धर्म एवं ज्योतिष
मंदिर से भूलकर भी वापस न लाएं खाली लोटा, फायदे की जगह हो सकता है बड़ा नुकसान
11 Feb, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिन्दू धर्म को मानने वाले लोगों में मूर्ति पूजा का विशेष महत्व है. सभी तरह की पूजा में नियम होते हैं. पूजा पाठ के दौरान कई बाद जाने अनजाने में छोटी-छोटी गलतियां हो जाती है. ऐसा होने से अनेकों प्रकार की समस्याएं सामने आने लगती है. ऐसे में पूजा करने को लेकर कुछ बातों के बारे में जानना बेहद ज़रूरी है. तो चलिए जानते हैं दिल्ली निवासी ज्योतिष आचार्य पंडित आलोक पाण्ड्या से कि मंदिर से घर लौटते समय कौन सी ऐसी गलतियां हैं, जिन्हें करने सी बचना बेहद ज़रूरी है, नहीं तो कई तरह की परेशानी हो सकती है.
मंदिर में पूजा के बाद रखें इन बातों का ध्यान
– मंदिर में पूजा करने जाते समय घर से जल का भरा हुआ लोटा लेकर जाना चाहिए. मंदिर में स्थित पीपल के पेड़ में जल अर्पित करना बेहद शुभ होता है. पीपल के पेड़ में जल अर्पित करते समय जल में कुछ दानें चावल के भी डाल देने चाहिए.
– मंदिर में देवी देवताओं को जल अर्पित करने के बाद कभी भी ख़ाली लोटा लेकर घर नहीं आना चाहिए. मान्यता है कि ऐसा करने से घर की तरक्की रुक सकती है. मंदिर में जल अर्पित करने के बाद थोड़ा सा जल लोटे में बचाकर रखें. यदि आप सारा जल देवी-देवताओं को अर्पित कर देते हैं, तो मंदिर में मौजूद नल से थोड़ा सा जल ज़रूर भर लें. इस जल को घर में लेकर आएं और पूरे घर में उस जल से छींटें मारे.
– वास्तु शास्त्र मानता है कि मंदिर के जल से घर में छींटे मारने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, और घर के सदस्यों की आर्थिक उन्नति होती है,और सभी बिगड़े काम बनाने लगते हैं. मंदिर के लोटे से जुड़े हुए इस नियम को नहीं मानने से घर में आर्थिक तंगी आ सकती है.
– ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मंदिर से ख़ाली लोटा लेकर घर नहीं आना चाहिए. यदि कोई व्यक्ति ऐसा करता है, तो उसके परिवार में कभी सुख शांति नहीं आती है. ऐसे व्यक्ति को अपने जीवन में नकारात्मकता का सामना करना पड़ता है.
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (11 फ़रवरी 2024)
11 Feb, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- तनाव पूर्ण वातावरण से बचिये, स्त्री शरीर कष्ट, मानसिक बेचैनी अवश्य बनेगी।
वृष राशि :- भोग-ऐश्वर्य प्राप्ति के बाद तनाव व क्लेश होगा, तनाव से बचकर चलें।
मिथुन राशि :- भोग-ऐश्वर्य, तनाव व क्लेश की स्थिति का वातावरण बनेगा, धैर्य पूर्वक कार्य करें।
कर्क राशि :- अधिकारियें का समर्थन फलप्रद होगा, भाग्य साथ देगा, बिगड़े कार्य अवश्य ही बनेंगे।
सिंह राशि :- परिश्रम सफल होगा, व्यवसायिक गति मंद होगी, आर्थिक योजना पूर्ण अवश्य ही होगी।
कन्या राशि :- कार्य व्यवसाय गति उत्तम, व्यर्थ परिश्रम तथा कार्यगति पर ध्यान अवश्य दें।
तुला राशि :- किसी दुर्घटना से बचें, चोट-चपेटादि कम हो, रुके कार्य-व्यवसाय अवश्य ही होंगे।
वृश्चिक राशि :- कार्यगति अनुकूल रहेगी, लाभांवित कार्य योजना बनेगी, बाधा आदि से बच कर चलें।
धनु राशि :- प्रतिष्ठा के साधन बनेंगे किन्तु लाभ की स्थिति कम, कार्य अवरोध होगा।
मकर राशि :- अधिकारी वर्ग से तनाव, क्लेश होगा, मानसिक अशांति, कार्य बनेंगे ध्यान दें।
कुंभ राशि :- मनोबल बनाये रखें, नया कार्य विचार होगा, समय स्थिति को ध्यान में रखकर कार्य अवश्य करें।
मीन राशि :- दैनिक कार्यगति उत्तम होगी, कुटुम्ब में सुख समय उत्तम बनेगा, समय का ध्यान रखें।
रानी पद्मावती ने ही नहीं, घोड़ी ने भी किया था जौहर, बड़ी मन्नत की है उसकी समाधि
10 Feb, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
राजस्थान का इतिहास शौर्य गाथाओं, बलिदान और जौहर की कहानियों से भरा पड़ा है. ये किस्से कहानियों लोग पीढ़ी दर पीढ़ी सुनाते आ रहे हैं. स्कूल कॉलेज पाठ्यक्रम में भी ये पढ़ाए जाते हैं. लोग कौतूहल से रानियों के जौहर के किस्से सुनते पढ़ते हैं. लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि राजस्थान में घोड़ी भी सती हुई थी.
राजस्थान की ऐतिहासिक घटनाओं में जौहर की अपनी अलग जगह है. चित्तौड़गढ़ की रानी पद्मावती के जौहर का किस्सा बच्चा बच्चा जानता है. युद्ध में राजा की मौत के बाद उनकी रानियां सती / जौहर करती थीं. लेकिन नागौर के खरनाल गांव की एक अनोखी घना है. यहां एक घोड़ी के सती होने का जिक्र मिलता है.
क्या है इतिहास
खरनाल गांव के मुकेश जाजड़ा वीर तेजाजी का किस्सा सुनाते हैं. वो बताते हैं महाराज का जन्म विक्रम सवंत 1130 में खरनाल गांव में हुआ था. .जब तेजाजी अपनी अर्द्धागिनी पेमल को लेने ससुराल गऐ तो वहां पर पेमल की सहेली लाच्छा गुजरी की गायें मेयर के चोर चुरा ले गए. तेजाजी महाराज उन्हें छुड़वाने के लिए जा रहे थे. तभी रास्ते में एक सांप जलता दिखाई दिया. तेजाजी ने जब सांप को बाहर निकाला तो वो अपने पूरे रूप में आ गया और उसने तेजाजी महराज को डसने की इच्छा जता दी. तेजाजी ने वादा किया कि मैं गाय छुड़वाकर आऊंगा फिर आप मुझे डस लेना. वादे के मुताबिक गाय छुड़वाने के बाद तेजाजी नाग देवता के पास लौट आए. सांप ने उनकी जीभ पर काट लिया. तेजाजी ने वहीं प्राण न्यौंछावर कर दिऐ.
तेजाजी के साथ घोड़ी सती
मुकेश आगे किस्सा सुनाते हैं. वो बताते हैं तेजाजी के प्राण न्यौछावर करने की बात सुनकर पूरा परिवार गहरे शोक में डूब गया. उनकी पत्नी पेमल ने सती होने की तैयारी कर ली. तेजाजी की बहन बुगरी भी सती के लिए तैयार हो गयीं. उनके साथ साथ, शेरा सांवली माता, नाग देवता ने अपने प्राण न्यौंछावर कर दिऐ. तेजाजी की मौत उनकी घोड़ी लीलण भी नहीं सह पायी. वो भी तेजाजी के साथ सती हो गयी. लीलण घोड़ी की समाधि आज भी खरनाल गांव में बनी हुई है .
घोड़ी की समाधि
खरनाल गांव में वीर तेजाजी महाराज का मंदिर बना हुआ है. उनकी घोड़ी की भी गांव में तालाब के पास बनी हुई है. यहां पर ग्रामीण आज भी पूजा करते हैं.
दिलचस्प मान्यता
इसके पीछे एक दिलचस्प मान्यता है. विक्रम सवंत 1160 में तेजाजी ने वचन निभाते हुए प्राण त्याग दिऐ थे. तब नाग देवता ने उन्हें वचन दिया था सांप के कुल के किसी भी जहरीले जन्तु के काटने पर आपके नाम की पूजा या तांती बांधी जाएगी. इससे जहर नहीं चढ़ेगा और पीड़ित व्यक्ति स्वस्थ हो जाएगा. घोड़ी और तेजाजी की समाधि पर मन्नत मानते की परंपरा है.
कलयुग में लिया था भगवान विष्णु ने अवतार, सफेद नहीं नीला घोड़ा था सवारी, जानें इस रहस्यमयी मंदिर की कहानी
10 Feb, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
शूरवीरों की धरती कहे जाने वाले मेवाड़ के प्रवेश द्वार भीलवाड़ा जिले के मालासेरी डूंगरी में विष्णु के अवतार भगवान श्री देवनारायण का अवतरण हुआ था. यहां पर भगवान पहाड़ चिरकर एक कमल के फूल में अवतरित हुए थे. मान्यता है कि जब कलयुग की शुरुआत हुई, तब भगवान श्री देवनारायण ने यहां अवतार लिया और तब से जनकल्याण में लग गए. इसके बाद से गुर्जर समाज सहित कई समाज के भक्त देश और विश्व भर से यहां भगवान के दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं.
प्रभु के साथ शेषनाग और वाहन गरुण ने भी लिया था जन्म
इस जगह की सबसे खास बात यह है कि यहां भगवान शेषनाग की भी गुफा है और विष्णु के वाहन गरुड़ ने भी लीलाधर (नीले घोड़े) के रूप में यहां जन्म लिया था. कहा जाता है कि यहां की जो धरती 1111 साल पहले थी, आज भी वही प्रकृति के रूप में ढ़ली हुई है. यहां पर आने वाले तमाम भक्तों की न केवल मनोकामनाएं पूरी होती हैं, बल्कि हर दु:ख-दर्द मिट जाते हैं. भगवान श्री देवनारायण के दर्शन के लिए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी एक भक्त के रूप में यहां पहुंचे थे.
भीलवाड़ा जिले के आसींद पंचायत समिति में स्थित मालासेरी डूंगरी मंदिर के महंत हेमराज पोसवाल ने कहा कि कलयुग के प्रथम चरण में भगवान विष्णु ने विक्रम संवत 968 में मालासेरी डूंगरी में पहाड़ चीरकर कमल के फूल में देवनारायण के रूप में अवतरित हुए थे और भगवान श्री देवनारायण ने जन कल्याण के लिए सभी जातियों का उद्धार किया. आज भी पूरे देश और विश्वभर में भगवान श्री देवनारायण की गाथाएं सुनाई जाती हैं, जो अपने आप में बहुत प्रचलित है.
जानें क्या खास है इस डूंगरी में
मालासेरी डूंगरी के महंत हेमराज पोसवाल ने कहा कि भगवान श्री देवनारायण की जन्मस्थली मालासेरी डूंगरी के पत्थर किसी भी पहाड़ से नहीं मिलते हैं. यही नहीं, भगवान विष्णु का जो शेषनाग है, वह भी यहां पर उनकी गुफा भी बनी हुई है और भगवान विष्णु का वाहन गरुड़ के रूप में नीले रंग के घोड़े लीलाधर ने भी यहां जन्म लिया था.
राजस्थान के इस मंदिर में चांदी की जीभ चढ़ाने से बंद हो जाता है तुतलाना, दूर-दूर से आते हैं भक्त
10 Feb, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
बसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी मां सरस्वती की पूजा अर्चना की जाती है. मान्यता है कि शिक्षा या किसी कला से सम्बधित नये कार्य को शुरू करने के लिए मां सरस्वती पूजन शुभ होता है. सिरोही जिले से 27 किलोमीटर दूर अजारी गांव के पास मार्कंडेश्वरधाम स्थित मां सरस्वती का मंदिर है, जिसके दर्शन के लिए काफी दूर-दूर से श्रद्धालु यहां आते हैं और माता के दर्शन करते हैं.
सबसे बड़ी बात यह है कि यहां कई महान विद्वानों ने तपस्या भी की है. गुप्तकाल में निर्मित यह मंदिर कई सदियों से बुद्धि और ज्ञान का बल चाहने वालों के लिए आस्था का केंद्र रहा है, साथ ही प्रदेश में इस मंदिर की एक खास पहचान है.
मन्नत पूरी होने पर चांदी की जीभ चढ़ाते हैं श्रद्धालु
इस प्राचीन मंदिर में बसंत पंचमी के दिन विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. साथ ही दिनभर भक्तों की दर्शन के लिए भीड़ लगी रहती है. ऐसा कहा जाता है कि मार्कंडेश्वरधाम स्थित मां सरस्वती मंदिर विद्या के साधकों की आराधना स्थली है, तो वहीं इस प्रसिद्ध मंदिर से जुड़ी एक खास मान्यता है कि मंदिर में सच्चे मन से मन्नत मांगने से वाणी संबंधी विकार दूर होते हैं और बुद्धि की प्राप्ति होती है. इस वजह से तुतलाने एवं मंदबुद्धि की शिकायत पर लोग मां से मन्नत भी मांगते हैं और उसके पूरा होने पर चांदी की जीभ चढ़ाते हैं.
आइए जानते हैं कैसे हुआ इस मंदिर का नामकरण
लोगों का कहना है कि यहां बालऋषि मार्कंडेय ने यम से बचने के लिए महामृत्युंजय का जाप किया था. इसी तपोस्थली पर महाकवि कालिदास ने भी ज्ञान प्राप्त किया था. मंदिर से जुड़ी प्राचीन मान्यताओं और मां सरस्वती के इस खास दर्शनीय स्थल पर हजारों की संख्या में भक्त जुटते हैं और देवी की पूजा-अराधना करते हैं. मंदिर में मां सरस्वती की चित्ताकर्षक प्रतिमा विराजमान है. बसंत पंचमी के दिन मां का विशेष श्रृंगार किया जाता है मां सरस्वती के दर्शन करने के लिए कई मशहूर और नामी कलाकारों, कवियों और साहित्यकार भी यहां आते हैं.
मंदिर परिसर में आयोजित किए जाते हैं कार्यक्रम
माता के इस पावन स्थल पर साल भर श्रद्धालुओं का आना लगता रहता है. हजारों की संख्या में लोग यहां आते है. लेकिन बसंत पंचमी के अवसर इस धाम में एक खास रौनक रहती है. यहां बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती का मेला लगता है. साथ ही मंदिर परिसर में हवन यज्ञ के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं और प्रसाद के रूप में भक्तगण माता को काॅपी पेन चढ़ाते हैं.
महाशिवरात्रि के दिन कितनी बार करें शिवलिंग की पूजा, इस बार बन रहा खास संयोग
10 Feb, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भगवान शिव की साधना के लिए महाशिवरात्रि का पर्व बहुत ही खास माना जाता है. शिव भक्तों के लिए महाशिवरात्रि का दिन बहुत ही बेसब्री से इंतजार होता है. सावन के बाद महाशिवरात्रि का दिन ही शिवपूजन के लिए सर्वश्रेष्ठ दिन माना जाता है. महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की चार प्रहर में पूजा की जाती है. महाशिवरात्रि के दिन जो भी भक्त चार प्रहरो मे भगवान शिव की पूजा आराधना करता है. उनके जीवन में सभी तरह के कष्ट दूर हो जाते हैं. देवघर के तीर्थपुरोहित से जानते हैं कि साल 2024 में महाशिवरात्रि का व्रत कब रखा जाएगा और महाशिवरात्रि के दिन क्या खास योग का निर्माण होने जा रहा है?
देवघर बैद्यनाथधाम के तीर्थपुरोहित प्रमोद श्रृंगारी ने लोकल 18 से कहा कि साल भर में कुल 12 शिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है, जो हर माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को व्रत रखा जाता है. लेकिन महाशिवरात्रि का पर्व फागुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है. क्योंकि माना जाता है कि इसी दिन शिवलिंग की उत्पत्ति भी हुई थी. इस साल महाशिवरात्रि का व्रत 8 मार्च को रखा जाएगा. महाशिवरात्रि में चारों प्रहर में शिवलिंग की पूजा अवश्य करनी चाहिए. इससे भगवान महादेव प्रसन्न होते हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं.
कब शुरू हो रहा है चतुर्दशी तिथी
महाशिवरात्रि का व्रत फागुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को रखा जाता है. चतुर्दशी तिथि की शुरुआत 8 मार्च को रात 7बजकर 52मिनट से होने जा रहा है. इसका समापन अगले दिन यानी 9 मार्च को शाम 6 बजकर 43 मिनट मे हो रहा है. इस महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की रात के चारों प्रहर में पूजा की जाती है. इसलिए इसमें उदया तिथि न मानते हुए 8 मार्च को ही महाशिवरात्रि का व्रत रखा जाएगा.
एक साथ बन रहे है कई संयोग :
इस साल महाशिवरात्रि के दिन अमृत सिद्धि योग और सर्वार्थ सिद्धि योग का भी निर्माण होने जा रहा है. जो भी भक्त अमृत सिद्धि योग में भगवान शिव की पूजा आराधना करते हैं. पूजा के वक्त मांगी गई मनोकामना जरुर पूर्ण होती है.
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (10 फ़रवरी 2024)
10 Feb, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- मनोबल उत्साहवर्धक होगा, कार्यगति में सुधार, शुभ समाचार अवश्य ही मिलेगा।
वृष राशि :- कुछ बाधायें कष्टप्रद रखें, स्त्री शरीर कष्ट, कारोबारी बाधा, धैर्य पूर्वक कार्य करें।
मिथुन राशि :- कार्य कुशलता से संतोष, परिश्रम सफल होगा, स्त्री वर्ग से सुख अवश्य होगा।
कर्क राशि :- कुटुम्ब की समस्यायें सुलझेंगी तथा सुख-शांति में समय बीतेगा, समय का ध्यान रखें।
सिंह राशि :- परिश्रम से समय पर कार्य पूर्ण होंगे, व्यवसायिक क्षमता अवश्य ही बढ़ेगी।
कन्या राशि :- स्त्री वर्ग से हर्ष-उल्लास, आशानुकूल सफलता का हर्ष, बिगड़े कार्य बनाने का प्रयास अवश्य करें।
तुला राशि :- योजनायें पूर्ण होंगी, सफलतापूवर्क कार्य पूर्ण कर लेंगे, रुके कार्य पर ध्यान अवश्य दें।
वृश्चिक राशि :- कार्यगति उत्तम, चिन्ता कम होगी, प्रभुत्व एवं प्रतिष्ठा अवश्य ही बढ़ेगी।
धनु राशि :- आशानुकूल सफलता का हर्ष, कार्यगति उत्तम होगी, भावनायें संवदेनशील होंगी।
मकर राशि :- अधिकारी वर्ग के तनाव से क्लेश व अशांति, रुके कार्य बन ही जायेंगे ध्यान दें।
कुंभ राशि :- मनोबल बनाये रखें किन्तु हाथ में कुछ न लगे तथा नया कार्य अवश्य ही होगा।
मीन राशि :- दैनिक कार्यगति उत्तम होगी, कुटुम्ब में सुख, समय उत्तम बनेगा ध्यान अवश्य दें।
इस मंदिर में न देवी और न ही देवता, विघ्न हो तो भी संतान की होती है प्राप्ति, इनकी होती है पूजा
9 Feb, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
प्राचीन काल से ही मनुष्य का पशु-पक्षियों से रिश्ता अटूट रहा है. साथ ही हिंदू संस्कृति में पशु-पक्षियों को देवी-देवताओं के वाहन के रूप में भी स्थान मिला है. ऐसे ही साबरकांठा जिले में इन पशु-पक्षियों और इंसानों के रिश्ते को अटूट प्रतीक के रूप में भारत का एकमात्र पक्षी मंदिर स्थित है.
रोडा के मंदिर 7वीं शताब्दी के सात मंदिरों का एक समूह हैं. साबरकांठा जिले के मुख्यालय हिम्मतनगर से 15 किमी की दूरी पर स्थित रोड़ा के ये मंदिर आज भी खड़े होकर हमारे पूर्वजों की कलात्मकता और पशु-पक्षियों के प्रति उनके असीम प्रेम का वर्णन करते हैं. यहां देवी-देवताओं के प्राचीन मंदिर तो मौजूद हैं ही, एक पक्षी मंदिर भी मौजूद है. भारत का एकमात्र पक्षी मंदिर जहां हमारे पूर्वज पक्षियों की पूजा करते होंगे. ब्रिटिश सरकार ने भी इस पर ध्यान दिया है. तो इसका जिक्र उस समय के गैजेट में भी है जब गुजरात महाराष्ट्र से अलग हुआ था.
भगवान विष्णु के साथ-साथ पक्षियों की भी पूजा
यहां के सभी मंदिर कला, नक्काशी और वास्तुकला के बेहतरीन नमूने हैं. यह पक्षी मंदिर यहां शिव मंदिर, विष्णु मंदिर, नौ ग्रह मंदिर और लादेची माता मंदिर के बराबर में स्थित है. मंदिर के अंदर फिलहाल कोई मूर्ति नहीं है, लेकिन भीतरी दीवार पर उकेरी गए पशु-पक्षियों को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां भगवान विष्णु के साथ-साथ पक्षियों की भी पूजा की जाती थी. तो एक लोक परंपरा के अनुसार, यहां सबसे पहले गधेश्वर नगर था और ऐसे 125 मंदिर यहां मौजूद थे. जिनमें से केवल 7 मंदिर ही आज अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
यूं तो कई ऐसी वास्तुकलाएं हैं जो दुनिया में अनूठी हैं लेकिन रख-रखाव के अभाव में ये वास्तुकलाएं खंडहर होती जा रही हैं. यदि सरकार द्वारा यहां उचित मरम्मत करायी जाये तो निश्चित ही यह क्षेत्र पूरे गुजरात में उभरेगा. इन मंदिरों की अगर कोई विशेषता है तो वह है इनका निर्माण. यहां मंदिरों की चिनाई में चूने या किसी अन्य सामग्री का उपयोग नहीं किया गया है.
महिलाएं एक-दूसरे से नहीं टकराती
यहां निर्माण के लिए उपयुक्त पत्थरों को तैयार कर व्यवस्थित किया गया है. यूं तो यह मंदिर साबरकांठा जिले में ही मौजूद है, लेकिन जिले के ज्यादातर लोगों को इसकी जानकारी नहीं है. साबरकांठा प्रशासन और गुजरात पुरातत्व विभाग की उदासीनता के कारण ये मंदिर आज उतने लोकप्रिय नहीं हो पाये हैं जितने होने चाहिए थी. यहां बहुत से लोग आते हैं. यहां एक कुंड भी है, ईस कुंड में 900 से ज्यादा महिलाएं एक साथ बाहर जा सकती है, लेकिन कुंड का निर्माण इस तरह से किया गया है कि महिलाएं एक-दूसरे से नहीं टकराती है.
इन मंदिरों की एक और कथा यह है कि खासतौर पर लोगों का मानना है कि यहां की लादेची माता सभी लोगों की मन्नत भी पूरी होती हैं. यदि संतान प्राप्त न हो रहे हो और कोई उसमें विघ्न हो तो संतान प्राप्ति होती है. इसलिए आसपास के कई गांवों के लोग पहले बच्चे या लड़की के मन्नत के लिए यहां आते हैं और यहां भक्तों की भीड़ उमड़ती है, फिर शिवरात्रि और श्रावण महीनों में भी शिव मंदिर में भक्तों की भीड़ लगी रहती है.
भक्तों को यहां आने में काफी दिक्कत होती है
7 मंदिरों और मंदिर की नक्काशी के अलावा यहां आस्था से जुड़े भक्त भी बड़ी संख्या में आते हैं, लेकिन यहां आने का रास्ता ऊबड़-खाबड़ है, इसलिए बरसात में भक्तों को यहां आने में काफी दिक्कत होती है. इसके अलावा रात के समय बिजली नहीं रहने से श्रद्धालुओं को परेशानी का सामना करना पड़ता है. ऐसे में अगर यहां सड़क बनती है तो निश्चित रूप से यहां आने वाले लोगों को भी फायदा हो सकता है. नवग्रह मंदिर या शिव मंदिर में आने वाले श्रद्धालु या फिर विदेशी लोग भी सड़क न होने के कारण भटक जाते हैं, तो मांग है कि सड़क जल्द बनाई जाए.
माघी अमावस्या 9 फरवरी को, तीर्थ स्नान और दान करने से मिलेगा कई यज्ञ करने जितना पुण्य
9 Feb, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
इस बार की माघी अमावस्या बेहद खास रहने वाली है. इस बार माघ माह में अमावस्या तिथि 9 फरवरी दिन शुक्रवार को है. पंडितों के अनुसार शुक्रवार को आने वाली अमावस्या शुभ फल देती है. इसी कारण माघी अमावस्या के दिन पितरों के लिए श्राद्ध किया जाता है. इस दिन स्नान-दान के बाद दिनभर व्रत रखने से ग्रह दोष भी खत्म होते हैं. पूजा-पाठ करने के बाद ब्राह्मण भोजन करवाने से व्रत का पूरा पुण्य मिलता है. माघ महीने की अमावस्या पर तिल, लोहा, सोना, कपास, नमक, सात तरह के धान, भूमि और गाय का दान करने का महत्व बताया गया है.
अष्ट महादान हर तरह के पाप खत्म करने वाला और पुण्य बढ़ाने वाला होता है. इन आठ के दान से कई यज्ञ करने जितना पुण्य मिल जाता है. माघ अमावस्या को मौनी अमावस्या भी कहा जाता है. इस अमावस्या को लेकर मान्यता है कि इस दिन मनु ऋषि का जन्म हुआ था और मनु शब्द से ही इस अमावस्या को मौनी अमावस्या कहा जाता है. माघ मास व अमावस्या का धार्मिक महत्व भी इस दिन अपने पूर्वजों की पूजा कर और गरीबों को दान पुण्य करने पापों का नाश होता है. बहुत श्रद्धालु इस दिन पवित्र जल में स्नान करके व्रत भी रखते है.
शुक्रवार की अमावस्या का महत्व
पंडित घनश्याम शर्मा ने बताया कि किसी भी महीने की अमावस्या अगर शुक्रवार को पड़ती है तो ज्योतिष ग्रंथों के मुताबिक वो शुभ फल देने वाली होती है. ऐसे संयोग में किए गए स्नान- दान और पूजा-पाठ का पुण्य फल और भी बढ़ जाता है. शुक्रवार को अमावस्या का संयोग कम ही बनता है, लेकिन इस साल माघ महीने की अमावस्या पर ये शुभ योग बन रहा है. इस दिन पवित्र नदियों तीर्थों में नहाने, गौदान, अन्नदान, ब्राह्मण भोजन, कपड़े और सोने का दान करने का विशेष महत्व बताया गया है. धर्म ग्रंथों में बताया गया है कि इस दिन स्नान-दान और ब्राह्मण भोजन करवाने से पितर संतुष्ट हो जाते हैं.
एमपी में यहां है 75 साल पुराना नवग्रह मंदिर,दर्शन पूजन से होती है मनोकामना पूर्ण!
9 Feb, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मध्य प्रदेश को ऐतिहासिक मंदिरों के लिए जाना जाता है. यहां पर कई ऐसे ऐतिहासिक मंदिर है. जहां आज भी भक्त इन मंदिरों से जुड़े हुए हैं. यहां दर्शन पूजन करने के लिए इन मंदिरों में पहुंचते हैं. ऐसा ही एक मंदिर निमाड़ क्षेत्र का मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले में स्थित है. गौरी शंकर नवग्रह मंदिर करीब 75 साल पुराना है. राजस्थान के मार्बल की प्रतिमाएं यहां पर स्थापित की गई है. यहां जोशी समाज की ओर से इस मंदिर का निर्माण किया गया था.
मंदिर समिति के अध्यक्ष अरुण जोशी ने कहा कि यह मंदिर हमारे समाज के पूर्वज नारायण भोजराज जोशी और पंडित नरहरी कांडे के द्वारा बनाया गया था. यहां पर राजस्थान से प्रतिमाएं लाई गई थी. मंत्र उपचार के साथ इस मंदिर में नौ ग्रहों की स्थापना की गई थी. मंत्र उपचार के साथ जली ज्योति से यहां पर हवन यज्ञ हुआ था. इस मंदिर में आज भी सूर्य भगवान की किरण सबसे पहले शिवजी के मस्तक पर पड़ती है. जिसके बाद नंदी महाराज और शिवलिंग सहित सूर्य भगवान की प्रतिमा पर आती है.
नौ ग्रहों की है प्रतिमा
इस मंदिर में नौ ग्रहों की प्रतिमा स्थापित की गई है. यहां पर सूर्य, चंद्र मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु की प्रतिमा है. यह सभी प्रतिमाएं राजस्थान से लाई हुई है.
महाशिवरात्रि पर मेले का होता है आयोजन
इस मंदिर पर महाशिवरात्रि पर मेले का आयोजन होता है. यहां पर मध्य प्रदेश महाराष्ट्र और गुजरात से भक्त मेले में शामिल होने के लिए आते हैं. इस मंदिर पर भक्त शादी व्यापार बच्चों के लिए मन्नत मांगते हैं. यहां मन्नतें पूरी होने पर इच्छा अनुसार प्रसाद चढ़ाया जाता है.
बसंत पंचमी पर बाबा बैद्यनाथ का चढ़ेगा तिलक, मिथिला से आएंगे लड़की वाले
9 Feb, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
बसंत पंचमी का दिन सभी के लिए खास होता है, क्योंकि इस दिन कला, बुद्धि और ज्ञान की देवी माता सरस्वती की पूजा आराधना की जाती है. लेकिन, देवघर के लिए यह दिन और भी खास हो जाता है. बसंत पंचमी के दिन ही शादी से पहले तिलक की रस्म बाबा बैद्यनाथ की नगरी में मनाई जाती है.
यानी बसंत पंचमी के दिन बाबा बैद्यनाथ का तिलक चढ़ता है. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. बसंत पंचमी के दिन बाबा बैद्यनाथ की विशेष तरीके से पूजा अर्चना की जाती है. अलग तरीके का भोग भी लगाया जाता है. तो आइए जानते हैं तिलकोत्सव की परंपरा और कौन लोग बाबा बैद्यनाथ को तिलक लगाते हैं.
मिथिला वासी करते हैं तिलक
देवघर बाबा बैद्यनाथ धाम के प्रसिद्ध तीर्थ पुरोहित प्रमोद श्रृंगारी ने बताया कि महाशिवरात्रि को बाबा बैद्यनाथ की शादी का उत्सव मनाया जाता है, लेकिन उससे पहले बसंत पंचमी के दिन बाबा बैद्यनाथ का तिलकोत्सव किया जाता है. बसंत पंचमी के दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव के ऊपर आम की मंजरी, अबीर गुलाल और मालपुए का भोग लगाकर तिलोकत्सव मनाया जाता है. यह सब चीज पहले भगवान विष्णु को अर्पण की जाती है, उसके बाद भगवान शिव को चढ़ाई जाती है. यहां हरि-हर का मिलन हुआ था. भगवान विष्णु के द्वारा ही भगवान शिव के शिवलिंग की स्थापना हुई है. वहीं यह तिलकोत्सव देवघर के तीर्थ पुरोहित नहीं, बल्कि मिथिला वासी करते हैं.
जानें तिलकोत्सव की परंपरा
तीर्थ पुरोहित प्रमोद श्रृंगारी बताते हैं कि बसंत पंचमी के एक-दो दिन पहले से ही लाखों मिथिला वासी देवघर के बाबा मंदिर में तिलकोत्सव के लिए पहुंचने लगते हैं. मिथिला वासी अपने साथ खेत की धान की पहली बाली, तैयार किया गया शुद्ध घी और मालपुए साथ लाकर भगवान शिव को अर्पण करते हैं. साथ ही भगवान शिव को इस दिन अबीर और गुलाल भी अर्पण करते हैं. वहीं, एक-दूसरे को अबीर गुलाल लगाकर तिलकोत्सव की खुशियां बांटते हैं. बसंत पंचमी के दिन से ही हर रोज फाल्गुन पूर्णिमा तक भगवान शिव के ऊपर अबीर और गुलाल अर्पण होता है.
भगवान शिव और मिथिला वासी के बीच संबंध
मिथिला वासी आज से नहीं, बल्कि सदियों से इस परंपरा का निर्वहन करते आ रहे हैं. मिथिला वासी खुद को भगवान शिव का साला मानते हैं. क्योंकि, मिथिलांचल हिमालय की तराई में बसा हुआ है और मिथिलांचली अपने आप को राजा हिम की प्रजा मानते हैं. साथ ही पार्वती मां हिमालय की बेटी हैं. इसलिए मिथिला वासी अपने आप को लड़की पक्ष का मानते हैं. बसंत पंचमी के दिन मिथिला वासी तिलक चढ़ाकर फाल्गुन मास की चतुर्दशी यानी महाशिवरात्रि को बारात लेकर आने का न्योता देते हैं.
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (09 फ़रवरी 2024)
9 Feb, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- बैचेनी उद्विघ्नता से बचिए, सोचे हुए कार्य बना लेंगे, रुके कार्य बनेंगे।
वृष राशि :- चिन्ताएं कम हो, सफलता के साधन जुटाए, अचानक लाभ के योग बनेंगे।
मिथुन राशि :- सफलता के साधन जुटाए, व्यावसायिक क्षमता से वृद्धि होवे, समय का ध्यान दें।
कर्क राशि :- व्यर्थ धन का व्यय, समय शक्ति नष्ट होवे, विघटनकारी तत्व परेशान करेंगे।
सिंह राशि :- भोग ऐश्वर्य से स्वास्थ्य नरम रहे, विद्यार्थी वर्ग उत्साह से बचे, ध्यान रखे।
कन्या राशि :- समय व धन नष्ट हो, क्लेश व अशांति होवे, कष्ट व चिन्ता बनी रहे।
तुला राशि :- परिश्रम से सफलता के साधन अवश्य जुटाए, कार्य बाधा तथा कार्य अवरोध अवश्य होगा।
वृश्चिक राशि :- चोट आदि से बचिए किन्तु भाग्य का सितारा बुलंद है समय की प्रबलता का लाभ ले।
धनु राशि :- क्लेश व अशांति से बचिए, मानसिक उद्विघ्नता अवश्य ही बनेगी, ध्यान रखे।
मकर राशि :- परिश्रम विफल हो, चिन्ता व यात्रा व्यग्रता, स्वास्थ्य नरम अवश्य ही होगा।
कुंभ राशि :- आकस्मिक घटना हो चोट आदि का भय होगा तथा समय का ध्यान अवश्य रखे।
मीन राशि :- अधिकारियें से कष्ट, इष्ट मित्र सहायक होवे, समय का ध्यान अवश्य रखे।
रंग भी बताता है व्यक्तित्व
8 Feb, 2024 07:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
रंगों का भी हमारे जीवन में अहम स्थान है। रंगों को लेकर सबकी अपनी अलग-अलग पसंद होती है। ऐसा माना जाता है कि लोगों के पसंदीदा रंग केवल उनकी खुशी ही नहीं, बल्कि उनके व्यक्तित्व के बारे में भी जानकारी देते हैं। आप किसी भी इंसान के पसंदीदा रंग के आधार पर उसकी पूरी शख्सियत का अंदाजा लगा सकते हैं। आइए जानते हैं कि कौनसा रंग क्या कहता है।
लाल रंग को पसंद करने वाले लोग जीवन को भरपूर आनंद के साथ जीना पसंद करते हैं और उन्हें प्रकृति से बेहद प्यार होता है। बड़े कदम उठाने या फैसले लेने में वे हिचकिचाते नहीं है और हर पल ऊर्जा तथा रोमांच से भरे रहते हैं।
नीला रंग को पसंद करने वाले लोग शांत स्वभाव के होते हैं और अपनी मंजिल को पाने के लिए वह बड़े रास्ते तय करना भी जानते हैं।
गुलाबी रंग विशेषकर लड़कियों को बहुत अधिक भाता है। यह मासूमियत और प्रकृति से लगाव को दर्शाता है। इस रंग को पसंद करने वाले लोग दान आदि कार्यों में रुचि रखते हैं। पीला रंग को पसंद करने वाले लोग तर्कसंगत होते हैं और जीवन के प्रति अपनी सोच के साथ बने रहते हैं। ये लोग कल्पनाशील भी होते हैं।
वहीं काला रंग मजबूत इरादों वाले और अपने जीवन के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए प्रतिबद्ध बच्चों का पसंदीदा रंग काला होता है। इस रंग को पसंद करने वाले लोग अपनी सोच को लेकर सख्त मिजाज होते हैं और किसी भी रेस को जीतने के लिए बड़ा कदम उठाने से शर्माते नहीं हैं। वे सुंदरता और कभी न खत्म होने वाली शैली पर अधिक भरोसा रखते हैं।
हरा रंग को पसंद करने वाले लोग आत्मविश्वास से भरे और आकर्षक व्यक्तित्व के होते हैं। वे किसी भी प्रम में आगे रहने के लिए अवसरों की तलाश करते हैं और किसी भी प्रकार की चुनौती का सामना करने से नहीं घबराते। वे प्रकृति प्रेमी भी होते हैं।
नारंगी रंग को पसंद करने वाले लोग मैत्रीपूर्ण व्यवहार रखने वाले और किसी भी माहौल में घुल-मिल जाने वाले लोगों का पसंदीदा रंग नारंगी होता है। ऐसे लोगों के प्रति हर किसी को लगाव होता है।
चंद्रमा से बनने हैं कई प्रकार के योग
8 Feb, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
चंद्रमा पृथ्वी पर सबसे ज्यादा असर डालने वाला ग्रह है। इसका सीधा असर व्यक्ति के मन और संस्कारों पर पड़ता है। इसलिए चंद्रमा से बनने वाले एक-एक योग इतने ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं।
चंद्रमा से तीन प्रकार के शुभ योग बनते हैं- अनफा, सुनफा और दुरधरा इन तीनों में से एक योग भी अगर कुंडली में हो तो व्यक्ति को विशेष शक्ति मिलती है। अगर तीनों ही योग कुंडली में हों तो व्यक्ति जीवन में अद्भुत सफलता पाता है।
क्या है अनफा योग और इसका प्रभाव क्या होता है?
जब चंद्रमा से पिछले भाव में कोई ग्रह हो तो अनफा योग बनता है।
अगर चंद्रमा से पिछले भाव में सूर्य हो तो यह योग भंग हो जाता है।
इस योग के होने से व्यक्ति को जीवन में खूब सारी सुख सुविधा मिलती हैं।
व्यक्ति खूब सारी यात्राएं करता है और अत्यंत व्यवहार कुशल होता है.
अनफा योग के होने से व्यक्ति राजनीति में भी सफलता पा जाता है।
अगर कुंडली में अनफा योग हो तो किस प्रकार इसका लाभ उठाना चाहिए?
एक चांदी का कड़ा जरूर धारण करें।
घर को ख़ास तौर से शयन कक्ष को साफ़ सुथरा रखें।
घर में फूल और फूलों की सुगंध का प्रयोग करें।
सुनफा योग क्या है और क्या है इसका प्रभाव?
जब चंद्रमा से दूसरे भाव में कोई ग्रह हो तो सुनफा योग बनता है।
अगर यह ग्रह सूर्य होगा तो यह योग नहीं बनेगा।
सुनफा योग होने से व्यक्ति को शिक्षा में खूब सफलता मिलती है।
व्यक्ति अत्यंत धनवान होता है और वाणी से सफलता प्राप्त करता है।
सुनफा योग होने से व्यक्ति को प्रशासन के क्षेत्र में खूब सफलता मिलती है।
सुनफा योग होने पर किस प्रकार लाभ उठाना चाहिए?
नशे, झूठ बोलने और कर्ज लेने से बचना चाहिए।
प्रातः काल सौंफ और मिसरी का सेवन करना चाहिए।
नियमित रूप से भगवद्गीता या रामचरितमानस का पाठ करें।
क्या है दुरधरा योग और इसका प्रभाव?
दुरधरा योग से दूसरे और द्वादश भाव में ग्रह हों तो दुरधरा योग बनता है.
इन ग्रहों में सूर्य नहीं होना चाहिए।
दुरधरा योग होने पर व्यक्ति जन्म से ही संपन्न और समृद्ध होता है।
जीवन में किसी भी प्रकार की समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता।
ऐसा योग कभी-कभी व्यक्ति को वैराग्य की ओर भी ले जाता है और व्यक्ति धर्मात्मा होता है।
दुरधरा योग होने पर किस प्रकार इससे लाभ उठाना चाहिए?
धर्म के मार्ग पर चलना चाहिए और आचरण शुद्ध रखना चाहिए।
नियमित रूप से हल्की सुगंध का प्रयोग करना चाहिए।
चांदी के पात्र से दूध और जल का सेवन करना चाहिए।
हथेली के निशान भी होते हैं शुभ अशुभ
8 Feb, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हस्तरेखा शास्त्र के अनुसार हमारी हथेली पर ऐसे कई निशान होते हैं जो छोटी-छोटी रेखाओं के मिलने या टकराने से बनते हैं। इनमें कुछ निशान हमें शुभ फल प्रदान करते हैं, किंतु कुछ बेहद अशुभ होते हैं। कुछ खास स्थितियों में चक्र का निशान जहां हथेली के कुछ शुभ निशानों में माने जाते हैं, वहीं कुछ ऐसे निशान भी हैं जो हर परिस्थिति में बेहद अशुभ स्थितियां लाते हैं। जानिए हाथ में बनने वाले अशुभ निशान क्रॉस के बारे में।
सूर्य ग्रह हमें समाज में यश, सम्मान और प्रतिष्ठा दिलाता है और इसी पर्वत पर अशुभ चिह्न का होना मुसीबतें खड़ी कर देता है। सूर्य पर्वत पर स्थित क्रॉस संकट को दर्शाता है। यह व्यक्ति को प्रसिद्धि, कला या धन की खोज में निराशाजनक संकेत देता है। इस पर्वत पर क्रॉस व्यक्ति की बेईमान प्रकृति को दर्शाता है। व्यक्ति अच्छे मस्तिष्क होने के बावजूद दोहरी प्रकृति का होता है। यह निशान व्यक्ति की बुद्धि को नष्ट करने का काम भी करता है। सब कुछ जानते हुए भी वह बुरे कर्म करने लगता है।
चंद्र पर्वत पर क्रॉस पद, तो व्यक्ति कल्पना से प्रभावित रहेगा। व्यक्ति सदैव सपनों की दुनिया मे रह कर खुद को धोखा देगा। जब क्रॉस शुक्र पर्वत पर स्थित हो तो कुछ संकट या प्रेम संबंध में कष्ट का संकेत देता है। शुक्र प्रेम संबंधों और विलासता का कारक माना गया है, इसलिए क्रॉस का अशुभ चिह्न जीवन के इन्हीं दो बड़े क्षेत्रों पर आक्रमण करता है।
हस्तरेखा शास्त्र के अनुसार हथेली पर बना क्रॉस का निशान मुसीबत, निराशा, खतरा और कभी-कभी जीवन में संकट का संकेत देता है। क्रॉस के लक्षण विभिन्न पर्वतों और रेखाओं की स्थिति पर निर्भर करते हैं।
यह व्यक्ति में शत्रु और चोटों के कारण संकट को दर्शाता है। यह संघर्ष, झगड़े और हिंसा द्वारा मृत्यु का भी संकेत देता है। ऐसे व्यक्ति का अगर किसी के साथ झगड़ा हो, तो वह अमूमन उग्र रूप ले लेता है।