धर्म एवं ज्योतिष
रावण की मौत के बाद नाराज शूर्पणखा क्यों सीता से मिलने गई, फिर कैसे बीता उसका बचा जीवन
23 Apr, 2025 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
राम – रावण युद्ध खत्म हो चुका था. रावण मारा जा चुका था. उसके बेटों समेत पराक्रमी भाई भी युद्ध में मारे गए. सेना तहस – नहस हो गई. राम युद्ध जीत चुके थे. सीता अभी अशोक वाटिका में ही थीं. लेकिन उनके पास पति राम की जीत का समाचार पहुंच चुका था. इस बीच की उनका राम से मिलन होता, उससे पहले ही नाराज शूर्पणखा उनसे मिलने पहुंची. और तब क्या हुआ. इसके बाद जब वह वापस लौटी तो उसने अपना बाकी जीवन कैसे गुजारा.
रावण की मृत्यु के बाद शूर्पणखा का सीता से मिलने का प्रसंग मुख्य रूप से क्षेत्रीय रामायणों (जैसे कंब रामायण) और लोककथाओं में मिलता है. ये मुलाकात लंका की अशोक वाटिका में ही हुई. पूरे युद्ध के दौरान शूर्पणखा लंका में ही थी. मना रही थी कि उसके भाई रावण की जीत हो लेकिन जो कुछ हुआ, वो उसके लिए बहुत बड़ा झटका था.
तमतमाती क्रुद्ध शूर्पणखा सीता के पास पहुंची
युद्ध के नतीजों से वह घबराई भी हुई थी और रावण के मारे जाने से नाराज भी. क्रुद्ध शूर्पणखा को मालूम था कि उसका सबकुछ खत्म हो चुका है लेकिन तब भी उसकी अकड़ गई नहीं थी. वह तमतमाते हुए जब सीता के पास पहुंची, उन्हें बहुत खरीखोटी सुनाई. अपशब्द कहे.
सीता को रावण की मृत्यु और वंश के विनाश का जिम्मेदार ठहराया
शूर्पणखा ने सीता को रावण की मृत्यु और राक्षस वंश के विनाश के लिए जिम्मेदार ठहराया. कुछ कथाओं के अनुसार, वह सीता से मिलने गई क्योंकि वह सीता को अपने भाई रावण की मृत्यु का कारण मानती थी. उसका मानना था कि सीता के कारण ही राम और रावण के बीच युद्ध हुआ. वह या तो सीता से बदला लेने और उन्हें अपमानित करने के इरादे से गई थी.
वह सीता पर ये भी दोष लगाती है कि उसकी सुंदरता और आचरण ने रावण को मोहित किया और युद्ध को भड़काया. वह सीता को कोसती है. उनके प्रति नफरत जाहिर करती है.
फिर सीता उसकी नाराजगी दूर करती हैं
सीता ने शांतिपूर्वक उसकी सारी बात सुनी. फिर करुणापूर्ण ढंग से जवाब दिया. बजाए नाराजगी के सीता उससे सहानुभूति दिखाती हैं. सीता के जवाब से शूर्पणखा का क्रोध शांत हुआ. वह उसे समझाती हैं कि युद्ध और रावण की मृत्यु तो उसके कर्मों का फल थी. ये तो होना ही था.
सीता का जवाब सुनकर उसका दुख झलकने लगा. वह दुखी थी कि अब क्या करेगी. उसका तो दुनिया में कोई नहीं. उसकी पीड़ा जाहिर थी. जाते जाते उसने मान लिया कि गलती उसकी थी. अगर वह अपनी शिकायत लेकर रावण के पास नहीं आती, उसे नहीं उकसाती तो ना सीता का हरण होता और ना युद्ध और ना युद्ध का ये परिणाम..ना ये विध्वंस.
सीता से माफी मांगती है
कुछ कथाएं कहती हैं कि वह सीता से माफी मांगती है. अपनी गलती स्वीकार करती है. हालांकि, कुछ अन्य संस्करणों में कहा गया है कि वह अपमानित होकर वापस लौट जाती है.
क्या उसने सीता को श्राप दिया
कुछ कथाओं (विशेषकर क्षेत्रीय रामायणों) में ये कहा गया कि शूर्पणखा ने सीता को श्राप दिया कि “जिस तरह मेरे परिवार का नाश हुआ, वैसे ही तुम्हारा भी वियोग होगा”. इसके बाद ही राम ने सीता का परित्याग किया.
वह तपस्वी बन गई
कुछ लोककथाओं के अनुसार, युद्ध के बाद और सीता से मिलने के बाद वह लंका छोड़कर जंगलों या दक्षिण भारत के किसी एकांत स्थान पर चली गई. वहां उसने तपस्वी जीवन अपनाया.बाद में उसकी स्वाभाविक मृत्यु हो जाती है.
कुछ दक्षिण भारतीय लोककथाओं में शूर्पणखा को एक ऐसी राक्षसी के रूप में चित्रित किया गया है, जो अपने परिवार के नाश के बाद भटकती रही. कुछ कथाओं में उसे एक त्रासदीपूर्ण चरित्र के रूप में दिखाया गया, जो अपने कर्मों के बोझ तले दब गई.
तपस्वी के रूप में देह त्याग दी
कुछ दक्षिण भारतीय परंपराओं में ये भी मानते हैं कि शूर्पणखा ने अपने कर्मों का प्रायश्चित करने के लिए तपस्या की. तपस्वी के रूप में देह त्याग दी. वैसे वाल्मीकि रामायण में शूर्पणखा के जीवन के अंत या मृत्यु का कोई उल्लेख नहीं है. कंब रामायण (तमिल) शूर्पणखा के सीता से मिलने और उसके बाद के जीवन के कुछ संकेत मिलते हैं, लेकिन मृत्यु का स्पष्ट वर्णन नहीं है.
वैसे कुछ समकालीन लेखकों जैसे चित्रा बनर्जी दिवाकरुनी ने अपनी किताब द फारेस्ट ऑफ एनचेंटमेंट्स में (The Forest of Enchantments) में शूर्पणखा के दृष्टिकोण से इस मुलाकात के बारे में लिखा है.
चित्रा बनर्जी दिवाकरुनी की किताब में शूर्पणखा को जटिल चरित्र के रूप में दिखाया है. उसे एक ऐसी महिला के रूप में दिखाया जाता है, जो अपने अपमान (नाक-कान कटने) और परिवार के नुकसान के बाद भी जीवित रहने की कोशिश करती है. कुछ व्याख्याओं में वह अपने अंतिम दिन तपस्या या आत्म-चिंतन में बिताती है.
रावण की बहन थी शूर्पणखा, कैसे हुई राम-लक्ष्मण पर मोहित
शूर्पणखा रावण की बहन थी. वह वन में राम, लक्ष्मण और सीता को देखती है. वह देखते ही राम पर मोहित हो जाती है. उनसे विवाह का प्रस्ताव रखती है. राम और लक्ष्मण दोनों ही इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर देते हैं.
इसके बाद जब शूर्पणखा क्रोधित होकर सीता को मारने की कोशिश करती है, तब लक्ष्मण उसे रोकते हैं. उसकी नाक और कान काट देते हैं. अपमानित होकर वह अपने भाई रावण के पास जाती है और उसे राम से बदला लेने के लिए उकसाती है. इसके बाद ही रावण ने सीता का हरण किया. फिर राम अपनी वानर सेना लेकर लंका पहुंचे. युद्ध हुआ और इसमें रावण हारा और मारा गया.
भद्रा, शनि, यमराज के अलावा 11 बच्चों के पिता हैं सूर्यदेव, ज्यादातर केवल नाम से बदनाम
23 Apr, 2025 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
वैदिक ज्योतिष में सूर्यदेव को ग्रहों का राजा बताया गया है और पृथ्वी पर ऊर्जा का मुख्य स्रोत सूर्यदेव ही हैं. वैदिक काल के लोगों द्वारा सबसे पहले पहचाने गए देवता सूर्य हैं और सूर्य के शुभ प्रभाव से मनुष्य के मान-सम्मान और प्रतिष्ठा में अच्छी वृद्धि होती है. सूर्यदेव को भगवान विष्णु का अंश भी माना जाता है इसलिए सूर्यदेव को सूर्य नारायण भी कहा जाता है. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, सूर्यदेव के पिता का नाम महर्षि कश्यप और माता का नाम अदिती था. माता अदिती की कोख से जन्म लेने के कारण सूर्यदेव का नाम आदित्य पड़ा. आज हम आपको सूर्यदेव के परिवार के बारे में बताएंगे और उनकी संतान आखिर पृथ्वी लोक पर किन वजह से बदनाम हैं.
सूर्यदेव की दो पत्नियां
धार्मिक ग्रंथों में सूर्यदेव की दो पत्नियों का वर्णन मिलता है, एक का नाम संज्ञा और दूसरी का नाम छाया. संज्ञा और छाया से सूर्यदेव को 10 संतान की प्राप्ति हुई और एक संतान कुंति से. सूर्यदेव का तेज बहुत अधिक था, जिसकी वजह से सूर्यदेव की पहली पत्नी संज्ञा ने छोड़ दिया था क्योंकि संज्ञा सूर्यदेव के तेज को सहन नहीं कर पा रही थीं. इसके बाद संज्ञा के पिता और सूर्यदेव के ससुर विश्वकर्मा ने सूर्य के तेज को छांट काटकर कम कर दिया, इसके बाद सूर्यदेव के तेज में कमी आई.
सूर्यदेव ने लिया अश्व का रूप
सूर्यदेव को छोड़ने के बाद संज्ञा पृथ्वी लोक पर आ गईं और एक अश्विनी यानी घोड़ी के रूप में रहती थी. अपनी पत्नि को मनाने के लिए सूर्यदेव ने भी अश्व के रूप धारण कर लिया और फिर उनसे दो पुत्र की प्राप्ति हुई, जो अश्विनी कुमार कहलाते हैं. एक पौराणिक कथा यह भी मिलती है कि रामायण काल में सुग्रीव और महाभारत काल में कुंति से कर्ण का जन्म सूर्यदेव की वजह से हुआ था.
संज्ञा से हुई संतान
यमराज – मृत्यु के देवता
यमुना नदी- जो पूरे विश्व में प्रसिद्ध नदी है
वैवस्वत मनु – जो वर्तमान मन्वन्तर के अधिपति हैं.
अश्विनी कुमार – जिन्हें चिकित्सा के देवता के रूप में जाना जाता है.
सूर्यपुत्र रेवंत – एक अन्य पुत्र है.
छाया से हुई संतान
शनिदेव – न्याय के देवता और कर्म के कारक ग्रह
ताप्ती – सूर्यदेव की पुत्री हैं और पृथ्वी पर नदी के रूप में रहती हैं.
विष्टि (भद्रा) – सूर्यदेव की अन्य पुत्री, जो काल में आती हैं.
सावर्णि मनु – जो एक और पुत्र हैं.
महाभारत और रामायण काल
सुग्रीव – रामायण काल में बलशाली वानर हैं, उनकी माता का नाम ऋक्षराज और पिता का नाम सूर्यदेव है.
कर्ण – महाभारत काल में एक शक्तिशाली योद्धा थे और कर्ण की माता कुंती व पिता सूर्य देव थे.
सूर्य पुत्र और पुत्री, नाम की वजह से बदनाम
यमराज मृत्यु के देवता हैं, जिनसे पृथ्वी लोक के वासी काफी डरते हैं. वहीं शनिदेव, जो छाया के पुत्र हैं. शनिदेव की महादशा व साढ़ेसाती व ढैय्या के अशुभ प्रभाव से मनुष्य को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है इसलिए हर कोई चाहता है कि उन पर शनि की महादशा का प्रभाव ना हो. इस वजह से शनिदेव से मनुष्य काफी डरते हैं. सूर्यदेव की पुत्र के अलावा पुत्री से भी मनुष्य काफी डरते हैं और उनका नाम है विष्टि या फिर उनको भद्रा भी कहा जाता है. भद्रा शब्द का अर्थ शुभ है लेकिन ज्योतिष में भद्रा काल को एक अशुभ समय माना गया है. इस काल में किया गया कोई भी कार्य हमेशा अशुभ फल ही देता है. रक्षाबंधन, होली समेत सभी पर्व में की जाने वाली पूजा अर्चना में भद्रा का विशेष ध्यान रखा जाता है और कोई भी शुभ कार्य करने से भद्रा को देखा जाता है.
कब है मोहिनी एकादशी? वैशाख माह में शुक्ल पक्ष के इस व्रत का बड़ा महत्व, जानें तिथि, मुहूर्त, पारन का समय
23 Apr, 2025 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत रखने का विशेष महत्व है. मान्यता है कि एकादशी का व्रत रखने से हर मनोकामना पूर्ण होती है. साल भर में कुल 24 एकादशी होती हैं, यानी हर महीने में दो एकादशी. एक कृष्ण पक्ष में और दूसरी शुक्ल पक्ष में. हर एकादशी का अपना अलग महत्व है.
एकादशी के दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए. फिलहाल वैशाख का महीना चल रहा है और इस महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोहिनी एकादशी कहा जाता है. आइए जानते हैं देवघर के ज्योतिषाचार्य से कि साल 2025 की मोहिनी एकादशी कब है, पूजा का शुभ मुहूर्त और इसका महत्व क्या है?
इस दिन मनाई जाएगी मोहिनी एकादशी
देवघर के पागल बाबा आश्रम स्थित मुद्गल ज्योतिष केंद्र के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित नंदकिशोर मुद्गल ने लोकल 18 को बताया कि वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मोहिनी एकादशी कहा जाता है. इस साल 8 मई को मोहिनी एकादशी का व्रत रखा जाएगा. मोहिनी एकादशी के दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा करने से सभी पापों का नाश होता है. मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है. जीवन में सुख-शांति आती है और मन की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं.
कब से शुरुआत
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि ऋषिकेश पंचांग के अनुसार, मोहिनी एकादशी तिथि की शुरुआत 7 मई बुधवार प्रातः 10 बजकर 28 मिनट से हो रही है. समापन अगले दिन यानी 8 मई गुरुवार प्रातः 11 बजकर 43 मिनट पर होगा. उदया तिथि के अनुसार 8 मई को ही मोहिनी एकादशी का व्रत रखा जाएगा.
मोहिनी एकादशी में पूजा का शुभ मुहूर्त
ज्योतिषाचार्य कहते हैं कि मोहिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए. अगर पूजा शुभ मुहूर्त में की जाए तो दोगुना फल प्राप्त होता है. मोहिनी एकादशी के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त प्रातः 5 बजकर 12 मिनट से लेकर 9 बजे तक रहेगा. पारण का समय 9 मई प्रातः 5 बजकर 41 मिनट से 8 बजकर 16 मिनट तक रहेगा.
क्या है मोहिनी एकादशी का महत्व
हिंदू धर्म में मोहिनी एकादशी को अत्यंत पुण्य दायक व्रत माना गया है. अगर किसी कार्य में सफलता नहीं मिल रही है या मनोकामनाएं पूरी नहीं हो रही हैं तो एकादशी के दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की षोडशोपचार विधि से पूजा करें. इससे मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होंगी.
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
23 Apr, 2025 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- उन्नति, वाहनभय, शरीर-कष्ट, घरु-प्रवास से सफलता मिल सकती है, ध्यान दें।
वृष राशि :- खर्च, विद्या-बाधा, शुभ कार्य में खर्च, कष्ट, मांगलिक कार्य होगा, शुभ समाचार मिले।
मिथुन राशि :- राज से हानि, घरु-विवाद, आय-व्यय, शिक्षा-लेखन कार्य में रुकावट का योग बनेगा।
कर्क राशि :- संतान कष्ट, अधिक खर्च, शुभ धार्मिक कार्य एवं शुभ कार्य में बाधा बनेगी।
सिंह राशि :- सफलता से हर्ष, भय, तबादला, प्रसन्नता के योग बनेंगे, व्यापारिक सुख निश्चित ही मिलेगा।
कन्या राशि :- हानि, अपव्यय, रोग, मातृकष्ट, शिक्षा जगत संतोषप्रद रहेगा, ध्यान दें।
तुला राशि :- लाभ, संतोष, सुख, रोगभय, झंझट, लेखन कार्य में सामान्य प्रगति का योग बनेगा।
वृश्चिक राशि :- संतान लाभ, अभीष्ट-सिद्धी, स्वजन कार्यकष्ट, कार्यसिद्धी, यश, संतान-पुत्र से उपेक्षा होगी।
धनु राशि :- यात्रा में कष्टभय, स्त्री-कष्ट, कार्य-सिद्धी, धन लाभ, सामाजिक कार्य में व्यय होगा।
मकर राशि :- विवाद, यात्रा कष्ट, हानि, घरु कष्ट, नौकरी की स्थिति सामान्य होगी।
कुंभ राशि :- शुभ कार्य, भय, मुकदमे में जीत, धार्मिक कार्य होंगे, कुछ अच्छे कार्य सिद्ध होंगे।
मीन राशि :- रोगभय, अभीष्ट-सिद्धी, अल्प हानि, नौकरी में अनबन होती रहेगी, ध्यान दें।
गरीब से अमीर बना देगा इन 5 चीजों का गुप्त दान, भर-भर कर आएगा पुण्य, अधूरे काम होने लगेंगे पूरे!
22 Apr, 2025 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिन्दू धर्म में दान-पुण्य का अत्यधिक महत्व बताया गया है. कई व्रत और पूजा बिना दान के अधूरे माने जाते हैं. दान करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है. लेकिन, क्या आप जानते हैं कि दान से बढ़कर गुप्त दान का महत्व है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि व्यक्ति कुछ चीजों का गुप्त दान करे तो उसकी आर्थिक स्थिति में तेजी से सकारात्मक बदलाव आते हैं. गरीब व्यक्ति भी धीरे-धीरे अमीर होने लगता है.
पहले जानें गुप्त दान का महत्व
दान पुण्य तो हर कोई करता है. लेकिन, ऐसा दान जो किसी को बताकर ना किया जाए यानी चुपचाप किया जाए, वह गुप्त दान है. इसमें दान करने के न तो पहले और न ही बाद में किसी को कुछ बताया जाता है. गुप्त दान से मतलब है कि दान करने की बात केवल आप तक ही सीमित रहे. शास्त्रों में तो यहां तक लिखा है कि गुप्त दान ऐसा हो यदि दाएं हाथ से चीजें दान करें तो बाएं हाथ को खबर न हो.
इन चीजों का गुप्त दान बनाएगा धनवान
1. शास्त्रों के अनुसार शिवलिंग पर जल चढ़ाने के लिए तांबे के लोटे या पात्र का गुप्त दान करने का फल भी लंबे समय तक मिलता है. शिव मंदिर में लोटे का गुप्त दान जरूर करना चाहिए.
2. हर दिन कई लोग मंदिर जाते हैं. वहां बैठकर पूजा-पाठ करते हैं. हिंदू धर्म में पूजा-पाठ करते समय आसन पर बैठना जरूरी होता है. यदि आप किसी मंदिर में आसन का गुप्त दान करें तो जितने भी लोग उस पर बैठकर पूजा करेंगे, उस पूजा का कुछ पुण्य फल आपको मिलेगा.
3. बहुत प्रयास के बाद भी सफलता हाथ नहीं लग रही और जीवन में कष्ट है तो माचिस का गुप्त दान करें. इसके लिए आप मंदिर में मंगलवार के दिन कुछ माचिस रखकर आ सकते हैं. ऐसा करने से काफी लाभ होता है.
4. आपने दीपदान के बारे में काफी सुना, पढ़ा और देखा भी होगा. बेहतर फोकस, स्पष्ट दृष्टि के लिए आप किसी मंदिर में दीपदान करें. आपको इसका जबरदस्त फायदा नजर आएगा, पर इसकी चर्चा किसी से न करें.
5. अक्सर देखा जाता है कई लोग किसी भंडारे या लंगर में दान करते हैं. लेकिन, अगर वो नमक का दान करें और इसे गुप्त रखें तो महा पुण्य प्राप्त होता है. नमक सस्ता भी होता है. लिहाजा इस दान को अवश्य करें धन-समृद्धि बढ़ती है.
माता सीता के शोक को हरने वाला अशोक वृक्ष बेहद खास, पौराणिक महत्व के साथ-साथ महिलाओं की कई समस्याओं का समाधान
22 Apr, 2025 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में अशोक वृक्ष का विशेष महत्व बताया गया है. मान्यता है कि इस वृक्ष की पूजा करने से सभी रोग और दुख दूर होते हैं और कई कष्टों से मुक्ति भी मिलती है. “तरु अशोक मम करहूं अशोका…” माता सीता कहती हैं कि लंका में अशोक वृक्ष ने मेरी विरह वेदना को दूर किया, इसलिए मैं इस वृक्ष का सम्मान करती हूं. माता सीता की विरह वेदना को दूर करने वाले अशोक के वृक्ष के पास महिलाओं की हर समस्या का समाधान है. अशोक की पत्तियों और छाल से कई बीमारियों का इलाज भी किया जाता है. वास्तु शास्त्र में बताया गया है कि घर में अशोक वृक्ष के होने से सभी तरह की नकारात्मकता दूर होती है और घर में सुख-शांति बनी रहती है.
भगवान शिव की हुई अशोक वृक्ष से उत्पत्ति
धर्म शास्त्रों में अशोक वृक्ष को विशेष महत्व दिया जाता है. अशोक का शाब्दिक अर्थ है – किसी प्रकार का शोक ना होना. अर्थात जहां यह वृक्ष होता है, वहां सभी प्रकार के दुख, शोक और रोग को यह वृक्ष सोख लेता है और खुशियों में वृद्धि करता है. मान्यता है कि पवित्र वृक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव से हुई थी. अशोक वृक्ष की चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को पूजा की जाती है. मान्यता है कि अशोक अष्टमी के दिन पूजा करने से न केवल सुख-शांति की प्राप्ति होती है, बल्कि रोग-शोक भी दूर होते हैं.
अशोक वृक्ष का आर्युवेदिक महत्व
ये तो था पौराणिक महत्व, इसके औषधीय गुणों से आयुर्वेदाचार्य और पंजाब स्थित ‘बाबे के आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल’ के डॉ. प्रमोद आनंद तिवारी ने रूबरू कराया. उन्होंने बताया कि अशोक के वृक्ष का आयुर्वेदिक महत्व है. इसे महिलाओं का दोस्त कहें तो ज्यादा नहीं होगा. इसका इस्तेमाल स्त्री रोग और मासिक धर्म की समस्याओं जैसे- भारीपन, ऐंठन, अनियमितता और दर्द को कम करने में भी सहायक है.
इन रोगों को करता है दूर
आयुर्वेदाचार्य ने बताया कि समस्याओं से राहत पाने के लिए इसे भोजन के बाद दिन में दो बार गर्म पानी या शहद के साथ चूर्ण के साथ ले सकते हैं. अशोक की छाल खून साफ करती है, जिससे महिलाओं की त्वचा में निखार आती है. अशोक की छाल को चेहरे पर लगाने से डेड स्किन से छुटकारा मिलता है. रिसर्च बताती है कि अशोक की छाल पीरियड्स में होने वाले तेज दर्द और ऐंठन, सूजन को कम कर देती है. यह बढ़े हुए वात को नियंत्रित करती है. अशोक के सेवन से वात की समस्या खत्म होती है. इससे पाचन तंत्र भी मजबूत होता है, जिससे कब्ज, वात, ऐंठन, दर्द में राहत मिलती है.
अशोक की जड़ और छाल से होती हैं ये समस्याएं दूर
अशोक के पेड़ में कई प्रकार के पौष्टिक तत्व पाए जाते हैं, जो हमारी विभिन्न रोगों से रक्षा करने में सहायक होते हैं. इसमें प्रचुर मात्रा में ग्लाइकोसाइड्स, टैनिन, फ्लेवोनोइड्स तत्व पाए जाते हैं, जो शरीर के लिए टॉनिक के रूप में काम करते हैं. अशोक के पेड़ की जड़ें और छाल मुहासे और त्वचा संबंधित समस्याओं को दूर करने में सहायक हैं. आयुर्वेदाचार्य प्रेग्नेंसी के दौरान और हाई ब्लड प्रेशर की समस्या से ग्रसित लोगों को इसके इस्तेमाल में सावधानी बरतने और बिना डॉक्टर के परामर्श के इस्तेमाल न करने की सलाह देते हैं.
अमेरिका के उपराष्ट्रपति वेंस ने अक्षरधाम मंदिर में सपरिवार किए दर्शन, जानें स्वामीनारायण अक्षरधाम का महत्व
22 Apr, 2025 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस अपनी पत्नि उषा वेंस एवं बच्चों के साथ भारत पहुंचे हैं.एयरपोर्ट पर केंद्रीय मंत्री अश्वनी वैष्णव के द्वारा पारम्परिक तरीके से उनका स्वागत किया गया. उनके भारत आगमन के कई राजनैतिक और व्यावसायिक मायने हैं.इससे दोनों देशों के मध्य रिश्ते मजबूत होंगे.वेंस भारत आकर अक्षरधाम मंदिर सहित कई ऐतिहासिक और संस्कृति, धार्मिक जगहों पर भ्रमण करेंगे. भारत में आगमन के पश्चात उनके कई कार्यक्रम पूर्व से निर्धारित हैं.
अक्षरधाम पहुचें वेंस : सनातन धर्म और संस्कृति की दुनियाभर में मान्यता है. अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस दिल्ली पहुंचकर सबसे पहले अपनी पत्नि और वच्चों इवान, विवेक,मीराबेल के साथ दिल्ली के स्वामीनारायण अक्षरधाम मंदिर पहुचे. वेंस अपने परिवार सहित यहां से जयपुर के लिये रवाना होंगे. वहां कई ऐतिहासिक इमारतों का भ्रमण करेंगे. उपराष्ट्रपति जेडी वेंस यहां चार दिन प्रवास करेंगे.कब बना अक्षरधाम : 6 नवंबर 2005 को स्वामीनारायण अक्षरधाम मंदिर का निर्माण पूर्ण होने के बाद इसका उद्घाटन किया गया.स्वामीनारायण एक हिंदू संत और ईश्वर के अवतार थे, यह मंदिर कला और प्रदर्शनी की दृष्टि से बहुत ही आधुनिक है. इस मंदिर को बनाने में 11000 से अधिक लोगों ने व्यक्तिगत रूप से भाग लिया. इस मंदिर पर सर को बनाने में लगभग 5 वर्ष से अधिक समय लगा है.अक्षरधाम मंदिर में दो सौ से अधिक देवी देवताओं की मूर्ति स्थापित हैं.
मंदिर का वास्तु : पंचरात्र शास्त्र के अनुरुप मंदिर का वास्तु बहुत ही अद्भुत और आकर्षक है. इस मंदिर का निर्माण संगमरमर और बलुआ पत्थर से हुआ है. इस मंदिर की नक्काशी पुरातन मारु गुर्जर वास्तु के अनुसार की गई है. आर्किटेक्ट से सम्बंधित छात्रों को इस मंदिर में सीखने के लिये बहुत कुछ है.
अक्षरधाम मंदिर का महत्व एवं अनुयायी : तात्कालिक समय में स्वामीनारायण के अनुयायी वे लोग थे जो देश में दलित और अछूत परंपरा के शिकार थे. स्वामीनारायण के भक्त सभी धर्म और जातियों के थे. जो स्वामीनारायण की दी गयी शिक्षा से आकर्षित थे. स्वामीनारायण ने अपने संप्रदाय में कृष्ण या नारायण की पूजा की घोषणा की. स्वयं स्वामीनारायण कृष्णभक्त थे.स्वामीनारायण ने गुणातीतानंद स्वामी को अपना पहला धर्म उत्तराधिकारी बनाया था.स्वामीनारायण संप्रदाय दुनियाभर में 6 प्रमुख पंथों में विभाजित है.
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
22 Apr, 2025 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- व्यापार में प्रगति, यात्रा-सुख, खर्च अधिक होगा तथा व्यर्थ का विरोध होगा।
वृष राशि :- कलह, अभीष्ट-सिद्धी, धन-लाभ, चिन्ता, शारीरिक सुख, मांगलिक कार्य अवरोध होगा।
मिथुन राशि :- भ्रमण, व्यापार लाभ, रक्त-विवाद, सामाजिक कार्यों में बाधा, व्यवधान होगा।
कर्क राशि :- विद्या बाधा, व्यापार मध्यम, धार्मिक कार्य एवं शुभ कार्य में विरोध होगा, ध्यान दें।
सिंह राशि :- स्त्री-संतान सुख, यात्रा बाधा, विवाद, आर्थिक सुधार होगा, प्रतिष्ठा बढ़ेगी।
कन्या राशि :- भूमिलाभ, प्रवास-कष्ट, व्यापार बढ़ेगा, शुभ समाचार प्राप्ति, प्रसन्नता का योग बनेगा।
तुला राशि :- कारोबार में मध्यम सफलता, स्त्री-कष्ट, व्यर्थ अनाप-सनाप व्यय से परेशानी होगी।
वृश्चिक राशि :- थोड़ा लाभ होगा, खेती की चिंता, उलझन, शिक्षा की स्थिति सामान्य लाभदायक होगी।
धनु राशि :- घरु सुख, हानि, उन्नत खेती योग मध्यम तथा कुछ अच्छे कार्य अवश्य ही बन जायेंगे।
मकर राशि :- हर्ष, भूमिलाभ, कारोबार बढ़ेगा, कारोबार मेंं सावधान रहना आवश्यक है।
कुंभ राशि :- हानि, राजभय, स्त्री-सुख, कार्यसिद्धी, जमीन-जायजाद, गृहकार्य में सफलता के योग बनेंगे।
मीन राशि :- विद्या-बाधा, विवाद, चोरों से भय, पारिवारिक लोगों से लाभ तथा सफलता अवश्य मिलेगी।
वैशाख माह में करें इस चमत्कारी मंत्र का जाप, संकट हो जाएंगे खत्म, भौतिक सुखों की होगी प्राप्ति!
21 Apr, 2025 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
धार्मिक ग्रंथो के अनुसार साल भर विष्णु भगवान की पूजा अर्चना करने से जीवन सुखमय हो जाता है. वैशाख मास भगवान विष्णु को बेहद ही प्रिय बताया गया है. इस मास में विष्णु भगवान की आराधना, पूजा पाठ, व्रत आदि करने से जहां जीवन में आई सभी समस्याएं, दुख खत्म हो जाते हैं, वहीं धन की देवी मां लक्ष्मी अपार धन का आशीर्वाद देती हैं. धार्मिक ग्रंथो के अनुसार यदि विशेष दिन विष्णु भगवान की आराधना, मंत्रों का जाप किया जाए तो बिगड़े हुए सभी काम बन जाते हैं और चमत्कारी लाभ की प्राप्ति होती है. वैशाख मास में कुछ विशेष दिन होते हैं, जिस दिन विष्णु भगवान के महामंत्र का जाप विधि अनुसार करने पर रुके हुए सभी कार्य बिना किसी बाधा के पूरे हो जाते हैं.
वैशाख मास के किस दिन विष्णु भगवान के महामंत्र का जाप करने से लाभ मिलेगा. इसकी ज्यादा जानकारी देते हुए ज्योतिषी पंडित श्रीधर शास्त्री बताते हैं कि वैशाख मास में कुछ विशेष दिन बताए गए हैं, जिनमें भगवान विष्णु की आराधना और महामंत्र का जाप विधि अनुसार करने पर भौतिक सुखों की प्राप्ति होने के साथ ही बिगड़े हुए सभी काम पूर्ण हो जाते हैं. विष्णु भगवान के महामंत्र का जाप यदि वैशाख अमावस्या से वैशाख पूर्णिमा तक नित्य सुबह और शाम के समय 108 बार या अपनी सामर्थ्य के अनुसार ज्यादा बार किया जाए, तो साधक को चमत्कारी लाभ होते हैं. भगवान विष्णु के महामंत्र का जाप इन खास दिनों में करने से कार्यों में रुकावट, बनते बनते काम बिगड़ना, आर्थिक समस्याएं या जीवन में चल रही सभी बाधाएं खत्म होने की धार्मिक मान्यता है.
वह आगे बताते हैं कि विष्णु भगवान के महामंत्र का जाप करने के लिए मन में पवित्रता और शुद्धता होनी चाहिए. विष्णु भगवान का यह महामंत्र महा फलदायक होता है इसलिए इसका जाप करने पर साधक को लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या आदि को त्याग कर ही करना चाहिए. यह मंत्र बेहद ही शक्तिशाली और विशेष फल प्रदान करने वाला होता है. इस महामंत्र का जाप वैशाख अमावस्या से वैशाख पूर्णिमा तक करने पर भौतिक सुखों की प्राप्ति जैसे घर, जमीन, वाहन और अन्य वस्तु की प्राप्ति होने की धार्मिक मान्यता है.
रोली लगे सिक्के को लाल कपड़े में बांधें, फिर चुपके से रख दें इस जगह, हो जाएंगे वारे-न्यारे
21 Apr, 2025 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का बहुत अधिक महत्व माना जाता है. सालभर कुल 24 एकादशी पड़ती है, एक हर माह के कृष्ण पक्ष और दूसरी शुक्ल पक्ष में आती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, एकादशी तिथि विष्णु जी को समर्पित होती है और इस दिन उनके निमित्त कई लोग व्रत भी रखते हैं. बता दें कि फिलहाल वैशाख का महीना चल रहा है और इस माह के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को वरुथिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है.
हर एकादशी की तरह वरुथिनी एकादशी का भी अलग महत्व है. शास्त्रों के अनुसार, जो व्यक्ति पूरी श्रद्धाभाव के साथ वरुथिनी एकादशी का व्रत रखता है उसे 10 हजार वर्षों की तपस्या के बराबर फल प्राप्त होता है. इस दिन व्रत रखने व पूजा-पाठ करने से व्यक्ति को मानसिक सुख, धन-यश, वैभव सहित कई कष्टों से मुक्ति भी मिलती है. इसके अलावा ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, वरुथिनी एकादशी के दिन कुछ विशेष उपाय करने से जातक को पारिवारिक क्लेश सहित कई परेशानियों से छुटकारा मिलता है. तो आइए ज्योतिषाचार्य व वास्तु सलाहकार डॉ अरविंद पचौरी से उन उपायों के बारे में विस्तार से जानते हैं.
वरुथिनी एकादशी कब है?
वैदिक पंचांग के अनुसार, इस बार वरुथिनी एकादशी का व्रत वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 24 अप्रैल को रखा जाएगा. एकादशी तिथि 23 अप्रैल को शाम 4 बजकर 54 मिनट से शुरू होगी और 24 अप्रैल को दोपहर 3 बजकर 01 मिनट तक रहेगी. किंतु हिंदू धर्म में उदयातिथि मान्य होती है इसलिए वरूथिनी एकादशी का व्रत 24 अप्रैल के दिन रखा जाएगा.
वरुथिनी एकादशी के दिन करें ये उपाय
मान्यताओं के अनुसार वरुथिनी एकादशी का व्रत रखने से जातक को सौभाग्य की वृद्धि होती है और साथ ही साथ अगर घर में गृह क्लेश की स्थिति बनी हुई तो इस दिन उपाय करने से वो भी टल जाती है.
बिजनेस बढ़ाने के लिए करें ये उपाय
अगर आपको बिजनेस में कई दिनों से नुकसान झेलना पड़ रहा है तो ऐसे में आपको वरुथिनी एकादशी का व्रत करना चाहिए और भगवान विष्णु जी का आशीर्वाद पाने के लिए उनके सामने एक घी ता दीपक जलाकर 11 या फिर 21 बार ‘ऊँ नमो भगवते नारायणाय नमः’ मंत्र का जाप करें. इससे आपके बिजनेस में बढ़ोतरी होती है.
व्यापार में लाभ पाने के लिए
वरुथिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की पूजा करते समय उनके पास एक रुपये का सिक्का रखें और फिर वहां सिक्के की भी रोली और फूलों से पूजा करें और फिर उसे एक लाल रंग के कपड़े में बांधकर तिजोरी में या फिर गल्ले में रख दें. इससे आपके व्यापार में वृद्धि होने लगेगी और निश्चय ही कार्य में बढ़ोतरी होगी.
गृह क्लेश दूर करें के लिए
वरुथिनी एकादशी के दिन शंख लेकर आएं या फिर अगर आपके पास पहले से शंख रखा हुआ है तो सुबह स्नान करने के बाद एक पात्र में शंख रखकर उसपर दूध की धारा अर्पित करें और फिर उसको जल से साफ करके कपड़े से अच्छे से पोछ लें व घी का दीया जलाएं. इसके बाद उसमें दूध और केसर मिलाकर उस मिश्रण को समर्पित करें. फिर इसके बाद श्री लिखकर कुमकुम, चावल और पुष्प अर्पित करें और फिर भोग लगाकर पूजा संपन्न करें.
मत्स्य पुराण के अनुसार मृत्यु से पहले इंसान को मिलते हैं ये 6 संकेत
21 Apr, 2025 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
व्यक्ति के जीवन में आने को संकेत मिलते हैं. जिनका कोई ना कोई महत्व जरूर होता है. अचानक या जाने अनजाने कुछ ऐसी चीज है दिख जाती है या घटनाक्रम घटित हो जाता है जिसके बड़े दूरगामी परिणाम प्राप्त होते हैं. कुछ संकेत ऐसे होते हैं जो धनलाभ या धनहानि करते हैं.इसके अलावा कुछ ऐसे संकेत हैं जो बड़ी अनहोनी का इशारा करते हैं.
मृत्यु के संकेत : मत्स्य पुराण में स्पष्ट रूप से ऐसे संकेत के बारे में बताया गया है. जिनके घटित होने पर गृह स्वामी अथवा घर में किसी व्यक्ति की मृत्यु हो सकती है.अक्सर हमारे जीवन में ऐसे संकेत मिल जाते हैं. अगर आपके जीवन में ऐसे संकेत दिखते हैं तो आपको सावधान हो जाना चाहिये. ऐसी घटना मृत्यु का इशारा करती हैं.मत्स्य पुराण के अनुसार, मुर्गे की बांग, कबूतर का घर में आना, अस्त्र-शस्त्र पर पक्षी का बैठना, मधुमक्खियों का शहद टपकाना, सफेद कौवे का मैथुन और उल्लू का बोलना मृत्यु के संकेत हैं.
यदि आपको संध्याकाल में मुर्गे की बांग रोज सुनाई देने लगे तो समझ लीजिए की मृत्यु निकट है.इससे आपको सावधान रहना चाहिये.
यदि एक माह तक रोज आपके घर के अंदर कबूतर आने लगे तो समझ लीजिए आपके जीवन पर संकट का इशारा है. ऐसी स्थिति में आपको अपना विशेष ध्यान रखना चाहिए.
यदि आपके घर में बंदूक, फरसा, तलवार आदि कोई अस्त्र-शस्त्र हैं और उन पर कोई मांस खाने वाला पक्षी आकर बैठ जाए. समझ लीजिए आपकी मृत्यु बहुत निकट है.
यदि आपके घर में मधुमक्खियां ने कई छत्ते लगा रखे हैं और उन छत्तों में से शहद अपने आप टपक रहा है तो समझिए घर में किसी की मृत्यु का संकेत है.
मत्स्य पुराण की अनुसार यदि सफेद रंग का कौवा आपको मैथुन या संभोग करते हुए दिख जाए तो यह बहुत गंभीर संकेत है. इसका अर्थ है कि निकट भविष्य में आपकी मृत्यु हो सकती है.
यदि आपके द्वार पर रोज या अक्सर उल्लू बोल रहा है तो मत्स्य पुराण के अनुसार उस घर के स्वामी की मृत्यु निश्चित है अथवा ऐसे घर का विनाश हो जाता है.
क्यों हुआ था समुद्र मंथन, किन 4 स्थानों पर गिरीं अमृत की बूंदें? जानते हैं इन जगहों के नाम
21 Apr, 2025 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
पौराणिक धर्म ग्रंथों में समुद्र मंथन की कथा मिलती है. समुद्र मंथन हिंदू धर्म की सबसे रोचक और गूढ़ कथाओं में से एक है. यह सिर्फ एक पौराणिक घटना नहीं, बल्कि इसमें जीवन के गहरे आध्यात्मिक और दार्शनिक संदेश छिपे हुए हैं, जो आज भी हमारे जीवन में मायने रखते हैं. पौराणिक कथा के अनुसार, जब समुद्र मंथन हुआ उस दौरान भगवान अमृत के कलश को राक्षसों से बचाकर ले जा रहे थे, तब अमृत की कुछ बूंदें भारत के चार पवित्र स्थानों पर गिर गई थीं. आइए जानते हैं इन उन 4 जगहों के बारे में.
हरिद्वार, उत्तराखंड
मान्यता है कि जब भगवान अमृत कलश को लेकर भाग रहे थे, इसी छीना-छपटी में अमृत की कुछ बूंदें हरिद्वार में गिर गईं. यहां हर 12 साल में कुंभ मेला लगता है, जिसमें लाखों लोग गंगा स्नान करने आते हैं, ये मानकर कि इससे उन्हें आध्यात्मिक शुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होगी.
उज्जैन, मध्य प्रदेश
मान्यता है कि अमृत की एक बूंद यहां शिप्रा नदी के किनारे गिरी थी. यही वजह है कि उज्जैन भी भारत के प्रमुख तीर्थों में गिना जाता है. हर 12 साल में यहां सिंहस्थ कुंभ मेला आयोजित होता है, जिसमें साधु-संतों से लेकर लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं.
प्रयागराज, उत्तप्रदेश
मान्यताओं के अनुसार जब देवता राक्षसों से अमृत की रक्षा कर रहे थे उसी दौरान कलश से अमृत की कुछ बूंदें गिरीं थीं, जिससे यह स्थान तीर्थराज बन गया.
नासिक, महाराष्ट्र
मान्यता है कि अमृत की एक बूंद नासिक में भी गिरी थी, खासकर गोदावरी नदी के पास. नासिक में भी हर 12 साल में कुंभ मेला आयोजित होता है, जहां लोग पवित्र स्नान करते हैं और मोक्ष की कामना करते हैं.
समुद्र मंथन की शुरुआत कैसे हुई?
एक बार इंद्र देव अपने हाथी ऐरावत के साथ घूम रहे थे. उन्हें रास्ते में ऋषि दुर्वासा मिले जिन्होंने उन्हें एक चमत्कारी माला दी. इंद्र ने वो माला अपने हाथी की सूंड़ पर रख दी, लेकिन हाथी ने उसे पैरों से कुचल दिया. इससे ऋषि दुर्वासा को बहुत क्रोध आया, और उन्होंने इंद्र व सभी देवताओं को श्राप दे दिया कि वे अपनी ताकत, शक्ति और सम्मान खो देंगे.
कमज़ोर हो चुके देवता राक्षसों से हारने लगे और डर के मारे उन्होंने भगवान विष्णु से सहायता मांगी. विष्णु ने बताया कि अगर वे क्षीर सागर को मथें, तो अमृत निकलेगा, जिसे पीकर वे अमर हो जाएंगे. लेकिन समुद्र मंथन करना आसान नहीं था, और देवता अब शक्तिहीन थे. इसीलिए इंद्र ने असुरों से मदद मांगी और उन्हें अमृत में हिस्सा देने का वादा किया. असुर लालच में मान गए.
समुद्र मंथन की प्रक्रिया
मंदराचल पर्वत को मथनी (रस्सी घुमाने की डंडी) बनाया गया और वासुकी नाग को रस्सी के रूप में इस्तेमाल किया गया. जब मंदराचल को समुद्र में रखा गया तो वो डूबने लगा. तब विष्णु ने कूर्म अवतार (कछुए का रूप) लिया और पर्वत को अपनी पीठ पर टिकाया. वासुकी को पर्वत पर लपेट दिया गया और देवताओं और असुरों ने उसके दोनों सिरों को पकड़कर उसे खींचना शुरू किया.
अमृत मिलने के बाद शुरू हो गया झगड़ा
कई सालों तक मंथन के बाद, धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए. जैसे ही अमृत निकला, देवताओं और असुरों में झगड़ा शुरू हो गया. एक असुर अमृत का घड़ा लेकर भाग गया. भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया. एक सुंदर स्त्री बनकर असुरों का ध्यान भटकाया और देवताओं को अमृत पिला दिया.
लेकिन एक असुर “स्वर्भानु” ने छल से अमृत पी लिया. सूर्य और चंद्रमा ने उसे पहचान लिया और विष्णु ने उसे दो टुकड़ों में काट दिया. उसका सिर “राहु” और धड़ “केतु” बना. इस तरह देवताओं ने अमृत पीकर अपनी शक्तियां वापस पाईं.
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
21 Apr, 2025 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- तनाव पूर्ण वातावरण से बचिये, स्त्री शरीर कष्ट, मानसिक बेचैनी अवश्य बनेगी।
वृष राशि :- अधिकारियों के समर्थन से सुख होगा, कार्यगति विशेष अनुकूल होगा।
मिथुन राशि :- भोग-एश्वर्य प्राप्ति के बाद तनाव व क्लेश होगा, तनाव से बचकर अवश्य रहें।
कर्क राशि :- अधिकारियों का समर्थन फलप्रद हो, भाग्य का सितारा साथ देगा, बिगड़े कार्य अवश्य ही बनेंगे।
सिंह राशि :- परिश्रम सफल हो, व्यवसाय गति मंद हो, आर्थिक योजना पूर्ण अवश्य ही होगी।
कन्या राशि :- कार्य-व्यवसाय गति सामान्य रहे, व्यर्थ परिश्रम, कार्य गति मंद होगी।
तुला राशि :- किसी दुर्घटना से बचें, चोट-चपेट आदि कम हो, रुके कार्य व्यवसाय होंगे।
वृश्चिक राशि :- कार्यगति अनुकूल रहे, लाभांवित कार्य योजना बनेगी, बाधा आदि से बचें।
धनु राशि :- कुछ प्रतिष्ठा के साधन बनें किन्तु हाथ में कुछ न लगे, कार्य अवरोध होगा।
मकर राशि :- अधिकारी वर्ग से तनाव, क्लेश होगा, मानसिक अशांति के कार्य बनें, ध्यान दें।
कुंभ राशि :- मनोबल बनाये रखें, हाथ में कुछ न लगे किन्तु नया कार्य अवश्य ही होगा।
मीन राशि :- दैनिक कार्यगति उत्तम, कुटुम्ब में सुख समय उत्तम बनेगा, समय का ध्यान अवश्य रखें।
भानु सप्तमी पर 4 बेहद शुभ योग, इन 4 राशियों की सूर्यदेव की कृपा से बढ़ेगी प्रतिष्ठा और यश
20 Apr, 2025 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
20 अप्रैल दिन रविवार को भानु सप्तमी का पर्व मनाया जाएगा और इस दिन सूर्यदेव की पूजा करने का विशेष विधान है. मान्यता है कि भानु सप्तमी का व्रत रखकर सूर्यदेव को अर्घ्य देने और सूर्य मंत्रों का जप करने से सभी संकट दूर होते हैं. साथ ही मान-सम्मान और आरोग्य की प्राप्ति भी होती है. भानु सप्तमी 2025 पर इस बार 4 बेहद शुभ योग बन रहे हैं, जिससे इस दिन का महत्व और भी बढ़ गया है. पंचांग के अनुसार, भानु सप्तमी पर त्रिपुष्कर योग, रवि योग, सिद्ध और सर्वार्थ सिद्धि नामक शुभ योग बन रहे हैं, जिसका फायदा 4 राशियों को मिलने वाला है. इन राशियों की सूर्यदेव की कृपा से मान-सम्मान और आरोग्य में वृद्धि होगी और कुंडली में सूर्यदेव की स्थिति मजबूत होगी. आइए जानते हैं भानु सप्तमी का फायदा किन किन राशियों को मिलेगा.
वृषभ राशि
भानु सप्तमी 2025 पर बन रहे शुभ योग का लाभ वृषभ राशि वालों को मिलेगा. वृषभ राशि वाले अगर स्वास्थ्य संबंधी समस्या से परेशान हैं तो उनकी सेहत में सुधार देखने को मिलेगा. अगर आपका कोई बहुत जरूरी कार्य काफी समय से अटका हुआ है तो शुभ योग के प्रभाव से कार्यों में तेजी आएगी. यह समय आपके लिए नई संभावनाओं के द्वार खोलेगा और कई अच्छे अवसर आएंगे, जिससे आर्थिक स्थिति में सुधार आएगा.
सिंह राशि
भानु सप्तमी 2025 पर हने शुभ योग का फायदा सिंह राशि वालों को मिलेगा. सिंह राशि वालों के मान सम्मान में अच्छी वृद्धि होगी और अपनी वाणी व कौशल से सभी का दिल जीतने में सफल रहेंगे. समाज के कई खास लोगों के साथ आपका उठना बैठना शुरू होगा, जिससे आपकी प्रतिष्ठा में भी वृद्धि होगी. शुभ योग के प्रभाव से सिंह राशि वालों को धन प्राप्ति के कई अवसर मिलेंग और आपको प्रतिभा दिखाने का मौका भी मिलेगा.
तुला राशि
भानु सप्तमी 2025 पर बने 4 शुभ योग के प्रभाव से तुला राशि वालों को अचानक धन प्राप्ति के अवसर मिलेंगे. आपके द्वारा किए गए हर कार्य सिद्ध होंगे और आपके बिजनस दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करेगा. सूर्यदेव की कृपा से आपके सुख सौभाग्य में अच्छी वृद्धि होगी और आपकी सोच सकारात्मक दिशा में आगे भी बढ़ेगी, जिसका फायदा आपको जीवन के हर क्षेत्र में देखने को मिलेगा.
मकर राशि
भानु सप्तमी 2025 पर बन रहे शुभ योग से मकर राशि वालों को शत्रुओं से मुक्ति मिलेगी और आपके विचारों से लोग काफी प्रभावित भी होंगे, जिसकी वजह से आपके सलाह भी लेंगे. आपके द्वारा की गई मेहनत का पूरा फल मिलेगा और सफलता आपको ऊंचाइयों पर ले जाएगी. नौकरी व कारोबार करने वालों की आर्थिक स्थिति में सुधार आएगा और आप अधिक प्रेरित भी होंगे.
अक्षय तृतीया पर भूलकर भी ये सामान घर न लाएं, साथ में आएगी आर्थिक तंगी, मां लक्ष्मी होंगी नाराज!
20 Apr, 2025 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में अक्षय तृतीया बेहद शुभ तिथि मानी गई है. इसमें किसी शुभ कार्य के लिए शुभ मुहूर्त विचारने की जरूरत नहीं पड़ती. यही वजह है कि इस दिन लोग बड़ी संख्या में नए सामान या सोना-चांदी की खरीदारी करते हैं. ये भी मान्यता है कि अक्षय तृतीया पर खरीदे गए सामान का क्षय नहीं होता, वहीं देवी लक्ष्मी भी प्रसन्न होती है. लेकिन, कई बार अनजाने में लोग कुछ ऐसी सामग्री भी खरीद लेते हैं, जो बड़ा नुकसान करा देती है.
वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर अक्षय तृतीया मनाई जाएगी. इस साल 30 अप्रैल को अक्षय तृतीया है. इस दिन भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर की पूजा करनी चाहिए. घर में धन-धान की वृद्धि होती है. माता लक्ष्मी स्वयं उस घर में पास करती हैं. वहीं, शुभ वस्तुएं और सोने की खरीदारी करनी चाहिए.
भूलकर भी ये चीजें न खरीदें
नुकिली वस्तुएं: ज्योतिषाचार्य के अनुसार, अक्षय तृतीया के दिन नुकीली वस्तुएं जैसे चाकू, सुई, टांगा, इत्यादि बिल्कुल नहीं खरीदना चाहिए. इससे माता लक्ष्मी रुष्ट हो सकती हैं. घर में पारिवारिक कलह बढ़ सकती है, मन अशांत रहेगा.
लोहा या एल्युमिनियम की वस्तु: अक्षय तृतीया पर आभूषण की खरीदारी करना शुभ माना जाता है. लेकिन, लोहा और एल्युमिनियम की वस्तुएं भूलकर भी न खरीदें. उनकी जगह पीतल, तांबा, सोना, चांदी इत्यादि चीजों के बर्तन खरीदें.
काले रंग की वस्तु: काला रंग तामसिक ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है. अक्षय तृतीया शुभ और सौभाग्य का प्रतीक होता है. इसलिए शुभ दिन में तामसिक पूजा का प्रतीक माने जाने वाले काले रंग की वस्तुएं बिल्कुल भी न खरीदें.
कांटेदार पौधा: अगर अक्षय तृतीया के दिन आप कांटेदार पौधे खरीदते हैं तो घर में वास्तु दोष का कारण भी बन सकता है. लक्ष्मी नाराज हो सकती हैं. आर्थिक तंगी भी आ सकती है.
लकड़ी से बनी वस्तु: ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि अक्षय तृतीया के दिन लकड़ी से बनी वस्तु बिल्कुल न खरीदें. यह शुभ नहीं माना जाता है.