धर्म एवं ज्योतिष
गणेश जी को इसलिए चढ़ाई जाती है दूर्वा
13 Sep, 2024 07:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
आजकल सब जगह भगवान गणेश विराजे हुए हैं। गणेशोत्सव के दौरान घर-घर में गणपति की स्थापना की जाती है और भली-भांति पूजा की जाती है। इस दौरान भगवान गणेश को कई चीज़ें अर्पित भी की जाती हैं जिसमें से एक दूर्वा भी है। कहा जाता है कि बिना दूर्वा के भगवान गणेश की पूजा पूरी नहीं होती है। आइए जानते हैं क्यों गणपति को दूर्वा चढ़ाना इतना महत्वपूर्ण है।
दूर्वा चढ़ाते समय बोलें ये मंत्र
ॐ गणाधिपाय नमः ,ॐ उमापुत्राय नमः ,ॐ विघ्ननाशनाय नमः ,ॐ विनायकाय नमः
ॐ ईशपुत्राय नमः ,ॐ सर्वसिद्धिप्रदाय नमः ,ॐ एकदन्ताय नमः ,ॐ इभवक्त्राय नमः
ॐ मूषकवाहनाय नमः ,ॐ कुमारगुरवे नमः
कथा
कहते हैं कि प्रचीन काल में अनलासुर नामक एक असुर था जिसकी वजह से स्वर्ग और धरती के सभी लोग परेशान थे। वह इतना खतरनाक था कि ऋषि-मुनियों सहित आम लोगों को भी जिंदा निगल जाता था। इस असुर से हताश होकर देवराज इंद्र सहित सभी देवी-देवता और ऋषि-मुनि के साथ महादेव से प्रार्थना करने पहुंचे। सभी ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि वे इस असुर का वध करें। शिवजी ने सभी देवी-देवताओं और ऋषि-मुनियों की प्रार्थना सुनकर उन्हें बताया कि अनलासुर का अंत केवल गणपति ही कर सकते हैं।
पेट में होने लगी थी जलन
कथा के अनुसार जब गणेश ने अनलासुर को निगला तो उनके पेट में बहुत जलन होने लगी। कई प्रकार के उपाय किए गए, लेकिन गणेशजी के पेट की जलन शांत ही नहीं हो रही थी। तब कश्यप ऋषि को एक युक्ति सूझी। उन्होंने दूर्वा की 21 गठान बनाकर श्रीगणेश को खाने के लिए दी। जब गणेशजी ने दूर्वा खाई तो उनके पेट की जलन शांत हो गई। तभी से भगवान श्रीगणेश जी को दूर्वा अर्पित करने की परंपरा शुरु हुई।
भगवान गणेश की आराधना से होंगी सभी मनोकामनाएं पूरीं
13 Sep, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में किसी भी शुभ काम की शुरुआत भगवान गणेश के नाम के साथ ही होती है। मान्यता है कि खुद देवता भी भगवान गणेश का नाम लिए बिना अपने किसी कार्य की शुरूआत नहीं करते। शास्त्रों में वर्णित है कि सभी देवताओं से पहले गणेश की पूजा का प्रावधान है। बिना गणेश की पूजा शुरू किए अगर किसी अन्य देव की पूजा की जाए तो वह फलदायक नहीं होती। गणेश को मोदक और दुर्वा घास अधिक प्रिय है, लेकिन अगर घर में खुद ही प्रतिमा को बनाए और इसकी पूजा करें तो गणपति आवश्य ही प्रसन्न होते हैं और मनवांछित मुराद पुरी करते हैं।
अभीष्ट सिद्धि के लिए बनाएं इस मिट्टी की प्रतिमा
शास्त्रों के अनुसार गणपति की मूर्ति बनाने के लिए कई नियम बताये गए हैं। ऐसा कहा जाता है कि अगर आप भगवान गणपति की मूर्ति इन खास चीजों से बनाते हैं तो आपसे भगवान गणेश जल्दी ही प्रसन्न हो जाते हैं। अगर आपको प्रतिमा बनानी आती है या आप इसकी कोशिश कर रहे हैं तो आप सांप के बांबी की मिट्टी घर ले आए और उससे गणेश की प्रतिमा बनाकर उसकी पूजा करें। यह प्रतिमा आपको अभीष्ट सिद्धि प्रदान करेगी। इसे बेहद ही शुभ माना जाता है। यह प्रतिमा घर में सुख समृद्धि और धन की कमी पूरी करती है। माना जाता है कि सांप की बांबी की मिट्टी सबसे शुद्ध होती है। सांप भगवान शिव के गले में पड़ा रहता है। गणेश जी भगवान शिव के पुत्र हैं।
वाणी का हमेशा रखें ध्यान
13 Sep, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हमारी वाणी भी जीवन में अहम भाव रखती है और यह बिगड़ जाये तो जीवन कष्टकारी होने में देर नहीं लगती, इसलिए अपनी वाणी हमेशा अच्छी होनी चाहिये। अगर ऐसा नहीं होता तो हमें विपरीन हालातों का सामना करना पड़ता है। कई बार ग्रह दशा से भी वाणी खराब हो जाती है।
कुंडली का दूसरा, तीसरा और आठवां भाव वाणी से सम्बन्ध रखता है। इन भावों में अशुभ ग्रह होने से वाणी दूषित हो जाती है। वैसे वाणी को सबसे ज्यादा दूषित राहु और मंगल करते हैं। इनके प्रभाव से व्यक्ति अनाप शनाप बोलता है। शनि का प्रभाव होने से अपशब्द बोलने की आदत पड़ जाती है। बुध के दूषित होने पर भी व्यक्ति अपशब्द बोलता है हालांकि ऐसी दशा में व्यक्ति अपशब्द हमेशा नहीं बोलता।
अपशब्द बोलने के परिणाम अच्छे नहीं होते और प्रगति रुक जाती है।
अपशब्द बोलने से व्यक्ति की आर्थिक स्थिति पर सीधा असर पड़ता है।
व्यक्ति के जीवन में धन के मामले में उतार चढ़ाव बने रहते हैं।
ऐसे लोगों को गले या मुंह की बीमारी की संभावना भी होती है।
इनका बुध कमजोर होता जाता है।
इसलिए याददाश्त और बुद्धि की समस्या भी निश्चित होती है।
इनको निश्चित रूप से जीवन में पतन का सामना करना पड़ता है।
ऐसे लोग जानबूझकर आफत को अपने पास बुला लेते हैं।
कैसे ठीक करें अपशब्द बोलने की आदत को?
प्रातःकाल सूर्य को अर्घ्य दें।
इसके बाद बोल बोलकर गायत्री मन्त्र का जप करें।
प्रातःकाल तुलसी के पत्ते जरूर खाएं।
खान पान को हमेशा शुद्ध रक्खें।
भोजन में दूध से बनी हुयी चीज़ों की मात्रा बढ़ा दें।
सलाह लेकर एक लेब्राडोराइट धारण करें।
हरे रंग का प्रयोग करना भी लाभकारी होगा।
राशि के अनुरुप कपड़े पहनने से मिलेगी ज्यादा सफलता
13 Sep, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
अगर आप अपनी राशि के अनुसार कपड़े पहनते हैं तो आपकी सफलता की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। हर रंग हर राशि के अनुरुप नहीं होता। इसलिए कई बार राशि के विपरीत परिधानों से हमें नुकसान उठाना पड़ता है। कई बार देखा जाता है कि नये कपड़े मन में उत्साह जगाने की जगह नकारात्मक ऊर्जा से भर देते हैं और मन निराश हो जाता है। हम शुभ काम भी बेमन से करने लगते हैं जिससे सफलता की उम्मीद घट जाती है। वहीं अगर राशि के हिसाब से कपड़े का चुनाव सही हो तो कपड़ों से ना केवल सकारात्मक ऊर्जा और उत्साह आता है बल्कि भाग्य भी साथ देता है।
मेष राशि- आम तौर पर मेष राशि वाले बहुत ज्यादा तड़क भड़क वाले कपड़े पहनते हैं।
ये इस बात की परवाह नहीं करते कि इनकी उम्र और स्थिति क्या है?
इनको हल्के और शालीन कपड़े पहनने चाहिए , इससे इनका व्यक्तित्व गंभीर होगा।
वृष राशि- वृष राशि वाले आम तौर पर ऐसे कपडे पहनते हैं जिससे उनका व्यक्तित्व छिप जाता है।
पहनावे के रंग और स्टाइल के मामले में ये बहुत सही निर्णय नहीं ले पाते।
इनको थोड़े से चमकदार और खूबसूरत रंगों का प्रयोग करना चाहिए।
साथ ही ऐसे कपडे पहनने चाहिए जिससे इनकी उम्र बहुत ज्यादा न लगे।
मिथुन राशि- मिथुन राशि के लोग पहनावे के मामले में बहुत सतर्क होते हैं।
पहनावे के रंग और स्टाइल पर बहुत ज्यादा ध्यान देते हैं।
आपको केवल पहनावे पर ही ध्यान नहीं देना चाहिए साथ में अपने स्वभाव का भी ख्याल रखें।
कर्क राशि- इनका पहनावा वैसा ही होता हैं, जैसा इनका मन होता है।
अच्छे मूड में इनका पहनावा बहुत सही होता है अन्यथा ये कुछ भी सीधा पहन लेते हैं।
हमेशा अपने पहनावे को बहुत सही रखने की कोशिश करें, ताकि आपका मन अच्छा बना रहे।
सिंह राशि- पहनावे के मामले में कमजोर होते हैं।
ये तभी पहनावे पर ध्यान देंगे जब इनको कोई बार बार टोकता रहेगा।
हमेशा साफ़ सुथरे और सही तरीके का पहनावा रक्खें, इससे आपका प्रभाव भी बढेगा और संघर्ष कम होगा।
कन्या राशि- इनके पास हमेशा बेहतरीन और महंगे पहनावे होते हैं।
पर ये पहनावे पर विशेष ध्यान नहीं देते।
अगर आप अपने पहनावे पर ध्यान दें तो आपके रिश्ते और मन दोनों अच्छे बने रहेंगे।
तुला राशि- पहनावे और स्टाइल के मामले ये सबसे ज्यादा ताक़तवर राशि है।
हमेशा सही और उत्तम पहनावा रखते हैं, और दूसरों को प्रभावित कर लेते हैं।
आपको केवल दिखावे के लिए पहनावे पर धन बर्बाद करने से बचना चाहिए।
वृश्चिक राशि- कभी तो इनका पहनावा बहुत अच्छा होता है, और कभी बहुत गड़बड़।
पहनावे के मामले में ये इतने लापरवाह होते हैं कि कभी कभी फटे और उटपटांग कपडे भी पहन लेते हैं।
आपको हर समय अपने पहनावे को लेकर सावधानी रखनी चाहिए, वरना आपका प्रभाव दूसरों पर अच्छा नहीं पड़ेगा।
धनु राशि- ये लोग पहनावे पर बिलकुल ध्यान नहीं देते।
इनके पहनावे को देखकर आप इनकी स्थिति का अंदाजा ही नहीं लगा सकते।
आपको हर विशेष कार्य और विशेष दिन अपने पहनावे का ख्याल जरूर रखना चाहिए।
मकर राशि- आम तौर पर युवावस्था में ये अपने पहनावे पर बिलकुल ध्यान नहीं देते।
पर जैसे जैसे इनकी उम्र बढती जाती है , इनका पहनावा बहुत अच्छा हो जाता है।
आपको अपनी उम्र के अनुसार पहनावा रखना चाहिए।
कुम्भ राशि- या तो इनका पहनावा बहुत अच्छा होता है या बिलकुल ख़राब।
इनको पहनावे की समझ आ गई तो इनका पहनावा बेहतरीन हो जाता है।
आपको एक ही रंग के पहनावे पर ही चिपक कर नहीं रहना चाहिए।
मीन राशि- इनका पहनावा काफी ज्यादा धीर-गंभीर होता है।
उसमे बहुत ज्यादा रंगों और स्टाइल का मामला नहीं होता।
आपको अपने पहनावे में थोड़े रंग और स्टाइल भी रखने चाहिए।
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (13 सितंबर 2024)
13 Sep, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि - व्यावसायिक समृद्धि के साधन जुटाये, धन का लाभ, आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा।
वृष राशि - कुछ लाभांवित योजना फलप्रद रहे, व्यावसायिक गति अनुकूल बनी ही रहेगी, ध्यान रखें।
मिथुन राशि - इष्ट मित्र सुख वर्धक होगें, कुछ नवीन योजना तथा चेतना फलप्रद होगी, मित्र सहयोग करेंगे।
कर्क राशि - स्त्री वर्ग से हर्ष, उल्लास आशानुकूल सफलता के साधन जुटायें तथा ध्यान से कार्य करेगें।
सिंह राशि - किसी धोखे-क्लेश से बचें, आरोप व व्यावसाय में बाधा बनेगी, कार्य अवरोध होगा।
कन्या राशि - स्त्री वर्ग से विशेष सर्मथन प्राप्त करें, किन्तु अपने विशेष कार्य स्थिगित रखें ध्यान दें।
तुला राशि - अधिकारी वर्ग सहायक हो, समय अनुकूल है, अच्छे समय का लाभ तथा कार्य बना लेवें।
वृश्चिक राशि -व्यावसायिक स्थिति में सुधार, किसी के कार्य बनने से संतोष होगा, समय का ध्यान रखें।
धनु राशि - कार्यकुशलता में बाधा, स्वास्थ्य नरम-गरम रहेगा, मनोवृत्ति संवेदनशील बनी ही रहेगी।
मकर - इष्ट मित्र सहायक बने रहेगें, दैनिक कार्य गति अनुकूल शीघ्र सफलता अवश्य मिले।
कुंभ राशि - विरोधी तत्व परेशान करें, स्त्री शरीर कष्ट, पत्नी के स्वास्थ्य पर ध्यान अवश्य देवें।
मीन राशि - विरोधी तत्व परेशान करेगें, किसी के धोके तथा चोट-चपेट से आप बचियेगा।
भगवान गणेश को स्थापित करने के बाद क्या मंदिर में रख सकते हैं प्रतिमा? विसर्जन की परंपरा कैसे हुई शुरू? जानें सबकुछ
12 Sep, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
इन दिनों पूरे देश में गणेश उत्सव पर्व की धूम मची हुई है. मोहल्ले और घरों में गणपति विराजमान हो चुके हैं. इसका समापन गणेश मूर्ति के विसर्जन के साथ होता है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यह विसर्जन की परंपरा कैसे शुरू हुई और क्या छोटी मूर्तियों को घर में हमेशा के लिए रखा जा सकता है? ज्योतिषाचार्य ने इस परंपरा के धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व पर विस्तार से जानकारी दी है.
गणेश विसर्जन की परंपरा का प्रारंभ सबसे पहले महाराष्ट्र में हुआ था. इसके पीछे मुख्य रूप से धार्मिक मान्यता और लोक परंपराओं का मेल है. भगवान गणेश को ‘विघ्नहर्ता’ के रूप में पूजा जाता है और विसर्जन के माध्यम से यह संदेश दिया जाता है कि गणेश भगवान सभी विघ्नों को समाप्त करके अपने लोक में वापस चले जाते हैं.
इसके आलावा कहा जाता है कि लोकमान्य तिलक ने 1893 में गणेशोत्सव को सार्वजनिक रूप से मनाने की शुरुआत की थी, ताकि समाज को एकजुट किया जा सके और ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीयों में जागरूकता फैलाई जा सके. तब से यह परंपरा हर साल गणेशोत्सव के बाद मूर्ति विसर्जन के रूप में पूरी होती है. विसर्जन का एक धार्मिक दृष्टिकोण यह भी है कि भगवान गणेश धरती पर कुछ समय के लिए आते हैं और फिर वापस अपने लोक में लौट जाते हैं.
कई लोग सवाल करते हैं कि छोटी गणेश मूर्तियों को विसर्जित करने की आवश्यकता है या नहीं. इसके बारे में ज्योतिषाचार्य ने बताया कि धार्मिक दृष्टिकोण से गणेश मूर्ति की स्थापना एक निश्चित समय के लिए की जाती है और उसे उचित विधि से विसर्जित करना आवश्यक होता है.
यदि मूर्ति की स्थापना धार्मिक रूप से की जाती है, तो उसे निश्चित अवधि के बाद विसर्जित करना जरूरी होता है. यदि ऐसा नहीं किया जाता तो यह धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दोष का कारण बन सकता है. यदि आप मूर्ति को केवल सजावट या पूजन के उद्देश्य से घर में रखते हैं और विधिवत स्थापना या विसर्जन नहीं करते, तो यह धार्मिक दृष्टिकोण से कोई दोष नहीं माना जाता.
गणेश मूर्ति विसर्जन का महत्व यह है कि जब भगवान गणेश की पूजा पूरी हो जाती है, तो उन्हें जल में विसर्जित कर दिया जाता है, जो जीवन के चक्र को दर्शाता है—जीवन का प्रारंभ और अंत. विसर्जन से यह भी संदेश दिया जाता है कि संसार में हर वस्तु अस्थायी है और हमें परमात्मा में लीन होने का संदेश समझना चाहिए.
इस शिवलिंग को पत्थर समझकर हटाने लगे थे राजा, तो बहने लगी थी खून की धारा, मन्नत मांगने के लिए लगती है भीड़
12 Sep, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भगवान शिव के कई सारे खास मंदिर यूपी में हैं. इन्ही में से एक है बलखंडीनाथ मंदिर, जिसकी मान्यता यह है कि यहां आने वाले भक्तों की सारी मनोकामना भगवान शिव अवश्य पूरी करते हैं. कहा जाता है कि इस मंदिर में शिवलिंग का अभिषेक जल एवं पंचामृत से करने से सारी मन्नत पूरी हो जाती है. सावन के महीने में भी इस मंदिर में भारी भीड़ लगती है. दूर-दूर से भक्त सावन में कावड़ लेकर इस मंदिर में आते हैं.
बालखंडी नाथ मंदिर का इतिहास
बालखंडी नाथ मंदिर का इतिहास यह है कि यहां पर द्रौपदी ने शिवलिंग की पूजा कर मन्नत मांगी थी. जिस पर भगवान शिव ने उसकी मनोकामना पूरी की थी. यह शिवलिंग खुद से ही प्रकट हुआ था. तब बरेली का कोई राजा हुआ करता था. जिसका रथ शिवलिंग से टकरा गया था. तभी जब उन्होंने अपने साथी से पूछा कि यह क्या पड़ा है, तो पता चला कि वह स्वयं प्रकट हुआ शिवलिंग है.
लेकिन राजा ने इसे एक पत्थर समझ के हटाया और पत्थर को हटाने के लिए राजा ने अपने आदमी भेजें. उनसे नहीं हटा तो अपने हाथी भेजें और फिर उसे खींचा गया. लेकिन जब भी शिवलिंग नहीं खींचा. पर उसमें से जब खून निकलने लग गया, खून की धारा बहने लगी तब राजा को पता चला कि यह स्वयं शिव जी का शिवलिंग है. फिर उन्होंने शिव जी के नाम पर यहां एक मंदिर बनवाया.
पूरे दिन होता है इस मंदिर में अभिषेक
बालखंडी नाथ मंदिर के महंत जी ने लोकल 18 से बात के दौरान बताया कि सावन के महीने में जब कावड़ यात्रा यहां आती है. तो सुबह 3:00 बजे से लेकर शाम के 10:00 बजे तक यहां कावड़ियों की भीड़ लगी रहती है. उसे वीर के कारण उन्हें शाम के समय की आरती में तकलीफ होती है. लेकिन सुबह के समय आप आराम से आरती कर सकते हैं. पूरे दिन इस मंदिर में शिवलिंग का अभिषेक होता है.
यहां आए भक्तों का क्या है कहना
बनखंडी नाथ मंदिर में भगवान शिव के दर्शन करने आए भक्तों ने हमें एक खास बातचीत के दौरान बताया कि वह यहां काफी समय से भगवान शिव के दर्शन करने आते हैं. हर सावन लेकर बरखंडी नाथ मंदिर भगवान शिव को जल चढ़ाने आते हैं. इसके अलावा भी बताते हैं कि स्वयं प्रकट हुए शिवलिंग के रूप में भगवान शिव जी के दर्शन करने पर काफी दूर दराज से आते हैं.
क्यों छोटे बच्चों और साधु-संतों का नहीं होता है दाह संस्कार? जानिए क्या कहता है गरुड़ पुराण
12 Sep, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मृत्यु जिंदगी का वह अहम सच है जिसे कोई नहीं टाल सकता है और न ही इससे कोई मुंह मोड़ सकता है. इस संसार में जिसने भी जन्म लिया है उसकी मृत्यु भी निश्चित है. जैसा कि हम जानते है कि मौत के बाद हिंदू सनातन धर्म में मृत्यु के बाद शरीर को जलने का विधान है. धार्मिक दृष्टि से अंतिम संस्कार का उतना ही महत्व होता है. जितना की अन्य 16 संस्कारों का है. आप जानते हैं कि हिंदू धर्म में शिशु या सन्यासी की मृत्यु होने के बाद उनका दाह संस्कार नहीं किया जाता है. ऐसा क्यों आइए जानते है उज्जैन के पंडित आंनद भारद्वाज से विस्तार से.
शास्त्रों के अनुसार रीति और नियम जरूरी
गरुड़ पुराण के अनुसार, उक्त सभी कार्यों को करने की विशेष रीति और नियम होते हैं. रीति और नियम से किए गए कार्य से ही आत्मा को शांति मिलती है और अगले जन्म अर्थात नए शरीर में उसके प्रवेश के द्वार खुलते हैं या वह स्वर्ग में चला जाता है. हिन्दुओं में साधु-संतों और बच्चों को दफनाया जाता है जबकि सामान्य व्यक्ति का दाह संस्कार किया जाता है. उदाहरण के लिए गोसाईं, नाथ और बैरागी संत समाज के लोग अपने मृतकों को आज भी समाधि देते हैं. दोनों ही तरीके यदि वैदिक रीति और सभ्यता से किए जाएं तो उचित हैं.
क्यों दफनाया जाता है शिशुओं को
गरुण पुराण के अनुसार, गर्भ में पल रहे शिशु या फिर 2 साल से कम उम्र के बच्चे की मृत्यु होती है, तो उसे जलाने की अनुमति नहीं है. ऐसा माना जाता कि छोटी उम्र में मृत्यु होने पर आत्मा को शरीर से लगाव नहीं रहता है, नाही उसे शरीर से कोई लाभ होता है. इस वजह से आत्मा उस शरीर को तुरंत छोड़ देती है. यही कारण है कि नवजात शिशु को जलाने की जगह दफनाया जाता है.या फिर किसी नदी में विसर्जित कर दिया जाता है.
क्यों दफनाया जाता है साधु-संतों को
शास्त्रों के अनुसार गरुण पुराण मे हर किसी के जीवन से लेके मृत्यु तक की कही अहम बाते लिखी गयी है. ऐसे ही गरुण पुराण के अनुसार, साधु-संतों को भी नहीं जलाया जाता है, क्योंकि संत पुरुषों की आत्मा शरीर में रहते हुए भी सांसारिक सुखों का त्याग कर देती है. साथ ही मोह-माया से दूर रहती है. इसके अलावा तप और पूजा-पाठ करके अपनी इंद्रियों पर विजय भी प्राप्त कर लेती है.इसी वजह से उनके शरीर को दफनाने की परंपरा है.
इस मंदिर में आज भी मौजूद हैं मां काली के हाथों के चिन्ह, किया था भैरव बाबा का वध
12 Sep, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
बताया जाता है कि प्राचीन काल में सहारनपुर में देवता और दानवों का युद्ध हुआ था. मां भगवती वैष्णो की शक्ति दानवों से युद्ध करते हुए जब कम पड़ गई, तब मां भगवती वैष्णो देवी ने मां काली का आह्वान किया. इसके बाद मां काली ने प्रकट होकर भैरव बाबा का वध किया. वैष्णो में ही नहीं सहारनपुर में भी मां भगवती वैष्णो की गुफा का आधार है. मां काली के हाथों के निशान आज भी यहां मौजूद हैं. मां के दर्शन करने के लिए श्रद्धालु हरियाणा, पंजाब, दिल्ली सहित अन्य प्रदेशों से आते हैं.
भैरव बाबा पर बरसा था मां काली का प्रकोप
सहारनपुर नगर के राधा विहार में श्री महाशक्ति पीठ वैष्णो महाकाली मंदिर है. जबकि पास में ही औघड़दानी नर्मदेश्वर महादेव मंदिर है. जहां पर सवा 5 फीट ऊंची पिंडी के रूप में भगवान शिव नर्मदेश्वर के रूप में विराजमान हैं. स्वामी कालेंद्र नंद महाराज बताते हैं कि प्राचीन काल में सहारनपुर में देवता और दानवों का युद्ध हुआ था. मां भगवती वैष्णो की शक्ति दानवों से युद्ध करते हुए, जब कम पड़ गए तब मां भगवती वैष्णो देवी ने मां काली का आह्वान किया था. जिसके बाद मां काली ने प्रकट होकर भगवान शिव के प्रिय भक्त भैरव बाबा का वध किया था.
मनोकामना लेकर पहुंचते हैं श्रद्धालु
आज भी महाशक्ति पीठ वैष्णो महाकाली मंदिर में मां काली के हाथों के चिन्ह मौजूद है. जहां मां वैष्णो का प्राकट्य हुआ था. वहां मां वैष्णो की पिंडियों के चिन्ह है. वहीं, जब खुदाई करके देखी गई, तो छोटी सी गुफा भी दिखाई दी. जो कि आज भी मौजूद है. यह गुफा महाशक्ति पीठ वैष्णो महाकाली मंदिर से औघड़दानी नर्मदेश्वर महादेव मंदिर में निकल रही है. यानी कि वैष्णो में ही नहीं सहारनपुर में भी मां भगवती वैष्णो की गुफा का आधार है. दूरदराज से श्रद्धालु अपनी मनोकामनाएं लेकर यहां पहुंचते हैं और उनकी मनोकामनाएं भी पूर्ण होती है. जबकि हर सावन और नवरात्रों में विशाल भंडारे का भी आयोजन होता है.
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (12 सितंबर 2024)
12 Sep, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि - स्थिति पर नियंत्रण में, सफलता मिले, कार्य कुशलता से संतोष तथा धन का व्यय हो।
वृष राशि - अधिक संवेदन शीलता से हानि, एश्वर्य की प्रवृत्तियां, कष्टप्रद होगी, समय का ध्यान रखें।
मिथुन राशि - धन लाभ, आर्थिक व्यवस्था में सुधार होगा, कुटुम्ब में सुख-समृद्धि होगी।
कर्क राशि - विवाद व अपवाद से बचें, स्त्री वर्ग से सुख-समृद्धि तथा रुके काम बन जाने के आसार हैं।
सिंह राशि - कार्य सफल हों, इष्ट मित्र सुख वर्धक हों, हर्ष से मनोवृत्ति संवेदन शील रहें, लाभ होगा।
कन्या राशि - धन लाभ, आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा, बिगड़े कार्य बनें, मन को संतोष होवे।
तुला राशि - समय अनुकूल नहीं, भाग्य का सितारा साथ देगा, बिगड़े कार्य बने, मन को संतोष होगा।
वृश्चिक राशि - किसी शुभ समाचार से हर्ष होगा, किसी के कार्य बनाने से मन में संतोष, चिंता मुक्त होवेगें।
धनु राशि - मनोवृत्ति संवेदनशील, भोग-एश्वर्य में समय बीतेगा तथा अर्थ लाभ होवेगा।
मकर - वाद-विवाद से हानि की आशंका होगी, क्रोध पर संयम रखें तभी लाभ होवेगा।
कुंभ राशि - विघटनकारी तत्व परेशान करें, अनायास कुछ बाधायें उपस्थित होवेगा।
मीन राशि - तनाव, क्लेश व अशांति, मानसिक विभ्रम मन में उद्विघ्नता भय बना ही रहेगा।
महाभारत : कौन थीं युधिष्ठिर की पत्नी, क्यों साथ नहीं गईं वनवास...क्यों कहीं जाती हैं रहस्यमयी
11 Sep, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
क्या आपको मालूम है कि पांडव भाइयों में प्रमुख युधिष्ठिर की पत्नी कौन थीं. पूरी महाभारत कथा में उनके बारे में बहुत कम मिलता है. हालांकि द्रौपदी को भी उनकी पत्नी कहा जाता है लेकिन वह तो सभी पांचों भाइयों की संयुक्त पत्नी थीं. युधिष्ठिर ने शादी की थी. उनकी द्रौपदी के अलावा एक ही पत्नी थीं. जिससे उन्हें एक बेटा भी था. हालांकि उन्हें महाभारत की सबसे रहस्यमय महिलाओं में माना जाता था.
धर्माचार्य युधिष्ठिर की पत्नी का नाम देविका था. वह एक क्षत्रिय राजकुमारी थी, जिसका विवाह पांडवों के सबसे बड़े भाई युधिष्ठिर से हुआ था. हालांकि महाभारत में उनकी भूमिका को लेकर काफी बहस की जाती है लेकिन सही बात यही है कि उनकी भूमिका इसमें स्पष्ट नहीं है. वह वनवास में युधिष्ठिर के साथ नहीं गईं थीं. वनवास से पूर्व ही उनका विवाह युधिष्ठिर के साथ हो चुका था. लेकिन उनका विवाह द्रौपदी के बाद हुआ था.
तब युधिष्ठिर ने कहा – वह अविवाहित हैं
जब अर्जुन स्वयंवर नीचे पानी में प्रतिबिंब देखकर ऊपर घूमती हुई मछली की आंख में निशाना लगाते हैं तो द्रौपदी उन्हें वर लेती हैं. तब जब राजा द्रुपद से युधिष्ठर का परिचय कराया जाता है तो वह यही कहते हैं कि वह अभी अविवाहित हैं.
कब हुआ युधिष्ठिर का विवाह
देविका और युधिष्ठिर के बीच विवाह तो हुआ लेकिन ये कब हुआ, ये साफ नहीं है. कुछ स्रोतों का दावा है कि वह उनके युवराज के रूप में राज्याभिषेक के बाद उनकी पत्नी बनीं. जबकि कुछ सुझाव ये हैं कि उनका युधिष्ठिर से विवाह कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद हुआ. महाकाव्य की प्रमुख घटनाओं में उनकी उपस्थिति का उल्लेख नहीं है.
वनवास में क्यों नहीं गईं साथ
वैसे आमतौर पर कहा जाता है कि जब पांडवों को 14 साल का वनवास हुआ तो युधिष्ठिर का विवाह हो चुका था. देविका को युधिष्ठिर ने मां कुंती के पास ही छोड़ दिया था. वह वनवास के दौरान उनके साथ ही रहीं.
क्या था दोनों के पुत्र का नाम
देविका का युधिष्ठिर से यौधेय नाम का एक पुत्र था. जिसने महाभारत के युद्ध में हिस्सा लिया और मारा गया. क्योंकि महाभारत के युद्ध के बाद पांडवों के कोई पुत्र जीवित नहीं बचा था. बस उत्तरा के गर्भ में परीक्षित पल रहे थे. जिन्हें बाद में युधिष्ठिर ने 36 बरसों तक राजपाट करने के बाद शासन सौंप दिया था. फिर वह हिमालय की ओर अपने भाइयों और पत्नियों के साथ अंतिम यात्रा पर निकल गए थे. हालांकि विष्णु पुराण में युधिष्ठिर के पुत्र का नाम देवक और माता का नाम यौधेयी बताया गया है.
किस वंश से ताल्लुक रखती थीं
देविका का उल्लेख महाभारत में मिलता है. वह महान राजा, गोवासेन, सिवी साम्राज्य के शासक की बेटी थी. युधिष्ठिर की पत्नी थी. देविका एक बहुत ही पवित्र महिला थीं. महाकाव्य महाभारत में महिलाओं के बीच उनका उल्लेख ” रत्न ” के रूप में किया गया. लेकिन चूंकि उनका बहुत उल्लेख महाभारत में नहीं हुआ लिहाजा उन्हें रहस्यमयी मान लिया गया.
कैसे थे देविका और द्रौपदी के रिश्ते
वह हस्तिनापुर और इंद्रप्रस्थ में युधिष्ठिर के साथ रहती थीं.युधिष्ठिर ने उसके साथ बहुत दयालुता से व्यवहार किया. द्रौपदी के समान उस पर बहुत प्यार और स्नेह बरसाया. देविका को भगवान यम धर्म महाराज की पत्नी माता उर्मिला का अवतार माना जाता है. वह माता कुंती और द्रौपदी के साथ अच्छी तरह रहती थीं. सभी के साथ स्नेह से पेश आती थी. अर्जुन, भीम, नहुला और सहदेव ने उन्हें अपनी मां की तरह माना. उनका बहुत सम्मान किया.
देविका भगवान कृष्ण की एक सच्ची भक्त थीं. जब भी कोई समस्या आती थी तो वह भगवान कृष्ण से प्रार्थना करती थीं. कलियुग की शुरुआत में उत्तर भारत के लोग माता देविका और द्रौपदी को अपने इष्ट देवता के रूप में पूजते थे. समय के साथ लोग देविका के महान चरित्र को भूलने लगे.
ग्रंथों में देविका और द्रौपदी के बीच अच्छे संबंध बताए गए हैं. दोनों महिलाएँ एक-दूसरे का सम्मान करती थीं. हालांकि ये बात सही है कि द्रौपदी की शर्त थी कि जब भी वह पांडवों में किसी के साथ रहेगा, तब उनकी पत्नियों में उनके मिलाप में कतई आड़े नहीं आएंगी. वो समय पूरी तरह उनका अपना होगा.
स्वर्गारोहण में युधिष्ठिर के साथ गईं
कहा जाता है कि 36 सालों के शासनकाल के बाद जब युधिष्ठिर अपने भाइयों के साथ स्वर्गारोहण के लिए हिमालय के मेरू पर्वत की ओर जाते हैं तो सभी भाइयों की सभी पत्नियां भी साथ होती हैं हालांकि यहां देविका कोई जिक्र नहीं आता. इसलिए दोनों तरह की बातें कही जाती हैं कि वह इस स्वर्गारोहण में शुरू में गिरकर मृत्युलोक चली गईं. ये भी कहा जाता है वह इस यात्रा में नहीं थीं बल्कि उनकी मृत्यु बाद में हुई
काली मां के इस मंदिर में होता है चमत्कार! इस पेड़ का पत्ता चढ़ाने से पूरी होती है हर मुराद!
11 Sep, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
माता काली का एक ऐसा मंदिर है जो अपने आप में अद्भुत है. कहा जाता है कि जैसे ही कोई भक्त मंदिर में प्रवेश करता है, तो उसे एक अजीब सा एहसास होता है. मानो कि कोई शक्ति उसके आसपास है. यह भी कहा जाता है कि यहां आते ही मां काली उसके सारे संकट समाप्त कर देती हैं. सोनभद्र जिला मुख्यालय रॉबर्ट्सगंज से करीब 20 किलोमीटर दूर स्थित रामगढ़ में ऐतिहासिक काली माता का मंदिर है. इस मंदिर अपने आप में चमत्कार है. कहा जाता है कि यहां पर प्रवेश करने मात्र से ही श्रद्धालुओं को अलौकिक शक्ति की अनुभूति होती है. यह मंदिर कई दशक पुराना बताया जाता है.
मंदिर के प्रधान पुजारी ने कहा कि यहां पर मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और बिहार से बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं और जो भी मन्नत मांगते हैं उनकी मन्नत मां काली पूरी कर देती है. इस मंदिर परिसर में एक ही जगह एक बेल और एक नीम का पेड़ है. मान्यता है कि जो भी भक्त इस काली माता मंदिर में आता हैं और वह इस बेल और नीम का पत्ता तोड़कर मां काली के पैरों में चढ़ा देता है और एक नारियल इस पेड़ में बांधकर अपनी मन्नत मांगता है, तो उसकी मन्नत मां काली पूरी कर देती है. साथ ही उसके घर परिवार पर जो भी बाधा होती है, वह मां काली की कृपा से दूर हो जाती है.
हमने मंदिर के प्रधान पुजारी अशोक कुमार से बात की तो उन्होंने बताया कि हर नवरात्रि में यहां पर विशाल भंडारे का आयोजन किया जाता है. हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं और मां काली के दर्शन पूजन करते हैं और मां काली का प्रसाद ग्रहण करते हैं. इसके साथ ही श्रद्धालुओं की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर पुक्ता इंतजाम किए जाते हैं. ताकि किसी भी श्रद्धालु को किसी तरह की कोई असुविधा न हो. पुजारी द्वारा यह भी बताया गया कि एक भक्त यहां आए और उन्होंने बताया की घर की माली हालत उनकी ठीक नहीं है और वह परेशानियों से घिरे हुए हैं, साथ ही उनका पूरा परिवार कई रोगों से ग्रसित था. तब उन्होंने मां काली मंदिर पहुंचकर मां का पूजन अर्चन करना शुरू किया. जिसके बाद मां के दरबार में अपनी अर्जी लगाई और मां के आशीर्वाद से उनके जिंदगी में बदलाव शुरू हो गया. आज पूरा परिवार सुखमय जीवन जी रहा है. इस मंदिर में कई प्रांतों से भक्त अपनी समस्या लेकर मां के दरबार में आते हैं और सच्चे मन से जो भी मां से विनती करता है, उसकी मनोकामना पूरी होती है.
उत्तराखंड में क्यों नहीं करना चाहिए गणपति की मूर्ति का विसर्जन? जानें धार्मिक मान्यता
11 Sep, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
देशभर में इन दिनों गणेश उत्सव की धूम है. उत्तराखंड में भी पिछले कुछ साल से गणेश उत्सव धूमधाम से मनाया जा रहा है. घरों से लेकर सार्वजनिक स्थानों पर बप्पा की मूर्ति स्थापित की गई हैं. आपको जगह-जगह भगवान गणेश के पंडाल दिख जाएंगे. भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश उत्सव की शुरुआत हो जाती है. यह उत्सव 10 दिनों तक चलता है. इस दौरान बप्पा के भक्त अपने घर गणपति की मूर्ति लाते हैं और पूरे विधि-विधान से पूजा करते हैं. उसके बाद अनंत चतुर्दशी के दिन बप्पा का विसर्जन कर विदाई की जाती है. इस बार अनंत चतुर्दशी के 17 सितंबर को है. लेकिन कुछ लोग गणपति विसर्जन कुछ दिन पहले ही कर देते हैं. जैसे कुछ लोग 3 दिन में तो कुछ 5 दिन बाद ही बप्पा की मूर्ति का विसर्जन कर देते हैं. हालांकि उत्तराखंड का एक वर्ग ऐसा भी है, जो गणपति विसर्जन को शुभ नहीं मानता है. गौरतलब है कि धार्मिक मान्यता के अनुसार उत्तराखंड विघ्नहर्ता की जन्मस्थली है.
नैनीताल निवासी पंडित प्रकाश जोशी बताते हैं कि हमारी देवभूमि से गणपति महाराज की कई पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं. देवभूमि में ऐसा ही स्थान है डोडीताल, जो अपने अप्रतिम सौंदर्य के लिए भी विश्व प्रसिद्ध है. साथ ही लोगों के दुख हरने वाले विघ्नहर्ता का जन्मस्थान भी है. उनका मानना है कि भगवान गणेश जब यहां रहते हैं, तो उनका विसर्जन कैसे हो सकता है. यही वजह है कि उत्तराखंड में गणपति का विसर्जन नहीं किया जाना चाहिए.
गणेश जी की मूर्ति को न करें विसर्जन
पंडित प्रकाश जोशी आगे बताते हैं कि हमारे किसी भी धर्मशास्त्र में ऐसा नहीं लिखा गया है कि गणेश जी की मूर्ति को विसर्जन किया जाए. आप अपने घर गणपति को लाते हैं तो वह घर में ही विराजमान होने चाहिए. क्योंकि गणेश जी के साथ रिद्धि और सिद्ध होते हैं. इसलिए गणेश जी की मूर्ति को विसर्जन नहीं करना चाहिए.
विसर्जन के बदले करें ये काम
पंडित प्रकाश जोशी आगे बताते हैं कि गणेश जी की मूर्ति के विसर्जन करने के बजाय शीतल जल से उनकी मूर्ति को स्नान करवाना चाहिए. इसका पौराणिक महत्व है और पुराणों में भी इस बात का जिक्र है. जब महर्षि वेदव्यास जी एवं गणेश जी महाभारत लिख रहे थे तो उस समय गणेश जी का मस्तिष्क कुछ गर्म हो गया था इसलिए वेदव्यास जी ने उन्हें शीतल जल में एक डुबकी लगाने को कहा था. जिसके बाद गणेश जी ने शीतल जल में डुबकी लगाई थी. उन्होंने बताया कि गणेश जी का जन्मस्थान या घर उत्तराखंड में स्थित है तो यहां गणेश जी की मूर्ति का विसर्जन नहीं करना चाहिए.
इस गुफा का है अनोखा रहस्य, भक्तों का दावा- पत्थरों से आती है डमरू की आवाज, अंदर विराजते हैं महादेव!
11 Sep, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में एक ऐसी गुफा है, जो प्राकृतिक रूप से बनी है और जिसके भीतर भगवान शिव अपने कुटुंब के साथ विराजमान हैं. इस गुफा का नाम है अमरनाथ गुफा, जो रहस्यों से भरी हुई है और यहां का माहौल किसी हिमालयी गुफा का अनुभव कराता है. गुफा की सबसे अद्भुत विशेषता यह है कि यहां के पत्थरों से डमरू जैसी आवाजें आती हैं, जो आज तक रहस्य बनी हुई हैं.
सोनभद्र, जिसे ‘गुप्त काशी’ के नाम से भी जाना जाता है, उत्तर प्रदेश का दूसरा सबसे बड़ा जिला है. यह जिला प्राकृतिक सुंदरता, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व से भरा हुआ है. रामायण और महाभारत काल की गाथाओं से जुड़े इस जिले में हर कालखंड के इतिहास की झलक मिलती है.
अमरनाथ गुफा का अद्भुत दृश्य
सोनभद्र मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर दूर स्थित अमरनाथ गुफा में महादेव माता पार्वती के साथ विराजमान हैं. यह गुफा करीब 27 मीटर गहरी है और भीतर की अद्भुत संरचना और माहौल लोगों को मंत्रमुग्ध कर देता है. गुफा के भीतर एक विशेष पत्थर से डमरू या ढोल जैसी ध्वनि सुनाई देती है, जिसका रहस्य आज तक सुलझाया नहीं जा सका है.
रहस्य से भरी गुफा की कहानी
गुफा के रहस्य और भगवान शिव की उपस्थिति के बारे में स्थानीय लोगों और साधकों से जानने की कोशिश की गई, लेकिन कोई सटीक जानकारी नहीं मिली. लोगों का मानना है कि इस गुफा का अस्तित्व अनादिकाल से है और भगवान शिव का यहां निवास उसी समय से माना जाता है.
75 वर्षीय साधक कालिका प्रसाद, जो वर्षों से मंदिर में पूजा करते आ रहे हैं, ने बताया कि कई कंपनियों ने इस पहाड़ी को अपने उपयोग में लाने की कोशिश की, लेकिन महादेव की महिमा से उनका प्रयास विफल रहा. एक कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी को स्वप्न में भगवान शिव के दर्शन हुए, जिसके बाद गुफा का रास्ता खुला. गुफा के भीतर माता लक्ष्मी, दुर्गा और काली की प्राकृतिक शिलाओं के रूप में मूर्तियां भी पाई गईं, जिसके बाद यहां अनवरत पूजा अर्चना शुरू हो गई.
महादेव की कृपा और रहस्यपूर्ण जलधारा
इस गुफा का एक और बड़ा रहस्य है महादेव के ऊपर गिरने वाली जलधारा, जो सालभर बिना किसी स्रोत के गिरती रहती है, जैसे शिवलिंग पर जलहरी रखी हो. यह जलधारा कहां से आती है, इसका भी किसी को सटीक जानकारी नहीं है. इस दुर्लभ दृश्य को देखने वाले इसे हिमालय की गुफाओं जैसा अनुभव बताते हैं.
धार्मिक महत्त्व और मान्यताएं
अमरनाथ गुफा, जिसे डमडम गुफा भी कहा जाता है, महाशिवरात्रि और सावन मास के दौरान श्रद्धालुओं से भरी रहती है. यहां दूर-दूर से भक्त महादेव का आशीर्वाद लेने आते हैं. कहा जाता है कि यहां आने वाले सच्चे भक्तों की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं और उन्हें मानसिक शांति प्राप्त होती है.
एक अनोखी यात्रा
यह गुफा न सिर्फ धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका प्राकृतिक वातावरण भी मन को शांति और आध्यात्मिक अनुभव से भर देता है. अगर आप एक बार इस गुफा के दर्शन कर लेते हैं, तो यहां की शांति और रहस्यमयी वातावरण आपके मन को हमेशा के लिए छू जाएगा
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (11 सितंबर 2024)
11 Sep, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि - कार्यवृत्ति में सुधार, कुटुम्ब की चिन्ता सुलझे, मित्र वर्ग सहायक हेगा ध्यान दें।
वृष राशि - कार्य कुशलता से संतोष, अधिक तीव्रता से आर्थिक हानि सम्भव, मन में व्यग्रता बने।
मिथुन राशि - समृद्धि के साधन जुटाये, कार्य कुशलता से संतोष हो तथा कार्य की वृद्धि होगी।
कर्क राशि - विरोधी तत्व परेशान करेंगे, कार्य व्यवसाय में अनियमित्ता होगी, ध्यान अवयश्य रखें।
सिंह राशि - अधिकारियों के आरोप से बचें, कार्य क्षमता बनी ही रहेगी, विशेष कार्य निपटायें।
कन्या राशि - स्त्री वर्ग से हर्ष उल्लास होगा, समृद्धि के योग बनेंगे, कार्य-कुशलता से लाभ होगा।
तुला राशि - सम्पन्न शीलता सफल होगा, इष्टमित्र सुख वर्धक होगें, व्यवसाय ठीक से चलेगा।
वृश्चिक राशि - स्त्री शरी कष्ट, मानसिक बेचैनी, स्वभाव में उद्विघ्नता तथा मन में विभ्रम होगा।
धनु राशि - तनाव क्लेश व अशान्त मन रहेगा, मानसिक उद्विघ्नता तथा मन विभ्रम हेवेगा।
मकर - सफलता एवं समृद्धि के साधन जुटायें, कार्य कुशलता की ओर ध्यान अवश्य देवें।
कुंभ राशि - स्वभाव में क्रोध व आवेश से हानि परेशानी तथा भावुकता से बचकर चलें।
मीन राशि - अधिकारियों से तनाव कम हो कुछ, योजना सफल हो, स्त्री से सुख मिलेगा ध्यान दें।