धर्म एवं ज्योतिष
अंगूठी से ही क्यों भरा जाता है दुल्हन की मांग में सिंदूर? क्या कहते हैं धार्मिक ग्रंथ, जानिए इसका महत्व
24 Nov, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भारतीय शादी अपने आप में खास होती हैं और उनमें भी सबसे ज्यादा रस्म अदायगी वाली शादी हिन्दू परिवारों में होती है. इस शादी में रस्म के रूप में निभाई जाने वाली एक चीज जो तह उम्र आपने देखी होगी वो है महिला की मांग में सिंदूर. इसे सुहाग की निशारी माना जाता है और इसलिए शादी के बाद महिला इसे पूरी उम्र अपनी मांग में भरती है. इसे कुमकुम के नाम से भी जाना जाता है और पहली बार मंडप में सात फेरों के बाद दूल्हा इसे अपनी दुल्हन की मांग में भरता है. लेकिन यह सिंदूर अंगूठी से ही क्यों भरा जाता है?
अंगूठी से मांग भरने का महत्व
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, सिंदूर का रंग लाल होता है और यह बुरी शक्तियों से दूर रखता है. वहीं अंगूठी पत्नी के स्वास्थ्य और प्रजनन क्षमता की रक्षा करती है. हिन्दू परिवारों में यह परंपरा सदियों से चली आ रही है, जिसका निर्वाहन आज भी किया जाता है. यह एक सुहागिन महिला की स्थिति को भी दर्शाता है.
सिन्दूर लगाने का धार्मिक महत्व
दूल्हा अपनी दुल्हन की मांग में लाल रंग का सिंदूर अंगूठी से भरता है. क्योंकि, लाल रंग बेहद शुभ माना जाता है, जो देवताओं से जुड़ा हुआ है. वहीं अंगूठी सोने से बनी होती है जो भगवान विष्णु की प्रिय धातु मानी जाती है. वहीं हिन्दू धर्म में दुल्हन को लक्ष्मी का रूप माना जाता है इसलिए अंगूठी से मांग भरी जाती है.
धन और समृद्धि का प्रतीक
ऐसा माना जाता है कि, सोने की अंगूठी द्वारा जब दूल्हा अपनी दुल्हन की मांग में सिंदूर भरता है तो इससे जीवन में आर्थिक रूप से स्थिरता आती है. चूंकि जब कीमतों चीजों का आदान प्रदान होता है तो इससे जोड़े के बीच प्यार और भी ज्यादा बढ़ता है. ऐसे में दांपत्य जीवन में यह धन और समृद्धि का प्रतीक भी माना गया है.
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
24 Nov, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- सफलता के साधन जुटायें, धन लाभ, आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा।
वृष राशि :- सफलता के साधन जुटायें, इष्ट-मित्र सुखवर्धक होंगे, कार्य करें लाभ होगा।
मिथुन राशि :- सफलता के साधन जुटायें, स्त्री-वर्ग से हर्ष-उल्लास, भोग-ऐश्वर्य की प्राप्ति होगी।
कर्क राशि :- अर्थ-व्यवस्था श्रेष्ठ होगी, धन का लाभ आशानुकूल होगा, कार्य लाभ होगा।
सिंह राशि :- मानसिक अशांति विभ्रम में रखेगी, धन लाभ, आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा।
कन्या राशि :- किसी के चुंगल से फंसने से बचें, भावुकता से बचिये, कार्य सफल अवश्य होंगे।
तुला राशि :- समृद्धि के साधन जुटायें, प्रबलता बनी रहेगी, कार्यवृद्धि होगी ध्यान अवश्य दें।
वृश्चिक राशि :- समृद्धि के साधन जुटायें, प्रबलता व कुशलता से संतोष होगा, समय का ध्यान रखें।
धनु राशि :- संतान के कार्यों में सफलता होगी, प्रतिष्ठा एवं समानता से खुशी होगी।
मकर राशि :- मान-प्रतिष्ठा महत्वपूर्ण रहे, सभी कार्यों को एक-एक करके समय पर निपटा लें।
कुंभ राशि :- प्रयत्न सफल हो, मित्र-वर्ग से तनाव, अशांति, मानसिक विभ्रम बना रहेगा।
मीन राशि :- नवीन कार्यों में संतोष होगा, तनाव अवरोध से बचिये, उन्नति होगी।
काल भैरव अष्टमी पर करें ये उपाय, अकाल मृत्यु का भय और शत्रुओं पर मिलेगी विजय
23 Nov, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में मार्गशीर्ष मास का बहुत अधिक महत्व बताया गया है. इस महीने में होने वाले पर्वों का विशेष महत्व हैं, जिन्हें विधि विधान से करने पर संपूर्ण फल प्राप्त होता है. धार्मिक दृष्टिकोण से मार्गशीर्ष मास भगवान विष्णु को बेहद प्रिय है, तो वहीं भगवान शिव की पूजा भी इस महीने में करने से जन्म-जन्मांतर के सभी पाप खत्म हो जाते हैं. इस मास में भोलेनाथ की कृपा से मृत्यु का भय और शत्रुओं पर विजय प्राप्त हो जाती है. मार्गशीर्ष मास कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव को समर्पित है. इस दिन काल भैरव की पूजा करने से जहां मृत्यु का भय खत्म होता है, तो वहीं शत्रुओं पर विजय प्राप्त हो जाती है. काल भैरव अष्टमी की शुरुआत 22 नवंबर की शाम 6:07 बजे पर होगी. उनकी पूजा निशा काल में यानि रात्रि में की जाती है. वहीं अष्टमी तिथि 23 नवंबर की रात 7:56 बजे तक रहेगी.
कि काल भैरव अष्टमी का पर्व मार्गशीर्ष मास कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किए जाने वाला पर्व है. इस दिन भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव की पूजा अर्चना करने का विधान बताया गया है. भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव बहुत शक्तिशाली और सुरक्षा प्रदान करने वाले देवता बताए गए हैं. काल भैरव अष्टमी के दिन भगवान शिव के मंत्रों का जाप करना विशेष लाभदायक और फलदायक होता है. हरिद्वार का पुराना नाम हरद्वार यानी भगवान शिव का द्वारा है. हरिद्वार में भगवान शिव के पौराणिक सिद्ध पीठ मंदिर हैं. इन मंदिरों में काल भैरव अष्टमी के दिन पूजा अर्चना करने पर विशेष लाभ की प्राप्ति होती है और जो व्यक्ति आपका अनिष्ट करना चाहते हैं, उनसे भी सुरक्षा प्रदान होती है.
काल भैरव के मंत्र का करें जाप
उन्होंने बताया कि इस दिन काल भैरव के मंत्र ॐ काल भैरवाय नमः का जाप करना विशेष फलदायक होता है. भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव के इस मंत्र का जाप विधि विधान से करना चाहिए. सूर्योदय (23 नवंबर को) के समय स्नानादि करके भगवान शिव के पौराणिक सिद्ध पीठ मंदिर या अपने घर के देवालय में पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें और इस मंत्र का जाप करें. ऐसा करने से जीवन में आने वाले सभी दुख, परेशानियां खत्म हो जाएंगी और जो व्यक्ति आपका अनिष्ट करना चाहते हैं, उनसे भी सुरक्षा प्रदान काल भैरव की कृपा से हो जाएगी. इस मंत्र का जाप विधि विधान से करने पर भगवान शिव प्रसन्न होकर सभी समस्याओं से छुटकारा दिलाएंगे.
नाराज हैं पितृ तो ऐसे करें खुश, पिंडदान के बराबर मिलेगा फल, धन-संपत्ति की लग जाएगी भरमार!
23 Nov, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
पितृ कार्यों के लिए अमावस्या तिथि सबसे उत्तम बताई गई है. अमावस्या के दिन पितरों के निमित्त अनुष्ठान करने पर विशेष फल की प्राप्ति होती है. मार्गशीर्ष मास भगवान विष्णु को सबसे अधिक प्रिय मास है. मार्गशीर्ष मास में पितरों के निमित्त किए गए अनुष्ठान से पितृ प्रसन्न होकर अपने वंशजों पर आशीर्वाद बनाए रखते हैं. पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिए और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने के लिए पितृ कार्येषु अमावस्या के दिन अपने पितरों पूर्वजों के निमित्त धार्मिक अनुष्ठान, तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध कर्म करना विशेष फलदाई बताया गया है.
अमावस्या तिथि पर पितृ कार्य करने का महत्व
धार्मिक ग्रंथो के अनुसार इस दिन पितृ कार्य करने से पितृ दोष दूर हो जाता है. कहा जाता है कि इस दिन पितरों के निमित्त अनुष्ठान करने से जहां पितृ प्रसन्न होकर वंशजों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं. वहीं, भगवान विष्णु मोक्ष प्राप्ति के लिए आशीर्वाद देते हैं. साल 2024 में नवंबर के आखिरी दिनों में पितृ कार्येषु अमावस्या मनाई जाएगी. हिंदू धर्म में यह तिथि पितरों को समर्पित है.
नाराज पितरों को खुश करने के उपाय
कि मार्गशीर्ष मास में पड़ने वाली पितृ कार्येषु अमावस्या के दिन अपने पूर्वजों पितरों के निमित्त कोई भी धार्मिक अनुष्ठान करने पर पितृ दोष से मुक्ति मिल जाती है. भगवान विष्णु को यह मास बेहद ही प्रिय होता है. इस दिन पितृ दोष से मुक्ति के लिए तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध कर्म आदि करने से विशेष लाभ होता है.
सारी समस्याएं-दुख होंगे दूर
वह बताते हैं कि जो व्यक्ति श्राद्ध पक्षों में किसी कारण वश अपने पितरों के निमित्त कोई अनुष्ठान, यज्ञ नहीं कर पाए तो इस दिन करने से उनके नाराज पितृ प्रसन्न हो जाएंगे और अपने वंशजों को आशीर्वाद प्रदान करेंगे. पंडित श्रीधर शास्त्री बताते हैं कि पितृ कार्येषु अमावस्या पर किए गए अनुष्ठानों से नाराज पितृ प्रसन्न हो जाते हैं. साथ ही भगवान विष्णु की कृपा से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. इससे जीवन में आने वाली सभी समस्याएं-दुख आदि भगवान विष्णु के आशीर्वाद से दूर हो जाते हैं.
दीपक जलाने के लिए तेल या घी! क्या ज्यादा शुभ होता है? 99% लोग इसे जलाते समय करते हैं गलती, कहीं आप भी तो नहीं...
23 Nov, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
कार्तिक मास भक्तों के लिए दीप आराधना का खास महत्व रखता है. दीप को कैसे जलाना चाहिए? किस प्रकार के तेल का उपयोग करना चाहिए? इन तेलों का महत्व क्या है? चित्तूर जिले के पुजारी श्रीनिवास स्वामी ने लोकल 18 के साथ इस विषय पर विस्तार से चर्चा की. दीप को जीवात्मा का प्रतीक और परमात्मा का रूप माना जाता है. इसलिए देवता की पूजा से पहले दीप जलाया जाता है. हिंदू परंपरा के अनुसार, किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत दीप जलाने से करना पवित्र माना जाता है.
दीप जलाने के लाभ
जहां रोज दीप जलाया जाता है, वहां सुख-समृद्धि, ज्ञान और विकास होता है. साथ ही, अपशकुन दूर रहते हैं. श्रीनिवास स्वामी बताते हैं कि दीप आराधना दो कुंडों में करनी चाहिए. एक कुंड में गाय का घी और दूसरे कुंड में तिल का तेल डालकर दीप जलाने से जल्दी शुभ परिणाम मिलते हैं.
दीप में किस तेल का उपयोग करें
बाजार में कई प्रकार के तेल उपलब्ध हैं, लेकिन हिंदू परंपरा के अनुसार, दीप आराधना के लिए गाय का घी और तिल का तेल सर्वोत्तम माने जाते हैं. श्रीनिवास स्वामी बताते हैं कि दीप जलाने के लिए एक ही बाती का उपयोग नहीं करना चाहिए, कम से कम दो बातियों का उपयोग करना चाहिए. पुरुष दीप जलाते समय तीन बातियों का उपयोग करें तो अधिक शुभ होगा, वहीं महिलाएं एक कुंड में 5 बातियां और दूसरे कुंड में 5 बातियां रखें, कुल मिलाकर 10 बातियां जलाना शुभ होता है.
दीप जलाने की दिशा
दीप को उत्तर दिशा में जलाने से धन की प्राप्ति होती है और पूर्व दिशा में जलाने से कीर्ति और प्रतिष्ठा बढ़ती है. श्रीनिवास स्वामी ने बताया कि दीप आराधना के समय पूजा घर में बड़े विग्रह नहीं रखने चाहिए, बल्कि छोटे विग्रह ही रखने चाहिए. नए वस्त्र पर चावल रखकर, उस पर तामलपत्र रखकर, विग्रह को उस पर रखकर पूजा करना श्रेष्ठ माना जाता है.
पूजा का महत्व
जहां दीप रोज जलता है, वहां सभी शुभ फल प्राप्त होते हैं और लक्ष्मी का वास होता है. श्रीनिवास स्वामी के अनुसार, दीप आराधना करने से भक्तों को भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति मिलती है.
भगवान विष्णु के प्रिय माह में पड़ने वाली एकादशी देती है विशेष फल, इस तरह करें पूजा, दूर होंगे सारे कष्ट
23 Nov, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
धार्मिक ग्रंथो के अनुसार मार्गशीर्ष मास भगवान विष्णु को सबसे अधिक प्रिय मास है. मार्गशीर्ष महीने में भगवान विष्णु की आराधना, धार्मिक अनुष्ठान, उनके मंत्रो का स्मरण, विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ और उनके निमित्त व्रत आदि करने पर संपूर्ण से अधिक फल की प्राप्ति होने की मान्यता है. मार्गशीर्ष मास में किए गए धार्मिक कार्यों से भगवान विष्णु अधिक प्रसन्न होते हैं और मनवांछित फल प्रदान करते हैं.
इस दिन का है खास महत्व
हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व बताया गया है. हिंदू कैलेंडर के अनुसार साल भर में कुल 24 एकादशी आती हैं जिनका अपना महत्व होता है. कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में आने वाली सभी एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती हैं. मार्गशीर्ष मास कृष्ण पक्ष की उत्पन्ना एकादशी का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है. पौराणिक कथाओं के अनुसार मार्गशीर्ष मास कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को देवी एकादशी का जन्म हुआ था.
आने वाली है विशेष एकादशी
उत्पन्ना एकादशी के महत्व की ज्यादा जानकारी लोकल 18 को देते हुए हरिद्वार के ज्योतिषी पंडित श्रीधर शास्त्री बताते हैं कि एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है. इस दिन एकादशी का व्रत विधि विधान से करने पर सभी पाप खत्म होने और मोक्ष की प्राप्ति होने की धार्मिक मान्यता है. साल भर में कुल 24 एकादशी का आगमन होता है. सभी एकादशी का अलग-अलग महत्व बताया गया है.
हिंदू धर्म में भगवान विष्णु के प्रिय मार्गशीर्ष मास में उत्पन्ना एकादशी का विशेष महत्व है. साल 2024 में उत्पन्ना एकादशी का व्रत 26 नवंबर को किया जाएगा. धार्मिक ग्रंथो के अनुसार मार्गशीर्ष मास कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को भगवान विष्णु के अंश से देवी एकादशी का जन्म हुआ था. इस दिन विधि विधान से एकादशी का व्रत करने वाले भक्तों के सभी पाप खत्म हो जाते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है.
भगवान विष्णु ने मोक्ष का दिया था वरदान
देवी एकादशी का जन्म भगवान विष्णु के अंश से हुआ था. मार्गशीर्ष मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी को विधि विधान से एकादशी का व्रत करने से जन्मों जन्म के सभी पाप खत्म हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस दिन भगवान विष्णु के मंदिर या घर के देवालय में बैठकर श्रद्धा भक्ति भाव से विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करने, भगवान विष्णु के मंत्रों का उच्चारण करने, हवन यज्ञ करने से परिवार में सुख शांति बनी रहती है और भगवान विष्णु सदैव आशीर्वाद बनाए रखते हैं.
इस दिन चावल का ना करें प्रयोग
पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन देवी एकादशी ने भगवान विष्णु से वरदान मांगा था कि जो साधक, भक्त एकादशी के व्रत को विधि विधान से करेगा उसके सभी पाप खत्म हो जाएंगे और उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी. उत्पन्ना एकादशी को सूर्योदय से पूर्व स्नानादि करके व्रत का संकल्प करें और पूरे दिन व्रत करके शाम को विष्णु भगवान के निमित्त पूजा अर्चना करें. एकादशी के व्रत में चावल या चावल से बनी सामग्री पूर्ण रूप से वर्जित होती है. एकादशी में चावल का उपयोग करने से भगवान विष्णु नाराज हो जाते हैं और जीवन में दुख, समस्याएं, परेशानी आती रहती हैं.
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
23 Nov, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- इष्ट-मित्र सुखवर्धक होंगे, व्यवसायिक क्षमता में वृद्धि, कार्य योजना फलीभूत होगी।
वृष राशि :- मनोवृत्ति संवेदनशील रहे, कार्यगति अनुकूल रहे, चिन्तायें कम होंगी, ध्यान दें।
मिथुन राशि :- मनोवृत्ति संवेदनशील रहे, कार्यगति अनुकूल रहे, चिन्तायें कम होंगी।
कर्क राशि :- कुटुम्ब में शत्रु समाचार, दैनिक व्यवसाय में अनुकूलता होगी ध्यान दें।
सिंह राशि :- मान-प्रतिष्ठा, प्रभुत्व वृद्धि, कार्य-व्यवसाय में संतोष, स्त्री-वर्ग से कार्य सफल होगा।
कन्या राशि :- समय अनुकूल नहीं विशेष कार्य स्थगित रखें, लेन-देन के मामले में हानि होगी।
तुला राशि :- समय साधारण गति से बीते, व्यवसाय में प्रगति, स्त्री-वर्ग से प्रीत होगी।
वृश्चिक राशि :- प्रबलता, प्रभुत्व वृद्धि, कार्य-कुशलता से संतोष एवं योजनायें बनेंगी ध्यान दें।
धनु राशि :- मनोबल उत्साहवर्धक होगा, सोचे हुये कार्य समय पर बनेंगे किन्तु धोखे से बचें।
मकर राशि :- तनाव, क्लेश व अशांति, मानसिक विभ्रम, स्त्री-शरीर कष्ट होगा ध्यान दें।
कुंभ राशि :- समय अनुकूल नहीं, विशेष कार्य स्थगित रखें, लेन-देन के मामले में हानि हो।
मीन राशि :- लेन-देन के मामले में हानि, अनावश्यक विवाद कष्टप्रद होगा, समय अनुकूल नहीं।
ऐसे लक्षणों वाले पुरुष होते हैं राजा, गरुड़ पुराण में भगवान विष्णु ने बताई हैं विशेषताएं, क्या आप में हैं वे खासियतें
22 Nov, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
व्यक्ति जब जन्म लेता है तो उसके साथ ही उसका भाग्य भी जुड़ जाता है. ग्रह, नक्षत्रों की स्थिति से उसके पूरे जीवन के बारे में भविष्यवाणी की जा सकती है. वह व्यक्ति धनी होगा या दरिद्र, राजा होगा या रंग, सुखी होगा या दुखी, रोगी होगा या निरोगी. ज्योतिषशास्त्र के अलावा गरुड़ पुराण में भी बताया गया है कि व्यक्ति के रूप, रंग, आकार आदि के आधार पर वह कैसा हो सकता है. शरीर की बनावट के आधार पर आप जान सकते हैं कि वह राजा होगा या रंक, दीर्घायु होगा या अल्पायु. भगवान विष्णु ने गरुड़ पुराण में पुरुषों के शुभ लक्षणों के बारे में बताया है. आइए इसके बारे में जानते हैं विस्तार से.
ऐसे लक्षण वाले पुरुष होते हैं राजा
गरुड़ पुराण में भगवान श्रीहरि बताते हैं कि जिस पुरुष के हाथ और पैर के तलों में पसीना नहीं होता है, वे पसीना रहित होते हैं, कमल के अंदर के भाग के समान कोमल और खून के समान लाल रंग लिए होते हैं. उनकी अंगुलियां सटी हुई, नाखून तांबे के रंग के समान थोड़े लाल, पांव सुंदर और नसों से रहित, लेकिन कछुए की तरह उन्नत हों, ऐसा पुरुष श्रेष्ठ राजा की तरह होता है. जिसके शरीर में कम रोम होते हैं, एक रोम छिद्र से एक रोम निकला हो, वैसा शरीर वाला राजा या महात्मा माना जाता है
ऐसे लोग होते हैं दरिद्र
जिन लोगों के हाथ और पैर पीले रंग के होते हैं, नाखून सफेद रंग के हों और नसों से भरे हुए हों, सूप के समान पांव हो, उनकी अंगुलियां दूर-दूर हों, ऐसे लोग दरिद्र और दुखी हो सकते हैं. ऐसे लोग जिनके रोम छिद्र से तीन-तीन रोम निकलते हैं, ऐसा व्यक्ति भी दरिद्र हो सकता है.
ऐसे लोग होते हैं रोगी और दरिद्र
जिस पुरुष का शरीर कमजोर और मांस रहित होता है, उसे रोगी माना जाता है. जिनका पेट सपाट होता है, वे भोग से समृद्ध होते हैं. सांप के समान या जिनका पेट बाहर निकला हुआ हो, वे दरिद्र हो सकते हैं.
ऐसे जान सकते हैं उम्र
गरुड़ पुराण के अनुसार, जिस व्यक्ति के ललाट पर कान तक दो विस्तृत रेखाएं हों, उसकरी उम्र 70 वर्ष हो सकती है. यदि ललाट पर ऐसी ही तीन रेखाएं हों, तो उसकी आयु 60 साल हो सकती है. जिन लोगों के ललाट पर कोई रेखा नहीं होती है, उनकी उम्र 40 वर्ष तक मानी जा सकती है.
ऐसे लोगों की होती है अकाल मृत्यु
जिन लोगों के ललाट पर टूटी हुई या छिन्न भिन्न रेखाएं होती हैं, उनकी अकाल मृत्यु होने की आशंका रहती है.
ये लोग जीते हैं 100 साल
जिन लोगों के ललाट पर त्रिशूल या फरसे के समान कोई चिह्न होता है, तो वे लोग 100 साल तक जीवित रह सकते हैं. उनके पास धन, पुत्र आदि का सुख होता है. जिन लोगों के हाथ में आयु रेखा स्पष्ट दिखाई देती है, वे लोग दीर्घायु होते हैं.
काल भैरव जयंती पर लगाएं ये प्रिय भोग, शत्रुओं का होगा नाश, पुरी होगी मन की मुराद!
22 Nov, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मार्गशीर्ष मास आरंभ हो चुका है. कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कालभैरव अष्टमी का पर्व मनाया जाता है. 22 नवंबर, बुधवार को कालभैरव अष्टमी है. शिवपुराण के अनुसार, भगवान शिव के क्रूर रूप को भगवान काल भैरव के नाम से जाना जाता है. शिव महापुराण के अनुसार जब भगवान महेश, भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा अपनी श्रेष्ठता और पराक्रम के बारे में चर्चा कर रहे थे, तो भगवान शिव भगवान ब्रह्मा द्वारा कहे गए झूठ के कारण क्रोधित हो गए. इसके परिणाम के रूप में, भगवान कालभैरव ने क्रोध में भगवान ब्रह्मा के पांचवे सिर को काट दिया. इसलिए इसी तिथि पर शिवजी के क्रोध से कालभैरव अष्टमी का पर्व मनाया जाता है.
श्री लिंगपुराण अध्याय 106 के अनुसार दारुक नामक अनुसार ने जब ब्रह्मा से यह वरदान प्राप्त किया कि मेरी मृत्यु सिर्फ किसी स्त्री से हो तो बाद में उसका वध करने के लिए माता पार्वती का एक रूप देवी काली प्रकट हुई. असुर को भस्म करने के बाद मां काली का क्रोध शांत ही नहीं हो रहा था तब उस क्रोध को शांत करने के लिए शिवजी बीच में आए परंतु शिवजी के 52 टुकड़े हो गए, वही 52 भैरव कहलाए. तब 52 भैरव ने मिलकर भगवती के क्रोध को शांत करने के लिए विभिन्न मुद्राओं में नृत्य किया तब भगवती का क्रोध शांत हो गया. इसके बाद भैरवजी को काशी का आधिपत्य दे दिया तथा भैरव और उनके भक्तों को काल के भय से मुक्त कर दिया तभी से वे भैरव, ‘कालभैरव’ भी कहलाए.
भैरव की सवारी कुत्ता : काले रंग के कुत्ते को काल भैरव की सवारी माना जाता है, हिंदू मान्यता के अनुसार काले कुत्ते को रोटी खिलाने से काल भैरव प्रसन्न होते हैं और व्यक्ति आकस्मिक मृत्यु के भय से दूर रहता है.
काल भैरव का भोग : वैसे तो भगवान कालभैरव को किसी भी चीज का भोग लगा सकते हैं, लेकिन भगवान काल भैरव को कुछ चीजें अत्यंत प्रिय हैं जिन्हें भोग स्वरुप पाकर भैरव अत्यंत प्रसन्न होते हैं एवं व्यक्ति के समस्त संकट, मृत्युभय एवं आर्थिक संकट आदि सभी खत्म कर देते हैं,आइये जानते हैं कि भैरव अष्टमी पर उन्हें क्या भोग अर्पित करना चाहिये.
काल भैरव को चढ़ाएं ये चीजें:
कालभैरव अष्टमी के दिन काल भैरव के सात्विक भोग में हलवा, खीर, गुलगुले (मीठे पुए) जलेबी, फल आदि अवश्य शामिल करें.
कालभैरव अष्टमी के दिन काल भैरव को पान, सुपारी, लौंग, इलायची, मुखवास आदि चीजें भी चढ़ाईं जाती हैं.
काल भैरव को मदिरा का भी भोग लगाया जाता है. इसलिए उनके भोग में मदिरा अवश्य शामिल करें.
भगवान काल भैरव की पूजा के लिए धूप, दीप और अगरबत्ती जलाएं और काल भैरव की आरती गाएं. भगवान काल भैरव से अपनी मनोकामना के लिए प्रार्थना करें.
भगवान काल भैरव को भोग लगाने के बाद गरीबों को भोजन जरूर खिलाएं.
काल भैरव जयंती का महत्व
काल भैरव जयंती के दिन भगवान काल भैरव की पूजा करने से भक्तों को धन-दौलत की प्राप्ति होती है और शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है. जीवन में रोगों से मुक्ति मिलती है और भय के साथ चिंता भी दूर होती है. मान्यता है कि प्रभु की उपासना करने से जातक की सभी मुरादें पूरी होती हैं और शुभ फल की प्राप्ति होती है. इसके अलावा घर में भी सुख-शांति बनी रहती है.
कब है अगहन की मासिक शिवरात्रि? निशिता काल में होगी शिव पूजा
22 Nov, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मासिक शिवरात्रि का व्रत हर माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को रखते हैं. इस समय मार्गशीर्ष यानी अगहन का कृष्ण पक्ष चल रहा है, 14वीं तिथि को मासिक शिवरात्रि है. मासिक शिवरात्रि के दिन व्रत रखकर भगवान शिव की विधि विधान से पूजा करते हैं. इस दिन आप पूरे समय भगवान शिव की पूजा अर्चना कर सकते हैं. लेकिन मासिक शिवरात्रि पर निशिता पूजा का मुहूर्त विशेष होता है. मार्गशीर्ष या अगहन का मासिक शिवरात्रि पर शोभन योग बनेगा. कि अगहन मासिक शिवरात्रि कब है? मासिक शिवरात्रि की पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है?
अगहन मासिक शिवरात्रि 2024
वैदिक पंचांग के अनुसार, इस साल अगहन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 29 नवंबर शुक्रवार को सुबह 8 बजकर 39 मिनट पर शुरू होगी. इस तिथि की समाप्ति अगले दिन 30 नवंबर शनिवार को सुबह 10 बजकर 29 मिनट पर होनी है. ऐसे में अगहन मासिक शिवरात्रि 29 नवंबर दिन शुक्रवार को मनाई जाएगी.
अगहन मासिक शिवरात्रि 2024 मुहूर्त
अगहन की मासिक शिवरात्रि की निशिता पूजा के लिए आपको 54 मिनट का शुभ मुहूर्त प्राप्त होगा. उस रात शिव पूजा का शुभ मुहूर्त 11 बजकर 43 मिनट से देर रात 12 बजकर 33 मिनट तक है. यह मुहूर्त उन लोगों के लिए है जो निशिता पूजा करना चाहते हैं.
जो लोग दिन में मासिक शिवरात्रि की पूजा करना चाहते हैं, वे ब्रह्म मुहूर्त में या सूर्योदय के बाद स्नान करके शिव पूजा कर सकते हैं. शिवरात्रि के दिन ब्रह्म मुहूर्त 05:07 ए एम से 06:01 ए एम तक है. उस दिन का शुभ मुहूर्त यानी अभिजीत मुहूर्त 11 बजकर 48 मिनट से दोपहर 12 बजकर 30 मिनट तक है. अगहन मासिक शिवरात्रि पर सूर्योदय 6 बजकर 55 मिनट पर होगा.
शोभन योग और स्वाति नक्षत्र में अगहन शिवरात्रि
अगहन की मासिक शिवरात्रि के दिन शोभन योग प्रात:काल से लेकर शाम 4 बजकर 34 मिनट तक है. वहीं स्वाती नक्षत्र प्रात:काल से लेकर सुबह 10 बजकर 18 मिनट तक है. उसके बाद विशाखा नक्षत्र है.
अगहन शिवरात्रि पर लगेगी भद्रा
शिवरात्रि के दिन भद्रा का साया है, जिसका वास स्थान पाताल लोक है. शिवरात्रि व्रत के दिन भद्रा सुबह 8 बजकर 39 मिनट से लग रही है, जो रात 9 बजकर 38 मिनट तक रहेगी. हालांकि शिव पूजा में भद्रा का स्थान नहीं है और न ही राहुकाल देखा जाता है क्योंकि भगवान शिव स्वयं महाकाल हैं.
मासिक शिवरात्रि का महत्व
मासिक शिवरात्रि व्रत और शिव पूजा करने से व्यक्ति की मनोकामनाएं पूरी होती हैं. उनके दुख, संकट दूर होते हैं और पाप भी मिटता है. इस दिन भगवान शिव के मंत्रों का जाप करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है. मासिक शिवरात्रि पर आप रुद्राभिषेक करा सकते हैं. इससे अकाल मृत्यु का भय खत्म होता है.
सच या मिथ, शनि की साढ़ेसाती में मिलते हैं सिर्फ कष्ट! इन लोगों को सतर्क रहने की जरूरत
22 Nov, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
शनि की ढैया या फिर साढ़ेसाती, ये शब्द सुनते ही लोग डरना शुरू कर देते हैं. अगर पहले से पता चल जाए कि किसी विशेष राशि पर शनि की ढैया आने वाली है या फिर किसी व्यक्ति पर साढ़ेसाती आने वाली है तो वह व्यक्ति पहले से ही डरना शुरू कर देता है. उसे लगता है कि अब तो जीवन में काफी कष्ट आने वाला है. शनि महाराज तो अब छोड़ेंगे नहीं. लेकिन, ऐसी धारणा अमूमन तौर पर गलत है. आइए जानते हैं…
झारखंड की राजधानी रांची के ज्योतिष आचार्य संतोष कुमार चौबे (ज्योतिष शास्त्र में रांची यूनिवर्सिटी से गोल्ड मेडलिस्ट) ने लोकल 18 को बताया कि लोगों के बीच यह बिल्कुल ही गलत धारणा है कि शनि महाराज कष्ट देने आते हैं. अगर वह साढ़ेसाती या फिर ढैया के समय आपकी राशि में आते हैं तो यह एक अच्छी बात होती है.
पहले जानिए क्या होती है ढैया या साढ़ेसाती
चंद्रमा से अष्टम या चतुर्थ राशि में जब शनि जाते हैं तो उसको ढैया कहा जाता है और जब चंद्रमा और चंद्रमा के आगे और पीछे वाली राशि में शनि का प्रभाव पड़ता है तो उसे शनि का साढ़ेसाती बोलते हैं. एक राशि में शनि 2.5 साल रहते हैं. ऐसे में चंद्रमा में 2.5 साल और उसके आगे पीछे के ढाई साल मिलकर 7.5 साल की साढ़ेसाती होती है.
कि ऐसे में जब शनि भगवान आपकी राशि में आते हैं तो इसका मतलब वह आप पर पैनी नजर रखते हैं. या अगर आप कुछ गलत करते हैं तो आपको पनिशमेंट देते हैं और आपको सबक सिखाते हैं कि ऐसा काम दोबारा मत करो, वरना ऐसा होगा. लेकिन लोग इसको समझते नहीं है और उन्हें लगता है कि शनि हमें कष्ट दे रहे हैं. इसके अलावा जब साढ़ेसाती आती है तो वह 7.5 साल तक आपके ऊपर नजर रखेंगे. मान लीजिए अगर आपने इस अवधि के पहले बहुत अच्छा काम किया है और इसका फल आपको नहीं मिल पाया है या किसी ने आपको धोखा दिया है तो इस समय शनि न्याय करेंगे. आपको आपका हक मिलेगा. ऐसी अवधि में तो कुछ लोग करोड़पति और अरबपति तक भी बन जाते हैं. इस अवधि में कई रंक से राजा भी बन गए हैं.
इन लोगों को डरने की जरूरत नहीं
कि जिन लोगों ने कभी किसी का बुरा नहीं किया, चोरी नहीं की या फिर कोई ऐसा काम नहीं किया. जिससे सामने वाले को ठेस पहुंचे तो वैसे लोगों को बिल्कुल भी डरने की जरूरत नहीं है, लेकिन किसी ने धोखा दिया या हमेशा गलत काम करता है. वैसे लोगों को तो डरने की जरूरत है, क्योंकि शनि भगवान न्याय करते हैं और उसका दंड उसी समय देते हैं. इसलिए ऐसा धारणा एकदम गलत है कि शनि महाराज कष्ट देने के लिए आते हैं, कष्ट देना ना देना आपके कर्मों पर निर्भर करता है.
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
22 Nov, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- दूसरों के झगड़ों में फंसने से बचिये, कार्य अवरोध होगा ध्यान अवश्य रखें।
वृष राशि :- धन देने पर वापिस न मिले, कहीं मानसिक बेचैनी से क्लेश अवश्य ही होगा।
मिथुन राशि :- स्त्री-वर्ग से हर्ष-उल्लास, भोग-ऐश्वर्य की प्राप्ति हो तथा कार्य वृद्धि होगी।
कर्क राशि :- तनाव, क्लेश व अशांति, असमंजस, मानसिक विभ्रम, उद्विघ्नता बनेगी, ध्यान दें।
सिंह राशि :- दैनिक कार्यवृत्ति में सुधार, सफलता के साधन जुटायें, लाभ अवश्य ही होगा।
कन्या राशि :- स्त्री-वर्ग से सुख चिन्तायें कम हों, स्थिरतापूर्वक कार्य बन जायेंगे, ध्यान दें।
तुला राशि :- बिगड़े हुये कार्य बनेंगे, स्थिति में सुधार होगा, चिन्तायें कम हों, लाभ होगा।
वृश्चिक राशि :- स्थिति में सुधार, नियंत्रण करने में सफल होंगे, कुछ योजनायें पूर्ण अवश्य होंगी।
धनु राशि :- धन का व्यय, हीन भावना उत्पन्न होगी, कार्य अवरोध होगा धैर्य के साथ आगे बढ़ें।
मकर राशि :- स्त्री-शरीर कष्ट, मानसिक बेचैनी, कुटुम्ब की समस्यायें सुलझेंगी ध्यान दें।
कुंभ राशि :- कार्य-व्यवसाय में नवीन योजनायें बनेंगी, सफलता के साधन अवश्य जुटायें।
मीन राशि :- आशानुकूल सफलता से हर्ष, कार्यवृत्ति में सुधार, चिन्तायें कम होंगी ध्यान दें।
सबरीमाला मंदिर का इतिहास
21 Nov, 2024 07:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
दक्षिण भारत का विश्वप्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर भगवान अयप्पा को समर्पित है। भगवान अयप्पा शिवजी और विष्णु जी के पुत्र माने जाते हैं। इनके जन्म और पालन की कथा बहुत रोचक है।
इनके पुत्र हैं भगवान अयप्पा
भगवान अयप्पा जगपालनकर्ता भगवान विष्णु और शिवजी के पुत्र हैं। दरअसल, मोहिनी रूप में भगवान विष्णु जब प्रकट हुए, तब शिवजी उनपर मोहित हो गए और उनका वीर्यपात हो गया। इससे भगवान अयप्पा का जन्म हुआ। भगवान अयप्पा की पूजा सबसे अधिक दक्षिण भारत में होती है हालांकि इनके मंदिर देश के कई स्थानों पर हैं जो दक्षिण भारतीय शैली में ही निर्मित होते हैं।
इसलिए अयप्पा कहलाते हैं हरिहरन
भगवान अयप्पा को ‘हरिहरन’ नाम से भी जाना जाता है। हरि अर्थात भगवान विष्णु और हरन अर्थात शिव। हरि और हरन के पुत्र अर्थात हरिहरन। इन्हें मणिकंदन भी कहा जाता है। यहां मणि का अर्थ सोने की घंटी से है और कंदन का अर्थ होता है गर्दन। अर्थात गले में मणि धारण करनेवाले भगवान। इन्हें इस नाम से इसलिए पुकारा जाता है क्योंकि इनके माता-पिता शिव और मोहिनी ने इनके गले में एक सोने की घंटी बांधी थी।
इन्होंने किया अयप्पा स्वामी का पालन
पौराणिक कथाओं के अनुसार, अयप्पा के जन्म के बाद मोहिनी बने भगवान विष्णु और शिवजी ने इनके गले में स्वर्ण कंठिका पहनाकर इन्हें पंपा नदी के किनारे पर रख दिया था। तब पंडालम के राजा राजशेखर ने इन्हें अपना लिया और पुत्र की तरह इनका लालन-पालन किया। राजा राजशेखर संतानहीन थे। वर्तमान समय में पंडालम केरल राज्य का एक शहर है।
तब माता का मोह हो गया खत्म
जब अयप्पा राजा के महल में रहने लगे, उसके कुछ समय बाद रानी ने भी एक पुत्र को जन्म दिया। अपना पुत्र हो जाने के बाद रानी का व्यवहार दत्तक पुत्र अयप्पा के लिए बदल गया। राजा राजशेखर, अयप्पा के प्रति अपनी रानी के दुर्व्यवहार को समझते थे। इसके लिए उन्होंने अयप्पा से माफी मांगी।
रानी ने रचा ढोंग
रानी को इस बात का डर था कि राजा अपने दत्तक पुत्र को बहुत स्नेह करते हैं, कहीं वे अपनी राजगद्दी उसे ही न दे दें। ऐसे में रानी ने बीमारी का नाटक किया और अयप्पा तक सूचना पहुंचाई कि वह बाघिन का दूध पीकर ही ठीक हो सकती हैं। उनकी चाल वन में रह रही राक्षसी महिषी द्वारा अयप्पा की हत्या कराने की थी। अयप्पा अपनी माता के लिए बाघिन का दूध लेने वन में गए। जब वहां महिषी ने उन्हें मारना चाहा तो अयप्पा ने उसका वध कर दिया और बाघिन का दूध नहीं लाए बल्कि बाघिन की सवारी करते हुए,मां के लिए बाघिन ही ले आए।
बाघिन की सवारी करते हुए आए बाहर
जब अयप्पा बाघिन की सवारी करते हुए वन से बाहर आए तो राज्य के सभी लोग उन्हें जीवित और बाघिन की सवारी करते देखकर हैरान रह गए। सभी ने अयप्पा के जयकारे लगाए। तब राजा समझ गए कि उनका पुत्र कोई साधारण मनुष्य नहीं है। इस पर उन्होंने रानी के बुरे बर्ताव के लिए उनसे क्षमा मांगी। पिता को परेशान देखकर अयप्पा ने राज्य छोड़ने का निर्णय लिया और पिता से सबरी (पहाड़ियों) में मंदिर बनवाने की बात कहकर स्वर्ग चले गए। मंदिर बनवाने के पीछे उनका उद्देश्य पिता के अनुरोध पर पृथ्वी पर अपनी यादें छोड़ना था।
ऐसे हुआ सबरी में मंदिर का निर्माण
पुत्र की इच्छानुसार राजा राजशेखर ने सबरी में मंदिर का निर्माण कराया। मंदिर निर्माण के बाद भगवान परशुराम ने अयप्पा की मूरत का निर्माण किया और मकर संक्रांति के पावन पर्व पर उस मूरत को मंदिर में स्थापित किया। इस तरह भगवान अयप्पा का मंदिर बनकर तैयार हुआ और तब से भगवान के इस रूप की पूजा हो रही है और मंदिर भक्तों की आस्था का केंद्र है।
इसलिए शिव और विष्णु ने रची लीला
मां दुर्गा द्वारा महिषासुर के वध के बाद जीवित बची उसकी बहन महिषी ने ब्रह्माजी की कठोर तपस्या की। इस तपस्या से प्रसन्न होकर जब ब्रह्मदेव ने उससे वरदान मांगने के लिए कहा तो उसने वर मांगा कि उसकी मृत्यु केवल शिव और विष्णु भगवान के पुत्र के द्वारा ही हो, ब्रह्मांड में और कोई उसकी मृत्यु न कर सके। ऐसा वर उसने इसलिए मांगा क्योंकि ब्रह्माजी ने उसे अमरता का वरदान देने से मना कर दिया था। शिव और विष्णु का पुत्र परिकल्ना से परे था, इसलिए राक्षसी ने यह इच्छा रखी। वरदान मिलते ही उसने उत्पात मचाना शुरू कर दिया। तब भगवान विष्णु को मोहिनी रूप धारण करना पड़ा। ताकि भक्तों का संकट मिटा सकें।
अंगूठा बता देता है आपके अंदर का राज
21 Nov, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सभी को भविष्य में क्या छिपा है यह राज जानने की जिज्ञासा होती है। जन्मकुंडली के साथ ही हाथ की रेखाएं देखकर भी भविष्य के राज जाने जा सकते हैं।
हस्तरेखा विज्ञान में अंगूठे को चरित्र का आइना कहा जाता है। आप इसे देखकर व्यक्ति के बारे में कई गुप्त बातें जान सकते हैं। व्यक्ति की आर्थिक स्थिति, बचत, काम वासना और रोगों का पता भी अंगूठे से लग जाता है।
अंगूठा लंबा
जिनका अंगूठा लंबा होता है वह बुद्धिमान और उदार होते हैं। ऐसे व्यक्ति शौकीन भी खूब होते हैं। अगर अंगूठा तर्जनी उंगली के दूसरे पोर तक पहुंच रहा है तो व्यक्ति नेक होता है और कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाता।
अंगूठा छोटा
अंगूठा छोटा होना अच्छा नहीं माना जाता। ऐसे लोगों के उधार और कर्ज देने से बचना चाहिए क्योंकि पैसा डूबने का डर रहता है। इन्हें जीवन में कई बार हानि उठानी पड़ती और पारिवारिक जीवन में भी उथल-पुथल मचा रहता है।
अंगूठा अधिक चौड़ा
अगर अंगूठा अधिक चौड़ा हो तो व्यक्ति खर्चीले स्वभाव का होता है। ऐसे लोग अक्सर कोई न कोई बुरी लत अपना लेते हैं।
कम खुलने वाला अंगूठा
कम खुलने वाला अंगूठा हस्तरेखा विज्ञान में अच्छा नहीं माना गया है। ऐसे लोगों के हर काम में बाधा आती रहती है और सफलता देर से मिलती है। ऐसे लोग चाहकर भी कमाई के अनुसार बचत नहीं कर पाते हैं।
ऊपर मोटा और गोल हो तो
अगर अंगूठा नीचे पतला और ऊपर मोटा और गोल हो तो ऐसा व्यक्ति शंकालु होते और इन्हे भी अपने काम में बाधाओं का सामना करना पड़ता है। लेकिन हाथ भारी हो तो उन्नति करते हैं।
अंगूठा हो लंबा पतला तो
अंगूठा पतला और लंबा हो तो व्यक्ति शांत स्वभाव का होता है। ऐसे व्यक्ति अपने काम वासना पर नियंत्रण रखने में कुशल होते हैं। इन्हें व्यवहारकुशल भी माना जाता है। ऐसे लोग भावुक भी खूब होते हैं।
ऐसे लोग धनी होते हैं
जिनका अंगूठा ज्यादा खुलता है ऐसे लोग धनी होते हैं। अपने व्यक्तित्व के कारण इन्हें समाज में खूब सम्मान मिलता है।
जीवन की समस्याओं का समाधान बताते हैं यंत्र
21 Nov, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिन्दू धर्म के अनेक ग्रंथों में कई तरह के चक्रों और यंत्रों के बारे में विस्तार से उल्लेख किया गया है। जिनमें राम शलाका प्रश्नावली, हनुमान प्रश्नावली चक्र, नवदुर्गा प्रश्नावली चक्र, श्रीगणेश प्रश्नावली चक्र आदि प्रमुख हैं। कहते हैं इन चक्रों और यंत्रों की सहायता से लोग अपने मन में उठ रहे सवालों, जीवन में आने वाली कठिनाइयों आदि का समाधान पा सकते हैं। इन चक्रों और यंत्रों की सहायता लेकर केवल आम आदमी ही नहीं बल्कि ज्योतिष और पुरोहित लोग भी सटीक भविष्यवाणियां तक कर देते हैं।
श्री राम शलाका प्रश्नावली
श्री राम शलाका प्रश्नावली का उल्लेख गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरित मानस में प्राप्त होता है। यह राम भक्ति पर आधारित है। इस प्रश्नावली का प्रयोग से लोग जीवन के अनेक प्रश्नों का जवाब पाते हैं। इस प्रश्नावली का प्रयोग के बारे कहा जाता है कि सबसे पहले भगवान श्रीराम का स्मरण करते हुए किसी सवाल को मन में अच्छी तरह सोच लिया जाता है।फिर शलाका चार्ट पर दिए गए किसी भी अक्षर पर आंख बंद कर उंगली रख दी जाती है। जिस अक्षर पर उंगली रखी जाती है, उसके अक्षर से प्रत्येक 9वें नम्बर के अक्षर को जोड़ कर एक चौपाई बनती है, जो प्रश्नकर्ता के प्रश्न का उत्तर होती है।
हनुमान प्रश्नावली चक्र
यह बात बहुत कम लोगों को पता है कि हनुमानजी एक उच्च कोटि के ज्योतिषी भी थे। इसका कारण शायद यह हो सकता है कि वे शिव के ग्यारहवें अंशावतार थे, जिनसे ज्योतिष विद्या की उत्पत्ति हुई मानी जाती है। कहते हैं, हनुमानजी ने ज्योतिष प्रश्नावली के 40 चक्र बनाए हैं। यहां भी प्रश्नकर्ता आंख मूंद कर चक्र के नाम पर उंगली रखता है। अगर उंगली किसी लाइन पर रखी गई होती है, तो दोबारा उंगली रखी जाती है। फिर नाम के अनुसार शुभ-अशुभ फल का निराकरण किया जाता है। कहते हैं। रामायण काल के परम दुर्लभ यंत्रों में हनुमान चक्र श्रेष्ठ यंत्रों का सिरमौर है।
नवदुर्गा प्रश्नावली चक्र
अनेक लोग, विशेष देवी दुर्गा के परम भक्त, यह मानते हैं कि नवदुर्गा प्रश्नावली चक्र एक चमत्कारिक चक्र है, जिसे के माध्यम से कोई भी अपने जीवन की समस्त परेशानियों और मन के सवालों का संतोषजनक हल आसानी से पा सकते हैं। इस चक्र के उपयोग की विधि के लिए पहले पांच बार ऊँ ऐं ह्लीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे मंत्र का जप करना पड़ता फिर एक बार या देवी सर्वभूतेषु मातृरुपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: मंत्र का जप कर, आंखें बंद करके सवाल पूछा जाता है और देवी दुर्गा का स्मरण करते हुए प्रश्नावली चक्र पर उंगली घुमाते हुए रोक दिया जाता है, जिस कोष्ठक उंगली होती है। उस कोष्ठक में लिखे अंक के अनुसार फलादेश को जाना जाता है।
श्रीगणेश प्रश्नावली चक्र
हिंदू मान्यता के अनुसार, भगवान गणेश प्रथमपूज्य हैं। वे सभी मांगलिक कार्यों में सबसे पहले पूजे जाते हैं। उनकी पूजा के बिना कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता। श्रीगणेश प्रश्नावली यंत्र के माध्यम से भी लोग अपने जीवन की सभी परेशानियों और सवालों के हल जानने की कोशिश करते हैं। जिसे भी अपने सवालों का जवाब या परेशानियों का हल जानना होता है, वे पहले पांच बार ऊँ नम: शिवाय: और फिर 11 बार ऊँ गं गणपतयै नम: मंत्र का जप करते हैं और फिर आंखें बंद करके अपना सवाल मन में रख भगवान गणेश का स्मरण करते हुए प्रश्नावली चक्र प्रश्नावली चक्र पर उंगली घुमाते हुए रोक देते हैं, जिस कोष्ठक उंगली होती है। उस कोष्ठक में लिखे अंक के अनुसार फलादेश को जाना जाता है।
शिव प्रश्नावली यंत्र
इस यंत्र में भगवान शिव के एक चित्र पर 1 से 7 तक अंक दिए गए होते हैं। श्रद्धालु अपनी आंख बंद करके पूरी आस्था और भक्ति के साथ शिवजी का ध्यान करते हैं और और मन ही मन ऊं नम: शिवाय: मंत्र का जाप कर उंगली को शिव यंत्र पर घुमाते हैं और फिर उंगली घुमाते हुए रोक देते हैं, जिस कोष्ठक उंगली होती है। उस कोष्ठक में लिखे अंक के अनुसार फलादेश को जाना जाता है1
इन प्रश्नावलियों और यंत्रों के अलावा अनेक लोग साईं प्रश्नावली का उपयोग भी अपने मन में उठ रहे सवालों का जवाब पाने के लिए करते हैं।