धर्म एवं ज्योतिष
पितृपक्ष में पशु-पक्षियों को दें भोजन
26 Sep, 2024 07:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार पितृपक्ष के 16 दिनों तक हमारे पूर्वज धरती पर आकर हमें आशीर्वाद देते हैं। ये पितृ पशु पक्षियों के माध्यम से हमें देखने आते हैं। जिन जीवों तथा पशु पक्षियों के माध्यम से पितृ आहार ग्रहण करते हैं वो हैं - गाय, कुत्ता, कौवा और चींटी।
श्राद्ध के समय इनके लिए भी आहार का एक अंश निकाला जाता है, तभी श्राद्ध कर्म पूर्ण होता है। श्राद्ध करते समय पितरों को अर्पित करने वाले भोजन के पांच अंश निकाले जाते हैं - गाय, कुत्ता, चींटी, कौवा और देवताओं के लिए। इन पांच अंशों का अर्पण करने को पञ्च बलि कहा जाता है।
सबसे पहले भोजन की तीन आहुति कंडा जलाकर दी जाती है1 श्राद्ध कर्म में भोजन के पूर्व पांच जगह पर अलग-अलग भोजन का थोड़ा-थोड़ा अंश निकाला जाता है। गाय, कुत्ता, चींटी और देवताओं के लिए पत्ते पर तथा कौवे के लिए भूमि पर अंश रखा जाता है। फिर प्रार्थना की जाती है कि इनके माध्यम से हमारे पितर प्रसन्न हों।
कुत्ता जल तत्त्व का प्रतीक है ,चींटी अग्नि तत्व का, कौवा वायु तत्व का, गाय पृथ्वी तत्व का और देवता आकाश तत्व का प्रतीक हैं। इस प्रकार इन पांचों को आहार देकर हम पंच तत्वों के प्रति आभार व्यक्त करते हैं। केवल गाय में ही एक साथ पांच तत्व पाए जाते हैं। इसलिए पितृ पक्ष में गाय की सेवा विशेष फलदाई होती है। मात्र गाय को चारा खिलने और सेवा करने से पितरों को तृप्ति मिलती है साथ ही श्राद्ध कर्म सम्पूर्ण होता है।
पितृ पक्ष में गाय की सेवा से पितरों को मुक्ति मोक्ष मिलता है। साथ ही अगर गाय को चारा खिलाया जाय तो वह ब्राह्मण भोज के बराबर होता है1 पितृ पक्ष में अगर पञ्च गव्य का प्रयोग किया जाय, तो पितृ दोष से मुक्ति मिल सकती है। साथ ही गौदान करने से हर तरह के ऋण और कर्म से मुक्ति मिल सकती है।
इसलिए पितृपक्ष में नहीं होते मांगलिक कार्य
पितृपक्ष के दौरान हमारे पूर्वज और पितर धरती पर उतरते हैं और हमें देखते हैं। एक बार पितर खुश हो जाएं तो वो आर्शीवाद देते हैं, जिसे मनोकामना पूर्ति होती है। पितृपक्ष काल को शुभ नहीं मानते। इसलिए इस दौरान हर शुभ कार्य वर्जित है, जैसे कि शादी, घर की खरीदारी या शिफ्टिंग, शादी की खरीदारी आदि। ठीक उसी प्रकार, जैसे कि घर में किसी परिजन की मत्यु के बाद घर में एक खास अवधि के लिए सभी मांगलिक कार्य रोक दिए जाते हैं।
धार्मिक मान्यता के मुताबिक इस दौरान हमारे पितर हमसे आत्मिक रूप से जुड़े होते हैं, पूजन नियम के जरिए हमें उनसे आशीर्वाद लेनी चाहिए।
पितृपक्ष के दौरान अपनी आदतों और शौकों पर थोड़ों नियंत्रण कर पितरों को खुश किया जा सकता है। ऐसी मान्यता है कि इस अवधि में हर तरह के शुभ कार्य से अपना ध्यान हटाकर अपने पितरों से जुड़ाव महसूस करना चाहिए।
गाय की सेवा से मिलता है पितरों का आशीर्वाद
कहा जाता है कि पितृपक्ष में पितृगण पितृलोक से धरती पर आ जाते हैं। इस समयावधि में पितृलोक पर जल का अभाव हो जाता है। इसलिए पितृपक्ष में पितृगण पितृलोक से भूलोक आकार अपने वंशजो से तर्पण करवाकर तृप्त होते हैं1 इसलिए जब व्यक्ति पर कर्जा हो तो वो खुशी मनाकर शुभकार्य कैसे सम्पादित कर सकता है। पितृऋण के कारण ही पितृपक्ष में शुभकार्य नहीं किए जाते।
यहां बाल रुप में विराजमान हैं पवनपुत्र
26 Sep, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हनुमान जी अपने नाम के अनुरुप ही भक्तों के संकटों को दूर करते हैं। आस्था और सच्ची भक्ति के आगे स्वयं भगवान भी नतमस्तक हो जाते हैं और अपने प्रिय भक्त को संसार का हर सुख देने को आतुर रहते हैं। महाबली हनुमान की भक्ति भी ऐसी ही है। तभी तो प्रभु श्री राम ने उन्हें भक्त शिरोमणि बना दिया।
पवन पुत्र हनुमान की लीलाएं बालपन से ही शुरू हो गई थीं, इसलिए कई जगहों पर इन्हें बालाजी के नाम से पूजा जाता है। मेहंदीपुर में भी महाबली हनुमान अपने बाल स्वरूप में विराजमान है।
मान्यता है कि मेहंदीपुर बालाजी के दर्शन करते ही इंसान के सभी प्रकार के संकट टलने लगते हैं। जो भी मेहंदीपुर धाम जाता है अपने सभी दुख, अपनी सारी विपत्तियां वहीं श्री बालाजी के चरणों में छोड़ आता है।
मेहंदीपुर में बालाजी की सत्ता चलती है। यहां आकर जिसने श्री बालाजी का आशीर्वाद पा लिया उसके मन की हर कामना का भार स्वयं बालाजी महाराज उठाते हैं। तभी तो जो भक्त एक बार मेहंदीपुर बालाजी के दर्शन कर लेता है वो बार-बार मेहंदीपुर जाने को आतुर रहता है।
मेहंदीपुर बालाजी धाम में हनुमान जी के बाल रूप का अति मनमोहक और अलौकिक दर्शन होता है। यहां श्री बाला जी महाराज के भवन के ठीक सामने सीताराम का दरबार सजता है, जिसे देखकर लगता है कि जैसे बाला जी महाराज अपने प्रभु के निरंतर दर्शन से प्रसन्न हो रहे हैं और मां सीता के साथ ही प्रभु श्रीराम भी अपने सबसे प्रिय भक्त को देखकर मुस्कुरा रहे हैं।
मेहंदीपुर में केवल बालाजी के दर्शन नहीं होते। इनके साथ श्री भैरव बाबा और श्री प्रेतराज सरकार के भी साक्षात दर्शन होते हैं। इसीलिए कुछ भक्त इन्हें त्रिदेवों का धाम भी कहते हैं।
मेहंदीपुर बालाजी के दरबार में जो भी इंसान सच्चे मन और भक्ति भाव से अर्जी लगाता है उसकी सुनवाई जरूर होती है। श्री बालाजी उस भक्त की हर मनोकामना पूरी कर देते हैं। कहते हैं मेहंदीपुर धाम कोई भी भक्त उदास नहीं लौटता।
मेहंदीपुर में हर प्रकार की समस्या का समाधान मिल जाता है।
इस प्रकार बनायें दिन को बेहतर
26 Sep, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
अगर आप अपना दिन बेहतर बिताना चाहते हैं तो इसके लिए अच्छी शुरुआत करें। अक्सर हम अपने आसपास की ढेर सारी बातों को अनदेखा कर देते हैं, लेकिन इनका हम पर सीधा असर पड़ता है। वास्तुशास्त्र में कुछ उपाय बताए गए जिन्हें अपनाकर आप अपनी सुबह के साथ ही पूरे दिन को बेहतर बना सकते हैं। यह बात तो हम सब मानते हैं कि अगर हमारी सुबह शुभ कार्यों के साथ शुरु होगी तो हमारा पूरा दिन अच्छा गुजरता है।
आंख खुलते ही न देखें आईना
कई लोगों की आदत होती है, सुबह उठते ही आईना देखने की। वास्तु विज्ञान के अनुसार ऐसा नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से दिनभर आप पर नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव बना रह सकता है। इसकी वजह यह है कि जब आप सोकर उठते हैं तो आपका शरीर नकारात्मक उर्जा के प्रभाव में होता है इसलिए आप आलस महसूस करते हैं। इसलिए कहा जाता है कि फ्रेश होने के बाद आईना देखना चाहिए।
सुबह उठते ही किसका चेहरा देखें
ऐसी मान्यता है कि आंख खुलते ही किसी व्यक्ति का चेहरा देखने से बचना चाहिए। दिन की शुरुआत के साथ सबसे पहले अपने ईष्ट देवता का ध्यान करें और उनके ही दर्शन करने चाहिए। इसके पीछे यह धारणा है कि व्यक्ति के चेहरे पर अलग-अलग तरह के भाव होते हैं जिसे देखकर आपके भाव भी बदलते हैं। लेकिन ईश्वर निर्विकार भाव आपको देखते हैं और आप भी उन्हें ऐसे ही देखते हैं जिससे मन में सकारात्मक भाव जगता है।
इसलिए सुबह उठकर देखें हथेली
कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती। करमूले तू गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम ॥ कहा गया है कि हथेली के अगले हिस्से में देवी लक्ष्मी का वास होता है, मध्य में सरस्वती का और मूल भाग में भगवान विष्णु विराजते हैं। यही कारण है कि सुबह उठकर सबसे पहले दोनों हाथों की हथेली को जोड़कर देखना चाहिए, ऐसा शास्त्रों का मत है। इसे व्यावहारिक रूप में देखें तो हथेली से ही सभी कर्म किए जाते हैं और इसी से धन और धर्म दोनों कर्तव्यों को पूरा किया जाता है इसलिए हथेली देखने की बात की जाती है।
शंख या मंदिर की घंटी की आवाज सुनाई दे तो
सुबह उठते ही अगर शंख या मंदिर की घंटियों की आवाज सुनाई दे तो यह आपके भीतर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। यही कारण है कि शास्त्रों में कहा गया है कि सुबह उठकर भगवान की पूजा करें और घंटी बजाकर शंखनाद करें।
दिन बन जाता है शुभ
शकुनशास्त्र के अनुसार सुबह घर से निकलते समय नारियल, शंख, मोर, हंस या फूल आपको दिख जाए तो समझिए आपका पूरा दिन शुभ बीतने वाला है।
सफाईकर्मी का दिखना शुभ
ज्योतिषशास्त्र में सफाईकर्मी को शनि से संबंधित माना गया है। लाल किताब के उपायों में बताया गया है कि यदि सुबह घर से निकलते ही आपको कोई सफाईकर्मी दिखाई दे तो उसे कुछ दान जरूर देना चाहिए इससे दिन अच्छा गुजरता है।
नाश्ते से पहले ऐसा न करें
रामचरित मानस के सुंदरकांड में तुलसीदास जी हनुमान जी के एक कथन को लिखते हुए कहते हैं कि, प्रात लेइ जो नाम हमारा। तेहि दिन ताहि न मिलै अहारा।। यानी हनुमान जी कहते हैं कि वह एक वानर जाति से आते हैं। यह श्रेष्ठ योनी नहीं है इसलिए जो कोई सुबह उठकर उनके वानर स्वरूप का नाम लेता है उसे समय से भोजन नही मिलता है। इसलिए कहा जाता है कि नाश्ता पानी करने से पहले इस नाम को नहीं बोलना चाहिए।
पिंडदान क्यों है जरूरी
26 Sep, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में मान्यता है कि अगर पितरों की आत्मा को मोक्ष नहीं मिला है, तो उनकी आत्मा भटकती रहती है। इससे उनकी संतानों के जीवन में भी कई बाधाएं आती हैं, इसलिए गया जाकर पितरों का पिंडदान जरूरी माना गया है।
हिंदू धर्म में पितृपक्ष के दौरान पिंडदान किया जाता है। इस समय अपने पितरों को याद कर उनके नाम पर पिंडदान होता है। पिंडदान के लिए फल्गु नदी के तट को सबसे अच्छा माना जाता है। यहां पिंडदान की प्रक्रिया पुनपुन नदी के किनारे से प्रारंभ होती है। कहा जाता है कि गया में पहले अलग-अलग नामों के 360 वेदियां थी, जहां पिंडदान किया जाता था। इनमें से अब 48 ही बची है। वर्तमान समय में इन्हीं वेदियों पर लोग पितरों का तर्पण और पिंडदान करते हैं। यहां की वेदियों में विष्णुपद मंदिर, फल्गु नदी के किनारे और अक्षयवट पर पिंडदान करना जरूरी माना जाता है। इसके अतिरिक्त वैतरणी, प्रेतशिला, सीताकुंड, नागकुंड, पांडुशिला, रामशिला, मंगलागौरी, कागबलि आदि भी पिंडदान के लिए प्रमुख हैं। आइए आपको बताते हैं कि पिंडदान को हिंदू धर्म में जरूरी क्यों माना गया है और इसकी सही
हिंदू मान्यता के अनुसार किसी वस्तु के गोलाकर रूप को पिंड कहा जाता है। प्रतीकात्मक रूप में शरीर को भी पिंड माना गया है। पिंडदान के समय मृतक की आत्मा को अर्पित करने के लिए जौ या चावल के आटे को गूंथकर बनाई गई गोलात्ति को पिंड कहते हैं।
श्राद्ध की मुख्य विधि
श्राद्ध की मुख्य विधि में मुख्य रूप से काम होते हैं- पिंडदान, तर्पण और ब्राह्मण भोज। दक्षिणाविमुख होकर आचमन कर अपने जनेऊ को दाएं कंधे पर रखकर चावल, गाय के दूध, घी, शक्कर एवं शहद को मिलाकर बने पिंडों को श्रद्घा भाव के साथ अपने पितरों को अर्पित करना पिंडदान कहलाता है। जल में काले तिल, जौ, कुशा एवं सफेद फूल मिलाकर उससे विधिपूर्वक तर्पण किया जाता है. मान्यता है कि इससे पितर तृप्त होते हैं। इसके बाद ब्राह्मण भोज कराया जाता है।
पितरों का स्थान
पंडों के मुताबिक, शास्त्रों में पितरों का स्थान बहुत ऊंचा बताया गया है। उन्हें चंद्रमा से भी दूर और देवताओं से भी ऊंचे स्थान पर रहने वाला बताया गया है। पितरों की श्रेणी में मृत पूर्वजों, माता, पिता, दादा, दादी, नाना, नानी सहित सभी पूर्वज शामिल होते हैं। व्यापक दृष्टि से मृत गुरु और आचार्य भी पितरों की श्रेणी में आते है।
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (26 सितंबर 2024)
26 Sep, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि - अच्छे कार्य का लाभ प्राप्त होगा, जमीन-जायजाद से लाभ होगा, रुके कार्य परिश्रम से बनेंगे।
वृष राशि - आर्थिक स्थिति साधारण रहेगी, आकस्मिक हानि तथा खेद के साथ रहना पड़ेगा, तनाव से बचें।
मिथुन राशि - पारिवारिक सुखमय आनंद की प्राप्ति होगी, धार्मिक पुण्य कार्यों में प्रवृत रहेंगे, शुभ कार्य होंगे।
कर्क राशि - देश में सम्मान बढ़ेगा, इच्छित कार्य की प्राप्ति होगी, राजनेता तथा संतान योग बनेंगे, समय का लाभ लें।
सिंह राशि - मानसिक कष्ट होगा, शत्रु आपके कार्य में बाधा डालेंगे, आलस्य-प्रमाद की स्थिति बनेगी, कार्य पर ध्यान दें।
कन्या राशि - शारीरिक कष्टों से छुटकारा मिलेगा, पद-प्रतिष्ठा का लाभ मिलेगा किन्तु मानसिक अवरोध होगा।
तुला राशि - परीक्षा-प्रतियोगिता के लिये दूर की यात्रा होगी, कार्य सफलता पूर्वक होंगे, रुके कार्य ध्यान देने से बनेंगे।
वृश्चिक राशि Š- यश-प्रतिष्ठा में सुधार होगा, व्यक्तिव में निखार आयेगा तथा उद्योग-धंधा बढ़ेगा, परिश्रम से लाभ होगा।
धनु राशि - समस्याओं का समाधान होगा, आर्थिक स्थिति में सुधार होगा, उच्च पद-प्रतिष्ठा बढ़ेगी ध्यान अवश्य दें।
मकर राशि - मानसिक कष्ट से हानि होगी, परिवार में अनबन होगी, कार्य में धन खर्च अधिक होगा, सावधानी रहें।
कुंभ राशि - पत्नी से संबंध ठीक नहीं रहेंगे, धंधे में अनबन व परेशानी का सामना करना पड़ेगा, कार्य का चिन्तन होगा।
मीन राशि - स्थिति में सुधार तथा स्वास्थ्य की खराबी होगी तथा धन व्यय अधिक होगा, धन व्यय पर नियंत्रण रखें।
मां विंध्यवासिनी की 4 रूपों में देती है भक्तों को दर्शन, धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की होती है प्राप्ति
25 Sep, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
गंगा के तट पर स्थित विंध्य पर्वत पर विराजमान मां विंध्यवासिनी का धाम विशेष महिमा रखता है. यहां भक्तों को मां चार अलग-अलग रूपों में दर्शन देती हैं. इन रूपों के अनुसार भक्तों को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है. लाखों श्रद्धालु मां के दर्शन के लिए विन्ध्यधाम पहुंचते हैं, जहां करुणामयी मां विंध्यवासिनी के दर्शन मात्र से ही भक्तों का कल्याण हो जाता है.
आचार्य पं. अगत्स्य द्विवेदी ने लोकल 18 से बातचीत में बताया कि मां विंध्यवासिनी की सबसे पहली आरती भोर में तीन बजे से चार बजे तक होती है, जिसे मंगला आरती कहा जाता है. इस समय मां बाल्यावस्था में दर्शन देती हैं और आभूषणों से मुक्त रहती हैं. दर्शन से भक्तों को धर्म की प्राप्ति होती है. मंगला आरती में भाग लेने के लिए भारी संख्या में भक्त उपस्थित रहते हैं.
राजश्री आरती में दर्शन से अर्थ की प्राप्ति
अगत्स्य द्विवेदी ने बताया कि दोपहर 12 बजे से एक बजे तक की जाने वाली दूसरी आरती, जिसे राजश्री आरती कहते हैं. राजश्री आरती में मां विंध्यवासिनी अपने युवा रूप में भक्तों को दर्शन देती हैं. इस आरती में उनका भव्य श्रृंगार किया जाता है, जिसमें आभूषण और साज-सज्जा की जाती है. इस आरती के दर्शन से भक्तों को अर्थ की प्राप्ति होती है और धन से जुड़ी समस्याओं का समाधान होता है
प्रौढ़ावस्था में दर्शन से संतान की होगी प्राप्ति
बताया कि सायंकाल की आरती जिसे दीपदान आरती कहा जाता है. भक्तों को मां इस आरती में प्रौढ़ावस्था में दर्शन देती हैं. इस समय उनका फूलों और आभूषणों से विशेष श्रृंगार होता है. मान्यता है कि इस रूप के दर्शन से भक्तों को संतान सुख की प्राप्ति होती है और पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है. इस आरती में भी भारी संख्या में भक्त शामिल होते हैं.
मोक्षदायिनी है बड़ी आरती
आचार्य ने बताया कि रात्रि 9:30 से 10:30 के बीच मां विंध्यवासिनी की सबसे आखिरी बड़ी आरती होती है. इसे मोक्षदायिनी आरती कहा जाता है. इस समय मां वृद्धावस्था में भक्तों को दर्शन देती हैं. आरती के दर्शन से भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है, इसलिए इसे मोक्षदायिनी कहा जाता है. मां विंध्यवासिनी के चार रूपों के दर्शन से भक्त अपने जीवन में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति करते हैं, जिससे उनका जीवन पूर्ण और संतुष्ट हो जाता है.
पितृ दोष करना है दूर? तो यहां करें पिंडदान, पटरी पर लौट आएगी जिंदगी!
25 Sep, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
पितृपक्ष के दौरान पूर्वजों के पिंडदान किए जाते हैं. कुछ जगहें इसलिए ही प्रसिद्ध हैं क्योंकि वहां पिंडदान करने से विशेष फल मिलते हैं. गया और प्रयागराज में पिंडदान करना चाहिए, ऐसा आपने बहुत बार सुना होगा. लेकिन आप चाहें तो यूपी में एक और जगह पिंडदान कर सकते हैं. वो है मिर्जापुर. आइए जानते हैं कहां पर.
मिर्जापुर में भगवान राम ने किया था पिंडदान
मिर्जापुर एक ऐसा स्थान है, जहां पिंडदान करने से विशेष फल मिलते हैं. भगवान राम के पिंडदान करने के बाद से मिर्जापुर में स्थित राम गया स्थान भी पिंडदान को लेकर पवित्र स्थल माना जाता है. यहां पर भी हजारों श्रद्धालु प्रत्येक वर्ष पूर्वजों को पिंडदान करने आते हैं. इसलिए यह देश का चौथा पिंडदान करने वाला पवित्र स्थान बन गया है.
प्रयागराज का भी विशेष महत्व
प्रयागराज में गंगा यमुना एवं अदृश्य सरस्वती का मिलन स्थलीय है. इससे बनने वाला संगम दुनिया भर में फेमस है. यहां पर प्रत्येक वर्ष लाखों श्रद्धालु आकर पितृपक्ष के समय पिंडदान करते हैं. इसी को देखते हुए लोकल 18 ने प्रयागराज में पिंडदान के महत्व को लेकर आचार्य अमित द्विवेदी से बातचीत की. आचार्य अंबुज द्विवेदी ने बताया कि प्रयागराज वही स्थान है, जहां पर अमृत गिरा हुआ था. इसीलिए यह स्थान और पवित्र हो जाता है, जबकि शास्त्रों एवं पुराणों में भी प्रयागराज में पिंडदान करने का महत्व बताया गया है.
पिंडदान के नियमों का जरूर करें पालन
पिंडदान करते वक्त कुछ नियमों का पालन आपको जरूर करना चाहिए. जैसे कि काले तिल और दाल का इस्तेमाल पिंडदान में जरूर होता है. गलत तरीके से पिंडदान से आपके काम बनने की जगह बिगड़ सकते हैं.
मंदिर हनुमान जी का लेकिन मूर्ति महादेव की... जानिए क्यों प्रसिद्ध है पंचमुखी हनुमान मंदिर
25 Sep, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
अकसर आपने सुना होगा कि जो मंदिर जिस नाम से जाना जाता है उस मंदिर में उसी भगवान की मूर्ति स्थापित हुई होती है. लेकिन सुल्तानपुर शहर में एक मंदिर की कहानी कुछ अन्य मंदिरों से इतर है. सुल्तानपुर शहर में स्थित पंचमुखी हनुमान मंदिर की कहानी शायद आपको हैरान कर दे. यह मंदिर डाक खाना चौराहे के पास है, जहां नीचे हनुमान जी की मूर्ति और ऊपर भगवान भोले शंकर की मूर्ति स्थापित की गई है. यह विशेषता श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र बनाती है.
कुएं के ऊपर बना मंदिर
इस मंदिर का निर्माण एक प्राचीन कुएं के ऊपर किया गया है. मंदिर के प्रबंधक आशीष श्रीवास्तव ने लोकल 18 से खास बातचीत में बताया कि यह स्थान अध्यात्म के अनेक रहस्यों को समेटे हुए है. लोग इस अद्भुत संगम को गंगा नदी से जोड़कर देखते हैं. यहां भगवान भोलेनाथ की प्रतिमा नीलकंठ रूप में विराजमान है.
पांच मुख वाले हनुमान जी
पंचमुखी हनुमान जी की मूर्ति इस मंदिर में स्थापित है, जो सुबह और शाम दर्शन के लिए खुलती है. विशेष रूप से मंगलवार और शनिवार को यहां भव्य भंडारे का आयोजन होता है. मंदिर के बाहर फूल माला और प्रसाद की कई दुकानें श्रद्धालुओं की सेवा में कार्यरत हैं. मंदिर के बाहर फूल माला और प्रसाद की कई दुकानें हैं जो श्रद्धालुओं की सेवा में कार्य कर रही हैं.
विवाद का विषय रहा मंदिर निर्माण
24 अप्रैल 2011 को सुल्तानपुर के प्रमुख अखबारों में इस मंदिर के निर्माण को लेकर विवाद की खबरें छाईं थीं. 22 अप्रैल 2011 को जब मंदिर का निर्माण हो रहा था, तब नगर कोतवाल पर पुजारी, उनके बेटे और मजदूरों के साथ मारपीट का आरोप लगा. इस घटना से हिंदू संगठन आक्रोशित हो गए और पूरे शहर में जाम लगा दिया. हालांकि, बाद में आलाधिकारियों और विभिन्न धर्मों के लोगों की मदद से मामला सुलझा लिया गया.
भगवान को बहुत प्रिय है ये पेड़, लक्ष्मी का है प्रतीक, घर में लगाने से बनी रहती है सुख-समृद्धि, सेहत के लिए भी रामबाण
25 Sep, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
शहर के दिल में बसा, बाकरगंज की भीड़भाड़ से घिरा, एक ऐसा पेड़ खड़ा है जो समय की हर आंधी को झेलते हुए आज भी अपनी शान में कायम है. भीखमदास ठाकुरबाड़ी के आंगन में खड़ा यह मौलसरी का पेड़ न केवल 200 वर्षों से पटना की धरती पर अपनी जड़ें जमाए हुए है, बल्कि यह धार्मिक आस्था और औषधीय गुणों का अद्वितीय संगम भी है. 60 फुट की ऊंचाई और 5 फुट चौड़ाई वाले इस विशालकाय पेड़ को हाल ही में पटना नगर निगम के हेरिटेज ट्री सर्वे में शहर का सबसे पुराना पेड़ घोषित किया है. इसके इतिहास और महत्व को जानकर हर कोई चकित रह जाता है.
यह पेड़ धार्मिक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण है. मौलसरी का पेड़ लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है, और इसे लगाने से आसपास समृद्धि बनी रहती है. यही कारण है कि पुराने समय में साधु-संत जहां भी रहते थे, वहां इस पेड़ को अनिवार्य रूप से लगाते थे. मिश्रा कहते हैं, ‘यह पेड़ भगवान का प्रिय है और इसकी मौजूदगी हमेशा सुख-समृद्धि का संकेत देती है.’
अद्वितीय फूल और फल
मौलसरी पेड़ के फूल अपनी छोटी आकृति और तीव्र सुगंध के लिए जाने जाते हैं. इस पेड़ के फूलों की महक इतनी खास होती है कि इसे जेब में रखने पर इत्र की तरह काम करता है. वहीं इसके फल छोटे और कसैले होते हैं. इसके औषधीय गुण इसे और भी विशेष बनाते हैं. भगवती शरण मिश्रा बताते हैं कि इस फूल की गजलें (मालाएं) काफी महंगी मिलती है और धार्मिक आयोजनों में विशेष रूप से उपयोग की जाती हैं.
औषधीय गुणों से भरा पेड़
मौलसरी पेड़ न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि इसका औषधीय उपयोग भी बेहद महत्वपूर्ण है. इसके पत्तों के रस से कुल्ला करने से दांतों की बीमारियों में आराम मिलता है. इसके अलावा इसकी छाल, पत्तियां, और फूल सभी औषधीय गुणों से भरपूर हैं. नियमित दातुन के रूप में इसका उपयोग करने से दांत मजबूत और चमकदार हो जाते हैं.
पटना के हेरिटेज पेड़ों की शान
पटना नगर निगम द्वारा किए गए सर्वे में यह पाया गया कि पटना शहर में 08 पेड़ 100 वर्ष से अधिक पुराने हैं. शहर में 29 वृक्ष 100 वर्ष या इससे अधिक पुराने हैं. 100 वर्ष वाले कुल 21 पेड़ हैं. इसके अतिरिक्त शहर में 80 वर्ष से 100 वर्ष के बीच उम्र के भी 16 पेड़ है. पुराने वृक्षों में सर्वाधिक बरगद है और 100 वर्ष से अधिक उम्र वाले 29 में से 15 वृक्ष बरगद के है.
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (25 सितंबर 2024)
25 Sep, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि - कौटुम्बिक सुख मिलेगा, सामाजिक जिम्मेदारियां बढ़ेंगी, समय पर कार्य करने से लभा की प्राप्ति होगी।
&वृष राशि - शत्रु बाधा पर विजय मिलेगी, स्त्री-संतानादि सुख मिलेगा, दाम्पत्य जीवन सुखी रहेगा, समय का लाभ लें।
मिथुन राशि - पारिवारिक सुख व आनंद की प्राप्ति होगी, धार्मिक कार्य का पुण्य लाभ मिलेगा, बुजुर्गों का ध्यान रखें।
कर्क राशि - उच्च वर्ग का सानिध्य मिलेगा, राजनेता का सहयोग मिलेगा, रुके कार्य बनेंगे, परिश्रम से लाभ होगा।
सिंह राशि - बिन कारण दु:ख व झंझट के योग बनेंगे, घर के कार्यों में हानि की संभावना, श्रम शक्ति से लाभ होगा।
कन्या राशि - अध्ययन कार्य में सफलता मिलेगी, शारीरिक कष्ट, दुर्घटना का शिकार होने से बचें, सावधानी से कार्य करें।
तुला राशि - सामाजिक कार्यों में रुचि रहेगी, वायु विकार-नेत्र पीड़ा से कष्ट होगा, प्रतिष्ठा में कुछ हानि की संभावना है।
वृश्चिक राशि Š- नवीन पद प्रतिष्ठा की प्राप्ति होगी, बेरोजगारी से छुटकारा मिलेगा, पति-पत्नी में प्रीति बढ़ेगी।
धनु राशि - शत्रु वृद्धि होगी, स्त्री-संतान से सुखी रहेंगे, शानोसौकत में व्यय अवश्य होगा, भोग-विलास की प्राप्ति होगी।
मकर राशि - मानसिक उद्विघ्नता रहेगी, शारीरिक पीड़ा व अशांति का अनुभव होगा, आपका विरोध होगा, धैर्य रखें।
कुंभ राशि - विभिन्न रोगों से शारीरिक पीड़ा बनी रहेगी, पत्नी से अनबन होगी, धैर्य रखकर कार्य पूर्ण अवश्य करें।
मीन राशि - सामान्य धन लाभ होगा, खर्च की अधिकता रहेगी, पारिवारिक प्रगति के कार्य अवश्य ही हेंगे, समय पर कार्य करें।
आज भी धरती पर विचरण करते हैं संत कृपाचार्य, 7 चिरंजीवियों में से माने जाते हैं एक, जो थे कौरवों और पांडवों के गुरू
24 Sep, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
महाभारत के युद्ध की गाथा हर कोई जानता है. इसके अलावा पांडवों और कौरवों के बारे में भी सभी जानते हैं. गुरू कृपाचार्य महर्षि गौतम शरद्वान के पुत्र थे और वे पांडवों और कौरवों दोनों के गुरू भी थे. हालांकि, यह बात अलग है कि उन्होंने युद्ध कौरवों की ओर से लड़ा था लेकिन एक गुरू होने के नाते उन्होंने कभी भी पांडवों और कौरवों में कोई भेदभाव नहीं किया और उनकी इसी निष्पक्षता के कारण उनका ना सिर्फ नाम आज भी अमर है, बल्कि ऐसा कहा जाता है कि आज भी मनुष्य रूप में इस धरती पर जिंदा हैं. आपको बता दें कि कृपाचार्य को सात चिरंजीवियों में से एक माना गया है. आइए जानते हैं इनके बारे में भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा से.
कौन थे कृपाचार्य
कृपाचार्य महर्षि गौतम शरद्वान के पुत्र थे और मनु के समय उनकी गिनती सप्तऋर्षियों में होती थी. कृपाचार्य की बहन कृपी का विवाह गुरु द्रोणाचार्य के साथ हुआ था. वहीं कृपी के पुत्र का नाम था अश्वत्थामा और इस तरह कृपाचार्य अश्वत्थामा के मामा भी थे. कृपाचार्य कौरव और पांडव दोनों के ही गुरू थे.
महाभारत के युद्ध में कृपाचार्य कौरवों की ओर से लड़े थे और उनकी जोड़ी भीष्म पितामह और द्रोणाचार्य के साथ थी. भीष्म और द्रोणाचार्य ने कृपाचार्य को ही अपना सेनापति बनाया था. वहीं इस युद्ध में भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य और कृपाचार्य तीनों ही पराक्रमी योद्धा के रूप में देखे जाते थे और इन तीनों ने ही पांडवों की सेना को ढेर किया था.
लेकिन जब इस युद्ध में कर्ण मारे गए तो उन्होंने दुर्योधन से कई बार पांडवों के साथ संधि करने की बात कही थी लेकिन दुर्योधन अपने अपमान को भूलने को तैयार नहीं था और इसलिए युद्ध चलता रहा.
पहाड़ी पर स्थित है देवी जीवदानी का मंदिर, यहीं पर पांडव ने भी की थी माता की अराधना
24 Sep, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
नयगांव के अलावा विरार में भी एक मंदिर है. जिसका इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है. मां जीवदानी का मंदिर विरार में जीवदानी नामक पहाड़ी पर स्थित है. यह पहाड़ विरार का सबसे महत्वपूर्ण स्थल है. यह देवी जीवदानी के अपने एकमात्र मंदिर के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध हैं, यहां माता के दर्शन के लिए जो लगभग 1300 से भी अधिक सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं. विरार के पूर्वी हिस्से में एक बड़े से पहाड़ी पर यह मंदिर है. यहां से पूरा मुंबई और नवी ठाणे दिखता है.
Local 18 से बात करते हुए चंडिका मंदिर के पुजारी पवन पाठक ने बताया कि चंद्रपाड़ा में स्थित चंडिका मंदिर में भी पांडव पधारे थे, हालांकि ठाणे में यह इकलौता मंदिर नहीं है. जहां पांडवों ने देवी के दर्शन किए. इसके अलावा जीवदानी पहाड़ी पर भी पांडवों ने जीवदानी माता की स्थापना की. इस मंदिर को पांडवों ने अपने वनवास के समय में बनाया था. इस मंदिर पहले से बहुत ऋषि आते जाते रहे हैं. आज भी यहां अनेकों ऋषि और योगी मंदिर दौरे के समय यहां रहते हैं. इस मंदिर को लेकर और भी बहुत सी कहानियां हैं.
17वीं सदी से है मंदिर का इतिहास
मंदिर कि सीढ़ियों पर दुकान लगाने वाले दुकानदारों के मुताबिक इस क्षेत्र में 17वीं सदी में जीवदानी किले का निर्माण किया गया था. उस समय किले में अनेकों पानी के कुंड हुआ करते थे. वर्तमान में अधिकतम कुंड अभी सुख गए है. मान्यता कुछ ऐसी है की अपनी मनोकामनाए पूरी करने के लिए भक्त माता की मंदिर की चढ़ाई नंगे पैर करते हैं. शुक्रवार और रविवार इस मंदिर में भक्तों की भरी भीड़ लगती है. अब इस मंदिर तक पहुंचने के लिए लिफ्ट भी लगा दिया गया है.
आस्था और इतिहास का संगम है भारेश्वर मंदिर, महाभारत काल में भीम ने की थी शिवलिंग की स्थापना
24 Sep, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भारत एक ऐसा देश है जिसका इतिहास, संस्कृति और कथाएं वैश्विक स्तर पर चर्चा का केंद्र बनी रहती हैं. ऐसी ही एक प्राचीन कथा है जो पांडवों की आस्था से जुड़ी हुई है. चंबल घाटी में स्थित भारेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है. मान्यता है कि अज्ञातवास के दौरान भीम ने इस मंदिर में शिवलिंग की स्थापना की थी. यह मंदिर शिव भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है, जहां हजारों श्रद्धालु पूजा अर्चना करने आते हैं.
डाकुओं का आतंक और श्रद्धालुओं की आस्था
एक समय ऐसा था जब चंबल घाटी कुख्यात डाकुओं के आतंक के लिए जानी जाती थी. इसके बावजूद, शिव भक्त कभी भी पूजा अर्चना से पीछे नहीं हटे. डाकुओं का आतंक भी शिव भक्तों को डरा नहीं सका और वो लगातार इस मंदिर में आते रहे. चंबल नदी के किनारे बना ये मंदिर, जमीन से 444 फीट की ऊंचाई पर बना है. यहां तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को 108 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं. मंदिर की बनावट द्वापर युगीन है और इसकी पंचायतन शैली की मोटी दीवारें इसकी भव्यता का बखान करती हैं.
व्यापारिक केंद्र और मंदिर का जीर्णोद्धार
मुगलकाल में जब व्यापार नदियों के जरिए होता था, तब भरेह कस्बा उत्तर भारत का प्रमुख व्यापार केंद्र था. प्रसिद्ध कहानी के मुताबिक, एक बार राजस्थान के व्यापारी मदनलाल की नाव यमुना के भंवर में फंस गई थी. उन्होंने महादेव से प्रार्थना की और नाव सुरक्षित किनारे आ गई. इसके बाद व्यापारी ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया.20वीं शताब्दी में यहां से डाकुओं का पूरी तरह सफाया हो गया था. लेकिन एक समय था जब डाकू भी इस मंदिर में पूजा अर्चना करते थे. निर्भय गुर्जर, रज्जन गुर्जर, अरविंद गुर्जर जैसे कुख्यात डाकू भी इस मंदिर में पूजा करने आते थे.
क्या कहना है इतिहासकारों का?
इस मंदिर में विशाल शिवलिंग की स्थापना भीम ने अज्ञातवास के दौरान की थी. मंदिर की बनावट और इसकी भव्यता इसे एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल बनाती है.
ऐसे हुई श्राद्ध पक्ष की शुरुआत, सबसे पहले महाराज युधिष्ठिर ने किया, अग्नि देव से भी है इसका संबंध
24 Sep, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
पितृ पक्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से शुरू होता है और सर्वपितृ अमावस्या तक चलता है. पितृपक्ष इस बार 17 सितंबर से शुरू हो चुके हैं और 2 अक्तूबर तक चलेंगे. पितृपक्ष में किए गए तर्पण से पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है और घर में हमेशा सुख-शांति बनी रहती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म की शुरुआत कहां और कैसे हुई थी? पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, पितृ पक्ष में श्राद्ध की परंपरा महाभारत काल से हुई थी.
पितृ पक्ष का सीधा संबंध महाभारत से है :
गरुड़ पुराण में भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर के संवाद बताए गए हैं. महाभारत काल में भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को पितृपक्ष में श्राद्ध और उसके महत्व को बताया था. भीष्म पितामह ने बताया था कि अत्रि मुनि ने सबसे पहले श्राद्ध के बारे में महर्षि निमि को ज्ञान दिया था, महर्षि निमि संभवत: जैन धर्म के 22वें तीर्थंकर थे. इस प्रकार पहले निमि ने श्राद्ध का आरंभ किया, उसके बाद अन्य महर्षि भी श्राद्ध करने लगे. दरअसल, अपने पुत्र की आकस्मिक मृत्यु से दुखी होकर निमि ऋषि ने अपने पूर्वजों का आह्वान करना शुरू कर दिया था. इसके बाद पूर्वज उनके सामने प्रकट हुए और कहा, “निमि, आपका पुत्र पहले ही पितृ देवों के बीच स्थान ले चुका है. चूंकि आपने अपने दिवंगत पुत्र की आत्मा को खिलाने और पूजा करने का कार्य किया है, यह वैसा ही है जैसे आपने पितृ यज्ञ किया था.उस समय से श्राद्ध को सनातन धर्म का महत्वपूर्ण अनुष्ठान माना जाता है. इसके बाद से महर्षि निमि ने भी श्राद्ध कर्म शुरू किए और उसके बाद से सारे ऋषि-मुनियों ने श्राद्ध करना शुरू कर दिए थे. कुछ मान्यताएं बताती हैं कि युधिष्ठिर ने कौरव और पांडवों की ओर से युद्ध में मारे गए सैनिकों के अंतिम संस्कार के बाद उनका भी श्राद्ध किया था, तब श्रीकृष्ण ने कहा कि तुम्हें कर्ण का भी श्राद्ध करना चाहिए, युधिष्ठिर ने कहा कि वह तो हमारे कुल का नहीं है तो मैं कैसे उसका श्राद्ध कर सकता हूं? उसका श्राद्ध तो उसके कुल के लोगों को ही करना चाहिए. इस उत्तर के बाद पहली बार भगवान श्रीकृष्ण ने यह राज खोला था कि कर्ण तुम्हारा ही बड़ा भाई है.
श्राद्ध का अग्नि देव से भी है संबंध:
जब सभी ऋषि-मुनि देवताओं और पितरों को श्राद्ध में इतना अधिक भोजन कराने लगे तो उन्हें अजीर्ण हो गया और वे सभी ब्रह्मा जी के पास पहुंचे. इसके बाद ब्रह्मा जी ने कहा कि इसमें अग्नि देव आपकी मदद कर पाएंगे. इसके बाद अग्नि देव ने कहा कि श्राद्ध में मैं भी आप लोगों के साथ मिलकर भोजन करूंगा इससे आपकी समस्या का समाधान हो जाएगा. इसलिए हमेशा पितरों को भोजन कराने के लिए श्राद्ध का भोजन कंडे और अग्नि को चढ़ाया जाता है.
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (24 सितंबर 2024)
24 Sep, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि - शुभ कार्यों में समय बीतेगा, विरोधी साथ देंगे, कार्य में प्रगति होगी, समय पर कार्य पूर्ण करें।
वृष राशि - मित्रों का सहयोग मिलेगा, भाग्य की उन्नति होगी, प्रयत्न एवं मेल-मिलाप से कार्य पूर्ण होंगे।
मिथुन राशि - मित्रों का सहयोग मिलेगा, भाग्य की उन्नति होगी, पारिवारिक उत्तर दायित्व की प्राप्ति होगी।
कर्क राशि - स्त्री-संतान सुख मिलेगा, नौकरी वालों की पदोन्नति के योग बनेंगे, भाग्योदय होगा।
सिंह राशि - पत्नी के स्वास्थ्य की चिन्ता तथा भोग-ऐश्वर्य में धन व्यय होगा, पारिवारिक कार्यों पर ध्यान दें।
कन्या राशि - कार्य-व्यवसाय में अर्थ लाभ होगा, आलस्य से कार्यों में विलम्ब होगा, समय स्थिति को देखकर आगे बढ़ें।
तुला राशि - आर्थिक सामाजिक-राजनैतिक विकास लाभ होगा, स्त्री पक्ष से सुख प्राप्त होगा, सुख-साधन की वृद्धि होगी।
वृश्चिक राशि - पत्नी-संतान का सुख मिलेगा, आकस्मिक धन लाभ के अवसर प्राप्त होंगे, विवाद अवश्य निपटा लें।
धनु राशि - पुरानी व्यवस्थाओं का लाभ मिलेगा, समस्याओं का समाधान मिलेगा, अच्छे लोगों से सहयोग मिलेगा।
मकर राशि - इष्ट मित्रों से इच्छानुकूल सहयोग की प्राप्ति होगी, दाम्पत्य जीवन सुखी रहेगा, समय सुख में बीतेगा।
कुंभ राशि - विरोध की स्थिति बनेगी, गृह कलह से मन अशांत रहेगा, समय का ध्यान अवश्य रखें।
मीन राशि - व्यर्थ विवाद होने का भय रहेगा, सामान्य व्यवहार का वातावरण रहेगा, अनुकूल समय का लाभ लें।