धर्म एवं ज्योतिष
इस समय के दौरान बिल्कुल भी ना करें पिंडदान, जानें कैसे मिलेगी पितरों को तृप्ति, क्या है 'पंचक' का समय?
17 Sep, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू पंचाग के अनुसार इस बार पितृपक्ष भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा लगते ही प्रारंभ होने जा रहा है। ऐसे में हम सभी अपने पितरों के निमित्त पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध कर्म करने उनकी आत्मा को तृप्त कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. पितृपक्ष पक्ष कुला 15 दिनों की अवधि तक चलता है, इस दौरान लोग नियमित ठंग से अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा भाव से उनकी तृप्ति के लिए पिंडदान और तर्पण के माध्यम से उनकों भोजन प्रदान करते हैं.
जिससे उनकी आत्मा को परम गति प्राप्त करने में सहायता मिलती है. ऐसे में यह 15 दिन पितरों को समर्पित होता है परंतु पितृपक्ष के इन 15 दिनों में यदि पंचक लग जाए तो उतने दिन तक पिंडदान और तर्पण जैसे काम को करना वर्जित माना जाता है. तो आइए हम आपको बताने जा रहे हैं आखिर पंचक में पिंडदान जैसे कर्मकांड क्यों नहीं किए जाते हैं और इस पितृपक्ष यह पंचक कब से कब तक रहेगा.
पंचक में क्यों नहीं करते है पिंडदान
पंचांग के अनुसार, इस बार भाद्रपद मास का पचंक 16 सितंबर दिन सोमवार को सुबह 5 बजकर 45 मिनट पर प्रारंभ होगा. 20 सितंबर को सुबह 5 बजकर 20 मिनट पर इसका समापन होगा. वहीं पितृपक्ष 17 सिंतबर से शुरू होने जा रहा है. पंचक काल के चलते 17 से 20 सिंतबर की प्रातः 5 बजकर 20 मिनट तक पिंडदान और श्राद्ध कर्म बंद रहेंगे. हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार पंचक के दौरान पितृपक्ष का कर्मकांड करना शुभ नहीं माना जाता है इसलिए 17 से 20 सितंबर तक श्राद्ध कर्मकांड पर विराम लगा रहेगा. उसके बाद ही आप अपने पितरों का पिंडदान और तर्पण कर सकते हैं. इसके बीच यदि पितरों की पिंडदान करने की तिथि पड़ती है और पंचक के कारण आप उनका पिंडदान नहीं कर पाते हैं तो उसके लिए भाद्रपद की अमावस्या तिथि को श्राद्ध कर्मकांड कर सकते हैं.
पितरों की तृप्ति के लिए किया जाता है श्राद्ध
आने वाले इन पंद्रह दिनों में लोग अपने पितरों को नदियों में सुबह तिल के साथ जल लेकर सूर्य की तरफ मुंह करके हाथों से जल तर्पण करते हैं और उनकी मृत्युतिथि पर पार्वण श्राद्ध करते हैं. श्राद्ध के दिनों में ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए. पिता-माता और पारिवारिक मनुष्यों की मृत्यु के बाद उनकी मुक्ति के लिए श्रद्धापूर्वक किए जाने वाले कर्म को पितृ श्राद्ध कहा जाता है.
अनंत चतुर्दशी पर करें ये छोटा सा उपाय, भगवान विष्णु होंगे प्रसन्न, देवघर के ज्योतिषी से जानें विधि
17 Sep, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष के चतुर्दशी के दिन अनंत चतुर्दशी का त्यौहार मनाया जाता है. हिंदु धर्म मे अनंत चतुर्दशी का खास महत्व है. इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा आराधना की जाती है. अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा आराधना करने से जीवन के सभी प्रकार के कष्ट समाप्त हो जाते हैं.
चतुर्दशी के दिन भगवान गणेश का भी विसर्जन किया जाता है. इसके साथ ही इस दिन अगर जातक कुछ उपाय कर लेते है तो जीवन मे सभी प्रकार की समस्या समाप्त हो जाती है. आईये देवघर के ज्योतिषाचार्य से जानते हैं. अनंत चतुर्दशी और पूजा शुभ मुहूर्त कब है?. इस दिन क्या उपाय करना चाहिए?.
क्या कहते है देवघर के ज्योतिषाचार्य
देवघर के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित नंदकिशोर मुदगल ने लोकल 18 से बातचीत करते हुए कहा कि हर साल भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन अनंत चतुर्दशी का त्यौहार मनाया जाता है. इस साल कल यानी 17 सितंबर को अनंत चतुर्दशी का त्यौहार मनाया जायेगा. इस साल अनंत चतुर्दशी के दिन ऐसा संयोग बनने जा रहा है की विश्वकर्मा पूजा के साथ भाद्रपद की पूर्णिमा तिथि भी है. इसी दिन गणेश प्रतिमा का भी विसर्जन किया जाएगा.
अनंत चतुर्दशी के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त
चतुर्दशी तिथि की शुरुआत 16 सितम्बर दोपहर 3 बजकर 44 मिनट से हो रहा है. समापन अगले दिन 17सितम्बर दोपहर 12बजकर 56 मिनट मे हो रहा है. इसलिए उदयातिथि के अनुसार 17सितम्बर को अनंत चतुर्दशी का व्रत रखा जाएगा.इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 11 मिनट से लेकर 11बजकर 34 मिनट तक रहने वाला है.
इस दिन क्या करे उपाय
ज्योतिषाचार्य पंडित नंदकिशोर मुद्गल बताते हैं कि इस दिन सत्यनारायण की कथा अवश्य सुननी चाहिए. उसे दिन भगवान विष्णु को पंचामृत का भोग लगाना चाहिए .पंचामृत में तुलसी का पत्ता अवश्य डालें. इसके साथ ही इस दिन अनंत डोरा जिसे अनंत सूत्र भी कहते है. इसे भगवान श्री विष्णु के चरणों में अर्पण कर पूजा समाप्ति के बाद अपने बाह मे अवश्य बांधे. ध्यान रहे यह बाए बाँह मे बांधना चाहिए. इससे सारी बधाएं आपसे दूर रहेगी. कभी भी पारिवारिक कलह नहीं होगी. इसके साथ ही संध्या के समय घी और 14कपूर का दीपक जलाकर उसमे 14लोंग डालकर घर के किचन मे रख दे कभी भी दरिद्रता नहीं आएगी.
भगवान गणेश की 12वीं सदी की प्रतिमा है बेहद खास, इतिहास प्रेमियों के लिए बनाई गई संग्रहालय
17 Sep, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मध्यप्रदेश का बुंदेलखंड क्षेत्र ऐतिहासिक और पुरातात्विक दृष्टिकोण से अत्यंत समृद्ध है. इस क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण पुरातात्विक धरोहरें मौजूद हैं, जिनमें से एक है रानी दमयंती जिला पुरातत्व संग्रहालय. इस संग्रहालय में 11वीं और 12वीं शताब्दी की भगवान गणेश की दुर्लभ और आकर्षक प्रतिमाएं देखने को मिलती हैं, जो अपने भाव भंगी और नृत्यरत मुद्राओं के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं.
गणेश प्रतिमाओं की विशेषता
संग्रहालय में कुल 8 गणेश प्रतिमाओं का प्रदर्शन किया गया है, जिनमें से प्रमुख प्रतिमाएं तेंदूखेड़ा ब्लॉक के दौनी और अलोनी ग्राम से प्राप्त हुई हैं. इनमें से एक विशेष नृत्यरत गणेश की प्रतिमा खारी देवरी नामक स्थान से मिली है, जो अपनी उत्कृष्ट कलाकारी और लाल बलुआ पत्थर से निर्मित होने के कारण बेहद खास है. इन प्रतिमाओं में गणेशजी को नृत्य मुद्रा और आसन मुद्रा में दिखाया गया है, जो 11वीं से 12वीं शताब्दी की स्थापत्य और मूर्तिकला का उत्कृष्ट उदाहरण हैं.
संग्रहालय की गणेश प्रतिमाओं का ऐतिहासिक महत्व
पुरातत्व विभाग के अधिकारी डॉ. सुरेंद्र चौरसिया ने ‘लोकल 18’ से बातचीत में बताया कि यह संग्रहालय गणेश उत्सव के समय विशेष महत्व प्राप्त करता है, क्योंकि यहां भगवान गणेश की प्राचीन प्रतिमाओं का संग्रह मौजूद है. यह इस बात का प्रमाण है कि प्राचीन काल में दमोह जिले की भूमि पर भगवान गणेश की पूजा होती थी. यह सभी प्रतिमाएं लाल बलुआ पत्थर से बनी हैं, जो अपनी संरचनात्मक मजबूती के लिए जानी जाती हैं. बलुआ पत्थर के छोटे-छोटे कण दबाव पड़ने पर आपस में जुड़कर एक मजबूत संरचना का निर्माण करते हैं, जिससे ये प्रतिमाएं सदियों से सुरक्षित हैं.
गणेश प्रतिमाओं का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व
इन प्राचीन गणेश प्रतिमाओं का दमोह जिले की धरा से प्राप्त होना यह दर्शाता है कि इस क्षेत्र में भगवान गणेश की उपासना और आस्था का गहरा संबंध रहा है. इन प्रतिमाओं के माध्यम से प्राचीन मूर्तिकारों की कलात्मक क्षमता और धार्मिक आस्था का अद्भुत मेल देखने को मिलता है, जो आज भी लोगों को प्रेरित करता है.
रानी दमयंती संग्रहालय में प्रदर्शित यह गणेश प्रतिमाएं बुंदेलखंड क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं और यहां आने वाले श्रद्धालुओं और इतिहास प्रेमियों के लिए यह संग्रहालय एक विशेष आकर्षण का केंद्र है.
अगर घर में नहीं है सुख शांति तो श्राद्ध पक्ष में करें यह काम, जानें कब से शुरू हैं पितृपक्ष
17 Sep, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में वैदिक परंपरा के अनुसार व्रत-त्योहार आते है. हिंदुओं में मनुष्य के गर्भधारण से लेकर मृत्यु के बाद तक कई संस्कार होते हैं. अंत्येष्टि को अंतिम संस्कार माना जाता है. व्यक्ति के मरने के बाद भी भी कुछ ऐसे कर्म होते हैं जिन्हें मृतक के संबंधी विशेषकर संतान को करना होता है. जिसे हम श्राद्ध कहते हैं. वैसे तो प्रत्येक मास की अमावस्या तिथि को श्राद्ध कर्म किया जा सकता है. लेकिन, भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन की अमावस्या तक पूरे पखवाड़ा श्राद्ध कर्म करने का विधान है.
पंडित घनश्याम शर्मा ने बताया कि इस बार भाद्रपद शुक्ल पक्ष पूर्णिमा 17 सितंबर को है. इस दिन से पितृपक्ष आरंभ हो जाएगा. पैतृक अमावस्या पितृ विसर्जन 2 अक्टूबर को होगा जिसे महाल या पर्व के रूप में मनाया जाएगा. इस दौरान षष्ठी व सप्तमी का श्राद्ध 23 सितंबर को होगा. वहीं 28 सितंबर को कोई श्राद्ध नहीं होगा.
पितरों की आत्मा शांति के लिए ये करें
धर्म विशेषज्ञ चंद्रप्रकाश ढांढण ने बताया कि श्रद्धा के समय भगवान की पूजा से पहले अपने पूर्वजों की पूजा-अर्चना करनी चाहिए. पितरों के प्रसन्न होने पर देवता भी प्रसन्न होते हैं. इसको लेकर मान्यता है कि यदि विधि-विधान के अनुसार पितरों का तर्पण न किया जाए तो उन्हें मुक्ति नहीं मिलती और उनकी आत्मा मृत्युलोक में भटकती रहती है.
हिंदू मान्यताओं के अनुसार पितरों की आत्मा की मुक्ति के लिए ब्राह्मणों को भोजन कराकर वस्त्र दान देना चाहिए. इससे घर में सुख शांति व प्रसन्नता बनी रहती है व वंश वृद्धि भी होती है.
पिंडदान से धन-धान्य की होती है प्राप्ति
चंद्रप्रकाश ढांढण ने बताया कि पितृपक्ष में पितरों को आस रहती है कि उनके पुत्र व पौत्रादि सहित आदि पिंडदान कर उन्हें संतुष्ट करेंगे. पितरों का तर्पण तिल, जल और कुश से किया जाता है. धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि पितृ को पिंडदान करने वाला हर व्यक्ति दीर्घायु, पुत्रपौत्राद, यश स्वर्ग, लक्ष्मी, पशु, सुख-साधन और धन-धान्य को प्राप्त करता है. पितृ कृपा से उसे सब प्रकार की समृद्धि, सौभाग्य, राज्य व मोक्ष की प्राप्ति होती है.
कैसे निर्धारित होता है श्राद्ध का दिन
जिस तिथि को पिता, माता या दोनों का निधन हुआ है, पितृपक्ष में उसी तिथि को श्राद्ध करना चाहिए. इस दौरान पूर्वज अपने परिजनों के समीप विभिन्न रूपों में आते हैं और मोक्ष की कामना करते हैं. परिजन से संतुष्ट होने पर पूर्वज आशीर्वाद देते हैं. इसके अलावा पूर्णिमा से शुरू होकर अमावस्या यानी 2 अक्टूबर को पूरे होंगे.
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (17 सितंबर 2024)
17 Sep, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि - विरोधी तत्वों से परेशानी, अधिकारियों से तनाव तथा इष्ट मित्र कष्टप्रद बने रहेगा।
वृष राशि - कार्य कुशलात से संतोष, व्यवसायिक गति में सुधार तथा कार्य योजना अवश्य बनेगी।
मिथुन राशि - इष्ट मित्रों से लाभ, स्त्री से मन प्रसन्न रहेगा, मनोवृत्ति संवेदनशील बनी ही रहेगी।
कर्क राशि - मनोबल उत्साह वर्धक होवे, कार्य कुशलता से संतोष, हर्ष होवे, कार्य व्यवसाय उत्तम होगा।
सिंह राशि - चोट-चपेट होने का डर है, कार्य गति में बाधा होगी किन्तु अधिकारियों का सहयोग मिले।
कन्या राशि - आकस्मिक मान प्रतिष्ठा प्रभुत्व वृद्धि तथा स्त्री वर्ग से तनाव तथा वातावरण कष्ट प्रद रहे।
तुला राशि - अधिकारी वर्ग सहायक होगें तथा भाग्य का सितारा साथ देगा, रुके कार्य बन ही जायेगें।
वृश्चिक राशि - किसी के धोखे से विवाद होने की संभावना बने तथा धन हानि व्यर्थ भ्रमण होवेगा।
धनु राशि - मनोवृत्ति संवेदनशील रहे, भोग-एश्वर्य में समय बीते तथा कार्य में बाधा अवश्य होगी।
मकर राशि - स्थिति में सुधार होते हुए भी फलप्रद न हो, कार्य विफलता, चिंता रहेगी।
कुंभ राशि - धन लाभ, आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा तथा कार्य बने अधिकारियों का समर्थन फलप्रद हो।
मीन राशि - समय अनुकूल नहीं, विशेष कार्य स्थिगित रखें तथा कार्य अवरोध अवश्य ही होगा।
रामा और श्यामा तुलसी में क्या होता है अंतर? जानिए इनका धार्मिक और औषधीय महत्व
16 Sep, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
तुलसी भारतीय संस्कृति में धार्मिक और औषधीय महत्व रखती है. पूजा पाठ में तुलसी के पौधे को विशेष स्थान दिया जाता है, क्योंकि इसे धार्मिक अनुष्ठानों और यज्ञों में पवित्र माना जाता है. आयुर्वेद में तुलसी को कई स्वास्थ्य लाभों के लिए जाना जाता है. यह प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने, तनाव कम करने, और कई बीमारियों से राहत प्रदान करने में सहायक होती है. तुलसी के पत्ते, अर्क, और चाय के रूप में सेवन से शरीर की सफाई होती है और संपूर्ण स्वास्थ्य में सुधार होता है. वहीं पूजा पाठ और औषधीय के रूप में इस्तेमाल होने वाली तुलसी अलग अलग है. एक रामा तुलसी कहलाती है और दूसरी श्यामा तुलसी.
रामा तुलसी और श्यामा तुलसी
लोकल 18 के साथ बातचीत के दौरान उत्तराखंड के ऋषिकेश में स्थित श्री सच्चा अखिलेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी शुभम तिवारी ने बताया कि तुलसी का भारतीय संस्कृति में गहरा धार्मिक और औषधीय महत्व है. पूजा-पाठ में तुलसी का पौधा विशेष रूप से पूजनीय माना जाता है और इसे भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का प्रिय माना जाता है. औषधीय दृष्टिकोण से, तुलसी को आयुर्वेद में महत्वपूर्ण माना जाता है. यह रोग प्रतिकारक शक्ति को बढ़ाने, तनाव को कम करने और संक्रामक बीमारियों से सुरक्षा प्रदान करने में सहायक है. वहीं पूजा पाठ और औषधीय तत्वों से युक्त तुलसी अलग अलग होती है. तुलसी के प्रकार की बात करें तो तुलसी दो प्रकार की होती है रामा और श्यामा.
रामा तुलसी और श्यामा तुलसी में अंतर
रामा तुलसी और श्यामा तुलसी दोनों ही महत्वपूर्ण पौधे हैं, लेकिन इनमें कुछ प्रमुख अंतर हैं. रामा तुलसी के पत्ते हरे रंग के होते हैं और इसका स्वाद अपेक्षाकृत माइल्ड होता है. यह पौधा अक्सर धार्मिक अनुष्ठानों में इस्तेमाल होता है और इसके औषधीय गुण भी अत्यधिक महत्वपूर्ण माने जाते हैं. दूसरी ओर, श्यामा तुलसी, जिसे ‘कृष्ण तुलसी’ भी कहा जाता है, के पत्ते गहरे हरे से लेकर बैंगनी रंग के होते हैं और इसका स्वाद तीखा और मजबूत होता है. श्यामा तुलसी को आमतौर पर औषधीय प्रयोगों के लिए अधिक उपयोग किया जाता है, जैसे कि तनाव कम करने और प्रतिरक्षा प्रणाली को सशक्त बनाने के लिए. दोनों तुलसी के पौधों में स्वास्थ्य लाभ हैं, लेकिन उनका उपयोग और गुण अलग-अलग होते हैं.
बौरहा बाबा के रूप में यहां विराजमान हैं भगवान भोलेनाथ, प्रभु श्रीराम भी कर चुके हैं प्रवास, भक्तों के लिए है बेहद खास
16 Sep, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
यूपी के आजमगढ़ में कई ऐसे धार्मिक स्थल हैं, जहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ इकट्ठा होती है. लोग दूर-दूर से अपनी श्रद्धा और आस्था की पूर्ति के लिए धार्मिक केन्द्रों पर आते हैं. इसी तरह आजमगढ़ के रेलवे स्टेशन के समीप बौरहा बाबा का आश्रम है, जो लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है.
यहां दूर- दराज के लोग पूजा-अर्चना के लिए आते हैं. आश्रम परिसर में भगवान भोलेनाथ का मंदिर भी है. यहां विशाल शिवलिंग भी विराजमान है. मान्यता है कि मंदिर में प्राचीन समय से ही शिवलिंग स्थापित है.
भगवान राम ने किया था प्रवास
मंदिर के महंत सिभादास महाराजने लोकल 18 को बताया कि भगवान शिव ने इसी स्थान पर बौरहा रूप धारण किया था. यहीं शिवलिंग का प्रादुर्भाव हुआ है. जब भगवान भोलेनाथ ने अपना विकराल रूप धारण किया था और विषपान के बाद बौरहा बाबा के रूप में इस स्थान पर तपस्या में लीन हुए थे. तभी से लेकर आज तक इस स्थान को बौरहा बाबा के स्थान के नाम से जाना जाता है. आस-पास के क्षेत्र से लोग प्रतिदिन यहां पर आकर शिवलिंग पर जल एवं दूध से अभिषेक करते हैं. इसके अलावा मंदिर में स्थित बौरहा बाबा की प्रतिमा के दर्शन-पूजन भी किए जाते हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान राम जनकपुर जाते वक्त जब तमसा नदी के पास प्रवास किया था, उस वक्त भगवान राम इस स्थान से होकर गुजरे थे.
प्रशासन से नहीं मिलती कोई मदद
आश्रम के महंत सोभादास ने लोकल 18 ने बताया कि यह आश्रम सतयुग के समय का है. भगवान भोलेनाथ के बौरहा रूप का दर्शन करने के लिए भगवान राम ने इस स्थान पर जनकपुर जाते समय प्रवास किया था. उन्होंने बताया कि मंदिर के संरक्षण के लिए प्रशासन किसी भी तरीके की मदद नहीं करता है. मंदिर का विकास जो भी हुआ है, वह यहां पर आने जाने वाले श्रद्धालुओं की मदद से संभव हो पाया है. रेलवे स्टेशन के समीप होने के कारण मंदिर क्षेत्र एवं मंदिर की जमीन पर पहले रेलवे का भी हस्तक्षेप हुआ करता था, लेकिन आस-पास के लोगों और श्रद्धालुओं के विरोध के बाद मंदिर परिसर की जगह को संरक्षित किया जाना संभव हो सका.
यूपी में यहां है भगवान वामन का प्राचीन मंदिर, आस्था का है बड़ा केन्द्र, दर्शन मात्र से मुरादें होती है पूरी
16 Sep, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
आध्यात्मिक मान्यताओं और देवी-देवताओं की तपोस्थली के रूप में विंध्यक्षेत्र का नाम प्राचीनकाल से लिया जाता रहा है. इस क्षेत्र में स्थित ऐतिहासिक मंदिरों का उल्लेख विभिन्न पुराणों में मिलता है, जो इस स्थान की धार्मिक महत्ता को दर्शाता है.
उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में भगवान वामन महराज का मंदिर भी इसी श्रृंखला का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. यह प्राचीन मंदिर भगवान विष्णु के पांचवें अवतार वामन देवता को समर्पित है. मान्यता है कि इस मंदिर के दर्शन मात्र से भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं. हालांकि, इस मंदिर के निर्माण का कोई सटीक ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है.
भगवान वामन सभी इच्छाओं को करते हैं पूर्ण
डॉ. राजमोहन शर्मा ने लोकल 18 को बताया कि यह मंदिर अपनी धार्मिक मान्यताओं और वास्तु के लिए प्रसिद्ध है. भक्त यहां अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए आते हैं और मान्यता है कि भगवान वामन उनकी सभी इच्छाए पूरी करते हैं. मंदिर में भगवान की भव्य आरती प्रतिदिन सुबह और शाम को होती है, जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु शामिल होते हैं. हर साल सितंबर में वामन द्वादशी के अवसर पर यहां एक विशेष महोत्सव का आयोजन किया जाता है, जिसमें हजारों की संख्या में भक्त भाग लेते हैं.
यह है भगवान का इतिहास
डॉ. शर्मा के अनुसार भगवान विष्णु ने राजा बलि के अहंकार को समाप्त करने के लिए वामन रूप धारण किया था. कथा के अनुसार वामन भगवान ने तीन पग भूमि मांगी थी, जिसमें उन्होंने दो पगों में धरती और आकाश को नाप लिया और तीसरे पग में राजा बलि ने अपना सिर अर्पित कर दिया. इस घटना के बाद राजा बलि पाताल लोक चले गए.
रक्षाबंधन से जुड़ी है मान्यता
मंदिर के पुजारी बताते हैं कि रक्षाबंधन का पर्व भी वामन भगवान से जुड़ा हुआ है. राजा बलि ने भगवान विष्णु से वरदान मांगा था कि जब भी वह अपनी आंखें खोलें, सबसे पहले उन्हें विष्णु का दर्शन हो. इस वरदान के चलते विष्णु पाताल लोक में राजा बलि के साथ रहने लगे. भगवान विष्णु के पाताल जाने के बाद लक्ष्मी माता चिंतित हो गईं और उन्होंने राजा बलि को भाई बनाकर रक्षा बांधी. इसके बाद राजा बलि ने भगवान विष्णु को मुक्त कर दिया.
सच्चे भक्तों की हर मुराद होती है पूरी
स्थानीय भक्त संदीप कुमार गुप्ता ने लोकल 18 को बताया कि भगवान वामन का यह मंदिर आस्था का प्रमुख केंद्र है. यहां आने वाले भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है। संदीप कने बताया कि जब भी समय मिलता है यहां दर्शन के लिए आते हैं, क्योंकि यहा सच्चे मन से की गई प्रार्थनाएं हमेशा सफल होती है. भगवान वामन महराज का यह मंदिर ना केवल आध्यात्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि इसका ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व भी है, जो इस क्षेत्र को और भी विशिष्ट बनाता है.
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (16 सितंबर 2024)
16 Sep, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- धन लाभ एवं योजनायें फलीभूत हों, कार्य-कुशलता से पूर्ण संतोष अवश्य होगा, धैर्य रखें।
वृष राशि :- मनोवृत्ति संवेदनशील रहे, आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा, समय स्थिति का ध्यान अवश्य रखें।
मिथुन राशि :- मनोबल उत्साहवर्धक रहे, व्यावसायिक क्षमता में वृद्धि होगी, कार्य-कुशलता से संतोष होगा।
कर्क राशि :- मनोबल संवेदनशील रहे, भाग्य का सितारा साथ देगा, बिगड़े हुये कार्य अवश्य ही बन जायेंगे।
सिंह राशि :- धन लाभ, आशानुकूल सफलता का हर्ष, कार्य-कुशलता से संतोष, व्यावसाय अनुकूल होगा।
कन्या राशि :- इष्ट-मित्रों से मान-प्रतिष्ठा, प्रभुत्व वृद्धि, सेचे कार्य समय पर पूरे होंगे, समय का ध्यान दें।
तुला राशि :- कुटुम्ब की समस्याओं में धन व्यय होगा तथा भ्रमणशील स्थिति बनी रहेगी, ध्यान रखें।
वृश्चिक राशि :- आर्थिक योजना पूर्ण होगी, सफलता के साधन बनें, इष्ट-मित्र सुखवर्धक होंगे, ध्यान दें।
धनु राशि :- धन लाभ, अधिकारियों से मेल-मिलाप होगा तथा कार्य-कुशलता की स्थिति सुलभ होगी।
मकर राशि :- कार्यवृत्ति में सुधार, स्थिति पर नियंत्रण रखें, स्त्री-वर्ग से हर्ष-उल्लास अवश्य ही होगा।
कुंभ राशि :- विशेष कार्य स्थिगित रखें, मानसिक उद्विघ्नता बनेगी, कार्य-अवरोध संभव होगा।
मीन राशि :- प्रयास सफल होगा, इष्ट-मित्र सहायक रहेंगे, दैनिक कार्यगति उत्तम, सफलता अवश्य मिलेगी।
42 सालों बाद झांकी का आयोजन, खरगोन के इस अनोखे मंदिर की दिलचस्प कहानी
15 Sep, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मध्य प्रदेश के खरगोन शहर के जमींदार मोहल्ले में स्थित श्री चिंतामण गणेश मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है. यह मंदिर लगभग 42 साल पुराना है. इसकी महिमा दूर-दूर तक फैली हुई है. भगवान गणेश यहां अपनी पत्नियों रिद्धि और सिद्धि के साथ विराजमान हैं, जो इस मंदिर की विशेषता है.
श्री चिंतामण गणेश मंदिर की स्थापना 1982 में की गई थी. यहां गणेशोत्सव का आयोजन 1977 से ही हो रहा था. यहां एक पुराना कुआं हुआ करता था. जिसे बंद कर ऊपर ओटला बनाया गया. उसी पर भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित की गई. राजस्थान से लाई गई करीब पांच फीट ऊंची प्रतिमा आकर्षण का केंद्र है.
चिंतामण नाम की मान्यता
मंदिर समिति के अध्यक्ष रवि भावसार ने local 18 से कहा कि मंदिर का नाम चिंतामण पड़ा. गणेश जी की स्थापना के बाद मोहल्ले के लोगों के सभी दुख-दर्द दूर होने लगे. गणेश जी को चिंताओं का हरण करने वाला माना जाता है. इसलिए इस मंदिर का नाम चिंतामण गणेश रखा गया.
मंदिर का निर्माण की कहानी
यह स्थान खरगोन शहर का पहला स्थल था. यहां से गणेशोत्सव की झांकी निकाली गई. 1977 में झांकी की शुरुआत हुई. 1982 में मंदिर का निर्माण पूरा हुआ. जिसमें लगभग 55 हजार रुपए की लागत आई. इस मंदिर को बनाने में मोहल्लेवासियों ने बड़ी भूमिका निभाई.
धार्मिक मान्यताएं और पूजा-अर्चना
मंदिर के पुजारी मंथन जोशी बताते हैं कि वे अपने परिवार की तीसरी पीढ़ी हैं. जो यहां सेवा दे रही है. गणेशोत्सव के दौरान हर दिन सुबह अभिषेक और 56 भोग लगाए जाते हैं. इसके साथ ही सुबह और शाम को महाआरती की जाती है. जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं.
श्रद्धालुओं का विश्वास
मोहल्ले के लोग भगवान चिंतामण गणेश की महिमा पर अटूट विश्वास रखते हैं. स्थानीय निवासी कल्याण भावसार एवं हरीश भावसार कहते हैं. जब से भगवान यहां विराजमान हुए हैं. मोहल्ले के लोगों की चिंताएं दूर हो गईं और सभी के पक्के मकान बन गए. कोरोनो जैसी महामारी भी इस मोहल्ले के लोगों को छू नहीं पाई.
42 साल बाद फिर सजी झांकी
हर साल गणेशोत्सव के दौरान इस मंदिर को विशेष रूप से सजाया जाता है. भक्त बड़ी संख्या में यहां दर्शन करने आते हैं. मान्यता है कि यहां से कोई भी खाली हाथ नहीं जाता. भगवान की कृपा से भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है. मंदिर के पास में 42 साल बाद फिर गणेश जी की झांकी सजाई गई है.
अनंत चतुर्दशी पर एक धागे से बदलेगी किस्मत! माता लक्ष्मी होंगी प्रसन्न, बरसेगा धन!
15 Sep, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को अनंत चतुर्दशी के नाम से जानते हैं. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत का विधान है. इस दिन को अनंत चौदस भी कहा जाता है. गणपति बप्पा की विदाई भी इसी दिन लोग करते हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अनंत चतुर्दशी के व्रत और पूजा से सुख, समृद्धि और वैभव की प्राप्ति होती है. इसलिए लोग इस दिन विशेष पूजा-अर्चना करते हैं.
कब है अनंत चतुर्दशी का व्रत?
काशी के ज्योतिषाचार्य पंडित संजय उपाध्याय ने बताया कि अनंत चतुर्दशी पर शेषनाग पर विराजे भगवान विष्णु के पूजन का विधान है. इस बार अनंत चतुर्दशी का व्रत 17 सितंबर को रखा जाएगा. इस दिन देव शिल्पी भगवान विश्वकर्मा की जयंती भी है.
हाथ में बांधे अनंत सूत्र
इस दिन भगवान विष्णु के पूजन के दौरान चौदह ग्रंथि का सूत्र उनके सामने रखकर पूरे विधि विधान से उनकी पूजा करनी चाहिए. इस दौरान भगवान विष्णु के मंत्रों से इस अनंत सूत्र को जागृत करना चाहिए.पूरे विधि विधान से पूजा के बाद इस चौदह ग्रन्थ अनंत सूत्र को पुरुष दाहिने हाथ के बांह पर और महिलाओं को बाएं हाथ के बांह पर बांधना चाहिए.
सुख-समृद्धि के आसान उपाय
इस अनंत सूत्र को धारण करने से भगवान विष्णु की कृपा भक्तों पर बनी रहती है और सुख समृद्धि और वैभव की प्राप्ति भी होती है. अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान की विशेष कृपा चाहिए तो आप इन खास उपायों को अपना सकते हैं.
अनंत चतुर्दशी के दिन नमक न खाएं
इस दिन सुबह उठकर स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए. व्रत के संकल्प के दौरान क्षीर सागर में विराजे भगवान विष्णु के रूप को ध्यान करना चाहिए.इस दिन व्रत के दौरान नमक रहित फलहार का सेवन करने का विधान है. सभी व्रत रखने वाले श्रद्धालु को इस बात का जरूर ख्याल रखना चाहिए.
पैर हाथ में नहीं इस अंग में काला धागा बांधना है शुभ, कमजोर शनि ग्रह होगा मजबूत, जीवन में करेंगे तरक्की, जानें बांधने उतारने के नियम
15 Sep, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
आजकल लोगों में पैरों में काला धागा बांधने का चलन खूब बढ़ गया है. आपने भी कई महिलाओं, युवक-युवतियों को पैर या फिर हाथों में पतली सी काले रंग की डोरी, धागा बांधे जरूर देखा होगा. हालांकि, कुछ लोग बिना जानकारी के फैशन और शौक-शौक में इसे पैरों में बांध लेते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि पैरों में ब्लैक धागा बांधना ठीक नहीं माना गया है? यदि आपको इस बात की जानकारी नहीं है कि हिंदू धर्म के अनुसार, शरीर के कौन से अंग में ब्लैक धागा बांधना सही होता है, तो यहां जान लीजिए.
क्या पैरों में बांधना चाहिए काला धागा?
ज्योतिषाचार्य, न्यूमेरोलॉजिस्ट और एस्ट्रो वास्तु विशेषज्ञ डॉ. गौरव कुमार दीक्षित जी कहते हैं कि आजकल अधिकतर लोग पैरों में काला बांधे दिख जाते हैं. ऐसा करना सही नहीं है. पैरों में काफी लोग काला धागा बांधते हैं, इससे बचना चाहिए. सनातन धर्म के अनुसार, काले धागे को रक्षा सूत्र कहा गया है. ऐसे में रक्षा सूत्र को पैरों में बांधना अशुभ है. इससे नेगेटिव एनर्जी कम होने की बजाय बढ़ने लगती है. पैर में काला धागा बांधने से शनि की स्थिति खराब हो जाती है. गले में जब भी आप काला धागा बांधे तो इसे खाली ना पहनें. ऐसा करने से भी बचें. उसमें किसी भी तरीके का चांदी या रत्न का लॉकेट डालकर ही पहनें.
शरीर के किस अंग पर बांधें काला धागा?
नजर दोष से बचाने के लिए अक्सर हम सभी अपने छोटे बच्चों, नई दुल्हन को गर्दन में काला पहनाते हैं. ज्योतिषाचार्य डॉ. गौरव कुमार दीक्षित कहते हैं कि इस धागे को कमर में पहनना सबसे उत्तम माना जाता है. भगवान कृष्ण भी कमर पर ही काला धागा पहनते थे. कमर पर काला धागा बांधने से सेहत अच्छी बनी रहती है. बीमारियों के होने का खतरा कम हो जाता है. खासकर, हड्डियों की बीमारी होने का रिस्क कम हो सकता है. रीढ़ की हड्डी भी मजबूत होती है. जिनकी कुंडली में शनि ग्रह कमजोर हैं, उन्हें कमर में काला बांधना चाहिए. यदि शनि कुंडली में मजबूत हो जाए तो ऐसे जातक अपनी जीवन में बहुत तरक्की करते हैं. कमर, बाएं हाथ या गर्दन में काला धागा पहनना चाहते हैं तो इस धागे को किसी शनि मंदिर में ले जाकर शनि देव की मूर्ति से स्पर्श करा कर ही पहनें. आप भैरव बाबा या हुनमान जी की प्रतिमा से भी इस धागे को स्पर्श करा सकते हैं. इस दौरान उनके मंत्रों का उच्चारण करते हुए काला धागा बांध लें. ऐसा धागा बहुत चमत्कारिक लाभ कर सकता है. आप पर शनि देव की कृपा हमेशा बनी रहती है. इतना ही नहीं, यदि हाथों में लाल धागा या मौली पहने हुए हैं तो उसके साथ कभी भी काला धागा ना बांधें.
काला धागा बांधने के फायदे
– महिलाओं को बाएं और पुरुषों को दाएं हाथ में काला धागा बांधना चाहिए.
– जब आप काला धागा बांधते हैं तो यह आपको बुरी नजर लगने से बचाता है.
– नकारात्मक शक्तियों से बचाव के लिए इसे पहना जाता है.
– शरीर में जो नेगेटिव एनर्जी प्रवेश कर जाती है, उसे भी काला धागा अपने अंदर एब्जॉर्ब कर लेता है.
– काला धागा पहनने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.
– कमर में बांधने से रीढ़ की हड्डी में कोई समस्या नहीं होती.
कब उतारें काला धागा
जब तक वह खुद ही खराब होकर टूट ना जाए, आप उसे पहने रह सकते हैं. खुद से इसे खलने की कोशिश न करें. टूट या खुल जाए तो उसे पीपल के वृक्ष के पास रख आएं. दोबारा से आप नया धागा बांध सकते हैं. ब्लैक धागा को कोई भी जातक पहन सकता है.
घर में इन दो जगहों पर भूलकर भी न लगाएं परिवार के किसी मृत सदस्य की तस्वीर, झेलनी पड़ सकती है परेशानी
15 Sep, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
कई बार जब घर की कोई सदस्य की मृत्यु होती है. पितृ बन जाते हैं. वह पितृ सिर्फ यादों में रह जाते हैं. उनके तस्वीर को घर मे लगाकर उनकी पूजा आराधना करते है. विशेषकर जब पितृपक्ष चल रहा होता है. उस समय पूजा स्थल पर पितृ की तस्वीर लगाकर उनकी पूजा आराधना करते है. लेकिन, मृत परिवार के सदस्य की घर मे तस्वीर लगाकर पूजा आराधना करना कितना सही या गलता है. देवघर के ज्योतिषाचार्य से जानते है.
देवघर के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित नन्द किशोर मुद्गल ने लोकल 18 से कहा कि पितृपक्ष शुरू होने वाला है. कई लोग पितृपक्ष के दिनों में अपने मृत परिवार के सदस्य की तस्वीर पूजा स्थल में या कमरे में लगाकर पूजा आराधना करते हैं. जो बिल्कुल गलत है. पूर्वज की तस्वीर घर में लगाना चाहिए इससे सुख समृद्धि की वृद्धि होती है. उनके आशीर्वाद से वश में वृद्धि होती है लेकिन वास्तु शास्त्र में कुछ ऐसी जगह है जहां पर पूर्वज की तस्वीर भूलकर भी नहीं लगाना चाहिए.
इन जगहों पर ना लगाए
मृत परिवार सदस्य की तस्वीर
ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि वास्तु शास्त्र के अनुसार घर के दो जगह पर अमृत परिवार के सदस्य की तस्वीर लगाकर पूजा आराधना नहीं करनी चाहिए. एक पूजा स्थल में और दूसरा अपने कमरे में यानी लिविंग रूम मे. अगर आप पूजा स्थल में अपने पूर्वज की तस्वीर लगाते हैं. इससे देवी देवता नाराज हो सकते हैं. इसके साथ ही जिस रूम में आप सोते हैं. उसे रूम में तो भूलकर भी मृत परिवार के सदस्य की तस्वीर नहीं लगाना चाहिए.
इस जगह पर लगाए अपने पूर्वज की तस्वीर
घर में पूर्वज की तस्वीर लगाना अच्छी मानी जाती है. इससे पूर्वज प्रशन्न होते हैं और अगर पूर्वज प्रसन्न हो गए तो घर में कभी भी कष्ट,आर्थिक तंगी,पारिवारिक कलह नहीं होगी. जब भी पूर्वज की तस्वीर लगाए तो घर के दक्षिण दिशा में और बैठकी रूम में यानी हॉल मे लगाए. इससे शुभ प्रभाव पड़ता है.
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (15 सितंबर 2024)
15 Sep, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि - इष्ट मित्र सार्थक बने रहेगें, सुख क साधन बनेगें किन्तु गुप्त चिन्ता बनी ही रहेगी।
वृष राशि - अधिक भावुकता से हानि, दूर की योजना तथा व्यवसाय यात्रा सतर्कता से अवश्य करें।
मिथुन राशि - आर्थिक योजना सफल होगी, मित्र सहायक होगें तथा रुके कार्य बन ही जायेगें, ध्यान दें।
कर्क राशि - योजनाएW फलीभूत होगी किन्तु तनाव से बचें, बेचैनी बने तथा कार्य अवरोध होगा।
सिंह राशि -चिन्ताएW कम होंगी, धन का लाभ होगा, आशानुकूल सफलता का हर्ष रुके कार्य बन जायेगें।
कन्या राशि - कार्य योजना में बाधा से मन उद्विघ्न रहेगा तथा विभ्रम होने से बचिये ध्यान दें।
तुला राशि - किसी के धोखे व विवाद ग्रस्त होने की संभावना है, समय का ध्यान अवश्य रखें।
वृश्चिक राशि - कार्य गति में बाधा होते हुए भी कुछ सफलता मिलेगी, धैर्य से कार्य करें, ध्यान दें।
धनु राशि - अधिकारी वर्ग से तनाव, मित्र की उपेक्षा से तनाव, अशांति तथा कार्य बाधा अवश्य होगी।
मकर - स्त्री वर्ग से भोग-एश्वर्य प्राप्ति, व्यावसायिक क्षमता अनुकूल बनी ही रहेगी, ध्यान दें।
कुंभ राशि - कार्य विफलता, प्रयत्न करने पर भी सफलता दिखायी न देवे, कार्य अवरोध होगा।
मीन राशि - तनाव कुछ कम हो, उदण्डता बनी ही रहेगी, सतर्कता से रुके कार्य बना ही लगे।
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
14 Sep, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि - अधिकारियों के तनाव से बचकर चलें तथा अपना कार्यपूर्ण करें, निश्चय लाभ होगा।
वृष राशि - इष्ट मित्र सुख वर्धक हों, हर्ष उल्लास के मौके हाथ से न जाने देवें, सतर्क रहें।
मिथुन राशि - मनोबल उत्तसाह वर्धक होगा, कार्य-कुशलता से संतोश होगा, व्यावसाय गति उत्तम।
कर्क राशि - कुटुम्ब की समस्याएं सुलझे तथा कार्य व्यवस्था अनुकूल होगी, रुके कार्य बना लेवें।
सिंह राशि - शुभ सूचना से हर्ष-उल्लास रहे, दैनिक कार्य गति अनुकूल होगी, रुके कार्य अवश्य बनें।
कन्या राशि - विरोधी तत्वों की चिन्ता बनी ही रहेगी, कार्य वृत्ति में सुधार होगा, समय का ध्यान रखें।
तुला राशि - आर्थिक योजना सफल हो, समय पर सोचे कार्य पूर्ण बने किन्तु समय का ध्यान रखें।
वृश्चिक राशि - मान-प्रतिष्ठा पर आंच आने का भय, कार्य गति में बाधा आयेगी, कष्ट से बचेगें।
धनु राशि - पराक्रम-मनोबल उत्साह वर्धक होगा, दैनिक कार्यगति में सुधार अवश्य होवेगा।
मकर - सामर्थ्य रखने के लिए धैर्य से कार्य करें, स्वभाव में क्रोध तथा अवेश से हानि होगी।
कुंभ राशि - दैनिक कार्यगति अनुकूल, इष्ट मित्र सहायक बने ही रहेगें, समय का ध्यान रखें।
मीन राशि - विघटनकारी तत्व परेशान करेगें, अर्थव्यवस्था में बाधक योग बने, संघर्ष बनेगा।