धर्म एवं ज्योतिष
वैदिक मंत्र के साथ प्राण प्रतिष्ठा संपन्न, जानें किस दिशा में राम दरबार समेत कौन से देवी देवता हुए विराजमान
6 Jun, 2025 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
अयोध्या में एक नया अध्याय और जुड़ गया. गुरुवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भव्य मंदिर में राजा राम की प्राण प्रतिष्ठा की. इस मौके पर वैदिक मंत्रों की ध्वनि चारों दिशाओं में गुंजायमान रही. आचार्यों और संतों का स्वर, शंखध्वनि ने अध्यात्म का माहौल बना दिया. अभिजीत मुहूर्त, वेदघोष और मंत्रोच्चार की ध्वनि के बीच अयोध्या में गंगा दशहरा के अवसर पर श्रीराम दरबार सहित समस्त नवनिर्मित देवालयों में प्राण प्रतिष्ठा का भव्य समारोह संपन्न हुआ. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की उपस्थिति में हुए इस त्रिदिवसीय अनुष्ठान का यह अंतिम दिन था, जिसमें वैदिक परंपरा और आधुनिक तकनीक का दुर्लभ संगम देखने को मिला.
प्राण प्रतिष्ठा का पावन कार्य संपन्न
राम दरबार समेत सभी देवी देवताओं की प्राण प्रतिष्ठा की आयोजन का समापन विशेष आरती और भंडारे के साथ हुआ. बुधवार सुबह 6 बजकर 30 मिनट पर यज्ञमंडप में आह्वानित देवताओं के पूजन के साथ अनुष्ठान की विधिवत शुरुआत हुई. दो घंटे चले इस पूजन के बाद सुबह 9 बजे से हवन प्रारंभ हुआ, जो लगभग एक घंटे तक चला. इसके बाद सभी नवनिर्मित देवालयों में केंद्रीयकृत दृश्य और श्रव्य माध्यमों की सहायता से एक साथ प्राण प्रतिष्ठा का पावन कार्य संपन्न हुआ.
दिशाओं का रखा गया है ध्यान
प्राण प्रतिष्ठा समारोह के अंतर्गत मंदिर परिसर के विभिन्न भागों में स्थित देवविग्रहों में विधिपूर्वक प्राणस्थापन किया गया. इनमें प्रमुख रूप से श्रीराम दरबार, शेषावतार, परकोटा के ईशान कोण पर शिव मंदिर, अग्निकोण में गणेशजी, दक्षिणी भुजा में हनुमानजी, नैऋत्य कोण में सूर्य देव, वायव्य कोण में मां भगवती तथा उत्तरी भुजा में अन्नपूर्णा माता की मूर्तियां शामिल हैं.
संगमरमर पत्थर से बना है राम दरबार
पूरे मंदिर परिसर को दृश्य माध्यमों के माध्यम से एकीकृत किया गया था, जिससे सभी देवालयों में एक ही समय पर मंत्रोच्चार की सामूहिक गूंज के साथ प्राण प्रतिष्ठा संपन्न हो सकी. प्राण प्रतिष्ठा के इस आयोजन में बड़ी संख्या में संत-महात्मा, वैदिक आचार्य, रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के पदाधिकारी और आम श्रद्धालु उपस्थित रहे. राम मंदिर के प्रथम तल पर स्थापित होने वाले राम दरबार की महिमा केवल धार्मिक नहीं, बल्कि स्थापत्य की दृष्टि से भी अतुलनीय होने जा रही है. राम दरबार का निर्माण जिस संगमरमर पत्थर से हुआ है.
रोज शाम को इस खास चीज से करें आरती, घर में फैलेगी शांति और दूर होंगे झगड़े, परिवार की कलह से पाएं राहत
6 Jun, 2025 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
शाम का समय दिन और रात के बीच की कड़ी होता है. इस समय को आध्यात्मिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण माना गया है. हिंदू मान्यताओं के अनुसार, दिन भर की हलचल के बाद जब सूर्य अस्त हो जाता है, तब नकारात्मक शक्तियां सक्रिय होने लगती हैं. ऐसे में अगर इस समय दीपक जलाकर आरती की जाए, तो यह नकारात्मकता को दूर करने में मदद करता है. इस विषय में अधिक जानकारी दे रहे हैं
क्यों जरूरी है कपूर से आरती करना?
शाम की आरती में कपूर का इस्तेमाल करना बहुत ही लाभदायक होता है. कपूर को बेहद पवित्र और शुद्ध तत्व माना गया है. जब इसे जलाया जाता है, तो यह बिना किसी राख के पूरी तरह जल जाता है, जो जीवन की अस्थिरता और नश्वरता का प्रतीक है. इसके साथ ही, कपूर की खुशबू पूरे माहौल को शुद्ध करती है.
वातावरण के लिए लाभकारी
कपूर से आरती करने पर जो धुआं निकलता है, वह न सिर्फ वातावरण को साफ करता है, बल्कि मन को भी शांत करता है. इससे घर के हर कोने में सकारात्मक ऊर्जा फैलती है और धीरे धीरे वहां फैली नकारात्मकता दूर होने लगती है. कहा जाता है कि जिस घर में रोजाना कपूर से आरती की जाती है, वहां देवी देवता का वास बना रहता है.
कैसे करता है कपूर घर की समस्याओं को दूर?
ज्योतिष के अनुसार, कपूर शुक्र ग्रह से जुड़ा होता है. शुक्र ग्रह समृद्धि, प्रेम, सौंदर्य और सुख सुविधाओं का प्रतिनिधि माना जाता है. जब आप नियमित रूप से कपूर जलाते हैं, तो यह शुक्र ग्रह को मजबूत करता है. इससे न केवल आर्थिक स्थिति में सुधार आता है, बल्कि पारिवारिक रिश्तों में भी मिठास बढ़ती है.
दूर होती मानसिक अशांति
साथ ही, कपूर को राहु और केतु के दोष को कम करने वाला भी माना गया है. इन दोनों ग्रहों के असर से घर में कलह, मानसिक अशांति और आर्थिक दिक्कतें आ सकती हैं. लेकिन कपूर से आरती करने पर इन दोषों का प्रभाव घटने लगता है.
कैसे करें शाम की आरती?
शाम को सूर्यास्त के बाद घर के मंदिर में एक साफ दीपक में गाय के घी का दीप जलाएं. फिर उसमें एक छोटा सा कपूर डालें और उसे जलाकर आरती करें. आरती के समय भगवान का ध्यान करें और मन में घर की शांति और सुख की प्रार्थना करें. आप चाहें तो “ओम जय जगदीश हरे” जैसे भजन गा सकते हैं, जिससे माहौल और भी भक्तिमय हो जाता है.
आज का राशिफल: जानिए क्या कहती हैं आपकी किस्मत की सितारे
6 Jun, 2025 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- यात्रा, भय, कष्ट, व्यापार बाधा, शुभ समाचार, प्रसन्नता का योग बनेगा।
वृष राशि :- शत्रु भय, रोग, स्वजन सुख, लाभदायक जीवन, सुख, मन असमंजस में होगा।
मिथुन राशि :- वाहन भय, मातृ-पितृ कष्ट, हानि, व्यर्थ अनाप-सनाप खर्च से परेशानी होगी।
कर्क राशि :- सफलता, उन्नति, शुभ कार्य, विवाह, उद्योग-व्यापार में कष्ट होगा, ध्यान दें।
सिंह राशि :- शरीर कष्ट, उत्तम व्यय, खर्च में सफलता, व्यवस्था में साधारण लाभ होगा।
कन्या राशि :- खर्च, विवाद, स्त्री कष्ट, विद्या लाभ, कुछ अच्छे कार्य भी हो सकते हैं, ध्यान रखें।
तुला राशि :- यात्रा में हानि, राजभय, लाभ, कारोबार में उछाल, कष्ट की स्थिति बनेगी।
वृश्चिक राशि :- वृत्ति में लाभ, यात्रा, सम्पत्ति लाभ, कारोबार में लाभ, शिक्षा से लाभ होगा।
धनु राशि :- अल्प लाभ, शरीर कष्ट, चोटादि का भय, कष्ट, विलाप तथा हानि होगी।
मकर राशि :- शत्रु हानि, आंशिक शारीरिक सुख, समय उद्योग-व्यापार से लाभ होगा।
कुंभ राशि :- शुभ व्यय, संतान सुख, कार्य सफलता, मित्र वर्ग से संतोष होगा।
मीन राशि :- पदोन्नति, राजभय, न्याय, लाभ-हानि, व्यय, जीवन संतोषमय होगा।
पूजा में कपूर होता है अहम
5 Jun, 2025 07:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में पूजा में कपूर बहुत जरुरी होता है। पूजा के बाद आरती में कपूर का उपयोग किया जाता है। कपूर के बिना आरती अधूरी मानी जाती है। कपूर जलाने से नकारात्मकता सकारात्मक ऊर्जा में बदल जाती है। कपूर का उपयोग बीमारियों के इलाज में भी किया जाता है। इसलिए धर्मग्रंथों के साथ आयुर्वेद में भी कपूर के बारे में खासतौर से बताया गया है। ज्योतिषीय और वास्तु उपायों में भी कपूर का उपयोग महत्वपूर्ण रूप से किया जाता है। भारतीय पूजा पद्धति वैज्ञानिक नजरिये से भी महत्वपूर्ण है। कपूर के बारे में वैज्ञानिक शोधों के आधार पर भी कहा जाता है कि इसकी सुगंध से जीवाणु, विषाणु आदि बीमारी फैलाने वाले जीव खत्म हो जाते हैं। यह वातावरण को शुद्ध करता है जिससे बीमारी होने खतरा कम हो जाता है। घर में कपूर जलाने से हानिकारक बैक्टीरिया खत्म होते हैं।
बाहर हो जाती है दूषित वायु
पूजा या हवन करते समय जब हम कपूर जलाते हैं, तो उससे निकलने वाला धुआं आसपास की नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करता है। कपूर जलाने से आसपास की हवा साफ होने लगती है। खराब हवा घर से बाहर हो जाती है और वातावरण शुद्ध हो जाता है। सुबह-शाम कपूर जलाने से बाहरी नकारात्मक ऊर्जा घर में नहीं आ पाती है। कपूर जलाने से हवा में ऑक्सीजन की मात्रा भी बढ़ सकती है। प्रदूषित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को बीमारियों से बचने के लिए कपूर जलाना चाहिए। वास्तु दोष दूर करने में भी कपूर का अच्छा असर होता है। घर के जिस कमरे में शुद्ध वायु आने-जाने के लिए खिड़की, रोशनदान आदि न हों वहां कांच के बर्तन में कपूर रखने से शुद्ध वायु का संचार होता है।
गंगा दशहरा पर गंगा पूजन का है विशेष महत्व
5 Jun, 2025 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
गंगा दशहरा इस बार पांच जून को है। सनातन धर्म में इसका बेहद महत्व है। धार्मिक मान्यता के अनुसार राजा भगीरथ ने अपने पुरखों को मुक्ति प्रदान करने के लिए भगवान शिव की आराधना करके गंगा जी को स्वर्ग से उतारा था। जिस दिन वे गंगा को इस धरती पर लाए, वही दिन गंगा दशहरा के नाम से जाना जाता है। ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को हस्त नक्षत्र में स्वर्ग से गंगा का आगमन हुआ था। अतः इस दिन गंगा आदि का स्नान, अन्न वस्त्र आदि का दान, जप तप, उपासना और उपवास किया जाता है। इससे पापों से छुटकारा मिलता है। इस दिन गंगा पूजन का विशेष महत्व है। महर्षि व्यास ने गंगा की महिमा के बारे में पद्म पुराण में लिखा है कि अविलंब सद्गति का उपाय सोचने वाले सभी स्त्री−पुरुषों के लिए गंगा ही ऐसा तीर्थ है, जिनके दर्शन भर से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। भविष्य पुराण में लिखा हुआ है कि जो मनुष्य इस दिन गंगा के पानी में खड़ा होकर दस बार गंगा स्तोत्र को पढ़ता है चाहे वो दरिद्र हो, चाहे असमर्थ हो वह भी गंगा की पूजा कर वांछित फल को पाता है।
इस पर्व पर मंदिरों को विशेष रूप से सजाया जाता है खासकर गंगा किनारे के मंदिरों की सजावट इस दिन देखते ही बनती है। लाखों की संख्या में श्रद्धालु गंगा में डुबकी लगाते हैं और पवित्र नदी का पूजन करते हैं। इस पर्व की छटा उत्तर भारत में विशेष रूप से संपूर्ण उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार में अलग ही रूप में देखने को मिलती है। यहां गंगा अवसर के दिन मेले का आयोजन भी किया जाता है।
इस दिन गंगा तटवर्ती प्रदेश में अथवा सामर्थ्य न हो तो समीप के किसी भी जलाशय या घर के शुद्ध जल से स्नान करके स्वर्ण आदि के पात्र में त्रिनेत्र, चतुर्भुज, सर्वावय विभूषित, रत्न कुम्भधारिणी, श्वेत वस्त्रों से सुशोभित तथा वर और अभय मुद्रा से युक्त श्री गंगाजी की प्रशान्त मूर्ति अंकित करें अथवा किसी साक्षात मूर्ति के करीब बैठ जाएं और फिर ओम नमः शिवायै नारायण्यै दशहरायै गंगायै नमः से आह्वान आदि षोड्शोपचार पूजन करें। तत्पश्चात ओम नमो भगवते ऐं ह्रीं श्रीं हिलि, हिलि, मिली मिली गंगे मां पावय पावय स्वाहा मंत्र से पांच पुष्पांजलि अर्पण करके गंगा को पृथ्वी पर लाने वाले भगीरथ का और जहां से उनका उद्भव हुआ है, उस हिमालय का नाम मंत्र से पूजन करें। फिर दस फल, दस दीपक और दस सेर तिल का गंगायै नमः कहकर दान करें। साथ ही घी मिले हुए सत्तू और गुड़ के पिण्ड जल में डालें। सामर्थ्य हो तो सोने का कछुआ, मछली और मेढक आदि का भी पूजन करके जल में विसर्जित करें। इसके अतिरिक्त दस सेर तिल, दस सेर जौ और दस सेर गेहूं दस ब्राह्मणों को दान दें।
दीपक को न रखें जमीन पर
5 Jun, 2025 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
जगत में सभी लोग धन और वैभव चाहते हैं और इसके लिए जी जान से प्रयास करते हैं। उनके हर प्रयास के पीछे असली लक्ष्य सुख शान्ति और अपने परिवार की खुशहाली और तरक्की होती है पर लेकिन कई बार आपने देखा होगा की सब प्रयास करने के बाद हम धन सम्पदा तो कमा लेते है पर घर की शान्ति और अमन बिगड़ जाता है। ऐसी क्या गलतियां हैं जो भूलवश हम करते रहते है और जिनके कारण हमारे सुखी जीवन पर ग्रहण लगा रहता है।
दीपक हमारे घर में प्रतिदिन जलाया जाता है। दीपक का प्रयोग हम भगवान् की पूजा के लिए करते है। कभी गलती से भी दीपक को ज़मीन पर नहीं रखना चाहिए।
शिवलिंग की पूजा हम प्रतिदिन करते है ,पर क्या आप जानते है कभी शिवलिंग ज़मीन पर नहीं रखना चाहिए। कई लोग मंदिर साफ़ करते समय कई बार शिवलिंग ज़मीन पर रखते है। ऐसा कभी न करे। शालिग्राम की पूजा तो सभी करते है। पर ज्योतिष एक बात हमेशा ध्यान में रखे कि कभी भी शालिग्राम को ज़मीन पर न रखे। इससे आप के घर कि आर्थिक स्थिति ख़राब हो सकती है।जनेऊ को बहुत पवित्र माना गया है। इसलिए इसे कभी ज़मीन पर नहीं रखना चाहिए। न ही फेकना चाहिए। अगर आप का जनेऊ ख़राब है तो उसे पेड़ की टहनी से बाँध दे या पेड़ की जड़ में डाल दे। शंख का प्रयोग हर रोज पूजा पाठ में किया जाता है। इसलिए कभी भी शंख को ज़मीन पर नहीं रखना चाहिए। शंख बजाने के बाद हमेशा उसे धोकर रखना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार भोजन की थाली को भी कभी जमीन पर नहीं रखना चाहिए ऐसा करना भी दुर्भाग्य की वजह बन जाता है।
शनिदेव के हैं नौ वाहन
5 Jun, 2025 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सूर्यपुत्र शनिदेव न्याय के देवता हैं हालांकि लोग उनके कोप से भयभीत रहते हैं पर वह हमेशा ही कार्यों के अनुरुप परिणाम देते हैं। उनके कई वाहन हैं। शनि के वाहनों की बात करते हुए सामान्यन रूप से कौवे के बारे में ध्याभन आता है, लेकिन उनके कौवे सहित कुल 9 वाहन है। जिनमें से कई को ज्योतिषीय और धार्मिक महत्व के अनुसार बेहद शुभ माना गया हैं। इसके बावजूद जरूरी नहीं है कि वे सभी आपके लिए भी शुभ ही हों। इसलिए ये जानना अत्यंनत आवश्यरक है कि कौन शुभ है और कौन अशुभ। शास्त्रों की माने तो शनि जिस वाहन में सवार होकर किसी व्याक्तिप की कुंडली में प्रवेश करते हैं उसकी राशि की गणना करके तय होता है कि उनका आगमन व्यरक्ति के लिए अच्छाै है या बुरा।
इस गणना की विधि सुनने में कठिन लगती है पर है गणित के सूत्रों की तरह एक दम तय है। इसके लिए जन्म नक्षत्र की संख्या और शनि के राशि बदलने की तिथि के नक्षत्र की संख्या जोड कर उसके योगफल को नौ से भाग करना होता है। इस गणना से मिली संख्या के आधार पर ही शनि का वाहन निर्धारित होता है। एक दूसरी विधि भी है, इसमें शनि के राशि प्रवेश करने की तिथि की संख्या, ऩक्षत्र संख्या, वार संख्या और नाम के प्रथम अक्षर संख्या सभी को जोडकर योगफल को 9 से भाग देदें, जो शेष संख्या आयेगी वो शनि के वाहन की जानकारी देगी। दोनो विधियों मे यदि शेष 0 बचे तो मानना चाहिए कि आपकी अपेक्षित संख्यान 9 है।
सूर्य देव का परिवार
रविवार को सूर्यदेव का दिन माना जाता है। यश और सम्मान हासिल करने के लिए सभी लोग उनकी पूजा करते हैं। पर क्या आप सूर्यदेव के परिवार को जानते हैं। सूर्य देव का परिवार काफी बड़ा है। उनकी संज्ञा और छाया नाम की दो पत्निोयां और दस संताने हैं। जिसमे से यमराज और शनिदेव जैसे पुत्र और यमुना जैसी बेटियां शामिल हैं। मनु स्मृजति के रचयिता वैवस्वत मनु भी सूर्यपुत्र ही हैं।
सूर्य देव की दो पत्निमयां संज्ञा और छाया हैं। संज्ञा सूर्य का तेज ना सह पाने के कारण अपनी छाया को उनकी पत्नीम के रूप में स्थाहपित करके तप करने चली गई थीं। लंबे समय तक छाया को ही अपनी प्रथम पत्नीर समझ कर सूर्य उनके साथ रहते रहे। ये राज बहुत बात में खुला की वे संज्ञा नहीं छाया है। संज्ञा से सूर्य को जुड़वां अश्विनी कुमारों के रूप में दो बेटों सहित छह संताने हुईं जबकि छाया से उनकी चार संताने थीं।
देव शिल्पीं विश्वेकर्मा सूर्य पत्नीव संज्ञा के पिता थे और इस नाते उनके ससुर हुए। उन्होंंने ही संज्ञा के तप करने जाने की जानकारी सूर्य देव को दी थी।
धर्मराज या यमराज सूर्य के सबसे बड़े पुत्र और संज्ञा की प्रथम संतान हैं।
यमी यानि यमुना नदी सूर्य की दूसरी संतान और ज्येसष्ठा पुत्री हैं जो अपनी माता संज्ञा को सूर्यदेव से मिले आर्शिवाद के चलते पृथ्वीज पर नदी के रूप में प्रसिद्ध हुईं।
सूर्य और संज्ञा की तीसरी संतान हैं वैवस्वत मनु वर्तमान (सातवें) मन्वन्तर के अधिपति हैं। यानि जो प्रलय के बाद संसार के पुर्निमाण करने वाले प्रथम पुरुष बने और जिन्हों।ने मनु स्मृपति की रचना की।
सूर्य और छाया की प्रथम संतान है शनिदेव जिन्हें् कर्मफल दाता और न्याषयधिकारी भी कहा जाता है। अपने जन्मन से शनि अपने पिता से शत्रु भाव रखते थे। भगवान शंकर के वरदान से वे नवग्रहों में सर्वश्रेष्ठ स्थान पर नियुक्तव हुए और मानव तो क्या देवता भी उनके नाम से भयभीत रहते हैं।
छाया और सूर्य की कन्या तप्तिह का विवाह अत्यन्त धर्मात्मा सोमवंशी राजा संवरण के साथ हुआ। कुरुवंश के स्थापक राजर्षि कुरु का इन दोनों की ही संतान थे, जिनसे कौरवों की उत्पत्ति हुई।
सूर्य और छाया पुत्री विष्टि भद्रा नाम से नक्षत्र लोक में प्रविष्ट हुई। भद्रा काले वर्ण, लंबे केश, बड़े-बड़े दांत तथा भयंकर रूप वाली कन्या है। शनि की तरह ही इसका स्वभाव भी कड़क बताया गया है। उनके स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए ही भगवान ब्रह्मा ने उन्हें कालगणना या पंचांग के एक प्रमुख अंग विष्टि करण में स्थान दिया है।
सूर्य और छाया की चौथी संतान हैं सावर्णि मनु। वैवस्वत मनु की ही तरह वे इस मन्वन्तर के पश्चांत अगले यानि आठवें मन्वन्तर के अधिपति होंगे।
संज्ञा के बारे में जानकारी मिलने के बाद अपना तेज कम करके सूर्य घोड़ा बनकर उनके पास गए। संज्ञा उस समय अश्विनी यानि घोड़ी के रूप में थी। दोनों के संयोग से जुड़वां अश्विनीकुमारों की उत्पत्ति हुई जो देवताओं के वैद्य हैं। कहते हैं कि दधीचि से मधु-विद्या सीखने के लिये उनके धड़ पर घोड़े का सिर रख दिया गया था, और तब उनसे मधुविद्या सीखी थी। अत्यं्त रूपवान माने जाने वाले अश्विनीकुमार नासत्य और दस्त्र के नाम से भी प्रसिद्ध हुए।
सूर्य की सबसे छोटी और संज्ञा की छठी संतान हैं रेवंत जो उनके पुनर्मिलन के बाद जन्मीा थी। रेवंत निरन्तर भगवान सूर्य की सेवा में रहते हैं।
विजेता बनना है तो धारण करें वैजयंती माला
5 Jun, 2025 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
धर्म में सफल होने के लिए पूजा पाठ और हवन के साथ ही कई अन्य उपाय भी है। धर्म शास्त्रों के अनुसार
वैजयंती माला- एक ऐसी माला जो सभी कार्यों में विजय दिला सकती है। इसका प्रयोग भगवान श्री कृष्ण माता दुर्गा, काली और दूसरे कई देवता करते थे। रत्न के जानकार मानते हैं कि अगर इस माला को सही विधि-विधान के साथ प्राण प्रतिष्ठित करके धारण किया जाए तो इसके परिणाम आपको तत्काल मिल सकते हैं। कोई भी ऐसा कार्य नहीं है जो जिसमें रुकावट आएगी।
वैजयंती माला को धारण करने वाला इंद्र के समान सारे वस्त्रों को जीतने वाला बन जाता है और श्री कृष्ण के समान सभी को मोहित करने वाला बन जाता है और महर्षि नारद के समान विद्वान बन जाता है। इस सिद्ध माला को धारण करने वाला हर जगह विजय प्राप्त करता है। उसके सर्व कार्य अपने आप बनते चले जाते हैं । यदि किसी काम में लंबे समय से बाधा आ रही है तो वह काम आसानी से बन जाता है। यह माला शत्रुओं का नाश भी करती है। वैजयंती माला को सिद्ध करने के लिए इसी विशेषज्ञ की सलाह लेनी चाहिए। पूरा फल पाने के लिए जरूरी है कि माला सही विधि-विधान से प्राण प्रतिष्ठा के बाद ही पहनी चाहिए।
आज का राशिफल: जानिए क्या कहती हैं आपकी किस्मत की सितारे
5 Jun, 2025 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- दैनिक व्यवसाय गति में सुधार तथा योजनाएं फलीभूत होगी।
वृष राशि :- दैनिक क्षमता में वृद्धि, सफलता एवं प्रभुत्व के योग अवश्य ही बनेंगे।
मिथुन राशि :- आर्थिक योजना पूर्ण होंगे, कार्यक्षमता में वृद्धि, इष्ट मित्रों से सुख सहयोग मिलेगा।
कर्क राशि :- व्यवसाय अनुकूल, चिन्ताएं कम होगी, इष्ट मित्र सुखवर्धक होंगे।
सिंह राशि :- धन लाभ, आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा तथा कार्यवृत्ति में सुधार होगा।
कन्या राशि :-कुछ समस्याएं सुलझे, कुछ पैदा होगी तथा कार्य वृत्ति में सुधार अवश्य होगा।
तुला राशि :- कार्य व्यवसाय क्षमता कुछ अनुकूल हो, आशाओं से सफलता के कार्य बनेंगे।
वृश्चिक राशि :- धनालाभ आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा, बिगड़े कार्य अवश्य बनेंगे।
धनु राशि :- प्रत्येक कार्य में विलंब संभव, धन का लाभ, आशानुकूल सफलता होगी|
मकर राशि :- आरोप प्रत्यारोप, क्लेश संभव, धन लाभ आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा|
कुंभ राशि :- सफलता के साधन जुटाए, समय ऐशो आराम से बीतेगा, ध्यान रखे|
मीन राशि :- किसी तनाव क्लेश से बचिए, क्लेश व अशांति मन में अवश्य होगी।
जब भगवान ने की चोरों के भागने में मदद... 700 साल पुराना रहस्यमयी मंदिर, हुई कई चमत्कारी घटनाएं!
4 Jun, 2025 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
जयपुर के आसपास छोटे-छोटे कस्बों और गांवों में कई वर्षों पुराने ऐतिहासिक और प्राचीन मंदिर हैं. इनमें से एक मंदिर जयपुर शहर से 55 किलोमीटर दूर रूपाड़ी गांव में स्थित है. यहां का 700 वर्ष पुराना मंशा माता मंदिर अपने चमत्कारों और इतिहास की रोचक घटनाओं के कारण विशेष पहचान रखता है. इस मंदिर को चमत्कारी मंदिर के रूप में भी जाना जाता है.
यह मंदिर अरावली पर्वत श्रृंखला की एक पहाड़ी पर समुद्र तल से लगभग 700 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. मंदिर तक पहुंचने के लिए 500 सीढ़ियों की चढ़ाई करनी पड़ती है. लोकल-18 टीम ने मंदिर पहुंचकर स्थानीय लोगों और पुजारी से बातचीत की. मंदिर के पुजारी पवन ने एक अनोखी घटना का जिक्र करते हुए बताया कि यह मंदिर चोरों की मदद से जुड़ी एक चमत्कारी घटना के लिए प्रसिद्ध है.
चोरों के लिए बना था पहाड़ी में रास्ता
पुजारी पवन बताते हैं कि वर्षों पहले गांव में चोरी करने के बाद चोर इस मंदिर पर पहुंचे. गांववालों ने उन्हें घेर लिया और उनके भागने का कोई रास्ता नहीं बचा. तभी माता के मंदिर की पहाड़ी के बीचोंबीच एक संकरा रास्ता बन गया जिससे चोर वहां से बचकर निकलने में सफल रहे. इस घटना के बाद मंदिर का नाम मंशा माता मंदिर पड़ गया. आज भी यह रास्ता मौजूद है जिसे ‘चोर गली’ कहा जाता है. यहां से एक बार में केवल एक व्यक्ति ही निकल सकता है.
मंदिर में स्थित है चमत्कारी अंध कुंआ
मंदिर परिसर में स्थित एक अंध कुंए से जुड़ी एक और चमत्कारी घटना भी चर्चित है. बताया जाता है कि एक बार एक बंजारा पूजा करने आया और उसका सोने का कटोरा उस कुएं में गिर गया. रात में मंशा माता ने सपने में बंजारे को बताया कि उसका कटोरा निवाई के एक मंदिर के कुंड में मिलेगा. लेकिन माता ने यह भी चेताया कि वहां कई कटोरे होंगे और उसे केवल अपना कटोरा ही लेना है. बंजारा लालचवश अन्य कटोरे भी साथ ले आया. इसके बाद उसकी पत्नी का निधन हो गया. दुखी होकर वह माता के मंदिर में क्षमा मांगने आया. फिर उसने मंदिर की पहाड़ी के लिए सात सीढ़ियों का निर्माण करवाया जो आज भी मंदिर में मौजूद हैं.
अवैध खनन के चलते हुई थी मृत्यु की घटना
यह मंदिर एक भव्य पहाड़ी पर स्थित है जिसे मनसा डूंगरी के नाम से जाना जाता है. स्थानीय लोग बताते हैं कि एक बार एक ठेकेदार ने इस पहाड़ी पर अवैध खनन शुरू किया. लोगों ने विरोध किया लेकिन वह नहीं रुका. कुछ समय बाद उसके बेटे की मृत्यु हो गई. लोगों का मानना है कि यह माता की शक्ति का परिणाम था. आज भी इस पहाड़ी पर खनन की गई चट्टानें वैसे की वैसे पड़ी हैं.
सवामणी की परम्परा और सामूहिक आयोजन
मंदिर की प्राकृतिक छटा मन को शांति देती है. यहां मनोकामना पूर्ण होने के बाद सवामणी चढ़ाने की परम्परा है. हर वर्ष 56 गांवों के लोग मिलकर सामूहिक सवामणी का आयोजन करते हैं. यह आयोजन मंदिर परिसर में विशेष आस्था और उल्लास के साथ होता है.
ओलावृष्टि से बचाने की मान्यता
मंदिर से जुड़ी एक और मान्यता यह है कि मंशा माता प्राकृतिक आपदाओं से गांव की रक्षा करती हैं. स्थानीय लोग बताते हैं कि आज तक रूपाड़ी गांव में तेज ओलावृष्टि नहीं हुई. किसी को कभी नुकसान नहीं पहुंचा. गांव में बारिश नहीं होने की स्थिति में सामूहिक रूप से माता का पूजन किया जाता है. लोगों का विश्वास है कि इसके बाद अच्छी वर्षा होती है. इसलिए हर साल गांववाले बारिश के लिए विशेष पूजा का आयोजन करते हैं.
6 जून को निर्जला एकादशी, एकादशी के दिन चावल का क्यों नहीं करना चाहिए सेवन
4 Jun, 2025 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में वैसे तो सभी एकादशियों का विशेष महत्व है लेकिन इन सभी में निर्जला एकादशी को सबसे श्रेष्ठ माना जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, निर्जला एकादशी का व्रत करने से भक्तजनों को वर्षभर की सभी एकादशियों के बराबर पुण्य फल की प्राप्ति होती है. निर्जला एकादशी का व्रत सभी एकादशियों में सबसे कठिन माना जाता है क्योंकि द्वादशी तिथि तक पानी की एक बूंद भी ग्रहण नहीं की जाती इसलिए इस तिथि को निर्जला एकादशी के नाम से जाना जाता है. आपने अक्सर बुजुर्गों को यह कहते सुना होगा कि एकादशी के दिन चावल मत खाना! लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों कहा जाता है? क्या यह सिर्फ धार्मिक नियम है या इसके पीछे कोई वैज्ञानिक वजह भी छुपी है. आइए जानते हैं एकादशी के दिन चावल का सेवन क्यों नहीं किया जाता…
कब है निर्जला एकादशी?
निर्जला एकादशी को लेकर लोगों में कन्फ्यूजन की स्थिति बनी हुई है. कुछ लोग 6 जून को एकादशी की तिथि बता रहे हैं तो कुछ 7 जून को. इस साल हरिवासर की वजह से दो दिन निर्जला एकादशी का व्रत किया जाएगा. गृहस्थ लोग निर्जला एकादशी व्रत 6 जून को करेंगे बल्कि साधु संत 7 जून को एकादशी का व्रत करेंगे. वहीं जो लोग 6 जून का व्रत करेंगे, वे 7 जून को पारण करेंगे. वहीं जो साधु संत 7 जून को व्रत करेंगे, वे 8 जून को एकादशी का पारण करेंगे और तभी पानी का सेवन भी करेंगे. आज हम जानेंगे कि एकादशी पर चावल न खाने की परंपरा कहां से शुरू हुई, इसके पीछे कौन-सी मान्यताएं हैं और क्या यह स्वास्थ्य से भी जुड़ा कोई संकेत देता है.
चावल न खाने की पौराणिक मान्यता
एकादशी हर हिंदू पंचांग के अनुसार हर महीने दो बार आती है—शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को. यह दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत के लिए बेहद खास माना जाता है. निर्जला एकादशी का व्रत करने से सभी पापों के नाश होता है और व्रत के शुभ प्रभाव से आत्मशुद्धि भी होती है. जल में पके हुए चावल में नकारात्मक ऊर्जा आकर्षित होती है इसलिए माना जाता है कि अगर कोई व्यक्ति एकादशी को चावल खाता है, तो व्रत का फल नहीं मिलता और पाप बढ़ता है. गरुड़ पुराण में भी उल्लेख है कि एकादशी को चावल खाना आध्यात्मिक रूप से वर्जित है क्योंकि यह भोजन तमोगुणी होता है—यानी आलस्य और भारीपन लाता है.
यह है कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, महर्षि मेधा ने मां क्रोध से बचने के लिए अपनी योग शक्तियों के माध्यम से शरीर का त्याग कर दिया और उनका अंश पृथ्वी में समा गया. यह घटना एकादशी के दिन हुई थी इसलिए एकादशी के दिन चावल खाना वर्जित है. फिर उन्होंने जौ और चावल के रूप में जन्म लिया. माना जाता है कि एकादशी के दिन चावल और जौ खाने की तुलना महर्षि मेधा के शरीर से की जाती है इसलिए एकादशी के दिन चावल नहीं खाया जाता.
प्रेत्योनियों को आकर्षित करता है चावल
पद्म पुराण, स्कंद पुराण तथा अन्य धर्म ग्रंथों में बताया गया है कि एकादशी तिथि पर भगवान विष्णु योगनिद्रा में रहते हैं और पाप ग्रहण करने वाली शक्तियां सक्रिय होती हैं. ऐसे में चावल या अन्न का सेवन पाप के संयोग का कारण बनता है. कथा अनुसार, एक बार माता पृथ्वी ने भगवान विष्णु से पूछा कि कौन सा भोजन एकादशी पर निषिद्ध है. तब भगवान ने उत्तर दिया कि एकादशी के दिन चावल खाने से वही पाप प्राप्त होता है, जो ब्रह्म हत्या से होता है. इसलिए धर्मशास्त्रों में एकादशी पर अन्न, विशेषकर चावल वर्जित बताए गए हैं. चावल प्रेत्योनियों को आकर्षित करता है, इसलिए इसे पितृ पक्ष या श्राद्ध में अर्पित किया जाता है — यह एकादशी जैसे उद्धारकारी तिथि पर उपयुक्त नहीं माना जाता.
आयुर्वेदिक कारण
चावल में जल तत्व अधिक होता है, जो शरीर में अवसाद, तामसिक वृत्ति और आलस्य बढ़ाता है. एकादशी व्रत का उद्देश्य शरीर को शुद्ध, सक्रिय और सात्त्विक बनाए रखना है. चावल इस प्रवृत्ति के विपरीत कार्य करता है. चावल के पाचन से अत्यधिक ग्लूकोज उत्पन्न होता है, जो उपवास के दौरान विषाक्तता बढ़ा सकता है. बरसात के मौसम में या मौसम परिवर्तन के समय (जब एकादशी अधिक आती है), चावल आसानी से संक्रमित हो सकते हैं, जिससे गैस, अपच, और सर्दी-जुकाम जैसी समस्याएं हो सकती हैं. एकादशी के व्रत में शरीर को हल्का और मन को शांत रखने की कोशिश होती है, जबकि चावल भारी और नींद बढ़ाने वाला आहार माना जाता है.
फ्लावर नहीं फायर हैं इस तालाब की मछलियां, नागों की जानी दुश्मन, सुख-शांति की वाहक
4 Jun, 2025 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
उत्तराखंड की पावन धरती ऋषिकेश में ऐसे कई रहस्यमयी और चमत्कारी स्थल हैं, जो आध्यात्मिक ऊर्जा से भरपूर हैं. गरुणचट्टी स्थित गरुण भगवान का मंदिर, इन्हीं में से एक है. ये जगह श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बना चुकी है. इस मंदिर में बना एक प्राचीन तालाब न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है, बल्कि इसके जल को गरुण गंगा का पवित्र जल माना जाता है, जो कई रोगों और ग्रहदोषों से मुक्ति दिलाने की क्षमता रखता है. यह तालाब कालसर्प दोष से पीड़ित लोगों के लिए एक दिव्य समाधान है.
गरुण गंगा का पानी
कि गरुणचट्टी का यह मंदिर ऋषिकेश से लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर बद्रीनाथ मार्ग पर पड़ता है. गरुण जी, भगवान विष्णु के वाहन माने जाते हैं और उन्हें आध्यात्मिक शक्ति, साहस व रक्षा का प्रतीक माना जाता है. मान्यता है कि इस स्थल पर गरुण जी ने घोर तपस्या की थी और भगवान विष्णु से दिव्य वरदान प्राप्त किए थे. मंदिर प्रांगण में स्थित यह तालाब देखने में तो सामान्य प्रतीत होता है, लेकिन इसकी धार्मिक महत्ता अत्यंत गहन है. लोक मान्यता के अनुसार, इस तालाब का जल सीधे गरुण गंगा से आता है, जो एक अलौकिक जल स्रोत है. यह जल बेहद शीतल, निर्मल और औषधीय गुणों से युक्त होता है. स्थानीय श्रद्धालु मानते हैं कि इसमें स्नान करने अथवा इससे शरीर को स्पर्श कराने मात्र से कई चर्म रोग, मानसिक क्लेश और नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाती है.
विघ्न-बाधा का कारण
भारतीय ज्योतिष में कालसर्प दोष एक गंभीर ग्रहदोष माना गया है, जो व्यक्ति के जीवन में बाधाओं, विघ्नों और मानसिक अशांति का कारण बनता है. गरुण जी नागों के शत्रु माने जाते हैं. इसी कारण उनके मंदिर में पूजा और उपाय करने से कालसर्प दोष से मुक्ति मिलती है. इस मंदिर में लोग तालाब में मौजूद रंग-बिरंगी मछलियों को पेड़ा या आटे की गोली खिलाते हैं. माना जाता है कि ऐसा करने से दोष की शांति होती है और जीवन में सुख-शांति आती है. यम कार्य जीवदया (प्राणियों को अन्न दान) का प्रतीक भी है, जिससे पुण्य की प्राप्ति होती है. यहां हर साल देशभर से हजारों श्रद्धालु आते हैं, विशेषकर वे लोग जो लंबे समय से शनि, राहु, केतु या नागदोष से पीड़ित हैं.
इन 5 लोगों को कभी नहीं काटता सांप, सर्पदंश भय से भी हमेशा रहते हैं मुक्त
4 Jun, 2025 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सांप का नाम सुनते ही लोगों के मन में डर समा जाता है. जहर से भरे फन वाले इस जीव से हर कोई बचना चाहता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुछ खास तरह के लोगों को सांप कभी नुकसान नहीं पहुंचाते? विभिन्न धार्मिक, तांत्रिक और ज्योतिषीय परंपराओं में कुछ विशेष व्यक्तियों को सांप (नाग) नहीं काटते या उनका विष उन पर प्रभाव नहीं डालता. साथ ही ये व्यक्ति हमेशा सर्पदंश भय से भी मुक्त रहते हैं. तो कौन हैं ये लोग जिनसे सांप भी डरते हैं और क्यों उनके आस-पास जाते ही ये विषधर शांत हो जाते हैं?
ऐसे लोगों की शिवजी करते हैं रक्षा
शिवजी को नागों का स्वामी कहा जाता है और उनके गले में वासुकि नाग का वास होता है. मान्यता है कि जो व्यक्ति भक्ति भाव से शिवजी की पूजा करता है और शिव तांडव स्त्रोत या महामृत्युंजय मंत्र जप करता है. साथ ही प्रदोष तिथि या शिवरात्रि के मौके पर रुद्राभिषेक करता है तो उनको सांप कभी नहीं काटते. कहते हैं, जिस पर भोलेनाथ की कृपा हो, उसकी नाग भी रक्षा करते हैं. महामृत्युंजय मंत्र का प्रभाव नागदोष और विष से रक्षा करता है.
कुंडली में ग्रहों की विशेष स्थिति
ज्योतिषाचार्य के अनुसार, कुछ लोगों की कुंडली में विशेष ग्रह स्थिति होती है, जिसे कालसर्प दोष कहते हैं. माना जाता है कि जिनकी कुंडली में यह दोष नहीं होता, उन्हें सर्पदंश का भय भी नहीं होता है. हालांकि यह पूरी तरह धार्मिक विश्वास पर आधारित है. जब किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में सभी 7 मुख्य ग्रह—सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि—राहु और केतु के बीच में आ जाएं, तो उस योग को कालसर्प दोष कहा जाता है.
नाग पंचमी पर पूजा अर्चना करने वाले
नाग पंचमी पर जो लोग नाग देवता की पूजा, दूध अर्पण और व्रत करते हैं, उनको सर्पदंश का भय नहीं रहता. मान्यता है कि नाग पंचमी की पूजा करने वालों को नाग देवता का आशीर्वाद मिलता है और सांप जीवनभर उन्हें नुकसान नहीं पहुंचाते. वहीं गरुड़ पुराण व अन्य ग्रंथों में कहा गया है कि जो व्यक्ति पूर्व जन्म में नागों की सेवा, पूजा या रक्षा करता है उसे इस जन्म में नाग नहीं काटते.
गोरखनाथजी की सेवा करने वाले
गोरखनाथजी और सांप का संबंध अत्यंत रहस्यमयी, आध्यात्मिक और योगिक शक्ति से जुड़ा हुआ है. नाथ संप्रदाय की परंपराओं और लोककथाओं में गोरखनाथ जी को नागों के स्वामी, वशकर्ता और रक्षक के रूप में माना जाता है. मान्यता है कि जो व्यक्ति गोरखनाथजी की पूजा अर्चना करता है या फिर सांप दिखने पर गोरखनाथजी का नाम लेता है, तो उसको कभी भी सांप नहीं काटता. साथ ही वह हमेशा सर्पदंश से भय मुक्त रहते हैं.
राहु और केतु शांत हैं तो शुभ
ज्योतिष शास्त्र अनुसार, राहु और केतु नागों से संबंधित छाया ग्रह हैं. अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में राहु और केतु शुभ स्थिति में हों या उनकी शांति कर दी गई हो, तो सर्प दोष नहीं होता है और सांप जैसे जीव निकट भी नहीं आते. साथ ही माना गया है कि सर्प कभी बिना कारण नहीं काटता. जो व्यक्ति हिंसा नहीं करता, गौ-सेवा करता है, उनके शरीर की गंध और ऊर्जा सांपों को आकर्षित नहीं करती. वहीं साधु-संतों और योगियों के आस-पास सांप निडर होकर घूमते हैं, लेकिन उन्हें काटते नही हैं.
आज का राशिफल: जानिए क्या कहती हैं आपकी किस्मत की सितारे
4 Jun, 2025 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- हर्ष, यात्रा, सुख-सफलता, हानि, गृह-कलह, मानसिक अशांति कारक हो।
वृष राशि :- विरोध, व्यय, कष्ट, अशांति, लाभ होगा, शिक्षा-लेखन कार्य में सफलता मिले।
मिथुन राशि :- व्यापार में क्षति, यात्रा, विवाद, उद्योग-व्यापार की स्थिति में कमी, हानि होगी।
कर्क राशि :- शरीरादि मध्यम, भूमि व राजलाभ, असफलता का दिन सबित होगा।
सिंह राशि :- वाहन आदि भय, कष्ट, राजसुख, यात्रा होगी, शुभ कार्य में व्यावधान होगा।
कन्या राशि :- व्यय, प्रवास, विरोध, भूमि लाभ होगा, राजकार्य में व्यावधान, लाभ होगा।
तुला राशि :- रोगभय, मातृ-सुख, खर्च, यात्रा, व्यापार में सुधार हो सकता है, कार्य होगा।
वृश्चिक राशि :- कार्यसिद्ध, लाभ, विरोध, भूमि लाभ होगा, राजकार्य में व्यस्तता रहेगी।
धनु राशि :- लाभ, धर्म रुचि, यश, हर्ष, यात्रा, समय शिक्षा जगत की ख्याति सामान्य रहेगी।
मकर राशि :- विरोध, व्यापार में हानि, शरीर कष्ट, अधिक खर्च करने से कुछ कार्य होवेंगे।
कुंभ राशि :- व्यय, प्रभाव, लाभ, प्रतिष्ठा, रोगभय, विरोधी असफल अवश्य होंगे।
मीन राशि :- राजभय, यश लाभ, मान, चोटभय, राजकार्य में विलम्ब, परेशानी बढ़ेगी।
लगती थी तगड़ी भूख, साधु ने बताई ऐसी ट्रिक, बरसने लगे एकादशियों के फल
3 Jun, 2025 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में एकादशी का काफी महत्त्व है. एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है. इस दिन भगवान विष्णु के निमित्त व्रत और पूजा पाठ करने पर सभी मनोकामनाएं बिना मांगे ही पूर हो जाती हैं. साल में 24 एकादशी तिथि का आगमन होता है. एकादशी का व्रत करने से जीवन में चल रही सभी समस्याएं और बाधाएं खत्म हो जाती हैं. सभी एकादशियों का अपना अलग-अलग महत्त्व है. ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी का व्रत करने से सभी एकादशियों का फल प्राप्त होता है. पौराणिक कथा के अनुसार, निर्जला एकादशी माता कुंती और पांडवों से जुड़ी हुई है.
कुंती और भीम से कनेक्शन
पंडित श्रीधर शास्त्री बताते हैं कि ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष में निर्जला एकादशी का व्रत किया जाता है. सभी एकादशी तिथि के दिन विष्णु भगवान की पूजा अर्चना, आराधना, स्त्रोत और व्रत आदि करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस एकादशी का महत्त्व महाभारत से जुड़ा हुआ है. माता कुंती साल में होने वाली सभी एकादशियों का व्रत विधि विधान से करती थीं. भीम अपनी भूख पर नियंत्रण न रखने के कारण कोई भी व्रत नहीं कर पाते. इसका समाधान जानने के लिए भीम ने महर्षि वेदव्यास के सामने अपनी समस्या रखी. वेदव्यास ने कहा कि ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष में निर्जला एकादशी का आगमन होता है. यदि इस एकादशी का व्रत किया जाए तो सभी 24 एकादशी का फल प्राप्त होता है. भीम ने पहली बार निर्जला एकादशी का व्रत किया, जिस कारण उन पर विष्णु भगवान की कृपा सदैव बनी.
सबसे कठिन व्रत
निर्जला एकादशी का व्रत विधि विधान से करने पर सभी एकादशियों का फल प्राप्त होता है और विष्णु भगवान की कृपा सदैव बनी रहती है. निर्जला एकादशी का व्रत सबसे कठिन और विशेष फल प्रदान करने वाला होता है. इस दिन सबसे पहले ब्रह्म मुहूर्त में उठकर व्रत का संकल्प करके स्नान आदि करते हैं. पूरे दिन बिना खाए पिए रहकर विष्णु भगवान की पूजा पाठ, आराधना और महा फलदायक मंत्र “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” का 108 या अपनी सामर्थ्य के अनुसार जाप करने पर सभी समस्याएं खत्म हो जाती हैं. साल 2025 में निर्जला एकादशी का व्रत 6 और 7 जून को किया जाएगा, जिसमें गृहस्थ जीवन में रहने वाले साधक 6 जून और साधु संत 7 जून को निर्जला एकादशी का व्रत करके पुण्य अर्जित कर सकते हैं.