धर्म एवं ज्योतिष
नवरात्रि में क्यों खाते हैं ये फलाहार ?
3 Oct, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
नवरात्रि में देवी की उपासना के साथ ही नौ दिनों के उपवास होते हैं इन दिनों फलाहार ही होता है। इन दिनों घर में सादे नमक की जगह सेंधा नमक और गेहूं के आटे की जगह बल्कि सिर्फ कूटू का आटा या सिंघाड़े का आटा खाया जाता है। इसके पीछे धार्मिक के साथ ही वैज्ञानिक आधार भी है।
आयुर्वेद के मुताबिक गेहूं, प्याज़, लहसुन, अदरक जैसी चीज़ें नकारात्मक ऊर्जा आकर्षित करती हैं। वहीं मौसम के बदलने पर हमारी रोग प्रतिरोधक शक्ति काफी कम होती है, जिसकी वजह से शरीर को बीमारियां लगती हैं। ऐसे में इन चीज़ों का सेवन करना नुकसानदायक साबित हो सकता है। व्रत करने का मतलब है रोज़ के खाने से शरीर पर रोक लगाना। ऐसे में लोग आसानी से पच जाने वाला और पोषक तत्वों से भरा खाना खाते हैं। गेहूं, पाचन क्रिया को धीमा करता है, इसलिए लोग इससे परहेज़ करते हैं। परिवर्तित खाने की जगह फल, सब्जी, जूस और दूध पीना ज्यादा बेहतर माना जाता है।
सेंधा नमक
देखा गया है कि नवरात्रि के समय लोग खाना बनाने में सादे नमक की जगह सेंधा नमक का इस्तेमाल करते हैं। सेंधा नमक पहाड़ी नमक होता है, जो स्वास्थ्य के साथ व्रत के खाने में शामिल किए जाने वाला सबसे शुद्ध नमक माना जाता है। यह कम खारा और आयोडीन मुक्त होता है। इसमें सोडियम की मात्रा कम, पोटेशियम और मैग्नीशियम की मात्रा ज़्यादा पाई जाती है, जो कि हार्ट के लिए काफी फायदेमंद होता है।
साबूदाना
इसे हर तरह के व्रत में खाया जा सकता है। साबूदाना एक प्रकार के पौधे से निकाले जाने वाला पदार्थ होता है, जिसमें स्टार्च की मात्रा काफी अधिक होती है। इसमें कार्बोहाइड्रेट और थोड़ा प्रोटीन भी शामिल होता है। साबूदाना शरीर को आवश्यक शक्ति प्रदान करता है। इससे आप साबूदाना खीर, टिक्की या फिर साबूदाना खिचड़ी जैसे कई व्यंजन बना सकते हैं।
कूटू का आटा
कूटू का आटा एक पौधे के सफेद फूल से निकलने वाले बीज को पीसकर तैयार किया जाता है। आमतौर पर लोग इसे व्रत में खाते हैं, क्योंकि न तो यह अनाज है और न ही वनस्पति। यह एक घास परिवार का सदस्य है। कहते हैं कि इस आटे की तासीर गर्म होती है, जिससे शरीर में कार्बोहाइड्रेट और ग्लूकोज़ का स्तर बढ़ता है। कूटू का आटा ग्लूटन फ्री होने के साथ काफी पौष्टिक भी होता है। इसमें फाइबर, प्रोटीन और विटामिन-बी की मात्रा अधिक होती है। इस आटे में आयरन, मैग्नीशियम और फॉस्फोरस जैसे कई मिनरल्स होते हैं, जो कि व्रत के लिए पौष्टिक आहार माने जाते हैं।
सिंघाड़े का आटा
व्रत में पूरा दिन फलाहार खाने के बाद जब रात में भूख लगती है, तो लोग या तो कूटू के आटे की पकौड़ी खाते है या सिंघाड़े के आटे की। असल में यह आटा सूखे पिसे सिंघाड़े से बनता है। इसमें पोटेशियम और कार्बोहाइड्रेट की मात्रा ज़्यादा और सोडियम और चिकनाई की मात्रा कम होती है।सिंघाड़ा, एक तरह का फल होता है, जिसमें फाइबर, विटामिन्स और मिनरल्स पाए जाते हैं. व्रत के समय में इसे खाने का मतलब है, शरीर के पोषक तत्वों से जुड़ी जरूरतों को पूरा करना।
रामदाना
यह फलाहार पोषक तत्वों से भरा है। इसमें प्रोटीन और कैल्शियम की मात्रा अधिक होती है। व्रत के समय लोग, अनाज की जगह अपने खाने में इसे शामिल कर सकते हैं। इसमें ग्लायसैमिक इंडेक्स कम होता है और यह ग्लूटेन फ्री भी होता है। आप इससे रामदाना चिक्की या लड्डू समेत कई तरह के पकवान बना सकते हैं। कई लोग तो इसे दूध में ऊपर से डालकर खाना पसंद करते हैं।
नवरात्रि में मां दुर्गा के इन नौ स्वरूपों की होती है अराधना
3 Oct, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
नवरात्रि में माता दुर्गा के नौ रूपों को पूजा जाता है। माता दुर्गा के इन सभी नौ रूपों का अपना अलग महत्व है। माता के प्रथम रूप को शैलपुत्री, दूसरे को ब्रह्मचारिणी, तीसरे को चंद्रघण्टा, चौथे को कूष्माण्डा, पांचवें को स्कन्दमाता, छठे को कात्यायनी, सातवें को कालरात्रि, आठवें को महागौरी तथा नौवें रूप को सिद्धिदात्री कहा जाता है। नवरात्रें में मां दुर्गा के प्रतिदिन अलग-अलग रूपों की पूजा विशेष फल देने वाली है।
मां शैलपुत्री
मां दुर्गा का पहला स्वरूप शैलपुत्री का है। पर्वतराज हिमालय के यहां पुत्री के रूप में उत्पन्न होने के कारण इनको शैलपुत्री कहा गया। यह बैल पर बैठीं, दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में पुष्प कमल धारण किए हुए हैं। त्रिशूल भक्त की दैहिक, दैविक और भौतिक तीनों तरह के तापों से रक्षा करता है और कमल निर्लिप्तता का भाव जागृत करता है। यह नव दुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। नवरात्रि पूजन में पहले दिन इन्हीं का पूजन होता है।
मां ब्रह्मचारिणी
मां दुर्गा की नौ शक्तियों में से दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। यहां ब्रह्म शब्द का अर्थ तपस्या से है। ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली। ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यंत भव्य है। इनके बाएं हाथ में कमण्डल और दाएं हाथ में जप की माला रहती है। जप माला जहां नाम सिमरन करते हुए अपने इष्ट की ओर एक-एक कदम बढ़ने का संकेत देती है वहीं कमण्डल अपने इष्ट-आराध्य की भक्ति से स्वयं के खाली घट को भरने का संकेत देता है। मां दुर्गा का यह स्वरूप भत्तफ़ों और सिद्धों को अनंत फल प्रदान करने वाला है। इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन इन्हीं की उपासना
की जाती है।
मां चंद्रघंटा
मां दुर्गा की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघण्टा है। नवरात्र उपासना में तीसरे दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन व आराधना की जाती है। इनका स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनके मस्तक में घण्टे के आकार का अर्धचन्द्र है। इसी कारण इस देवी का नाम चंद्रघण्टा पड़ा। चंद्र जहां शीतलता का प्रतीक है वहीं घण्टा नाद ब्रह्म का प्रतीक है। नाद ब्रह्म अर्थात् ॐ का उच्चारण करते हुए भक्त पूर्ण ब्रह्म को प्राप्त करें। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। इनका वाहन सिंह है। हमें चाहिए कि हम मन, वचन, कर्म एवं शरीर से शुद्ध होकर विधि-विधान के अनुसार, मां चंद्रघंटा की शरण लेकर उनकी उपासना व आराधना में तत्पर हों। इनकी उपासना से हम समस्त सांसारिक कष्टों से छूटकर सहज ही परमपद के अधिकारी बन सकते हैं।
मां कूष्मांडा
माता दुर्गा के चौथे स्वरूप का नाम कूष्माण्डा है। अपनी मंद, हल्की हंसी द्वारा ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इनका नाम कूष्माण्डा पड़ा। नवरात्रें में चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन अनाहत चक्र में स्थित होता है। अतः पवित्र मन से पूजा-उपासना के कार्य में लगना चाहिए। मां की उपासना मनुष्य को स्वाभाविक रूप से भवसागर से पार उतारने के लिए सुगम और श्रेयस्कर मार्ग है। माता कूष्माण्डा की उपासना मनुष्य को आधिव्याधियों से विमुत्तफ़ करके उसे सुऽ, समृद्धि और उन्नति की ओर ले जाती है। अतः अपनी लौकिक, परलौकिक उन्नति चाहने वालों को कूष्माण्डा की उपासना में हमेशा तत्पर रहना चाहिए।
मां स्कंदमाता
मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता कहा जाता है। भगवान स्कन्द ‘कुमार कार्तिकेय’ के नाम से भी जाने जाते हैं। इन्हीं भगवान स्कन्द अर्थात कार्तिकेय की माता होने के कारण मां दुर्गा के इस पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है। इनकी उपासना नवरात्रि पूजा के पांचवें दिन की जाती है इस दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में स्थित रहता है। इनका वर्ण शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान हैं। इसलिए इन्हें पप्रासन देवी भी कहा जाता है। इनका वाहन भी सिंह है। नवरात्रि पूजन के पांचवें दिन का शास्त्रें में पुष्कल महत्व बताया गया है। इस चक्र में अवस्थित रहने वाले साधक की समस्त बाह्य क्रियाएं एवं चित्त वृत्तियों का लोप हो जाता है।
मां कात्यायनी
मां दुर्गा के छठे स्वरूप को कात्यायनी कहते हैं। कात्यायनी महर्षि कात्यायन की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर उनकी इच्छानुसार उनके यहां पुत्री के रूप में पैदा हुई थीं। महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की थी इसलिए ये कात्यायनी के नाम से प्रसिद्ध हुईं। मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं। दुर्गा पूजा के छठे दिन इनके स्वरूप की पूजा की जाती है। इस दिन साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित रहता है। योग साधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान है। इस चक्र में स्थित मन वाला साधक मां कात्यायनी के चरणों में अपना सब कुछ न्यौछावर कर देता है। भत्तफ़ को सहजभाव से मां कात्यायनी के दर्शन प्राप्त होते हैं। इनका साधक इस लोक में रहते हुए भी अलौकिक तेज से युक्त होता है।
मां कालरात्रि
मां दुर्गा के सातवें स्वरूप को कालरात्रि कहा जाता है। मां कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है लेकिन ये सदैव शुभ फल देने वाली मानी जाती हैं। इसलिए इन्हें शुभघ्करी भी कहा जाता है। दुर्गा पूजा के सप्तम दिन मां कालरात्रि की पूजा का विधान है। इस दिन साधक का मन सहस्त्रर चक्र में स्थित रहता है। उसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों के द्वार खुलने लगते हैं। इस चक्र में स्थित साधक का मन पूर्णतः मां कालरात्रि के स्वरूप में अवस्थित रहता है। मां कालरात्रि दुष्टों का विनाश और ग्रह बाधाओं को दूर करने वाली हैं। जिससे साधक भयमुक्त हो जाता है।
मां महागौरी
माँ दुर्गाजी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। दुर्गापूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। इनकी शत्तिफ़ अमोघ और सद्यः फलदायिनी है। इनकी उपासना से भत्तफ़ों के सभी कल्मष धुल जाते हैं, पूर्वसंचित पाप भी विनष्ट हो जाते हैं। भविष्य में पाप-संताप, दैन्य-दुःख उस भक्त के पास कभी नहीं जाते। महागौरी की पूजा-उपासना से भक्त सभी प्रकार से पवित्र और अक्षय पुण्यों का अधिकारी हो जाता है।
मां सिद्धिदात्री
मां दुर्गा की नौवीं शक्ति को सिद्धिदात्री कहते हैं। जैसा कि नाम से प्रकट है ये सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करने वाली हैं। नव दुर्गाओं में मां सिद्धिदात्री अंतिम हैं। इनकी उपासना से भत्तफ़ों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।
बालाजी मंदिर से जुड़ी ये मान्यताएं
3 Oct, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भारत के ऐतिहासिक और सबसे अमीर मंदिरों में से एक है तिरुपति बालाजी मंदिर है। तिरुपति महाराज जी के दरबार में देश-विदेश के भक्तों की भीड़ रहती है। यहां अमीर और गरीब दोनों जाते हैं। हर साल लाखों लोग तिरुमाला की पहाडिय़ों पर उनके दर्शन करने आते हैं। तिरुपति के इतने प्रचलित होने के पीछे कई कथाएं और मान्यताएं हैं। इस मंदिर से बहुत सारी मान्यताएं जुड़ी हैं।
माना जाता है कि तिरुपति बालाजी अपनी पत्नी पद्मावती के साथ तिरुमला में रहते हैं।
तिरुपति बालाजी मंदिर के मुख्य दरवाजे के दाईं ओर एक छड़ी है। कहा जाता है कि इसी छड़ी से बालाजी की बाल रूप में पिटाई हुई थी, जिसके चलते उनकी ठोड़ी पर चोट आई थी।
मान्यता है कि बालरूप में एक बार बालाजी को ठोड़ी से रक्त आया था। इसके बाद से ही बालाजी की प्रतिमा की ठोड़ी पर चंदन लगाने का चलन शुरू हुआ।
कहते हैं कि बालाजी के सिर रेशमी बाल हैं और उनके रेशमी बाल कभी उलझते नहीं।
कहते हैं कि तिरुपति बालाजी मंदिर से करीब करीब 23 किलोमीटर दूर एक से लाए गए फूल भगवान को चढ़ाए जाते हैं। इतना ही नहीं वहीं से भगवान को चढ़ाई जाने वाली दूसरी वस्तुएं भी आती हैं।
हैरानी की बात तो यह है कि वास्तव में बालाजी महाराज मंदिर में दाएं कोने में विराजमान हैं, लेकिन उन्हें देख कर ऐसा लगता है मानों वे गर्भगृह के मध्य भाग में हों।
तिरुपति बालाजी मंदिर में बालाजी महाराज को रोजाना धोती और साड़ी से सजाया जाता है।
कहते हैं कि बालाजी महाराज की मूर्ती की पीठ पर कान लगाकर सुनने से समुद्र घोष सुनाई देता है और उनकी पीठ को चाहे जितनी बार भी क्यों न साफ कर लिया जाए वहां बार बार गीलापन आ जाता है।
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (03 सितंबर 2024)
3 Oct, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा, व्यवसायिक समृद्धि के योग बनेंगे, कार्य पर ध्यान देने से लाभ होगा।
वृष राशि :- इष्ट मित्र से हर्ष होगा, लाभ होगा, कार्य-व्यवसाय गति उत्तम रहेगी, कार्य समय पर पूरा करने की कोशिश करें।
मिथुन राशि :- सफलता का साधन हाथ से निकलेगा, मित्रों से संतोष होगा, अधिकारियों का समर्थन फलप्रद होगा।
कर्क राशि :- योजना फलीभूत होगी, सफलता के साधन जुटायेंगे, रुके कार्य ध्यान देने से अवश्य ही बनेंगे।
सिंह राशि :- दैनिक कार्यगति अनुकूल रहेगी, प्रभुत्व वृद्धि होगी, कार्य कुशलता से कार्य बनने से हर्ष होगा।
कन्या राशि :- मान-प्रतिष्ठा व प्रभुत्व वृद्धि होगी, किसी के रुके कार्य बनने से हर्ष होगा, समय का ध्यान रखें।
तुला राशि :- कार्य योजना पूर्ण होगी, मान-प्रतिष्ठा बढ़ेगी, रुके कार्य बनेंगे, कार्य-व्यवसाय बढ़ेगा ध्यान दें।
वृश्चिक राशि :- स्थिति अनुकूल नहीं विशेष कार्य स्थगित रखें, हानि होने की संभावना है, सावधान रहकर कार्य करें।
धनु राशि :- कार्य विफल होगा, दूसरों के कार्यों में समय व धन नष्ट होगा, कार्य-व्यवसाय पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
मकर राशि :- अधिकारियों के मेल-मिलाप से कार्य अवश्य होगा, समय का लाभ अवश्य होगा, लाभ से हर्ष होगा।
कुंभ राशि :- परिश्रम करने पर भी सफलता न मिले तथा अनेक प्रकार से असुविधा अवश्य बनेगी, धैर्य अवश्य रखें।
मीन राशि :- दैनिक कार्यगति अनुकूल रहेगी, प्रभुत्व वृद्धि होगी, रुके कार्य बनने से हर्ष होगा, कार्य विशेष पर ध्यान दें।
सूर्य ग्रहण के दिन इस योग का हो रहा है निर्माण, इन पांच राशियों पर पड़ेगा निगेटिव प्रभाव, भूलकर भी ना करें ये गलती
2 Oct, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में ग्रहण का विशेष प्रभाव होता है. वहीं साल का आखिरी सूर्य ग्रहण 2 अक्टूबर को रात्रि में लगने जा रहा है. वैसे तो वैज्ञानिक दृष्टि से खगोलीय घटना मांगना जाता है. लेकिन, धार्मिक दृष्टि से ग्रहण को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है. जब ग्रहण लगता है तो इसका प्रभाव देश-दुनिया समेत राशि चक्र के 12 राशि के जातक पर देखने को मिलता है.
किसी पर सकारात्मक तो किसी पर नकारात्मक प्रभाव रहता है. अमावस्या तिथि के दिन सूर्य ग्रहण लगना अशुभ माना जाता है. इसके अलावा इस दिन षडाष्टक योग का भी निर्माण हो रहा है. इसका प्रभाव पांच राशि के जातक पर नकारात्मक तौर पर देखने को मिलेगा. चलिए इस रिपोर्ट में जानते हैं कहीं आपका भी तो राशि नहीं है शामिल.
पांच राशियों पर सूर्य ग्रहण का पड़ेगा प्रभाव
अयोध्या के ज्योतिष पंडित कल्कि राम ने लोकल 18 को बताया कि साल का अंतिम सूर्य ग्रहण 2 अक्टूबर को लग रहा है और इसी दिन पितृ अमावस्या भी है. इतना ही नहीं सूर्य ग्रहण के समय शनि और सूर्य की एक दूसरे पर आठवीं दृष्टि भी पढड़ रही है, जो बेहद अशुभ माना जाता है. इसकी वजह से षडाष्टक योग का निर्माण हो रहा है और इसका प्रभाव पांच राशि के जातक पर अधिक देखने को मिलेगा. जिसमें मिथुन, मेष, कर्क, कन्या और वृश्चिक राशि के जातक शामिल है.
इन राशियों पर पड़ेगा प्रभाव
मेष राशि: इस राशि के जातक के लिए ग्रहण का अशुभ सैया अगले 15 दिनों तक रहेगा. धन की हानि होगी. सोच समझकर पैसे का लेन-देन कर सकते हैं. किसी बीमारी अथवा दुर्घटना के शिकार भी हो सकते हैं
मिथुन राशि: इस राशि के जातक के लिए यह सूर्य ग्रहण कई तरह की परेशानियां बढ़ाएगी. वाणी पर विराम रखें. व्यापार में घाटा हो सकता है और कई तरह की परेशानियां जीवन में आ सकती है.
कर्क राशि: इस राशि के जातक के लिए ग्रहण का समय बहुत कष्टकारी होगा. अगले 15 दिनों तक इस राशि के जातक को कई तरह की सावधानी भी बरतनी पड़ेगी. बेहतर है कि इस दौरान किसी से पैसा उधार ना लें.
कन्या राशि: कन्या राशि के जातक के लिए ग्रहण के बाद 15 दिन अच्छा नहीं साबित नहीं होने वाला है. आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ेगा और कारोबार में घाटा हो सकता है.
वृश्चिक राशि: इस राशि के जातक के लिए यह समय अच्छा नहीं रहेगा. नकारात्मकता से बचें और घर में मनमुटाव हो सकता है. वहीं वाहन चलते समय सावधानी बरतें.
साल में एक ही बार आता है ये शुभ दिन, करें ये उपाय, गृह क्लेश होगा दूर, कारोबार में भी मिलेगी कामयाबी
2 Oct, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सर्वपितृ अमावस्या 2 अक्टूबर, बुधवार को है, और इस दिन ज्यादातर लोग अपने पितरों का तर्पण करते हैं. यह दिन विशेष महत्व रखता है क्योंकि यह साल की सबसे बड़ी अमावस्या होती है. पितरों के तर्पण का यह अवसर बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है. इस दिन किसी भी तीर्थ स्थल पर जाकर अपने पितरों को पिंडदान और तर्पण करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है. जो पितृ वायु रूप में भटक रहे होते हैं, उन्हें पिंडदान से शरीर रूप प्राप्त होता है. अगर किसी व्यक्ति की जन्मपत्रिका में कालसर्प दोष, पितृ दोष या अन्य कोई दोष हो, या यदि परिवार में वंश वृद्धि नहीं हो रही हो, घर में कलह हो, या व्यापार में लगातार नुकसान हो रहा हो, तो इस दिन पितरों का पिंडदान करने से इन समस्याओं में राहत मिलती है.
इस दिन की अमावस्या पिंडदान करने से पितरों को पिंड रूपी शरीर की प्राप्ति होती है. तो वहीं पिंड तर्पण करने से पितरों की भूख प्यास समाप्त जाती है. इस प्रकार जिस भी जातक के जन्मपत्रिका में किसी भी प्रकार का दोष होता है. जैसे कालसर्प दोष, पितृ दोष. जिनके घर में वंश वृद्धि नहीं हो पा रही, घर में गृह क्लेश है, व्यापार में हानि होती रहती है, इस दिन पितरों को पिंडदान पिंड दर्पण करने से इन सभी कार्यों में राहत मिलती है.
तीर्थ का राजा पुष्कर राज
कविता जांगिड़ ने बताया कि अमावस्या के दिन पिंडदान तर्पण तीर्थ स्थल पर करें. समस्त तीर्थ का राजा पुष्कर राज को कहा गया है. अगर यहां जाकर अमावस्या के दिन पिंडदान पिंड तर्पण करते हैं. समस्त तीर्थ साल में एक बार पुष्कर राज को ढोकने आते हैं. पुष्कर में ज्ञात और अज्ञात पितरों के पिंडदान हो जाते हैं कोटा में आप चंबल नदी के किनारे भी पिंडदान पिंड तर्पण कर सकते हैं.
कैसे कराए भोजन
उन्होंने ने बताया कि गरुड़ पुराण सहित कई पुराणों में बताया गया है कि पितरों का श्राद्ध करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है. आप भी अगर सर्वपितृ अमावस्या पर अपने पितरों का तर्पण, श्राद्ध कर रहे हैं, तो आपको श्राद्ध भोजन से जुड़े कुछ नियमों का ध्यान रखना चाहिए, जिससे कि आपके पितरों की आत्मा को मुक्ति मिल सके. पितृपक्ष में अगर आप पितरों का श्राद्ध कर रहे हैं, तो आपको केले के पत्ते पर श्राद्ध का भोजन नहीं परोसना चाहिए, क्योंकि श्राद्ध का भोजन केले के पत्ते पर नहीं परोसा जाता है. आप चांदी, कांसे, तांबे के बर्तनों में भोजन परोस सकते हैं. वहीं, पत्तल पर भोजन परोसना भी शुभ माना जाता है.
शारदीय अमावस्या पर क्या करें और क्या न करें
1.इस दिन बेलपत्र नहीं तोड़ना चाहिए.
2. जितना हो सके गाय को हरा चारा देना चाहिए पक्षियों को दाने देना चाहिए.
3. जितना हो सके लोगों को पानी पिलाना चाहिए.
4. गरीब निर्धन लोगों को खाना खिलाना चाहिए.
इस साल 10 दिनों तक रहेगी नवरात्रि, इस दिन मनाया जाएगा विजयादशमी का त्यौहार, व्रती जपें ये मंत्र
2 Oct, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
शारदीय नवरात्रि 3 अक्टूबर से आरंभ हो रहा है. नवरात्रि का त्योहार पूरे 9 दिनों तक मनाया जाता है. इस दौरान मां दुर्गा के 9 अलग-अलग स्वरूपों की पूजा अर्चना की जाती है. हर साल आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत होती है. अश्विन महीने में ही शरद ऋतु की शुरुआत होती है, इसलिए भी इसे शारदीय नवरात्रि कहा जाता है. इस बार नवरात्रि का समापन 12 अक्टूबर को विजयादशमी के साथ होगा. इसी दिन मां दुर्गा कि विदाई की जाएगी.
दरअसल, इस बार शारदीय नवरात्रि 10 दिनों तक मनाई जाएगी. बक्सर के पंडित तारकेश्वर पांडेय के अनुसार, ऐसा इस साल तृतीया तिथि 2 दिन पड़ने के कारण हो रहा है. शारदीय नवरात्रि 3 अक्टूबर से शुरू होकर 12 अक्टूबर तक चलेगी. वहीं, उनका कहना है कि नवरात्रि में तिथियों का बढ़ना शुभ संकेत माना जाता है.
इस दिन से होगी नवरात्रि की शुरुआत
शारदीय नवरात्रि में 9 दिनों तक 9 देवियों की पूजा की जाती है और उनके नाम का व्रत रखा जाता है. इस त्योहार का हिंदू धर्म में बड़ा महत्व है. इस बार के नवरात्रि की शुरुआत 03 अक्टूबर 2024 से हो रही है. वैसे तो नवरात्रि का त्योहार 9 दिनों का होता है, लेकिन इस बार ये त्योहार 10 दिन का मनाया जाएगा.
आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवरात्रि शुरू हो रही है. 11 अक्टूबर 2024 तक नवरात्रि चलेगी और 12 अक्टूबर को विजयादशमी का त्योहार मनाया जाएगा. इस दिन दुर्गा मां के 9 रूप शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है और उनके नाम का व्रत रखा जाता है. इसके बाद 10वें दिन बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाया जाता है.
इस दिन पड़ रही नवमी और दशमी
आश्विन महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि की शुरुआत 3 अक्टूबर को रात 12 बजकर 19 मिनट पर शुरू होगी और इसका समापन अगले दिन यानी 4 अक्टूबर को रात 2 बजकर 58 मिनट पर होगा. कुछ पंचांग के अनुसार, इस बार 11 अक्टूबर को अष्टमी और नवमी तिथि दोनों पड़ रही है. ऐसे में नवमी तिथि की पूजा का मुहूर्त 12 अक्टूबर को दशहरा के दिन सुबह का निकल रहा है. इस लिहाज से देखा जाए, तो 9 दिन नहीं 2024 की शारदीय नवरात्रि कुल 10 दिन की होगी.
नवरात्रि में महाशक्ति का प्रतीक मानी जाने वाली मां दुर्गा की आराधना की जाती है. कहा जाता है कि उनकी अराधना करने से इंसान के जीवन के सारे दु:ख मिट जाते हैं और उसके जीवन में सकारात्मकता के साथ ही शक्ति का संचार होता है. इस बार नवरात्रि के दिन एक दुर्लभ योग भी बन रहा है. ये सर्वार्थ सिद्धि योग है और ये एक शुभ योग है. इस योग में पूजा करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. इस बार नवरात्रि के मौके पर ये योग 4 दिन पड़ रहे हैं. पंचांग की मानें, तो इस दुर्लभ योग की शुरुआत 5 अक्टूबर को होगी और 8 अक्टूबर तक ये दुर्लभ योग रहेगा.
पितृ पक्ष में गया जी नहीं जा सके? गौशाला में इस तरह कर सकते हैं पितरों का तर्पण
2 Oct, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू पंचांग के अनुसार, पितृ पक्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष से अमावस्या तक 15 दिनों तक मनाया जाता है. इस समय को पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण और पिंडदान करने का उत्तम समय माना जाता है. हालांकि, अगर किसी कारणवश आप बिहार के गया जी स्थित फल्गु नदी में तर्पण करने नहीं जा पाए हैं, तो आप अपने पितरों का तर्पण गौशाला में गौग्रास खिलाकर भी कर सकते हैं. यह विधि पितरों को तृप्त करने का एक महत्वपूर्ण तरीका है.
गाय को गौग्रास खिलाने से मिलता है तर्पण का पूरा फल
श्री कोडरमा गौशाला समिति के अरुण मोदी के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति अपने पूर्वजों का श्राद्ध-कर्म या पिंडदान करने में असमर्थ है, तो वह पूरी श्रद्धा से गाय को गौग्रास खिलाकर भी श्राद्ध का पूरा फल प्राप्त कर सकता है. गाय को हिंदू धर्म में अत्यधिक पूजनीय माना गया है, और इसे 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास स्थल कहा जाता है. पितृ पक्ष के दौरान गाय को हरा चारा खिलाने से पितर तृप्त होते हैं, और सभी प्रकार की बाधाओं से मुक्ति मिलती है. साथ ही, यह विधि घर में सुख-समृद्धि और शांति लाने में भी सहायक मानी जाती है.
गौशाला में गौग्रास सेवा की सुविधा
पितृ पक्ष के दौरान श्री कोडरमा गौशाला समिति द्वारा जिले में गौग्रास सेवा की विशेष सुविधा प्रदान की जा रही है. इस सेवा के अंतर्गत 1100 रुपये में 11 गायों को, 5100 रुपये में 51 गायों को, और 11,000 रुपये में गौशाला की सभी गायों को भोजन करवा सकते हैं. यह सेवा तर्पण का एक सरल और पुण्यपूर्ण विकल्प प्रदान करती है, जिससे पितरों की आत्मा को शांति प्राप्त होती है.
गौग्रास सेवा के लिए संपर्क
यदि आप अपने पितरों की तर्पण सेवा के लिए गौशाला में गौग्रास भोजन करवाना चाहते हैं, तो इसके लिए श्री कोडरमा गौशाला समिति ने बुकिंग की सुविधा उपलब्ध कराई है. सेवा के लिए आप परियोजना निदेशक शुभम चौधरी (संपर्क: 7004625950) और सहायक परियोजना निदेशक संजय अग्रवाल (संपर्क: 9931590000) से संपर्क कर सकते हैं. यहां से आप गौग्रास सेवा की बुकिंग कर सकते हैं और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं.
गौ सेवा का महत्व
गाय को हिंदू धर्म में पूजनीय माना गया है, और इसे धर्म-कर्म से जुड़े अनुष्ठानों में खास स्थान प्राप्त है. पितृ पक्ष के दौरान गाय की सेवा करना न केवल पितरों की तृप्ति के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि इससे व्यक्ति को भी आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं. यह सेवा करने से सभी प्रकार के दुखों से मुक्ति मिलती है और व्यक्ति के जीवन में सुख-शांति बनी रहती है.
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (02सितंबर 2024)
2 Oct, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- कार्य कुशलता से संतोष होगा, व्यवसायिक गति में सुधार होगा, कार्य योजना बनेगी ध्यान अवश्य दें।
वृष राशि :- इष्ट मित्रों से लाभ होगा, स्त्री वर्ग से मन प्रसन्न रहेगा, मन संवेदनशील रहेगा, हर्ष पूर्ण वातावरण रहेगा।
मिथुन राशि :- मनोबल उत्साहवर्धक रहेगा, कार्य कुशलता से संतोष होगा, व्यवसाय गति उत्तम रहेगी, कार्य पर ध्यान दें।
कर्क राशि :- प्रयत्नशीलता विफल होगी, परिश्रम करने पर भी कुछ लाभ न होगा, कार्य पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
सिंह राशि :- बनते कार्य बिगड़ेंगे, परिश्रम विफल होगा, कार्य व्यवसाय में लाभ की संभावन कम है, कार्य में अड़चन आयेगी।
कन्या राशि :- यात्रा के प्रसंग से बचें, मानसिक बेचैनी रहेगी, मित्रों के साथ यात्रा से लाभ अवश्य होगा, कार्य पर ध्यान दें।
तुला राशि :- समय अनुकूल नहीं विशेष कार्य स्थगित रखें, लेन-देन के मामले में विवाद होने की संभावना है, धैर्य रखें।
वृश्चिक राशि :- अर्थ लाभ होगा, कार्य में सफलता के योग बनेंगे, समय स्थिति का लाभ अवश्य लें, कार्य में सतर्कता बरतें।
धनु राशि :- समय की अनुकूलता से लाभांवित होंगे, दैनिक कार्यगति में सुधार होगा, काम को समय पर पूर्ण करने का प्रयास करें।
मकर राशि :- कुटुम्ब की चिन्तायें जटिल होंगी, रुके कार्यों को समय पर निपटा लें, बिगड़े कार्य परिश्रम से बनेंगे ध्यान अवश्य दें।
कुंभ राशि :- मनोबल उत्साहवर्धक होगा, इष्ट मित्रों से लाभ होगा, स्त्री वर्ग से मन प्रसन्न रहेगा, वातावरण हर्षपूर्ण रहेगा।
मीन राशि :- प्रत्येक कार्य में लाभ होगा, किसी के द्वारा धोका हो सकता है, समय सीमा का ध्यान अवश्य रखें।
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
1 Oct, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- धन का व्यर्थ व्यय होगा, मानसिक अशांति एवं कष्ट से मन विक्षुब्ध रहेगा, कार्य में विलम्ब होगा।
वृष राशि :- चिन्ताग्रस्त होने से बचें, व्यवसायिक क्षमता अवश्य ही अनुकूल रहेगी, कार्य पर ध्यान देने से लाभ होगा।
मिथुन राशि :- तनाव, क्लेश व अशांति से असमर्थता का वातावरण कष्टप्रद हेगा, शांत मन से धैर्य पूर्वक कार्य करें।
कर्क राशि :- किसी प्रयोजन से बचें अन्यथा परेशानी में फंस सकते हें, समय का ध्यान अवश्य रखें, कार्य पर ध्यान दें।
सिंह राशि :- तनाव, क्लेश व अशांति के कारण कष्ट होगा, मन उद्विघ्न रहेगा, सोच-विचार कर आगे बढ़ें।
कन्या राशि :- विवादग्रस्त होने से बचें, वाद-विवाद की संभावना है, सोचे कार्य अवश्य पूर्ण होंगे, आलस्य से हानि होगी।
तुला राशि :- कुटुम्ब की समस्यायें सुलझेंगी, कार्यगति में सुधार होगा, कार्यगति पर ध्यान दें, समय पर कार्य करने से लाभ होगा।
वृश्चिक राशि :- कार्य कुशलता से संतोष होगा, दैनिक सृद्धि के साधन बनेंगे, आय-व्यय की स्थिति समान रहेगी।
धनु राशि :- अधिकारियों से संतोष, दैनिक समृद्धि के साधन जुटायेंगे, व्यय की अधिकता रहेगी, धन के व्यर्थ व्यय से बचें।
मकर राशि :- मान-प्रतिष्ठा पर आंच आने का भय, समय व्यर्थ नष्ट होगा, रुके कार्य बनेंगे, परिश्रम से धन लाभ की संभावना।
कुंभ राशि :- किसी घटना का शिकार होने से बचें, चोट-कष्टादि का भय, सावधानी से कार्य करें, बातचीत में सतर्कता रखें।
मीन राशि :- स्त्री वर्ग से सुख व हर्ष मिलेगा, बिगड़े कार्य बनेंगे, समय स्थिति का लाभ लें, समय का ध्यान अवश्य रखें।
बड़ा चमत्कारी है यह दरबार, उत्तराखंड जाएं तो जरूर करें दर्शन, खाली हाथ जाएंगे झोली भरकर लाएंगे
30 Sep, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
उत्तराखंड के नैनीताल जिले में एक ऐसा अद्भुद मंदिर है, जहां विदेशों से लोग दर्शन करने के लिए आते हैं. दुनिया के बड़े बड़े सेलिब्रिटी भी उस दरबार के भक्त हैं. हिंदू धर्म के अलावा अन्य धर्मों के लोग भी इस मंदिर में बड़ी आस्था रखते हैं. जी हां, हम बात कर रहे हैं केंची धाम स्थित नीम करौली बाबा के आश्रम की. इस नाम का जिक्र आते ही बाबा के भक्तों के चेहरे पर एक अनोखा भाव प्रकट होता है, उनकी आंखों में आस्था के आंसू प्रकट होने लगते हैं.
जग जाहिर है कि नीम करोली बाबा को भारत ही नहीं, बल्कि बाहर के देशों में भी मानने वाले है. कई बड़ी-बड़ी हस्तियां हैं जो बाबा के चमत्कारों और उनके प्रति अपनी आस्था को अपने मन में समेटे हुए हैं. बाबा नीम करौली 20वीं सदी के महान संतों में गिने जाते हैं. बड़ी-बड़ी हस्तियां भी उनके एक दर्शन के लिए लालायित होती हैं. बाबा कलयुग में हनुमान जी के अवतार हैं जो समय समय पर अपने भक्तों के साथ चमत्कार करके उन पर कृपा करते हैं.
हनुमान जी के उपासक थे बाबा नीम करोली
बाबा नीम करोली को मानने वाले उनके भक्त व अनुयायी उन्हें साक्षात हनुमान जी के अवतार मानते रहे हैं. रोचक बात ये है कि नीम करोली बाबा खुद भी भगवान हनुमान के अन्नय भक्त थे और उनकी पूजा किया करते थे. हनुमान जी के कई मंदिर का निर्माण बाबा ने करवाए. बाबा के भक्त जब उनके पैर छूना चाहते थे तो वो मना कर देते थे. कहते कि पैर छूना है तो हनुमान जी के छुओ. नीम करोली बाबा भले ही आज इस दुनिया में नहीं हैं. आज भी भक्त श्रद्धापूर्वक उन्हें अपने हृदय में रखते हैं. बाबा अपने अलौकिक रूप में भक्तों के बीच ही होते है.
प्रधानमंत्री मोदी भी कर चुके बाबा के दर्शन
नीम करोली बाबा के भक्तों में एप्पल कंपनी के फाउंडर स्टीव जॉब्स शामिल है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी, विराट कोहली, रिंकू सिंह, अभिनेता चंकी पांडेय, फेसबुक के मालिक मार्क जुकरबर्ग, अभिनेत्री अनुष्का शर्मा तक भक्तों की लिस्ट में शामिल हैं. बाबा के अनुयायी इन्हें साक्षात हनुमान जी के अवतार मानते हैं. बाबा के जीवन संबंधी एक से एक चमत्कार है जिससे उनकी महानता के बारे में पता चलता है लेकिन फिर भी बाबा स्वयं को एक साधारण व्यक्ति के अलावा और कुछ नहीं मानते थे. यहां तक कि वो कभी भी किसी भक्त को अपने पैर तक नहीं छूने देते थे.
बाबा नीम करोली के अद्भुत चमत्कार
…जब से बना दिया घी: कहा जाता है कि बाबा ने जब नदी का पानी घी में बदल दिया था. बता दें, एक बार जब कैंची धाम आश्रम में भंडारा होना था. बड़ी संख्या में लोग भंडारे का प्रसाद ग्रहण करने आए, लेकिन इस दौरान घी कम पड़ गया. बाबा नीम करोली को जब इस बात के बारे में पता लगा, तो उन्होंने अपने भक्तों से कहा चिंता मत करो, पास बह रही गंगा नदी से दो कनस्तर जल भरकर ले आओ. भक्तों ने ऐसा ही किया वह गंगाजल भरकर ले आए और कढ़ाई में डाल दिया. इससे बाकी भोजन तैयार हुआ. इस चमत्कार को देखकर भक्त हैरान रह गए.
उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में भी दिखाया चमत्कार: बाबा नीम करोली की ट्रेन वाली कहानी काफी लोकप्रिय है. इस बात का जिक्र लेखक राम दास की किताब ‘Miracle Of Love’ में भी किया गया है, जिसमें लिखा है कि एक दिन बाबा बिना टिकट ट्रेन में सवार हो गए. टीटी ने बाबा नीम करौली को उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले के नीम करौली गांव में ट्रेन से उतरने के लिए कह दिया. बाबा ट्रेन से उतर गए, लेकिन ट्रेन वहां से हिली तक नहीं. इसके बाद रेलवे के अधिकारियों ने पूरे मामले की जांच की तो टीटी ने पूरी बात बताई. इसके बाद बाबा को तलाश किया गया और अधिकारियों ने नीम करौली बाबा से ट्रेन में बैठने की गुहार लगाई, जिसके बाद ट्रेन चलीं.
कब होगा कलयुग का अंत? भगवान विष्णु का यह अवतार कर देगा लोगों का उद्धार, धर्म स्थापना के साथ सतयुग होगा प्रारम्भ!
30 Sep, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
श्रीमद्भागवत पुराण के 12वें स्कंद के 24वें श्लोक के अनुसार, जब गुरु, सूर्य और चंद्रमा एक साथ पुष्य नक्षत्र में प्रवेश करेंगे तब भगवान कल्कि का जन्म होगा. कल्कि का अवतरण सावन महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को होगा. यही कारण है कि, हर साल इस तिथि को कल्कि जयंती के रूप में मनाया जाता है. श्रीमद्भागवत पुराण में भगवान विष्णु के कल्कि अवतार के बारे में विस्तारपूर्वक बताया गया है. इसके अनुसार, कलयुग के अंत में जब पाप बढ़ जाएगा, तब कल्कि अवतार में जन्म लेकर भगवान पापियों का संहार करेंगे और फिर से धर्म की स्थापना करेंगे. इसके बाद सतयुग की शुरुआत होगी.
श्रीमद्भागवत महापुराण: द्वादश स्कन्ध: द्वितीय अध्यायः श्लोक 12-24 का हिन्दी अनुवाद:
परीक्षित्! कलिकाल के दोष से प्राणियों के शरीर छोटे-छोटे, क्षीण और रोगग्रस्त होने लगेंगे. वर्ण और आश्रमों का धर्म बतलाने वाला वेद-आर्ग नष्टप्राय हो जायगा. धर्म में पाखण्ड की प्रधानता हो जायगी. राजे-महाराजे डाकू-लुटेरों के समान हो जाएंगे. मनुष्य चोरी, झूठ तथा निरपराध हिंसा आदि नाना प्रकार के कुकर्मों से जीविका चलाने लगेंगे. चारों वर्णों के लोग एक समान हो जाएंगे. गौएं बकरियों की तरह छोटी-छोटी और कम दूध देने वाली हो जाएंगी. वानप्रस्थी और संन्यासी आदि विरक्त आश्रम वाले भी घर-गृहस्थी जुटाकर गृहस्थों का-सा व्यापार करने लगेंगे. जिनसे विवाहित सम्बन्ध है, उन्हीं को अपना सम्बन्धी माना जायगा. धान, जौ, गेहूं आदि धान्यों के पौधे छोटे-छोटे होने लगेंगे. वृक्षों में अधिकांश शमी के समान छोटे और कंटीले वृक्ष ही रह जाएंगे. बादलों में बिजली तो बहुत चमकेगी, परन्तु वर्षा कम होगी. गृहस्थों के घर अतिथि-सत्कार या वेदध्वनि से रहित होने के कारण अथवा जनसंख्या घट जाने के कारण सूने-सूने हो जाएंगे. परीक्षित्! अधिक क्या कहें- कलियुग का अन्त होते-होते मनुष्यों का स्वभाव गधों-जैसा दुःसह बन जाएगा. लोग प्रायः गृहस्थी का भार ढोने वाले और विषयी हो जाएंगे.
ऐसी स्थिति में धर्म की रक्षा करने के लिये सत्वगुण स्वीकार करके स्वयं भगवान अवतार ग्रहण करेंगे. प्रिय परीक्षित्! सर्वव्यापक भगवान विष्णु सर्वशक्तिमान् हैं. वे सर्वस्वरूप होने पर भी चराचर जगत् के शिक्षक – सद्गुरु हैं. वे साधु – सज्जन पुरुषों के धर्म की रक्षा के लिये, उनके कर्म का बन्धन काटकर उन्हें जन्म-मृत्यु के चक्र से छुड़ाने के लिये अवतार ग्रहण करते हैं. उन दिनों उत्तर प्रदेश के संभल में विष्णुयश नाम के श्रेष्ठ ब्राम्हण होंगे. उनका हृदय बड़ा उदार एवं भगवद्भक्ति से पूर्ण होगा. उन्हीं के घर कल्किभगवान अवतार ग्रहण करेंगे. श्रीभगवान ही अष्टसिद्धियों के और समस्त सद्गुणों के एकमात्र आश्रय हैं. समस्त चराचर जगत् के वे ही रक्षक और स्वामी हैं. वे देवदत्त नामक शीघ्रगामी घोड़े पर सवार होकर दुष्टों को तलवार के घाट उतारकर ठीक करेंगे. उनके रोम-रोम से अतुलनीय तेज की किरणें छिटकती होंगी. वे अपने शीघ्रगामी घोड़े से पृथ्वी पर सर्वत्र विचरण करेंगे और राजा के वेष में छिपकर रहने वाले कोटि-कोटि डाकुओं का संहार करेंगे.
प्रिय परीक्षित्! जब सब डाकुओं का संहार हो चुकेगा, तब नगर की और देश की सारी प्रजा का हृदय पवित्रता से भर जायगा; क्योंकि भगवान कल्कि के शरीर में लगे हुए अंगरांग का स्पर्श पाकर अत्यन्त पवित्र हुई वायु उनका स्पर्श करेगी और इस प्रकार वे भगवान के श्रीविग्रह की दिव्य गन्ध प्राप्त कर सकेंगे. उनके पवित्र हृदय में सत्वमूर्ति भगवान वासुदेव विराजमान होंगे और फिर उनकी सन्तान पहले की भाँति ह्रष्ट-पुष्ट और बलवान् होने लगेगी. प्रजा के नयन-मनोहारी हरि ही धर्म के रक्षक और स्वामी हैं. वे ही भगवान जब कल्कि के रूप में अवतार ग्रहण करेंगे, उसी समय सत्ययुग का प्रारम्भ हो जायगा और प्रजा की सन्तान-परम्परा स्वयं ही सत्वगुण से युक्त हो जायगी. जिस समय चन्द्रमा, सूर्य और बृहस्पति एक ही समय एक ही साथ पुष्य नक्षत्र के प्रथम पल में प्रवेश करके एक राशि पर आते हैं, उसी समय सत्ययुग का प्रारम्भ होता है.
64 कलाओं से परिपूर्ण होगा भगवान का कल्कि अवतार
अग्नि पुराण में भगवान कल्कि अवतार के स्वरूप का विशेष चित्रण किया गया है. इसमें भगवान तीर कमान के साथ घुड़सवार करते हुए नजर आते हैं. कल्कि अवतार के बारे में कहा जाता है कि, भगवान का यह स्वरूप 64 कलाओं से परिपूर्ण होगा. भगवान सफेद रंग के घोड़े पर सवार होंगे, जिसका नाम देवदत्त होगा
भूल से घर का मंदिर कभी हो जाए अशुद्ध तो क्या करें? शुद्धिकरण की ये विधि आएगी काम,
30 Sep, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
तिरुपति बालाजी में लड्डू प्रसाद विवाद ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं. हालांकि, मंदिर की शुद्धता को लेकर जप, हवन और शुद्धिकरण किया गया, ताकि मंदिर में पवित्रता बनी रहे. इसके लिए 23 सितंबर को मंदिर के तीर्थ पुरोहित द्वारा महाशांति होम किया गया और पंचगव्य से मंदिर को शुद्ध किया गया.
वहीं, लोगों के मन में अब ये सवाल भी आ रहा है कि जब बाजार की मिलावटी चीजों के कारण तिरुपति मंदिर में ऐसा हो सकता है तो फिर घर का मंदिर कैसे बचा रहेगा? अगर घर का मंदिर भी किसी कारण अशुद्ध हो जाए तब क्या करें? इस दुविधा को देवघर के आचार्य ने दूर करने की कोशिश की है. आइए जानते हैं उनसे उपाय…
भगवान के भोग का रखें ध्यान
देवघर बाबा बैद्यनाथ मंदिर के प्रसिद्ध तीर्थ पुरोहित प्रमोद श्रृंगारी ने लोकल 18 को बताया कि तिरुपति बालाजी मंदिर की घटना ने श्रद्धालुओं की भावना को ठेस पहुंचाया है. भगवान को कोई भी चीज अर्पण हो उसमें बहुत पवित्रता होनी चाहिए. उसमें से भी गाय की चीजें अर्पण करने का विधान है जैसे दूध, दही, घी इत्यादि. इनसे बने हुए पकवान का ही भोग लगाना चाहिए. उसमें से घी के अर्पण का विशेष महत्व बतलाया गया है. इसलिए इसकी पवित्रता और शुद्धता पर ध्यान रखना चाहिए. अगर कोई भी मंदिर या वहां का प्रसाद दूषित हो जाए तो महा शांति होम और पंचगव्य से शुद्धता की जा सकती है.
क्या है पंचगव्य और महाशान्ति होम
तीर्थ पुरोहित प्रमोद श्रृंगारी ने बताया कि अगर किसी मंदिर या घर की शुद्धता या पवित्रता नष्ट हो जाए तो महाशांति हवन कराया जाता है. साथ ही पंचगव्य से शुद्धता की जाती है यानी फिर से गाय के ही दूध, दही, घी, गोबर और गोमूत्र से पूरे मंदिर को शुद्ध किया जाता है. जैसे किसी के घर में कुछ अपवित्रता हो गई तो पंचगव्य के द्वारा ही घर को शुद्ध किया जा सकता है.
घर के मंदिर को कैसे करें शुद्ध
जब भी कभी जातक को ऐसा लगे कि उनके घर का मंदिर अशुद्ध हो चुका है तो पंडितों के द्वारा महा शांति हवन कराएं. महाशांति हवन का अर्थ है किसी भी स्थान को साफ करने के लिए उसका मंत्रों से शुद्धिकरण करना. महाशांति हवन के दौरान कई मंत्रों का जाप किया जाता है. महा शांति हवन के बाद पंचगव्य से मंदिर को शुद्ध कर सकते हैं.
आर्थिक संकट हो या फिर कुंडली का ग्रह दोष, पीपल के पेड़ से दूर होगी आपकी हर समस्या!
30 Sep, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
ऐसे तो पीपल के पेड़ के अनेकों लाभ हैं, लेकिन आज हम यहाँ पीपल के ज्योतिष लाभों पर चर्चा करेंगे. हिन्दू धर्म में पीपल के पेड़ को बहुत ही पूज्यनीय माना गया है साथ ही इसे सभी अन्य पेड़ों से श्रेष्ठ बताया गया है. मान्यता है कि पीपल के पेड़ पर सभी देवी-देवताओं का वास होता है. ज्योतिष शास्त्र में भी पीपल के वृक्ष का बहुत महत्व बताया गया है, यही वजह है कि पीपल के पेड़ को कभी काटाना नहीं चाहिए, बल्कि उसकी पूजा करनी चाहिए. पीपल के पेड़ की पूजा करने से व्यक्ति के सभी संकट दूर हो जाते हैं. पीपल की पूजा के लिए शनिवार का दिन सबसे अच्छा माना जाता है. पीपल के पेड़ को दिव्य वृक्ष कहा जाता है और मान्यता है कि इसके कण-कण में ईश्वर वास करते हैं. हालांकि, वास्तु के मुताबिक, घर पर पीपल का पेड़ लगाना शुभ नहीं माना जाता, इसलिए पीपल के पेड़ को खेत या पार्क में कहीं सुरक्षित स्थान पर लगाना उचित होता है. आज हम आपको पीपल के पेड़ से जुड़े कुछ ऐसे उपाय बता रहे हैं, जिनको करने से आपके जीवन में सकारात्मक बदलाव होगा.
पीपल के पेड़ के ज्योतिष उपाय
1- जिन जातकों के जीवन में भयानक रूप से समस्याएं चल रही हैं, उन्हें पीपल का पेड़ लगाकर उसकी सेवा करनी चाहिए. पीपल का पेड़ लगाने और उसकी सेवा करने से कुंडली के ग्रह दोष शांत होते हैं.
2- पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर हनुमान चालीसा पढ़ने से शत्रुओं से मुक्ति मिलती है.
3- पीपल के पेड़ के नीचे शिवलिंग स्थापित करके नियमित पूजा करने से सभी समस्याएं दूर होती हैं.
4- पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है.
5- कर्क राशि के लोग पीपल के पेड़ की जड़ में दूध और हल्दी चढ़ाएं, इससे अशुभ प्रभावों से मुक्ति मिलती है.
6- पीपल के पेड़ के नीचे सुबह 7 बजे से 10 बजे के बीच दीपक जलाना शुभ माना जाता है.
7- अमावस्या को पीपल के पेड़ के नीचे चौमुख दीपक जलाने से धन से सम्बंधित समस्या दूर होती है.
8- पीपल के पेड़ की पूजा करके उसकी जड़ों में दूध और जल मिश्रित करके चढ़ाने और घी का दीपक जलाने के बाद उसे गले लगाकर अपना दुख अथवा समस्या कहने से वो दूर हो जाती है. ऐसी लोक मान्यता है.
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (30 सितंबर 2024)
30 Sep, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि - किसी को धोखा देने से मनोवृत्ति खिन्न रहेगी, धन का व्यय होगा, सामंजस्य के साथ आगे बढ़ें।
वृष राशि - परिस्थिति अनुकूल नहीं रहेगी, लेन-देन के मामले स्थगित रखें, व्यर्थ विवाद से अवश्य बचें।
मिथुन राशि - समय व्यर्थ नष्ट होगा, यात्रा के प्रसंग में थकावट व बेचैनी बनेगी, समय व धन व्यर्थ नष्ट न करें।
कर्क राशि - प्रयत्नशीलता विफल होगी, परिश्रम करने से ही कुछ सफलता मिलेगी, आलस्य से हानि होगी।
सिंह राशि - परिश्रम से कार्य पूर्ण होंगे, मेहनत से कार्य में विजय मिलेगी, आशानुकूल सफलता से हर्ष होगा।
कन्या राशि- व्यवसायिक कुशलता से संतोष होगा, अर्थ-व्यवस्था अनुकूल रहेगी, समय स्थिति का लाभ अवश्य लें।
तुला राशि - किसी तनावपूर्ण वातावरण से बचें, अवरोध पूर्ण वातावरण से परेशानी बढ़ेगी, धैर्य पूर्वक आगे बढ़ें।
वृश्चिक राशि Š- परिस्थिति में सुधार होते हुये भी फलप्रद नहीं, कार्य विफलता की चिन्ता रहेगी, लापरवाही से हानि होगी।
धनु राशि - स्त्री वर्ग से उल्लास रहेगा, इष्ट मित्र सुखवर्धक होगा, रुके कार्य परिश्रम से बनेंगे, कार्यगति पर ध्यान अवश्य दें।
मकर राशि - स्वाभाव में क्लेश व अशांति रहेगी, व्यर्थ विभ्रम तथा उद्विघ्नता का वातावरण बनेगा, धैर्य अवश्य रखें।
कुंभ राशि - कार्यगति आशानुकूल रहेगी, चिन्तायें कम होंगी तथा सफलता के साधन अवश्य बनेंगे ध्यान अवश्य दें।
मीन राशि - आशानुकूल सफलता से हर्ष होगा, इष्ट मित्रों का समर्थन फलप्रद होगा, समय रहते कार्य अवश्य पूर्ण कर लें।