धर्म एवं ज्योतिष (ऑर्काइव)
नवरात्रि का छठा दिन, मां कात्यायिनी का स्वरूप, पूजाविधि और स्तुति मंत्र
27 Mar, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
दुर्गा पूजा के छठवें दिन देवी के कात्यायनी स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन 'आज्ञा चक्र' में स्थित होता है। योग साधना में इस आज्ञा चक्र का महत्वपूर्ण स्थान है। इस चक्र में स्थित मन वाला साधक मां कात्यायनी के चरणों में अपना सर्वस्व निवेदित कर देता है।
परिपूर्ण आत्मदान करने वाले ऐसे भक्त को सहज भाव से मां कात्यायनी के दर्शन प्राप्त हो जाते हैं।
मां का स्वरूप
मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं,इनका स्वरूप अत्यंत ही भव्य और दिव्य है। इनका वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला और भास्वर है। शेर पर सवार मां की चार भुजाएं हैं, इनके बायें हाथ में कमल और तलवार व दाहिनें हाथों में स्वास्तिक व आशीर्वाद की मुद्रा अंकित है। भगवान कृष्ण को पाने के लिए व्रज की गोपियों ने इन्ही की पूजा कालिंदी नदी के तट पर की थी।ये ब्रज मंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं।
कौन हैं मां कात्यायनी
कत नामक एक प्रसिद्द महर्षि थे,उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए। इन्हीं कात्य के गोत्र में विश्व प्रसिद्द महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुए थे। इन्होने भगवती पराम्बा की उपासना करते हुए बहुत वर्षों तक बड़ी कठिन तपस्या की थी। उनकी इच्छा थी कि मां भगवती उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें। मां भगवती ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली। कुछ काल पश्चात जब दानव महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर बहुत अधिक बढ़ गया था तब भगवान ब्रह्मा,विष्णु, महेश तीनों ने अपने-अपने तेज़ का अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिए एक देवी को प्रकट किया। महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की और देवी इनकी पुत्री कात्यायनी कहलाईं।
पूजाविधि
दुर्गा पूजा के छठे दिन भी सर्वप्रथम कलश व देवी के स्वरूप मां कात्यायनी की पूजा कि जाती है। पूजा की विधि शुरू करने पर हाथों में सुगन्धित पुष्प लेकर देवी को प्रणाम कर देवी के मंत्र का ध्यान करना चाहिए। मां को श्रृंगार की सभी वस्तुएं अर्पित करें। मां कात्यायनी को शहद बहुत प्रिय है इसलिए इस दिन मां को भोग में शहद अर्पित करें। देवी की पूजा के साथ भगवान शिव की भी पूजा करनी चाहिए।
पूजा फल
देवी भागवत पुराण के अनुसार देवी के इस स्वरूप की पूजा करने से शरीर कांतिमान हो जाता है। इनकी आराधना से गृहस्थ जीवन सुखमय रहता है। मां कात्यायिनी की भक्ति और उपासना द्वारा मनुष्य को बड़ी सरलता से अर्थ, धर्म, काम,मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति हो जाती है। उसके रोग,शोक, संताप और भय आदि सर्वथा नष्ट हो जाते हैं।
किनको होगा लाभ
जिनके विवाह में विलम्ब हो रहा हो या जिनका वैवाहिक जीवन सुखी नहीं है वे जातक विशेष रूप से मां कात्यायिनी की उपासना करें,लाभ होगा।
स्तुति मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
चंद्र हासोज्जवलकरा शार्दूलवर वाहना|
कात्यायनी शुभंदद्या देवी दानवघातिनि||
हनुमान से सीखें संस्कार
27 Mar, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
दूसरे का मान रखते हुए हम सम्मान अर्जित कर लें, इसमें गहरी समझ की जरूरत है। होता यह है कि जब हम अपनी सफलता, सम्मान या प्रतिष्ठा की यात्रा पर होते हैं, उस समय हम इसके बीच में आने वाले हर व्यक्ति को अपना शत्रु ही मानते हैं। महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए मनुष्य सारे संबंध दांव पर लगा देता है। आज के युग में महत्वाकांक्षी व्यक्ति का न कोई मित्र होता है, न कोई शत्रु। उसे तो सिर्फ अपनी महत्वाकांक्षा की पूर्ति करनी होती है। हर संबंध उसके लिए शस्त्र की तरह हैं। लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो दूसरे की भावनाओं, रिश्ते की गरिमा और सबके मान-सम्मान को ध्यान में रखकर अपनी यात्रा पर चलते हैं। हनुमानजी उनमें से एक हैं। सुंदरकांड में एक प्रसंग है। हनुमानजी और मेघनाद का युद्ध हो रहा था। मेघनाद बार-बार हनुमानजी पर प्रहार कर रहा था, लेकिन उसका नियंत्रण बन नहीं रहा था। तब उसने हनुमानजी पर ब्रह्मास्त्र का प्रहार किया। हनुमानजी को भी वरदान था कि वह किसी अस्त्र-शस्त्र से पराजित नहीं होंगे। उनका नाम बजरंगी इसीलिए है कि वे वज्रांग हैं। जिसे कह सकते हैं स्टील बॉडी।
जैसे ही शस्त्र चला, हनुमानजी ने विचार किया और तुलसीदासजी ने लिखा -
ब्रह्मास्त्र तेहि सांधा कपि मन कीन्ह बिचार।
जौं न ब्रह्मासर मानउं महिमा मिटइ अपार।।
अंत में उसने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया, तब हनुमानजी ने मन में विचार किया कि यदि ब्रह्मास्त्र को नहीं मानता हूं तो उसकी अपार महिमा मिट जाएगी। यहां हनुमानजी ने अपने पराप्रम का ध्यान न रखते हुए, ब्रह्मजी के मान को टिकाया। दूसरों का सम्मान बचाते हुए अपना कार्य करना कोई हनुमानजी से सीखें।
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (27 मार्च 2023)
27 Mar, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- तनाव कष्ट रोग, मित्र लाभ राज भय तथा परिवारिक समस्या उलझेगी, ध्यान दे।
वृष राशि - अनुभव सुख मंगल कार्य, विरोध मामले मुकदमों पर प्राप्त जीत की संम्भावना है।
मिथुन राशि - कुसंगत हानि, विरोध भय यात्रा, सामाजिक कार्यो में व्यवधान अवश्य बनेगें।
कर्क राशि - भूमि लाभ, स्त्री सुख, प्रगति, स्थिति में सुधार, लाभ अवश्य ही होगा ध्यान रखें।
सिंह राशि - तनाव व विवाद से बचें, विरोधियों की चिन्ता, राजकार्यो से प्रतिष्ठा मिलेगी।
कन्या राशि - भूमि लाभ स्त्री सुख, हर्ष प्रगति, स्थिति में सुधार लाभ तथा कार्य उत्तम होगा।
तुला राशि - प्रगति वाहन का भय भूमि, लाभ कलह कुछ अच्छे कार्य कर सकेगें, ध्यान दें।
वृश्चिक राशि - कार्य सिद्ध, विरोध लाभ हर्ष कष्ट, व्यय होवे व्यापार में सुधार होने खर्च होवें।
धनु राशि - यात्रा में हानि, मित्र कष्ट, कमी किन्तु कुछ व्यवस्था का अनुभव हावेगा।
मकर राशि - शुभ कार्य, वाहन आदि रोग, कार्य कुछ अच्छे कार्य हो सकते हैं, ध्यान देवें।
कुंभ राशि - अभीष्ट सिद्ध, राजभय, कार्य बाधा, राज कार्यो में रूकावट का अनुभव होगा।
मीन राशि - अल्प हानि, रोग भय, सम्पर्क लाभ, राज कार्य में विलम्ब, परेशानी होवेगी।
कब मनाया जाएगा हनुमान जयंती पर्व? जानें सही डेट, शुभ योग और इनके जन्म की कथा
26 Mar, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हनुमानजी को कलयुग का जीवंत देवता कहा जाता है यानी वो देवता जो आज भी जीवित हैं। (Hanuman Jayanti 2023 Date) हनुमानजी से जुड़ी और भी कथाएं और मान्यताएं हमारे समाज में प्रचलित हैं।
हर साल चैत्र मास की पूर्णिमा पर हनुमानजी का जन्मोत्सव बड़ी ही श्रद्धा और धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। इस दिन सभी हनुमान मंदिरों में विशेष आयोजन किए जाते हैं। भक्तों की लंबी कतारें हनुमान मंदिरों में इस दिन देखी जाती है। आगे जानिए इस बार हनुमान जन्मोत्सव कब मनाया जाएगा.
जानें हनुमान जन्मोत्सव की सही तारीख (Hanuman Jayanti 2023 Date)
पंचांग के अनुसार, चैत्र मास की पूर्णिमा तिथि 05 अप्रैल की सुबह 09:19 से 06 अप्रैल की सुबह 10:04 तक रहेगी। चूंकि पूर्णिमा तिथि का सूर्योदय 6 अप्रैल को होगा, इसलिए हनुमान जयंती का पर्व इसी दिन मनाया जाएगा। इस दिन ग्रह-नक्षत्रों के संयोग से कई शुभ योग भी बनेंगे। इस दिन शनि अपनी स्वराशि कुंभ में गुरु अपनी स्वराशि मीन में रहेगा।
ये है हनुमानजी के जन्म की कथा (Hanuman Jayanti Katha)
- शिवपुराण के अनुसार, जब देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया तो उसमें से भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर निकले। अमृत कलश को पाने के लिए देवताओं और असुरों में युद्ध होने लगा।
- उस समय भगवान विष्णु मोहिनी अवतार लेकर आए और उन्होंने छल से देवताओं को अमृत पिलाकर अमर कर दिया और असुरों को कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ। उस समय भगवान विष्णु के मोहिनी रूप को देखकर शिवजी ने कामातुर होकर अपना वीर्यपात कर दिया।
- सप्त ऋषियों ने उस वीर्य को संग्रहित कर समय आने पर वानरराज केसरी की पत्नी अंजनी के कान के माध्यम से गर्भ में स्थापित कर दिया। समय आने पर अंजनी ने अत्यंत तेजस्वी एवं प्रबल पराक्रमी श्रीहनुमानजी को जन्म दिया।
अष्ट चिरंजीवियों में से एक हैं हनुमानजी
धर्म ग्रंथों में 8 ऐसे पौराणिक पात्रों के बारे में बताया गया है, जिन्हें अमर माना जाता है। हनुमानजी भी इनमें से एक है। इस संबंध में एक श्लोक भी मिलता है। उसके अनुसार.
अश्वत्थामा बलिव्यासो हनूमांश्च विभीषण:।
कृप: परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविन:॥
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।
जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।
अर्थ- अश्वथामा, दैत्यराज बलि, महर्षि वेद व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम और मार्कण्डेय ऋषि, ये 8 अमर हैं। रोज सुबह इनका स्मरण करने से निरोगी शरीर और लंबी आयु मिलती है।
रोचक है मां चतुर्भुजी मंदिर का इतिहास, नवरात्र पर लगता है एकमासी मेला, इस साल का आयोजन भव्य
26 Mar, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
गढ़वा जिले के केतार प्रखंड का मां चतुर्भुजी मंदिर काफी प्रसिद्ध है. चैत्र नवरात्रि के अवसर पर हर साल यहां भव्य मेले का आयोजन किया जाता है, जो पूरे एक महीने तक चलता है. हर साल की तरह इस साल भी मेले का आयोजन हो रहा है. इस एकमासी मेले को लेकर तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं.
21 एकड़ में मेले का फैलाव
चैत्र नवरात्रि पर लगने वाले मेले को लेकर मां चतुर्भुजी मंदिर परिसर में झारखंड सहित पड़ोसी राज्यों से दुकानदारों का आना शुरू हो गया है. मेले में मंदिर परिसर के बाहर लगभग 400 से 500 छोटी-छोटी दुकानें लगाई जा रही हैं. मेले में पूजा सामग्री, खिलौने, चूड़ी, श्रृंगार आदि के दुकानों के लिए झोपड़ियां बनाने के साथ-साथ झूले भी लगाये जा रहे हैं. चैत्र नवरात्रि के अवसर पर यहां लगभग 21 एकड़ में मेले का फैलाव रहता है.
300 साल पुराना इतिहास, ये है मान्यता
मां चतुर्भुजी मंदिर का इतिहास लगभग 300 साल पुराना है. बताया जाता है कि करीब 300 साल पहले सोनपुरवा स्टेट के राजा एवं केतार निवासी जगजीवन बैगा को रात में सपना आया था कि केतार के भैंसहट घाटी में मां चतुर्भुजी की मूर्ति जमीन के नीचे दबी हुई है. जिसके बाद भैंसहट घाट पहुंचकर पहाड़ी से पत्थरों और मिट्टी को हटाकर देखा गया तो वहां पर सच में मां चतुर्भुजी की काली रंग की अद्भुत चतुर्भुज मूर्ति मिली. जिसके बाद बाजे-गाजे के साथ उस मूर्ति को हाथी पर बिठाकर राजा के घर ले जाया जाने लगा. इस दौरान भैंसहट घाटी से लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर हाथी रास्ते में एक केंदू वृक्ष के नीचे बैठ गया, जहां से बहुत कोशिश करने के बाद भी हाथी आगे नहीं बढ़ा. जिसके बाद मूर्ति को वहीं पर स्थापित कर दिया गया और पूजा अर्चना शुरू कर दी गई.
मंदिर निर्माण और वास्तुकला
मां चतुर्भुजी की ख्याति आसपास के क्षेत्रों में बढ़ने के साथ ही सन 1987 में एक कमेटी बनाकर मंदिर निर्माण का कार्य प्रारंभ किया गया. 21 फरवरी 1988 को मंदिर के साथ सांकेतिक गुंबद की ढलाई पूरी की गई, जिसके बाद मां चतुर्भुजी मंदिर के ठीक सामने शिवलिंग की स्थापना की गयी. वर्तमान में मंदिर परिसर की 1.21 एकड़ भूमि है, जिसमें मां चतुर्भुजी के मंदिर का मुख्य गुंबद 151 फीट शंकूनुमा ऊंचा है, जबकि इसके चारों कोनों पर 51 फीट ऊंचा गुंबद बना हुआ है. इन चारों गुंबदों के नीचे मां लक्ष्मी, मां सरस्वती, मां दुर्गा और भगवान गणेश की कृत्रिम मूर्ति स्थापित की गई है.
60 किलोग्राम चांदी से जड़ा है मां का आसन
वहीं मां (चतुर्भुजी) काली के आसन को 2019 में 60 किलोग्राम चांदी से जड़ा श्रीयंत्र बनाया गया है. चतुर्भुजी मंदिर के सामने ही भगवान भोलेनाथ का भव्य मंदिर, उत्तर में हवन कुंड, सतबहिनी मूर्ति, हनुमान मंदिर, सीता राम जानकी मंदिर, दुर्गा माता के मंदिर के साथ-साथ मंदिर परिसर में वीआईपी गेस्ट हाउस, विवाह मंडप, झरना, सरयू दास, बकरा बलि स्थल, रामलीला मैदान, आदि को बहुत ही सुंदर ढंग से सजाया गया है.
मुख्य प्रसाद सिंदूर
यहां का मुख्य प्रसाद सिंदूर है. यहां सिंदूर के साथ मिट्टी के घोड़े, इलायची दाना, चुंदरी और नारियल चढ़ाते हैं. श्रद्धालु यहां मन्नत पूरी होने के बाद बकरे की बलि भी देते हैं (हालांकि प्रभात खबर किसी तरह की जीव हत्या को कोई बढ़ावा नहीं दोता है). मंदिर में सुरक्षा की दृष्टिकोण से चारों ओर सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं. यहां मंदिर की भूमि के अलावा निजी भूमि पर प्रत्येक वर्ष लोगों के सहयोग से मेले का प्रसार रहता है. ग्रामीण मंदिर परिसर के बाहर की फसलें काटकर रामनवमी के पहले ही मेले के लिए जमीन को स्वेच्छा से खाली कर देते हैं.
इस बार नहीं कर सकते पंडा नदी में स्नान
मंदिर में झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश सहित अन्य राज्यों से श्रद्धालु आते हैं और मां चतुर्भुजी के दर्शन के बाद पंडा नदी में स्नान करते हैं, लेकिन इस बार पंडा नदी के सूख जाने के कारण श्रद्धालुओं को यह अवसर नहीं मिल पाएगा. इसे देखते हुए श्रद्धालु के लिए मंदिर परिसर में ही अतिथि शाला के साथ-साथ पेयजल एवं स्नानागार की व्यवस्था की गई है.
आगजनी है मेले की प्रमुख समस्या
मंदिर कमेटी की विशेष चिंता आगजनी को लेकर लगी रहती है. यहां प्रतिवर्ष लगभग 500 फूंस की दुकानें महीने भर के लिए लगती है. जहां गलती से भी एक चिंगारी पड़ने पर देखते ही देखते पूरी दुकान जल जाती है. हाल में दो बार छोटी मोटी घटनाएं हुई हैं, जबकि 10 साल पहले एक भीषण आगजनी की घटना में लगभग 300 दुकानें जलकर राख हो गई थीं. तबसे मंदिर कमेटी एवं प्रशासन उस घटना की पुनरावृति न हो सके, इसे लेकर चुस्त-दुरुस्त रहते हैं.
चैत्र नवरात्रि के दौरान इस तरह से करें दुर्गा सप्तशती का पाठ, इन नियमों का पालन जरूरी
26 Mar, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
चैत्र नवरात्रि की शुरूआत हो चुकी है. मान्यता है कि इन दिनों दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से व्यक्ति की मनोकामना जल्द पूरी होती है. लेकिन, दुर्गा सप्तशती का पाठ अगर सही समय पर किया जाए तो माता रानी की विशेष कृपा प्राप्त होती है
तीन चरित्रों में है दुर्गा सप्तशती का पाठ
दुर्गा सप्तशती में 13 अध्याय हैं, जिनको तीन चरित्रों में बांटा गया है। हर अध्याय में मां भगवती की महिमा और उनके रूपों के बारे में वर्णन किया गया है. दुर्गा सप्तशती का प्रथम चरित्र में मधु कैटभ वध कथा, मध्यम में महिषासुर का संहार और उत्तर चरित्र में शुम्भ-निशुम्भ वध और सुरथ एवं वैश्य देवी मां से मिले वरदान का विवरण है.
दुर्गा सप्तशती पाठ का महत्व पुराणों के अनुसार, भगवान शिव ने माता पार्वती को यह उपाय बताया था. उन्होंने माता पार्वती से कहा कि जो अर्गला, कालक और कवच का का पाठ करते हैं, उन्हें पुण्य फल की प्राप्ति होती है और संपूर्ण दुर्गा सप्तशती के पाठ का लाभ भी मिलता है. मान्यतानुसार, कुंजिका स्त्रोत के सिद्ध किए हुए मंत्र को कभी किसी का अहित करने के लिए नहीं प्रयोग करना चाहिए. ऐसा करने से उस व्यक्ति का ही अहित हो सकता है.
दुर्गा सप्तशती पढ़ते वक्त इन नियमों का पालन करें
दुर्गा सप्तशती का पाठ करने के दौरान शुद्धता (Purity) का पालन करना बेहद जरूरी है. इसलिए स्नान आदि करके साफ वस्त्र पहकर ही पाठ करें. कुशा के आसन या ऊन के बने आसन पर बैठकर ही पाठ करें. साथ ही पाठ करते वक्त हाथों से पैर का स्पर्श न करें.
नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती के पाठ से पहले और बाद में नर्वाण मंत्र ''ओं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाये विच्चे'' का जाप करना (Mantra jaap) जरूरी होता है.
अगर संस्कृत भाषा में दुर्गा सप्तशती के पाठ का उच्चारण करने में कठिनाई हो रही हो तो इसे हिंदी में किया जा सकता है. लेकिन जो भी पढ़ें उसे सही और स्पष्ट बोलें.
कम समय में ऐसे करें दुर्गा सप्तशती का पाठ
कम समय में दुर्गा सप्तशती का संपूर्ण लाभ पाने के लिए सबसे पहले कवच, कीलक और अर्गला स्त्रोत का पाठ करना होता है. फिर कुंजिका स्त्रोत का पाठ किया जाता है. पंडित लोग बताते हैं कि इस विधि से दुर्गा सप्तशती का पाठ करने पर संपूर्ण पाठ का फल प्राप्त होता है.
हर जीव में व्याप्त नारायण
26 Mar, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
वैदिक साहित्य से हम जानते हैं कि परम-पुरुष नारायण प्रत्येक जीव के बाहर तथा भीतर निवास करने वाले है। वे भौतिक तथा आध्यात्मिक दोनों जगतों में विद्यमान हैं। यद्यपि वे बहुत दूर हैं, फिर भी हमारे निकट हैं-आसीनो दूरं व्रजति शयानो याति सर्वतरू हम भौतिक इन्द्रियों से न तो उन्हें देख पाते हैं, न समझ पाते हैं अतएव वैदिक भाषा में कहा गया है कि उन्हें समझने में हमारा भौतिक मन तथा इन्द्रियां असमर्थ हैं।
किन्तु जिसने, भक्ति में कृष्णभावनामृत का अभ्यास करते हुए, अपने मन-इन्द्रियों को शुद्ध कर लिया है, वह उन्हें निरन्तर देख सकता है। ब्रघ्संहिता के अनुसार परमेर के लिए जिस भक्त में प्रेम उपज चुका है, वह निरन्तर उनके दर्शन कर सकता है। और भगवद्गीता में कहा गया है कि उन्हें केवल भक्ति द्वारा देखा-समझा जा सकता है। भगवान सबके हृदय में परमात्मा रूप में स्थित हैं। तो क्या इसका अर्थ यह हुआ कि वे बंटे हुए हैं? नहीं। वास्तव में वे एक हैं।
जैसे सूर्य मध्याह्न समय अपने स्थान पर रहता है, लेकिन यदि कोई पांच हजार मील की दूरी पर घूमे और पूछे कि सूर्य कहां है, तो सभी कहेंगे कि वह उसके सिर पर चमक रहा है। इस उदाहरण का अर्थ है कि यद्यपि भगवान अविभाजित हैं, लेकिन इस प्रकार स्थित हैं मानो विभाजित होंवैदिक साहित्य में यह भी कहा गया है कि अपनी सर्वशक्तिमत्ता द्वारा एक विष्णु सर्वत्र विद्यमान हैं।
जिस तरह एक सूर्य की प्रतीति अनेक स्थानों में होती है। यद्यपि परमेर प्रत्येक जीव के पालनकर्ता हैं, किन्तु प्रलय के समय सबका भक्षण भी कर जाते हैं। सृष्टि रची जाती है, तो वे सबको मूल स्थिति से विकसित करते हैं और प्रलय के समय सबको निगल जाते हैं। वैदिक शास्त्र पुष्टि करते हैं कि वे समस्त जीवों के मूल तथा आश्रय-स्थल हैं। सृष्टि के बाद सारी वस्तुएं उनकी सर्वशक्तिमत्ता पर टिकी रहती हैं और प्रलय बाद सारी वस्तुएं पुन: उन्हीं में विश्राम पाने के लिए लौट आती हैं।
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (26 मार्च 2023)
26 Mar, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि - धनलाभ आशानुकूल सफलता से हर्ष, कार्यवृत्ति में सुधार होगा।
वृष राशि - योजनाएं पूर्ण हो, शुभ समाचार से समस्या संभंव पूर्ण होगी, ध्यान दें।
मिथुन राशि - कार्य व्यवसाय में थकावट तथा बैचेनी कुछ सफलता के साधन बने।
कर्क राशि - दैनिक व्यवसाय गति में रहे, असमर्थता का वातावरण अवश्य ही बना रहें।
सिंह राशि - आलोचना से बचिए, कार्य कुशलता से पूर्ण संतुष्ट होगा, ध्यान दें।
कन्या राशि भोग ऐश्वर्य में सयम बीतेगा, शारीरिक थकावट बैचेनी अवश्य बनेगी।
तुला राशि - व्यवसायिक चिंता बनी रहेगी, आशानुकूल सफलता से संतोष होगा।
वृश्चिक राशि - मित्र वर्ग विशेष फलप्रद रहे तथा चिन्ताएं संभंव होगी।
धनु राशि - तनाव पूर्ण वातावरण चलता रहेगा तथा चिन्ताएं संभंव होगी।
मकर राशि - कार्यवृत्ति में सुधार तथा सामाजिक कार्यों में प्रतिष्ठा सदैव होवे।
कुंभ राशि - कार्य व्यवसाय गति मंद, चोट आदि का भय अवश्य ही बना रहेगा।
मीन राशि - आशानुकूल सफलता का हर्ष, बिगड़े हुए कार्य बनें तथा योजना बनेगी।
रामनवमी के दिन जरूर कर लें ये उपाय, पूरी होगी हर विश
25 Mar, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
इस साल रामनवमी का पर्व 30 मार्च 2023, गुरुवार को मनाया जाएगा. इस दिन भगवान श्री राम, माता सीता और लक्ष्मण जी की पूजा का विधान है. इस दिन भगवान श्री राम की पूजा और स्तुति करने से भगवान श्री राम प्रसन्न होते हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं.
इस दिन राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करना बहुत लाभ देता है. इससे व्यक्ति के जीवन में आ रही सभी प्रकार की मुश्किलें दूर हो जाती हैं. आज हम आपको कुछ ऐसे उपाय बताने जा रहे हैं, जिसे करने से रामनवमी पर आपकी हर मनोकामना पूरी होगी
सिंदूर से करें रामनवमी के दिन करें उपाय
रामनवमी के दिन हनुमान जी की मूर्ति पर लगा सिंदूर लेकर सीता माता के चरणों पर लगाने से अच्छा फल मिलता है. इसके बाद अपनी प्रार्थना माता सीता को बताएं और प्रणाम करके वापस लौट आएं. ठीक यही काम रामनवमी वाले दिन तीन बार करना है. सुबह, दोपहर और शाम के समय ये उपाय करने से जीवन में आ रही सभी बाधाओं का हल मिलता हैं.
इस मंत्र का करें जाप
अगर आपके जीवन कष्ट और संकट से घिरा हुआ है तो संकटों से मुक्ति पाने के लिए एक कटोरी में गंगाजल या फिर किसी भी पवित्र नदी का जल लेकर श्रीराम के रक्षा मंत्र 'ऊं श्रीं ह्वीं क्लीं रामचंद्राय श्रीं नम:' का 108 बार जाप करें. इसके बाद इस जल को घर के हर कोने से लेकर मुख्य द्वार तक छिड़क दें.
गृहस्थ जीवन में सुख लाने के लिए करें ये काम
यदि आप गृहस्थ जीवन में फंसे रहने के कारण आप मंत्रों का जाप ठीक प्रकार से नहीं कर पा रहे हैं तो आपके लिए भी एक बेहद ही आसान उपाय है. आप रामनवमी के दिन राम मंदिर या उनके चित्र के सामने तीन बार अलग अलग समय पर भगवान राम की स्तुति 'श्रीरामचन्द्र कृपालु भजु मन.' का पाठ कर लें. जीवन में अनुकूलता का हमेशा वास होगा.
रामनवमी के दिन करें सुंदर कांड का पाठ
इस दिन भगवान की पूजा कर श्री राम स्तुति का पाठ करें. आज के दिन आप सुंदरकांड का भी पाठ कर सकते हैं. ऐसा करने से वे जल्द प्रसन्न होते हैं.
सुखी दांपत्य जीवन के लिए करें ये काम
इस दिन भगवान श्री राम के साथ माता सीता की भी पूजा करें. इससे दांपत्य जीवन सुखी रहता है.
नवरात्रि के चौथे दिन करें मां कूष्मांडा की पूजा, जानिए संपूर्ण विधि और मंत्र
25 Mar, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
25 मार्च को नवरात्रि का चौथा दिन है। नवरात्रि के चौथे दिन मां दुर्गा के चतुर्थ स्वरूप मां कूष्मांडा की पूजा का विधान है। मां दुर्गा के सभी स्वरूपों में मां कूष्मांडा का स्वरूप बहुत ही तेजस्वी है। मां कूष्मांडा सूर्य के समान तेज वाली हैं। कहते हैं जब संसार में चारों ओर अंधियारा छाया था, तब मां कूष्मांडा ने ही अपनी मधुर मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की थी। मां कूष्मांडा की पूजा से बुद्धि का विकास होता है। साथ ही जीवन में निर्णय लेने की शक्ति बढ़ती है। मां दुर्गा का ये स्वरूप अपने भक्त को आर्थिक ऊंचाईयों पर ले जाने में निरन्तर सहयोग करने वाला माना जाता है। कहा जाता है कि यदि कोई लंबे समय से बीमार है तो देवी कूष्मांडा की विधि-विधान करनी चाहिए। इससे माता रानी उस व्यक्ति को अच्छी सेहत प्रदान करती हैं। ऐसे में चलिए जानते हैं मां कूष्मांडा की पूजा विधि और मंत्र...
चैत्र नवरात्रि 2023 तीसरे दिन का मुहूर्त
चैत्र शुक्ल चतुर्थी तिथि शुरू - 23 मार्च 2023, शाम 06 बजकर 20 मिनट पर
चैत्र शुक्ल चतुर्थी तिथि समाप्त - 24 मार्च 2023, शाम 04 बजकर 59 मिनट तक
मां कूष्मांडा की पूजा विधि
नवरात्रि के चौथे दिन प्रातः स्नान आदि के बाद माता कूष्मांडा को नमन करें।
मां कूष्मांडा को जल पुष्प अर्पित कर मां का ध्यान करें।
पूजा के दौरान देवी को पूरे मन से फूल, धूप, गंध, भोग चढ़ाएं।
इस दिन पूजा के बाद मां कुष्मांडा को मालपुए का भोग लगाएं।
आखिर में अपने से बड़ों को प्रणाम कर प्रसाद वितरित करें और खुद भी प्रसाद ग्रहण करें।
कैसा है मां कूष्मांडा का स्वरूप ?
मां कूष्मांडा की आठ भुजाएं हैं, इसलिए इन्हें अष्टभुजा भी कहा जाता है। इनके सात हाथों में क्रमशः कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र और गदा है। वहीं आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला है।
प्रकाशस्रोत परमात्मा
25 Mar, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
परमात्मा या भगवान ही सूर्य, चन्द्र तथा नक्षत्रों जैसी प्रकाशमान वस्तुओं के प्रकाशस्रोत हैं। वैदिक साहित्य बताता है कि वैकुंठ राज्य में सूर्य या चन्द्रमा की आवश्यकता नहीं पड़ती, क्योंकि वहां परमेश्वर का तेज विद्यमान है।भौतिक जगत में ब्रम्हज्योति या भगवान का आध्यात्मिक तेज भौतिक तत्वों से ढका रहता है। अत: हमें सूर्य, चन्द्र, बिजली आदि के प्रकाश की आवश्यकता पड़ती है। वैदिक साहित्य में स्पष्ट है कि भगवान आध्यात्मिक जगत (वैकुंठ लोक) में स्थित हैं।श्वेतातर उपनिषद में कहा गया है- आदित्यवर्ण तमस: परस्तात अर्थात वे सूर्य की भांति अत्यन्त तेजोमय हैं, लेकिन भौतिक जगत के अन्धकार से बहुत दूर हैं। उनका ज्ञान दिव्य है।
वैदिक साहित्य पुष्टि करता है कि ब्रम्ह घनीभूत दिव्य ज्ञान है। जो वैकुंठ जाने का इच्छुक है, उसे परमेश्वर द्वारा ज्ञान प्रदान किया जाता है। एक वैदिक मंत्र है तं ह देवम आत्मबुद्धिप्रकाशं मुमुक्षुवै शरणामहं प्रपद्ये। अर्थात मुक्ति के इच्छुक मनुष्य को चाहिए कि वह भगवान की शरण में जाए। जहां तक चरम ज्ञान के लक्ष्य का सम्बन्ध है, वैदिक साहित्य से भी पुष्टि होती है-तमेव विदित्वाति मृत्युमेति यानी उन्हें जान लेने के बाद ही जन्म तथा मृत्यु की परिधि को लांघा जा सकता है।
वे प्रत्येक हृदय में परम नियन्ता के रूप में स्थित हैं। परमेश्वर के हाथ-पैर सर्वत्र फैले हैं लेकिन जीवात्मा के विषय में ऐसा नहीं कहा जा सकता। अत: मानना ही पड़ेगा कि कार्यक्षेत्र जानने वाले दो ज्ञाता हैं- एक जीवात्मा तथा दूसरा परमात्मा। पहले के हाथ-पैर किसी एक स्थान तक सीमित हैं जबकि कृष्ण के हाथ-पैर सर्वत्र फैले हैं। इसकी पुष्टि श्वेतातर उपनिषद में इस प्रकार हुई है। सर्वस्थ प्रभुमीशानं सर्वस्य शरणं बृहत यानी वह परमेश्वर या परमात्मा समस्त जीवों का स्वामी या प्रभु है। वह उन सबका चरम आश्रय है। अत: इस बात से मना नहीं किया जा सकता कि परमात्मा तथा जीवात्मा भिन्न हैं।
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (25 मार्च 2023)
25 Mar, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि - धन लाभ आशानुकूल सफलता का हर्ष, कार्यवृत्ति में सुधार होवे।
वृष राशि - मान प्रतिष्ठा, कार्य कुशलता से संतोष होवे एवं कार्य पूण्& संतुष्ट होवे।
मिथुन राशि - सामर्थ्य वृद्धि भी संभंव है, विरोधियों से डटकर मुकाबला करें।
कर्क राशि - तनाव पूर्ण क्लेश से अशांति से चिन्ता व मानसिक व्यग्रता संभंव होगी।
सिंह राशि - दैनिक कार्य वृत्ति में सुधार, चिन्ताएं कम हो तथा परिश्रम सफल होगा।
कन्या राशि शारीरिक थकावट, बैचेनी बढ़ेगी तथा समय और सामर्थ्य व्यर्थ जाएगा।
तुला राशि - दैनिक कार्यगति अनुकूल, समय की अनुकूलता का समय का उपयोग करें।
वृश्चिक राशि - योजनाएं विफल जाए, परिश्रम से कुछ सफलता निरर्थक दिखाई दें।
धनु राशि - मनोबल बनाए रखें तथा कार्य व्यवसाय में योजना परिपूर्ण अवश्य होवे।
मकर राशि - कुटुम्ब की समस्याओं में अर्थ व्यवस्था, बाधा पैदा अवश्य ही होगी।
कुंभ राशि - धन लाभ आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा, तथा मन उत्तम बना रहें।
मीन राशि - सफलता के साधन जुटाए तथा विशेष कार्य स्थिगित रखे, ध्यान रखे।
खुब प्रयास करने के बावजूद नहीं मिल रही सफ़लता, कुंडली में हो सकते हैं ये 6 गंभीर दोष
24 Mar, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म (हिन्दू धर्म) में जीवन में सफल होने के लिए परिश्रम को सबसे महत्वपूर्ण तत्व बताया गया है। कहा जाता है कि बिना मेहनत के जीवन में कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता है।
साथ ही व्यक्ति की कुंडली के महत्व के बारे में भी बताया गया है। व्यक्ति की जन्मतिथि, स्थान और तिथि के आधार पर उसकी कुंडली तैयार की जाती है। कहा जाता है कि अगर कोई व्यक्ति कड़ी मेहनत करने के बावजूद जीवन में सफल नहीं हो रहा है तो उसकी कुंडली में दोष हो सकता है। पुराण ग्रंथों में 6 ऐसे कुंडली दोषों का वर्णन किया गया है, जिससे व्यक्ति को हर समय परेशानियों का सामना करना पड़ता है। आइए जानते हैं कौन से हैं वो 6 कुंडली दोष।
जानिए कुंडली के 6 दोष
पितृ दोष
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि किसी व्यक्ति की कुंडली के नवम भाव में बुध, शुक्र या राहु हो तो उसे पितृ दोष का सामना करना पड़ता है। कुंडली के 10वें भाव में बृहस्पति की उपस्थिति भी पितृ दोष का कारण बनती है। यदि सूर्य पर राहु-केतु या शनि की अशुभ दृष्टि हो तो जातक की कुंडली भी प्रभावित होती है।
गुरु चांडाल दोष
यदि किसी व्यक्ति की कुंडली के किसी भी भाव में राहु के साथ बृहस्पति भी हो तो बृहस्पति चांडाल दोष बन जाता है। इस दोष के कारण व्यक्ति को जीवन में अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसके उपाय के लिए राहु नक्षत्र में गुरुवार के दिन राहु मंत्रों का जाप करना चाहिए।
केंद्र की गलती
जिस व्यक्ति की कुंडली में पहला, सातवां और दसवां भाव होता है, उसे केंद्राधिपति दोष होता है। धनु और मीन राशि के पहले, चौथे, सातवें और दसवें भाव में बुध भी इस दोष का कारण बनता है। साथ ही ऐसा तब भी होता है जब कन्या और मिथुन राशि के जातकों की कुंडली में बृहस्पति चतुर्थ, सप्तम और दशम भाव में प्रवेश करता है।
विष दोष
शनि और चंद्रमा का किसी भी भाव में एक साथ बैठना इस राशिफल का निर्माण करता है। इस जहरीले दोष से छुटकारा पाने के लिए नाग पंचमी व्रत करना चाहिए और नाग देव से इस दोष से मुक्ति के लिए प्रार्थना करनी चाहिए।
मंगला दोष
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में मंगल चौथे, सातवें, आठवें और 12वें भाव में हो तो उसे मंगल दोष होता है। इस दोष के कारण जातक के विवाह में रुकावटें आती हैं। साथ ही इन्हें घरेलू परेशानियों का भी सामना करना पड़ता है।
काल सर्प दोष
ऐसा माना जाता है कि यदि जन्म के समय सभी ग्रह राहु-केतु के विपरीत और अलग-अलग हों तो कुंडली में कालसर्प दोष का निर्माण होता है। यह जन्म के समय ग्रहों की स्थिति के कारण उत्पन्न होता है। इस दोष के बनने से व्यक्ति को हर कार्य में परेशानी का सामना करना पड़ता है, जिसके लिए विशेष उपायों की आवश्यकता होती है।
सुहागन महिलाओं के लिए बेहद जरुरी होता है 'गणगौर पूजा', जानिए पूजन विधि और महत्व
24 Mar, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू पंचाग के मुताबिक, 24 मार्च, शुक्रवार को गणगौर का त्यौहार मनाया जाएगा। महिलाएं अपने पति की लम्बी आयु एवं लड़कियां श्रेष्ठ वर की प्राप्ति के लिए गणगौर पूजा करेंगी।
गण के रूप में भगवान महादेव और गौर के तौर पर माता पार्वती की पूजा की जाएगी। शाम को सूर्यास्त से पहले गणगौर को पानी पिलाने के पश्चात् जलाशयों, तालाब, कुओं में विसर्जित की जाएगी।
ईसर-गौर मतलब महादेव-पार्वती की पूजा का यह पावन पर्व आपसी स्नेह और साथ की कामना से जुड़ा हुआ है। इसे शिव एवं गौरी की आराधना का मंगल उत्सव भी कहा जाता है। गणगौर का मतलब है,'गण' और 'गौर'। गण का तात्पर्य है शिव (ईसर) और गौर का अर्थ है पार्वती। वास्तव में गणगौर पूजन मां पार्वती एवं भगवान महादेव की पूजा का दिन है। नवरात्रि के तीसरे दिन यानि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाने वाला गणगौर का त्योहार स्त्रियों के लिए अखण्ड सौभाग्य प्राप्ति का पर्व है। शास्त्रों के मुताबिक, मां पार्वती ने भी अखण्ड सौभाग्य की कामना से कठोर तपस्या की थी तथा उसी तप के प्रताप से भगवान महादेव को पाया। इस दिन भगवान महादेव ने माता पार्वती को तथा पार्वती जी ने समस्त स्त्री जाति को सौभाग्य का वरदान दिया था। कहा जाता है कि तभी से इस व्रत को करने की प्रथा आरम्भ हुई।
ऐसा करें गणगौर पूजन:-
वसंत और फाल्गुन की रुत में श्रृंगारित धरती एवं माटी की गणगौर का पूजन प्रकृति और स्त्री के उस मेल को बताता है जो जीवन को सृजन और उत्सव की उमंगों से जोड़ती है। गणगौर पूजन के लिए कुंवारी कन्याएं एवं विवाहित महिलाऐं ताज़ा जल लोटों में भरकर उसमें हरी-हरी दूब एवं फूल सजाकर सिर पर रखकर गणगौर के गीत गाती हुई घर आती हैं। तत्पश्चात, शुद्ध मिट्टी के शिव स्वरुप ईसर एवं पार्वती स्वरुप गौर की प्रतिमा बनाकर चौकी पर स्थापित करती हैं। महादेव-गौरी को सुंदर वस्त्र पहनाकर सम्पूर्ण सुहाग की वस्तुएं अर्पित करके चन्दन,अक्षत, धूप,दीप, दूब व पुष्प से उनकी पूजा-अर्चना की जाती है। सौभाग्य की कामना लिए दीवार पर सोलह -सोलह बिंदियां रोली,मेहंदी व काजल की लगाई जाती हैं। एक बड़ी थाली में चांदी का छल्ला एवं सुपारी रखकर उसमें जल, दूध-दही, हल्दी, कुमकुम घोलकर सुहागजल तैयार किया जाता है। दोनों हाथों में दूब लेकर इस जल से पहले गणगौर को छींटे लगाकर फिर महिलाएं अपने ऊपर सुहाग के प्रतीक के रूप में इस जल को छिड़कती हैं। आखिर में मीठे गुने या चूरमे का भोग लगाकर गणगौर माता की कहानी सुनी जाती है।
चैत्र नवरात्रि पर घर लाएं ये खास चीज़, किस्मत चमकते नहीं लगेगी देर
24 Mar, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
22 मार्च दिन बुधवार से चैत्र नवरात्रि का पावन पर्व आरंभ हो चुका है यह त्योहार हिंदूओं के लिए बेहद ही खास माना जाता है। इस पर्व को देशभर में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है जो कि पूरे नौ दिनों तक चलता है नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के अलग अलग रूपों की विधिवत पूजा की जाती है और उपवास भी रखा जाता है चैत्र मास में पड़ने के कारण इसे चैत्र नवरात्रि नाम से जाना जाता है।
इस बार नवरात्रि जहां 22 मार्च से श्ुारू हो चुकी है तो इसका समापन 30 मार्च को होगा। ऐसे में हर कोई मां भगवती की भक्ति में लीन है और उन्हें प्रसन्न करने के लिए कई तरह के उपाय कर रहे है अगर आप भी माता रानी का आशीर्वाद और सुख समृद्धि प्राप्ति की इच्छा रखते है तो नवरात्रि के शुभ दिनों में फेंगशुई के चीनी सिक्कों को घर में लगाकर उचित दिशा और स्थान पर लगाएं मान्यता है कि ऐसा करने से माता रानी की कृपा बरसती है और भक्तों की किस्मत चमक जाती है, तो आज हम आपको इसी के बारे में बता रहे है।
चीनी वास्तुशास्त्र के अनुसार अगर नवरात्रि के शुभ दिनों में चीनी फेंगशुई सिक्कों को घर में लाया जाए तो इससे घर की नकारात्मकता दूर हो जाती है और संकारात्मकता का संचार होने लगता है। साथ ही अगर इन सिक्कों को पर्स में रख लिया जाए तो हमेशा ही पर्स पैसों से भरा रहता है और धन की कमी नहीं होती है। अगर आपको किसी परेशानी या समस्या का सामना करना पड़ रहा है तो ऐसे में आप इससे छुटकारा पाने के लिए चीनी सिक्कों को अपने पास रखें इससे लाभ जरूर मिलेगा।
नवरात्रि के दिनों में चीनी सिक्कों को घर लाकर इसे घर के प्रवेश दवार पर लटकाए। मान्यता है कि ऐसा करने से शुभता बढ़ती है और नकारात्मकता दूर हो जाती है। जिससे परिवार में हमेखा ही सुख समृद्धि और शांति का वास होता है। इसे घर में लटकाने से दरिद्रता का भी नाश होता है। अगर आपको लंबे वक्त से कर्ज की समस्याओं ने घेर रखा है तो ऐसे में नवरात्रि के दिनों में लाल धागे में तीन चीनी सिक्को को बांधकर घर में लटका दें। इस उपाय को करने से कर्ज से जल्द छुटकारा मिल जाता है और धन आने के मार्ग बढ़ते है।