धर्म एवं ज्योतिष
रामायण के 3 मूल मंत्र... जिन्हें अपनाकर व्यक्ति हो सकता है तनाव मुक्त, आप भी जानें क्या हैं वो खास बातें
31 Dec, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म के ग्रंथों में रामायण का महत्व बहुत अधिक माना जाता है. ये ना केवल एक धार्मिक ग्रंथ है बल्कि इसमें जीवन जीने की कला और सरल, सहज व संघर्षों के बीच सफलता हासिल करने के तरीकों को भी बताया गया है. इसमें भगवान श्रीराम ने कई ऐसे सूत्र को बताया है जिन्हें अपनाकर मानव अपने जीवन को सुख-शांति के साथ जी सकता है और विपरीत समय में भी धैर्य के साथ मुश्किलों का समाधान ढ़ूढ़ सकता है. वहीं रामायण के अनुसार कई ऐसे सूत्र भी बताए गए हैं जिन्हें अपनाकर हम तनाव को दूर कर सकते हैं और शांति से अपना जीवन यापन कर सकते हैं. तो आइए जानते हैं रामायण की वो 3 बातें जो हमारा तनाव दूर कर सकते हैं.
संगत के लिए हमेशा रहें सतर्क
अपनी संगत को लेकर व्यक्ति को हमेशा सतर्क रहना चाहिए. क्योंकि जैसे लोगों के बीच हम रहते हैं हमारी सोच और जीवन पर इसका पूरा असर पड़ता है. रामायण के अनुसार, हमें ऐसे लोगों की संगत में रहना चाहिए जो धर्म के अनुसार काम करते हैं और अपने साथियों की मदद के लिए हमेशा हर परिस्थिती में उनके साथ रहते हैं. अगर संगत अच्छी होती है तो व्यक्ति की सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं.
जैसे रामायण में सुग्रीव ने श्रीराम से मित्रता की और धर्म के मार्ग पर चलने वाले श्रीराम ने सुग्रीव की परेशानी दूर करके उसकी मदद की और फिर उसे किष्किंधा का राजा बनाया. इसके बाद श्रीराम को जब सीता जी की खोज करनी थी तो सुग्रीव ने भी उनकी मदद में पूरी वानर सेना लगा दी.
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धैर्य और सकारात्मकता का पालन करें
भगवान श्रीराम को 14 वर्षों का वनवास मिला उस दिन उनका राज तिलक होने वाला था. लेकिन इस बात का पता चलते ही भी श्रीराम ने अपना धैर्य नहीं खोया. माता कैकई की इच्छा पूरी करने के लिए रघुनंदन ने सकारात्मक सोच के साथ वनवास जाने की तैयारी कर ली. इस मुश्किल परिस्थितियों को भी उन्होंने धैर्य और सकारात्मकता के साथ अपनाया, तो इससे हमें यह सिखना चाहिए कि अगर हम धैर्य और सकारात्मक सोच के साथ जीवन के संघर्षों का सामना करें, तो कभी भी तनाव महसूस नहीं होगा.
काम पूरा न होने तक न करें आराम
रामायण कथा के अनुसार, एक बार हनुमान जी जब माता सीता की खोज में लंका जा रहे थे. तब उन्हें आकाश में उड़ते हुए काफी देर हो चुकी थी तब रास्त में मैनाक पर्वत ने हनुमान जी से विश्राम करने को कहा, लेकिन मैनाक पर्वत की बात सुनकर हनुमान ने कहा था कि जब तक राम काज पूरा नहीं हो जाता, मैं विश्राम नहीं कर सकता. इस प्रसंग से हमें सीख मिलती है कि जब तक काम पूरा न हो जाए, हमें विश्राम नहीं करना चाहिए. काम समय पर पूरा हो जाएगा तो जीवन में कोई तनाव नहीं रहेगा.
जनवरी में लोहड़ी-मकर संक्रांति ही नहीं, यह पर्व भी है खास, सूर्य देव के लिए 4 दिन होता आयोजन, जानें तिथि और महत्व
31 Dec, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भारत विविधताओं का देश है, क्योंकि यहां के लोग विभिन्न भाषाएं बोलते हैं. विभिन्न प्रकार का खाना खाते हैं, भिन्न-भिन्न धर्मों का पालन करते हैं तथा अलग-अलग पहनावा पहनते हैं. ठीक इसी तरह अलग-अलग त्योहार भी मनाते हैं. जी हां, देश के एक भाग में जहां मकर संक्रांति के पर्व को उत्साह से मनाया जाता है. वहीं, मकर संक्रांति को दक्षिण भारत में पोंगल के रूप में मनाया जाता है. दक्षिण भारत में पोंगल का त्योहार सबसे प्रमुख है. यह त्योहार भगवान सूर्यदेव को समर्पित होता है, जो लगातार 4 दिन तक चलता है. इस त्योहार से जुड़ी विशेष परंपरांए निभाई जाती हैं. अब सवाल है कि आखिर पोंगल पर्व कहां मनाया जाता है? पोंगल त्योहार कब मनाया जाएगा? पोंगल पर्व का महत्व क्या है?
पोंगल का चार दिवसीय त्योहार जनवरी के मध्य में तमिल महीने ‘थाई’ के दौरान मनाया जाता है. इस दौरान ही चावल और अन्य मुख्य फसलों की कटाई की जाती है. ज्योतिषियों के अनुसार, नए साल यानी साल 2025 में पोंगल त्योहार हिंदू सौर कैलेंडर के अनुसार 14 से 17 जनवरी तक मनाया जाएगा. इन चार दिन पोंगल पर्व की अलग अलग परंपराएं निभाई जाएंगी. पोंगल पर्व के दौरान लोग भगवान सूर्यदेव की पूजा-पाठ कर कृषि की अच्छी उपज व पैदावार के लिए धन्यवाद करते हैं और एक दूसरे को पोंगल की शुभकामनाएं देते हैं.
पोंगल पर्व के 4 दिनों का महत्व
पोंगल के पहले दिन को भोगी कहा जाता है. इस दिन नए कपड़े पहने जाते हैं और घरों को सजाया जाता है. दूसरा दिन पोंगल का मुख्य दिन होता है और इसे सूर्य पोंगल कहा जाता है. इस दिन सूर्य देव की पूजा की जाती है. इस दिन रंगोली या कोल्लम बनाई जाती है. इसी दिन विशेष खीर तैयार की जाती है. तीसरे दिन को माटू पोंगल कहा जाता है. इस दिन माटू यानी मवेशियों की पूजा की जाती है. पोंगल के चौथे दिन को कन्नम पोंगल कहा जाता है. इस दिन, समुदाय को महत्व दिया जाता है और संबंधों को मजबूत किया जाता है. परिवार वाले भोजन करने के लिए एक जगह एकत्रित होते हैं. बड़ों का आशीर्वाद लिया जाता है.
पोंगल त्योहार का महत्व
पोंगल का पर्व सूर्य के उत्तरायण होने के दिन मनाया जाता है. पोंगल का त्योहार मुख्य रूप से तमिलनाडु में मनाया जाता है, इसके अलावा यह त्योहार पुडुचेरी, श्रीलंका और उन राज्यों में भी मनाया जाता है, जहां तमिल लोग निवास करते हैं. पोंगल का चार दिवसीय त्योहार कृषि व भगवान सूर्य से संबंधित होता है. यह पर्व जनवरी के मध्य मनाया जाता है. पोंगल को चार दिन तक अलग-अलग रूप में मनाया जाता है. पहले दिन जहां लोग घरों की सफाई कर कबाड़ बाहर निकालते हैं. वहीं, दूसरे दिन थोई पोंगल पर सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं. इस दिन विशेष प्रकार के भोजन बनाते हैं. इस पर्व पर भगवान सूर्य देव के साथ इंद्रदेव, गाय व बैलों व खेतों में काम में लिए जाने वाले औजारों की भी पूजा की जाती है.
न रत्न, न यंत्र और न ही रुद्राक्ष...बस इस देव की स्तुति पाठ करें शुरू, जीवन में होंगे हैरान कर देने वाले लाभ!
31 Dec, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
देवों के देव महादेव की महिमा कौन नहीं जानता है. उनको शिव, शंकर, भोले, चन्द्रशेखर, जटाधारी और नागनाथ समेत कई नाम से जाना जाता है. लेकिन, क्या आप जानते हैं शिवजी का एक नाम नटराज भी है. जी हां, भगवान शिव के आनंदमय तांडव को नटराज स्वरूप माना गया है. नटराज को नृत्य का देवता भी कहा जाता है. नटराज दो शब्दों से बना है, पहला नट अर्थात कला व दूसरा राज. यह भगवान शिव की संपूर्ण कलाओं को दर्शाता हैं.
शास्त्रों में भगवान शिव के नटराज स्वरूप का वर्णन मिलता है. यह दर्शाता कि ब्रह्मांड में जीवन, उसकी गति व कंपन सबकुछ भगवान शिव में ही निहित है. धार्मिक मान्यता है कि नटराज स्तुति पाठ करने वाले जातकों के संकट दूर होते हैं और सभी मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं. अब सवाल है कि आखिर नटराज स्तुति पाठ का महत्व क्या है? कैसे करें नटराज स्तुति का पाठ? इस बारे में News18 को बता रहे हैं उन्नाव के ज्योतिषाचार्य ऋषिकांत मिश्र शास्त्री.
नटराज स्तुति पाठ का महत्व
ज्योतिषाचार्य की मानें तो, शिव तांडव के दो रूप हैं. पहला रुद्र तांडव दूसरा आनंद तांडव. शिव के रुद्र तांडव से सृष्टि का विनाश होता है, जबकि उनके आनंदमय तांडव से सृष्टि अस्तित्व में आई है. नृत्य कलाकार नटराज को अपना भगवान मानते हैं. अपनी कला का प्रदर्शन करने से पहले कलाकार नटराज की स्तुति करते हैं और प्रणाम करते हैं. शास्त्रों में नटराज स्तुति के अनेक लाभ बताए गए हैं. कहते हैं कि जो लोग नटराज स्तुति पाठ करते हैं उन पर भगवान शिव की कृपा बनी रहती है. इसके जाप से जीवन में आनंद बना रहता है.कैसे करें नटराज स्तुति पाठ
नटराज स्तुति पाठ का जाप सुबह स्नान करने के बाद नटराज की मूर्ति के समक्ष बैठकर करना चाहिए. नटराज स्तुति पाठ सोमवार को पढ़ना बेहद उत्तम रहता है, क्योंकि सोमवार भगवान शिव का दिन होता है. सभी लोग नटराज स्तुति पाठ करके जीवन को सुखमय बना सकते हैं, लेकिन कला से जुड़े लोगों को रोजाना इस पाठ का जाप करना चाहिए.
।।संपूर्ण नटराज स्तुति पाठ।।
सत सृष्टि तांडव रचयिता
नटराज राज नमो नमः…
हेआद्य गुरु शंकर पिता
नटराज राज नमो नमः…
गंभीर नाद मृदंगना धबके उरे ब्रह्माडना
नित होत नाद प्रचंडना
नटराज राज नमो नमः…
शिर ज्ञान गंगा चंद्रमा चिद्ब्रह्म ज्योति ललाट मां
विषनाग माला कंठ मां
नटराज राज नमो नमः…
तवशक्ति वामांगे स्थिता हे चंद्रिका अपराजिता
चहु वेद गाए संहिता
नए साल के पहले दिन गोड्डा का यह मंदिर श्रद्धालुओं के लिए खास! दर्शन करने से मिलती समृद्धि, जानिए इसके महत्व
30 Dec, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
गोड्डा. गोड्डा जिले के पथरगामा प्रखंड में स्थित योगिनी स्थान मंदिर 52 शक्तिपीठों में से एक मानी जाती है और यह स्थान अपनी ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है, जहां नए साल के पहले दिन बिहार – झारखंड से लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ यहां लगती है. यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके आसपास का प्राकृतिक सौंदर्य भी श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आकर्षित करता है, जहां लोग एक जनवरी को पिकनिक मनाने के लिए भी यहां पहुंचते है.
1 जनवरी को यहां भारी संख्या में श्रद्धालु माता योगिनी के दर्शन के लिए आते हैं. लोगों की मान्यता है कि साल की शुरुआत में माता का आशीर्वाद लेने से जीवन में शांति और समृद्धि बनी रहती है. इसके साथ हर सप्ताह शनिवार और मंगलवार को यहां विशेष पूजा होती है, जिसमें स्थानीय और दूर-दराज के भक्त शामिल होते हैं.
श्रद्धालु माता योगिनी के दर्शन
इसके अलावा मंदिर के आसपास स्थित पहाड़, जंगल और हरियाली भक्तों को वन भोज का आनंद लेने के लिए भी आकर्षित करते हैं, जहां पहाड़ों के किनारे लोग अपने रिश्तेदार, परिवार और दोस्तों के साथ पिकनिक मनाने के लिए आते है. श्रद्धालुओं का विश्वास है कि यहां सच्चे मन से प्रार्थना करने से माता उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं. इस मंदिर का वातावरण भक्तिमय और ऊर्जा से भरपूर होता है, जो हर किसी के दिल को छू लेता है.
वहीं योगिनी स्थान पूजा करने आए कौशल कुमार ने बताया कि वह हर सप्ताह बिहार के पुंसिया से मां योगिनी मंदिर पूजा अर्चना के लिए आते हैं और एक जनवरी को भी पूरा दिन माता के प्रांगण में ही बिताते हैं
24 घंटे घूमता है इस शिव मंदिर के गुंबद का त्रिशूल, हजारों साल पुराना है इतिहास, पद्म पुराण में है वर्णन
30 Dec, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
देश दुनिया में ऐसे तमाम धार्मिक स्थल हैं, जो अपनी अलग-अलग मान्यताओं के कारण प्रसिद्ध हैं. आज हम एक ऐसे मंदिर के बारे में आपको बताने जा रहे हैं जिसकी महिमा अपरंपार है. इस मंदिर के गुंबद पर लगा त्रिशूल घूमता है. जी हां इस मंदिर को विमलेश्वर नाथ महादेव के नाम से जाना जाता है. यहां तक कि यह देश दुनिया का एक अद्भुत मंदिर है. क्योंकि हर शिवालय का अरघा उत्तर दिशा में होता है, तो इसका अरघा दक्षिण और पश्चिम के कोण पर है. यह वही मंदिर है जिसका पद्म पुराण में वर्णन किया गया है. आइए विस्तार से जानते हैं इसके पीछे की रोचक कहानी.
जिले के सदर कोतवाली क्षेत्र अंतर्गत देवकली गांव में स्थित इस प्राचीन शिवालय के बारे में पद्मपुराण के दर्दर क्षेत्र महात्म में वर्णित श्लोकों के अनुसार, यत्र साक्षान्महादेवस्य त्रास्ते विमलेश्वरः अर्थात यहां महादेव साक्षात विमलेश्वर नाम से विराजमान हैं.
इसलिए गांव का नाम पड़ा देवकली…
श्रुति प्रमाण के अनुसार महर्षि भृगु ने यहां यज्ञ किया था, जिसमें आए सभी देव-देवियों को यहीं ठहराया गया था . इसलिए इस गांव का नाम देवकली पड़ा. वैसे तो इस गांव में सप्त सरोवरों के होने का उल्लेख है किन्तु ज्यादातर सरोवर भर जाने के कारण वर्तमान में केवल एक सरोवर है.
उल्टा है इस शिव मंदिर का अरघा
मंदिर के पुजारी दिलीप पांडेय ने बताया कि वह इस मंदिर के लगभग 27 साल से पुजारी हैं. यह मंदिर काफी प्राचीन है. पहले के समय में यह पूरा जंगल हुआ करता था. यहां पर ऋषि मुनियों का निवास था. यह शिवलिंग खुद ही प्रकट हुआ था. ऋषि मुनियों ने विचार किया था कि इसे काशी विश्वनाथ के यहां स्थापित किया जाएगा, लेकिन सुबह होते ही यह शिवलिंग खुद ही मुड़ गया. इस कारण ऋषि मुनियों ने इस शिवलिंग को यही स्थापित कर दिया. हर शिवालय में अरघा उत्तर दिशा में होता है, लेकिन विमलेश्वर नाथ महादेव का अरघा दक्षिण और पश्चिम के कोण पर है.
24 घंटे घूमता रहता है गुंबद का त्रिशूल
पुजारी और श्रद्धालुओं (मिथुन पांडेय अथवा शत्रुघ्न कुमार पांडेय) के मुताबिक इस मंदिर की सबसे बड़ी बात ये है कि इस मंदिर के ऊपर गुंबद पर लगा त्रिशूल सेकंड के सुई की तरह धीरे-धीरे घूमता है. यानी परिक्रमा करता है. इस विमलेश्वर नाथ महादेव से गहरी आस्था जुडी हुई है. जो भी सच्चे मन से इस दरबार में सर झुकाता है उसकी मनोकामना जरुर पूरी होती है. यहां तक की इसमें मत्था टेकने वालों के अंदर अच्छे विचार आने लगते हैं.
जीवन में कभी सफल नहीं हो पाते ऐसे लोग! भगवत गीता में मिलता है इनका वर्णन, ये हैं कामयाब होने के मूल मंत्र
30 Dec, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में श्रीमद्भागवत गीता को बहुत अधिक महत्व दिया गया है. भगवत गीता पवित्र ग्रंथों में से एक मानी जाती है. इसमें भगवान श्रीकृष्ण के उपदेशों का वर्णन है. ये उपदेश स्वयं श्रीकृष्ण ने अर्जुन को महाभारत युद्ध के दौरान दिए थे. खास बात यह है कि भगवत गीता के इन उपदेशों का आज भी लोग पालन करते हैं और जो भी व्यक्ति अपने जीवन में इन उपदेशों का अनुसरण करता है उसे जीवन में खूब तरक्की व सही राह पकड़ने में मदद मिलती है.
भगवत गीता में कुल 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं. जिनमें कर्म करने की शिक्षा दी गई है. साथ ही इन श्लोकों में सांसारिक जीवन जीने की कला को भी दिखाया है, इनका अनुसरण करने वाला व्यक्ति सर्वश्रेष्ठ होता है. इसके साथ ही गीता में श्रीकृष्ण ने यह भी बताया है कि जिन लोगों में कुछ आदतें होती हैं वे लोग कभी जीवन में सफल नहीं हो पाते हैं. तो आइए जानते हैं किस प्रकार के लोग कभी सफल नहीं हो पाते हैं.
अपने डर को खत्म ना करना
अगर कोई व्यक्ति अपने भीतर से डर को खत्म नहीं कर पाता है तो यह उसके जीवन को पीछे की तरफ ढकेल देता है. इस कारण वह आपने जीवन में कभी सफल नहीं हो पाता
मन पर नियंत्रण ना रखना
भगवत गीता मैं बताया गया है कि जो व्यक्ति अपने मन पर नियंत्रण नहीं रख पाता है वह व्यक्ति गलत राह पकड़ लेता है और सफलता उससे दूर चली जाती है. ऐसे में सफल होने के लिए आपको मन पर नियंत्रण रखना होगा.
इच्छाओं पर नियंत्रण ना होना
जब कोई व्यक्ति अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण नहीं रख पाता है और उसकी इच्छाएं उसपर हावी होती है तो गीता के अनुसार, वह व्यक्ति जीवन में कभी सफल नहीं हो पाते हैं. क्योंकि ऐसे लोगों का जीवन इच्छाओं की पूर्ति में ही लग जाता है.
कर्मों पर संदेह करना
जो व्यक्ति अपने कर्मों पर संदेह करता है वह व्यक्ति जाने अनजाने अपना ही नुकसान कर बैठता है. क्योंकि कर्मों पर संदेह करने के चक्कर में वह सही डिसीजन नहीं ले पाता है और वह कभी सफल नहीं हो पाता है.
वस्तुओं के प्रति लगाव रखना
गीता के अनुसार जो भी व्यक्ति किसी भी वस्तु के प्रति बहुत ज्यादा लगाव रखता है वह अपने जीवनकाल में कभी सफल नहीं हो पाता है. क्योंकि किसी भी चीज से अत्यधिक लगाव रखना मोह कहलाता है और मोह में आकर आप सही गलत का फैसला नहीं कर पाते हैं
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
30 Dec, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- स्त्री वर्ग से हर्ष, उल्लास, अधिकारियों का सर्मथन फलप्रद रहेगा।
वृष राशि :- योजनाएं फलीभूत हो, शुभ समाचार संभव होगा, कार्य अवश्य ही हो।
मिथुन राशि :- धन लाभ, आशानुकूल सफलता का हर्ष, बिगड़े कार्य अवश्य हो।
कर्क राशि :- अर्थ व्यवस्था की चिन्ता बनी रहेगी तथा कार्य कुशलता से संतोष हो।
सिंह राशि :- भोग ऐश्वर्य प्राप्ति, कार्यगति उत्तम, सुख साधनों में समय बीतेंगा।
कन्या राशि :- आर्थिक योजनापूर्ण होवे, समय पर सोचे कार्य अवश्य ही बनेंगे।
तुला राशि :- पारिवारिक बधाएं परेशान करें, विरोधी तत्व कष्टप्रद रखे।
वृश्चिक राशि :- मानसिक उद्विघ्नता बेचैनी से बचे तथा समय से लाभान्वित हो।
धनु राशि :- चिन्ताए संभव हो, मनोवृत्ति मनोबल बनाए रखे, कार्य व्यवसाय हो।
मकर राशि :- तनाव क्लेश व अशांति, धन व्यय, अशांति, कष्टप्रद स्थिति होवे।
कुंभ राशि :- मानसिक क्लेश व अशांति, धन व्यय, कष्टप्रद स्थिति बनी रहे।
मीन राशि :- लाभान्वित योजनाएं बनें, आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा।
जब राक्षसों के अत्याचार देख देवी ने किया युद्ध...दर्शन मात्र से धुल जाते हैं पाप! साल में 2 बार लगता है मेला
29 Dec, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सहारनपुर: पश्चिम उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जनपद में शिवालिक की पहाड़ियों में स्थित मां शाकंभरी देवी मंदिर आस्था का बड़ा केंद्र है. मां शाकंभरी को माता दुर्गा का अवतार कहा गया है. दुर्गाशप्तशती में भी मां शाकंभरी की महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है. सहारनपुर जिला मुख्यालय से करीब 45 किलोमीटर दूर बेहट क्षेत्र में स्थित इस मां शाकंभरी शक्तिपीठ को लेकर मान्यता है कि यहां से कोई मुराद खाली नहीं जाती.
मां शाकंभरी देवी मंदिर की कहानी
बताया जाता है कि प्राचीनकाल में भगवान ब्रह्मा से वरदान में चारों वेद पाकर दुर्गम नामक राक्षस ने देवताओं व इंसानों को परेशान करना शुरू कर दिया था. राक्षसों के अत्याचार से त्राहि-त्राहि मच गई. पृथ्वी पर घोर पाप होने के कारण अकाल पड़ गया. तब देवताओं ने माता भगवती की तपस्या की तो आदिशक्ति ने प्रसन्न होकर देवताओं के संकट हरने का संकल्प लिया. आदिशक्ति ने युद्ध कर राक्षसों का संहार किया. जहां पर मां शाकंभरी ने राक्षसों से युद्ध किया था उसको वीर खेत के नाम से जाना जाता है. मां शाकंभरी मंदिर के सामने ही राक्षसों से मां का युद्ध हुआ था. दर्शन करने पहुंचने वाले श्रद्धालु इस वीर खेत में घूमना पसंद करते हैं.
देवताओं ने की थी मां भगवती की तपस्या
मां शाकंभरी मंदिर उत्तर भारत का बड़ा ही आध्यात्मिक, श्रद्धा और आस्था का केंद्र है. साल में दो बार यहां पर बड़े मेलों का आयोजन किया जाता है. मां के दर्शन करने के लिए हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तराखंड, दिल्ली सहित समस्त उत्तर प्रदेश के श्रद्धालु माता के दर्शन करते हैं. मनोकामनाएं मांगते है.
मां शाकंभरी के सम्बंध में ये मान्यता है कि देवासुर संग्राम जिस स्थान पर हुआ था वह स्थान शिवालिक क्षेत्र शिवालिक पहाड़ियां है. मां शाकंभरी देवी जहां स्थापित है उसके ठीक सामने एक मैदान है जिसको वीर खेत के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि दुर्गम नमक दैत्य महिषासुर का वध मां शाकंभरी ने यही पर किया था.
लगती है भक्तों की भीड़
इस मंदिर में आए भक्तों को कहना है कि उनकी जीवन की हर परेशानी का हल यहां पूजा-पाठ करने के बाद मिल जाता है. कई भक्त ऐसे हैं जो लगातार इस मंदिर में पूजा के लिए आते रहते हैं.
नए साल में करें कटंगी की अम्बामाई मंदिर के दर्शन, यहां का झरना है आकर्षण का केंद्र
29 Dec, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
अगर आप नए साल की शुरुआत किसी शांत और आध्यात्मिक स्थल से करना चाहते हैं, तो बालाघाट जिले के कटंगी स्थित अम्बामाई मंदिर आपके लिए आदर्श स्थान हो सकता है. यह मंदिर न केवल अपनी धार्मिक मान्यता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहां का प्राकृतिक सौंदर्य और झरने की मनमोहक धारा इसे खास बनाती है.
प्रकृति की गोद में स्थित है यह मंदिर
अम्बामाई मंदिर बालाघाट जिले के कटंगी से मात्र 8 किलोमीटर की दूरी पर घने जंगलों और ऊंची पहाड़ियों के बीच स्थित है. यह स्थान प्रकृति प्रेमियों और श्रद्धालुओं के लिए समान रूप से आकर्षण का केंद्र है. चारों ओर हरियाली और मंदिर की शांतिपूर्ण वातावरण यहां आने वाले हर व्यक्ति को आत्मिक शांति प्रदान करता है.
1933 में हुई थी स्थापना
अम्बामाई मंदिर की स्थापना के पीछे एक रोचक कहानी है. 1933 में मंगरू शेंदरे नाम के व्यक्ति लकड़ी लेने नहलेसरा के जंगल में गए थे. वहां आराम करते हुए उन्हें एक गुफा में झरने का फूटना और कुछ अद्भुत घटनाएं देखने का सपना आया. जागने पर उन्होंने यह बात कटंगी नगरवासियों को बताई. इसके बाद, महाराष्ट्र के पंढरपुर से अम्बामाई की मूर्ति लाकर मंदिर की स्थापना की गई.
अनोखा झरना जो सालभर बहता है
मंदिर के नीचे स्थित झरना यहां का प्रमुख आकर्षण है. स्थानीय पुजारी के अनुसार, यह झरना पूरे साल बहता है, जबकि आसपास के अन्य झरने सूख जाते हैं. इस झरने के पानी को पवित्र माना जाता है और कहा जाता है कि इसे पीने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.
छठी माई का मंदिर और विशेष मान्यताएं
अम्बामाई मंदिर परिसर में ही छठी माई का मंदिर भी स्थित है. श्रद्धालु यहां अपनी मनोकामना पूरी होने के लिए नारियल को कपड़े में बांधकर रखते हैं. जब उनकी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं, तो नारियल को जल में विसर्जित कर धन्यवाद दिया जाता है.
नहलेसरा बांध
अम्बामाई मंदिर से लगभग 1 किलोमीटर की दूरी पर नहलेसरा बांध स्थित है. यह स्थान सैलानियों के बीच पिकनिक और प्राकृतिक दृश्यावली के लिए लोकप्रिय है. बांध के पास का शांत माहौल और हरियाली इसे एक परफेक्ट वीकेंड गेटवे बनाते हैं.
सालभर रहती है श्रद्धालुओं की भीड़
अम्बामाई मंदिर में श्रद्धालु पूरे साल आते हैं. खासतौर पर नए साल, मकर संक्रांति और नवरात्रि के दौरान यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है. इन दिनों मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना और उत्सव का आयोजन होता है, जो भक्तों के अनुभव को और भी खास बना देता है.
क्यों जाएं अम्बामाई मंदिर?
आध्यात्मिक अनुभव: शांत और धार्मिक माहौल.
प्राकृतिक सुंदरता: घने जंगल, पहाड़ियां, और झरने.
आकर्षक स्थलों की विविधता: छठी माई मंदिर और नहलेसरा बांध.
पवित्र झरने का पानी: जिसे मनोकामना पूर्ति के लिए पिया जाता है.
कैसे पहुंचे?
कटंगी से अम्बामाई मंदिर केवल 8 किलोमीटर की दूरी पर है और यह आसानी से सड़क मार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता है.
शिवजी का किस धातु के बर्तन से करें दूध का अभिषेक
29 Dec, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
व्रत एवं त्योहारों का सनातन धर्म में विशेष महत्व है. इसी क्रम में आज यानी 28 दिसंबर को शनि प्रदोष व्रत भी है. यह साल 2024 का आखिरी प्रदोष व्रत पौष महीने के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन शनिवार को है. इसको शनि प्रदोष व्रत कहा जाएगा. इस दिन भगवान शिवजी की पूजा होती है. धार्मिक मान्यता है कि, इस दिन पूजा-व्रत करने से जातकों को शुभ फलों की प्राप्ति होती है. इस दिन लोग भगवान शिव की कृपा पाने के लिए जलाभिषेक या दूधाभिषेक करते हैं. लेकिन, अभिषेक करते समय आपकी कुछ गलतियां आपको लाभ से वंचित रख सकती हैं. अब सवाल है कि आखिर शिवजी का किस किस धातु के बर्तन से अभिषेक करना चाहिए?
शनि प्रदोष व्रत 2024 का समय और शुभ मुहूर्त
साल का अंतिम शनि प्रदोष व्रत का शुभारंभ 28 दिसंबर 2024 को रात 2 बजकर 26 मिनट से शुरू होगा, जो अगले दिन 29 दिसंबर की सुबह 3 बजकर 32 मिनट पर समाप्त होगा. इस दिन बुध और चंद्रमा ग्रह एक साथ वृश्चिक राशि में रहेंगे. ग्रहों की इस दशा से शुभ फलों की प्राप्ति होती है. प्रदोष व्रत में प्रदोष काल में ही भगवान शिव की पूजा शाम को करने का विशेष महत्व है. इस दिन पूजा का समय शाम 6:43 बजे से रात 8:59 बजे तक रहेगा.
मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव को खुश करने के लिए ज्यादातर लोग सोमवार का व्रत रखते हैं. पुरुष अपनी मनोकामनाएं पूरी करने के लिए व्रत रखते हैं. वहीं, कुंवारी लड़कियां मनपसंद जीवनसाथी पाने के लिए और सुहागिन महिलाएं सदा सौभाग्य रहने की कामना के साथ व्रत का पालन करती हैं. कहा जाता है कि देवताओं में भगवान शिव ही एक ऐसे देव हैं, जिन्हें प्रसन्न करना सबसे आसान है.
इन धातु के बर्तन में अभिषेक करना शुभ
शास्त्रों के अनुसार, पीतल या चांदी के बर्तन से शिवलिंग पर दूध चढ़ाना सबसे उत्तम होता है. पीतल के बर्तन सेहत की दृष्टि से भी अच्छे माने गए हैं. जहां पीतल के बर्तन से शिव का अभिषेक करने से घर में सौभाग्य आता है, वहीं, चांदी के बर्तन से चंद्रमा और शुक्र ग्रह मजबूत होता है.
चांदी का वास्तु: शिव जी के अभिषेक में चांदी का बर्तन यूज करने से घर पर सुख-समृद्धि आती है. यही वजह कि, इस धातु के बर्तन का उपयोग पूजा-पाठ, शादी-विवाह, लेन-देन जैसे कई अवसरों पर किया जा सकता है. दरअसल, चांदी का संबंध चंद्रमा और शुक्र ग्रह से होता है, इसलिए चांदी धातु के प्रयोग से कुंडली में चंद्रमा और शुक्र ग्रह भी मजबूत होते हैं.
पीतल का वास्तु: चांदी के बाद पीतल सबसे शुभ और पवित्र माना गया है. इससे बने बर्तनों का उपयोग पूजा-पाठ या धार्मिक अनुष्ठानों में सबसे ज्यादा किया जाता है. धार्मिक शास्त्र और ज्योतिष के अनुसार, पीतल के बर्तन में भगवान शिव को दूध चढ़ाने से वे प्रसन्न होते हैं और मनचाहा वर देते हैं. इसके साथ ही जीवन में सुख-समृद्धि आती है
इंदौर का चमत्कारी गणेश मंदिर, शादी में आ रही रुकावट होती है दूर, दर्शन करते ही बज जाएंगी शहनाइयां
29 Dec, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
शिव पुत्र श्री गणेश को विघ्नहर्ता कहा गया है. ऐसे में आपके विवाह में देरी हो रही है या फिर शादी तय हो जाने के बाद भी रिश्ता टूट जाता है, तो इंदौर के इस गणेश मंदिर में पहुंच जाएं. लोकल 18 जरिए हम आपको बताते हैं कि कई बार ऐसा होता है कि रिश्ते तो आ रहे होते हैं, लेकिन कहीं बात नहीं बन पा रही है, तो ऐसी समस्याओं से निपटने के लिए इंदौर के lord gan है. जिनके पास अपनी अर्जी लाने से विवाह होने में आ रही सभी तरह की अड़चन दूर हो जाती हैं, तो विवाह के शुभ योग बनने लग जाते हैं. शहर के जूनी इंदौर शनि मंदिर मेन रोड पर गणपति बप्पा का यह एक अद्भुत, अनोखा और प्राचीन मंदिर स्थापित है. यहां अर्जी तो किसी भी दिन के जा सकते हैं, जिसे बप्पा पूरा करते हैं. लेकिन बुधवार के दिन किए जाने वाले ये उपाय काफी लाभकारी माने जाते हैं और इनका फल शीघ्र ही मिलता है. आइए जानते हैं शीघ्र विवाह के लिए किए जाने वाले इस उपाय के बारे.
पंडित महेन्द्र व्यास ने बताया कि 40 साल पहले जब मंदिर में नारियल वाले गणेश जी को स्थापित किया तो तब से धीरे धीरे भक्तों ने जुड़ना शुरू किया. क्योंकि उनकी मानते पूरी होने लगी. जिन युवाओं का विवाह नहीं हो रहा या फिर शादी तय हो जाने के बाद भी रिश्ता टूट जाता है, तो ऐसे में नारियल वाले गणेश उन भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं. अब तक यहां से हजारों शादियां हो चुकी हैं. पहले भक्त अर्जी लाते हैं, फिर जब रिश्ता पक्का होता है तब वह शादी के कार्ड के जरिए न्यौता देते हैं, फिर वह कार्ड तब तक यहां पर रहता है, जब तक कि नवविवाहित जोड़ा आकर उस कार्ड को हटाकर एकाशी गणेश जी से आशीर्वाद नहीं लेता. इस शादी की सफलता और भविष्य भी महाराज स्वयं ही तय करते हैं और दुनिया इसे देखती हैं.
शादी के कार्ड के जरिए न्यौता
मंदिर भक्त और गणेश महाराज के बीच कोई भी मीडियटर नहीं है. यहां केवल अपनी मनोकामना को मन में रखकर बुधवार के दिन लाना है. जो केवल मन के जरिए गणेश जी को बताना है. किसी तीसरे से उसका जिक्र नहीं करना है. बुधवार के दिन मंदिर में पानी वाला नारियल, सुपारी, डंठल वाला पान, 16 रुपए राशि भेंट के रूप में देकर अर्जी लगाने वाले की गणेशजी हर मनोकामनाएं पूरी होने की मान्यता है.
चमत्कारी गणेशजी के धाम में एम.बी.ए., डॉक्टर, इंजीनियर, काम्पीटेटिव परीक्षा देने वाले लोग गणपति जी के सामने माथा टेकने तथा सफलता की आस में आते है. बेरोजगार यहाँ बायोडाटा लिखित परीक्षा, इन्टरव्यू के पहले अर्जी लगाने आते है. जिन महिलाए संतान मांगने के लिए भी यह आती हैं जिन्हें महाराज कभी निराश नहीं करते.
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
29 Dec, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- कुटुम्ब की चिन्ताएं मन व्यग्र रखे, किसी के कष्ट के कारण थकावट बढ़ेगी।
वृष राशि :- भाग्य का सितारा साथ देगा, बिगड़े हुए कार्य अवश्य ही बनेंगे।
मिथुन राशि :- इष्ट मित्र से तनाव, क्लेश व अशांति तथा कार्य व्यवसाय में बाधा अवश्य हो।
कर्क राशि :- दैनिक कार्यगति अनुकूल, परिश्रम अधिक करना पड़ेगा।
सिंह राशि :- योजनाएं फलीभूत हो, सुख के साधन बनें, तनाव क्लेश व अशांति होगी।
कन्या राशि :- बड़े-बड़े लोगों से मेल मिलाप एवं समस्याएं सुधरे, सुख के कार्य अवश्यह हो।
तुला राशि :- साधन सम्पन्नता के योग बनें, कुटुम्ब में क्लेश तथा धन की हानि हो।
वृश्चिक राशि :- असमंजस बना रहे, प्रभुत्व वृद्धि तथा कार्यगति अनुकूल बनी रहे।
धनु राशि :- असमर्थता का वातावरण क्लेश युक्त रहे, अवरोध, विवाद से बचकर चले।
मकर राशि :- धन लाभ, आशानुकूल सफलता का हर्ष होवे तथा बिगड़े कार्य अवश्य बनें।
कुंभ राशि :- इष्ट मित्र सुख वर्धक हो, बड़े-बड़े लोगों से मेलमिलाप होवेगा, ध्यान दें।
मीन राशि :- मनोवृत्ति संवेदनशील हो, धन और शांति नष्ट हो, मानसिक व्यग्रता से बचेंगे।
शनि प्रदोष व्रत से पाएं संतान, शनिदेव हरेंगे दुख, जानें मुहूर्त, भद्रा समय, राहुकाल, दिशाशूल
28 Dec, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
शनि प्रदोष व्रत शनिवार को है. उस दिन पौष कृष्ण त्रयोदशी तिथि, अनुराधा नक्षत्र, शूल योग, गर करण, पूर्व का दिशाशूल, स्वर्ग की भद्रा और वृश्चिक राशि में चंद्रमा है. शनि प्रदोष व्रत के दिन शाम के समय में भगवान शिव की पूजा करते हैं. शिव कृपा से व्यक्ति के दुख दूर होते हैं और नि:संतान लोगों को पुत्र की प्राप्ति होती है. जो लोग प्रदोष व्रत रखते हैं, उनको सुख, समृद्धि, धन, संपत्ति की प्राप्ति होती है. शनि प्रदोष व्रत की पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 5:33 बजे से रात 8:17 बजे तक है. पूजा के समय भगवान भोलेनाथ को गंगाजल, बेलपत्र, अक्षत्, भांग, धतूरा, शहद, चंदन, फूल, माला, धूप, दीप, गंध आदि अर्पित करते हैं. पूजा के दौरान शनि प्रदोष व्रत की कथा जरूर पढ़ें. पूजा का समापन शिव जी की आरती से करें.
शनि प्रदोष के साथ शनिवार का व्रत भी है. इस दिन आपको शनि मंदिर में जाकर पूजा करनी चाहिए. शनि देव को काला तिल, सरसों का तेल, काले वस्त्र, नीले रंग के फूल, शमी के पत्ते आदि अर्पित करना चाहिए. शनि चालीसा और शनि रक्षा स्तोत्र का पाठ करें. गरीब और जरूरतमंद लोगों को अन्न, वस्त्र, कंबल, दवाएं, लोहे के बर्तन आदि का दान करें. मरीजों की सेवा करें. अपने नौकरों के साथ अच्छा व्यवहार करें. इन सब कार्यों से शनि देव प्रसन्न होते हैं. शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या में व्यक्ति को लाभ होता है. शनि देव की कृपा पाने का सबसे आसान उपाय है कि आप धर्म के मार्ग पर चलें और सत्य बोलें. गलत कार्यों से दूर रहें. वैदिक पंचांग से जानते हैं सूर्योदय, चंद्रोदय, शुभ मुहूर्त, भद्रा, चौघड़िया समय, राहुकाल, दिशाशूल, आदि.
आज का पंचांग, 28 दिसंबर 2024
आज की तिथि- त्रयोदशी – 03:32 ए एम, दिसम्बर 29 तक, उसके बाद चतुर्दशी
आज का नक्षत्र- अनुराधा – 10:13 पी एम तक, फिर ज्येष्ठा
आज का करण- गर – 03:04 पी एम तक, वणिज – 03:32 ए एम, दिसम्बर 29 तक
आज का योग- शूल – 10:24 पी एम तक, उसके बाद गण्ड
आज का पक्ष- कृष्ण
आज का दिन- शनिवार
चंद्र राशि- वृश्चिक
सूर्योदय-सूर्यास्त और चंद्रोदय-चंद्रास्त का समय
सूर्योदय- 07:13 ए एम
सूर्यास्त- 05:33 पी एम
चन्द्रोदय- 05:47 ए एम, दिसम्बर 29
चन्द्रास्त- 03:08 पी एम
शनि प्रदोष मुहूर्त
ब्रह्म मुहूर्त: 05:23 ए एम से 06:18 ए एम
अभिजीत मुहूर्त: 12:02 पी एम से 12:44 पी एम
विजय मुहूर्त: 02:06 पी एम से 02:48 पी एम
शनि प्रदोष पूजा मुहूर्त: शाम 5:33 बजे से रात 8:17 बजे तक
दिन का शुभ चौघड़िया मुहूर्त
शुभ-उत्तम: 08:30 ए एम से 09:48 ए एम
चर-सामान्य: 12:23 पी एम से 01:40 पी एम
लाभ-उन्नति: 01:40 पी एम से 02:58 पी एम
अमृत-सर्वोत्तम: 02:58 पी एम से 04:15 पी एम
रात का शुभ चौघड़िया मुहूर्त
लाभ-उन्नति: 05:33 पी एम से 07:15 पी एम
शुभ-उत्तम: 08:58 पी एम से 10:41 पी एम
अमृत-सर्वोत्तम: 10:41 पी एम से 12:23 ए एम, दिसम्बर 29
चर-सामान्य: 12:23 ए एम से 02:06 ए एम, दिसम्बर 29
लाभ-उन्नति: 05:31 ए एम से 07:13 ए एम, दिसम्बर 29
अशुभ समय
राहुकाल- 09:48 ए एम से 11:05 ए एम
गुलिक काल- 07:13 ए एम से 08:30 ए एम
यमगण्ड- 01:40 पी एम से 02:58 पी एम
दुर्मुहूर्त- 07:13 ए एम से 07:54 ए एम, 07:54 ए एम से 08:36 ए एम
भद्रा: कल, 03:32 ए एम से 07:13 ए एम तक
भद्रा का वास: स्वर्ग में
दिशाशूल- पूर्व
रुद्राभिषेक के लिए शिववास
भोजन में – 03:32 ए एम, दिसम्बर 29 तक, उसके बाद श्मशान में.
नये साल पर करना चाहते हैं बैद्यनाथ मंदिर की पूजा? तो जान लें ये बदलाव, वरना होगी परेशानी...
28 Dec, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
धीरे-धीरे हमलोग इस साल को पीछे छोड़, नये साल यानी 2025 मे प्रवेश करने जा रहे हैं. वहीं नए साल का पहला दिन हर कोई खास बनाना चाहता है. लोग अपने-अपने तरीके से नए साल की शुरुआत करना चाहते हैं. कोई पार्टी मना कर, तो कोई मंदिर मे पूजा-पाठ करके.
वहीं देवघर के बैद्यनाथ मंदिर मे साल के पहले दिन भगवान भोलेनाथ का आशीर्वाद पाने देश के कोने-कोने से श्रद्धालू जुटते है. अगर साल के पहले दिन आप भी आना चाहते है बैद्यनाथ मंदिर पूजा करने तो यह चीजें जान लें वरना दिक्क़तहो सकती है.
नये साल के पहले दिन होगी यह बदलाव
12 ज्योतिर्लिंग मे से एक देवघर के बैद्यनाथधाम ज्योतिर्लिंग शामिल है. यहां पर पूजा आराधना करने से मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है. इसलिए इस ज्योतिर्लिंग को मनोकामना लिंग भी कहते हैं. साल के पहले दिन यहां पूजा करने लाखों श्रद्धालू पहुंचते हैं. जिला प्रशासन और मंदिर प्रशासन के द्वारा कुछ बदलाव किये जाते हैं. भक्तो की कतार क्यू काम्प्लेक्स से शुरु होगी. कतार भोर 03 बजे से ही शुरु हो जाती है. भीड़ को देखते हुए जगह-जगह पर बैरीकैडिंग किया जाता है. साथ ही शीघ्रदर्शनम कूपन के कीमत को भी बढ़ाया जाता है.
शीघ्रदर्शनम कूपन की यह रहेगी कीमत
कहा की बैद्यनाथ मंदिर मे पूजा पाठ के लिए शीघ्रदर्शनम कूपन की व्यवस्था है. इस व्यवस्था के माध्यम से श्रद्धांलू कूपन खरीदकर बहुत कम समय मे मंदिर के गर्भगृह मे पहुंच सकते हैं. इस कूपन की कीमत आम दिनों मे 300 रूपए होती है. लेकिन नये साल के पहले इसकी कीमत बढाकर दिन के 600 रूपए कर दिया जाता है.
इतने बजे खुलेंगे पट
नये साल के पहले दिन के भीड़ को ध्यान में रखते हुए मंदिर का पट 03 बजकर 30 मिनट पर खोल दिया जाएगा. पहले सरदार पंडा के द्वारा काँचा जल अर्पण किया जाएगा. उसके बाद विधि से भगवान शिव के शिवलिंग की पूजा की जाएगी. उसके बाद ही आम श्रद्धालू के लिए पट खोला जाएगा.
कन्फ्यूजन हो गया खत्म...इस दिन मनाई जाएगी मकर संक्रांति! ये है दान-पुण्य का शुभ मुहूर्त
28 Dec, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
इस बार मकर संक्रांति के पर्व में कोई कंफ्यूजन नहीं रहेगी, क्योंकि पिछली साल की तरह 14 और 15 जनवरी का कन्फ्यूजन इस बार खत्म हो गया है. पंचांग के अनुसार, इस बार 14 जनवरी 2025 को मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाएगा. यह पर्व शीत ऋतु के खत्म होने और बसंत ऋतु के शुरुआत की सूचना देता है.
2024 पंचांग के अनुसार, मकर संक्रांति का पर्व 15 जनवरी को मनाया गया था, लेकिन इस बार 14 जनवरी 2025 को मनाया जाएगा. इसके अलावा साल 2019 में भी मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनाई गई थी. ऐसी सूर्य की राशि परिवर्तन रात्रि में होने के कारण होती है. अब 2025 और 2026 में भी 14 जनवरी को ही मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाएगा. पंडित पवन कुमार ने लोकल 18 को बताया कि मकर संक्रांति का पर्व हिंदू धर्म के लिए विशेष महत्व वाला होता है. हिंदू धर्म के अनुसार, ये त्योहार अंग्रेजी साल के नए वर्ष का पहला हिंदू त्योहार माना जाता है.
सूर्यदेव बदलते हैं राशि
पंडित पवन कुमार ने बताया कि जब सूर्य एक राशि से दूसरे राशि में प्रवेश करता है, तो इसे संक्रांति कहते हैं. जब सूर्यदेव धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तो उसी दिन मकर संक्रांति मनाई जाती है. पंचांग के मुताबिक, इस बार मकर संक्रांति 14 जनवरी को है. इस दिन मंगलवार पड़ रहा है. इस दिन भगवान सूर्य का सुबह 9 बजे मकर राशि पर प्रवेश होगा.
यह रहेगा शुभ समय
गंगा स्नान और दान का पुण्य समय सुबह 9 बजे से शुरू होगा और शाम के 5.55 मिनट तक रहेगा. इस शुभ मुहूर्त पर गंगा स्नान और दान करना लाभकारी होगा. इस पर्व का विशेष महत्व माना गया है. अभी खरमास शुरू है, जिसके चलते 14 जनवरी तक शुभ कार्य नहीं होंगे. मकर संक्रांति के दिन धनु राशि से घर बदलकर सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेंगे, तब जाकर खरमास समाप्त होगा, मांगलिक कार्य फिर शुरू होंगे.