धर्म एवं ज्योतिष
संकष्टी चतुर्थी के दिन गणेश जी को लगाएं उनका प्रिय भोग, कार्य में आ रहे सभी विघ्न होंगे दूर
15 Feb, 2025 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में संकष्टी चतुर्थी का बहुत अधिक महत्व है. यह दिन भगवान श्री गणेश जी की पूजा को समर्पित है. मान्यताओं के अनुसार, जो भी व्यक्ति संकष्टी गणेश चतुर्थी का व्रत रखता है और विधि-विधान से पूजा करता है उसके समस्त पापों का नाश होता है और घर-परीवार के संकटों का नाश भी होता है.
वैदिक पंचांग के अनुसार, प्रत्येक माह में दो बार कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष तिथि में संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखा जाता है. वहीं फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है. इस बार यह तिथि 16 फरवरी को पड़ रही है, इसलिए इस दिन भगवान गणेश की पूजा कर उन्हें मनपसंद भोग अर्पित करने से बप्पा को प्रसन्न किया जा सकता है. तो आइए पंडित रमाकांत मिश्रा से जानते हैं द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के दिन गणेश जी को कौन-कौन से भोग अर्पित करें और क्या है पूजा मुहूर्त व तिथि
द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी 2025 डेट और शुभ मुहूर्त
वैदिक पंचांग के अनुसार, इस बार फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 15 फरवरी को रात 11 बजकर 52 मिनट पर प्रारंभ होगी और 17 फरवरी को रात 02 बजकर 15 मिनट पर समाप्त होगी. वहीं हिंदू मान्यताओं के अनुसार उदयातिथि मान्य होती है, इसलिए द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी तिथि का व्रत 16 फरवरी के दिन रखा जाएगा.
द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के दिन लगाएं इन चीजों का भोग
मोदक का भोग
भगवान श्रीगणेश को मोदक बहुत प्रिय माने जाते हैं. इसलिए उन्हें इस दिन मोदक का भोग लगाना चाहिए.माना जाता है कि पूजा की थाल में अगर मोदक रखा हो और उसका भोग लगाया जाए तो श्रीगणेश प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की मनोकामनाएं जल्द सुनते हैं.
लड्डू का भोग
द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश को लड्डू का भोग लगाएं. गणेश जी को बूंदी के लड्डू बहुत प्रिय माने जाते हैं. ऐसे में अगर इस विशेष दिन पूजा के बाद उन्हें बूंदी के लड्डूओं का भोग लगाया जाए तो गणेश जी का आशीर्वाद बना रहता है और घर-परिवार में सुख-शांति भी बनी रहती है.
फल, श्रीफल का भोग
भगवान श्री गणेश को नारियल, फल, दूध, दही और फल का भोग लगाना चाहिए. माना जाता है कि भगवान गणेश को फल भी अतिप्रिय हैं, ऐसे में चतुर्थी की पूजा के बाद भोग में इन चीजों को भी शामिल करते हैं तो इससे हमारे जीवन में आने वाली कठिनाईयां दूर होती हैं.
भगवान शिव की तीसरी आंख का जानें रहस्य, क्या ये सिर्फ विनाश का है प्रतीक या कुछ और...?
15 Feb, 2025 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भगवान शिव को देवों के देव महादेव के नाम से भी जाना जाता है. वो हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं. उनकी कई विशेषताओं में से एक है उनकी तीसरी आंख जो उनके ललाट पर स्थित है. यह तीसरी आंख हमेशा से ही रहस्य और जिज्ञासा का विषय रही है. कुछ लोग इसे विनाश का प्रतीक मानते हैं तो कुछ इसे ज्ञान का द्वार. आइए आज इस रहस्य को समझने की कोशिश करते हैं.
तीसरी आंख-विनाश का प्रतीक: पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव की तीसरी आंख जब खुलती है तो वह विनाश का कारण बनती है. उन्होंने अपनी तीसरी आंख से कामदेव को भस्म कर दिया था और कई राक्षसों का भी अंत किया था. इसलिए कुछ लोग इसे विनाश का प्रतीक मानते हैं.
तीसरी आंख-ज्ञान का द्वार: हालांकि तीसरी आंख को सिर्फ विनाश का प्रतीक मानना अधूरा सच है. यह ज्ञान का भी प्रतीक है. यह आंख हमें भौतिक दुनिया से परे देखने की क्षमता प्रदान करती है. यह हमें अपने भीतर झांकने और सत्य को जानने में मदद करती है.
तीसरी आंख का रहस्य: वास्तव में भगवान शिव की तीसरी आंख विनाश और ज्ञान दोनों का ही प्रतीक है. यह विनाश का प्रतीक है क्योंकि यह हमारे भीतर के अहंकार, क्रोध, और अज्ञान को नष्ट करती है. यह ज्ञान का प्रतीक है क्योंकि यह हमें सत्य, प्रेम, और शांति का मार्ग दिखाती है.
तीसरी आंख का महत्व: भगवान शिव की तीसरी आंख हमें सिखाती है कि हमें अपने भीतर के नकारात्मक विचारों और भावनाओं को नष्ट करना चाहिए. हमें अपने भीतर ज्ञान का प्रकाश जलाना चाहिए ताकि हम सत्य को जान सकें और एक बेहतर जीवन जी सकें.
भगवान शिव की तीसरी आंख एक रहस्य है जिसे पूरी तरह से समझना मुश्किल है. हालांकि यह हमें यह जरूर सिखाती है कि हमें अपने भीतर के अंधेरे को दूर करके ज्ञान का प्रकाश फैलाना चाहिए. यह आंख हमें विनाश से सृजन की ओर ले जाने का मार्ग दिखाती है.
महाशिवरात्रि के दिन करें ये 3 अचूक उपाय... खत्म होगी पति-पत्नी की हर टेंशन
15 Feb, 2025 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
फाल्गुन माह की शुरुआत हो चुकी है. सनातन धर्म में फाल्गुन माह का विशेष महत्व है. इस महीने भगवान शंकर की पूजा आराधना करने का विधान है. धार्मिक मान्यता है कि फाल्गुन माह में भगवान शिव की उपासना करने से भाग्य में वृद्धि और जीवन में सुख समृद्धि आती है. वैदिक पंचांग के अनुसार हर साल फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है. पौराणिक कथा के अनुसार, फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर भगवान शिव और मां पार्वती का विवाह हुआ थाधार्मिक मान्यता है कि महाशिवरात्रि व्रत करने से कुंवारी लड़कियों को मनचाहा वर मिलता है और परिवार में खुशहाली रहती है. साथ ही महादेव की कृपा से कारोबार में वृद्धि होती है.
फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि की शुरुआत 26 फरवरी को सुबह 11. 08 बजे से होगी और इस तिथि का समापन अगले दिन यानी 27 फरवरी को सुबह 08. 54 पर होगा. ऐसे में 26 फरवरी को देशभर में महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाएगा. इस दिन कुछ खास उपाय करने से वैवाहिक जीवन में आ रही तमाम तरह की समस्याओं से मुक्ति भी मिलती है .
धार्मिक मान्यता के अनुसार महाशिवरात्रि पर लाल रंग के वस्त्र धारण कर भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा आराधना करनी चाहिए. पूजा के समय माता पार्वती को 16 श्रृंगार अर्पित करना चाहिए. ऐसा करने से वैवाहिक जीवन में चल रही तमाम तरह की परेशानियों से मुक्ति मिलेगी.
इसके अलावा महाशिवरात्रि के दिन शिव परिवार की पूजा आराधना करें. पूजा में रामचरितमानस, शिव पार्वती विवाह प्रसंग की कथा सुने. धार्मिक मान्यता है कि ऐसा करने से विवाह से जुड़ी समस्याएं भी समाप्त होती हैं.
ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन पति-पत्नी साथ में शिव परिवार की उपासना करें. जरूरतमंद लोगों को अनाज और धन का दान करें. ऐसा करने से रिश्ते में प्रेम और विश्वास बना रहता है.
शनिवार व्रत से मिटेंगे दुख, शनिदेव होंगे प्रसन्न! देखें शुभ मुहूर्त, भद्रा समय, राहुकाल, दिशाशूल
15 Feb, 2025 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
शनिवार का व्रत शनि देव की पूजा के लिए समर्पित है. इस दिन फाल्गुन कृष्ण तृतीया तिथि, उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र, सुकर्मा योग, वणिज करण, पूर्व का दिशाशूल और कन्या राशि में चंद्रमा है. पाताल की भद्रा सुबह से रहेगी. शनिवार को शनि देव की पूजा करने से साढ़ेसाती और ढैय्या के कष्टों में राहत मिलती है. शनि देव को प्रसन्न करने के लिए शमी के पत्ते और फूल, काले तिल, सरसों के तेल, काली उड़द आदि अर्पित करते हैं. पूजा के समय आपको शनि रक्षा स्तोत्र का पाठ करना चाहिए. इससे शनि देव सुरक्षा प्रदान करते हैं. शनिवार की व्रत कथा पढ़ने से आपको व्रत का पूरा फल मिलेगा और व्रत का महत्व भी पता चलेगा. पूजा के समय आप शनि चालीसा का पाठ और शनि मंत्र का जाप कर सकते हैं.
जिन लोगों की कुंडली में शनि दोष हो या फिर शनि की स्थिति खराब हो तो आप शनिवार के दिन काले या नीले रंग के कपड़े पहनें. शनिवार को भोजन में काली उड़द और काले तिल का उपयोग करें. इस दिन काला तिल, काली उड़द, काले या नीले वस्त्र, जूते, चप्पल, सरसों का तेल, लोहा, स्टील के बर्तन आदि का दान करना चाहिए. जो लोग शनिवार को गरीबों और असहाय लोगों की मदद करते हैं, उन पर शनि महाराज प्रसन्न होते हैं. अपने अधीन कर्मचारियों से अच्छ से व्यवहार करें, सभी को सम्मान दें, झूठ न बोलें, किसी के साथ छल न करें, शराब, जुआ आदि से दूर रहें. इससे भी शनि देव खुश रहते हैं. वैदिक पंचांग से जानते हैं शुभ मुहूर्त, सूर्योदय, चंद्रोदय, चौघड़िया समय, भद्रा काल, राहुकाल, दिशाशूल आदि.
आज का पंचांग, 15 फरवरी 2025
आज की तिथि- तृतीया – 11:52 पी एम तक, उसके बाद चतुर्थी
आज का नक्षत्र- उत्तराफाल्गुनी – 01:39 ए एम, फरवरी 16 तक, फिर हस्त
आज का करण- वणिज – 10:48 ए एम तक, विष्टि – 11:52 पी एम तक, उसके बाद बव
आज का योग- सुकर्मा – 07:33 ए एम तक, फिर धृति
आज का पक्ष- कृष्ण
आज का दिन- शनिवार
चंद्र राशि- कन्या
सूर्योदय-सूर्यास्त और चंद्रोदय-चंद्रास्त का समय
सूर्योदय- 06:59 ए एम
सूर्यास्त- 06:11 पी एम
चन्द्रोदय- 08:46 पी एम
चन्द्रास्त- 08:28 ए एम
आज के मुहूर्त
ब्रह्म मुहूर्त: 05:17 ए एम से 06:08 ए एम
अभिजीत मुहूर्त: 12:13 पी एम से 12:58 पी एम
विजय मुहूर्त: 02:27 पी एम से 03:12 पी एम
अमृत काल: 05:42 पी एम से 07:28 पी एम
दिन का शुभ चौघड़िया मुहूर्त
शुभ-उत्तम: 08:23 ए एम से 09:47 ए एम
चर-सामान्य: 12:35 पी एम से 01:59 पी एम
लाभ-उन्नति: 01:59 पी एम से 03:23 पी एम
अमृत-सर्वोत्तम: 03:23 पी एम से 04:47 पी एम
रात का शुभ चौघड़िया मुहूर्त
लाभ-उन्नति: 06:11 पी एम से 07:47 पी एम
शुभ-उत्तम: 09:23 पी एम से 10:59 पी एम
अमृत-सर्वोत्तम: 10:59 पी एम से 12:35 ए एम, फरवरी 16
चर-सामान्य: 12:35 ए एम से 02:11 ए एम, फरवरी 16
लाभ-उन्नति: 05:23 ए एम से 06:59 ए एम, फरवरी 16
अशुभ समय
राहुकाल- 09:47 ए एम से 11:11 ए एम
गुलिक काल- 06:59 ए एम से 08:23 ए एम
यमगण्ड- 01:59 पी एम से 03:23 पी एम
दुर्मुहूर्त- 06:59 ए एम से 07:44 ए एम, 07:44 ए एम से 08:29 ए एम
भद्रा- 10:48 ए एम से 11:52 पी एम
भद्रा का वास- पाताल
दिशाशूल- पूर्व
शिववास
क्रीड़ा में – 11:52 पी एम तक, उसके बाद कैलाश पर.
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
15 Feb, 2025 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- समय विफल होगा, कार्यगति में बाधा, चिन्ता बनेगी, व्यर्थ भ्रमण होगा।
वृष राशि :- भाग्य का सितारा प्रबल होगा, बिगड़े कार्य अवश्य ही बनेंगे ध्यान अवश्य दें।
मिथुन राशि :- इष्ट मित्रों से सुख, अधिकारियों के मेल-मिलाप से रुके कार्य बन जायेंगे।
कर्क राशि :- भाग्य प्रबल होगा, बिगड़े तथा रुके कार्य समय पर बना लें, धैर्य पूर्वक कार्य करें।
सिंह राशि :- इष्ट मित्र सुखवर्धक होंगे, कुटुम्ब की समस्यायें सुलझेंगी, स्त्री से हर्ष होगा।
कन्या राशि :- भावनायें संवेदनशील रहेंगी, कुटुम्ब की समस्यायें सुलझें, स्त्री से हर्ष होगा।
तुला राशि :- समय अनुकूल नहीं स्वास्थ्य नरम रहेगा, किसी धारणा में समय नष्ट होगा।
वृश्चिक राशि :- स्त्री शरीर कष्ट, मानसिक उद्विघ्नता, स्वभाव में असमर्थता अवश्य रहेगी।
धनु राशि :- आशानुकूल सफलता, स्थिति में सुधार तथा व्यवसायिक गति उत्तम होगी।
मकर राशि :- धन का व्यर्थ व्यय होगा, मानसिक उद्विघ्नता से हानि की संभवना होगी।
कुंभ राशि :- इष्ट मित्र सहयोगी होंगे, कार्य बनेंगे तथा कार्यगति अनुकूल अवश्य होगी।
मीन राशि :- भाग्य का सितारा प्रबल होगा, बिगड़े कार्य अवश्य ही बन जायेंगे ध्यान रखें।
कृष्ण के अष्टसखी में कौन थीं सबसे प्रिय? खरगोन के इस मंदिर में संग-संग हैं विराजमान! दुर्लभ हैं ऐसे धाम...
14 Feb, 2025 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मध्य प्रदेश के खरगोन का चोली गांव जिसे देवो की नगरी देवगढ़ और मिनी बंगाल भी कहा जाता है. यहां छोटे बड़े मिलाकर लगभग 284 मंदिर है. ठाकुर श्री राधा विनोद बिहारीजी महाराज का 382 साल पुराना मंदिर भी उन्हीं में से एक है. खास बात ये है कि, यहां भगवान श्रीकृष्ण अपनी प्रेमिका राधा और अष्ट सखियों में सबसे प्रिय सखी ललिता देवी के साथ विराजमान है. लोगों के मुताबिक, देश में कम ही ऐसे मंदिर है जहां ठाकुरजी के साथ ललिता देवी के दर्शन होते है.
मंदिर से जुड़े गौरव सिंह ठाकुर बताते है कि, ठाकुर श्री राधा विनोद बिहारीजी महाराज का मंदिर 1643 ईसवी से यहां मौजूद है. मंदिर काफी जीर्णशीर्ण हो चुका था. वृंदावन के सदगुरु बाबा श्री अलबेली शरण महाराज ने इस मंदिर का नवनिर्माण कराकर 3 फरवरी 2015 में पुनः प्रतिष्ठा कराई थी. तभी से हर साल गांव में भव्य पाटोत्सव मनाया जाता है. जिसमें वृंदावन, मथुरा के राष्ट्रीय संत शामिल होते है. इस साल यह महोत्सव 12 फरवरी से 19 फरवरी तक मनाया जाएगा. महोत्सव के दौरान पूरा गांव वृन्दावनमय हो जाता है.
बांके बिहारी मंदिर की तर्ज पर होती है पूजा
मंदिर के पुजारी संत श्री श्यामा सनंदी महाराज के अनुसार, वृंदावन के ठाकुर श्री बांके बिहारी मंदिर की तर्ज पर यहां भी भगवान श्री कृष्ण की प्रतिदिन अष्टयाम सेवा होती है. यहां भगवान की बाल स्वरूप (लड्डू गोपाल) में पूजा होती है. आठ प्रहरों के मंगला, श्रृंगार, ग्वाल, राजभोग, उत्थापन, भोग, आरती और शयन होती है. साथ ही वृंदावन के स्वामी श्री हरदास जी महाराज की परंपरा के सभी आचार्योत्सव मनाएं जाते है. एक साल में लगभग 21 प्रमुख महोत्सव मनाते है. जिसमें वार्षिक पाटोत्सव सबसे बड़ा आयोजन है.
नौ दिन संतों का मिलेगा सानिध्य
माघ पूर्णिमा से शुरू होने वाले महोत्सव की शुरुआत 12 फरवरी को गोवत्स राधाकृष्ण जी महाराज (जोधपुर, राजस्थान) द्वारा पाटोत्सव एवं बधाई गायन के साथ हो चुकी है. 13 और 14 फरवरी को गोरेलाल कुंज श्रीधाम वृंदावन (मथुरा) के महंत 1008 स्वामी किशोरदास देवजु महाराज द्वारा सत्संग आशीर्वचन और फिर 15 से 18 फरवरी तक मलूक पीठाधीश्वर स्वामिश्री राजेन्द्र दास देवाचार्य जी महाराज द्वारा भक्तमाल कथा का आयोजन होगा. वहीं, 14 से 18 फरवरी तक राष्ट्रीय पुरस्कार सम्मानित पंडित राम शर्मा (वृंदावन) की रास मंडली द्वारा रासलीला का आयोजन भी होगा. 19 फरवरी को विशाल भंडारे के साथ महोत्सव का समापन किया जाएगा.
होली से एक माह पहले इस शहर में निभाई जाती है यह खास गांव शाही ‘होली का डंडा रोपित’ परंपरा
14 Feb, 2025 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
राजस्थान के ऐसे कई शहर और गांव है जहां आज भी पुरानी परंपराओं को निभाया जा रहा है. उसी के तहत पाली शहर की बात करें तो एक परंपरा है, गांव शाही होली का डंडा रोपने की. होली के ठीक एक महीने पहले इस परंपरा को निभाया जाता है. उसी के तहत पाली शहर के सूरजपोल चौराहे के निकट विधि विधान के साथ पूजा कर गांव शाही होली का डंडा रोपने की परंपरा को इस बार भी निभाया गया. अब इस दौरान लोगों ने चंग की थाप पर फाग गीत गाए. अब अगले एक महीने तक फाग गीत टोलियां यहां चंग की थाप पर गाती नजर आएगी और अगले एक महीने तक मांगलिक कार्यक्रम नहीं होंगे. बता दें कि इस बार 14 मार्च को होली का त्योहार मनाया जाएगा.
इससे पहले सभी आई माता वडेर से चंग बजाते हुए टोली के रूप में गांव चौधरी नारायण चौधरी के नेतृत्व में सूरजपोल चौराहे पर पहुंचे. जहां पिछले करीब 50 साल से गांव शाही होली का डंडा रोपित किया जाता है. वहां युवा टीम द्वारा लाई गई होली का पूजन कर विधि-विधान से उसे रोपा किया गया. खुशी में एक-दूजे का गुड़ खिलाकर शुभकामना दी गई.
होली के एक माह पहले रोपा जाता है होली का डंडा
होली से एक माह पहले होली का डांडा रोपा जाता है. परम्परा के अनुसार, होली का आगाज डांडा रोपण से होता है. आज भी यह परंपरा कई जगह निभाई जाती है. जिस स्थान पर होलिका दहन होता है वहां एक बड़ा सा डंडा लगाया जाता है. यह डंडा भक्त प्रहलाद का प्रतीक होता है. होली का दहन से ठीक पहले इसे सुरक्षित निकाल लिया जाता है.
फाल्गुनी लोक गीतो का महत्व
इस पूरी परंपरा के तहत बात करें तो डांडा रोपण के साथ ही शहर और गांवों में फाल्गुन और होली लोक गीतों की बयार शुरू हो जाएगी. रात तक पाली शहर की गली-मोहल्लों में चंग की थाप के साथ होली के गीतों की धमाल रहेगी. फाल्गुन के महीने में मंदिरों में भी फागोत्सवों की धूम रहेगी. भक्तों द्वारा मंदिरों में भगवान को गुलाल व फूलो से होली खेली जाएगी.
डंडा, भक्त प्रहलाद का है प्रतीक
पाली के रहने वाले नारायण चौधरी ने की मानें तो होली से एक माह पहले होली का डांडा रोपा जाता है. परम्परा के अनुसार, होली का आगाज डांडा रोपण से होता है. आज भी यह परंपरा पाली में निभाई जाती है. जिस स्थान पर होलिका दहन होता है वहां एक बड़ा सा डंडा लगाया जाता है. यह डंडा, भक्त प्रहलाद का प्रतीक होता है. होली का दहन से ठीक पहले इसे सुरक्षित निकाल लिया जाता है.
लड्डू गोपाल को बासी तुलसी का पत्ता चढ़ाना शुभ या अशुभ?
14 Feb, 2025 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में लगभग हर घर में लड्डू गोपाल की पूजा की जाती है और कई घरों में उनके बाल रुप की सेवा भी विधि-विधान से की जाती है. कान्हा के भक्त लड्डू गोपाल की परिवार के सदस्य की तरह सेवा करते हैं. लेकिन लड्डू गोपाल की पूजा के लिए कई नियम बताए गये हैं. कहा जाता है कि अगर इन नियमों का पालन किया जाए तो पूजा का पूर्ण फल प्राप्त होता है.
हालांकि जो लोग अपने घर में लड्डू गोपाल की सेवा करते हैं उनके मन में कोई ना कोई सवाल जरुर रहता है. उन्हीं में से एक संशय जो कि लोगों के मन में रहता है वो है कि क्या हम लड्डू गोपाल को तुलसी की बासी पत्तियां चढ़ा सकते हैं?
दरअसल, गोपाल जी को तुलसी बहुत प्रिय होती है, उन्हें लगाए गये भोग तुलसी के बिना अधूरे माने जाते हैं. इसलिए लड्डू गोपाल को भोग लगाने के लिए उसमें तुलसी के पत्ते डाले जाते हैं. आमतौर पर तुरंत ही तुलसी का पत्ता तोड़ कर भोग में डाल दिया जाता है. लेकिन कई बार किसी कारणवश हम तुलसी का पत्ता नहीं तोड़ पाते तो क्या उन्हें पहले से रखी बासी तुलसी भी चढ़ा सकते हैं. तो आइए इस बारे में विस्तार से जानते हैं ?
क्या लड्डू गोपाल को चढ़ाई जा सकती है बासी तुलसी की पत्तियां?
शास्त्रों में पूजा-पाठ के दौरान शुद्धता का अत्यधिक महत्व माना जाता है. वहीं तुलसी को हमेशा से ही पवित्रता और शुद्धता से जोड़कर देखा जाता है. इसलिए हर अनुष्ठान या छोटी-बड़ी पूजा में तुलसी के पत्तों को रखा जाता है. कई बार बासी तुलसी की पत्तियों का पूजा में इस्तेमाल या भगवान को अर्पित करने की मनाही होती है.
लेकिन अगर आपको रविवार या एकादशी के दिन तुलसी का पत्ता चढ़ाना हो तो इन दिनों आप पहले से टूटी हुई तुलसी की पत्तियां लड्डू गोपाल को चढ़ा सकते हैं. हां, आपको इस बात का खास ख्याल रखना होगा कि तुलसी की पत्तियां सूखी हुई या खराब ना हो क्योंकि ऐसी तुलसी की पत्तियां पूजा के लिए उपयुक्त नहीं मानी जाती है.
बासी तुलसी का उपयोग कैसे करें?
आप किसी कारणवश तुलसी की ताजी पत्तियों को तोड़ने में समर्थ नहीं हैं तो इस स्थिति में आप तुलसी की पत्तियों को एक तांबे के लोटे में जल भरकर उनमें जालकर रखें और फिर इन पत्तियों को आप इस्तेमाल कर सकते हैं.
बासी तुलसी की पत्तियां सुखी हुई नहीं होनी चाहिए. तब ही आप इसे भोग में डालकर लड्डू गोपाल को चढ़ा सकते हैं.
चैत्र नवरात्रि में माता की सवारी दे रही क्या संकेत? जानें क्या होगा देश-दुनिया पर असर
14 Feb, 2025 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म नवरात्रि का पर्व बहुत धूमधाम के साथ मनाया जाता है. साल में चार बार नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है जिसमें एक चैत्र नवरात्रि, दूसरा शारदीय नवरात्रि और दो गुप्त नवरात्रि शामिल हैं. चैत्र नवरात्रि का पर्व बहुत शुभ और महत्वपूर्ण माना जाता है. यह 9 दिनों तक चलता है, जब भक्त कठिन उपवास रखते हैं और मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की विधिवत आराधना करते हैं. चैत्र नवरात्रि हिंदुओं के सबसे प्रमुख त्योहारों में से एक है. इसका समापन राम नवमी के दिन होता है. नवरात्रि शुरू होने से पहले अक्सर लोग के मन में एक सवाल उठता है कि आखिर नवरात्रि में माता रानी की सवारी क्या होगी और उस सवारी का क्या प्रभाव पड़ेगा. तो चलिए इस रिपोर्ट में जानते हैं
चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि की शुरुआत 29 मार्च को शाम 4:27 पर होगी. वहीं, इस तिथि का समापन 30 मार्च को दोपहर 12 बजकर 49 मिनट पर होगा. उदया तिथि के अनुसार इस साल चैत्र नवरात्रि 30 मार्च से शुरू होगी और इसका समापन 07 अप्रैल, को होगा
हाथी पर होगा मां दुर्गा का आगमन
पंडित कल्कि राम बताते हैं कि इस बार चैत्र नवरात्रि का आरंभ रविवार से हो रहा है यानी कि इस साल मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर धरती पर आएंगी. मां दुर्गा का हाथी पर सवार होकर आना बहुत ही शुभ संकेत माना जाता है. धार्मिक मान्यता है कि ऐसा होने लोगों के धन में वृद्धि होती है और देश की अर्थ व्यवसथा में सुधार होता है. मां दुर्गा हाथी से आएंगी और सोमवार 7 अप्रैल को समापन होने पर हाथी से ही प्रस्थान करेंगी.
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
14 Feb, 2025 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- बेचैनी उद्विघ्नता से बचियें, समय पर सोचे कार्य अवश्य ही होंगे।
वृष राशि :- चिन्तायें कम होंगी, सफलता के साधन जुटायें, तथा अचानक लाभ होगा।
मिथुन राशि :- सफलता के साधन जुटायें, व्यावसायिक क्षमता में वृद्धि अवश्य ही होगी।
कर्क राशि :- व्यर्थ धन का व्यय, समय व शक्ति नष्ट होवे, विघटनकारी तत्व परेशान करेंगे।
सिंह राशि :- भोग ऐश्वर्य से स्वास्थ्य नरम हो, विरोधी वर्ग परेशान अवश्य ही करेंगे।
कन्या राशि :- धन समय नष्ट हो, क्लेश अशांति यात्रा से कष्ट अवश्य ही होगा।
तुला राशि :- परिश्रम से सफलता के साधन अवश्य ही जुटाये कार्य बाधा से परेशानी होगी।
वृश्चिक राशि :- चोट आदि से बचिये, क्लेश व अशांति के रोग अवश्य ही बनेंगे, ध्यान रखें।
धनु राशि :- भाग्य का सितारा साथ देगा किन्तु मानसिक क्लेश व अशांति बनेगी।
मकर राशि :- परिश्रम विफल हो मानसिक उद्विघ्नता व्यय तथा यात्रा में कष्ट होगा।
कुंभ राशि :- आकस्मिक घटना से चोट आदि का भय होगा, कार्य का ध्यान अवश्य रखें।
मीन राशि :- अधिकारियों से कष्ट इष्ट मित्र सहायक होंगे, तनाव अवश्य ही बनेगा।
धार्मिक अनुष्ठानों में पत्नी इस कारण बैठती है बाईं ओर
13 Feb, 2025 07:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में विवाह के समय पत्नी को पति के वाम अंग यानी बाईं ओर बैठने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। धार्मिक अनुष्ठानों में भी इसी परंपरा का पालन किया जाता है। हालांकि, इसे केवल धार्मिक नियम मानना पर्याप्त नहीं होगा, क्योंकि इसके पीछे गहरी वैज्ञानिक और ज्योतिषीय अवधारणाएं भी छिपी हैं। पत्नी को वामंगी कहा जाता है, जिसका अर्थ होता है—बाईं ओर स्थित होने वाली। यही नियम पति-पत्नी के शयन के समय भी लागू होता है, जहां पत्नी को पति के बाईं ओर सोने की सलाह दी जाती है।
ज्योतिष और वास्तु शास्त्र के अनुसार, हमारे शरीर में दो प्रमुख नाड़ियां होती हैं—सूर्य नाड़ी और चंद्र नाड़ी। सूर्य नाड़ी, जिसे पिंगला नाड़ी भी कहा जाता है, शरीर के दाहिनी ओर स्थित होती है और यह ऊर्जा, उत्साह, और निर्णय लेने की क्षमता को नियंत्रित करती है। वहीं, चंद्र नाड़ी, जिसे ईड़ा नाड़ी कहते हैं, शरीर के बाईं ओर होती है और यह शीतलता, सौम्यता तथा मानसिक शांति प्रदान करती है।
जब पति-पत्नी एक साथ सोते हैं और पत्नी पति के बाईं ओर होती है, तो यह दोनों की ऊर्जा संतुलित करता है। पति की सूर्य नाड़ी उसकी निर्णय क्षमता और आत्मविश्वास को बढ़ाती है, जबकि पत्नी की चंद्र नाड़ी से शीतलता और मानसिक शांति बनी रहती है। इससे रिश्ते में मधुरता आती है और नकारात्मक ऊर्जा कम होती है। वास्तु शास्त्र के अनुसार, इस स्थिति से पारिवारिक जीवन में सामंजस्य बना रहता है, तनाव कम होता है और आपसी समझ बढ़ती है।
चंद्र नाड़ी की सक्रियता शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी मानी जाती है। यह मन को शांत रखती है, तनाव को कम करती है, पाचन तंत्र को सुधारती है और हृदय की गति को संतुलित रखती है। यदि पति-पत्नी सोने की सही दिशा का पालन नहीं करते हैं, तो ऊर्जा असंतुलित हो सकती है, जिससे अनावश्यक तनाव और मानसिक अस्थिरता उत्पन्न होने की संभावना रहती है।
इस प्रकार, सनातन धर्म में स्थापित यह परंपरा केवल धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी है। पति-पत्नी के बीच प्रेम, सामंजस्य और सकारात्मक ऊर्जा बनाए रखने के लिए वास्तु और ज्योतिष शास्त्र में सुझाई गई यह सोने की स्थिति अत्यंत लाभकारी मानी गई है।
भगवान अयप्पा को समर्पित है सबरीमाला मंदिर
13 Feb, 2025 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
दक्षिण भारत का विश्वप्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर भगवान अयप्पा को समर्पित है। भगवान अयप्पा शिवजी और विष्णु जी के पुत्र माने जाते हैं। इनके जन्म और पालन की कथा बहुत रोचक है।
इनके पुत्र हैं भगवान अयप्पा
भगवान अयप्पा जगपालनकर्ता भगवान विष्णु और शिवजी के पुत्र हैं। दरअसल, मोहिनी रूप में भगवान विष्णु जब प्रकट हुए, तब शिवजी उनपर मोहित हो गए और उनका वीर्यपात हो गया। इससे भगवान अयप्पा का जन्म हुआ। भगवान अयप्पा की पूजा सबसे अधिक दक्षिण भारत में होती है हालांकि इनके मंदिर देश के कई स्थानों पर हैं जो दक्षिण भारतीय शैली में ही निर्मित होते हैं।
इसलिए अयप्पा कहलाते हैं हरिहरन
भगवान अयप्पा को ‘हरिहरन’ नाम से भी जाना जाता है। हरि अर्थात भगवान विष्णु और हरन अर्थात शिव। हरि और हरन के पुत्र अर्थात हरिहरन। इन्हें मणिकंदन भी कहा जाता है। यहां मणि का अर्थ सोने की घंटी से है और कंदन का अर्थ होता है गर्दन। अर्थात गले में मणि धारण करनेवाले भगवान। इन्हें इस नाम से इसलिए पुकारा जाता है क्योंकि इनके माता-पिता शिव और मोहिनी ने इनके गले में एक सोने की घंटी बांधी थी।
इन्होंने किया अयप्पा स्वामी का पालन
पौराणिक कथाओं के अनुसार, अयप्पा के जन्म के बाद मोहिनी बने भगवान विष्णु और शिवजी ने इनके गले में स्वर्ण कंठिका पहनाकर इन्हें पंपा नदी के किनारे पर रख दिया था। तब पंडालम के राजा राजशेखर ने इन्हें अपना लिया और पुत्र की तरह इनका लालन-पालन किया। राजा राजशेखर संतानहीन थे। वर्तमान समय में पंडालम केरल राज्य का एक शहर है।
तब माता का मोह हो गया खत्म
जब अयप्पा राजा के महल में रहने लगे, उसके कुछ समय बाद रानी ने भी एक पुत्र को जन्म दिया। अपना पुत्र हो जाने के बाद रानी का व्यवहार दत्तक पुत्र अयप्पा के लिए बदल गया। राजा राजशेखर, अयप्पा के प्रति अपनी रानी के दुर्व्यवहार को समझते थे। इसके लिए उन्होंने अयप्पा से माफी मांगी।
रानी ने रचा ढोंग
रानी को इस बात का डर था कि राजा अपने दत्तक पुत्र को बहुत स्नेह करते हैं, कहीं वे अपनी राजगद्दी उसे ही न दे दें। ऐसे में रानी ने बीमारी का नाटक किया और अयप्पा तक सूचना पहुंचाई कि वह बाघिन का दूध पीकर ही ठीक हो सकती हैं। उनकी चाल वन में रह रही राक्षसी महिषी द्वारा अयप्पा की हत्या कराने की थी। अयप्पा अपनी माता के लिए बाघिन का दूध लेने वन में गए। जब वहां महिषी ने उन्हें मारना चाहा तो अयप्पा ने उसका वध कर दिया और बाघिन का दूध नहीं लाए बल्कि बाघिन की सवारी करते हुए,मां के लिए बाघिन ही ले आए।
बाघिन की सवारी करते हुए आए बाहर
जब अयप्पा बाघिन की सवारी करते हुए वन से बाहर आए तो राज्य के सभी लोग उन्हें जीवित और बाघिन की सवारी करते देखकर हैरान रह गए। सभी ने अयप्पा के जयकारे लगाए। तब राजा समझ गए कि उनका पुत्र कोई साधारण मनुष्य नहीं है। इस पर उन्होंने रानी के बुरे बर्ताव के लिए उनसे क्षमा मांगी। पिता को परेशान देखकर अयप्पा ने राज्य छोड़ने का निर्णय लिया और पिता से सबरी (पहाड़ियों) में मंदिर बनवाने की बात कहकर स्वर्ग चले गए। मंदिर बनवाने के पीछे उनका उद्देश्य पिता के अनुरोध पर पृथ्वी पर अपनी यादें छोड़ना था।
ऐसे हुआ सबरी में मंदिर का निर्माण
पुत्र की इच्छानुसार राजा राजशेखर ने सबरी में मंदिर का निर्माण कराया। मंदिर निर्माण के बाद भगवान परशुराम ने अयप्पा की मूरत का निर्माण किया और मकर संक्रांति के पावन पर्व पर उस मूरत को मंदिर में स्थापित किया। इस तरह भगवान अयप्पा का मंदिर बनकर तैयार हुआ और तब से भगवान के इस रूप की पूजा हो रही है और मंदिर भक्तों की आस्था का केंद्र है।
इसलिए शिव और विष्णु ने रची लीला
मां दुर्गा द्वारा महिषासुर के वध के बाद जीवित बची उसकी बहन महिषी ने ब्रह्माजी की कठोर तपस्या की। इस तपस्या से प्रसन्न होकर जब ब्रह्मदेव ने उससे वरदान मांगने के लिए कहा तो उसने वर मांगा कि उसकी मृत्यु केवल शिव और विष्णु भगवान के पुत्र के द्वारा ही हो, ब्रह्मांड में और कोई उसकी मृत्यु न कर सके। ऐसा वर उसने इसलिए मांगा क्योंकि ब्रह्माजी ने उसे अमरता का वरदान देने से मना कर दिया था। शिव और विष्णु का पुत्र परिकल्ना से परे था, इसलिए राक्षसी ने यह इच्छा रखी। वरदान मिलते ही उसने उत्पात मचाना शुरू कर दिया। तब भगवान विष्णु को मोहिनी रूप धारण करना पड़ा। ताकि भक्तों का संकट मिटा सकें।
ग्रहों का जीवन के साथ ही व्यवहार पर भी पड़ता है प्रभाव
13 Feb, 2025 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
ग्रहों का व्यक्ति के जीवन के साथ-साथ व्यवहार पर भी सीधा प्रभाव पड़ता है। हमारा व्यवहार हमारे ग्रहों की स्थितियों से संबंध रखता है या हमारे व्यवहार से हमारे ग्रहों की स्थितियां प्रभावित होती हैं। अच्छा या बुरा व्यवहार सीधा हमारे ग्रहों को प्रभावित करता है। ग्रहों के कारण हमारे भाग्य पर भी इसका असर पड़ता है। कभी-कभी हमारे व्यवहार से हमारी किस्मत पूरी बदल सकती है।
वाणी-
वाणी का संबंध हमारे पारिवारिक जीवन और आर्थिक समृद्धि से होता है।
ख़राब वाणी से हमें जीवन में आर्थिक नुक्सान उठाना पड़ता है।
कभी-कभी आकस्मिक दुर्घटनाएं घट जाती हैं।
कभी-कभी कम उम्र में ही बड़ी बीमारी हो जाती है।
वाणी को अच्छा रखने के लिए सूर्य को जल देना लाभकारी होता है।
गायत्री मंत्र के जाप से भी शीघ्र फायदा होता है।
आचरण-कर्म
हमारे आचरण और कर्मों का संबंध हमारे रोजगार से है।
अगर कर्म और आचरण शुद्ध न हों तो रोजगार में समस्या होती है।
व्यक्ति जीवन भर भटकता रहता है।
साथ ही कभी भी स्थिर नहीं हो पाता।
आचरण जैसे-जैसे सुधरने लगता है, वैसे-वैसे रोजगार की समस्या दूर होती जाती है।
आचरण की शुद्धि के लिए प्रातः और सायंकाल ध्यान करें।
इसमें भी शिव जी की उपासना से अद्भुत लाभ होता है।
जिम्मेदारियों की अवहेलना
जिम्मेदारियों से हमारे जीवन की बाधाओं का संबंध होता है।
जो लोग अपनी जिम्मेदारियां ठीक से नहीं उठाते हैं उन्हें जीवन में बड़े संकटों, जैसे मुक़दमे और कर्ज का सामना करना पड़ता है।
व्यक्ति फिर अपनी समस्याओं में ही उलझ कर रह जाता है।
अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में कोताही न करें।
एकादशी का व्रत रखने से यह भाव बेहतर होता है।
साथ ही पौधों में जल देने से भी लाभ होता है।
सहायता न करना-
अगर सक्षम होने के बावजूद आप किसी की सहायता नहीं करते हैं तो आपको जीवन में मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
कभी न कभी आप जीवन में अकेलेपन के शिकार हो सकते हैं।
जितना लोगों की सहायता करेंगे, उतना ही आपको ईश्वर की कृपा का अनुभव होगा।
आप कभी भी मन से कमजोर नहीं होंगे।
दिन भर में कुछ समय ईमानदारी से ईश्वर के लिए जरूर निकालें।
इससे करुणा भाव प्रबल होगा, भाग्य चमक उठेगा।
हनुमान जी की तस्वीर दक्षिण दिशा की ओर लगायें
13 Feb, 2025 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म वास्तु और ज्योतिष की मानी जाए तो किसी भी प्रकार की तस्वीर या मूर्ति को घर में रखने से पहले कुछ बातों का जानना बहुत ज़रूरी है।वास्तु और ज्योतिष के साथ-साथ हिंदू धर्म के पौराणिक ग्रंथों में भी देवी-देवताओं की प्रतिमाएं को रखने से चमत्कारी प्रभाव देती हैं। इसलिए शास्त्रों में इनकी प्रतिमाओं और तस्वीरों को रखने के बहुत से महत्वपूर्ण नियम बताए गए हैं। वास्तुशास्त्र के अनुसार घर में देवी-देवताओं की तस्वीरें लगाने से सभी परेशानियां दूर होती हैं और घर में सुख-शांति बनी रहती है।हनुमान जी की तस्वीर का महत्व और उससे जुड़े कुछ वास्तु नियम-
शास्त्रों के अनुसार हनुमान जी बाल ब्रह्मचारी हैं और इसी वजह से उनकी तस्वीर बेडरूम में न रखकर घर के मंदिर में या किसी अन्य पवित्र स्थान पर रखना शुभ रहता है।
वास्तु वैज्ञानिकों के अनुसार हनुमान जी का चित्र दक्षिण दिशा की ओर देखते हुए लगाना चाहिए क्योंकि हनुमान जी ने अपना प्रभाव अत्यधिक इसी दिशा में दिखाया है जैसे लंका दक्षिण में है, सीता माता की खोज दक्षिण से आरंभ हुई, लंका दहन और राम-रावण का युद्ध भी इसी दिशा में हुआ। दक्षिण दिशा में हनुमान जी विशेष बलशाली हैं।
इसी प्रकार से उत्तर दिशा में हनुमान जी की तस्वीर लगाने पर दक्षिण दिशा से आने वाली हर नकारात्मक शक्ति को हनुमान जी रोक देते हैं। वास्तु अनुसार इससे घर में सुख और समृद्धि का समावेश होता है और दक्षिण दिशा से आने वाली हर बुरी ताकत को हनुमान जी रोक देते हैं।
जिस रूप में हनुमान जी अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर रहे हों ऐसी तस्वीर को घर में लगाने से किसी भी तरह की बुरी शक्ति प्रवेश असंभव है।
सूर्यदेव की लकड़ी की प्रतिमा होती है शुभ
13 Feb, 2025 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मान्यता है कि भगवान गणेश के साथ-साथ सूर्य देव की उपासना करना बहुत फलदायी माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य देव को सभी ग्रहों का राजा माना जाता है। इसीलिए इसकी शुभ-अशुभ स्थिति व्यक्ति के जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव डालती है। वास्तु शास्त्र के अनुसार सूर्य देव की अलग-अलग प्रतिमाएं रखना शुभ माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अपनी इच्छानुसार घर में सूर्य देव की प्रतिमाएं रखी जा सकती हैं। तो आइए आज जानते हैं कि सूर्य देव की कौन सी प्रतिमा को घर में रखा जा सकता है।
लकड़ी की प्रतिमा
ज्योतिष और वास्तु के अनुसार सूर्यदेव की लकड़ी की प्रतिमा घर रखना बहुत अच्छा माना जाता है। मान्यता है कि इसके निरंतर पूजा-पाठ करने से घर के लोगों का समाज में मान-सम्मान बढ़ता है। इसके साथ ही उन्हें भाग्य का साथ मिल जाता है।
मिट्टी की प्रतिमा
जिस जातक की कुंडली में सूर्य दोष हो और उसके सभी कामों में बार-बार बाधाएं आ रही हो तो वो इंसान घर में पत्थर या मिट्टी की सूर्य प्रतिमा रख सकता है। कहा जाता है कि इसकी पूजा करने से हर कार्य में सफलता मिलती है।
तांबे की प्रतिमा
कहते हैं कि घर में सकारात्मकता बनाए रखने के लिए हर किसी को तांबे से बनी प्रतिमा रखनी चाहिए। इसके शुभ असर से सभी परेशानियों से छुटकारा मिल सकता है।
चांदी की प्रतिमा
कार्य क्षेत्र में अधिकार बनाए रखने के लिए चांदी की सूर्य प्रतिमा रख सकते हैं।
सोने की प्रतिमा
सोने से बनी सूर्य प्रतिमा घर में रखने और उसकी पूजा करने से घर में धन-धान्य बढ़ता है, सुख-समृद्धि बनी रहती है।