धर्म एवं ज्योतिष (ऑर्काइव)
अंतर्दृष्टि से अनुबंधित है ज्ञान
24 Mar, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
बुद्धि अच्छी चीज है, पर कोरी बौद्धिकता ही सब कुछ नहीं है। इससे व्यक्ति के जीवन में नीरसता और शुष्कता आती है। ज्ञान अंतर्दृष्टि से अनुबंधित है, इसलिए यह अपने साथ सरसता लाता है। ज्ञानी व्यक्तियों के लिए पुस्तकीय अध्ययन की विशेष अपेक्षा नहीं रहती। भगवान महावीर ने कब पढ़ी थीं पुस्तकेंट आचार्य भिक्षु, संत तुलसी, संत कबीर अदि जितने ज्ञानवान पुरुष हुए हैं, उनमें कोई भी पंडित नहीं थे। अंतर्दर्शन उनकी ज्ञानमयी चेतना की स्फुरणा करता था। इसके आधार पर ही उन्होंने गंभीर तत्वों का विश्लेषण किया। वे यदि पुस्तकों के आधार पर प्रतिबोध देते तो संसार को कोई नया दृष्टिकोण नहीं दे सकते थे।
एक बात और ज्ञातव्य है। विद्वान बहुत पढ़े-लिखे होते हैं, पर वे आज तक भी किसी ज्ञानी को पराजित नहीं कर सके। इंद्रभूति महापंडित थे। उनका पांडित्य विश्रुत था। पर वे भगवान महावीर की ज्ञान चेतना का अनुभव करते ही पराभूत हो गए। इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है। ज्ञान और बुद्धि की परस्पर कोई तुलना नहीं है।
बुद्धि कुंड का पानी है और ज्ञान कुएं का पानी है। कुंड का पानी जितना है उतना ही रहता है। वर्षा होती है तो पानी थोड़ा बढ़ जाता है। इसी प्रकार अनुकूल सामग्री और पुरुषार्थ का योग होता है तो बुद्धि बढ़ जाती है। अन्यथा उसके विकास की कोई संभावना नहीं रहती। कुएं से जितना पानी निकाला जाता है, नीचे से और आता रहता है। वह कभी चुकता नहीं है, उसमें नए अनुभव जुड़ते जाते हैं।
बुद्धि आवश्यक है किंतु उसके आधार पर कभी आत्म-दर्शन नहीं हो पाता। आत्म-दर्शन का पथ है ज्ञान। ज्ञान तब तक उपलब्ध नहीं होता जब तक ध्यान का अभ्यास न हो। जिस व्यक्ति को अंतर्दृष्टि का उद्घाटन करना है, ज्ञानी बनना है, उसे प्रेक्षाध्यान साधना का आलंबन स्वीकार करना होगा। ऐसा करके वह ज्ञान की श्रेष्ठता को प्रमाणित कर सकता है।
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (24 मार्च 2023)
24 Mar, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि - यात्रा भय, कष्ट व्यवसाय में बाधा, लाभकारी परिस्थिति बनेगी, समस्या से उलझन बनेगी।
वृष राशि - राजभय, रोग, स्वजन सुख, शिक्षा व लेखन कार्य में सफलता तथा प्रगति होगी।
मिथुन राशि - वाहन भय, कष्ट, हानि तथा अशांति का वातावरण बनेगा, धैर्य रखें।
कर्क राशि - सफलता, उन्नति होगी, शुभ कार्य, विवाद, राजकार्य-मामले में जीत होगी।
सिंह राशि - शरीर कष्ट, कार्य में व्यय, सफलता, आर्थिक सुधार होगा, कार्य बनेंगे।
कन्या राशि - खर्च, विवाद, स्त्री कष्ट, विद्या लाभ, धीर-धीरे कार्य में सुधार होगा।
तुला राशि - यात्रा से हर्ष, राज लाभ, शरीर कष्ट, यात्रा में व्यय होगा।
वृश्चिक राशि - कार्यवृत्ति में लाभ, यात्रा, सम्पत्ति लाभ, व्यापारिक गति में सुधार होगा।
धनु राशि - अल्प लाभ, चोटादि-अग्नि भय, मानसिक बेचैनी से परेशानी होगी।
मकर राशि - शत्रु से हानि, कार्य व्यय, शारीरिक सुख होगा, कष्टकारी स्थिति बनेगी।
कुंभ राशि - सुख, व्यय, संतान सुख, कार्य सफलता, उत्साह वृद्धि होगी, समय का ध्यान रखें।
मीन राशि - पदोन्नति, राजभय, न्याय लाभ-हानि, अधिकारियों से मनमुटाव होगा।
मां भगवती का एक अनोखा मंदिर, जहां दूर-दूर से दर्शन करने आते हैं लोग
23 Mar, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
आज यानी 22 मार्च से देवी आराधना का महापर्व नवरात्रि आरंभ हो चुका है इस पर्व को देशभर में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। चैत्र महीने में पड़ने के कारण इसे चैत्र नवरात्रि भी कहा जाता है।
यह पर्व पूरे नौ दिनों तक चलता है जिसमें माता रानी के भक्त उनकी भक्ति में लीन रहते है इस दौरान मां भगवती के कई प्रसिद्ध मंदिरों में भक्तों की भीड़ देखने को मिलती है।
वैसे तो भारत में मां दुर्गा के कई शक्ति पीठ और मंदिर है लेकिन आज हम आपको एक ऐसे चमत्कारी मंदिर के बारे में बता रहे है नवरात्रि के शुभ दिन पर भक्तों का भारी ताता लगा होता है। मान्यता है कि यहां दर्शन पूजन से भक्तों की हर मनोकामना देवी मां पूर्ण करती है देवी आराधना का यह पवित्र स्थल गोरखपुर के देवरिया मार्ग के किनारे स्थित है जिसे तरकुलहा नाम से जाना जाता हैं, तो आइए जानते हैं इस पवित्र स्थल के बारे में।
आपको बता दें कि देवी भगवती का यहां गोरखपुर से करीब 22 किलोमीट दूर देवरिया मार्ग पर स्थित है जिसे तरकुलहा देवी मंदिर कहा जाता है। इस मंदिर को भक्तों की आस्था और भक्ति का प्रमुख केंद्र माना जाता है। यह मंदिर ताड़ के पेड़ों के बीच स्थित है। जिसके कारण इसका नाम तरकुलहा देवी मंदिर पड़ा।
मान्यताओं के अनुसार चैरी चैरा तहसील में स्थित यह मंदिर डुमरी रियासत में पड़ता था। इसी रियासत के बाबू बंधू सिंह स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। वह ताड़ के घने जंगलों में पिंडी बनाकर देवी मां की पूजा करते थे। इसी बीच अंग्रेजों ने उन्हें धोखे से गिरफ्रतार कर लिया और फंासी देने लगे। लगातार सात बार फंासी पर उन्हें चढ़ाया गया लेकिन हर बार फांसी का फंदा टूट जाता था। इसके बाद बाबू बंधू सिंह ने तरकुलहा देवी से आग्रह करते हुए। माता के चरणों में जगह मांगी और फिर फांसी का फंदा खुद गले में डालकर शहीद हो गए। ऐसा कहा जाता है कि उनके शहीद होते ही ताड़ का पेड़ टूट गया और उसमें से रक्त बहने लगा। जिसे देखने के बाद लोगों ने वहां पर मां तरकुलहा का एक मंदिर बनवया है। मान्यता है कि यहां नवरात्रि के शुभ दिनों में आकर पूजन और दर्शन करने से भक्तों के हर दुख का अंत होता है और मनोकामना भी पूर्ण हो जाती है।
नवरात्रि में गाएं दुर्गाजी की यह आरती, पूरा करेंगी सब काम
23 Mar, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
चैत्र नवरात्रि शुरू हो गई है, लोगों ने कलश स्थापना कर लिया है। अब नौ दिन तक माता दुर्गा की पूजा अर्चना में रत रहेंगे। लेकिन क्या आप जानते हैं कि दुर्गाजी की पूजा में आरती और दुर्गा चालीसा का पाठ करना बेहद जरूरी है तो आइये हम दुर्गाजी की वह आरती बताते हैं जिसको गाने से माता प्रसन्न होती हैं और हर मनोकामना पूरी करती हैं।जानकारों के अनुसार विधि विधान से माता दुर्गा की पूजा के बाद यह दुर्गा मैया की आरती गानी चाहिए।
दुर्गा मैया की आरती
जय अंबे गौरी मैया, जय श्यामा गौरी।
तुमको निशिदि ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी ।।टेक।।
मांग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को।
उज्ज्वल से दोऊ नैना, चंद्रबदन नीको ।। जय अंबे..।।
कनक समान कलेवर, रक्तांबर राजै।
रक्तपुष्प गलमाला, कंठन पर साजै।। जय अंबे..।।
केहरि वाहन राजत, खड़ग खप्परधारी ।
सुर, मुनिजन सेवक, तिनके दुखहारी।। जय अंबे..।।
कानन कुंडल शोभित, नासाग्रे मोती।
कोटिक चंद्र दिवाकर, राजत सम ज्योति।। जय अंबे..।।
शुम्भ, निशुम्भ विडारे, महिषासुर घाती।
धूम्र विलोचन नैना, निशिदिन मदमाती।। जय अंबे।।
चंड मुंड संघारे, शोणित बीज हरे।
मधुकैटभ दोउ मारे,सुर भयहीन करे।। जय अंबे।।
ब्रह्माणी रुद्राणी तुम कमलारानी।
आगम निगम बखानी तुम शिव पटरानी।। जय अंबे।।
चौंसठ योगिनी गावत, नृत्य करत भैरूं।
बाजत ताल मृदंगा, अरु बाजत डमरू।। जय अंबे।।
तुम हो जग की माता, तुम ही हो भर्ता।
भक्तन की दुख हरता, सुख संपत्ति करता।। जय अंबे।।
भुजा चार अति शोभित,खड़ग खप्परधारी।
मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी।। जय अंबे।
कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती।
श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति।। जय अंबे।।
श्री अंबेजी की आरती जो कोई नर गावै।
कहत शिवानंद स्वामी, सुख संपत्ति पावै।। जय अंबे।।
दुर्गा चालीसा
नमो नमो दुर्गे सुख करनी।
नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥
निरंकार है ज्योति तुम्हारी।
तिहूं लोक फैली उजियारी॥
शशि ललाट मुख महाविशाला।
नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥
रूप मातु को अधिक सुहावे।
दरश करत जन अति सुख पावे॥
तुम संसार शक्ति लै कीना।
पालन हेतु अन्न धन दीना॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला।
तुम ही आदि सुंदरी बाला॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी।
तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥
रूप सरस्वती को तुम धारा।
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा।
परगट भई फाड़कर खम्बा॥
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो।
हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।
श्री नारायण अंग समाहीं॥
क्षीरसिन्धु में करत विलासा।
दयासिन्धु दीजै मन आसा॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।
महिमा अमित न जात बखानी॥
मातंगी अरु धूमावति माता।
भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी।
छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥
केहरि वाहन सोह भवानी।
लांगुर वीर चलत अगवानी॥
कर में खप्पर खड्ग विराजै।
जाको देख काल डर भाजै॥
सोहै अस्त्र और त्रिशूला।
जाते उठत शत्रु हिय शूला॥
नगरकोट में तुम्हीं विराजत।
तिहुंलोक में डंका बाजत॥
शुंभ निशुंभ दानव तुम मारे।
रक्तबीज शंखन संहारे॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी।
जेहि अघ भार मही अकुलानी॥
रूप कराल कालिका धारा।
सेन सहित तुम तिहि संहारा॥
परी गाढ़ संतन पर जब जब।
भई सहाय मातु तुम तब तब॥
अमरपुरी अरु बासव लोका।
तब महिमा सब रहें अशोका॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।
तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावें।
दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।
जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥
शंकर आचारज तप कीनो।
काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥
शक्ति रूप का मरम न पायो।
शक्ति गई तब मन पछितायो॥
शरणागत हुई कीर्ति बखानी।
जय जय जय जगदम्ब भवानी॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।
दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो।
तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥
आशा तृष्णा निपट सतावें।
रिपु मुरख मौही डरपावे॥
शत्रु नाश कीजै महारानी।
सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥
करो कृपा हे मातु दयाला।
ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।
जब लगि जिऊं दया फल पाऊं ।
तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं ॥
दुर्गा चालीसा जो कोई गावै।
सब सुख भोग परमपद पावै॥
देवीदास शरण निज जानी।
करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥
॥ इति श्री दुर्गा चालीसा सम्पूर्ण ॥
कौन है मां ब्रह्मचारिणी? यहाँ जानिए व्रत कथा
23 Mar, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
चैत्र नवरात्रि का 22 मार्च से शुंभारंभ हो गया है। आज नवरात्रि का दूसरा दिन है। आज के दिन माता ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। देवी मां ब्रह्मचारिणी को गुड़हल एवं कमल का फूल बेहद पसंद है एवं इसलिए इनकी पूजा के चलते इन्हीं फूलों को देवी मां के चरणों में चढ़ाएं।
चूंकि मां को चीनी और मिश्री काफी पसंद है इसलिए मां को भोग में चीनी, मिश्री एवं पंचामृत का भोग लगाएं। मां ब्रह्मचारिणी को दूध और दूध से बने व्यंजन अति प्रिय होते हैं। इसलिए आप उन्हें दूध से बने व्यंजनों का भोग लगा सकते हैं। इस भोग से देवी ब्रह्मचारिणी खुश हो जाएंगी। इन्हीं चीजों का दान करने से लंबी आयु का सौभाग्य भी पाया जा सकता है।
मां ब्रह्मचारिणी व्रत कथा:-
मां ब्रह्मचारिणी ने राजा हिमालय के घर जन्म लिया था। नारदजी की सलाह पर उन्होंने कठोर तप किया, जिससे वे भगवान महादेव को पति स्वरूप में प्राप्त कर सकें। कठोर तप की वजह से उनका ब्रह्मचारिणी या तपश्चारिणी नाम पड़ा। भगवान महादेव की आराधना के चलते उन्होंने 1000 वर्ष तक केवल फल-फूल खाए तथा 100 वर्ष तक शाक खाकर जीवित रहीं। कठोर तप से उनका शरीर क्षीण हो गया। उनक तप देखकर सभी देवता, ऋषि-मुनि अत्यंत प्रभावित हुए। उन्होंने बोला कि आपके जैसा तक कोई नहीं कर सकता है। आपकी मनोकामना जरूर पूर्ण होगा। महादेव आपको पति स्वरूप में प्राप्त होंगे।
मंत्र:-
श्लोक
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलु| देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ||
ध्यान मंत्र
वन्दे वांछित लाभायचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
जपमालाकमण्डलु धराब्रह्मचारिणी शुभाम्॥
गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम।
धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालंकार भूषिताम्॥
परम वंदना पल्लवराधरां कांत कपोला पीन।
पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
भगवान की विचारणाएं
23 Mar, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
जब मनुष्य इस जिम्मेदारी को समझ ले कि मैं क्यों पैदा हुआ हूं और पैदा हुआ हूं तो मुझे क्या करना चाहिए? भगवान द्वारा सोचना, विचारना, बोलना, भावनाएं आदि अमानतें मनुष्य को इसलिए नहीं दी गई हैं कि उनके द्वारा वह सुख-सुविधाएं या विलासिता के साधन जुटा अपना अहंकार पूरा करे बल्कि इसलिए दी गयी हैं ताकि इनके माध्यम से वह विश्व को अधिक सुन्दर और सुव्यवस्थित बनाने के लिए प्रयत्न कर।
बैंक के खजांची के पास धन इसलिए रखा रहता है ताकि सरकारी प्रयोजनों के लिए इस पैसे को खर्च कर। खजाने में रखे लाखों रुपये खजांची कैसे खर्च कर सकता है। अपने लिए उसे उतना ही इस्तेमाल करने का हक है, जितना उसे वेतन मिलता है। पुलिस और फौज का कमांडर है, उसको अपना वेतन लेकर जितनी सुविधाएं मिली हैं, उसी से काम चलाना चाहिए। बाकी बहुत सारी सामर्थ्य और शक्ति उसे बंदूक चलाने के लिए मिली है, उसे सिर्फ उसी काम में खर्च करना चाहिए, जिसके लिए सरकार ने उसको सौंपा है।
हमारी सरकार भगवान है और मनुष्य के पास जो कुछ विभूतियां, अक्ल और विशेषताएं हैं, वे व्यक्तिगत ऐय्याशी सुविधा और शौक-मौज के लिए नहीं हैं। व्यक्तिगत अहंकार की तृप्ति के लिए नहीं है। भगवान का बस एक ही उद्देश्य है- निरूस्वार्थ प्रेम। इसके आधार पर भगवान ने मनुष्य को इतना ज्यादा प्यार किया। मनुष्य को उस तरह का मस्तिष्क दिया है, जितना कीमती कम्प्यूटर दुनिया में आज तक नहीं बना। मनुष्य की आंखें, कान, नाक, वाणी एक से एक चीजें हैं, जिनकी रुपयों में कीमत नहीं आंकी जाती है। मनुष्य के सोचने का तरीका इतना बेहतरीन है, जिसके ऊपर सारी दुनिया की दौलत न्योछावर की जा सकती है।
ऐसा कीमती मनुष्य और ऐसा समर्थ मनुष्य जिस भगवान ने बनाया है, उसकी यह आकांक्षा जरूर रही है कि दुनिया को समुन्नत और सुखी बनाने में यह प्राणी मेरे सहायक के रूप में काम करेगा और मेरी सृष्टि को समुन्नत रखेगा। मानव जीवन की विशेषताओं और भगवान द्वारा विशेष विभूतियां मनुष्य को देने का एक और उद्देश्य है। जब मनुष्य इस जिम्मेदारी को समझ ले कि मैं क्यों पैदा हुआ हूं और पैदा हुआ हूं तो मुझे क्या करना चाहिए तो समझना चाहिए कि इस आदमी का नाम मनुष्य है, इसके भीतर मनुष्यता का उदय हुआ और इसके अंदर भगवान की विचारणाएं उदित हो गयीं।
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (23 मार्च 2023)
23 Mar, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि - तनाव, क्लेश का योग, मित्र लाभ, राजभय तथा पारिवारिक समस्या उलझेंगी।
वृष राशि - अनुभव का सुख मिलेगा, मांगलिक कार्य होगा, मामले-मुकदमे में प्राय जीत होगी।
मिथुन राशि - कुसंगति से हानि, विरोध, भय, यात्रा, सामाजिक कार्य में व्यवधान अवश्य होगा।
कर्क राशि - भूमि लाभ, स्त्री सुख, हर्ष, प्रगति, स्थिति में सुधार, लाभ तथा उत्तम कार्य होंगे।
सिंह राशि - तनाव तथा विवाद से बचें, विरोधियों की चिन्ता, राजकार्य में प्रतिष्ठा अवश्य मिलेगी।
कन्या राशि - भूमि लाभ, स्त्री सुख, हर्ष, प्रगति में सुधार, लाभ तथा कार्य उत्तम होगा।
तुला राशि - कार्य प्रगति, वाहन का भय, भूमि लाभ, कलह तथा कुछ अच्छे कार्य कर सकेंगे।
वृश्चिक राशि - कार्य सिद्धी, विरोध, लाभ, हर्ष होगा, व्यापार में सुधार किन्तु खर्च होगा।
धनु राशि - यात्रायें होंगी, हानि, मित्र कष्ट, व्यय की कमी, व्यापार में सुधार तथा व्यय होगा।
मकर राशि - शुभ कार्य, वाहन आदि योग, धार्मिक कार्य के साथ ही कुछ अच्छे कार्य सम्पन्न होंगे।
कुंभ राशि - अभीष्ट सिद्ध, राजभय, कार्य बाधा, कार्य में उलझन का अनुभव होगा।
मीन राशि - अल्प हानि, रोगभय, सम्पर्क, राजकार्य में विलम्ब, परेशानी अवश्य होगी।
Vikram Samvat 2080: आज से शुरू हुआ हिंदू नववर्ष विक्रम संवत 2080, जानिए हिंदू कैलेंडर की 10 खास बातें
22 Mar, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
Vikram Samvat 2080: आजसे हिंदू कैलेंडर का नया वर्ष विक्रम संवत 2080 की शुरुआत हो गई है। हिंदू विक्रम संवत 2080 अंग्रेजी कैलेंडर के वर्ष 2023 से 57 वर्ष आगे होगा।
इसी दिन से चैत्र नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि से 9 दिनों तक देवी दुर्गा की उपासना का महापर्व भी आरंभ हो जाएगा। हिंदू कैलेंडर का पहला महीना चैत्र और आखिरी महीना फाल्गुन होता है। हर साल चैत्र प्रतिप्रदा तिथि से नया विक्रम संवत शुरू हो जाता है जो इस बार संवत्सर का नाम नल होगा, राजा बुध ग्रह होंगे और मंत्री शुक्र ग्रह होंगे। आइए जानते है हिंदू विक्रम संवत 2080 के बारे में खास बातें...
हिंदू नववर्ष से जुड़ी खात बातें
1- विक्रम संवत की शुरुआत राजा विक्रमादित्य ने शुरू किया था। राजा विक्रमादित्य ने अपनी विक्रम संवत के शुरू होने पर अपनी जनता के सभी कर्जों से राहत प्रदान की थी। विक्रम संवत हर साल चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू हो जाती है। इस संवत को गणितीय नजरिए से एकदम सटीक काल गणना माना जाता है। विक्रम संवत को राष्ट्रीय संवत माना गया है। नए विक्रम संवत के शुरूआत होने पर देश के अलग-अलग स्थानों पर इसके अलग-अलग नामों से जाना जाता है।
2- चैत्र महीना जोकि हिंदू नववर्ष का पहला महीना होता है यह होली के बाद शुरू हो जाता है। यानी फाल्गुन पूर्णिमा तिथि के बाद चैत्र कृष्ण प्रतिपदा लग जाती है फिर भी उसके 15 दिन बाद नया हिंदू नववर्ष क्यों मनाया जाता है? दरअसल इसके पीछे क्या तर्क है कि हिंदू पंचांग के अनुसार कृष्ण पक्ष पूर्णिमा से अमावस्या तिथि के 15 दिनों तक रहता है और कृष्ण पक्ष के इन 15 दिनों में चंद्रमा धीरे-धीरे लगातार घटने के कारण पूरे आकाश में अंधेरा छाने लगता है। सनातन धर्म का आधार हमेशा अंधेरे से उजाले की तरफ बढ़ने का रहा है यानि 'तमसो मां ज्योतिर्गमय्'। इसी वजह से चैत्र माह के लगने के 15 दिन बाद जब जब शुक्ल पक्ष लगता है और प्रतिपदा तिथि से हिंदू नववर्ष मनाया जाता है। अमावस्या के अगले दिन शुक्ल पक्ष लगने से चंद्रमा हर एक दिन बढ़ता जाता है जिससे अंधकार से प्रकाश की समय आगे बढ़ता है।
3-चैत्र माह की प्रदिपदा तिथि पर ही महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, माह और वर्ष की गणना करते हुए हिंदू पंचांग की रचना की थी। इस तिथि से ही नए पंचांग प्रारंभ होते हैं और वर्ष भर के पर्व, उत्सव और अनुष्ठानों के शुभ मुहूर्त निश्चित होते हैं।
4- पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण किया था। इस वजह से भी चैत्र प्रतिपदा तिथि का इतना महत्व है।
5- इसी दिन से नया संवत्सर भी आरंभ हो जाता है इसलिए इस तिथि को नवसंवत्सर भी कहते हैं। सभी चारों युगों में सबसे पहले सतयुग का प्रारम्भ इसी तिथि यानी चैत्र प्रतिपदा से हुआ था। यह तिथि सृष्टि के कालचक्र प्रारंभ और पहला दिन भी माना जाता है।
6-चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि पर भगवान राम ने वानरराज बाली का वध करके वहां की प्रजा को मुक्ति दिलाई। जिसकी खुशी में प्रजा ने घर-घर में उत्सव मनाकर ध्वज फहराए थे।
7- हिंदू नववर्ष को महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा तथा आंध्र प्रदेश में उगादी पर्व के रूप में भी मनाया जाता है। भगवान झूलेलाल की जयंती, चैत्र नवरात्रि का प्रारम्भ, गुड़ी पड़वा,उगादी पर्व मनाए जाते हैं।
8- चैत्र प्रतिपदा नवरात्रि पर शक्ति की आराधना की जाती है जहां पर मां दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों की पूजा होती है। नवमी तिथि पर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का जन्मोत्सव और फिर चैत्र पूर्णिमा पर भगवान राम के सबसे प्रिय भक्त हनुमान की जयंती मनाई जाती है।
9- हिंदू कैलेंडर में कुल 12 माह होते हैं जो इस प्रकार है। चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, अश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ और फाल्गुन।
10- हिंदू कैलेंडर के सभी महीने नक्षत्र के नाम पर रखे गए हैं। पूर्णिमा तिथि पर जो नक्षत्र रहता है उसी नक्षत्र के नाम पर हिंदी महीनों के नाम रखे गए हैं। जैस चैत्र का महीना चित्रा नक्षत्र के नाम पर रखा गया इसी प्रकार वैशाख विशाखा के नाम पर, ज्येष्ठ ज्येष्ठा नक्षत्र के नाम पर। इसी तरह सभी 12 हिंदू महीनों का नाम नक्षत्रों के नाम रखा गया है।
Chaitra Navratri 2023: कलश स्थापना के साथ आज से चैत्र नवरात्र शुरू, उत्साह का माहौल
22 Mar, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
Chaitra Navratri 2023: कलश स्थापना के साथ वासंतिक नवरात्र बुधवार 22 मार्च, 2023 से शुरू हो गया. वासंतिक नवरात्र का आरंभ हिंदू नववर्ष के साथ होता है. दो दिन से मूसलाधार बारिश होने के कारण वासंतिक नवरात्र में जिन दुर्गा मंडपों में पाठ होता है, वहां थोड़ी परेशानी हुई है.
बावजूद इसके लोगों में काफी उत्साह है. बुधवार को कलश स्थापन के साथ पूजा शुरू होगी. जिसको लेकर मंगलवार को स्थानीय लोग तैयारी में देर शाम तक लगे हुए थे. नवरात्र को लेकर सप्तमी से दशमी तक विशेष चहल-पहल रहेगी.
शैलपुत्री की पूजा आज
पंडित गोपाल पांडेय ने बताया कि नवरात्र के प्रथम दिन मां शैलपुत्री की पूजा का विधान है. सौभाग्य की देवी शैलपुत्री की पूजा से सुख-समृद्धि मिलती है. पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण माता का नाम शैलपुत्री पड़ा. बताया कि चैत्र नवरात्र में नौ दिनों तक मां दुर्गे के अलग-अगल स्वरूप की पूजा होती है.
ऐसे करें मां शैलपुत्री की पूजा
शारदीय नवरात्रि के प्रथम दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नानादि से निवृत स्वच्छ वस्त्र धारण करें और फिर चौकी को गंगाजल से साफ करके मां दुर्गा की मूर्ति या फोटो स्थापित करें. पूरे परिवार के साथ विधि-विधान के साथ कलश स्थापना की जाती है. घट स्थापना के बाद मां शैलपुत्री का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें. माता शैलपुत्री की पूजा षोड्शोपचार विधि से की जाती है. इनकी पूजा में सभी नदियों, तीर्थों और दिशाओं का आह्वान किया जाता है. इसके बाद माता को कुमकुम और अक्षत लगाएं. इसके बाद सफेद, पीले या लाल फूल माता को अर्पित करें. माता के सामने धूप, दीप जलाएं और पांच देसी घी के दीपक जलाएं. इसके बाद माता की आरती उतारें और फिर शैलपुत्री माता की कथा, दुर्गा चालीसा, दुर्गा स्तुति या दुर्गा सप्तशती आदि का पाठ करें. इसके बाद परिवार समेत माता के जयकारे लगाएं और भोग लगाकर पूजा को संपन्न करें. शाम के समय में भी माता की आरती करें और ध्यान करें.
सूर्योदय का पहला घंटा कलश स्थापना का मुहूर्त
नवरात्रि में मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की विधि-विधान से पूजा की जाती है. पंडित सुधाकर झा ने बताया कि मां दुर्गा नाव पर सवार होकर आ रही है. बुधवार को सूर्योदय के साथ नवरात्र की शुरुआत कलश स्थापना के साथ होगी. कलश स्थापना शुभ मुहूर्त सुबह 06.23 बजे से 07.32 बजे तक है. उन्होंने नवरात्र के संयोग के बारे में बताया कि चार ग्रहों का परिवर्तन नवरात्र पर देखने को मिलेगा. यह संयोग 110 वर्षों के बाद मिल रहा है. इस बार नव संवत्सर लग रहा है. माना जाता है कि इसी दिन भगवान ब्रह्मा ने पृथ्वी की रचना की थी. मां दुर्गा को सुख, समृद्धि और धन की देवी कहा जाता है. धार्मिक मान्यता है कि नवरात्रि के दौरान उपवास रखने और पूरी श्रद्धा से मां दुर्गा की पूजा-अर्चना करने से वो अपने भक्तों पर प्रसन्न होती हैं. साथ ही उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं.
22 मार्च को गुड़ी पड़वा पर करें ये 5 उपाय, साल भर घर में बनी रहेगी सुख-समृद्धि
22 Mar, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
उज्जैन. हिंदू नववर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू होता है। इस बार ये तिथि 23 मार्च, बुधवार को है। हिंदू नववर्ष महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा (Gudi Padwa 2023) के पर्व मनाया जाता है।
इस पर्व से कई मान्यताएं और परंपराएं जुड़ी हैं। इनमें से कुछ परंपराओं के पीछे वैज्ञानिक कारण भी छिपे हैं। इस दिन अगर कुछ खास उपाय किए जाएं तो घर में साल भर सुख-समृद्धि बनी रहती है (Gudi Padwa Ke Upay)। आगे जानिए इन उपायों के बारे में.
घर के मुख्य द्वार पर लगाएं वंदनवार
गुड़ी पड़वा साल का पहला दिन होता है। इस दिन घर के मुख्य दरवाजे पर आम के पत्तों का बना वंदनवार लगाना चाहिए। ऐसा करने से घर में निगेटिव एनर्जी प्रवेश नहीं कर पाती और पॉजिटिविटी बढ़ती है। इसका शुभ प्रभाव पूरे साल मिलता है और घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
देवी लक्ष्मी की पूजा करें
गुड़ी पड़वा की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करें और साफ वस्त्र पहनकर देवी लक्ष्मी की पूजा करें। ये चैत्र नवरात्रि का भी पहला दिन होता है। ऐसा करने से देवी की कृपा हम पर बनी रहती है और धन संबंधी मामलों में समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता।
तुलसी को पूजा करें
गुड़ी पड़वा की शाम को तुलसी के पौधे की पूजा करें। गाय के शुद्ध घी का दीपक लगाएं। इसके बाद तुलसी नामाष्टक मंत्र बोलते हुए तुलसी के पौधे की परिक्रमा करें। ये है तुलसी नामाष्टक मंत्र-
वृन्दां वृन्दावनीं विश्वपावनींविश्वपूजिताम् ।।
पुष्पसारां नन्दिनीं च तुलसीं कृष्णजीवनीम् ।।
एतन्नामाष्टकं चैव स्तोत्रं नामार्थसंयुतम् ।।
यः पठेत्तां च संपूज्य सोऽश्वमेधफलं लभेत् ।।
इन 5 स्थानों पर करें दीपक लगाएं
गुड़ी पड़वा की शाम सूर्यास्त होने के बाद घर के किचन, मुख्य द्वार के दोनों ओर, पूजा स्थान, समीप स्थित किसी मंदिर में और कुएं या बावड़ी पर दीपक जलाएं। इन सभी स्थानों पर अलग-अलग देवताओं का वास माना गया है। ये उपाय करने से इन सभी देवताओं की कृपा आपको प्राप्त होगी आपके जीवन में खुशियां बनी रहेंगी।
जरूरतमंदों को दान करें
गुड़ी पड़वा पर जरूरतमंदों को दान करें। ये हिंदू नववर्ष का पहला दिन होता है। इस दिन किए गए दान का फल पूरे साल मिलता है। दान में आप भोजन, अनाज, कपड़े आदि चीजें जरूरतमंदों को दे सकते हैं। अगर इस दिन कोई आपके घर आकर किसी चीज की अपेक्षा करे तो उसे खाली हाथ न जानें दें।
आज से चैत्र नवरात्रि आरंभ, ये है कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त
22 Mar, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
Chaitra navratri 2023 kalash sthapana muhurat: सनातन धर्म का अनुसरण करने वाले माता को समर्पित 9 दिन, जिन्हें नवरात्र पर्व के रूप में मनाया जाता है का खास महत्व होता है। मां दुर्गा को धन, सुख, ज्ञान और समृद्धि की देवी माना जाता है। प्रत्येक दिन माता के एक विशेष रूप को समर्पित होता है और इन नौ के नौ दिनों में माता के अलग-अलग स्वरूपों की विभिन्न प्रकार से पूजा करके प्रसन्न किया जाता है। वैसे तो साल में चार बार नवरात्रि आते हैं परन्तु शारदीय एवं चैत्र नवरात्र का विशेष महत्व होता है। जो भक्त भी माता को इन 9 दिनों में प्रसन्न करते हैं, उन पर देवी की कृपा का प्रभाव पूरा वर्ष बना रहता है।
Chaitra Navratri 2023 Kalash Sthapna Date and Shubh Muhurt : चैत्र नवरात्रि जो कि चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से आरम्भ हो जाते हैं। इस वर्ष यह त्यौहार 22 मार्च 2023 दिन बुधवार यानी आज से आरम्भ हो रहा है और 30 मार्च 2023 को गुरुवार के दिन इनका समापन होगा। नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना की जाती है। कलश स्थापना का मुहूर्त इस प्रकार है- सुबह 6 बजकर 45 मिनट से 7 बजकर 31 मिनट तक। अवधि 46 मिनट तक की ही रहेगी। प्रतिपदा तिथि आरम्भ 22 अप्रैल 2023 को सूर्योदय से लेकर समापन रात्रिकाल 8 बजकर 23 मिनट तक रहेगा।
Chaitra navratri 2023 puja vidhi कलश स्थापना एवं पूजा की विधि- नवरात्रि के पहले दिन घट स्थापना की जाती है, उससे पहले मंदिर की सफाई अच्छे से कर लेनी चाहिए। सबसे पहले लाल कपड़ा बिछा कर आसन प्रदान किया जाता है। फिर कपड़े पर थोड़े से चावल रखें, इस पर पानी से भरा कलश रखें। इस कलश में कुछ मात्रा में चावल, सुपारी, अशोक या आम के पत्ते रखें और कलश के मुंह पर एक पानी वाला नारियल को मौली बांध कर दक्षिणा सहित रखें। नारियल को रखते समय मां दुर्गा का आवाहन करें। इसके बाद मिट्टी के बर्तन में जौ बोएं एवं इसे दुर्गा माता के सामने रख दें। देसी घी की जोत जलाकर माता की पूजा-आराधना करें।
मां दुर्गा की पूजा-आराधना में प्रयोग की जाने वाली सामग्री इस प्रकार है- आम के पत्ते, चावल, गंगा जल, लाल मोली, चंदन, पानी वाला नारियल, कपूर, जौं, लौंग, हरी इलायची, 5 पान के पत्ते, सुपारी, मिट्टी का बर्तन, फूल, माता का श्रृंगार, चौंकी, आसन, कमलगट्टा। इस सभी वस्तुओं का प्रयोग एवं अर्पण करने से मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं।
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (22 मार्च 2023)
22 Mar, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि - यात्रा भय, कष्ट व्यवसाय में बाधा, लाभकारी परिस्थिति बनेगी, समस्या से उलझन बनेगी।
वृष राशि - राजभय, रोग, स्वजन सुख, शिक्षा व लेखन कार्य में सफलता तथा प्रगति होगी।
मिथुन राशि - वाहन भय, कष्ट, हानि तथा अशांति का वातावरण बनेगा, धैर्य रखें।
कर्क राशि - सफलता, उन्नति होगी, शुभ कार्य, विवाद, राजकार्य-मामले में जीत होगी।
सिंह राशि - शरीर कष्ट, कार्य में व्यय, सफलता, आर्थिक सुधार होगा, कार्य बनेंगे।
कन्या राशि - खर्च, विवाद, स्त्री कष्ट, विद्या लाभ, धीर-धीरे कार्य में सुधार होगा।
तुला राशि - यात्रा से हर्ष, राज लाभ, शरीर कष्ट, यात्रा में व्यय होगा।
वृश्चिक राशि - कार्यवृत्ति में लाभ, यात्रा, सम्पत्ति लाभ, व्यापारिक गति में सुधार होगा।
धनु राशि - अल्प लाभ, चोटादि-अग्नि भय, मानसिक बेचैनी से परेशानी होगी।
मकर राशि - शत्रु से हानि, कार्य व्यय, शारीरिक सुख होगा, कष्टकारी स्थिति बनेगी।
कुंभ राशि - सुख, व्यय, संतान सुख, कार्य सफलता, उत्साह वृद्धि होगी, समय का ध्यान रखें।
मीन राशि - पदोन्नति, राजभय, न्याय लाभ-हानि, अधिकारियों से मनमुटाव होगा।
Bhutadi Amavasya 2023: जानें चैत्र अमावस्या क्यों कहलाती है भूतड़ी अमावस्या ?
21 Mar, 2023 08:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
Bhutadi Amavasya 2023: प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि अमावस्या कहलाती है। पूरे वर्ष में 12 अमावस्या पड़ती हैं और सभी अमावस्या का अपना अलग महत्व है। चैत्र अमावस्या हिंदू वर्ष का अंतिम दिन होता है। चैत्र अमावस्या को हमारे धर्म में बहुत ही शुभ दिन माना जाता है। यह अमावस्या मार्च-अप्रैल के महीने में आती है। हालांकि, इस दिन का हमारी भारतीय संस्कृति में बहुत महत्व है। इस दिन धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियां की जाती हैं, जैसे स्नान, दान और सामग्री का दान। चैत्र अमावस्या को पितृ तर्पण जैसे अनुष्ठानों के लिए भी जाना जाता है। लोग कौवे, गाय, कुत्ते और यहां तक कि गरीब लोगों को भी भोजन कराते हैं। गरुड़ पुराण के अनुसार अमावस्या को पूर्वज अपने वंशजों के यहां जाते हैं और उन्हें भोजन कराते हैं। चैत्र अमावस्या व्रत हिंदू धर्म में सबसे लोकप्रिय उपवासों में से एक है। अमावस्या व्रत या उपवास सुबह शुरू होता है और प्रतिपदा को चंद्रमा के दर्शन होने तक चलता है। इसे भूतड़ी अमावस्या भी कहते हैं। इस तिथि का महत्व बहुत अधिक माना गया है।
भूतड़ी अमावस्या तिथि
आरंभ तिथि : 20 मार्च, रात्रि 01:47 से
समाप्त तिथि : 21 मार्च रात्रि 10:53 पर।
उदयातिथि के अनुसार चैत्र अमावस्या 21 मार्च को मानी जाएगी।
अमावस्या पर बन रहे हैं शुभ योग
चैत्र अमावस्या को भूतड़ी अमावस्या भी कहते हैं। और इस बार मंगलवार को पड़ने के कारण यह भौमवती अमावस्या भी कहलाएगी। इस दिन शुभ, शुक्ल और सिद्धि नाम के 3 शुभ योग का भी निर्माण हो रहा है जो इस तिथि का महत्व और भी बढ़ा रहे हैं।
चैत्र अमावस्या क्यों कहलाती है भूतड़ी अमावस्या?
आप सबके मन में सवाल होगा कि अमवाया तो हर महीने आती है लेकिन सिर्फ चैत्र की अमावस्या को ही भूतड़ी अमावस्या क्यों कहा जाता है। आइए आपको इसके पीछे का कारण बताते हैं। दरअसल, भूत का अर्थ है नकारात्मक शक्तियां, कुछ अतृप्त आत्माएं अपनी अधूरी इच्छाएं पूरी करने के लिए जीवित लोगों पर अधिकार करने का प्रयास करती हैं और उग्र रूप धारण कर लेती हैं। इसी उग्रता को शांत करने के लिए नकरात्मक ऊर्जा से प्रभावित लोगों को शांत करने के लिए भूतड़ी अमावस्या पर पवित्र नदी में स्नान करवाया जाता है।
क्या है इस तिथि का महत्व?
कोई भी अमावस्या हो, इस दिन पितरों का श्राद्धकर्म करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। चैत्र अमावस्या में भी पितरों की आत्मा की शांति के लिए विशेष उपाय करने चाहिए। ऐसा माना जाता है कि चैत्र अमावस्या पर भगवान विष्णु की पूजा करने से जीवन से दर्द, संकट और नकारात्मकता को खत्म करने में मदद मिलती है। पुराणों में उल्लेख किया गया है कि इस शुभ दिन पर गंगा नदी में स्नान करने से आपके पापों और बुरे कर्मों का नाश होता है।अमावस्या तिथि पर भक्त अपने पूर्वजों के लिए श्राद्ध आदि भी करते हैं, ऐसा करने से पितृ दोष खत्म होता है।
Gudi Padwa 2023 : इस दिन मनाया जाएगा गुड़ी पड़वा, जानें पूजा विधि और महत्व..
21 Mar, 2023 07:55 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
Gudi Padwa 2023: गुड़ी पड़वा को संवत्सर पड़वो के नाम से भी जाना जाता है, यह मुख्य रूप से भारतीय राज्य महाराष्ट्र में मनाया जाने वाला वसंत ऋतु का त्योहार है। यह हिंदू नव वर्ष की शुरुआत का प्रतीक है और चैत्र महीने के पहले दिन पड़ता है, जो आमतौर पर मार्च के अंत या अप्रैल की शुरुआत में पड़ता है। 2023 में, गुड़ी पड़वा 22 मार्च, 2023 को मनाया जाएगा। उत्सव की खुशियों के साथ-साथ, गुड़ी पड़वा को संपत्ति या नया घर खरीदने का भी शुभ समय माना जाता है। गुड़ी पड़वा, मराठी नया साल, लोगों के लिए नई शुरुआत और आशा की भावना लाता है। मुख्य रूप से यह पर्व महाराष्ट्र राज्य में मनाया जाता है, गुड़ी पड़वा या उगादी अगले फसल वर्ष की शुरुआत का प्रतीक है। गुड़ी पड़वा चैत्र के पहले दिन मनाया जाता है।
गुड़ी पड़वा 2023 तिथि
तिथि आरंभ: 21 मार्च 2023, मंगलवार, रात्रि 10: 52 मिनट से
तिथि समाप्त: 22 मार्च 2023, बुधवार, रात्रि 08: 20 मिनट पर
उदयतिथि के अनुसार 22 मार्च 2023 को गुड़ी पड़वा है।
गुड़ी पड़वा 2023 मुहूर्त 2023
गुड़ी पड़वा पूजा मुहूर्त - प्रात: 06 : 29 मिनट से प्रातः 07: 39 मिनट तक (22 मार्च 2023)
गुड़ी पड़वा का महत्व
गुड़ी पड़वा हिंदू धर्म में एक विशेष स्थान रखता है। ऐसा माना जाता है कि गुड़ी को घर पर फहराने से घर से नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं और जीवन में भाग्य और समृद्धि आती है। यह दिन वसंत की शुरुआत का भी प्रतीक है और इसे फसल उत्सव के रूप में माना जाता है। इस उत्सव को कई अन्य राज्यों में संवत्सर पड़वो, उगादि, उगादी,चेती, नवरेह, साजिबू नोंगमा पानबा चीरोबाआदि नामों से जाना जाता है।कई लोगों का मानना है कि इस दिन सोना या नई कार खरीदना शुभ होता है।
कैसे मनाते हैं गुड़ी पड़वा
गुड़ी पड़वा महाराष्ट्र का पर्व है। हिंदू धर्म में एक विशेष महत्व रखता है। गुड़ी पड़वा के दिन बहुत से कार्य किए जाते हैं। इस दिन झंडा, या गुड़ी, घर के सामने फहराया जाता है, और द्वार पर रंग-बिरंगी रंगोली बनाई जाती है। ध्वज को पीले रेशमी आभूषणों, फूलों और आम के पेड़ के पत्तों से सजाया जाता है। सिंदूर और हल्दी से बना एक शुभ स्वास्तिक बनाया जाता है। इस दिन ज़रूरतमंद लोगों को पानी के साथ और भी अन्य वस्तुएं देनी चाहिए।
चैत्र नवरात्रि पर करें इन मंत्रों का जाप, मां दुर्गा होंगी प्रसन्न
20 Mar, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
Chaitra Navratri 2023 Mantra: चैत्र नवरात्रि 22 मार्च से आरंभ हो रही है। चैत्र नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ स्वरुपों की पूजा की इन ये मंत्र जाप से मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं और जीवन में कल्याण करती हैं। इन मंत्रों के जाप से नवदुर्गा आपकी मनोकामनाओं को पूरी करेंगी। नवरात्रि के 9 दिन मां दुर्गा के नौ स्वरूपों का पूजन होता है। ऐसे में हर दिन मां दुर्गा की आरधन करने के लिए दिन के अनुसार मंत्र जाप करने चाहिए। मां दुर्गा के ये नौ स्वरूप हैं मां शैलपुत्री, मां ब्रह्मचारिणी, मां चंद्रघंटा, मां कूष्मांडा, मां स्कंदमाता, मां कात्यायनी, मां कालरात्रि, मां सिद्धिदात्री और मां महागौरी। देवी दुर्गा ने ये नौ स्वरुप अलग अलग उद्दश्यों की पूर्ति के लिए धारण किए थे। आइए जानते हैं किन मंत्रों के जाप से मां दुर्गा के 9 स्वरूपों को प्रसन्न किया जा सकता है।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नम:
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नम:
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चन्द्रघंटायै नम:
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कूष्मांडायै नम: