धर्म एवं ज्योतिष
जून माह के प्रमुख व्रत त्योहार
29 May, 2025 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातत धर्म में व्रत त्योहार बहुत महत्व रखते हैं। जून माह में मां दुर्गा की साधना के लिए गुप्त नवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है। इसमें 10 महाविद्या की पूजा का विधान है।
जून में आषाढ़ और ज्येष्ठ माह का संयोग बन रहा है। ऐसे में जून में गंगा दशहरा, निर्जला एकादशी, वट पूर्णिमा, गुप्त नवरात्रि, जगन्नाथ रथ यात्रा आदि कौन कौन से महत्वपूर्ण पर्व आएंगे आइए जानते हैं।
4 जून 2025 - महेश नवमी
ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है। इस दिन महेश नवमी मनाते हैं।
5 जून 2025 - गंगा दशहरा
माना जाता है कि इस दिन गंगा स्नान से उन दस मुख्य पापों से मुक्ति मिल जाती है जो पुण्य प्राप्ति में बाधक होते हैं. इनमें दैहिक पाप, वाणी पाप और मानसिक पाप शामिल हैं।
6 जून 2025 - निर्जला एकादशी
निर्जला एकादशी का व्रत बेहद कठिन माना जाता है लेकिन इस एक मात्र व्रत के फल से सभी 24 एकादशियों का फल मिल जाता है। ये शारीरिक और मानसिक शुद्धिकरण में मदद करता है, बल्कि ये भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का माध्यम भी है।
8 जून 2025 - प्रदोष व्रत
10 जून 2025 - पूर्णिमा व्रत
11 जून 2025 - कबीरदास जयंती, ज्येष्ठ पूर्णिमा
ज्येष्ठ पूर्णिमा पर कबीरदास जयंती मनाई जाती है। कबीरदास जी न सिर्फ एक कवि बल्कि समाज सुधारक भी थे। भक्ति आंदोलन पर भी कबीरदास जी के लेखन का काफी प्रभाव पड़ा था।
12 जून 2025 - आषाढ़ माह शुरू
आषाढ़ माह में गुरु की उपासना सबसे फलदायी होती है। इस महीने में श्रीहरि विष्णु की उपासना से भी संतान प्राप्ति का वरदान मिलता है। इस माह में जल देव की पूजा करने से जन्मों के पाप धुल जाते हैं।
14 जून 2025 - कृष्ण पिंगल संकष्टी चतुर्थी
27 जून जगन्नाथ रथ यात्रा
जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान श्रीकृष्ण, भाई बलभद्रा और उनकी बहन सुभद्रा रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण के लिए निकलते हैं। मान्यता है कि रथ को खींचने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है.
इस तरह के भक्तों के पास रहते हैं भगवान
29 May, 2025 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
किसी भी वस्तु की चेतनता की पहचान इच्छा, क्रिया अथवा अनुभूति के होने से होती है। अगर किसी वस्तु में ये तीनों नहीं होते हैं, तो उसे जड़ वस्तु कहते हैं और इन तीनों के होने से उसे चेतन वस्तु कहते हैं। मनुष्य में इन तीनों गुणओं के होने से उसे चेतन कहते हैं। मनुष्य के मृत शरीर में इनके न होने से उसे अचेतन अथवा जड़ कहते हैं।
प्रश्न यह उठता है कि जो मनुष्य अभी-अभी इच्छा, क्रिया अथवा अनुभूति कर रहा था और चेतन कहला रहा था, वही मनुष्य इनके न रहने से मृत क्यों घोषित कर दिया गया जबकि वह सशरीर हमारे सामने पड़ा हुआ है? आमतौर पर एक डॉक्टर बोलेगा कि इस शरीर में प्राण नहीं हैं। शास्त्रीय भाषा में, जब तक मानव शरीर में आत्मा रहती है, उसमें चेतनता रहती है। उसमें इच्छा, क्रिया व अनुभूति रहती है। आत्मा के चले जाने से वही मानव शरीर इच्छा, क्रिया व अनुभूति रहित हो जाता है, जिसे आमतौर पर मृत कहा जाता है।
शास्त्रों के अनुसार स्वरूप से आत्मा सच्चिदानन्दमय होती है। सच्चिदानन्द अर्थात सत्+चित्+आनंद। संस्कृत में सत् का अर्थ होता है नित्य जीवन अर्थात् वह जीवन जिसमें मृत्यु नहीं है, चित् का अर्थ होता है ज्ञान जिसमें कुछ भी अज्ञान नहीं है और आनंद का अर्थ होता है नित्य सुख जिसमें दुःख का आभास मात्र नहीं है। यही कारण है कि कोई मनुष्य मरना नहीं चाहता, कोई मूर्ख नहीं कहलवाना चाहता और कोई भी किसी भी प्रकार का दुःख नहीं चाहता।
अब नित्य जीवन, नित्य आनंद, नित्य ज्ञान कहां से मिलेगा? जैसे सोना पाने के लिए सुनार के पास जाना पड़ता है, लोहा पाने के लिए लोहार के पास, इसी प्रकार नित्य जीवन-ज्ञान-आनंद पाने के लिए भगवान के पास जाना पड़ेगा क्योंकि एकमात्र वही हैं जिनके पास ये तीनों वस्तुएं असीम मात्रा में हैं। प्रश्न हो सकता है कि बताओ भगवान मिलेंगे कहां? ये भी एक बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न है। कोई कहता है भगवान कण-कण में हैं, कोई कहता है कि भगवान मंदिर में हैं, कोई कहता है कि भगवान तो हृदय में हैं, कोई कहता है कि भगवान तो पर्वत की गुफा में, नदी में, प्रकृति में वगैरह।
वैसे जिस व्यक्ति के बारे में पता करना हो कि वह कहां रहता है, अगर वह स्वयं ही अपना पता बताए तो उससे बेहतर उत्तर कोई नहीं हो सकता। उक्त प्रश्न के उत्तर में भगवान कहते हैं कि मैं वहीं रहता हूं, जहां मेरा शुद्ध भक्त होता है। चूंकि हम सब के मूल में जो तीन इच्छाएं- नित्य जीवन, नित्य ज्ञान व नित्य आनंद हैं, वे केवल भगवान ही पूरी कर सकते हैं, कोई और नहीं। इसलिए हमें उन तक पहुंचने की चेष्टा तो करनी ही चाहिए।
भगवान स्वयं बता रहे हैं कि वह अपने शुद्ध भक्त के पास रहते हैं। अतः हमें ज्यादा नहीं सोचना चाहिए और तुरंत ऐसे भक्त की खोज करनी चाहिए जिसके पास जाने से, जिसकी बात मानने से हमें भगवद्प्राप्ति का मार्ग मिल जाए। साथ ही हमें यह सावधानी भी बरतनी चाहिए कि कहीं वह भगवद्-भक्त के वेश में ढोंगी न हो। स्कंद पुराण के अनुसार भगवान शिव माता पार्वती से कहते हैं कि कलियुग में ऐसे गुरु बहुत मिलेंगे जो शिष्य का सब कुछ हर लेते हैं, परंतु शिष्य का संताप हर कर उसे सद्माीर्ग पर ले आए ऐसा गुरु विरला ही मिलेगा।
सोना धारण करने से होता है गुरु मजबूत
29 May, 2025 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सोना पहनना सभी को पसंद होता है पर इस कीमती धातु को पहनने के भी कई नियम होते हैं। ज्योतिष के रत्न शास्त्र में बताया गया है कि, सोना धारण करने से गुरु ग्रह को मजबूत किया जा सकता है। जातकों को कुंडली में ग्रहों की स्थिति और राशि के अनुसार रत्न को धारण करना चाहिए। सोने को पहनने के लिए कुछ नियम बताए गए हैं, जिन्हें पालन करना काफी जरुरी है अन्यथा नुकसान भी हो सकता है। सोने का सही विधि और सही तरीके से धारण करने से लाभ प्राप्त होता है। सोने के धारण से करने से धन-लाभ व संतान सुख की प्राप्ति होती है। आइए आपको बताते हैं सोने को कब और कैसे धारण करना आवश्य होता है। सोने का गुरु से संबंधित होने के कारण सोना को गुरुवार के दिन धारण करना शुभ माना जाता है। इसे पहनने से पहले शुद्ध करना जरुरी है। आप चाहे तो इसे अंगूठी या चेन के रुप में धारण से कर सकते हैं। सोने को शुद्धि करने के लिए आप गंगाजल, दूध और शहद से शुद्ध करें। फिर इसे आप भगवान विष्णु के चरणों में अर्पित कर दें। विधि-विधान से पूजा करने के बाद अंगूठी और चेन को पहन सकते हैं। माना जाता है कि, रविवार, बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार के दिन सोना धारण करना शुभ होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, सोने का धारण मेष, कर्क, सिंह, धनु और मीन राशि के लोगों को धारण करना चाहिए। वहीं, मकर, मिथुन, कुंभ और वृषभ राशि के जातकों को सोना नहीं पहनना चाहिए। इसके साथ ही कुंडली में गुरु की स्थिति देखकर ही सोना का धारण करना चाहिए।
आज का राशिफल: जानिए क्या कहती हैं आपकी किस्मत की सितारे
29 May, 2025 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- इष्ट-मित्र सुखवर्धक होंगे, व्यावसायिक क्षमता में विशेष वृद्धि होगी, ध्यान दें।
वृष राशि :- सतर्कता से कार्य करें, मनोबल उत्साहवर्धक होगा तथा कार्य उत्तम बन जायेंगे।
मिथुन राशि :- कार्य-कुशलता से संतोष होगा, समृद्धि के रास्ते खुलें, योजना फलीभूत होगी।
कर्क राशि :- भाग्य की प्रबलता, प्रभुत्व वृद्धि तथा शालीनता से मेल-मिलाप अवश्य होगा।
सिंह राशि :- अधिकारी वर्ग से सफलता के साधन फलप्रद हो, अचानक शुभ समाचार मिलेगा।
कन्या राशि :- योजनायें फलीभूत हों, सफलता से अधिकारी वर्ग से लाभ अवश्य मिलेगा।
तुला राशि :- विघटनकारी तत्व परेशान करें, अग्नि-चोटादि का भय बना ही रहेगा।
वृश्चिक राशि :- तनाव, क्लेश व अशांति, व्यर्थ धन का व्यय तथा विरोधी तत्व परेशान करेंगे।
धनु राशि :- दैनिक समृद्धि के साधन बनेंगे, योजनायें फलीभूत होंगी, कार्य विशेष बनेंगे।
मकर राशि :- स्त्री शरीर कष्ट, चिन्ता व्याग्रता, मानसिक बेचैनी, उद्विघ्नता बनेगी।
कुंभ राशि :- दैनिक कार्यगति में बाधा, विघटन संभव होगा, कार्य अवरोध होगा।
मीन राशि :- दैनिक कार्यगति में अनुकूलता, चिन्तायें कम हों, कार्य योजना अवश्य बनेगी।
कुबेर जी की कृपा चाहिए? बस इस दिशा में करें उनकी सही स्थापना, देखिए असर, मिलेगा स्थायी धन और समृद्ध जीवन का आशीर्वाद
28 May, 2025 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
धन-संपदा जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. हर व्यक्ति चाहता है कि उसकी आर्थिक स्थिति मजबूत और स्थिर रहे. इस संदर्भ में भारतीय परंपरा में कुबेर देवता को धन और समृद्धि का प्रतीक माना गया है. कुबेर जी की पूजा और उनके सही स्थान पर स्थापना से माना जाता है कि धन लाभ होता है और आर्थिक स्थिति में सुधार आता है. लेकिन केवल पूजा करना ही काफी नहीं है, बल्कि यह भी जरूरी है कि कुबेर जी की मूर्ति या तस्वीर को घर में सही दिशा में रखा जाए. इस विषय में अधिक जानकारी दे रहे हैं
कुबेर जी को किस दिशा में रखें?
भारतीय वास्तु शास्त्र के अनुसार, धन के देवता कुबेर जी को घर के उत्तर दिशा में स्थापित करना शुभ माना जाता है. उत्तर दिशा को धन और समृद्धि की दिशा कहा गया है. इसे ‘ईशान कोण’ भी कहते हैं, जो सकारात्मक ऊर्जा का केंद्र होता है. इस दिशा में कुबेर जी की मूर्ति या चित्र रखने से धन-संपदा बढ़ने की संभावना बढ़ जाती है.
ध्यान देने वाली बात यह है कि कुबेर जी की मूर्ति को मंदिर में या उत्तर-पूर्व दिशा में नहीं रखना चाहिए. कई बार लोग गलती से इसे उत्तर-पूर्व दिशा में रख देते हैं, लेकिन ऐसा करने से धन लाभ कम हो सकता है. इसलिए, हमेशा सुनिश्चित करें कि मूर्ति को घर के उत्तर दिशा में ही रखा जाए.
मेरी व्यक्तिगत अनुभव
मैंने अपने जीवन में भी यह अनुभव किया है कि जब मैंने कुबेर जी की मूर्ति अपने घर की उत्तर दिशा में रखी, तो धन संबंधी आकांक्षाएं और आकांक्षाएँ पूरी होने लगीं. मेरे आसपास के लोगों ने भी इसे अपनाया और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार देखा गया. यह कुछ तरह की आध्यात्मिक ऊर्जा और सकारात्मक प्रभाव लाता है, जो क्रय-विक्रय, निवेश और अन्य धन-संबंधी कार्यों में मददगार होता है.
कुबेर देवता का महत्व और लाभ
कुबेर देवता को धन का स्वामी माना जाता है. उनकी पूजा से न केवल धन प्राप्ति होती है, बल्कि आर्थिक संकटों से मुक्ति भी मिलती है. साथ ही, परिवार में सुख-शांति और समृद्धि का वातावरण बनता है. कुबेर जी की उपासना से मनोबल भी बढ़ता है और कार्यों में सफलता मिलने की संभावना अधिक होती है.
ध्यान रखें कि कुबेर जी की मूर्ति या तस्वीर साफ-सुथरी होनी चाहिए और उसे धूप, दीपक या अन्य धार्मिक वस्तुओं से सजाया जाना चाहिए. यह भी आवश्यक है कि पूजा के समय मन शुद्ध और विश्वासपूर्ण हो. इससे देवता की कृपा अधिक समय तक बनी रहती है.
अतः यदि आप अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाना चाहते हैं, तो अपने घर में कुबेर जी की मूर्ति को उत्तर दिशा में रखें और नियमित रूप से उनकी पूजा करें. यह न केवल आपकी धन-संपदा में वृद्धि करेगा, बल्कि आपके जीवन में सुख-शांति भी बनाए रखेगा.
सीकर के इस पानी को लोग मानते हैं अमृत! गंगा जल की तरह ले जाते अपने घर, आखिर क्या है यहां की चमत्कारी कहानी?
28 May, 2025 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
विश्व प्रसिद्ध खाटूश्याम जी की महिमा दिनों दिन बढ़ती जा रही है. बाबा के दरबार में दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, हरियाणा सहित देश-विदेश से श्रद्धालु आते हैं. अगर आप वीकेंड पर खाटूश्याम जी जाने की प्लानिंग बना रहे हैं, तो मंदिर के पास मौजूद इन दो जगहों पर जरूर जाए.
पहली जगह का नाम है "श्याम कुंड", जिसके बारे अधिकांश श्याम भक्त जानते हैं. दूसरी जगह का नाम है श्याम बगीचा. इसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं. खाटूश्याम जी से जुड़ी खबरों की सीरीज में आज लोकल 18 आपको इन दोनों जगहों के बारे में बताएगा.
यही वह जगह है, जहां पर बाबा श्याम का शीश प्रकट हुआ था. इसलिए यह जगह श्याम भक्तों के लिए बहुत विशेष है. खाटूश्याम जी मंदिर की तरह ही श्याम कुंड में भी भक्तों की भारी भीड़ रहती है. भक्तों की मान्यताओं के अनुसार, इस कुंड में स्नान करने से पापों से मुक्ति मिलती है और चर्म रोग दूर होते हैं.
इस कुंड का जल साफ और ठंडा होता है और इसे चमत्कारी माना जाता है. श्याम कुंड के किनारे बैठकर भजन-कीर्तन करना, ध्यान लगाना और जल अर्पण करना विशेष फलदायक माना जाता है. श्याम कुंड में भगवान हनुमान का मंदिर भी मौजूद है.
श्याम कुंड के अंदर चित्रों के माध्यम से बाबा श्याम के संपूर्ण कथा का वर्णन किया गया है. श्याम कुंड के जल को लोग बोतल में भरकर अपने घर में लेकर जाते हैं. मान्यताओं के अनुसार, घर में श्याम जल का छिड़काव करने से बुरी बलाओं का नाश हो जाता है.
आज का राशिफल: जानिए क्या कहती हैं आपकी किस्मत की सितारे
28 May, 2025 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- आशानुकूल सफलता का हर्ष, व्यावसायिक क्षमता अवश्य ही बन जायेगी।
वृष राशि :- मानसिक खिन्नता, स्वभाव में बेचैनी, इष्ट-मित्रों से क्लेश तथा मानसिक कार्य बनेंगे।
मिथुन राशि :- मानसिक खिन्नता, स्वभाव में बेचैनी, इष्ट-मित्रों से लाभ अवश्य ही मिलेगा।
कर्क राशि :- धन-लाभ, किसी तनाव से बचें, व्यावसायिक क्षमता की गति धीमी होगी।
सिंह राशि :- लेनदेन के मामले स्थगित रखें, किसी के चंगुल में फंसने से अवश्य बचिये।
कन्या राशि :- बड़े लोगों के सम्पर्क से कार्य सफलता में वृद्धि के योग अवश्य ही बनेंगे।
तुला राशि :- दूसरों की समस्याओं में उलझने से बचें, लाभांवित योजना अवश्य ही बनेगी।
वृश्चिक राशि :- कार्य-व्यवसाय में समृद्धि की योजना फलीभूत होने के योग बनेंगे।
धनु राशि :- विरोधियों से तनाव, क्लेश, धन का व्यय, मानसिक उद्विघ्नता बनी ही रहेगी।
मकर राशि :- धन लाभ होकर हाथ से जाता रहेगा, विघटनकारी तत्व परेशान अवश्य करेंगे।
कुंभ राशि :- अनावश्यक विवाद कष्टप्रद हो, भाग्य का सितारा प्रबल होगा, ध्यान रखें।
मीन राशि :- स्थिति नियंत्रण में हो, स्वास्थ्य नरम रहे, परिश्रम विफल होगा।
डाकुओं से लड़ा, बलिदान दिया – कैसे एक साधारण ग्वाला बना पूजनीय देवता
27 May, 2025 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
बीकानेर. बीकानेर में स्थित करणी माता का मंदिर विश्व प्रसिद्ध है. यह मंदिर अपनी अनोखी मान्यताओं और सामाजिक समरसता के लिए जाना जाता है. यहां किसी भी प्रकार की छुआछूत या ऊंच-नीच का भेदभाव नहीं होता. सभी वर्गों के लोग इस मंदिर में समान भाव से दर्शन करने आते हैं और माता में आस्था रखते हैं.
जबकि आज भी कई स्थानों पर भेदभाव और छुआछूत देखा जाता है. करणी माता ने सैकड़ों वर्ष पहले ही सामाजिक समरसता का संदेश देते हुए इन भेदभावों को नकार दिया था. मंदिर परिसर में उनके ही चरवाहे यानी ग्वाला दशरथ मेघवाल का भी स्थान बना हुआ है. यहां सुबह और शाम को करणी माता की आरती के बाद दशरथ मेघवाल की भी आरती की जाती है. यह परंपरा सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है. जिसे आज भी पूरी श्रद्धा के साथ निभाया जाता है.
माता की आरती के बाद होती है दशरथ मेघवाल की आरती
मंदिर और ट्रस्ट से जुड़े गजेंद्र सिंह ने बताया कि करणी माता की पूजा के बाद उसी ज्योत से दशरथ मेघवाल की आरती होती है. दशरथ मेघवाल करणी माता की गायों की सेवा करता था. एक बार जब वह गायों को चराने दूर गया था, तब दो डाकुओं ने उसकी हत्या कर दी और गायों को चुरा लिया. जब करणी माता को यह बात पता चली, तो उन्होंने दशरथ को वरदान दिया कि मेरी आरती के बाद तेरी भी आरती होगी.
गायों के लिए बलिदान देने वाले को मिला दिव्य स्थान
श्रीकरणीजी ने कभी भेदभाव नहीं किया और सबको एक समान माना. उनका यह कार्य सामाजिक सद्भाव का प्रतीक है. जानकारी के अनुसार दशरथ मेघवाल, जो मेघवाल जाति से था, गायों की सेवा करता था. श्रीकरणीजी हमेशा उसकी सेवा से प्रसन्न रहती थीं. जब भी वह देशनोक से बाहर जाती थीं, तब भी उन्हें गायों की चिंता नहीं रहती थी क्योंकि दशरथ पूरी निष्ठा से उनकी सेवा करता था.
डाकुओं से संघर्ष करते हुए दी जान, मिला सम्मान
एक बार जब श्रीकरणीजी पूगल गई थीं, तब पीछे से सूजा मोहिल और कालू पेथड़ ने उनकी गायों को घेरकर ले जाने की कोशिश की. इन लुटेरों से संघर्ष करते हुए दशरथ मारा गया. श्रीकरणीजी को जब यह पता चला तो उन्हें अत्यंत दुख हुआ. उन्होंने अपने पुत्रों को बुलाकर आदेश दिया कि उनके स्वर्गवास के बाद जहां उनका स्थान बने, ठीक उसके सामने दशरथ मेघवाल का भी स्थान बनाया जाए और उसकी दोनों समय आरती की जाए.
करणी माता ने दिलाया सामाजिक सम्मान
करणी माता ने कहा कि दशरथ ने गायों की रक्षा करते हुए बलिदान दिया है, इसलिए वह देवयोनि को प्राप्त हुआ है. उनके आदेशानुसार देशनोक स्थित मंदिर में सिंह द्वार के भीतर, दाहिनी ओर दशरथ का स्थान बनाया गया. वह मंदिर का कोतवाल कहलाता है. आज से लगभग 600 वर्ष पहले मेघवाल जाति के व्यक्ति को मिला यह सम्मान, श्री करणी माता की अद्वितीय सोच का परिचायक है. उन्होंने समाज को यह संदेश दिया कि सेवा, श्रद्धा और बलिदान के आगे जाति का कोई स्थान नहीं होता.
दैनिक राशिफल: आपके दिन की शुरुआत से पहले जरूर पढ़ें
27 May, 2025 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- बचैनी, उद्विघ्नता से बचिये, समय पर सोचे कार्य अवश्य ही बन जायेंगे।
वृष राशि :-चिन्ताऐं कम हों, सफलता के साधन जुटायें, अचानक लाभ के योग अवश्य ही बनें।
मिथुन राशि :- सफलता के साधन जुटायें, व्यवसायिक क्षमता मेंं वृद्धि अवश्य ही होगी।
कर्क राशि :- व्यर्थ धन का व्यय, समय व शांति नष्ट होवे, विघटनकारी तत्व परेशान करें।
fिसंह राशि :- भोग-ऐश्वर्य में वृद्धि, स्वास्थ्य नरम रहे, विद्यार्थी जीवन आपके लिये परेशानी का हो।
कन्या राशि :- समय व धन नष्ट हो, क्लेश व अशांति, यात्रा से कष्ट व चिन्ता अवश्य बने।
तुला राशि :- परिश्रम से सफलता के साधन अवश्य जुटायें, कार्य बाधा, कार्य अवश्य हो।
वृश्चिक राशि :- चोटादि से बचिये, भाग्य का सितारा बड़ा ही प्रबल होगा।
धनु राशि :- क्लेश व अशांति से बचिये, मानसिक उद्विघ्नता होगी, समय का ध्यान दें।
मकर राशि :- परिश्रम विफल हो, चिन्ता व यात्रा, व्याग्रता, स्वास्थ्य नरम रहे।
कुंभ राशि :- आकस्मिक घटना से चोटादि का भय होगा, समय का ध्यान रखें।
मीन राशि :- अधिकारियों से कष्ट, इष्ट मित्र सहायक न होवे, समय का साथ होगा।
राजा की इस गलती की वजह से दो माताओं के गर्भ से हुआ इस योद्धा का जन्म, विचित्र ढंग से हुई थी मौत
26 May, 2025 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
महाभारत केवल एक युद्ध की गाथा नहीं है, बल्कि यह जीवन के हर पहलू को समझाने वाला अद्भुत ग्रंथ है. इसमें कर्म, धर्म, नीति, त्याग और संबंधों की गहराई से व्याख्या की गई है. इसके पात्र और घटनाएं आज भी लोगों को प्रेरणा देती हैं. हर कहानी अपने भीतर कोई न कोई जीवन सिखाने वाली बात समेटे हुए है. महाभारत का हर अध्याय मानो जीवन का एक पाठ है, जिसे पढ़कर व्यक्ति सही और गलत में फर्क करना सीख सकता है. हिंदू धर्म के कई ग्रंथों में गहरे ज्ञान और अनोखी कहानियों का भंडार है. इन्हीं में एक है महाभारत, जिसमें ऐसे कई पात्र और घटनाएं मिलती हैं जो सोचने पर मजबूर कर देती हैं. आज हम बात करेंगे एक ऐसे योद्धा की, जिसका जन्म दो अलग-अलग गर्भों से हुआ और जिसकी मृत्यु भी सामान्य नहीं थी. यह कथा है मगध नरेश जरासंध की.
राजा की चिंता और ऋषि की सहायता
मगध के राजा बृहद्रथ की दो रानियां थीं, लेकिन उन्हें संतान नहीं हो रही थी. इस कारण वे बहुत दुखी रहते थे. एक दिन वे ऋषि चंडकौशिक के पास पहुंचे और अपनी चिंता बताई. ऋषि ने उन्हें एक फल दिया और कहा कि वह इसे अपनी सबसे प्रिय रानी को दें. इस फल से पुत्र की प्राप्ति होगी. लेकिन राजा दोनों रानियों से बराबर प्रेम करते थे, इसलिए उन्होंने वह फल दो हिस्सों में बांट दिया और दोनों रानियों को खिला दिया. समय बीतने के बाद, जब दोनों रानियां गर्भवती हुईं और प्रसव हुआ, तो अजीब घटना घटी.
जन्म हुआ दो टुकड़ों में
दोनों रानियों ने आधे-आधे शरीर वाला शिशु जन्मा. एक का सिर और धड़ था, तो दूसरी के गर्भ से हाथ और पैर. यह देख सभी हैरान रह गए. राजा और रानियां बहुत डर गए और उन्होंने वह अधूरे शरीर के टुकड़े जंगल में फेंकवा दिए.
जंगल में राक्षसी और बालक का जीवनदान
उसी जंगल में एक जरा नाम की राक्षसी घूम रही थी. उसकी नजर जब इन टुकड़ों पर पड़ी, तो उसने अपने जादू से उन दोनों हिस्सों को जोड़ दिया. शिशु जीवित हो गया. इस अद्भुत घटना से प्रभावित होकर राजा बृहद्रनाथ ने अपने बच्चे का नाम उसी जादूगरनी के नाम पर ‘जरासंध’ रख दिया.
बलशाली योद्धा, जिसे हराना आसान नहीं था
समय बीता और जरासंध बड़ा होकर शक्तिशाली राजा बना. उसने कई राजाओं को हराया और बंदी बनाया. पांडवों को यज्ञ करने के लिए कई राजाओं को हराना था, लेकिन जरासंध के रहते यह संभव नहीं था. इसलिए श्रीकृष्ण, भीम और अर्जुन वेश बदलकर जरासंध के पास पहुंचे. श्रीकृष्ण ने भीम को संकेत दिया और जरासंध को मल्लयुद्ध के लिए ललकारा गया.
मृत्यु का रहस्य
लड़ाई लंबे समय तक चली, लेकिन हर बार जब भीम जरासंध के दो टुकड़े करता, वे फिर जुड़ जाते. यह देख श्रीकृष्ण ने एक तिनका तोड़कर उसके दो टुकड़े अलग-अलग दिशाओं में फेंक दिए. भीम ने यह देखा और समझ लिया कि यही उपाय है. अगली बार जब उन्होंने जरासंध को दो हिस्सों में बांटा, तो उन्हें विपरीत दिशाओं में फेंक दिया. इस बार जरासंध जीवित नहीं हो सका. इस तरह एक विचित्र जन्म वाला योद्धा अपने जीवन का अंत भी एक अनोखे ढंग से पाता है.
इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक बनते हैं राजनीति गुरु या बड़े अधिकारी, ज्योतिषाचार्य ने बताया पूरा लेखा जोखा
26 May, 2025 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
नक्षत्र का अपने खगोलीय शास्त्र में विशेष महत्व है, क्योंकि नक्षत्र का अर्थ ही है ‘जिसका कभी नाश न हो’. वहीं जब किसी बच्चे का जन्म होता है तो उसमें नक्षत्र अपना विशेष महत्व रखता है. नक्षत्र देखकर ही जातक के कर्म भाव और लग्न भाव और उसके भविष्य का अंदाजा लगाया जा सकता है.
वहीं जानकारी देते हुए पूर्णिया के आचार्य बंशीधर झा कहते हैं कि ज्योतिष शास्त्र और खगोल शास्त्र के मुताबिक इंसानी जीवन पर नक्षत्र का बहुत प्रभाव पड़ता है. उन्होंने कहा कि रेवती नक्षत्र का पहला, दूसरा और तीसरा चरण के जातक और अश्विनी नक्षत्र के दूसरे, तीसरे और चौथे चरण में जन्म लेने वाला जातक निश्चित तौर पर बड़े राजनीतिक गुरु, बड़े अधिकारी, सर्व सुख संपन्न और अधिक प्रतिष्ठा प्राप्त करने वाला जातक होता है.
उन्होंने कहा गुरु मतलब होता है जो उपदेश देता है जिसमें कि अपने अंदर ज्यादा काबिलियत हो वहीं किसी को कुछ बता सकता है कुछ दे सकता है. मतलब जिसके पास कुछ देने योग्य वस्तु रहेगी. गुरु जिसे बृहस्पति भी कहते हैं. हालांकि, गुरु और भी पावरफुल तब रहेगा जब बृहस्पति का मीन राशि में प्रवेश होता है तब और भी पावरफुल और शुभ फलदायक रहता है. साथ ही उन्होंने कहा कि जब मीन राशि का अंत समय वह रेवती नक्षत्र है. ऐसे में रेवती नक्षत्र में जिस बच्चे का जन्म होता है खासकर वह अच्छे पद प्राप्ति करने में सफल होते हैं और वह आगे चलकर बड़े राजनीतिक गुरु और अधिकारी बनते.
हालांकि उन्होंने कहा वही अश्विनी नक्षत्र में जन्म लेने वाले बच्चे भी सफल होते हैं. उसके दूसरे, तीसरे और चौथे चरण में जन्म लेने वाले बच्चे काफी आगे बढ़ते हैं. क्योंकि उसका अश्विनी नक्षत्र में जो बच्चे जन्म लेते हैं वह मेष राशि के अंतर्गत आते हैं. मेष राशि का स्वामी मंगल होता है. मंगल को सेनापति ग्रह कहा जाता है. जिस कारण अश्विनी नक्षत्र में जो बच्चे जन्म लेते हैं वह भी आगे बढ़ कर पद प्रतिष्ठा प्राप्ति करने में सफल होते हैं.
रेवती और अश्विनी नक्षत्र का इस चरण
वहीं उन्होंने कहा की रेवती नक्षत्र का पहला, दूसरा और तीसरा चरण के जातक और अश्विनी नक्षत्र के दूसरा ,तीसरा और चौथा चरण में जन्म लेने वाला जातक निश्चित तौर पर बड़े राजनीतिक गुरु और बड़े अधिकारी एवं सर्व सुख संपन्न और अधिक प्रतिष्ठा प्राप्त करने वाला जातक होता है.ऐसे जातक का स्वभाव भी सरल होता है अपने स्वाभिमान पर जीते हैं.
मूर्ख बनने का नाटक क्यों जरूरी है, मतलबी बनो लेकिन कब? जानें आचार्य चाणक्य की खास नीतियां
26 May, 2025 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
आचार्य चाणक्य एक महान विद्वान, कूटनीतिज्ञ और अर्थशास्त्री थे. उन्होंने जीवन के हर पहलू को गहराई से समझकर नीतियों का निर्माण किया था. उनकी बातें आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी उस वक्त में थीं. चाणक्य नीति कहती है कि चालक बनो, मूर्ख बनने का नाटक करो और जब जरूरत हो तो मतलबी बन जाओ. इस नीति के पीछे गहरा अर्थ छिपा है. आज की दुनिया में हर कोई चतुर है, लेकिन हर किसी के इरादे साफ नहीं होते. ऐसे में अगर आप हर किसी पर खुलकर भरोसा कर लेते हैं या अपनी सारी समझदारी सबके सामने रख देते हैं, तो लोग आपको ही नुकसान पहुंचाने लगते हैं. इसलिए चाणक्य सलाह देते हैं कि असली बुद्धिमान वही है जो अपनी चतुराई को छुपा कर रखता है और जरूरत पड़ने पर ही उसे इस्तेमाल करता है. चाणक्य की कुछ खास नीतियों के बारे में.
मूर्ख बनने का नाटक क्यों जरूरी है?
अगर आप हर बात में खुद को सबसे ज्यादा ज्ञानी दिखाएंगे तो लोग या तो आपसे दूरी बना लेंगे या फिर आपको नीचे गिराने का प्लान बनाएंगे. कई बार सामने वाले की चाल को समझते हुए भी चुप रहना ही समझदारी होती है. मूर्ख बनने का नाटक करने से आप दूसरों की असली मंशा को पहचान सकते हैं. जब आप चुप रहते हैं, तो लोग अपनी असली सोच खुद ही सामने लाने लगते हैं. ये रणनीति आपको बिना टकराव के अपने लक्ष्य तक पहुंचने में मदद करती है.
मतलबी बनो, लेकिन कब?
चाणक्य यह नहीं कहते कि हमेशा मतलबी रहो, बल्कि वह कहते हैं कि जब हालात बिगड़ने लगें, जब लोग आपका फायदा उठाने लगें, तब अपने फायदे की सोचो. दुनिया उसी की इज्जत करती है जो अपने हक के लिए खड़ा होता है. अगर आप हमेशा दूसरों के लिए सोचते रहेंगे, तो लोग आपको इस्तेमाल करके छोड़ देंगे. मतलबी बनने का मतलब यह नहीं कि आप दूसरों को नुकसान पहुंचाएं, बल्कि यह कि आप अपने हक और सम्मान के लिए आवाज उठाएं.
चालक बनो यानी समझदारी से काम लो
चालाकी और चालाक में फर्क होता है. चालाकी मतलब हर परिस्थिति को समझदारी से संभालना. अपने शब्दों और फैसलों में संतुलन बनाए रखना. चाणक्य नीति कहती है कि जो हर स्थिति में ठंडे दिमाग से सोचता है और अपनी बुद्धि का सही समय पर प्रयोग करता है, वही जीवन में सफल होता है.
जरूरी टिप्स
यह दुनिया बाहर से जितनी सीधी-सादी दिखती है, अंदर से उतनी ही जटिल और चालबाज है. यहां रिश्ते भी कई बार स्वार्थ पर टिके होते हैं और मुस्कुराहटों के पीछे चालें छिपी होती हैं. ऐसे में चाणक्य की यह नीति आज के समय में बहुत उपयोगी साबित होती है. जब आप मूर्ख बनने का नाटक करते हैं, तो आपके पास दूसरों को परखने का समय और मौका होता है. और जब आप चालाकी से काम लेते हैं, तो आप सही समय पर सही निर्णय लेकर खुद को सुरक्षित और सफल बना सकते हैं. समझदारी यह नहीं कि आप सब कुछ जानते हैं, बल्कि यह है कि आप क्या, कब और किसके सामने जाहिर करें.
इसलिए जीवन में सफल होना है तो चाणक्य की इन बातों को गहराई से समझिए और सही समय पर उनका इस्तेमाल कीजिए. यही असली बुद्धिमानी है.
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
26 May, 2025 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- स्त्री-वर्ग से हर्ष-उल्लास, अधिकारी का समर्थन फलप्रद होगा, मनोनुकूल कार्य बना लेंगे।
वृष राशि :- योजनायें फलीभूत हों, शुभ-समाचार प्राप्ती से हर्ष, रुके कार्य बन जायेंगे।
मिथुन राशि :- धन लाभ, आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा, बिगड़े हुये कार्य अवश्य ही बनेंगे।
कर्क राशि :- कार्य-व्यवस्था की चिन्ता बनी ही रहेगी, प्रयास करने पर लाभ होगा, ध्यान दें।
सिंह राशि :- भोग-एश्वर्य की प्राप्ति होगी, कार्यगति उत्तम, सुख के साधन बनें।
कन्या राशि :- आर्थिक योजनापूर्ण हो, समय पर सोचे कार्य पूर्ण होंगे, ध्यान दें।
तुला राशि :- पारिवारिक बाधायें परेशान करेंगी, विरोधी तत्व कष्टप्रद रखें, ध्यान दें।
वृश्चिक राशि :- मानसिक बेचैनी , उद्विघ्नता से बचें तथा समय से लाभांवित होंगे।
धनु राशि :- कुटुम्ब की समस्यायें कष्टप्रद हों तथा व्यर्थ भ्रमण से व्यय होगा।
मकर राशि :- योजनायें फलीभूत हों, सफलता के साधन जुटायें तथा कार्य बनें, ध्यान दें।
कुंभ राशि :- स्वाभाव में खिन्नता, मानसिक बेचैनी तथा मानसिक कष्ट से शारीरिक पीड़ा होगा।
मीन राशि :- तनाव-क्लेश व अशांति बनेगी, परिश्रम विफल होगा, कार्यगति मंद होगी।
देवशयनी एकादशी 2025: एकादशी पर कब करें व्रत, क्या है सही समय? जानें पूजा से जुड़ी हर जरूरी बात
25 May, 2025 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में एकादशी तिथि को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है. साल भर में कुल 24 एकादशी तिथियां होती हैं, जिन पर व्रत रखा जाता है. प्रत्येक एकादशी भगवान श्री हरि विष्णु को समर्पित होती है. हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा जाता है. धार्मिक मान्यता है कि इस एकादशी से भगवान विष्णु अगले चार महीने तक विश्राम में चले जाते हैं, जिसके कारण इस अवधि में किसी भी शुभ या मांगलिक कार्य की शुरुआत नहीं की जाती. इस रिपोर्ट में जानिए देवशयनी एकादशी की तारीख, पूजा विधि और शुभ मुहूर्त.
हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 5 जुलाई को शाम 5:58 बजे से शुरू होकर 6 जुलाई को रात 9:14 बजे समाप्त होगी. इसके अनुसार, देवशयनी एकादशी का व्रत 6 जुलाई को रखा जाएगा.
इन बातों का रखे खास ध्यान
देवशयनी एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए. इसके बाद भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के निमित्त व्रत का संकल्प लेना आवश्यक है. घर के मंदिर में दीपक प्रज्वलित करना चाहिए, फिर भगवान विष्णु का गंगाजल से अभिषेक करें. इसके बाद उन्हें पुष्प, तुलसी और जल अर्पित करें. विधि विधानपूर्वक भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करनी चाहिए और अंत में आरती करें. इस बात का विशेष ध्यान रखें कि भगवान को भोग में स्वास्तिक चीजें ही अर्पित करें.
परेशानियों से मिलती है मुक्ति
धार्मिक मान्यता के अनुसार, एकादशी तिथि के दिन भगवान श्री हरि विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करने से जीवन की सभी परेशानियों से मुक्ति मिलती है और पापों से भी छुटकारा मिलता है. शायद यही कारण है कि एकादशी तिथि सनातन धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है.
राम भक्तों को बड़ी खुशखबरी, दो माह में मंदिर के सभी भागों में होंगे दर्शन, दिसंबर 2025 तक निर्माण होगा पूर्ण
25 May, 2025 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
अयोध्या आने वाली राम भक्तों को जल्दी ही बड़ी खुशखबरी मिलने वाली है अब आगामी 2 महीने में राम भक्त राम मंदिर में सभी मठ मंदिर के दर्शन पूजन कर सकेंगे इस बात की जानकारी अयोध्या पहुंचे भवन निर्माण समिति के अध्यक्ष निपेंद्र मिश्रा ने दी है. दरअसल अयोध्या में तीन दिवसीय भवन निर्माण समिति की बैठक चल रही है. बैठक के दूसरे दिन निर्माण समिति के अध्यक्ष निपेंद्र मिश्रा ने राम मंदिर से जुड़े अहम जानकारी मीडिया से साझा की है.
अयोध्या में बनने वाले राम मंदिर का निर्माण दिसंबर 2025 तक पूरा कर लिया जाएगा. वहीं राम मंदिर ट्रस्ट द्वारा अंतर्राष्ट्रीय राम कथा संग्रहालय का भी निर्माण कार्य तीव्र गति के साथ किया जा रहा है. राम कथा संग्रहालय और सभागार का काम भी मार्च अप्रैल 2026 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है. आगामी 2 महीने में राम मंदिर के सभी स्थानों पर राम भक्त दर्शन पूजन भी कर सकेंगे. इतना ही नहीं राम मंदिर में कितना सोना लगा है. इस बात की जानकारी आगामी 2 से 3 दिनों में दी जाएगी. मुंबई के एक भक्त ने राम मंदिर में सोना दान किया है.
मंदिर के चारों तरफ 4 किलोमीटर लंबी बाउंड्री बनाई जाएगी
वहीं मंदिर के चारों तरफ 4 किलोमीटर लंबी बाउंड्री बनाई जाएगी जिसका निर्माण भी जल्द पूरा शुरू किया जाएगा. इसके अलावा राम मंदिर में जितने भी मंदिर का निर्माण चल रहा है उसका निर्माण भी पूरा कर लिया गया है. उन मंदिरों की मूर्ति भी पहुंच गई है 31 तारीख को राम मंदिर परिसर में भगवान शंकर की स्थापना की जाएगी. वही 3 जून से राम मंदिर में होने वाले प्राण प्रतिष्ठा का अनुष्ठान भी शुरू होगा पटकोटा का निर्माण भी लगभग 90 फीसदी पूरा कर लिया गया है. जून और जुलाई में कार्य पूरा हो जाएगा.
3 जून से शुरू होगा अनुष्ठान
राम मंदिर निर्माण को लेकर जानकारी देते हुए बताया कि परकोटा में 31 मई को भोलेनाथ विराजमान होंगे जितनी भी मूर्तियां स्थापित हो गई है उनके प्राण प्रतिष्ठा के लिए 3 जून से अनुष्ठान शुरू होगा. 5 जून को प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी नृपेंद्र मिश्र ने बताया कि मंदिर अब अपनी पूर्णता की ओर है. परकोटा का 90% कार्य जुलाई तक पूर्ण हो जायेगा 2025 के अंत तक राम मंदिर के सभी निर्माण पूर्ण हो जाएंगे लक्ष्य प्राप्ति की तरफ हम लोग पूरी तरह से आशावान है कि मंदिर का निर्माण कार्य दिसंबर 2025 तक पूर्ण हो जाएगा संग्रहालय और सभागार का कार्य अभी शुरू हुआ है इसका कार्य अप्रैल 2026 तक पूर्ण होने की उम्मीद है. श्रद्धालु अप्रैल 2026 से संग्रहालय का अवलोकन कर सकेंगे राम मंदिर के परिसर में सभी स्थानों पर दो माह के अंदर श्रद्धालुओं को जाने की अनुमति दे दी जाएगी. .