धर्म एवं ज्योतिष
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
2 Sep, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि - समृद्धि एवं सफलता के योग बनेंगे, अनिष्टता से बचने की चेष्ठा अवश्य ही करें।
वृष राशि - भाग्य का सितारा प्रबल रहे तथा व्यवसायिक क्षमता अनुकूल होगी, मित्र सहयोग करेंगे।
मिथुन राशि - मानसिक उद्विघ्नता से अशांति, अवरोध बढ़ेगा, असमंजस बना रहे, ध्यान रखे।
कर्क राशि - लेन-देन के मामले में हानि होगी, धन फस सकता है, सतर्कता बनाए रखे, लाभ होवेगा।
सिंह राशि - विशेष कार्य स्थिगित रखे, किसी के चंगुल से बचेंगे अधिक उत्सुकता हानिकारक होगी।
कन्या राशि - क्रोध व आवेश से हानि संभव है। मानसिक तनाव तथा बेचैनी अवश्य ही बढ़ेगी।
तुला राशि - सोचे हुये कार्य पूर्ण होंगे, अधिकारियों से समर्थन प्राप्त होगा, विशेष कार्य ध्यान रखे।
वृश्चिक राशि Š- अनावश्यक वाद-विवाद से बचिये, बिगड़े हुए कार्य बनेंगे, समय व्यवस्था का ध्यान रखे।
धनु राशि - समय अनुकूल नहीं, अधिकारी मित्रों से सर्तक अनावश्यक वाद विवाद से बचकर चले।
मकर राशि - दैनिक समृद्धि के साधन जुटायें, व्यर्थ समय तथा धन नष्ट न करें, ध्यान रखे।
कुंभ राशि - स्त्री वर्ग से हर्ष-उल्लास, समय अनुकूल नहीं, लेन-देन स्थिगित रखे, कार्य समेटे।
मीन राशि - आशानुकूल सफलता से संतोष होगा, कार्यगति में सुधार तथा धन लाभ होगा।
भाद्रपद के पहले प्रदोष पर मिलेगा महादेव का आशीर्वाद, शिवलिंग पर चढ़ाएं भगवान कृष्ण की प्रिय 4 वस्तुएं, चमकेगा भाग्य!
1 Sep, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिन्दू पंचांग का पांचवां महीना सावन महादेव को समर्पित माना जाता है. वैसे इसका अगला महीना भाद्रपद भगवान कृष्ण को समर्पित है. इस महीने में वैसे तो कई महत्वपूर्ण व्रत आते हैं, लेकिन उनमें से त्रयोदशी तिथि को आने वाले व्रत को प्रदोष के नाम से जाना जाता है. इस दिन भगवान शिव की विधि विधान से पूजा करने की परंपरा है. जो कि 31 अगस्त, दिन शनिवार को पड़ रहा है. आने वाले प्रदोष व्रत की खास बात यह कि ये भाद्रपद मास का पहला प्रदोष है. वहीं भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा के अनुसार यह महीना भगवान कृष्ण का है और कृष्ण महादेव के आराध्य भी हैं. ऐसे में आपको इस व्रत के दौरान शिवलिंग पर भगवान कृष्ण से जुड़ी और उनकी कुछ प्रिय वस्तुएं चढ़ाना चाहिए, जो आपको शुभ फल प्रदान करेंगी.
1. राधा कृष्ण नाम लिखा हुआ बेलपत्र
धार्मिक मान्यता और ग्रंथों के अनुसार भगवान कृष्ण को राधा नाम अत्यधिक प्रिय है. ऐसे में आप शिवलिंग पर यदि राधा कृष्ण नाम लिखा हुआ बेलपत्र चढ़ाते हैं तो इससे भगवान शिव के साथ भगवान कृष्ण की कृपा भी बरसती है.
2. माखन
भगवान कृष्ण को माखन चोर के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि उन्हें माखन बहुत ही पसंद है. ऐसे में आप प्रदोष व्रत की पूजा के दौरान शिवलिंग पर माखन भी चढ़ा सकते हैं. इससे पारिवारिक क्लेश दूर होता है.
3. मोरपंख
आपने भगवान कृष्ण के मुकुट पर मोरपंख हमेशा देखा होगा, यह भी उनकी प्रिय चीजों में से एक है. ऐसे में आप प्रदोष व्रत वाले दिन शिवलिंग पर मोर पंख चढ़ाएं, इससे महादेव जल्दी प्रसन्न होंगे और आपकी सारी समस्याओं को दूर करेंगे.
4. बांसुरी
पुराणों के अनुसार, भगवान कृष्ण जब बांसुरी बजाते थे तो इसकी आवाज सुनकर भगवान शिव कैलाश से अक्सर ब्रज धाम में दर्शन करने आते थे. ऐसे में आप प्रदोष व्रत के दौरान शिवलिंग पर बांसुरी जरूर चढ़ाएं.
गया धाम में पिंडदान करने से 101 कुल और 7 गोत्र का उद्धार, भगवान राम से जुड़ा है इतिहास
1 Sep, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
पूर्वजों को मोक्ष दिलाने का महापर्व पितृपक्ष मेला 17 सितंबर से शुरू हो जाएगी जो 2 अक्टूबर तक चलेगी. पितृपक्ष में पिंडदान देश के कई स्थानों पर किया जाता है, लेकिन बिहार के गया में पिंडदान का एक अलग ही महत्व है. ऐसा माना जाता है कि गया धाम में पिंडदान करने से 101 कुल और 7 गोत्र का उद्धार होता है. गया में किए गए पिंडदान का गुणगान भगवान राम ने भी किया है.
भगवान राम ने अपने पिता दशरथ का पिंडदान किया था तब से यह स्थान पितरों की तृप्ति के लिए सर्वोच्च माना जाता है. गरुड़ पुराण के अनुसार यदि इस स्थान पर पिंडदान किया जाए तो पितरों को स्वर्ग मिलता है. स्वयं श्रीहरि भगवान विष्णु यहां पितृ देवता के रूप में मौजूद हैं इसलिए इसे पितृ तीर्थ भी कहा जाता है.
पंडित राजा आचार्य बताते हैं कि गया जी में पिंडदान का विशेष महत्व है. हर साल यहां लाखों की संख्या में लोग अपने पूर्वजों का पिंडदान करने आते हैं. मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से मृत आत्मा को स्वर्ग की प्राप्ति होती है. साथ ही उसकी आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है.
वैसे तो पूरे साल गयाजी में पिंडदान किया जाता है लेकिन पितरों के लिए विशेष पक्ष यानि पितृपक्ष के दौरान पिंडदान करने का अलग महत्व शास्त्रों में बताया गया है. पितृपक्ष प्रतिवर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अनन्त चतुदर्शी के दिन से प्रारम्भ होता है जो अश्विन मास की आमावस्या तिथि को समाप्त होता है.
मान्यता है कि फल्गु नदी के तट पर पिंडदान एवं तर्पण करने से पितरों को सबसे उत्तम गति के साथ मोक्ष की प्राप्ति होती है एवं माता-पिता समेत कुल की सात पीढ़ियों का उद्धार होता है. साथ ही पिंडदानकर्ता स्वयं भी परमगति को प्राप्त करते हैं.
फल्गु नदी के जल का महत्व इतना ज्यादा है कि ऐसी मान्यता है कि नदी में पांव पड़ने से उड़ने वाले पानी की छिंटे मात्र से भी पूर्वजों की आत्मा की मुक्ति हो जाती है. पैर के स्पर्श से उड़ने वाली पानी की छिंटे को भी पवित्र मानकर पूर्वजों की आत्मा इस छिंटे को भी ग्रहण कर लेती है.
गया जी में पिंडदान पूरे साल किया जा सकता है लेकिन गया श्राद्ध या गया पिंडदान शुभ 17 दिन पितृपक्ष मेला या 7 दिन, 5 दिन, 3 दिन, 1 दिन या कृष्ण पक्ष के साथ किसी भी महीने में अमावस्या करना बेहतर है. 17 दिनों का पितृपक्ष श्राद्ध या पितृपक्ष मेला, दिवंगत पूर्वजों या परिवार के किसी भी दिवंगत सदस्य को अर्पण करने के लिए सबसे शुभ दिन माना जाता है.
इस वर्ष पितृपक्ष 17 सितंबर से शुरू हो रही है जो 2 अक्टूबर तक रहेगी. गया में पिंडदान करने से चार गुना पुण्य मिलने की मान्यता है क्योंकि यह स्थान भगवान विष्णु और माता सीता से जुड़ा हुआ है. यहां की ऊर्जा और दिव्यता से पिंडदान का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है.
क्या पितृ पक्ष में ही कर सकते हैं शुभ कार्य? क्या है विशेष पूजा परंपरा? ज्योतिषाचार्य से जानें
1 Sep, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
आमतौर पर एक प्रचलित धारणा है कि पितृ पक्ष में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है. इसका मुख्य कारण पितरों की नाराजगी से जुड़ा होता है. ऐसे में क्या किसी आपात स्थिति में कोई शुभ कार्य का आयोजन करना है तो उसके लिए किसी विशेष पूजा की जरूरत होती है? इस सवाल का जवाब देने के लिए हमने मध्य प्रदेश के ज्योतिषाचार्य पंडित पंकज मेहता से बात की, जहां उन्होंने तथ्यों के साथ जानकारी दी.
क्या है धार्मिक आधार
खरगोन जिले के पंडित पंकज मेहता के अनुसार, पितृ पक्ष के दौरान शुभ कार्यों से बचने की परंपरा का धार्मिक आधार यह है कि यह समय अपने पितरों को श्रद्धांजलि देने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने का होता है. पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि पितृ पक्ष में पितर धरती पर आते हैं और इस दौरान उन्हें तृप्त करना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है.
अगर किसी को पितृ पक्ष में शुभ कार्य करना आवश्यक हो, तो पहले अपने पितरों की विशेष पूजा और तर्पण करना चाहिए. हालांकि, शास्त्रों में यह भी माना गया है कि कोई भी शुभ कार्य करने के लिए सोलह दिन सभी के लिए निषेद नहीं है. जिस दिन अपने घर में पितरों का पूजन होता है. सिर्फ उसी दिन शुभ कार्य निषेद होते हैं. शेष अन्य दिनों में कोई भी शुभ कार्य किए जा सकते हैं. इसके लिए पितृ पूजा में पितरों का आह्वान करके उनसे क्षमा याचना की जाती है और उनके आशीर्वाद की प्रार्थना की जाती है. ऐसा माना जाता है कि पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करने से शुभ कार्य में किसी भी प्रकार की बाधा नहीं आती है.
क्या है वैज्ञानिक आधार
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, पितृ पक्ष में विशेष पूजा करने का कारण मानसिक और भावनात्मक शांति प्राप्त करना हो सकता है. पंडित मेहता बताते हैं कि इस समय विशेष पूजा और तर्पण से मनोवैज्ञानिक लाभ भी होते हैं. यह प्रक्रिया व्यक्ति को अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का अवसर देती है और उसे मानसिक संतोष का अनुभव होता है. पूरा परिवार एकत्रिक होकर पितृ पूजन करता है तो पितृ प्रसन्न होते हैं.
पितरों के प्रति सम्मान प्रकट करने से व्यक्ति को मानसिक शांति मिलती है, जो शुभ कार्यों के लिए आवश्यक सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करती है. इस समय पितरों की विशेष पूजा करने से ध्यान और मन की एकाग्रता बढ़ती है, जो किसी भी कार्य को सफल बनाने में सहायक होती है.
क्या है विशेषज्ञ की राय
ज्योतिषाचार्य पंडित पंकज मेहता का कहना है कि पितृ पक्ष में जिस दिन पितृ की मृत्यु हुई हो उस दिन विशेष पूजा करना शुभ कार्यों के लिए लाभकारी हो सकता है. यह न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि व्यक्ति के मानसिक और भावनात्मक संतुलन के लिए भी आवश्यक है.
गणेशोत्सव: इस साल नारियल की मूर्तियों की विशेष मांग! विसर्जन के बाद भी इनकी कीमत लाखों में
1 Sep, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
अब सभी को प्यारे बप्पा के आगमन का बेसब्री से इंतजार है. कुछ ही दिनों में बप्पा घर-घर और सार्वजनिक मंडलियों में विराजेंगे. पिछले कुछ वर्षों से इको-फ्रेंडली गणेशोत्सव मनाने को विशेष प्राथमिकता दी जा रही है. बाजार में नारियल के छिलकों से बनी गणेश प्रतिमाओं की विशेष मांग है. बप्पा का रूप तो हमेशा ही सुंदर दिखता है, लेकिन कोकोपीट से बनी मूर्तियां बेहद सरल, सुंदर और मनमोहक लगती हैं.
“ठाणे में, एकनाथ राणे और उनके भाई लीलाधर राणे पर्यावरण-अनुकूल तरीके से नारियल से गणेश की मूर्तियाँ बनाते हैं. इन मूर्तियों को रंगने के लिए प्राकृतिक रंगों का भी उपयोग किया जाता है.”
क्या होती है कोकोपीट?
“कोकोपीट नारियल के छिलकों से बनी मिट्टी है, जिसमें शादु मिट्टी मिलाकर गणेश प्रतिमाएं बनाई जाती हैं. कोकोपीट का उपयोग पेड़ों के लिए उर्वरक के रूप में भी किया जाता है. गणेश जी की प्रतिमाओं के विसर्जन के बाद जो मिट्टी बचती है, वह पेड़ों के काम आती है. एकनाथ राणे द्वारा निर्मित गणेश प्रतिमाओं के लिए हल्दी, कुंकू, और मुल्तानी मिट्टी को मिलाकर प्राकृतिक रंग तैयार किए जाते हैं, ताकि मूर्ति विसर्जन के बाद पेड़ों की वृद्धि में कोई दिक्कत न हो.”
कैसे स्थापित करें कोकोपीट की गणपति मूर्ति का बिजनेस
“एकनाथ राणे ने सबसे पहले कोकोपीट की मूर्तियाँ स्थापित करने की शुरुआत अपने घर से की थी. अब इस मूर्ति की लोगों में विशेष मांग है. गीले फूलों या थोड़े से पानी से भी इस मूर्ति को कोई नुकसान नहीं होता है. मूर्ति कलाकार लीलाधर राणे ने कहा, ‘हम मूर्ति को ठीक से सुखाते हैं, ताकि उसे कोई नुकसान न हो. ये मूर्तियाँ विसर्जन के 3 से 4 घंटे के भीतर पानी में घुल जाती हैं, और इसके बाद बची हुई मिट्टी को पेड़ों के लिए उर्वरक के रूप में उपयोग किया जा सकता है.’ यदि आप भी इस साल इको-फ्रेंडली गणेशोत्सव मनाना चाहते हैं, तो नारियल गणेश की मूर्ति स्थापित कर सकते हैं. इससे प्रकृति को नुकसान नहीं होगा और आपके पौधों को पौष्टिक खाद भी मिल जाएगी.
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
1 Sep, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष :- किसी के द्वारा धोखा देने से मनोवृत्ति खिन्न रहेगी, धन का व्यय तथा परिश्रम विफल होगा।
वृष :- समय अनुकूल नहीं है, लेन-देन के मामले विफल रहेंगे, व्यर्थ विवाद से बचें।
मिथुन :- व्यर्थ समय नष्ट होगा, यात्रा प्रसंग में थकावट व बेचैनी बनी रहेगी, समय समस्या का ध्यान रखें।
कर्क :- प्रयत्नशीलता विफल हो, परिश्रम करने में ही कुछ सफलता अवश्य मिलेगी।
सिंह :- परिश्रम से कार्यपूर्ण होंगे, तर्क-वितर्क से विजय प्राप्त हो, सफलता मिले, धन का लाभ होगा।
कन्या :- व्यवसायिक अनुकूलता से असंतोष किन्तु कार्य-व्यवस्था अनुकूल बनी रहेगी।
तुला :- किसी तनावपूर्ण वातावरण से बचिये, कुछ उदविघ्नता से परेशानी बने, मित्रों से लाभ होगा।
वृश्चिक :- परिश्रम से कार्य में सुधार होते हुए भी फलप्रद नहीं, कार्य विफलत्व की चिन्ता बनेगी।
धनु :- स्त्री वर्ग से उल्लास, इष्ट मित्र सुखवर्धक होंगे तथा रुके कार्य अवश्य ही बन जायेंगे।
मकर :- स्वभाव में क्लेश व अशांति, व्यर्थ विभ्रम, भय तथा उद्विघ्नता अवश्य बनेगी।
कुम्भ :- कार्यगति अनुकूल रहेगी, चिन्ताएW कम होंगी तथा विलासिता के साधन जुटायेंगे।
मीन :- आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा तथा इष्ट मित्रों का समर्थन फलप्रद होगा।
मां लक्ष्मी का प्रतीक है तुलसी, भादो में पूजा के साथ इन 4 चीजों को करें अर्पित, खत्म होगी धन से जुड़ी समस्या!
31 Aug, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिन्दू धर्म में हर किसी समस्या को दूर करने के लिए किसी विशेष देवी या देवता की पूजा का विधान है. इनमें माता लक्ष्मी को धन की देवी कहा गया है. ऐसा माना जाता है कि जो भी माता की आराधना करता है, उसके घर में आर्थिक परेशानी कभी नहीं होती. वहीं तुलसी को माता लक्ष्मी का प्रतीक माना गया है. ऐसी मान्यता है कि तुलसी की पूजा करने से घर की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है. भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा के अनुसार, पंचांग के छठवें माह भाद्रपद में तुलसी पूजा का विशेष महत्व है और इस महीने में आपको कुछ सामान्य चीजें तुलसी को अर्पित करना चाहिए, जिससे आपको शुभ फल की प्राप्ति होती है. कौन सी हैं ये चीजें? आइए जानते हैं.
1. कलावा
हिन्दू धर्म में कलावा को रक्षा सूत्र माना जाता है और धार्मिक मान्यता के अनुसार, इसमें त्रिदेवों का वास होता है. ऐसे में भादो के महीने में आप तुलसी को कलावा बांधें. इससे आप पर हमेशा त्रिदेवों की कृपा बनी रहेगी.
2. चंदन
इस महीने में आप तुलसी पूजन के साथ तुलसी पर हर रोज चंदन लगाएं. ऐसा करने से आपके घर में जो भी नकारात्मकता है, वह दूर हो जाएगी और सकारात्मकता के साथ ही शुभता का आगमन होगा.
3. केसर
माना जाता है कि केसर से धन आकर्षित होता है और यदि भादो माह में आप तुलसी पूजा के दौरान केसर अर्पित करें तो इससे आपकी धन संबंधी समस्या खत्म होगी और कभी आर्थिक तंगी नहीं होगी.
4. कपूर
भादो के महीने में आपको कपूर एक लाल कपड़े में लपेटकर उसका चूरा बना लेना है, जिसे आप रोजाना शाम के समय तुलसी में चढ़ाएं. ऐसा करने से आपके घर में किसी प्रकार का दोष होगा तो वह दूर हो जाएगा.
हरतालिका तीज पर भूल से भी न करें ये 10 काम, कष्टों से भर जाएगा जीवन
31 Aug, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सुख-समृद्धि और पति की लंबी उम्र की कामना से सुहागिन महिलाएं हरतालिका तीज का व्रत रखती है. हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को यह पर्व मनाया जाता है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, हरतालिका तीज के कठिन व्रत के प्रभाव से ही माता पार्वती ने भगवान शिव को प्राप्त किया था.वैदिक पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि की शुरुआत 05 सितंबर को दोपहर 12. 21 बजे से होगी. वहीं, इस तिथि का समापन 06 सितंबर को दोपहर 03.21 बजे होगा. ऐसे में हरतालिका तीज का व्रत 06 सितंबर को किया जाएगा. धार्मिक ग्रंथो के अनुसार हरतालिका तीज पर कुछ कामों को करना वर्जित बताया गया है. यदि आप व्रत के दौरान यह कार्य करते हैं तो आपको व्रत का विपरीत फल प्राप्त होगा.
हरिद्वार के ज्योतिषी श्रीधर शास्त्री ने लोकल 18 को बताया कि इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु की कामना लेकर शिव-पार्वती की उपासना करती हैं. साथ ही उनके लिए कठिन उपवास का पालन करती हैं. वहीं, इस दिन सुहागिन महिलाओं कुछ खास बातों का ध्यान रखना चाहिए.
क्रोध नहीं करना: पंडित श्रीधर शास्त्री बताते हैं कि जो स्त्रियां हरतालिका तीज व्रत को करती हैं उन्हें क्रोध नहीं करना चाहिए यदि ऐसा करते हैं तो व्रत अधूरा रहता है.
व्रत को नहीं तोड़ना: जो स्त्रियां एक बार व्रत करने का संकल्प करके हरतालिका तीज का व्रत करती हैं उन्हें यह व्रत नहीं तोड़ना चाहिए ऐसा करने पर सौभाग्यवती स्त्रियों को अशुभ परिणाम प्राप्त होते हैं.
रात्रि में नही सोना: जिस तिथि में हरतालिका तीज का व्रत होता है. उस रात्रि में स्त्रियों का सोना वर्जित बताया गया है. धार्मिक ग्रंथो के अनुसार रात्रि में स्त्रियों को जागरण कर भगवान शिव की कथा, स्तोत्र का पाठ करना चाहिए उन्हें विशेष लाभ होता है.
पति से न करें झगड़ा : पंडित श्रीधर शास्त्री बताते हैं की जो स्त्रियां हरतालिका तीज के व्रत को करती हैं उन्हें अपने पति के साथ झगड़ा नहीं करना है. पति परमेश्वर का रूप होते हैं जिनके लिए यह व्रत किया जाता है. यदि महिलाएं इस व्रत के दौरान पति के साथ झगड़ा करती हैं तो उन्हें इस व्रत का शुभ परिणाम प्राप्त होगा.
काले रंग से रहे दूर : इस शुभ दिन पर विवाहित महिलाओं को काले रंग की चूड़ियां और कपड़े पहनने से बचना चाहिए, क्योंकि हिंदू धर्म में काले रंग को अशुभता से जोड़ा जाता है
बड़े-बुजुर्गों का अपमान नहीं करना: जो स्त्रियां हरतालिका तीज का व्रत करती हैं उन्हें विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए कि वह बड़ो बुजुर्गों का अपमान ना करें. इस व्रत के दौरान बड़े बुजुर्गों का अपमान करना वर्जित होता है. यदि स्त्रियां ऐसा करती हैं तो उन्हें इस व्रत का विपरीत फल प्राप्त होता है.
व्रत की कथा को श्रवण करना: विवाहित महिलाओं को इस व्रत पर देवी पार्वती, भगवान शिव और भगवान गणेश की पूजा करनी चाहिए, जो महिलाएं इन तीनों में से किसी की भी पूजा नहीं करती है, तो उनका व्रत अधूरा माना जाता है।
पवित्रता बनाए रखना : हरितालिका व्रत को करने से पूर्व ही पवित्रता का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए . व्रत में पवित्रता रखने मात्र से ही आधा व्रत पूरा हो जाता है क्योंकि पवित्रता में ही लक्ष्मी और परमात्मा का निवास होता है. यदि व्रत के दौरान पवित्रता नहीं है तो व्रत का फल नहीं मिलता है.
दूध का सेवन वर्जित: पंडित श्रीधर शास्त्री बताते हैं की जिन स्त्रियों के द्वारा हरतालिका तीज का व्रत किया जाता है उन्हें दूध का सेवन नहीं करना चाहिए.. मान्यताओं के अनुसार हरतालिका व्रत के दौरान दूध का सेवन करने से अगला जन्म सर्प योनि का होता है.
फल का सेवन वर्जित: व्रत करने वाली स्त्रियों को इस दिन फल का सेवन नहीं करना चाहिए. यदि स्त्रियां इस व्रत के दौरान फल का सेवन करती हैं तो अगले जन्म में वह वानर योनि में जाती है.
महाभारत युद्ध के बाद कितने योद्धा जीवित रहे, वो कौन कौन थे, वो महान योद्धा भी जिसका नाम कोई नहीं लेता
31 Aug, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
क्या आपको मालूम है कि सबसे बड़ा युद्ध कहा जाने वाले महाभारत की जब समाप्ति हुई तो कितने योद्धा जीवित रहे. ये इतने कम थे कि बहुत आसानी से उन्हें अंगुली पर गिना जा सकता है. ये युद्ध जब लड़ा जाना शुरू हुआ तो दोनों ओर से लाखों सैनिक युद्ध मैदान में आमने-सामने थे लेकिन जब ये खत्म हुआ तो ज्यादातर सैनिक खत्म हो चुके थे. दोनों ही पक्षों का इतना भारी नुकसान हुआ था. ऐसे में जो बचे वो बहुत किस्मत वाले थे. वैसे हम आपको बता देते हैं कि महाभारत युद्ध में जीवित रहने वाले दिग्गज योद्धाओं की संख्या दो अंकों यानि दहाई में है.
महाभारत में कुरूक्षेत्र युद्ध के परिणाम में जानमाल की भारी हानि हुई, कई योद्धा मारे गए. आइए पहले जान लेते हैं कि जब ये महायुद्ध शुरू हुआ था तो दोनों ओर से कितने सैनिक और योद्धा मैदान में थे.
कितनी बड़ी थी दोनों ओर की सेना
महाभारत के युद्ध में दोनों पक्षों की सेनाओं की कुल संख्या 18 अक्षोहिणी थी, जिसमें कौरवों की 11 और पांडवों की 7 अक्षोहिणी सेनाएं शामिल थीं. अक्षोहिणी एक प्राचीन भारतीय सेना की माप है, जिसका उपयोग महाभारत के युद्ध में किया गया था। यह एक पूर्ण चतुरंगिणी सेना का प्रतिनिधित्व करती है, जिसमें चार प्रमुख अंग होते हैं: पैदल सैनिक, घुड़सवार, रथी और हाथी.
एक अक्षोहिणी में निम्नलिखित सैनिक होते हैं:
पैदल सैनिक: 21,870
घोड़े: 21,870
रथ: 21,870
हाथी: 21,870
इस प्रकार एक अक्षोहिणी में कुल लगभग 109,350 सैनिक होते हैं.
युद्ध के बाद कितने दिग्गज योद्धा बचे
अब हम आपको बताते हैं कि युद्ध जब 18वें दिन खत्म हुआ तो कितने बड़े योद्धा बचे हुए थे. उनकी संख्या 11 थी, हालांकि तकनीक तौर पर देखा जाए तो ये संख्या 12 कही जानी चाहिए.
कौन-कौन बचा
पांडव पक्ष की ओर से सभी पांचों पांडव जिंदा बच गए, हालांकि उन्हें अपने सभी करीबियों और पुत्रों की जान गंवानी पड़ी. यानि युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव सभी युद्ध में बच गए. युद्ध के बाद युधिष्ठिर हस्तिनापुर के राजा बने और 36 सालों तक शासन किया.
पांडव पक्ष की ओर से युद्ध लड़ने वाले तीन और प्रमुख योद्धा या हस्तियां भी बची रहीं, वो थे भगवान कृष्ण, युयुत्सु और सात्यकि. हालांकि कृष्ण ने प्रण किया था कि वह इस युद्ध में हथियार नहीं उठाएंगे. वह अर्जुन के रथ के सारथी बने. पूरे युद्ध में पांडवों का मार्गदर्शन किया. वह युद्ध में बच गए.
कौन थे युयुत्सु और सात्यकि
अब आइए हम आपको युयुत्सु और सात्यकि के बारे में बताते हैं. युयुत्सु कौरवों का सौतेला भाई था. वह पांडवों की ओर से लड़ा. युद्ध के अंत तक बचा रहा. इसके बाद युधिष्ठिर जब राजा बने तो उन्होंने युयुत्सु को राजकाज का महत्वपूर्ण काम सौंपा. सात्यकि के बारे में कहा जाता है कि वह कृष्ण के वफादार और उनके करीबी थे. वह युद्ध में बच गए.
कौरव पक्ष की ओर से कौन जीवित रहे
अब देखते हैं कि कौरव पक्ष में जो लोग महाभारत के युद्ध में लड़े, उसमें कौन से दिग्गज युद्ध खत्म होने के बाद भी बचे रहे. उसमें अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा शामिल हैं. अश्वत्थामा ने युद्ध में अपने पिता द्रोणाचार्य को अनुचित तरीके से मारे जाने के बाद इसका प्रतिशोध लेने के चलते दृष्टद्युम्न और पांडवों के पांच पुत्रों की हत्या कर दी. इसके बदले कृष्ण ने उन्हें श्राप दिया कि वह कलयुग में भी जिंदा रहेंगे. उन्हें मृत्यु नहीं मिलेगी. कहा जाता है कि अश्वत्थामा आज भी जंगलों में भटकते रहते हैं.
कृपाचार्य पांडवों और कौरवों दोनों के शिक्षक थे, युद्ध के बाद भी जीवित रहे. फिर उन्होंने युधिष्ठर के साथ भी काम किया. कृतवर्मा कौरव सेना के एक सेनापति थे, वह भी बचे रहे. इस तरह 11 लोग इसमें बचे रहे.
भीष्म युद्ध के बाद 40 दिनों तक जिंदा रहे
वैसे अगर तकनीक तौर पर देखा जाए तो युद्ध के बाद भी भीष्म पितामह भी जिंदा थे. वह बेशक घायल होने के बाद बाणशैय्या पर लेटे रहे. वह घायल होने और बाणशैय्या पर लेटने के बाद भी 58 दिनों भी जिंदा रहे. युद्ध के दसवें दिन घायल होने की वजह से उन्हें युद्ध से हटना पड़ा था. इसका मतलब ये हुआ कि युद्ध खत्म होने के बाद भी वह 40 दिनों तक जीवित रहे. उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान मिला हुआ था. उन्होंने मकरसंक्रांति के दिन खुद के प्राण छोड़े.
अश्वत्थामा ने दुर्योधन से क्या बताया कि कितने जीवित बचे
यहां हमें महाभारत के उस प्रहसन के बारे में भी जानना चाहिए कि 18वें जब युद्ध खत्म हो गया. तब बहुत बुरी घायल अवस्था में दुर्योधन वन में अचेत थे. खून की उल्टियां कर रहे थे. तब पांडवों के पांच पुत्रों की हत्या करके अश्वत्थामा वहां पहुंचे.
अश्वत्थामा ने वहां उनकी स्थिति देखकर विलाप करना शुरू किया. उन्होंने इस बात के लिए खुद को धिक्कारा कि वह, कृतवर्मा और कृपाचार्य क्यों जिंदा बच गए और शत्रु से युद्ध में लड़ने के बाद दुर्योधन की ये स्थिति हो गई.
वह दुर्योधन से कहते हैं कि तुम स्वर्ग में जाकर द्रोणाचार्य से कहना कि आज मैंने धृष्टद्युम्न का वध कर दिया है. तुम हमारी ओर से वालीकराज, जयद्रथ, सोमदत्त, भूरिश्रवा, भगदत्त आदि का आलिंगन कर उनका कुशल-क्षेम पूछना. इसी दौरान अश्वत्थामा ये बताते हैं कि युद्ध के बाद कितने मुख्य योद्धा बचे हुए हैं. वह कहते हैं, दुर्योधन सुनो – शत्रु-पक्ष में केवल पांच पांडव, कृष्ण और सात्यकि यही सात लोग बचे हैं। हमारे पक्ष में कृपाचार्य, कृतवर्मा और मैं हूं. यहां पर ना वह युयुत्सु का नाम नहीं लेते. भीष्म पितामह की बात भी नहीं करते. वह दुर्योधन को ये भी बताते हैं कि द्रौपदी के पांच पुत्र, धृष्टद्युम्न के पुत्रगण और पांचाल व मत्स्य-देशीय सारे योद्धा मारे गए. पांडव-शिविर ध्वस्त हो चुका है.
गणेश चतुर्थी पर घर में स्थापित करना चाहते हैं प्रतिमा? इन 5 बातों का रखें ध्यान!
31 Aug, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में कोई भी शुभ अथवा मांगलिक कार्य करने से पहले भगवान गणेश की आराधना की जाती है. प्रत्येक वर्ष हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जाता है. इस वर्ष यह पर्व 7 सितंबर को मनाया जाएगा. गणेश चतुर्थी पर्व के दिन लोग अपने घरों में भगवान गणेश की मूर्ति की स्थापना करते हैं और 10 दिनों तक उनकी पूजा आराधना करते हैं.
सनातन धर्म में भगवान गणेश को विघ्नहर्ता और प्रथम पूजनीय का दर्जा प्राप्त है. किसी भी शुभ कार्य से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है. गणेश चतुर्थी भगवान गणेश को समर्पित सबसे बड़ा त्यौहार होता है. गणपति के भक्त पूरे साल इस त्योहार का इंतजार करते हैं.अगर आप भी गणेश चतुर्थी पर भगवान गणेश की मूर्ति की स्थापना अपने घर पर करना चाह रहे हैं तो आज हम आपको इस रिपोर्ट में बताते हैं कि गणेश जी की कैसी प्रतिमा शुभ मानी जाती है और स्थापना के समय किन बातों का विशेष ध्यान देने की जरूरत है तो चलिए इस रिपोर्ट में जानते हैं .
दरअसल अयोध्या के ज्योतिषी पंडित कल्कि राम बताते हैं कि इस वर्ष गणेश चतुर्थी का पर्व 7 सितंबर को है और इस दिन से लोग गणपति बप्पा की स्थापना अपने घरों पर करते हैं कोई 7 दिनों तक करता है कोई 9 दिनों तक तो कोई 10 दिनों तक गणपति बप्पा की पूजा करता है. इस दौरान गणेश चतुर्थी के लिए गणपति की मूर्ति खरीदते समय कुछ बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है.
इन 5 बातों का रखें ध्यान
⦁ मूर्ति खरीदते समय इस बात पर खास ध्यान दें कि गणेश जी की मुद्रा और सूंड की दिशा कैसी है.
⦁ भगवान गणेश की मुद्रा और बाईं ओर झुकी हुई सूंड वाले गणेश जी को सबसे ज्यादा शुभ माना जाता है. माना जाता है कि गणपति की ऐसी मूर्ति लाने से घर में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहती है.
⦁ भगवान गणेश की प्रतिमा लेते समय इस बात का भी विशेष ध्यान देना चाहिए कि गणपति बप्पा की मूर्ति में मूषक जरूर हो उनके हाथ में मोदक भी हो इस तरह की मूर्ति लाना बेहद शुभ माना जाता है .
⦁ अगर भगवान गणेश के प्रतिमा की रंग की बात करें तो भगवान गणेश की सिंदूर के रंग की प्रतिमा घर में लाना उत्तम माना जाता है. गणपति के इस रंग की प्रतिमा लाने से घर में आत्मविश्वास की वृद्धि होती है जीवन में चल रही परेशानी दूर होती है. दूसरी तरफ अगर आप भगवान गणेश की सफेद रंग की प्रतिमा लाते हैं तो घर में खुशहाली का आगमन भी होता है .
⦁ इसके साथ ही भगवान गणेश की मूर्ति को उत्तर दिशा में स्थापित करना शुभ होता है. यह दिशा मां लक्ष्मी और भगवान शिव की दिशा मानी जाती है. ऐसे में गणेश जी का मुख इस दिशा में रखने से गणेश भगवान के साथ-साथ महादेव और मां लक्ष्मी का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है.
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
31 Aug, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- धन का व्यर्थ व्यय होगा, मानसिक अशांति एवं मन विक्षुब्ध रहेगा, रुके कार्य बनेंगे।
वृष राशि :- चिन्ताग्रस्त होने से बचें, व्यावसायिक क्षमता अनुकूल होगी, परिश्रम से कार्य बनेंगे।
मिथुन राशि :- तनाव, क्लेश व अशांति, असमर्थता का वातावरण कष्टप्रद रहेगा, धैर्यपूर्वक कार्य करें।
कर्क राशि :- किसी प्रलोभन से बचें अन्यथा परेशानी में फंस सकते हैं, समय पर कार्य करें, सावधान रहें।
सिंह राशि :- तनाव, क्लेश व अशांति, असमर्थता का वातावरण कष्टप्रद रहेगा, विचार कर आगे बढ़े।
कन्या राशि :- विवाद होने की संभावना है, सोचे हुये कार्य समय पर बन जायेंगे, पारिवारिक सुख मिलेगा।
तुला राशि :- कुटुम्ब की समस्यायें सुलझेंगी, कार्यगति में सुधार होगा, कार्य योजना फलीभूत होगी ध्यान दें।
वृश्चिक राशि :- कार्य कुशलता से संतोष होगा, दैनिक समृद्धि के साधन बनेंगे, व्यावसायिक समृद्धि के योग बनेंगे।
धनु राशि :- अधिकारियों से तनाव, मित्र वर्ग से उपेक्षा से मन अशांत रहेगा, कार्य में बाधा आयेगी।
मकर राशि :- मान-प्रतिष्ठा में आंच आने का भय, कार्यगति में बाधा आयेगी, समय स्थिति को ध्यान में रखकर अगे बढ़ें।
कुंभ राशि :- किसी घटना का शिकार होने से बचें, चोटादि का भय बनेगा, परिश्रम से कार्य बनेंगे ध्यान अवश्य दें।
मीन राशि :- स्त्री वर्ग से सुख-हर्ष मिलेगा, बिगड़े कार्य बनेंगे, समय का आभाव रहेगा, हर्ष का वातावरण रहेगा।
अद्भुत है नैनीताल का नंदा देवी महोत्सव, यहां मां की मूर्तियों का केले के पेड़ से होता है निर्माण, जानें परंपरा
30 Aug, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
उत्तराखंड के नैनीताल में 8 सितंबर से नंदा देवी महोत्सव की शुरुआत होने जा रही है. इस भव्य महोत्सव का आयोजन नैनीताल की सबसे पुरानी संस्था श्री राम सेवक सभा द्वारा विगत कई सालों से निरंतर किया जा रहा है. इस दौरान नैनीताल स्थित नयना देवी मंदिर में कुमाऊं की अधिष्ठात्री देवी मां नंदा सुनंदा की मूर्ति तैयार की जाती है.
प्राण प्रतिष्ठा के बाद दर्शन के लिए खोली जाती है मूर्ति
ऐसे में नंदाष्टमी के दिन मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा कर भक्तों के दर्शन के लिए खोली जाती है. क्या आपको पता है कि नंदा सुनंदा की मूर्तियों का निर्माण खास कदली के पेड़ से किया जाता है. जिसे महोत्सव के शुरुआत में ही नैनीताल के निकटवर्ती जगह से लाया जाता है. जहां पूरे शहर में शोभा यात्रा निकालकर अंत में नयना देवी मंदिर प्रांगण में भक्तों के दर्शन के लिए रखा जाता है.
उस शाम ही इस पेड़ से मां की सुंदर मूर्ति पारंपरिक लोक कलाकारों द्वारा तैयार की जाती है. मान्यताओं के अनुसार कदली यानी केले के पेड़ में मां नंदा सुनंदा का वास है. इसके साथ ही केले का पेड़ बेहद पवित्र होता है. यही वजह है की मूर्ति निर्माण में केले के पेड़ का प्रयोग किया जाता है.
मेला प्रवक्ता ने परंपरा को लेकर बताया
नैनीताल निवासी राम सेवक सभा के मेला प्रवक्ता प्रोफेसर ललित तिवारी ने लोकल 18 से बताया कि नंदा देवी महोत्सव कुमाऊं की संस्कृति से जुड़ा हुआ है. जहां मां नंदा सुनंद कुमाऊं के चंद राजवंश से जुड़ी हुई हैं.
पुराणों में वर्णित कथाओं के अनुसार मां नंदा सुनंदा के पीछे जब भैसा पड़ गया था तो उनकी रक्षा केले के पेड़ ने की थी. तबसे ही केले का पेड़ मां नंदा सुनंद से जुड़ा हुआ है. केले का पेड़ बेहद शुद्ध होता है. जिस वजह से ही मां की मूर्तियों का निर्माण केले से किया जाता है. वहीं, तकनीकी आधार पर केले में नौ प्रकार की देवियों का स्वरूप भी माना जाता है.
इस तरह किया जाता है पेड़ का चयन
प्रोफेसर तिवारी बताते हैं कि नंदा देवी महोत्सव का आधार केला है. जिस गांव से केले का पेड़ लाया जाता है. वहां से केले के पेड़ के चयन की प्रक्रिया भी बेहद खास है. इसके लिए स्वच्छ पर्यावरण में केले के पेड़ का होना जरूरी है. साथ ही जिस पेड़ को लाया जाता है.
उसमें केले के फल नहीं लगे होने चाहिए और उसकी पत्तियां भी कटी फटी न हो. इसके बाद विधि विधान से कदली के वृक्ष का चयन किया जाता है. इस साल नैनीताल के निकटवर्ती थापला गांव के रोखड़ ग्रामसभा से केले का पेड़ लाया जाएगा.
इस दिन लाया जाता है केले का पेड़
मां नंदा देवी महोत्सव के उद्घाटन के दिन ही एक दल केले का पेड़ लेने जाता है. जबकि दूसरे दिन केले के पेड़ को नगर में लाया जाता है. पूरे शहर में केले के पेड़ की शोभा यात्रा निकाली जाती है. मान्यता है कि मां नंदा सुनंदा केले के रूप में आती हैं. जिसके बाद केले के पेड़ की प्राण प्रतिष्ठा कर इस दिन रात्रि से ही मूर्ति निर्माण की प्रक्रिया शुरू की जाती है. सुबह ब्रह्म मुहूर्त में मां नंदा सुनंदा की मूर्ति को दर्शन के लिए मंदिर प्रांगण में स्थापित किया जाता है.
महाभारत युद्ध के खत्म होने के कितने दिनों बाद हुई भीष्म पितामह की मृत्यु, कितनी थी तब उनकी आयु
30 Aug, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
आमतौर पर लोगों को लगता है कि भीष्म पितामह का निधन महाभारत युद्ध के दौरान ही हो गया था लेकिन ऐसा नहीं है. इस विराट युद्ध के बाद भी वह महीने भर से ज्यादा से जिंदा रहे. बाद में उन्होंने खुद अपनी मृत्यु का दिन चुना और प्राण छोड़े. इस दौरान वह कहां रहे और क्या कर रहे थे, इसके बारे में कम लोग जानते होंगे.
गौरतलब है कि जब महाभारत का युद्ध शुरू हुआ तो भीष्म पितामह को दुर्योधन ने कौरवों की सेना का मुख्य सेनापति बनाया. उनकी अगुवाई में पहले 10 दिन का युद्ध लड़ा गया. युद्ध के दसवें दिन अर्जुन के बाणों से भीष्म पितामह बुरी तरह घायल हो गए. अर्जुन ने इतनी संख्या में तीर चलाए कि भीष्म के बाणों की एक शैय्या बन गई.
कितने दिन चला था महाभारत का युद्ध
महाभारत का युद्ध तो 18वें दिन ही खत्म हो गया लेकिन भीष्म पितामह बाण शैय्या पर घायल लेटे रहे. इस दौरान कौरव और पांडव ही नहीं बल्कि ऋषि मुनिन भी उनसे मिलने वहां आते रहे. उनसे मिलने आने वालों में महाऋषि नारद भी थे. जो अक्सर उनके पास आया करते थे. पांडव भी उनके पास युद्ध के दौरान और युद्ध के बाद उनकी सेवा के लिए आते रहे. इस तरह हम कह सकते हैं कि भीष्म वो महान योद्धा थे, जिनकी मृत्यु महाभारत में नहीं हुई.
क्या थी उनकी प्रतिज्ञा
महाभारत के युद्ध में भी वह अर्जुन के बाणों से घायल होकर बाणशैय्या पर नहीं लेटते, अगर उनकी एक प्रतिज्ञा बीच में नहीं आती. उन्होंने प्रतिज्ञा की थी कि युद्ध के मैदान में वह किसी स्त्री के खिलाफ युद्ध नहीं करेंगे. इस कारण जब शिखंडी युद्ध में उनकी ओर बढ़ा, तो भीष्म ने अपने अस्त्र-शस्त्र त्याग दिए. निहत्थे खड़े हो गए. तब अर्जुने ने उनके ऊपर तीरों की बारिश कर दी.
कैसे मिला था उन्हें ये नाम
भीष्म को पितामह, गंगापुत्र और देवव्रत के नाम से भी जाना जाता है. उन्होंने अपने पिता की खुशी के लिए अपने सिंहासन पर आसीन होने के अपने जन्मसिद्ध अधिकार को त्याग दिया. साथ ही आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत लिया. तभी उनके पिता शांतनु का विवाह सत्यवती से हो सका. उनकी इस प्रतिज्ञा ने उन्हें भीष्म बना दिया. पिता शांतनु से उन्हें जब तक चाहें तब तक जीने का वरदान मिला.
बाणशैय्या पर कितनी रातें बिताईं
लिहाजा जब महाभारत के युद्ध में भीष्म बुरी तरह घायल होकर जब बाण शैय्या पर लेटे तो उन्होंने अपने प्राण नहीं त्यागे. उसके लिए शुभ दिन का इंतजार किया. उन्होंने बाणों की शैय्या पर 58 रातें बिताईं यानि महाभारत का युद्ध खत्म होने के 50वें दिन उन्होंने इच्छा के अनुसार शरीर त्यागा. उस दिन शुभ उत्तरायण ( शीतकालीन संक्रांति ) था.
क्या किया बाणशैय्या पर लेटे लेटे
क्या आपको मालूम है कि महाभारत का युद्ध खत्म होने के बाद उन्होंने बाण शैय्या पर लेटे लेटे किया क्या. युद्ध के बाद अपनी मृत्युशैया पर रहते हुए उन्होंने युधिष्ठिर को लगातार करीब एक महीने तक राजनेता के कर्तव्य और एक राजा के कर्तव्यों पर गहन और सार्थक बातें बताईं.
उन्हें ये भी बताया कि सही राजधर्म क्या होता है, शासन कैसे किया जाता है, उसमें किन नीतियों का पालन करना चाहिए. युधिष्ठिर लगातार उनके पास राजकाज की शिक्षा लेने के लिए आते रहे थे. महाभारत में कहा गया है कि उन्होंने मृत्यु के बाद मोक्ष हासिल किया.
कितनी बताई जाती है उनकी उम्र
भीष्म पितामह की मृत्यु के समय उनकी उम्र लगभग 128 वर्ष बताई गई है. यह जानकारी महाभारत में दी गई है. हालांकि उस समय की औसत आयु को देखते हुए 200 वर्ष तक जीना सामान्य माना जाता था.
भीष्म अपने समय और इतिहास के सबसे शक्तिशाली योद्धाओं में एक थे. करीब पांच पीढ़ियों के होने के बावजूद भीष्म इतने शक्तिशाली थे कि उस समय कोई भी जीवित योद्धा उन्हें हरा नहीं सकता था. युद्ध की शुरुआत में भीष्म ने किसी भी पांडव को न मारने की कसम खाई थी, क्योंकि वह उनसे बहुत प्यार करते थे, वह उनके दादा थे.
कब से हैं शारदीय नवरात्रि? बेहद खास है इनका महत्व, भगवान राम और रावण से है कनेक्शन
30 Aug, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
शक्ति की देवी की उपासना पूजा पाठ करने के लिए नवरात्रि के दिन बेहद ही खास और महत्वपूर्ण बताए गए हैं. साल 2024 में नवरात्रि आश्विन मास शुक्ला पक्ष की प्रतिपदा 3 अक्टूबर से प्रारंभ हो जाएंगे, जो नवमी 11 अक्टूबर तक किए जाने का विधान बताया गया है. साल में नवरात्र चार बार होते हैं, लेकिन इनमें चैत्र और शारदीय नवरात्रि ही प्रमुख बताए गए हैं. नवरात्रों में देवी दुर्गा के निमित्त व्रत, पूजा पाठ आदि करने का महत्व बताया गया है.
कथाओं के अनुसार शारदीय नवरात्रि का महत्व भगवान राम और माता सीता से जुड़ा हुआ है. कहा जाता है कि भगवान राम शक्ति की देवी की आराधना करने के लिए इंतजार नहीं करना चाहते थे. इसलिए उन्होंने रावण के साथ अंतिम युद्ध करने से पहले 9 दिन तक देवी की पूजा अर्चना की थी. जिससे प्रसन्न होकर देवी ने उन्हें जीत का आशीर्वाद दिया था. शास्त्रों वेदों पुराणों में नवरात्रों का महत्व भगवान राम से जुड़ा हुआ बताया जाता है. शारदीय नवरात्रों का महत्व भगवान राम से जुड़ा हुआ है. ऐसी बहुत सी कथाओं का वर्णन शास्त्रों में मिलता है.
शारदीय नवरात्रों का महत्व भगवान राम से जुड़े होने के सवाल को लेकर हमने हरिद्वार के ज्योतिषी पंडित श्रीधर शास्त्री से बातचीत की. उन्होंने सवाल का जवाब देते हुए लोकल 18 को बताया कि शारदीय नवरात्रों का महत्व भगवान राम और रावण से जुड़ा हुआ है. रावण के साथ अंतिम युद्ध से पहले भगवान राम ने शक्ति की देवी मां दुर्गा का आवाह्न कर पूजा अर्चना की थी. भगवान राम देवी दुर्गा की आराधना करने के लिए इंतजार नहीं करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने युद्ध से पहले माता दुर्गा की विशेष पूजा अर्चना की थी जिसके बाद उन्हें विजय प्राप्त हुई थी. नवरात्र पूरे होने के बाद दशमी तिथि को भगवान राम ने रावण पर विजय प्राप्त की थी.
धार्मिक ग्रंथो के अनुसार हर साल शारदीय नवरात्रि आश्विन मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ होते हैं. इन नौ दिनों में देवी दुर्गा के निमित्त व्रत, पूजा पाठ, दुर्गा स्तोत्र का पाठ, दुर्गा चालीसा का पाठ आदि करने का बहुत अधिक महत्व बताया गया है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नवरात्रों में देवी दुर्गा स्वर्ग लोक से धरती लोक पर भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करने के लिए आती है. इस दौरान श्रद्धालुओं द्वारा श्रद्धा भक्ति भाव से पूजा पाठ करने पर माता भक्तों को मनवांछित फल प्रदान करती है और उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण कर देती है.
पितृ पक्ष में दाढ़ी-बाल कटवाना क्यों है वर्जित? काशी के विद्वान से जानें धार्मिक और वैज्ञानिक कारण
30 Aug, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
वैदिक पंचांग के अनुसार पितृ पक्ष की शुरुआत भाद्रपद पूर्णिमा से होती है और यह आश्विन माह की अमावस्या तिथि पर समाप्त होता है. इन्हें बोलचाल की भाषा में ‘श्राद्ध’ भी कहा जाता है और इस अवधि को पितरों की कृपा प्राप्ति के लिए उत्तम माना गया है. इस साल पितृपक्ष 17 सितंबर से 02 अक्टूबर तक रहने वाला है. इस दौरान बाल और दाढ़ी न कटवाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. यह एक ऐसा समय होता है जब लोग अपने पितरों को श्रद्धांजलि देने के लिए विभिन्न अनुष्ठान और पिंडदान करते हैं, लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर क्यों पितृ पक्ष के दौरान बाल और दाढ़ी कटवाने को अशुभ माना जाता है? इस विषय पर प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित संजय उपाध्याय ने धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों दृष्टिकोण से प्रकाश डाला है.
पंडित संजय उपाध्याय के अनुसार, पितृ पक्ष में बाल और दाढ़ी न कटवाने की परंपरा का धार्मिक आधार पितरों के प्रति सम्मान और श्रद्धा से जुड़ा है. यह समय पितरों को याद करने और उनकी आत्मा की शांति के लिए अनुष्ठान करने का होता है. इस दौरान बाल और दाढ़ी न कटवाने को पितरों के प्रति आदर का प्रतीक माना जाता हैं.
क्या है धार्मिक आधार?
पंडित संजय उपाध्याय ने बताया कि पितृ पक्ष को एक प्रकार का शोककाल माना जाता है, जिसमें परिवार के सदस्यों को अपने पितरों को सम्मान देने के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से संयमित रहने की सलाह दी जाती है. बाल और दाढ़ी काटने को इस शोक के दौरान अशुभ माना जाता है, क्योंकि इसे पितरों की स्मृति के प्रति असम्मान के रूप में देखा जाता है. पितृ पक्ष के दौरान संयम, साधना, और त्याग पर जोर दिया जाता है. बाल और दाढ़ी न काटकर व्यक्ति अपने पितरों के प्रति अपनी श्रद्धा और संयम का प्रदर्शन करता है.
क्या है वैज्ञानिक आधार?
पंडित संजय उपाध्याय ने बताया कि इस परंपरा का वैज्ञानिक आधार भी है, जो प्राचीन काल से हमारे पूर्वजों की गहन समझ को दर्शाता है. पितृ पक्ष का समय मानसून के बाद आता है, जब मौसम में बदलाव होता है. इस समय बाल और दाढ़ी न काटने से शरीर को ठंड से बचाया जा सकता है, क्योंकि बाल और दाढ़ी शरीर को प्राकृतिक रूप से गर्म रखने में मदद करते हैं. यह शरीर को बीमारियों से बचाने का एक पारंपरिक तरीका हो सकता है.
ये भी है एक वजह
पंडित संजय उपाध्याय ने बताया कि पुराने समय में सैलून और बारबर के उपकरणों की स्वच्छता की व्यवस्था उतनी अच्छी नहीं होती थी. पितृ पक्ष के दौरान, जब लोग अपने घरों से कम निकलते थे, तो बाल और दाढ़ी न कटवाना संक्रमण के जोखिम से बचाने का एक तरीका हो सकता था.
कैसे शुरू हुई ये प्रथा
पंडित संजय उपाध्याय ने बताया कि इस परंपरा की उत्पत्ति के पीछे एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संदर्भ भी है. प्राचीन भारत में पितृ पक्ष को बहुत ही पवित्र समय माना जाता था, जिसमें पितरों की आत्मा की शांति के लिए विशेष अनुष्ठान किए जाते थे. इस दौरान किसी भी प्रकार का श्रृंगार या शारीरिक सजावट को अनुचित माना जाता था, क्योंकि यह पितरों के शोककाल का उल्लंघन करता.