धर्म एवं ज्योतिष (ऑर्काइव)
घर में भूत-प्रेत होने के कौन से संकेत मिलते हैं
22 Feb, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में वैसे तो कई सारे ग्रंथ और पुराण है लेकिन इन सभी पुराणों में गरुड़ पुराण महत्वपूर्ण माना जाता है इसे महापुराणों की श्रेणी में रखा गया है। मान्यता है कि इसमें मानव के जीवन, मृत्यु, आत्मा और भूत प्रेत के बारे में बहुत कुछ गहराई से बताया गया है। हमारे आस पास बहुत से ऐसे लोग है जो प्रेत भेत पर विश्वास नहीं करते है लेकिन कई ऐसे लोग भी है जो इन पर यकीन रखते है और यह जानना चाहते है कि कैसे पता करें कि किसी घर में भूत प्रेत का साया है या नहीं, अगर आप भी यह जानने के इच्छुक है कि आपके घर में भूत प्रेत का साया तो नहीं है, तो कुछ संकेतों से आप जान सकते है, तो आज हम आपको इन्हीं के बारे में बता रहे है।
इन संकेतों से करें पता-
धार्मिक ग्रंथों और पुराणों की मानें तो भगवान कृष्ण कहते है कि अगर भूख प्यार से व्याकुल होकर प्रेत योनि को प्राप्त मृत्यु परिजन उसके अपनों के घर में ही प्रवेश करते है और हवा के रूप में हमेशा वहां वास करते है यही कारण है कि पूर्वजों की आत्मा व्यक्ति को दिखाई नहीं देती है। आगे बताया गया है कि वायु रूप में ही वे अपने परिजनों के शरीर में प्रवेश कर जाते है और उन्हें रात्रि के वक्त अशुभ सपने दिखाते है। श्रीकृष्ण अनुसार मृत्यु के बाद मनुष्य की आत्मा प्रेत बनकर अपनी पत्नी, पुत्र और अपने परिजनों के शरीर में प्रवेश कर जाती है, ऐसा कहा जाता है कि अगर किसी को सपने में घोड़ा, हाथी या बैल जैसा कोई जानवर दिखाई दे रहा है या क्रोध में आपकी ओर आक्रमण कर रहा है तो आप इस बात को समझ ले कि आपके घर में प्रेत का वास है। वही अगर कोई व्यक्ति सोकर उठने के बाद भी खुद को बिस्तर पर विपरीत परिस्थिति में देखता है तो यह भी संकेत है कि उसके घर में भूत प्रेत वास कर रहे है। अगर आपके घर में आए दिन झगड़े होते रहते है या फिर अचानक ही धन हानि हो जाती है परिवार के लोग बार बार बीमार पड़ते हे तो भी समझ ले कि आपके घर में बुरी शक्तियों और नकारात्मकता का साया बना हुआ है।
होलिका दहन के वक्त करें ये उपाय, धन की समस्याओं से मिलेगा छुटकारा
22 Feb, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हर कोई अपने जीवन में धनवान बनने की चाह रखता है। इसके लिए लोग कड़ी मेहनत और प्रयास भी करते है लेकिन फिर भी कई बार सफलता हासिल नहीं होती है और उन्हें आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।जिसके कारण वे निराश और परेशान हो जाते है।ऐसे में निराश होने की बजाए अगर कुछ उपायों को सही दिन और वक्त पर किया जाए तो लाभ मिल सकता है और धन की कमी भी दूर हो जाती है। ज्योतिष अनुसार होलिका दहन के वक्त अगर कुछ उपायों को किया जाए तो लाभ की प्राप्ति जरूर होती है। तो आज हम आपको अपने इस लेख दवारा उन्हीं उपायों के बारे में बता रहे है।
होलिका दहन पर करें ये अचूक उपाय-
अगर आप मनचाही नौकरी की तलाश कर रहे है लेकिन वो अभी तक पूरी नहीं हुई है तो ऐसे में आप होलिका दहन के दिन कुछ उपायों को आजमा सकते है। इसके लिए आप होलिका दहन वाले दिन जहां होलिका जलाई जाती है वहां नारियल, पान, सुपारी आदि चढ़ाएं और नौकरी प्राप्ति के लिए प्रार्थना करें मान्यता है कि इस उपाय को करने से आपको जल्द ही शुभ समाचार की प्राप्ति होगी। अगर आप सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे है या फिर परीक्षा में सफलता पाना चाहते है तो ऐसे में आप होलिका दहन की शाम को घर की उत्तर दिशा की ओर अंखड ज्योति का दीपक जलाएं मान्यता है कि इस उपाय को करने से लाभ जरूर मिलेगा और सफलता हासिल होगी। धन से जुड़ी परेशानी अगर आपका पीछा नहीं छोड़ रही है या फिर धन आता है और खर्च हो जाता है बचत नहीं हो पा रही है तो ऐसे में आप होलिका दहन के वक्त नारियल के गोले में बुरा भरें इसके बाद इस गोले को होलिका की आग में रख दें। मान्यता है कि इस उपाय से धन की समस्याएं दूर हो जाती है और पैसों की बचत भी होने लगती है।
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (22 फरवरी 2023)
22 Feb, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- स्त्री वर्ग से हर्ष-उल्लास एवं कार्य कुशलता से निश्चय ही संतोष होगा।
वृष राशि :- योजनायें फलीभूत होंगी तथा स्वभाव में बेचैनी, कष्टप्रद स्थिति बनेगी।
मिथुन राशि :- कार्यक्षमता अनुकूल, कार्यवृत्ति में सुधार होगा तथा संघर्ष बना रहेगा।
कर्क राशि :- आर्थिक हानि, योजना बनकर बिगड़े, कार्य-व्यवसाय रुक कर बनेंगे।
सिंह राशि :- झगड़े के कारण व्यय होगा तथा आप आरोपित होने से बचिये।
कन्या राशि :- कार्य कुशलता से संतोष, इष्ट मित्र सुखवर्धक होंगे, ध्यान से कार्य करें।
तुला राशि :- योजनायें फलीभूत होंगी, इष्ट मित्र सुखवर्धक होंगे, समय का ध्यान अवश्य रखें।
वृश्चिक राशि :- मानसिक विभ्रम से हानि, समय स्थिति को ध्यान में रखते हुये कार्य अवश्य बना लें।
धनु राशि :- मानसिक विभ्रम, उपद्रव, असमंजस की स्थिति बनेगी तथा कार्य रुकेंगे।
मकर राशि :- दैनिक कार्यगति में सुधार, आर्थिक योजना अवश्य ही सुधरेगी ध्यान दें।
कुंभ राशि :- चिन्तायें कम होंगी, कुटुम्ब के कार्य में समय बीतेगा, कार्य अवरोध होगा।
मीन राशि :- स्त्री वर्ग से सुख-भोग, ऐश्वर्य की प्राप्ति, दैनिक कार्यगति अनुकूल होगी।
सबसे पहले किसने रचाया विवाह और कैसे शुरू हुई ये परंपरा
21 Feb, 2023 07:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हर धर्म में विवाह को महत्वपूर्ण बताया गया है और इसे त्योहार की तरह मनाया जाता है। लेकिन हिंदू धर्म में विवाह के दौरान बनने वाले पति पत्नी के रिश्ते को पवित्र बताया गया है।
मान्यता है कि विवाह होने से केवल दो लोग ही नहीं बल्कि दो परिवार मिलते है और एक दूसरे के सुख दुख के साथ हो जाते है।
अभी शादियों का सीजन चल रहा है और अधिकतर लोग शादी समारोह में आ जा रहे होंगे। लेकिन विवाह का नियम किसने बनाया और इस धरती पर सबसे पहले किसी शादी हुई अगर आपके भी मन में ये प्रश्न उछल कूद कर रहा है तो इसका उत्तर आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा दे रहे है तो आइए जानते है।
सनातन धर्म में कई ऐसी पौराणिक कथाएं है जो विवाह से जुड़ी मानी जाती है लेकिन एक कथा के अनुसार जब इस सृष्टि का निर्माण हुआ उस वक्त जगत का निर्माण करने वाले भगवान ब्रह्मा ने अपने शरीर के दो भाग कर दिए थे और ये दो टुकड़े में से एक को का नाम दिया गया और दूसरे को या नाम दिया गया। इसी प्रकार इन टुकड़े के मिलने पर काया का निर्माण हुआ। और इसी काया से पुरुष और स्त्री का जनम माना जाता है। फिर इसी काया से दो तत्व बने। जिसमें पुरुष तत्व को स्वयंभू मनु नाम दिया और स्त्री को शतरूपा के नाम से जाना गया। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मनु और शतरूपा को ही इस धरती का सबसे पहला मानव माना गया है।
कहा जाता है कि जब ये दोनों धरती पर एक दूसरे से मिले तो भगवान ब्रह्मा से इन्हें पारिवारिक ज्ञान और संस्कार की प्राप्ति हुई और इसी तरह से इन्हें वैवाहिक जीवन में आन का ज्ञान प्राप्त हुआ। अगर हम पुराणों को देखे तो उसमें वर्णित है कि विवाह की परंपरा का आरंभ श्वेत ऋषि के द्वारा हुई। इन्हीं के द्वारा विवाह पंरपरा में सिंदूर, मर्यादा, महत्व, मंगलसूत्र, सात फेरो और विवाह के दौरान किए जाने वाले रीति रिवाज़ बने। श्वेत ऋषि ने ही विवाह के बाद पति पत्नी को एक बराबर का दर्जा और सम्मान प्रदान किया है माना जाता है इन्हीं से विवाह की प्रथा का आरंभ हुआ जो कि अब तक चला आ रहा है।
पीपल से जुड़ी ये गलती तबाह कर सकती है आपकी पूरी जिंदगी
21 Feb, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में पेड़ पौधो को बेहद ही खास माना जाता है मान्यता है कि कुछ ऐसे पौधे व वृक्ष होते है जिनमें देवी देवताओं का वास होता है और लोग इनकी विधिवत पूजा भी करते है इन्हीं में से एक है पीपल का पेड़।पीपल के पेड़ को बेहद पवित्र और पूजनीय माना जाता है। लेकिन धार्मिक शास्त्रों में पीपल के पेड़ और उसकी पूजा को लेकर कुछ खास बातें बताई गई है, जिनका अगर पालन किया जाए तो लाभ मिलता है लेकिन अनदेखी करने वालों को कई परेशानियों व कष्टों का सामना करना पड़ सकता है। तो आज हम आपको पीपल से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें बता रहे है, तो आइए जानते है।
पीपल से जुड़े नियम-
धार्मिक शास्त्रों के अनुसार भूलकर भी रविवार के दिन पीपल के पेड़ की पूजा नहीं करनी चाहिए। ऐसा करना अशुभ माना जाता है मान्यता है कि रविवार के दिन अगर कोई पीपल की पूजा करता है तो उसके धन संकट का सामना करना पड़ सकता है और साथ ही साथ घर परिवार में रोग, क्लेश, शोक छा जाता है। मान्यता है कि पीपल के पेड़ पर माता लक्ष्मी और उनकी बहन दरिद्रा का वास होता है।ऐसे में अगर कोई रविवाह के दिन पीपल के पेड़ की पूजा आराधना करता है तो उसके घर और जीवन में दरिद्रा छा जाती है जिसके कारण व्यक्ति के पूरे परिवार को धन से जुड़ा संकट झेलना पड़ता है और जीवन में कई तरह की दिक्कतें आ जाती है ऐसे घर को माता लक्ष्मी छोड़ देती है और वहां दरिद्रा का वास हो जाता है।
श्री रामकृष्ण परमहंस की 188वीं जयंती के अवसर पर बेलूर मठ में भक्तों की भीड़
21 Feb, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हावड़। 21 फरवरी का दिन कई मायनों में खास है। एक तरफ आज अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस है, जो पूरे देश में मनाया जा रहा है। वहीं दूसरी ओर आज श्री रामकृष्ण परमहंस की 188वीं जयंती भी मनाई जा रही है।उनके जयंती के अवसर पर बेलूर मठ को सजाया गया। सुबह साढ़े चार बजे से एक के बाद एक रस्में शुरू निभाई जा रहीं हैं। बेलूर मठ परिसर में हर साल की तरह आज दिनभर सैकड़ों श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ता नजर आ रहा है।
सुबह 4:30 बजे मुख्य मंदिर में मंगलाआरती के साथ कार्यक्रम की शुरुआत हुई। वहां वेदों का पाठ और भजन गाए गयें। तब भिक्षुओं और भक्तों ने बेलूर मठ के मैदान का चक्कर लगाया और उषा कीर्तन का जाप किया। बेलूर मठ के अधिकारियों की तरफ से जारी अधिसूचना के मुताबिक, कई स्वामीजी विभिन्न कार्यक्रमों में भाग लिया। प्रातः 10:30 से 11:25 बजे तक श्री श्री रामकृष्ण लीला प्रसंग वाचन एवं व्याख्या का कार्यक्रम चला। इसमें स्वामी अमितेशानंद महाराज शामिल हुए और बांसुरी वादन 11:30 से 12:20 मिनट तक हुई।
इसके बाद एक गाथागीत हुई जिसमें नरेंद्रपुर रामकृष्ण मिशन के छात्रों भाग लिया। श्री रामकृष्ण के जीवन और शब्दों पर भजन, धर्म सभा, कई वाचन और व्याख्याएं भी हुई। इसमें स्वामी सुबीरानंद महाराज, स्वामी चेंतानंद महाराज, स्वामी ईश्वरानंद महाराज और स्वामी राघवेंद्र नंद महाराज शामिल हुए। बेलूर मठ परिसर में सुबह से ही असंख्य श्रद्धालुओं का जमावड़ा देखा जा रहा है। साथ ही दर्शकों को खिचड़ी का लुत्फ उठाने की व्यवस्था की गई है। कोरोना के उपरांत बेलूर मठ में श्री श्री रामकृष्ण परमहंस की 188वीं जयंती बड़े उत्साह के साथ मनाई जा रही है। पूरे महोत्सव को बेलूर रामकृष्ण मठ, रामकृष्ण मिशन और बेलूर मठ के फेसबुक पेज और यूट्यूब चैनल के माध्यम से लाइव स्ट्रीम किया गया।
हर शाम करें ये काम, दूर हो जाएगी दुख परेशानी
21 Feb, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हर कोई अपने जीवन में सुख शांति और समृद्धि चाहता है इसके लिए लोग प्रयास भी करते है मगर फिर भी अगर जीवन में दुख तक्लीफें कम नहीं हो रही है और खुशियों ने आपका साथ छोड़ दिया है तो ऐसे में आप कुछ उपायों को कर सकते है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अगर हर शाम श्री ललिता सहस्त्ननाम स्तोत्र का संपूर्ण पाठ किया जाए तो साधक को इसका पूरा लाभ जरूर मिलता है और मां ललिता के आशीर्वाद से दुख परेशानियां सदा के लिए दूर हो जाती है।
श्री ललिता सहस्त्ननाम स्तोत्र-
अङ्गं हरे: पुलकभूषणमाश्रयन्ती
भृङ्गाङगनेव मुकुलाभरणं तमालम् ।
अङ्गीकृताखिलविभूतिरपाङ्गलीला
माङ्गल्यदास्तु मम मङ्गलदेवतायाः ॥ १ ॥
मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारेः
प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि ।
माला दृशोर्मधुकरीव महोत्पले
या सा मे श्रियं दिशतु सागरसम्भवायाः ॥ २ ॥
विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्ष-
मानन्दहेतुरधिकं मुरविद्विषोsपि ।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्ध-
मिन्दीवरोदरसहोदरमिन्दिरायाः ॥ ३ ॥
आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्द-
मानन्दकन्दमनिषमनङ्गतन्त्रम् ।
आकेकरस्थितकनीनिकपक्ष्मनेत्रं
भूत्यै भवेन्मम भुजङ्गशयाङ्गनायाः ॥ ४ ॥
बाह्वन्तरे मधुजितः श्रितकौस्तुभे
या हारावलीव हरिनीलमयी विभाति ।
कामप्रदा भगवतोsपि कटाक्षमाला
कल्याणमावहतु मे कमलालयायाः ॥ ५ ॥
कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारे-
र्धाराधरे स्फुरति या तडिदङ्गनेव ।
मातुः समस्तजगतां महनीयमूर्ति-
र्भद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनायाः ॥ ६ ॥
प्राप्तं पदं प्रथमतः किल यत्प्रभावान्
माङ्गल्यभाजि मधुमाथिनी मन्मथेन ।
मय्यापतेत्तदिह मन्थरमीक्षणार्धं
मन्दालसं च मकरालयकन्यकायाः ॥ ७ ॥
दद्याद् दयानुपवनो द्रविणाम्बुधारा-
महागणेश निर्भिन्न विघ्नयन्त्र प्रहर्षिता ।
भण्डासुरेन्द्र निर्मुक्त शस्त्र प्रत्यस्त्र वर्षिणी ॥ ३१ ॥
करांगुलि नखोत्पन्न नारायण दशाकृतिः ।
महा पाशुपतास्त्राग्नि निर्दग्धासुर सैनिका ॥ ३२ ॥
कामेश्र्वरास्त्र निर्दग्ध सभण्डासुर शून्यका ।
ब्रह्मोपेन्द्र महेन्द्रादि देव संस्तुत वैभवा ॥ ३३ ॥
हर नेत्राग्नि संदग्ध काम संजीवनौषधिः ।
श्रीमद्वाग्भव कूटैक स्वरुप मुख पंकजा ॥ ३४ ॥
कण्ठाधः कटि पर्यन्त मध्यकूट स्वरुपिणी ।
शक्तिकूटैकतापन्न कट्यधोभाग धारिणी ॥ ३५ ॥
मूलमंत्रात्मिका मूलकूटत्रय कलेबरा ।
कुलामृतैक रसिका, कुलसंकेत पालिनी ॥ ३६ ॥
कुलांगना, कुंलान्तस्था, कौलिनी, कुलयोगिनी ।
अकुला समयान्तस्था समयाचार तत्परा ॥ ३७ ॥
मूलाधारैक निलया ब्रह्मग्रंथि विभेदिनी ।
मणिपूरान्तरुदिता विष्णुग्रंथि विभेदिनी ॥ ३८ ॥
आज्ञाचक्रान्तरालस्था रुद्रग्रंथि विभेदिनी ।
सहस्त्रारांबुजारुढा सुधारासाराभिवर्षिणी ॥ ३९ ॥
तडिल्लता समरुचिः षट्चक्रोपरि संस्थिता ।
महासक्तिः, कुण्डलिनी बिसतन्तु तनीयसी ॥ ४० ॥
भवानी भावनागम्या भवारण्य कुठारिका ।
भद्रप्रिया भद्रमूर्ति र्भक्त सौभाग्यदायिनी ॥ ४१ ॥
भक्तिप्रिया भक्तिगम्या भक्तिवश्या भयापहा ।
शांभवी शारदाराध्या, शर्वाणी शर्मदायिनी ॥ ४२ ॥
शांकरी श्रीकरी साध्वी शरच्चंद्र निभानना ।
शातोदरी शान्तिमती निराधारा निरंजना ॥ ४३ ॥
निर्लेपा निर्मला नित्या निराकारा निराकुला ।
निर्गुणा निष्कला शान्ता निष्कामा निरुपल्लवा ॥ ४४ ॥
नित्यमुक्ता निर्विकारा निष्प्रपंचा निराश्रया ।
नित्यशुद्धा नित्यबुद्धा निरवद्दा निरन्तरा ॥ ४५ ॥
निष्कारणा निष्कलंका निरुपाधि र्निरीश्वरा ।
निरागा रागमथनी निर्मदा मदनाशिनी ॥ ४६ ॥
निश्चिन्ता निरहंकारा निर्मोहा मोहनाशिनी ।
निर्ममा ममताहन्त्री, निष्पापा पापनाशिनी ॥ ४७ ॥
निष्क्रोधा क्रोधशमनी, निर्लोभा लोभनाशिनी ।
निःसंशया संशयघ्नी, निर्भवा, भवनाशिनी ॥ ४८ ॥
निर्विकल्पा निराबाधा निर्भेदा भेदनाशिनी ।
निर्नाशा मृत्युमथनी निष्क्रिया निष्परिग्रहा ॥ ४९ ॥
निस्तुला नीलचिकुरा निरपाया निरत्यया ।
दुर्लभा दुर्गमा दुर्गा दुःखहन्त्री सुखप्रदा ॥ ५० ॥
दुष्टदूरा दुराचारशमनी दोष वर्जिता ।
सर्वज्ञा सान्द्रकरुणा समानाधिक वर्जिता ॥ ५१ ॥
सर्वशक्तिमयी सर्वमंगला सद्गति प्रदा ।
सर्वेश्वरी सर्वमयी सर्वमन्त्र स्वरुपिणी ॥ ५२ ॥
सर्व यन्त्रात्मिका सर्व तन्त्ररुपा मनोन्मनी ।
माहेश्वरी महादेवी महालक्ष्मी र्मृडप्रिया ॥ ५३ ॥
महारुपा महापूज्या महा पातक नाशिनी ।
महामाया महासत्वा महाशक्ति र्महारतिः ॥ ५४ ॥
महाभोगा महैश्वर्या महावीर्या महाबला ।
महाबुद्धि र्महासिद्धि र्महायोगेश्वरेश्वरी ॥ ५५ ॥
महातन्त्रा, महामन्त्रा महायन्त्रा महासना ।
महायाग क्रमाराध्या महाभैरव पूजिता ॥ ५६ ॥
महेश्वर महाकल्प महाताण्डव साक्षिणी ।
महाकामेश महिषी महात्रिपुरसुन्दरी ॥ ५७ ॥
चतुष्षष्ट्युपचाराढ्या चतुष्षष्टिकलामयी ।
महाचतुः षष्टिकोटि योगिनी गणसेविता ॥ ५८ ॥
मनुविद्दा चन्द्रविद्दा चंद्रमण्डल मध्यगा ।
चारुरुपा चारुहासा चारुचन्द्र कलाधरा ॥ ५९ ॥
चराचर जगन्नाथा चक्रराज निकेतना ।
पार्वती पद्मनयना पद्मराग समप्रभा ॥ ६० ॥
होली के बाद बनेगी राहु-शुक्र की युति, इन 4 राशियों की बढ़ेगी मुश्किल
21 Feb, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
Shukra Rahu Yuti: शुक्र को भौतिक सुख, कला और सौंदर्य का कारक ग्रह माना जाता है. वैसे तो शुक्र ग्रह जीवन में बहुत ही शुभ परिणाम लेकर आता है, लेकिन राहु, केतु या मंगल के साथ इसकी युति नकारात्मक प्रभाव का कारण बन जाती है.
इस बार होली के ठीक चार दिन बाद यानी 12 मार्च को मेष राशि में शुक्र और राहु की युति बनने जा रही है. यहां दोनों ग्रह 6 अप्रैल 2023 तक साथ रहेंगे. आइए जानते हैं कि शुक्र-राहु की यह युति किन राशियों को नुकसान पहुंचा सकती है.
मेष राशि- शुक्र-राहु की युति आपके लग्न भाव में बनने वाली है. ज्योतिष गणना के अनुसार, शुक्र-राहु की युति आपके रिश्तों को प्रभावित कर सकती है. आप किसी ऐसे इंसान के करीब आ सकते हैं, जो आपके लिए सही नहीं है. रिश्तों में आपके साथ धोखा हो सकता है. प्रेम के मामले में आप थोड़े कन्फ्यूज हो सकते हैं. दांपत्य जीवन में मधुरता बनाए रखने के लिए आपको कड़े प्रयास करने पड़ सकते हैं.
वृषभ राशि- राहु-शुक्र की युति के बाद वृषभ राशि के जातकों को नए रिश्तों में सावधानी के साथ आगे बढ़ना होगा. पुराने रिश्ते आपकी चिंता का कारण बन सकते हैं. प्रेम जीवन में आपको बहुत समझदारी के साथ फैसले लेने होंगे. इस अवधि में आपको अपनी वाणी और व्यवहार पर भी नियंत्रण रखना होगा. ख्याल रखें कि आपकी बातों से दूसरों का मन बिल्कुल दुखी न हो.
कन्या राशि- शुक्र-राहु की युति कन्या राशि का जातकों की मुश्किलें भी बढ़ा सकती है. आपके वाणी कठोर हो सकती है. आपके व्यवहार से लोग परेशान हो सकते हैं. दुर्घटना होने की संभावनाएं रहेंगी, इसलिए वाहन चलाते समय पूर्ण सावधानी बरतें. अपने जीवनसाथी को प्राथमिकता दें. उनके साथ दुर्व्यवहार बिल्कुल न करें.
मीन राशि- शुक्र और राहु की युति मीन राशि के जातकों की टेंशन भी बढ़ा सकती है. आपको अपने दांपत्य जीवन में बहुत सावधानी के साथ रहना होगा. प्रेम जीवन की समस्याओं को सुलझाने में दिक्कतें आएगी. परिवार का सपोर्ट नहीं मिलेगा. पति-पत्नी के बीच अनबन भी बढ़ सकती है. गृह क्लेश और तनाव जैसी स्थिति बनती दिखाई दे रही है.
क्या है उपाय?
यदि शुक्र और राहु की युति किसी जातक को बहुत ज्यादा परेशान करने लगे तो कुछ विशेष उपाय कर लेना उचित होता है. प्रतिदिन सुबह शुक्र के मंत्र 'ॐ शुं शुक्राय नमः' का एक माला जाप करें. शुक्रवार को नियमित उपवास करें. शुक्रवार को भोजन में दही या खीर जैसी चीजों का प्रयोग करें. शुक्रवार को सफेद रंग के वस्त्र धारण करें. ज्योतिष से सलाह लेकर शुक्र के रत्न डायमंड या ओपल को धारण करें. राहु की स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पक्षियों को सतनाज दें. जरूरतमंदों को अन्नदान करें.
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (21 फरवरी 2023)
21 Feb, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- इष्ट मित्रों से कार्य में बेचैनी व रुकावट होगी, असमर्थता का वातावरण रहेगा।
वृष राशि :- आशानुकूल सफलता से कार्य बनेंगे, रुके कार्य बनने के योग हैं ध्यान अवश्य दें।
मिथुन राशि :- परिश्रम से सफलता, कार्य बनेंगे, रुके कार्य एक-एक करके बनेंगे।
कर्क राशि :- कुटुम्ब की समस्यायें कुछ सुलझें, व्यवसायिक क्षमता अवश्य बढ़ेगी।
सिंह राशि :- विशेष कार्य स्थिगित रखें, किसी विवाद या झगड़े से निश्चय हानि होगी।
कन्या राशि :- सोचे कार्य परिश्रम से पूर्ण होंगे, समय स्थिति का ध्यान रखकर कार्य अवश्य करें।
तुला राशि :- आशानुकूल सफलता से हर्ष, दैनिक कार्य में सुधार होगा, धैर्यपूर्वक कार्य करें।
वृश्चिक राशि :- तनाव, क्लेश व अशांति, मानसिक विभ्रम, उत्तेजना से बचने का प्रयास करें।
धनु राशि :- धन लाभ, बिगड़े हुये कार्य बनेंगे, इष्ट मित्र सुखवर्धक होंगे, समय का ध्यान रखें।
मकर राशि :- विशेष कार्य बिगड़ेंगे, विवाद झगड़े का कारण बनेगा, विवादास्पद स्थिति से बचें।
कुंभ राशि :- कुटुम्ब के कार्य में समय बीतेगा, स्त्री वर्ग से तनाव अवश्य ही होगा।
मीन राशि :- तनाव, क्लेश व अशांति, व्यर्थ विभ्रम, धन का व्यय तथा अवरोध होगा।
तीर्थों का गुरु माना जाता है पुष्कर, देश का एकमात्र भगवान ब्रह्मा जी का मंदिर है यहां
20 Feb, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
पुष्कर झील के पास जगतपिता ब्रह्मा मंदिर स्थित है. यह देश का अकेला ब्रह्मा मंदिर है. यह मंदिर 14वीं शताब्दी में संगमरमर से बनाया गया था, जिसकी अनूठी वास्तुकला दर्शनीय है. यह मंदिर चांदी के सिक्कों से जड़ा हुआ है.
पूजा स्थल के अंदर गर्भगृह में ब्रह्मा के चित्र सुशोभित हैं. विवाहित पुरुषों को गर्भगृह में प्रवेश की अनुमति नहीं है. यह स्थान केवल तपस्वियों या संन्यासियों के लिए आरक्षित है. इस मंदिर में सूर्य भगवान की संगमरमर से बनी मूर्ति भी है.
गुलाब उद्यान के नाम से भी जाना जाता है शहर
पुष्कर राजस्थान के अजमेर जिले में स्थित एक बहुत खूबसूरत शहर है, जिसे गुलाब उद्यान के नाम से भी जाना जाता है. तीर्थों का गुरु माने जाने वाले पुष्कर को संस्कृति और ज्ञान की नगरी भी कहा जाता है. इस शहर को भारत के सबसे पुराने शहरों में से एक माना जाता है. यह ऊंट मेले के लिए भी प्रसिद्ध है. मेले के दौरान अपने पाप धोने के लिए हजारों तीर्थयात्री पुष्कर के पवित्र झील में स्नान करने के लिए आते हैं. आसपास के क्षेत्र विदेशी वनस्पतियों और जीवों के घर हैं, जहां कई प्रवासी पक्षी कुछ खास मौसमों में आते हैं. पुष्कर झील के समीप जगतपिता ब्रह्मा मंदिर स्थित है. यह देश का अकेला ब्रह्मा मंदिर है. यह मंदिर 14वीं शताब्दी में संगमरमर से बनाया गया था, जिसकी अनूठी वास्तुकला दर्शनीय है. यह मंदिर चांदी के सिक्कों से जड़ा हुआ है. पूजा स्थल के अंदर गर्भगृह में ब्रह्मा के चित्र सुशोभित हैं. विवाहित पुरुषों को गर्भगृह में प्रवेश की अनुमति नहीं है. यह स्थान केवल तपस्वियों या संन्यासियों के लिए आरक्षित है. इस मंदिर में सूर्य भगवान की संगमरमर से बनी मूर्ति भी है.
सबसे बड़ा शाही स्थान मान महल
पुष्कर में निवास का सबसे बड़ा शाही स्थान मान महल है, जो सरोवर झील के किनारे स्थित है. यह महल राजा मानसिंह प्रथम के लिए बनाया गया था. मान महल में एक प्रभावशाली वास्तुकला है, जिसमें पारंपरिक राजस्थानी स्थापत्य तत्व शामिल हैं. इमारत की डिजाइनिंग में आप मुगल स्पर्श भी देख सकते हैं. उल्लेखनीय है कि महल को सरोवर होटल भी कहा जाता है क्योंकि यह एक विश्व स्तरीय प्रवास है. झील के किनारे आप बोटिंग का भी मजा ले सकते हैं. पुष्कर के विशाल घाटों में से एक वराह घाट भी है, जो झील के शानदार दृश्यों के लिए जाना जाता है. यहां हर रात आयोजित होने वाली आरती पर्यटकों के बीच बेहद प्रसिद्ध है. इस घाट पर आप शांति से बैठकर खाने का मजा ले सकते हैं या फिर सुकून से झील पर पड़ती सूर्यास्त की रोशनी को निहार सकते हैं. यहां स्थित रणजी मंदिर भगवान विष्णु के अवतार भगवान रंगी को समर्पित है. यह मंदिर 1823 का है और इसे पुष्कर के नये मंदिरों में से एक माना जाता है. पवित्र संरचना में राजपूत और मुगल डिजाइनों की स्थापत्य शैली भी शामिल है, जो इसे विशिष्ट बनाती है. विष्णु मंदिर होने के कारण आप यहां महत्वपूर्ण अवसरों पर विष्णु भक्तों की एक बड़ी भीड़ देख सकते हैं.
पुष्कर क्यों प्रसिद्ध है?
पुष्कर अपने दर्शनीय स्थलों की वजह से बहुत प्रसिद्ध है और उन स्थलों में एक और नाम आता है- वराह मंदिर का, जो शहर के मध्य में स्थित है. पुष्कर गौरवशाली राजवंशों और धार्मिक मंदिरों की भूमि होने के कारण वराह मंदिर प्रमुख हिंदू भगवान विष्णु के अवतार वराह को समर्पित है. मंदिर एक गुंबद, सफेद दीवारों और स्तंभों से युक्त एक उल्लेखनीय वास्तुकला के साथ शानदार ढंग से बनाया गया है.
इस मंदिर का निर्माण किसने किया?
इस मंदिर का निर्माण राजा आनाजी ने भगवान विष्णु के तीसरे अवतार वराह को समर्पित कर बनाया था. अपनी धार्मिक पवित्रता के कारण यह देशभर से बड़ी संख्या में हिंदू भक्तों को आकर्षित करता है.
कब होगा होलिका दहन 7 या 8 मार्च को? जानें सही तारीख, शुभ मुहूर्त व अन्य खास बातें
20 Feb, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
उज्जैन. होली (Holi 2023) का नाम सुनते ही रंग-बिरंगे चेहरे याद आने लगते हैं और ऐसा हो भी क्यों न क्योंकि ये त्योहार रंगों से ही जुड़ा है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, फाल्गुन मास की पूर्णिमा पर होलिका दहन (Holika Dahan 2023) किया जाता है और इसके अगले दिन यानी चैत्र कृष्ण प्रतिपदा तिथि पर होली खेली जाती है जिसे धुरेड़ी भी कहा जाता है।
होलिका दहन पर भद्रा का विशेष ध्यान रखा जाता है। इस बार होली का त्योहार कब मनाया जाएगा, इसे लेकर लोगों के मन में कन्फ्यूजन है। आगे जानिए साल 2023 में कब मनाया जाएगा ये त्योहार.
इस दिन किया जाएगा होलिका दहन (Holika Dahan 2023 Date)
पंचांग के अनुसार, फाल्गु मास की पूर्णिमा तिथि 06 मार्च की शाम 04:17 से 07 मार्च की शाम 06:10 तक रहेगी। चूंकि पूर्णिमा तिथि का सूर्योदय 7 मार्च को होगा, इसलिए इसी दिन होलिका दहन किया जाएगा। इसके अगले दिन यानी 8 मार्च को धुरेड़ी पर्व मनाया जाएगा, जिसमें लोग एक-दूसरे को रंग लगाकर खुशियां मनाएंगे।
ये है होलिका दहन का मुहूर्त (Holika Dahan 2023 Muhurat)
होलिका दहन पर भद्रा की स्थिति पर विचार जरूर किया जाता है, लेकिन इस बार होलिका दहन के समय भद्रा नहीं रहेगी। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. प्रवीण द्विवेदी के अनुसार, इस बार भद्रा 6 मार्च की शाम 04:17 से 07 मार्च की सुबह 05:16 तक रहेगी। यानी होलिका दहन की सुबह ही भद्रा समाप्त हो जाएगी। होलिका दहन के लिए शुभ मुहूर्त शाम 06:24 से रात 08:51 तक रहेगा यानी 02 घण्टे 27 मिनट तक।
क्यों मनाते हैं होली? (Why celebrate Holi?)
- धर्म ग्रंथों के में होली मनाने की कई कारण बताए गए हैं, लेकिन उन सभी में सबसे प्रमुख कथा होलिका और प्रह्लाद से जुड़ी है। उसके अनुसार, राक्षसों का राजा हिरयण्यकश्यप देवताओं का शत्रु था, लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था।
- हिरण्यकश्यप के बहुत समझाने पर भी जब प्रह्लाद ने भगवान विष्णु की भक्ति नहीं छोड़ी तो उसे यातना दी जाने लगी। इतने पर भी जब प्रह्लाद नहीं माना तो हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद को लेकर अग्नि में बैठने का बैठने के लिए कहा।
- होलिका को अग्नि से न जलने का वरदान प्राप्त था, लेकिन जब होलिका प्रह्लाद को लेकर अग्नि में बैठी तो वह जल गई और प्रह्लाद बच गया। तभी ये पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जा रहा है।
ईश्वर से प्रेम करना है वास्तविक प्रेम
20 Feb, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
बहुत से ऐसे लोग मिलेंगे जो कहेंगे कि उन्हें किसी से प्यार हो गया है। अपने प्रेम को पाने के लिए वह दुनिया छोड़ने की बात करेंगे। लेकिन वास्तव में प्रेम को पाने के लिए दुनिया छोड़ने जरूरत ही नहीं है। प्रेम तो दुनिया में रहकर ही किया जाता है। जो दुनिया छोड़ने की बात करते हैं वह तो प्रेमी हो ही नहीं सकते है। दुनिया छोड़ने की बात करने वाले लोग वास्तव में रूप के आकर्षण में बंधे हुए लोग होते हैं। वह प्रेम के वास्तविक स्वरूप से अनजान होते हैं। ऐसी स्थिति कभी रामचरित मानस के रचयिता तुलसीदास जी की भी थी, लेकिन जब उन्हें प्रेम का सही बोध हुआ तब वह परम पद को पाने में सफल हुए।
तुलसीदास जी के युवावस्था के समय की बात है इनका विवाह एक अति रूपवती कन्या से हुआ जिसका नाम रत्नावली था। रत्नवती के रूप में तुलसीदास ऐसे खो गये कि उनके बिना एक क्षण जीना उनके लिए कठिन प्रतीत होने लगा। एक बार रत्नावली अपने मायके चली आयी तो तुलसीदास बचैन हो गये। आधी रात को आंधी तूफान की परवाह किये बिना रत्नावती से मिलने चल पड़े। नदी उफन रही थी जिसे पार करने के लिए वह एक आश्रय का सहारा लेकर तैरने लगे।
रत्नावली के ख्यालों में तुलसीदास जी ऐसे खोये हुए थे कि उन्हें यह पता भी नहीं चला कि वह जिस चीज का आश्रय लेकर नदी पार कर रहे हैं वह किसी व्यक्ति का शव है। रत्नावली के कमरे में प्रवेश के लिए तुलसीदास जी ने एक सांप का पूंछ रस्सी समझकर पकड़ लिया जो उस समय रत्नावली के कमरे की दीवार पर चढ़ रहा था।
रत्नावली ने जब तुलसीदास को अपने कमरे में इस प्रकार आते देखा तो बहुत हैरान हुई और तुलसीदास जी से कहा कि हाड़-मांस के इस शरीर से जैसा प्रेम है वैसा प्रेम अगर प्रभु से होता तो जीवन का उद्देश्य सफल हो जाता है। तुलसीदास को पत्नी की बात सुनकर बड़ी ग्लानि हुई और एक क्षण रूके बिना वापस लैट आए। तुलसीदास का मोह भंग हो चुका था। इस समय उनके मन में भगवान का वास हो चुका था और अब वह सब कुछ साफ-साफ देख रहे थे। नदी तट पर उन्हें वही शव मिला जिसे उन्होंने नदी पार करने के लिए लकड़ी समझकर पकड़ लिया था।
तुलसीदास जी अब प्रेम का सच्चा अर्थ समझ गये थे। तुलसीदास जान चुके थे कि वह जिस प्रेम को पाने के लिए बचैन थे वह तो क्षण भंगुर है। यह प्रेम तो संसार से दूर ले जाता है। वास्तविक प्रेम तो ईश्वर से हो सकता है जो कण-कण में मौजूद है उसे पाने के लिए बेचैन होने की जरूरत नहीं है उसे तो हर क्षण अपने पास मौजूद किया जा सकता है। इसी अनुभूति के कारण तुलसीदास राम के दर्शन पाने में सफल हुए। जिस पत्नी से मिलने के लिए तुलसी अधीर रहते थे वही उनकी शिष्य बनकर उनका अनुगमन करने लगी।
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (20 फरवरी 2023)
20 Feb, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- स्वभाव में खिन्नता, मानसिक बेचैनी, शारीरिक असमर्थता बनी रहेगी।
वृष राशि :- बड़े-बड़े लोगों से मेल-मिलाप होगा, स्त्री वर्ग से हर्ष रहेगा, समय का ध्यान रखें।
मिथुन राशि :- कुटुम्ब की समस्यायें सुलझें, बिगड़े कार्य बनेंगे तथा हर्ष अवश्य ही होगा।
कर्क राशि :- कार्य कुशलता से हर्ष, सामाजिक कार्य में वृद्धि, प्रभुत्व वृद्धि होगी।
सिंह राशि :- आशानुकूल सफलता मिलेगी, मानसिक विभ्रम से अवश्य बचें।
कन्या राशि :- मानसिक शिथिलता से बेचैनी, अर्थ-व्यवस्था अनुकूल होगी, व्यर्थ व्यय होगा।
तुला राशि :- कार्य कुशलता से संतोष होगा, आर्थिक लाभ होगा, कार्य योजना फलीभूत होगी।
वृश्चिक राशि :- आकस्मिक विभ्रम व बेचैनी, चिन्तायें परेशान करेंगी, धैर्य से काम लें।
धनु राशि :- आशानुकूल सफलता मिलेगी, मानसिक विभ्रम से परेशानी, लाभ होगा।
मकर राशि :- योजनायें फलीभूत होंगी, शुभ समाचार हर्षयुक्त रखेगा, विशेष कार्य बनेंगे।
कुंभ राशि :- मानसिक व्यग्रता, विघटनकारी तत्व परेशान करेंगे, रुके कार्य अवश्य ही बनेंगे।
मीन राशि :- मनोवृत्ति संवेदनशील रहेगी, आकस्मिक धन लाभ से संतोष होगा।
माता शबरी के बारे में 10 खास बातें
19 Feb, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
वाल्मीकि रामायण में प्रसंग आता है कि भगवान श्रीराम ने शबरी के झूठे बैर खाएं थे। माता शबरी कौंन थी? क्या है उनकी कहानी? कहां है शबरी की कुटिया आदि अनेक जानकारियों के साथ जानिए शबरी मां के बारे में 10 खास बातें।
1. पौराणिक संदर्भों के अनुसार शबरी जाति से भीलनी थीं और उनका नाम श्रमणा था।
2. रामायण में प्रसंग आता है कि भगवान श्रीराम ने शबरी के झूठे बैर खाएं थे।
3. शबरी का भक्ति साहित्य में एक विशिष्ट स्थान है। उन्होंने कई भजन लिखे हैं।
4. शबरी का आश्रम छत्तीसगढ़ के शिवरीनारायण में महानदी, जोंक और शिवनाथ नदी के तट पर स्थित है।
5. कुछ लोग मानते हैं कि कर्नाटक में पंपा सरोवर के पास स्थित मतंग ऋषि के आश्रम में एक कुटिया है जो कि उनका आश्रम है।
6. रामायण के अरण्यकांड में उल्लेख मिलता है कि शबरी के देह त्यागने के बाद राम और लक्ष्मण ने उनका अंतिम संस्कार किया और फिर वे पंपा सरोवर की ओर निकल पड़े।
7. केरल का प्रसिद्ध 'सबरिमलय मंदिर' तीर्थ नदी के तट पर स्थित है। भारत के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है विश्व प्रसिद्ध सबरीमाला का मंदिर। यहां हर दिन लाखों लोग दर्शन करने के लिए आते हैं। यह मंदिर भगवान अयप्पा को समर्पित है जो भगवान शिव और मोहिनी के पुत्र हैं।
8. रामदुर्ग से 14 किलोमीटर उत्तर में गुन्नगा गांव के पास सुरेबान नाम का वन है जिसे शबरीवन का ही अपभ्रंश माना जाता है। आश्रम के आसपास बेरी वन है। यहां शबरी मां की पूजा वन शंकरी, आदि शक्ति तथा शाकम्भरी देवी के रूप में की जाती है। यहीं श्रीराम व शबरी की भेंट हुई थी। पम्पासरोवर हनुमान हल्ली ऋष्यमूक पर्वत चिंता मणि किष्कंधा द्वार प्रस्रवण पर्वत फटिक शिला सभी किष्किंधा में है इनमें आपसी दूरी अधिक नहीं है ये स्थल बिलारी तथा कोपल दो जिलों में आते हैं बीच में तुंगभद्रा नदी है।
9. शबरी के पिता भीलों के मुखिया थे। श्रमणा का विवाह एक भील कुमार से तय हुआ था, विवाह से पहले कई सौ पशु बलि के लिए लाए गए। जिन्हें देख श्रमणा बड़ी आहत हुई.... यह कैसी परंपरा? ना जाने कितने बेजुबान और निर्दोष जानवरों की हत्या की जाएगी... इस कारण शबरी विवाह से 1 दिन पूर्व भाग गई और दंडकारण्य वन में पहुंच गई।
10. दंडकारण्य में मातंग ऋषि तपस्या किया करते थे, श्रमणा उनकी सेवा तो करना चाहती थी पर वह भील जाति की होने के कारण उसे अवसर ना मिलाने का अंदेशा था। फिर भी शाबर सुबह-सुबह ऋषियों के उठने से पहले उनके आश्रम से नदी तक का रास्ता साफ़ कर देती थीं, कांटे चुनकर रास्ते में साफ बालू बिछा देती थी। यह सब वे ऐसे करती थीं कि किसी को इसका पता नहीं चलता था। एक दिन ऋषि श्रेष्ठ को शबरी दिख गई और उनके सेवा से अति प्रसन्न हो गए और उन्होंने शबरी को अपने आश्रम में शरण दे दी।
जब मतंग का अंत समय आया तो उन्होंने शबरी से कहा कि वे अपने आश्रम में ही भगवान राम की प्रतीक्षा करें, वे उनसे मिलने जरूर आएंगे। मतंग ऋषि की मौत के बात शबरी का समय भगवान राम की प्रतीक्षा में बीतने लगा, वह अपना आश्रम एकदम साफ़ रखती थीं। रोज राम के लिए मीठे बेर तोड़कर लाती थी। बेर में कीड़े न हों और वह खट्टा न हो इसके लिए वह एक-एक बेर चखकर तोड़ती थी। ऐसा करते-करते कई साल बीत गए।
एक दिन शबरी को पता चला कि दो सुंदर युवक उन्हें ढूंढ रहे हैं, वे समझ गईं कि उनके प्रभु राम आ गए हैं.. .. उस समय तक वह वृद्ध हो चली थीं, लेकिन राम के आने की खबर सुनते ही उसमें चुस्ती आ गई और वह भागती हुई अपने राम के पास पहुंची और उन्हें घर लेकर आई और उनके पांव धोकर बैठाया।
अपने तोड़े हुए मीठे बेर राम को दिए राम ने बड़े प्रेम से वे बेर खाए और लक्ष्मण को भी खाने को कहा। लक्ष्मण को जूठे बेर खाने में संकोच हो रहा था, राम का मन रखने के लिए उन्होंने बेर उठा तो लिए लेकिन खाए नहीं। इसका परिणाम यह हुआ कि राम-रावण युद्ध में जब शक्ति बाण का प्रयोग किया गया तो वे मूर्छित हो गए थे, तब इन्हीं बेर की बनी हुई संजीवनी बूटी उनके काम आयी थी।
हर शाम करें ये एक काम, सभी कष्टों से मिलेगी मुक्ति
19 Feb, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में देवी देवताओं की पूजा को सर्वोत्तम माना गया है। मान्यता है कि अगर देवी देवताओं की पूजा पूरे मन और विधि विधान के साथ की जाए तो साधक को विशेष लाभ की प्राप्ति होती है और सभी प्रकार के कष्टों का भी अंत हो जाता है।
ऐसे में अगर रोजाना शाम की पूजा में चण्डी स्तोत्र का संपूर्ण पाठ किया जाए तो माता रानी की भक्तों को विशेष कृपा प्राप्त होती है जिससे सभी दुख परेशानियों व कष्टों का निवारण हो जाता है और हर प्रकार के सुख में वृद्धि होती है, तो आज हम आपके लिए लेकर आए है चण्डी स्तोत्र का संपूर्ण पाठ।
चण्डी स्तोत्र-
॥ ॐ श्री देव्यै नमः ॥
॥ अथ चंडीपाठः ॥
या देवी सर्वभूतेषु विष्णुमायेति शब्दिता।
नमस्तस्यै ९४ नमस्तस्यै १५ नमस्तस्यै नमो नमः ॥५-१६॥
या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते ।
नमस्तस्यै ९७ नमस्तस्यै १८ नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ५-१९॥
या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरुपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै २० नमस्तस्यै २१ नमस्तस्यै नमो नमः ॥५-२२॥
| या देवी सर्वभूतेषु निद्रारुपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै २३ नमस्तस्यै २४ नमस्तस्यै नमो नमः ॥५-२५11
या देवी सर्वभूतेषु भुधारूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै २६ नमस्तस्यै २७ नमस्तस्यै नमो नमः ॥५-२८।।
या देवी सर्वभूतेषु दृछायारूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्ये २९ नमस्तस्ये ३० नमस्तस्यै नमो नमः ॥५-३१।।
| या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै ३२ नमस्तस्ये ३३ नमस्तस्यै नमो नमः ॥५-१४॥
या देवी सर्वभूतेषु तृष्णारूपेण संस्थिता ।।
तमस्तस्य३४ नमस्तस्य३६ नमस्तस्यै नमो नमः ।
या देवी सर्वभूतेषु क्षान्तिरुपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै ३८ नमस्तस्यै ३९ नमस्तस्यै नमो नमः || ५-४०॥
या देवी सर्वभूतेषु जातिरुपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै ४१ नमस्तस्यै ४२ नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ५-४३॥
या देवी सर्वभूतेषु लज्जारुपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै ४४ नमस्तस्यै ४५ नमस्तस्यै नमो नमः ॥५-४६॥
या देवी सर्वभूतेषु शान्तिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै ४७ नमस्तस्यै ४८ नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ५-४९॥
या देवी सर्वभूतेषु श्रद्धासपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै ५० नमस्तस्यै ५१ नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ५-५२॥
या देवी सर्वभूतेषु कान्तिरुपेण संस्थिता ।
नमस्तस्ये ५३ नमस्तस्यै ५४ नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ५-99॥
या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरुपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै ५६ नमस्तस्यै 95 नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ५-५८॥
या देवी सर्वभूतेषु वृत्तिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै ५९ नमस्तस्ये ६० लमस्तस्यै नमो नमः ॥ ५-६१।।
या देवी सर्वभूतेषु स्मृतिरुपेण संस्थिता ।।
नमस्तस्यै ६२ नमस्तस्यै ६३ नमस्तस्यै नमो नमः || ६-६४॥
या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्य ६७ नमस्तस्यै ६६ नमस्तस्यै नमो नमः ॥५-६७।।
या देवी सर्वभूतेषु तुष्टिरूपेण संस्थिता ।
नमसलय ६८ नमस्तस्य ८९ नमस्तस्यै नमो नमः ॥५-००।
या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै ७९ नमस्तस्यै ७२ नमस्तस्यै नमो नमः ॥७३॥
या देवी सर्वभूतेषु भान्तिरुपेण संस्थिता ।।
नमस्तस्यै ७४ नमस्तस्यै ७५ नमस्तस्यै नमो नमः ॥५-७६॥
इन्द्रियाणामधिष्ठात्री भुतानाञ्चाखिलेषु या।
भूतेषु सततं तस्यै व्याप्तिदेव्यै नमो नमः ॥ ५-७७॥
चितिरुपेण या कस्नमेतद व्याप्य स्थिता जगत्।
नमस्तस्यै ७८ नमस्तस्यै ७९ नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ८० ॥
॥ इति चंडीपाठ ॥