धर्म एवं ज्योतिष (ऑर्काइव)
कब है चैत्र पूर्णिमा? अप्रैल 5 या 6, यहां जानिए सही तारीख और मुहूर्त
2 Apr, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में चैत्र पूर्णिमा का बहुत खास महत्व है। हिंदी पंचांग के अनुसार, हिन्दू वर्ष का पहला महीना चैत्र में ये पहली पूर्णिमा है, जिसका विशेष महत्व है।
इस दिन भगवान सत्यनारायण की पूजा की जाती है।
श्रद्धालु इस दिन व्रत रखते हैं और ऐसा माना जाता है कि इस दिन उपवास रखने से आप पर भगवान की कृपा होती है और सुख-समृद्धि की प्राप्ती होती है। ऐसे में आपके मन में ये सवाल होगा कि चैत्र पूर्णिमा इस साल किस तिथि को पड़ रही है और इसका शुभ मुहूर्त क्या है तो आइए आपके इस सवाल का जवाब आज हम आपको देते हैं।
द्रिक पंचांग के अनुसार, चैत्र पूर्णिमा 6 मार्च, गुरुवार को मनाया जाएगा।
पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ: 05 अप्रैल, 2023 को सुबह 09:19 बजे से होगा
पूर्णिमा तिथि का समापन: 06 अप्रैल, 2023 को सुबह 10:04 बजे होगा।
हिंदू धर्म में चैत्र पूर्णिमा का बहुत खास महत्व है। हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र पूर्णिमा नव वर्ष की शुरुआत के बाद की पहली पूर्णिमा है। इस दिन कई जगहों पर लोग हनुमान जयंती भी मनाते हैं।
हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक, जो लोग चैत्र पूर्णिमा का व्रत रखते हैं और भगवान विष्णु और चंद्रमा की पूजा करते हैं, उन्हें देवता का दिव्य आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस दिन दान देने से भगवान की कृपा होती है। जरूरतमंद लोगों को भोजन कराने से उन्हें कपड़े आदि की मदद करने से ईश्वर आपसे प्रसन्न होते हैं।
चैत्र पूर्णिमा के दिन पवित्र नदी में स्नान करना बेहद शुभ माना जाता है। इसके साथ ही अगर भगवान की सच्चे मन से पूजा कि जाए तो आपके सारे दुख कट जाते हैं और आपकी हर मनोकामना पूरी हो जाती है।
इस दिन भक्तों को प्रात: काल उठकर स्नान करके और साफ कपड़े पहनकर भगवान की विधि विधान से पूजा करनी चाहिए। वहीं, कई लोग इस दिन पूरे दिन का उपवास भी करते हैं और दिन भर भगवान की भक्ति में डूबे रहते हैं।
रुद्रावतार हैं बजरंगबली, इनमें अष्ट सिद्धियां तथा नौ निधियां ही नहीं, समस्त तात्विक शक्तियां भी समाहित है
2 Apr, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
चूंकि बजरंगबली रुद्रावतार हैं, इसलिए इनमें अष्ट सिद्धियां तथा नौ निधियां ही नहीं, समस्त तात्विक शक्तियां भी समाहित हैं. शिव के पंचानन रूप की प्रसिद्धि है. वैसे ही आंजनेय हनुमान जी लोगों के कार्य की सिद्धि के लिए एकमुखी से पंचमुखी और दस भुजाधारी हो जाते हैं, इसीलिए इनके इस रूप को 'सर्वकामार्थ-सिद्धिदम्' कहा गया है.
माता जानकी के दुलारे
रामकथा के सम्मान्य पात्रों की अग्रिम पंक्ति में विराजते हैं हनुमान जी. 'किष्किन्धा कांड' से 'उत्तर काण्ड' तक यह महती भूमिका में सदा दिखते हैं. स्वयं श्रीराम इनके सुकृतों से इतने अभिभूत हैं कि ऋणी बन जाते हैं. माता जानकी के भी यह बड़े दुलारे हैं. यह तो प्रभु-सेवक के रूप में समर्पित हैं, पर प्रभु भ्रातृत्व ही रखते हैं-'तुम मम प्रिय भरतहिं सम भाई.'नवधा भक्ति के जीवंत प्रतिमान बजरंगी समग्र दैवी संपदाओं से युक्त ज्ञान-विज्ञान, नीति-नियम, शील-गुण, वीरता-धीरता, चाल-चरित्र में कहीं से अपना उपमान नहीं रखते. यह सीतारामजी के स्नेहमय सान्निध्य के कारण सीताराममय हैं, इसीलिए अपने आश्रितों, भक्तों का हर कार्य बिना देर किये सिद्ध कर देते हैं, इसीलिए यह संकटमोचन भी कहलाते हैं.
'हनुमान चालीसा' कंठ-कंठ में बसा
हनुमान जी आज के प्रसिद्ध देवताओं में प्रमुख स्थान रखते हैं. इसका कारण इनकी साधना से सहजतया लोगों की कामनाएं पूर्ण हो जाना है. लोग किसी संकट, परेशानी में रहें, जब भी इन्हें ध्याते हैं, समस्याओं का हल पाते हैं. शनि की साढ़ेसाती हो, भूत-प्रेत का उत्पात हो, काम में रुकावट हो, चाहे संकट का जो रूप हो, लोग बिना किसी के उपदेश के भी हनुमान जी की आराधना में लग जाते हैं. तुलसीदास जी का 'हनुमान चालीसा' तो कंठ-कंठ में बसा है. हम भारतीयों का तो यह कंठहार ही है. कोई अनहोनी देख या आशंका में भी 'हनुमान चालीसा' का पाठ चलते-फिरते, सोते-जागते चालू हो जाता है. विषम परिस्थितियों में 108 आवृत्ति पाठ करने लगते हैं. यह सुगम उपासना है, इसलिए क्या बड़े-बूढ़े और क्या बच्चे, सभी इस पाठ को सौ रोगों की एक दवा मानते हैं. 'सुंदरकांड' घर में मुद-मंगल व शनिजन्य पीड़ा की अचूक औषधि है. इनके अतिरिक्त, हनुमानाष्टक, बजरंगबाण, हनुमान साठिका-जैसे ठेठ भाषा के स्तोत्र भी बहुत कारगर होते हैं. संस्कृतज्ञ जन संस्कृत में विद्यमान वाल्मीकिकृत 'सुंदरकांड'एवं 'पंचमुखि-हनुमत्कवच', सहस्रनाम-जैसे स्तोत्र आदि का आनुष्ठानिक विधि से पाठ करने लगते हैं.
बजरंगबली रुद्रावतार हैं
यों तो हनुमान जी की वानराकृति ही प्रधान है, परंतु भक्तों के कल्याण के लिए सूक्ष्म से सूक्ष्म और स्थूल से स्थूल विविध रूपों में उपस्थित रहते हैं. समुद्र लांघने के समय भी तो पवनसुत ने विविध रूपों से विघ्न-बाधाओं से अपने चातुर्य का परिचय दिया था. चूंकि, बजरंगबली रुद्रावतार हैं, इसलिए इनमें अष्ट सिद्धियां तथा नौ निधियां ही नहीं, समस्त तात्विक शक्तियां भी समाहित हैं. शिव के पंचानन रूप की प्रसिद्धि है. वैसे ही आंजनेय हनुमान जी लोगों के कार्य की सिद्धि के लिए एकमुखी से पंचमुखी और दस भुजाधारी हो जाते हैं, इसीलिए इनके इस रूप को 'सर्वकामार्थ-सिद्धिदम्' कहा गया है. इनका पूरबवाला मुख कपि का ही है, जो करोड़ों सूर्यों की तरह प्रभा बिखेरता है. दक्षिणवाला मुख नृसिंह भगवान की तरह अद्भुत,अति उग्र एवं समस्त भयों का विनाशक है. पश्चिमवाला मुंह श्रीहरि के वाहन विनितानंदन गरुड़ जी की तरह है, जो सर्पबाधा और प्रेतबाधा का निवारक है. उत्तरवाला श्रीविष्णु के वराहावतार की तरह है, जो अंत: व पाताल में स्थित ज्वर आदि रोगों, दोषों, दुष्टों के मूल को उखाड़ फेंकनेवाला है. ऊपर(ऊर्ध्व) में स्थित पांचवां मुख हयग्रीव भगवान के समान है, जो दानवों का अंत करनेवाला है. कुल मिलाकर देखा जाये, तो वानरावतार भगवान रुद्र की यह वैष्णवात्मक समष्टि है, जिसमें जगत की रक्षा व सृष्टिपालन ही समाया है. कपीश्वर हनुमान जी की उपासनाओं के अनेक प्रकार हैं. तांत्रिक विधियां भी हैं और मांत्रिक विधियां भी. समस्त सुखों की प्राप्ति एवं समस्त दुखों के निवारणार्थ विज्ञजन प्रयोग अपनाते रहते हैं.
मनोरथ सिद्ध करेंगे ये मंत्र व उपाय
हनुमान जी के बहुसंख्यक मंत्रों में 'हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट्'- बारह अक्षरों वाला यह मंत्र साधक की समस्त कामनाएं पूर्ण करनेवाला है. एकांत में ब्रह्मचर्य पूर्वक भगवान की प्रतिमा या चित्र के समक्ष तेल का दीप जलाकर सवा लाख जपने का विधान है. पहले शिव जी ने श्रीकृष्ण को, इसके बाद श्रीकृष्ण ने अर्जुन को इस मंत्र का उपदेश किया था. इसी तरह 'हं पवन-नन्दनाय स्वाहा',' ऊँ हरि मर्कट मर्कटाय स्वाहा' आदि शीघ्र सिद्धिप्रद मंत्रों में अग्रगण्य हैं.
हर जगह सम्मान दिलाते हैं ये श्रेष्ठ गुण, आज की चाणक्य नीति
2 Apr, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
आचार्य चाणक्य राजनीति और कूटनीति में अच्छी समझ रखते थे ये एक महान अर्थशास्त्री भी थे। चाणक्य ने अपने जीवन के अनुभवों को नीतिशास्त्र में पिरोया है। जिसे दुनियाभर में चाणक्य नीति के नाम से जाना जाता है।
चाणक्य ने मनुष्य जीवन से जुड़े हर विषय पर अपनी नीतियों का निर्माण किया है जिसे अगर कोई मनुष्य अपने जीवन में उतार ले तो उसका पूरा जीवन सरल और सफल हो जाता है। चाणक्य ने मनुष्य के कुछ ऐसे गुणों के बारे में बताया है जिनका व्यक्ति में होना उसे हर स्थान पर मान सम्मान दिलाता है। तो आज हम आपको अपने इस लेख चाणक्य दवारा मनुष्य के उन श्रेष्ठ गुणो के बारे में चर्चा कर रहे हैं तो आइए जानते है।
आज की चाणक्य नीति-
हर व्यक्ति के लिए सम्मान बेहद जरूरी माना जाता है। ऐसे में अगर आप हर स्थान पर मान सम्मान पाना चाहते है। तो चाणक्य दवारा बताए गए श्रेष्ठ गुणों को अपने जीवन और आदतों में जरूर शामिल करें। चाणक्य नीति कहती है कि संगति व्यक्ति के जीवन में अहम मानी जाती है। हर मनुष्य को अपनी संगति पर जरूर ध्यान देना चाहिए गलत लोगों से हमेशा ही दूरी बनाकर रखें और ज्ञानी व सज्जन लोगों की संगति में रहना चाहिए।
चाणक्य अनुसार जो लोग अच्छी संगति में रहते है। वे अपने जीवन में सम्मान और सफलता को हासिल करते है। चाणक्य अनुसार मनुष्य को हमेशा ही मधुर वाणी बोलनी चाहिए। मधुर वाणी से शत्रु को भी मित्र बताया जा सकता है। ऐसे में जो लोग हर किसी से मधुरता के साथ बातचीत करते है। उन्हें हर जगह पर मान सम्मान मिलता है और ये लोग हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करते है। सदैव सभी के प्रिय भी बने रहते है। जो लोग हमेशा ही विनम्रता का भाव रहते है और सभी से विनम्रता से बात करते है। वे सदैव सम्मान पाते है।
सिद्धांत गौण है, सत्ता प्रमुख
2 Apr, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
पिछले दिनों में राष्ट्रीय रंगमंच पर जिस प्रकार का राजनीतिक चरित्र उभरकर आ रहा है, वह एक गंभीर चिंता का विषय है। ऐसा लगता है, राजनीति का अर्थ देश में सुव्यवस्था बनाए रखना नहीं, अपनी सत्ता और कुर्सी बनाए रखना है। राजनीतिज्ञ का अर्थ उस नीति-निपुण व्यक्तित्व से नहीं है, जो हर कीमत पर राष्ट्र की प्रगति, विकास-विस्तार और समृद्धि को सर्वोपरी महत्व दे; किंतु उस विदूषक-विशारद व्यक्तित्व से है, जो राष्ट्र के विकास और समृद्धि को अवनति के गर्त में फेंककर भी अपनी कुर्सी को सर्वोपरि महत्व देता हो। राजनेता का अर्थ राष्ट्र को गति की दिशा में अग्रसर करने वाला नहीं, अपने दल को सत्ता की ओर अग्रसर करने वाला रह गया है। यही कारण है कि आज राष्ट्र गौण है, दल प्रमुख है। सिद्धांत गौण है, सत्ता प्रमुख है। चरित्र गौण है, कुर्सी प्रमुख है। एक राजनेता में राष्ट्रीय चरित्र, न्याय-सिद्धांत और नेतृत्व क्षमता के गुणों की आवश्यकता नहीं, किंतु आज कुशल राजनेता वही है, जो अपने दल के लिए राष्ट्र के साथ भी विश्वासघात कर सकता हो, अपनी कुर्सी के लिए अपने दल के साथ भी विश्वासघात करने का जिसमें साहस या दुस्साहस हो।
बहुत बार मन में प्रश्न उभरता है, क्या राजनीति का अपना कोई चरित्र नहीं होता अथवा सत्ता प्राप्ति के लिए राष्ट्र, समाज, दल और व्यक्ति की विश्वासपूर्ण भावनाओं के साथ खिलवाड़ करना ही राजनीति का चरित्र होता है? जनता की कोमल भावनाओं का शोषण करके सत्तासीन होने के बाद क्या राजनेता का व्यक्तित्व जनता और राष्ट्र से भी बड़ा हो जाता है? यदि ऐसा नहीं है तो आज की राजनीति क्यों अपने प्रिय पुत्रों, संबंधियों और चमचों-चाटुकारों के चप्रव्यूह में फंसकर रह गई है? राष्ट्र को स्थिर नेतृत्व प्रदान करने के नाम पर क्यों सिद्धांतहीन समझौते और स्तरहीन कलाबाजियां दिखाई जा रही हैं? संप्रदायवाद, जातिवाद, भाषावाद और प्रांतवाद को भड़का करके क्यों सत्ता की गोटियां बिठाई जा रही हैं? आज की राजनीति को देखकर मन ग्लानि और वितृष्णा से भर जाता है। आखिर यह सबकुछ कब तक चलता रहेगा?
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (02 अप्रैल 2023)
2 Apr, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि - अधिक संघर्ष शीलता से बचिये, भोग ऐश्वर्य की प्राप्ति होगी, ध्यान देवें।
वृष राशि - विरोधी तत्व परेशान करें, कुछ शुद्ध गोचर रहने से समय अनूकूल लाभ होगा।
मिथुन राशि - कार्य निश्चित बने, समय की अनुकूलता का लाभ लेवे, मानिसिक संतोष होगा।
कर्क राशि - कुटुम्ब में शुभ समाचार मिलेगा, दैनिक व्यवसाय अनुकूलता अवश्य ही बनेगें।
सिंह राशि - सरकारी कार्य निपटायें, पुराने कार्यों में सफलता निश्चय ही फलप्रद रहेगा।
कन्या राशि - सामाजिक कार्यो में मान प्रतिष्ठा, चेतना अवश्य फलप्रद होगा ध्यान देवें।
तुला राशि - विवाद ग्रस्त होने से बचे अन्यथा संकट से फस सकते है कार्य पर ध्यान देवें।
वृश्चिक राशि - समृद्धि वर्धक योग बनेगें, अधिकारी वर्ग समर्थक बने, कार्य अवश्य बनेंगे।
धनु राशि - मनोबल उत्साह वर्धक होगा, समय पर सोचे कार्य बनेगे, कार्य बनेगे ध्यान देवें।
मकर राशि - मानसिक वृत्ति बनाये रखें, विरोधी तत्व परेशान करेंगे। रूके कार्य हों।
कुंभ राशि - सफलता के साधन बनेंगे, वृथा भटकने से छुटकारा पायें। ध्यान दें।
मीन राशि - प्रत्येक कार्य में बाधा आ सकती है, विलम्ब होगा, मित्र के द्वारा धोखा होवेगा।
हनुमान जयंती कब है? जानिए सही तारीख, पूजा मुहूर्त और महत्व
1 Apr, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
उत्तर भारत में चैत्र पूर्णिमा को हनुमान जयंती मनाई जाती है. पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान हनुमान रुद्रावतार हैं. उनका जन्म मंगलवार को चैत्र पूर्णिमा के दिन हुआ था.
उनके पिता का नाम वानरराज केसरी और माता का नाम अंजना था. भगवान हनुमान का जन्म भगवान राम की सेवा करने और सीता माता को खोजने में मदद करने के लिए हुआ था, जिसे रावण ने अपहरण कर लिया था.
हनुमान जयंती तिथि 2023 तारीख
हिन्दू पंचांग के अनुसार इस वर्ष चैत्र पूर्णिमा तिथि 05 अप्रैल बुधवार को प्रातः 09:19 बजे से प्रारंभ होकर 06 अप्रैल गुरुवार को प्रातः 10:04 बजे समाप्त होगी. इसलिए हनुमान जयंती 06 अप्रैल गुरुवार को उदयतिथि के आधार पर मनाई जाएगी. इस दिन व्रत रखा जाएगा और वीर बजरंगबली की पूजा की जाएगी.
हनुमान जयंती 2023 पूजा मुहूर्त
आप 6 अप्रैल को हनुमान जयंती के दिन सुबह 06:06 से 07:40 के बीच में पूजा कर सकते हैं. उसके बाद आप दोपहर 12:24 से 01:58 के बीच भी पूजा कर सकते हैं. जो लोग शाम को पूजा करना चाहते हैं वे शाम को 05.07 से 08.07 के बीच कर सकते हैं. हनुमान जयंती के दिन अभिजित मुहूर्त सुबह 11 बजकर 59 मिनट से दोपहर 12 बजकर 49 मिनट तक है.
हनुमान जयंती पूजा विधि
हनुमान जी की पूजा करने के लिए लाल फूल, सिंदूर, अक्षत, पान, मोतीचूर के लड्डू, लाल लंगोट आदि अर्पित करें. हनुमान चालीसा का पाठ करें. हनुमान मंत्र का जाप करें और भगवान हनुमान की आरती करें. बजरंगबली की कृपा से आपके पूरे परिवार की उन्नति होगी और आपके संकट दूर होंगे.
ये हैं गुरु ग्रह को मजबूत करने के उपाय, जानिए इसके फायदे
1 Apr, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
बृहस्पति एक अत्यंत ही शुभ ग्रह माना जाता है. बृहस्पति की शुभता का प्रभाव ही व्यक्ति को जीवन में सफलता और आगे बढ़ने की शक्ति देता है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार बृहस्पति की महादशा जीवन में ज्ञान शक्ति एवं बौद्धिकता का समय होता है.
बृहस्पति की कुंडली में शुभ स्थिति होने पर हर दिशा से शुभ फल प्राप्त होते हैं. भाग्य आपके साथ है. व्यक्ति शिक्षा के क्षेत्र में उन्नति करता है, धन की कमी नहीं रहती है. लेकिन यदि बृहस्पति कमजोर होता है तो वह अनुकूलता की कमी का समय होता है. आइए जानते हैं गुरु को मजबूत करने के उपाय
गुरु को मजबूत करने के उपाय
गुरुवार का रखें व्रत गुरुवार का दिन बृहस्पति ग्रह को समर्पित है. गुरु को मजबूत करने के लिए इस दिन व्रत रखना चाहिए. इस दिन पीली मिठाई, हल्दी, बेसन आदि से बनी चीजों का सेवन करना चाहिए. साथ ही इन चीजों का दान करना भी शुभ माना जाता है.
बृहस्पति की पूजा से मिलता है शुभ लाभ. यदि कुंडली में बृहस्पति ग्रह अशुभ स्थिति में है तो विधि-विधान से बृहस्पति देव की पूजा करनी चाहिए. इसके साथ ही भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए.
पुखराज रत्न धारण करें जिस व्यक्ति की कुंडली में गुरु कमजोर हो तो उसे पुखराज रत्न धारण करना चाहिए. हालांकि, रत्न धारण करने से पहले ज्योतिषी की सलाह जरूर लेनी चाहिए. क्योंकि ज्योतिषी राशि और राशि के अनुसार और ग्रहों की स्थिति के अनुसार रत्न धारण करने की सलाह देते हैं.
पानी में हल्दी डालकर स्नान करना भी उपयुक्त होता है. बृहस्पति ग्रह को मजबूत करने के लिए आपको पानी में हल्दी डालकर नहाना चाहिए. इससे बृहस्पति का अशुभ प्रभाव कम होता है और शुभता प्राप्त होती है.
केले के पौधे की पूजा करना अत्यंत शुभ होता है. बृहस्पति के कमजोर होने पर केले के पौधे की पूजा करनी चाहिए. साथ ही हल्दी, गुड़ और चने की दाल का भोग लगाना चाहिए. इससे शुभ फल मिलते हैं और परेशानियों से मुक्ति मिलती है.
जरूरतमंदों को करें दान गुरुवार के दिन गरीबों और जरूरतमंदों को चने की दाल, केले और पीली मिठाई का दान करना चाहिए. इससे धन और वैवाहिक सुख की प्राप्ति होती है. साथ ही गुरु की कृपा प्राप्त होने से सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है. गुरु के इन मंत्रों का करें जाप गुरु की कृपा पाने के लिए जातक इन मंत्रों का जाप कर सकता है.
1. ऊँ बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु.
यद्दीदयच्छवस ऋतप्रजात तदस्मासु द्रविणधेहि चित्रम्..
2. गुरु का तांत्रिक मंत्र- ऊँ बृं बृहस्पतये नमः
3. गुरु का बीज मंत्रः-ऊँ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरुवे नमः.
ध्यान से खुल जाते हैं आत्मा के सारे चक्र
1 Apr, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
उपदेशों और सिद्धांतों की इतनी भरमार है कि परमात्मा को अर्थात अपने जीवन के परम लक्ष्य को ढूंढना घास में से सुई खोजने के बराबर हो गया है। कुछ लोगों के लिए आध्यात्मिकता, माया से मुक्त होने का साधन है तो कुछ लोगों के लिए यह तप और भक्ति से भी अधिक उच्च स्तर का मार्ग है। भले ही परमलक्ष्य तक पहुंचने के विभिन्न मार्ग क्यों न हों, लेकिन योग उनमें किसी प्रकार का भेद नहीं करता। एक योगी के लिए यह संपूर्ण सृष्टि किसी नाटक के समान है। चरित्रों और दृष्यों से प्रभावित हुए बिना इस नाटक का अनुभव करना ही परम उद्देश्य है। आवश्यकता कर्म से ऊपर उठने की है। कृष्ण ने अपनी लीला से इस महत्व को समझाया कि नाटक के मोह में नहीं बंधना है। न ही इससे प्रभावित होना है। यही निष्काम कर्म है। जो सुख- दु:ख से परे रखता है। मनुष्य में आध्यात्मिक उत्थान की प्रक्रिया शुरु होती और आगे बढ़ती है तो आत्मा विभिन्न चक्रों और जीवन के पहलुओं से होते हुए निरंतर आरोहण करने लगती है।
जीवन में भौतिक शरीर की मूल आवश्यकताओं और इच्छाओं से ऊपर उठते हुए उच्चतम शिखरों को छूते हुए अंत में स्वयं से और इस संसार से भी ऊपर उठना होता है। सनातन क्रिया में अष्टांग योग के आठों अंग पूर्णतया सम्मिलित हैं। गुरु के सानिध्य में इस क्रिया को करने से निम्न चक्रों से आज्ञा चक्र व उससे आगे तक पहुंचने का मार्ग स्पष्ट हो जाता है। किसी युग में चक्रों पार करने और अंतिम स्थिति तक तक पहुंचना आसान रहा होगा पर आज हम जिस युग में रह रहे हैं, उसमें ऊंचाई तक पहुंचने के लिए प्रचंड पुरुषार्थ करने की जरूरत रहती है। शास्त्रों और उन्हें जानने वाले ज्ञानीजनों के अनुसार कलियुग के इस अंतिम चरण में हम सब में से अधिकतर व्यक्ति स्वाधिष्ठान के स्तर पर ही अटके हुए हैं।
कुछ ही अनाहद तक पहुंच सके हैं और उससे भी कम विशुद्घि तक का मार्ग तय कर पाए हैं। जो आज्ञा चक्र तक पहुंच चुके हैं, उन्हें आनंद की अनुभूति हो चुकी है और वे दिव्य शक्ति के साथ एक हो चुके हैं। वे गहन चिंतन के साथ अनंत आनंद की अवस्था में हैं। आज्ञा चक्र तक पहुंचने के लिए विभिन्न युगों में कठिन और प्रखर साधन करने होते थे। इस युग में स्थितियां ऐसी नहीं है कि कठिन साधनाएं की जा सकें। एक ध्यान ही ज्यादा समर्थ है। आज्ञा चक्र तक पहुंचने और इसे जागृत करने में भी यही उपाय काम आता है।
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (01 अप्रैल 2023)
1 Apr, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि - स्त्री वर्ग से हर्ष उल्लास होगा, किसी तनावपूर्ण स्थिति में सुधार होगा।
वृष राशि - कार्यवृत्ति अनुकूल, चिन्ताएं कम हों, स्त्री वर्ग से हर्ष उल्लास होगा ध्यान दें।
मिथुन राशि - कार्यवृत्ति अनुकूल चिन्ताएं कम हो, परिवारिक समस्या निपटेगी, कार्य होगा।
कर्क राशि - व्यवसायिक क्षमता अनुकूल रहेगी, दैनिक स्थिति में सुधार होगा कर्म होगा।
सिंह राशि - समय पर सोचे हुए कार्य बनेगें, इष्ट मित्र सुख वर्धक होगा, ध्यान देवें।
कन्या राशि - सामाजिक कार्य में मान प्रतिष्ठा, नवीन कार्य फलीभूत होंगे, सफलता मिलेगी।
तुला राशि - चिन्ताएं कम हों, समय अनुकूल नही, विशेष कार्य फलीभूत हों, सफलता मिलेगी।
वृश्चिक राशि - मनोवृत्ति एवं भावनाएं उत्साह वर्धक हो, कार्य शुभ सामचार उत्तम होगा।
धनु राशि - दैनिक कार्य गति अनूकूल होगी, मनोकामना पूर्ण होगी, शुभ समाचार होगा।
मकर राशि - व्यर्थ धन का व्यय होगा। आपे विरोधी अनावश्यक परेशान अवश्य ही करेगें।
कुंभ राशि - समाज मे मान प्रतिष्ठा, प्रभुत्व वृद्धि के साधन प्राप्त करे, कार्य व्यवसाय बनें।
मीन राशि - तनाव क्लेश बना रहेगा। अशान्ति होते हुए कार्य रूकेगें, विचार करें।
Kamada Ekadashi 2023 Date: कामदा एकादशी कब है 1 या 2 अप्रैल ? सही तारीख, पूजा का शुभ मुहूर्त, विधि महत्व जानें
31 Mar, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
कामदा एकादशी जिसका उल्लेख विष्णु पुराण में मिलता है, रामनवमी के बाद पहली एकादशी है. कामदा एकादशी का व्रत बहुत ही खास माना जाता है क्योंकि यह सभी सांसारिक इच्छाओं को पूरा करने के लिए किया जाता है. जानें इस बार कामदा एकादशी 2023 कब है? शुुभ मुहूर्त, पूजा विधि, कथा और इस दिन का महत्व जानें...
कामदा एकादशी 2023 कब है? (Kamada Ekadashi 2023 Kab Hai)
कामदा एकादशी को फलदा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. इस साल यह एकादशी व्रत 1 अप्रैल को पड़ रहा है. कामदा एकादशी का व्रत मनोकामना पूर्ति के लिए किया जाता है. कहा जाता है कि यह व्रत सभी पारिवारिक समस्याओं को दूर करने में भी मदद करता है. हिंदू पंचांग के अनुसार कामदा एकादशी का व्रत 1 और 2 अप्रैल 2023 दोनों दिन रखा जाएगा. पहले दिन परिवारजनों को व्रत करना शुभ रहेगा वहीं दूसरे दिन वैष्णव संप्रदाय की एकादशी है.
कामदा एकादशी 2023 मुहूर्त (Kamada Ekadashi 2023 Muhurat)
चैत्र शुक्ल एकादशी तिथि शुरू - 1 अप्रैल 2023, प्रात: 01.58
चैत्र शुक्ल एकादशी तिथि समाप्त - 2 अप्रैल 2023, सुबह 04.19
कामदा एकादशी व्रत पारण समय (Kamada Ekadashi 2023 Paran Time)
कामदा एकादशी व्रत पारण समय - दोपहर 01.40 - शाम 04.10 (2 अप्रैल 2023)
कामदा एकादशी पूजा विधि (Kamada Ekadashi Puja Vidhi)
शास्त्रों के अनुसार इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है.
व्रत से एक दिन पहले, दिन का एकमात्र भोजन करने के बाद भक्त देवताओं की पूजा शुरू करते हैं.
कामदा एकादशी व्रत के दिन दिन की शुरुआत पवित्र स्नान करने के बाद साफ कपड़े पहनकर और फिर व्रत का संकल्प लेने के बाद व्रत की शुरुआत होती है.
कामदा एकादशी के दिन व्रत का संकल्प लेने के बाद भगवान विष्णु की पूजा की जाती है.
इस दिन भगवान विष्णु की पूजा में फल, फूल, दूध, तिल और पंचामृत आदि का प्रयोग करना चाहिए.
एकादशी व्रत की कथा सुनने का भी विशेष महत्व है.
द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को दक्षिणा देकर विदा करना चाहिए.
और फिर व्रत का पारण करना चाहिए.
कामदा एकादशी का महत्व (Kamada Ekadashi Importance Katha)
धर्म ग्रंथों के अनुसार कामदा एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को अपने किए हुए पापों से मुक्ति मिल जाती है. इस एकादशी को कामदा कहा जाता है क्योंकि यह कष्टों को हरने वाली और मनोवांछित फल देने वाली और लोगों की मनोकामना को पूर्ण करने वाली मानी गई है. इस एकादशी की कथा और महत्व भगवान कृष्ण ने पांडु के पुत्र धर्मराज युधिष्ठिर को सुनाया था. इसके पूर्व वशिष्ठ मुनि ने राजा दिलीप को यह महत्त्व बताया था. चैत्र माह में भारतीय नववर्ष की शुरुआत होने के कारण इस एकादशी का अन्य महीनों की अपेक्षा कुछ विशेष महत्व है. शास्त्रों के अनुसार कामदा एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति को भूत-प्रेतों से मुक्ति मिलती है और आगे होने वाले नुकसान से भी उसकी रक्षा होती है.
दशमी से ही तैयारी शुरू हो जाती है (Kamada Ekadashi 2023 Niyam)
कामदा एकादशी व्रत से एक दिन पहले यानी दशमी की दोपहर में जौ, गेहूं और मूंग आदि का एक बार भोग लगाकर भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. दूसरे दिन यानी एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद भक्तों द्वारा व्रत और दान का व्रत लिया जाता है. पूजा करने और कथा सुनने के बाद अपनी श्रद्धा और सामर्थ्य के अनुसार दान किया जाता है. इस व्रत में नमक नहीं खाया जाता है. सात्विक दिनचर्या के साथ नियमों का पालन करने से व्रत पूरा होता है. इसके बाद रात्रि में भजन कीर्तन के साथ जागरण किया जाता है.
Ram Navami 2023: पुनर्वसु नक्षत्र में मनी रामनवमी, विशेष योग में हुई पूजा
31 Mar, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भगवान श्रीराम का अवतरण दिवस यानी चैत्र शुक्ल नवमी आज गुरुवार 30 मार्च 2023 को देश भर में श्रीराम जन्मोत्सव मनाया गया, भजन कीर्तन हुए, शोभायात्रा निकाली गई. श्रीराम जन्मस्थली अयोध्या में तो भव्य आयोजन हुआ, अस्थायी राम मंदिर और निर्माणाधीन मंदिर को अद्भुत ढंग से सजाया गया था.30 मार्च को अस्थायी राम मंदिर में रामलला और उनके भाइयों का विशेष श्रृंगार किया गया, और पुनर्वसु नक्षत्र में पूजा की गई.
रामनवमी का समयः पंचांग के अनुसार चैत्र शुक्ल नवमी की शुरुआत 29 मार्च 2023 को रात 9.07 बजे से हो गई थी, जो 30 मार्च 11.30 बजे संपन्न हो रही है. लेकिन उदयातिथि में रामनवमी 30 मार्च को मनाई जाएगी. इस दिन पूजा का मुहूर्त 11.11.38 बजे से 13.40.20 तक था, जिस समय विशिष्ट योग में भगवान की पूजा की गई.
रामनवमी पर कई शुभ योगः इस साल मनाए जा रहे राम जन्मोत्सव पर कई शुभ योग बने थे. रामनवमी 2023 के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग, अमृत सिद्धि योग और गुरु पुष्य योग बन रहे हैं जो बेहद शुभ हैं, बने थे. इन योगों में देश भर में श्रद्धालुओं ने पूजा की और भगवान से मन्नत मांगी.
प्रयागराज के आचार्य प्रदीप पाण्डेय के अनुसार भगवान राम यथा शक्ति आसान पूजा से ही प्रसन्न हो जाते हैं और अपनी कृपा करते हैं. कोई भक्त इस विधि से उनकी पूजा कर कृपा पा सकता है.
रामनवमी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठें, स्नान ध्यान के बाद व्रत का संकल्प लेकर उनके बालरूप की पूजा करें.
इस दिन बालक रामलला को झूले में झुलाने का विधान है, इसलिए रामलला को झुले में विराजमान कराएं, झूले को सजाएं और मध्यान्ह में पूजा करें. आज पूजा का शुभ समय 11.11 बजे से 13.40 बजे के बीच है.
तांबे के कलश में आम के पत्ते, नारियल, पान लेकर अक्षत पर कलश स्थापित करें, उसके आसपास चौमुखी दीपक जलाएं.
फिर भगवान को खीर, फल, मिष्ठान, पंचामृत, कमल, तुलसी और फूलमाला भेंट करें.
नैवेद्य अर्पित करने के बाद विष्णु सह्स्त्रनाम का पाठ करें.
पंचामृत के साथ पीसे हुए धनिए में गुड़ या शक्कर मिलाकर प्रसाद बांटते हैं.
जानिए रामजन्म के समय की प्रमुख बातें
पुत्र कामेष्टि यज्ञः बालकांड के अनुसार पुत्र कामना के चलते राजा दशरथ के कहने पर वशिष्ठजी ने श्रृंगी ऋषि को आमंत्रित किया, उन्होंने पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराया. इसके बाद माता कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया.
इस समय हुआ था जन्मः धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान राम का जन्म त्रेता युग और द्वापर युग के संधिकाल में हुआ था, हालिया शोधों के अनुसार उनका जन्म 5114 ईं. पू. माना जाता है यानी आज से 7136 वर्ष पूर्व उनका जन्म माना जाता है। भगवान राम का जन्म दोपहर 12.05 मिनट पर हुआ था, उस समय अभिजित मुहूर्त था.
जन्म के समय ऐसी थी ग्रहों की स्थितिः भगवान राम के जन्म के समय चैत्र शुक्ल नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र में हुआ था, इस समय पांच ग्रह अपनी उच्च राशि में थे. महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण के बालकांड के अनुसार सूर्य मेष में 10 डिग्री, मंगल मकर में 28 डिग्री, बृहस्पति कर्क में 5 डिग्री, शुक्र मीन में 27 डिग्री, शनि तुला में 20 डिग्री पर थे.
रामनवमी के दिन यह करेः रामनवमी के दिन भक्तों को रामरक्षा स्त्रोत पढ़ना चाहिए. रामचरित मानस का पाठ करना चाहिए. भजन कीर्तन का आयोजन करना चाहिए. भगवान की प्रतिमा को सजाएं और झूला सजाकर उनको झुलाएं. कई जगह पालकी और शोभायात्रा निकाली जाती है.
जानिए कौन है गुरु अंगद देव
31 Mar, 2023 06:17 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
अंगद देव का पूर्व नाम लहना था. भाई लहणा जी के ऊपर सनातन मत का प्रभाव था, जिस के कारण वह देवी दुर्गा को एक स्त्री एंवम मूर्ती रूप में देवी मान कर, उसकी पूजा अर्चना करते थे.
वो प्रतिवर्ष भक्तों के एक जत्थे का नेतृत्व कर ज्वालामुखी मंदिर जाया करता था. 1520 में, विवाह माता खीवीं जी से हुआ. उनसे उनके दो पुत्र - दासू जी एवं दातू जी तथा दो पुत्रियाँ - अमरो जी एवं अनोखी जी हुई. मुगल एवं बलूच लुटेरों (जो कि बाबर के साथ आये थे) की वजह से फेरू जी को अपना पैतृक गांव छोड़ना पड़ा. इसके पश्चात उनका परिवार तरन तारन के समीप अमृतसर से लगभग 25 कि॰मी॰ दूर स्थित खडूर साहिब नामक गांव में बस गया, जो कि ब्यास नदी के किनारे स्थित था.
बाबा नानक से मिलन और गुरमत विचारधारा से सहमती: एक बार भाई लहना जी ने भाई जोधा जी (सतगुर नानक साहिब के अनुयायी एक सिख) के मुख से गुरू नानक साहिब जी के शबद सुने और शब्द में कहे गए गुरमत के फलसफे से वो बहुत प्रभावित हुए. लहना जी निर्णय लिया कि वो सतगुर नानक साहिब के दर्शन के लिए करतारपुर जायेंगे. उनकी सतगुर नानक साहिब जी से पहली भेंट ने उनके जीवन में क्रांति ला दी. सतगुर नानक ने उन्हें आदि शक्ति या हुक्म का भेद समझाया और बताया की परमेशर की शक्ति कोई औरत या मूर्ती नहीं है बल्कि वोह वो रूप हीन है और उसकी प्राप्ति सिर्फ अपने अंदर से ही की जा सकती है. सतगुरु नानक से भाई लहने ने आत्म ज्ञान लिया जिसने उन्हें पूर्ण रूप से बदल दिया.
वो सतगुर नानक साहिब की विचारधारा के सिख बन गये एवं करतारपुर में निवास करने लगे. वे सतगुर नानक साहिब जी के अनन्य सिख थे. सतगुर नानक देव जी के महान एवं पवित्र मिशन के प्रति उनकी महान भक्ति और ज्ञान को देखते हुए सतगुर नानक साहिब जी ने 7 सितम्बर 1531 को गुरुपद प्रदान किया और गुरमत के प्रचार का जिम्मा सौंपा गया. सतगुर नानक के लडके इस बात से नाराज हुए और गुरु घर के विरोधी बन गए.गुरू साहिब ने उन्हें एक नया नाम अंगद (गुरू अंगद साहिब) दिया. उन्होने गुरू साहिब की सेवा में ६ से 7 वर्ष करतारपुर में बिताये.
22 सितम्बर 1531 को गुरू नानक साहिब जी की ज्योति जोत समाने के पश्चात गुरू अंगद साहिब करतारपुर छोड़ कर खडूर साहिब गांव (गोइन्दवाल के समीप) चले गये. उन्होने गुरू नानक साहिब जी के विचारों को दोनों ही रूप में, लिखित एवं भावनात्मक, प्रचारित किया. विभिन्न मतावलम्बियों, मतों, पंथों, सम्प्रदायों के योगी एवं संतों से उन्होंने आध्यात्म के विषय में गहन वार्तालाप किया.
रोग, कर्ज, चिंता और परेशानियों से मुक्लि दिलाएगा ये अचूक उपाय
31 Mar, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
आज शुक्रवार का दिन है और ये दिन धन, वैभव और समृद्धि की देवी माता लक्ष्मी की पूजा उपासना के लिए उत्तम माना जाता है। भक्त इस दिन देवी मां की विधिवत पूजा करते हैं और व्रत भी रखते है।
मान्यता है कि
इस दिन पूजा पाठ और व्रत के साथ अगर श्री कनकधारा स्तोत्र का संपूर्ण पाठ किया जाए तो देवी मां शीध्र प्रसन्न होती हैं और भक्तों पर कृपा बरसाती है। साथ ही साथ इस पाठ से रोग, कज, चिंता और परेशानियों से भी मुक्ति मिल जाती है। तो आज हम आपके लिए लेकर आए है ये चमत्कारी पाठ।
श्री कनकधारा स्तोत्र
अंगहरे पुलकभूषण माश्रयन्ती भृगांगनैव मुकुलाभरणं तमालम।
अंगीकृताखिल विभूतिरपांगलीला मांगल्यदास्तु मम मंगलदेवताया: ॥1॥
मुग्ध्या मुहुर्विदधती वदनै मुरारै: प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि।
माला दृशोर्मधुकर विमहोत्पले या सा मै श्रियं दिशतु सागर सम्भवाया: ॥2॥
विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षमानन्द हेतु रधिकं मधुविद्विषोपि।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्द्धमिन्दोवरोदर सहोदरमिन्दिराय: ॥3॥
आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दमानन्दकन्दम निमेषमनंगतन्त्रम्।
आकेकर स्थित कनी निकपक्ष्म नेत्रं भूत्यै भवेन्मम भुजंगरायांगनाया: ॥4॥
बाह्यन्तरे मधुजित: श्रितकौस्तुभै या हारावलीव हरिनीलमयी विभाति।
कामप्रदा भगवतो पि कटाक्षमाला कल्याण भावहतु मे कमलालयाया: ॥5॥
कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेर्धाराधरे स्फुरति या तडिदंगनेव्।
मातु: समस्त जगतां महनीय मूर्तिभद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनाया:॥6॥
प्राप्तं पदं प्रथमत: किल यत्प्रभावान्मांगल्य भाजि: मधुमायनि मन्मथेन।
मध्यापतेत दिह मन्थर मीक्षणार्द्ध मन्दालसं च मकरालयकन्यकाया: ॥7॥
दद्याद दयानुपवनो द्रविणाम्बुधाराम स्मिभकिंचन विहंग शिशौ विषण्ण।
दुष्कर्मधर्ममपनीय चिराय दूरं नारायण प्रणयिनी नयनाम्बुवाह: ॥8॥
इष्टा विशिष्टमतयो पि यथा ययार्द्रदृष्टया त्रिविष्टपपदं सुलभं लभंते।
दृष्टि: प्रहूष्टकमलोदर दीप्ति रिष्टां पुष्टि कृषीष्ट मम पुष्कर विष्टराया: ॥9॥
गीर्देवतैति गरुड़ध्वज भामिनीति शाकम्भरीति शशिशेखर वल्लभेति।
सृष्टि स्थिति प्रलय केलिषु संस्थितायै तस्यै नमस्त्रि भुवनैक गुरोस्तरूण्यै ॥10॥
श्रुत्यै नमोस्तु शुभकर्मफल प्रसूत्यै रत्यै नमोस्तु रमणीय गुणार्णवायै।
शक्तयै नमोस्तु शतपात्र निकेतानायै पुष्टयै नमोस्तु पुरूषोत्तम वल्लभायै ॥11॥
नमोस्तु नालीक निभाननायै नमोस्तु दुग्धौदधि जन्म भूत्यै ।
नमोस्तु सोमामृत सोदरायै नमोस्तु नारायण वल्लभायै ॥12॥
सम्पतकराणि सकलेन्द्रिय नन्दानि साम्राज्यदान विभवानि सरोरूहाक्षि।
त्व द्वंदनानि दुरिता हरणाद्यतानि मामेव मातर निशं कलयन्तु नान्यम् ॥13॥
यत्कटाक्षसमुपासना विधि: सेवकस्य कलार्थ सम्पद:।
संतनोति वचनांगमानसंसत्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे ॥14॥
सरसिजनिलये सरोज हस्ते धवलमांशुकगन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥15॥
दग्धिस्तिमि: कनकुंभमुखा व सृष्टिस्वर्वाहिनी विमलचारू जल प्लुतांगीम।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष लोकाधिनाथ गृहिणी ममृताब्धिपुत्रीम् ॥16॥
कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं करुणापूरतरां गतैरपाड़ंगै:।
अवलोकय माम किंचनानां प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयाया : ॥17॥
स्तुवन्ति ये स्तुतिभिर भूमिरन्वहं त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो भवन्ति ते बुधभाविताया: ॥18॥
॥ इति श्री कनकधारा स्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (31 मार्च 2023)
31 Mar, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- स्त्री वर्ग से हर्ष-उल्लास एवं कार्यकुशलता से संतोष होगा।
वृष राशि - योजनाएं फलीभूत होगी तथा स्वभाव में बेचैनी कष्ट प्रद होगा, ध्यान दे।
मिथुन राशि - कार्य क्षमता अनुकूल, कार्यवृत्ति में सुधार तथा संघर्ष बना रहें, ध्यान दें।
कर्क राशि - आर्थिक हानि, योजना बनकर बिगड़े तथा व्यवसाय होगा, कार्य होवे।
सिंह राशि - झगड़े के कारण व्यय होगा, आप आरोपित होने से बचिए, ध्यान दें।
कन्या राशि - कार्यकुशलता से संतोष, इष्टमित्र सुखवर्धक होंगे, ध्यान दें कार्य बनें।
तुला राशि - योजनाएं फलीभूत हो, इष्टमित्र सुखवर्धक होंगे, ध्यान रखें।
वृश्चिक राशि - मानसिक भ्रम, विभ्रम की स्थिति से हानि उठायेंगे, ध्यान दें।
धनु राशि - मानसिक विभ्रम, उपद्रव असंमजस की स्थिति बनेगी, कार्य होवे।
मकर राशि - दैनिक कार्यवृत्ति में सुधार, आर्थिक योजना अवश्य ही रहेंगे।
कुंभ राशि - चिन्ताएं कम हो, कुटुम्ब के बाद के कार्य में समय ही बीतेगा।
मीन राशि - स्त्रीवर्ग से सुख भोग, ऐश्वर्य की वृत्ति दैनिक गति अनुकूल हो।
हनुमान जी के ये मंदिर हैं आस्था के केन्द्र
30 Mar, 2023 07:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिन्दू धर्म में रामभक्त हनुमान के पूजन का काफी महत्व और इनकी पूजा करने का सबसे शुभ दिन मंगलवार है। हनुमान जी को कलयुग में भी जीवित देव माना गया है और श्रृद्धाभाव से पूजा करने से वह भक्तों की मनोकामना भी तुरंत पूरी करते है। इनके कई प्रसिद्ध मंदिर हैं जहां पर पूजन करने से आपकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। मान्यताओं के अनुसार अगर इन मंदिरों में भगवान श्रीराम का नाम लेकर कोई भी मुराद मांगी जाए तो वह अवश्य पूरी होती है।
हनुमान गढ़ी, अयोध्या
अयोध्या के हनुमान गढ़ी मंदिर के राजा हैं हनुमान जी। मान्यता है कि मंदिर में जब हनुमान जी की आरती होती है, उस समय वरदान मांगने वाले की हर इच्छा पूरी होती है।
कहते हैं कि लंका विजय के बाद हनुमानजी पुष्पक विमान में श्रीराम सीता और लक्ष्मण जी के साथ यहां आए थे। तभी से वो हनुमानगढ़ी में विराजमान हो गये। मान्यताओं के अनुसार जब भगवान राम परमधाम जाने लगे तो उन्होंने अयोध्या का राज-काज हनुमान जी को ही सौंपा था।
पंचमुखी हनुमान, कानपुर
कानपुर के पनकी में स्थित पंचमुखी हनुमान मंदिर की महिमा भी बड़ी निराली है। यहीं पर हनुमान जी और लवकुश का युद्ध हुआ था। युद्ध के बाद माता सीता ने हनुमान जी को लड्डु खिलाए थे, इसीलिए इस मंदिर में भी उन्हें लड्डुओं का ही भोग लगता है। यहां आने वाले भक्तों की सारी इच्छायें सिर्फ लड्डू चढ़ाने से ही पूरी हो जाती हैं।
हनुमान मंदिर, झांसी
झांसी के हनुमान मंदिर में हैरानी की बात ये है कि यहां हर दिन सुबह पानी ही पानी बिखरा रहता है और कोई नहीं जानता कि ये पानी आता कहां से है। यहां हनुमान जी की पूजा-पाठ इसी पानी के बीच ही पूरी होती हैं। कहते हैं कि इस मंदिर के पानी का औषधीय गुणों से भरपूर है और इस पानी से चर्म रोग दूर होता है।
बंधवा हनुमान मंदिर, विन्ध्याचल
विन्ध्याचल पर्वत के पास विराजते हैं बंधवा हनुमान। यहां पर ज्यादातर लोग शनिदेव के प्रकोप से बचने के लिए पूजन करने आते हैं। यहां पर शनिवार को लड्डू, तुलसी और फूल चढ़ने से साढ़ेसाती का प्रभाव कम होता है।
मूर्छित हनुमान मंदिर, इलाहाबाद
कहते हैं हनुमान जी संगम किनारे भारद्वाज ऋषि से आशीर्वाद लेने आये थे लेकिन वह इतने कमजोर हो गये थे कि उन्होंने प्राण त्यागने का निर्णय लिया। तभी मां सीता आईं और उन्होंने सिंदूर का लेप लगाकर उन्हें नया जीवन दान दिया। इसी मान्यता के अनुसार यहां पर जो भी भक्त, हनुमान जी को लाल सिंदूर का लेप करते हैं, उसकी सभी कामनाऔं पूरी होती हैं।
यहां होती है खंडित हनुमान प्रतिमा की पूजा
माना जाता है कि चंदौली के कमलपुरा गांव में बरगद के पेड़ से हनुमान जी प्रकट हुए थे. यहां पर बरगद से प्रकट हुए हनुमानजी की खंडित प्रतिमा की पूजा होती है। ऐसी मान्यता है कि बरगद वाले हनुमान भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।