धर्म एवं ज्योतिष
भगवान विष्णु को जब नारद मुनि ने दिया श्राप, जिससे दर-दर भटके भगवान
20 Sep, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
एक बार ऋषि नारद जी ने घोर तपस्या की और उन्हें घमंड हो गया कि उन्होंने विषय विकारों पर विजय प्राप्त कर ली है. तपस्या पूरी करने के बाद वह अपने पिता भगवान ब्रह्मा से मिलने गए और उन्हें अपने उसी विश्वास से अवगत कराया. भगवान ब्रह्मा ने नारद जी से भगवान विष्णु जी से इस बारे में चर्चा नहीं करने के लिए आग्रह किया. चूँकि नारद मुनि अति आत्मविश्वास और उत्साह में थे, इसलिए उन्होंने अपने पिता द्वारा दी गई चेतावनी के बावजूद विष्णु जी के साथ वह बात साझा करने की सोची अर्थात पिता की बात नहीं मानी. नारद मुनि अपने चाचा विष्णु जी से मिलने गए और शेखी बखारने लगे कि उन्होंने वासना पर विजय प्राप्त कर ली है और वे आजीवन तपस्वी का जीवन व्यतीत करेंगे.
भगवान विष्णु का रूप मनमोहक
नारद जी ने विष्णु जी को याद किया और उनसे उनका “हरि रूप” उन्हें प्रदान करने के लिए इच्छा ज़ाहिर की (संस्कृत में हरि का अर्थ बंदर होता है). भगवान विष्णु ने चतुराई से ‘तथास्तु’ कहकर सहमति दी और नारद जी का चेहरा वानर की तरह परिवर्तित हो गया, जिससे नारद जी अंजान थे. ‘स्वयंवर’ का समय आ गया और राजकुमारी ने शाही दरबार में प्रवेश किया.
नारद जी कतार में खड़े थे और राजकुमारी की प्रतीक्षा कर रहे थे कि वह उन्हें माला पहनाए, वह पास आई. ऋषि नारद को देख कर भी अनदेखा कर आगे की ओर चली गई. नारद मुनी चौंक गए- ‘राजकुमारी ने उनकी उपेक्षा क्यों की?’ दूसरा मौका देते हुए, नारद मुनि एक और पंक्ति में आगे बढ़े, जहां राजकुमारी को अगले पल पहुँचना था. दूसरी बार भी राजकुमारी ने नारद जी को नज़रअंदाज़ कर दिया, तब उनके पास खड़े किसी व्यक्ति ने नारद जी के बंदर रूप का मज़ाक उड़ाया, जिससे नारद मुनी नाराज़ हो गए.
नारद मुनि का भगवान विष्णु को श्राप
उग्र नारद मुनि ने भगवान विष्णु को श्राप दिया, “तुम अपनी पत्नी के वियोग में एक पूरा मानव जीवन व्यतीत करोगे और मेरी ही भांति वियोग का दर्द झेलोगे और बंदर जैसे मुख वाले प्राणी तुम्हारी मदद करेंगे”
उसके बाद ही भगवान विष्णु अपने राम अवतार में पत्नि सीता की खोज में दर-दर भटके और सीता को खोजने में सुग्रीव और हनुमान जी की वानर सेना ने ही उनका सहयोग किया था.
सूर्य ग्रहण पर कैसे होगा पितरों का श्राद्ध, भारत में क्या होगा प्रभाव? यहां जानिए
20 Sep, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में सूर्य ग्रहण का महत्व बताया गया है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य ग्रहण हमेशा अमावस्या के दिन ही होता है. चंद्र ग्रहण से 9 घंटे पहले सूतक काल लग जाता है, तो वहीं सूर्य ग्रहण से 12 घंटे पूर्व सूतक काल शुरू हो जाता है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूतक काल में धर्म-कर्म और शुभ कार्य करने वर्जित होते हैं. अगर इस दौरान कोई शुभ कार्य किया जाए तो उसका दोष लगता है. सूतक काल में शुभ कार्य करने से लगे दोष का को दूर करने के लिए अनेकों प्रकार के उपाय किए जाते हैं. वहीं साल 2024 का दूसरा और आखिरी सूर्य ग्रहण पितृ विसर्जन अमावस्या के दिन होगा.
पितृ विसर्जन अमावस्या पर ज्ञात-अज्ञात पितरों का तर्पण, पिंडदान, कर्मकांड आदि किया जाता है जिससे प्रेत योनि में भटक रहे पितरों को शांति मिलती है. और उन्हें मोक्ष प्राप्त होता है. वहीं इस दिन पितरों को शास्त्रों में बताई गई विधि के अनुसार विदा भी किया जाता है. पितृ विसर्जन अमावस्या के दिन ग्रहण होने के कारण सूतक काल सुबह 9:13 से प्रारंभ हो जाएगा. ऐसे में यही सवाल व्यक्ति के मन में उठ रहा है कि आखिर इस दिन पितरों के निमित्त तर्पण, पिंडदान आदि कैसे किया जाएगा.
सूर्यग्रहण का समय
इन सभी सवालों के जवाब लोकल 18 पर देते हुए हरिद्वार के विद्वान ज्योतिषाचार्य पंडित श्रीधर शास्त्री ने बताया कि 2 अक्टूबर आश्विन मास की अमावस्या को सूर्य ग्रहण रात 9:13 से शुरू होगा, जो 3 अक्टूबर की सुबह 3:17 मिनट तक चलेगा. सूतक काल 2 अक्टूबर की सुबह 9:13 से प्रारंभ होगा. साल 2024 का यह सूर्य ग्रहण भारत समय के अनुसार रात के समय होगा जो देश में दिखाई नहीं देगा. यह सूर्य ग्रहण विश्व के पश्चिमी देशों अमेरिका, कनाडा, न्यूजीलैंड, अर्जेंटीना ब्राज़ील, कूक, फिजी, आईलैंड, आर्कटिक आदि देशों में देखा जा सकेगा.
सूर्य ग्रहण का भारत पर क्या पड़ेगा प्रभाव?
शास्त्रों के अनुसार इस सूर्य ग्रहण का भारत देश में कोई भी प्रभाव नहीं होगा. इसलिए इसका सूतक काल भी मान्य नहीं होगा. वह बताते हैं कि इस दिन व्यक्ति द्वारा किए गए धर्म-कर्म और शुभ कार्यों का कोई दोष नहीं लगेगा. व्यक्ति द्वारा किए गए धर्म कर्म और शुभ कार्यों का शुभ फल प्राप्त होगा.
मृत्यु के बाद आत्मा का क्या होता है? पितृपक्ष में तर्पण से जुड़ी है पितरों की गति
20 Sep, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
अक्सर लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि आखिर मृत्यु के बाद आत्मा की मुक्ति कैसे होती है? इस पर प्राचीन शास्त्रों में कई बातें कही गई हैं. गरुड़ पुराण, विष्णु पुराण सहित अन्य धर्म शास्त्रों में आत्मा की गति और मुक्ति का विस्तार से वर्णन है, जो व्यक्ति के कर्मों के आधार पर निर्धारित होता है.
खरगोन के प्रसिद्ध कि गरुड़ पुराण, स्कंद पुराण, विष्णु पुराण और पद्म पुराण जैसे शास्त्रों में भी आत्मा की गति और मुक्ति को लेकर उल्लेख मिलता है. कहा गया कि यदि किसी सामान्य व्यक्ति की मृत्यु होती है तो उसकी आत्मा 12 दिन तक उस स्थान पर रहती है. 13वें दिन से उसकी यात्रा यमलोक की यात्रा शुरू होती है. यह यात्रा आत्मा के कर्मों के आधार पर तय होती है.
योगियों को नहीं भोगनी होगी यातनाएं
धर्मनिष्ठ व्यक्ति की आत्मा मृत्यु के बाद उसके सभी कर्मों और पापों से मुक्त हो जाती है और उसे यमदूतों का सामना नहीं करना पड़ता. योगियों के लिए यह प्रक्रिया अलग होती है, वे सीधे उर्ध लोकों में जाते हैं. लेकिन, जो लोग सामान्य कर्मों में बंधे होते हैं, उन्हें यमलोक की यात्रा करनी पड़ती है.
प्रेतकल्प के अनुसार मुक्ति यात्रा
पंडित पंकज मेहता बताते हैं कि गरुड़ पुराण के प्रेतकल्प में यह बताया गया है कि आत्मा को यमलोक तक पहुंचने में 348 दिन लगते हैं. यमलोक और मृत्युलोक (धरती) के बीच 86,000 योजन का अंतराल होता है. व्यक्ति की आत्मा प्रतिदिन 247 योजन तय करती है. इस दौरान आत्मा को उसके कर्मों के आधार पर सुख या दुख का अनुभव होता है.
प्रेतकल्प के अनुसार मुक्ति यात्रा
पंडित पंकज मेहता बताते हैं कि गरुड़ पुराण के प्रेतकल्प में यह बताया गया है कि आत्मा को यमलोक तक पहुंचने में 348 दिन लगते हैं. यमलोक और मृत्युलोक (धरती) के बीच 86,000 योजन का अंतराल होता है. व्यक्ति की आत्मा प्रतिदिन 247 योजन तय करती है. इस दौरान आत्मा को उसके कर्मों के आधार पर सुख या दुख का अनुभव होता है.
पापी और पुण्यात्मा की स्थिति
अगर व्यक्ति पापी होता है, तो यमलोक की यात्रा में उसे अनेक कष्टों और दंडों का सामना करना पड़ता है. शास्त्रों के अनुसार, पापी आत्माओं को यमलोक की यात्रा के दौरान सजा दी जाती है और उन्हें विभिन्न यातनाओं से गुजरना होता है. वहीं, पुण्य आत्माओं को किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होता और उनकी यात्रा शांतिपूर्ण होती है.
मृत्यु के बाद मुक्ति के दो प्रकार
ज्योतिषाचार्य के मुताबिक, शास्त्रों में दो प्रकार की मुक्ति का उल्लेख मिलता है, सामान्य मुक्ति और शद्य मुक्ति. जो योगी या धर्मनिष्ठ होते हैं, उन्हें शद्य मुक्ति प्राप्त होती है. उनका शरीर छोड़ने के बाद वे सीधे उर्ध लोकों में जाते हैं और उन्हें यमदूतों से सामना नहीं करना पड़ता. वहीं, सामान्य कर्मों में बंधे लोग कर्मों से मुक्त होने के बाद भी यमलोक की यात्रा करते हैं.
पितृपक्ष का महत्व
पितृपक्ष के दौरान किए गए श्राद्ध और तर्पण कर्म आत्मा की मुक्ति में सहायक होते हैं. पंडित मेहता बताते हैं कि इस समय पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए किया गया कोई भी कर्म उन्हें मोक्ष की ओर ले जाने में मदद करता है.
पितरों का आशीर्वाद हासिल करने करते हैं श्राद्ध
19 Sep, 2024 07:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के साथ ही श्राद्ध पक्ष शुरू हो गये हैं, इस साल यह 17 सितंबर मंगलवार से शुरू हुए हैं जो 2 अक्टूबर को पितृ मोक्ष अमावस्या के साथ ही समाप्त होंगे। पितरों का आशीर्वाद हम पर बना रहे इसलिए उनकी आत्मा की शांति के लिए हर साल श्राद्ध करते हैं। उनके आशीर्वाद से घर में सुख-शांति बनी रहती है।
इतने होते हैं श्राद्ध
निर्णय सिंधु और भविष्य में पुराण में श्राद्ध के 12 प्रकारों का वर्णन मिलता है। ये हैं नित्य, नैमित्तिक, काम्य, वृद्धि, सपिंडन, पार्वण, गोष्ठी, शुद्धयर्थ, कर्मांग, तीर्थ, यात्रार्थ, पुष्ट्यर्थ।
पितरों के प्रसन्न करने के लिए करें यह श्राद्ध
नित्य श्राद्ध: कोई भी व्यक्ति अन्न, जल, दूध, कुश, फूल व फल से हर रोज श्राद्ध करके हर रोज पितरों को प्रसन्न कर सकता है।
नैमित्तिक श्राद्ध: यह श्राद्ध विशेष अवसर पर किया जाता है। जैसे- पिता आदि की मृत्यु तिथि के दिन इसे एकोदिष्ट कहा जाता है।
काम्य श्राद्ध: इस श्राद्ध को किसी कामना विशेष, सिद्धि की प्राप्ति के लिए किया जाता है।
वृद्धि श्राद्ध: इस श्राद्ध को सौभाग्य प्राप्ति के लिए किया जाता है। इसमें वृद्धि की कामना के लिए किया जाता है।
सपिंडन श्राद्ध: इस श्राद्ध को मृत व्यक्ति के 12वें दिन पितरों से मिलने के लिए किया जाता है। इसे स्त्रियां भी कर सकती हैं।
पार्वण श्राद्ध: पिता, दादा, परदादा और दादी, परदादी के निमित्त किया जाता है। इसे पर्व की तिथि पर ही किया जाता है।
समूह में किया जाता है यह श्राद्ध
गोष्ठी श्राद्ध: इस श्राद्ध को परिवार के सभी लोग मिलकर करते हैं। यह श्राद्ध हमेशा समूह में किया जाता है।
शुद्धयर्थ श्राद्ध: परिवार की शुद्धता के लिए शुद्धयर्थ श्राद्ध किया जाता है।
कर्मांग श्राद्ध: यह श्राद्ध को किसी संस्कार के अवसर पर ही किया जाता है। कर्मांग का अर्थ कर्म के अंग से होता है।
यात्रा के लिए करते हैं यह श्राद्ध
तीर्थ श्राद्ध: यह श्राद्ध हमेशा तीर्थ पर ही किया जाता है।
यात्रार्थ श्राद्ध: यात्रा की सफलता के लिए यात्रार्थ श्राद्ध किया जाता है।
पुष्ट्यर्थ श्राद्ध: आर्थिक उन्नति में बढ़ोतरी, अच्छे स्वास्थ्य के लिए पुष्टि के निमित्त जो श्राद्ध किए जाते हैं वे पुष्ट्यर्थ श्राद्ध कहलाते हैं।
अमावस्या को किया जाता है इनका श्राद्ध
जिन लोगों की मृत्यु के दिन की सही-सही जानकारी न हो, उनका श्राद्ध अमावस्या तिथि को करना चाहिए। सांप काटने से मृत्यु और बीमारी में या अकाल मृत्यु होने पर भी अमावस्या तिथि को श्राद्ध किया जाता है। जिनकी आग से मृत्यु हुई हो या जिनका अंतिम संस्कार न किया जा सका हो, उनका श्राद्ध भी अमावस्या को करते हैं।
पितरों की आत्मा की शांति के लिए किया जाता है तर्पण
19 Sep, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
श्राद्ध पक्ष शुरू हो गये हैं और यह 02 अक्टूबर 2024 तक चलेंगे। पितृपक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण आदि के कार्य किए जाते हैं। साथ ही पूर्वजों के निमित्त श्राद्ध कर्म किया जाता है। जिस तिथि को पितर स्वर्गलोक गए थे, उस तिथि को ही ब्राह्राण भोग कराया जाता है। साथ ही दान- दक्षिणा दी जाती है।
पितृ पक्ष का महत्व
मान्यता है पितृपक्ष में हमारे पूर्वज धरती पर आते हैं और हम उनके निमित्त क्या कर रहे हैं। ये सब वह देखते हैं। आपको बता दें कि पितृ पक्ष में पितरों का तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान करने से उनकी आत्मा को मुक्ति मिलने के साथ मोक्ष की प्राप्ति होती है। वहीं श्रद्धा के साथ श्राद्ध के कार्य करें इसलिए ही इसे श्राद्ध कहते हैं। जिस भी श्राद्ध कार्य करते हैं उस दिन ब्राह्मण को भोजन कराने का विधान है। साथ ही जिस दिन आपके पूर्वज का श्राद्ध होता है, उस दिन गाय, कुत्ता कौवा और चींटी को भी आहार दिया जाता है। वहीं इसे पंच ग्रास या पंच बली कहते हैं। साथ ही जिन लोगों की जन्मकुंडली में पितृदोष है, उन लोगों को पंचबली जरूर निकालनी चाहिए।
पितरों की नाराजगी से बचना
19 Sep, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
पितरों के आशीर्वाद से जीवन में कभी किसी चीज की कमी नहीं रहती है। घर के बड़े-बुजुर्ग सिर्फ मान-सम्मान चाहते हैं, इनको कभी नहीं भूलना चाहिए। जैसे प्यार पर घर के छोटों का अधिकार होता है वैसे ही पूर्वज सम्मान के अधिकारी होते हैं। खुश होकर ये दिल से अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं लेकिन पितृ जब नाराज हो जाते हैं तो बसा हुआ संसार उजड़ जाता है। पितर उस स्थिति में नाराज होते हैं, जब घर के किसी मांगलिक कार्यक्रम में, किसी शुभ कार्य में उन्हें याद नहीं करते, उनकी अनदेखी करते हैं।
मान-प्रतिष्ठा का अभाव
पितरों की नाराजगी से व्यक्ति को मान-प्रतिष्ठा के अभाव का सामना करना पड़ सकता है। परिवार के सदस्यों को पग-पग पर समस्याओं से जूझना पड़ता है।
धन का अभाव
पितृदोष होने के कारण धन का अभाव रहता है। व्यक्ति को किसी भी तरह की मदद नहीं मिल पाती। जमा धन बर्बाद हो जाता है। फिजूल खर्ची को वह रोक नहीं पाता है। साथ ही लाख कोशिश के बाद भी कर्ज कभी नहीं उतार पाता।
घर-परिवार में अशांति
पितरों के नाराज होने से घर-परिवार में किसी न किसी कारण झगड़ा होता है। परिवार के सदस्यों में मनमुटाव बना रहता है। घर में अशांति का वातावरण बना रहता है। घर के सदस्यों की शादी में कई प्रकार की समस्याएं आती हैं।
संतान की ओर से कष्ट
पितृदोष के कारण संतान की ओर से कष्ट मिलता है। उनके यहां संतान होने में परेशानी आती है। संतान का स्वास्थ्य खराब रहने या संतान का बुरी संगति में फंसने से परेशानी झेलना होती है।
कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगाना
पितृदोष जब होता है तो जाने-अनजाने ऐसी गलती कर बैठते हैं, जिसके कारण कोर्ट-कचहरी का सामना करना पड़ सकता है। प्रशासन की वजह से कोई समस्या हो सकती है, जिससे लंबे समय तक मामला उलझा रहता है।
गंभीर प्रकार का रोग होना
पितृदोष के कारण कई गंभीर व असाध्य रोग घर के सदस्यों को हो जाते हैं। पितर दोष का प्रभाव घर की स्त्रियों पर भी रहता है। इन्हें ऐसी बीमारियों का सामना करना पड़ता है, जो जल्दी ठीक नहीं होती। ऐसी धार्मिक मान्यताएं हैं।
कर्ज से बचने करें ये काम
19 Sep, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
पूरे दिन जाने-अनजाने हमसे ऐसे कई कार्य हो जाते हैं, जिनके प्रभाव के बारे में बाद में पता चलता है। शास्त्रों में बताया गया है कि सही समय पर सही कार्य करने से ना सिर्फ भगवान की कृपा मिलती है बल्कि आपकी आर्थिक स्थिति भी सुदृढ़ होती है। वहीं कुछ काम ऐसे हैं, जिन्हें भूलकर भी सुबह और शाम के समय नहीं करना चाहिए। इन्हें करने से पैसा और तरक्की दोनों का नाश होता है। यहां जानिए, सुबह शाम कौन से कार्य नहीं करने चाहिए…
नाराज हो जाती हैं मां लक्ष्मी
तुलसी के पत्तों को भूलकर भी शाम के समय नहीं तोड़ना चाहिए। ऐसा करने से मां लक्ष्मी नाराज हो जाती हैं। पूजा के लिए सुबह ही पत्ते तोड़कर रख लें। शाम के समय तुलसी के पत्ते तोड़ने से आर्थिक स्थिति कमजोर होने लगती है।
दरिद्रता का होता है वास
शास्त्रों के अनुसार, शाम के समय घर की साफ-सफाई नहीं करनी चाहिए। भूलकर भी घर का कूड़ा शाम को बाहर नहीं फेकना चाहिए। ऐसा करने से सकारात्मक ऊर्जा बाहर चली जाएगी। साथ ही घर में दरिद्रता का वास होने से आप पर कर्ज बढ़ सकता है।
भगवान की नहीं होती कृपा
शाम के समय कभी भी नहीं सोना चाहिए, ऐसा करने से पाप लगता है। सुबह और शाम का समय पूजा-ध्यान करने का है। जो लोग इस समय सोते हैं, उन पर भगवान की कृपा नहीं रहती है। हां, बीमार लोग और बच्चे इस नियम से बाहर होते हैं।
इस दिन करें धन का लेन-देन
धन से संबंधित कोई भी कार्य करना हो तो आप सोमवार या बुधवार को करें। इन दिनों में किया गया धन का लेन-देने फायदेमंद माना जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से कर्जा धीरे-धीरे खत्म होने लगता है।
इस दिन करें व्रत
लक्ष्मी माता को प्रसन्न करने के लिए सुहागिन महिलाओं को गुरुवार का व्रत करने से लाभ होता है। इस दिन किसी गरीब महिला को सुहाग की सामग्री दान देने से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। ऐसा करने से आपके जीवन की सभी समस्याएं धीरे-धीरे खत्म होने लग जाएंगी।
इससे निशान न बनने दें
घर की दीवारों या फर्श पर पेंसिल या चॉक आदि का निशान न बनाने दें। ऐसा माना जाता है कि दीवार और फर्श पर बनी ये रेखाएं घर में नकारात्मकता को बढ़ाती है, जिससे आर्थिक तरक्की बाधित होती है और कर्ज बढ़ने की संभावना रहती है।
रूठ जाती है लक्ष्मी
घर में सुबह की गतिविधियों की शुरुआत झाड़ू लगाने के बाद ही करनी चाहिए। जैसे, पूजा करना, नाश्ता करना। घर में झाड़ू लगा देने से रातभर की नकारात्मक ऊर्जा घर से बाहर चली जाती है। घर में ताजगी का माहौल बनता है, जिससे परिवार के लोग उर्जावान रहते हैं और हर तरह की तरक्की के लिए ऊर्जा ही तो चाहिए।
हाथ में त्रिशूल का निशान होता है बेहद शुभ
19 Sep, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हस्तरेखा ज्योतिष में लोगों की हाथ की लकीरें और निशान देखकर उनके भविष्य के बारें में कई बातों का पता लगाया जा सकता है। हथेली पर कई निशान होते है इन्हीं निशानों में से एक निशान ऐसा होता है जो हजार लोगों में से एक व्यक्ति के हाथ में बना होता है। यह निशान होता है त्रिशूल। तो आइए जानते हैं हथेली पर किस-किस जगह बने त्रिशूल के निशान का क्या मतलब होता है।
यदि ह्रदय रेखा के सिरे पर गुरु पर्वत के समीप त्रिशूल का निशान हो ऐसा व्यक्ति बेहद प्रतिभाशाली होता है।
सूर्य रेखा पर त्रिशूल का निशान होने पर उच्च पद और सरकारी क्षेत्र की प्राप्ति होती है। वहीं त्रिशूल के चिन्ह के साथ अन्य रेखाएं होने पर परिणाम विपरीत होंगे। यदि ये चिन्ह भाग्य रेखा पर हो तो वह व्यक्ति बहुत ही भाग्यशाली होता है और उसे सभी सुखों की प्राप्ति होती है।वहीं जिसकी हाथ की दस उंगलिायों में भगवान विनष्णु् के प्रतीक चक्र का चिन्ह हो वह चक्रवर्ती होता है। ऐसी रेखाओं से मिलती है हर कदम पर सफलता।
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (19 सितंबर 2024)
19 Sep, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि - इष्ट मित्रों से लाभ होगा, भोग-एश्वर्य की प्राप्ति होगी तथा रुके कार्य बन जायेगें।
वृष राशि - अपनों से तनाव, प्रत्येक कार्य में बाधा बने, लाभकारी योजना हाथ से निकल जायेगी।
मिथुन राशि - धन लाभ, आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा तथा कार्यवृत्ति में सुधार होगा, कार्य बने।
कर्क राशि - कार्य योजना फलीभूत हो, दैनिक सफलता के कार्य संभव हो, तनाव से बचे रहेगें ध्यान दें।
सिंह राशि - इष्ट मित्र सुख वर्धक हो, मनोबल उत्साह वर्धक बना ही रहेगा, कार्यगति में सुधार हो।
कन्या राशि - आशानुकूल सफलता का हर्ष, दैनिक व्यावसाय में सुधार होगा, चिन्ता मुक्त होगें
तुला राशि - आर्थिक योजना सफल होगी, समय पर सोचे कार्य बने तथा किसी के धोखे से बचेगें।
वृश्चिक राशि - दूसरों के कार्य में भटकना पड़ेगा, समय को बचाकर चलने से लाभ अवश्य ही होगा।
धनु राशि - दैनिक कार्य गति में सुधार, कार्य योजना फलीभूत अवश्य ही होगी, कार्य का ध्यान रखें।
मकर राशि - किसी का कार्य बनने से संतोष, चिंता निवृत्ति, व्यावसायिक स्थिति में सुधार होगा।
कुंभ राशि - स्त्री शरीर कष्ट, मानसिक बेचैनी, उदर विकार, विद्या बाधा, कार्य बाधा अवश्य ही होगी।
मीन राशि - भाग्य का सितारा प्रबल हो, बिगड़े कार्य बनेगें, मित्रों के सहयोग से लाभ होगा।
महाभारत: युधिष्ठिर किस बात पर हुए मां कुंती से इतने नाराज कि सारी औरतों को दे दिया शाप
18 Sep, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
पांडव भाइयों में अगर किसी को सबसे शांत, स्थिर और क्रोध पर विजय पाने वाला माना गया तो वह युधिष्ठिर थे. जो हर तरह की परिस्थिति में शांत रहते थे. किसी पर उन्हें नाराज होते नहीं देखा गया लेकिन दो बार वह बहुत नाराज हुए. ये नाराजगी भी दूसरों के लिए नहीं बल्कि अपनों के लिए थी. एक बार वह अर्जुन पर खासे क्रोधित हुए थे. जब महाभारत का युद्ध खत्म हुआ तो उन्हें कुछ ऐसा पता चला कि वह अपनी मां कुंती पर इतने नाराज हुए कि उन्हें माफ नहीं कर पाए.
युधिष्ठिर की बात जब भी महाभारत में की जाती है तो एक ऐसे सज्जन पुरुष की छवि उभरती है जो हर किसी को माफ कर देता है. खुद पर होने वाले तमाम अत्याचार को चुपचाप बर्दाश्त कर लेता है. अपने भाइयों और मां के लिए हमेशा एक आदर्श बड़ा भाई और बेटा बना रहता है. जो सबकी केयर करता है. कभी किसी को भूलकर भी अप्रिय बात नहीं करता.
वह ऐसे शख्स भी थे, जो खुद सबसे पीछे रखकर अपने भाइयों और दूसरों को आगे रखते थे. उन्हें त्याग की प्रतिमूर्ति माना गया. फिर ऐसा क्या हो गया कि जिस मां को वह हमेशा पूजते थे, उनसे ऐसे नाराज हुए कि कभी माफ नहीं कर पाए. उन्होंने कभी किसी को अप्रिय वचन नहीं कहे थे लेकिन उस दिन अपनी मां को खूब खरी-खोटी सुनाई. इस पर उनका गुस्सा जब शांत नहीं हुआ तो उन्होंने पूरी स्त्री जाति को भी शाप दे दिया.
युधिष्ठिर क्रोध से बेचैन और विचलित हो गए
अब जानते हैं कि आखिर बात क्या थी, जिसने युधिष्ठिर जैसे धर्मात्मा को विचलित कर दिया. वह अंदर तक क्रोध से बेचैन हो गये. जब महाभारत का युद्ध खत्म हो गया तो युद्ध भूमि में मारे गए सभी योद्धाओं की चिताएं सजाई गईं. उनके परिजनों ने चिताओं को अग्नि दी. उसके बाद उन्हें गंगा तट पर तर्पण दिया गया.
ऐसा तब हुआ जबकि कुंती ने एक भेद खोला
सभी लोग दुखी थे. ऐसे मौके पर कुंती अपने दुख को लाख कोशिश करके भी संभाल नहीं पाईं. उन्होंने पहली बार पांडवों के सामने ये भेद खोला कि अर्जुन ने जिनका वध किया, जिसे तुम लोग सूतपुत्र समझते रहे, उस महाधर्नुधर और वीर कर्ण के लिए तुम लोग तर्पण करो. वो तुम सभी के बड़े भाई थे.
सभी पांडव कुंती के इस भेद को सुनकर स्तब्ध रह गए
कर्ण का ये रहस्य सुनकर सभी पांडव स्तब्ध रह गए. दुखी भी हुए. हैरान और क्षुब्ध भी हुए कि उन्हें अब तक ये बात कभी उनकी मां कुंती ने क्यों नहीं बताई. क्यों उन्होंने उनके बाल्यकाल से लेकर अब तक ये बात छिपाकर रखी. युद्ध के दौरान भी कभी ये नहीं बताया. वह इस बात से भी दुखी थे कि कर्ण को खुद उन्हीं लोगों ने युद्ध में मारा. वह नाराज भी थे लेकिन उस समय उन्होंने चुपचाप तर्पण किया. उससे उन्होंने अपना गुस्सा दबाकर रखा.
युधिष्ठिर तमतमाए हुए थे, मां से नाराज
जब सबकुछ हो गया. सभी महल पहुंचे तो युधिष्ठिर तमतमाए हुए थे. उनके क्रोध का शिकार मां कुंती थीं. उन्होंने कहा कि अब महाभारत की जीत भी मुझको हमारी पराजय की तरह ही लग रही है. कर्ण हमारे भाई थे लेकिन हम इस बात को जानते ही नहीं थे. कर्ण तो ये बात जानते थे, क्योंकि उनके सामने ये रहस्य खुद मां कुंती ने खोल दिया लेकिन हमारे सामने नहीं खोला, इसी वजह से कर्ण ने हममे से किसी को नहीं मारा.
मां से पूछा – आखिर उन्होंने ऐसा क्यों किया
युधिष्ठिर ने कहा कि मैं कर्ण से इसलिए नाराज रहता था कि उन्होंने द्यूतसभा में हमें कटुवचन कहे थे. द्रौपदी का अपमान किया था. मैं तब उनसे नाराज हुआ लेकिन अब नहीं हूं. अब मैं अपनी मां से नाराज हूं कि उन्होंने ये बात क्यों हम लोगों से छिपाई. उन्होंने कटु वचन में मां कुंती से पूछा-आखिर ये बात उन्होंने क्यों पांडव भाइयों से छिपाई.
कुंती ने लाख सफाई दी लेकिन …
तब कुंती कातर होकर बोलीं, युधिष्ठिर मैने कर्ण के पास जाकर प्रार्थना की थी. उनके पिता सूर्य भी चाहते थे कि कर्ण का राज तुम लोगों को पता लग जाए लेकिन कर्ण खुद बिल्कुल ऐसा नहीं चाहते थे, इसी वजह से तुम लोगों का मिलन नहीं हो सका. इसके बाद भी रुष्ट युधिष्ठिर ने कहा, कर्ण का परिचय गोपनीय रखकर आपने मुझे ऐसा कष्ट दिया जो आप कभी समझ नहीं पाएंगी.
तब युधिष्ठिर शाप दे दिया
इसके बाद दुखी और नाराज युधिष्ठिर ने जीवन में पहली बार मां कुंती के बहाने पूरी स्त्री जाति को भी शाप दे दिया, स्त्री जाति कुछ भी गोपनीय नहीं रख पाएगी. बाद में भी युधिष्ठिर लंबे समय तक इस बात को लेकर पश्चाताप करते रहे. इस बात को उन्होंने हमेशा मन में रखा कि क्यों उनकी मां ने कर्ण का राज उन लोगों के सामने जाहिर नहीं होने दिया.
युधिष्ठिर का मानना था कि यदि कुंती ने यह रहस्य नहीं रखा होता तो युद्ध टल सकता था. लाखों लोगों की जान बच सकती थी.
कुंती ने किशोरावस्था में ही गुप्त रूप से कर्ण को जन्म दे दिया था. विवाह-पूर्व गर्भधारण के कारण सामाजिक आक्रोश से बचने के लिए उन्होंने कर्ण को जन्म देते ही उसे गंगा नदी में एक टोकरी में छोड़ दिया था.
कर्ण को नदी में बहते हुए महाराज धृष्टराज के सारथी अधिरथ और उनकी पत्नी राधा ने देखा. उन्होंने उसे गोद ले लिया. उसका लालन-पालन किया. कर्ण को वासुसेन नाम दिया गया. अपनी पालनकर्ता माता के नाम पर उन्हें राधेय के नाम से भी जाना जाने लगा.
यहां चिट्ठी पढ़कर भगवान गणेश करते हैं भक्तों की मनोकामना पूरी! दशकों से चली आ रही परंपरा
18 Sep, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
शहर के बीच स्थित राष्ट्रीय राजमार्ग पर बने मिथिला धाम गणेश मंदिर में एक अनोखी परंपरा का पालन हो रहा है. यहां श्रद्धालु कागज पर अपनी मनोकामनाएं लिखकर उन्हें लाल कपड़े में नारियल के साथ बांधकर भगवान गणेश के चरणों में अर्पित करते हैं. यह परंपरा पिछले 27 वर्षों से चली आ रही है, जहां भक्तगण भगवान गणेश से पत्र व्यवहार के माध्यम से अपने जीवन की समस्याओं और इच्छाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करते हैं.
पत्र लिखकर रखते हैं मनोकामनाएं मंदिर के पुजारी हरि शरण ने बताया कि 1976 में इस मंदिर में गणेश जी की स्थापना की गई थी और इसके बाद से यहां श्रद्धालुओं की आस्था और विश्वास बढ़ता गया. 1988 में मंदिर का विस्तार हुआ और इसी समय से भक्तों ने पत्र के माध्यम से भगवान से अपनी इच्छाओं की पूर्ति मांगनी शुरू की. भक्त हर बुधवार और चतुर्थी के दिन भगवान गणेश को पत्र लिखकर अपनी मनोकामना अर्पित करते हैं.
लाल कपड़े में पत्र बांधकर मानते है मनोकामना
भगवान गणेश के चरणों में अर्जी लगाने की परंपरा श्रद्धालु अपने पत्र में नौकरी, शादी, संतान, पारिवारिक शांति और अन्य सफलताओं के लिए प्रार्थना करते हैं. वे लाल कपड़े में श्रीफल और पत्र को बांधकर भगवान को अर्पित करते हैं. जब मनोकामना पूर्ण होती है, तो श्रद्धालु नारियल और अन्य चीजें भगवान के मंदिर में चढ़ाते हैं. इस विशेष परंपरा ने श्रद्धालुओं की आस्था को और भी मजबूत किया है.
व्यक्ति की मृत्यु तिथि के अनुसार ही करें श्राद्ध, अगर नहीं पता डेथ की तारीख तो किस दिन करें
18 Sep, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
पितृ पक्ष का प्रारंभ भाद्रपद पूर्णिमा और समापन आश्विन अमावस्या के दिन होता है. इस साल पितृ पक्ष 17 सितंबर दिन मंगलवार से शुरू होकर 2 अक्टूबर को समाप्त होंगे. पितृ पक्ष के 16 दिन पितरों को तृप्त करने और उनको प्रसन्न करने के लिए होते हैं. पितृ पक्ष के दौरान लोग अपने पितरों को याद कर तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध, दान, ब्राह्मण भोज, पंचबलि आदि करते हैं. ऐसा करने से पितर खुश होते हैं और तृप्त होकर आशीर्वाद देते हैं. हालांकि, श्राद्ध तर्पण मृत्यु की तिथि पर ही करने का विधान है. लेकिन, अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु की तारीख नहीं पता हो किस दिन श्राद्ध करना चाहिए? इस बारे में News18 को बता रहे हैं प्रताप विहार गाजियाबाद के ज्योतिर्विद और वास्तु विशेषज्ञ राकेश चतुर्वेदी
पितृ पक्ष की डेट और समय
ज्योतिषाचार्य के मुताबिक, इस बार चतुर्दशी तिथि 17 सितंबर को पूर्वाह्न 11.44 बजे तक है, उसके बाद पूर्णिमा तिथि लग जाएगी. इसलिए दोपहर में पूर्णिमा का श्राद्ध होगा. इस बार किसी भी तिथि क्षय न होने से पूरे 16 दिन के श्राद्ध होंगे.
किसे किस दिन करना चाहिए श्राद्ध
यदि नाना-नानी का श्राद्ध करना है तो प्रतिपदा को करें.
अविवाहित मृत्यु होने वालों का श्राद्ध पंचमी को करें.
माता व अन्य महिलाओं का श्राद्ध नवमी को करें.
पिता, पितामह का श्राद्ध एकादशी व द्वादशी को करें.
अकाल मृत्यु होने वालों का श्राद्ध चतुर्दशी को करें.
ज्ञात-अज्ञात सभी पितरों का श्राद्ध अमावस्या को कर सकते हैं.
श्राद्ध करते हुए इन बातों का रखें ध्यान
यदि आप जनेऊ धारण पहनते हैं, तो पिंडदान के समय उसे बाएं की जगह दाएं कंधे पर रखें.
चढ़ते सूर्य के समय ही पिंडदान करें. बहुत सुबह या अंधेरे में ये कर्म ठीक नहीं माना जाता है.
पितरों की श्राद्ध तिथि के दिन ब्राह्मणों को यथाशक्ति भोजन करवाएं.
पिंडदान कांसे, तांबे या चांदी के बर्तन में या फिर प्लेट या पत्तल में करें.
पितृ पक्ष में कौवों को क्यों कराया जाता है भोजन? क्या है धार्मिक मान्यताएं
18 Sep, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
17 सितंबर से श्राद्ध शुरू हो चुके हैं. हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पितृ पक्ष में कौवे को भोजन कराने से पितृ प्रसन्न होते हैं. यह यमराज के प्रतीक माने जाते हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, मनुष्य योनि के बाद मृतात्मा सबसे पहले कौआ योनि में प्रवेश करती है. यही वजह है कि मृतक की पसंद का भोजन सबसे पहले कौवों को खिलाया जाता है.तभी पितृ पक्ष के दौरान कौवे का होना पितरों के आस पास होने का संकेत माना जाता है लेकिन पितृ पक्ष के दौरान एक दूसरी वजह से भी कौए को भोजन कराना चाहिए.
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के ज्योतिषाचार्य पंडित योगेश कुकरेती ने लोकल 18 को जानकारी देते हुए कहा है कि शास्त्रों में पितृपक्ष के दौरान गौ माता, काले कुत्ते, चीटियां और कौवे को भोजन कराने का विधान है. क्योंकि माना जाता है कि पितृ उनके रूप में धरती पर आते हैं और कौवे यम का प्रतीक भी होता है. अगर आप पितृ पक्ष के दौरान कौवे को भोजन कराते हैं तो दोगुना लाभ मिलता है,
पितृ प्रसन्न होते हैं
एक तो पितृ प्रसन्न होते हैं, दूसरा आपको कष्टों से मुक्ति मिलती हैं. पं योगेश कुकरेती ने बताया कि भादो माह में कौवे प्रसव करते हैं तो ऋषि मुनियों ने इस वक्त उनके लिए भोजन अपनी छतों पर रखने की व्यवस्था करने के लिए कहा ताकि भोजन के लिए उन्हें इधर-उधर न भटकना पड़े. इसलिए पितृ पक्ष के दौरान उन्हें भोजन कराने से दोगुना लाभ मिलता है.
विलुप्त होने की कगार पर कौवे
पक्षी प्रेमी देव रावल ने बताया कि अब शहरों से कौवे पलायन करते जा रहे हैं. शहरों में लगातार बढ़ रहे प्रदूषण के चलते कौओं के साथ- साथ सभी पक्षी पलायन को मजबूर हो रहे हैं. देहरादून जैसे शहरों में प्रदूषण के कारण कौए व अन्य पक्षी शहरों से ग्रामीण क्षेत्रों की ओर पलायन कर रहे है. इसके साथ ही इन पक्षियों के लिए शहर का वातावरण भी अनुकूल नहीं रहा है. अब शहर में इन्हें देखना दुर्लभ हो गया है.
विलुप्ति प्रजाति में शुमार
कौवे अब विलुप्ति प्रजाति में शुमार हो गए हैं. वजह यह भी है कि मांस और तैयार भोजन पर भर निर्भर होते हैं. खाद्य सामग्रियों में अब हानिकारक रसायनों और नमक-मसालों की मात्रा ज्यादा बढ़ गई है. साथ ही पेड़ों का कटान, वायु और ध्वनि प्रदूषण में स्वयं को अहसज पाते हैं इसलिए शहर से दूर जा रहें हैं.
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (18 सितंबर 2024)
18 Sep, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि - इष्ट मित्रों से लाभ, स्त्री वर्ग से भोग-एश्वर्य की प्राप्ति होगी, रुके कार्य एक-एक करके बनेगें।
वृष राशि - आज के दिन प्रत्येक काम में बाधा होगी, बने कार्य हाथ से निकल जाये, संभलकर चलें।
मिथुन राशि - धन लाभ, आशानुकूल सफलता का हर्ष, कार्य गति में सुधार, कार्य अनुकूल होवे ध्यान दें।
कर्क राशि - योजनाएW फलीभूत होंगी, दैनिक सफलता के साधन जुटायें, प्रलोभनों से आप बचेगें।
सिंह राशि - प्रतिष्ठा, बाल-बाल बचें, अनेक समस्याएं, असमंजस तथा कार्य में बेचैनी बढ़ेगी।
कन्या राशि - स्त्री वर्ग से तनाव के बाद शांति तथा भाग्य का सितारा साथ दे, चित्त प्रसन्न हो।
तुला राशि - भाग्य का सितारा साथ देगा समय अनुकूल है, कार्यकुशलता से लाभ अवश्य होगा।
वृश्चिक राशि - आर्थिक योजना सफल होगी, समय पर सोचे हुए कार्य बने, कार्य योजना पर विचार हो।
धनु राशि - अर्थ लाभ, कार्य कुशलता में बाधा, स्वास्थ्य नरम रहे, पराक्रम उत्साह वर्धक होवेगा।
मकर राशि - उदविघ्नता बनी ही रहेगी, किसी उत्तम समाचार से हर्ष हागा तथा प्रसन्नता बनी ही रहेगी।
कुंभ राशि - विरोधियें से परेशानी, चिंता, व्याग्रता बनी रहे, विपरीत परिस्थतियें का सामना करना होगा।
मीन राशि - आय-व्यय सामान्य, शारीरिक कष्ट, कार्य-क्षमता कमी, कार्य में रुकावट बने।
इस समय के दौरान बिल्कुल भी ना करें पिंडदान, जानें कैसे मिलेगी पितरों को तृप्ति, क्या है 'पंचक' का समय?
17 Sep, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू पंचाग के अनुसार इस बार पितृपक्ष भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा लगते ही प्रारंभ होने जा रहा है। ऐसे में हम सभी अपने पितरों के निमित्त पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध कर्म करने उनकी आत्मा को तृप्त कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. पितृपक्ष पक्ष कुला 15 दिनों की अवधि तक चलता है, इस दौरान लोग नियमित ठंग से अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा भाव से उनकी तृप्ति के लिए पिंडदान और तर्पण के माध्यम से उनकों भोजन प्रदान करते हैं.
जिससे उनकी आत्मा को परम गति प्राप्त करने में सहायता मिलती है. ऐसे में यह 15 दिन पितरों को समर्पित होता है परंतु पितृपक्ष के इन 15 दिनों में यदि पंचक लग जाए तो उतने दिन तक पिंडदान और तर्पण जैसे काम को करना वर्जित माना जाता है. तो आइए हम आपको बताने जा रहे हैं आखिर पंचक में पिंडदान जैसे कर्मकांड क्यों नहीं किए जाते हैं और इस पितृपक्ष यह पंचक कब से कब तक रहेगा.
पंचक में क्यों नहीं करते है पिंडदान
पंचांग के अनुसार, इस बार भाद्रपद मास का पचंक 16 सितंबर दिन सोमवार को सुबह 5 बजकर 45 मिनट पर प्रारंभ होगा. 20 सितंबर को सुबह 5 बजकर 20 मिनट पर इसका समापन होगा. वहीं पितृपक्ष 17 सिंतबर से शुरू होने जा रहा है. पंचक काल के चलते 17 से 20 सिंतबर की प्रातः 5 बजकर 20 मिनट तक पिंडदान और श्राद्ध कर्म बंद रहेंगे. हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार पंचक के दौरान पितृपक्ष का कर्मकांड करना शुभ नहीं माना जाता है इसलिए 17 से 20 सितंबर तक श्राद्ध कर्मकांड पर विराम लगा रहेगा. उसके बाद ही आप अपने पितरों का पिंडदान और तर्पण कर सकते हैं. इसके बीच यदि पितरों की पिंडदान करने की तिथि पड़ती है और पंचक के कारण आप उनका पिंडदान नहीं कर पाते हैं तो उसके लिए भाद्रपद की अमावस्या तिथि को श्राद्ध कर्मकांड कर सकते हैं.
पितरों की तृप्ति के लिए किया जाता है श्राद्ध
आने वाले इन पंद्रह दिनों में लोग अपने पितरों को नदियों में सुबह तिल के साथ जल लेकर सूर्य की तरफ मुंह करके हाथों से जल तर्पण करते हैं और उनकी मृत्युतिथि पर पार्वण श्राद्ध करते हैं. श्राद्ध के दिनों में ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए. पिता-माता और पारिवारिक मनुष्यों की मृत्यु के बाद उनकी मुक्ति के लिए श्रद्धापूर्वक किए जाने वाले कर्म को पितृ श्राद्ध कहा जाता है.