धर्म एवं ज्योतिष
रुद्राक्ष धारण करने से पहले जानें नियम! इन 4 जगहों पर भूलकर न करें प्रयोग... होगा नुकसान
14 Feb, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
उत्तराखंड का हरिद्वार और ऋषिकेश गंगा घाटों, सिद्धपीठ मंदिरों और आश्रमों के लिए ही नहीं रत्नों और रुद्राक्ष के लिए भी मशहूर हैं. शास्त्रों और पुराणों में रुद्राक्ष धारण करने को लेकर विभिन्न लाभों के बारे में विस्तार से बताया गया है. मान्यता है कि रुद्राक्ष का निर्माण भगवान शिव के आंसुओं से हुआ है. इस कारण जो व्यक्ति रुद्राक्ष शास्त्रों में बताई गई विधि के अनुसार इसे धारण करता है, उसके शरीर से नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाती है .रुद्राक्ष धारण करने के साथ-साथ बाद में भी कुछ नियमों का पालन करना बेहद जरूरी है.क्या आप जानते हैं कि चार स्थानों पर रुद्राक्ष धारण करके बिल्कुल भी नहीं जाना चाहिए.
लोकल 18 के साथ बातचीत में ऋषिकेश में स्थित सच्चा अखिलेश्वर मंदिर के पुजारी शुभम तिवारी बताते हैं कि सनातन धर्म में रुद्राक्ष का विशेष महत्व है. माना जाता है कि रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के आंसुओं से हुई है. मान्यता है कि त्रिपुरासुर नामक एक दैत्य था, जिसे अपनी शक्ति का बहुत घमंड हो गया था. उसने भूलोक के साथ-साथ देव लोक में भी हाहाकार मचाकर रख दिया था. देवता उसे परास्त नहीं कर पा रहे थे. तब देवतागण भगवान शिव के पास इस समस्या को लेकर पहुंचे और महादेव से विनती करने लगे. देवता जब कैलाश पर्वत पर पहुंचे, तो उस समय भोलेनाथ योग मुद्रा में अपनी आंखों को बंद कर तप कर रहे थे. जब भोलेनाथ ने अपने नेत्र खोले, तब उनकी आंखों से कुछ आंसू धरती पर गिरे, जिससे रुद्राक्ष का वृक्ष उत्पन्न हुआ. जहां-जहां आंसू गिरे, वहां-वहां रुद्राक्ष के वृक्ष उग आए. इसके बाद भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर का वध किया.
क्या है रुद्राक्ष पहनने के नियम?
शुभम तिवारी बताते हैं कि सनातन धर्म में रुद्राक्ष पहनना काफी शुभ माना जाता है. इसे पहनने से आसपास की सभी नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाती है. वहीं इसे धारण करने से पहले हम कुछ चीजों का विशेष ध्यान रखना चाहिए . रुद्राक्ष को विधि अनुसार पहना जाए तो कई फायदे होते हैं लेकिन कुछ जगह हैं, जहां हमें रुद्राक्ष धारण नहीं करना चाहिए. पहली जगह है, जहां किसी की मृत्यु हुई हो. वहां रुद्राक्ष उतारकर जाना चाहिए. दूसरा जहां मांस-मदिरा का सेवन होता हो, तो वहां भी रुद्राक्ष पहनकर नहीं जाना चाहिए. तीसरा स्थान है, जहां बच्चे का जन्म हुआ हो, वहां भी इसे पहनकर नहीं जाना चाहिए. अपने शयनकक्ष में सोने जाने के समय भी रुद्राक्ष नहीं पहनना चाहिए. उन्होंने कहा कि इन चार जगहों पर रुद्राक्ष पहनने से आपको परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है.
कैसे धारण करें रुद्राक्ष?
रुद्राक्ष को अमावस्या, पूर्णिमा, श्रावण मास के सोमवार, शिवरात्रि और प्रदोष के दिन पहनना शुभ माना जाता है. इसे पहनने से पहले दूध से धोकर शुद्ध कर लें और फिर उसमें सरसों का तेल जरुर लगाएं. उसके बाद भगवान शिव की पूजा-अर्चना करें और उनके समक्ष इसे पहनने के उद्देश्य को रखें और फिर उसे धारण कर लें.
बसंत पंचमी के दिन इस मंदिर में भगवान शिव को लगाया जाता है मीठे चावलों का भोग
14 Feb, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
माघ महीने की शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाने वाला बसंत पंचमी (Basant Panchami 2024) का त्योहार हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है. इस बार यह पर्व 14 फरवरी (बुधवार) को मनाया जाएगा. इसे बसंत ऋतु के आगमन के रूप में भी मनाया जाता है. इस दिन पीले वस्त्रों को धारण करना शुभ माना जाता है. वहीं बसंत पंचमी के अवसर पर मंदिरों में कई तरह के अनुष्ठान पूजा अर्चना होती है. उत्तराखंड के पौड़ी जिले में स्थित श्रीनगर गढ़वाल के पौराणिक सिद्धपीठ कमलेश्वर महादेव मंदिर में विशेष पूजा अर्चना के साथ भगवान शिव को मीठा भात (चावल) खिलाने का विधान है. चारधाम यात्रा मार्ग के मुख्य पड़ाव श्रीनगर में स्थित कमलेश्वर महादेव मंदिर स्थानीय लोगों के साथ-साथ बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं की भी आस्था का प्रमुख केन्द्र है. यहां हर वर्ष मकर संक्रांति और बसंत पंचमी पर महादेव को विशेष भोग लगाया जाता है.
कमलेश्वर महादेव मंदिर के महंत आशुतोष पुरी ने कहा कि सिद्धपीठ कमलेश्वर महादेव मंदिर में बसंत पंचमी के शुभ अवसर पर प्रत्येक वर्ष मीठे भात का भोग लगाया जाता है. पुराने समय से यह प्रथा चली आ रही है. मकर संक्रांति पर भगवान शंकर को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है. उन्होंने कहा कि बसंत पंचमी के अगले दिन यानी 15 फरवरी को कमलेश्वर महादेव मंदिर में घृत कमल का अनुष्ठान होगा, जिसमें भगवान शिव की काम शक्ति जागृत करने के लिए भव्य अनुष्ठान किया जाएगा.
तारकासुर से परेशान देवों ने किया था शिव का आह्वान
मान्यताओं के अनुसार, तारकासुर राक्षस के अत्याचार से पीड़ित सभी देवता भगवान शिव को दूसरे विवाह के लिए मनाने की कोशिश करते हैं, लेकिन भोलेनाथ ध्यान अवस्था में लीन थे. जिसके बाद कामदेव उनकी साधना भंग कर देते हैं. सभी देवता शिव को विवाह के लिए मनाते हैं. मंदिर के महंत के अनुसार कमलेश्वर मंदिर में ही महादेव को तारकासुर के अत्याचारों के बारे में बताया गया था. साथ ही उनकी काम शक्ति जागृत करने के लिए अनुष्ठान किया गया था.
बद्रीनाथ के कपाट खुलने की तिथि होगी तय
देवभूमि उत्तराखंड में बसंत पंचमी का विशेष महत्व है. इस दिन चार धामों में से एक बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने की तिथि तय की जाती है. टिहरी गढ़वाल स्थित राजमहल में पंचांग गणना के बाद बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने के दिन का निर्धारण होता है.
शादी के लिए परेशान हैं! इस मंदिर में अमावस्या पर करें शिवलिंग की पूजा, जल्द मिलेगा फल
14 Feb, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भोले भंडारी के उपासकों में बड़ी तादाद महिलाओं की होती है. कुंवारी लड़कियां अच्छे वर की मन्नत के साथ शिव की आराधना करती हैं. विवाहित स्त्रियां पति की लंबी उम्र की कामना के साथ उपवास रखती हैं. वैसे तो हिंदुस्तान में लाखों शिव मंदिर हैं लेकिन बीकानेर में एक ऐसा मंदिर है जहां सिर्फ खड़े होकर शिवलिंग की पूजा की जाती है. मान्यता है ऐसा करने से जल्दी शादी हो जाती है.
हम बात कर रहे हैं बीकानेर से 20 किलोमीटर दूर रिडमलसर पुरोहित सागर गांव की. यहां प्रसिद्ध डूंगरेश्वर महादेव मंदिर है. इस मंदिर में स्थित शिवलिंग जमीन से पांच फीट ऊपर है. यहां लोग खड़े होकर ही पूजा करते हैं.
जल्दी शादी करना है तो अमावस्या पर आएं
इस मंदिर का कुंवारों में खास महत्व है. कहते हैं यहां पूजा करने वाले की मुराद पूरी होती है और उसकी जल्दी शादी हो जाती है. मंदिर पुजारी विकास सेवग ने बताया यह मंदिर करीब 200 साल पुराना है. इसे महाराजा डूंगर सिंह ने बनवाया था. मंदिर की स्थापना फाल्गुन महीने में की गयी थी. फिर महाराजा के पुत्रों ने इस मंदिर का बार बार जीर्णोद्धार कराया. यहां अमावस्या पर पूजा का महत्व है. अगर किसी की शादी नहीं हो रही या टूट रही है तो यहां अमावस्या पर पूजा करते हैं. उनकी मनोकामना पूरी होती है. यह मंदिर खड़ी पूजा पद्धति के लिए बनाया गया है.
एक ही मंदिर में है 25 शिवलिंग
पुजारी विकास सेवग ने बताया वो चौथी पीढ़ी के पुजारी हैं. इस मंदिर में 25 शिवलिंग हैं. मां भगवती की भी प्रतिमा यहां है जो ललिता कुमारी के नाम से श्री यंत्र की अधिपति देवता हैं. इस मंदिर परिसर में मां कालिका का मंदिर है. इसमें भी त्रिपुरा भैरव सुंदर का मंदिर है. यहां भी हर मनोकामना पूरी होती है. मंदिर में शनिवार को सात फल, एक नारियल चढ़ाते ने की परंपरा है. कहते हैं ऐसा करने से मनोकामना पूरी होती है.
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (14 फ़रवरी 2024)
14 Feb, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- बेचैनी उद्विघ्नता से बचियें, समय पर सोचे कार्य अवश्य ही होवेंगे।
वृष राशि :- चिन्तायें कम होंगी, सफलता के साधन जुटायें, तथा अचानक लाभ होवेगा।
मिथुन राशि :- सफलता के साधन जुटायें, व्यावसायिक क्षमता में वृद्धि अवश्य ही होवेगी।
कर्क राशि :- व्यर्थ धन का व्यय, समय व शक्ति नष्ट होवे, विघटनकारी तत्व परेशान करेंगे।
सिंह राशि :- भोग ऐश्वर्य से स्वास्थ्य नरम हो, विरोधी वर्ग परेशान अवश्य ही करेंगे।
कन्या राशि :- धन समय नष्ट हो, क्लेश अशांति यात्रा से कष्ट अवश्य ही होवेगा।
तुला राशि :- परिश्रम से सफलता के साधन अवश्य ही जुटाये कार्य बाधा से परेशानी होगी।
वृश्चिक राशि :- चोट आदि से बचिये, क्लेश व अशांति के रोग अवश्य ही बनेंगे, ध्यान रखें।
धनु राशि :- भाग्य का सितारा साथ देगा किन्तु मानसिक क्लेश व अशांति बनेगी।
मकर राशि :- परिश्रम विफल हो मानसिक उद्विघ्नता व्यय तथा यात्रा में कष्ट होगा।
कुंभ राशि :- आकस्मिक घटना से चोट आदि का भय होगा, कार्य का ध्यान अवश्य रखें।
मीन राशि :- अधिकारियों से कष्ट इष्ट मित्र सहायक होंगे, तनाव अवश्य ही बनेगा।
चावल चढ़ाने से भी प्रसन्न होते हैं भोलेनाथ, कब और कैसे लगाएं भोग
13 Feb, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हमारे सनातन धर्म में चावल का बहुत ही खास महत्व बताया गया है. चावल के बिना हर पूजा अधूरी मानी जाती है. ज्योतिषाचार्य पं पंकज पाठक के अनुसार कई बार मेहनत करने के बाद भी हमें उसका फल प्राप्त नही होता है. धन कमाने के लिए हम कई प्रकार के प्रयास करते है. इसी कारण कुछ सरल और आसान उपाय बताएं गए है. इन उपायों को करने से हमें सारी परेशानी से उभर सकते है. हमारे धर्म ग्रंथों मे चावल (अक्षत) को बहुत पवित्र माना गया है. सनातन धर्म में अक्षत के बिना किसी भी तरह का पूजा-पाठ पूरी नहीं होती है. इसलिए घर के पूजन कक्ष में चावल हमेशा मौजूद होते है.
भगवान शंकर को पूजन में हमेशा हल्दी चढ़ाई जाती है. इसी तरह भगवान गणेश जी को तुलसी चढ़ाना मना है. वैसे ही देवी माँ दुर्गा को दूर्वा नही चढ़ाई जाती है. वहीं भगवान विष्णु पर चावल नही चढ़ाया जाता है. आईए चावल (अक्षत) से जुड़े कुछ उपाय जानते है जिनको करने से माँ लक्ष्मी की कृपा आपको प्राप्त होगी.
भगवान शिव को प्रसन्न करें
हमारे धर्म ग्रंथों में इस बात का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है. अगर शिवलिंग पर अक्षत अर्पित करते हैं, तो इससे भगवान बोलेनाथ अपने भक्तों से प्रसन्न होते हैं. इसके साथ ही कभी भी भगवान शंकर को टूटे चावल अर्पित न करें. इसके साथ ही अगर प्रतिदिन भगवान शंकर को अक्षत समर्पित करते हैं, तो जीवन के हर एक कष्ट से निजात मिलेगी. आप खास कर शुक्ल पक्ष या माह की किसी भी चतुर्थी को चावल के दाने शिव जी को चढ़ाते है, तो आपको इसका उत्तम फल प्राप्त होगा.
कुमकुम और अक्षत का महत्व
सनातन धर्म में कुमकुम और अक्षत का महत्व भी बताया गया है. सभी देवी देवता को चावल भी चढ़ाया जाता है. लेकिन बिना कुमकुम लगाए भी सनातन धर्म में कुछ भी सफल नही माना गया है. भगवान को अक्षत के साथ कुमकुम चढ़ाया जाता है तो यह पुण्य से भरा माना गया है. इसके साथ ही पूजन पाठ में व्यक्ति को कुमकुम के साथ अक्षत का टीका लगाया जाता है.
ऐसा करने से बचे
ज्योतिषाचार्य के अनुसार बताया गया कि हमारे धर्म शास्त्र में देवी-देवता या फिर पूजा में टूटे हुए चावल को कभी नहीं चढ़ाना चाहिए. दरअसल अक्षत को पूर्णता का प्रतीक माना गया है. इसलिए आप खंडित चावल को कभी भगवान को समर्पित न करें. इसका ध्यान जरूर रखे. अगर आप ऐसा करते है तो ये अशुभ माना जाता है. आप रोजाना चावल के कुछ दाने पूजा में चढ़ाते है तो इससे आपके धन में वृद्धि होती है.
अल्मोड़ा का इच्छा पूरी करने वाला मंदिर, स्थापित है नवरत्नों से बना शिवलिंग! लगता है भक्तों का तांता
13 Feb, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
देवभूमि उत्तराखंड में ऐसे कई प्राचीन मंदिर हैं, जिनकी अपनी-अपनी मान्यताएं हैं. अल्मोड़ा जिले में एक ऐसा ही शिव मंदिर है, जहां पर काफी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. लोगों की मान्यता है कि यहां दर्शन मात्र से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. अल्मोड़ा नगर में स्थित है रत्नेश्वर महादेव मंदिर और यह मंदिर प्राचीन काल का बताया जाता है. स्थानीय लोगों के अनुसार, यह शिवलिंग नवरत्नों से बना हुआ है. भोलेनाथ के इस मंदिर में हर सोमवार, माघ और सावन के महीने में भक्तों का तांता लगा रहता है. श्रद्धालु दूध और जल शिवलिंग पर अर्पित करते हैं.
स्थानीय निवासी जंग बहादुर थापा ने कहा कि भगवान शिव का यह मंदिर प्राचीन काल का है. इस मंदिर में नवरत्नों से बना शिवलिंग स्थापित है. मान्यता है कि इस मंदिर में वही श्रद्धालु आ सकते हैं, जिन्हें भगवान शंकर का बुलावा मिला हो. यहां पर लोगों की मनोकामना पूरी होती है. लोग बताते हैं कि उन्होंने यहां आकर जो कुछ भी भोलेनाथ से मांगा है, वह सब उन्हें मिला है. शिवलिंग स्थल के ठीक पीछे माता और भैरव के साथ हनुमान जी विराजमान हैं.
मंदिर आकर हुई संतान सुख की प्राप्ति
रत्नेश्वर महादेव मंदिर आई श्रद्धालु हंसा गुरुरानी ने कहा कि वह पिछले कई साल से इस मंदिर में आ रही हैं. उनका मानना है कि यहां पर साक्षात भोलेनाथ विराजमान हैं क्योंकि उनकी कृपा से ही उन्हें संतान सुख मिला है. पुजारी द्वारा बताई गई विधि के अनुसार उन्होंने यहां लगातार पूजा-अर्चना किया और शिवलिंग का जलाभिषेक किया. महादेव के आशीर्वाद से उन्हें संतान सुख की प्राप्ति हुई और उनके घर में सुख-समृद्धि का वास हुआ.
रत्नेश्वर महादेव मंदिर में महिला पुजारी
रत्नेश्वर महादेव मंदिर की महिला पुजारी विमला गोस्वामी ने कहा कि वहां पिछले कई साल से मंदिर में पूजा-अर्चना कर रही हैं. भगवान शिव के इस मंदिर में वह इस कदर रम चुकी हैं कि अगर वह एक दिन भी मंदिर न आएं, तो उन्हें बेचैनी होने लगती है. इस मंदिर में लोगों की कई मनोकामनाएं पूरी हुई हैं. श्रद्धालुओं की जब मनोकामना पूरी हो जाती है, तो यहां आकर वे प्रसाद चढ़ाते हैं और भंडारा आदि कराते हैं.
बसंत पंचमी पर बैद्यनाथ मंदिर में पूजा का है खास महत्व, तुरंत दर्शन के लिए इस कूपन का उठाएं लाभ
13 Feb, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
इस साल बसंत पंचमी का त्योहार 14 फरवरी को मनाया जाएगा. इस दिन पूरे देश भर में मां सरस्वती की पूजा आराधना की जाती है.वहीं देवघर में सरस्वती मंदिर मे मंदिर स्टेट और पुजारी परिवार के द्वारा सरस्वती मां की पूजा आराधना की जाएगी. देवघर में बसंत पंचमी का खास महत्व होता है. खास इसलिए क्योंकि बसंत पंचमी के दिन ही शादी से पहले का रस्म यानी तिलको उत्सव मनाया जाता है. लाखों मिथिलांचल वासी बसंत पंचमी के दिन देवघर गंगाजल लेकर पहुंचते हैं और भगवान भोलेनाथ की पूजा आराधना कर उनका तिलक चढ़ाते हैं. आम दिनों की तुलना मे उस दिन काफी ज्यादा भीड़ होती है. तो इस साल क्या व्यवस्था रहेगी जानेंगे देवघर मंदिर प्रशासन से?
देवघर बाबा बैद्यनाथ धाम के मंदिर प्रबंध रमेश परिहस्त ने लोकल 18 से कहा कि बसंत पंचमी के दिन बाबा का तिलक चढ़ता है. उस दिन लाखों मिथिलावासी बाबा भोलेनाथ का तिलक चढ़ाते हैं. मिथिलावासी अपने साथ गंगाजल, धान की बाली, शुद्ध गाय के घी और अबीर गुलाल साथ लाते हैं. बाबा भोलेनाथ के शिवलिंग के पर अर्पण करते हैं. उस दिन ज्यादा भीड़ होने के कारण व्यवस्था भी दुरुस्त रखना पड़ता है. इसके लिए मंदिर के चारों ओर अभी से ही बैरिकेडिंग किया जा रहा है. वहीं, बसंत पंचमी के दिन सवा लाख से ज्यादा श्रद्धालु जलार्पण करने का उम्मीद है.
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बसंत पंचमी के दिन यह रहेगी व्यवस्थाएं
ज्यादा भीड़ को देखते हुए बसंत पंचमी के दिन वीआईपी सेवा बंद कर दी जाती है और सूत्र बताते है कि इस साल भी वीआईपी सेवा बंद रहने वाली है. शीघ्रदर्शनम कूपन के माध्यम से श्रद्धालु पूजा अर्चना कर सकते हैं. हालांकि, बसंत पंचमी के दिन शीघ्र दर्शनम कूपन का दाम अन्य दिनों के तुलना में दोगुना होता है. यानी उस दिन आपको शीघ्रदर्शनम कूपन के लिए 500 रुपए की कीमत चुकानी होगी.
बसंत पंचमी के दिन होती है पारंपरिक पूजा:
बसंत पंचमी के दिन मिथिलावासी बाबा पर जल अर्पण के साथ अभी गुलाल भी अर्पण करते हैं और एक दूसरे को अबीर गुलाल लगाकर इस तिलकोउत्सव को मनाते है. इसके साथ ही बसंत पंचमी के दिन रात्रि में लक्ष्मी नारायण मंदिर में तिलक पूजा की जाती है जिसमें आम के नए मंजर कई तरह के भोग, अबीर गुलाल, शुद्ध घी आदि चीज अर्पण होती हैं. इसके बाद गर्भगृह में जाकर भगवान शिव के शिवलिंग के ऊपर में भी यह सब चीज अर्पण होती है.वही तब से लेकर फागुन मास की पूर्णिमा तक रोज शिवलिंग के ऊपर अबीर ग़ुलाल अर्पण किया जाता है.
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (13 फ़रवरी 2024)
13 Feb, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- बेचैनी, उद्विघ्नता से बचिये, सोचे कार्य समय पर पूर्ण होंगे, समय स्थिति का ध्यान अवश्य रखें।
वृष राशि :- सफलता के साधन जुटायें, व्यवसायिक क्षमता में वृद्धि अवश्य होगी, कार्य पर ध्यान दें।
मिथुन राशि :- चिन्तायें कम होंगी, सफलता के साधन जुटायें, व्यवसायिक क्षमता में वृद्धि होगी।
कर्क राशि :- धन का व्यर्थ व्यय, समय व शक्ति नष्ट होगी तथा कार्य विघटन अवश्य होगा।
सिंह राशि :- भोग-ऐश्वर्य में समय बीतेगा, विरोधियों से व्यर्थ टकराव होगा, समय का ध्यान रखें।
कन्या राशि :- धन व समय नष्ट होगा, क्लशे व अशांति बनेगी तथा यात्रा से कष्ट होगा।
तुला राशि :- परिश्रम से सफलता के साधन अवश्य जुटायें, कार्यगति में बाधा बनेगी ध्यान दें।
वृश्चिक राशि :- चोटादि से बचिये, क्लेश व अशांति से बचिये, कष्ट अवश्य होगा।
धनु राशि :- भाग्य का सितारा बुलन्द होगा, मेहनत कर रुके कार्य बना लें अन्यथा हानि होगी।
मकर राशि :- परिश्रम विफल होगा, चिन्ता व यात्रा, व्यवधान तथा समस्या का निदान अवश्य ढूंढ लें।
कुंभ राशि :- आकस्मिक घटना से चोटादि का भय होगा, रुके कार्य अवश्य बना लें।
मीन राशि :- अधिकारियों से कष्ट, मित्र सहायक होंगे, समय स्थिति का ध्यान रखकर कार्य करें।
भगवान राम की पूजा के बाद जरूर करें इस स्तोत्र का पाठ, सफल होंगे सारे काम, दूर होंगी परेशानियां
12 Feb, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
देश भर में राम नाम की धुन सुनाई दे रही है. 22 जनवरी 2024 का दिन इतिहास के पन्ने में दर्ज हो गया, क्योंकि इस दिन लंबे इंतजार के बाद भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा की गई. आज भी बड़ी संख्या में भक्तगण अयोध्या स्थित राम मंदिर पहुंच रहे हैं और प्रभु राम का आशीर्वाद प्राप्त कर रहे हैं. अगर आप भी चाहते हैं कि आपके ऊपर रामलला की कृपा बरसे और आपके घर में सुख-समृद्धि में इजाफा हो और आपको सभी कार्यों में सफलता मिले तो भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्ति सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा के अनुसार, आप राम रक्षा स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं. ये आपके लिए लाभकारी रहेगा.
राम रक्षा स्तोत्र का पाठ
श्री सीतारामचंद्रो देवता।
अनुष्टुप छंदः। सीता शक्तिः।
श्रीमान हनुमान कीलकम।
श्री सीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्त्रोतजपे विनियोगः।
अथ ध्यानम्:
ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपदमासनस्थं,
पीतं वासो वसानं नवकमल दल स्पर्धिनेत्रम् प्रसन्नम।
वामांकारूढ़ सीता मुखकमलमिलल्लोचनम्नी,
रदाभम् नानालंकारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डलम् रामचंद्रम॥
राम रक्षा स्तोत्रम्:
चरितं रघुनाथस्य शतकोटि प्रविस्तरम्।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ॥1॥
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम्।
जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमण्डितं ॥2॥
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तंचरान्तकम्।
स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम् ॥3॥
रामरक्षां पठेत प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम्।
शिरो मे राघवः पातु भालं दशरथात्मजः ॥4॥
कौसल्येयो दृशो पातु विश्वामित्रप्रियः श्रुति।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सलः ॥5॥
जिह्वां विद्यानिधिः पातु कण्ठं भरतवन्दितः।
स्कन्धौ दिव्यायुधः पातु भुजौ भग्नेशकार्मुकः ॥6॥
करौ सीतापतिः पातु हृदयं जामदग्न्यजित।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रयः ॥7॥
सुग्रीवेशः कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभुः।
उरु रघूत्तमः पातु रक्षःकुलविनाशकृताः ॥8॥
जानुनी सेतुकृत पातु जंघे दशमुखांतकः।
पादौ विभीषणश्रीदः पातु रामअखिलं वपुः ॥9॥
एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृति पठेत।
स चिरायुः सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ॥10॥
पातालभूतल व्योम चारिणश्छद्मचारिणः।
न द्रष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभिः ॥11॥
रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन।
नरौ न लिप्यते पापैर्भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥12॥
जगज्जैत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम्।
यः कण्ठे धारयेत्तस्य करस्थाः सर्वसिद्धयः ॥13॥
वज्रपञ्जरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत।
अव्याहताज्ञाः सर्वत्र लभते जयमंगलम् ॥14॥
आदिष्टवान् यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हरः।
तथा लिखितवान् प्रातः प्रबुद्धो बुधकौशिकः ॥15॥
आरामः कल्पवृक्षाणां विरामः सकलापदाम्।
अभिरामस्त्रिलोकानां रामः श्रीमान स नः प्रभुः ॥16॥
तरुणौ रूपसम्पन्नौ सुकुमारौ महाबलौ।
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥17॥
फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥18॥
शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम्।
रक्षःकुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघूत्तमौ ॥19॥
आत्तसज्जधनुषाविषुस्पृशा वक्ष याशुगनिषङ्गसङ्गिनौ।
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रतः पथि सदैव गच्छताम ॥20॥
सन्नद्धः कवची खड्गी चापबाणधरो युवा।
गच्छन् मनोरथान नश्च रामः पातु सलक्ष्मणः ॥21॥
रामो दाशरथी शूरो लक्ष्मणानुचरो बली।
काकुत्स्थः पुरुषः पूर्णः कौसल्येयो रघूत्तमः ॥22॥
वेदान्तवेद्यो यज्ञेशः पुराणपुरुषोत्तमः।
जानकीवल्लभः श्रीमानप्रमेयपराक्रमः ॥23॥
इत्येतानि जपन नित्यं मद्भक्तः श्रद्धयान्वितः।
अश्वमेधाधिकं पुण्यं सम्प्राप्नोति न संशयः ॥24॥
रामं दुर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम।
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नरः ॥25॥
रामं लक्ष्मणपूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुन्दरं,
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम ।
राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथतनयं श्यामलं शांतमूर्तिं,
वन्दे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम ॥26॥
रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे।
रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः ॥27॥
श्रीराम राम रघुनन्दनराम राम,
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम,
श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥28॥
श्रीराम चन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि,
श्रीराम चंद्रचरणौ वचसा गृणामि।
श्रीराम चन्द्रचरणौ शिरसा नमामि,
श्रीराम चन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥29॥
माता रामो मत्पिता रामचन्द्रः स्वामी,
रामो मत्सखा रामचन्द्रः।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालुर्नान्यं,
जाने नैव जाने न जाने ॥30॥
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे च जनकात्मज।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनन्दनम् ॥31॥
लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथं।
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये ॥32॥
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीराम दूतं शरणं प्रपद्ये ॥33॥
कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम ॥34॥
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम्।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥35॥
भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसम्पदाम्।
तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम् ॥36॥
रामो राजमणिः सदा विजयते,
रामं रमेशं भजे रामेणाभिहता,
निशाचरचमू रामाय तस्मै नमः।
रामान्नास्ति परायणं परतरं,
रामस्य दासोस्म्यहं रामे चित्तलयः,
सदा भवतु मे भो राम मामुद्धराः ॥37॥
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।
सहस्त्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥38॥
एमपी के इस मंदिर में साक्षात दर्शन देते हैं अग्नि देव! जाने हैरान करने वाली कहानी
12 Feb, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सागर की लाखा बंजारा झील के किनारे करीब 270 वर्ष पुराना वृंदावन बाग मठ मंदिर है. यहां पर करीब ढाई सौ साल से अखंड धूना जल रहा है. जिसे ढाई शताब्दि पहले गूदड़ जी महाराज ने जलाया था. तब से आज तक इस दिव्य स्थान पर इसकी आग जल रही है. मंदिर में होने वाले किसी भी कार्य के लिए अग्नि को यहीं से लिया जाता है. इस मठ में अग्नि देवता को प्रत्यक्ष देवता के रूप में पूजा जाता है.
मंदिर के महंत नरहरी दास जी महाराज ने कहा कि चाहे सुबह भगवान की रसोई जलानी हो या यज्ञ में अग्नि का प्रवेश कराना हो. इस गादी वाले धूना से ही अग्नि ली जाती है. प्रकृति के जो पंचभूत हैं, उसमें अग्नि देव प्रधान है. वहीं, इसकी देखरेख मंदिर के मुख्य महंत से लेकर सेवादार और पढ़ने वाले विद्यार्थी तक करते हैं.
इस धूना का चमत्कार है ऐसा
बताया जाता है कि पहले आग जलाने के लिए इस तरह की कोई साधन नहीं होते थे.जिससे बार-बार आग को जला लिया जाए. इसके साथ ही साधु संत भगवान की भक्ति में इतने लीन होते हैं कि वह इस तरह के कार्य कर अपना समय नहीं गवाना चाहते. ऐसे ही एक गूदड जी महाराज ने एक बार आग जलाई उस समय बरसात का मौसम था तो उन्होंने जब तक बारिश होती रही, तब तक आग को बुझने ही नहीं दिया. इसके बाद जब तक महाराज जीवित रहे तो यहां पर निरंतर इस कुंड में आग जलने की व्यवस्था होती रही. महाराज का देवलोक गमन होने के बाद जितने भी महंत यहां पर आए तो उन्होंने इस परंपरा को बनाए रखा. यही वजह है कि यहां कभी लकड़ी लगाकर लौ निकलती है तो कभी इस कुंड में धधकते हुए अंगारे दिखाई देते हैं.इसमें विराजमान राम दरबार 275 साल पुराना है, जिसकी स्थापना 1748 में इस मठ के पहले महंत गूदणजी महाराज ने कराई थी. वर्तमान 10वें गादी महंत के रुप में नरहरिदास महाराज विराजमान है. यहां पर गज परंपरा भी जो 112 सालों से चली आ रही है, इसके लिय 4 पीढ़ियों से मंदिर में हाथी हैं.
बसंत पंचमी पर करें बादाम की माला का अचूक उपाय, चट मंगनी पट ब्याह के बनेंगे योग!
12 Feb, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
बसंत पंचमी पर ज्ञान की देवी मां सरस्वती की पूजा की जाती है. इस दिन हिंदू धर्म के 16 में से 14 संस्कार पूर्ण कराए जाते हैं. इस दिन श्रेष्ठ मुहूर्त होता है. ऐसे में अगर किसी जातक के विवाह में कोई परेशानी आ रही है तो माता सरस्वती का मात्र एक उपाय शादी का संयोग बना सकता है. इसके लिए आपको बादाम की जरूरत पड़ेगी. साथ ही मां सरस्वती की एक ऐसी प्रतिमा तलाशनी होगी, जो किसी ऊंचे आसन पर बैठी हों, लेकिन प्रतिमा के पांव जमीन पर न छू रहे हों.
सागर के इतवारा बाजार में स्थित सरस्वती मंदिर के पुजारी पंडित यशोवर्धन चौबे बताते हैं कि बसंत पंचमी के दिन 108 मनकों वाली बादाम की माला बनाकर मां सरस्वती की प्रतिमा (जो बैठी हो पर पांव भूमि पर न हों) को सच्चे मन से समर्पित करनी होगी. इसके बाद रुकावटों को दूर करने के लिए मां से प्रार्थना करनी होगी. मान्यता है कि इस उपाय के बाद ‘चट मंगनी पट विवाह’ के योग बनेंगे. पंडित जी ने बताया कि इस उपाय का उल्लेख सोनक कल्प नाम की संहिता में भी मिलता है.
दूर होंगी शादी की रुकावटें
संहिता के अनुसार, बादाम की माला का उपाय विवाह संस्कार के लिए है. कई जातकों के विवाह में कई प्रकार की रुकावटें आती हैं. जैसे कुंडली नहीं मिल रही है, नाड़ी दोष हो जा रहा है, वर्ण विकास नहीं हो रहा, घर मैत्री नहीं आ रही है, पितृ दोष समानुभाव में है. कई प्रकार की बातें आती हैं. उन सब का शमन करने के लिए समाधान रूप में माता को बादाम की यह माला विशेष रूप से निवेदन करते हुए समर्पित की जाती है.
यहां मिलेगी ऐसी प्रतिमा
पंडित चौबे बताते हैं कि मां प्रतिमा की ऐसी प्रतिमा जो किसी ऊंचे आसन पर बैठी मुद्रा में हो, लेकिन पांव जमीन पर छुएं, सागर स्थित सरस्वती मंदिर में है. यहां माला को समाहित करने के लिए समय और मूर्ति का विशेष ध्यान रखा जाता है. सूर्य अस्त होने से पहले इस माला को माता को समर्पित करना होता है. भूल कर भी बादाम की माला, खड़ी प्रतिमा, माता के छाया चित्र, फोटो, नामावली पर न चढ़ाएं. क्योंकि, यह श्रद्धा का विषय है, उपहास का विषय नहीं है. विश्वास का विषय है, इसलिए उपहास के रूप में माला समाहित न करें.
आचार्य के माध्यम से देवी से प्रार्थना करें
साथ ही आपका जो विषय है या मनोकामना है, वह माला लेकर मंदिर जा रहे हैं तो वहां के आचार्य या पुजारी के सामने माता-पिता की तरह विषय रखें. उन्हें बताएं कि वह क्या चाह रहे हैं और प्रार्थना करते हुए माता से निवेदन करें कि उनका कार्य पूर्ण हो जाए. पूरे श्रद्धा भाव से माता को बादाम की माला समाहित करने से अवश्य ही आपके विवाह संस्कार में जो विघ्न-बाधाएं आ रही हैं, वह दूर हो जाएंगी.
हर चीज को पवित्र करता है गंगाजल, किस बर्तन में रखना होता है शुभ
12 Feb, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म को मनाने वाले ज्यादातर घरों में गंगाजल पाया जाता है. घर की शुद्धता का कोई भी काम हो गंगाजल का उपयोग किया जाता है. वहीं, हमारे यहां गंगा को नदी के साथ-साथ मां का दर्जा दिया गया है. ऐसा कहा जाता है कि गंगा नदी में स्नान करने से इंसान के सारे पाप धुल जाते हैं. पूजा-पाठ और शुभ कार्यों में भी गंगाजल का उपयोग किया जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि गंगाजल को रखने के क्या नियम हैं? अगर आप नहीं जानते हैं तो आज हमें इस विषय में अधिक जानकारी दे रहे हैं दिल्ली निवासी ज्योतिष आचार्य पंडित आलोक पाण्ड्या कि गंगाजल को किस तरह से रखना चाहिए और किस पात्र में रखना शुभ होगा.
गंगाजल को घर में रखने के नियम
1. गंगाजल कभी खराब नहीं होता
सबसे पहली बात कि गंगाजल कभी भी खराब नहीं होता है. गंगाजल कभी भी अशुद्ध नहीं होता है. गंगा के जल की खास बात है कि इसमें कभी कीड़े नहीं लगते हैं. यही कारण है कि गंगाजल कई सालों तक बॉटल में साफ और शुद्ध रखा रहता है.
2. दूर रहती है नकारात्मकता
ऐसा कहा जाता है कि जिस घर में गंगाजल रखा रहता है वहां कभी भी निगेटिव एनर्जी का वास नहीं होता है. हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार, सूर्य या चंद्र ग्रहण के समय घर में गंगाजल का छिड़काव करने से घर शुद्ध हो जाता है.
2. दूर रहती है नकारात्मकता
ऐसा कहा जाता है कि जिस घर में गंगाजल रखा रहता है वहां कभी भी निगेटिव एनर्जी का वास नहीं होता है. हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार, सूर्य या चंद्र ग्रहण के समय घर में गंगाजल का छिड़काव करने से घर शुद्ध हो जाता है.
4. किस बर्तन में रखना शुभ?
घर में गंगाजल को तांबे या पीतल के लोटे या बर्तन में ही भरकर रखें. प्लास्टिक की बोलत में गंगाजल को भरना ,सही नहीं माना जाता है. कभी भी गंगाजल को अपने उस घर में नहीं रखें जहां अंधेरा रहता है. इन बातों का ध्यान रखते हुए आप अपने घर में गंगाजल रखें.
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (12 फ़रवरी 2024)
12 Feb, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- व्यापार में बाधा, स्वभाव में खिन्नता तथा दु:ख, अपवाद, कष्ट अवश्य होगा।
वृष राशि :- किसी आरोप से बचें, कार्यगति मंद रहेगी, क्लेश व अशांति का वातावरण रहेगा।
मिथुन राशि :- कार्य योजना पूर्ण होगी, धन का लाभ होगा, आशानुकूल सफलता का हर्ष अवश्य होगा।
कर्क राशि :- इष्ट मित्र सुखवर्धक होंगे, कार्यगति में सुधार होगा, कार्य व्यवस्था बनी रहेगी।
सिंह राशि :- मनोबल उत्साहवर्धक होगा, कार्यगति में सुधार होगा, चिन्तायें अवश्य कम होंगी।
कन्या राशि :- मान-प्रतिष्ठा में व्यथा बनेगी, स्त्री से तथा स्त्री वर्ग से सुख-समृद्धि की स्थिति बनेगी।
तुला राशि :- अग्नि-चोटादि का भय, व्यर्थ भ्रमण, धन का व्यय, कार्य होगा, बने कार्य रुकेंगे।
वृश्चिक राशि :- तनाव, क्लेश व अशांति, मान-प्रतिष्ठा, चिन्ता, उद्विघ्नता तथा भय बना ही रहेगा।
धनु राशि :- विवादग्रस्त होने से बचिये, तनाव, क्लेश से मानसिक अशांति का वातावरण बनेगा।
मकर राशि :- धन लाभ, आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा, घर में सुख-शांति बनेगी।
कुंभ राशि :- भोग-ऐश्वर्य की प्राप्ति होगी, समय उत्साहवर्धक होगा, मानसिक शांति रहेगी।
मीन राशि :- व्यवसाय में बाधा कारक स्थिति बनेगी, मन में उद्विघ्नता रहेगी, धन हानि होगी।
व्यापार में हो रहा है नुकसान और घर में है क्लेश, तो गाय को खिलाएं ये खास चीज; जल्द मिलेगा लाभ
11 Feb, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिन्दू समाज में गाय को गौ माता कहा जाता है. इसके पीछे मान्यता हैं कि गाय में 33 करोड़ देवी देवताओं का वास होता है और कहा भी जाता है कि यदि आपने गौ सेवा कर ली तो आपको तीर्थयात्रा करने की भी जरूरत नहीं पड़ती, क्योंकि गौ सेवा ही नारायण सेवा है. अब बात करते हैं गाय को चारा (घास) खिलाने के फायदे.
वैसे तो गाय को रोज हरा चारा खिलाने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है, लेकिन सप्ताह के प्रति बुधवार को गाय को घास खिलाने से मनुष्य पर आए सभी संकटों का निवारण होता है. यदि आपको व्यापार या अपनी नौकरी में परेशानी आ रही हैं तो बुधवार-शुक्रवार को गाय को हरी घास खिलाकर अपनी हर समस्या से निजात पा सकते हैं.
परिवार में बनी रहेगी सुख-समृद्धि
अक्सर देखा जाता है कि परिवारों में छोटी छोटी बातों को लेकर कलेश पैदा होते हैं और व्यापार में भी नुकसान होता है तो बुधवार- शुक्रवार गाय को हरा चारा खिलाने से पूरे परिवार में समृद्धि आती है. इससे परिवार के सभी सदस्य खुश रहते हैं. व्यापार में फायदे होने शुरू हो जाते हैं.
घास खिलाने से मां अन्नपूर्णा और मां लक्ष्मी की कृपा बरसेगी
पंडित शिवनारायण चतुर्वेदी बताते हैं कि प्रतिदिन स्नान करने के बाद भगवान के दर्शन और पूजा पाठ का महत्व होता है. उसी प्रकार से स्नान करने के बाद गाय की पूजा भी अवश्य करनी चाहिए. गाय की रोज पूजा करने से सभी देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है. घर में प्रतिदिन खाना बनाने के बाद पहली रोटी के गाय के लिए निकालें. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो लोग रोज गाय माता की सेवा करते हैं उन पर मां लक्ष्मी और मां अन्नपूर्णा की कृपा बरसती है. गाय को हरा चारा खिलाने से घर में सुख-समृद्धि आती है. बुधवार और शुक्रवार के दिन विशेष रूप से हरा चारा खिलाने से सभी तरह के संकटों से मुक्ति मिल जाती है.
गाय को रोटी गुड़ खिलाने से पितृ दोष की मुक्ति
पंडित शिवनारायण चतुर्वेदी बताते हैं कि यदि मनुष्य को पितृदोष हो तो गाय को प्रतिदिन या अमावस्या को रोटी गुड़ खिलाना चाहिए, जिससे पितृदोष से मुक्ति मिलेगी. श्री चतुर्वेदी बताते हैं कि गाय की सेवा पूजा से लक्ष्मी जी प्रसन्न होकर भक्तों को मानसिक शांति और सुखमय जीवन होने का वरदान देती हैं.
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गुप्त नवरात्रि के 9 दिनों में 16 दुर्लभ संयोग...करें मां दुर्गा की पूजा, प्राप्त होंगी विशेष सिद्धियां
11 Feb, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म हर पर्व, हर व्रत का बड़ा अधिक महत्व माना जाता है. वैसे तो साल में 4 बार नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है जिसमें दो नवरात्रि काफी प्रचलित है और दो नवरात्रि गुप्त नवरात्रि के नाम से जाना जाता है. माघ माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से गुप्त नवरात्रि की शुरुआत होती है. जिसमें देवी मां के 10 महाविद्याओं की गुप्त रूप से साधना की जाती है.
धार्मिक मान्यता के अनुसार तंत्र विद्या सीखने वाले जातक गुप्त नवरात्रि में तंत्र साधना करते हैं. इस वर्ष माघ माह की गुप्त नवरात्रि आज यानी 10 फरवरी 2024 से प्रारंभ हो गई है. इसका समापन 18 फरवरी 2024 को होगा. सनातन धर्म में माघ माह की गुप्त नवरात्रि का विशेष महत्व बताया गया है तो वहीं ज्योतिष गणना के अनुसार इस गुप्त नवरात्रि में 9 दिनों में कई अद्भुत संयोग का निर्माण भी हो रहा है. इस दौरान मां दुर्गा की पूजा आराधना पाठ करने से जातक को शत्रु, रोग, दोष, आर्थिक संकट से छुटकारा भी मिलेगा.
गुप्त नवरात्रि में ग्रहों का अद्भुत संयोग
अयोध्या के ज्योतिषी पंडित कल्कि राम बताते हैं कि गुप्त नवरात्रि का शुभारंभ हो गया है. ज्योतिष गणना के अनुसार गुप्त नवरात्रि के 9 दिनों में 16 शुभ योग का निर्माण भी हो रहा है. जिसमें सर्वार्थ सिद्धि योग, पुष्कर योग सिद्धि, योग साध्य योग, शुभ शुक्ला, इंद्र अमृत सिद्धि योग, शिवयोग के अलावा कुल 16 योग का निर्माण इस बार के गुप्त नवरात्रि में हो रहा है. इस दौरान माता दुर्गा की सुबह-शाम विधि विधान पूर्वक पूजा आराधना करने से जीवन में आ रही तमाम तरह की विपत्तियों से मुक्ति मिलेगी.
गुप्त नवरात्रि की 10 महाविद्याएं
ज्योतिषी पंडित कल्कि राम बताते हैं कि गुप्त नवरात्रि में 10 महाविद्याओं की पूजा आराधना करने का विधान है. जिसमें काली, तारा, छिन्नमस्ता, षोडशी, भुवनेश्वरी, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी व कमला शामिल है. इन देवियों को दस महाविद्या कहा जाता है.. इनका संबंध भगवान विष्णु के दस अवतारों से हैं. मान्यता है कि देवी मां कि इन 10 महाविद्याओं की पूजा करने से मनुष्य को विशेष सिद्धियां प्राप्त होती हैं.