धर्म एवं ज्योतिष
बड़ा ही चमत्कारी है देहरादून का यह मंदिर, यहां 220 सालों से जल रही अखंड ज्योति
14 Oct, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
देवभूमि उत्तराखंड को देवताओं की भूमि कहा जाता है. क्योंकि यहां क़ई बड़े और प्राचीन मंदिर हैं. देहरादून में भी क़ई मंदिर हैं, लेकिन आज हम आपको देहरादून के एक चमत्कारी मंदिर के बारे में बताने वाले हैं, जिसमें 220 सालों से अखंड ज्योति जल रही है. हम बात कर रहे हैं डाट काली माता मंदिर की, जो राजधानी देहरादून के मुख्य शहर से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर उत्तराखंड-उत्तर प्रदेश के बॉर्डर पर स्थापित है. इस मंदिर की बहुत मान्यता है. इसलिए प्रतिदिन यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं. सिर्फ उत्तराखंड ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश से भी लोग यहां आते हैं. नवरात्रों के दौरान श्रद्धालुओं की संख्या बहुत ज्यादा बढ़ जाती है. मां डाट काली मंदिर का निर्माण ब्रिटिश काल में किया गया था. मिली जानकारी के अनुसार इस मंदिर में 220 साल पहले की अखंड ज्योति और हवन कुंड जल रही है. साल 1804 में मंदिर के निर्माण के दौरान यहां अखंड ज्योति और हवन कुंड जलाई गई थी और तब से आज तक यह जल रही है.
नए वाहन को लेकर पूजा के लिए जाते हैं लोग
मां डाट काली मंदिर के महंत रमन प्रसाद गोस्वामी ने बताया इस मंदिर से क़ई मान्यताएं जुड़ीं हैं लेकिन देहरादून के लोग नया वाहन खरीदने के बाद डाट काली मंदिर में पूजा के लिए जरूर आते हैं. इसके अलावा अगर कोई व्यक्ति कोई नया काम शुरू करता है तो इस मंदिर में पूजा अर्चना करवाने जरूर आता है.
उन्होंने कहा कि मां डाट काली मंदिर मुख्य सिद्धपीठ में से एक है. माना जाता है कि माता सती के शरीर के एक खंड गिरा था. . इसके साथ ही महंत रमन प्रसाद गोस्वामी ने बताया कि मन्दिर का प्राचीन नाम मां घाटे वाली देवी था, लेकिन जब साल 1804 में मंदिर के पास मौजूद सुरंग बनी तो उसके बाद इस मंदिर का नाम डाट काली मंदिर पड़ गया. इस सिद्धपीठ की मान्यता है कि कोई भी व्यक्ति जो सच्चे मन से मनोकामना लेकर यहां पहुंचता है तो, उसकी सभी मनोकामना जरूर पूरी होती है. मां डाट काली के स्थापना के बाद सुरंग बनाने का काम शुरू हुआ था, जो जल्द ही बनकर तैयार हो गई. हालांकि, साल 1804 से 1936 तक ये सुरंग कच्ची ही रही, लेकिन 1936 के बाद फिर इस सुरंग को पक्का बना दिया गया था. साथ ही उन्होंने कहा कि मंगलवार, शनिवार और रविवार को इस मंदिर में श्रद्धालुओं की ज्यादा भीड़ देखने को मिलती है. डाट काली माता की बड़ी मान्यता है, यही वजह है कि उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश की बोर्डर पर स्थित होने के साथ ही अन्य राज्यों से भी लोग यहां दर्शन करने पहुंचते हैं.
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
14 Oct, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- कार्य कुशलता से संतोष होगा, समृद्धि के योग फलप्रद रहेंगे, उत्साह से कार्य बनेंगे, धैर्य से कार्य अवश्य करें।
वृष राशि :- कार्य तत्परता से कार्य होंगे, इष्ट मित्र सुखवर्धक होगा, रुके कार्य ध्यान देने से बनेंगे, आलस्य से हानि।
मिथुन राशि :- व्यवसायिक क्षमता में वृद्धि होगी, कार्य कुशलता से संतोष होगा, बिगड़े कार्य अवश्य ही बनेंगे।
कर्क राशि :- वाहन सोच-समक्षकर चलायें अन्यथा हानि संभव है, मानसिक विभ्रम से भय, मन में क्लेश व अशांति रहेगी।
सिंह राशि :- समय अनुकूल नहीं विशेष कार्य स्थगित रखें, लेन-देन के मामले में हानि होगी, सावधानी से कार्य करें।
कन्या राशि :- आकस्मिक विभ्रम के कारण किसी आरोप में फंस सकते हैं, सतर्कता से कार्य करें, सावधानी आवश्यक है।
तुला राशि :- भाग्य का सितारा प्रबल होगा, बिगड़े कार्य अवश्य ही बनेंगे, कार्य कुशलता से संतोष होगा ध्यान दें।
वृश्चिक राशि :- कार्य कुशलता से संतोष होगा, कार्य योजना फलीभूत होगी, समय पर कार्य करने से लाभ अवश्य होगा।
धनु राशि :- धन लाभ होगा, सफलता के साधन जुटायेंगे, आशानुकूल सफलता से हर्ष होगा, अवसरों का लाभ लें।
मकर राशि :- आरोप-प्रत्यारोप से क्लेश संभव है, धन लाभ होगा, आशानुकूल सफलता से हर्ष होगा, कार्यगति पर ध्यान दें।
कुंभ राशि :- इष्ट मित्र सुखवर्धक होगा, स्त्री शरीर कष्ट, असमंजस से मन विचलित रहेगा, व्यर्थ की बातों से बचें।
मीन राशि :- इष्ट मित्र सहायक रहेगा, दैनिक कार्यगति अनुकूल रहेगी, कार्य अवश्य पूर्ण करें, समय का ध्यान रखें।
मौत के मुंह से देवी मां ने खींच लाई जान, यहां है माता का सबसे ऊंचा दरबार! चमत्कारों से भरी कहानी
13 Oct, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
बेगूसराय:- आज हम मां के दिव्य दरबार की एक ऐसी कहानी बताने जा रहे हैं, जिसकी अद्भुत मायालोक की कहानी सुनने के बाद आप हैरान में पड़ जायेंगे. यह उस मंदिर की कहानी है, जिसकी पहचान विश्व में सबसे ऊंचे मां दुर्गा के दिव्य दरबार के रूप में होने का दावा किया जाता है. लोगों ने बताया कि मुगल काल में इस मंदिर की स्थापना एक छोटे से स्थानों पर कहीं से लाकर की गई थी. इसके बाद से स्थानीय लोगों की मन्नत पूरी होती गई और मां के दिव्य दरबार को भव्य रूप मिलने लगा. इतना ही नहीं, जहां यह मंदिर मौजूद है, इस गांव में जो कुछ भी होता है, तो मां के दिव्य दरबार में सूचना देकर ही होता है. गांव के हजारों लोग रोजाना संध्या दिव्य आरती में शामिल होते हैं और फिर अपनी बात मां से साझा कर ही अपने काम की शुरूआत करते हैं.
संतान प्राप्ति और जॉब को लेकर प्रसिद्ध है मंदिर
मंदिर के पुजारी पंकज सिंह ने बताया कि यह मंदिर विशेष रूप से संतान प्राप्ति और रोजगार उपब्लध कराने को लेकर प्रसिद्ध है. यहां मन्नत मांगने से पॉजिटिव एनर्जी मिलती है और यदि एक दो अंक से अगर पीछे हो गए, तो ऐसे छात्र सफल हो जाते हैं. इतना ही नहीं, मंदिर पुजारी और भक्त यहां तक दावा करते हैं कि मां के आशीर्वाद के रूप में नौकरी या संतान मिलने के बाद भक्त सिमिरिया धाम गंगा किनारे से दंड देते हुए मंदिर तक नवरात्र के आखिरी दिन आते हैं.
अद्भुत चमत्कार का भक्त करते हैं दावा
मां के दरबार से कोई खाली हाथ नहीं लौटा है. चमत्कार के उदाहरण की बात की जाए, तो एक बच्चा गांव में मृत्यु की अवस्था में था. लेकिन मां के दरबार में आने के बाद जिंदा हो गया. इतना ही नहीं, भक्त यहां तक बताते हैं कि गंगा में डूब चुके व्यक्ति की तलाश में दरभंगा से आया एक परिवार ने जब मां के दरबार में हाजिरी लगाई, फिर घर से फोन आया कि जिसे आप खोज रहे हैं, वह तो घर पर आ चुका है. उल्टा खोजबीन कर रहे परिजनों के डूबने की ही आशंका जता दी. ऐसे कई दावों के साथ मां का दिव्य दरबार अद्भुत मान्यताओं को लेकर प्रसिद्ध है.
विश्व का सबसे ऊंचा मां का दिव्य दरबार
मंदिर निर्माण को लेकर पुजारी भक्त और ग्रामीणों ने बताया कि यह मंदिर 11 महल का और 221 फीट ऊंचा है. ग्रामीण इस मंदिर को विश्व का सबसे ऊंचा दिव्य दरबार होने का दावा करते हैं. इसके इतने ऊंचा होने की कहानी भी काफी दिलचस्प है. भक्तों ने बताया कि जिन लोगों मनोकामना पूरी हुई, सबने मिलकर मंदिर को इतना ऊंचा स्वरूप दे दिया. पूरे मंदिर के निर्माण में कहीं से भी मजदूर नहीं लाया गया. इस मंदिर निर्माण में गांव के रहने वाले आईपीएस गुप्तेश्वर पांडे ने भी मदद की थी.
करवा चौथ पर छलनी से क्यों करते पति का दीदार?
13 Oct, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
Karwa chauth 2024: दिवाली से ठीक 12 दिन पहले करवाचौथ का पर्व मनाया जाता है. हिंदू धर्म में करवाचौथ व्रत का बड़ा महत्व है. इस वर्ष करवा चौथ 20 अक्टूबर 2024 दिन रविवार को पड़ रहा है. मान्यताओं के अनुसार, इस दिन महिलाएं पति की लंबी उम्र की कामना से दिनभर निर्जला व्रत करती हैं. इसके बाद रात को चंद्र देव को अर्घ्य देकर पति के हाथों से पानी पीकर व्रत खोलती हैं. करवा चौथ को लेकर लोगों में कई सवाल भी होते हैं. जैसे- करवा चौथ का व्रत कैसे रखें? करवा चौथ पर छलनी से क्यों करते हैं पति का दीदार? करवे में क्या भरना चाहिए? ऐसे कई रोचक सवालों बारे में News18 को बता रहे हैं उन्नाव के ज्योतिषाचार्य ऋषिकांत मिश्र शास्त्री-
करवा चौथ की तैयारी कैसे करनी चाहिए?करवा चौथ की तैयारी करने के लिए सबसे पहले थाली में एक आटे से बना दीपक होना चाहिए. उस दीपक में रुई की बाती का होना बेहद जरूरी है. इसमें मिट्टी का करवा भी अवश्य रखें. इसके अलावा, इसमें एक जल का कलश भी रखें, जिससे आप चंद्रमा को अर्घ्य देंगे. साथ ही छलनी का होना भी जरूरी है, जिससे आप चांद के दर्शन करें.
करवे में क्या भरा जाना चाहिएकुछ लोग करवा में गेहूं और उसके ढक्कन में शक्कर को भरते हैं. फिर करवा पर 13 रोली की बिंदी को रखकर हाथ में गेहूं या चावल के दाने लेकर करवा चौथ की कथा सुनी जाती है. फिर कथा को सुनने के बाद करवा पर हाथ घुमाकर महिलाएं अपनी सास के पैर छूकर आशीर्वाद लेती हैं और उनको करवा देती हैं. कई जगहों पर करवा में दूध भरा जाता है और तांबे या चांदी का सिक्का डाला जाता है.छलनी से क्यों करते हैं पति का दीदारमान्यता है कि छलनी में हजारों छेद होते हैं, जिससे चांद के दर्शन करने से छेदों की संख्या जितनी प्रतिबिंब दिखते हैं. अब छलनी से पति को देखते हैं तो पति की आयु भी उतनी ही गुना बढ़ जाती है. इसलिए करवा चौथ का व्रत करने के बाद चांद को देखने और पति को देखने के लिए छलनी प्रयोग की जाती है इसके बिना करवा चौथ अधूरा है.
क्या सरगी से पहले नहाना जरूरी है?इस शुभ दिन की तैयारी सुबह से ही शुरू हो जाती है और व्रत रखने वाली महिला सूरज की पहली रोशनी से पहले स्नान करती हैं और अपनी सास द्वारा दी गई सरगी खाती हैं. यह सरगी थाली इस तरह से तैयार की जाती है कि यह व्रत रखने वाली महिला को पूरे दिन ऊर्जा प्रदान करती है.
करवा चौथ के दिन चंद्रमा को अरग कैसे दें?करवाचौथ व्रत का पारण चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही किया जाता है. तो ऐसे में आपको बता दें कि चंद्रमा को अर्घ्य देते समय आपकी दिशा उत्तर-पश्चिम की ओर होनी चाहिए. इस दिशा में मुख करके चंद्रदेव को अर्घ्य देने से पूजा का पूर्ण फल प्राप्त होता है. और वैवाहिक जीवन में खुशियां आती है.
करवा चौथ की पूजा घर में कैसे करते हैं?करवा के पूजन के साथ एक लोटे में जल भी रखें इससे चन्द्रमा को अर्घ्य दिया जाता है. पूजा करते समय करवा चौथ व्रत कथाका पाठ करें. चांद निकलने के बाद छलनी की ओट से पति को देखें फिर चांद के दर्शन करें. चन्द्रमा को जल से अर्घ्य दें और पति की लंबी उम्र की प्रार्थना करें.
करवा चौथ पर कौन सा रंग नहीं पहनना चाहिए?करवा चौथ त्योहार का रंग लाल है क्योंकि इसे शुभ माना जाता है और उत्सव के दौरान महिलाएं इसे पहनती हैं. हालांकि, कुछ अन्य रंग भी हैं जिन्हें विवाहित महिलाएं पहन सकती हैं, जिनमें पीला, हरा, गुलाबी और नारंगी शामिल हैं. हालांकि, उन्हें काले या सफेद रंगों से बचना चाहिए.
करवा चौथ पर किस भगवान की पूजा की जाती है?लंबी उम्र और सौभाग्य के लिए इस दिन चंद्रमा की पूजा की जाती है. इसके अलावा भगवान शिव, माता पार्वती और श्रीगणेश की भी पूजा की जाती है. इसी तिथि पर शाम को चंद्र उदय के बाद चंद्रदेव को अर्घ्य अर्पित करना चाहिए. इसके लिए चांदी के लोटे में दूध भरें और चंद्र को देखते हुए अर्घ्य चढ़ाएं. इस दौरान चंद्र मंत्र ऊँ सों सोमाय नम: मंत्र का जप करना चाहिए.
चांद को अरग कैसे दे?गृहाणार्घ्यं मया दत्तं गणेशप्रतिरूपक॥ का उच्चारण करते हुए अर्घ्य दें. फिर उन्हें प्रणाम करके पति की लंबी आयु और सुखी जीवन की प्रार्थना करें. इसके बाद पति के हाथों जल ग्रहण करके अपना व्रत पूरा करें. चांद न दिखने की सूरत में इस प्रकार से अर्घ्य दिया जा सकता है.
चंद्रमा को जल चढ़ाने से क्या होता है?शास्त्रों के अनुसार, पूर्णिमा की रात्रि चंद्र के उदय होने के बाद लोटे से जल व दूध का अर्घ्य देना शुभ होता है. इससे चंद्र देव की कृपा बनी रहती है. पूर्णिमा पर चंद्र देव को देखकर ऊँ सों सोमाय नम: मंत्र का जाप 108 बार करना चाहिए, इससे जीवन में अपार सफलता मिलती है.
4 दिन बाद आसमान से बरसेगा अमृत! शरद पूर्णिमा की चांदनी में रखें खीर
13 Oct, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
Sharad Purnima 2024: सनातन धर्म में शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व है. यह हर साल अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है. हिंदू कैलेंडर के अनुसार, सालभर में 12 पूर्णिमा तिथियां होती हैं. इसमें शरद पूर्णिमा को विशेष महत्व है. शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा और कोजागर पूर्णिमा के नाम से भी जानते हैं. मान्यता है कि, शरद पूर्णिमा की रात भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के संग महारास रचाया था, इसलिए इसे रास पूर्णिमा कहते हैं. वहीं, शरद पूर्णिमा की रात माता लक्ष्मी पृथ्वी पर विचरण करती हैं, जिसे कोजागर पूर्णिमा के नाम से जानते हैं. शरद पूर्णिमा की रात में खुले आसमान के नीचे खीर रखते हैं. क्या आप जानते हैं कि इस खीर को खाने के लाभ क्या हैं? इस बार कब है शरद पूर्णिमा? शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की किरणों में खीर रखने का समय क्या है?
शरद पूर्णिमा 2024 की सही तारीख
वैदिक पंचांग के अनुसार, इस साल शरद पूर्णिमा के लिए जरूरी अश्विन शुक्ल पूर्णिमा तिथि 16 अक्टूबर बुधवार की रात 8:40 बजे शुरू होगी. यह तिथि अगले दिन 17 अक्टूबर को शाम 4:55 बजे तक मान्य रहेगी. ऐसे में शरद पूर्णिमा का पर्व 16 अक्टूबर 2024 दिन बुधवार को मनाया जाएगा.
शरद पूर्णिमा 2024 खीर रखने का समय
16 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा का चंद्रोदय शाम में 05:5 बजे पर होगा. शरद पूर्णिमा की रात खुले आसमान के नीचे चंद्रमा की किरणों में खीर रखते हैं. इस साल शरद पूर्णिमा पर खीर रखने का समय रात में 08:40 बजे से है. इस समय से शरद पूर्णिमा का चंद्रमा 16 कलाओं से युक्त होकर अपनी किरणों को पूरे संसार में फैलाएगा.
शरद पूर्णिमा की खीर के 5 चमत्कारी लाभ
मां लक्ष्मी का मिलेगा आशीर्वाद: शरद पूर्णिमा की खीर बनाकर आप माता लक्ष्मी को भोग लगाएं. फिर उसे खाएं. आप पर माता लक्ष्मी प्रसन्न होंगी.
कुंडली में चंद्रमा मजबूत होगा: शरद पूर्णिमा की खीर का सेवन करने से कुंडली में चंद्रमा मजबूत होता है. दूध, चीनी और चावल तीनों ही चंद्रमा से जुड़ी वस्तुएं हैं. यदि आप शरद पूर्णिमा पर खीर बनाकर दान कर दें तो आपकी कुंडली का चंद्र दोष दूर हो सकता है.
सेहत में होगा सुधार: धार्मिक मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की किरणों में अमृत के समान औषधीय गुण होते हैं. चंद्रमा की किरणें जब खीर में पड़ती हैं तो वह खीर भी अमृत के गुणों वाला हो जाता है. शरद पूर्णिमा की खीर खाने से व्यक्ति सेहतमंद होता है और त्वचा की चमक बढ़ती है.
रोगों में होगा लाभ: शरद पूर्णिमा की खीर खाने से मन और शरीर दोनों ही शीतल होता है. यह कई रोगों में लाभदायक माना जाता है.
इम्युनिटी में हो सकता सुधार: य
दि आप शरद पूर्णिमा पर चांदी के बर्तन में खीर को चांदनी में रखते हैं तो उसके सेवन से रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि हो सकती है.
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
13 Oct, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- इष्ट मित्र सुखवर्धक होगा, प्रयास जारी रखें, प्रयत्नशीलता तथा सफलता से लाभ अवश्य होगा।
वृष राशि :- सोचे कार्य समय पर पूर्ण कर लें, कार्य तत्परता से लाभांवित होंगे, सफलता से हर्ष होगा।
मिथुन राशि :- मनोबल उत्सावर्धक होगा, व्यवसायिक क्षमता में वृद्धि होगी, कार्य संतोष रहेगा, मन प्रसन्न रहेगा।
कर्क राशि :- परिश्रम से सफलता मिलेगी, सामर्थ्य के अनुसार प्रयास अवश्य करें, अवसरों का लाभ अवश्य लें।
सिंह राशि :- कार्यवृत्ति में सुधार होगा, चिन्तायें कम होंंगी, सफलता के साधन जुटायेंगे, कार्य समय पर पूर्ण करें।
कन्या राशि :- परिश्रम करने पर भी सफलता दिखाई न दे, स्त्री वर्ग से तनाव व कष्ट होगा, मन में धैर्य रखकर कार्य करें।
तुला राशि :- कुछ लोगों से मेल-मिलाप फलप्रद रहेगा, क्षमता के अनुकूल फल मिलेगा, कार्य बनेंगे ध्यान दें।
वृश्चिक राशि :- स्वास्थ्य नरम रहेगा, चोटादि का भय, मनोबल उत्साहवर्धक रहेगा, कायों को समय पर पूरा करने का प्रयास करें।
धनु राशि :- कार्यकुशलता से संतोष होगा, दैनिक कार्यगति में सुधार होगा, परिश्रम से कार्यों में सफलता मिलेगी।
मकर राशि :- मनोबल उत्सावर्धक रहेगा, मित्र-इष्ट मित्र सहयोगी होंगे, कार्य पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
कुंभ राशि :- कार्य व्यवसाय गति मंद रहेगी, साधन सम्पन्नता अवश्य बनेगी, विशेष अवसरों को हाथ से न जाने दें।
मीन राशि :- विघटनकारी तत्व परेशान करेंगे, मनसिक कष्ट का अनुभव होगा, कार्य बाधा बनेगी, कार्यगति पर ध्यान दें।
क्या हैं पारसियों की वो 5 परंपराएं, जिससे ताल्लुक रखते थे रतन टाटा, क्यों गिद्धों के सामने रख देते हैं शव
11 Oct, 2024 06:35 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भारत में पारसी धर्म के लोग फारस से भागकर गुजरात पहुंचे थे. तब से वो यहीं के स्थायी वाशिंदे बन गए. भारत में उन्होंने खासकर बिजनेस और इंडस्ट्री सेक्टर बड़ी धाक जमाई. इस धर्म के ज्यादातर लोग हालांकि दुनियाभर में फैले हुए हैं लेकिन भारत में ही बहुतायत में रहते हैं. हालांकि उनकी जनसंख्या लगातार कम होती जा रही है.
पारसियों का रहन-सहन खास होता है. परंपराएं अलग. उनकी कई परंपराएं अनोखी और विचित्र भी हैं. खासकर पारसी निधन के बाद जो अंतिम संस्कार करते हैं, उसको दुनिया में सबसे विचित्र मानते हैं. जानते हैं कि पारसियों की 05 परंपराएं वो कौन सी हैं, जो अलग और खास हैं.
1. टॉवर ऑफ़ साइलेंस
सबसे खास परंपराओं में एक टॉवर ऑफ़ साइलेंस या दखमा है, जहां मृत शरीर को गिद्धों के सामने छोड़ दिया जाता है. यह प्रथा इस विश्वास से उपजी है कि वायु, जल और अग्नि के तत्व पवित्र हैं. उन्हें दफ़नाने या दाह संस्कार से प्रदूषित नहीं किया जाना चाहिए. सड़े हुए पक्षियों के सामने शव का जाना दान का कार्य माना जाता है, क्योंकि यह इन पक्षियों को पोषण प्रदान करता है और शरीर को बिना किसी प्रदूषण के प्रकृति में वापस जाने की अनुमति देता है.पारसी धर्म के लोगों का मानना है कि जैसे ही सांस शरीर से बाहर निकलती है, शरीर अशुद्ध हो जाता है. शव को दफनाने के बजाय, पारसी लोग पारंपरिक रूप से उसे एक विशेष रूप से निर्मित मीनार ( दोखमा या ‘मौन की मीनार’) पर रख देते थे, ताकि वह सूर्य के प्रकाश में रहे. गिद्ध जैसे शिकारी पक्षी उसे खा सकें. मुंबई में इसके लिए 57 एकड़ में फैली हुए एक क्षेत्र को इसके लिए बनाया गया है. जहां शव को गोलाकार बड़ी सी मीनार में ऊपर रखने का काम किया जाता है.ये इलाका ऊचे पेड़ों से घिरा है. इसे जंगल की तरह बनाया गया है. इसमें काफी मोर हैं. इस शांत वातावरण में भारत के मुंबई के पारसी ज़ोरोस्ट्रियन अंतिम संस्कार करते हैं. अब गिद्ध कम होते जा रहे हैं जो पारसियों के लिए चिंता का विषय भी है. अंतिम संस्कार की प्रथा को दोखमेनाशिनी कहते हैं. इसमें मृतकों को एक ऊंची, गोलाकार संरचना में ले जाया जाता है, जिसकी छत पर तीन संकेंद्रित छल्ले होते हैं. बीच में एक केंद्रीय अस्थि-कुंड होता है. इसे दखमा कहा जाता है. और यहां शवों को मौसम और सड़े हुए पक्षियों के माध्यम से सड़ने के लिए खुले में रखा जाता है. गिद्ध मृतकों के मांस को खाते हैं. अधिकांश लोग इसे “आसमान दफन” के रूप में जानते हैं. मुंबई में ” साइलैंस ऑफ टॉवर” 300 साल पुराना गोलाकार टॉवर है, जिसे डूंगरवाड़ी कहा जाता है.
2. नवजोत समारोह
नवजोत समारोह एक बच्चे को पारसी धर्म में दीक्षा देने का प्रतीक है. इस अनुष्ठान के दौरान, बच्चे सुद्रेह नामक एक पवित्र शर्ट और कुस्ती नामक एक डोरी पहनते हैं. इस समारोह में प्रार्थना और आशीर्वाद शामिल हैं, जो समुदाय में उनके प्रवेश और उनके धर्म के प्रति उनकी जिम्मेदारियों का प्रतीक है.
3. अनोखी शादी की प्रथाएं
पारसी शादियों में अलग-अलग रस्में शामिल होती हैं, जैसे कि समारोह की शुरुआत में जोड़े को चादर से अलग किया जाता है. वे एक रस्म निभाते हैं जिसमें वे एक-दूसरे पर चावल फेंकते हैं, जो प्रभुत्व का प्रतीक है. समारोह में हिंदू रीति-रिवाजों के समान एक शुद्धिकरण स्नान भी शामिल है, जो उनकी परंपराओं में सांस्कृतिक प्रभावों के मिश्रण को दिखाता है.
4. नवरोज़ मनाना
नवरोज़, या पारसी नव वर्ष, विभिन्न रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है जो बाहरी लोगों को अजीब लग सकते हैं. परिवार एक-दूसरे से मिलते हैं, मिठाइयों का आदान-प्रदान करते हैं और पारंपरिक पोशाक पहनते हैं. आने वाले वर्ष के लिए समृद्धि और स्वास्थ्य का संकेत देने के लिए ‘S’ से शुरू होने वाली सात प्रतीकात्मक वस्तुओं वाली “हफ़्त सिन” नामक एक विशेष मेज तैयार की जाती है.
5. चांदी के ‘सेस’ का उपयोग
पारसी महिलाओं के बीच एक अनूठी परंपरा है जिसमें वे परिवार की एकता और ताकत के प्रतीक अनुष्ठान वस्तुओं से भरी एक चांदी की प्लेट ले जाती हैं जिसे ‘सेस’ कहा जाता है. इस प्लेट में आग, पानी, पौधे और जानवरों का प्रतिनिधित्व करने वाली वस्तुएं शामिल होती हैं, जो प्रकृति और आध्यात्मिकता से उनके संबंध पर जोर देती हैं.
पारसी क्यों नदी और झरनों में नहाने से बचते हैं
उनके लिए पानी पूजनीय है. शुद्धिकरण अनुष्ठानों में इसका उपयोग किया जाता है. पारसी प्राकृतिक जल स्रोतों को प्रदूषित करने से बचते हैं. नदियों या झरनों में सीधे स्नान की बजाय अपने अनुष्ठानों के लिए उनसे पानी निकालना पसंद करते हैं.
भारत क्यों आए थे पारसी
पारसी इस्लामी साम्राज्य के उदय के दौरान प्राचीन फ़ारस धार्मिक उत्पीड़न से बचकर भागे थे. उन्होंने भारत में शरण ली. बताया जाता है कि वो 8वीं से 10वीं बड़ी नावों और जहाजों से भारत के गुजरात में समुद्र तट पर पहुंचे.
कितना पुराना है पारसी धर्म
पारसी धर्म दुनिया के सबसे पुराने धर्मों में एक है. ये पैगंबर जरथुस्त्र की शिक्षाओं पर आधारित है, जो 3000 से 3500 साल पहले रहते थे. ये कई राजवंशों में फारस में प्रमुख धर्म था.
दिल्ली में बनारस और ऋषिकेश जैसी आरती का मजा! इस प्रसिद्ध घाट पर पहुंचते हैं लाखों श्रद्धालु
11 Oct, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
दिल्ली: गंगा आरती की बात होती है, तो ज्यादातर लोग हरिद्वार या वाराणसी का नाम लेते हैं. क्योंकि यहां की आरती विश्वभर में प्रसिद्ध है. शाम को पंडित मां गंगा के सामने खड़े होकर पूजा करते हैं और हजारों श्रद्धालु उनके साथ आरती गाते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि दिल्ली में भी एक घाट है, जहां आप यमुना आरती का आनंद ले सकते हैं? जी हां! आपने सही सुना. दिल्ली में एक अनोखा घाट है, जहां पर्यटक यमुना नदी की आरती का आनंद लेने के साथ-साथ कई अन्य गतिविधियों का भी लुत्फ उठा सकते हैं.
जानें कहां होती है आरती?
इस घाट का नाम वासुदेव घाट है. जानते हैं इस घाट के बारे में और भी दिलचस्प बातें. वासुदेव घाट, जो दिल्ली के आईएसबीटी कश्मीरी गेट के पास है. मार्च 2024 में पर्यटकों के लिए खोला गया था. इसका उद्घाटन दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने किया था. यह घाट लगभग 16 हेक्टेयर में फैला हुआ है और यहां हरिद्वार और ऋषिकेश की तरह आरती का आयोजन किया जाता है.
बड़ी संख्या में आते हैं श्रद्धालु
यहां की आरती देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग आते हैं. खासतौर पर रविवार के दिन यहां लाखों की संख्या में लोग आरती में शामिल होते हैं. ऋषिकेश और हरिद्वार में रोज आरती होती है, लेकिन दिल्ली में वासुदेव घाट के साथ ऐसा नहीं है. यहां रविवार और मंगलवार को ही यमुना आरती होती है. वासुदेव घाट पर दोनों दिन पर्यटकों की भीड़ देखी जाती है. आरती का समय शाम 6 बजे का है.
कैसी है आस-पास की जगह
सैलानियों को वासुदेव घाट पर होने वाली आरती के साथ-साथ अन्य गतिविधियों में भी भाग लेने का मौका मिलता है. घाट के किनारे बनी सीढ़ियों पर पर्यटक आराम से समय बिता सकते हैं. यहां बैठने के लिए पारंपरिक छतरियां भी हैं. इस घाट के पास एक पार्क है, जो सैलानियों को बहुत आकर्षित करता है. पार्क में कई तरह के फूल लगाए गए हैं और कई छोटे-छोटे विश्राम स्थल भी मौजूद हैं. यहां एक स्नान कुंड भी है, जिसमें लगभग 300 किलो की घंटी लगी हुई है और यमुना की मूर्ति भी स्थापित है यहां के स्थानीय निवासी ने बताया कि हफ्ते के दो दिनों में जब आरती होती है, तब यहां की रौनक देखते ही बनती है. बड़ी संख्या में लोग इस आरती का आनंद लेने आते हैं. आरती के बाद आस-पास बने स्थानों पर भी सैलानी घूमने जाते हैं.
जानें कैसे पहुंचें यहां?
यहां आप कार, बस, रिक्शा से पहुंच सकते है. आप अपनी सहूलियत के मुताबिक साधन का चुनाव कर सकते हैं. बात करें मेट्रो की तो यहां सबसे नजदीक कश्मीरी गेट मेट्रो स्टेशन पड़ेगा. इसके लिए मेट्रो गेट नंबर 5 या 6 से निकलना होगा. इसके अलावा घाट के पास आईएसबीटी कश्मीरी गेट भी है. जाने से पहले रूट की पूरी जानकारी कर लें, उसके बाद ही आरती का आनंद लेने जाएं.
दुर्गा अष्टमी-महा नवमी साथ, करें मां महागौरी, सिद्धिदात्री की पूजा, जानें विधि, मुहूर्त, मंत्र, भोग
11 Oct, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
आज 11 अक्टूबर शुक्रवार को शारदीय नवरात्रि का अंतिम दिन है. आज दुर्गा अष्टमी और महा नवमी साथ में है. हालांकि कई जगहों पर दुर्गा अष्टमी का व्रत 10 अक्टूबर को भी रखा गया था. आज के दिन अष्टमी की देवी मां महागौरी और नवमी की देवी मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है. पंचांग के अनुसार, अश्विन शुक्ल अष्टमी को दुर्गा अष्टमी और नवमी तिथि को महा नवमी के नाम से जानते हैं. दुर्गा अष्टमी के दिन मां दुर्गा के आठवें और महा नवमी को मां दुर्गा के नौवें स्वरूप की पूजा करते हैं. इस बार दुर्गा अष्टमी और महा नवमी के दिन सुकर्मा योग बना है. इस दिन कन्या पूजा और नवरात्रि का हवन करने का विधान है. श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभागाध्यक्ष डॉ. मृत्युञ्जय तिवारी से जानते हैं दुर्गा अष्टमी और महा नवमी की पूजा विधि, मुहूर्त, मंत्र, भोग आदि के बारे में.
दुर्गा अष्टमी-महा नवमी 2024 मुहूर्त और योग
दृक पंचांग के अनुसार आज अष्टमी तिथि दोपहर 12:06 बजे तक है. उसके बाद से नवमी तिथि लग जाएगी. आज सुकर्मा योग पूरे दिन है. वहीं सर्वार्थ सिद्धि योग और रवि योग नवमी तिथि में 12 अक्टूबर को सुबह 05:25 बजे से 06:20 बजे तक है. इस दिन का ब्रह्म मुहूर्त 04:41 ए एम से 05:30 ए एम तक है, वहीं अभिजीत मुहूर्त दिन में 11:44 बजे से दोपहर 12:31 बजे तक है.
दुर्गा अष्टमी-महा नवमी 2024: दिन का चौघड़ियां मुहूर्त
चर-सामान्य मुहूर्त: 06:20 ए एम से 07:47 ए एम
लाभ-उन्नति मुहूर्त: 07:47 ए एम से 09:14 ए एम
अमृत-सर्वोत्तम मुहूर्त: 09:14 ए एम से 10:41 ए एम
शुभ-उत्तम मुहूर्त: 12:08 पी एम से 01:34 पी एम
चर-सामान्य मुहूर्त: 04:28 पी एम से 05:55 पी एम
मां महागौरी पूजा मंत्र
1. श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:
2. या देवी सर्वभूतेषु मां महागौरी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
3. ओम देवी महागौर्यै नमः
मां सिद्धिदात्री पूजा मंत्र
1. ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम:
2. या देवी सर्वभूतेषु मां सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
3. ओम देवी सिद्धिदात्र्यै नमः
मां महागौरी का प्रिय भोग
माता महागौरी को नारियल या उससे बनी मिठाई, पूड़ी, हलवा, खीर, काले चने आदि का भोग लगाते हैं.
मां सिद्धिदात्री का प्रिय भोग
मां सिद्धिदात्री को तिल, हलवा, पूड़ी, नारियल, चना, खीर, आदि का भोग लगाते हैं.
दुर्गा अष्टमी-महा नवमी की पूजा विधि
आज के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान आदि से निवृत होकर व्रत और पूजा का संकल्प करें. उसके बाद शुभ मुहूर्त मां महागौरी और मां सिद्धिदात्री का जल से अभिषेक करें. उनको लाल पुष्प, अक्षत्, सिंदूर, धूप, दीप, गंध, मौसमी फल, नैवेद्य आदि चढ़ांए. फिर महागौरी को नारियल या उससे बनी मिठाई का भोग लगाएं. मां सिद्धिदात्री को तिल, हलवा, पूड़ी, नारियल, चना, खीर, आदि का भोग लगाएं. पूजा के समय आप महागौरी और सिद्धिदात्री मंत्र का उच्चारण करें. उसके बाद दुर्गा चालीसा, दुर्गा सप्तशती का पाठ करें. नवरात्रि का हवन करें. फिर कन्याओं को पूजा के लिए आमंत्रित करें. विधि और नियम पूर्वक कन्या पूजा करें. उनको उपहार दें और आशीर्वाद लें.
मां महागौरी की पूजा के फायदे
मां महागौरी की पूजा करने वालों को सुख, समृद्धि, दीर्घायु की प्राप्ति होती है, वहीं उनके पाप, कष्ट आदि मिट जाते हैं.
मां सिद्धिदात्री की पूजा से लाभ
मां सिद्धिदात्री की कृपा से व्यक्ति को मोक्ष मिलता है, वह पाप, कष्ट आदि से मुक्त हो जाता है. देवी के आशीर्वाद से व्यक्ति को 8 सिद्धियां और 9 निधियां मिलती हैं. रोग और ग्रह दोष भी दूर होते हैं.
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
11 Oct, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- दैनिक व्यवसाय गति में सुधार होगा, योजनायें फलीभूत होंगी, रुके कार्य बनेंगे ध्यान दें।
वृष राशि :- दैनिक क्षमता में वृद्धि होगी, सफलता एवं प्रभुत्व वृद्धि के योग बनेंगे, कार्यगति पर ध्यान अवश्य दें।
मिथुन राशि :- आर्थिक योजना पूर्ण होगी, कार्य क्षमता में वृद्धि के योग बनेंगे, इष्ट मित्र सुखवर्धक होगा।
कर्क राशि :- कार्य व्यवसाय अनुकूल रहेगा, चिन्तायें कम होंगी तथा इष्ट मित्र सुखवर्धक होगा, समय का ध्यान रखें।
सिंह राशि :- धन लाभ होगा, आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा, कार्यवृत्ति में सुधार होगा, कार्य पर ध्यान दे।
कन्या राशि :- कुछ समस्या सुलझेंगी कुछ पैदा होंगी, समय अनुकूल नहीं सोच-विचार कर कार्य अवश्य करें।
तुला राशि :- कार्य-व्यवसाय क्षमता अनुकूल होगी, आशाओं में कुछ सफलता किन्तु तनाव बनेगा, धैर्य अवश्य रखें।
वृश्चिक राशि :- धन लाभ होगा, आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा, कुटुम्ब की समस्यायें अवश्य ही सुलझेंगी ध्यान दें।
धनु राशि :- प्रत्येक कार्य में विलम्ब संभव है, धन लाभ होगा, आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा, कार्य समय पर करें।
मकर राशि :- आरोप व क्लेश संभव है, धन का व्यय होगा किन्तु विशेष सफलता से खुशी होगी, धैर्य के साथ कार्य करें।
कुंभ राशि :- सफलता के साधन जुटायेंगे, सोचे कार्य समय पर पूर्ण होंगे, रुके कार्य परिश्रम से बनेंगे, आलस्य से हानि।
मीन राशि :- किसी तनाव व क्लेश की स्थिति से बचें, अशांति व असमंजस का वातावरण रहेगा, वाद-विवाद से बचें।
विजदशमी पर होती है शस्त्रों की पूजा
10 Oct, 2024 07:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
शारदीय नवरात्रि के दशवें दिन यानी आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी को दशहरे का पर्व मनाया मनाया जाता है। इस बार दशहरा (विजयादशमी) का पर्व शनिवार 12 अक्टूबर को मनाया जाएगा। पौराणिक कथाओं के अनुसार, दशहरे के दिन ही भगवान राम ने लंका नरेश रावण का वध किया था। इस दिन असत्य पर सत्य की जीत हुई थी, इसलिए ये पर्व विजयादशमी के पर्व के रूप में मनाया जाता है और अस्त्र शस्त्रों की पूजा की जाती है।
दशहरे के दिन आतिशबाजी के साथ ही रावण दहन का विशाल आयोजन होता है। नवरात्रि में शुरू होने वाली रामलीला का मंचन दशमी को यानी दशहरे के दिन रावण के दहन के साथ समाप्त होता है। दशहरा पर्व पर बहुत से लोग रावण को जलाते हैं और उसके जलने के बाद उसकी जली हुई लकड़ी को उपने घरों में लाकर रखते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने पर घर से बुरी-बलाएं दूर हो जाती हैं और घर में सुख शांति बनी रहती है। कुछ लोग दशहरा को पान खाने का सगुन करते हैं। तो कुछ इलाकों में दशहरे का मेला भी आयोजित होता है।
दशहरे को ये काम करने से मिलता हे पुण्य-
मान्यता है कि दशहरे के दिन यदि किसी को नीलकंठ नाम का पक्षी दिख जाए तो काफी शुभ होता है। कहा जाता है कि नीलकंठ भगवान शिव का प्रतीक है जिनके दर्शन से सौभाग्य और पुण्य की प्राप्ति होती है।
दशहरे के दिन गंगा स्नान करने को भी बहुत महत्वपूर्ण बताया गया है। कहा जाता है कि दशहरे के दिन गंगा स्नान करने का फल कई गुना बढ़ जाता है। इसलिए दशहरे दिन लोग गंगा या अपने इलाके की पास किसी नदी में स्नान करने जाते हैं।
माणिक्य पहनने से पहले रखें ये सावधानियां
10 Oct, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार माणिक्य रत्न सूर्य का प्रतिनिधित्व करता है। कहा जाता है कि जिस किसी की कुंडली में सूर्य शुभ प्रभाव में होता है उसे माणिक्य रत्न धारण करना चाहिए। इसे धारण करने से सूर्य की पीड़ा शांत होती है। यह रत्न व्यक्ति को मान-सम्मान, पद की प्राप्ति करवाने में भी सहायक हैलेकिन माणिक्य पहनने से पहले जान ले कि दोषयुक्त माणिक्य लाभ की अपेक्षा हानि ज्यादा करता है। तो आइए जानते है कि क्या है वो सावधानियां:
रत्न ज्योतिष के अनुसार जिस माणिक्य में आड़ी तिरछी रेखाएं या जाल जैसा दिखाई दे तो वह माणिक्य गृहस्थ जीवन को नाश करने वाला होता है।
जिस माणिक्य में दो से अधिक रंग दिखाई दें तो जान लीजिए कि यह माणिक्य आपकी जिंदगी में काफी परेशानियां ला सकता है।
कहा जाता है जिस माणिक्य में चमक नहीं होती ऐसा माणिक्य विपरीत फल देने वाला होता है। तो कभी भी बिना चमक वाला माणिक्य न पहने।
धुएं के रंग जैसा दिखने वाला माणिक्य अशुभ और हानिकारक माना जाता है। वहीं मटमैला माणिक्य भी अशुभ होता है। इसे खरीदने से पहले देख लें कि ये इस रंग का न हो।
सभी प्रकार के रोगों और पीड़ाओं से मुक्ति दिलाता है हनुमान यज्ञ
10 Oct, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
‘नासे रोग हरे सब पीरा। जो सुमिरे हनुमंत बलबीरा।।‘ हनुमान चालीसा की यह चौपाई बताती है कि बजरंग बली सभी प्रकार रोगों और पीड़ाओं से मुक्ति दिला सकते हैं। इसी प्रकार कलयुग में हनुमान यज्ञ सभी प्रकार की पीड़ा से मुक्ति दिलाने वाला और धन और यश की प्राप्ति के लिए एक उत्तम और चमत्कारिक उपाय के रूप में बताया जाता है। संतों के अनुसार हनुमान यज्ञ में इतनी शक्ति है कि अगर विधिवत रूप से यज्ञ को कर लिया जाए तो यह व्यक्ति की हर मनोकामना को पूरा कर सकता है। इसलिए शायद कई हिन्दू राजा युद्ध में जाने से पहले हनुमान यज्ञ का आयोजन जरूर करते थे।
आइये जानते हैं कैसे होता है हनुमान यज्ञ और यदि कोई हनुमान यज्ञ नहीं करवा सकता है तो हनुमान जी की कृपा प्राप्ति का अन्य उपाय-
हनुमान यज्ञ को एक सिद्ध ब्राह्मण की आवश्यकता से ही विधिवत पूर्ण किया जा सकता है। यह यज्ञ इंसान को धन और यश की प्राप्ति करवाता है। जो भी व्यक्ति हनुमान यज्ञ से हनुमान जी की पूजा करता है और ध्यान करता है उसके जीवन में सभी समस्याएं निश्चित रूप से समाप्त हो जाती हैं। हनुमानजी को प्रसन्न करने का यह सर्वाधिक लोकप्रिय उपाय है। इस यज्ञ में हनुमान जी के मन्त्रों द्वारा, इनको बुलाया जाता है और साथ ही साथ अन्य देवों की भी आराधना इस यज्ञ में की जाती है। कहा जाता है कि इस यज्ञ में जैसे ही भगवान श्रीराम का स्मरण किया जाता है तो इस बात से प्रसन्न होकर, हनुमान जी यज्ञ स्थल पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में विराजमान हो जाते हैं।
हनुमान यज्ञ के लिए कुछ आवश्यक वस्तुयें-
लाल फूल, रोली, कलावा, हवन कुंड, हवन की लकडियाँ, गंगाजल, एक जल का लोटा, पंचामृत, लाल लंगोट, पांच प्रकार के फल। पूजा सामग्री की पूरी सूची, यज्ञ से पहले ही ब्राह्मण द्वारा बनवा लेनी चाहिए।
हनुमान यज्ञ के लिए सबसे लिए मंगलवार का दिन बहुत शुभ माना जाता है। इस यज्ञ को विधिवत पूरा एक ब्राह्मण की सहायता से ही करवाया जा सकता है।
अगर कोई व्यक्ति किसी कारण, पंडित जी से यज्ञ या हवन नहीं करवा सकता है तो ऐसे वह स्वयं से भी एक अन्य पूजा विधान को घर में खुद से कर सकता है।
पूजन विधि
हनुमान जी की एक प्रतिमा को घर की साफ़ जगह या घर के मंदिर में स्थापित करें और पूजन करते समय आसन पर पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएं। इसके पश्चात हाथ में चावल व फूल लें व इस मंत्र (प्रार्थना) से हनुमानजी का स्मरण करें-
ध्यान करें-
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यं।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।।
ऊँ हनुमते नम: ध्यानार्थे पुष्पाणि सर्मपयामि।।
अब हाथ में लिया हुआ चावल व फूल हनुमानजी को अर्पित कर दें।
इसके बाद इन मंत्रों का उच्चारण करते हुए हनुमानजी के सामने किसी बर्तन अथवा भूमि पर तीन बार जल छोड़ें।
ऊँ हनुमते नम:, पाद्यं समर्पयामि।।
अध्र्यं समर्पयामि। आचमनीयं समर्पयामि।।
इसके बाद हनुमानजी को गंध, सिंदूर, कुंकुम, चावल, फूल व हार अर्पित करें। इसके पश्चात् हनुमान जी की उपयोगी और सरल ‘हनुमान चालीसा’ का कम से कम 5 बार जाप करें।
सबसे अंत में घी के दीये के साथ हनुमान जी की आरती करें। इस प्रकार यह यज्ञ और निरंतर घर में इस प्रकार किया गया पूजन, हनुमान जी को प्रसन्न करता है और व्यक्ति की सभी मनोकामनाओं को भी पूरा करता है
जन्म कुंडली से पता चलते हैं दाम्पत्य जीवन में कलह और मधुरता के योग
10 Oct, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
दाम्पत्य में जीवन साथी अनुकूल हो तो हर तरह की परिस्थितियों का सामना किया जा सकता है लेकिन यदि दाम्पत्य जीवन में दोनों में से किसी भी एक व्यक्ति का व्यवहार यदि अनुकूल नहीं रहता है तो रिश्ते में कलह और परेशानियों का दौर लगा रहता है। ज्योतिषशास्त्र में जातक की जन्म कुंडली को देखकर, यह अनुमान लगाया जा सकता है कि आपके दाम्पत्य जीवन में कलह के योग कब उत्पन्न हो सकते हैं।
जीवन में कलह के योग बनते हैं-
कुंडली में सप्तम या सातवाँ घर विवाह और दाम्पत्य जीवन से सम्बन्ध रखता है। यदि इस घर पर पाप ग्रह या नीच ग्रह की दृष्टि रहती है तो वैवाहिक जीवन में परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
यदि जातक की जन्मकुंडली के सप्तम भाव में सूर्य हो तो उसकी पत्नी शिक्षित, सुशील, सुंदर एवं कार्यो में दक्ष होती है, किंतु ऐसी स्थिति में सप्तम भाव पर यदि किसी शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो दाम्पत्य जीवन में कलह और सुखों का अभाव बन जाता है।
यदि जन्म कुण्डली में प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, द्वादश स्थान स्थित मंगल होने से जातक को मंगली योग होता है इस योग के होने से जातक के विवाह में विलम्ब, विवाहोपरान्त पति-पत्नी में कलह, पति या पत्नी के स्वास्थ्य में क्षीणता, तलाक एवं क्रूर मंगली होने पर जीवन साथी की मृत्यु तक हो सकती है।
जन्म-कुंडली के सातवें या सप्तम भाव में अगर अशुभ ग्रह या क्रूर ग्रह (शनि, राहू, केतु या मंगल) ग्रहों की दृष्टी हो तो दाम्पत्य जीवन में कलह के योग उत्पन्न हो जाते हैं। शनि और राहु का सप्तम भाव होना भी वैवाहिक जीवन के लिए शुभ नहीं माना जाता है।
राहु, सूर्य और शनि पृथकतावादी ग्रह हैं, जो सप्तम (दाम्पत्य)और द्वितीय (कुटुंब) भावों पर विपरीत प्रभाव डालकर वैवाहिक जीवन को नारकीय बना देते हैं।
यदि अकेला राहू सातवें भाव में तथा अकेला शनि पांचवें भाव में बैठा हो तो तलाक हो जाता है। किन्तु ऐसी अवस्था में शनि को लग्नेश नहीं होना चाहिए। या लग्न में उच्च का गुरु नहीं होना चाहिए।
अब इसी प्रकार एक सुखमय और मधुर वैवाहिक जीवन की बात करें तो जातक की जन्म-कुंडली में ग्रहों की स्थिति कुछ इस प्रकार से होनी चाहिए-
सप्तमेश का नवमेश से योग किसी भी केंद्र में हो तथा बुध, गुरु अथवा शुक्र में से कोई भी या सभी उच्च राशि गत हो तो दाम्पत्य जीवन सुखमय पूर्ण रहता है।
यदि दोनों में से किसी की भी कुंडली में पंच महापुरुष योग बनाते हुए शुक्र अथवा गुरु से किसी कोण में सूर्य हो तो दाम्पत्य जीवन अच्छा होता है।
यदि सप्तमेश उच्चस्थ होकर लग्नेश के साथ किसी केंद्र अथवा कोण में युति करे तो दाम्पत्य जीवन सुखी होता है।
यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में वैवाहिक जीवन को लेकर परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है तो उपाय के लिए सबसे पहले पति-पत्नी की कुंडली का मिलान बेहद जरूरी हो जाता है। दोनों जातकों की कुंडली का एक मिलान करके ही ज्योतिषाचार्य उपाय को बता सकते हैं।
कई बार देखा गया है कि यदि पत्नी की कुंडली में यह दोष मौजूद है और पति की कुंडली अनुकूल है तो समस्या थोड़ी कम हो जाती है और इसी के उल्ट भी कई बार हो जाता है। लेकिन यदि दोनों व्यक्तियों की कुंडली में सप्तम भाव सही नहीं रहता है तो उस स्थिति में जीवन नरकीय बन जाता है। किसी भी परिस्थिति में कुंडली का मिलन समय से कराकर, उपायों को अगर अपनाया जाए तो पीड़ा कम हो जाती है।
नवरात्रि में क्यों खाते हैं ये फलाहार ?
10 Oct, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
नवरात्रि में देवी की उपासना के साथ ही नौ दिनों के उपवास होते हैं इन दिनों फलाहार ही होता है। इन दिनों घर में सादे नमक की जगह सेंधा नमक और गेहूं के आटे की जगह बल्कि सिर्फ कूटू का आटा या सिंघाड़े का आटा खाया जाता है। इसके पीछे धार्मिक के साथ ही वैज्ञानिक आधार भी है।
आयुर्वेद के मुताबिक गेहूं, प्याज़, लहसुन, अदरक जैसी चीज़ें नकारात्मक ऊर्जा आकर्षित करती हैं। वहीं मौसम के बदलने पर हमारी रोग प्रतिरोधक शक्ति काफी कम होती है, जिसकी वजह से शरीर को बीमारियां लगती हैं। ऐसे में इन चीज़ों का सेवन करना नुकसानदायक साबित हो सकता है। व्रत करने का मतलब है रोज़ के खाने से शरीर पर रोक लगाना। ऐसे में लोग आसानी से पच जाने वाला और पोषक तत्वों से भरा खाना खाते हैं। गेहूं, पाचन क्रिया को धीमा करता है, इसलिए लोग इससे परहेज़ करते हैं। परिवर्तित खाने की जगह फल, सब्जी, जूस और दूध पीना ज्यादा बेहतर माना जाता है।
सेंधा नमक
देखा गया है कि नवरात्रि के समय लोग खाना बनाने में सादे नमक की जगह सेंधा नमक का इस्तेमाल करते हैं। सेंधा नमक पहाड़ी नमक होता है, जो स्वास्थ्य के साथ व्रत के खाने में शामिल किए जाने वाला सबसे शुद्ध नमक माना जाता है। यह कम खारा और आयोडीन मुक्त होता है। इसमें सोडियम की मात्रा कम, पोटेशियम और मैग्नीशियम की मात्रा ज़्यादा पाई जाती है, जो कि हार्ट के लिए काफी फायदेमंद होता है।
साबूदाना
इसे हर तरह के व्रत में खाया जा सकता है। साबूदाना एक प्रकार के पौधे से निकाले जाने वाला पदार्थ होता है, जिसमें स्टार्च की मात्रा काफी अधिक होती है। इसमें कार्बोहाइड्रेट और थोड़ा प्रोटीन भी शामिल होता है। साबूदाना शरीर को आवश्यक शक्ति प्रदान करता है। इससे आप साबूदाना खीर, टिक्की या फिर साबूदाना खिचड़ी जैसे कई व्यंजन बना सकते हैं।
कूटू का आटा
कूटू का आटा एक पौधे के सफेद फूल से निकलने वाले बीज को पीसकर तैयार किया जाता है। आमतौर पर लोग इसे व्रत में खाते हैं, क्योंकि न तो यह अनाज है और न ही वनस्पति। यह एक घास परिवार का सदस्य है। कहते हैं कि इस आटे की तासीर गर्म होती है, जिससे शरीर में कार्बोहाइड्रेट और ग्लूकोज़ का स्तर बढ़ता है। कूटू का आटा ग्लूटन फ्री होने के साथ काफी पौष्टिक भी होता है। इसमें फाइबर, प्रोटीन और विटामिन-बी की मात्रा अधिक होती है। इस आटे में आयरन, मैग्नीशियम और फॉस्फोरस जैसे कई मिनरल्स होते हैं, जो कि व्रत के लिए पौष्टिक आहार माने जाते हैं।
सिंघाड़े का आटा
व्रत में पूरा दिन फलाहार खाने के बाद जब रात में भूख लगती है, तो लोग या तो कूटू के आटे की पकौड़ी खाते है या सिंघाड़े के आटे की। असल में यह आटा सूखे पिसे सिंघाड़े से बनता है। इसमें पोटेशियम और कार्बोहाइड्रेट की मात्रा ज़्यादा और सोडियम और चिकनाई की मात्रा कम होती है।सिंघाड़ा, एक तरह का फल होता है, जिसमें फाइबर, विटामिन्स और मिनरल्स पाए जाते हैं. व्रत के समय में इसे खाने का मतलब है, शरीर के पोषक तत्वों से जुड़ी जरूरतों को पूरा करना।
रामदाना
यह फलाहार पोषक तत्वों से भरा है। इसमें प्रोटीन और कैल्शियम की मात्रा अधिक होती है। व्रत के समय लोग, अनाज की जगह अपने खाने में इसे शामिल कर सकते हैं। इसमें ग्लायसैमिक इंडेक्स कम होता है और यह ग्लूटेन फ्री भी होता है। आप इससे रामदाना चिक्की या लड्डू समेत कई तरह के पकवान बना सकते हैं। कई लोग तो इसे दूध में ऊपर से डालकर खाना पसंद करते हैं।