धर्म एवं ज्योतिष
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (12 मार्च 2024)
12 Mar, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि - विशेष कार्य स्थिगित रखे, अचानक घटना का शिकार होने से बचे, ध्यान रखें।
वृष राशि - सफलता के साधन जुटायें, समय की अनुकूलता से लाभ चिन्त कार्य बनेगें।
मिथुन राशि - अधिकारियों से लाभ, कार्य स्थगित रखें अन्यथा आरोप क्लेश सम्भव होगा।
कर्क राशि - विरोधी तत्व प्रबल होगे, परेशानी से बचिये, जल्दबाजी से कार्य वृत्ति में हानि हो।
सिंह राशि - भाग्य का सितारा प्रबल, धन का व्यय होवे तथा सुख वृद्धि कार्य वृद्धि होगी।
कन्या राशि - संतान से सुख एवं सम्पन्ता के योग बनेंगे। मान प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी।
तुला राशि - कार्य कुशलता से संतोष होगा, बिगड़े कार्य बनेगे, कष्टप्रद मित्रों से परेशानी हो।
वृश्चिक राशि - सामाजिक कार्यो में मान प्रतिष्ठ बढ़ेगी, कुटुम्ब की समाचारों की जटिल प्रबल्ता।
धनु राशि - स्त्री कष्ट होगा, धन नष्ट न होवे तथा समस्याओं से बचे, कार्य होगा।
मकर राशि- मनोबल उत्साह वर्धक रहेगा। कार्य कुशलाता से संतोष बना ही रहेगा। ध्यान दें।
कुंभ राशि - व्यय भार, विवाद चिंता लाभ, विरोधी असफल अवश्य ही होंगे, ध्यान दें।
मीन राशि - धन लाभ, आशानुकूल सफलता का हर्ष बनेगे तथा अत्यन्त चिन्ता बने।
बच्चों की कॉपी-किताब में रखें मोरपंख, फिर देखें कमाल, उनके जीवन में होंगे कई बदलाव
11 Mar, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मोर पंख जितना देखने में खूबसूरत होता है उतने ही उपयोगी ज्योतिष शास्त्र में इसके उपाय बताए गए हैं. ये ना सिर्फ घर की खूबसूरती में चार चांद लगता है, बल्कि अगर कोई बच्चा जिद्दी है या फिर उसका पढ़ाई में मन नहीं लग रहा है तो इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए भी मोर पंख का इस्तेमाल किया जा सकता है. अगर आपका बच्चा भी बहुत जिद्दी है और पढ़ाई लिखाई में मन नहीं लगता, तो मोर पंख के कुछ उपाय जिन्हें अपना कर आप अपने बच्चों का पढ़ाई के लिए फोकस बढ़ा सकते हैं. आइए जानते हैं भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा से.
1. कॉपी-किताब में रखें मोर पंख
मोर पंख भगवान श्री कृष्ण को अति प्रिय है. शास्त्रों के अनुसार जब भगवान श्री कृष्ण का अवतरण हुआ था तब उनके अंदर 16 कलाएं थीं, मगर जब वह गुरु सांदीपनी के आश्रम में शिक्षा ग्रहण करने पहुंचे तो उन्होंने बाकी की कलाएं भी सीखीं और वो 64 कलाओं में निपुण हो गए.
2. स्टडी रूम में लगाएं
पंडित जी कहते हैं, ‘मोर पंख श्री कृष्ण के साथ-साथ देवी सरस्वती को भी अति प्रिय है. अगर बच्चों का पढ़ाई में मन नहीं लगता है तो स्टडी रूम की दीवार पर एक मोर पंख जरूर लगाएं. ऐसा करने पर बच्चे का पढ़ाई की ओर रुझान बढ़ेगा. इतना ही नहीं, बच्चा अगर जिद्दी स्वभाव का है तो मोर पंख देखने से उसका मन, दिमाग और स्वभाव शांत हो सकता है.’
3. मां सरस्वती की आराधना करें
मां सरस्वती को ज्ञान की देवी कहा गया है. बच्चों को देवी सरस्वती की पूजा रोज करनी चाहिए. साथ ही ‘ॐ सरस्वती ईश्वरी भगवती माता क्रां क्रीं मम ज्ञान देहि फट स्वाह।।’ मंत्र का 21 बार जाप करना चाहिए.
4. शुक्रवार को करें ये उपाय
इतना ही नहीं, पंडित के अनुसार हर शुक्रवार को गाय को घास और गुड़ खिलाने से भी पढ़ाई में एकाग्रता बढ़ सकती है.
पुखराज के साथ धारण न करें यह रत्न, फायदे की जगह हो सकता है बड़ा नुकसान, किसके साथ न पहने कौन सा स्टोन
11 Mar, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
ज्योतिष शास्त्र की एक शाखा रत्न शास्त्र है, अगर आपके जीवन में किसी तरह की समस्या आ रही है या आपका कोई ग्रह कमजोर है तो उसे मजबूत करने के लिए रत्न का सहारा लिया जाता है. रत्नों को सही दिन और सही विधि के अनुसार धारण करने से इनका सकारात्मक प्रभाव आपके जीवन में देखने को मिलता है. लेकिन कुछ रत्न ऐसे हैं, जिन्हें भूल कर भी एक साथ धारण नहीं करना चाहिए, नहीं तो इनके अशुभ परिणाम देखने को मिलते हैं. वे कौन से रत्न हैं जिन्हें एक साथ धारण नहीं करना चाहिए. आइए जानते हैं भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा से.
किन रत्नों को एक साथ न करें धारण
-1. माणिक्य के साथ
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार माणिक्य रत्न के साथ कभी भी नीलम, हीरा, गोमेद और लहसुनिया धारण नहीं करना चाहिए. माणिक्य के साथ ये चारों रत्न धारण करना वर्जित हैं.
-2. मोती के साथ
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मोती व्यक्ति की किस्मत चमका सकता है, अगर आप इसके साथ ही गोमेद या लहसुनिया धारण करते हैं तो इसका विपरीत प्रभाव देखने को मिलता है.
-3. मूंगा के साथ
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मूंगा के साथ भूलकर भी पन्ना और नीलम रत्न धारण नहीं करना चाहिए.
-4. पन्ना के साथ
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पन्ना के साथ मोती को धारण करना वर्जित माना जाता है.
-5. पुखराज के साथ
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पुखराज के साथ पन्ना या मोती धारण नहीं करना चाहिए. इससे आपको नुकसान हो सकता है.
-6. हीरे के साथ
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हीरे के साथ मोती नहीं पहनना चाहिए. इन दोनों रत्नों को एक साथ पहनने से नुकसान हो सकता है.
-7. नीलम के साथ
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नीलम के साथ भूलकर भी माणिक्य, मोती और मूंगा नहीं पहनना चाहिए.
-8. गोमेद के साथ
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार गोमेद के साथ भूलकर भी माणिक्य या मोती ना पहनें.
-9. लहसुनिया के साथ
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार लहसुनिया रत्न के साथ माणिक्य या मोती नहीं पहनना चाहिए.
क्यों पूजे जाते हैं कुल देवता? सभी के कुल देवी-देवता क्यों होते अलग
11 Mar, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में कई परंपराएं सदियों से चली आ रही हैं, जिनका पालन आज तक किया जाता है. इन्हीं परंपराओं में से एक है कुल देवी देवता की पूजा करना. भारतीय लोग हजारों वर्षों से अपने कुल देवी और देवता की पूजा करते आ रहे हैं. कुल देवी और देवता को पूजने के पीछे एक गहरा रहस्य है, जो बहुत कम लोग जानते होंगे. आइए जानते हैं भोपाल निवासी ज्योतिष आचार्य विनोद सोनी पौद्दार से कि सभी के कुलदेवी-देवता अलग क्यों होते हैं और उन्हें पूजना क्यों जरूरी होता है? साथ ही जानेंगे कुल देवी या देवता की पूजा नहीं करने से क्या हो सकता है.
कब-कब होती है कुल देवी-देवता की पूजा?
जन्म, विवाह आदि मांगलिक कार्यों में कुल देवी या देवताओं के स्थान पर जाकर उनकी पूजा की जाती है या उनके नाम से स्तुति की जाती है.
इसके अतिरिक्त एक ऐसा भी दिन होता है जबकि संबंधित कुल के लोग अपने देवी और देवता के स्थान पर इकट्ठा होते हैं.
सभी के कुल देवी और कुल देवता अलग-अलग क्यों होते हैं?
ज्योतिष आचार्य विनोद सोनी पौद्दार के अनुसार कुल अलग हैं, तो स्वाभाविक है कि कुल देवी-देवता भी अलग-अलग ही होंगे.
हजारों वर्षों से अपने कुल को संगठित करने और उसके अतीत को संरक्षित करने के लिए ही कुल देवी और देवताओं को एक स्थान पर स्थापित किया जाता था. वह स्थान उस वंश या कुल के लोगों का मूल स्थान होता था.
जैसे आपके परदादा के परदादा ने किसी समय में कहीं से किसी भी कारणवश पलायन करके जब किसी और स्थान पर परिवार बसाया होगा तो निश्चित ही उन्होंने वहां पर एक छोटा सा मंदिर या मंदिर जैसा स्थान बनाया होगा, जहां पर आपके कुलदेवी और देवता को स्थान दिया होगा. प्राचीनकाल में यह होता था कि मंदिर से जुड़े व्यक्ति के पास एक बड़ी-सी पोथी होती थी जिसमें वह उन लोगों के नाम, पते और गोत्र अंकित करता था.
यह कार्य वैसा ही था, जैसा कि गंगा किनारे बैठा तीर्थ पुरोहित या पंडे आपके कुल और गोत्र का नाम अंकित करते हैं. आपको अपने परदादा के परदादा का नाम नहीं मालूम होगा लेकिन उन तीर्थ पुरोहित के पास आपके पूर्वजों के नाम लिखे होते हैं.
इससे आप अपने वंशवृक्ष से जुड़े रहते हैं. अब फिर से समझें कि प्रत्येक हिन्दू परिवार किसी न किसी देवी, देवता या ऋषि के वंशज से संबंधित है. उसके गोत्र से यह पता चलता है कि वह किस वंश से संबधित है.
इसके अलावा किसी कुल के पूर्वजों ने, कुल के वरिष्ठों ने अपने लिए उपयुक्त कुल देवता या कुल देवी का चुनाव कर उन्हें पूजना आरम्भ कर दिया और उसके लिए एक निश्चित स्थान पर एक मंदिर बनवाया जिससे एक आध्यात्मिक और पारलौकिक शक्ति से उनका कुल जुड़ा रहे और वहां से उसकी रक्षा होती रहे.
कुल देवी या देवता कुल या वंश के रक्षक देवी-देवता होते हैं. ये घर-परिवार या वंश-परंपरा के प्रथम पूज्य और मूल अधिकारी देव होते हैं. इसलिए इन्हें प्रत्येक कार्य में याद करना आवश्यक होता है. इनका प्रभाव इतना महत्वपूर्ण होता है कि यदि ये रुष्ट हो जाएं तो हनुमान जी के अलावा अन्य कोई देवी या देवता इनके दुष्प्रभाव या हानि को कम नहीं कर सकता या रोक नहीं लगा सकता.
कुल देवता नाराज हो जाएं तो क्या होता है
ऐसा भी देखने में आया है कि कुल देवी-देवता की पूजा छोड़ने के बाद कुछ वर्षों तक तो कोई विशेष परिवर्तन नहीं होता, लेकिन जब देवताओं का सुरक्षा चक्र हटता है तो परिवार में घटनाओं और दुर्घटनाओं का योग शुरू हो जाता है. सफलता रुकने लगती है, गृह कलह, उपद्रव और अशांति शुरू हो जाती हैं और वंश आगे सुचारू रूप से नहीं चल पाता.
एमपी में यहां विराजे हैं विशाल हनुमान, दूर से ही दिखती है प्रतिमा, दर्शन से मिट जाते हैं कष्ट!
11 Mar, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
आज के समय में धार्मिक और सांस्कृतिक विषयों पर व्यापक चर्चाएं होती हैं, जिनमें भक्ति और श्रद्धा की भावना बहुत महत्वपूर्ण है. भारतीय संस्कृति में हनुमान जी का विशेष स्थान है उनकी कथाएं और महिमा अनगिनत लोगों के दिलों में बसी हैं. इसी भक्ति की भावना के आधार पर, हनुमान जी के विभिन्न स्वरूपों में से एक ‘पंचमुखी हनुमान’ भी एक अत्यंत महत्वपूर्ण हैं.
बजरंगबली के सभी रूपों में पंचमुख हनुमान का विशेष महत्व है. यह रूप उनके पांच मुखों में छिपी विशेष शक्तियों को प्रकट करता है. पंचमुख हनुमान के ये पांच रूप उनकी अद्वितीय शक्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो भक्तों को अनेक प्रकार की समस्याओं और परिस्थितियों से निकालने में मदद करते हैं. इस आर्टिकल में में हम जबलपुर के ऐसे ही एक मंदिर के बारे में बात करंगे जहां स्थापित हनुमान जी का यह पंचमुखी स्वरुप पुरे जबलपुर में एक ही बताया जाता है जिसके बारे में आपने शयद ही कहीं सुना होगा.
दुर्लभ है हनुमान जी की यह प्रतिमा
जबपलुर शहर से करीब 20 किलोमीटर दूर भड़पुरा रोड पर पंचमुखी हनुमान जी का एक दुर्लभ स्वरुप स्तिथ है. जिसके दर्शन मात्र से आप तृप्त हो जायेंगे. पंचमुखी हनुमान जी की यह अनोखी प्रतिमा पुरे शहर में सिर्फ एक ही बताई जा रही है. शास्त्रों में पंचमुखी हनुमान जी के दर्शन का विशेष महत्व माना गया है. इस प्रतिमा की उचाई लगभग 25 फीट है. स्थानीय लोगो का कहना है की पुरे जबलपुर में हनुमान जी का ऐसा स्वरुप कहीं और मौजूद नहीं है. बजरंगबली की इस अनोखी प्रतिमा की खासियत यह की ये इसमें आपको हनुमान जी के सभी अवतारों के दर्शन एक साथ हो रहे है साथ ही उन्होंने अपनी गदा के नीचे काल को दबा रखा है, जो आपने शयद ही कहीं देखा होगा.
शहर से 20 किलोमीटर दूर विराजित है सिद्ध हनुमान
स्थानीय लोगो का कहना है की अतुल पांडे नाम के एक बिल्डर द्वारा इस प्रतिमा का यहाँ निर्माण करवाया गया है जोकि गोकुल विहार कॉलोनी में स्थित है. उन्होंने ने बताय की अतुल पांडे हनुमान जी के बहुत बड़े भक्त है और बजरंगबली से प्रेरणा लेकर उन्होंने हनुमान जी की इस विशालकाय प्रतिमा का निर्माण करवाया, और आज हनुमान जी का यह अनोखा स्वरुप पुरे जबलपुर शहर में एक लौता ऐसा स्वरूप है. जहाँ हनुमान जी भक्तों की मनोकामनाए पूर्ण करते है.
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (11 मार्च 2024)
11 Mar, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- अपने आय पर नियंत्रण रखे, चिन्ता विभ्रम तथा अशांति से बचे, रुके कार्य बनेंगे।
वृष राशि :- कोई शुभ समाचार हर्ष प्रद रखे थकावट बेचैनी तथा धन का व्यय, अवश्य होगा।
मिथुन राशि :- शुभ समाचार से हर्ष तो होगा, किन्तु भावना उत्तेजित होगी, मानसिक कष्ट होगा।
कर्क राशि :- दैनिक कार्य वृत्ति में सुधार हो एवं कार्ययोजनाएं फलीभूत होगी, मित्र मिलन होवे।
सिंह राशि - असमंजस क्लेशप्रद रखे, झूठे आश्वासनों पर विश्वास न करें, समय का ध्यान रखे।
कन्या राशि :- दैनिक व्यवसाय गति अनुकूल, स्त्रीवर्ग से हर्ष उल्लास, लाभ होगा, ध्यान रखे।
तुला राशि :- समय पर सोचे हुए कार्य पूर्ण होंगे, बौद्धिक विकास की क्षमता से वृद्धि अवश्य होगी।
वृश्चिक राशि :- अनायास तनाव, क्लेश, हानि उपद्रव विरोधी से विवादास्पद स्थिति बनेगी।
धनु राशि :- समय की अनुकूलता से लाभान्वित होंगे, रुके समाचार मिलने से खुशी होगी।
मकर राशि - स्त्री शरीर कष्ट, स्त्री से सुखवर्धक, कुटुम्ब में सुख के योग बनेंगे, सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़े।
कुंभ राशि - कार्यकुशलता से संतोष, परेशानी व चिन्ताजनक स्थिति बनेगी, ध्यान रखे।
मीन राशि - स्थिति में सुधार होगा, व्यवसाय अनुकूल, अधिकारी सहयोग करेगे।
फाल्गुन पूर्णिमा कब है? पितरों को प्रसन्न करने जरूर करें ये उपाय; खुशियों से भर जाएगी झोली
10 Mar, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन मास में पड़ने वाली अमावस्या का काफी महत्व है. इसे फाल्गुन अमावस्या कहा जाता है. इस साल फाल्गुन अमावस्या 10 मार्च को पड़ रही है. इस दिन पितरों का तर्पण और श्राद्ध करना काफी शुभ माना जाता है. यह तिथि भगवान विष्णु और पितरों को समर्पित है. इस अवसर पर पितरों की पूजा कर उन्हें प्रसन्न किया जाता है. इसके अलावा गंगा स्नान और दान करने का भी विधान है. मान्यता है कि ऐसा करने से पूर्वजों की कृपा से घर में सुख-समृद्धि का आगमन होता है.
अमावस्या पर जरूर करें ये काम
उज्जैन के पंडित आनंद ने जानकारी देते हुए बताया कि पितरों की शांति के लिए फाल्गुन अमावस्या की सुबह जल्दी उठकर पवित्र नदी में स्नान करें. यदि ऐसा संभव ना हो तो घर पर ही नहाने के पानी में गंगाजल या किसी पवित्र नदी का जल मिलाकर स्नान करें. फिर साफ कपड़े पहनकर सूर्य देव को अर्घ्य दें. इसके बाद भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा करें. पूजा के बाद गरीब-जरूरतमंदों को दान करें. पितृ दोष निवारण के अमावस्या के दिन पितरों के लिए तर्पण, दान करें. अगर फाल्गुन अमावस्या के दिन ऐसा करते हैं तो पितृ प्रसन्न होते हैं और घर में सुख समृद्धि के साथ अपना आशीर्वाद देते हैं.
फाल्गुन अमावस्या का महत्व
फाल्गुन अमावस्या के दिन लोग श्रद्धा और भक्ति से देश की पवित्र नदियों में डुबकी लगाने पहुंचते हैं. इस दिन पितरों के तर्पण और दान का विशेष महत्व होता है. मान्यता है कि फाल्गुन अमावस्या को स्नान-दान से मोक्ष की प्राप्ति होती है और सांसारिक कष्टों से छुटकारा मिल जाती है.
अमावस्या के दिन इन कार्यों से बचें
मान्यताओं के अनुसार इस दिन क्रोध करने, लड़ाई-झगड़ा करने, नए कपड़े खरीदें और पहनें, झाड़ू आदि खरीदने से बचना चाहिए. इसके अलावा इस दिन शुभ कार्य करने से बचना चाहिए.
फाल्गुन अमावस्या की तिथि और शुभ मुहूर्त
अमावस्या तिथि प्रारंभ: 9 मार्च (शनिवार) शाम 06:17 PM से शुरू.
अमावस्या तिथि समाप्त: 10 मार्च (रविवार) दोपहर 02:29 PM पर समाप्त.
उदया तिथि के अनुसार फाल्गुन अमावस्या 10 मार्च (रविवार) को मनाई जाएगी.
8 या 9, इस बार कितने दिन की चैत्र नवरात्रि? घोड़े पर आएंगी भगवती
10 Mar, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
महाशिवरात्रि के बाद लोगों को चैत्र नवरात्रि का इंतजार रहता है. सनातन धर्म में चैत्र नवरात्रि का बड़ा महत्व है. क्योंकि, इसी पर्व से हिंदू नववर्ष भी शुरू होता है. सनातन धर्म में नए साल के साथ शुभ कार्य भी शुरू होते हैं. ऐसे में बहुत से लोगों को चैत्र नवरात्रि का इंतजार रहता है. यह भी जिज्ञासा रहती कि इस बार नवरात्रि कितने दिन की है? नवरात्रि पर माता की सवारी भी मायने रखती है, क्योंकि उसका शुभ-अशुभ प्रभाव लोगों के साथ-साथ देश की स्थिति पर भी पड़ता है. तो आइए इस सभी सवालों का जवाब जानते हैं…
देवघर के पागल बाबा आश्रम स्थित मुद्गल ज्योतिष केंद्र के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित नंदकिशोर मुद्गल ने Local 18 को बताया कि चैत्र के महीने मे हिंदू नववर्ष की शुरुआत होती है. चैत्र और शारदीय नवरात्र ये दोनों नवरात्री माता दुर्गा के भक्तों के लिए खास रहती हैं. वहीं, चैत्र नवरात्रि की शुरुआत चैत्र माह में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से होती है. इस साल प्रतिपदा तिथि 8 अप्रैल को रात 2 बजकर 11 मिनट से शुरू हो रही है. लेकिन, घटस्थापना 9 अप्रैल को होगी, इसलिए चैत्र नवरात्रि की शुरुआत 9 अप्रैल से ही मानी जाएगी, जिसका समापन 17 अप्रैल को होगा. इस बार चैत्र नवरात्रि पूरे 9 दिन की होगी, किसी तिथि की हानि नहीं है.
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त
चैत्र नवरात्रि में कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त 9 अप्रैल को होगा. ज्योतिषाचार्य ने Local 18 को बताया कि ऋषिकेश पंचांग के अनुसार, कलश स्थापना के दो शुभ मुहूर्त हैं. पहला 9 अप्रैल को सुबह 6 बजकर 21 मिनट से लेकर और 10 बजकर 35 मिनट तक है. वहीं, उसी दिन अभिजीत मुहूर्त भी है जो 11 बजकर 57 मिनट से लेकर 12 बजकर 48 मिनट तक है. माना जाता है कि कोई शुभ कार्य करने के लिए अभिजीत मुहूर्त सबसे उत्तम रहता है.
इस पर सवार होकर आएंगी भगवती
नवरात्रि में माता दुर्गा का वाहन घोड़ा, हाथी, नाव इत्यादि होता है, जो कुछ न कुछ संकेत देता है. वहीं, इस बार चैत्र नवरात्रि पर माता दुर्गा का आगमन घोड़े पर होने रहा है, जो देश के लिए शुभ संकेत नहीं है. घोड़ा पर सवार होकर आना सत्ता परिवर्तन का संकेत देता है.
महाशिवरात्रि पर महा आयोजन! एक ही मंडप पर एक हुए 36 जोड़े... लोगों की प्रशंसा
10 Mar, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
महाशिवरात्रि के मौके पर जिले में सामूहिक विवाह का आयोजन किया गया. यहां एक नहीं दो नहीं बल्कि एक साथ 36 जोड़े का आदर्श सामूहिक विवाह कार्यक्रम सम्पन्न किया गया है. यह कार्यक्रम समस्तीपुर जिला के मोरवा प्रखंड क्षेत्र के हुसैनीपुर गांव के रहने वाले ओम प्रकाश कुशवाहा द्वारा किया गया है. आदर्श सामूहिक विवाह कार्यक्रम को लेकर 18 अलग-अलग मंडप भी बनाए गए है. इसकी चर्चा पूरे देश में जोर-शोर से है. लोग ने ऐसे अयोजन पर आयोजकों को बधाई दी.
कार्यक्रम के आयोजक हुसैनीपुर गांव के रहने वाले ओमप्रकाश कुशवाहा ने लोकल 18 से खास बातचीत करते हुए कहा कि दहेज मुक्त यह आदर्श सामूहिक विवाह कार्यक्रम का आयोजन किया गया है. एक ही परिसर में 36 जोड़ों का एक साथ विद्वान पंडितों द्वारा मंत्र उच्चारण के साथ विवाह कराया गया है. उन्होंने कहा कि जिस तरह से लोग अपनी बेटी को शादी के दौरान उपहार के रूप में सामान देते हैं, उसी तरह की व्यवस्था की गई थी. व्यवस्थापक सदस्य बलिराम सिंह ने बताया कि कार्यक्रम को लेकर बीते 8 माह से तैयारी की जा रही थी. पंडित सियाराम झा के नेतृत्व में 26 विद्वान पंडित वैदिक मंत्र उच्चारण द्वारा विवाह संपन्न हुआ. सभी दूल्हा दुल्हन के लिए रस्म की सारी सामग्री के साथ जेवर, कपड़े और शादी के मौके पर दी जाने वाली उपहार की भी व्यवस्था की गई थी.
कई जिलों से आए थे परिवार
इस कार्यक्रम में समस्तीपुर जिले के अलावे पटना, बेगूसराय, वैशाली, मुजफ्फरपुर आदि जिले के दूल्हा दुल्हन शामिल हुए है. वर वधू पक्ष से आए लोगों और अतिथियों के लिए खाने पीने बैठने की व्यवस्था के साथ-साथ अमित जयकार, प्रवीण सिस्टर, हेमा पांडे, अमरेश बिहारी जैसे नामचीन कलाकारों द्वारा भरपूर मनोरंजन की व्यवस्था की गई है. मौके पर लखन सिंह, मनोहर सिंह, युगल किशोर सिंह, रविंद्र प्रसाद, अरुण कुशवाहा, उदय झा, सतीश कुमार सिंह, समरेश शर्मा, डॉ.उदय शंकर शर्मा, पप्पू शर्मा आदि मौजूद थे.
ये है राजस्थान का सबसे अमीर मंदिर, जहां भगवान को चढ़ता है काला सोना, वजह सुन रह जाएंगे हैरान
10 Mar, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भगवान के मंदिरों में कई तरीके के चढ़ावे चढ़ते हुए तो आपने देखा होगा. लेकिन क्या आपने भगवान के मंदिर में काला सोना चढ़ते हुए देखा है. आज हम आपको इसी काले सोने के बारे में बताने जा रहे हैं, जो चित्तौड़गढ़ के सांवलिया सेठ मंदिर में चढ़ता है.
दरअसल चित्तौड़गढ़ क्षेत्र में अफीम की खेती बहुत अधिक की जाती है, जिसे काला सोना भी कहा जाता है. फसल की अच्छी पैदावार होने पर किसानों द्वारा भगवान के मंदिर में यह फसल भेंट की जाती है. इस वर्ष कई किसानों की अफीम की फसल अच्छी हुई है. इसी कारण मंदिर में यह फसल भेंट करते हुए किसान नजर आ रहे हैं.
अच्छी फसल के लिए किसान मांगते हैं मन्नत
चित्तौड़गढ़ के सांवलिया सेठ मंदिर क्षेत्र में अधिक मात्रा में किसान परिवार रहते हैं. हर वर्ष अफीम की खेती के लिए सरकार द्वारा इन्हें पट्टे जारी किए जाते हैं, लेकिन मौसम की मार और परेशानियों के चलते कई बार फसलों में नुकसान भी होता है. ऐसे में फसलों को नुकसान नहीं पहुंचे और उन्हें फसल का लाभ मिल सके, इसी के लिए वह भगवान सांवलिया सेठ से मन्नत मांगते हैं और मन्नत पूरी होने पर उन्हें फसल उपहार स्वरूप भेंट करते हैं.
मंदिर के दान पत्र से निकलती है करोड़ों रुपए की अफीम
बता दें कि किसान हर साल अच्छी पैदावार के लिए सांवलिया जी को अफीम चढ़ाते है और मन्नत मांगते हैं. वहीं सांवलिया जी के दान पात्र में करोड़ों की अफीम निकलती है. साथ ही सांवलिया जी के दरबार में लोग चांदी के डोडे भी चढ़ाकर जाते हैं. हर माह सांवलिया सेठ के दान पात्र से करोड़ों रुपए का दान भी निकलता है, जो राजस्थान के सबसे अमीर मंदिरों में से एक है.
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (10 मार्च 2024)
10 Mar, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि - मनोबल उत्साहवर्धक रहे, कार्यगति में सुधार, शुभ समाचार हो।
वृष राशि - कुछ बाधायें कष्टप्रद रखे, स्त्री शरीर कष्ट कारोबार में बाधा अवश्य बनेगी।
मिथुन राशि - कार्य कुशलता से संतोष, परिश्रम सफल होंगे, स्त्री वर्ग से लाभ।
कर्क राशि - कुटुम्ब की समस्याएं सुलझे, सुख शांति से समय अवश्य ही बीते।
सिंह राशि - परिश्रम से समय पर सोचे हुए कार्य पूर्ण होंगे, व्यावसायिक क्षमता में बाधायें हो।
कन्या राशि स्त्रीवर्ग से उल्लास, आशानुकूल सफलता से हर्ष, बिगड़े कार्य अवश्य बनेंगे।
तुला राशि - योजनाएं फलीभूत हो, सर्तकता से कार्य निपटा ले, कार्य अवश्य ही बनेगा।
वृश्चिक राशि - कार्यगति उत्तम, चिन्ताएं कम हो, प्रभुत्व एवं प्रतिष्ठा अवश्य ही बढ़ेगी।
धनु राशि - आशानुकूल सफलता का हर्ष, कार्यगति उत्तम, भावनाएं संवेदनशील होगी।
मकर राशि - सफलता के साधन विफल हो, तनाव कम, कष्ट, मित्र सुखवर्धक होगे।
कुंभ राशि - असमंजस असमर्थता का वातावरण मन संदिग्ध रखेगा, कार्य अवश्य बनेंगे।
मीन राशि - वृथा धन और शक्ति नष्ट न करें, इष्ट मित्र सुखवर्धक होंगे।
कब है आमलकी एकादशी? पंडित जी ने बताई तारीख, शुभ मुहूर्त, महत्व और पारण समय
9 Mar, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
आमलकी एकादशी को आमला एकादशी भी कहते हैं. उस दिन रंगभरी एकादशी भी मनाई जाती है. यह एक ऐसा दिन है, जब इस एकादशी को भगवान विष्णु के अलावा भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है. पंचांग के अनुसार, आमलकी एकादशी का व्रत फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को होता है. उस दिन व्रत रखते हैं और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं. हालांकि उस दिन वाराणसी में रंगभरी एकादशी मनाई जाती है, जहां बाबा विश्वनाथ और माता गौरी को पूजा में गुलाल अर्पित किया जाता है. शिव और शक्ति नगर भ्रमण करते हैं. केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र बता रहे हैं कि आमलकी एकादशी कब है? मुहूर्त और पारण समय क्या है?
कब है आमलकी एकादशी 2024?
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, इस बार फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 20 मार्च को 12:21 एएम पर शुरु होगी. इस तिथि का समापन 21 मार्च को 02:22 एएम पर होगा. उदयातिथि के आधार पर आमलकी एकादशी का व्रत 20 मार्च दिन बुधवार को रखा जाएगा. रंगभरी एकादशी भी 20 मार्च को है.
रवि योग में है आमलकी एकादशी
20 मार्च को आमलकी एकादशी वाले दिन रवि योग, सुकर्मा योग और पुष्य नक्षत्र है. उस दिन रवि योग सुबह 06 बजकर 25 मिनट से शुरु होगा और यह रात 10 बजकर 38 मिनट तक रहेगा. रवि योग में सभी दोष मिट जाते हैं. इसमें सूर्य का प्रभाव अधिक होता है.
रवि योग के अलावा अतिगण्ड योग सुबह से शाम 05:01 पीएम तक है. उसके बाद से सुकर्मा योग बनेगा, जो पूरी रात है और अगले दिन शाम 05 बजकर 42 मिनट तक रहेगा. व्रत वाले दिन पुष्य नक्षत्र है, जो सुबह से रात 10 बजकर 38 मिनट तक है. उसके बाद से अश्लेषा नक्षत्र है.
आमलकी एकादशी 2024 पारण समय
आमलकी एकादशी व्रत का पारण 21 मार्च दिन गुरुवार को किया जाएगा. उस दिन हरिवासर सुबह 08 बजकर 58 मिनट पर खत्म होगा और पारण समय दोपहर 01 बजकर 41 मिनट से शाम 04 बजकर 07 मिनट तक है. इस समय में आपको पारण करके व्रत को पूरा करना चाहिए.
आटे का चोकर, काला तिल और...होली पर कर दीजिए ऐसा टोटका, अला-बला सब टल जाए
9 Mar, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
होली आने को है. 24 मार्च को होलिका दहन और उसके अगले दिन 25 मार्च को रंग खेला जाएगा. होली को लेकर छत्तीसगढ़ में तरह तरह की मान्यताएं और टोने टोटके होते हैं. इनका चलन इतना ज्यादा है कि खुद पंडित पुजारी भी टोटके के उपाय बता रहे हैं. आइए सुनते हैं पंडित जी की बात. मानना या न मानना आपकी मर्जी. ये आस्था और अंधविश्वास का मामला है.
रंग और उमंग का त्यौहार होली फाल्गुन महीने की पूर्णिमा को होलिका दहन और उसके अगले दिन रंग खेला जाता है. हिन्दू धर्म में होली का त्योहार विशेष महत्त्व रखता है. इस वर्ष होलिका दहन 24 मार्च 2024 रविवार को किया जाएगा और फिर उसके अगले दिन यानि 25 मार्च को होली खेली जाएगी.
भद्रा में नहीं होता होलिका दहन
होलिका दहन को लेकर कई मान्यताएं, परंपराएं और कहानियां हैं. होलिका दहन भी मुहर्त में किया जाता है. इस बारे में विस्तार से बता रहे हैं कोरबा के पंडित दशरथनंदन द्विवेदी. वो कहते हैं भद्राकाल में होलिका दहन वर्जित है. इस वर्ष 24 मार्च को रात 10:30 बजे तक भद्रा का साया है, इसलिए इस साल रात 10:30 के बाद होलिका दहन किया जाएगा.
इस टोटका से दूर होंगी बाधाएं
पंडित दशरथनंदन द्विवेदी का कहना है इस दिन कई इलाकों और समाजों में टोटके की परंपरा है. अला-बला दूर करने के लिए ये टोटके किए जाते हैं. आदिवासी बहुत प्रदेश छत्तीसगढ़ में इसका चलन कुछ ज्यादा है. पंडित कहते हैं इस दिन कई प्रकार के टोटके किए जाते हैं. अगर किसी व्यक्ति की जिंदगी में अशांति है या ऊपरी बाधा से परेशान हैं तो आटे का चोकर, काला तिल और लाल मिर्च को सात बार अपने ऊपर घुमा के होलिका की अग्नि में डाल दें. इससे आपके जीवन मे शांति आएगी और ऊपरी बाधा से मुक्ति मिलेगी.
अंजुरी का जल बताएगा आशीर्वाद मिला या नहीं...गुफा में विराजे गौरी-शंकर की अद्भुत महिमा
9 Mar, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मध्य प्रदेश के सागर जिले में विंध्य चट्टानों के कटाव में देहार नदी बहती है. नदी के किनारे चट्टानों के बीचों बीच गुफा में प्रसिद्ध गौरी शंकर मंदिर है, जहां भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती अर्धनारीश्वर के रूप में विराजमान है. शिवरात्रि के पर्व पर यहां पर हजारों लोग पूजा-अर्चना करने पहुंचते हैं. मान्यता है कि गौरी शंकर मंदिर में सच्चे मन से पूजा करने पर घर में सुख समृद्धि आती है और हर मनोकामना पूर्ण होती है. प्रसिद्ध रानगिर माता मंदिर से करीब 1 किलोमीटर की दूरी पर यह मंदिर है. इस मंदिर तक पहुंचाने के लिए सीढ़ी की व्यवस्था की गई है. साथ ही गुफा वाले इस मंदिर का भव्य रूप से निर्माण शुरू किया गया है.
करीब 35 साल पहले हुई थी मंदिर की स्थापना
नागा बाबा हंसमुख श्रीजी महाराज बताते हैं कि उज्जैन के जूना अखाड़े से जुड़े उनके गुरु ने पत्थरों में गुफा देखकर भगवान भोलेनाथ की स्थापना की थी. इसके बाद यहीं रहकर तपस्या करने लगे. कुछ साल पहले वह समाधि में लीन हो गए. इसके बाद हंसमुख महाराज भगवान भोलेनाथ की सेवा कर रहे हैं. यहां पर अर्धनारीश्वर और गणेश स्वरूप में भोलेनाथ विराजमान है. महाशिवरात्रि के दिन रुद्राभिषेक और तीन बार आरती होगी. भजन के कार्यक्रम, भंडारा और प्रसादी वितरण होगा. इसके साथ ही शिव-पार्वती विवाह की रस्में भी निभाई जाएगी जिसमें हल्दी तेल वरमाला जैसे कार्यक्रम होंगे.
गुफा में तीन तरह के भोलेनाथ
हंसमुख महाराज बताते हैं कि गुफा में तीन अलग-अलग तरह के भगवान भोलेनाथ विराजमान हैं और तीनों ही शिवलिंग का अपना महत्व है. अर्धनारीश्वर भगवान के दर्शन करने से व्यक्ति संत बनता है. यहां गणेश स्वरूप में भी भोलेनाथ हैं, उनके दर्शन करने से भक्तों की कामना पूरी होती है. शिव रूप में विराजे भगवान भोलेनाथ की सेवा करने से हनुमान जी जैसे भक्त बनते हैं. उन्होंने बताया कि यहां आने वाले हर भक्त को अंजुरी से जल दिया जाता है. अंजुरी में जो तुलसी के पत्ते होते हैं अगर वह किसी के हाथ में चले जाएं तो समझ लो कि उसे आशीर्वाद मिल गया और भोलेनाथ की कृपा बरसेगी.
शिव के इस रूप में छिपी है पुरुष-नारी की समानता, बराबरी की बहस नादानी, सच्चाई खोल देगी आंखें
9 Mar, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
इंटरनेशनल वुमेन्स डे पर हर साल एक थी तय की जाती है. इस साल की थीम है ‘इंस्पायर इंक्लूसिव’ यानी समावेश को प्रेरित करना. दरअसल पिछले कई सालों से दुनियाभर में नारीवाद पर अलग-अलग चर्चाएं हो रही हैं. सालों से ये बहस चल रही है कि महिलाओं को पुरुषों के बराबर माना जाना चाहिए. अब इसमें आर्थिक बराबरी से लेकर काम करने का हक और वर्कलोड शेयर करने की बात तक, कई बहस शामिल हैं. इत्तेफाक है कि इस साल अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर महाशिवरात्रि भी है. महिला दिवस भले ही साल 1975 से मनाना शुरू किया गया है. लेकिन सदियों से शिव के एक ऐसे स्वरूप को हम पूजते आ रहे हैं, जो हमें बताता है कि नारीत्व और महिला-पुरुष के बीच चल रही ‘बराबरी’ की ये बहस हमारी समझ की नादानी है. प्रसिद्ध ज्योतिष, श्रुति खरबंदा से जानते हैं कौनसा है वह भगवान शिव का स्वरूप और ये हमें क्या बताता है.
एक दूसरे के पूरक हैं शिव और शक्ति
दरअसल जब भी हम ‘बराबरी’ की बात करते हैं तो इसके पीछे भाव आता है ‘तुलना’ का. आप किसी के बाराबर हैं, ये बात आप तभी सिद्ध कर सकते हैं जब आप गणना के आधार पर तय करेंगे कि 2 चीजों में कौनसी चीज बेहतर है. ये बहस ‘बराबरी’ से ‘बेहतर’ होने की तरफ कब बढ़ जाती है, ये भनक तक नहीं लगती. ज्योतिष, श्रुति खरबंदा बताती हैं, ‘शिव का अर्धनारीश्वर रूप अपने आप में इस बहस को समाप्त करने और समाज में नारी व पुरुष के स्थान को दर्शने के लिए काफी है. जब बराबरी की बात होती है तो कंपेरिसन होता है, लेकिन अगर आप शिव के स्वरूप को समझें तो शिव और शक्ति एक दूसरे के पूरक हैं. शिव का अर्धनारीश्वर स्वरूप इस बात को खूबसूरती से समझाता है.
महिला-पुरुष ‘कंप्लीट’ करते हैं, ‘कंपीट’ नहीं
हमाने दर्शन में कहा गया है, पुरुष और प्रकृति एक दूसरे के पूरक हैं. यहां पुरुष शिव को माना गया है और प्रकृति पार्वती हैं. एक के बिना दूसरे का अस्तित्व संभव ही नहीं है. शिव स्थिरता है, जो सृष्टि के सृजन के लिए जरूरी है, वहीं प्रकृति रचनात्मक होती है, वही रचना करती है. इसे ऐसे समझें, जैसे एक पौधा होता है, जिसे उगने के लिए जमीन चाहिए. धरती की स्थिरता के बिना पौधा विकसित नहीं हो सकता, वहीं इसके विपरीत पौधा जन्म है, रचना है. यदि पौधे की रचना नहीं है यानी जमीन बंजर है तो वह धरती भी अधूरी है. यानी पौधा और धरती एक-दूसरे के पूरक हैं. बस यही धरती की स्थिरता शिव हैं यानी पुरुष है और पौधे की रचना पार्वती हैं, यानी नारी हैं. शिव उच्चता का भाव नहीं देते, वह शक्ति के साथ संपूर्णता का भाव देते हैं. शक्ति के बिना शिव भी उतने ही अधूरे हैं, जितना शक्ति, शिव के बिना. अर्द्धनारीश्वर का ये रूप ही हमें समझाता है कैसे नारी और पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं, प्रतियोगी नहीं. महिला और पुरुष एक दूसरे को ‘कंप्लीट’ करते हैं, एक-दूसरे से ‘कंपीट’ नहीं.
अर्धनारीश्वर रूप से समझाई ब्रह्मा को सृष्टि की रचना
इसे आगे समझाते हुए प्रसिद्ध ज्योतिष, श्रुति खरबंदा बताती हैं, ‘अगर दर्शन के नजरिए से समझें तो सांख्य दर्शन में भी पुरुष को नित्य, अविनाशी कहा गया है. पुरुष यानी शिव. वहीं प्रकृति, जो पार्वती हैं, उन्हें गुण कहा गया है. ये दोनों अपनी-अपनी जगह सृष्टि की संरचना के लिए जरूरी हैं और इसलिए यहां तुलना नहीं बल्कि पूरकता का गुण आता है. जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की तो हर दिन निमार्ण कराना उनके लिए भी असंभव था. प्रतिदित जीवों का निर्माण करना था. ऐसे में सवाल उठा कि सृष्टि को सुचारू रूप से कैसे चलाया जाए. तब शिव ने अपने इसी अर्धनारीश्वर रूप के जरिए उन्हें सृष्टि के निर्माण की बात की. यानी पुरुष और प्रकृति एक दूसरे के पूरक हो जाएं तो सृष्टि के सृजन की प्रक्रिया अपने आप होती चली जाए.