धर्म एवं ज्योतिष
माघी पूर्णिमा का धार्मिक महत्व, क्या करें कि हो जाए लक्ष्मी प्रसन्न
17 Feb, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
माघ महीने का हिंदू धर्म में अपना महत्व है. खासतौर से माघ पूर्णिमा की कई मान्यताएं हैं. पूर्णिमा पर नदी में स्नान ध्यान की परंपरा पुरानी है. हम आपको यहां बता रहे हैं माघ पूर्णिमा से जुड़ी धार्मिक मान्यताएं और इस दिन क्या करना उत्तम रहता है.
साल भर में कुल 12 पूर्णिमा होती हैं. हर पूर्णिमा का अपना अपना महत्व है. सभी दिनों में पूर्णिमा का दिन सबसे शुभ माना जाता है. लेकिन माघ पूर्णिमा का सबसे ज्यादा महत्व है. ये दिन भगवान विष्णु को समर्पित रहता है. मान्यता है अगर भक्त पूर्णिमा के दिन विधि विधान के साथ भगवान विष्णु की पूजा करें तो उनकी असीम कृपा भक्तों पर सदैव रहती है. इसके साथ ही पूर्णिमा के दिन स्नान दान और जप शुभ फलदायी माना जाता है. पुजारी कहते हैं पूर्णिमा के दिन हवन अवश्य करना चाहिए उसमें भी अगर खास विधि से हवन करेंगे तो भगवान विष्णु सदैव प्रसन्न रहेंगे. देवघर के ज्योतिषाचार्य इस बारे में विस्तार से बता रहे हैं.
सुनिए ज्योतिषाचार्य के उपाय
देवघर के पागल बाबा आश्रम स्थित मुद्गल ज्योतिष केंद्र के प्रसिद्ध ज्योतिष आचार्य पंडित नंदकिशोर मुद्गल से लोकल 18 के संवाददाता ने बात की. उन्होंने बताया माघी पूर्णिमा का हिंदू धर्म में खास महत्व है. इस साल माघी पूर्णिमा 24 फरवरी को है. माघी पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी के साथ भगवान विष्णु की भी पूजा आराधना करनी चाहिए. इससे शुभ फल की प्राप्ति होती है. जो जातक आर्थिक परेशानी में है वो माघी पूर्णिमा के दिन तिल का हवन करे. इससे माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु प्रसन्न होंगे और आर्थिक परेशानियां समाप्त हो जाएंगी.
हवन का है खास तरीका
ज्योतिषाचार्य कहते हैं पूर्णिमा के दिन हवन जरूर करना चाहिए इससे माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं. लेकिन इसका भी खास उपाय है. माघी पूर्णिमा के दिन गाय के शुद्ध घी, शहद, खीर और सफेद तिल मिलाकर 21बार हवन करना अति उत्तम होता है. भगवान विष्णु को सफेद तिल और खीर बेहद पसंद है. पंडित नंदकिशोर मुद्गल कहते हैं माघी पूर्णिमा के दिन श्री सूक्त का पाठ अवश्य करें. ऐसा करने से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा से आर्थिक परेशानियों से छुटकारा मिल जाएगा.
भीष्म अष्टमी के व्रत करने से पितरों को मिलती है मुक्ति, जानें पूजा विधि और शुभ मुहूर्त
17 Feb, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातम धर्म में भीष्म अष्टमी का विशेष महत्व माना गया है. जिसे भारत भर में हर वर्ष धूम धाम से मनाया जाता है. यह माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को ‘भीष्म अष्टमी’ कहा जाता है. इसी दिन भीष्म पितामह ने अपनी इच्छा से मृत्यु को गले लगाया था. महाभारत के अनुसार देवव्रत यानि भीष्म पितामाह को इक्षा मृत्यु का वरदान था जो उनके ही पिता राजा शांतनु द्वारा दिया गया था. महाभारत युद्ध के दौरान जब पितामाह अर्जुन के तीरो से घायल होने के बाद लगभग 58 दिनों तक तीरों की सैया में लेटे रहे तब उन्होंने सूर्य के उत्तरायण होने का इतंजार किया और माघ मास में अपने प्राणों का त्याग किया. तब से इस दिन को भीष्म अष्टमी के नाम से जाना जाने लगा. इस दिन भक्त भीष्म अष्टमी का व्रत करने लगे.
हिंदू पंचांग के मुताबिक साल 2024 में भीष्म अष्टमी पर्व 16 फरवरी, शुक्रवार को मनाई जाएगी. जिसकी शुरुआत 16 फरवरी को ही दिन सुबह 8.54 मिनट पर होगी और इस तिथि की समाप्ति 17 फरवरी को सुबह 8.15 मिनट पर होगी. इस दिन जो व्यक्ति भीष्म पितामाह की पूर्ण मन से एवं विधि विधान से श्राद्ध करता है, उसे संतान की प्राप्ति होती है और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है साथ ही पित्त दोष के भी मुक्ति मिलती है. पद्म पुराण के मुताबिक जीवित पिता वाले व्यक्ति को भी इस दिन भीष्म पितामह के लिये तर्पण करना चाहिए.
पूजा विधि
भीष्म अष्टमी उत्तरायण के दौरान आती है जो साल का सबसे पवित्र समय होता है. जब सूर्य अपनी उत्तर दिशा में होते हैं. माघ माह के शुक्ल पक्ष के आठवें दिन को मोक्ष का दिन भी कहा जाता है. इस दिन भीष्म की स्मृति में कुश घास, तिल और जल अर्पित करके तर्पण करना शुभ माना जाता है जो लोग इस दिन पूरी पवित्रता और सच्चे मन के साथ अपने पितरों का तर्पण विधि विधान के साथ करते हैं उनके पितरों को मुक्ति मिलती और उनका पित्त दोष दूर होता है.
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (17 फ़रवरी 2024)
17 Feb, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- धन का व्यय संभव, तनाव पूर्ण वातावरण से बचें, रुके कार्य बन जायेंगे।
वृष राशि :- चिन्तायें कम होंगी, सफलता के साधन जुटायें तथा शुभ समाचार मिलेगा।
मिथुन राशि :- चिन्ताओं का समय पर निराकरण करें, शुभ समाचार मिलेगा, समय का ध्यान रखें।
कर्क राशि :- सोचे कार्य परिश्रम से समय पर पूर्ण होंगे, व्यवसायिक गति मंद रहेगी।
सिंह राशि :- सामाजिक मान-प्रतिष्ठा बढ़ेगी, कार्य कुशलता से संतोष होगा, समय का ध्यान अवश्य रखें।
कन्या राशि :- अधिकारियों का समर्थन फलप्रद रहेगा, कार्य कुशलता से संतोष अवश्य होगा।
तुला राशि :- दैनिक व्यवसायिक गति उत्तम तथा व्यवसायिक चिन्तायें कम अवश्य होंगी।
वृश्चिक राशि :- कार्यगति में सुधार होगा, असमंजस का वातावरण रहेगा, धैर्य पूर्वक कार्य करें।
धनु राशि :- स्थिति पर नियंत्रण रखकर कार्य करें, मानसिक उद्विघ्नता रहेगी, धैर्य रखें।
मकर राशि :- मानसिक खिन्नता एवं स्वभाव में अशांति, उद्विघ्नता अवश्य बनेगी।
कुंभ राशि :- योजनायें फलीभूत होंगी, विघटनकारी तत्व परेशान अवश्य ही करेंगे।
मीन राशि :- मनोबल उत्साहवर्धक रहेगा तथा कार्य कुशलता से संतोष होगा।
इस मंदिर में भगवान विष्णु से कर्जा वसूलने हर साल आते हैं कुबेर देव, रोचक है कहानी
16 Feb, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र अपनी भौगोलिक संरचना के कारण अन्य क्षेत्रों से अलग माने जाते हैं, इसी कारण इन क्षेत्रों में कई मंदिर हैं, जहां देवता निवास करते हैं. जिनके दर्शनों के लिए देश भर से लाखों की संख्या में भक्त पहुंचते हैं, उन्हीं में से एक है धन के देवता कुबेर का मंदिर, जिसका बैकुंठ धाम बद्रीनाथ धाम से गहरा नाता है. चमोली जिले में बद्रीनाथ धाम से 18 किलोमीटर पहले पांडुकेश्वर गांव स्थित है, जहां धन के देवता कुबेर का मंदिर स्थित है. मंदिर का बद्रीनाथ धाम से भी गहरा नाता है, उसका कारण है धाम के कपाट खुलने के बाद बद्रीश पंचायत में कुबेर जी और उद्धव जी की डोली का पांडुकेश्वर में रहना. दरअसल भगवान बद्री विशाल खजांची कुबेर के ऋणी हैं. यही वजह है कि प्रति वर्ष बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने पर कुबेर जी नारायण से अपना ऋण वसूलने के लिए उनकी पंचायत (बद्रीश पंचायत) में विराजमान होते हैं.
लोक मान्यताओं में है यह वर्णन
लोक मान्यताओं में कहा जाता है कि एक बार भगवान विष्णु ने किसी खास काम के लिए कुबेर से ऋण लिया था, लेकिन काफी समय बीत जाने के बाद भी भगवान विष्णु अपनी उधारी नहीं चुका पाए थे. जब कुबेर को लगा कि भगवान विष्णु अपना ऋण नहीं चुका पा रहे हैं, तो उन्होंने फैसला किया कि ग्रीष्म ऋतु में यात्राकाल के दौरान बद्रीनाथ पहुंचकर वह भगवान विष्णु से अपने धन को वसूलेंगे. जिसके बाद से प्रतिवर्ष जब बद्री विशाल के कपाट खोले जाते हैं, तो कुबेर जी और उद्धव जी को बद्रीनाथ धाम ले जाते हैं, जहां यात्रा काल के 6 महीने उनकी पूजा अर्चना की जाती है. वहीं यह भी माना जाता है कि हेमकुंड साहिब के पास कुबेर देव का एक बड़ा महल है. उस महल के भीतर बड़ा खजाना है. कहा जाता है कि जब कोई देवता मनुष्य पर अवतरित होते हैं, तो अपनी बोलने की शक्ति अर्जित करने के लिए दीवार का पेड़ (दीवार मूंडी) कुबेर महल के पास जाते हैं.
अलका नगरी के स्वामी कुबेर देव
पूर्व धर्माधिकारी भुवन उनियाल बताते हैं कि कुबेर जी का संबंध भगवान बद्री विशाल से है क्योंकि यह भगवान बद्री विशाल के साथ पूजित होते हैं. कुबेर भगवानों के खजांची हैं और अलका नगरी के स्वामी हैं. साथ ही वह यक्षों के राजा हैं. वह आगे कहते हैं कि कुबेर देव ने त्रिपुरा बालाजी (वेंकटेश्वर भगवान) की शादी में धन धान्य दिया था, जिस कारण उन्हें 9 निधियों का स्वामी कहा जाता है.
दीया जलाए कोई... पुण्य कमाएं लक्ष्मी माता! 8 साल में ढाई लाख आटे के दीये बनाकर बांटे, अद्भुत है कहानी
16 Feb, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मध्य प्रदेश के खरगोन की लक्ष्मीबाई चौहान (लक्ष्मी माता) विगत 8 वर्षों से आटे के दीए बना रही हैं. वह हर दिन 100 से 150 दिए बनाती हैं. अब तक करीब ढाई लाख से ज्यादा आटे के दीए बनाकर लोगों को फ्री में बांट चुकी हैं. 16 फरवरी को नर्मदा जन्मोत्सव पर भी वह करीब 4-5 हजार दीए लोगों को फ्री में बांटेंगी.
करीब 60 वर्षीय लक्ष्मी माता धार जिले के धामनोद की रहने वाली हैं. 40 वर्ष से वह अपने घर नहीं गईं. नर्मदा तट पर भोलेनाथ और मां नर्मदा की सेवा में जुटी हैं. 15 वर्ष से कसरावद तहसील के ग्राम नावड़ातोड़ी में नर्मदा नदी के किनारे स्थित शालिवाहन मंदिर परिसर में एक कुटिया में रह रही हैं. गुजर-बसर के लिए लोगों से मांगकर खाती हैं.
परिक्रमा वासियों को भी देती हैं दीए
क्षेत्र में लोग उन्हें लक्ष्मीमाता के नाम से जानते हैं. दिनभर वह आटे से दीया बनाती हैं. मंदिर में परिक्रमा वासी रात्रि विश्राम के लिए रुकते हैं. इस दौरान सुबह-शाम नर्मदा पूजन और दीपदान के लिए लक्ष्मीबाई उन्हें अपने बनाए हुए आटे के दीए देती हैं. इस दीये के लिए वह किसी से एक रुपये भी नहीं लेतीं.
ऐसे बनाती हैं दीए
अमावस्या और पूर्णिमा पर बड़ी संख्या में लोग नर्मदा में दीप प्रवाहित करते हैं. उन तमाम लोगों को लक्ष्मीबाई आटे के दीये उपलब्ध कराती हैं. यह दिए काफी मजबूत और मोटे होने से अधिक दूरी तक बहते हैं. दीए बनाने के लिए वह गेहूं के आटे में चावल, पीसी हुई दाल को भी मिक्स करती हैं.
इसलिए फ्री में बांटती हैं दीये
लक्ष्मीबाई ने बताया कि लोगों को दोने में दीपदान करते देखा. इसे रोकने के लिए ही उन्होंने आटे के दीए बनाकर फ्री में देना शुरू किया. उन्होंने कहा कि आटे से बने दीये नर्मदा के जल को प्रदूषण से बचाते हैं. बाती बुझ जाने पर दीये से मछलियों और जलीय जीवों की भूख भी मिटती है.
यहां से मिली प्रेरणा
नर्मदा नदी के किनारे कपड़ा बिछाकर दान मांगने बैठी थीं. दान में उन्हें करीब 50 किलो गेहूं मिल गए. इतना गेहूं कैसे खाएंगी सोच ही रही थी. तभी नर्मदा किनारे उन्हें मिट्टी से बना दीया मिला था. मन में आया कि अब इसी दीये के आकार में दान में मिलने वाले गेहूं और आटे से दीए बनाकर लोगों को दूंगी.
भगवान ने दिए दर्शन
बताया कि घर में आटा खत्म हो गया था. शाम के समय जब वह निराश अपनी कुटिया में बैठी थी, तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. दरवाजा खोला तो बड़ी-बड़ी जटाओं में एक साधु थे. पूछने पर उन्होंने खुद को शिव बताया. एक मुट्ठी पीले चावल दिए और कहा चिंता मत करो मैं हूं. उस दिन के बाद कभी घर में आटे की कमी नहीं हुई. उनका मानना है कि वह सच में भगवान शिव ही थे.
हर पूजा में क्यों पूजे जाते हैं कुल देवता, ग्राम देवता तथा इष्ट देवता
16 Feb, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में कई देवी देवताओं की पूजा आराधना की जाती है. जिनकी अलग-अलग मान्यता होती है. वहीं ,हिंदू धर्म में तीन प्रकार के देवताओं जैसे कुलदेवता, ग्राम और इष्ट देवता की भी आराधना की जाती है. दरअसल, इन तीनों ही देवताओं में खास अंतर है. जिसके बारे में आइए विस्तार से जानते है.
कुलदेवता उन देवी-देवताओं को कहा जाता है, जहां पर पूर्वज और कई पीढ़ी लंबे समय से पूजा करते हुए आ रहे हैं. इसके अलावा कुलदेवता के जरिए ही कुल के लोग अपने संदेश या उपासना को भगवान तक पहुंचाते है. घर में किसी भी खास मौके पर कुल देवता को याद किया जाता है. उनके स्थान पर जाकर पूजा-अर्चना करके उन्हें आमंत्रित किया जाता है. सभी कुल के अलग-अलग देवी देवता होते हैं. इसके अलावा कुलदेवी या देवता को वंश का रक्षक भी माना जाता है.
जाने ग्राम देवता के बारे में
ग्राम देवता किसी कुल के बजाय पूरे गांव के लिए विशेष होते हैं. दरअसल, ग्राम देवता गांव या समुदाय की रक्षा के लिए होते हैं. ग्राम देवता यानी की गांव के भगवान की आराधना समाज के कल्याण के लिए की जाती है. इसके साथ ही इनकी पूजा में सभी गांव वाले शामिल होते हैं जैसे कोई त्योहार मनाया जा रहा हो.
जाने इष्ट देवता के बारे में
हिंदू धर्म में 33 करोड़ देवी देवता हैं. हर इंसान अलग-अलग देवी देवताओं की अराधना करता है. इष्ट का अर्थ है प्रिय होता है. इसलिए, हर इंसान के अपने एक प्रिय भगवान होते हैं. जिसकी वह आराधना करता है. उस देवता को इष्ट देवता कहा जाता है. इष्ट देवता हमेशा मार्गदर्शन करते हैं. इसके साथ ही हमेशा रक्षा करते हैं. पंडित आनंद भारद्वाज ने कहा कि किसी भी पूजन में सबसे पहले देवी-देवताओं को याद किया जाता है. इसके बिना देवी-देवताओं के पूजन के कोई भी शुभ काम नहीं किया जाता है. किसी भी पूजन में कुलदेवता, ग्राम देवता और ईष्ट देवता को एक साथ इसलिए याद किया जाता है. क्योंकि, किसी भी शुभ काम में सभी देवी-देवताओं का पूजन जरूरी होता है.
राम का निराला धाम, यहां न पुजारी, न चढ़ावा और न प्रसाद... पर दर्शन के पहले मानना होगा एक नियम
16 Feb, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सिर्फ अयोध्या ही नहीं, देश में प्रभु राम के कई मंदिर हैं. ऐसा ही एक अनोखा मंदिर इंदौर में भी है. इसक नाम “अपने राम का एक निराला धाम” है. कहा जाता है कि यहां की सुरक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी खुद यमराज देखते हैं, वहीं अध्यक्ष की जिम्मेदारी महाबली हनुमान ने उठा रखी है.
लेकिन, इस अनूठे मंदिर में आपको तभी भगवान राम के दर्शन करने की अनुमति मिलती है, जब आप एक शर्त पूरी कर देंगे. मंदिर प्रांगण में 121 फीट की विशाल हनुमान प्रतिमा है. मंदिर का वैभव इस तरह से है कि यहां रामायण के सभी पात्र नजर आते हैं. वहीं, पूरे मंदिर में राम-राम का नाम लिखा हुआ है.
तीन दर्जन मंदिर
श्रीराम के नाम से महकने वाले इस अनूठे निराला धाम मंदिर के आसपास लगभग 11 हजार वर्ग फीट के तीन दर्जन से अधिक मंदिर बने हैं, जिनकी नींव और दीवारों पर श्रीराम भक्तों द्वारा ‘जय श्री राम’ के नारे लिखे गए हैं. इतना ही नहीं, मंदिर के हर गुंबद, दीवार और कोने-कोने में लाल रंग से ‘जय श्रीराम’ लिखा गया है, जो श्रीराम के होने यहां विराजमान होने का एहसास करता है.
श्री राम मंदिर में एक ही नियम
हैरानी वाली बात यह है कि इस मंदिर न तो पुजारी है, न प्रसाद लगता है, न किसी तरह का चढ़ावा. बस मात्र एक शर्त पूरी करनी पड़ती है, जिसके बाद ही मंदिर में प्रवेश मिलता है. आपको मंदिर में जाने पर 108 बार ‘जय श्रीराम’ लिखना होगा, तभी आपको मंदिर में प्रवेश दिया जाएगा. ‘जय श्रीराम’ लिखने के लिए पत्र और पेन भक्तों को दी जाती है. वीआईपी से लेकर आम जनता सभी के लिए यही एक नियम है.
पुजारी नहीं, बन गया सेवक
वर्षों से जारी इस परंपरा को संभाल रहे प्रकाश चंद वागरेचा बताते हैं कि 1990 से मंदिर का निर्माण शुरू हुआ है, जो आज भी जारी है. यहां अब तक लाखों भक्त करोड़ों बार राम नाम लिख चुके हैं. रोजाना तकरीबन 200-300 श्रद्धालु आते हैं. त्योहारों के समय ज्यादा रौनक रहती है.
मंदिर के संचालक श्रीराम हैं और सचिव महादेव
आगे बताया, 1990 के पहले जब कनाडिया रोड पर आकर रहने लगा तो उस दौरान यहां न तो कोई धार्मिक स्थल था, न मंदिर था. नौकरी की, ऑटो चलाई, कई अच्छे-बुरे काम किए. एक दिन पिता की मृत्यु के दौरान उठावने के लिए मंदिर तलाशा, लेकिन नहीं मिला. तब भगवान की मूर्ति रखकर पूजा की. मगर, 43 की उम्र में न जाने क्या हुआ कि अंदर से आवाज आई कि भगवान का घर बनाया जाए. बस पहले शिव जी स्थापित किए, फिर हनुमान जी की दिखाई राह पर चलकर बन गया भगवान श्रीराम का निराला धाम मंदिर.
सिर्फ शनिवार, मंगलवार आरती
संचालक प्रकाश चंद्र ने बताया कि आज 79 वर्ष की उम्र हो गई. दो बार हनुमान जी की कृपा से बच गया तो इसे खुशनसीबी मानता हूं. बच्चे अपनी दुनिया में खुश हैं. हम पति-पत्नी यहां श्रीराम की सेवा में लगे हैं. हम पुजारी नहीं बल्कि सेवक हैं. केवल शनिवार और मंगलवार को आरती करते हैं, बाकी सब रामजी संभाल लेते हैं.
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (16 फ़रवरी 2024)
16 Feb, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- मान-प्रतिष्ठा बाल-बाल बचे किन्तु व्यवसाय गति उत्तम अवश्य होगी।
वृष राशि :- धन प्राप्ति के योग बनेंगे, नवीन मैत्री मंत्रणा अवश्य ही प्राप्त होगी।
मिथुन राशि :- इष्ट मित्र सहायक रहेंगे, व्यवसायिक क्षमता में वृद्धि अवश्य होगी ध्यान दें।
कर्क राशि :- बड़े-बड़े लोगों से मेल-मिलाप होगा तथा सुख-समृद्धि के योग अवश्य बनेंगे।
सिंह राशि :- स्त्री वर्ग से हर्ष-उल्लास होगा, भोग-ऐश्वर्य की प्राप्ति होगी, रुके कार्य बन जायेंगे।
कन्या राशि :- प्रतिष्ठा बाल-बाल बचे, संघर्ष में अधिकारी भी साथ अवश्य ही देंगे ध्यान दें।
तुला राशि :- कुटुम्ब और धन की चिन्ता बनेगी, सोचे कार्य परिश्रम से पूर्ण होंगे, समय का ध्यान रखें।
वृश्चिक राशि :- प्रत्येक कार्य में बाधा क्लेश युक्त रखे, स्थिति सामर्थ्य योग्य अवश्य बनेगी।
धनु राशि :- भावनायें विक्षुब्ध होंगी, दैनिक कार्यगति मंद रहेगी, परिश्रम से कार्य बन जायेंगे।
मकर राशि :- तनाव, क्लेश व अशांति, धन का व्यय होगा, मानसिक खिन्नता अवश्य ही बनेगी।
कुंभ राशि :- कार्य कुशलता से संतोष, व्यवसायिक समृद्धि के साधन जुटायें, स्थिति पर नियंत्रण रखें।
मीन राशि :- कुटुम्ब के कार्यों में उत्तम समय बीतेगा तथा हर्ष-उल्लास अवश्य ही बनेगा।
बनासकांठा का नाडेश्वरी माता का मंदिर है आस्था का केन्द्र
15 Feb, 2024 07:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
गुजरात के बनासकांठा के बॉर्डर पर नाडेश्वरी माता का मंदिर बना है। यह मंदिर आम लोगों के साथ-साथ सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के जवानों के लिए भी आस्था और श्रद्धा का बहुत बड़ा धर्मस्थल बना हुआ है।
बनासकांठा बॉर्डर पर जब भी किसी जवान की ड्यूटी लगती है तो वह ड्यूटी देने से पहले मंदिर में माथा टेक कर ही जाता है। ऐसी मान्यता है कि मां नाडेश्वरी खुद यहां जवानों की रक्षा करती हैं।
दरअसल, पहले यहां पर कोई मंदिर नहीं था, एक छोटा सा मां का स्थान था, पर 1971 के युद्ध के बाद उस समय के कमान्डेंट ने इस मंदिर का निर्माण कराया। इस मंदिर कि खास बात यह भी है कि बीएसएफ का एक जवान ही यहां पुजारी के तौर पर ही अपनी ड्यूटी करता है।
बनासकांठा का सुई गांव जो भारत-पाकिस्तान सीमा पर आखिरी गांव है वहीं यह मंदिर स्थित है। यहां से महज 20 किलोमीटर की दूरी पर पाकिस्तान की सीमा शुरू हो जाती है। यह क्षेत्र बीएसएफ के निगरानी में ही रहता है।
मंदिर के निर्माण की कहानी भी बेहद दिलचस्प है। 1971 में पाकिस्तान के साथ लड़ाई के समय भारतीय सेना की एक टुकड़ी पाकिस्तान की सीमा में प्रवेश कर गई और इसके बाद वह रास्ता भटक गई क्योंकि रन का इलाका होने की वजह से उन्हें रास्ता भी नहीं मिल रहा था।
माना जाता है कि खुद कमान्डेंट ने मां नाडेश्वरी से मदद की गुहार लगाई और सकुशल सही जगह पहुंचाने की विनती की तो खुद मां ने दिये की रोशनी के जरिये भारतीय सेना की टुकड़ी की मदद की और उन्हें वापस अपने बेस कैंप तक लेकर आई। इस दौरान किसी भी जवान को खरोंच तक नहीं आई। तब से यहां पर आने वाले हर एक जवान के लिए मां का मंदिर अस्था और श्रद्धा का सब से बड़ा केंद्र बना हुआ है।
वहां ऐसी मान्यता है कि जब तक इस बॉर्डर पर मां नाडेश्वरी देवी विराजमान हैं किसी भी जवान को कुछ नहीं हो सकता।
महालक्ष्मी की विशेष कृपा ऐसे होगी
15 Feb, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
शुक्र ग्रह और चंद्रमा की पूजा करने से महालक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। वहीं कुछ कार्यों के करने से मां लक्ष्मी नाराज हो जाती हैं और घर में दरिद्रता का वास होने लगता है, इसलिए भूलकर भी इन कार्यों को ना करें।
जन्म कुंडली में शुक्र ग्रह और चंद्रमा को स्त्री कारक ग्रह माना जाता है। शुक्र ग्रह और चंद्रमा की पूजा करने से महालक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। शुक्र और चंद्रमा की प्रसन्नता के लिए घर में काले और नीले रंग का प्रयोग बिल्कुल नहीं करना चाहिए। अपने घर के दक्षिण पूर्वी भाग में रसोई घर जरूर बनाएं। हर रोज रसोई घर में काम करने से पहले घर की महिलाएं घर की इसी दिशा में एक दिया जरूर जलाएं। उसके बाद ही रसोई घर का कार्य आरंभ करें.
घर की महिलाएं रसोई घर में बिना स्नान किए कोई भी कार्य ना करें। हमेशा अपनी रसोई घर में मां अन्नपूर्णा की फोटो जरूर स्थापित करें। जब भी कार्य आरंभ करें मां अन्नपूर्णा की सबसे पहले दर्शन करें। ऐसा करने से घर के सभी लोग स्वस्थ रहेंगे और भोजन भी स्वादिष्ट बनेगा और साथ ही साथ भगवान लक्ष्मीनारायण जी की कृपा जरूर होगी।
छोटी-छोटी गलतियां न करें
जिस घर में महिलाओं का सम्मान नहीं होता है, वहां शुक्र और चंद्रमा की अशुभता के कारण घर में दरिद्रता का वास होता है।
घर के दक्षिण पूर्वी कोने में अर्थात आग्नेय कोण में जलभराव रखने से वहां वास्तु दोष उत्पन्न होता है, जिससे घर में हमेशा के लिए दरिद्रता का वास हो जाता है।
हर रोज रात्रि में देर तक जागने और सुबह देर से उठने से भी शनि और चंद्रमा का दुष्प्रभाव आने के कारण घर में दरिद्रता आने लगती है।
घर मे छोटी-छोटी बातों पर आपसी कलह के कारण भी घर की आर्थिक स्थिति दिन प्रतिदिन खराब होने लगती है।
घर मे इधर-उधर गन्दे कपड़ों का होना तथा टूटी फूटी चीजों को जमा करके रखने से भी मां लक्ष्मी नाराज होती हैं।
खासतौर पर अपनी पत्नी का अपमान करने से मां लक्ष्मी आपके घर का रास्ता ही भूल जाती हैं और आपको धन के लिए दर-दर भटकना पड़ता है।
भगवान लक्ष्मीनारायण जी को इस प्रकार करें प्रसन्न ।
सुबह जल्दी उठकर नहा धोकर साफ कपड़े पहनें।
गेहूं के आटे का एक दीया बनाएं।
दीए में कलावे की बाती के साथ देसी घी और देसी कपूर रखें।
श्री लक्ष्मी नारायण जी के सामने यह दीया जलाएं।
ॐ ह्रीं श्रीं महालक्ष्मये नमः मन्त्र का 108 बार लाल आसन पर बैठकर पाठ करें।
अपना मुंह उत्तर दिशा की तरफ रखे और रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें।
अपने घर मे अन्न, धन और बरकत के लिए प्रार्थना करें।
मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने का महामंत्र-
शुक्ल पक्ष के शुक्रवार के दिन शाम के समय स्नान करके एक लाल आसन पर बैठें और अपना मुंह उत्तर या पूर्व दिशा की तरफ रखें।
अब अपने सामने एक सवा मीटर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर श्री लक्ष्मी नारायण जी की फोटो स्थापित करें और गाय के घी का दीया जलाएं।
एक शुद्ध स्फटिक की माला से ॐ दारिद्रध्वंसनी नमः मंत्र का 5 माला जाप करें।
जाप के बाद भगवान लक्ष्मीनारायण को गुलाब का इत्र अर्पण करें और उसी इत्र को हर रोज इस्तेमाल करें1
जरूरतमंद लोगों को साबुत चावल की खीर जरूर बाटें।
मां कालरात्रि की आराधना करते समय रखें इन बातों का ध्यान
15 Feb, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
देवी का सातवां स्वरूप मां कालरात्रि का है। मां कालरात्रि का रंग काला है और ये त्रिनेत्रधारी हैं। मां कालरात्रि के गले में कड़कती बिजली की अद्भुत माला है। इनके हाथों में खड्ग और कांटा है। मां कालरात्रि को शुभंकरी भी कहते हैं। संसार में व्याप्त दुष्टों और पापियों के हृदय में भय को जन्म देने वाली मां हैं मां कालरात्रि। मां काली शक्ति सम्प्रदाय की प्रमुख देवी हैं। इन्हें दुष्टों के संहार की अधिष्ठात्री देवी भी कहा जाता है।
मां काली की महिमा
शक्ति का महानतम स्वरूप महाविद्याओं का होता है। दस महाविद्याओं के स्वरूपों में मां काली प्रथम स्थान पर हैं। इनकी उपासना से शत्रु, भय, दुर्घटना और तंत्र-मंत्र के प्रभावों का समूल नाश हो जाता है। मां काली अपने भक्तों की रक्षा करते हुए उन्हें आरोग्य का वरदान देती हैं।
शनि ग्रह शांत
ज्योतिष में शनि ग्रह का संबंध मां कालरात्रि से माना जाता है।ऐसी मान्यता है कि शनि की समस्या में इनकी पूजा करना अदभुत परिणाम देता है. मां कालरात्रि के पूजन से शनि का प्रभाव कम होता है और साढ़े साती का असर नहीं होता।
मां काली की पूजा के नियम-
मां काली की पूजा दो प्रकार से होती है. पहली सामान्य पूजा और दूसरी तंत्र पूजा।
सामान्य पूजा कोई भी कर सकता है, लेकिन तंत्र पूजा बिना गुरू के संरक्षण और निर्देशों के नहीं की जा सकती।
मां काली की उपासना का सबसे उपयुक्त समय मध्य रात्रि का होता है।
इनकी उपासना में लाल और काली वस्तुओं का विशेष महत्व होता है।
शत्रु और विरोधियों को शांत करने के लिए मां काली की उपासना अमोघ है।
मंत्र जाप से ज्यादा प्रभावी होता है मां काली का ध्यान करना।
इन वस्तुओं से बढ़ता है आपसी प्रेम
15 Feb, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
कुछ वस्तुएं ऐसे होती है जो बेहद शुभ होती हैं और आपसी प्यार बढ़ाती हैं। दैनिक जीवन में इनके उपयोग से आपका प्रेम दिन प्रतिदिन बहुत ज्यादा बढ़ने लगेगा। ये वस्तुए और इनका प्रयोग इस प्रकार करें।
प्रेम बढ़ाने वाली 7 वस्तुएं-
गुलाबी रंग
गुलाबी रंग को हमेशा से प्रेम का रंग माना जाता है परन्तु गुलाबी रंग जितना गाढ़ा होगा उतना ही प्रेम के नजदीक होगा जितना हल्का होगा, उतना ही प्रेम को कम करेगा। अगर प्रेम को बेहतर करने के लिए गुलाबी रंग इस्तेमाल करना है तो परदे, चादर और कपड़ों में करना चाहिए। दीवारों का रंग गुलाबी करने से प्रेम से ज्यादा भोग का भाव पैदा होता है। प्रेम संबंधों को बेहतर करने के लिए गुलाबी रंग के कपडे उपहार में देना सबसे उत्तम होगा।
हल्दी
हल्दी की साबुत गांठ बृहस्पति से संबंध रखती है। जन्म कुंडली में बृहस्पति ठीक अवस्था में ना होने के कारण विवाह में काफी परेशानी आती है और प्रेम की कमी होती है। 7 हल्दी की साबुत गांठे लें और उन्हें पीले धागे से बांध लें। इन हल्दी की गांठों को दाएं हाथ में लेकर 7 बार भगवान विष्णु के मंत्र ॐ नमो भगवते वासुदेवाय का जाप करें। फिर इन हल्दी की गांठों को भगवान विष्णु के मंदिर में अर्पण कर दें। ऐसा करने से आपके दांपत्य जीवन में मधुरता आएगी और आपको आपका सच्चा प्यार जरूर मिलेगा।
एमीथिस्ट
एमीथिस्ट एक हल्के बैगनी रंग का पारदर्शी पत्थर है। बिना सलाह के हालांकि एमीथिस्ट को धारण तो नहीं कर सकते परन्तु एमीथिस्ट को अपने पास रख सकते हैं और इसकी बनी हुई चीजें उपहार में दे सकते हैं। अगर ये भय हो कि आपका प्रेम आपसे दूर हो जाएगा तो एमीथिस्ट जरूर अपने पास रखना चाहिए। एमीथिस्ट की बनी हुई चीजें बेडरूम में रखने से दाम्पत्य जीवन भी सुखमय हो जाता है।
सन्तरा और लीची
संतरा और लीची प्रेम बढ़ाने वाले फल माने जाते हैं1 आम तौर पर ये फल शुक्र और चन्द्र को मजबूत कर देते हैं. अगर जीवन में प्रेम की कमी महसूस होने लगे तो इन फलों को खाना चाहिए, प्रेम का भाव मजबूत हो जाता है। दम्पत्तियों को लीची जरूर खानी चाहिए, इससे उनका आपसी विश्वास मजबूत होता है। प्रेम संबंधों में संतरा उपहार में दें, परन्तु लीची कभी उपहार में न दें
रजनीगंधा
रजनीगंध के फूल प्रेम के अदभुत प्रतीक माने जाते हैं. सामान्य दशाओं में इन फूलों को देने से सम्बन्ध मजबूत होते हैं। इन फूलों को कभी भी प्लास्टिक या किसी अन्य आवरण से ढंककर नहीं देना चाहिए। अगर प्रेमी को उपहार में देना हो तो इसे गुलाबी फीते से बांधकर दें. अगर जीवनसाथी को उपहार में देना हो तो सुर्ख लाल फीते से बांधकर उपहार में दें। इन फूलों को हमेशा अपने बेडरूम में रक्खें अन्यथा प्रेम के बिखरने का खतरा रहता है।
बादाम
सारे मेवों में बादाम प्रेम से सम्बन्ध रखने वाला मेवा माना जाता है। प्रेम सम्बन्ध जोड़ने के लिए बादाम और शहद या बादाम और मिसरी का उपहार देना चाहिए. पति-पत्नी के बीच सम्बन्ध बेहतर बने रहें, इसके लिए एक दूसरे को बादाम खिलाना चाहिए। कभी भी बादाम को निगलने का बिना अच्छी तरह चबाये हुये नहीं खाना चाहिए, अन्यथा वाणी की कठोरता बढ़ सकती है। अगर प्रेम में बाधा आ रही हो तो एक शीशी शहद में एक बादाम डुबा कर रख देना चाहिए।
गुलाब के फूल
गुलाब के फूल को भी प्रेम का प्रतीक माना जाता है। गुलाब का फूल भी एक दूसरे को देने से आपसी प्रेम बढ़ता है। यदि प्रेम में आप बार-बार असफल हो रहे हैं तो दो लाल गुलाब के फूल शुक्रवार के दिन लक्ष्मी नारायण मंदिर में जरूर अर्पण करें ऐसा करने से आपको प्रेम में सफलता जरूर मिलेगी।
नारियल चढ़ाकर पा सकते है बाप्पा से मनचाहा वरदान
15 Feb, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
बाप्पा के आपने कई रुप देखे होंगे, लेकिन मध्यप्रदेश के महेश्वर में गजानन की गोबर की मूर्ति है। ये मूर्ति हजारों साल पुरानी है, कहते हैं यहां नारियल चढ़ाकर पा सकते है बाप्पा से मनचाहा वरदान।
माथे पर मुकुट, गले में हार, और खूबूसरत श्रृंगार बाप्पा के इस मनमोहक रूप में छिपा है। भक्तों के हर दुख दर्द का इलाज। गणपति का ये रुप मन मोह लेता है और हैरान भी करता है क्योंकि यहां गणपति को गोबर गणेश के नाम से पुकारते हैं भक्त। मध्य प्रदेश के नीमाड़ क्षेत्र में माहेश्वर कस्बे में बाप्पा देते हैं बड़े ही भव्य रूप में दर्शन। माहेश्वर में महावीर मार्ग पर बनी गणपति की ये प्रतिमा गोबर और मिट्टी से बनी है जिसमें एक बड़ा हिस्सा गोबर का है।
आमतौर पर पूजा-पाठ में हम गोबर के गणपति बनाकर उनकी पूजा अर्चना करते हैं। मिट्टी और गोबर की मूर्ति में पंचतत्वों का वास माना जाता है और खासकर गोबर में तो मां लक्ष्मी साक्षात वास करती हैं। इसलिए गोबर गणेश मंदिर में आने वाले भक्तों की मान्यता है कि यहां दर्शन करने से भक्तों को भगवान गणेश के साथ मां लक्ष्मी का भी आशीर्वाद मिलता है।
मंदिर में बाप्पा अपनी दोनों पत्नियों रिद्धि-सिद्धि संग देते हैं दर्शन और करते हैं भक्तों का कल्याण। भक्तों का भी मानना है कि यहां आने से गणपति सभी भक्तों की इच्छा पूरी कर देते हैं। यही वजह है कि भक्त यहां उल्टा स्वास्तिक बनाकर भगवान तक पहुंचाते हैं। अपनी फरियाद और मनोकामना पूरी होने के बाद यहां आकर सीधा स्वास्तिक बनाना नहीं भूलते।
महेश्वर के महावीर मार्ग पर स्थित गोबर गणेश मंदिर में दर्शन के लिए साल भर भक्तों का तांता लगा रहता है। विशेषकर गणेश उत्सव और दीपावली के मौके पर मंदिर बड़ी संख्या में भक्तों की भीड़ बाप्पा के दर्शनों के लिए उमड़ती है।
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (15 फ़रवरी 2024)
15 Feb, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- समय विफल होगा, कार्यगति में बाधा, चिन्ता बनेगी, व्यर्थ भ्रमण होगा।
वृष राशि :- भाग्य का सितारा प्रबल होगा, बिगड़े कार्य अवश्य ही बनेंगे ध्यान अवश्य दें।
मिथुन राशि :- इष्ट मित्रों से सुख, अधिकारियों के मेल-मिलाप से रुके कार्य बन जायेंगे।
कर्क राशि :- भाग्य प्रबल होगा, बिगड़े तथा रुके कार्य समय पर बना लें, धैर्य पूर्वक कार्य करें।
सिंह राशि :- इष्ट मित्र सुखवर्धक होंगे, कुटुम्ब की समस्यायें सुलझेंगी, स्त्री से हर्ष होगा।
कन्या राशि :- भावनायें संवेदनशील रहेंगी, कुटुम्ब की समस्यायें सुलझें, स्त्री से हर्ष होगा।
तुला राशि :- समय अनुकूल नहीं स्वास्थ्य नरम रहेगा, किसी धारणा में समय नष्ट होगा।
वृश्चिक राशि :- स्त्री शरीर कष्ट, मानसिक उद्विघ्नता, स्वभाव में असमर्थता अवश्य रहेगी।
धनु राशि :- आशानुकूल सफलता, स्थिति में सुधार तथा व्यवसायिक गति उत्तम होगी।
मकर राशि :- धन का व्यर्थ व्यय होगा, मानसिक उद्विघ्नता से हानि की संभवना होगी।
कुंभ राशि :- इष्ट मित्र सहयोगी होंगे, कार्य बनेंगे तथा कार्यगति अनुकूल अवश्य होगी।
मीन राशि :- भाग्य का सितारा प्रबल होगा, बिगड़े कार्य अवश्य ही बन जायेंगे ध्यान रखें।
न पंडित चाहिए... न देखना पड़ेगा पतरा, इन ढाई दिनों में बिना किसी से पूछे कर सकते हैं शादी
14 Feb, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन संस्कृति में मांगलिक कार्य मुहूर्त के हिसाब से किए जाते हैं. ऐसा करना सुखी जीवन समृद्ध जीवन खुशहाल जीवन के लिए अति उत्तम माना जाता है. कभी-कभी मुहूर्त के फेर में कार्य लंबे समय के लिए टल भी जाते हैं, लेकिन साल में ढाई दिन का मुहूर्त ऐसा होता है जिसमें आपको पोथी पत्रा पंचांग देखने की आवश्यकता नहीं होती है. यह अबूझ मुहूर्त होता है और इसमें कोई भी शुभ कार्य मांगलिक कार्य बिना रोक-टोक कर सकते हैं. शादी विवाह जैसा कार्य भी बिना पंडित के पूछे इस दिन कर सकते हैं या कहें कि जो 16 संस्कार जन्म से लेकर मृत्यु तक के बताए गए हैं वह सभी कर सकते हैं. इस ढाई दिन के मुहूर्त में अक्षय तृतीया ,बसंत पंचमी और दशहरा का आधा दिन होता है.
शुभ मुहूर्त में यह संस्कार होते हैं संपन्न
शुभ मुहूर्त देखकर होने वाले 16 संस्कार में गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूड़ाकर्म, विद्यारंभ, कर्णवेध, यज्ञोपवीत, वेदारम्भ, केशान्त, समावर्तन, विवाह तथा अन्त्येष्टि हैं.
ऐसे होता हैं ढाई दिन का शुभ मुहूर्त
पंडित यशो वर्धन चौबे बताते हैं कि सनातन धर्म में ढाई मुहूर्त होता है. एक मुहूर्त एक दिन का होता है अक्षय तृतीया पर जो वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीय तिथि पर पड़ती है. इसके बाद बसंत पंचमी यानी माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि एक दिन का यह पूरा मुहूर्त होता है. इस दिन विवाह संस्कार होता है. अक्षय तृतीया पर भी विवाह होते हैं. केवल दशहरा जो होता है उस दिन दोपहर के बाद आधे दिन का मुहूर्त होता है. दोपहर में 12 के बाद से ऐसा यह ढाई मुहूर्त होता है. साल भर में केवल ढाई दिन में भोजपत्र का विशेष पूजन होता है.
सरस्वती जी के बसंत पंचमी के दिन भोजपत्र उसी के फल स्वरुप अक्षय तृतीया पर भी भोजपत्र का पूजन होगा. उसी के आधे सामानुभाव में दशहरा के दिन भोजपत्र का पूजन होता है और जो भी मूलांक होते हैं वह उस दिन समाहित किए जाते हैं. सूर्य सिद्धांत के नौवें विकर्ण के अनुसार जो बल बुद्धि और विवेक है. वही समाज में आपको हर प्रकार से मान सम्मान और स्थान दिलाता है, जब मान सम्मान और स्थान तीनों मिलते हैं. तब व्यक्ति का व्यक्तित्व आने वाली पीढ़ियों को मार्ग प्रशस्त करता है.