में नहीं लगेगा समय!
17 May, 2025 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिन्दू धर्म मे हर तिथि व हर वार का अत्यधिक महत्व शास्त्रों में बताया गया है. एक साल में 24 एकादशी के व्रत रखे जाते हैं. हर महीने में 2 बार एकादशी व्रत किया जाता है. एक कृष्ण, तो दूसरा शुक्ल पक्ष में, धार्मिक मान्यता है कि एकादशी तिथि पर जगत के पालनहार भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की विशेष पूजा करने से जातक को शुभ फल की प्राप्ति होती है. साथ ही सभी मनोकामना पूरी होती है. इस दिन किया गया व्रत अनेक फल की प्राप्ति कराता है.
वहीं, इस बार ज्येष्ठ माह की एकादशी आने वाली है, जिसे अपरा एकादशी कहा जाता है. अपरा एकादशी का विशेष महत्व है. इस दिन कुछ विशेष उपाय करने से जीवन में तमाम कष्ट दूर हो जाते हैं. लक्ष्मी की कृपा मिलती है, जिससे धन प्राप्ति होती है,
कब मनाई जाएगी अपरा एकादशी ?
वैदिक पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 23 मई को देर रात 01 बजकर 12 मिनट पर होगी. वहीं, इस तिथि का समापन 23 मई को रात 10 बजकर 29 मिनट पर होगा. सनातन धर्म में उदया तिथि का खास महत्व है. ऐसे में अपरा एकादशी व्रत 23 मई को किया जाएगा और 24 मई को व्रत का पारण किया जाएगा.
जरूर करें अपरा एकादशी पर यह उपाय
स्वास्थ – अपरा एकादशी के दिन शाम के समय तुलसी के पौधे के नीचे गाय के घी का दीपक जलाएं और भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए तुलसी के पौधे की सात परिक्रमा करें. ऐसा करने से आपका पूरा परिवार सेहतमंद रहेगा और आपको स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव नहीं पड़ेगा.
केले का पेड़ – तो अपरा एकादशी के दिन केले के पेड़ की धूप-दीप, रोली-चावल आदि से पूजा करें और भगवान विष्णु को केसर मिला दूध अर्पित करें. कुछ मिनट बाद उसे प्रसाद के रूप में पी लें. ऐसा करने से पति-पत्नी के बीच रिश्ते मधुर होंगे.
व्यापार – व्यापार मे परेशानी बनी हुईं है तो अपरा एकादशी पर 11 गोमती चक्र और 3 छोटे एकाक्षी नारियल लें. इन्हें मंदिर में स्थापित करके, इनकी धूप-दीप आदि से पूजा करें. पूजा के बाद एक पीले रंग के कपड़े में गोमती चक्र और एकाक्षी नारियल बांधकर ऑफिस या दुकान के मुख्य द्वार पर लटका दें. यह उपाय से व्यापार चलने लगेगा.
अगर सपने में नजर आएं ये 5 चीजें, तो समझ जाइए बदलने वाली है किस्मत! छप्पर फाड़ कर बरसेगा धन
17 May, 2025 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
ज्योतिष शास्त्र और स्वप्न शास्त्र के मुताबिक हर सपने का कोई न कोई मतलब जरूर होता है, साथ ही इनमें भविष्य से जुड़े संकेत भी छिपे होते हैं. प्राचीन ग्रंथों में स्वप्न शास्त्र के नाम से एक पूरी विद्या मौजूद है, जिसमें बताया गया है कि कौन सा सपना क्या इशारा करता है. इनमें से कुछ सपने जीवन में होने वाले बदलावों, लाभ या किसी बड़ी खुशी से जुड़े होते हैं. हर इंसान सोते समय सपने देखता है. अधिकतर सपने हमारे दिनभर के अनुभवों और सोच से बनते हैं, लेकिन कुछ सपने ऐसे होते हैं, जिनका सीधा संबंध हमारे आने वाले समय से होता है. स्वप्न शास्त्र में कई ऐसे सपनों का ज़िक्र है, जो अच्छे समय के आने का इशारा देते हैं. नीचे हम ऐसे ही पांच सपनों की बात कर रहे हैं, जो आपके जीवन में सकारात्मक बदलाव की शुरुआत से पहले दिखाई देते हैं.
आइए जानते हैं ऐसे ही पांच शुभ सपनों के बारे में जो आपके जीवन में सकारात्मक बदलाव की आहट हो सकते हैं.
1. चांद को देखना
अगर आप सपने में स्पष्ट और चमकता हुआ चंद्रमा देखते हैं, तो यह बहुत ही शुभ संकेत माना जाता है. यह सपना बताता है कि आपके घर में सुख-शांति और प्रेम का माहौल बनेगा. अगर परिवार में कोई तनाव या मतभेद चल रहा है, तो वह भी समाप्त हो जाएगा. यह सपना पारिवारिक एकता और मानसिक शांति का संकेत देता है.
2. नाखूनों को काटना
स्वप्न शास्त्र के अनुसार, अगर आप खुद को सपने में नाखून काटते हुए देखें, तो यह एक सकारात्मक संकेत है. यह सपना बताता है कि आप अपने जीवन से पुराने बोझ, बाधाएं या कर्ज से जल्द ही मुक्त हो सकते हैं. साथ ही, आर्थिक स्थिति में सुधार और आत्मविश्वास में वृद्धि भी देखने को मिल सकती है.
3. आकाश में उड़ना
सपने में खुद को उड़ता हुआ देखना बहुत शुभ संकेत माना गया है. यह सपना बताता है कि आपकी परेशानियों का समय अब खत्म होने वाला है और आप एक नई शुरुआत की ओर बढ़ रहे हैं. और जल्द ही आपको आर्थिक फायदा होगा.
4. नदी को देखना
बहती नदी को सपने में देखना इस बात का इशारा होता है कि आपके जीवन में कोई नई ऊर्जा आने वाली है. यह सपना यह भी दर्शाता है कि आपको कोई शुभ समाचार मिल सकता है, जैसे नौकरी में तरक्की, नया अवसर या पारिवारिक खुशियां.
5. बगीचे को देखना
अगर आप सपने में हरा-भरा बगीचा देखते हैं, तो यह आने वाली खुशियों, आर्थिक लाभ और कार्यों में सफलता का संकेत देता है. यह सपना बताता है कि आपकी मेहनत का फल मिलने वाला है और आपके जीवन में शांति व संतुलन बना रहेगा. जल्दी ही आपको कोई बड़ा धन लाभ हो सकता है.
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
17 May, 2025 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- तनाव पूर्ण वातावरण से बचिये, स्त्री को शारीरिक कष्ट, मानसिक बेचैनी।
वृष राशि :- अधिकारियों के समर्थन से सुख होवे, कार्यगति विशेष अनुकूल होवेगी।
मिथुन राशि :- भोग-ऐश्वर्य प्राप्त हो, तनाव व कष्ट होगा, विवादग्रस्त व तनावग्रस्त होने से बचिये।
कर्क राशि :- अधिकारियों का समर्थन फलप्रद हो, बिगड़े कार्य अवश्य बन जायेंगे, कार्य बना लेवें।
fिसंह राशि :- परिश्रम सफल हो, व्यवस्था मंद हो, आर्थिक योजना पूर्ण अवश्य ही होवेंगी।
कन्या राशि :- कार्य-व्यवस्था गति सामान्य रहे, व्यर्थ परिश्रम, कार्यगति मंद हो।
तुला राशि :- किसी दुर्घटना से बचें, चोट-चपेट आदि का भय होवे, उत्साह कम होगा।
वृश्चिक राशि :- कार्यगति अनुकूल रहे, लाभांवित कार्य-योजना बनेगी, कार्य बाधा मुक्त होंगे।
धनु राशि :- कुछ प्रतिष्ठा के साधन बनें किन्तु हाथ में कुछ न लगे, कार्य अवरोध होगा।
मकर राशि :- अधिकारी वर्ग से तनाव व क्लेश होगा, मानसिक अशांति, कार्य बनेगा।
कुंभ राशि :- मनोबल बनाये रखें, हाथ में कुछ न लगे किन्तु नया कार्य बना ही लेंगे।
मीन राशि :- दौनिक कार्यगति उत्तम, कुटुम्ब में सुख समय उत्तम बनेगा, ध्यान रखें।
इस महीने के 5 मंगलवार देंगे कृपा अपार, दान-पुण्य के लिए सबसे उत्तम! मिलेगा बजरंगबली और विष्णुजी का आशीर्वाद
16 May, 2025 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिन्दू कैलेंडर के सबसे पवित्र महीना में से एक ज्येष्ठ महीना शुरू हो चुका है. इस महीने में भगवान विष्णु, शनि देव और हनुमान जी की पूजा करने और जलदान को बहुत शुभ माना गया है. इस माह में विभिन्न जगह प्याऊ और वाटर कूलर लगाए जाएंगे. मंदिरों में जल विहार की झांकियां सजाई जाएगी.
ठाकुरजी को आम, लीची, पपीता, मिश्री मावा, गुलकंद आदि ठंडक प्रदान करने वाली खाद्य सामग्री का भोग लगाया जाएगा. पंडित घनश्याम शर्मा ने लोकल 18 को बताया कि धार्मिक दृष्टि से ज्येष्ठ माह के शुरुआती दिन बेहद खास है, क्योंकि इस दौरान दोनों प्रभावशाली ग्रह गुरु और सूर्य का राशि परिवर्तन हो रहा है.
पांच मंगलवार, देंगे कृपा अपार
पंडित घनश्याम शर्मा ने बताया कि ज्येष्ठ माह में पांच मंगलवार होंगे. यह पांचों मंगलवार हनुमानजी की कृपा पाने के लिए विशेष दिन हैं. इन दिनों में किया गया दान, विशेष रूप से प्यासे को जल पिलाना, शरबत वितरण, अन्न सेवा और सेवा कार्य विशेष पुण्यदायी होते हैं. हनुमानजी की विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए बजरंग बली को सिंदूर, केसर, पान का पत्ता, लौंग, इलायची, गुलाब और कमल पुष्प अर्पित किए जाएंगे, हनुमान चालीसा और सुंदरकांड पाठ होंगे.
मंगलवार को हुई थी श्रीराम से भेंट
पंडित घनश्याम शर्मा ने बताया कि पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान श्रीराम, माता सीता की खोज में वन में भटक रहे थ, तब उनकी पहली मुलाकात हनुमानजी से हुई. हनुमानजी उस समय एक ब्राह्मण के रूप में राम और लक्ष्मण से मिले थे. यह भेंट ज्येष्ठ महीने के मंगलवार को हुई थी. इसलिए इस दिन की विशेष मान्यता होती है और इस दिन से ही भगवान राम और हनुमानजी के अटूट संबंध की शुरूआत मानी जाती है.
ज्येष्ठ माह दान-पुण्य करने का महत्व
कि यह माह दान-पुण्य करने के लिए विशेष फलदायी माना जाता है. शास्त्रों के अनुसार, ज्येष्ठ में दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और कष्टों से मुक्ति मिलती है. इस माह में जलदान, अन्नदान, वस्त्रदान और छत्र-चप्पल दान का विशेष महत्व है. गर्मी के इस मौसम में प्यासे को जल देना, भूखे को भोजन कराना और गरीबों को वस्त्र देना अत्यंत पुण्यकारी माना गया है.
मान्यता है कि इस माह में किया गया दान सीधे भगवान विष्णु को प्राप्त होता है. ज्येष्ठ की पूर्णिमा को “वट सावित्री व्रत” भी मनाया जाता है, जिसमें सुहागिनें अपने पति की दीर्घायु के लिए व्रत रखती हैं और दान करती हैं. इस प्रकार, ज्येष्ठ माह में दान-पुण्य करने से आध्यात्मिक लाभ के साथ-साथ सामाजिक कल्याण भी होता है.
सपने में दिखे यह जानवर तो तुरंत खोल दें तिजोरी, बनने वाले हैं करोड़पति
16 May, 2025 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हर व्यक्ति सोते समय कुछ ना कुछ सपना अवश्य देखता है और स्वप्न शास्त्र के अनुसार सपने हमें भूत, भविष्य और वर्तमान के घटनाओं की ओर संकेत करता है. हर सपना का महत्व और संकेत भी अलग-अलग होता है. कई जातक घर पैसा, गाड़ी, इत्यादि का सपना देखता है, तो कई जातक पशु पक्षियों के भी सपने देखते हैं. कुछ पशु पक्षियों के सपने बेहद शुभ होते हैं, तो कुछ पशु-पक्षियों के सपने अशुभ घटनाओं की ओर इशारा करता है. वहीं स्वप्न शास्त्र के अनुसार एक ऐसा पशु है, जिसका सपना अगर जातक देखे, तो उसे करोड़पति बनने में देर नहीं लगती है. सफलता के रास्ते अपने आप बनने लगते हैं. कौन सा है, वह पशु और क्या कुछ खास प्रभाव पड़ता है, जानते हैं देवघर के ज्योतिषाचार्य से?
क्या कहते हैं देवघर के ज्योतिषाचार्य?
देवघर के पागल बाबा आश्रम स्थित मुद्गल ज्योतिष केंद्र के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित नंदकिशोर मुद्गल ने लोकल 18 के संवाददाता से बातचीत करते हुए कुछ ऐसे पशु पक्षी हैं, जिनको सपने में देखना बेहद शुभ माना जाता है. उसी में से एक है हाथी. स्वप्न शास्त्र के अनुसार अगर जातक सपने में हाथी देख ले, तो भाग्य चमक जाता है. जातक की किस्मत खुल जाती है. क्योंकि सपने में हाथी आना यानी कुंडली में गजकेसरी योग का बनने वाला है और गजकेसरी योग जातक की किस्मत बदल देती है. रातों-रात करोड़पति बन सकता है.
क्या कुछ पड़ता है प्रभाव?
ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि अगर सपने में हाथी देखना और उसमें से भी हाथी पर सवार अगर जातक हो तो जातक का भाग्य बदल जाता है. जातक को यश, सम्मान, मान, प्रतिष्ठा, वैभव मिलते देर नहीं लगती है. करियर में लगातार तरक्की मिलती है. अगर विवाह में समस्या आ रही है, तो वह भी समाप्त हो जाएगी.हालांकि की हाथी का सपना देखने के बाद महालक्ष्मी मंदिर में जाकर हाथी की प्रतिमा अर्पण करनी चाहिए.
महाभारत : अगर कर्ण को पहले ही पता चल जाता कि वो पांडवों के भाई हैं तो क्या होता
16 May, 2025 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
अगर कर्ण को युद्ध से पहले ही पता चल जाता कि वह कुंती का पुत्र और पांडवों का बड़ा भाई है, तो क्या महाभारत की कथा पूरी तरह बदल सकती थी. दरअसल केवल तीन लोग जानते थे कि कर्ण वास्तव में कुंती का पुत्र है. इन तीन में दो ने ये बात कर्ण को ठीक महाभारत युद्ध से पहले बताई. तब कुछ नहीं बदल सकता था. लेकिन शायद ये तस्वीर तब अलग होती अगर ये बात कर्ण को उसके युवा काल या बचपन में ही बता दी गई होती.
हालांकि इस बात पर विद्वानों, पौराणिक ग्रंथों और आधुनिक विश्लेषणों में अलग-अलग बातें कही गई हैं.
जब कुंती ने ये बात कर्ण को बताई
महाभारत के उद्योग पर्व के 143 वें अध्याय में कहा गया है कि युद्ध से पहले कुंती कर्ण के पास जाती हैं. उसे बताती हैं कि वह उसकी मां हैं. पांडव उसके भाई हैं. वह उसे पांडवों के पक्ष में आने के लिए मनाती हैं. तब कर्ण का जवाब होता है कि वह बेशक वह कुंती को मां मानता है, लेकिन दुर्योधन के प्रति निष्ठा और अपमान के कारण पांडवों का साथ नहीं देगा.
साथ ही कुंती को ये दिलासा भी देता है कि वह युद्ध में केवल अर्जुन को ही मारेगा, ताकि उसकी मां के पांच पुत्र बने रहें. महाभारत में ये साफ है कि कर्ण अर्जुन को हराने की अपनी प्रतिज्ञा से बंधा था, भले ही वह अपने भाइयों को बचाना चाहता था.
जब कृष्ण ने घर जाकर कर्ण को ये सच बताया
श्रीमद्भागवत पुराण (1.8.17-18) कहती है कि जब युद्ध से पहले कृष्ण खुद कर्ण के घर जाते हैं. उससे मिलकर उसके जन्म का रहस्य बताते हैं. उसे धर्म का मार्ग दिखाने की कोशिश करते हैं, लेकिन कर्ण अपनी प्रतिज्ञा (दुर्योधन के प्रति वफादारी) के कारण नहीं मानता.
क्या होता अगर कर्ण पहले जान जाता?
शायद युद्ध टल सकता था. अगर कर्ण को बचपन या युवावस्था में ही पता चल जाता कि वह कुंती का पुत्र है, तो वह पांडवों के साथ बड़ा होता. तब वह दुर्योधन के पाले में नहीं होता और पांडवों के साथ उसके रिश्तों में कोई कटुता नहीं आती.
तब कर्ण युधिष्ठिर की जगह हस्तिनापुर का उत्तराधिकारी बन सकता था (क्योंकि वह कुंती का ज्येष्ठ पुत्र था). तब दुर्योधन की इतनी ताकत भी नहीं होती, ना ही वो फिर पांडवों से इतनी अदावत लेता, ना ही पांडवों के खिलाफ षड्यंत्र कर पाता.
युद्ध का स्वरूप बदल जाता
कर्ण अगर पांडवों के पक्ष में आ जाता, तो कौरवों की हार निश्चित थी, क्योंकि कर्ण और अर्जुन के मिल जाने से संयुक्त बल अजेय होता. दुर्योधन तब शायद ही युद्ध की हिम्मत ही नहीं करता. हालांकि दुर्योधन को युद्ध और पांडवों के खिलाफ उकसाने वालों में कर्ण भी था.
राहुल सांकृत्यायन अपनी किताब महाभारत की ऐतिहासिकता में लिखते हैं, “कर्ण की कहानी एक ऐसे योद्धा की है जो सच जानकर भी उसे झुठलाता नहीं, बल्कि उसके साथ न्याय करता है.”
कर्ण के परिवार का क्या पांडवों से मेल हुआ
महाभारत युद्ध के बाद कर्ण की मृत्यु तो हुई ही, साथ ही उसके दस पुत्रों में केवल उसका सबसे छोटा पुत्र वृषकेतु ही जीवित बचा रहा. बाकी सभी पुत्र युद्ध में मारे गए थे – अधिकांश पांडवों के ही हाथों. कर्ण की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी वृषाली ने पति के वियोग में सती होना चुना. वह चिता पर बैठ गई.
कर्ण के पुत्र को अपनाया
कर्ण की मृत्यु के बाद, जब पांडवों को यह पता चला कि कर्ण वास्तव में उनकी माता कुंती का पुत्र और उनका बड़ा भाई था, तो उन्हें गहरा पछतावा हुआ. इसके पश्चात पांडवों ने कर्ण के जीवित पुत्र वृषकेतु को न केवल अपनाया, बल्कि उसे राजकुमार जैसा सम्मान दिया. वृषकेतु को पांडवों ने अपने साथ रखा, उसे शिक्षा दी. कई युद्धों में अर्जुन के साथ भेजा गया.
अर्जुन ने उसे युद्धकला की शिक्षा दी. वह अर्जुन के साथ अश्वमेध यज्ञ के दौरान अनेक युद्धों में शामिल हुआ. कहा जाता है कि वृषकेतु ने कई क्षेत्रों को जीतकर अर्जुन की सहायता की थी. कुछ कथाओं के अनुसार, वृषकेतु को ब्रह्मास्त्र, वरुणास्त्र, अग्नि और वायुस्त्र जैसे दिव्य अस्त्रों का ज्ञान था, जो उसे अपने पिता कर्ण से मिला था. वह अत्यंत वीर और योग्य योद्धा बना.
रात में कर दी ये 5 गलती तो रूठ जाएंगी मां लक्ष्मी!
16 May, 2025 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में वास्तु शास्त्र को न केवल वास्तुकला का विज्ञान माना गया है, बल्कि इसे जीवन को सुख, समृद्धि और संतुलन देने वाला मार्गदर्शक भी समझा जाता है. उज्जैन के प्रसिद्ध आचार्य आनंद भारद्वाज बताते हैं कि दिन की तरह रात का समय भी विशेष ऊर्जा लेकर आता है, और यदि इस समय कुछ कार्य गलत ढंग से किए जाएं तो वे सीधे हमारी आर्थिक और मानसिक स्थिति को प्रभावित कर सकते हैं.
रात में गुस्सा या कलह से बिगड़ सकता है घर का वातावारण
अक्सर लोग दिनभर की थकान या मानसिक दबाव को रात के समय बातचीत में उगल देते हैं, जिससे अनावश्यक विवाद हो जाता है. लेकिन वास्तु शास्त्र में यह स्पष्ट कहा गया है कि सूर्यास्त के बाद घर का वातावरण शांत, मधुर और संयमित होना चाहिए. कलह और क्रोध लक्ष्मी की कृपा को दूर कर सकते हैं.
शाम के बाद झाड़ू लगाना लक्ष्मी का अपमान!
वास्तु के अनुसार, झाड़ू में देवी लक्ष्मी का वास होता है. सूर्यास्त के बाद यदि घर में झाड़ू लगाया जाए तो यह धन की देवी का अपमान माना जाता है. इससे आर्थिक संकट आने की संभावना बढ़ जाती है. इसलिए सुबह या दोपहर में ही सफाई करना शुभ होता है.
रात को खाली बर्तन और खाली रसोई संकेत हैं दरिद्रता के
यदि रात को रसोईघर में अनाज खत्म हो जाए या बर्तन खाली पड़े रहें, तो यह घर में धन की कमी और मानसिक अस्थिरता का प्रतीक बनता है. भरापूरा रसोईघर समृद्धि और शांति का संकेत माना गया है. रात को एक कटोरी चावल या जल रखना भी शुभ कहा गया है.
नाखून काटना है छोटी गलती, बड़ा नुकसान
शास्त्रों में स्पष्ट उल्लेख है कि रात को नाखून काटना अत्यंत अशुभ है. यह न केवल गंदगी फैलाता है, बल्कि लक्ष्मी की कृपा को दूर करता है. इससे घर में दरिद्रता, अस्वस्थता और मानसिक तनाव का प्रवेश हो सकता है. नाखून काटने का सही समय दिन का उजाला होता है.
रात को लेन-देन बंद करें वरना लक्ष्मी छोड़ देंगी साथ
वास्तु के अनुसार, रात्रि का समय किसी भी प्रकार के लेन-देन के लिए उपयुक्त नहीं होता. चाहे वह पैसे का लेन-देन हो या सामान का. रात को उधार देना धन की हानि और आर्थिक अस्थिरता की ओर संकेत करता है. ऐसे कार्य सुबह या दोपहर में ही करने चाहिए.
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
16 May, 2025 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- मनोबल उत्साहवर्धक रहेगा, कार्यगति में सुधार, शुभ समाचार अवश्य मिलेगा।
वृष राशि :- कुछ बाधायें कष्टप्रद रखें, शरीर कष्ट, कारोबार में बाधा अवश्य बनेगी, ध्यान दें।
मिथुन राशि :- कार्य-कुशलता से संतोष, परिश्रम सफल होगा, स्त्री से सुख प्राप्त होगा।
कर्क राशि :- समय पर सोचे हुए कार्य होंगे, व्यवसाय क्षमता में वृद्धि होगी।
fिसंह राशि :- कुटुम्ब की समस्याएं सुलझें तथा सुख शांति से समय व्यतीत होवेगा।
कन्या राशि :- स्त्री वर्ग से हर्ष-उल्लास, आशानुकूल सफलता का हर्ष, बिगड़े कार्य बनेंगे।
तुला राशि :- योजनाएं पूर्ण होंगी, सतर्कता से कार्य निपटा लेवें, रुके कार्य बन जायेंगे।
वृश्चिक राशि :- कार्यगति उत्तम, चिन्ताएं कम हों, प्रभुत्व एवं प्रतिष्ठा अवश्य मिलेगी।
धनु राशि :- आशानुकूल सफलता का हर्ष, कार्यगति उत्तम, भावनाएं संवेदनशील रहेंगी।
मकर राशि :- अधिकारी वर्ग के तनाव से क्लेश, मानसिक अशांति, कार्य अवरोध होगा।
कुंभ राशि :- मनोबल बनाये रखें किन्तु आपके हाथ से कुछ नया कार्य अवश्य ही होगा।
मीन राशि :- दैनिक कार्यगति उत्तम, कुटुम्ब में सुख, समय उत्तम ही बीतेगा।
पंच केदार में होती है तुंगनाथ मंदिर की गिनती
15 May, 2025 07:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
दुनिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर है तुंगनाथ मंदिर है। इसकी गिनती पंच केदार यात्रा में की जाती है, जोकि उत्तराखंड के गढ़वाल हिमालय क्षेत्र में स्थित पांच पवित्र जगहों में से एक है, हालांकि यह चार धाम यात्रा से अलग है। पौराणिक कथा के मुताबिक कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद पांडवों में भगवान शिव से क्षमा मांगनी पड़ी थी। ऐसे में भगवान शिव ने लुका-छुपी का एक खेल खेला। जिसके तहत पांच अलग-अलग स्थानों पर पांच मंदिरों की स्थापना हुई। जिसमें केदारनाथ, तुंगनाथ, रुद्रनाथ, मध्यमहेश्वर और कल्पेशर शामिल हैं। इनमें से तुंगनाथ मंदिर तीसरा और सबसे अहम शिव मंदिर है।
तुंगनाथ मंदिर न सिर्फ पंच केदार मंदिरों में सबसे ऊंचा है, बल्कि यह विश्व का भी सबसे ऊंचा शिव मंदिर है। यह मंदिर 3,680 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। तुंगनाथ मंदिर का इतिहास महाभारत काल के पांडवों से जुड़ा है। यहां के स्थानीय लोगों की मानें, तो 8वीं शताब्दी के दार्शनिक और संत आदि शंकराचार्य ने मंदिर की खोज की थी। वहीं कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि कत्यूरी शासकों ने 8वीं शताब्दी में इस मंदिर का निर्माण किया गया था।
बद्री केदार मंदिर समिति द्वारा उत्तराखंड में स्थित तुंगनाथ मंदिर के खुलने की तारीख तय की जाती है। उत्तराखंड में चार धामों की शुरुआत के साथ तीसरे केदार तुंगनाथ का उद्घाटन होता है। आमतौर पर अप्रैल या मई में वैशाख पंचमी पर यह मंदिर भक्तों के लिए खुल जाता है।
तुंगनाथ मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको उत्तराखंड के चोपता आना होगा। चोपता से तुंगनाथ तक का ट्रेक करीब 3.5 किमी का है। हालांकि यह ट्रैक ज्यादा मुश्किल नहीं है, लेकिन इसको आसान भी नहीं कहा जा सकता है। इस ट्रैक के दौरान आपको घास के मैदान और बर्फ से ढके पहाड़ों को देखकर आपका दिल खुश हो जाएगा। चोपता से तुंगनाथ पहुंचने में करीब 2 से 3 घंटे तक का समय लगता है।
उत्तराखंड के चोपता से तुंगनाथ ट्रेक की शुरुआत होती है। ऐसे में आपको सबसे पहले हरिद्वार या ऋषिकेश पहुंचना होगा, फिर वहां से चोपता के लिए बस या टैक्सी करें। या फिर आप उखीमठ से बस ले सकते हैं। उखीमठ से आप लोकल टैक्सी ले सकते हैं। चोपता उत्तराखंड का बेहद खूबसूरत हिल स्टेशन है और इसको भारत का मिनी स्विटजरलैंड भी कहा जाता है।
बता दें कि तुंगनाथ मंदिर पहुंचने के बाद आप केदारनाथ, नंदा देवी, त्रिशूल और चौखंबा की राजसी चोटियों को भी देख सकते हैं। मंदिर तक जाने के बाद अगर आप चंद्रशिला शिखर तक जाना चाहते हैं, तो आपको तुंगनाथ मंदिर से आगे 1.5 किमी जाना होगा। पौराणिक कथाओं के मुताबिक इस शिखर पर भगवान श्रीराम ने ध्यान किया था।