धर्म एवं ज्योतिष
भगवान शिव हैं महायोगी
14 Nov, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भगवान शिव की जिंदगी के हर पहलू से कुछ न कुछ सीखा जा सकता है लेकिन यहां हम कुछ उनसे जुड़ी कुछ ऐसी बातों का जिक्र कर रहे हैं। जिन्हें, कोई व्यक्ति अपनी जिंदगी में आत्मसात करते है तो उसे सफल होने से कोई नहीं रोक सकता है।रखें आत्म नियंत्रण : भगवान शिव शांत भी रहते हैं और विनाशकारी भी, लेकिन वह अपने ऊपर पूरा आत्मनियंत्रण रखते हैं। यदि कोई मनुष्य उनकी इस बात को आत्मसात करे तो जीवन में काफी आगे तक जा सकता है।
शांत रहें और अपना कार्य करते रहें : शिव को महायोगी कहा जाता है। वह घंटों और युगों तक ध्यान अवस्था में रहते हैं। और ध्यान में मानव कल्याण के लिए कार्य करते हैं। यदि कोई मनुष्य उनकी इसी सीख से शांत रहकर अपने कार्य को करते रहें तो सफल होने से कोई नहीं रोक सकता है।
ध्यान रखें भौतिक सुख लंबे समय का साथी नहीं : शिव का स्वरूप भभूतधारी है। वह बाघ की खाल पहने हुए हैं। उनके हाथों में त्रिशूल है। वह भौतिक वस्तुओं से दूर रहते हैं। यदि कोई मनुष्य भौतिक जीवन की लालसा को त्याग कर अपने कर्म पर ध्यान दे तो वो न केवल सफल होगा बल्कि उसकी प्रशंसा चारो तरफ की जाती है।
नकारात्मकता से रहें दूर : भगवान शिव ने दुनिया बचाने के लिए समुद्र मंथन से निकले जहर को अपने कंठ में सुशोभित किया। इससे तमाम तरह की नकारात्मकता का अंत हुआ और दुनिया का सर्वनाश होने से बच गया। कहने का आशय यह है कि यदि हम भी अपने आस-पास मौजूद नकारात्मकता यानी बुराई का अंत करें तो सकारात्मक माहौल हमारे आस-पास हमेशा रहेगा।
इच्छाएं सीमित रखें : कहते हैं इच्छाओं का कभी अंत नहीं होता। यानी जो आपके पास है। उसमें ही हंसी-खुशी जिंदगी जीएं तो जीवन स्वर्ग की तरह हो जाएगा। भगवान शिव संन्यासियों की तरह जीवन जीते हैं। वह इच्छाओं से परे हैं। यदि कोई उनकी इन बातों को आत्मसात करे। तो सफलता उनके कदमों तले होगी
यहां बाल रुप में विराजमान हैं हनुमान जी
14 Nov, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हनुमान जी अपने नाम के अनुरुप ही भक्तों के संकटों को दूर करते हैं। आस्था और सच्ची भक्ति के आगे स्वयं भगवान भी नतमस्तक हो जाते हैं और अपने प्रिय भक्त को संसार का हर सुख देने को आतुर रहते हैं। महाबली हनुमान की भक्ति भी ऐसी ही है। तभी तो प्रभु श्री राम ने उन्हें भक्त शिरोमणि बना दिया।
पवन पुत्र हनुमान की लीलाएं बालपन से ही शुरू हो गई थीं, इसलिए कई जगहों पर इन्हें बालाजी के नाम से पूजा जाता है। मेहंदीपुर में भी महाबली हनुमान अपने बाल स्वरूप में विराजमान है।
मान्यता है कि मेहंदीपुर बालाजी के दर्शन करते ही इंसान के सभी प्रकार के संकट टलने लगते हैं। जो भी मेहंदीपुर धाम जाता है अपने सभी दुख, अपनी सारी विपत्तियां वहीं श्री बालाजी के चरणों में छोड़ आता है।
मेहंदीपुर में बालाजी की सत्ता चलती है। यहां आकर जिसने श्री बालाजी का आशीर्वाद पा लिया उसके मन की हर कामना का भार स्वयं बालाजी महाराज उठाते हैं। तभी तो जो भक्त एक बार मेहंदीपुर बालाजी के दर्शन कर लेता है वो बार-बार मेहंदीपुर जाने को आतुर रहता है।
मेहंदीपुर बालाजी धाम में हनुमान जी के बाल रूप का अति मनमोहक और अलौकिक दर्शन होता है। यहां श्री बाला जी महाराज के भवन के ठीक सामने सीताराम का दरबार सजता है, जिसे देखकर लगता है कि जैसे बाला जी महाराज अपने प्रभु के निरंतर दर्शन से प्रसन्न हो रहे हैं और मां सीता के साथ ही प्रभु श्रीराम भी अपने सबसे प्रिय भक्त को देखकर मुस्कुरा रहे हैं।
मेहंदीपुर में केवल बालाजी के दर्शन नहीं होते। इनके साथ श्री भैरव बाबा और श्री प्रेतराज सरकार के भी साक्षात दर्शन होते हैं। इसीलिए कुछ भक्त इन्हें त्रिदेवों का धाम भी कहते हैं।
मेहंदीपुर बालाजी के दरबार में जो भी इंसान सच्चे मन और भक्ति भाव से अर्जी लगाता है उसकी सुनवाई जरूर होती है। श्री बालाजी उस भक्त की हर मनोकामना पूरी कर देते हैं। कहते हैं मेहंदीपुर धाम कोई भी भक्त उदास नहीं लौटता।
मेहंदीपुर में हर प्रकार की समस्या का समाधान मिल जाता है।
आंख खुलते ही न देखें आईना
14 Nov, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
अगर आप अपना दिन बेहतर बिताना चाहते हैं तो इसके लिए अच्छी शुरुआत करें। अक्सर हम अपने आसपास की ढेर सारी बातों को अनदेखा कर देते हैं, लेकिन इनका हम पर सीधा असर पड़ता है। वास्तुशास्त्र में कुछ उपाय बताए गए जिन्हें अपनाकर आप अपनी सुबह के साथ ही पूरे दिन को बेहतर बना सकते हैं। यह बात तो हम सब मानते हैं कि अगर हमारी सुबह शुभ कार्यों के साथ शुरु होगी तो हमारा पूरा दिन अच्छा गुजरता है।
कई लोगों की आदत होती है, सुबह उठते ही आईना देखने की। वास्तु विज्ञान के अनुसार ऐसा नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से दिनभर आप पर नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव बना रह सकता है। इसकी वजह यह है कि जब आप सोकर उठते हैं तो आपका शरीर नकारात्मक उर्जा के प्रभाव में होता है इसलिए आप आलस महसूस करते हैं। इसलिए कहा जाता है कि फ्रेश होने के बाद आईना देखना चाहिए।
सुबह उठते ही किसका चेहरा देखें
ऐसी मान्यता है कि आंख खुलते ही किसी व्यक्ति का चेहरा देखने से बचना चाहिए। दिन की शुरुआत के साथ सबसे पहले अपने ईष्ट देवता का ध्यान करें और उनके ही दर्शन करने चाहिए। इसके पीछे यह धारणा है कि व्यक्ति के चेहरे पर अलग-अलग तरह के भाव होते हैं जिसे देखकर आपके भाव भी बदलते हैं। लेकिन ईश्वर निर्विकार भाव आपको देखते हैं और आप भी उन्हें ऐसे ही देखते हैं जिससे मन में सकारात्मक भाव जगता है।
इसलिए सुबह उठकर देखें हथेली
कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती। करमूले तू गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम ॥ कहा गया है कि हथेली के अगले हिस्से में देवी लक्ष्मी का वास होता है, मध्य में सरस्वती का और मूल भाग में भगवान विष्णु विराजते हैं। यही कारण है कि सुबह उठकर सबसे पहले दोनों हाथों की हथेली को जोड़कर देखना चाहिए, ऐसा शास्त्रों का मत है। इसे व्यावहारिक रूप में देखें तो हथेली से ही सभी कर्म किए जाते हैं और इसी से धन और धर्म दोनों कर्तव्यों को पूरा किया जाता है इसलिए हथेली देखने की बात की जाती है।
शंख या मंदिर की घंटी की आवाज सुनाई दे तो
सुबह उठते ही अगर शंख या मंदिर की घंटियों की आवाज सुनाई दे तो यह आपके भीतर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। यही कारण है कि शास्त्रों में कहा गया है कि सुबह उठकर भगवान की पूजा करें और घंटी बजाकर शंखनाद करें।
दिन बन जाता है शुभ
शकुनशास्त्र के अनुसार सुबह घर से निकलते समय नारियल, शंख, मोर, हंस या फूल आपको दिख जाए तो समझिए आपका पूरा दिन शुभ बीतने वाला है।
सफाईकर्मी का दिखना शुभ
ज्योतिषशास्त्र में सफाईकर्मी को शनि से संबंधित माना गया है। लाल किताब के उपायों में बताया गया है कि यदि सुबह घर से निकलते ही आपको कोई सफाईकर्मी दिखाई दे तो उसे कुछ दान जरूर देना चाहिए इससे दिन अच्छा गुजरता है।
नाश्ते से पहले ऐसा न करें
रामचरित मानस के सुंदरकांड में तुलसीदास जी हनुमान जी के एक कथन को लिखते हुए कहते हैं कि, प्रात लेइ जो नाम हमारा। तेहि दिन ताहि न मिलै अहारा।। यानी हनुमान जी कहते हैं कि वह एक वानर जाति से आते हैं। यह श्रेष्ठ योनी नहीं है इसलिए जो कोई सुबह उठकर उनके वानर स्वरूप का नाम लेता है उसे समय से भोजन नही मिलता है। इसलिए कहा जाता है कि नाश्ता पानी करने से पहले इस नाम को नहीं बोलना चाहिए।
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
14 Nov, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- व्यर्थ परिश्रम, विभ्रम, धन का व्यय, कुछ आरोप, वातावरण से मन में बेचैनी होगी।
वृष राशि :- थकावट व स्थिरता का वातावरण मन संदिग्ध रखे, धन प्राप्त होकर जाता रहेगा।
मिथुन राशि :- धन का लाभ, आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा, कार्यगति में सुधार होगा।
कर्क राशि :- मान-प्रतिष्ठा में वृद्धि, कहीं तनाव होने से हानि भी संभव है, धैर्य से काम लें।
सिंह राशि :- आनंदवर्धक योजना बनेगी, परिश्रम से सफलता, कार्य-योजना अनुकूल होगी।
कन्या राशि :- दूसरों के कार्यों में हस्ताक्षेप से तनाव होगा, मनोबल उत्साहवर्धक होगा।
तुला राशि :- मानसिक बेचैनी, शारीरिक स्थिरता तथा कार्य-व्यवसाय में बाधा होगी।
वृश्चिक राशि :- आशानुकूल सफलता, कार्यगति में सुधार, योजना फलीभूत होगी।
धनु राशि :- तनाव, क्लेश व अशांति, मानसिक बेचैनी, असमर्थता का वातारण होगा।
मकर राशि :- आकस्मिक स्त्री-वर्ग का समर्थन मिले, साधन सम्पन्नता के योग बन जायेंगे।
कुंभ राशि :- अधिकारी वर्ग का समर्थन, चिन्ता व व्यग्रता असमंजस में रखेगी, धैर्य रखें।
मीन राशि :- योजनायें फलीभूत हों, परिश्रम से सफलता अवश्य ही मिलेगी, ध्यान रखें।
कार्तिक माह में ऐसे जलाएंगे दीप, भगवान शिव और माता लक्ष्मी की बनी रहेगी कृपा
13 Nov, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
कार्तिक माह आते ही लोग आंवले से दीपक जलाने की परंपरा निभाते हैं. आज हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि आखिरकार इस विशेष समय में आंवले से दीपक जलाने का क्या अर्थ है. पुजारी नरसिम्हा चारी का कहना है कि आंवले के पेड़ और आंवले के फल के बीच एक गहरा संबंध है. पुजारी के अनुसार, आंवले के पेड़ को भगवान शिव का स्वरूप माना जाता है.
धार्मिक महत्व
इतिहास में भी यह कहा गया है कि आंवले के पेड़ में भगवान शिव के साथ-साथ देवी लक्ष्मी, भगवान विष्णु और आंवला भी वास करते हैं. आंवला अपनी विशेषताओं के कारण कार्तिक माह में अत्यधिक महत्वपूर्ण हो जाता है. यही कारण है कि इस माह, खासकर कार्तिक पूर्णिमा के दिन, आंवले के पेड़ के नीचे दीपक जलाने की परंपरा है.
आंवले से दीपक जलाने के लाभ
पुजारी नरसिम्हा चारी ने बताया कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन आंवले के पेड़ के नीचे दीपक जलाने से विशेष लाभ प्राप्त होते हैं. वे कहते हैं कि चौलाई के छोटे गोल हिस्से को बीच से काटकर उसमें तेल डालकर और बाती लगाकर दीपक जलाना चाहिए. पुराणों में यह भी बताया गया है कि आंवले के दीपक को जलाने से भगवान शिव, श्री महाविष्णु और माता लक्ष्मी प्रसन्न होते हैं.
शिव, लक्ष्मी और विष्णु की कृपा प्राप्ति
इसलिए यह मान्यता है कि जो लोग कार्तिक माह में आंवले से दीपक जलाते हैं, उन्हें भगवान शिव, लक्ष्मी और विष्णु की कृपा प्राप्त होती है. पांडवों के वनवास के दौरान, जब वे भगवान शिव की पूजा करना चाहते थे, तो उनके पास कोई शिवलिंग या मंदिर नहीं था. इस दौरान भगवान कृष्ण ने द्रौपदी को आंवले से दीपक जलाने की सलाह दी, जिससे यह परंपरा शुरू हुई.
आंवले से दीपक जलाने से ग्रह दोष दूर होते हैं
पुराणों में यह भी कहा गया है कि अगर चौलाई के गोल हिस्से को हटाकर उसमें गाय के घी से दीपक जलाया जाए, तो यह ग्रह दोषों को दूर करता है और युद्ध में विजय दिलाता है. इस प्रकार, आंवले से दीपक जलाने की परंपरा की शुरुआत हुई. पुजारी के अनुसार, अगर भक्त कार्तिक महीने में आंवले के साथ दीपक जलाकर ब्राह्मणों को आंवले का दीपक और कपड़े दान करते हैं, तो यह बहुत शुभ होता है.
99% लोग नहीं जानते शादी में दूल्हा-दुल्हन को क्यों लगाई जाती है हल्दी और मेहंदी!
13 Nov, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
शादियों का मौसम आने वाला है, और इस दौरान कई प्राचीन रीति-रिवाज निभाए जाते हैं. शादी में निभाई जाने वाली हर रस्म की अपनी विशेष मान्यता और परंपरा होती है. अंतरराष्ट्रीय ज्योतिषी एवं वास्तु विशेषज्ञ रविभाई जोशी ने शादी में पिठ्ठी और मेहंदी लगाने की परंपरा के पीछे छिपे महत्व पर प्रकाश डाला. रविभाई जोशी के अनुसार, शादी से एक या दो दिन पहले दुल्हन के हाथों पर उसके भावी पति के नाम की मेंहदी लगाने की रस्म होती है. कुछ स्थानों पर दूल्हे के हाथों पर भी मेंहदी लगाई जाती है, जिसे शुभ और सौंदर्यवर्धक माना जाता है. मेंहदी की यह रस्म दूल्हा-दुल्हन की खूबसूरती में चार चांद लगाती है और शादी का वातावरण रंगीन बनाती है.
शास्त्रों में मेंहदी का महत्व
शास्त्रों के अनुसार, मेंहदी लगाने का स्थान खासकर हाथ होते हैं क्योंकि मेंहदी का पेड़ नकारात्मक ऊर्जा और बुरी नजर को दूर करने में सहायक माना जाता है. इसके अलावा, मेंहदी से दूल्हा-दुल्हन को मानसिक शांति मिलती है. इस रस्म में यह भी मान्यता है कि मेंहदी का रंग जितना गहरा होता है, दुल्हन को अपने पति से उतना ही अधिक प्रेम मिलता है और उनका वैवाहिक जीवन सफल होता है.
पीठी छोलावा रस्म का अनोखा महत्व
विवाह समारोह में पीठी छोलावा रस्म का भी विशेष महत्व होता है. इसमें दूल्हा-दुल्हन को मांडवा के नीचे बेंच पर पूर्व दिशा की ओर मुंह करके बैठाया जाता है. परिवार की महिलाएं उन्हें हल्दी या उबटन लगाती हैं और विवाह गीत गाती हैं. इस रस्म के माध्यम से शादी में आए मेहमानों से दूल्हा-दुल्हन को किसी भी संक्रमण से बचाने का प्रयास किया जाता है.
हल्दी और उबटन का औषधीय लाभ
आयुर्वेद के अनुसार, हल्दी एक एंटीबायोटिक और कीटाणुनाशक है. प्राचीन समय में जब कोई कॉस्मेटिक उत्पाद नहीं थे, तब हल्दी और उबटन का प्रयोग सौंदर्य निखारने के लिए किया जाता था. इससे दूल्हा-दुल्हन को न केवल संक्रमण से बचाव मिलता है बल्कि उनकी त्वचा की सुंदरता भी बढ़ती है. आधुनिक समय में लोग फेस पैक और स्क्रब का उपयोग करते हैं, लेकिन हल्दी की परंपरा आज भी कायम है.
पीले रंग की धार्मिक और ज्योतिषीय महत्ता
हल्दी का पीला रंग धार्मिक दृष्टि से अत्यंत शुभ माना जाता है और विवाह जैसे शुभ कार्यों में इसका उपयोग होता है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, पीला रंग बृहस्पति ग्रह का प्रतीक है और हल्दी के लेप से दूल्हा-दुल्हन को इस ग्रह का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जो सुखी वैवाहिक जीवन के लिए अनुकूल माना गया है.
त्वचा की देखभाल में हल्दी का महत्व
त्वचा विशेषज्ञ डॉ. मैत्रीबेन पटेल के अनुसार, आजकल बढ़ते प्रदूषण और अन्य कारकों के कारण त्वचा पर नकारात्मक असर होता है. त्वचा की समस्याओं से बचने के लिए हल्दी या उबटन का लेप एक प्राकृतिक और लाभकारी उपाय है. यह दूल्हा-दुल्हन की त्वचा को न केवल सुंदर बनाता है, बल्कि उन्हें खुजली, दाग-धब्बे जैसी समस्याओं से भी राहत देता है.
कार्तिक पूर्णिमा पर बन रहे 2 अद्भुत संयोग...करें इस मुहूर्त में पूजा! मिलेगा100 अश्वमेध यज्ञ के समान फल
13 Nov, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में कार्तिक का महीना बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है. कार्तिक के महीने में देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु 4 महीने के निद्रा योग से जागते हैं. भगवान विष्णु के योग निद्रा से जागने पर चातुर्मास समाप्त हो जाता है और सभी मांगलिक कार्य एक बार फिर से शुरू हो जाते हैं. इसी महीने में कार्तिक पूर्णिमा का स्नान भी होता है और कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दीपावली भी मनाई जाति है. हिंदू धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का दिन बेहद खास होता है. इस दिन भगवान शिव और विष्णु जी की पूजा की जाती है. धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध किया था. इसलिए इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है.
धार्मिक मान्यता के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के दिन लोग गंगा-यमुना जैसी पवित्र नदियों में स्नान करते हैं. ऐसी मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा पर पवित्र नदियों में स्नान करने से 100 अश्वमेध यज्ञ जितना पुण्य प्राप्त होता है. कार्तिक पूर्णिमा पर किए गए स्नान से भगवान श्रीहरि की भी असीम कृपा मिलती है. इसलिए इस दिन लोग गंगा (Ganga Snan), यमुना जैसी नदियों में स्नान करते हैं. विष्णु पुराण के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान नारायण ने मत्स्य अवतार लिया था. तो चलिए आज हम आपको इस रिपोर्ट में बताते हैं कि कब है कार्तिक पूर्णिमा? क्या है पूजा और स्नान का मुहूर्त
कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान का शुभ मुहूर्त
दरअसल, अयोध्या के ज्योतिषी पंडित कल्कि राम बताते हैं कि हिंदू पंचांग के अनुसार इस बार कार्तिक पूर्णिमा 15 नवंबर को है. पूर्णिमा तिथि 15 नवंबर को प्रातः 6:31 से प्रारंभ होगी जो रात्रि 16 नवंबर को सुबह 3:02 पर समाप्त होगी. पूजा अथवा दान का शुभ मुहूर्त सुबह 8:46 से लेकर 10:26 तक है. तो वही स्नान का मुहूर्त सुबह 6:28 से लेकर 7:19 तक रहेगा.
कार्तिक पूर्णिमा पर बन रहे 2 राजयोग
पंडित कल्कि राम बताते हैं कि इस साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन गजकेसरी राजयोग बन रहा है. उसके बाद शश राजयोग का निर्माण होगा. कार्तिक पूर्णिमा के दिन स्नानऔर दान का विशेष महत्व भी होता है. कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी के शिव परिवार की विशेष पूजा-अर्चना करना चाहिए. साथ ही प्रिय भोग अर्पित करने चाहिए. धार्मिक मान्यता है कि इस दिन देवी-देवताओं का पृथ्वी पर आगमन होता है और उनके भव्य स्वागत के लिए दीपक जलाएं जाते हैं.
नाक में क्यों नहीं पहनते चांदी की नथ? किस ग्रह से है इसका संबंध, जानें ज्योतिष कारण
13 Nov, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिन्दू धर्म में आभूषणों को सिर्फ श्रृंगार की सामग्री नहीं माना गया है, बल्कि इनका धार्मिक महत्व भी बताया गया है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, हर आभूषण का किसी ना किसी ग्रह से संबंध होता है और इसका प्रभाव व्यक्ति के जीवन पर पड़ता है. कोई भी पुरुष या महिला आभूषणों को धातुओं, रत्नों और उनके रंगों के आधार पर चुन तो लेता है, लेकिन उसके परिणाम कैसे होंगे? इससे अनभिज्ञ रहता है.
महिलाओं के श्रृंगार के लिए सोना-चांदी से बनी वस्तुओं को खास माना जाता है. आपने कानों, उंगलियों, हाथ और गले में सोने और चांदी के आभूषण देखे भी होंगे. लेकिन नाक में चांदी की नथनी पहनने की मना ही होती है. इसका ज्योतिष कारण क्या है?
नाक में चांदी ना पहनने के ज्योतिष कारण
ऐसा माना जाता है कि सोने से बने आभूषण हमेशा शरीर के ऊपरी हिस्से में पहने जाते हैं, वहीं शरीर के निचले हिस्से में चांदी से बने आभूषण पहने जाने चाहिए. धार्मिक मान्यतानुसार, शरीर का ऊपरी हिस्सा भगवान का हिस्सा माना जाता है. वहीं सोना को शुभता का प्रतीक माना जाता है और यह सूर्य व गुरु बृहस्पति ग्रह से शासित है.
सोने को देवी-देवताओं से जुड़ा माना जाता है. सोना को सूर्य से जोड़कर भी देखा जाता है, जो कि आत्मविश्वास, ऊर्जा और नेतृत्व का कारक है. ऐसे में जब आप सोने से बने आभूषण शरीर के ऊपरी हिस्से में पहनते हैं तो सूर्य का सकारात्मक प्रभाव बढ़ता है.
वहीं बात करें चांदी की तो, ज्योतिष शास्त्र में चांदी की तो इससे बने आभूषणों को पहनने से शीतलता मिलती है. चांदी की धातु में चंद्रमा का वास माना जाता है, वहीं जब आप चांदी की नथ नाक में पहनते हैं तो इससे शुक्र की स्थिति कमजोर होने की संभावना रहती है. ऐसे में आपको ऐसा करने से बचना चाहिए.
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
13 Nov, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- व्यवसायिक स्थिति में सुधार, किसी शुभ समाचार से हर्ष अवश्य ही होगा।
वृष राशि :- व्यवसायिक गति अनुकूल हो, कुटुम्ब के कार्यों में समय बीतेगा, परेशानी से बचें।
मिथुन राशि :- दैनिक समृद्धि के साधन जुटायें, अधिकारियों का समर्थन फलप्रद अवश्य होगा।
कर्क राशि :- सफलता के साधन जुटायें, अधिकारियों का समर्थन फलप्रद अवश्य ही होगा।
सिंह राशि :- आर्थिक समस्यायें सुलझें, भोग-ऐश्वर्य में समय बीतेगा, ध्यान दें।
कन्या राशि :- समय और सामर्थ विफल होगा, अर्थ-व्यवस्था में बाधा अवश्य ही होगी।
तुला राशि :- क्रोध से हानि की संभावना तथा व्यवसायिक क्षमता अनुकूल होगी।
वृश्चिक राशि :- लोगों से मेल-मिलाप, स्त्री-वर्ग से ऐश्वर्य की प्राप्ति, मित्रों से सुख होगा।
धनु राशि :- दैनिक कार्यगति में सुधार, इष्ट-मित्र सुखवर्धक होंगे तथा हर्ष होगा।
मकर राशि :- समृद्धि के साधन फलप्रद होंगे तथा धन का व्यर्थ व्यय होगा ध्यान रखें।
कुंभ राशि :- अनावश्यक विवाद से बचिये, समय पर अपना कार्य निपटा लें, ध्यान दें।
मीन राशि :- कुटुम्ब की समस्यायें सुलझेंगी, दैनिक कार्य में अनुकूलता अवश्य ही बनेगी।
बहुत भाग्यशाली होते हैं ऐसे लोग जिनकी आंख की पुतली में होता है तिल, जानें क्या कहता है सामुद्रिक शास्त्र?
12 Nov, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
किसी के गाल पर, किसी की गर्दन पर, किसी के पैर और माथे पर तो किसी के पैर पर वहीं कई लोगों की आंखों की पुतली पर भी तिल होता है. हमारे शरीर के विभिन्न अंगों पर चाहे कहीं भी तिल हो, इसका सामुद्रिक शास्त्र में अत्यधिक महत्व बताया गया है. साथ ही इसके अर्थ भी अलग अलग होते हैं.
ऐसा कहा जाता है कि, यदि तिल चेहरे पर है तो वह आपके भाग्य को दर्शाता है, वहीं नाक पर है तो यह आपके धनवान होने की ओर इशारा करता है और यदि तिल पैरों पर है तो यह आपके जीवन के उतार-चढ़ाव के बारे में बताता है. लेकिन, आंखों की पुतली पर स्थित तिल क्या कहता है?
व्यक्तित्व को दर्शाता है
समुद्र शास्त्र के अनुसार, जिन लोगों की आंखों की पुतली पर तिल होता है वे काफी भाग्यशाली माने जाते हैं. ऐसे लोग रचनात्मक होते हैं और उनकी जिंदगी में ढेरी सारी खुशियां होती हैं. इन लोगों को आसानी से किसी भी क्षेत्र में सफलता मिल जाती है, खास तौर पर यदि वे संगीत या साहित्य जैसे क्षेत्रों से जुड़े हैं. इसके साथ ही ऐसे लोग काफी भावुक भी होते हैं और दूसरों की मदद करने वाले होते हैं.
कार्यक्षेत्र में तरक्की
जिन लोगों की आंख की पुतली पर तिल होता है काफी नए विचारों वाले होते हैं और वे किसी भी विपरीत परिस्थिति में भी अपनी समस्या का समाधान ढंढ लेते हैं. उनके इस गुण के कारण ही अपने कार्य क्षेत्र में सफलता दिलाता है. इनमें नेतृत्व करने करने की क्षमता भी होती है और वे अपनी टीम को एक साथ लाने में सक्षम होते हैं. ऐसे में वे जिस भी क्षेत्र में होते हैं वहां ऊंचा मुकाम हासिल करते हैं.
आज जागेंगे भगवान, बजने लगेगी शहनाई, जानें नवंबर में विवाह की शुभ तिथियां
12 Nov, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि बेहद खास मानी जाती है. साल भर में आने वाली 24 एकादशी में यह एकादशी सबसे महत्वपूर्ण है. क्योंकि, इसका इंतजार लोग बड़ी उत्सुक्ता से करते हैं. इस एकादशी को देवउठनी या देवोत्थान एकादशी के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि देवोत्थान एकादशी पर भगवान विष्णु योग निद्रा से जागते हैं और सभी तरह के मांगलिक कार्य शुरू होते हैं. यही वजह है कि इस एकादशी बड़ा महत्व है.
आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को भगवान विष्णु योग निंद्रा में चले जाते हैं और तब से मांगलिक कार्यों की मनाही होती है. वहीं, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को भगवान विष्णु जागते हैं, जिसे देवोत्थान एकादशी कहा जाता है. इस साल 12 नवंबर को देवोत्थान एकादशी है. इस दिन शालिग्राम और तुलसी का विवाह होता है. इसी दिन से फिर से शादी का सीजन शुरू हो जाता है. इस बार नवंबर में विवाह के कई मुहूर्त बन रहे हैं.
नवंबर महीने में विवाह के मुहूर्त
ज्योतिषाचार्य के अनुसार, हिंदू धर्म में कोई भी मांगलिक कार्य शुभ तिथि देखकर ही किया जाता है. मुंडन, गृह प्रवेश या शादी विवाह सभी बिना मुहूर्त के नहीं किए जाते. वहीं, नवंबर में मांगलिक कार्य की शुरुआत 12 नवंबर से होने वाली है. नवंबर में शादी के लिए चार शुभ मुहूर्त हैं. इसमें 17, 18, 23 और 25 नवंबर की तिथियां बेहद शुभ हैं. इस दिन बड़ी संख्या में शादिया हो भी रही हैं.
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
12 Nov, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- स्थिति पर नियंत्रण बनाये रखने के लिये संयम से कार्य निपटा लें, धैर्य रखें।
वृष राशि :- समय की गति अनुकूल, परिश्रम सफल होगा, क्षमता में अनुकूल वृद्धि होगी।
मिथुन राशि :- तनाव, क्लेश व अशांति, मानसिक बेचैनी, स्वभाव में उद्विघ्नता से बचें।
कर्क राशि :- आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा, कार्यगति में सुधार होगा, सोचे हुये कार्य बन जायेंगे।
सिंह राशि :- चिन्ता निवृत्ति, योजनायें फलीभूत होंगी, सतर्कता से कार्य करने पर लाभ होगा।
कन्या राशि :- भाग्य का सितारा प्रबल रहेगा, बिगड़े हुये कार्य बनेंगे, मित्रों से सुख होगा।
तुला राशि :- असमंजस की स्थिति बनी रहेगी, तर्क-वितर्क में विजय, सफलता के साधन बनेंगे।
वृश्चिक राशि :- सफलता के साधन जुटायें, विशेष कार्य स्थितिग रखें, कार्य अवरोध होगा।
धनु राशि :- वातावरण असमंजस में रखे, अनेक प्रकार की बाधायें सामने आयेंगी धैर्य से काम लें।
मकर राशि :- कुटुम्ब में सुखवर्धक योजनायें बनेंगी, किसी का कार्य लाभ होने से आपको संतोष अवश्य होगा।
कुंभ राशि :- स्वभाव में बेचैनी, मानसिक खिन्नता, अनावश्यक भटकना पड़ेगा, कार्य बनेंगे।
मीन राशि :- परिश्रम करने पर भी सफलता दूर दिखायी देगी, कुछ तनाव व परेशानी का अनुभव होगा।
भगवान शिवजी की करते हैं पूजा? सोमवार को भूलकर भी न करें ये 5 काम, वरना...भोलेनाथ का नहीं मिलेगा आशीर्वाद!
11 Nov, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में सप्ताह हर दिन किसी न किसी देवी-देवता को समर्पित है. इसी तरह सोमवार के दिन देवों के देव महादेव की पूजा का विधान है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सोमवार का दिन शिवजी का प्रिय है. इसलिए इस दिन भोलेनाथ की पूजा-व्रत करने वाले जातक को कारोबार में तरक्की मिलती है. इसके अलावा शिवजी की कृपा से धन का लाभ मिलता है. सोमवार को भगवान शिवजी को प्रसन्न करने के लिए लोग तमाम उपाय करते हैं. लेकिन, कुछ लोग जानकारी के अभाव में वे कार्य भी कर जाते हैं, जिनकी मनाही होती है. ऐसा करने से भोलेनाथ और पूजा का लाभ नहीं मिलता है. अब सवाल है कि आखिर सोमवार को किन कामों को नहीं करना चाहिए? कौन से काम करने शिवजी प्रसन्न होते हैं?
सोमवार के दिन इन कामों को करने से बचें
इस दिशा में यात्रा न करें: ज्योतिषाचार्य के मुताबिक, सोमवार के दिन पूर्व, उत्तर या आग्नेय दिशा में यात्रा करने से बचना चाहिए. ऐसा करना शुभ नहीं माना जाता है. यदि किसी वजह से करना ही पड़े तो शिवजी की पूजा के बाद ही करें. इस दौरान उनसे अपनी मजबूरी के लिए क्षमा याचना करें.
ये चीज न खाएं: सोमवार के दिन शक्कर का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. ऐसा करने वाले जातकों को पूजा का पूर्ण फल नहीं मिलेगा. इसलिए कोशिश करें कि, चीनी के साथ मिठाइयों का सेवन भी न करें.
ऐसे वस्त्र न पहनें: सोमवार को शिव की पूजा में सफेद वस्त्र पहनने से बचना चाहिए. इसके अलावा, दूध का दान भी नहीं करना चाहिए. इन दोनों काम करना भी शुभ नहीं माना जाता है. इस दिन तामसिक भोजन करने से भी बचें.
ये काम भी न करें: सोमवार के दिन लड़ाई-झगड़ा नहीं करना चाहिए और किसी का अपमान नहीं करना चाहिए. इसके अलावा, देवों के देव भगवान शिव को पीले मिठाई का भोग भी नहीं लगाना चाहिए.
सोमवार के दिन क्या करें: सोमवार के दिन शिवलिंग पर चंदन,अक्षत, दूध, गंगाजल और तिल मिलाकर शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिए. इसके अलावा महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें और सूर्योदय के दौरान शिवलिंग पर गन्ने के रस से अभिषेक करना चाहिए. इस दिन आप गरीबों को भोजन और दान जरूर कराना चाहिए.
देवउठनी एकादशी पर क्यों होता है तुलसी-शालिग्राम का विवाह
11 Nov, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
देवउठनी एकादशी का पर्व नजदीक आ गया है और इसके साथ ही शादियों के सीजन की शुरुआत हो जाती है लेकिन देव उठनी एकादशी पर तुलसी विवाह का सबसे अधिक महत्व माना जाता है हिंदू धर्म में तुलसी का बहुत पौराणिक धार्मिक महत्व है. तुलसी का पौधा सीधा भगवान विष्णु से संबंधित होता है और देवउठनी एकादशी पर देशभर में ठाकुर जी का विवाह तुलसी माता से करवाया जाता है.
कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी यानि देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु 4 महीने के बाद योग निद्रा से जागते हैं. इस दिन से भगवान विष्णु के योग निद्रा से जागने के बाद से ही मांगलिक कार्यों की शुरुआत होने लगती है. दिपावली के ग्यारहवें दिन और इस दिन तुलसी विवाह भी किया जाता है. देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह करते हैं तो कुछ लोग दिया भी जला कर छोटी दीवाली मानते हैं.
भीलवाड़ा शहर के नगर व्यास पंडित कमलेश व्यास ने लोकल 18 से खास बातचीत करते हुए कहा कि हिंदू धर्म के अनुसार वृंदा का विवाह राक्षस कुल में ही दानव राज जलंधर से संपन्न हुआ था. लेकिन वृंदा बचपन से ही भगवान विष्णु की भक्त थी. एक बार देवताओ और दानवों में युद्ध होने लगा, तब जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा. स्वामी आप युद्ध पर जा रहे हैं, आप जब तक युद्ध में रहेंगे, मैं पूजा में बैठकर आपकी जीत के लिए अनुष्ठान करुंगी. जब तक आप नहीं लौट आते मैं अपना संकल्प नहीं छोड़ूंगी. ऐसे में कोई भी देवता जलंधर को पराजित नही कर पा रहे थे. तब भगवान विष्णु जी राय मांगी गई.
भगवान विष्णु ने एक चक्रव्यूह रचा भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप धरा और वृंदा के महल में पहुंच गए. वृंदा ने जैसे ही अपने पति को देखा तो तुरंत पूजा मे से उठ गई और उनके चरणों को छू लिया. इधर, वृंदा का संकल्प टूटा, उधर युद्ध में देवताओ ने जलंधर को मार दिया. इस पर भगवान विष्णु अपने रूप में आ गए पर कुछ बोल न सके. वृंदा ने कुपित होकर भगवान को श्राप दे दिया कि वे पत्थर के हो जाएं. इसके चलते भगवान तुरंत पत्थर के हो गए, सभी देवताओं में हाहाकार मच गया. देवताओं की प्रार्थना के बाद वृंदा ने अपना श्राप वापस ले लिया. इसके बाद वे अपने पति का सिर लेकर सती हो गईं. उनकी राख से एक पौधा निकला तब भगवान विष्णु जी ने उस पौधे का नाम तुलसी रखा और कहा कि मैं इस पत्थर रूप में भी रहूंगा, जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जाएगा.
देवउठनी एकादशी का पर्व नजदीक आ गया है और इसके साथ ही शादियों के सीजन की शुरुआत हो जाती है लेकिन देव उठनी एकादशी पर तुलसी विवाह का सबसे अधिक महत्व माना जाता है हिंदू धर्म में तुलसी का बहुत पौराणिक धार्मिक महत्व है. तुलसी का पौधा सीधा भगवान विष्णु से संबंधित होता है और देवउठनी एकादशी पर देशभर में ठाकुर जी का विवाह तुलसी माता से करवाया जाता है.
कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी यानि देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु 4 महीने के बाद योग निद्रा से जागते हैं. इस दिन से भगवान विष्णु के योग निद्रा से जागने के बाद से ही मांगलिक कार्यों की शुरुआत होने लगती है. दिपावली के ग्यारहवें दिन और इस दिन तुलसी विवाह भी किया जाता है. देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह करते हैं तो कुछ लोग दिया भी जला कर छोटी दीवाली मानते हैं.
भीलवाड़ा शहर के नगर व्यास पंडित कमलेश व्यास ने लोकल 18 से खास बातचीत करते हुए कहा कि हिंदू धर्म के अनुसार वृंदा का विवाह राक्षस कुल में ही दानव राज जलंधर से संपन्न हुआ था. लेकिन वृंदा बचपन से ही भगवान विष्णु की भक्त थी. एक बार देवताओ और दानवों में युद्ध होने लगा, तब जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा. स्वामी आप युद्ध पर जा रहे हैं, आप जब तक युद्ध में रहेंगे, मैं पूजा में बैठकर आपकी जीत के लिए अनुष्ठान करुंगी. जब तक आप नहीं लौट आते मैं अपना संकल्प नहीं छोड़ूंगी. ऐसे में कोई भी देवता जलंधर को पराजित नही कर पा रहे थे. तब भगवान विष्णु जी राय मांगी गई.
भगवान विष्णु ने एक चक्रव्यूह रचा भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप धरा और वृंदा के महल में पहुंच गए. वृंदा ने जैसे ही अपने पति को देखा तो तुरंत पूजा मे से उठ गई और उनके चरणों को छू लिया. इधर, वृंदा का संकल्प टूटा, उधर युद्ध में देवताओ ने जलंधर को मार दिया. इस पर भगवान विष्णु अपने रूप में आ गए पर कुछ बोल न सके. वृंदा ने कुपित होकर भगवान को श्राप दे दिया कि वे पत्थर के हो जाएं. इसके चलते भगवान तुरंत पत्थर के हो गए, सभी देवताओं में हाहाकार मच गया. देवताओं की प्रार्थना के बाद वृंदा ने अपना श्राप वापस ले लिया. इसके बाद वे अपने पति का सिर लेकर सती हो गईं. उनकी राख से एक पौधा निकला तब भगवान विष्णु जी ने उस पौधे का नाम तुलसी रखा और कहा कि मैं इस पत्थर रूप में भी रहूंगा, जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जाएगा.
बहुत पुराना हो चुका है घर का मंदिर, बना रहे हैं नए पूजा घर लाने का प्लान? क्या करेंगे पुराने देव स्थान का
11 Nov, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिन्दू धर्म में पूजा-पाठ का अत्यधिक महत्व बताया गया है और इसलिए व्यक्ति सिर्फ मंदिरों में जाकर ही ईश्वर की पूजा नहीं करता बल्कि भगवान की प्रतिमा या मूर्ति को अपने घर में भी रखता है. इसके लिए घर में एक छोटा सा स्थान भगवान को दिया जाता है, जहां मंदिर बनवाया जाता है या लकड़ी या अन्य धातु से बना मंदिर रखा जाता है. लेकिन कई बार उसे बदलने की जरूरत महसूस होती है.
लेकिन, वास्तु शास्त्र में मंदिर को घर के सबसे सकारात्मक स्थान के रूप में देखा जाता है और इसके प्रभाव से ही घर में सुख-समृद्धि आती है. ऐसे में जब आप मंदिर को बदल रहे होते हैं तो पुराने मंदिर का क्या करना चाहिए? और नए मंदिर को लाने के लिए किन नियमों का पालन करना चाहिए.
सकारात्मक ऊर्जा का श्रोत
ज्योतिषाचार्य के अनुसा, हमारे घर का मंदिर जहां भगवान की मूर्ति विराजमान होती है और आप सुबह शाम ईश्वर की आराधना करते हैं, वह एक पवित्र स्थान होता है और यहां से सबसे सकारात्मक ऊर्जा मिलती है. ऐसे में जब आप पुराने मंदिर को बदलने का विचार मन में लाते हैं तो इसकी यह सकारात्मक ऊर्जा भी मंदिर के साथ चली जाती है. इसलिए मंदिर को बदलने से पहले आपको कुछ नियमों का पालन करना चाहिए.
पुराने मंदिर का क्या करें?
अपने घर के पुराने मंदिर को बदलते समय आप सबसे पहले देवी-देवताओं की मूर्ति या तस्वीर उठाते हैं. लेकिन यदि आप इनमें से किसी को भी पूरी तरह से हटाने चाहते हैं तो उन्हें किसी पुजारी को दे सकते हैं या फिर पेड़ के नीचे रख सकते हैं. इसके अलावा आप इनका विसर्जन कर सकते हैं.
इन बातों का भी ध्यान रखें
जब आप घर में नए मंदिर की स्थापना कर रहे होते हैं तो दिन का विशेष ख्याल रखें. इसके लिए आप सोमवार, बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार जैसे शुभ दिनों का चयन कर सकते हैं. इसके अलावा अन्य दिनों में मंदिर की स्थापना नहीं की जाती है. वहीं नए मंदिर में प्रतिमा या मूर्ति विराजित करने से पहले आपको किसी पंडित या ज्योतिषी को बुलाना चाहिए और फिर मंत्रोच्चार के साथ विधिवत इनकी प्राण-प्रतिष्ठा करवाना चाहिए.