धर्म एवं ज्योतिष
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
5 Sep, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- मानसिक खिन्नता, कार्य विफलता, असमंजस किन्तु बड़े लोगों से मेल मिलाप मिलन होगा।
वृष राशि - व्यावसायिक गति अनुकूल, कार्य संपन्नता से संतोष चिन्ता कम होगी, विशेष ध्यान रखे।
मिथुन राशि - कार्यकुशलता से संतोष हो, अर्थ व्यवस्था अनुकूल होगी, बिगड़े कार्य बन जाएगे।
कर्क राशि - अधिकारी से विशेष लाभ सुख एवं सफलता मिलेगी, रुके कार्य बना लेगे।
सिंह राशि - अनायास परिश्रम होगा, विशेष कार्य स्थिगित रखे व्यवस्था उत्तम बनी रहेगी।
कन्या राशि सामाजिक कार्यो में प्रभुत्व, प्रतिष्ठा वृद्धि, दृढ़ता से कार्य निपटा लेंगे, ध्यान रखे।
तुला राशि - दुर्घटना का शिकार होने से बचिए, भाग्य का सितारा साथ देगा, रुके कार्य बन जाएगा।
वृश्चिक राशि - असमर्थता का वातावरण, क्लेश युक्त रहेगा तथा मानसिक बेचैनी अवश्य ही बढ़ेगी।
धनु राशि - अर्थलाभ कार्य कुशलता से सहयोग मिले, दैनिक समृद्धि के साधन बनेंगे, कार्य पूर्ण संपन्न होगे।
मकर राशि - धन का व्यय असमर्थता का वातावरण रहेगा, कार्य व्यवसाय में ध्यान सदैव रखे कार्य संपन्न होगे।
कुंभ राशि - स्थिति यथावत बनी रहेगी, प्रयत्न जारी रखे किन्तु परिणाम अच्छा लाभकारी नहीं होगा।
मीन राशि - मनोबल उत्साहवर्धक होगा, कार्य कुशलता से संतोष होगा, रुके कार्य एक-एक करके बनेंगे।
इन 3 चीजों के बिना अधूरी है हरतालिका तीज, व्रत भी हो सकता निष्फल!
4 Sep, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
अखंड सौभाग्य और मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए हरतालिक तीज भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है. हरतालिक तीज का व्रत पति की लंबी आयु और सफल वैवाहिक जीवन के लिए रखा जाता है. हरतालिक तीज मुख्य रूप से यूपी, बिहार समेत उत्तर भारत में मनाई जाती है. हर व्रत की तरह इसमें भी कुछ पूजा सामग्री की जरूरत पड़ती है, जिसके बिना हरतालिक तीज पूरी नहीं होती है. इस साल हरतालिक तीज 6 सितंबर दिन शुक्रवार को है. केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र से जानते हैं कि हरतालिक तीज की पूजा में कौन-कौन सी सामग्री की जरूरत होती है?
हरतालिक तीज में 3 बातें हैं महत्वपूर्ण
1. निर्जला व्रत
हरतालिक तीज के लिए निर्जला व्रत का महत्व है. माता पार्वती ने भगवान शिव को पति स्वरूप में पाने के लिए हजारों वर्ष तक जंगल में जप, तप और साधना की थी. उसके बाद जाकर उनकी मनोकामना पूर्ण हुई थी. इस समय में वैसा जप और तप संभव नहीं लगता. इस वजह से हरतालिक तीज पर निराहार रहकर यानी बिना अन्न और जल के व्रत रखा जाता है. तीज के सूर्योदय से अगले दिन सूर्योदय तक कुछ भी नहीं खाते हैं.
शिव जी और माता पार्वती जी की पूजा करके सुहागन महिलाएं अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मांगती हैं. वहीं विवाह योग्य युवतियां अपने लिए मनचाहे जीवनसाथी की इच्छा से निर्जला व्रत और पूजा करती हैं.
2. 16 श्रृंगार की वस्तुएं
यह आप हरतालिक तीज मना रही हैं तो उस दिन 16 श्रृंगार का विशेष महत्व है क्योंकि सौभाग्य का संबंध श्रृंगार से जुड़ा है, जिसमें सभी वस्तुएं वैवाहिक जीवन की निशानी मानी जाती हैं. पूजा के समय व्रती महिलाएं स्वयं भी 16 श्रृंगार करती हैं और पूजा में माता गौरी को भी 16 श्रृंगार की वस्तुएं अर्पित करती हैं. सोलह श्रृंगार में सिंदूर, मेंहदी, चूड़ियां, महावर, बिंदी, काजल, नथ, मंगलसूत्र, मांग टीका, गजरा, बिछिया आदि वस्तुएं शामिल होती हैं.
3. दान के लिए नया वस्त्र
हरतालिक तीज में जिस प्रकार से पूजा और व्रत का महत्व है, उसी प्रकार से दान का भी विशेष महत्व है. तीज व्रती में महिलाएं कोई नई साड़ी या कोई नया वस्त्र किसी सुहागन महिला या पुरोहित की पत्नी को दान करती हैं और कुछ दक्षिणा देती हैं.
हरतालिक तीज 2024 पूजा सामाग्री
जो महिलाएं हरतालिक तीज का व्रत रखना चाहती हैं, वे समय से पूर्व पूजा की सामग्री का प्रबंध कर लें.
1. भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्ति या तस्वीर च
2. लकड़ी की एक चौकी, जिस पर मूर्ति स्थापना होगी
3. चौकी पर बिछाने के लिए पीले या लाल रंग का वस्त्र
4. कलश, आम के पत्ते, केले के पौधे, जटावाला नारियल, फूल, माला
5. 16 श्रृंगार की वस्तुएं, चुनरी, दान के लिए वस्त्र,
6. बेलपत्र, भांग, धतूरा, अक्षत्, हल्दी, कुमकुम, सिंदूर, धूप, दीप
7. पान, सुपारी, जनेऊ, चंदन, दूर्वा, शहद, घी, कपूर
8. गंगाजल, गाय का दूध, दही, नैवेद्य, गंध, मिठाई
9. हरतालिक तीज व्रत कथा, शिव और पार्वती जी की आरती की पुस्तक.
महर्षि दुर्वासा की तपोभूमि है आजमगढ़, भगवान राम ने की थी शिवलिंग की स्थापना, जुड़ी है खास ये मान्यताएं
4 Sep, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
दुर्वासा ऋषि धाम आजमगढ़ जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर की दूरी पर बसा हुआ है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महर्षि दुर्वासा 12 वर्ष की आयु में चित्रकूट से फूलपुर के गजड़ी गांव के पास तमसा- मंजूसा नदी के संगम पर आकर कई वर्षों तक घोर तपस्या की थी. सती अनुसुइया और अत्रि मुनि के पुत्र महर्षि दुर्वासा सतयुग, त्रेतायुग और द्वापर युग में इस स्थान पर तपस्या करते रहे.
भगवान शिव और पार्वती का है गहरा नाता
प्राचीन समय में हजारों की संख्या में विद्यार्थी ज्ञान प्राप्त करने के लिए यहां आते थे. इस स्थान का भगवान शिव और माता पार्वती से भी गहरा नाता है. श्रावण मास, कार्तिक मास सहित विभिन्न पर्वों पर प्रतिवर्ष यहां मेले का आयोजन होता है, जिसमें श्रद्धालु यहां स्नान एवं दर्शन के लिए आते है. आश्रम में एक शांत और पवित्र वातावरण है, जहां श्रद्धालु आत्म-साधना और ध्यान करने के लिए आते हैं. यहां कई मंदिर और पूजा स्थल है, जहां श्रद्धालु प्रार्थना और पूजा करते हैं. आश्रम में एक बड़ा पुस्तकालय भी है. इसमें प्राचीन ग्रंथ और धर्मशास्त्र की पुस्तकें उपलब्ध है.
88 हजार ऋषियों के साथ किया था तप
माना जाता है कि सतयुग, त्रेतायुग और द्वापर युग में तो महर्षि दुर्वासा ने यहां 88 हजार ऋषियों के साथ तपस्या और यज्ञ किया था, लेकिन कलयुग का आरंभ होते ही ऋषि दुर्वासा उसी स्थान पर अंतर्ध्यान हो गए. इस आश्रम में आज भी ऋषि दुर्वासा की भव्य प्राचीन मूर्ति स्थापित है. ऋषि दुर्वासा अत्यंत ज्ञानी होने के साथ क्रोधी स्वभाव के भी थे. उनके इसी क्रोध के कारण देवी-देवता भी उनसे भयभीत रहते थे. महादेव से लेकर देवराज इंद्र तक ऐसे कोई देवी या देवता ना थे जो दुर्वासा ऋषि के गुस्से के भागी ना बने हों.
महर्षि दुर्वासा भगवान शिव के हैं रुद्र अवतार
महर्षि दुर्वासा को भगवान शिव का रुद्र अवतार माना जाता है. वह अपने क्रोध के लिए जाने जाते थे. उन्होंने अपने श्राप से कई लोगों को दंडित किया. इसलिए, वे जहां कहीं भी जाते थे लोग देवता की तरह उनका आदर करते थे ताकि वे प्रसन्न रहें और क्रोधित होकर कोई श्राप ना दें. आज़मगढ़ में दुर्वासा, दत्तात्रेय और चंद्रमा तीनों ऋषियों के धाम है. पौराणिक मान्यता के अनुसार त्रेतायुग में भगवान श्रीराम यहां आए थे और यहांशिवलिंग की स्थापना की थी. तब महर्षि दुर्वासा का आश्रम यहीं पर था. यह धरती आध्यात्मिक ऋषि मुनियों की तपोस्थली रही है. आज़गमढ़ आध्यत्मिक जगत में अपना विशेष स्थान रखता है.
पंचकोसी परिक्रमा के बिना अधूरी मानी जाती है यात्रा
मान्यता है कि दुर्वासा धाम में आने वाले भक्त जब तक पंचकोसी परिक्रमा पूरी ना करें, तब तक यहां की यात्रा अधूरी मानी जाती है. तमसा नदी के किनारे ही त्रिदेवों के अंश चंद्रमा मुनि आश्रम, दत्तात्रेय आश्रम और दुर्वासा धाम स्थित है. इन तीनों पावन स्थलों की परिक्रमा करके पांच कोस की दूरी तय की जाती है. इन तीनों धामों की यात्रा के बिना श्रद्धालुओं को पुण्य लाभ नहीं मिलता है. इसलिए, यहां आने वाले सभी भक्त पंचकोसी परिक्रमा जरूर करते हैं. हर साल यहां कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर मेले का आयोजन किया जाता है, यहां दूर-दूर से लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं.
गणेश चतुर्थी पर बन रहा अद्भुत संयोग, मिलेगा कई गुना अधिक फल, ज्योतिषी से जानें स्थापना का मुहूर्त
4 Sep, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में भगवान गणेश को प्रथम देवता माना जाता है. कोई भी शुभ अथवा मांगलिक कार्य करने से पहले भगवान गणेश की आराधना की जाती है. हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जाता है. मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि इसी तिथि पर भगवान गणेश का जन्म हुआ था .इसलिए इस पर्व को हर साल इस समय पर मनाया जाता है. ज्योतिषीय गणना के अनुसार इस वर्ष गणेश चतुर्थी पर कई अद्भुत संयोग का निर्माण भी हो रहा है . इस संयोग में अगर गणपति बप्पा की पूजा आराधना की जाए, तो कई गुना फल की प्राप्ति होगी. तो चलिए विस्तार से समझते हैं.
दरअसल अयोध्या के ज्योतिषी पंडित कल्कि राम बताते हैं कि गणेश चतुर्थी का पर्व हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. गणेश चतुर्थी पूरे देश में धूमधाम के साथ मनाई जाती है. गणेश चतुर्थी के दिन से आगामी 10 दिनों तक गणपति बप्पा को लोग अपने घरों में स्थापित करते हैं. इसके साथ ही इस वर्ष गणेश चतुर्थी 7 सितंबर को है. इतना ही नहीं इस दिन कई अद्भुत संयोग का निर्माण भी हो रहा है. जिसमें रवि योग ब्रह्म योग तथा सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है.
गणेश चतुर्थी के दिन गणपति बप्पा की पूजा और स्थापना का सही मुहूर्त 7 सितंबर दिन शनिवार सुबह 11:03 से दोपहर 1:34 तक है. इस दौरान आप बप्पा की स्थापना घर में कर सकते हैं. इसके अलावा इसी दिन दोपहर 12:34 से लेकर अगले दिन सुबह 6:03 तक सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है. तो वहीं 6 सितंबर सुबह 9:25 से लेकर 7 सितंबर दोपहर 12:34 तक रवि योग का निर्माण हो रहा है. इसके अलावा इसी दिन 11:15 पर ब्रह्म योग का निर्माण हो रहा है. इस योग में भगवान गणेश की पूजा आराधना करने से कई गुना फल की प्राप्ति होगी.
तीज निर्जलीय और साधारण व्रत में क्या है अंतर? क्या सच में मिलता है चार गुना पुण्य
4 Sep, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भारतीय संस्कृति में व्रत और त्योहारों का विशेष महत्व होता है. यह न केवल हमारे धर्म, संस्कृति का हिस्सा होते हैं बल्कि हमारे आंतरिक चेतना के जागृति भाव में नियोजित होते हैं. इसी भाव का एक त्योहार हरितालिका तीज है, जिसे भारत के साथ विश्व भर की महिलाएं निर्वहन करती हैं. तीज व्रत को लेकर कई मान्यताएं और परंपराएं प्रचलित हैं, जिनमें निर्जलीय और साधारण व्रत का विशेष रूप से उल्लेख किया जाता है.
आखिर क्या है इन दोनों व्रतों में अंतर, और क्या सच में तीज पर चार गुना पुण्य प्राप्त होता है? इस बारे में प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित संजय उपाध्याय ने विस्तार से बताया है. उन्होंने बताया कि वैसे तो हरितालिका तीज का व्रत निर्जलीय रखने का ही विधान है लेकिन जो लोग निर्जलीय व्रत रखने में सक्षम नहीं होते वें यानी बीमार या वृद्ध होते है. वो हरितालिका तीज पर साधारण व्रत भी रखते हैं.
क्या होता है निर्जलीय व्रत
निर्जलीय व्रत वह होता है जिसमें व्रती (व्रत रखने वाला) पूरे दिन बिना जल ग्रहण किए उपवास करता है. इस व्रत में पूर्ण तपस्या का पालन किया जाता है.यह व्रत सबसे कठिन माना जाता है क्योंकि इसमें किसी भी प्रकार का अन्न,जल या फलाहार ग्रहण नहीं किया जाता. निर्जलीय व्रत का उद्देश्य आत्मसंयम, शारीरिक और मानसिक शुद्धि के साथ-साथ देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त करना होता है.
यह है साधारण व्रत
साधारण व्रत में व्रती दिनभर उपवास रखता है, लेकिन इसमें जल, फल, दूध आदि का सेवन कर सकता है. यह व्रत अपेक्षाकृत आसान माना जाता है और इसे अधिक लोग आसानी से कर सकते हैं. साधारण व्रत भी धार्मिक और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करने के लिए रखा जाता है, लेकिन इसमें कठोर तपस्या की आवश्यकता नहीं होती.
क्या तीज पर मिलता है चार गुना पुण्य?
ज्योतिषाचार्य पंडित संजय उपाध्याय का कहना है कि हरितालिका तीज व्रत का महत्व भारतीय शास्त्रों में अत्यधिक माना गया है. कहा जाता है कि इस व्रत को रखने से व्यक्ति को उसके पापों से मुक्ति मिलती है और उसे चार गुना पुण्य प्राप्त होता है. तीज व्रत को देवी पार्वती और भगवान शिव की उपासना के लिए रखा जाता है. कहा जाता है कि इस दिन देवी पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी. इस कारण, तीज व्रत रखने से विशेष पुण्य फल प्राप्त होता है.
क्या है वैज्ञानिक आधार
पंडित उपाध्याय का कहना है कि निर्जलीय व्रत रखने से शरीर में विषाक्त पदार्थों का निष्कासन होता है, जिससे स्वास्थ्य लाभ होता है. इससे मानसिक शांति भी प्राप्त होती है, जो पुण्य फल का कारण बनता है.
विशेष विधान और मान्यताएं
तीज के दिन महिलाएं विशेष रूप से देवी पार्वती की पूजा करती हैं। पूजा में देवी को सिंदूर, श्रृंगार सामग्री और वस्त्र अर्पित किए जाते हैं. तीज की कथा सुनने और देवी पार्वती की उपासना करने से पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है. तीज पर व्रत रखने वाली महिलाएं विशेष पुण्य प्राप्त करती हैं, जो उनके परिवार और जीवन में समृद्धि और सुख का संचार करता है.
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
4 Sep, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- धन लाभ आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा, समय की अनुकूलता से लाभान्वित होंगे।
वृष राशि - अधिक चिंताग्रस्त न हों, विवादास्पद स्थितियां सामने आयेंगी, धैर्य से कार्य करें।
मिथुन राशि - अधिक चिंताग्रस्त न हों, अधिकारियों से तनाव व क्लेश तथा अशांति बनेंगी।
कर्क राशि - प्रयत्न सफल न हो भाग्य का सितारा प्रबल होगा, बिगड़े कार्य बनेंगे, ध्यान दें।
सिंह राशि - अशांति उपद्रव धन का व्यय अस्थिरता का वातावरण, कष्टप्रद बना ही रहेगा।
कन्या राशि सामाजिक कार्यो में चिंताएं कष्ट पहुँचायेंगी, सतर्कता पूर्वक रुके कार्यो को निपटा लेंवे।
तुला राशि - आपको गुप्त चिंताएं कष्ट पहुँचाएगी, सतर्कता पूर्वक रुके कार्यो को निपटा लेंवे।
वृश्चिक राशि - आशानुकूल सफलता से हर्ष कार्यगति में सुधार चिंता निवृति अवश्य होवेगी।
धनु राशि - इष्टमित्र सुख वर्धक होंगे, अधिकारियों से अशांति तनाव बने, भ्रमित न होंवे।
मकर राशि - उदारशीलता, मानसिक बैचेनी, कार्य व्यवहार में उद्विघ्नता से कार्य अवरोध होगा।
कुंभ राशि - कुटुम्ब की समस्या बनी रहेगी, प्रयत्न शीलता विफल होगी, कार्य अवश्य बनेंगे।
मीन राशि - प्रबलता प्रभुत्व वृद्धि, दैनिक समृद्धि के साधन जुटायें, कार्य योजना फलीभूत होगी।
यहां गिरा था मां सती का कपाल, 51 शक्तिपीठों में है ये मंदिर, यहां पानी कभी नहीं सूखता
3 Sep, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
जिस स्थान पर मां सती का कपाल गिरा था, आज वह स्थान मां कुनाल पत्थरी के नाम से प्रसिद्ध है. यह स्थल मां के 51 शक्तिपीठों में से एक है. यह स्थान पर्यटन नगरी धर्मशाला में स्थित है. धर्मशाला से महज तीन किलोमीटर की दूरी पर चाय बाग के बीच में मंदिर स्थापित है. यहां मां भगवती की पूजा कुनाल पत्थरी के रूप में होती है. सैकड़ों भक्त यहां पर मां के दरबार में हाजिरी लगाने के लिए पहुंचते हैं. यहां पर मनोकामनाएं पूर्ण होने पर भक्त ढोल नगाड़ों के साथ नाचते गाते पहुंचते हैं. साल भर यहां पर भक्तों का आना जाना लगा रहता है. मंदिर के आसपास जंगल है और चाय के बागान हैं.
मंदिर के में स्थापित है एक पत्थर जिसमें भरा रहता ही पानी
मां कुनाल पत्थरी मंदिर में मां के कपाल पर एक बड़ा पत्थर है. जो एक बहुत बड़ी पारात सा लगता है. हमेशा पानी से भरा रहता है. यह पानी श्रद्धालु पूजा अर्चना व रोगियों के रोग दूर करने के लिए अपने साथ अपने घर भी ले जाते हैं. यह पानी बारिश का एकत्र होता है. मंदिर के पुजारी पंडित अंकु का कहना है जब भी इस कपाल में पानी कम होने लगता है तो बारिश होती है. यह फिर से भर जाता है. इसको लेकर भी लोगों में माता के प्रति बहुत आस्था है.
कैसे पहुंचे इस शक्ति पीठ
धर्मशाला बस अड्डे तक बस में आ सकते हैं. धर्मशाला बस अड्डा से धर्मशाला कुनाल पत्थरी, सराह गगल के लिए बस मिल जाती है. लेकिन सरकारी बसें समय-समय पर चलती. आप टैक्सी का प्रयोग भी कर सकते हैं. धर्मशाला कचहरी से महज तीन किलोमीटर की दूरी पर यह मंदिर चाय बाग व जंगल के बीच स्थित है. मंदिर में लंगर भवन व सराय आदि बनी हुई हैं. टैक्सी का प्रयोग करके व पैदल भी इस मंदिर तक पुहंचा जा सकता है. गगल एयरपोर्ट से इस मंदिर की दूरी करीब 15 किलोमीटर ही है.
पर्यटन नगरी पहुंचने वाले जरूर करते हैं दर्शन
इन दिनों धर्मशाला व मैक्लोडगंज आने वाले पर्यटक भी मंदिर पहुंच रहे हैं. पर्यटक टी गार्डन में फोटो शूट करते हैं और उसके बाद मां कुनाल पत्थरी के मंदिर पहुंचते हैं. यहां का शांत वातावरण व मंदिर सभी को अपनी तरफ आकर्षित करता है.
गणेश भगवान के 12 नाम दिला सकते हैं सफलता, हर तंगी हो जाएगी दूर! इस दिन करें उच्चारण
3 Sep, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भारत में हर एक मौके और खास तिथि पर अलग तरीके से पूजा-पाठ किया जाता है. पंचांग के अनुसार साल 2024 में गणेश चतुर्थी 7 सितंबर मनाई जाएगी. हिंदू धर्म को मानने वाले इस दिन बप्पा को अपने घरों में स्थापित करते हैं. पंचांग के अनुसार साल 2024 में भाद्रपद शुक्ल की चतुर्थी तिथि 6 सितंबर की दोपहर 12:09 pm से शुरू हो जाएगी और 7 सितंबर की दोपहर 02:06 तक रहेगी. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को भगवान गणेश के 12 नामों का उच्चारण अपने घर के देवालय या सिद्ध पीठ स्थल पर जाकर करने चमत्कारी लाभ मिलते हैं.
गणेश भगवान के 12 नामों का उच्चारण
इसी बारे में लोकल 18 ने बात की हरिद्वार के ज्योतिषी पंडित श्रीधर शास्त्री से. उन्होंने बताया कि सिद्धि विनायक चतुर्थी की तिथि 7 सितंबर 2024 को होगी. शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन भगवान गणेश की पूजा-पाठ, उनके मंत्रो का जाप और उनके 12 नामों का उच्चारण करना विशेष लाभदायक होता है. वह बताते हैं कि सावन के महीने में भगवान गणेश के 12 नामों का उच्चारण करने मात्र से ही जीवन में आई सभी परेशानियों और दुख दूर हो जाते हैं.
हर काम में मिलती है सफलता
साथ ही हर काम में व्यक्ति को सफलता प्राप्त होती है. भगवान गणेश के इन 12 नामों सुमुख, एकदंत, कपिल, गजकर्णक, लंबोदर, विकट, विघ्न-नाश, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचंद्र और गजानन का उच्चारण गणेश चतुर्थी के दिन करने मात्र से धन की प्राप्ति, विद्या की प्राप्ति होगी. बल बुद्धि का विकास होगा और व्यक्ति को सभी कार्यों में सफलता मिलेगी.
भगवान गणेश के 12 नाम
ऊँ सुमुखाय नम:, ऊँ एकदंताय नम:, ऊँ कपिलाय नम:, ऊँ गजकर्णाय नम:, ऊँ लंबोदराय नम:, ऊँ विकटाय नम:, ऊँ विघ्ननाशाय नम:, ऊँ विनायकाय नम:, ऊँ धूम्रकेतवे नम:, ऊँ गणाध्यक्षाय नम:, ऊँ भालचंद्राय नम:, ऊँ गजाननाय नम:।।
चमत्कारों से भरे इस मंदिर की कहानी! जब पड़ा अकाल, लोगों ने बजरंगबली से लगाई गुहार, फिर खुदाई में निकला..
3 Sep, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
राजस्थान का जयपुर अपने ऐतिहासिक और प्राचीन मंदिरों के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है. यहां सालों पुराने कई मंदिर हैं, जहां दर्शन के लिए देश-दुनिया से लोग आते हैं. ऐसे ही जयपुर के चारदीवारी के चांदपोल बाजार में स्थित चांदपोल हनुमान मंदिर है, जो लगभग 1100 साल पुराना है. इसकी स्थापना मीणा शासनकाल में हुई थी. इस मंदिर को वर्ष 1727 से पहले चार बेरियावाले व चबूतरा हनुमानजी के नाम से जानते थे. लेकिन बाद में श्री चांदपोल हनुमानजी के नाम से यह मंदिर प्रसिद्ध हो गया. यह मंदिर चांदपोल बाजार के चांदपोल गेट के पास ही बना हुआ है, जहां हर समय भक्तों की भीड़ उमड़ी रहती है. मंदिर के पुजारी और यहां के स्थानीय लोग बताते हैं कि एक समय था, जब जयपुर में अकाल पड़ा. उस समय पानी की किल्लत सबसे ज्यादा रही, फिर मंदिर के चारों ओर चार बोरिया खोदी गई, जिसमें मीठा पानी निकला. इसके बाद से मंदिर चार बोरियों वाले हनुमान जी के नाम से प्रसिद्ध हो गया.
अनोखी है इस मंदिर की मान्यता
आपको बता दें कि साल 2008 में जयपुर में बम ब्लास्ट की घटना हुई थी, जिसमें चांदपोल मंदिर पर भी एक बम ब्लास्ट हुआ था. लेकिन मंदिर में इसका ज्यादा प्रभाव नहीं हुआ और मंदिर सुरक्षित था. इसलिए इस मंदिर में उस घटना के बाद से लोगों की ओर आस्था बढ़ी और तब से यहां हर दिन हजारों की संख्या में लोग भगवान हनुमानजी के दर्शन के लिए आते हैं. इस मंदिर की विशेष मान्यता है कि यहां भगवान हनुमान के दर्शन मात्र से लोगों की कभी दुर्घटना में क्षति नहीं होती. साथ ही जीवन के सभी संकट के समय हनुमानजी उनकी मनोकामनाएं पूर्ण कर देते हैं. इस मंदिर में मंगलवार और शनिवार को भक्तगण सबसे ज्यादा आते हैं.
इस मंदिर में हर समय रहती है भीड़
आपको बता दें श्री चांदपोल हनुमानजी मंदिर चारदीवारी बाजार के मुख्य बाजार में बना हुआ है, जहां हर समय लोगों की भीड़ उमड़ी रहती है और लोग आते-जाते ही दर्शन करते हैं. साथ ही इस मंदिर में एक अनोखी परम्परा है, जिसमें यहां बेसहारा और गरीब लोगों को लोग प्रसादी के रूप में खाने की चीजें देते हैं. इसलिए यह इस मंदिर की सबसे प्रसिद्ध परम्परा बन गई है, साथ ही जयपुर के चारदीवारी बाजार में व्यापारी भी अपने व्यापार की शुरुआत हनुमानजी के दर्शन करने के बाद ही शुरू करते हैं.
हरितालिका तीज से लेकर मासिक शिवरात्रि तक, ये हैं सितंबर में पड़ने वाले त्योहार और व्रत
3 Sep, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में हर महीने के व्रत और त्योहारों का विशेष महत्व होता है. सितंबर का महीना भी कई बड़े व्रत और त्योहारों से भरा हुआ है, जो धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं.
इस महीने गणेश उत्सव, राधा अष्टमी, हरितालिका तीज जैसे प्रमुख पर्व मनाए जाएंगे. साथ ही पितृपक्ष की भी शुरुआत होगी. अयोध्या के ज्योतिष पंडित कल्कि राम के अनुसार, सितंबर का माह ज्योतिषीय दृष्टि से भी महत्वपूर्ण रहेगा. क्योंकि इस महीने कई बड़े ग्रहों का गोचर होगा.
सितंबर 2024 में व्रत और त्योहारों की तिथियां
06 सितंबर 2024: वाराह जयंती, हरितालिका तीज
07 सितंबर 2024: गणेश चतुर्थी, विनायक चतुर्थी
08 सितंबर 2024: ऋषि पंचमी
09 सितंबर 2024: स्कंद षष्ठी
10 सितंबर 2024: ललिता सप्तमी, ज्येष्ठ गौरी आवाहन
11 सितंबर 2024: राधा अष्टमी, महालक्ष्मी व्रत आरंभ
12 सितंबर 2024: ज्येष्ठ गौरी विसर्जन
14 सितंबर 2024: परिवर्तिनी एकादशी
15 सितंबर 2024: शुक्ल द्वादशी, वामन जयंती, ओणम, भुवनेश्वरी जयंती
16 सितंबर 2024: विश्वकर्मा पूजा, कन्या संक्रांति
17 सितंबर 2024: अनंत चतुर्दशी, पूर्णिमा श्राद्ध, भाद्रपद पूर्णिमा व्रत
18 सितंबर 2024: पितृपक्ष प्रारंभ, प्रतिपदा श्राद्ध, चंद्रग्रहण (आंशिक), भाद्रपद पूर्णिमा
19 सितंबर 2024: आश्विन मास प्रारंभ
21 सितंबर 2024: विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी
24 सितंबर 2024: कालाष्टमी, मासिक कालाष्टमी
25 सितंबर 2024: अश्विन कृष्ण नवमी, नवमी श्राद्ध, जीवित्पुत्रिका व्रत
27 सितंबर 2024: अश्विन कृष्ण एकादशी, एकादशी श्राद्ध
28 सितंबर 2024: इंदिरा एकादशी
29 सितंबर 2024: अश्विन कृष्ण द्वादशी, द्वादशी श्राद्ध, मघा श्राद्ध, प्रदोष व्रत
30 सितंबर 2024: अश्विन कृष्ण त्रयोदशी, त्रयोदशी श्राद्ध, मासिक शिवरात्रि, कलियुग
श्रद्धा और उत्साह से भरपूर रहेगा सितंबर
इस महीने के व्रत और त्योहारों में भाग लेना न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है. बल्कि यह व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन में भी शुभता और समृद्धि लाने वाला माना जाता है. सितंबर का महीना श्रद्धा और उत्साह से भरपूर रहेगा, और इन व्रत-त्योहारों में भाग लेकर आप अपनी आस्था को मजबूत कर सकते हैं.
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
3 Sep, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- सुख समृद्धि के योग बनेंगे, स्त्री वर्ग से हर्ष उल्लास, समृद्धि के योग फलप्रद रहेंगे।
वृष राशि - कुछ लोगों द्वारा की गई उपेक्षा से भावुक होंगे, रुके हुए कार्य बनेंगे, संतोष होगा।
मिथुन राशि - दैनिक कार्य की चिंताएं बनी रहेंगी, व्यावसायिक क्षमता अनुकूल होगी ध्यान रखें।
कर्क राशि - संघर्ष एवं सफलता जुटा सकते हैं। बिगड़ें कार्य बनेंगे, सतर्कता से कार्य करें।
सिंह राशि - स्त्री शरी कष्ट, मानसिक बैचेनी, स्वभाव में क्रोध व तनाव बना रहेगा, ध्यान दें।
कन्या राशि शांति और धैर्य से कार्य करें, अनावश्यक विरोधी तत्व परेशान करेंगे ।
तुला राशि - समय अनुकूल नहीं है, परिश्रम विफल होगा, विरोधी तत्व परेशान करेंगे ।
वृश्चिक राशि - योजनाएं फलीभूत होंगे, अनावश्यक सफलता का हर्ष होगा, कार्य में अवरोध होगा।
धनु राशि - कार्य अनुकूल पर फलप्रद नहीं, किंतु अधिकारियों का वांक्षनीय सहयोग प्राप्त होगा।
मकर राशि - कुटुम्ब की समस्याएं मन उद्विघ्न रखें, लेनदेन में हानि होवेगी, समय का ध्यान रखें।
कुंभ राशि - कुछ आशाओं से धैर्य बना ही रहेगा, प्रयत्न शीलता विफल होगी, कार्य बनेंगे।
मीन राशि - सोची योजना लाभप्रद होगी, समृद्धि के साधन जुटायें, कार्य योजना फलीभूत होगी।
यूपी का अनोखा मंदिर! जहां आने जाने का है एक रास्ता, रहस्य जानकर उड़ सकते हैं आपके भी होश!
2 Sep, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में कुड़ारी का मंदिर है. यह मंदिर काफी प्राचीन माना जाता है. यह मंदिर मां कुंड वासिनी धाम कुड़ारी के नाम से प्रसिद्ध है. यह मंदिर स्थानीय लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है. यहां पर कुंड की पूजा की जाती है. साथ ही मां कुंड वासिनी मंदिर में स्थापित माता कुंड वासनी की पूजा की जाती है.
बता दें कि कुरारी मंदिर मध्य प्रदेश के लम सरई और उत्तर प्रदेश के निवारी ग्राम के बीच में सोन नदी के किनारे मां कुंड वासिनी धाम कुरारी के नाम से प्रसिद्ध है. नदी के किनारे स्थित माता कुंड वासनी का यह मंदिर हजारों साल पुराना है और यहां पर कई शुभ अवसरों पर मां कुंड वासिनी धाम में मेला का आयोजन किया जाता है.
सोन नदी के किनारे स्थित है मंदिर
स्थानीय लोगों का मानना है कि वर्तमान में जहां पर कुड़ारी का मंदिर है. वहां पर सोन नदी का किनारा है. मान्यता है कि मंदिर के पूर्व दिशा में 200 मीटर की दूरी पर माता कुंड वासनी सैकड़ों वर्ष पहले प्रकट हुई थी. जहां माता कुंड वासनी के पत्थर की मूर्ति स्थानीय लोगों द्वारा देखा गया और उसे एक जगह पर लाकर स्थापित कर दिया गया. उसी जगह को कुरारी धाम या मां कुंड वासिनी मंदिर कुरारी के नाम से जाना जाता है.
जानें मंदिर का इतिहास
कुरारी मंदिर के इतिहास के बारे में यहां के स्थानीय लोगों को ज्यादा कुछ पता नहीं है, लेकिन उनके बुजुर्ग यह बताए थे कि माता कुंड वासनी की मूर्ति मिलने के बाद यहां पर लाकर एक पेड़ के नीचे रख दी गई थी. इसके बाद इतिहास में पुराने वीर व्यक्तियों द्वारा कुरारी का मंदिर निर्माण किया गया और यह सोनभद्र जिले का और मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले का एक बेहतर आस्था का केंद्र और पर्यटक स्थल भी बन गया है.
जानें इस मंदिर की खासियत
कुरारी के मंदिर के बारे में देखा जाए तो वहां के लोग बताते हैं कि यह मंदिर कब बना इसके बारे में जानकारी बहुत कम है, लेकिन इस मंदिर की अनोखी खासियत है. माता कुंड वासिनी मंदिर के अन्दर की प्रारंभिक ऊंचाई लगभग 11 मीटर को सिर्फ एक पत्थर द्वारा बनाया गया है और मंदिर के अंदर जाने का सिर्फ एक ही द्वार है.
मंदिर में है अलौकिक शक्ति
लोगों का ऐसा कहना है कि बाहर से आए प्राचीन ऋषि-मुनियों द्वारा इस मंदिर में एक और द्वार खोलने का प्रयास किया गया, लेकिन एक मजबूत पत्थर से बना हुआ यह मंदिर का दूसरा द्वार नहीं खोला जा सका. इसे आप अलौकिक शक्ति कह सकते हैं या मंदिर के बनावट की मजबूती भी मंदिर का कुछ इस तरह है.
नदी के बाढ़ की भी नहीं पड़ता असर
वहीं, मां कुंड वासिनी धाम कुरारी के आसपास के लोगों का कहना है कि सोन नदी के किनारे बसा यह मंदिर कितनी भी तेज बाढ़ आती है, लेकिन इस मंदिर के अंदर पानी नहीं घुस पाता है. अगर इस मंदिर के उत्तर साइड में देखा जाए तो सोन नदी के उस पार सिल्पी नाम का एक गांव है, जो वर्तमान राज्यसभा सांसद राम सकल का जन्म स्थान एवं निवास स्थली है.
मंदिर में लगती है श्रद्धालुओं की भीड़
कुरारी मंदिर के आसपास हमेशा मेले का रूप देखने को मिलता है और यहां पर मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के लोगों के आस्था का संगम देखने को मिलता है.
कुरारी मंदिर हमेशा लोगों की भीड़ अपनी आस्था के अनुसार कथा सुनने, पूजा करवाने, मन्नत पूरी करने, पर्यटन के रूप में, वीकेंड पर घूमने, मेला करने, पिकनिक मनाने इत्यादि अवसरों पर लोग इकट्ठा होते हैं.
जानें क्यों कहते हैं चमत्कारी मंदिर
लोगों का यह भी कहना है कि एक बार इस मंदिर पर आकाशी बिजली भी गिरी है. इसके बाद भी इस मंदिर पर कोई. इसलिए लोग इसे चमत्कारी मंदिर मानते हैं.
सितंबर में इस दिन करें मशीन, गाड़ी और औजार की पूजा, कभी नहीं मिलेगा धोखा!
2 Sep, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भगवान विश्वकर्मा को सृष्टि का सृजनकर्ता और प्रथम शिल्पकार के रूप में जाना जाता है. माना जाता है कि ब्रह्माजी के कहने पर विश्वकर्मा ने दुनिया बनाई थी. उन्होंने ही भगवान कृष्ण की द्वारका से लेकर शिवजी का त्रिशूल और हस्तिनापुर बनाया था. विश्वकर्मा जयंती के दिन लोग अपने दफ्तर, कारखाने, दुकान, मशीन, औजार की पूजा करते हैं. भगवान ब्रह्मा के 7 वें पुत्र विश्वकर्मा की जयंती हर साल 17 सितंबर को मनाई जाती है.
धार्मिक मान्यता के अनुसार जब भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की थी उसे सजाने, सवांरने और निर्माण करने का कार्य विश्वकर्मा को ही दिया था. विश्वकर्मा को देवताओं का शिल्पी भी कहा जाता है. हर साल 17 सितंबर को बड़े छोटे कारखानों, उद्योगों, कंपनियों, दुकानों आदि में विश्वकर्मा की पूजा की जाती हैं. धार्मिक ग्रंथ ऋग्वेद के अनुसार विश्वकर्मा की पूजा करने से कारोबार, संपत्ति आदि में बढ़ोतरी होती है जिससे व्यक्ति को अधिक धन लाभ होता है.
कौन है भगवान विश्वकर्मा?
हरिद्वार के ज्योतिषी पंडित श्रीधर शास्त्री से ने लोकल 18 को बताया कि भगवान ब्रह्मा के 7 वें पुत्र विश्वकर्मा की जयंती हर साल 17 सितंबर को मनाई जाती है. भगवान विश्वकर्मा को ही सृष्टि का पहला वास्तुकार, शिल्पकार और इंजीनियर माना जाता है. इस दिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और नौकरी व व्यापार में उन्नति के योग बनते हैं. साथ ही इस दिन मशीन, औजार और वाहन आदि की पूजा करने से वे कभी बीच काम या वक्त बेवक्त धोखा नहीं देते, जिससे काम आसानी से पूरे हो जाते हैं. साथ व्यापार या निर्माण आदि संबंधित कार्यों में कोई रुकावट नहीं आती है. 17 सितंबर को विधि विधान से विश्वकर्मा पूजा की जाए तो उद्योग, कारोबार, संपत्ति आदि में बढ़ोतरी होती है और अधिक धन लाभ होता है.
पितृपक्ष से 15 दिन पहले रखें इन बातों का ध्यान, भूलकर भी न खाएं ये चीजें, नाराज हो सकते हैं पूर्वज
2 Sep, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
17 सितंबर से पितृपक्ष की शुरुआत हो रही है जो 2 अक्टूबर तक चलेगी. कहा जाता है पितृपक्ष ऐसा समय है जब हम अपने पूर्वजों को प्रसन्न कर सकते हैं. हालांकि, इस दौरान कई बातों का विशेष रूप से ख्याल रखना भी बेहद जरूरी है. पितृपक्ष में कुछ चीजों का सेवन करना वर्जित माना गया है. श्रद्धालु सबसे पहले इस बात का ख्याल रखें कि जो व्यक्ति श्राद्ध क्रिया करते हैं उसे बाहर के खाने का सेवन नहीं करना चाहिए. उस व्यक्ति को 16 दिनों तक सात्विक भोजन ही करना चाहिए. धार्मिक दृष्टि से बाहर का खाना अशुद्ध माना जाता है.
इस संबंध में जानकारी देते हुए गया वैदिक मंत्रालय पाठशाला के पंडित राजा आचार्य बताते हैं कि श्राद्ध के इस 16 दिन तक लोग अपने मृत पूर्वजों के लिए पूजा का आयोजन कर उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं. गया श्राद्ध पर आने वाले तीर्थ यात्री को 15 दिन पहले से ही कुछ चीजों का पालन करना होता है जिसमें इस दौरान तामसिक गतिविधियों में शामिल नहीं होना चाहिए. इन दिनों प्याज, लहसुन, अंडा और मांस खाने से बचना चाहिए. यह समय धार्मिक कार्यों के लिए विशेष माना जाता है.
इन चीजों से रहे दूर
इन दिनों ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए. बाल कटवाने, नाखून काटने और शेविंग करने से भी बचना चाहिए. किसी के साथ गलत व्यवहार न करें. किसी से उधार न लें. छल कपट न करें. संयम और सदाचार में रहें. राजा आचार्य बताते हैं कि अगर पुत्र गया श्राद्ध में जाता है तो पितृ उत्सव मनाने लगते हैं. पितृ पक्ष में पितृ गया पहुंच जाते हैं और अपने पुत्र का इंतजार करते हैं कि कब वह गया आ रहे हैं और इनका पिंडदान करेगा. पितृ पक्ष में अपने पूर्वजों का पिंडदान के लिए गया जी आ रहे हैं तो सपरिवार यहां पहुंचे और उन्हें भी पितरों का विशेष अनुग्रह आशीर्वाद मिलेगा. पूर्वजों को मृत्यु चक्र से मुक्ति दिलाने के इस अनुष्ठान के बीच किसी तरह की बाधा उत्पन्न न हो इसलिए लहसुन प्याज या मांसाहार का सेवन नहीं किया जाता. ऐसा माना जाता है इस दौरान इन रीति रिवाजों का सही ढंग से अनुसरण न करने पर पूर्वज नाराज हो सकते हैं जिसके बाद कई बार पितृ दोष स्थिति का सामना करना पड़ता है. पितृपक्ष के दौरान मुख्य रूप से दाल, चावल, हरी सब्जी का सेवन करना चाहिए. इस दौरान बैंगन, टमाटर, कोहडा खाना निषेध माना जाता है.
एकमात्र शिवालय जहां शिवलिंग के उपर नहीं है छत, जानें ताड़केश्वर मंदिर का इतिहास
2 Sep, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
ताड़केश्वर महादेव मंदिर, गुजरात के वलसाड जिले में स्थित एक प्रसिद्ध शिव मंदिर है, जो अपनी अनोखी वास्तुकला और शयनित शिवलिंग के लिए विशेष रूप से जाना जाता है. इस मंदिर की खास बात यह है कि इसके ऊपर कोई छत नहीं है, और सूर्य की सीधी किरणें शिवलिंग पर पड़ती हैं. हर श्रावण माह में यहां विशेष पूजा-अर्चना होती है, जो भक्तों के बीच एक महत्वपूर्ण आकर्षण का केंद्र है.
ताड़केश्वर महादेव मंदिर का इतिहास
यह मंदिर वलसाड के अब्रामा गांव में वेंकी नदी के तट पर स्थित है और इसकी स्थापना लगभग 800 साल पहले हुई थी. मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार, एक चरवाहा जंगल में अपनी गायों को चरा रहा था, जब उसने देखा कि उसकी गाय एक चट्टान पर अनायास दूध उगल रही है. यह दृश्य देखकर उसने ग्रामीणों को बुलाया, जिन्होंने उस स्थान की जांच की और एक बड़ी शिला पाई. इसके बाद, एक भक्त प्रतिदिन इस शिला पर दूध का अभिषेक करने लगा.
कहा जाता है कि शिवजी ने उस भक्त को स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि वे उसकी भक्ति से प्रसन्न हैं और उसे उस शिला को कीचड़ से निकालकर उचित स्थान पर स्थापित करने का निर्देश दिया. ग्रामीणों ने शिवलिंग की खुदाई शुरू की और बहुत सावधानी से इसे निकाला, जिससे 6 से 7 फीट लंबा शिवलिंग प्रकट हुआ. इस शिवलिंग को बैलगाड़ी में लादकर आज के स्थान पर लाया गया, जहां इसे स्थापित किया गया.
ताड़केश्वर महादेव नाम का उद्भव
स्थापना के बाद, शिवलिंग की सुरक्षा के लिए एक अस्थायी दीवार और घास की छत बनाई गई, लेकिन कुछ ही दिनों में वह छत जल गई. जब ग्रामीणों ने ट्यूबलर छत बनाने की कोशिश की, तो वह भी तूफान में उड़ गई. इसके बाद, एक भक्त को स्वप्न में शिवजी ने बताया कि वे “ताड़केश्वर” हैं और उनके सिर पर छत न बनाने का निर्देश दिया. इसके बाद, मंदिर को ऊपर से खुला छोड़ दिया गया, और शिवलिंग को ताड़केश्वर महादेव के नाम से पूजा जाने लगा.
वर्तमान स्वरूप और श्रद्धालु
1994 में मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया, जिसमें 20 फीट गोल गुंबद को खुला रखा गया. यह मंदिर स्वयंभू शिवलिंग के कारण बहुत प्रसिद्ध है, और यहां हर साल श्रावणमास और महाशिवरात्रि पर हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं. श्रावण मास के दौरान, इस मंदिर में हर सोमवार को 10,000 से अधिक भक्त भोलेनाथ के दर्शन करने आते हैं, और यहां एक विशाल मेला भी लगता है.