धर्म एवं ज्योतिष
सबरीमाला मंदिर का इतिहास
12 Dec, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
दक्षिण भारत का विश्वप्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर भगवान अयप्पा को समर्पित है। भगवान अयप्पा शिवजी और विष्णु जी के पुत्र माने जाते हैं। इनके जन्म और पालन की कथा बहुत रोचक है।
इनके पुत्र हैं भगवान अयप्पा
भगवान अयप्पा जगपालनकर्ता भगवान विष्णु और शिवजी के पुत्र हैं। दरअसल, मोहिनी रूप में भगवान विष्णु जब प्रकट हुए, तब शिवजी उनपर मोहित हो गए और उनका वीर्यपात हो गया। इससे भगवान अयप्पा का जन्म हुआ। भगवान अयप्पा की पूजा सबसे अधिक दक्षिण भारत में होती है हालांकि इनके मंदिर देश के कई स्थानों पर हैं जो दक्षिण भारतीय शैली में ही निर्मित होते हैं।
इसलिए अयप्पा कहलाते हैं हरिहरन
भगवान अयप्पा को ‘हरिहरन’ नाम से भी जाना जाता है। हरि अर्थात भगवान विष्णु और हरन अर्थात शिव। हरि और हरन के पुत्र अर्थात हरिहरन। इन्हें मणिकंदन भी कहा जाता है। यहां मणि का अर्थ सोने की घंटी से है और कंदन का अर्थ होता है गर्दन। अर्थात गले में मणि धारण करनेवाले भगवान। इन्हें इस नाम से इसलिए पुकारा जाता है क्योंकि इनके माता-पिता शिव और मोहिनी ने इनके गले में एक सोने की घंटी बांधी थी।
इन्होंने किया अयप्पा स्वामी का पालन
पौराणिक कथाओं के अनुसार, अयप्पा के जन्म के बाद मोहिनी बने भगवान विष्णु और शिवजी ने इनके गले में स्वर्ण कंठिका पहनाकर इन्हें पंपा नदी के किनारे पर रख दिया था। तब पंडालम के राजा राजशेखर ने इन्हें अपना लिया और पुत्र की तरह इनका लालन-पालन किया। राजा राजशेखर संतानहीन थे। वर्तमान समय में पंडालम केरल राज्य का एक शहर है।
तब माता का मोह हो गया खत्म
जब अयप्पा राजा के महल में रहने लगे, उसके कुछ समय बाद रानी ने भी एक पुत्र को जन्म दिया। अपना पुत्र हो जाने के बाद रानी का व्यवहार दत्तक पुत्र अयप्पा के लिए बदल गया। राजा राजशेखर, अयप्पा के प्रति अपनी रानी के दुर्व्यवहार को समझते थे। इसके लिए उन्होंने अयप्पा से माफी मांगी।
रानी ने रचा ढोंग
रानी को इस बात का डर था कि राजा अपने दत्तक पुत्र को बहुत स्नेह करते हैं, कहीं वे अपनी राजगद्दी उसे ही न दे दें। ऐसे में रानी ने बीमारी का नाटक किया और अयप्पा तक सूचना पहुंचाई कि वह बाघिन का दूध पीकर ही ठीक हो सकती हैं। उनकी चाल वन में रह रही राक्षसी महिषी द्वारा अयप्पा की हत्या कराने की थी। अयप्पा अपनी माता के लिए बाघिन का दूध लेने वन में गए। जब वहां महिषी ने उन्हें मारना चाहा तो अयप्पा ने उसका वध कर दिया और बाघिन का दूध नहीं लाए बल्कि बाघिन की सवारी करते हुए,मां के लिए बाघिन ही ले आए।
बाघिन की सवारी करते हुए आए बाहर
जब अयप्पा बाघिन की सवारी करते हुए वन से बाहर आए तो राज्य के सभी लोग उन्हें जीवित और बाघिन की सवारी करते देखकर हैरान रह गए। सभी ने अयप्पा के जयकारे लगाए। तब राजा समझ गए कि उनका पुत्र कोई साधारण मनुष्य नहीं है। इस पर उन्होंने रानी के बुरे बर्ताव के लिए उनसे क्षमा मांगी। पिता को परेशान देखकर अयप्पा ने राज्य छोड़ने का निर्णय लिया और पिता से सबरी (पहाड़ियों) में मंदिर बनवाने की बात कहकर स्वर्ग चले गए। मंदिर बनवाने के पीछे उनका उद्देश्य पिता के अनुरोध पर पृथ्वी पर अपनी यादें छोड़ना था।
ऐसे हुआ सबरी में मंदिर का निर्माण
पुत्र की इच्छानुसार राजा राजशेखर ने सबरी में मंदिर का निर्माण कराया। मंदिर निर्माण के बाद भगवान परशुराम ने अयप्पा की मूरत का निर्माण किया और मकर संक्रांति के पावन पर्व पर उस मूरत को मंदिर में स्थापित किया। इस तरह भगवान अयप्पा का मंदिर बनकर तैयार हुआ और तब से भगवान के इस रूप की पूजा हो रही है और मंदिर भक्तों की आस्था का केंद्र है।
इसलिए शिव और विष्णु ने रची लीला
मां दुर्गा द्वारा महिषासुर के वध के बाद जीवित बची उसकी बहन महिषी ने ब्रह्माजी की कठोर तपस्या की। इस तपस्या से प्रसन्न होकर जब ब्रह्मदेव ने उससे वरदान मांगने के लिए कहा तो उसने वर मांगा कि उसकी मृत्यु केवल शिव और विष्णु भगवान के पुत्र के द्वारा ही हो, ब्रह्मांड में और कोई उसकी मृत्यु न कर सके। ऐसा वर उसने इसलिए मांगा क्योंकि ब्रह्माजी ने उसे अमरता का वरदान देने से मना कर दिया था। शिव और विष्णु का पुत्र परिकल्ना से परे था, इसलिए राक्षसी ने यह इच्छा रखी। वरदान मिलते ही उसने उत्पात मचाना शुरू कर दिया। तब भगवान विष्णु को मोहिनी रूप धारण करना पड़ा। ताकि भक्तों का संकट मिटा सकें।
ग्रहों का भाग्य पर पड़ता है प्रभाव
12 Dec, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
ग्रहों का व्यक्ति के जीवन के साथ-साथ व्यवहार पर भी सीधा प्रभाव पड़ता है। हमारा व्यवहार हमारे ग्रहों की स्थितियों से संबंध रखता है या हमारे व्यवहार से हमारे ग्रहों की स्थितियां प्रभावित होती हैं। अच्छा या बुरा व्यवहार सीधा हमारे ग्रहों को प्रभावित करता है। ग्रहों के कारण हमारे भाग्य पर भी इसका असर पड़ता है। कभी-कभी हमारे व्यवहार से हमारी किस्मत पूरी बदल सकती है।
वाणी-
वाणी का संबंध हमारे पारिवारिक जीवन और आर्थिक समृद्धि से होता है।
ख़राब वाणी से हमें जीवन में आर्थिक नुक्सान उठाना पड़ता है।
कभी-कभी आकस्मिक दुर्घटनाएं घट जाती हैं।
कभी-कभी कम उम्र में ही बड़ी बीमारी हो जाती है।
वाणी को अच्छा रखने के लिए सूर्य को जल देना लाभकारी होता है।
गायत्री मंत्र के जाप से भी शीघ्र फायदा होता है।
आचरण-कर्म
हमारे आचरण और कर्मों का संबंध हमारे रोजगार से है।
अगर कर्म और आचरण शुद्ध न हों तो रोजगार में समस्या होती है।
व्यक्ति जीवन भर भटकता रहता है।
साथ ही कभी भी स्थिर नहीं हो पाता।
आचरण जैसे-जैसे सुधरने लगता है, वैसे-वैसे रोजगार की समस्या दूर होती जाती है।
आचरण की शुद्धि के लिए प्रातः और सायंकाल ध्यान करें।
इसमें भी शिव जी की उपासना से अद्भुत लाभ होता है।
जिम्मेदारियों की अवहेलना
जिम्मेदारियों से हमारे जीवन की बाधाओं का संबंध होता है।
जो लोग अपनी जिम्मेदारियां ठीक से नहीं उठाते हैं उन्हें जीवन में बड़े संकटों, जैसे मुक़दमे और कर्ज का सामना करना पड़ता है।
व्यक्ति फिर अपनी समस्याओं में ही उलझ कर रह जाता है।
अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में कोताही न करें।
एकादशी का व्रत रखने से यह भाव बेहतर होता है।
साथ ही पौधों में जल देने से भी लाभ होता है।
सहायता न करना-
अगर सक्षम होने के बावजूद आप किसी की सहायता नहीं करते हैं तो आपको जीवन में मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
कभी न कभी आप जीवन में अकेलेपन के शिकार हो सकते हैं।
जितना लोगों की सहायता करेंगे, उतना ही आपको ईश्वर की कृपा का अनुभव होगा।
आप कभी भी मन से कमजोर नहीं होंगे।
दिन भर में कुछ समय ईमानदारी से ईश्वर के लिए जरूर निकालें।
इससे करुणा भाव प्रबल होगा, भाग्य चमक उठेगा।
इस तरह के भक्तों के पास रहते हैं भगवान
12 Dec, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
किसी भी वस्तु की चेतनता की पहचान इच्छा, क्रिया अथवा अनुभूति के होने से होती है। अगर किसी वस्तु में ये तीनों नहीं होते हैं, तो उसे जड़ वस्तु कहते हैं और इन तीनों के होने से उसे चेतन वस्तु कहते हैं। मनुष्य में इन तीनों गुणओं के होने से उसे चेतन कहते हैं। मनुष्य के मृत शरीर में इनके न होने से उसे अचेतन अथवा जड़ कहते हैं।
प्रश्न यह उठता है कि जो मनुष्य अभी-अभी इच्छा, क्रिया अथवा अनुभूति कर रहा था और चेतन कहला रहा था, वही मनुष्य इनके न रहने से मृत क्यों घोषित कर दिया गया जबकि वह सशरीर हमारे सामने पड़ा हुआ है? आमतौर पर एक डॉक्टर बोलेगा कि इस शरीर में प्राण नहीं हैं। शास्त्रीय भाषा में, जब तक मानव शरीर में आत्मा रहती है, उसमें चेतनता रहती है। उसमें इच्छा, क्रिया व अनुभूति रहती है। आत्मा के चले जाने से वही मानव शरीर इच्छा, क्रिया व अनुभूति रहित हो जाता है, जिसे आमतौर पर मृत कहा जाता है।
शास्त्रों के अनुसार स्वरूप से आत्मा सच्चिदानन्दमय होती है। सच्चिदानन्द अर्थात सत्+चित्+आनंद। संस्कृत में सत् का अर्थ होता है नित्य जीवन अर्थात् वह जीवन जिसमें मृत्यु नहीं है, चित् का अर्थ होता है ज्ञान जिसमें कुछ भी अज्ञान नहीं है और आनंद का अर्थ होता है नित्य सुख जिसमें दुःख का आभास मात्र नहीं है। यही कारण है कि कोई मनुष्य मरना नहीं चाहता, कोई मूर्ख नहीं कहलवाना चाहता और कोई भी किसी भी प्रकार का दुःख नहीं चाहता।
अब नित्य जीवन, नित्य आनंद, नित्य ज्ञान कहां से मिलेगा? जैसे सोना पाने के लिए सुनार के पास जाना पड़ता है, लोहा पाने के लिए लोहार के पास, इसी प्रकार नित्य जीवन-ज्ञान-आनंद पाने के लिए भगवान के पास जाना पड़ेगा क्योंकि एकमात्र वही हैं जिनके पास ये तीनों वस्तुएं असीम मात्रा में हैं। प्रश्न हो सकता है कि बताओ भगवान मिलेंगे कहां? ये भी एक बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न है। कोई कहता है भगवान कण-कण में हैं, कोई कहता है कि भगवान मंदिर में हैं, कोई कहता है कि भगवान तो हृदय में हैं, कोई कहता है कि भगवान तो पर्वत की गुफा में, नदी में, प्रकृति में वगैरह।
वैसे जिस व्यक्ति के बारे में पता करना हो कि वह कहां रहता है, अगर वह स्वयं ही अपना पता बताए तो उससे बेहतर उत्तर कोई नहीं हो सकता। उक्त प्रश्न के उत्तर में भगवान कहते हैं कि मैं वहीं रहता हूं, जहां मेरा शुद्ध भक्त होता है। चूंकि हम सब के मूल में जो तीन इच्छाएं- नित्य जीवन, नित्य ज्ञान व नित्य आनंद हैं, वे केवल भगवान ही पूरी कर सकते हैं, कोई और नहीं। इसलिए हमें उन तक पहुंचने की चेष्टा तो करनी ही चाहिए।
भगवान स्वयं बता रहे हैं कि वह अपने शुद्ध भक्त के पास रहते हैं। अतः हमें ज्यादा नहीं सोचना चाहिए और तुरंत ऐसे भक्त की खोज करनी चाहिए जिसके पास जाने से, जिसकी बात मानने से हमें भगवद्प्राप्ति का मार्ग मिल जाए। साथ ही हमें यह सावधानी भी बरतनी चाहिए कि कहीं वह भगवद्-भक्त के वेश में ढोंगी न हो। स्कंद पुराण के अनुसार भगवान शिव माता पार्वती से कहते हैं कि कलियुग में ऐसे गुरु बहुत मिलेंगे जो शिष्य का सब कुछ हर लेते हैं, परंतु शिष्य का संताप हर कर उसे सद्माीर्ग पर ले आए ऐसा गुरु विरला ही मिलेगा।
नंदी के बिना शिवलिंग को माना जाता है अधूरा
12 Dec, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भगवान शिव के किसी भी मंदिर में शिवलिंग के आसपास एक नंदी बैल जरूर होता है क्योंा नंदी के बिना शिवलिंग को अधूरा माना जाता है। इस बारे में पुराणों की एक कथा में कहा गया है शिलाद नाम के ऋषि थे जिन्होंाने लम्बेा समय तक शिव की तपस्या की थी। जिसके बाद भगवान शिव ने उनकी तपस्याद से खुश होकर शिलाद को नंदी के रूप में पुत्र दिया था।
शिलाद ऋषि एक आश्रम में रहते थे। उनका पुत्र भी उन्हींक के आश्रम में ज्ञान प्राप्ती करता था। एक समय की बात है शिलाद ऋषि के आश्रम में मित्र और वरुण नामक दो संत आए थे। जिनकी सेवा का जिम्माि शिलाद ऋषि ने अपने पुत्र नंदी को सौंपा। नंदी ने पूरी श्रद्धा से दोनों संतों की सेवा की। संत जब आश्रम से जाने लगे तो उन्होंसने शिलाद ऋषि को दीर्घायु होने का आर्शिवाद दिया पर नंदी को नहीं।
इस बात से शिलाद ऋषि परेशान हो गए। अपनी परेशानी को उन्हों्ने संतों के आगे रखने की सोची और संतों से बात का कारण पूछा। तब संत पहले तो सोच में पड़ गए। पर थोड़ी देर बाद उन्हों।ने कहा, नंदी अल्पायु है। यह सुनकर मानों शिलाद ऋषि के पैरों तले जमीन खिसक गई। शिलाद ऋषि काफी परेशान रहने लगे।
एक दिन पिता की चिंता को देखते हुए नंदी ने उनसे पूछा, ‘क्या बात है, आप इतना परेशान क्योंो हैं पिताजी।’ शिलाद ऋषि ने कहा संतों ने कहा है कि तुम अल्पायु हो। इसीलिए मेरा मन बहुत चिंतित है। नंदी ने जब पिता की परेशानी का कारण सुना तो वह बहुत जोर से हंसने लगा और बोला, ‘भगवान शिव ने मुझे आपको दिया है। ऐसे में मेरी रक्षा करना भी उनकी ही जिम्मेयदारी है, इसलिए आप परेशान न हों।’
नंदी पिता को शांत करके भगवान शिव की तपस्या करने लगे। दिनरात तप करने के बाद नंदी को भगवान शिव ने दर्शन दिए। शिवजी ने कहा, ‘क्याक इच्छास है तुम्हा।री वत्स’. नंदी ने कहा, मैं ताउम्र सिर्फ आपके सानिध्य में ही रहना चाहता हूं।नंदी से खुश होकर शिवजी ने नंदी को गले लगा लिया। शिवजी ने नंदी को बैल का चेहरा दिया और उन्हें अपने वाहन, अपना मित्र, अपने गणों में सबसे उत्तनम रूप में स्वीकार कर लिया।इसके बाद ही शिवजी के मंदिर के बाद से नंदी के बैल रूप को स्थाकपित किया जाने लगा।
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
12 Dec, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- व्यय बाधा, स्वभाव में उद्विघ्नता तथा दुख, कष्ट अवश्य ही होगा, समय का ध्यान अवश्य रखे।
वृष राशि :- किसी आरोप से बचे, कार्यगति मंद रहेगी, क्लेश व अशांति अवश्य बन जाएगी, ध्यान दें।
मिथुन राशि :- योजनाएं पूर्ण होगी, धन लाभ होगा, आशानुकूल सफलता का हर्ष अवश्य ही होगा, ध्यान दें।
कर्क राशि :- इष्ट मित्र सुख वर्धक होगे, कार्यगति में सुधार होवे, विचारे हुए कार्य अवश्य ही बनेंगे।
सिंह राशि :- सामर्थ्य और धन अस्त-व्यस्त हो, सतर्कता से कार्य अवश्य ही निपटा लेवे, ध्यान देवे।
कन्या राशि :- मनोबल उत्साह वर्धक होवे, कार्य गति में सुधार होवे, घरेलू चिताएं कम होगी।
तुला राशि :- मानप्रतिष्ठा के साधन बने, स्त्रीवर्ग से सुख और शांति अवश्य ही बन जाएगी।
वृश्चिक राशि :- अग्नि चोट आदि का भय होगा, व्यर्थ धन का व्यय होगा, रुके कार्य अवश्य ही बनेंगे।
धनु राशि :- तनाव क्लेश व अशांति, मानसिक विभ्रम उद्वेग तथा मानसिक भय बना ही रहेगा।
मकर राशि :- विवाद ग्रस्त होने से बचिएगा, तनाव क्लेश तथा मानसिक अशांति अवश्य ही होगी।
कुंभ राशि :- धन लाभ, आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा, इष्ट मित्र सुखवर्धक अवश्य होगे।
मीन राशि :- भोग ऐश्वर्य की प्राप्ति, समय उल्लास में बीतेगा तथा मनोवृत्ति उत्तम बनेगी, ध्यान रखे।
भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया था ये दिव्य ज्ञान, जानें दुनिया के सबसे बड़े इस ज्ञान के बारे में!
11 Dec, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मोक्षदा एकादशी के नाम से जाना जाता है. इस बार यह एकादशी व्रत 11 दिसंबर को किया जाएगा. इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था. इसलिए मोक्षदा एकादशी के दिन गीता जयंती मनाई जाती है.हर साल मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को गीता जयंती मनाई जाती है, जिसे मोक्षदा एकादशी भी कहा जाता है.
गीता जयंती किस दिन मनाई जाएगी : इस वर्ष गीता जयंती और मोक्षदा एकादशी 11 दिसंबर को मनाई जा रही है. हिंदू पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी की शुरुआत 11 दिसंबर को देर रात 03 बजकर 42 मिनट से होगी और इसका समापन 12 दिसंबर को रात 01 बजकर 9 मिनट पर होगा. उदया तिथि के अनुसार गीता जंयती 11 दिसंबर को मनाई जाएगी.
गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है कि मनुष्य को फल की इच्छा छोड़कर कर्म पर ध्यान देना चाहिए. मनुष्य जैसा कर्म करता है, उसे फल भी उसी के अनुरूप मिलता है. इसलिए व्यक्ति को अच्छे कर्म करते रहना चाहिए. श्रीकृष्ण के अनुसार व्यक्ति को खुद से बेहतर कोई नहीं जान सकता, इसलिए स्वयं का आकलन करना बेहद जरूरी है. गीता कहती है कि व्यक्ति को सही काम करना चाहिए क्योंकि उसने तय कर लिया है कि यह सही है, बिना किसी फल की लालसा के, बिना किसी परिणाम, हानि या लाभ की चिंता किए. इच्छाएं, स्वार्थ और फल की लालसा व्यक्ति को आध्यात्मिक जीवन से दूर कर सकती हैं.
अध्याय 1: अर्जुनविषादयोगः – कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण
अध्याय 2: साङ्ख्ययोगः – गीता का सार
अध्याय 3: कर्मयोगः – कर्मयोग
अध्याय 4: ज्ञानकर्मसंन्यासयोगः – दिव्य ज्ञान
अध्याय 5: कर्मसंन्यासयोगः – कर्मयोग-कृष्णभावनाभावित कर्म
अध्याय 6: आत्मसंयमयोगः – ध्यानयोग
अध्याय 7: ज्ञानविज्ञानयोगः – भगवद्ज्ञान
अध्याय 8: अक्षरब्रह्मयोगः – भगवत्प्राप्ति
अध्याय 9: राजविद्याराजगुह्ययोगः – परम गुह्य ज्ञान
अध्याय 10: विभूतियोगः – श्री भगवान् का ऐश्वर्य
अध्याय 11: विश्वरूपदर्शनयोगः – विराट रूप
अध्याय 12: भक्तियोगः – भक्तियोग
अध्याय 13: क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभागयोगः – प्रकृति, पुरुष तथा चेतना
अध्याय 14: गुणत्रयविभागयोगः – प्रकृति के तीन गुण
अध्याय 15: पुरुषोत्तमयोगः – पुरुषोत्तम योग
अध्याय 16: दैवासुरसम्पद्विभागयोगः – दैवी तथा आसुरी स्वभाव
अध्याय 17: श्रद्धात्रयविभागयोगः – श्रद्धा के विभाग
अध्याय 18: मोक्षसंन्यासयोगः – उपसंहार-संन्यास की सिद्धि
भगवत गीता का प्रथम श्लोक:
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे् समवेता युयुत्सवः .
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय ॥1॥
भावार्थ : धृतराष्ट्र बोले- हे संजय! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में एकत्रित, युद्ध की इच्छावाले मेरे और पाण्डु के पुत्रों ने क्या किया?॥
2024 में इस दिन होगी शादी की आखिरी तारीख, एक महीने नहीं बजेगी शहनाई, 15 दिसंबर से शुरू होगा मलमास
11 Dec, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
वर्तमान में अभी शादियों का सीजन जोरों पर चल रहा है और हर कहीं शादियों की शहनाई और बैंड-बाजे की गूंज सुनाई दे रही है. लेकिन अब 2024 के शादी के सीजन की समाप्ति होने वाली है और जल्दी शादी के सीजन का शोर थमने वाला है. देवउठनी एकादशी से शुरू शादी-विवाह के सीजन पर 14 दिसंबर शाम से 1 महीने तक का विराम लग जाएगा.
आगामी 15 दिसंबर को सूर्य के धनु राशि में प्रवेश के साथ ही मलमास शुरू होगा. इस दौरान एक महीने में शादी विवाह के कार्यक्रम नहीं हो पाएंगे. दिसंबर के मध्य में खरमास के साथ ही मांगलिक और शुभ कार्यों पर एक महीने विराम रहेगा. मलमास में भगवान विष्णु की पूजा की जाएगी. इस दौरान जगह-जगह कथा सुनाई की जाएगी. इससे पहले दिसंबर में बड़े मांगलिक आयोजनों की धूम रहेगी. इसके बाद जनवरी में मकर संक्रांति के बाद से शादियां प्रारंभ होगी.
मकर संक्राति के बाद से शुभ कार्य
कि साल 2025 में मकर संक्राति से त्योहार शुरू होंगे. इसके बाद बसंत पंचमी, शिवरात्रि व होली जैसे प्रमुख त्योहार आएंगे. इससे पहले दिसंबर के मध्य तक कई मांगलिक आयोजन और शादी-विवाह होंगे. 14 जनवरी को मकर संक्रांति रहेगी. पुण्यकाल भी इसी दिन सुबह 7.21 से शाम 5.20 बजे तक रहेगा.
राशि का होगा परिवर्तन
मकर राशि में सूर्य का प्रवेश सुबह 8.55 बजे होगा. 30 जनवरी से 6 फरवरी तक गुप्त नवरात्र, 2 फरवरी को बसंत पंचमी, 26 फरवरी को महाशिवरात्रि, 1 मार्च को फुलेरा-फुलेरा दोज, 13-14 मार्च को होली का पर्व रहेगा. 21 मार्च को शीतला सप्तमी रहेगी. 30 मार्च से चैत्र नवरात्र प्रारंभ होंगे. 12 अप्रैल को हनुमान जयंती 30 अप्रैल को अक्षया तृतीया, 11 को नृसिंह जयंती मनाई जाएगी.
कुंभ मेला जाना है तो फौरन कराएं इन बजट-फ्रेंडली होटल में रूम बुक, टेंट सिटी भी है खास, करीब से देखें अद्भुत नजारा
11 Dec, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
आने वाले नए साल का हर किसी को इंतजार है. यह इंतजार इसलिए भी खास हो जाता है क्योंकि वर्ष 2025 जनवरी महीने में महांकुभ मेला का आयोजन होने वाला है. साल 2025 में कुंभ मेला का आयोजन प्रयागराज में किया जाएगा. प्रत्येक 12 साल में एक बार महाकुंभ मेला आयोजित किया जाता है. नए साल में 13 जनवरी (सोमवार का दिन) को इस धार्मिक महापर्व का शुभारंभ होगा और इसका समापन 26 फरवरी को होगा. पहला स्नान पौष पूर्णिमा के दिन और आखिरी शाही स्नान महाशिवरात्रि के दिन होगा. कुंभ मेले में देश क्या, विदेशों से भी लाखों श्रद्धालु संगम में डुबकी लगाने आते हैं.
यह मेला दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक मेला है, जिसे महापर्व भी कहा जाता है. कुंभ का आयोजन हरिद्वार, उज्जैन, प्रयागराज और नासिक में होता है. यदि आप इस पावन उत्सव का हिस्सा बनना चाहते हैं तो यहां जरूर जाएं. गंगा और यमुना नदी में डुबकी लगाकर अपने सारे पापों को धो सकते हैं. मोक्ष की प्राप्ति कर सकते हैं. प्रयागराज जाने के लिए सभी बड़े शहरों से ट्रेन, सड़क और फ्लाइट उड़ान भरती है. यदि आप यहां पहुंच जाएं तो आपको ठहरने के लिए भी बेस्ट होटल, होमस्टे की सुविधा उचित कीमत पर उपलब्ध मिल जाएगी. हालांकि, महाकुंभ मेला में लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं, इसलिए बेहतर है कि आप पहले से ही होटल, स्टेहोम में अपने लिए कमरे बुक कर लें. आप ऑनलाइन भी होटल सर्च कर सकते हैं.
प्रयागराज जाएं तो कहां ठहरें?
प्रयागराज में आपके लिए ठहरने के कई विकल्प मौजूद हैं. आप कम बजट में भी कई होटलों में से एक अपने लिए चुन सकते हैं. यदि आप महाकुंभ महोत्सव जाना चाहते हैं, तो आप टेंट सिटी में भी रह सकते हैं. प्रयागराज में रहने वाले स्थानीय लोग भी कुंभ और महाकुंभ के दौरान तीर्थयात्रियों को अपने घरों में इस्तेमाल न किए गए कमरे किराए पर देते हैं. शहर में रहने के लिए ये अधिक किफायती विकल्प हो सकते हैं.
प्रयागराज शहर में रहने के लिए कई रेंज में आपको लग्जूरियस होटल से लेकर बजट-फ्रेंडली होटल मिल जाएंगे. यहां आपको हर तरह की बेसिक सुविधाएं प्राप्त होंगी.
मेला वाले क्षेत्र में भी रुक सकते हैं
प्ररायगराज में महाकुंभ मेला के दौरान आपको ठहरने के लिए कई विकल्प प्रदान करता है. आप होटल के साथ ही यहां टेंट सिटी में भी रहकर भी इस महापर्व को करीब से महसूस कर सकते हैं. महाकुंभ मेले में टेंट सिटी त्रिवेणी संगम के पास आरामदायक आवास प्रदान करते हैं. यहां आपको बेसिक टेंट से लेकर प्राइवेट सुविधाएं भी प्राप्त होंगी. यहां रहकर आपको इस त्योहार के सांस्कृतिक विविधता में डूबने का भरपूर मौका मिलेगा. साथ ही आप यहां होने वाले अनुष्ठानों, पवित्र स्नान और आध्यात्मिक कार्यक्रमों में आसानी से पहुंच भी सकते हैं.
सुविधाएं- टेंट सिटी में आपको वॉटर स्पोर्ट्स, फायर, वॉटर रेसिस्टेंट, मल्टी कुजींस, चौबीसों घंटे गेस्ट सर्विस, फर्स्ट एड की सुविधा, मेडिटेशन और योग सेंटर की सुविधाएं उपलब्ध मिलेंगी. टेंट कॉलोनी में आप विला, स्विस कॉटेज, महाराजा कॉटेज अपने लिए सेलेक्ट कर सकते हैं. ये त्रिवेणी संगर से मात्र 1 से 2 किलोमीटर की दूरी पर ही होंगे. यहां रेस्टोरेंट, बाथरूम, वाईफाई, ड्राई क्लीनिंग, टीवी, सीसीटीवी आदि सुविधाएं दी जाएंगी.
मोक्षदा एकादशी व्रत में पंचकोशीय परिक्रमा करके श्री हरि विष्णु ने किया था शरीर का त्याग
11 Dec, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
जगत के पालनहार श्रीहरि विष्णु और मां लक्ष्मी को समर्पित मोक्षदा एकादशी तिथि हिन्दू धर्म में बड़ा महत्व रखता है. इस साल मोक्षदा एकादशी 11 दिसंबर, बुधवार को है. धार्मिक मान्यता है कि मोक्षदा एकादशी के दिन व्रत कर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने से मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है. इतना ही नहीं व्यक्ति को अपने सभी पापों से भी छुटकारा मिलता है. लेकिन एकादशी व्रत के कुछ नियम भी हैं, जिनका पालन करना बेहद जरूरी है वरना आपकी पूजा असफल हो सकती है.
भगवान वराह ने किया मोक्षदा एकादशी व्रत : वराह पुराण के अनुसार जब भगवान विष्णु ने अपने तीसरे अवतार में वराह रूप में हिरणाक्ष्य राक्षस का बध करके जब अपने शरीर का त्याग करने के लिए जिस भूमि का चयन किया वह शूकर क्षेत्र था और हजारों वर्षों के युद्ध के बाद जिस समय का चयन किया वह मार्गशीर्ष माह की शुक्ल पक्ष द्वादशी तिथि थी. अपने शरीर का त्याग करने से पहले प्रभु ने अपने खुर से एक बहुत बढ़ा गड्ढा खोद कर जल को स्तंभित किया वह आदि गंगा कहलाया. इस दिन वराह भगवान ने अपने शूकर रूप से मुक्ति हेतु उसी आदिगंगा के किनारे रहकर एकादशी का व्रत किया एवं उस जल का आचवन करके अपने व्रत का पारण किया, तत्पश्चात श्री हरि ने अपने वराह (शूकर) रूप में मोक्ष प्राप्त किया. इस तीर्थ में मोक्षदा एकादशी के दिन उस पांचकोषीय शूकर क्षेत्र की परिक्रमा करने से अश्वमेघ यज्ञ के बराबर फल प्राप्त होता है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती
मोक्षदा एकादशी से जुड़ी कुछ और खास बातेंः
मोक्षदा एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है.
इस दिन व्रत रखने से पापों से मुक्ति मिलती है और पितरों को मोक्ष दिलाने में मदद मिलती है.
मान्यता है कि इस दिन भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था. इसलिए, इस दिन को गीता जयंती के रूप में भी मनाया जाता है.
मोक्षदा एकादशी के दिन व्रत रखने और पूजा करने से मनोवांछित फल मिलते हैं.
एकादशी का व्रत रखने के बाद दान करना चाहिए.
मोक्षदा एकादशी का व्रत हर साल मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रखा जाता है.
मोक्षदा एकादशी पर श्री हरि ने की शूकर क्षेत्र में पंचकोषीय परिक्रमा.
मोक्षदा एकादशी पर सोरों शूकर क्षेत्र में पंचकोषीय परिक्रमा. करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है एवं अनंतफल की प्राप्ति होती है.
मोक्षदा एकादशी व्रत कथा : मोक्षदा एकादशी की कथा के मुताबिक, प्राचीन काल में एक गोकुल नाम का राज्य था. ये राज्य वैखानस नाम के राजा का था. एक रात राजा सो रहा था. सोते समय उसे सपना आया कि उसके पिता को नर्क भेजा गया है और वहां उन्हें खूब प्रताड़नाएं दी जा रही हैं. राजा ऐसा सपना देखकर बहुत ही व्यथिथ हुआ और सोचने लगा कि वो अपने पिता को किस प्रकार नर्क से मुक्त करा सकता है.इसके बाद सुबह होते ही राजा ने राजपुरोहित को बुवावा भेजा. राजपुरोहित आए तो राजा ने उनसे अपने पिता की मुक्ति का रास्ता पूछा. इस पर राजपुरोहित ने कहा कि इस समस्या का निदान सिर्फ त्रिकालदर्शी पर्वत नाम के महात्मा के पास ही है.
ये सुनकर राजा पर्वत महात्मा के आश्रम में पहुंच गया. वहां राजा ने पर्वत महात्मा से प्रथर्ना की और अपने पिता की मुक्ति का रास्ता पूछा. पर्वत महात्मा ने राजा को बताया कि तुम्हारे पिता के हाथों पिछले जन्म में एक पाप हुआ था, जिस कारण उनको नर्क की यातनाएं सहनी पड़ रही हैं. ये सुनकर राजा वैखानस ने पर्वत महात्मा से अपने पिता की मुक्ति का रास्ता बताने को कहा. तब पवर्त महात्मा ने राजा से कहा कि हे राजन आप मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली मोक्षदा एकादशी का विधि विधान से व्रत और पूजा करें. उन्होंने राजा से कहा कि इस व्रत के प्रभाव से आपके पिता को मुक्ति मिल जाएगी.इसके बाद राजा वैखानस अपने राज्य में वापस आ गया और पूरे विधि-विधान से मोक्षदा एकादशी का व्रत रखने के साथ ही भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने लगा. व्रत का प्रभाव दिखा और राजा के पिता पृतदोष से मुक्त हो गए.
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
11 Dec, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- तनावपूर्ण वातावरण से बचिए, स्त्री शारीरिक मानसिक कष्ट, मानसिक बेचैनी अवश्य बनेगी।
वृष राशि :- अधिकारियों के सर्मथन से सुख होवे, कार्य गति विशेष अनुकूल किन्तु विचार भेद अवश्य बनेंगे।
मिथुन राशि :- भोग ऐश्वर्य प्राप्ति, वाद, तनाव व क्लेश होवे, तनाव से बचकर अवश्य चले।
कर्क राशि :- अधिकारियों का समर्थन फलप्रद होगा, भाग्य साथ दें, बिगड़े कार्य अवश्य ही बनेंगे।
सिंह राशि :- परिश्रम सफल हो, व्यवसाय मंद हो, आर्थिक योजना सफल अवश्य ही हो जाएगी।
कन्या राशि :- कार्य गति सामान्य रहे, व्यर्थ परिश्रम, कार्यगति मंद अवश्य होगा, ध्यान रखें।
तुला राशि :- किसी दुर्घटना से बचे, चोट चपेट आदि का भय होगा, रुके कार्य अवश्य ही बन जाएगे।
वृश्चिक राशि :- कार्य गति अनुकूल रहे, लाभान्वित कार्य योजना बनेगी, बाधा आदि से बच सकेंगे।
धनु राशि :- कुछ प्रतिष्ठा के साधन बने, किन्तु हाथ में कुछ न लगे तथा कार्य अवरोध अवश्य होवे।
मकर राशि :- अधिकारी वर्ग से तनाव, क्लेश होगा, मानसिक अशांति अवश्य ही बन जाएगी।
कुंभ राशि :- मनोबल बनाए रखे, किन्तु हाथ में कुछ न लगे, नया कार्य अवश्य ही होगा, ध्यान दें।
मीन राशि :- दैनिक कार्य गति उत्तम, कुटुम्ब में सुख समय उत्तम बनेगा, कार्य समझकर निपटा लें।
उपहार में दें लाफिंग बुद्धा, खुल जाएंगे किस्मत के ताले, खुद खरीदने की है मनाही, जानें इसे रखने के सही नियम
10 Dec, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
लाफिंग बुद्धा का उपहार देना जीवन में शुभता लाने का एक लोकप्रिय तरीका माना जाता है. भारतीय संस्कृति में जहां वास्तु शास्त्र को महत्वपूर्ण माना जाता है, वहीं चीनी सभ्यता में फेंगशुई का भी विशेष स्थान है. हाल के वर्षों में भारत में फेंगशुई से जुड़ी वस्तुएं काफी लोकप्रिय हो गई हैं, जिनमें से एक है लाफिंग बुद्धा. मान्यताओं के अनुसार उपहार में लाफिंग बुद्धा देना सौभाग्य लाता है. इस विषय में अधिक जानकारी दे रहे हैं भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा.
प्रचलित कहानी
कहानी के अनुसार, चीन में भगवान बुद्ध के एक भिक्षुक अनुयायी थे, जिनका नाम हनोई था. वह हमेशा हंसते रहते और लोगों को हंसी-मजाक के माध्यम से खुश करते थे. उनके मोटे पेट और बड़े शरीर के कारण लोग उनका मजाक उड़ाते थे, लेकिन उन्होंने जीवन का उद्देश्य दूसरों को खुशियां देना बना लिया.
भारत में भी लाफिंग बुद्धा से जुड़ी मान्यता है कि इसे खुद के लिए नहीं, बल्कि दूसरों को उपहार के रूप में दिया जाता है. चीन में लोग मानते हैं कि लाफिंग बुद्धा घर में खुशहाली, समृद्धि और धन लाता है, और कोई व्यक्ति इसे अपने लिए नहीं खरीदता, क्योंकि यह एक स्वार्थी काम माना जाता है.
वास्तु शास्त्र की तरह, फेंगशुई भी घर या दुकान के दोष दूर करने के लिए कई उपायों का सुझाव देता है. लाफिंग बुद्धा भी उन्हीं में से एक है और इसे घर या दुकान में रखने से सम्पन्नता आती है.
लाफिंग बुद्धा को घर या दुकान में रखने के कुछ नियम हैं
1. इसे जमीन से ढाई फीट ऊपर रखा जाना चाहिए.
2. मूर्ति का मुख हमेशा प्रवेश द्वार की ओर होना चाहिए, ताकि यह अधिक प्रभावी हो.
3. लाफिंग बुद्धा उपहार के रूप में देने से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है.
माथे पर तिलक लगाने के हैं कई फायदे? जीवन में मिलेगी अच्छी सेहत और सफलता, ऊर्जा से रहेंगे भरपूर
10 Dec, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भारत में लोग माथे पर तिलक लगाते हैं. सबके तिलक का रंग अलग हो सकता है. लेकिन आपको भारत के हर शहर में लोगों को माथे पर तिलक लगाए हुए दिख जाएंगे. शायद ही लोग जानते होंगे कि पूजा के बाद पंडित जी के तिलक लगाने का क्या मतलब होता है
तिलक लगाने से आध्यात्मिक चेतना जागृत होती है. तिलक लगाने से पूजा-पाठ, ध्यान, और धार्मिक गतिविधियों के दौरान दिव्य ऊर्जाओं से संबंध बढ़ता है. तिलक लगाने से अनुष्ठान, साधना, और सांस्कृतिक अनुपालन का संकेत मिलता है.
तिलक लगाने से नकारात्मक ऊर्जाओं से सुरक्षा मिलती है. तिलक लगाने से एकाग्रता और ध्यान बढ़ता है. तिलक लगाने से मस्तिष्क शांत होता है. तिलक लगाने से गुस्सा और तनाव कम होता है. साथ ही सकारात्मक सोच भी विकसित होती है.
तिलक लगाने से धार्मिक अवसरों पर लोगों को पहचान मिलती है. माथे के बीच में इष्ट देव का सम्मान होता है. पंडित जी ने कहा कि तिलक लगाना कोई साधारण चीज नहीं है. यह हमारे ईस्ट के द्वारा प्रदान किया हुआ आशीर्वाद है. तिलक लगाने से हमारा चिंतन बढ़ जाता है. बिल्कुल मध्य में लगाया जाता है, तिलक लगाने से कई इंद्रियां जागृत हो जाती हैं.
उन्होंने कहा कि तिलक को मध्य में इसलिए लगाया जाता है कि तीनों नाड़ियां का एक ही मिलन होता है. नाड़ियां का जब मिलन होता है, तो तिलक लगाने से वह नाड़ियां जागृत हो जाती हैं. हमारे शास्त्रों के अनुसार कोई भी व्यक्ति मस्तिष्क के मध्य भाग में तिलक लगाता है तो तिलक से अनेकों परिवर्तन हो जाते हैं. सनातन संस्कृति में आपको अनेक तरह के तिलक देखने को मिलेंगे और यहां पर हर तिलक का एक अपना ही अलग महत्व है.
काफी प्राचीन है मां भद्रकाली का यह मंदिर, यहां पांडवों ने की थी पूजा, महाभारत से जुड़ा है इतिहास
10 Dec, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
उत्तराखंड, अपनी प्राकृतिक सुंदरता और धार्मिक विरासत के लिए जाना जाता है. यहां हर स्थान पर एक अद्भुत आध्यात्मिक ऊर्जा का एहसास होता है. गढ़वाल और कुमाऊं के अलावा, जौनसार-बावर क्षेत्र भी प्राचीन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है. इसी कड़ी में देहरादून जिले के कटापत्थर में स्थित मां भद्रकाली का मंदिर अपनी ऐतिहासिक और धार्मिक मान्यताओं के कारण बेहद खास है.
महाभारत काल से जुड़ा है मंदिर का इतिहास
मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है. साधक संघ के संस्थापक महेश स्वरूप ब्रह्मचारी बताते हैं कि मान्यताओं के अनुसार अज्ञातवास के दौरान पांचों पांडव यहां आए और मां भद्रकाली की पूजा-अर्चना की. यह क्षेत्र उस समय विराटनगर का हिस्सा था और राजा विराट की कुलदेवी मां भद्रकाली को माना जाता था. 11वीं शताब्दी में दिल्ली के राजा अनंगपाल ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया. उनका शासन दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान के कई हिस्सों तक फैला था.
मंदिर में प्राचीन सुरंग और शिवलिंगों का निर्माण
साधक संघ के संस्थापक महेशस्वरूप ब्रह्मचारी के मुताबिक मंदिर के नीचे एक सुरंग थी, जो जौनसार बावर के प्रसिद्ध लाखामंडल तक जाती थी. मान्यता है कि पांडव इसी सुरंग के माध्यम से लाखामंडल पहुंचे, जहां उन्होंने लाखों शिवलिंगों का निर्माण किया. यहीं से पांडव केदारनाथ के लिए रवाना हुए. हालांकि, आज यह सुरंग बंद है, लेकिन इसके ऐतिहासिक महत्व को भुलाया नहीं जा सकता. जिस मंदिर के पास उत्तराभिमुख नदी का जल होगा, वह स्थान मूलत: सिद्ध ही माना जाता है.
गर्भगृह में प्राचीन पिंडी और देवी-देवताओं की मूर्तियां
मंदिर के गर्भगृह में आज भी 21 फीट ऊंची प्राचीन पिंडी स्थापित है. वर्षों पहले खुदाई के दौरान यहां भगवान गणेश, हनुमान, नाग, शिव-शक्ति समेत कई देवी-देवताओं की मूर्तियां प्राप्त हुई थीं. महेशस्वरूप ब्रह्मचारी की मानें तो कटापत्थर प्राचीनकाल में चारधाम यात्रा का पहला पड़ाव हुआ करता था. आज भी श्रद्धालु जब यमुनोत्री धाम के लिए जाते हैं, तो मां भद्रकाली के दर्शन करना नहीं भूलते. यह मंदिर 118 गांवों की कुलदेवी के रूप में पूजित है.
मंदिर का आधुनिक स्वरूप, परंपरा आज भी बरकरार
वर्तमान में मंदिर में आधुनिकता की झलक दिखती है, लेकिन गर्भगृह में मां भद्रकाली की प्राचीनता आज भी बरकरार है. श्रद्धालुओं के लिए यह स्थान न केवल एक धार्मिक केंद्र है, बल्कि इतिहास और परंपरा से जुड़ने का एक माध्यम भी है.
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
10 Dec, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- मनोबल उत्साहवर्धक रहे, कार्य गति में सुधार, शुभ समाचार अवश्य ही मिलेगे।
वृष राशि :- कुछ बाधाएं, कष्ट, उदर विकार, स्त्री शरीर कष्ट, कारोबार में बाधा अवश्य ही बनेगी।
मिथुन राशि :- कार्य कुशलता से संतोष, परिश्रम सफल होवे, स्त्री वर्ग से सुख अवश्य ही होवे।
कर्क राशि :- कुटुम्ब की समस्याएं सुलझे, सुख शांति में समय व्यतीत होगा, समय का ध्यान रखे।
सिंह राशि :- परिश्रम से समय पर सोचे कार्य पूर्ण होगे, व्यावसायिक क्षमता अनुकूल होगी।
कन्या राशि :- स्त्रीवर्ग से हर्ष उल्लास होवे, आशानुकूल सफलता से हर्ष बिगड़े, कार्य बन जाएगे।
तुला राशि :- कार्यगति उत्तम चिन्ताएं कम होगी, प्रभुत्व एवं प्रतिष्ठा अवश्य ही बनेगी।
वृश्चिक राशि :- योजनाएं फलीभूत होगी, सतर्कता से कार्य अवश्य निपटा ले, कार्य अवश्य होगा।
धनु राशि :- आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा, कार्यगति उत्तम, भावनाएं संवेदनशील अवश्य रहेगी।
मकर राशि :- अधिकारी वर्ग से तनाव, क्लेश व मानसिक अशांति, कार्य अवरोध अवश्य ही होगा।
कुंभ राशि :- मनोबल बनाए रखे, किन्तु हाथ में कुछ न लगे, नया कार्य अवश्य प्राप्त होगा।
मीन राशि :- दैनिक कार्य गति उत्तम, कुटुम्ब में सुख समय उत्तम बनेगा, विचार भेद समाप्त होंगे
4 नहीं बल्कि 5 सिर हुआ करते थे भगवान ब्रम्हा के, कहां गया उनका पांचवा सिर, पढ़ें पौराणिक कथा
9 Dec, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू पुराणों के अनुसार, भगवान ब्रह्मा ने पूरी सृष्टि की रचना की थी. यह कार्य उन्हें भगवान शिव द्वारा सौंपा गया था. ब्रह्मा जी के चार सिरों को चार वेदों के प्रतीक के रूप में माना जाता है. पहले के समय में, उनके पास पांच सिर होते थे, और इन पांच सिरों से वह सभी दिशाओं में देख सकते थे. आइए जानते हैं कि उनका पांचवां सिर कहां चला गया और इसके पीछे की पौराणिक कथा के बारे में बता रहे हैं भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा.
देवी सतरूपा की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, ब्रह्मा जी ने सृष्टि के विकास के लिए एक बहुत सुंदर स्त्री की रचना की, जिसका नाम सतरूपा था. सतरूपा, ब्रह्मा जी की पुत्री होने के बावजूद इतनी सुंदर थीं कि ब्रह्मा जी उन पर मोहित हो गए. जब ब्रह्मा जी ने उन्हें देखा और उन्हें अपने पास लाने के लिए आगे बढ़े, तो देवी सतरूपा उनसे बचने के लिए हर दिशा में भागने लगीं.
ब्रह्मा जी ने अपनी तीन नई सिरों की उत्पत्ति की ताकि वह हर दिशा से सतरूपा को देख सकें. फिर भी सतरूपा ने ऊपर की दिशा में दौड़ने की कोशिश की, लेकिन ब्रह्मा जी ने अपना एक और सिर ऊपर की ओर उत्पन्न कर लिया.
भगवान शिव का क्रोध और पांचवां सिर
पौराणिक कथा के अनुसार यह दृश्य भगवान शिव के लिए असहनीय था, क्योंकि सतरूपा ब्रह्मा जी की पुत्री थीं. शिव जी ने देखा कि ब्रह्मा जी की यह कुदृष्टि उन्हें ठीक नहीं लग रही थी. इस पर क्रोधित होकर, शिव ने अपने गण भैरव को भेजा और भैरव ने ब्रह्मा जी का पांचवां सिर काट दिया. इस घटना के बाद ब्रह्मा जी को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने अपनी कुदृष्टि पर पछतावा जताया.