धर्म एवं ज्योतिष
भगवान शिव के 108 नाम, सब एक से बढ़कर एक, जानें क्या हैं उनके अर्थ
21 May, 2025 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
देवों के देव महादेव की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. सोमवार, शिवरात्रि, महाशिवरात्रि के अलावा सावन के सभी दिन शिव पूजा के लिए उत्तम होते हैं. शिव जी सबसे आसानी से प्रसन्न होने वाले देव हैं, जो सबसे भोले हैं, इसलिए उनको भोलेनाथ कहते हैं. वे पशुओं के भी देवता हैं, इस वजह से वे पशुपति नाथ कहलाए. शिव जी के भक्त उनको कई नामों से पुकारते हैं. जो काल से भी परे हैं, वे महाकाल हैं, जो उज्जैन में निवास करते हैं. शिव अष्टोत्तर शतनामावली के अनुसार, शिव जी के 108 नाम बताए गए हैं. हर नाम का अर्थ विशेष है, जो उनके गुण और स्वरूप की व्याख्या करते हैं. आइए जानते हैं भगवान शिव के 108 नामों के बारे में.
भगवान शिव के 108 नाम और उनके अर्थ
1. शिव – कल्याणकारी, जो सभी का मंगल करते हैं.
2. महेश्वर – महान ईश्वर, सभी के स्वामी.
3. शंभु – सुख और आनंद देने वाले.
4. पिनाकी – जो पिनाक धनुष धारण करते हैं.
5. शशिशेखर – जिनके मस्तक पर चंद्रमा विराजमान है.
6. वामदेव – सुंदर और दयालु स्वरूप वाले.
7. विरूपाक्ष – विचित्र नेत्रों वाले.
8. कपर्दी – जटाजूट धारण करने वाले.
9. नीलकंठ – नीले कंठ वाले.
10. स्थाणु – स्थिर और अटल.
11. भक्तवत्सल – भक्तों के प्रति प्रेम रखने वाले.
12. भव – संसार के सृष्टिकर्ता.
13. सर्व – सर्वव्यापी, सभी कुछ.
14. त्रिलोचन – तीन नेत्रों वाले.
15. शितिकंठ – शीतल कंठ वाले.
16. शिवप्रिय – जो शिव को प्रिय हैं.
17. जटाधर – जटाएं धारण करने वाले.
18. कैलाशवासी – कैलाश पर्वत पर निवास करने वाले.
19. कपाली – जो कपाल धारण करते हैं.
20. कामारी – कामदेव का नाश करने वाले.
21. अंधकारिपु – अंधकार यानि अज्ञान के शत्रु.
22. गंगाधर – गंगा को जटाओं में धारण करने वाले.
23. ललाटाक्ष – मस्तक पर नेत्र वाले.
24. कालकाल – काल यानि मृत्यु के भी काल.
25. कृपानिधि – करुणा के भंडार.
26. भीम – भयंकर और शक्तिशाली.
27. परशुहस्त – हाथ में परशु धारण करने वाले.
28. मृगपाणि – जिनके हाथ में हिरण है.
29. जटिल – जटाधारी.
30. कैलाशपति – कैलाश के स्वामी.
31. कृत्तिवास – बाघ की खाल पहनने वाले.
32. पुराराति- पुर यानि त्रिपुर के शत्रु.
33. भगवान – सभी ऐश्वर्य के स्वामी.
34. प्रमथाधिप – गणों के स्वामी.
35. मृत्युंजय – मृत्यु को जीतने वाले.
36. सूक्ष्मतनु – सूक्ष्म शरीर वाले.
37. जगद्व्यापी – विश्व में व्याप्त.
38. जगद्गुरु – विश्व के गुरु.
39. व्यास – जो सभी को विस्तार देते हैं.
40. सर्वज्ञ – सर्वज्ञानी, सब कुछ जानने वाले.
41. विनय – विनम्रता के प्रतीक.
42. विश्वनाथ – विश्व के स्वामी.
43. वृषभ – नंदी के स्वामी.
44. वृषध्वज – बैल के चिह्न वाला ध्वज रखने वाले.
45. सुरवन्दित – देवताओं द्वारा पूजित.
46. सिद्धनाथ – सिद्धियों के स्वामी.
47. सिद्धिद – सिद्धियां देने वाले.
48. सर्वद – सभी कुछ देने वाले.
49. शर्व – सभी का संहार करने वाले.
50. श्रीकंठ – सुंदर कंठ वाले.
51. शितकंठ – शीतल कंठ वाले.
52. कपिलमुनि – कपिल मुनि के स्वरूप.
53. आयुर्द – आयु देने वाले.
54. आदिदेव – प्रथम देवता.
55. महादेव – देवों के देव.
56. नन्दीश्वर – नंदी के स्वामी.
57. नागभूषण – सर्पों से सुशोभित.
58. निकुंभ – दुष्टों का नाश करने वाले.
59. सनातन – अनादि और अनंत.
60. अनन्तदृष्टि – अनंत दृष्टि वाले.
61. आनन्द – आनंद देने वाले.
62. धूर्जटि – भारी जटाओं वाले.
63. चन्द्रमौलि – चंद्रमा को मस्तक पर धारण करने वाले.
64. नित्य – शाश्वत और अनश्वर.
65. निराधार – बिना किसी आधार के स्वयंभू.
66. निराकार – बिना आकार के.
67. आदिकर्ता – प्रथम सृष्टिकर्ता.
68. नागेन्द्र – सर्पों के स्वामी.
69. अभयंकर – भय का नाश करने वाले.
70. पशुपति – सभी प्राणियों के स्वामी.
71. दक्षाध्वरहर – दक्ष के यज्ञ का नाश करने वाले.
72. हर- पापों का हरण करने वाले.
73. भुजंगभूषण – सर्पों से अलंकृत.
74. भर्ग – भय को नष्ट करने वाले.
75. गिरीश – पर्वतों के स्वामी.
76. गिरिशाय – पर्वत पर निवास करने वाले.
77. जगन्नाथ – विश्व के स्वामी.
78. कुबेरमित्र – कुबेर के मित्र.
79. मृत्युंजय – मृत्यु पर विजय पाने वाले.
80. कृत्तिवास – बाघ की खाल धारण करने वाले.
81. पुराराति – त्रिपुरासुर के शत्रु.
82. नित्यसुन्दर – सदा सुंदर.
83. महायोगी – महान योगी.
84. महेश – महान ईश्वर.
85. चराचरगुरु – चर और अचर के गुरु.
86. ईशान – उत्तर दिशा के स्वामी.
87. सहस्राक्ष – हजार नेत्रों वाले.
88. सहस्रपाद – हजार पैरों वाले.
89. अपवर्गप्रद – मोक्ष देने वाले.
90. अनघ – पापरहित.
91. सदा शिव – सदा कल्याणकारी.
92. अनन्त – अनंत स्वरूप.
93. शान्त – शांत स्वरूप.
94. सर्वज्ञ – सब कुछ जानने वाले.
95. परमात्मा – सर्वोच्च आत्मा.
96. सोमसुन्दर – चंद्रमा के समान सुंदर.
97. सुरेश्वर – देवताओं के स्वामी.
98. महासेन – महान सेना के स्वामी.
99. वेदकर्ता – वेदों के रचयिता.
100. वरद – वरदान देने वाले.
101. विश्वेश्वर – विश्व के ईश्वर.
102. त्र्यम्बक – तीन नेत्रों वाले.
103. विश्वरूप – विश्व के स्वरूप.
104. वीरभद्र – वीरभद्र के स्वामी.
105. विशालाक्ष – विशाल नेत्रों वाले.
106. वृषांक – बैल के चिह्न वाले.
107. वृषवाहन – बैल पर सवारी करने वाले.
108. अहिर्बुध्न्य – सर्पों के आधार वाले.
लड्डू गोपाल को स्नान करवाते समय भूलकर ना करें ये गलतियां
21 May, 2025 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
लड्डू गोपाल को भगवान श्रीकृष्ण का बाल स्वरूप माना जाता है और ज्यादातर घरों में आपको लड्डू गोपाल देखने को मिल जाएंगे. लड्डू गोपाल की पूजा अर्चना शास्त्रीय विधि से की जाती है और इसकी शुरुआत सुबह सुबह स्नान से हो जाती है. लड्डू गोपाल (भगवान श्री कृष्ण) को स्नान करवाने की विधि एक विशेष धार्मिक प्रक्रिया है, जहां ईश्वर और भक्त के बीच अनोखा संयोग देखने को मिलता है. यह विधि केवल एक स्नान से जुड़ी नहीं है, बल्कि भक्त उनकी पूजा अर्चना और बच्चों की तरह स्नान करवाने से ईश्वर के करीब महसूस करते हैं और मानसिक शांति भी मिलती है. आइए जानते हैं कि लड्डू गोपाल को किस तरह स्नान करवाएं, ताकि पूजा का पूर्ण फल प्राप्त हो सके…
लड्डू गोपाल को स्नान करवाने की विधि:
1. स्नान की तैयारी
* सबसे पहले, लड्डू गोपाल को बिस्तर से उठाकर उनके साथ बातचीत करें और बच्चों के जैसे कपड़े उतारते हैं, धीरे धीरे. वैसे ही उनके कपड़े उतारें.
* स्नान के लिए एक छोटी सी चौकी या आसन पर लड्डू गोपाल को रखें.
* स्नान के लिए पानी, दूध, दही, घी, शहद और शक्कर जैसे पदार्थों को अलग-अलग रखें.
* इन सभी सामग्रियों का उपयोग स्नान के दौरान भगवान को शुद्ध करने और उनका पवित्रता देने के लिए किया जाता है.
2. स्नान के समय का चुनाव
लड्डू गोपाल स्नान करवाने का सबसे उपयुक्त समय सुबह का होता है, खासकर ब्राह्ममुहूर्त (जो सूर्योदय से पहले का समय होता है) में. लेकिन आप दिन में भी स्नान करवा सकते हैं. बुधवार और रविवार को विशेष रूप से स्नान कराना लाभकारी होता है.
3. स्नान की विधि
* सबसे पहले, गंगाजल से लड्डू गोपाल का अभिषेक करें. यह भगवान के पवित्रता को बढ़ाने के लिए किया जाता है.
* अब, एक चम्मच दूध लेकर भगवान के ऊपर से धीरे-धीरे डालें. दूध भगवान को शुद्ध करता है और मानसिक शांति प्रदान करता है.
* इसके बाद, दही से भगवान को स्नान कराएं. दही भगवान की मुरली को शुद्ध करता है और भक्तों को सुख और शांति का आशीर्वाद मिलता है.
* फिर, एक चम्मच घी लेकर भगवान पर डालें. घी, विशेष रूप से, आत्मिक और मानसिक शुद्धि का प्रतीक है.
* अब, एक चम्मच शहद भगवान पर डालें. शहद का अर्थ है जीवन में मिठास और सफलता की प्राप्ति.
* अंत में, शक्कर से भगवान को स्नान कराएं. शक्कर से भगवान की कृपा बढ़ती है और जीवन में सुख और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है.
4. स्नान के बाद पवित्र जल छिड़कना
अब, भगवान को स्नान कराकर पवित्र जल से उनका अभिषेक करें. आप गंगाजल या किसी शुभ जल का उपयोग कर सकते हैं. इससे भगवान का स्नान पूर्ण होता है.
5. मालिश
भगवान के शरीर को सूखा देने के बाद, एक सफेद कपड़े से उन्हें पोंछ लें. फिर, लड्डू गोपाल को कपड़े पहनाकर और आभूषणों से सजाकर एक सुंदर आसन पर बिठा लें.
6. धूप, दीप, भोग और पूजा सामग्री
अब भगवान को धूप (धूपबत्ती) और दीप (दीपक) दिखाकर उन्हें अर्पित करें.फिर, भगवान को फूल और लड्डू अर्पित करें. लड्डू या आपके घर में जो भी ताजा हो, उसका भोग लगा सकते हैं क्योंकि ईश्वर केवल भाव का भूखा होता है.
7. स्मरण और प्रार्थना
स्नान के बाद, भगवान से अपने दिल की प्रार्थना करें और उन्हें धन्यवाद अर्पित करें. आप निम्नलिखित मंत्र का जाप कर सकते हैं:
ॐ श्री कृष्णाय नमः
इस मंत्र का जाप करने से भगवान श्री कृष्ण की कृपा मिलती है.
इस दिन करें पितरों की पूजा, मिलेगा वैभव और धन, हर काम में लगेगा मन, जानें पूरी विधि
21 May, 2025 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
साल में होने वाले सभी 24 प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित बताए गए हैं. जैसे साल में 12 प्रदोष व्रत कृष्ण पक्ष में आते हैं तो वहीं 12 प्रदोष व्रतों का आगमन शुक्ल पक्ष में होता है. प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव की पूजा आराधना, मंत्रो का जाप, स्तोत्र आदि का पाठ करना बेहद चमत्कारी और लाभकारी बताया गया है. इस दिन भगवान शिव की पूजा प्रदोष काल में करने का महत्व बताया गया है. प्रदोष काल तीसरे पहर में सूर्यास्त के समय आता है साथ ही यह समय पितरों के लिए भी खास होता है.
पितृ दोष की शांति के लिए प्रदोष व्रत के दिन क्या उपाय करने चाहिए कि पितरों को समर्पित पितृपक्ष भगवान शिव के अधिपत्य में आते हैं. उस समय विष्णु भगवान क्षीर सागर में आराम करते हैं और पूरे ब्रह्मांड का संचार भगवान शिव करते हैं. पितरों को मोक्ष देने के लिए कृष्ण पक्ष की प्रदोष तिथि का बहुत अधिक महत्व बताया गया है. यदि प्रदोष व्रत शनिवार के दिन हो तो उसका जातकों को कई गुना लाभ होता है. साल 2025 में ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष का प्रदोष व्रत 24 मई शनिवार को होगा. इस दिन अपने पितरों के निमित्त कोई भी धार्मिक अनुष्ठान, तर्पण, पिंडदान, हवन, यज्ञ या पितरों की पूजा करने पर उसका संपूर्ण से अधिक लाभ मिलता है.
वह आगे बताते हैं कि ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष का प्रदोष व्रत शनिवार को होगा और इस दिन प्रदोष काल के समय पीपल के वृक्ष के नीचे सरसों के तेल का दिया जलाने, भगवान शिव का गंगाजल, काले तिल, दूध, दही, शहद आदि से अभिषेक करने, भगवान शिव के एकाक्षरी मंत्र ‘ॐ नमः शिवाय’ का जाप करने और रुद्राष्टक, पशुपत्येष्टक, शिव महिम्न, शिव तांडव आदि स्तोत्र का पाठ करने पर पितृ दोष से शांति मिल जाती है. सूर्यास्त से 45 मिनट पहले और सूर्यास्त के 45 मिनट के बाद वाला समय प्रदोष काल होता है.
स्वर्ग लोक की वो अप्सरा, जो अर्जुन की थी दीवानी, फिर क्यों दिया उन्हें किन्नर बनने का श्राप? कैसे बना वो ढाल!
21 May, 2025 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
अगर कोई आपको श्राप दे और वह आपके लिए लाभदायक साबित हो, तो क्या कहेंगे? ये बात सुनने में अजीब लगती है, लेकिन महाभारत की कहानी में एक ऐसा ही रोचक प्रसंग सामने आता है, जिसमें अर्जुन को मिला श्राप उनके लिए वरदान बन गया. ये श्राप उन्हें किसी और ने नहीं, बल्कि स्वर्ग की सबसे सुंदर अप्सरा उर्वशी ने दिया था. अर्जुन को यह श्राप मिला कि वह कुछ समय के लिए किन्नर बन जाएंगे. लेकिन आगे चलकर यही श्राप अर्जुन के लिए संकट से बचने का रास्ता बन गया. आइए जानते हैं इस घटना से जुड़ी पूरी कहानी.
अर्जुन पहुंचे स्वर्गलोक
अर्जुन की वीरता केवल पृथ्वी तक सीमित नहीं थी. दिव्य अस्त्र-शस्त्र प्राप्त करने की चाह में उन्होंने स्वर्गलोक की यात्रा की. वहां इंद्रदेव ने उनकी परीक्षा ली और उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें कई दिव्यास्त्र प्रदान किए. ये अस्त्र आगे चलकर महाभारत के युद्ध में अर्जुन के बड़े काम आए.
उर्वशी का प्रेम प्रस्ताव
स्वर्गलोक में रहते हुए अर्जुन का तेज और शौर्य देखकर उर्वशी जैसी अप्सरा भी उन पर मोहित हो गई. उन्होंने अर्जुन से प्रेम का प्रस्ताव रखा. लेकिन अर्जुन ने उसे विनम्रता से ठुकरा दिया. अर्जुन ने उर्वशी से कहा कि वह उन्हें माता समान मानते हैं, क्योंकि उर्वशी पांडवों के वंशज पुरुरवा की पत्नी रह चुकी थीं.
अपमानित होकर दिया श्राप
उर्वशी अर्जुन के उत्तर से बेहद आहत हुईं. क्रोध में उन्होंने अर्जुन को श्राप दे दिया कि वे नपुंसक यानी किन्नर बन जाएंगे. अर्जुन इस अप्रत्याशित श्राप से हैरान रह गए. उन्हें समझ नहीं आया कि इसका क्या परिणाम होगा. लेकिन उन्होंने तुरंत इंद्रदेव से इसका समाधान पूछा.
इंद्रदेव ने बताया समाधान
इंद्रदेव ने अर्जुन को सांत्वना दी और कहा कि यह श्राप स्थायी नहीं है. वे जब चाहें, अपनी पूर्व अवस्था में लौट सकते हैं. साथ ही इंद्रदेव ने कहा कि यह श्राप भविष्य में उनके बहुत काम आने वाला है.
जब श्राप बना कवच
महाभारत के अज्ञातवास के समय पांडवों को एक साल तक अपनी पहचान छुपाकर रहना था. यदि उनकी पहचान उजागर हो जाती, तो अज्ञातवास असफल हो जाता. ऐसे में अर्जुन ने उर्वशी के श्राप का लाभ उठाया. वे किन्नर बृहन्नला बनकर राजा विराट के महल में रहने लगे. उन्होंने राजकुमारी उत्तरा को नृत्य और संगीत सिखाया.
दुर्योधन को भी नहीं हुआ शक
अर्जुन के इस भेष को कोई पहचान नहीं सका. दुर्योधन और उसके गुप्तचरों को भी संदेह नहीं हुआ कि यह बृहन्नला वास्तव में अर्जुन हैं. इस तरह पांडवों का अज्ञातवास सफल हुआ और अर्जुन को उर्वशी का श्राप संकट से बचाने वाला कवच बन गया.
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
21 May, 2025 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- धन का व्यय संभव है, तनाव पूर्ण वार्ता से बचियेगा, कार्य का ध्यान अवश्य दें।
वृष राशि :- अधिकारियों के समर्थन से सफलता, कार्यकुशलता से संतोष होगा, कार्य करेंगे।
मिथुन राशि :- चिन्ताऐं कम हों, सफलता के साधन जुटाएं, शुभ समय अवश्य होगा।
कर्क राशि :- बड़े-बड़े लोगों से मेल-मिलाप होगा तथा समृद्धि के साधन अवश्य बनेंगे।
fिसंह राशि :- स्त्री वर्ग से हर्ष-उल्लास होगा तथा समृद्धि के साधन अवश्य बनेंगे।
कन्या राशि :- प्रतिष्ठा बाल-बाल बचे, संघर्ष से अधिकारियों का व्यय भार बढ़ेगा।
तुला राशि :- कुटुम्ब और धन की चिन्ता बनी रहे, परिश्रम के साथ कार्य अवश्य बनेंगे।
वृश्चिक राशि :- प्रत्येक कार्य में बाधा क्लेश-युक्त रखे, स्थिति सामर्थ्य योग्य बनेगी।
धनु राशि :- भावनाऐं विक्षुब्ध रखें। दैनिक कार्यगति मंद रहे, परिश्रम से कार्य अवश्य बनें।
मकर राशि :- तनाव क्लेश व अशान्ति, धन का व्यय, मानसिक अशान्ति अवश्य ही बनेगी।
कुंभ राशि :- कार्य कुशलता से संतोष होगा। व्यवसायिक समृद्धि के कार्य अवश्य बनेंगे।
मीन राशि :- कुटुम्ब के कार्य में समय बीतेगा तथा हर्षप्रद समाचार अवश्य ही मिलेंगे।
महाभारत : कृष्ण के सगे समधी थे दुर्योधन, अजीब हालत में हुई बेटा-बेटी की शादी, दोनों में क्यों कभी नहीं बनी
20 May, 2025 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि कृष्ण और दुर्योधन सगे समधी थे. कृष्ण के बेटे की शादी दुर्योधन की इकलौती लड़की से हुई थी. हालांकि ये शादी बहुत अजीब तरीके से हुई. जिसको लेकर कृष्ण के बड़े भाई बलराम ने कौरवों को धमकी भी दे डाली थी. कौरव भी कृष्ण के बेटे पर खूब नाराज थे.क्योंकि बात ही ऐसी थी. ये कैसी शादी थी. और शादी के बाद समधि बनने के बाद भी दुर्योधन और कृष्ण अलग अलग ही रहे.
महाभारत में रिश्तों की ऐसी पहेलियां हैं कि जितनी इसे खोलते जाएंगे, उतना ही हैरान भी होंगे. जैसे कि कृष्ण और दुर्योधन का आपस में समधी होना लेकिन एक दूसरे के कभी साथ नहीं होना. ये कथा मुख्य तौर पर हरिवंश पुराण (महाभारत का उपपुराण) और महाभारत के अनुशासन पर्व तथा अश्वमेध पर्व में आती है.
कृष्ण के बेटे का नाम था साम्ब. दुर्योधन की बेटी का नाम था लक्ष्मणा. साम्ब स्वभाव से बहुत साहसी, उद्दंड और हठी माने जाते थे. वह कृष्ण और उनकी पत्नी जामवंती के पुत्र थे. उसको दुर्योधन की बेटी लक्ष्मणा से प्यार हो गया.
हरिवंश पुराण (पर्व 2, अध्याय 99) में कहा गया है कि साम्ब द्वारका से हस्तिनापुर आए थे. वहीं कौरव सभा या किसी नगर उत्सव में लक्ष्मणा को पहली बार देखा था. वो उससे इतना प्रभावित हुए कि मन ही मन उस पर मोहित हो गए. उसके सौंदर्य और गुणों की प्रशंसा करते हुए, उन्होंने निश्चय कर लिया कि
“यदि विवाह संभव न भी हो, तो मैं लक्ष्मणा को हरण कर लूंगा.”
दोनों एक दूसरे को चाहते थे. दुर्योधन की पत्नी भानुमति जरूर इस बारे में जानती थी. वह चाहती भी थी कि ये शादी हो जाए लेकिन ये बात कभी जाहिर नहीं की. भानुमति खुद कृष्ण भक्त थी.
दुर्योधन क्यों इस शादी के लिए राजी नहीं था
कहा जाता है कि कौरवों को ये बात पता चल गई थी लेकिन कृष्ण के पांडवों के करीब होने की वजह से उन्हें ये कतई पसंद नहीं था कि उनके यहां की बेटी की शादी उनके बेटे से हो. दुर्योधन को कतई इस विवाह के लिए राज़ी नहीं थे, क्योंकि उन्हें यादवों से ईर्ष्या थी.
दुर्योधन की बेटी को साम्ब स्वयंवर से हरण कर ले गया
जब लक्ष्मणा के लिए स्वयंवर का आयोजन किया गया तो कृष्ण के बेटे साम्ब को इसमें नहीं आमंत्रित किया गया. स्वयंवर समारोह की सारी तैयारियां हो गईं. राजा और राजकुमार वहां पहुंच गए. जैसे ही लक्ष्मणा स्वयंवर में किसी और को वरमाला डालने जा रही थी, तभी साम्ब ने वहां पहुंचकर लक्ष्मणा का अपहरण कर लिया. अपने रथ पर बिठाकर वह वहां से भाग निकला. कौरव देखते रह गए.
साम्ब को बंदी लिया गया
कौरव बहुत क्रोधित हुए. उन्होंने भीष्म, द्रोण, कर्ण, और कृपाचार्य आदि के साथ साम्ब का पीछा किया. संघर्ष हुआ. साम्ब अकेले थे. इसलिए कौरवों ने उन्हें बंदी बना लिया.
तब क्रोधित बलराम हस्तिनापुर पहुंचे
जब यह बात द्वारका पहुंची, तो बलराम बहुत क्रोधित हुए. वह अकेले हस्तिनापुर पहुंचे. धृतराष्ट्र और कौरवों से बोले, “यदि आप लोगों ने साम्ब को नहीं छोड़ा तो तो मैं हस्तिनापुर को गदा प्रहार से गंगा में डुबो दूंगा.” बलराम के प्रचंड रूप को देखकर कौरव डर गए.
तब दोनों का विधिवत विवाह हुआ
धृतराष्ट्र ने माफ़ी मांगी और कहा, “हमसे भूल हुई. साम्ब और लक्ष्मणा का विधिवत विवाह करवा देंगे.” फिर साम्ब के साथ लक्ष्मणा का विवाह कराया गया. ये विवाह महाभारत युद्ध से पहले हुआ था. इस विवाह के पीछे राजनीतिक महत्व भी था. हालांकि ये कहा जाता है इस विवाह की जानकारी कृष्ण को भी नहीं थी. इसकी जानकारी उन्हें विवाह के बाद ही हुई. साम्ब और लक्ष्मणा का एक पुत्र हुआ था, जिसका नाम उष्ण या प्रद्युम्न भी मिलता है.
बलराम चाहते थे कि इस विवाह से यादव और कौरव वंश के बीच एक तरह का समझौता या सांठगांठ हो सके. हालांकि ऐसा हुआ नहीं. महाभारत युद्ध में इसका कोई विशेष असर नहीं पड़ा. हालांकि ये जरूर हुआ कि दुर्योधन युद्ध से पहले कृष्ण से मदद मांगने पहुंचे थे और कृष्ण ने उन्हें अपनी सेना दे दी थी.
कृष्ण की वजह से ही दुर्योधन मारा भी गया
कृष्ण ने दुर्योधन का समधी होने के बाद भी महाभारत के युद्ध में पांडवों का साथ दिया. जब महाभारत के युद्ध में दुर्योधन जान बचाकर भागा और एक तालाब में छिप गया, तो उसे कैसे निकाला जाए, ये युक्ति भी उन्होंने पांडवों को बताई और गदा युद्ध में दुर्योधन की जांघ पर प्रहार करने की युक्ति भी उन्होंने ही भीम को बताई.
हालांकि ये भी कहना चाहिए बेशक कृष्ण समधि थे लेकिन कभी दुर्योधन ने भी उन्हें वो सम्मान नहीं दिया, जो देना चाहिए था. जब कृष्ण पांडवों के वनवास के बाद मध्यस्थ बनकर हस्तिनापुर के दरबार में पहुंचे थे, तब दुर्योधन ने तो उन्हें बंदी बनाने की योजना तक बना ली थी.
कृष्ण और दुर्योधन की कभी नहीं बनी. क्योंकि कृष्ण को हमेशा लगता था कि पांडव सही रास्ते पर चलते हैं. दुर्योधन बार बार उनसे छलकपट करता है. इसी से उसने उनसे उनका राजपाट छीन लिया. उन्होंने हमेशा दुर्योधन को सही रास्ते पर लाने की कोशिश की लेकिन वह टस से मस नहीं हुआ. अगर दुर्योधन अपने समधी कृष्ण की बात मान लेता तो कभी महाभारत का युद्ध ही नहीं होता.
कुंवारी लड़कियों किस तरह रखें मंगलवार का व्रत, जानें नियम, पूजा विधि, लाभ, मंत्र
20 May, 2025 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में मंगलवार व्रत को अत्यंत पवित्र और प्रभावशाली माना जाता है. मंगलवार व्रत विशेष रूप से हनुमानजी और मंगल ग्रह की पूजा के लिए समर्पित होता है. मान्यता है कि मंगलवार का व्रत करने से हनुमानजी की विशेष कृपा रहती है और सभी कष्ट व परेशानियों से मुक्ति भी मिलती है. साथ ही कुंडली में अगर मंगल ग्रह से संबंधित दोष है तो वह भी दूर हो जाएगा. विशेष रूप से मांगलिक दोष की वजह से विवाह में देरी हो रही है तो उनके लिए यह व्रत अत्यधिक फलदायी माना गया है. मंगलिक दोष से पीड़ित लड़कियों को इस व्रत को 16 या 21 लगातार मंगलवार तक रखने की सलाह दी जाती है. आइए जानते हैं मंगलवार का व्रत लड़कियां किस तरह रखें…
मंगलवार व्रत के लाभ (Benefits of Tuesday Fast)
मंगलिक दोष से मुक्ति
मंगलवार व्रत विशेष रूप से उन लड़कियों के लिए लाभकारी माना गया है, जिनकी कुंडली में मंगलिक दोष है. इस व्रत के माध्यम से मंगल ग्रह के अशुभ प्रभाव कम होते हैं और विवाह संबंधी बाधाएं दूर होती हैं. ऐसा विश्वास है कि मंगलवार का व्रत श्रद्धा से करने पर मनचाहा और योग्य जीवनसाथी प्राप्त होता है. व्रत से आकर्षण, सौंदर्य और सकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि होती है.
रुकावट का निवारण
मंगलवार का व्रत पर्सनल व प्रफेशनल लाइफ में आ रहीं सभी तरह की रुकावट, तनावों और पारिवारिक समस्याओं को दूर करने में सहायक होता है. साथ ही नौकरी व कारोबार में उन्नति होती है और जमीन से संबंधित सभी समस्याओं का निवारण भी मिलता है.
मंगल ग्रह का शुभ फल
मंगलवार का व्रत करने से कुंडली में मंगल ग्रह की स्थिति मजबूत होती है और जिन लड़कियों की कुंडली में मांगलिक दोष होता है, वह भी दूर हो जाता है. मंगलवार का व्रत करने से मंगल ग्रह का शुभ फल प्राप्त होता है और किसी संपत्ति के मालिक भी बनते हैं. इस व्रत के करने से आत्मविश्वास, साहस और निर्णय क्षमता में वृद्धि होती है. आर्थिक समस्याओं और मानसिक तनाव में कमी आती है और समाज में प्रतिष्ठा और सम्मान प्राप्त होता है.
मंगलवार मंत्र जप
मंगलवार को हनुमानजी और मंगल ग्रह से संबंधित मंत्र का जप अवश्य करें…
ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः, इस मंत्र का 108 बार जाप मंगल दोष निवारण में मदद करता है.
ॐ हनु हनुमते नमः
ॐ हं हनुमते रुद्रात्मकायं हुं फट्
ॐ हं पवननन्दनाय स्वाहा
ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय विश्वरूपाय अमित विक्रमाय प्रकटपराक्रमाय
महाबलाय सूर्य कोटिसमप्रभाय रामदूताय स्वाहा।
मंगलवार व्रत पूजा विधि
मंगलवार व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान व ध्यान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें. अगर संभव हो तो लाल रंग के वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है. पूजा स्थान को स्वच्छ करें और चारों तरफ गंगाजल से छिड़काव भी करें. फिर एक चौकी रखें और उस पर लाल कपड़ा बिछाकर हनुमानजी और मंगल ग्रह की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें. हनुमानजी की पूजा में लाल सिंदूर, लाल फूल, गुड़, तुअर दाल, चना, हलवा आदि का उपयोग करें. इनका भोग हनुमानजी को अर्पित करें. फिर ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः और ॐ हनुमते नमः मंत्रों का 108 बार जप भी करें. अगर संभव हो तो नारियल, तांबा, मसूर की दाल, गुड़, गेहूं आदि का दान अवश्य करें. साथ ही गरीबों और ब्राह्मणों को भोजन भी कराएं. मंगलवार के 21 व्रत पूर्ण होने के बाद उद्यापन अवश्य करें, जिसमें हवन, भोग अर्पण और दान आदि शामिल हैं.
मंगलवार व्रत भोजन नियम (Fasting Rules)
* उपवास में फलाहार, दूध, और साबूदाना खिचड़ी आदि ले सकते हैं.
* अगर पूर्ण उपवास कठिन लगे तो एक समय सात्त्विक भोजन कर सकते हैं.
* लाल मसूर की दाल, पराठे, दही, और गुड़-चना या फल खा सकते हैं.
दान और सेवा
* हनुमानजी को प्रिय वस्तुएं जैसे गुड़, चना, नारियल, मसूर की दाल का दान करें.
* मंदिर में जाकर बंदरों को केला या चना खिलाना शुभ होता है.
* गरीबों को भोजन और वस्त्र का दान करें.
व्रत में क्या न करें
* व्रत के दिन मांसाहार, शराब, लहसुन-प्याज से दूर रहें.
* अधिक क्रोध, झूठ बोलना या दूसरों को अपशब्द कहना भी वर्जित है.
* व्रत के दौरान मोबाइल, टीवी, सोशल मीडिया में अधिक समय न लगाएं – ध्यान और भक्ति में मन लगाएं.
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
20 May, 2025 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- मानिसक बेचैनी, दुर्घटनाग्रस्त होने से बचें, अधिकारियों से तनाव बनेगा।
वृष राशि :- योजनाऐं फलीभूत हों, सफलता के साधन जुटायें, विशेष लाभ होगा।
मिथुन राशि :- अचानक उपद्रव कष्टप्रद हो, विशेष कार्य स्थिगित रखें, कार्य अवरोध होगा।
कर्क राशि :- परिश्रम से कुछ सफलता मिले, कार्य व्यवसाय की विशेष चिन्ता बनेगी।
fिसंह राशि :- किसी अपवाद व दुर्घटना से बचें, व्यवसायिक क्षमता में बाधा होगी।
कन्या राशि :- व्यवसायिक गति उत्तम, चिन्ताऐं कम होंगी, अवरोध के बाद कार्य बनेंगे।
तुला राशि :- मानसिक बेचैनी, उद्विघ्नता के योग बने तथा कुटुम्ब में क्लेश होगा।
वृश्चिक राशि :- सामर्थ्य वृद्धि के बाद तनाव भड़के, झगड़े अवश्य होंगे। बचकर रहें।
धनु राशि :- कुटुम्ब की समस्याऐं कष्टप्रद हों, तनाव तथा व्यर्थ धन का व्यय होगा।
मकर राशि :- योजनाऐं फलीभूत हो, सफलता के साधन अवश्य जुटायें तथा कार्य बनेंगे।
कुंभ राशि :- स्वाभाव में खिन्नता, मानसिक बेचैनी बने, कार्य-बिगड़ जायेंगे, ध्यान दें।
मीन राशि :- तनाव व क्लेश, अशांति बनेगी, परिश्रम विफल होगा, कार्यगति मंद होगी।
विंध्यधाम के रामगया घाट पर बनेगा राम चरण पादुका, बनेगा योग साधना केंद्र
19 May, 2025 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर जिले में स्थित मां विंध्यवासिनी धाम के बाद रामगया गंगा घाट व अष्टभुजा मंदिर परिक्षेत्र का कायाकल्प होगा. जिला प्रशासन की ओर से प्रस्ताव तैयार करके शासन को भेजा गया है. वित्तीय मंजूरी मिलने के बाद काम शुरू होगा.
विंध्याचल के तारा मंदिर व गंगा के मध्य वृहद योग साधना केंद्र बनेगा. गंगा के किनारे योग साधना केंद्र का निर्माण होने के बाद भक्तों के साथ ही आम लोगों को फायदा होगा. वहीं, पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित किया जाएगा.
पौराणिक मान्यताओं वाले रामगया गंगा घाट का भी पुनर्विकास कराया जाएगा. रामगया घाट का सुंदरीकरण के साथ ही राम चरण पादुका बनाया जाएगा. वहीं, गंगा घाट पर जाने वाले सड़क का भी चौड़ीकरण किया जाएगा.
विंध्याचल के साथ ही अष्टभुजा मंदिर परिक्षेत्र का विकास होगा. अष्टभुजा मंदिर परिक्षेत्र में वन विभाग की खाली जमीन को मातृ शक्ति वन व उपवन के रूप में विकसित किया जाएगा. इससे सुंदरता और दिव्यता और बढ़ जाएगी.
विंध्य कॉरिडोर बनने के बाद मां विंध्यवासिनी धाम से जुड़े ऐतिहासिक व पौराणिक स्थलों का विकास कराया जा रहा है. प्रस्ताव मंजूर होने के बाद दो वर्षों में कार्य पूर्ण हो जाएगा. भक्त नव्य व दिव्य रूप का दीदार कर सकेंगे.
जिला पर्यटन अधिकारी शक्ति प्रताप सिंह ने बताया कि विंध्याचल क्षेत्र में पार्किंग, अष्टभुजा मंदिर सहित अन्य कई परियोजनाओं के निर्माण का प्रस्ताव भेजा गया है. जल्द ही मंजूरी मिलने के बाद कार्य शुरू कराया जाएगा.
सोमवती या भौमवती..इस बार क्या कहलाएगी ज्येष्ठ अमावस्या? 26 या 27 मई, कौन सी तिथि सही
19 May, 2025 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि हिंदू धर्म के लिए बेहद खास है, क्योंकि यह तिथि गंगा नदी में स्नान दान और पितृ तर्पण के लिए सबसे उत्तम तिथि मानी जाती है. मान्यता है कि जेठ माह की अमावस्या तिथि के दिन शनिदेव का जन्म हुआ था, इसलिए इसी दिन शनि जयंती भी मनाई जाएगी.
वहीं, धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो व्यक्ति इस दिन दान-पुण्य करता है, उनके जीवन में सुख-शांति की वृद्धि होती है. अमावस्या पर लक्ष्मी नारायण की पूजा का भी विधान है. इस साल ज्येठ माह की अमावस्या तिथि को लेकर थोड़ी सी आसमंजस की स्थिति है. देवघर के ज्योतिषाचार्य से जानें कब है ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि?
पितृ तर्पण, पितृ दोष से मुक्ति का दिन
ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि बेहद खास है. क्योंकि, उस दिन आप पितृ तर्पण करके पितृ दोष और शनिदेव की पूजा कर शनिदोष से भी छुटकारा पा सकते हैं. हालांकि, इस साल जेठ की अमावस्या तिथि को लेकर थोड़ी असमंजस की स्थिति है. लोग 26 या 27 मई की तिथि को लेकर कंफ्यूज हैं.
इस दिन मनाई जाएगी अमावस्या तिथि
ज्योतिषाचार्य ने बताया ऋषिकेश पंचांग के अनुसार, जेठ माह की अमावस्या तिथि की शुरुआत 26 मई दिन सोमवार सुबह 10 बजकर 54 मिनट से हो रहा है और समापन अगले दिन मंगलवार 27 मई सुबह 08 बजकर 30 मिनट तक रहने वाला है. उदयातिथि के अनुसार 27 मई को ही अमावस्या तिथि पड़ रही है. दिन मंगलवार रहने के कारण इसे भौममती अमावस्या कहेंगे.
दोस्त है या दुश्मन? चाणक्य की नीतियां से करें व्यक्ति की असली पहचान, जीवन में कभी नहीं खाएंगे धोखा
19 May, 2025 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
क्या आपने कभी सोचा है कि इस दुनिया में किस पर भरोसा किया जाए और किससे सावधान रहा जाए? कौन है आपका सच्चा मित्र और कौन है वह जो मीठी बातों के पीछे आपकी पीठ में छुरा घोंपने को तैयार बैठा है? हम सभी की ज़िंदगी में कुछ लोग फरिश्तों की तरह आते हैं, तो कुछ दुश्मन बनकर. असली चुनौती होती है इन लोगों को पहचानना. सामने वाले चेहरे के पीछे छिपे असली चेहरे को समझना. अगर आपने यह हुनर सीख लिया तो यकीन मानिए, फिर कोई आपको न ठग पाएगा, न धोखा दे पाएगा. महान आचार्य चाणक्य की नीतियां आज भी उतनी ही प्रभावशाली और सार्थक हैं, जितनी हजारों साल पहले थीं. चलिए जानते हैं चाणक्य की बताई कुछ ऐसी नीतियों के बारे में, जिनसे आप हर इंसान की असली पहचान कर सकते हैं.
वाणी ही असली आईना है
चाणक्य के अनुसार, इंसान अपनी वाणी से पहचाना जाता है. वह व्यक्ति जो हर वक्त आपकी हां में हां मिलाता है, ज़रूरत से ज़्यादा तारीफ करता है और आपकी गलतियों पर कभी कुछ नहीं कहता, वो आपके भले की कामना नहीं कर रहा. ऐसे लोग जानने वाले और मिलने वालों की लिस्ट में तो आ सकते हैं लेकिन कभी अच्छे मित्र नहीं हो सकते. ऐसे लोग कभी मुसीबत में आपका साथ नहीं देते हैं.
चापलूस की पहचान
जो हर समय आपकी तारीफ करे और कभी आपकी कमियां न बताए.
जो दूसरों की बुराई आपके सामने करे.
जो बहुत मीठा बोलता है लेकिन काम कुछ नहीं करता.
ऐसे लोग बेहद खतरनाक हो सकते हैं.
एक सीख देने वाली कहानी
एक राजा के दरबार में दो मंत्री थे. एक मंत्री हर समय राजा की तारीफ करता, दूसरा विनम्रता से गलतियों की ओर ध्यान दिलाता. राजा ने पहले मंत्री को अपना खास बना लिया. पर वही मंत्री, मीठी बातों की आड़ में, दुश्मनों से मिल गया और राजा के खिलाफ साजिश रच दी. जब तक राजा को समझ आया- बहुत देर हो चुकी थी. इसलिए ऐसे लोग जहरीले सांपों से भी घातक होते हैं.
कर्म ही असली पहचान
आचार्य चाणक्य के अनुसार, इंसान की पहचान उसकी बातों से नहीं, उसके कर्मों से होती है. जो कठिन समय में आपका साथ दे, वही आपका सच्चा साथी है. जो सिर्फ बातें करे, वक़्त पर गायब हो जाए, वह सिर्फ स्वार्थी है.
ये पांच संकेत पहचानिए
1. जो हमेशा तारीफ करे, पर कभी कमी न बताए वह चापलूस है.
2. जो दूसरों की बुराई करे- वह आपकी भी करता होगा.
3. जो जरूरत से ज़्यादा मीठा बोले- उसके इरादे ज़हरीले हो सकते हैं.
4. जो मदद के समय बहाने बनाए- वह मतलबपरस्त है.
5. जो मुश्किल समय में आपके साथ खड़ा हो- वही सच्चा मित्र है.
चाणक्य के चार महान परीक्षण
छोटी परीक्षा: किसी पर भरोसा करने से पहले उसे छोटी ज़िम्मेदारी देकर परखिए.
पैसा और ताकत: किसी को पैसे या पावर दीजिए, असली चेहरा सामने आ जाएगा.
गुस्से की घड़ी: गुस्से में इंसान का असली स्वभाव दिखता है.
बुरा वक़्त: जब कुछ नहीं होता, तब साथ खड़ा इंसान ही सच्चा होता है.
धोखेबाज़ से निपटने के उपाय
भावनाओं पर काबू रखें
सबूत इकट्ठा करें
धीरे-धीरे दूरी बनाएं
उसकी चाल उसी पर इस्तेमाल करें
कमजोर नहीं, ताकतवर बनें, मानसिक, आर्थिक और शारीरिक रूप से.
असली जीत क्या है?
केवल धोखेबाज़ से निपटना ही नहीं, बल्कि उसे हमेशा के लिए अपनी जिंदगी से बाहर निकाल देना ही असली जीत है.
छोटा कैलाश की तरह..छोटा अमरनाथ भी, दर्शन करने के लिए इन पहाड़ों पर आना पड़ेगा, जंगल के बीच से रास्ता
19 May, 2025 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
खरगोन में विंध्याचल पर्वत के बीच बसे छोटा अमरनाथ क्षेत्र में महादेव खोदरा के नाम से भी प्रसिद्ध है. बर्फानी बाबा की तरह यहां भी पहाड़ी की चढ़ाई और घने जंगल के बीच से होकर गुजरना पड़ता है.
भगवान शिव का यह रहस्यमय स्थल पर्वत की चोटी से लगभग 2,000 फीट नीचे, पहाड़ी के बिलकुल बीचोंबीच है. गुफा के अंदर भगवान शिव, अपने पूरे परिवार के साथ मौजूद है. गुफा के अंदर सबसे पहले नाग नागिन के जोड़े के दर्शन होते हैं.
यहां अमरनाथ की तरह दिखने वाली प्राचीन गुफा में स्थापित शिवलिंग लोगों की आस्था का केंद्र बिंदु है. साथ ही यहां पेड़-पौधे और ऊंचे पहाड़ों से बहते झरने भी लोगों को आकर्षित करते हैं. यहां प्रकृति खुद शिव का अभिषेक करती है.
यहां से जुड़ी मान्यताओं के चलते हर साल हजारों श्रद्धालु आस्था के साथ आते हैं, जिन्हें दर्शन के साथ एडवेंचर का भी भरपूर मजा यहां मिल जाता है. कहते हैं कि हर सुबह यहां भगवान को ताजे फूल चढ़े मिलते हैं.
पहले यहां पहुंचने का कोई उचित मार्ग नहीं था. लोग पेड़ों पर बने चिन्हों को देख गुफा तक पहुंचते थे, लेकिन अब गूगल मैप से भी पहुंच पाना आसान हो गया है. हालांकि, रास्ता पगडंडियों वाला ही है, जो जंगल से गुजरता है.
यहां पहुंचने के लिए दो मार्ग है. पहला इंदौर से महू और यहां से करीब 30 km दूर गांव, बड़ी जाम जाना पड़ता है. यहां से नीचे गुफा तक जाने के लिए सीढ़ियां बनी हुई हैं. यह एक सरल मार्ग भी है.
जबकि, दूसरा रास्ता जंगल के बीच से होकर गुजरता है. खरगोन मुख्यालय से मंडलेश्वर, फिर करही से 10 km दूर गांव रोशियाबारी तक सड़क मार्ग है. इसके बाद 4 km पैदल पहाड़ चढ़ना पड़ता है. पूरा रास्ता पथरीला लेकिन रोमांच से भरा है.
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
19 May, 2025 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- बेचैनी, उद्विघ्नता से बचिये, समय पर सोचे कार्य अवश्य ही बन जायेंगे।
वृष राशि :- चिन्ताऐं कम हों, सफलता के साधन जुटायें, अचानक लाभ के योग अवश्य बनेंगे।
मिथुन राशि :- सफलता के साधन जुटायें, अचानक लाभ के योग अवश्य ही बनेंगे।
कर्क राशि :- व्यर्थ धन का व्यय, समय व शांति नष्ट होवे, विघटनकारी तत्व परेशान करेंगे।
fिसंह राशि :- भोग-ऐश्वर्य व स्वास्थ नरम रहे, तथा विरोधी वर्ग अवश्य ही परेशान करेंगे।
कन्या राशि :- धन व समय नष्ट हो, क्लेश व अशांति, यात्रा से कष्ट, चिन्ता अवश्य ही होगी।
तुला राशि :- परिश्रम से सफलता के कार्य अवश्य जुटायें, कार्य बाधा अवरोध से बचिये।
वृश्चिक राशि :- चोट आदि से बचिये, क्लेश व अशांति से बचिये, समय नष्ट होगा।
धनु राशि :- भाग्य का सितारा साथ देगा, क्लेश व अशांति से बचिये, समय नष्ट होगा।
मकर राशि :- समय नष्ट हो, चिन्ता व यात्रा, व्यग्रता तथा स्वास्थ्य नरम-गरम होगा।
कुंभ राशि :- आकस्मिक घटनाओं से चोट आदि का भय होगा, ध्यान अवश्य रखेंगे।
मीन राशि :- अधिकारियों से कष्ट, इष्ट मित्र सहायक न होवे, समय व धन नष्ट होगा।
जहां श्रीराम ने खाया था शबरी का बेर! शिवरीनारायण में आज भी मौजूद है वो पत्तल जैसा पेड़!
18 May, 2025 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
छत्तीसगढ़ का शिवरीनारायण धाम सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि रामभक्ति की उस सजीव स्मृति का केन्द्र है, जहां आज भी श्रद्धा के साथ जुड़ी पौराणिकता को लोग अपनी आंखों से महसूस कर सकते हैं. कहा जाता है कि यहीं माता शबरी ने अपने आराध्य श्रीराम को प्रेमपूर्वक झूठे बेर खिलाए थे, और वे बेर जिस पत्तल में रखे गए थे, वह पत्तल जैसी पत्तियों वाला वृक्ष आज भी यहां मौजूद है, जिसे कृष्णवट के नाम से जाना जाता है.
त्रिवेणी संगम और गुप्त प्रयाग की महिमा
शिवरीनारायण को “गुप्त प्रयाग” भी कहा जाता है क्योंकि यहां तीन नदियोंमहानदी, शिवनाथ और जोक का त्रिवेणी संगम होता है. प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर इस क्षेत्र का हर कोना रामायण काल की यादें संजोए हुए है. यह स्थान भगवान जगन्नाथ जी के मूल स्थान के रूप में भी प्रतिष्ठित है.
वही पत्तल, वही पेड़… आज भी मौजूद है कृष्णवट
मंदिर परिसर में स्थित ‘कृष्णवट’ वृक्ष को देखकर श्रद्धालु आज भी भावविभोर हो जाते हैं. यह कोई साधारण बरगद का पेड़ नहीं हैइसकी हर पत्ती दोना (पत्तल) के आकार की होती है. स्थानीय संत त्यागी जी महाराज बताते हैं कि माता शबरी ने इन्हीं पत्तों से बने दोने में बेर रखकर श्रीराम को भेंट किए थे.
यह पेड़ हर युग में वर्णित मिलता है, और इसलिए इसे “अक्षय वट” भी कहा जाता है.
शबरी और राम का प्रेमनाम भी बना शिवरीनारायण
पौराणिक मान्यता के अनुसार, ‘शबरी’ और ‘नारायण’ के मिलन से यह स्थान ‘शबरीनारायण’ कहलाया, जो समय के साथ ‘शिवरीनारायण’ में परिवर्तित हो गया. इस स्थल का उल्लेख सतयुग में बैकुंठपुर, त्रेतायुग में रामपुर, और द्वापरयुग में नारायणपुरी के रूप में होता है. यहां मतंग ऋषि का आश्रम और शबरी की तपोभूमि भी रही है.
आज की पीढ़ी के लिए संदेश
ऐसे स्थलों की खास बात यह है कि ये न सिर्फ आस्था का प्रतीक होते हैं, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान भी बनाते हैं. शिवरीनारायण का कृष्णवट वृक्ष, श्रीराम और शबरी की वह कथा जो सिर्फ पढ़ने-सुनने की नहीं, प्रत्यक्ष अनुभव करने लायक है.
श्रीकृष्ण के देह त्यागने के बाद देवी रुक्मिणी और अन्य पत्नियों का क्या हुआ?
18 May, 2025 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भगवान विष्णु का 8वां अवतार और 16 कलाओं के स्वामी भगवान श्रीकृष्ण का एक श्राप की वजह से देह त्यागना पड़ा, या फिर ये कहें कि कृष्णजी का पृथ्वी लोक पर समय पूरा हो गया था इसलिए उनको वापस बैकुंठ धाम जाना पड़ा. पौराणिक कथाओं के अनुसार, श्रीकृष्ण को जरा नामक एक बहेलिए ने पैर में तीर मारा दिया था. दरअसल श्रीकृष्ण के तलवे पर पद्म चिन्ह था और जिस समय बहेलिये ने उनके तलवे पर तीर चलाया, वे पैर पर पैर रख कर लेटे हुए थे और उनके पैर स्वर्ण मृग की तरह चमक रहे थे. वही पैर दूर से देखने पर हिरण लग रहे था, जिसकी वजह से बहेलिए ने तलवे पर तिर मार दिया. तलवे पर लगे तीर की वजह से श्रीकृष्ण देह त्यागकर बैंकुंठ धाम चले गए.
महाभारत युद्ध के बारे में तो हम सभी जानते हैं लेकिन क्या आपको पता है कि श्रीकृष्ण जब अपने धाम वापस चले गए थे, तब द्वारका नगरी और उनकी पटरानियों का क्या हुआ. श्रीकृष्ण के धाम जाने के बाद क्या उनकी पत्नियां भी धाम चली गई थीं. आइए विस्तार से जानते हैं इस कथा के बारे में…
अर्जुन ने किया अंतिम संस्कार
श्रीकृष्ण जब देह त्यागकर चले गए थे, तब द्वारका समुद्र में समा गई और कृष्ण के सभी पुत्र गृहयुद्ध में मारे गए, जिसने यादव वंश के पूर्ण विनाश का कारण बना. श्रीकृष्ण की बसाई द्वारका नगरी और उनके वंशज की ऐसी हालात देखकर अर्जुन काफी रोने लगे. अर्जुन ने ही श्रीकृष्ण और अन्य सभी यदुवंशियों का अंतिम संस्कार भी किया. रुक्मिणी और जाम्बवंती श्रीकृष्ण की चिता में प्रवेश कर सती हो गईं. वहीं सत्यभामा ने वन में जाकर गुरुओं और ऋषियों से आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया. उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण के ध्यान में लीन होकर तपस्या की और अंततः उनके लोक को प्राप्त किया. श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम की पत्नी रेवती ने भी देह त्याग कर दिया. अर्जुन जब द्वारका से निकले तब श्रीकृष्ण की अन्य पत्नियां और बाकी यदुवंशियों की स्त्रियां भी खुद के पास बचा हुआ धन रखकर अर्जुन के साथ चल दीं.
लालसा से भरे हुए थे लोग
जब जानकारी मिली की अर्जुन के पास काफी मात्रा में धन दौलत है तो रास्ते में गांव के लोगों और लुटेरों का जमावाड़ा लगने लगा. अर्जुन महिलाओं और धन-संपदा के साथ निकलने लगे लेकिन सभी लोग धन को देख देखकर ललचाने लगे. उस समय अर्जुन अकेले थे और चारों तरफ लालसा और ईर्ष्या से भरे हुए लोग मौजूद थे, जो धन और महिलाओं को लूटना चाहते थे. जैसे जैसे अर्जुन आगे बढ़ते, उनके साथ साथ गांव वाले और लुटेरे भी आगे चलने लगे. हालांकि लुटेरे खुद अर्जुन के डर की वजह से आगे नहीं जाना चाहते थे इसलिए उन्होंने गांव वालों को धन और स्त्रियों का लालच दिया था. लेकिन अर्जुन इस बात से पूरी तरह अनजान थे कि ये लोग हमला कर देंगे इसलिए वे बेफ्रिक होकर चलते गए.
पूरी तरह विफल रहे अर्जुन
रास्ते में ग्रामीणों का साथ मिलकर लुटेरों ने अर्जुन और महिलाओं पर हमला बोल दिया और लूटपान करने लगे. अर्जुन सभी से लड़ने का प्रयास कर रहे थे लेकिन लुटेरों की संख्या बहुत ज्यादा थी. चारों तरफ लूटपाट देखकर अर्जुन को क्रोध आया और उन्होंने गांडीव उठा लिया और लुटरों पर दिव्य बाणों का प्रयोग करना चाहा लेकिन अर्जुन से कोई अस्त्र चल ही नहीं रहा था. अर्जुन मंत्र बोल बोल बोलकर दिव्याशास्त्र बुला रहे थे लेकिन कोई दिव्याशास्त्र प्रकट ही नहीं हुआ. अर्जुन का गांडीव भी सामान्य धनुष के जैसा बन गया था और अर्जुन के द्वारा किए गए सभी प्रयास विफल हो गए. अर्जुन अपने आसपास बेबस होकर देखते रह गए और वह महिलाओं और धन-संपदा को लूटकर ले गए.