धर्म एवं ज्योतिष
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
18 Nov, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- अपने आप पर नियंत्रण रखें, चिंता, विभ्रम, अशांति से बचिये, धैर्य रखें।
वृष राशि :- अधिकारियों के तनाव व क्रोध से बचें, सतर्कता से कार्य अवश्य करें।
मिथुन राशि :- स्त्री-वर्ग से हर्ष-उल्लास, कार्य-कुशलता से संतोष, समृद्धि के साधन बनेंगे।
कर्क राशि :- विरोधी तत्व परेशान करेंगे, व्यवसायिक कार्यों में बाधा, चिन्ता बढ़ेगी।
सिंह राशि :- योजनायें फलीभूत होंगी एवं भावनायें उदार बनेंगी, कार्य अवश्य बनेंगे।
कन्या राशि :- नवीन पद्यति से संतोष, तनाव से बचिये, अनायास आरोप-प्रत्यारोप होगा।
तुला राशि :- समय साधारण गति से बीतेगा, व्यवसाय में प्रगति अवश्य होगी ध्यान दें।
वृश्चिक राशि :- मनोवृत्ति अधिक संवेदनशील हो, कार्यवृत्ति में सुधार अवश्य होगा।
धनु राशि :- चिन्ता निवृत्ति, अर्थलाभ, योजनायें फलीभूत होंगी, स्त्री-सुख होगा।
मकर राशि :- अचानक यात्रा के प्रसंग बनेंगे, कार्य-योजना फलीभूत अवश्य ही होगी।
कुंभ राशि :- चिन्ता मन को उद्विघ्न रखे, स्वयं पर नियंत्रण रखें, स्त्री-वर्ग से तनाव व क्लेश होगा।
मीन राशि :- दैनिक कार्यगति अनुकूल, आर्थिक योजना फलीभूत अवश्य ही होगी।
160 साल पुराना काशी जैसा मंदिर, लेकिन यहां भगवान शिव की परिक्रमा नहीं की जाती, लेकिन क्यों?
17 Nov, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
जब आमतौर पर भक्त किसी मंदिर में जाते हैं, तो पहले मंदिर की परिक्रमा करते हैं और फिर भगवान के दर्शन करते हैं. लेकिन आंध्र प्रदेश के विजयनगरम जिले के चीपुरपल्ली मंडल के मेट्टापल्ली गाँव में स्थित श्री श्री श्री उमा काशी विश्वेश्वर मंदिर में यह परंपरा नहीं निभाई जाती. मेट्टापल्ली का यह मंदिर अपनी अनूठी मान्यताओं और परंपराओं के कारण विशेष है. भक्तों और पुजारियों का मानना है कि इस मंदिर की परिक्रमा करना अनुचित है. यह मंदिर लगभग 160 साल पुराना है और इसकी संरचना वाराणसी के काशी विश्वेश्वर मंदिर से मिलती-जुलती है. मंदिर के सामने एक कब्रिस्तान है और इसके पास स्थित तालाब को इस क्षेत्र में आध्यात्मिक महत्व प्राप्त है.
पूजा का समय और परंपराएं
मंदिर में पूजा का समय इस प्रकार है:
सुबह: 3 बजे से 11 बजे तक
शाम: 4 बजे से रात 9 बजे तक
भक्त यहां सीधा शिवलिंग के दर्शन करते हैं, लेकिन मंदिर की परिक्रमा नहीं करते. यह प्रथा मंदिर के आध्यात्मिक नियमों का पालन करते हुए निभाई जाती है.
कार्तिक मास की विशेष पूजा
कार्तिक मास के दौरान इस मंदिर का महत्व और बढ़ जाता है. इस महीने में शिव माला धारण करने वाले भक्त विशेष पूजा के लिए यहां आते हैं. मेट्टापल्ली और आसपास के इलाकों से श्रद्धालु शिव माला पहनकर शिवलिंग पर पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और चीनी) से अभिषेक करते हैं. इस मास में मंदिर के धार्मिक आयोजन भक्तों के लिए अत्यधिक महत्व रखते हैं.
मंदिर की परिक्रमा क्यों नहीं की जाती?
मंदिर में परिक्रमा न करने की परंपरा के पीछे एक खास वजह है. पुजारियों के अनुसार, शिवलिंग पर अभिषेक किया गया पवित्र द्रव मंदिर के नीचे से प्रवाहित होता है. इन स्थानों की परिक्रमा करना अशुभ माना जाता है. इसलिए भक्त सीधे ही शिवलिंग के दर्शन करते हैं.
मुख्य पुजारी का मत
मंदिर के मुख्य पुजारी मीगादा रमेश का कहना है, “भक्तों को भगवान शिव के दर्शन करते समय आध्यात्मिक नियमों का पालन करना चाहिए. यह सदियों पुरानी मान्यता है कि इस मंदिर में शिवलिंग की परिक्रमा नहीं की जाती. यह भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने का एक विशेष तरीका है.”
भक्तों के दिल में विशेष स्थान
अपनी अनूठी परंपराओं और आध्यात्मिकता के कारण, मेट्टापल्ली का श्री श्री श्री उमा काशी विश्वेश्वर मंदिर भक्तों के मन में एक विशेष स्थान रखता है. यह मंदिर आस्था और परंपरा का प्रतीक है, जो शिव भक्तों को अनोखे अनुभव प्रदान करता है.
17 नवंबर को अखंड सौभाग्य का रोहिणी व्रत, जानें पूजा विधि, धार्मिक महत्व
17 Nov, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
यह व्रत महिलाओं के लिए अधिक महत्वपूर्ण माना गया है. जैन परिवारों की महिलाओं के लिए तो इस व्रत का पालन करना अतिआवश्यक होता है, लेकिन पुरुष भी अपनी इच्छानुसार ये व्रत कर सकते हैं. इस दिन महिलाएं पूरे विधि-विधान से पूजा करती हैं और अपने पति की लम्बी आयु एवं स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करती हैं. जैन मान्यताओं के अनुसार इस दिन जो भी महिला या पुरुष पूरी श्रद्धा से इस व्रत का पालन करते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. जैन धर्म में ह्रदय और आत्मा की स्वच्छता को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है. इसी तरह इस व्रत का पालन करने वाले स्त्री और पुरुष अपनी आत्मा के विकारों को दूर करते हैं और इस संसार की मोह माया से दूर रहते हैं.
रोहिणी व्रत पूजा विधि
रोहिणी व्रत के दिन सुबह जल्दी उठें और स्नान आदि से निवृत हो जाएं. अगर आप चाहें तो पानी में कुछ बूंद गंगाजल मिलाकर स्नान कर सकते हैं. इसके बाद आचमन कर व्रत का संकल्प लें और सूर्यदेव को जल से अर्घ्य दें. फिर पूजा स्थल की अच्छे से साफ कर लें. इस दिन भगवान वासुपूज्य की पूजा की जाती है. भगवान वासुपूज्य की वेदी के साथ मूर्ति स्थापित करें. फिर पूजा के दौरान भगवान को फल, फूल, गंध, दूर्वा आदि अर्पित करें. पूजा के बाद शाम को सूर्यास्त से पहले पूजा-पाठ करने के बाद फलाहार करें. इस व्रत में रात्रि में भोजन नहीं किया जाता है, इसलिए अगले दिन पूजा-पाठ संपन्न कर अपना व्रत खोलें.
रोहिणी व्रत के लाभ
जैन धर्म के अनुसार, रोहिणी व्रत करने से महिलाओं को अखंड सौभाग्य प्राप्त होता है. इसके साथ ही व्यक्ति की धन से संबंधी सभी समस्याएं भी दूर होती हैं. जैन मान्यताओं के अनुसार, जो भी व्यक्ति रोहिणी व्रत को पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से करता है, तो उस व्यक्ति के सभी दुख-दर्द दूर हो सकते हैं. साथ ही उसे मोक्ष की भी प्राप्ति हो सकती है.
रोहिणी व्रत का संबंध रोहिणी नक्षत्र से माना गया है. जब सूर्योदय के बाद रोहिणी नक्षत्र प्रबल होता है तभी यह व्रत किया जाता है. जैन धर्म में इस व्रत को विशेष महत्व दिया जाता है. इस माह में रोहिणी व्रत 17 नवंबर के दिन किया जाएगा. ऐसे में चलिए जानते हैं रोहिणी व्रत से जुड़ी कुछ जरूरी बातें और इसके कुछ जरूरी नियम.जैन धर्म की मान्यताओं के अनुसार, रोहिणी व्रत करने से सुहागिन महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है. साथ ही यह व्रत पति की लंबी उम्र और परिवार की खुशहाली के लिए भी किया जाता है. इस व्रत को पूरे विधि-विधान के साथ करने से व्यक्ति को धन की समस्या भी नहीं सताती. जैन धर्म में इस व्रत को मोक्ष की प्राप्ति का माध्यम भी माना गया है.
इस माह में रोहिणी व्रत 17 नवंबर को है. रोहिणी व्रत से जुड़ी कुछ खास बातेंः
1. रोहिणी व्रत, जैन धर्म के प्रमुख व्रत-त्योहारों में से एक है.
2. इस व्रत को करने से व्यक्ति को सभी तरह के दुख-दर्द से मुक्ति मिल सकती है.
3. इस व्रत को मुख्य रूप से महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुख-शांति की कामना के साथ रखती हैं.
4. रोहिणी व्रत का संबंध रोहिणी नक्षत्र से माना गया है.
5. जब सूर्योदय के बाद रोहिणी नक्षत्र प्रबल होता है, तभी यह व्रत किया जाता है.
6. इस व्रत को लगातार 3, 5 या फिर 7 सालों तक करने का विधान है.
7. इसके बाद रोहिणी व्रत का उद्यापन किया जाता है.
बेहद चमत्कारी हैं सूर्य देव के ये मंत्र! सूर्योदय के बाद करें इन 12 मंत्रों के जाप, तुरंत दिखेगा असर
17 Nov, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हर इंसान की कुंडली में कुल 12 ग्रह होते हैं जो समय-समय पर एक स्थान से दूसरे स्थान पर परिवर्तन करते रहते हैं. ऐसे में ग्रहों की चाल का व्यक्ति के साथ-साथ देश दुनिया पर भी प्रभाव पड़ता है. सभी ग्रहों के स्वामी सूर्य ग्रह है. जब सूर्य ग्रहण किसी राशि में गोचर करते हैं तो उसका प्रभाव सभी राशियों के जातकों पर होता है. कुछ जातकों पर जहां इसका सकारात्मक प्रभाव होता है तो वहीं कुछ जातकों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.
16 नवंबर को सूर्य का राशि परिवर्तन हो चुका हैं. सूर्य ग्रह आज सुबह 7:16 पर मंगल की वृश्चिक राशि में प्रवेश कर चुके हैं. सूर्य के इस गोचर से कुछ राशियों पर अच्छा प्रभाव होगा तो कुछ राशियों पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ने से जीवन में दुख, समस्याएं, परेशानी, आकस्मिक धन खर्च आदि होने से मानसिक तौर पर विचलित हो सकते हैं. सूर्य ग्रह जिनकी राशि में मजबूत नहीं है या फिर सूर्य ग्रह किसी भी राशि पर अपना नकारात्मक प्रभाव डाल रहे हैं. ऐसे में कुछ खास उपाय करने से सूर्य देव लोगों को फायदा पहुंचाते हैं.
12 मंत्रों का जाप
कि सूर्य देव सभी ग्रहों के स्वामी हैं. सूर्य ग्रह के नकारात्मक प्रभाव को खत्म करने के लिए उनके 12 मंत्रों का जाप विधि विधान से करने पर सूर्य ग्रह शुभ फल प्रदान करते है. सूर्य ग्रहण कुंडली के किसी ऐसे भाव में विराजमान है जहां से कुछ राशियों पर सूर्य का नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है. ऐसे में सूर्य देव के 12 मंत्रो का जाप ब्रह्म मुहूर्त के बाद स्नानादि करके उषा काल के दौरान जाप करने पर सूर्य का नकारात्मक प्रभाव पूर्ण रूप से खत्म हो जाता है. वही किसी अन्य ग्रह का यदि आपकी राशि पर दुष्प्रभाव हो रहा है तो वह भी ना के बराबर रह जाता है. शास्त्रों के अनुसार सूर्य देव के यह 12 मंत्र बेहद ही शक्तिशाली और जीवन में शुभ बदलाव करने के लिए बहुत अधिक प्रभावशाली मंत्र हैं.
सूर्य ग्रह के 12 चमत्कारी मंत्र
ॐ आदित्याय नमः।
ॐ सूर्याय नमः।
ॐ रवेय नमः।
ॐ पूषणे नमः।
ॐ दिनेशाय नमः।
ॐ सावित्रे नमः।
ॐ प्रभाकराय नमः।
ॐ मित्राय नमः।
ॐ उषाकराय नमः।
ॐ भानवे नमः।
ॐ दिनमणाय नमः।
ॐ मार्तंडाय नमः।
काशी की तर्ज पर पूर्णिया में मनी देव दिवाली, 11 हजार दीपों से जगमगाया शहर
17 Nov, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
श्री राम सेवा संघ के तत्वाधान में 15 नवंबर को पूर्णिया के सिटी कालीबाड़ी समीप सौरा नदी तट पर 11000 दीपों को प्रज्वलित कर भव्य रूप से काशी के तर्ज पर देव दिवाली मनाया गया. जिसे देखने पूर्णिया शहर के लोगों की भीड़ लगी रही और लोगों ने लुत्फ उठाये.
कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर हर साल होती देव दिवाली
बता दें हर साल की तरह इस बार भी 15 नवंबर दिन शुक्रवार संध्या 8:00 बजे पूर्णिया के सिटी कालीबाड़ी समीप सौरा नदी के तट पर भव्य रूप से देव दिवाली मनाई गई. वहीं यह देव दिवाली पूर्णिया के लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा, घंटों भर लोग रुक कर इस भव्य देव दिवाली का आनंद लेते रहे. वही जानकारी देते हुए पूर्णिया श्री राम सेवा संघ के आयोजक राणा प्रताप सिंह ने बताया कि हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर सभी सनातनियों को एक जुट होकर इस भव्य देव दिवाली के आयोजन पर दीपों का दान करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. वही यह देव दिवाली काशी के तर्ज पर पूर्णिया में भी धूम धाम से मनाया गया. वही इस देव दिवाली में आए बनारस से लगभग 21 पंडितों के द्वारा गंगा महाआरती पूजा कर 11000 दीपों को प्रज्वलित कर भव्य आरती कर देव दिवाली मनाई गई.
जगह नहीं मिलने पर खड़े होकर लोगों ने देखी देव दिवाली
इस देव दिवाली को देखने के लिए पूर्णिया वासियों के साथ-साथ आसपास के जिले की भी लोग सिटी कालीबाड़ी समीप सौरा नदी तट पर पहुंचकर देव दिवाली का भरपूर आनंद लिया. वहीं इस देव दिवाली को देखने आए लगभग लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं ने पहुंचकर मां काली का आशीर्वाद लेते हुए गंगा महा आरती में शामिल होकर अपनी अपनी मनोकामनाएं मांगी. हालांकि देव दिवाली को भव्य रूप देने में श्री राम सेवा संघ के तरफ से कोई भी कसर नहीं छोड़ा गया चाहे वह सजावट हो या दीपों की जगमगाहट चारों तरफ रोशनी ही रोशनी देखने को मिला. वहीं इस देव दिवाली में आए सनातनियों को कोई भी तरह की कोई समस्या ना हो इसके लिए पूर्णिया जिला प्रशासन के तरफ से विशेष पहल करते हुए सड़क पर जाम की स्थिति उत्पन्न ना हो इसके लिए जगह-जगह पुलिस बल तैनाती की गई.
लाखों श्रद्धालुओं की भीड़
वहीं सौरा नदी तट किनारे स्थित देव दिवाली में आए पूर्णिया के नगर निगम के महापौर विभा कुमारी एवं समाज सेवी जितेंद्र कुमार यादव एवं पनोरमा ग्रुप के एमडी संजीव कुमार मिश्रा एवं समाज सेवी डॉक्टर एo के गुप्ता एवं भाजपा नेता आनंद भारती समेत कई गणमान्य लोगों की मौजूदगी रही.
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
17 Nov, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- दैनिक व्यवसाय गति अनुकूल हो, भाग्य का सितारा साथ देगा, समय का ध्यान रखें।
वृष राशि :- धन लाभ, आशानुकूल सफलता का हर्ष, कार्यगति में उदासीनता बनी रहेगी।
मिथुन राशि :- योजनायें फलीभूत हों, विशेष कार्य स्थगित रखें, कार्य में परेशानी होगी।
कर्क राशि :- असमंजस कष्टप्रद होगा तथा किसी अरोप से बचें, चोटादि का भय।
सिंह राशि :- आकस्मिक विरोध, तनाव, अपवाद, आरोप, धन का व्यय, व्यर्थ यात्रा होगी।
कन्या राशि :- व्यवसायिक समृद्धि के साधन फलप्रद होंगे, तनाव, क्लेश व अशांति होगी।
तुला राशि :- संघर्ष से सफलता मिलेगी, कार्यगति अनुकूल होगी, कुछ समस्यायें सुलझेंगी ध्यान दें।
वृश्चिक राशि :- असमंजस कष्टप्रद होगा, किसी अरोप-प्रत्यारोप से बचकर चलें, लाभ होगा।
धनु राशि :- व्यवसाय गति अनुकूल, भाग्य का सितारा साथ देगा, बिगड़े कार्य बनेंगे।
मकर राशि :- दैनिक समृद्धि के साधन जुटायें, इष्ट-मित्र सुखवर्धक अवश्य होंगे।
कुंभ राशि :- कहीं दुर्घटनाग्रस्त होने से बचें, कुटुम्ब की समस्यायें अवश्य सुलझेंगी।
मीन राशि :- धन का व्यर्थ व्यय होगा, बेचैनी तथा दूसरों के कार्यों में भटकना पड़ेगा, ध्यान दें।
बड़ा ही चमत्कारी है महादेव का यह मंदिर, यहां खड़े दीये जलाने से होती है संतान की प्राप्ति! विदेशों से तक आते हैं भक्त
16 Nov, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
जब दवाइयां काम न आए और विज्ञान भी हार मान जाए, तब लोगों को एक आस की किरण आध्यात्म में नजर आती है. इसकी बानगी हमें कमलेश्वर महादेव मंदिर में देखने को मिलती है. यहां कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी के दिन हजारों लोगों का हुजूम उमड़ता है. मान्यता है कि यहां निसंतान दम्पति यदि खड़े दीप का अनुष्ठान करें तो उन्हें संतान सुख की प्राप्ति होती है. इस बार बैकुण्ठ चतुर्दशी के अवसर पर संतान प्राप्ति के लिए सिद्धपीठ कमलेश्वर महादेव मंदिर में 177 देश-विदेश से आए निसंतान दम्पतियों ने खड़ा दीया अनुष्ठान किया. इसमें पोलैंड से आए एक विदेशी दम्पति, क्लाऊडिया और स्टेफन भी शामिल थे.
पोलैंड से खड़े दीये का अनुष्ठान करने पहुंचे दंपति
कमलेश्वर मंदिर के महंत आशुतोष पूरी ने लोकल 18 को बताया कि इस बार बैकुंठ चतुर्दशी के अवसर पर खड़े दीये अनुष्ठान में 177 दंपति शामिल हुए, जिनमें पोलैंड से आए एक विदेशी दंपति, क्लाऊडिया और स्टेफन भी थे. उन्होंने बताया कि यहां देश-विदेश से निसंतान दंपति खड़े दीप का अनुष्ठान करने के लिए आते हैं. इस बार देश के विभिन्न राज्यों से भी निसंतान दंपति खड़े दीप का अनुष्ठान करने के लिए पहुंचे हैं.
संतान प्राप्ति के लिये खड़े दीये का अनुष्ठान
कमलेश्वर महादेव मंदिर में खड़े दीये का अनुष्ठान करने के लिए पहुंची एकता ने लोकल 18 को बताया कि उन्होंने कमलेश्वर मंदिर से जुड़ी मान्यता के बारे में सुना था. अब तक उन्हें संतान नहीं हुई है, इसलिए वे कमलेश्वर मंदिर में खड़े दीप का अनुष्ठान करने के लिए आईं हैं. उन्होंने कहा कि उनकी कमलेश्वर मंदिर पर विशेष आस्था है और कई निसंतान दंपतियों को यहां खड़े दीप अनुष्ठान करने पर संतान प्राप्ति हुई है.
यह है कमलेश्वर मंदिर से जुड़ी मान्यता मान्यता
पौराणिक मान्यता के अनुसार, देवता दानवों से पराजित हो गए थे, जिसके बाद वे भगवान विष्णु की शरण में गए. दानवों पर विजय प्राप्त करने के लिए भगवान विष्णु यहां भगवान शिव की तपस्या करने आए. पूजा के दौरान उन्होंने शिव सहस्रनाम के अनुसार शिवजी के नाम का उच्चारण करते हुए एक-एक कर सहस्र (एक हजार) कमलों को शिवलिंग पर चढ़ाना शुरू किया. विष्णु की परीक्षा लेने के लिए शिव ने एक कमल पुष्प छिपा लिया. एक कमल पुष्प की कमी से यज्ञ में कोई बाधा न पड़े, इसके लिए भगवान विष्णु ने अपना एक नेत्र निकालकर अर्पित करने का संकल्प लिया. इस पर प्रसन्न होकर भगवान शिव ने भगवान विष्णु को अमोघ सुदर्शन चक्र दिया, जिससे उन्होंने राक्षसों का विनाश किया. सहस्र कमल चढ़ाने की वजह से इस मंदिर को कमलेश्वर महादेव मंदिर कहा जाने लगा. इस पूजा को एक निसंतान ऋषि दंपति देख रहे थे. मां पार्वती के अनुरोध पर शिव ने उन्हें संतान प्राप्ति का वरदान दिया. तब से यहां कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी (बैकुंठ चतुर्दशी) की रात संतान की मनोकामना लेकर लोग पहुंचते हैं और खड़े दीप का अनुष्ठान करते हैं.
द्रौपदी ने सौतेले बेटे घटोत्कच को क्यों दे दिया जल्दी मरने का शाप, क्या थी वजह, कृष्ण हुए खुश
16 Nov, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
क्या आपको मालूम है कि पग-पग पर द्रौपदी का सबसे ज्यादा ख्याल भीम रखते थे. जब भी द्रौपदी आहत होती थीं या कष्ट में होती थीं तो उन्हें सबसे पहला साथ भीम का ही मिलता था लेकिन उन्हीं के बेटे घटोत्कच में द्रौपदी ने ऐसा श्राप दे डाला, जिससे भीम के दुख की कोई सीमा नहीं रही. घटोत्कच की मां इससे सबसे ज्यादा विचलित हुई. क्योंकि अपने ही परिवार को कोई किसी को ऐसा शाप देने के बारे में सोच भी नहीं सकता था.
द्रौपदी ने भीम और हिडिंबा के अकेले बेटे घटोत्कच को जल्दी मरने का शाप दे दिया. शाप में उन्होंने कहा घटोत्कच की मृत्यु ना केवल जल्दी हो जाएगी बल्कि बिना लड़े ही हो जाएगी. किसी वीर के लिए इससे बड़ा भी शाप क्या होगा, अगर उससे ये कहा जाए कि वह युद्ध में बगैर लड़े ही मर जाएगा. हालांकि बाद में घटोत्कच की मृत्यु हो गई तो द्रौपदी बहुत दुखी भी हुई. खुद को कोसा भी.
द्रौपदी ने चंबल नदी और कुत्तों को भी दिया था शाप
द्रौपदी ने इसके अलावा चंबल नदी और कुत्तों को भी शाप दिया लेकिन ये वाला शाप तो सच में काफी स्तब्ध करने वाला था. दरअसल भीम की पत्नी हिडिंबा और द्रौपदी के बीच संबंध अच्छे नहीं थे. हिडिंबा द्रौपदी को बहुत पसंद नहीं करती थी.
हिडिंबा ने क्या कहा था पुत्र से
संदर्भों के अनुसार, जब भीम का पुत्र पहली बार पिता से मिलने हस्तिनापुर आया तो मां हिडिंबा ने उसे द्रौपदी के बारे में बहुत अच्छी राय नहीं दी थी. ये कहा था कि वह द्रौपदी को अनदेखा करे और सम्मान नहीं करे.
इससे द्रौपदी गुस्से से भर उठीं
लंबे-चौड़े घटोत्कच की गलती ये रही कि उसने द्रौपदी को पहले इग्नोर कर दिया, फिर उसे राजसभा में अपमानित भी किया, जिससे द्रौपदी बहुत आहत हुई. उसके गुस्से की कोई सीमा नहीं रही. उसने तड़ से घटोत्कच को शाप दिया कि उसकी आयु कम होगी.वह बिना किसी युद्ध के मारा जाएगा.
द्रौपदी ने भरी सभा में घटोत्कच के अपमान के बाद कहा वह एक विशेष स्त्री हैं, पांडवों की पत्नी और राजा द्रुपद की पुत्री. लिहाजा उसका असम्मान करके घटोत्कच ने अपराध जैसा किया है.
भीम को सकते में आ गए
जब भीम ने ये सुना तो वह स्तब्ध रह गए. उनके साथ पूरी सभा सन्नाटे में आ गई कि ये द्रौपदी कैसा शाप अपने ही सौतेले बेटे को दे दिया. क्योंकि कोई सपने में भी नहीं सोच सकता था कि नाराज होकर द्रौपदी ऐसा कुछ कर डालेंगी लेकिन तीर तो कमान से छूट चुका था.
इस शाप का क्या असर हुआ
बाद में इस श्राप ने वाकई रंग दिखाया. महाभारत के युद्ध में कर्ण ने उसे इंद्र का अमोघ अस्त्र चलाकर मारा, जबकि वह वास्तव में अर्जुन पर इसका प्रयोग करना चाहता था. इस तरह द्रौपदी के श्राप का परिणाम घटोत्कच की मृत्यु के रूप में सामने आया.
शादी नहीं हो रही या बार-बार टूट रहा रिश्ता? ज्योतिषी से जानें सटीक समाधान; जल्द बज उठेगी शहनाई
16 Nov, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
देवउठनी एकादशी के बाद शादी विवाह की शुरुआत हो चुकी है. गांव, शहर, कस्बा में शादी की शहनाई बजनी शुरु हो गयी है. वहीं कई युवक युवतियां ऐसे हैं जिनकी शादी विवाह में लगातार अड़चन पैदा हो रही है. रिश्ते लगने के बाद भी बार बार टूट जाते हैं. ज्योतिषशास्त्र के अनुसार कुंडली में कुछ ऐसे ग्रह दोष बन जाते हैं जो विवाह में देरी का कारण बनते हैं, लेकिन इस दोष से छुटकारा पाने के लिए ज्योतिषशास्त्र में उपाय भी है. किन दोष के कारण विवाह में बाधा उत्पन्न होती है और क्या उपाय करने चाहिए आइए जानते हैं देवघर के ज्योतिषाचार्य से?
ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि कुंडली में अगर क्रूरक ग्रह की महादशा प्रारम्भ हो जाए या फिर कुंडली के सप्तम स्थान में शनि या मंगल बैठा हो, साथ ही शनि और मंगल की कुदृष्टि पड़ रही हो तो जातक के शादी विवाह में बाधा उत्पन्न होती है. कुंडली के सांतवे घर में चन्द्रमा, गुरु या शुक्र आ जाये तो भी शादी में समस्या उत्पन्न होती है. इसके साथ ही जब राहु और केतु के बीच सभी ग्रह आ जाए तो इससे कालसर्प दोष बनता है और ये दोष से भी शादी में समस्या उत्पन्न होती है. इसके साथ ही कुंडली में शुक्र दोष होने की वजह से भी विवाह में समस्या उत्पन्न होती है.
शादी में आ रही है बाधा तो क्या करें उपाय
ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि कुंडली में कई दोष के कारण शादी विवाह में बाधा उत्पन्न होती है, इससे बचने के लिए कुंडली में ग्रहों की पावर देखी जाती है. किस ग्रह के कारण या फिर किस दोष के कारण विवाह में बाधा आ रही है. ग्रह को शांत या दोष समाप्त करने के लिए ज्योतिष जी की सलाह पर पूजा- पाठ,हवन इत्यादि कराया जाता है. भगवान बजरंगबली की पूजा कर चोला चढ़ाया जाता है. मां दुर्गा की पूजा आराधना की जाती है. वहीं अगर समय पर उपाय कर लें तो शादी निश्चित तय हो जाती है और सारी बाधा समाप्त हो जाती है.
राजस्थान ही नहीं...दिल्ली में भी है खाटू श्याम मंदिर, 24 घंटे होता है भंडारा, जानें लोकेशन
16 Nov, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
अगर आप भी नवंबर के महीने में अपने परिवार के साथ राजस्थान में स्थित खाटू श्याम बाबा का दर्शन करने के बारे में सोच रहे हैं और आप वहां नहीं जा पा रहे हैं, तो आपको अब निराश होने की जरूरत नहीं. क्योंकि अब आपके शहर राजधानी दिल्ली में ही खाटू श्याम मंदिर स्थित है, जो बिल्कुल हूबहू राजस्थान के मंदिर जैसा ही है. तो चलिए जानते हैं की आखिरकार यह मंदिर कहां स्थित है और आप वहां कैसे जा सकते है.
दिल्ली का खास खाटू श्याम मंदिर
यह मंदिर राजधानी दिल्ली के अलीपुर इलाके में स्थित है, जिसका नाम खाटू श्याम दिल्ली धाम है. जीटी करनाल रोड किनारे स्थित तिबोली गार्डन के पास एक लाख वर्ग गज भूमि में बना खाटू श्याम मंदिर बना है,जहां आप जा सकते है. इस मंदिर में लाखों भक्तों की दर्शन के लिए भीड़ लगती है.
जानें मंदिर की खासियत
इस मंदिर के पुजारी बृजेश पांडे ने लोकल 18 की टीम से बात करते हुए बताया कि यह मंदिर 2022 में 22 मार्च को स्थापना हुई है. इस मंदिर में आपको रात्रि में 1100 कैंडल लाइट में बाबा के दर्शन करने को मिलेगा. इसके अलावा फ्लावर शाप, गर्भ गुफा में बाबा के दर्शन, 1500 किलो अष्टधातु से बनी शिलापट, यज्ञशाला, राधिका वाटिका और गौशाला भी देखने को मिलेगी.
भक्तों के लिए है ये सुविधा
खाटू श्याम मंदिर में भक्तों के लिए 24 घंटे भंडारा की सुविधा आपको मिल जाएगी. इसके अलावा बुजुर्गों के लिए व्हीलचेयर द्वारा दर्शन करवाने की भी सुविधा उपलब्ध है. वही इस मंदिर में 25 फीट नीचे गिर गाय के गोबर से निर्मित व्यासपीठ, भारत माता धाम और योग सेंटर बनाया गया है.
जानें टाइम और लोकेशन
खाटू श्याम का मंदिर सुबह 5:30 बजे से लेकर रात 9:00 बजे तक खुला रहता है. इसकी नजदीकी मेट्रो स्टेशन की बात करें जहांगीरपुरी है. आप मेट्रो से निकलने के बाद कोई भी रिक्शा लेकर आप मंदिर जा सकते हैं.
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
16 Nov, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- चिन्ता, विभ्रम, अशांति से बचिये, दैनिक व्यवसाय गति अनुकूल बनेगी।
वृष राशि :- दूर-समीप की लाभदायक यात्रा होगी, मित्रों का सहयोग अवश्य प्राप्त होगा।
मिथुन राशि :- पड़ोसी से अनबन होगी और बाद में सुलह भी हो जायेगी, विचारे कार्य अवश्य बनेंगे।
कर्क राशि :- संतान के कार्य से प्रसन्नता होगी, प्रतिष्ठा एवं सम्पन्नता से आपको खुशी होगी।
सिंह राशि :- जमीन-जायजाद के झगड़े सुलझेंगे, व्यापारिक संबंध स्थापित होंगे ध्यान दें।
कन्या राशि :- नवीन कार्य-पद्धति से संतोष, तनाव से बचिये, आरोप से उद्विघ्नता बनेगी।
तुला राशि :- प्रयत्न सफल हो, मित्र-वर्ग से तनाव व अशांति, मानसिक विभ्रम बनेगा ध्यान दें।
वृश्चिक राशि :- सामाजिक कार्य में प्रभुत्व वृद्धि होगी, कार्य कुशलता से संतोष होगा।
धनु राशि :- चिन्ता निवृत्ति, अर्थ-लाभ, योजनायें फलीभूत होंगी तथा रुके कार्य बनेंंगे।
मकर राशि :- मान-प्रतिष्ठा महत्वपूर्ण रहेगी, सभी कार्यों को एक-एक करके निपटा लें।
कुंभ राशि :- आर्थिक लाभ की योजना का विस्तार होगा विचार-विमर्श कर अंतिम रूप दें।
मीन राशि :- स्वयं सफलतापूर्ण कार्य में स्थाई एवं अस्थाई स्त्रोतों पर विशेष ध्यान अवश्य दें।
बेटी की विदाई के बाद खाली न हो जाए तिजोरी! शादी से पहले मां-बाप जरूर कर लें ये काम; दोगुनी हो जाएगी जायदाद
15 Nov, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
कई बार देखा जाता है कि शादी के बाद जब बेटियां विदाई होकर अपने ससुराल जाती हैं तो साथ में मायके की सुख समृद्धि भी ले जाती हैं, क्योंकि बिटिया को भाग्यशाली माना जाता है और बिटिया से ही घर में रौनक रहती है. सुख समृद्धि और लक्ष्मी जी का आगमन होता है. ऐसे में लक्ष्मी जी की विदाई होना कई बार कुछ घरो के लिए काफी अशुभ हो जाता है.
झारखंड की राजधानी रांची के जाने-माने ज्योतिष आचार्य संतोष कुमार चौबे (रांची यूनिवर्सिटी से ज्योतिष शास्त्र में गोल्ड मेडलिस्ट) ने लोकल 18 को बताया कि कुछ लड़कियां ऐसी होती हैं जो घर के लिए या माता-पिता के लिए बहुत ही भाग्यशाली होती हैं. ऐसे में जब वह विदाई होकर चली जाती हैं तो घर से सुख समृद्धि को ले जाती हैं, लेकिन अगर माता-पिता एक काम कर लें तो घर में दोगुनी सुख समृद्धि आएगी.
माता-पिता बस कर लें एक काम
कि बेटी की विदाई से पहले माता-पिता को एक काम करना चाहिए. एक सफेद चादर लें और उसमें बेटी के पैरों के निशान लें. आप लाल आल्ता के पानी में बेटी के पैर को डुबोकर उसका निशान ले सकते हैं और फिर उस व्हाइट कलर की चादर को फ्रेम करवा लें. उन्होंने आगे बताया कि फिर इसे अपनी तिजोरी में रख दें. ऐसा करने से घर में सुख समृद्धि और माता लक्ष्मी का आगमन होता रहेगा. सौभाग्य दोगुना होकर मिलेगा, घर में बरकत होती रहेगी. ऐसा हर मां-बाप को बेटी की विदाई के बाद जरूर करना चाहिए, इससे घर भरा पूरा रहता है.
1000 साल पुराना मकरवाहिनी माता का मंदिर, यहां 7 कुंओं पर विराजमान हैं देवी, देखें कलचुरी काल का निर्माण
15 Nov, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
विश्व की सबसे प्राचीन मां नर्मदा की मूर्ति जबलपुर में स्थित है. जो कलचुरी कालीन से विराजमान है. जहां कलचुरी राजाओं ने माता मकरवाहिनी की स्थापना की थी. यह मूर्ति 7 कुएं के ऊपर बनाई गई थी. ऐसा कहा जाता है कि मूर्ति दिन में तीन बार रंग बदलती है. यह मूर्ति करीब 1000 साल पुरानी है. मूर्ति में कई प्रकार के भगवान भी बने हुए हैं. जिसमें शिल्पकारों की कला भी दिखाई देती हैं. कलचुरी कालीन मकरवाहिनी मंदिर कमानिया गेट के नजदीक स्थित है.
इतिहासकार आनंद राणा के मुताबिक उत्तर और दक्षिण के मूर्ति शिल्प के मिलन के कारण मूर्ति बनाई गई. जिसे कलचुरी शिल्प के नाम से भी जाना गया. यही कारण है कि मूर्ति में अंकित देवी देवता चित्रित किए गए हैं. कलचुरी काल की यह प्रतिमा हजारों साल पुरानी है. इससे एक खूबसूरत इतिहास जुड़ा हुआ है. कलचुरी काल की स्थापना के बाद महान राजा कर्ण ने 1041 से 1072 तक शासन किया. जिन्हें उत्कृष्ट शासन के कारण उन्हें ‘त्रिलिंगाधिपति’ की उपाधि दी गई.
वर्षों पुरानी हैं मन्दिर की मान्यता
एक बार जब उन्होंने गंगा नदी में पैर रखा तो उन्होंने महसूस किया कि इस नदी में स्नान करने से पाप धुल जाते हैं. इसके आधार पर राजा ने मकरवाहिनी की एक मूर्ति बनाई. इस मूर्ति पर अभी काफी शोध भी चल रहा है. मूर्ति टूटने की कगार पर थी लेकिन शहर के कुछ जिम्मेदार लोगों ने इसे बचाने के लिए अथक प्रयास किया. इसके बाद मूर्ति का पुनर्निर्माण किया गया. ऐसा कहा जाता हैं हल्कू हलवाई एक बहुत ही धार्मिक व्यक्ति थे. जो 1860 में जबलपुर में रहते थे. हल्कू को त्रिपुरी में खुदाई के दौरान मूर्ति के बारे में पता चला. उसने तुरंत अपने दो पराक्रमी पुत्रों को भेजा और उन्हें मूर्ति को अपने कंधों पर ले जाने के लिए कहा था.
रावण की सेना को परास्त करने के बाद, कहां गायब हो गई श्रीराम की 1 लाख वानरों की सेना? क्या हुआ उनके साथ?
15 Nov, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
लंका नरेश रावण ने जब माता सीता का हरण किया था, तो वनवास काट रहे श्रीराम ने अपने भाई लक्ष्मण और वानरों की सेना के सहयोग से लंका पर विजय प्राप्त की थी. श्रीराम की जीत और लंकापति रावण की इस हार को बुराई पर अच्छाई की विजय के तौर पर हर साल हम मनाते हैं. श्री राम की इस विजय में वानर सेना ने पग-पग पर उनका साथ दिया था. लेकिन लंका की इस विजय के बाद आखिर ये वानर सेना कहां चली गई? क्या आपने कभी सोचा है कि रामायण की इस कथा में लंका विजय के बाद वानरों का क्या हुआ? फिर उसने कोई लड़ाई क्यों नहीं लड़ी या ये सेना कहां गायब हो गई? चलिए आपको इसके बारे में बताते हैं.
वानर सेना का क्या हुआ?
रावण की विशाल सेना के, वानरों की इस नौसिखए सरीखी सेना ने पसीने छुड़ा दिए थे. वाल्मीकि रामायण के अनुसार श्रीराम-रावण युद्ध में वानर सेना की महत्वपूर्ण भूमिका थी. लेकिन इस सेना का क्या हुआ? वानर सेना के प्रमुख नेता और महान योद्धा सुग्रीव और अंगद का क्या हुआ. इन सवालों का जवाब रामायण के उत्तर कांड में दिया गया है. उत्तर कांड में उल्लेख है कि जब लंका से सुग्रीव लौटे तो उन्हें भगवान श्रीराम ने किष्किन्धा का राजा बनाया और बालि के पुत्र अंगद को युवराज. वानर सेना में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले नल-नील कई वर्षों तक सुग्रीव के राज्य में मंत्री पद पर सुशोभित रहे. इन दोनों ने मिलकर वहां कई सालों तक राज किया. श्रीराम-रावण युद्ध में योगदान देने वाली वानर सेना सुग्रीव के साथ ही वर्षों तक रही. लेकिन लंका जैसे भीषण युद्ध जीतने वाली इस सेना ने बाद में कोई बड़ी लड़ाई नहीं लड़ी.
जिस किष्किंधा राज्य का जिक्र हो रहा है, वह आज भी है. किष्किंधा, कर्नाटक में तुंगभद्रा नदी के किनारे है. किष्किंधा के आसपास आज भी ऐसे कई गुफाएं और जगह हैं, जहां राम और लक्ष्मण रुके थे. वहीं किष्किंधा में वो गुफाएं भी हैं जहां वानर साम्राज्य था. किष्किंधा के ही आसपास काफी बड़े इलाके में घना वन फैला हुआ है, जिसे दंडक वन या दंडकारण्य कहा जाता है.
श्रीराम के राज्याअभिषेक में पहुंची थी सेना
लंका युद्ध के समय की बात करें तो श्रीराम ने रामेश्वरम के आगे समुद्र में वह स्थान ढूंढ़ निकाला, जहां से आसानी से श्रीलंका पहुंचा जा सकता हो. इसके बाद विश्वकर्मा के पुत्र नल और नील की मदद से वानरों ने पुल बनाना शुरू कर दिया. वानर सेना में वानरों के अलग अलग झुंड थे. हर झुंड का एक सेनापति था. जिसे यूथपति कहा जाता था. यूथ का मतलब था झुंड. लंका पर चढ़ाई के लिए सुग्रीव ने ही वानर तथा ऋक्ष सेना तैयार की थी, जिसमें वानरों की संख्या लगभग 1 लाख बताई गई है. माना जाता है कि लंका विजय के बाद ये विशाल वानर सेना फिर अपने अपने राज्यों के अधीन हो गई. क्योंकि अयोध्या की राजसभा में राम ने राज्याभिषेक के बाद लंका और किष्किंधा आदि राज्यों को अयोध्या के अधीन करने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था. ये वानर सेना राम के राज्याभिषेक में अयोध्या भी आई और फिर वापस लौट गई.
कार्तिक पूर्णिमा व्रत, स्नान-दान से पाएं पुण्य, शाम को देव दिवाली, जानें मुहूर्त, भद्रा समय, राहुकाल
15 Nov, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
कार्तिक पूर्णिमा व्रत शुक्रवार को है. इस दिन देव दिवाली भी मनाते हैं. इस दिन कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा तिथि, भरणी नक्षत्र, व्यतीपात योग, विष्टि करण, पश्चिम का दिशाशूल और मेष राशि में चंद्रमा है. कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा समेत सभी पवित्र नदियों में स्नान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और पाप मिटते हैं. कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहते हैं क्योंकि भगवान शिव ने तारकक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली असुर भाइयों का वध किया था. इस वजह से सभी देवतों ने काशी में शिव पूजा करके दीपावली मनाई थी. कार्तिक पूर्णिमा को सूर्यास्त के बाद देव दिवाली मनाते हैं. जो लोग कार्तिक पूर्णिमा का व्रत रखते हैं, उनको शिव पूजा के समय कार्तिक पूर्णिमा व्रत कथा पढ़नी या सुननी चाहिए. इस दिन घर पर सत्यनारायण भगवान की कथा का आयोजन करते हैं, रात में चंद्रमा और माता लक्ष्मी की पूजा करते हैं. इससे धन, वैभव, सुख, समृद्धि बढ़ती है. कार्तिक पूर्णिमा को स्वर्ग की भद्रा है.
कार्तिक पूर्णिमा के दिन सिखों के पहले गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ था, इसलिए इस दिन गुरु नानक जयंती मनाई जाती है. गुरु नानक जयंती के अवसर पर गुरुद्वारों में अरदास, भजन, कीर्तन करते हैं, प्रभात फेरी निकाली जाती है. गुरुद्वारों को दीपों से जगमग करते हैं. इस दिन लंगर भी चखते हैं. गुरु नानक देव जी ने सिख धर्म की स्थापना की थी, उन्होंने गरीबों की सेवा और सामाजिक समरसता को प्रमुखता से बढ़ावा दिया.
कार्तिक पूर्णिमा का दिन शुक्रवार को है, जिस दिन व्रत रखकर माता लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है. माता लक्ष्मी को कमलगट्टा, कमल, लाल गुलाब, खीर, दूध से बनी सफेद मिठाई, पीली कौड़ियां आदि अर्पित करते हैं. पूजा के समय आपको श्री सूक्त या कनक धारा स्तोत्र का पाठ करना चाहिए. लक्ष्मी कृपा से आपके धन और वैभव में वृद्धि होगी. शुक्रवार को सफेद वस्त्र, चावल, चांदी, इत्र, खीर आदि का दान करने से शुक्र ग्रह मजबूत होता है. पंचांग से जानते हैं कार्तिक पूर्णिमा के शुभ मुहूर्त, देव दीपावली समय, सूर्योदय, चंद्रोदय, भद्रा, राहुकाल, दिशाशूल आदि.
आज का पंचांग, 15 नवंबर 2024
आज की तिथि- पूर्णिमा – 02:58 ए एम, नवम्बर 16 तक, उसके बाद मार्गशीर्ष कृष्ण प्रतिपदा
आज का नक्षत्र- भरणी – 09:55 पी एम तक, फिर कृत्तिका
आज का करण- विष्टि – 04:37 पी एम तक, बव – 02:58 ए एम, नवम्बर 16 तक, फिर बालव
आज का योग- व्यतीपात – 07:30 ए एम तक, वरीयान् – 03:33 ए एम, नवम्बर 16 तक, उसके बाद परिघ
आज का पक्ष- शुक्ल
आज का दिन- शुक्रवार
चंद्र राशि- मेष – 03:17 ए एम, नवम्बर 16 तक, फिर वृषभ
सूर्योदय-सूर्यास्त और चंद्रोदय-चंद्रास्त का समय
सूर्योदय- 06:44 ए एम
सूर्यास्त- 05:27 पी एम
चन्द्रोदय- 04:51 पी एम
चन्द्रास्त- चन्द्रास्त नहीं
कार्तिक पूर्णिमा 2024 के शुभ मुहूर्त
ब्रह्म मुहूर्त: 04:58 ए एम से 05:51 ए एम
अभिजीत मुहूर्त: 11:44 ए एम से 12:27 पी एम
विजय मुहूर्त: 01:53 पी एम से 02:36 पी एम
गोधूलि मुहूर्त: 05:27 पी एम से 05:54 पी एम
अमृत काल: 05:38 पी एम से 07:04 पी एम
कार्तिक पूर्णिमा स्नान दान समय: 04:58 ए एम से
देव दीपावली शुभ मुहूर्त: शाम 5:10 बजे से 7:47 बजे तक
अशुभ समय
राहुकाल- 10:45 ए एम से 12:06 पी एम
गुलिक काल- 08:04 ए एम से 09:25 ए एम
यमगण्ड- 02:46 पी एम से 04:07 पी एम
दुर्मुहूर्त- 08:53 ए एम से 09:35 ए एम, 12:27 पी एम से 01:10 पी एम
भद्रा: 06:44 ए एम से 04:37 पी एम
भद्रा वास स्थान: स्वर्ग में
दिशाशूल- पश्चिम