धर्म एवं ज्योतिष
पूजा-पाठ में क्यों जलाते हैं कपूर? 4 हैं इसके गजब के फायदे, रिश्ते होंगे मधुर
15 Mar, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिन्दू धर्म शास्त्रों में बताया गया है कि घर में पूजा-पाठ के दौरान कपूर का इस्तेमाल करने से घर का माहौल सकारात्मक रहता है. मान्यता के अनुसार पूजा के समय कपूर को जलाने से घर में ख़ुशहाली बनी रहती है और नकारात्मकता नष्ट हो जाती है. कपूर के जलने पर निकलने वाला धुआं घर के वातावरण को शुद्ध करता है और कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं से भी छुटकारा दिलाता है. कपूर के धुएं में जो सुगंध मौजूद होती है, वह सकारात्मकता को बढ़ाती है. साथ ही कीट-पतंगों को भी घर से दूर रखती है. इसके अलावा हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, पूजा-पाठ या हवन में कपूर का इस्तेमाल न किया जाए तो पूजन अधूरा माना जाता है. चलिए जानते हैं भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा से पूजा-पाठ के दौरान कपूर जलाना शुभ क्यों होता है, और इसको जलाने के क्या फ़ायदे होते हैं?
पूजा-पाठ में क्यों जलाया जाता है कपूर
हिन्दू धर्म में की जाने वाली पूजा-पाठ अनुष्ठान में कपूर प्राचीन काल से ही जलाया जाता आ रहा है. हिन्दू मान्यताओं के अनुसार कपूर जलाने के कई आध्यात्मिक लाभ हैं. घर में कपूर जलाने से सकारात्मकता और शांति आती है. कपूर का उपयोग करने से देवी-देवता प्रसन्न होते हैं.
कपूर जलाने के फ़ायदे
कपूर को घर में जलाने से घर के अंदर का वातावरण शुद्ध होता है. जलते हुए कपूर की सुगंध हानिकारक वायरस और बैक्टीरिया को ख़त्म करती है. कपूर को शाम के समय मिट्टी के किसी बर्तन में रखकर जलाना चाहिए और इसका धुआं पूरे घर में फैलाया जाना चाहिए. ऐसा करने से ही घर के सभी दोष समाप्त होते हैं. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार घर में कपूर जलाने से पितृ दोष भी दूर होता है. इसके अलावा घर को लगी बुरी नजर का प्रभाव कम होता है और रिश्तों में मधुरता बनी रहती है.
कपूर जलाने का वैज्ञानिक कारण
विज्ञान के अनुसार घर के अंदर कपूर जलाने से हानिकारक बैक्टीरिया और प्रदूषण से राहत मिलती है. इसका धुआं कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं से बचा सकता है. घर में इस्तेमाल होने वाला कपूर कई तरह से लाभदायक होता है. यह हवा को शुद्ध करके स्वास्थ्य लाभ देता है.
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (15 मार्च 2024)
15 Mar, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- अधिक संघर्षशीलता से बचिये, सुख-भोग, एश्वर्य की प्राप्ति होगी अवश्य होगी।
वृष राशि :- विरोधी तत्व परेशान करें, शुद्ध गोचर रहने से समय की अनुकूलता बनेगी।
मिथुन राशि :- कार्य निश्चय ही बनेंगे, समय की अनुकूलता का लाभ लेवें, मनस्थिति बनेगी।
कर्क राशि :- कुटुम्ब में शुभ समाचार, दैनिक व्यावसाय में अनुकूलता अवश्य ही बनेगी।
सिंह राशि :- सरकारी कार्यों में मान-प्रतिष्ठा, नवीन योजनायें फलीभूत होंगी।
कन्या राशि :- विवादग्रस्त होने से बचें अन्यथा संकट में फंस सकते हैं, समय का ध्यान रखें।
तुला राशि :- कार्य निश्चय बनें, समय की अनुकूलता का लाभ लेवें, ध्यान अवश्य रखें।
वृश्चिक राशि :- मनोबल उत्साहवर्धक योग बनेंगे, सोचे कार्य समय पर पूर्ण होंगे।
धनु राशि :- मनोबल उत्साहवर्धक योग बनेंगे, समय का लाभ लेकर कार्य बना लें।
मकर राशि :- मानसिक शांति बनाये रखें, विरोधी तत्व परेशान करेंगे, ध्यान रखें।
कुंभ राशि :- सफलता के साधन बनें, व्यर्थ भटकने एवं चंगुल में फंसने से बचेंगे।
मीन राशि :- प्रत्येक कार्य में बाधा-विलम्ब, किसी मित्र के द्वारा आपको सहयोग मिलेगा।
सबसे अनूठी और भव्य होती है मथुरा और वृंदावन की होली
14 Mar, 2024 07:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में होली का त्यौहार बेहद अहम स्थान रखता है। देश भर में इसकी धूम रहती है पर मथुरा और वृंदावन की होली सबसे अनूठी और भव्य मानी जाती है। श्रीकृष्ण की जन्मभूमि मथुरा की होली को देखने देश भर से ही नहीं विदेशों से भी धर्मप्रेमी सैलानियों की भीड़ उमड़ती है। जहां देश के दूसरे हिस्सों में रंगों से होली खेली जाती है वहीं सिर्फ मथुरा एक ऐसी जगह है जहां रंगों के अलावा लड्डूओं और फूलों से भी होली खेलने का रिवाज़ है। इतना ही नहीं पूरे एक हफ्ते पहले यहां समारोह शुरु हो जाता है।
इसलिए मथुरा की होली होती है खास
ऐसा माना जाता है कि आज भी मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी निवास करते हैं इसलिए पूजा-पाठ से लेकर उत्सव भी ऐसे मनाए जाते हैं जैसे वो खुद इसका हिस्सा हैं। भगवान श्रीकृष्ण, हमेशा से ही राधा के गोरे और अपने सांवले रंग की शिकायत मां यशोदा से किया करते थे। तो राधा रानी को अपने जैसा बनाने के लिए वो उनपर अलग-अलग रंग डाल दिया करते थे। नंदगांव से कृष्ण और उनके मित्र बरसाना आते थे और राधा के साथ उनकी सखियों पर भी रंग फेंकते थे। जिसके बाद गांव की स्त्रियां लाठियों से उनकी पिटाई करती थी।
तो राधा-कृष्ण की बाकी लीलाओं की तरह ये भी एक परंपरा बन गई जिसे यहां लट्ठमार होली के तौर पर आज भी निभाया जाता है।
बरसाना की लट्ठमार होली
वैसे तो पूरे शहर में ही होली की धूमधाम देखने को मिलती है लेकिन जिस होली की चर्चा पूरे देशभर में है उसे देखने के लिए आपको बरसाना, नंदगांव, ब्रज और वृंदावन आना पड़ेगा। बरसाना की लट्ठमार होली में नंदगांव से पुरुष आकर यहां की महिलाओं को चिढ़ाते हैं जिसके बाद महिलाएं उनकी लाठी-डंडों से पिटाई करती हैं। इस लड़ाई को देखने और इसमें शामिल होने का अपना अलग ही आनंद होता है। इसके बाद वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर आएं जहां रंगों और पानी के साथ होली खेलने की परंपरा है।
ऐसे बनाएं मथुरा और वृंदावन की होली को खास
बरसाना की लट्ठमार होली
नंदगांव की लट्ठमार होली
रंग भरनी एकादशी- बांके-बिहारी मंदिर, वृंदावन
विधवा होली- मथुरा के मैत्री आश्रम में रहती हैं विधवा महिलाएं। जहां विधवा महिलाएं भी जमकर खेलती हैं होली। जो एक बहुत ही अच्छा और सार्थक कदम है क्योंकि पहले हमारे देश के रीति-रिवाज इसके खिलाफ थे।
होलिका दहन- पूरे व्रजमंडल में होलिका दहन होता है।
होली- व्रजमंडल में खेलें पानी की होली, मथुरा, वृंदावन के सभी मंदिरों में होली की धूम देखने को मिलती है।
हुरंगा- दाऊजी मंदिर आकर देखें मशहूर हुरंगा होली की मस्ती।
रंग पंचमी- और रंग पंचमी के साथ होता है होली का समापन। जिसे आप यहां के मंदिरों में देख सकते हैं।
होलाष्टक के दौरान इसलिए नहीं होते हैं मांगलिक कार्य
14 Mar, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
इस बार होली 25 मार्च को मनाई जाएगी। ऐसे में होलास्टकर 24 मार्च को समाप्त होगा, होली के आठ दिन पहले के समय को होलाष्टक कहा जाता है। इस दौरान किसी भी तरह के शुभ और मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। माना जाता है कि होलिका से पूर्व 8 दिन दाह-कर्म की तैयारी की जाती है। यह मृत्यु का सूचक है। इस दुख के कारण होली के पूर्व 8 दिनों तक कोई भी शुभ काम नहीं किया जाता है।
इस दौरान हिंदू धर्म में बताए गए 16 संस्कारों को नहीं किया जाता है। जैसे गर्भाधान, विवाह, पुंसवन, नामकरण, चूड़ाकरन, विद्यारम्भ, गृह प्रवेश, गृह निर्माण, गृह शांति, हवन यज्ञ कर्म, आदि नहीं किए जाते हैं। दरअसल, होलाष्टक को ज्योतिष की दृष्टि से एक दोष माना जाता है, जिसमें शुभकार्य नहीं किए जाते हैं।
कहा जाता है कि होलाष्टक के दौरान किए गए कार्यों से कष्ट होता है। विवाह आदि संबंध टूट जाते हैं और घर में क्लेश की स्थिति बनती है। होलाष्टक आरंभ होते ही दो डंडों को स्थापित किया जाता है। इसमें एक होलिका का प्रतीक है और दूसरा प्रह्लाद से संबंधित है।
होलिका दहन में जब प्रह्लाद बच जाता है, तो उसी खुशी में होली का त्योहार मनाते हैं। इसके साथ ही एक कथा यह भी है कि भगवान शिव की तपस्या को भंग करने के कारण शिव ने कामदेव को फाल्गुन की अष्टमी में भस्म कर दिया था। कामदेव की पत्नी रति ने उस समय क्षमा याचना की और शिव जी ने कामदेव को पुनः जीवित करने का आश्वासन दिया। इसी खुशी में लोग रंग खेलते हैं।
होलाष्टक का अर्थ और मान्यताएं
चन्द्र मास के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होलिका पर्व मनाया जाता है। होली पर्व के आने की सूचना होलाष्टक से प्राप्त होती है। होलाष्टक को होली पर्व की सूचना लेकर आने वाला एक हरकारा कहा जात सकता है। होलाष्टक के शाब्दिक अर्थ पर जायें, तो होला अष्टक अर्थात होली से पूर्व के आठ दिन, जो दिन होता है, वह होलाष्टक कहलाता है। सामान्य रुप से देखा जाये तो होली एक दिन का पर्व न होकर पूरे नौ दिनों का त्यौहार है। दुलैण्डी के दिन रंग और गुलाल के साथ इस पर्व का समापन होता है।
होली की शुरुआत होली पर्व होलाष्टक से प्रारम्भ होकर दुलैण्डी तक रहती है। इसके कारण प्रकृ्ति में खुशी और उत्सव का माहौल रहता है। होलाष्टक से होली के आने की दस्तक मिलती है, साथ ही इस दिन से होली उत्सव के साथ-साथ होलिका दहन की तैयारियां भी शुरु हो जाती है।
होलिका दहन में होलाष्टक की विशेषता
होलिका पूजन करने के लिये होली से आठ दिन पहले होलिका दहन वाले स्थान को गंगाजल से शुद्ध कर उसमें सूखे उपले, सूखी लकडी, सूखी खास व होली का डंडा स्थापित कर दिया जाता है। जिस दिन यह कार्य किया जाता है, उस दिन को होलाष्टक प्रारम्भ का दिन भी कहा जाता है। जिस गांव, क्षेत्र या मौहल्ले के चौराहे पर पर यह होली का डंडा स्थापित किया जाता है। होली का डंडा स्थापित होने के बाद संबन्धित क्षेत्र में होलिका दहन होने तक कोई शुभ कार्य संपन्न नहीं किया जाता है।
होलाष्टक के दिन से शुरु होने वाले कार्य
सबसे पहले इस दिन, होलाष्टक शुरु होने वाले दिन होलिका दहन स्थान का चुनाव किया जाता है। इस दिन इस स्थान को गंगा जल से शुद्ध कर, इस स्थान पर होलिका दहन के लिये लकडियां एकत्र करने का कार्य किया जाता है। इस दिन जगह-जगह जाकर सूखी लकडियां विशेष कर ऎसी लकडियां जो सूखने के कारण स्वयं ही पेडों से टूट्कर गिर गई हों, उन्हें एकत्र कर चौराहे पर एकत्र कर लिया जाता है।
होलाष्टक से लेकर होलिका दहन के दिन तक प्रतिदिन इसमें कुछ लकडियां डाली जाती है। इस प्रकार होलिका दहन के दिन तक यह लकडियों का बडा ढेर बन जाता है। व इस दिन से होली के रंग फिजाओं में बिखरने लगते है। अर्थात होली की शुरुआत हो जाती है। बच्चे और बडे इस दिन से हल्की फुलकी होली खेलनी प्रारम्भ कर देते है।
होलाष्टक में कार्य निषेध
होलाष्टक मुख्य रुप से पंजाब और उत्तरी भारत में मनाया जाता है। होलाष्टक के दिन से एक ओर जहां उपरोक्त कार्यो का प्रारम्भ होता है। वहीं कुछ कार्य ऎसे भी है जिन्हें इस दिन से नहीं किया जाता है। यह निषेध अवधि होलाष्टक के दिन से लेकर होलिका दहन के दिन तक रहती है। अपने नाम के अनुसार होलाष्टक होली के ठिक आठ दिन पूर्व शुरु हो जाते है।
होलाष्टक के मध्य दिनों में 16 संस्कारों में से किसी भी संस्कार को नहीं किया जाता है। यहां तक की अंतिम संस्कार करने से पूर्व भी शान्ति कार्य किये जाते है। इन दिनों में 16 संस्कारों पर रोक होने का कारण इस अवधि को शुभ नहीं माना जाता है।
होलाष्टक की पौराणिक मान्यता
फाल्गुण शुक्ल अष्टमी से लेकर होलिका दहन अर्थात पूर्णिमा तक होलाष्टक रहता है। इस दिन से मौसम की छटा में बदलाव आना आरम्भ हो जाता है। सर्दियां अलविदा कहने लगती है, और गर्मियों का आगमन होने लगता है। साथ ही वसंत के आगमन की खुशबू फूलों की महक के साथ प्रकृ्ति में बिखरने लगती है। होलाष्टक के विषय में यह माना जाता है कि जब भगवान श्री भोले नाथ ने क्रोध में आकर काम देव को भस्म कर दिया था, तो उस दिन से होलाष्टक की शुरुआत हुई थी।
होलाष्टक से जुडी मान्यताओं को भारत के कुछ भागों में ही माना जाता है। इन मान्यताओं का विचार सबसे अधिक पंजाब में देखने में आता है। होली के रंगों की तरह होली को मनाने के ढंग में विभिन्न है। होली उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, तमिलनाडू, गुजरात, महाराष्ट्र, उडिसा, गोवा आदि में अलग ढंग से मनाने का चलन है। देश के जिन प्रदेशो में होलाष्टक से जुडी मान्यताओं को नहीं माना जाता है। उन सभी प्रदेशों में होलाष्टक से होलिका दहन के मध्य अवधि में शुभ कार्य करने बन्द नहीं किये जाते है।
धर्म का लाभ प्राप्त होने का आशीर्वाद दें
14 Mar, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
‘धर्म लाभ हो’ यह ऐसा विशेष आशीर्वाद है जो विरले ही विलक्षण संत भक्तों को देते थे। एक दिन ऐसा ही आशीर्वाद पाकर एक भाग्यवान भक्त ने पूछ लिया, ‘महात्मा जी, आमतौर पर ऋषि-मुनि धनवान, दीर्घायु, समृद्ध और विजयी होने का आशीर्वाद देते हैं। आप धर्म का लाभ प्राप्त होने का आशीर्वाद क्यों देते हैं?
संत ने उसकी जिज्ञासा को शांत करते हुए कहा, ‘ऊपर बताए जो आशीर्वाद तुम्हें अब तक मिलते रहे यह तो सामान्य आशीर्वाद हैं। लक्ष्मी और धन तो कृपण के पास भी बहुत हो सकता है। दीर्घायु भी बहुतों को मिल जाती है। संतान सुख ब्रह्मांड के सभी जीव भोगते हैं। मैंने तुम्हें जो धर्म-लाभ का अलौकिक आशीर्वाद दिया है उससे तुम्हें शाश्वत एवं वास्तविक सुख मिलेगा। धर्म-लाभ वह लाभ है जिसके अंदर दुख नहीं बसता। धर्म से जीवन शुभ ही शुभ बनता है। शुभता के अभाव में प्राप्त लाभ से गुणों में ह्रास और दुर्गुणों में वृद्धि होती है। अशुद्ध साधनों से अर्जित धन-लाभ आपको सुख के अतिरिक्त सब कुछ दे सकता है। उसमें आपको सुखों में भी दुःखी बनाने की शक्ति है।’
हम प्राय: धर्म लाभ और शुभ-लाभ को जानने का प्रयास नहीं करते हैं। शुभ अवसरों पर शुभ-लाभ लिखते अवश्य हैं, लेकिन लाभ अर्जित करते समय कभी इसका ध्यान नहीं रखते कि क्या इसकी प्राप्ति के साधन शुभ हैं? लाभ ऐसा हो जिससे किसी और को कलेश न हो, किसी को हानि न पहुंचे। लक्ष्मी वहीं निवास करती है जहां धर्म का निवास है और लक्ष्मी उसे कहते हैं जो शुभ साधनों से प्राप्त हो। सम्यक नीति से न्यायपूर्वक जो प्राप्त होती है वह वास्तविक संपदा है और बाकी सब विपदा। पैसा हमारे व्यक्तित्व में तभी सही चमक पैदा कर सकता है, जब हमारे मानवीय गुण बने रहें। अमेरिकी लेखक हेनरी मिलर का कथन है- मेरे पास पैसा नहीं है, कोई संसाधन नहीं है, कोई उम्मीद नहीं है, पर मैं सबसे खुशहाल जीवित व्यक्ति हूं।
नदी जब अपने स्वभाव में बहती है उसका जल निर्मल, पीने योग्य और स्वास्थ्यवर्धक होता है। लेकिन जैसे ही उसमें बाढ़ आती है, वह तोड़फोड़ और विनाश का कारण बनती है। उसका निर्मल जल मलिन हो जाता है। वर्तमान में भी जो धन का आधिक्य है वह अशुभ-लाभ और अशुद्ध साधनों की बाढ़ से अर्जित लाभ ही है। यही कारण है कि इस तरह से प्राप्त की हुई संपदा विपदा ही सिद्ध हो रही है। वर्तमान की सारी अशांति और अस्त-व्यस्तता की जनक यही अनीति से अर्जित धन संपदा है। अमेरिकी विद्वान ओलिवर वेंडेल का कहना है कि आमतौर पर व्यक्ति अपने सिद्धांतों की अपेक्षा अपने धन के लिए अधिक परेशान रहता है।
विपदा ने संपदा का लिबास पहन रखा है। शुभ कहीं जाकर अशुभ की चकाचौंध में विलीन हो गया है। सभी कम करके ज्यादा पाने की होड़ में लगे हैं। सब ‘ईजी मनी’ की तलाश में हैं, ‘राइट मनी’ की खोज में कोई नहीं है। इसमें सुख पीछे छूटता जा रहा है। हमारी भलाई इसी में है कि लाभ-शुभ का प्रतिफल बनें और लाभ का सदुपयोग भी शुभ में हो। पैसों की अंधी लालसा में जब हम बेईमानी, चोरी और भ्रष्टाचार से पैसा कमाने लगते हैं, तो हम पैसे का घोर निरादर कर रहे होते हैं। जिंदगी बेहतर होती है जब हम खुश होते हैं लेकिन बेहतरीन तब होती है जब हमारी वजह से लोग खुश होते हैं।
तो आप करेंगे यात्राएं
14 Mar, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हाथ भी आपके व्यवहार और जीवनशैली की जानकारी दे देते हैं। जिन व्यक्तियों के हाथ की उंगलियां चौड़े सिरों वाली यानी सिरे पर से पहले एवं दूसरे जोड़ की अपेक्षा अधिक चौड़ी होती हैं ऐसे व्यक्ति में कर्म करने की तीव्र इच्छा रहती है। ये व्यक्ति खाली नहीं बैठ सकते, लेकिन अस्थिर प्रवृत्ति के होते हैं। ऐसे व्यक्ति यात्रा प्रेमी होते हैं और जीवन में बदलाव के पक्षपाती भी होते हैं। ऐसे व्यक्ति आविष्कारक एवं यान्त्रिक दक्षता वाली प्रवृत्ति के होते हैं। विस्तार, शोध एवं अनुसंधान से इन्हें विशेष प्रेम होता है।
जिन व्यक्तियों की हाथ की उंगलियों के सिरे मिश्रित हों अर्थात एक उंगली का सिरा नोकदार दूसरी उंगली का सिरा वर्गाकार, तीसरी का सिरा चौड़ा हो, ऐसा व्यक्ति बहुमुखी प्रतिभा का स्वामी होता है। ऐसा व्यक्ति ग्रहणशील होता है और किसी भी कार्य को अनायास ही करने में सक्षम होता है। ऐसा व्यक्ति सब कार्यों में दखल तो रखता है, किन्तु दक्ष किसी कार्य में नहीं होता। ऐसा व्यक्ति सर्वगुण सम्पन्न तो होता है, किन्तु उसमें विशेषज्ञता की कमी होती है। हर प्रकार के व्यक्ति से वह सही व्यवहार कर सकता है।
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (14 मार्च 2024)
14 Mar, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- कार्य-कुशलता एवं स्त्री-वर्ग से सुख-एश्वर्य की प्राप्ति होगी तथा कार्य अवश्य बनेंगे।
वृष राशि :- धन लाभ, कार्य-कुशलता से संतोष, बिगड़े हुए कार्य बनेंगे, ध्यान दें।
मिथुन राशि :- धन लाभ-कार्य-कुशलता से संतोष तथा आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा।
कर्क राशि :- भाग्य का सितारा चमकेगा, बिगड़े कार्य बन जायेंगे, कार्य फलीभूत होंगे।
सिंह राशि :- आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा, स्वाभाव में क्रोध, मन में उद्विघ्नता अवश्य बनेगी।
कन्या राशि :- स्त्री-वर्ग से सुख, कार्य में सुधार, आर्थिक योजना पूर्ण तथा फलीभूत होंगी।
तुला राशि :- आशानुकूल सफलता का हर्ष, कार्यवृत्ति में सुधार, बिगड़े कार्य अवश्य ही बनेंगे।
वृश्चिक राशि :- मान-प्रतिष्ठा, प्रभुत्व वृद्धि तथा इष्ट मित्र सुखवर्धक होंगे, रुके कार्य बनेंगे।
धनु राशि :- असमर्थता, शारीरिक बेचैनी, कुछ चिन्ताएं मन उद्विघ्न रखेंगी, समय का ध्यान रखें।
मकर राशि :- कार्य-कुशलता से संतोष, परिवर्तन वृथा फलप्रद हो तथा व्यावसाय होगा।
कुंभ राशि :- सामाजिक कार्यों में मान-प्रतिष्ठा बढ़ेगी, कार्य-कुशलता तथा अधिकारियों से मेल होगा।
मीन राशि :- कुटुम्ब के कार्य में समय बीते, हर्षप्रद समाचार प्राप्त होगा, ध्यान रखें।
कब है विनायक चतुर्थी? 3 शुभ संयोग में होगी गणेश पूजा
13 Mar, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मार्च के विनायक चतुर्थी का व्रत फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है. विनायक चतुर्थी व्रत हर माह में एक बार रखा जाता है. इस व्रत में भगवान गणेश की विधिपूर्वक पूजा करते हैं. इस व्रत के दिन चंद्रमा का दर्शन करना वर्जित होता है. विनायक चतुर्थी की पूजा दिन में कर लेते हैं. इस बार की विनायक चतुर्थी पर 3 शुभ संयोगों का निर्माण हो रहा है. केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र से जानते हैं कि विनायक चतुर्थी कब है? गणेश पूजा का मुहूर्त और शुभ योग कौन से हैं?
कब है विनायक चतुर्थी 2024?
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, 13 मार्च दिन बुधवार को फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी 02:33 एएम से लग जाएगी. यह तिथि 13 मार्च को ही रात 11 बजकर 55 मिनट पर खत्म हो रही है. उदयातिथि के आधार पर विनायक चतुर्थी का व्रत 13 मार्च दिन बुधवार को रखा जाएगा.
3 शुभ संयोगों में है विनायक चतुर्थी व्रत
इस बार की विनायक चतुर्थी 3 शुभ संयोगों में पड़ रही है. विनायक चतुर्थी के दिन रवि योग, इंद्र योग और बुधवार का दिन पड़ रहा है. रवि और इंद्र दोनों ही शुभ योग हैं, जिसमें पूजा पाठ करने से पुण्य मिलता है, वहीं बुधवार का दिन गणेश पूजा के लिए ही समर्पित है, उस दिन विनायक चतुर्थी का होना अति शुभ फलदायी है.
व्रत वाले दिन रवि योग सुबह 06 बजकर 33 मिनट से शाम 06 बजकर 24 मिनट तक है. वहीं इंद्र योग प्रात:काल से लेकर देर रात 12 बजकर 49 मिनट तक है.
विनायक चतुर्थी 2024 मुहूर्त
विनायक चतुर्थी के दिन विघ्नहर्ता श्री गणेश जी की पूजा का शुभ मुहूर्त दिन में 11 बजकर 06 मिनट से दोपहर 01 बजकर 33 मिनट तक है. इस समय में आपको विनायक चतुर्थी की पूजा कर लेनी चाहिए.
विनायक चतुर्थी 2024 चंद्रोदय समय
13 मार्च को विनायक चतुर्थी वाले दिन चंद्रोदय सुबह 08 बजकर 22 मिनट पर होगा और चंद्रास्त रात 09 बजकर 58 मिनट पर होगा.
विनायक चतुर्थी पर लगेगी भद्रा
विनायक चतुर्थी के दिन भ्रदा का भी साया होगा. व्रत के दिन भद्रा दोपहर 02 बजकर 40 मिनट से लगेगी और यह देर रात 01 बजकर 25 मिनट तक रहेगी.
विनायक चतुर्थी व्रत का महत्व
जो भी व्यक्ति विनायक चतुर्थी का व्रत रखकर गणपति बप्पा की पूजा करता है, उसे कार्य सफल होते हैं. भगवान गणेश उसके जीवन में आने वाले संकटों को दूर करते हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं.
सपने में किसी महिला को नृत्य करते देखने का क्या है मतलब? 5 तरह के सपने, जो करते हैं बहुत कुछ बयां
13 Mar, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
ज्योतिष शास्त्र में सपनों को लेकर कई मान्यताएं प्रचलित हैं, जिसके अनुसार सपने हमें भविष्य में होने वाली घटनाओं के बारे में बताते हैं. कुछ सपने शुभ फल प्रदान करते हैं तो कुछ अशुभ. सपनों में महिलाओं का विभिन्न अवस्थाओं में दिखने के भी कई फल प्राप्त होते हैं. यहां भोपाल निवासी ज्योतिष आचार्य विनोद सोनी पौद्दार बता रहे हैं कुछ ऐसे ही सपनों के बारे में, जिनका हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है. ये सपने हमें आने वाली भविष्य के लिए सतर्क भी करते हैं. आइए जानते हैं कुछ ऐसे ही सपनों के बारे में.
5 तरह के सपनों का क्या अर्थ है?
1. सपने में पत्नी से विदा लेना
स्वप्न शास्त्र के अनुसार अगर सपने में कोई ये देखे कि वह अपनी पत्नी से विदा ले रहा है, तो वह शीघ्र ही रोग की चपेट में आ सकता है. अगर कोई कुंवारा व्यक्ति ये सपना देखता है तो ये संकेत है कि उसका अपनी प्रेमिका से मनमुटाव हो सकता है.
2. सपने में महिला को नृत्य करकते देखना
स्वप्न शास्त्र के अनुसार जब कोई व्यक्ति सपने में किसी महिला को नृत्य करते हुए देखता है या किसी नाटक में नारी का संवाद सुनता है, तो ये संकेत है कि उसका अपने प्रेमी या प्रेमिका से संबंध टूट सकता है.
3. सपने में स्त्री से गले मिलना
स्वप्न शास्त्र के अनुसार जो व्यक्ति सपने में सफेद वस्त्र पहने हुए, सफेद माला पहनी हुई स्त्री से गले मिलता है, उसे धन की प्राप्ति होती है. जो व्यक्ति सपने में अपनी प्रेमिका से गले मिलता है, उसे शुभ समाचार मिलता है.
4. कुर्सी पर बिल्ली को सोते देखना
स्वप्न शास्त्र के अनुसार, यदि कोई अविवाहित युवती सपने में कुर्सी पर बिल्ली को सोते हुए देखती है, तो ये संकेत है कि उसका विवाह किसी धनी युवक से हो सकता है. अगर विवाहित स्त्री ये सपना देखे तो उसके जीवन में परेशानियां आ सकती हैं.
भगवान श्रीकृष्ण की कुंडली में था कालसर्प दोष, इसलिए धारण किया मोरपंख, लेकिन ये 5 वजहें भी हैं रोचक
13 Mar, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
कृष्ण के भक्त सदा श्रीकृष्ण को प्रसन्न रखने और उनकी कृपा पाने के लिए पूर्ण श्रद्धा से उनकी पूजा करते हैं. अगर आप भी भगवान श्रीकृष्ण के भक्त हैं तो आपको उनके बारे में ये अवश्य पता होना चाहिए कि भगवान श्रीकृष्ण अपने सिर पर मोरपंख क्यों धारण करते हैं? इसके पीछे कौन सी अनोखी कथा प्रचलित है? आइए जानते हैं भोपाल निवासी ज्योतिष आचार्य विनोद सोनी पौद्दार से.
क्यों धारण करते हैं मोरपंख?
वह मोरपंख के माध्यम से मित्र और शत्रु के बीच भेद को समाप्त करना चाहते हैं. भगवान श्रीकृष्ण के भाई बलराम शेषनाग का अवतार हैं और मोर सांप का शत्रु होता है, जिस कारण श्रीकृष्ण के अनुसार उनके लिए सब समान हैं.
भगवान श्रीकृष्ण अपने सिर पर मोरपंख इसलिए धारण करते हैं क्योंकि मोर इस दुनिया का सबसे पवित्र और सुन्दर पक्षी है. कहा जाता है कि मोर जीवन पर्यंत ब्रह्मचर्य का पालन करता है. माना जाता है कि मोरनी मोर के आंसू पीकर गर्भ धारण करती है, ऐसे में मोर जैसे पवित्र पक्षी को सम्मान देने के लिए श्रीकृष्ण अपने सिर पर मोर का पंख धारण करते हैं.
यह भी माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण की कुंडली में कालसर्प दोष था. कहते हैं इस कारण भी भगवान श्रीकृष्ण अपने सिर पर मोरपंख धारण करते हैं क्योंकि मोरपंख धारण करने से कालसर्प दोष भी दूर होता है.
भगवान कृष्ण ने अपने सिर पर मोरपंख इसलिए भी धारण किया है क्योंकि मोरपंख में कई सारे रंग होते हैं. जो जीवन में सुख और दुःख दोनों ही अवस्थाओं को दर्शाते हैं. ऐसे में जीवन को बिल्कुल मोर पंख की भांति जीना चाहिए. जिसमें हर रंग अर्थात हर अवस्था का होना आवश्यक है. भगवान कृष्ण इसी संदेश के साथ मोरपंख को सिर पर धारण करते हैं.
इसके अतिरिक्त, मान्यता ये भी है कि बालपन में माता यशोदा भगवान श्रीकृष्ण को सजाते समय मोरपंख का उपयोग करती थीं.
कई धर्म ज्ञानियों का मानना है कि मोरपंख भगवान श्रीकृष्ण और राधाजी के प्रेम का प्रतीक चिह्न है. एक बार जब श्रीकृष्ण और राधा जी महारास कर रहे थे, तब उनके साथ मोरों का झुंड भी नाच रहा था.
ऐसे में एक मोर का पंख टूटकर भूमी पर गिर गया, जिसको बाद में श्रीकृष्ण ने अपने सिर पर धारण कर लिया और फिर सदा लगाए रखा.
25 या 26 कब मनाई जाएगी होली
13 Mar, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
होली का त्योहार देशभर में बड़े उत्साह और धूमधाम से मनाया जाता है. अब इस त्योहार की धूम विदेश में भी देखने को मिलती है. काशी की परंपरा के अनुसार हर साल चैत्र कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को होली का त्योहार मनाया जाता है. इस बार होली की तारीख को लेकर कन्फ्यूजन की स्थिति बनी हुई हैं. आप भी होली की तारीख को लेकर कन्फ्यूज हैं तो आज ही अपना कन्फ्यूजन दूर कर लीजिए.
काशी के ज्योतिषाचार्य पंडित संजय उपाध्याय ने बताया कि फाल्गुल शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को भद्रा रहित मुहूर्त में होलिका दहन होता है. चैत्र कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को होली मनाई जाती है. इस बार दो दिन पूर्णिमा होने के कारण पंचांग में दो अलग-अलग तिथि को होली मनाने की बात सामने आ रही है.
26 मार्च को देशभर में होली!
संजय उपाध्याय ने बताया कि ऋषिकेश और अन्नपूर्णा पंचांग में इस बात का उल्लेख है कि काशी में 25 मार्च को होली मनाई जाएगी. जबकि काशी के अलावा दूसरे सभी जगहों पर 26 मार्च को होली होगी. हालांकि होलिका दहन देश भर में 24 मार्च के मध्यरात्रि में ही होगा. क्योंकि रात्रि में भद्रा रहित पूर्णिमा तिथि में ही होलिका दहन का विधान है. 24 मार्च को रात 10 बजकर 27 मिनट के बाद भद्रा समाप्त हो जाएगा. जिसके बाद होलिका दहन किया जा सकेगा.
चौसट्टी देवी यात्रा के दिन काशी में होली
काशी में होलिका दहन के दूसरे दिन चौसट्टी देवी योगिनी यात्रा निकाली जाती है. इस बार यह यात्रा 25 मार्च को निकाली जाएगी. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार चौसट्टी देवी योगिनी यात्रा के दिन ही काशी में होली मनाई जाती है. इसलिए 25 मार्च को ही काशी में होली मनाई जाएगी. जबकि बाकी जगहों पर 26 मार्च को होली मनाई जाएगी.
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (13 मार्च 2024)
13 Mar, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि- मान प्रतिष्ठा बाल बाल बचें, कार्य व्यवसाय गति उत्तम, स्त्री वर्ग में हर्ष हेवेगा।
वृष राशि :- धन प्राप्ति के योग बनेगे, नवीन मैत्री व मंत्रणा प्राप्त होवेगी। कार्य बनेंगे।
मिथुन राशि :- इष्ट मित्र वर्ग सहायक रहे, व्यवसायिक क्षमता में वृद्धि होवेगा तथा कार्य बनेगा।
कर्क राशि :- सामाजिक कार्यप्रतिष्ठा, कार्य कुशलता संतोष जनक रहे तथा कार्य बनने लगेगे।
सिंह राशि - परिश्रम से समय पर सोचे कार्य पूर्ण होंगे, तथा व्यवसाय गति उत्तम होवेगी।
कन्या राशि :- अधिकारियों को समर्थन फलप्रद रहे, कार्य कुशलता से संतोष होवेगा, कार्य बनेगे।
तुला राशि :- दैनिक व्यवसाय गति उत्तम तथा व्यवसायिक चिन्ताएं कम अवश्य होगी।
वृश्चिक राशि :-कार्यवृत्ति में सुधार होगा असमंजस तथा सफलता न मिले, कार्य अवरोध होगा।
धनु राशि - स्थिति अनियंत्रित रहे, नियंत्रण तथा सफलता करना आवश्यक होगा तथा कष्ट से बचे।
मकर राशि - मानसिक खिन्नता एवं स्वभाव में मानसिक उद्विघ्नता बनी रहे, समय का ध्यान रखे।
कुंभ राशि - योजनांए फलीभूत हो, विघटनकारी तत्व परेशान करे तथा कष्ट पहुंचाने का प्रयास करेंगे।
मीन राशि - मनोबल उत्साहवर्धक होगा तथा कार्य कुशलता से संतोष होगा।
अद्भुत है ये एकादशी व्रत, धन की कमी होगी दूर! जानें तिथि, विधि, मुहूर्त
12 Mar, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हमारे हिंदू धर्म में आमलकी एकादशी का व्रत बहुत ही शुभ माना जाता है. इस व्रत को रखने से सौभाग्य समृद्धि एवं खुशियों में वृद्धि होती है. हमारे धर्म ग्रंथो के अनुसार जो व्यक्ति इस व्रत को करते हैं. उनके सभी पाप धुल जाते हैं. इसके साथ ही भगवान श्री नारायण का आशीर्वाद उन्हें प्राप्त होता है. ज्योतिषाचार्य पं पंकज पाठक के अनुसार हमारे हिन्दू सनातन धर्म में आमलकी एकादशी का विशेष महत्व है. यह व्रत शुक्ल पक्ष के ग्यारहवें दिन मनाया जाता है.
इस दिन भगवान नारायण के साथ धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा का विधान है. मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान श्री हरि नारायण की पूजा भाव के साथ करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है. इसके साथ ही घर में बरकत का वास होता है. तो आईए जानते हैं आमलकी एकादशी का व्रत किस प्रकार करें, व्रत करने का शुभ मुहूर्त और जाने व्रत की सही विधि.
आमलकी एकादशी व्रत की पूजा विधि
इस दिन पूजा करने के लिए सबसे पहले जल्दी उठकर स्नान कीजिये. इसके बाद आप भगवान नारायण के समक्ष व्रत का संकल्प लीजिए. इसके बाद आप पूजा घर को साफ कीजिये. फिर एक वेदी पर भगवान नारायण एवं मां लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें. भगवान नारायण का पंचामृत से स्नान कीजिए. इसे बाद उन्हें पीले फूलों की माला अर्पित करें. इसे बाद हल्दी या फिर गोपी चंदन का तिलक लगाए. इसके बाद भगवान को पंजीरी एवं पंचामृत का भोग लगा दीजिए. उसके बाद भगवान नारायण का ध्यान करें. पूजा में तुलसी पत्र अवश्य शामिल करें. इसके बाद अंत में आरती कीजिये और पूजा में हुई गलतियों के लिए आप भगवान से क्षमा मांगे. इसके बाद आप गरीबों व जरूरतमंदों को भोजन कराएं. अगले दिन अपना व्रत सुबह पूजा-पाठ के बाद खोलें.
पूजन के समय इस मंत्र का जप करें
ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।
ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान। यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्टं च लभ्यते।।
शुभ मुहूर्त
आमलकी एकादशी 20 मार्च दोपहर 12:21 मिनट पर होगी. फिर इसका समापन अगले दिन 21 मार्च को दोपहर 02:22 मिनट पर होगा. जो व्यक्ति इस दिन का उपवास रख रहे हैं, वे 21 मार्च को दोपहर 01:07 मिनट से 03:32 मिनट तक के बीच अपना पारण कर सकते हैं.
शादी में विदाई के वक्त दुल्हन चावल क्यों छींटती है? फिर पलटकर पीछे नहीं देखती
12 Mar, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू सनातन धर्म में अलग अलग रश्म और मान्यता है. शादी विवाह में भी कई तरह के रश्म निभाए जाते है. हर रश्म के अलग -अलग मान्यता होती है. मगर क्या आप जानते है कि विवाह के पश्चात दुल्हन अपनी पिता के दहलीज को जब लांघती है, तो बिना पीछे पलटे चावल क्यों छींटती है?. इस रिपोर्ट में हम आपको बताएंगे की आखिर ऐसा क्यों होता है.
गोस्वामी तुलसीदास के चौपाई पुत्रि पवित्र किये कुल दोऊ, सुजस धवल जगु कह सब कोऊ के अनुसार पुत्री दो कुल को पवित्र करती है. एक पिता की और दूसरा अपने पति की करती है. इसीलिए बिना समझे बेटे और बेटियों में समानता साथापित नहीं किया जा सकता है. बेटियों को शास्त्रों में लक्ष्मी का दर्जा दिया गया है. डाल्टनगंज के चौक स्थित मां भगवती भवन के पुजारी श्यामा बाबा ने कहा कि शादी विवाह में कई रश्म निभाए जाते है. मगर इसके कुछ कारण होते है.वहीं, दुल्हन विवाह के पश्चात विदाई के समय चावल के साथ सिक्के को पीछे बिना देखे छीटती है,जो की हमारे यहां लोकाचार्य है.
मायके का सौभाग्य लेकर नहीं जाए
आगे बताया कि बेटियां घर की लक्ष्मी होती है. जब वहीं विदाई में बेटी किसी और के घर जा रही है.तो पिता के घर में अन्न धन की कमी न हो इसीलिए बिना पीछे पलटे चावल के साथ छिटंती है. इसके साथ ही पुत्री के हाइट की रस्सी को भी घर में रखा जाता है. ताकि लक्ष्मी हमारे पास ही रहे. ये हमारे पूर्वजों द्वारा दिया हुआ रश्म है. जिसे आज भी लोग निभाते है. इसका तात्पर्य यह होता है कि वह लक्ष्मी स्वरुप अपने साथ मायके का सौभाग्य लेकर नहीं जाए. मायके में हमेशा अन्न और धन से भरा रहे.
यह एक प्रकार है टोटका
इसके अलावा एक लोकाचर्य यह भी है कि विदाई के बाद घर से कुछ दूर भाई द्वारा दुल्हन को पानी का कुल्ला कराया जाता है. इसके साथ ही अपने घर की ओर देखने को कहा जाता है. इसका यह मान्यता है कि मायके से दुल्हन का स्नेह कम न हो और अपना घर वापस आने का भाव मिलता है. विदाई के बाद दुल्हन कुछ कंकड़ अपने गांव के सिरहाने फेंखती है. इससे पहले वो कंकड़ को अपने सिर पर फेरती है. जिसका तात्पर्य है कि अगर हमारे ऊपर कोई दुर्गुण शक्तियां है तो वो यहीं रह जाए. यह एक प्रकार का टोटका होता है. इसके बाद दुल्हन बिना पीछे देखे अपने ससुराल चली जाती है. ताकि जो भी दुर्गुण शक्तियां है वो उसपर फिर से हावी न हो और अपना निगाह न डाल सके.
जीव परमेश्वर की परा शक्ति
12 Mar, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
जीव परमेश्वर की परा प्रकृति (शक्ति) है। अपरा शक्ति तो पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि तथा अहंकार जैसे विभिन्न तत्वों के रूप में प्रकट होती है। भौतिक प्रकृति के ये दोनों रूप-स्थूल (पृथ्वी आदि) तथा सूक्ष्म (मन आदि) अपरा शक्ति के ही प्रतिफल हैं। जीव जो अपने विभिन्न कार्य के लिए अपरा शक्तियों का विदोहन करता रहता है, स्वयं परमेश्वर की परा शक्ति है और यह वही शक्ति है जिसके कारण सारा संसार कार्यशील है। इस दृश्य जगत में कार्य करने की तब तक शक्ति नहीं आती, जब तक परा शक्ति अर्थात जीव द्वारा यह गतिशील नहीं बनाया जाता। शक्ति का नियंत्रण सदैव शक्तिमान करता है, अत: जीव सदैव भगवान द्वारा नियंत्रित होते हैं। जीवों का अपना कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है।
वे कभी भी सम शक्तिमान नहीं, जैसा कि बुद्धिहीन मनुष्य सोचते हैं। श्रीमद्भागवत में जीव तथा भगवान के अन्तर को इस प्रकार बताया गया है- ‘प्र्े परम शात! यदि सारे देहधारी जीव आप ही की तरह शात एवं सर्वव्यापी होते तो वे आपके नियंत्रण में न होते। किन्तु यदि जीवों को आपकी सूक्ष्म शक्ति के रूप में मान लिया जाए, तब वे सभी आपके परम नियंत्रण में आ जाते हैं। अत: वास्तविक मुक्ति आपकी शरण में जाना है और इस शरणागति से वे सुखी होंगे।
परमेश्वर कृष्ण एकमात्र नियन्ता हैं और सारे जीव उन्हीं के द्वारा नियंत्रित हैं। सारे जीव उनकी पराशक्ति हैं, क्योंकि उनके गुण परमेश्वर के समान हैं, किन्तु वे शक्ति की मात्रा के विषय में समान नहीं हैं। स्थूल व सूक्ष्म अपरा शक्ति का उपभोग करते हुए परा शक्ति (जीव) को अपने वास्तविक मन तथा बुद्धि की विस्मृति हो जाती है। इसका कारण जीव पर जड़ प्रकृति का प्रभाव है। माया के प्रभाव में अहंकार सोचता है, मैं ही पदार्थ हूं और सारी भौतिक उपलब्धि मेरी है किंतु जब वह सारे भौतिक विचारों से मुक्त हो जाता है, तो उसे वास्तविक स्थिति प्राप्त होती है। गीता जीव को कृष्ण की अनेक शक्तियों में से एक मानती है और जब यह शक्ति भौतिक कल्मष से मुक्त हो जाती है, तो पूर्णतया कृष्णभावनाभावित या बंधनमुक्त हो जाती है।