धर्म एवं ज्योतिष
सपने में दिखते हैं खाली बर्तन? समझ लें आने वाला है शुभ समय, जानें इन 3 सपनों का अर्थ
21 Jan, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सपने देखना एक सामान्य बात है. हर व्यक्ति सोते समय गहरी नींद में सपने देखता है. कुछ लोगों को सपने याद रहते हैं और कुछ लोग इन सपनों को सुबह उठने के बाद भूल जाते हैं. सोते समय देखे जाने वाले हर सपने का कोई न कोई अर्थ जरूर होता है. स्वप्न शास्त्र के अनुसार सपने में दिखने वाली हर चीज़ हमारे भविष्य की घटनाओं की तरफ इशारा करती है. स्वप्न शास्त्र मानता है कि हर सपने का अपना अलग महत्व और संकेत होते हैं. कुछ सपने शुभ होते हैं और कुछ सपने अशुभ की तरफ संकेत करते हैं. भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा बता रहे हैं सपने में दिखने वाले कुछ शुभ संकेतों के बारे में बताते हैं.
सपनों में दिखने वाली कुछ शुभ चीजें
1. झाड़ू
कुछ लोगों को अपने सपने में झाड़ू दिखाई देती है या तो वे स्वयं को झाड़ू लगाते हुए देखते हैं. स्वप्न शास्त्र के अनुसार सपने में झाड़ू देखना एक शुभ संकेत होता है. ये इशारा है कि आपकी क़िस्मत जल्द ही बदलने वाली है. आपके ऊपर माता लक्ष्मी की कृपा है, जिसके कारण आप अपने व्यापार या नौकरी में कोई बड़ा मुकाम हासिल कर सकते हैं.
2. खाली बर्तन
यदि आपको सपने में खाली बर्तन दिखाई देते हैं तो ये आपके लिए एक शुभ संकेत है. स्वप्न शास्त्र के अनुसार सपने में खाली बर्तन देखने का अर्थ है कि आपको कहीं से अचानक धन लाभ होने वाला है. ये सपना आपके घर में माता लक्ष्मी के आगमन का संकेत देता है. स्वप्न शास्त्र में इस प्रकार के सपने को शुभ माना गया है. इस सपने का एक अर्थ ये भी होता है कि आपकी कोई बड़ी समस्या खत्म होने वाली है.
3. मंदिर देखना
बहुत से लोगों को अपने सपने में मंदिर के दर्शन होते हैं. स्वप्न शास्त्र के अनुसार सपने में मंदिर के दर्शन करना एक शुभ संकेत है. इस सपने का अर्थ है कि आपके इष्ट देव की कृपा आप पर बनी हुई है, साथ ही आपके घर में माता लक्ष्मी का आगमन होने वाला है. ऐसे सपने का जिक्र किसी भी दूसरे व्यक्ति से नहीं करना चाहिए, माना जाता है कि ऐसा करने से इस सपने का प्रभाव कम हो जाता है.
पौष पूर्णिमा पर अद्भुत संयोग, इस दिन घर ले आएं यह चीज होगी बरकत!
21 Jan, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में पूर्णिमा तिथि का सबसे खास महत्व है. इस दिन सभी प्रकार के शुभ कार्य या मांगलिक कार्य किए जाते हैं. पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी भगवान विष्णु की पूजा आराधना की जाती है. उसके बाद नए मास की भी शुरुआत हो जाती है. वहीं,पौष पूर्णिमा को लेकर काफी कंफ्यूजन है की कब पूर्णिमा है पौष माह की समाप्ति हो रही है.ज्योतिषविदों के अनुसार अगर आप इस दिन कुछ खरीद कर ले आते हैं तो माता लक्ष्मी प्रसन्न होती है और आपके घर में कभी भी धन और धान्य की कमी नहीं होगी.तोआईये देवघर के ज्योतिषाचार्य से जानते हैं कि कब है पोष माह का पूर्णिमा तिथि और इस दिन क्या शुभ योग का निर्माण हो रहा है.
देवघर के पागल बाबा आश्रम स्थित मुद्गल ज्योतिष केंद्र के प्रसिद्ध ज्योतिष आचार्य पंडित नंदकिशोर मुद्गल ने लोकल 18 से कहा कि इस साल पौष माह का पूर्णिमा तिथि 25 जनवरी को है. इस पूर्णिमा तिथि को बेहद दुर्लभ संयोग बनने जा रहा है, जो कई सालों के बाद बनता है. इसलिए इस पूर्णिमा तिथि का महत्व और भी ज्यादा बढ़ जा रहा है. इस पूर्णिमा तिथि के दिन कई शुभ योग का निर्माण हो रहा है. जैसे सर्वार्थ सिद्धि योग, अमृत सिद्धि योग, गुरु पुष्य योग और प्रीति योग. इन चारों योग में अगर आप भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा आराधना करती हैं तोमनोवांछित फल की प्राप्ति होती है.
इस दिन घर लें आये चीजे :
ज्योतिषआचार्य बताते हैं कि अगर आप पूर्णिमा तिथि के दिन व्यापार शुरू करना चाहते हैं या फिर व्यापार में धन निवेश करना चाहते हैं, तो यह सबसे शुभ दिन होता है. इसके साथ ही पूर्णिमा के दिन सोने का कुछ आभूषण खरीद कर घर लाए और पूजा आराधना कर लॉकर में रखते हैं. इससे माता लक्ष्मी प्रसन्न होती है. इससे घर में कभी भी आर्थिक तंगी नहीं होती है. वहीं, अगर आप उस दिन कुछ नहीं कर पाते हैं.तो श्री सूक्त का पाठ 16 बार अवश्य करें.इससे माता लक्ष्मी प्रशन्न होती है.
इस चीज की खरीददारी करने से मजबूत होंगे गुरु ग्रह :
गुरु पुष्य योग पूर्णिमा के दिन अगर जातक चने की दाल खरीद कर घर ले आते हैं तोह कुंडली में गुरु ग्रह की स्थिति मजबूत होती है.
प्राण प्रतिष्ठा के लिए सजा दरबार, आ रहें श्रीराम! दुल्हन की तरह सजी अयोध्या
21 Jan, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
“प्रबिसि नगर कीजे सब काजा, हृदयं राखि कौसलपुर राजा ” हृदय में प्रभु राम की भक्ति और अयोध्या का राममय का वातावरण राम भक्तों को मोहित कर रहा है. प्रभु राम के स्वागत के लिए पूरी नगरी को सजा दिया गया है. जगह-जगह पर रामायण कालीन दृश्य बनाए गए हैं. तो चौक-चौराहों पर प्रभु राम के स्वागत में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन हो रहा है.
22 जनवरी को रामलला अपने भव्य महल में विराजमान होकर 23 जनवरी से राम भक्तों को दिव्य दर्शन देंगे. प्रभु राम के विराजमान होने को लेकर सभी तैयारियां पूरी कर ली गई है. त्रेता युग की तरह कल युग में भी अयोध्यावासी अपने राम के स्वागत के लिए तैयार है. अयोध्या को किसी दुल्हन की तरह सजाया गया है.
चौक-चौराहों पर लगी भगवान राम की तस्वीर
प्रभु राम के स्वागत के लिए अयोध्या को फूलों से दुल्हन की सजाया गया है. 100-100 मीटर दूरी पर प्रभु राम और पवन पुत्र हनुमान की तस्वीर बनाई गई है. मानो ऐसा लग रहा है कि जैसे प्रभु राम के स्वागत में रास्ते भी भक्तिमय हो गए हैं. पूरी अयोध्या भक्ति के भवसागर में डूबी नजर आ रही है. इतना ही नहीं त्रेता युग में जिस प्रकार अयोध्या वासियों ने प्रभु राम का स्वागत किया था. ठीक वैसा ही स्वागत प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर अयोध्या में देखने को मिल रहा है. अयोध्या की सड़कें, चौक-चौराहें, मठ-मंदिर सब राम की भक्ति में लीन नजर आ रहे हैं.
हर तरफ दिख रहा त्रेता का नजारा
हनुमानगढ़ी के महंत राजू दास बताते हैं कि राम भक्तों का जो 500 वर्ष का लंबा संघर्ष रहा है वह अब साकार हो रहा है. प्रदेश की योगी और केंद्र की मोदी सरकार की देन है कि आज अयोध्या का भव्य राम मंदिर बनकर तैयार हो गया और 22 तारीख वह दिन इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाएगा. जब प्रभु राम अपने भव्य महल में विराजमान होकर राम भक्तों को दिव्य दर्शन देंगे. प्रभु राम के स्वागत के लिए पूरी अयोध्या को त्रेता युग की तरह सजाया गया है. हम सरकार का धन्यवाद देते हैं की इतना जल्दी किसी ने सपने में नहीं सोचा होगा कि प्रभु राम अपने धाम विराजमान होंगे. हम साधु-संत उत्साहित हैं अपने राम के स्वागत के लिए तैयार है.
तपस्विनी अनसूयाजी का सीताजी को प्रेमोपहार देना
21 Jan, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
अनसूया शब्द से अर्थ निकलता है सू धातु से यह शब्द बनता है। सू धातु का अर्थ है पैदा करना, जन्म देना, निष्पन्न करना इत्यादि। सोमरस का उत्पादन करने वाले याग, यज्ञ आदि क्रतुओं को इसी अर्थ में सूय कहते हैं। उदाहरण स्वरूप श्रीराम ने राजसूय यज्ञ किया था। जो उत्पन्न (पैदा) कर सकता है वह सूय है तथा जो पैदा नहीं कर सकता है वह असूय बनता है। अत: स्पष्ट है कि अनसूया को अर्थ है जो पैदा करने की क्षमता से वंचित नहीं है। उसमें ईर्ष्या, डाह, द्वेष से रहित है। अनसूयाजी प्रजापति कर्दम और देवहुति की नौ कन्याओं में से एक तथा मुनि अत्रि की पत्नी थी। शकुन्तला की एक सखी का नाम भी अनसूया था जिसका इस आलेख में कोई प्रसंग नहीं है। अनसूयाजी की पति भक्ति अर्थात् सतीत्व का तेज इतना अधिक था कि उसके कारण आकाश मार्ग से जाते हुए देवताओं को उनके प्रताप तेज का अनुभव होता था। इसी कारण भारतीय पौराणिक शास्त्रों में उन्हें सती अनसूया के नाम से जाना जाता है। आलेख में अनसूयाजी की पतिव्रता भक्ति तथा सीताजी के उनके पास जाने का उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने का रोचक प्रसंग है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार अनसूयाजी के तीन पुत्र हैं- दत्तात्रेय (ब्रह्म-विष्णु और महेश तीनों का एक रूप), दुर्वासा और अति सौम। इसके अतिरिक्त अर्यमा नामक एक पुत्र और अमला नाम की पुत्री भी उनकी संतान है। सतत् दो जन्मों में अनसूयाजी मुनि अत्रि की पत्नी रही तथा पाँच सन्तानों की माँ भी थी।
एक प्रसंगानुसार एक बार ब्रह्माजी, विष्णु और महेशजी उनकी गोद में बच्चे बनकर रहे थे। वह प्रसंग पौराणिक कथाओं में प्राप्त होता है- सती अनसूयाजी उस समय आदर्श पतिव्रता के रूप में ख्याति के शिखर पर प्रसिद्ध थी। स्वर्ग में सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती के मन में इनके प्रति ईर्ष्या उत्पन्न हो गई थी और इन तीनों ने अपने पतियों ब्रह्माजी, भगवान विष्णु और शिवजी को अनसूयाजी के आश्रम भेज दिया। वे तीनों अनसूयाजी की सतीत्व की परीक्षा लेने आए थे। इन तीनों का आगमन होने पर अनसूयाजी ने उनका बड़ा आदर श्रद्धापूर्वक सम्मान किया। उन तीनों ने ब्राह्मण बनकर उनसे परीक्षा लेने के लिए निर्वसन होकर भोजन कराने का कहा। अनसूयाजी के लिए बड़ा ही धर्म संकट उत्पन्न हो गया। वे साक्षात् सती और पतिव्रता थी अत: उन्होंने अपनी तपस्या की शक्ति (बल) पर तीनों देवताओं को शिशुओं के स्वरूप में परिवर्तन कर दिया तथा बड़े ही लाड़-प्यार से उन्हें भोजन करवाया। जब सरस्वती, लक्ष्मीजी और पार्वतीजी को यह बात ज्ञात हुई तो वे सती अनसूयाजी के आश्रम गईं। वहां आश्रम में जाकर देखा कि वे (तीनों) उनके पतियों (शिशुओं) को झूला झूला रही हैं। यह दृश्य देखकर वे तीनों बहुत शर्मिंदा हो गईं और अनसूयाजी से पति की भिक्षा माँगकर उन्हें वापस ले गईं। यह प्रसंग अपने आपमें अनसूयाजी का अनुपम है तथा शिक्षा देता है कि असूया पर विजय सती-पतिव्रता नारी कर सकती है।
भरतजी की श्रीरामजी से भेंट के पश्चात् वे नन्दिग्राम गए तथा श्रीरामजी की चरण पादुकाओं को राज्य पर अभिषिक्त कर निवेदनपूर्वक राज्य का कार्य आरम्भ कर दिया। इधर श्रीरामजी सीता और लक्ष्मण वहाँ से चल दिए। वहाँ से चलकर मुनि अत्रि के आश्रम पर पहुँचकर श्रीराम ने उन्हें प्रणाम किया तथा मुनि ने उन्हें पुत्र की भाँति स्नेह किया। मुनि अत्रि ने स्वयं श्रीराम का आतिथ्य-सत्कार करके लक्ष्मणजी और सीताजी को सत्कारपूर्वक सन्तुष्ट किया। उन्होंने अपनी तापसी एवं धर्मपरायणा पत्नी महामना अनसूया को कहा- देवी विदेहनन्दिनी सीता को सत्कारपूर्वक हृदय से लगाओ। तदनन्तर उन्होंने श्रीराम को धर्मपरायण तपस्विनी अनसूयाजी का परिचय देते हुए कहा- एक समय दस वर्षों तक वर्षा नहीं हुई उस समय जब सारा जगत निरन्तर दग्ध होने लगा तब इन्होंने उग्र तपस्या, कठोर नियमों और तप के प्रभाव से फल-मूल उत्पन्न किए और मन्दाकिनी की पवित्र धारा बहा दी। साथ ही साथ इन्होंने दस हजार वर्षों तक बड़ी कठिन तपस्या करके अपने श्रेष्ठ व्रतों के प्रभाव से ऋषियों-मुनियों के समस्त विघ्नों का निवारण भी किया है। ये अनसूया देवी तुम्हारे लिए माताजी की भाँति पूजनीय हैं।
तामिमां सर्वभूतानां नमस्कार्यां तपस्विनीम्।
अभिगच्छतु वैदेही वृद्धामक्रोधनां सदा।।
वाल्मीकिरामायण अयोध्याकाण्ड सर्ग ११७-१३
ये सम्पूर्ण प्राणियों के लिए वन्दनीया है। क्रोध तो इन्हें कभी छू भी नहीं सका है। विदेहनन्दिनी सीता इन वृद्धा अनसूया देवी के पास जाएं।
श्रीराम ने सीताजी से कहा कि राजकुमारी महर्षि अत्रि के वचन तो तुमने सुन ही लिए हैं अब अपने कल्याण के लिए तुम शीघ्र ही इन तपस्विनी देवी के पास जाओ। यह सुनकर सीताजी अनसूयाजी के पास गईं। वृद्धावस्था होने के कारण अनसूयाजी का शरीर शिथिल हो गया था तथा शरीर में झुर्रियाँ पड़ गई थी। सीता ने उनके निकट जाकर शान्त भाव से अपना नाम बताया और पतिव्रता अनसूयाजी को प्रणाम किया। सीताजी ने दोनों हाथ जोड़कर उनका कुशल मंगल समाचार पूछा। उन्होंने सीता को देखकर कहा- सीते सौभाग्य की बात है कि तुम धर्म पर ही दृष्टि रखती हो। बन्धु-बान्धवों को छोड़कर उनसे प्राप्त होने वाली मान-प्रतिष्ठा परित्याग करके तुम वन में श्रीराम का अनुसरण कर रही हो, यह बड़े सौभाग्य की बात है।
दु:शील: कामवृत्तो वा धनैर्वा परिवर्जित:।
स्त्रीणामार्यस्वभावानां परमं दैवतं पति:।।
वाल्मीकिरामायण अयोध्याकाण्ड सर्ग ११७-२४
पति यदि बुरे स्वभाव का, मनमाना व्यवहार (बर्ताव) करने वाला अथवा धनहीन ही क्यों न हो, वह उत्तम स्वभाववाली नारियों के लिए श्रेष्ठ देवता के समान है।
विदेहनन्दिनी! मैं बहुत सोच-विचार के बाद कहती हूँ कि पति से बढ़कर कोई हितकारी नहीं देखती हूँ। अपनी की हुई तपस्या अविनाशी फल की भाँति वह इस लोक में और परलोक में सर्वत्र सुख पहुँचाने में समर्थ होती है। जो अपने पति पर शासन करती है, वे काम के अधीन चित्तवाली असाध्वी स्त्रियाँ इस प्रकार पति का अनुसरण नहीं करती हैं। ऐसी स्त्रियाँ अवश्य ही अनुचित कार्य में फँसकर धर्म के मार्ग से भ्रष्ट हो जाती हैं और अन्त में संसार में उन्हें अपयश की प्राप्ति होती है। अत: तुम इन पतिदेव श्रीरामचन्द्रजी की सेवा में लगी रहो- सती धर्म का पालन करो, पति को प्रधान देवता समझो और हर समय उनका अनुसरण करती हुई अपने स्वामी की सहधर्मिणी बनो, इससे तुम्हें सुयश और धर्म दोनों की प्राप्ति होगी। तपस्विनी अनसूया के इस प्रकार उपदेश देने पर किसी के प्रति दोष दृष्टि न रखने वाली सीता ने उनके वचनों की भूरि-भूरि प्रशंसा करके धीरे-धीरे इस प्रकार कहना आरम्भ किया- हे देवि! आप संसार की स्त्रियों में सबसे श्रेष्ठ हैं। आपके मुख से ऐसी बातों को सुनना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। नारी का गुरु पति ही है। इस विषय में जैसा आपने उपदेश किया है, यह बात मुझे भी पहले से विदित है। सीताजी ने कहा कि-
यद्यप्येष भवेद् भर्ता अनार्यो वृत्तिवार्जित:।
अद्वैधमत्र वर्तव्यं यथाप्येष मया भवेत।।
वाल्मीकिरामायण अयोध्याकाण्ड सर्ग ११८-३
मेरे पतिदेव यदि अनार्य (चरित्रहीन) तथा जीविका के साधनों से रहित (निर्धन) होते तो भी मैं बिना किसी दुविधा के इनकी सेवा में लगी रहती।
ये श्रीरघुनाथजी परम दयालु, जितेन्द्रिय, दृढ़, अनुराग रखने वाले, धर्मात्मा तथा माता-पिता के समान प्रिय है। जब मैं पति के साथ निर्जन वन में आने-जाने लगी, उस समय मेरी सास कौसल्याजी ने मुझे जो कर्तव्य का उपदेश दिया वह मेरे हृदय में ज्यों का त्यों स्थिरभाव से अंकित है। मेरे विवाह के समय अग्रि के समीप माता के कहे हुए वचनों को सुनकर अनसूयाजी को अपार हर्ष हुआ। उन्होंने उनका मस्तक सूँघा और फिर सीताजी से इच्छानुसार वर माँगने के लिए कहा। उस समय सीताजी ने उनसे कहा- आपने अपने वचनों द्वारा ही मेरा सारा प्रिय कार्य कर दिया, अब और कुछ करने की आवश्यकता नहीं है। सीताजी के ऐसा कहने पर धर्मज्ञ अनसूयाजी को बड़ी प्रसन्नता हुई। वे बोली सीते- तुम्हारी निर्लोभता से मुझे विशेष हर्ष हुआ है। उसे मैं अवश्य सफल करूँगी।
इदं दिव्यं वरं माल्यं वस्त्रमाभरणानि च।
अङ्गरागं च वैदेहि महार्मनुलेपनम्।।
मया दत्तमिदं सीते तव गात्राणी शोभयेत्।
अनुरूपमसंक्लिष्टं नित्यमेव भविष्यति।।
वाल्मीकिरामायण अयोध्याकाण्ड सर्ग ११८-१८-१९
यह सुन्दर दिव्य हार, यह वस्त्र, ये आभूषण यह अंगराग और बहुमूल्य अनुलेपन मैं तुम्हें देती हूँ। सीते! मेरी दी हुई ये वस्तुएँ तुम्हारे अंगों की शोभा बढ़ाएगी। ये सब तुम्हारे योग्य हैं और सदा उपयोग में लाई जाने पर निर्दोष एवं निर्विकार रहेंगी।
अनसूयाजी की आज्ञा से धीर स्वभाव की यशस्विनी सीताजी ने उस वस्त्र, अंगराज, आभूषण और हार को उनकी प्रसन्नता का परम उपहार समझकर ले लिया। उस प्रमोपहार को सीताजी ने ग्रहण करके दोनों हाथ जोड़कर उन तपोघना अनसूयाजी की सेवा में बैठी रही।
तदनन्तर अपने निकट बैठी हुई सीता से अनसूयाजी ने कोई परम प्रिय कथा सुनाने के लिए इस प्रकार पूछना आरम्भ किया-
स्वयंवरे किल प्राप्ता त्वममेन यशस्विना।
राघवेणेति मे सीते कथा श्रुतिमुपागता।।
वाल्मीकिरामायण अयोध्याकाण्ड सर्ग ११८-२४
सीते! इन यशस्वी राघवेन्द्र ने तुम्हें स्वयंवर में प्राप्त किया था, यह बात मेरे सुनने में आई।
मैं इस वृत्तान्त को विस्तार के साथ सुनना चाहती हूँ। अत: जो कुछ जिस प्रकार हुआ, वह बस पूर्णरूप से मुझे बताओ। अनसूयाजी की इस प्रकार आज्ञा सुनकर सीताजी ने कहा माताजी! सुनिये! इतना कहकर उन्होंने इस कथा को इस प्रकार बताया। मिथिला के वीर राजा जनक नाम से प्रसिद्ध हैं। वे धर्म के ज्ञाता हैं अत: क्षत्रियोचित कर्म में तत्पर रहकर न्यायपूर्वक पृथ्वी का पालन करते हैं। एक समय की बात है, वे यज्ञ के योग्य क्षेत्र को हाथ में हल लेकर जोत रहे थे। इसी समय मैं पृथ्वी को फाड़कर प्रकट हुई। इतने मात्र से ही मैं राजा जनक की पुत्री हुई। इतने में उनकी दृष्टि मेरे ऊपर पड़ी। मेरे सारे अंगों में धूल लिपटी हुई थी, इसलिए स्नेहवश उन्होंने स्वयं मुझे गोद में ले लिया और यह मेरी बेटी है। ऐसा कहकर मुझ पर अपने हृदय का सारा स्नेह उड़ेल दिया। इसी समय आकाशवाणी हुई- नरेश्वर! तुम्हारा कथन ठीक है। यह कन्या धर्मत: तुम्हारी ही पुत्री है।
उन्होंने रानी को मुझे दे दिया। उन स्नेहमयी महारानी ने मातृ समुचित मेरा लालन-पालन किया। जब पिता ने देखा। मेरी अवस्था विवाह के योग्य हो गई, तब उन्हें बड़ी चिन्ता हो गई। मुझे अयोनिजा कन्या समझकर वे भूपाल मेरे लिए योग्य और परम सुन्दर पति का विचार करने लगे किन्तु किसी निश्चय पर नहीं पहुँच सके। उन महाराज के मन में एक दिन यह विचार उत्पन्न हुआ कि उन्हें पुत्री का स्वयंवर करना चाहिए।
महायज्ञे तदा तस्य वरूणेन महात्मना।
दत्तं धनुर्वरं प्रीत्या तूणी चाक्षय्यसायकौ।।
वाल्मीकिरामायण अयोध्याकाण्ड सर्ग ११८-३९
उन्हीं दिनों उनके पास एक महान यज्ञ में प्रसन्न होकर महात्मा वरुण ने उन्हें एक श्रेष्ठ दिव्य धनुष तथा अक्षय बाणों से भरे हुए दो तरकस दिए थे।
वास्तव में यह शिवजी द्वारा दिया गया धनुष तथा तरकस थे। वह धनुष इतना भारी था कि मनुष्य पूरा प्रयत्न करने पर उसे हिला भी नहीं पाते थे। भूमण्डल के नरेश स्वप्न में भी उस धनुष को झुकाने (प्रत्यञ्चा चढ़ाने) में असमर्थ थे। उस धनुष को पाकर मेरे पिता ने भूमण्डल के राजाओं को आमंत्रित करके उन राजाओं के समूह में यह बात कही- जो मनुष्य इस धनुष को उठाकर इस पर प्रत्यञ्चा चढ़ा देगा। मेरी पुत्री उसी की पत्नी होगी। इसमें कोई संशय नहीं है। आमंत्रित राजा उसे उठाने में समर्थ न हो सके तब उसे प्रणाम करके चले गए। तदनन्तर विश्वामित्रजी के साथ श्रीराम-लक्ष्मण जनकजी के यज्ञ देखने आए। सीताजी ने कहा कि उनके पिता ने विश्वामित्रजी का आदर-सत्कार किया। तब विश्वामित्रजी ने मेरे पिता से कहा ये दोनों श्रीराम और लक्ष्मण महाराज दशरथजी के पुत्र हैं और आपके उस दिव्य धनुष का दर्शन करना चाहते हैं। आप वह देव (शिवजी) प्रदत्त धनुष श्रीराम को दिखाइए। पिताजी ने उस दिव्य धनुष को श्रीराम को दिखाया। महाबली और परम पराक्रमी श्रीराम ने पलक मारते-मारते उस धनुष पर प्रत्यञ्चा चढ़ा दी और उसे कान तक खींचा। वेगपूर्वक खींचते समय वह धनुष बीच में से ही टूट गया और उसके दो टुकड़े हो गए। यह देखकर मेरे सत्यप्रतिज्ञ पिता ने जल का उत्तम पात्र लेकर श्रीराम के हाथ में मुझे देने का उद्योग किया। तत्पश्चात् मेरे बूढ़े श्वसुर राजा दशरथजी की अनुमति लेकर पिताजी ने श्रीराम को मेरा दान (कन्यादान) कर दिया। उस लम्बी कथा को अनसूयाजी ने सुनकर सीताजी को अपनी दोनों भुजाओं से अंक में भर लिया और उनका मस्तक सूँघकर कहा-
व्यक्ताक्षरपदं चित्रं भाषितं मधुरं त्वया।
यथा स्वयंवरं वृत्तं तत् सर्वंच श्रुतं मया।।
वाल्मीकिरामायण अयोध्याकाण्ड सर्ग ११९-२
बेटी सीता! तुमने सुस्पष्ट शब्दों में यह विचित्र एवं मधुर प्रसंग सुनाया। तुम्हारा स्वयंवर जिस प्रकार हुआ था। वह सब मैंने सुन लिया। सीते! अब रात हो गई। अत: अब जाओ मैं तुम्हें जाने की आज्ञा देती हूँ। बेटी सीता! पहले मेरी आँखों के सामने अपने आपको अलंकृत करो। इन दिव्य वस्त्र और आभूषणों को धारण करके इनसे सुशोभित हो मुझे प्रसन्न करो। यह सुनकर देवकन्या के समान सुन्दरी सीता ने उस समय उन वस्त्राभूषणों से अपना शृंगार किया और अनसूयाजी के चरणों में सिर झुकाकर प्रणाम करके अनन्तर वे श्रीराम के सम्मुख चली गईं। यह देखकर श्रीरामजी को बड़ी प्रसन्नता हुई। सीताजी ने भी अनसूयाजी के हाथ से जिस प्रकार वस्त्र, आभूषण और हार आदि प्रेमोपहार का वृत्तांत श्रीरामजी से कह सुनाया। वह रात बीतने पर प्रात:काल श्रीराम ने लक्ष्मण-सीताजी सहित दण्डकारण्य में जाने के लिए चल दिए।
अनसूयाजी की दिव्य पवित्रता के ही कारण मुनि अत्रि का नाम प्रसिद्ध है। सीताजी का सारा आदर-सम्मान-सत्कार अनसूयाजी ने उनके मिलने पर किया जो कि इन बातों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करता है कि जीवन में सारी प्रतिष्ठा, मान, सम्मान उपलब्धि विजय और सफलता का आधार पुरुष की अपेक्षा नारी का व्यक्तित्व एवं कृत्तित्व होता है। पुरुष के जीवन में भौतिक, आध्यात्मिक, मानसिक जीवन की सफलता असफलता के पीछे नारी (स्त्री) की पवित्रता सेवाएँ, दृढ़निश्चयता, त्याग दूरदर्शिता आदि पर ही आश्रित रहती है। सती अनसूयाजी में ये सभी गुण विद्यमान थे।
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (21 जनवरी 2024)
21 Jan, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- समाज में प्रतिष्ठा, प्रभुत्व वृद्धि के साधन प्राप्त करें, कार्य व्यवस्था बनेगी, ध्यान रखे।
वृष राशि :- आर्थिक योजना सफल हो, सतर्कता एवं तटस्थता से चलकर कार्य करें, लाभ होगा।
मिथुन राशि :- प्रत्येक कार्य में परेशानी व चिन्ता, व्यग्रता, असमंजस में एवं कार्य में ध्यान देवे।
कर्क राशि :- दैनिक कार्यगति मंद रहे, असमर्थता का वातावरण मन संदिग्ध रखेगा, कार्य करें।
सिंह राशि :- तनाव क्लेश व अशांति, व्यर्थ धन का व्यय तथा समय नष्ट होवे, ध्यान दें।
कन्या राशि :- स्त्री शारीरिक सुख, भोग ऐश्वर्य सामाजिक कार्यो में मान प्रतिष्ठा बढ़ेगी।
तुला राशि :- विभ्रम आरोपों से अशांति तथा स्वास्थ्य नरम अवश्य रहेगा, स्वास्थ्य का ध्यान रखें।
वृश्चिक राशि :- आशानुकूल सफलता का हर्ष, कार्य गति उत्तम, चिन्ता होगी।
धनु राशि :- इष्ट मित्र सुखवर्धक हो, कार्यगति अनुकूल होवे तथा कार्य बनें।
मकर राशि :- परिश्रम से कुछ सफलता के साधन जुटाए, मान प्रतिष्ठा प्रभुत्व वृद्धि होगी।
कुंभ राशि :- परिश्रम से कुछ सफलता के साधन जुटाए, मानसिक व्यग्रता संभंव होगी।
मीन राशि :- लेनदेन में हानि दूसरों के कार्यों में समर्थन नष्ट होवेगा, समय से काम लें।
कब है अक्षय तृतीया? पूरे दिन रहेगा अबूझ मुहूर्त, जानें तारीख, आखा तीज का महत्व
20 Jan, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
अक्षय तृतीया हिंदू कैलेंडर के दूसरे माह वैशाख के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को होती है. अक्षय तृतीया को आखा तीज भी कहा जाता है. अक्षय तृतीया को पूरे दिन अबूझ मुहूर्त होता है, जिसमें आप सभी मांगलिक कार्य कर सकते हैं. उसके लिए आपको कोई शुभ मुहूर्त या फिर पंचांग देखने की आवश्यकता नहीं होती है. इस वजह से लोगों को अक्षय तृतीया की बेसब्री से प्रतीक्षा रहती है. अक्षय तृतीया के अवसर पर आप माता लक्ष्मी की पूजा करते हैं और उनकी कृपा पाने के लिए कई उपाय करते हैं, ताकि आपको धन और वैभव की प्राप्ति का आशीर्वाद मिल सके. अक्षय तृतीया पर आप जो धन, वैभव, ज्ञान, पुण्य आदि अर्पित करते हैं, उसमें कोई कमी नहीं होती है. आइए जानते हैं कि अक्षय तृतीया कब है? अक्षय तृतीया पर पूजा का मुहूर्त क्या है? अक्षय तृतीया पर क्या करना चाहिए?
अक्षय तृतीया का अर्थ क्या है?
श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभागाध्यक्ष डॉ मृत्युञ्जय तिवारी कहते हैं कि अक्षय तृतीया का अर्थ है कि वह तृतीया तिथि, जिसका कभी क्षय न हो. कहने का मतलब यह है कि आप अक्षय तृतीया के दिन जो भी शुभ कार्य करेंगे, उससे मिलने वाला पुण्य लाभ हमेशा आपके साथ रहेगा. इस वजह से उस दिन हमेशा अच्छे कार्य करने चाहिए. गलत कार्यों के जरिए अर्जित पाप भी आपके साथ अक्षय ही रहेगा.
अक्षय तृतीया 2024 कब है?
वैदिक पंचांग के आधार पर देखा जाए तो इस साल वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 10 मई शुक्रवार को प्रात: 04 बजकर 17 मिनट से प्रारंभ होगी. यह तिथि 11 मई शनिवार को 02:50 एएम तक मान्य होगी. उदयातिथि के आधार पर अक्षय तृतीया 10 मई शुक्रवार को मनाई जाएगी. यह अक्षय तृतीया की सही तारीख है.
अक्षय तृतीया 2024 पूजा मुहूर्त क्या है?
10 मई को अक्षय तृतीया के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त प्रात: 05 बजकर 33 मिनट से प्रारंभ है और दोपहर 12 बजकर 18 मिनट तक है. उस दिन पूजा के लिए शुभ समय की अवधि 6 घंटे 44 मिनट तक है.
अक्षय तृतीया पर क्या करें?
1. अक्षय तृतीया के दिन माता लक्ष्मी के साथ भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए. इससे परिवार में सुख, समृद्धि, धन, वैभव बढ़ता है और अक्षय रहता है.
2. अक्षय तृतीया के अवसर सोना, चांदी, आभूषण आदि की खरीदारी कर सकते हैं.
3. अक्षय तृतीया वाले दिन मकान, प्लॉट, जमीन, फ्लैट, वाहन आदि की खरीदारी कर सकते हैं.
4. अक्षय तृतीया पर विवाह और सगाई कर सकते हैं.
5. इनके अलावा अक्षय तृतीया पर गृह प्रवेश, मुंडन संस्कार, नई नौकरी या नए काम की शुरूआत भी कर सकते हैं.
अक्षय तृतीया का महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अक्षय तृतीया के दिन स्नान और दान करने का विधान है. इससे आपके अर्जित पुण्य आपके साथ हमेशा बने रहते हैं. भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा हो गई तो वह जीवनभर आप पर रहेगी. आपकी अर्जित धन-संपत्ति का ह्रास नहीं होगा.
यमलोक के रास्ते मे पड़ती है वैतरणी, पाप करने वालों को करना पड़ता है पार! जानें गुरड़ पुराण की कथा
20 Jan, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हमारे हिंदू धर्म में 18 पुराणों में से एक गरुण पुराण है.भगवान विष्णु एवं पक्षिराज गरुण जी का संवाद विस्तार पूर्वक इसमें वर्णित है. हमारे सनातन धर्म से जुड़ी कई सारी विधियों, नियमों, कर्मकांडों आदि के बारे में विस्तार से गरुण पुराण में बताया गया है. इस गरुण पुराण में जीवन एवं मृत्यु का अटल सत्य बताया गया है. इसमें यह भी बताया गया है कि मृत्यु के बाद जीवात्मा जब शरीर त्यागती है.
इसके बाद उसे स्वर्ग एवं नरक लोक की प्राप्ति कैसे उसके किए गए कर्मों के अनुसार मिलता है. आज हम आपको गरुण पुराण में बताई गई वैतरणी नदी के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं. यह वैतरणी नदी यमपुरी के मार्ग में पड़ने वाली एक नरकगामी नदी है. जिसकी यातनाएं गरुण पुराण में बहुत भयानक बताई गई हैं.
सभी के लिएवैतरणी नदीकष्टकारी नहीं
ज्योतिषाचार्य पं पंकज पाठक ने कहा कि गरुण पुराण के अनुसार वैतरणी नदी दुष्ट एवं पाप कर्म करने वाले लोगों के लिए अति भयानक है. इसे पार करना मृत्यु के कष्ट से भी कई गुना अधिक कष्टकारी होता है. पर सभी के लिए यह वैतरणी नदी इतनी कष्टकारी नहीं होती है. यह नदी अच्छे कर्म करने वाली जीवात्माओं के लिए शांत एवं सरल बताई गई है. जानिए मृत्यु के बाद जब जीवात्मा यमलोक जाती हैं तब बीच में पड़ने वाली यह नदी को कैसे पार करती हैं.
गरुण पुराण में ऐसी है वैतरणी नदी
ज्योतिषाचार्य के अनुसार बताया कि गरुण पुराण के अनुसार जो पापी जीव आत्माएं यमलोक के मार्ग को जाती हैं. उनको इस मार्ग के बीच वैतरणी नदी पार करनी पड़ती है. गरुण पुराण में इस नदी को अत्यंत भयानक बताया गया है, यह नदी कई योजन लंबी है. इस नदी में घोर अंधकार,आग की तरह खोलती हुई यह नदी अनेक प्रकार की दुर्गघं सहित पदार्थों से भरी हुई है.खून से भारी इस नदी को पापी जीवात्माएं पार करने से कांप उठती हैं. जिन व्यक्ति ने जीवन भर दूसरों को सताया, चोरी की है, शराब पीना का सेवन किया हो, गुरुजनों का अनादर किया हो, गलत कार्य किए हो, गरीबों का हक मारा हो, मां-बाप का अनादर किया हो, ग्रहस्थ जीवन में रहते हुए पत्नी या पती से छल कपट किया हो, मित्र के साथ धोका किया हो, दान पुण्य नहीं किया हो, वेद-शास्त्रों को पाखंड तथा देवताओं का अनादर किया हो आदि कई प्रकार के पाप कर्म से रहित ऐसे लोगों को मृत्यु के बाद इस वैतरणी नदी को पार करना पड़ता है.
यम दूतनदी में आत्माओं को बांध कर ले जाते
यम के दूत पापी आत्माओं को यम पाश से बांध करइस नदी से ले जाते हैं. इस नदी में पापी मनुष्य कई बार इसमें डूबते हैं.नदी में माजूद सूईं की तरह बड़े-बड़े नुकीले दांतों वाले सर्प पापी आत्माओं को डंसतेहैं. नदी में बड़े-बड़े पैने दातों वाले गिद्ध, पापी आत्माओं को नोचतेहैं. पाप कर्म करने वाली आत्माएं इस नदी को पार करते समय बहुत रोती बिलखती है. कई आत्माओं को यमदूतों के यम पाश से बंधकर कील से खिचते हुए यह नदी पार करनी पड़ती है.नदी में ऐसी भयानक स्थिति में पापी प्राणी नरक की यातनाओं को सहते हुए कई बार बेहोश होता है. इसके बाद फिर होश में आकर जोर-जोर से चीखता बिलखता है. अंत में वह अपने पूर्व जन्म के कर्मों को याद कर के पछताने लगता है. इसके बाद अपनी संतान, मित्र, माँ पिता-पत्नी को याद कर के जोर-जोर से पुकारने लगता है.भय के मारे जोर-जोर से रोने लगता है एवं फिर इस नदी में कष्ट पाकर सोचता है कि मैने ऐसे कर्म क्यों किए. इतना सब होने के बाद भी यह नदी पार नहीं होती है.
इन आत्माओं को नही सहनी पड़ती है वैतरणीकी यातना
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि गरुण पुराण के अनुसार जो लोग भगवत मार्ग पर चलते हैं. जिन्होनें भगवान विष्णु की भक्ति के साथ-साथ अपने आराध्या देवी-देवताओं की भक्ति की हो किसी के साथ छल कपट नहीं किया हो, जरूरतमंद व्यक्तियों की साहयता की हो, भगवान के नाम की चर्चा हो, उनके नाम का जाप, वेद-शास्त्रों का अध्ययन, यज्ञ, हवन-पूजन, एकादशी व्रत का पालन, चार धाम यात्रा, मंदिरों में दान-पुण्य, तीर्थयात्रा की हों ऐसे पुण्य कर्म करने वाले लोगों को वैतरणी नदी की यातना नहीं सहनी पड़ती है. वह आत्माओं को बिना दुःख दर्द के नदी पार हो जाती है.
गरुण पुराण में गाय दान का बहुत महत्व
पं पंकज पाठक ने बताया कि गरुण पुराण में लिखा हैजिसने भी अपने जीवन में एक बार भी गौ दान किया है. उनको वैतरणी नदी से वही गौ माता पार कराती हैं. पुराण में यह बताया गया है कि जब जीवात्मा वैतरणी नदी के पास पहुंचती हैं. तब उस नदी के तट पर वही गौ माता प्रकट होती हैं. जिनका दान आपने अपने जीवन काल में किया है एवं फिर जीवात्मा गाय की पूंछपकड़ कर बिना किसी यातना को भोग कर सीधा वैतरणी नदी पार कर लेती है. पर गाय का दान करते समय इस बात का ध्यान रखें की गाय को उसी जगह दान करें, जहां उनकीसैवा हो सके,देख-रेख हो सके. ऐसी जगह गाय का दान न करें जहां गाय को कष्ट भोगना पड़े. अगर ऐसा करते है तोउस पाप का स्वयं भुगतान आपको भोगना पड़ता है.
राजा जनक ने अयोध्या क्यों नहीं भेजा था सीता स्वयंवर का निमंत्रण? बड़ा डर था इसकी वजह
20 Jan, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
अयोध्या के राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का भव्य समारोह शुरू हो चुका है. प्राण प्रतिष्ठा तक हर दिन अलग-अलग अनुष्ठानों का आयोजन किया जाएगा. समारोह शुरू होने से पहले देश-विदेश से रामलला के लिए ढेरों उपहार आए. इस क्रम में भगवान राम की ससुराल जनकपुरी से भी उपहार आए थे. लेकिन, क्या आप जानते हैं कि राजा जनक ने सीता स्वयंवर का निमंत्रण अयोध्या भेजा ही नहीं था. अयोध्या निमंत्रण ना भेजने की वजह क्या थी? अगर निमंत्रण नहीं भेजा गया था तो भगवान राम जनकपुरी पहुंचकर सीता स्वयंवर में शामिल कैसे हुए?
सीता स्वयंवर का निमंत्रण अयोध्या नहीं भेजने का कारण राजा जनक का बड़ा डर था. पौराणिक कथाओं में इसका जिक्र मिलता है. पौराणिक कथाओं के मुताबिक, जनकपुरी में एक व्यक्ति की शादी हुई. वह पहली बार ससुराल जा रहा था. उसे ससुराल के रास्ते में एक जगह दलदल मिला. दलदल में एक गाय फंसी हुई थी, जो करीब-करीब मरने वाली थी. उसने सोचा कि गाय तो मरने ही वाली है और कीचड़ में जाने पर कपड़े खराब हो जाएंगे. वहीं, वो दलदल में फंस भी सकता था. इसलिए वह गाय के ऊपर पैर रखकर आगे निकल गया. जैसे ही उसने दलदल को पार किया गाय ने दम तोड़ दिया और व्यक्ति को शाप दिया कि तू जिसके लिए मुझे मरता छोड़कर जा रहा है, उसे ही देख नहीं पाएगा. अगर उसे देखेगा तो उसकी मृत्यु हो जाएगी.
चली गई पति की आंखों की रोशनी
ससुराल पहुंचकर वह व्यक्ति घर की तरफ पीठ करके दरवाजे के बाहर ही बैठ गया. ससुराल के लोगों की तमाम कोशिशों के बाद भी वह अंदर नहीं गया. इस पर उसकी पत्नी ने घर के बाहर आकर उससे अंदर चलने को कहा, लेकिन व्यक्ति ने शाप के डर से उसकी तरफ देखा ही नहीं. इस पर पत्नी ने इसका कारण पूछा तो उसने गाय के शाप के बारे में बताया. फिर पत्नी ने कहा कि मैं पतिव्रता स्त्री हूं. आप मेरी तरफ देखो, मुझे कुछ नहीं होगा. फिर व्यक्ति ने जैसे ही पत्नी की तरफ देखा उसकी आंखों की रोशनी चली गई.
विद्वानों ने बताया समस्या का निदान
वह स्त्री अपने अंधे पति को लेकर राजा जनक के दरबार में गई. उसने राजा जनक को पूरी बात बताई. फिर राजा जनक ने राज्य के सभी विद्वानों को बुलाकर समस्या बताई और गौ-शाप से मुक्ति का उपाय पूछा. सभी विद्वानों ने आपस में बातचीत करने के बाद कहा कि व्यक्ति की पत्नी को छोड़कर अगर कोई दूसरी पतिव्रता स्त्री छलनी में गंगाजल लाकर छींटे उसकी आंखों पर लगाए, तो गौ-शाप से मुक्ति मिल जाएगी. जब यह सूचना अयोध्या के राजा दशरथ को मिली, तो उन्होंने अपनी सभी रानियों से पूछा. इस पर सभी रानियों ने कहा कि राजमहल तो क्या आप राज्य की किसी भी महिला से पूछेंगे, तो वह भी पतिव्रता मिलेगी. राजा दशरथ ने एक सफाई वाली को बुलाया. पूछे जाने पर महिला ने कहा कि वह पतिव्रता स्त्री है.
सफाई करने वाली महिला ने ठीक कीं आखें
महाराज दशरथ ने राजा जनक समेत सभी राजाओं को यह दिखाने के लिए उसी महिला को जनकपुरी भेजा कि उनका राज्य सबसे उत्तम है. राजा जनक ने भी उस महिला का बहुत सम्मान किया. अयोध्या से आई महिला छलनी लेकर गंगा किनारे गई और प्रार्थना की कि हे गंगा मां, अगर मैं पूर्ण पतिव्रता हूं तो गंगाजल की एक बूंद भी नीचे नहीं गिरनी चाहिए. प्रार्थना करके उसने गंगाजल को छलनी में पूरा भर लिया और राजदरबार पहुंच गई. महिला ने व्यक्ति की आंखों पर छींटे मारे तो उसकी रोशनी लौट आई. राजा जनक ने राज सम्मान देकर उसे अयोध्या विदा कर दिया.
किस बात से डर गए थे राजा जनक
सीता स्वयंवर के समय राजा जनक को सफाई वाली महिला का ध्यान आया तो उन्होंने सोचा कि इतनी पतिव्रता महिला का पति कितना शक्तिशाली होगा. अगर राजा दशरथ ने इसी तरह से किसी द्वारपाल या सैनिक को स्वयंवर में भेज दिया, तो वह तो धनुष को आसानी से उठा लेगा. ऐसे में राजकुमारी का किसी राजकुमार के बजाय सैनिक या द्वारपाल से हो जाएगा. इसी डर के कारण राजा जनक ने सीता स्वयंवर का निमंत्रण अयोध्या नहीं भेजा.
जनकपुरी कैसे पहुंचे भगवान राम
अयोध्या के राजकुमार सीता स्वयंवर के समय गुरु विश्वामित्र के साथ रह रहे थे. राजा जनक ने गुरु विश्वामित्र को कार्यक्रम में पहुंचकर आशीर्वाद देने का आग्रह किया. इस पर वह राम और लक्ष्मण को लेकर जनकपुरी पहुंच गए. फिर भगवान राम ने शिव धनुष उठाकर प्रत्यंचा चढ़ाई तो वो टूट गए. रामचरित मानस में लिखा है, ‘लेत चढ़ावत खैंचत गाढ़ें। काहुं न लखा देख सबु ठाढ़ें। तेहि छन राम मध्य धनु तोरा। भरे भुवन धुनि घोर कठोरा।’ इसका मतलब है कि श्री राम ने सभा में धनुष कब उठाया, कब चढ़ाया और कब खींचकर तोड़ दिया, किसी को पता भी नहीं चला. उन्होंने सीता स्वयंवर की शर्त पूरी की. फिर राजा जनक ने महाराज दशरथ को राम सीता विवाह का निमंत्रण भेजा. राजा दशरथ के पहुंचने पर विधि विधान से राम सीता विवाह हुआ.
भगवान राम का इस गांव से अनोखा संबंध, कहा जाता है मामा, श्रृंगी ऋषि से हुआ था उनकी बहन का विवाह
20 Jan, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
दुनियाभर में भगवान श्री रामचंद्र के भक्त उन्हें भगवान के रूप में देखते हैं. जबकि बिहार के मिथिलांचल में भगवान श्री रामचंद्र को पाहुन (दामाद) के रूप में देखा जाता है. लेकिन बिहार में एक जगह ऐसा भी है जहां भगवान श्री रामचंद्र को ना तो भगवान और ना ही दामाद के रूप में देखते हैं, बल्कि यहां के लोग उन्हें मामा कहकर बुलाते हैं. यह जगह बिहार के लखीसराय जिले में स्थित है. जहां से भगवान श्री रामचंद्र जी का पारिवारिक संबंध है और यहां के लोग भगवान श्री रामचंद्र सहित लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न को भी मामा कहकर बुलाते हैं. ये जगह श्रृंगी ऋषि आश्रम के नाम से जानी जाती है, जो लखीसराय जिला के सूर्यगढ़ा प्रखंड में स्थित है.
बताया जाता है कि भगवान श्री रामचंद्र सहित चारों भाइयों के जन्म से पहले राजा दशरथ को एक पुत्री हुई थी. जिनका नाम शांता कुमारी था. वहीं, अंग प्रदेश में राजा रोमपाद और उनकी रानी वर्शिनी को कोई संतान नहीं हो पा रही थी. रानी वर्शिनी श्री रामचंद्र की मां कौशल्या की बहन थी और राजा दशरथ और रानी कौशल्या ने अपनी बड़ी पुत्री शांता कुमारी को रोमपाद को गोद दे दिया था. बाद में उन्हीं शांता कुमारी का विवाह श्रृंगी ऋषि से करवाया गया था.
श्रृंगी ऋषि ने कराया था यज्ञ का आयोजन
गौरतलब है कि श्रृंगी ऋषि वो महान मुनि थे जिन्होंने राजा दशरथ के लिए पुत्रकामेष्टि यज्ञ करवाया था और इसी कारण प्रभु श्री रामचंद्र, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का जन्म हुआ था. इतना ही नहीं श्रृंगी ऋषि पहले अवध प्रदेश में रहा करते थे. लेकिन एक बार अंग प्रदेश में काफी बड़ा सूखा पड़ जाने के कारण उन्हें राजा रोमपाद ने अंग प्रदेश में बुलाया था और फिर वही सूर्यगढ़ा में रहकर श्रृंगी ऋषि ने यज्ञ करवाया था. जिसके बाद पूरे अंग प्रदेश में बारिश हुई थी. आज भी वहां ऋषि श्रृंगी का आश्रम मौजूद है और वहां के लोग भगवान श्री राम को मामा के रूप में मानते हैं.
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (20 जनवरी 2024)
20 Jan, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- धन लाभ आशानुकूल का हर्ष, कार्यवृत्ति में सुधार होवे, कार्य बनेंगे।
वृष राशि :- मान प्रतिष्ठा, कार्यकुशलता से संंतोष होवे एवं कार्य पूर्ण संतुष्ट का होगा।
मिथुन राशि :- सामर्थ्य वृद्धि भी संभंव है, विरोधियों से डटकर मुकाबला करें, विजय मिलेगी।
कर्क राशि :- तनाव क्लेश व अशांति से चिन्ता व मानसिक व्यग्रता संभंव होगी।
सिंह राशि :- दैनिक कार्यवृत्ति में सुधार, चिन्ताएं कम हो तथा परिश्रम सफल होगा।
कन्या राशि :- शारीरिक थकावट, बैचेनी बढ़ेगी तथा समय और सामर्थ्य व्यर्थ जाएगा।
तुला राशि :- दैनिक कार्यगति अनुकूल, समय की अनुकूलता का उपयोग करें।
वृश्चिक राशि :- योजनाएं विफल जाए, परिश्रम से कुछ सफलता निरर्थक दिखाई देगी।
धनु राशि :- मनोबल बनाए रखें तथा कार्य व्यवसाय में योजना परिपूर्ण अवश्य होगी।
मकर राशि :- कुटुम्ब की समस्याओं में अर्थ व्यवस्था, बाधा पैदा अवश्य होगी, ध्यान दें।
कुंभ राशि :- धन लाभ, आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा, तथा मन उत्तम बना रहेगा।
मीन राशि :- सफलता के साधन जुटाए तथा विशेष कार्य स्थिगित रखे।
भौम प्रदोष व्रत के दिन इस विधि से करें पूजा, कर्ज और दुश्मनों से मिलेगा छुटकारा!
19 Jan, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
आगामी 23 जनवरी को भौम प्रदोष व्रत होगा. हर महीने की त्रयोदशी को प्रदोष का व्रत रखा जाता है, लेकिन यह मंगलवार के दिन पड़ रहा है. इसलिए इसे भौम प्रदोष व्रत कहा जाता है. बताया जाता है कि इस दिन व्रत और विशेष तरह के पूजन से भगवान शिव और हनुमान जी दोनों की कृपा भक्त पर पड़ती है और जिन लोगों पर कर्ज होता है, वह भी कर्जमुक्त हो जाता है. उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के निवासी पंडित योगेश कुकरेती ने बताया कि हर महीने दो प्रदोष व्रत पड़ते हैं, लेकिन जो प्रदोष व्रत मंगलवार के दिन होता है, वह भौम प्रदोष व्रत होता है. उन्होंने कहा इस दिन लाल वस्तुओं का दान और व्यापार करना चाहिए, जो बहुत शुभ माना जाता है. वहीं जिन लोगों के जीवन में हादसे ज्यादा हो रहे हों, वे भी लाल वस्तुओं का दान करें या भगवान शिव को लाल फूल अर्पित करें.
पंडित योगेश कुकरेती ने आगे बताया कि भौम प्रदोष व्रत उन लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, जिन पर ऋण यानि कर्ज बहुत ज्यादा हो. ऐसे लोग यह व्रत कर सकते हैं और इसी के साथ ही उन्हें इस दिन मंगल का विधान पूर्वक पूजन करना चाहिए. निश्चित रूप से उनके सारे कर्ज खत्म हो जाएंगे. उन्होंने बताया कि इस दिन शाम को भगवान शिव का रुद्राभिषेक, दूध, दही, घी, शक्कर और शहद से सविधि स्नान कराने के बाद उनका पूजन करना चाहिए, इससे जीवन के संकट खत्म हो जाते हैं.
शत्रुओं को शांत करने के लिए भी उपाय
भौम प्रदोष व्रत उन लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, जिन्हें हमेशा अपने शत्रुओं का भय रहता है. शत्रुओं और विरोधियों को शांत करने के लिए भौम प्रदोष के दिन बजरंगबली की पूजा करनी चाहिए. इसके लिए भौम प्रदोष के दिन सुबह लाल कपड़े पहनकर हनुमान जी पूजा करनी चाहिए. इस दिन हनुमान जी को पूजा में लाल फूलों की माला और तांबे का एक तिकोना टुकड़ा चढ़ाना चाहिए. इसके बाद गुड़ का भोग लगाकर दीपक जलाना चाहिए. ऐसा करने के बाद संकटमोचन हनुमानाष्टक का 11 बार पाठ करना चाहिए.
पौष पूर्णिमा कब है, 24 या 25 जनवरी को? व्रत-स्नान किस दिन करें?
19 Jan, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
पौष माह की पूर्णिमा हिंदू कैलेंडर के 10वें माह की 15वीं तिथि होती है. उस दिन व्रत रखा जाता है और माता लक्ष्मी की पूजा करके शाम को चंद्र देव को अर्घ्य देते हैं. इससे व्यक्ति को दो बड़े लाभ होते हैं. मां लक्ष्मी की कृपा से धन और दौलत बढ़ता है तो चंद्र देव की कृपा से मानसिक मजबूती बढ़ती है और मन स्थिर रहता है. इस बार पौष पूर्णिमा किस दिन है 24 या 25 जनवरी को? इसको जानने के लिए पौष पूर्णिमा की सही तिथि जाननी होगी. काशी के ज्योतिषाचार्य चक्रपाणि भट्ट से जानते हैं पौष पूर्णिमा की सही तारीख क्या है?
पौष पूर्णिमा 2024 सही तारीख
यदि पौष पूर्णिमा की तारीख को लेकर कन्फ्यूजन है तो आपको पंचांग देखना चाहिए. पंचांग के अनुसार, पौष पूर्णिमा की तिथि 24 जनवरी को 09:49 पीएम से लेकर 25 जनवरी को 11:23 पीएम तक रहेगी.
पौष पूर्णिमा का स्नान-दान सूर्योदय के समय से होता है, उस समय पर पौष पूर्णिमा तिथि होनी चाहिए. वहीं पौष पूर्णिमा का व्रत उस दिन रखते हैं, जिस दिन पूर्णिमा तिथि में चंद्रमा दिखाई देता है.
इस आधार पर देखा जाए तो पौष पूर्णिमा का व्रत 25 जनवरी को रखा जाएगा और उस दिन ही आपको स्नान-दान करना है. उस दिन आपको शाम के समय में माता लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए और रात में चंद्र देव को अर्घ्य देना चाहिए. पौष पूर्णिमा पर 05:54 पीएम से चंद्र देव को आप अर्घ्य दे सकते हैं.
पौष पूर्णिमा 2024: शुभ योग कौन-कौन से हैं?
1- रवि योग: सुबह 07:13 बजे से सुबह 08:16 बजे तक
2- गुरु पुष्य योग: 08:16 एएम से 26 जनवरी को 07:12 एएम तक
3- अमृत सिद्धि योग: सुबह 08:16 बजे से अगले दिन सुबह 07:12 बजे तक.
4- प्रीति योग: 07:32 एएम से पूरी रात तक
5- सर्वार्थ सिद्धि योग: पूरे दिन
वृंदावन का पहला मंदिर, 350 साल से कर रहा अपने आराध्य का इंतजार, औरंगज़ेब की क्रूरता से जुड़ी है कहानी
19 Jan, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
कहा जाता है कि मथुरा-वृंदावन समेत पूरे ब्रज में 5000 से भी अधिक छोटे-बड़े मंदिर है और हर मंदिर का अपना एक इतिहास है .वैसे तो वृंदावन में कई विश्व विख्यात मंदिर है लेकिन वृंदावन का मदन मोहन मंदिर सबसे पुराना मंदिर माना जाता है. 60 फीट ऊंचे शिखर वाला यह भव्य मंदिर अब भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है. इसका निर्माण मुल्तान के कपूर राम दास ने 1580 में कराया था.
वृंदावन के बांकेबिहारी मंदिर के वीआईपी गेट के पास परिक्रमा मार्ग पर स्थित है. श्री राधामदन मोहन मंदिर वृंदावन के सप्त देवालय मंदिर में भी शामिल है. मान्यता के अनुसार सप्त देवालय मंदिरों की स्थापना चैतन्य महाप्रभु के अलग-अलग शिष्यों ने की जिसमें से सबसे पहले श्री सनातन गोस्वामी ने ही मदन मोहन मंदिर की स्थापना की थी.
यह मंदिर वृंदावन के सबसे ऊंचे टीले पर स्थापित है जिसे द्वादश दत्य टीले के नाम से भी जाना जाता है. मंदिर सेवायत गोपाल दास बाबा ने बताया कि एक बार पंजाब के व्यापारी की रामदास खत्री जिन्हे कपूर राम दास के नाम से जाना जाता है. उसकी नाव आगरा जाने और दौरान वृंदावन के घाट पर अटक गई. 3 दिन तक कोशिश करने के बाद भी जब नाव नहीं निकली तो वह स्थानीय देवता को खोजने निकल पड़ा. उसे टीले पर सनातन गोस्वामी मिले और उन्होंने उससे मदन मोहन भगवान की प्रार्थना करने को कहा जैसे ही व्यापारी ने ऐसे किया उसकी नाव तैरने लगी.
आगरा से अपना सारा माल बेचने के बाद जब वह वापस आया तो कपूरी ने अपना सारा अर्जित धन सनातन गोस्वामी को दे दिया और इस मंदिर का निर्माण चौदहवीं शताब्दी में करवाया. इस मंदिर पर मुग़लों ने भी आक्रमण किया था. 1669 में औरगज़ेब ने जब ब्रज में आक्रमण किया था और इस मंदिर की एक चोटी को क्षतिग्रस्त कर दिया था जो आज भी टूटी अवस्था में मौजूद है.
जब औरंगज़ेब ने इस मंदिर पर आक्रमण किया था तब मंदिर के सेवायतों ने मंदिर के विग्रहों को सुरक्षित रखने के लिए मंदिर से छुपा कर राजस्थान के करौली ले जा कर स्थापित कर दिया और आज भी इस मंदिर के मूल विग्रह करौली के मंदिर में स्थापित है. यह मंदिर वृंदावन के उन मंदिरों में भी शामिल है जो लाल बलुआ पत्थर से बना हुआ है इस पत्थर से सिर्फ 5 मंदिर ही बने हुए है.
श्यामल रंग, हाथ में तीर व धनुष! जानें रामलला की मूर्ति की 7 विशेषताएं, वजन जानकार हो जाएंगे हैरान
19 Jan, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
प्रभु राम की नगरी अपने राम के स्वागत के लिए सजकर तैयार हो गई है. पूरी नगरी को त्रेता की तरह सजाया गया है. अयोध्या में ऐसा लग रहा है मानो प्रभु राम अपने घर वापस आ रहे हैं. हर तरफ का वातावरण राममय नजर आ रहा है. 22 जनवरी को प्रभु राम अपने भव्य में महल में विराजमान होंगे. 500 साल के लंबे संघर्ष के बाद 22 जनवरी की यह तारीख इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाएगी. जब मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु राम अपने भव्य महल में विराजमान होंगे. रामलला के अयोध्या में विराजमान होने का दिन लगातार पास आ रहा है. अब बस पूरे देश को 22 जनवरी का इंतजार है.
दरअसल, राम जन्म भूमि परिसर प्रभु राम की जन्मस्थली है तो राम मंदिर में भगवान राम बालक स्वरूप विराजमान होंगे. 5 वर्ष के बालक के स्वरूप में रामलला की प्रतिमा राम मंदिर में विराजमान होगी. श्यामल रंग के पत्थर से यह प्रतिमा बनाई गई है. पैर की अंगुली से ललाट तक रामलला की मूर्ति की कुल ऊंचाई 51 इंच है. इतना ही नहीं इस मूर्ति का वजन का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि जब प्रतिमा को गर्भ गृह में रखा जा रहा था तो उसके लिए क्रेन की आवश्यकता पड़ी थी. इस प्रतिमा का वजन 1500 किलो यानि 1.5 टन है.
राम मंदिर ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने राम मंदिर में विराजमान होने वाली मूर्ति की विशेषता का बखान करते हुए बताया कि भगवान राम लला की प्रतिमा का निर्माण देश के मशहूर मूर्तिकार अरुण योगीराज ने की है. इस मूर्ति की प्रमुख विशेषताएं हैं :
⦁ श्यामल रंग के पत्थर से इस प्रतिमा का निर्माण हुआ है.
⦁ 5 वर्ष के बालक के स्वरूप में रामलला की प्रतिमा राम मंदिर में विराजमान होगी.
⦁ श्याम शिला की आयु हजारों साल होती है, यह जल रोधी होती है.
⦁ कमल दल पर खड़ी मुद्रा में मूर्ति, हाथ में तीर व धनुष है.
⦁ मूर्ति में पांच साल के बच्चे की बाल सुलभ कोमलता झलक रही है.
⦁ मूर्ति का वजन 1500 किलो है.
⦁ चंदन, रोली आदि लगाने से मूर्ति की चमक प्रभावित नहीं होगी.
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (19 जनवरी 2024)
19 Jan, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- धन लाभ आशानुकूल का हर्ष, कार्यवृत्ति में सुधार तथा प्रतिष्ठा अवश्य ही बढ़े।
वृष राशि :- योजनाएं पूर्ण हो, शुभ समाचार से समस्या संभव पूर्ण हो तथा कार्य अवश्य ही बनेंगे।
मिथुन राशि :- कार्य व्यवसाय गति मंद रहे, असमर्थता का वातावरण अवश्य ही बना रहेगा, ध्यान दें।
कर्क राशि :- दैनिक व्यवसाय कार्य व्यवसाय में थकावट तथा बेचैनी, सफलता के साधन जुटाकर चलेंगे।
सिंह राशि :- आलोचना से बचें, कार्य कुशलता से पूर्ण संतुष्ट होवे तथा संतोष होगा।
कन्या राशि :- भोग ऐश्वर्य में समय बीतेगा, शारीरिक थकावट, बेचैनी अवश्य ही बढ़ेगी।
तुला राशि :- व्यवसायिक चिन्ता बनी रहेगी, आशानुकूल सफलता से संतोष होगा, ध्यान दें।
वृश्चिक राशि :- मित्र वर्ग विशेष फलप्रद रहे तथा सुखवर्धक योजनाएं अवश्य ही बनेगी, ध्यान दें।
धनु राशि :- तनावपूर्ण वातावरण चलता रहेगा तथा चिन्ताएं संभव होवे, ध्यान देवे।
मकर राशि :- कार्यवृत्ति में सुधार तथा सामाजिक कार्यों में प्रतिष्ठा सदैव ही अवश्य बनी रहें।
कुंभ राशि :- कार्य व्यवसाय, गति मंद, चोट आदि का भय अवश्य ही बना रहेगा।
मीन राशि :- आशानुकूल सफलता का हर्ष, बिगड़े हुए कार्य बने, तथा योजना बनेगी ध्यान रखे कार्य होगा।