धर्म एवं ज्योतिष (ऑर्काइव)
आखिर भगवान विष्णु से ही क्यों किया देवी लक्ष्मी ने विवाह
15 Feb, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में माता लक्ष्मी को धन, वैभव और सुख समृद्धि की देवी कहा गया है। मान्यता है कि इनकी इच्छा के बिना किसी जातक को भौतिक सुखों की प्राप्ति नहीं होती है,ऐसे में हर कोई महालक्ष्मी को प्रसन्न करने के तरीके खोजता रहता है जिससे उन्हें धन सुख और समृद्धि आदि का सुख प्राप्त हो।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार देवी लक्ष्मी को भगवान विष्णु की पत्नी कहा गया है। ऐसे में अधिकतर लोगों के मन में ये प्रश्न उठता है कि देवी लक्ष्मी ने भगवान विष्णु से ही विवाह क्यों किया, अगर आप भी इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए उत्सुक है तो आज का हमारा ये लेख आपको पूरा पढ़ना होगा।
धार्मिक कथा के अनुसार जब समुद्र मंथन के दौरान देवी लक्ष्मी प्रकट हुई तब सारी सृष्टि बिजली की तरह जगमगा ने लगी। देवी लक्ष्मी के सौंदर्य, यौवन, रूप रंग और महिमा ने हर किसी का मन मोह लिया। ऐसे में हर कोई चाहे वह मनुष्य हो, असुर हो या देवता हो सभी देवी लक्ष्मी को प्राप्त करना चाहते थें सभी ने देवी का आदर सत्कार किया। जिसके बाद माता लक्ष्मी अपने हाथों में कमल पुष्पों की एक माला लिए अच्छे और सुयोग्य वर से विवाह के लिए आगे बढ़ी। लेकिन तलाश करने के बाद भी उन्हें सुयोग्य वर की प्राप्ति नहीं हुई।
देवी लक्ष्मी ने गन्धर्व, सिद्ध, यक्ष, असुर और देवताओं में कुछ न कुछ कमी देखी जिस कारण उन्होंने इनमें से किसी को भी नहीं चुना। इसके बाद देवी लक्ष्मी ने काफी विचार करके भगवान श्री विष्णु का वरण किया, क्योंकि श्री हरि सभी सद्गुणों से परिपूर्ण है। ऐसे में देवी लक्ष्मी ने भगवान विष्णु के गले में कमल के पुष्पों का हार डाला और विष्णु को प्राप्त कर उनकी धर्म पत्नि कहलाई।
घर में रखी ये 5 अशुभ चीजें कर देती हैं बर्बाद, आज ही करें बाहर
15 Feb, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
घर में रखी चीजों का हमारी किस्मत के साथ सीधा कनेक्शन होता है. घर में रखी शुभ चीजें उन्नति और समृद्धि लेकर आती हैं तो वहीं अशुभ चीजें हमें बर्बादी की कगार पर धकेल देती हैं.
इंसान पाई-पाई को मोहताज रहने लगता है. घर में लड़ाई-झगड़ों से तनाव का माहौल बना जाता है. आज हम आपको 5 ऐसी चीजों के बारे में बताने जा रहे हैं जो भूलकर भी घर में नहीं रखनी चाहिए.
1. कैक्टस का कांटेदार पौधे- घर को ज्यादा सुंदर बनाने के लिए अक्सर लोग इंडोर प्लांट लगा लेते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं एक प्लांट ऐसा भी है जिसे भूलकर भी घर में नहीं रखना चाहिए. ज्योतिषविद का कहना है कि घर में कभी कैक्टस का पौधा नहीं रखना चाहिए. ये जैसे-जैसे बढ़ता है, इसमें कांटे उगने लगते हैं. साथ ही घर में नकारात्मक ऊर्जा और जीवन में परेशानियां भी बढ़ेंगी. अगर आपने घर के अंदर ये पौधा रखा है तो इसे आज ही बार निकाल फेंकिए
2. पुराने अखबार या रद्दी- अक्सर आपने देखा होगा कि कई घरों में पुराने अखबार और रद्दी का ढेर इक्ट्ठा रहता है. क्या आप जानते हैं घर में इन चीजों का रहना कितना अशुभ होता है. पुराने अखबारों पर जमी धूल-मिट्टी के कारण घर में नकारात्मक ऊर्जा प्रवेश करती है. घर की नेगेटिव एनर्जी से परिवार में कलह बढ़ता है. तरक्की में बाधा आती है और घर के सदस्यों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है.
3. जंग लगा ताला- इसी तरह घर में भूलकर भी बंद पड़े या जंग लगे ताले नहीं रखने चाहिए. वास्तुशास्त्र में इसे बहुत ही अशुभ बताया गया है. वास्तु के अनुसार, अच्छा-चलता ताला किस्मत खोलने का प्रतीक होता है जबकि बंद या खराब ताला घर में दुर्भाग्य लाता है. बंद पड़े ताले करियर में रुकावट लाते हैं और तरक्की के रास्तों को बंद कर देते हैं.
4. पुरानी बंद पड़ी घड़ी- घर में बंद घड़ियों को रखना भी एक अशुभ संकेत है. वास्तु के अनुसार, बंद घड़ियों के घर में रहने से इंसान की तरक्की ठहर जाती है. ऐसा माना जाता है कि बंद पड़ी घड़ियां अच्छा समय आने ही नहीं देती हैं और जीवन की सुख-समृद्धि में रुकावट पैदा करती हैं.
5. देवी-देवताओं की मूर्ति- इसके अलावा, घर में कभी भी देवी-देवताओं की पुरानी या टूटी-फूटी मूर्तियां व चित्र नहीं रखने चाहिए. ये चीजें घर में नकारात्मकता लेकर आती हैं. इसलिए पुरानी मूर्तियों और चित्रों को को समय-समय पर बदलते रहना चाहिए. इनको समय पर हटाकर जमीन में दबा दें या जल में प्रवाहित कर दें.
पैसा, अच्छी सेहत, वैवाहिक सुख के लिए महाशिवरात्रि पर करें ये उपाय, दूर होगी हर समस्या
15 Feb, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
इस बार महाशिवरात्रि का पर्व 18 फरवरी, शनिवार को मनाया जाएगा। ये दिन शिवजी की पूजा के लिए अति महत्वपूर्ण माना गया है। इस दिन अगर कुछ खास उपाय किए जाएं तो हमारी कई तरह की परेशानियां अपनेआप दूर हो सकती हैं।
ज्योतिष शास्त्र में हमारी हर समस्या का समाधान छिपा है। ज्योतिष के ये उपाय यदि किसी खास मौके पर किए जाएं तो और भी शुभ रहता है। महाशिवरात्रि (Mahashivaratri 2023) भी ऐसा ही एक खास दिन है। ये भगवान शिव की प्रिय तिथि है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इस तिथि पर किए गए उपायों का फल बहुत ही जल्दी प्राप्त होता है। इस बार महाशिवरात्रि (Mahashivaratri Ke Upay) का पर्व 18 फरवरी, शनिवार को है। आगे जानिए इस दिन आप कौन-कौन से उपाय कर सकते हैं.
यदि आपके घर में परिवार में कोई व्यक्ति लंबे समय से बीमार है और काफी इलाज करवाने के बाद भी आराम नहीं मिल रहा है तो आप महाशिवरात्रि पर पानी में काले तिल डालकर शिवलिंग का अभिषेक करें। ये उपाय करते समय महामृत्युंजय मंत्र का जाप भी करें। इस उपाय से रोगों में आराम भी मिलता है।
अगर वैवाहिक जीवन में परेशानियां चल रही हो तो महाशिवरात्रि पर पहले शिव-पार्वती की पूजा विधि-विधान से करें और गाय के दूध से खीर बनाकर इसका भोग भगवान को लगाएं। बाद में इस खीर को पति-पत्नी साथ मिलकर खाएं। इस उपाय से आपके वैवाहिक जीवन की परेशानियां दूर हो सकती हैं।
महाशिवरात्रि पर स्नान आदि करने के बाद पहले शिवजी की पूजा विधि-विधान से करें। इसके बाद साबूत चावल शिवलिंग पर चढ़ाएं। चावल चढ़ाते समय ऊं नम: शिवाय: मंत्र का जाप करें। बाद में इन चावलों को एक लाल रंग के कपड़े में बांधकर अपनी तिजोरी में रखें। जल्दी ही धन लाभ के योग बनने लगेंगे।
घर-परिवार की सुख-समृद्धि के लिए महाशिवरात्रि पर शिव यंत्र की स्थापना अपने घर में रखें। इसके पहले इसकी विधि-विधान से पूजा करें। शिव यंत्र के प्रभाव से घर के सभी दोष दूर हो जाते हैं। ये यंत्र बाजार में पूजा-पाठ की सामग्री की दुकान पर आसानी से मिल जाता है। ये यंत्र बहुत ही प्रभावशाली है।
अगर आपके घर में वास्तु दोष है तो आपको लगातार परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इस दोष के अशुभ प्रभाव से बचने के लिए महाशिवरात्रि पर घर में पारद शिवलिंग की स्थापना करें और प्रतिदिन इसकी पूजा करें। जल्दी ही आपको शुभ फल मिलने लगेंगे।
मां सीता के मंदिर देश में कहां पर हैं?
14 Feb, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
फाल्गुन माह की कृष्ण अष्टमी को माता सीता की जयंती मनाई जाती है। देश या दुनियाभर में जहां पर भी श्रीराम का मंदिर है वहां पर माता सीता भी विराजमान हैं, लेकिन माता सीता के कुछ खास ऐसे मंदिर भी है जो कि उनके जीवन से जुड़ें हैं या जिनकी लोकप्रसिद्ध अधिक है।
माता सीता को भूमिदेवी की पुत्री भी कहा जाता है और जनकनंदनी भी।
उल्लेखनीय है कि गुजरात, महाराष्ट्र तथा दक्षिण भारतीय राज्यों में अमान्त चन्द्र कैलेण्डर के अनुसार, जानकी जयंती माघ माह में मनायी जाती है।
1. जानकी मंदिर, नेपाल : रामायण काल में मिथिला के राजा जनक थे। उनकी राजधानी का नाम जनकपुर है। जनकपुर नेपाल का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यहां जानकी माता मंदिर का निर्माण कराया भारत के टीकमगढ़ की महारानी वृषभानु कुमारी ने। पुत्र प्राप्ति की कामना से महारानी वृषभानु कुमारी यहां रहती थीं। यहां रहने के दौरान एक संत को माता सीता की एक मूर्ति मिली थी, जो सोने की थी। महारानी ने 1895 ईस्वी में जानकी मंदिर का निर्माण करवाया। उन्होंने ही यहां मूर्ति को स्थापित किया था। जानकी मंदिर साल 1911 में बनकर तैयार हुआ था।
करीब 4860 वर्ग फीट में फैले इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि उस समय इसके निर्माण पर कुल नौ लाख रुपए खर्च हुए थे, इसलिए इस मंदिर को नौलखा मंदिर भी कहते हैं। इस मंदिर में वर्ष 1967 से लगातार यहां सीता-राम नाम का जाप और अखंड कीर्तन चल रहा है। इस मंदिर को जनकपुरधाम भी कहा जाता है। मंदिर के विशाल परिसर के आसपास कुल मिलाकर 115 सरोवर हैं। इसके अलावा कई कुण्ड भी हैं, जिनमें गंगासागर, परशुराम कुण्ड एवं धनुष-सागर अधिक प्रसिद्ध हैं।
2. अयोध्या में सीता मंदिर : अयोध्या के सीतामड़ी में भी माता सीता का एक प्राचीन मंदिर है जिसें अब भव्य स्वरूप दिया जा रहा है, जहां माता सीता मैया अपने नौ विग्रह स्वरूप में दिखेंगी।
3. वाराणसी में सीता मंदिर : यहां का दो मंजिला मंदिर बारिश के मौसम में चारों ओर पानी से घिरा रहता है। कहते हैं कि देवी सीता यहीं से धरती में समा गई थी। यह मंदिर जगन्नाथ अस्सीघाट के पास स्थित है। 17वीं सदी में निर्मित हुए इस मंदिर में आषाढ़ माह में रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है।
4. सीता मंदिर, अशोकनगर : मध्यप्रदेश के अशोकनगर जिले के मुंगावली तहसील के करीला गांव में माता सीता का एकमात्र ऐसा मंदिर हैं जहां पर सिर्फ उन्हीं की मूर्ति विराजमान हैं। मान्यता के अनुसार यहीं पर लव और कुश का जन्म हुआ था।
5. सीताहरण का स्थान सर्वतीर्थ, नासिक : नासिक क्षेत्र में शूर्पणखा, मारीच और खर व दूषण के वध के बाद ही रावण ने सीता का हरण किया और जटायु का भी वध किया जिसकी स्मृति नासिक से 56 किमी दूर ताकेड गांव में 'सर्वतीर्थ' नामक स्थान पर आज भी संरक्षित है। यह स्थान पंचवटी क्षेत्र में आता हैं। यहां पर सीता माता के कई मंदिर है।
6. पुनौरा मंदिर, सीतामढ़ी : मान्यता के अनुसार बिहार में सीतामढ़ी जिले के पुनौरा नामक स्थान को माता सीता की जन्म स्थली माना जाता है। यहां एक खेत में राजा जनक को माता सीता मिली थी।
7. सीता रसोई, अयोध्या : अयोध्या में स्थित यह मंदिर श्रीराम जन्मभूमि के करीब स्थित है। शुगन के तौर पर पहली बार माता सीता ने यहां पर सभी के लिए भोजन बनाया था।
8. अशोक वाटिका, श्रीलंका : रावण ने माता सीता को जहां पर बंदी बनाकर रखा था उस स्थान का नाम अशोक वाटिका है। यहां पर अशोक के वृक्ष बहुतायत पाए जाते हैं। यह स्थान श्रीलंका में है।
9. सीतावनी, जिम कॉर्बेट पार्क नैनिताल : मान्यता के अनुसार नैनिताल के जिम कॉर्बेट पार्क में स्थित सीतावनी नामक स्थान पर माता सीता ने अपने निर्वासन के कुछ साल यहां बिताए थे। यहीं पर लव और कुश का जन्म हुआ था। यह भी कहा जाता है कि यहां पर माता सीता धरती में समा गई थी।
10. कनक भवन, अयोध्या : श्रीराम से विवाह के पश्चात माता सीता यहीं पर रही थीं। अब यह भवन एक मंदिर है।
साल 2023 की रंग पंचमी कब मनाई जाएगी? जानें शुभ मुहूर्त, उपाय और महत्व
14 Feb, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
रंग पंचमी का त्योहार हिंदू धर्म में अपना अलग महत्व रखता है. रंग पंचमी का त्योहार होली के बाद पांचवें दिन मनाया जाता है. रंग पंचमी का त्योहार चैत्र कृष्ण पक्ष पंचमी के दिन मनाया जाता है.
रंगों के त्योहार के लिए ये पर्व मालवा क्षेत्र में अधिक प्रचलित है. मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात में रंग पंचमी का यह विशेष त्योहार बेहद ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है. मान्यता है कि, इस दिन देवी देवता रंगों और अबीर के साथ होली खेलते हैं. यही वजह है कि इस दिन को रंग पंचमी कहा जाता है.
कैसे मनाते हैं रंग पंचमी
रंग पंचमी का त्योहार होली से संबंधित और काफी हद तक होली की ही तरह मनाया जाता है. ऐसे में इस दिन लोग रंग और गुलाल उड़ा कर अपनी खुशियां मनाते हैं. इसके अलावा बहुत सी जगहों पर इस दिन राधा रानी और कृष्ण को अबीर और गुलाल अर्पित किया जाता है. इसके अलावा इस दिन शोभा यात्राएं भी निकाली जाती है और होली की तरह देव होली के दिन भी लोग एक दूसरे पर रंग और अबीर डालते हैं.
रंग पंचमी के त्योहार से जुड़ी मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि, इस दिन हवा में रंग और अबीर उड़ाने से वातावरण सकारात्मक होता है जिसका प्रभाव व्यक्ति के जीवन, व्यक्तित्व और सोचने समझने की क्षमता पर पड़ता है. साथ ही इससे लोगों के बुरे कर्म और पाप आदि नष्ट होते हैं.
रंग पंचमी शुभ मुहूर्त (Rang Panchami 2023 Shubh Muhurat)
इस बार रंग पंचमी का त्योहार 12 मार्च 2023, रविवार को मनाया जाएगा. रंग पंचमी को होली महोत्सव का समापन भी कहा जाता है. रंग पंचमी की तिथि की शुरुआत 11 मार्च को रात 10 बजकर 05 मिनट पर होगी और इसका समापन 12 मार्च को रात 10 बजकर 01 मिनट पर होगा. उदयातिथि के अनुसार, रंग पंचमी का त्योहार 12 मार्च को ही मनाया जाएगा.
रंग पंचमी पर कैसे करें पूजा (Rang Panchami 2023 Pujan Vidhi)
रंग पंचमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी की पूजा का विधान है. इस दिन भगवान श्रीकृष्ण और राधा को लाल या गुलाबी रंग का गुलाल अर्पित करना बहुत शुभ माना जाता है. ऐसा करने से दांपत्य जीवन में खुशहाली आती है. इसके अलावा, अन्य देवी-देवताओं को भी रंग गुलाल अर्पित किया जाता है.
रंग पंचमी के खास उपाय (Rang Panchami Upay)
रंग पंचमी के दिन कमल के फूल पर बैठी लक्ष्मी नारायण के चित्र को घर के उत्तर दिशा में स्थापित करें और लोटे में जल भरकर रखें. गाय के घी का दीपक जला कर लाल गुलाब के फूल लक्ष्मी नारायण जी को अर्पण करें. एक आसन पर बैठकर ॐ श्रीं श्रीये नमः मंत्र का तीन माला जाप करें. लक्ष्मी नारायण जी को गुड़ और मिश्री का भोग लगाएं. जाप के बाद पूजा में रखा हुआ जल सारे घर में छिड़क दें. आपके घर में धन की बरकत कुछ समय बाद जरूर दिखाई देगी.
रंग पंचमी देवी देवताओं की होली
रंग पंचमी के दिन भगवान कृष्ण और भगवान विष्णु को पीला रंग अर्पित कर सकते हैं. ऐसे में उन्हें पीले रंग के वस्त्र पहनाएं और उनके चरणों में पीले रंग का अबीर अर्पित करें. मां लक्ष्मी, बजरंगबली और भैरव महाराज को लाल रंग अर्पित करें. मां बगलामुखी को पीले रंग का अबीर अर्पित करें. सूर्यदेव को लाल रंग चढ़ाएं या सिंदूर अर्पित करें. शनि देव को नीला रंग बेहद प्रिय होता है.
दो पहाड़ों के बीच स्थित है बद्रीनाथ धाम, जानिए मंदिर से जुड़े रोचक तथ्य
14 Feb, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
देश के चार धामों में से एक बद्रीनाथ धाम में हर साल लाखों की संख्या में देश-विदेश से श्रद्धालु आते हैं। इसे भु वैकुण्ठ भी कहते हैं। बद्रीनाथ धाम उत्तराखंड के चमोली जिले में विष्णुप्रयाग के बाद सरस्वती और विष्णुगंगा के संगम के दक्षिणी तट पर नर और नारायण नाम के दो पहाड़ों के बीच स्थित है।
पुराणों में बदरी वृक्षों की घनी झाड़ियों वाले बद्रिकावन को 12 योजन लम्बा तथा 3 योजन चौड़ा बताया गया है, किन्तु वर्तमान बद्रीनाथ धाम का क्षेत्रफल 3 मील लम्बी और एक मील चौड़ी संकरी घाटी है। मान्यता है कि भगवान बद्रीनाथ के दर्शन करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
पौराणिक साहित्य में इसे प्राचीन तीर्थ माना गया है और इसकी महानता का प्राचीन वर्णन पराशर संहिता में मिलता है। स्कंदपुराण के अनुसार चारों युगों में इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता रहा है, जैसे सतयुग में मुक्तिप्रधा, त्रेता युग में योगसिद्ध, द्वापर युग में विशाला और कलियुग में बद्रिकाश्रम या बद्रीनाथ।
बद्रीनाथ मंदिर के निर्माण को लेकर मतभेद हैं
बद्रीनाथ मंदिर के संबंध में पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसका निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने ब्रह्मा देवताओं के अनुरोध पर किया था। ऐसा माना जाता है कि राजा पुरुरवा ने समय के साथ इसे बनवाया था। निर्माण की पौराणिक अवधारणा चाहे जो भी हो, नागर शैली के निदेशक का कहना है कि इस मंदिर का निर्माण 15वीं शताब्दी का है। जनश्रुति के अनुसार इसका निर्माण रामानुज संप्रदाय के स्वामी वरदाचार्य की प्रेरणा से तत्कालीन गढ़नरेश भोगदत ने करवाया था और इसका स्वर्ण मंडप इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने बनवाया था। 1631 में अपने यात्रा वृत्तांत में यहां आने वाले एक ईसाई पुजारी अजवैरदौ कहते हैं कि यहां मध्यम ऊंचाई की तीन बदसूरत इमारतें हैं, जिनमें से सबसे अच्छी वेदी पर बद्रीनाथ की सोने की पत्थर की मूर्ति स्थापित की गई है।
मंदिर में बौद्ध मठों की शैली में तीन भाग हैं
बद्रीनाथ धाम में प्रवेश करने पर आपको मंदिर के तीन भाग दिखाई देंगे। बौद्ध मठों की शंक्वाकार शैली में निर्मित बद्रीनाथ धाम को तीन भागों में बांटा गया है और वे हैं गर्भगृह, मंडप और सिंह द्वार, जो आकर्षण का केंद्र हैं। मंदिर के पूर्व प्रमुख भुवन चंद्र उनियाल का कहना है कि गर्भगृह में भगवान बदरीनाथ की आंशिक रूप से खंडित मूर्ति शालिग्राम पत्थर से बनी है। मंदिर में भगवान विष्णु ध्यान मुद्रा में विराजमान हैं। 6 महीने तक, बद्रीनाथ धाम में देवताओं के साथ भगवान की पूजा की जाती है और सर्दियों के दौरान, उद्धव और कुबेर की डोली को पांडुकेश्वर में योग ध्यान मंदिर और जोशीमठ में नृसिंह मंदिर में विराजित किया जाता है, जहाँ भक्त आते हैं। ऐसा माना जाता है कि पुजारियों ने तिब्बती लुटेरों से बचाने के लिए भगवान विष्णु की मूर्ति को अलकनंदा के नारकंडा में रख दिया था, जिसे बाद में आदि गुरु शंकराचार्य ने वहां से हटा दिया और यहां फिर से स्थापित कर दिया। यहां के मुख्य पुजारी निबुदरी संप्रदाय के एक दक्षिण भारतीय पुजारी हैं, जिन्हें 'रावल' कहा जाता है।
भक्तों की सहायता करते हैं ईश्वर
14 Feb, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
ईश्वर को हम भले ही न देख पाएं लेकिन ईश्वर हर क्षण हमें देख रहा होता है। उसकी दृष्टि हमेशा अपने भक्तों एवं सद्व्यक्तियों पर रहती है। अगर आप गौर करेंगे तो पाएंगे कि जीवन में कभी न कभी कठिन समय में ईश्वर स्वयं आकर आपकी सहायता कर चुके हैं। उस कठिन समय में आपके अंदर भक्ति की भावना उमड़ रही होगी और आप ईश्वर को याद कर रहे होंगे। शास्त्र कहता है कि ईश्वर के लिए संसार का हर जीव उसकी संतान के समान है। जो व्यक्ति उसके बनाये नियमों का पालन करते हुए जीवन यापन करता है ईश्वर उसकी सहायता अवश्य करते हैं।
गजराज की कहानी आपने जरूर सुनी या पढ़ी होगी। नदी में गजराज को मगरमच्छ ने पकड़ लिया। इस कठिन समय में गजराज ने भगवान को पुकारा और भगवान विष्णु प्रकट हो गये। भगवान ने अपने चक्र से मगरमच्छ का सिर काट दिया और गजराज के प्राण की रक्षा की। सूरदास जी के जीवन की भी एक ऐसी ही कथा है।
सूरदास जी देख नहीं सकते थे। एक बार गलती से एक गड्ढ़े में गिर गये। गड्ढ़े से निकलने का काफी प्रयास करने पर भी वह बाहर निकलने में असफल रहे। इस स्थिति में सूरदास जी ने गोपाल को पुकारा। भगवान श्री कृष्ण बालक रूप में पहुंच गये और सूरदास जी को गड्ढ़े से बाहर निकाला। मीरा के प्राण की रक्षा के लिए भगवान ने मीरा को मारने के लिए भेजे गये विष को प्रभावहीन कर दिया।
बघेलखण्ड के बान्धवगढ़ में रहने वाले सेन नामक नाई की भी भगवान ने सहायता की और बघेलखंड का राजा सेन नाई का भक्त बन गया। यह घटना पांच छ: सौ साल पुरानी है। सेन नाई राजा की सेवा करता था। इसका काम प्रतिदिन राजा की हजामत बनाना और तेल मालिश करके स्नान कराना था। एक दिन सेन नाई जब राजमहल की ओर चला तब रास्ते में संतों की टोली मिल गयी। नाई उन्हें लेकर घर आ गया और उनकी खूब सेवा की। संतों के साथ बैठकर संत्संग में भाग लिया।
राजा के स्नान करने का समय बीता जा रहा था। नाई के नहीं आने से राजा क्रोधित हो रहे थे। इसी समय भगवान स्वयं सेन नाई का वेष धारणकर राजा की सेवा में पहुंच गये। नई बने भगवान की सेवा से राजा का क्रोध दूर हो गया और मन हर्षित हो गया। सत्संग समाप्त होने के बाद सेन नाई को याद आया कि राजा की सेवा में देरी हो गयी है। हजामत का सामान लेकर डरता हुआ सेन नाई राजमहल में पहुंचा।
राजा को देर से आने का कारण बताने लगा। इस पर राजा ने कहा कि तुम तो मेरी हजामत बना चुके हो। आज तुम्हारी सेवा से मैं अत्यंत प्रसन्न हूं। नाई समझ गया कि आज उसके कारण भगवान को नाई बनना पड़ा। इससे नाई को बड़ा अफसोस हुआ। राजा को जब इस बात का ज्ञान हुआ कि नाई की भक्ति की लाज रखने के लिए भगवान स्वयं आज नाई बनकर आये थे। राजा नाई की भक्त बन गया और उसे अपना गुरू मान लिया। ऐसी कई घटनाएं हैं जो ईश्वर के अस्तित्व और उसकी सहायता का प्रमाण देते हैं। इसलिए कभी भी खुद को बेसहारा नहीं समझना चाहिए। ईश्वर पर आस्था रखने वालों की ईश्वर सदैव सहायता करते हैं।
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (14 फरवरी 2023)
14 Feb, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- बेचैनी उद्विघ्नता से बचियें, समय पर सोचे कार्य अवश्य ही होवेंगे।
वृष राशि :- चिन्तायें कम होंगी, सफलता के साधन जुटायें, तथा अचानक लाभ होवेगा।
मिथुन राशि :- सफलता के साधन जुटायें, व्यावसायिक क्षमता में वृद्धि अवश्य ही होवेगी।
कर्क राशि :- व्यर्थ धन का व्यय, समय व शक्ति नष्ट होवे, विघटनकारी तत्व परेशान करेंगे।
सिंह राशि :- भोग ऐश्वर्य से स्वास्थ्य नरम हो, विरोधी वर्ग परेशान अवश्य ही करेंगे।
कन्या राशि :- धन समय नष्ट हो, क्लेश अशांति यात्रा से कष्ट अवश्य ही होवेगा।
तुला राशि :- परिश्रम से सफलता के साधन अवश्य ही जुटाये कार्य बाधा से परेशानी होगी।
वृश्चिक राशि :- चोट आदि से बचिये, क्लेश व अशांति के रोग अवश्य ही बनेंगे, ध्यान रखें।
धनु राशि :- भाग्य का सितारा साथ देगा किन्तु मानसिक क्लेश व अशांति बनेगी।
मकर राशि :- परिश्रम विफल हो मानसिक उद्विघ्नता व्यय तथा यात्रा में कष्ट होगा।
कुंभ राशि :- आकस्मिक घटना से चोट आदि का भय होगा, कार्य का ध्यान अवश्य रखें।
मीन राशि :- अधिकारियों से कष्ट इष्ट मित्र सहायक होंगे, तनाव अवश्य ही बनेगा।
16 या 17 फरवरी? विजया एकादशी की सही तिथि, पूजन विधि और महत्व
13 Feb, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
व्रतों में प्रमुख व्रत नवरात्रि, पूर्णिमा, अमावस्या और एकादशी के हैं. उसमें भी सबसे बड़ा व्रत एकादशी का माना जाता है. चंद्रमा की स्थिति के कारण व्यक्ति की मानसिक और शारीरिक स्थिति खराब और अच्छी होती है ऐसी दशा में एकादशी व्रत से चंद्रमा के बुरे प्रभाव को रोका जा सकता है.
यहां तक कि एकादशी का व्रत रखने से ग्रहों के असर को भी काफी कम किया जा सकता है.
विजया एकादशी अपने नाम के अनुसार विजय दिलाने वाली मानी जाती है. इस एकादशी पर भगवान विष्णु की उपासना होती है. इस एकादशी का व्रत करने से भयंकर विपत्तियों से छुटकारा पा सकते हैं. विजया एकादशी पर पूजा उपासना करने से बड़े से बड़े शक्तिशाली शत्रुओं को परास्त कर सकते हैं. इस बार विजया एकादशी की डेट को लेकर भी लोगों में बहुत कन्फ्यूजन है कि विजया एकादशी 16 फरवरी या 17 फरवरी को मनाई जाएगी.
विजया एकादशी शुभ मुहूर्त (Vijaya Ekadashi 2023 Shubh Muhurat)
विजया एकादशी का व्रत फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी को रखा जाता है. पंडित अरुणेश कुमार शर्मा के मुताबिक, इस बार विजया एकादशी 16 फरवरी और 17 फरवरी दोनों दिन मनाई जाएगी. विजया एकादशी की तिथि का प्रारंभ 16 फरवरी को सुबह 05 बजकर 32 मिनट पर होगा और इसका समापन 17 फरवरी को रात 02 बजकर 49 मिनट पर होगा. उदयातिथि के अनुसार विजया एकादशी 16 फरवरी को ही मनाई जाएगी. वैष्णव समुदाय की एकादशी 17 फरवरी को ही मनाई जाएगी. विजया एकादशी का पारण 17 फरवरी को सुबह 08 बजकर 01 मिनट से लेकर 09 बजकर 13 मिनट तक रहेगा.
विजया एकादशी पूजन विधि (Vijaya Ekadashi 2023 Pujan Vidhi)
विजया एकादशी से एक दिन पहले उसपर एक वेदी बनाकर उस पर सप्त धान्य रखें. विजया एकादशी के दिन श्री हरि की स्थापना एक कलश पर करें. इसके बाद श्रद्धापूर्वक श्री हरि का पूजन करें. मस्तक पर सफेद चंदन या गोपी चंदन लगाकर पूजन करें. उसके बाद पंचामृत, फूल और ऋतुफल अर्पित करें. इस दिन उपवास रखना बहुत ही उत्तम माना जाता है, अगर आहार ग्रहण करनी ही है तो सात्विक आहार ग्रहण करें. शाम को आहार ग्रहण करने से पहले उपासना और आरती जरूर करें. अगले दिन प्रात: काल उसी कलश का और अन्न वस्त्र का दान करें.
विजया एकादशी की सावधानियां (Vijaya Ekadashi Mistakes)
1. अगर उपवास रखें तो बहुत उत्तम होगा, नहीं तो एक समय सात्विक भोजन ग्रहण करें.
2. विजय एकादशी के दिन चावल और भारी खाने का सेवन ना करें.
3. रात में इस दिन भगवान विष्णु की पूजा आवश्य करें.
4. इस दिन क्रोध न करें, अपनी वाणी पर नियंत्रण रखें और आचरण पर भी नियंत्रण रखें.
विजया एकादशी व्रत कथा
ऐसा कहा जाता है कि त्रेता युग में जब भगवान श्री राम लंका पर चढ़ाई करने के लिए समुद्र तट पर पहुँचे, तब मर्यादा पुरुषोत्तम ने समुद्र देवता से मार्ग देने की प्रार्थना की परन्तु समुद्र देव ने श्री राम को लंका जाने का मार्ग नहीं दिया तब श्री राम ने वकदालभ्य मुनि की आज्ञा के अनुसार विजय एकादशी का व्रत विधि पूर्वक किया जिसके प्रभाव से समुद्र ने प्रभु राम को मार्ग प्रदान किया. इसके साथ ही विजया एकादशी का व्रत रावण पर विजय प्रदान कराने में सहायक सिद्ध हुआ और तभी से इस तिथि को विजया एकादशी के नाम से जाना जाता है.
शिव चालीसा के पाठ से पूरी हो सकती है हर मनोकामना, महाशिवरात्रि पर जरूर करें
13 Feb, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए साल में कई व्रत-उपवास किए जाते हैं, इन सभी में महाशिवरात्रि सबसे प्रमुख है। इस बार ये पर्व 18 फरवरी, शनिवार को है। इस दिन कई शुभ योग भी बन रहे हैं, जिसके चलते इस पर्व का महत्व और भी बढ़ गया है।
वैसे तो शिवजी की पूजा के लिए अनेक मंत्रों, स्तुतियों और स्त्रोतों की रचना हमारे विद्ववान ऋषि-मुनियों में की है, लेकिन इन सभी में शिव चालीसा (Shiv Chalisa) का महत्व काफी अधिक है। महाशिवरात्रि (mahashivratri 2023) पर अगर शिव चालीसा का पाठ सच्चे मन से किया जाए तो हर तरह की परेशानियों से बचा जा सकता है और आपकी हर कामना भी पूरी हो सकती है। ये है शिव चालीसा.
दोहा
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान ॥
चौपाई (Shiv Chalisa)
जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला ॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के ॥
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन क्षार लगाए ॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देखि नाग मन मोहे॥
मैना मातु की हवे दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी ॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे ॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥
दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥
प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला। जरत सुरासुर भए विहाला॥
कीन्ही दया तहं करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भए प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनन्त अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै। भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। येहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहि आन उबारो॥
मात-पिता भ्राता सब होई। संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु मम संकट भारी॥
धन निर्धन को देत सदा हीं। जो कोई जांचे सो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। शारद नारद शीश नवावैं॥
नमो नमो जय नमः शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पर होत है शम्भु सहाई॥
ॠनियां जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र हीन कर इच्छा जोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे॥
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा। ताके तन नहीं रहै कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्त धाम शिवपुर में पावे॥
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी ॥
दोहा
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥
भगवान की नज़र में हर इनसान बराबर है
13 Feb, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
इतिहास के पन्नों को उलट करके देखेंगे तो पाएंगे कि आज जितना ऊंच-नीच एवं अमीर-गरीब का भेद-भाव है वह वैदिक काल के आरंभ में नहीं था। उस समय सामाजिक व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए कर्म के अनुसार वर्ग विभेद किया गया। लेकिन बाद में व्यवस्थाओं में जटिलता आती गयी और भेद-भाव बढ़ता गया। लेकिन यह भेद-भाव ऊपरी स्तर पर है। मूल में कहीं भेद-भाव नहीं है। मूल ईश्वर है और ऊपरी दुनिया वह है जहां हम मनुष्य और जीव-जन्तु विचरण करते हैं।
भगवान की नज़र में सभी एक समान हैं। ईश्वर की दृष्टि में न तो जात-पात है और न लिंग भेद। श्री रामानंदाचार्य ने कहा है जात-पात पूछे न कोई। हरि को भजे सो हरि का होई।। भगवान कभी किसी के साथ किसी आधार पर भेद-भाव नहीं करते हैं। केवट ने भगवान से प्रेम किया तो भगवान बिना किसी भेद-भाव के केवट की नैया में बैठे और केवट की जीवन नैया को पार लगा दिया। श्री राम के चरण रज को पीकर केवट परम पद पाने में सफल हुआ। भगवान की दृष्टि में सभी बराबर हैं इसका उदाहरण भक्त सबरी के जीवन की एक घटना है। सबरी भील जाति की एक महिला थी। राम की भक्ति इनके मन में ऐसी बसी की राम में ही खुद को अर्पित कर दिया। एक बार सबरी मार्ग में झाड़ू लगा रही थी उस समय साधुओं का एक समूह मार्ग से गुजरा। अनजाने में सबरी का स्पर्श साधुओं से हो गया।
साधु इससे नाराज हुए कि एक भीलनी उससे स्पर्श कर गयी। भगवान को यह बात अच्छी नहीं लगी। साधुओं को जात-पात के भेद-भाव की नासमझी को दूर करने के लिए भगवान ने एक लीला की। साधुगण जिस सरोवर में स्नान करते थे। उस सरोवर में जैसे ही साधुओं ने प्रवेश किया सरोवर का जल दूषित हो गया। सरोवर के जल से बदबू आने लगी। साधुओं ने सरोवर के जल को शुद्घ करने के लिए कई हवन और यज्ञ किया लेकिन कोई परिणाम नहीं निकला। एक दिन सीता की खोज करते हुए भगवान राम जब सबरी की कुटिया में पधारे तब साधुओं को अपने ऊपर काफी ग्लानि हुई। उन्हें समझ में आ गया कि सबरी की भक्ति उनकी भक्ति भावना से बढ़कर है। सभी साधु सबरी की कुटिया में पधारे।
भगवान राम के दर्शनों के पश्चात साधुओं ने राम से प्रार्थना की, कि सरोबर के जल को निर्मल करने का उपाय बताएं। भगवान राम ने साधुओं से कहा कि आप सबरी के पैरों को धोएं और उस जल को ले जाकर सरोबर में मिलाएं। इस उपाय को करने से सरोबर का जल निर्मल हो जाएगा। साधुओं ने ऐसा ही किया और सरोवर का जल सुगंधित और स्वच्छ हो गया।
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (13 फरवरी 2023)
13 Feb, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- बेचैनी, उद्विघ्नता से बचिये, सोचे कार्य समय पर पूर्ण होंगे, समय स्थिति का ध्यान अवश्य रखें।
वृष राशि :- सफलता के साधन जुटायें, व्यवसायिक क्षमता में वृद्धि अवश्य होगी, कार्य पर ध्यान दें।
मिथुन राशि :- चिन्तायें कम होंगी, सफलता के साधन जुटायें, व्यवसायिक क्षमता में वृद्धि होगी।
कर्क राशि :- धन का व्यर्थ व्यय, समय व शक्ति नष्ट होगी तथा कार्य विघटन अवश्य होगा।
सिंह राशि :- भोग-ऐश्वर्य में समय बीतेगा, विरोधियों से व्यर्थ टकराव होगा, समय का ध्यान रखें।
कन्या राशि :- धन व समय नष्ट होगा, क्लशे व अशांति बनेगी तथा यात्रा से कष्ट होगा।
तुला राशि :- परिश्रम से सफलता के साधन अवश्य जुटायें, कार्यगति में बाधा बनेगी ध्यान दें।
वृश्चिक राशि :- चोटादि से बचिये, क्लेश व अशांति से बचिये, कष्ट अवश्य होगा।
धनु राशि :- भाग्य का सितारा बुलन्द होगा, मेहनत कर रुके कार्य बना लें अन्यथा हानि होगी।
मकर राशि :- परिश्रम विफल होगा, चिन्ता व यात्रा, व्यवधान तथा समस्या का निदान अवश्य ढूंढ लें।
कुंभ राशि :- आकस्मिक घटना से चोटादि का भय होगा, रुके कार्य अवश्य बना लें।
मीन राशि :- अधिकारियों से कष्ट, मित्र सहायक होंगे, समय स्थिति का ध्यान रखकर कार्य करें।
फागुन में करें ये आसान उपाय, चमक जाएगी किस्मत
12 Feb, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में सभी महीनों को महत्वपूर्ण बताया गया है लेकिन फाल्गुन मास बेहद खास होता है इसे आम बोलचाल की भाषा में फागुन भी कहा जाता है, पंचांग के अनुसार ये साल का आखिरी महीना होता है इस बार फागुन की शुरुआत 6 फरवरी से हो चुकी है और इसका समापन 7 मार्च को हो जाएगा।
इस महीने में हर ओर खुशहाली का वातावरण रहता है ये महीना धार्मिक रूप से भी महत्वपूर्ण होता है क्योंकि इस महीने को देवी देवताओं की पूजा के लिए समर्पित किया गया है।
आपको बता दें कि फाल्गुन मास में भगवान कृष्ण, भगवान विष्णु और चंद्र देव की पूजा करना श्रेष्ठ होता है इस महीने कई सारे बड़े पर्व त्योहार भी मनाए जाते है जिसमें होली, महाशिवरात्रि प्रमुख है। ज्योतिष अनुसार इस महीने पूजा पाठ और व्रत के अलावा अगर कुछ उपायों को किया जाए तो लाभ मिलता है, ऐसे में आज हम आपको फाल्गुन मास में किए जाने वाले उपाय बता रहे है।
फागुन में करें ये आसान उपाय-
आपको बता दें कि फाल्गुन का महीना बेहद खास होता है इस महीने नियमों के पालन के साथ साथ अगर कुछ उपाय किए जाएं तो व्यक्ति को लाभ की प्राप्ति होती है मान्यता है कि इस महीने भगवान कृष्ण, श्री हरि विष्णु और चंद्र देव की आराधना करने से विशेष फलों की प्राप्ति होती है वही संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले जातक को इस पवित्र मास में भगवान श्रीकृष्ण के बालस्वरूप की आराधना विधिवत करनी चाहिए ऐसा करने से शीघ्र संतान सुख की प्राप्ति होती है।
वही प्रेम, विवाह आदि का सुख पाने के लिए भी इस महीने भगवान कृष्ण की पूजा उत्तम मानी जाती है मान्यता है कि इस महीने श्रीकृष्ण की पूजा खूशबूदार फूलों से करना उत्तम होता है साथ ही साथ आप इस पूरे महीने में भगवान को अबीर और गुलाल भी चढ़ा सकते है। इससे लाभ जरूर मिलेगा। फागुन में शिव को सफेद चंदन अर्पित करने से कष्टों में कमी आती है वही अगर कोई धन प्राप्ति की इच्छा रखता है तो ऐसे में इस पूरे महीने माता लक्ष्मी की पूजा कर उन्हें लाल गुलाब अर्पित करें ऐसा करने से धन प्राप्ति की इच्छा पूर्ण हो जाती है।
महाशिवरात्रि पर शिव को बेलपत्र चढ़ाने में न करें कोई गलती
12 Feb, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में वैसे तो कई सारे पर्व त्योहार मनाए जाते है और सभी का अपना महत्व होता है लेकिन महाशिवरात्रि का पर्व इन सभी में महत्वपूर्ण माना जाता है इस साल महाशिवरात्रि का त्योहार 18 फरवरी को देशभर में मनाया जाएगा।
पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि का व्रत पूजन किया जाता है इसी पवित्र दिन पर शिव पार्वती का शुभ विवाह हुआ था।
ऐसे में इस दिन शिव शंकर संग माता पार्वती की पूजा करना उत्तम मानी जाती है। मान्यता है कि बिना बेलपत्र के शिव पूजा अधूरी होती है ऐसे में इस दिन भोलेनाथ को बेलपत्र जरूर अर्पित करें लेकिन बेलपत्र चढ़ाते वक्त कुछ गलतियों को करने से बचना होगा। वरना भोलेबाबा नाराज़ हो सकते है, तो आज हम आपको बता रहे है कि बेलपत्र अर्पित करते वक्त किन गलतियों को नहीं करना चाहिए।
शिव को बेलपत्र अर्पित करने से जुड़े नियम-
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव को महाशिवरात्रि या फिर अन्य दिनों पर अगर आप बेलपत्र अर्पित कर रहे है तो हमेशा याद रखें की शिव को तीन मुखी बेलपत्र ही चढ़ाएं और इस बात का भी ध्यान रखें कि बेलपत्र में किसी भी तरह का कोई दाग न हो और नहीं इसके पत्ते कटे भटे हो। शिवलिंग पर भूलकर भी मुरझाया हुआ बेलपत्र नहीं अर्पित करना चाहिए।
ऐसा करने से शिव नाराज़ हो सकते है। जब भी आप शिवलिंग पर बेलपत्र अर्पित करने के लिए लाए तो उसे सबसे पहले पानी से धोकर साफ कर लें इसके बाद ही शिवलिंग पर अर्पित करें। ऐसा कहा जाता है कि भगवान को कभी भी झूठा या बासी बेलपत्र नहीं अर्पित करना चाहिए। इन सभी नियमों को ध्यान में रखते हुए अगर शिव पर बेलपत्र अर्पित किया जाए तो साधक को लाभ की प्राप्ति होती है।
तरक्की और धन के सारे रास्ते खोल देंगे मां कलिका से जुड़े ये उपाय
12 Feb, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
काली माता को बुराई का विनाश करने वाली देवी के रूप में जाना जाता है। मां काली की पूजा करने वाले भक्तों को जीवन में कभी भी भय का सामना नहीं करना पड़ता और उनके आशीर्वाद से व्यक्ति हमेशा दिन दोगुनी रात चौगुनी तरक्की करता है।
काली माता को प्रसन्न कर के तमाम तरह की परेशानियों से छुटकारा पाया जा सकता है। माता का स्वरूप चाहे गुस्से वाला हो लेकिन मां काली की अपने भक्तों के प्रति बहुत ही दयालुता और कर्तव्यनिष्ठा की भावना होती है। मां काली को बहुत ही आसान तरीके से खुश किया जा सकता है। तो आइए जानते हैं कि कौन से उपाय करने से मां को प्रसन्न कर तरक्की और धन के रास्ते खोले जा सकते हैं।
मां काली को खुश करने के उपाय:
नौकरी में तरक्की पाने के लिए : करियर में अगर रुकावटों का सामना करना पड़ रहा है तो मां काली को गुड़ का भोग लगाएं क्योंकि उन्हें गुड़ बहुत प्रिय है। आर्थिक स्थिति को सही करने के लिए गरीबों को गुड़ का दान करना चाहिए। ऐसा करने से मां सारी रुकावटों को दूर करती हैं।
बीमारियों को दूर भगाने के लिए: अगर बीमारियां आपका दामन पकड़ कर बैठ गई हैं तो शनिवार को मां काली के मंदिर जाकर उनके बीज मंत्र का जाप करना चाहिए।
Maa kali Mantra मंत्र: ।। ॐ क्रीं क्रीं क्रीं हलीं ह्रीं खं स्फोटय क्रीं क्रीं क्रीं फट ।।
परेशानियों से मुक्ति पाने के लिए इस मंत्र का कम से कम 21 बार जाप करना चाहिए।
शत्रु से पीछा छुड़ाने के लिए: मां काली मुश्किल समय में अपने भक्तों का साथ नही छोड़ती। अगर किसी का शत्रुओं से पाला पड़ गया है तो मां के मंदिर में सुबह और शाम आटे का दो मुंह वाला घी का दीपक जलाएं। ऐसा करने से शत्रु भी मित्र बनने के लिए मजबूर हो जाएगा।
पूजा घर में न रखें ये तस्वीर: वास्तुशास्त्र के अनुसार घर के उत्तर-पूर्व कोने में भगवान का मंदिर स्थापित करना सबसे अच्छा माना जाता है लेकिन कुछ ऐसी तस्वीरें होती हैं, जिन्हें कभी भी पूजा घर में नहीं रखना चाहिए। वास्तु विद्वानों के अनुसार रौद्र रूप में राक्षसों का संहार करते हुए मां काली की तस्वीर घर में नहीं रखनी चाहिए क्योंकि इस तस्वीर में मां काली अत्यंत गुस्से में दिखाई देती हैं। ऐसा करने से घर में नकारात्मकता का संचार होता है। दक्षिणा काली या महाकाली के चित्र को स्थापित किया जा सकता है। श्मशान काली की पूजा आमतौर पर तांत्रिकों द्वारा कब्रिस्तान में की जाती है।