धर्म एवं ज्योतिष (ऑर्काइव)
निर्जला एकादशी कब है? व्रत करने का क्या है तरीका?
24 May, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
ज्येष्ठ माह में अपरा और निर्जला एकादशी आती है। ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशक्ष को निर्जला एकादशी कहते हैं।
यह एकादशी भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जानी जाती है। आओ जानते हैं कि यह एकादशी कब है, क्या फायदे हैं और इस का व्रत रखने का तरीका क्या है।
कब है निर्जला एकादशी?
निर्जला एकादशी व्रत वर्ष 2023 में 31 मई, दिन बुधवार को रखा जाएगा। एकादशी तिथि 30 मई, मंगलवार को रात्रि में 01.07 बजे से प्रारंभ होकर होकर 31 मई, दिन बुधवार को दोपहर 01.45 पर समाप्त होगी।
निर्जला एकादशी पारणा मुहूर्त : 1 जून को 05:23:39 से 08:09:45 तक
निर्जला एकादशी व्रत रखने का फायदा-
पद्मपुराण में निर्जला एकादशी व्रत द्वारा मनोरथ सिद्ध होने की बात कही गई है। इस एकादशी के व्रत को विधिपूर्वक करने से सभी एकादशियों के व्रत का फल मिलता है।
निर्जला एकादशी व्रत रखने का तरीका-
निर्जला का अर्थ निराहार और निर्जल रहकर व्रत करना है।
इस दिन व्रती को अन्न तो क्या, जलग्रहण करना भी वर्जित है।
यानी यह व्रत निर्जला और निराहार ही होता है।
शास्त्रों में यह भी उल्लेख मिलता है कि संध्योपासना के लिए आचमन में जो जल लिया जाता है, उसे ग्रहण करने की अनुमति है।
इस व्रत में एकादशी तिथि के सूर्योदय से अगले दिन द्वादशी तिथि के सूर्योदय तक जल और भोजन ग्रहण नहीं कहते हैं।
प्रात:काल स्नान के बाद सर्वप्रथम भगवान विष्णु की मंत्र सहित विधि-विधान से पूजा करें।
इस दिन जल भरे कलश पर सफेद वस्त्र को ढककर रखें और उस पर चीनी तथा दक्षिणा रखकर ब्राह्मण को दान दें।
इसके बाद दान, पुण्य आदि कर इस व्रत का विधान पूर्ण करके दूसरे दिन पारण करें।
बंद होने के एक दिन बाद ही ज्वालामुखी मंदिर में चढ़ाए 2000 के 400 नोट
24 May, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
ज्वालामुखी (कौशिक): 2000 के नोट बंद होने के बाद ही एक श्रद्धालु ने ज्वालामुखी मंदिर में पहुंचकर 2000 के 400 नोट यानी कुल 8 लाख रुपए मां ज्वालामुखी के दरबार में चढ़ाए।
रविवार को हुई काऊंटिंग के बाद मामले का पता चला। ऐसा माना जा रहा है कि ये नोट शनिवार को ही चढ़ाए गए हैं। इससे एक दिन पहले ही 19 मई को भारतीय रिजर्व बैंक ने 2000 का नोट चलन से बाहर करने की घोषणा की थी।
गौरतलब है कि अभी 2 दिन पहले ही केंद्र सरकार ने 2000 का नोट बंद किया है और उसके तुरंत बाद एक श्रद्धालु द्वारा 2000 रुपए के 400 नोटों को चढ़ाना अपने आप में कई सवाल खड़े करता है। मंदिर के कनिष्ठ अभियंता सुरेश कुमार ने बताया कि श्रद्धालुओं द्वारा यह राशि चढ़ाई गई है और मां के दरबार में कई बड़े से बड़े भक्त आते हैं, जो अक्सर बड़ी-बड़ी सौगातें मां के चरणों में अर्पित करते हैं और बड़े-बड़े चढ़ावे मां के दरबार में अर्पित करते हैं। नगर परिषद ज्वालामुखी के अध्यक्ष धर्मेंद्र शर्मा ने बताया कि अभी सितम्बर माह तक 2000 के नोट बैंक में बदले जा सकते हैं। ऐसे में मां ज्वालामुखी के दरबार में यदि 2000 के नोट आते हैं तो निश्चित तौर पर उनका मंदिर को लाभ होगा। मंदिर के विकास कार्यों पर यह पैसा खर्च किया जाएगा।
इन कार्यों को करने से जल्द आता है बुढ़ापा, पढ़ें क्या कहती हैं चाणक्य नीति
24 May, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
आचार्य चाणक्य को भारत के महान ज्ञानियों और विद्वानों में से एक माना गया हैं जिनकी नीतियां देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं। चाणक्य ने अपने अनुभवों को नीतिशास्त्र में पिरोया हैं जिसे चाणक्य नीति के नाम से जाना जाता हैं।
आचार्य चाणक्य ने मनुष्य जीवन से जुड़े हर पहलु पर अपनी नीतियों का निर्माण किया हैं जिसका अगर कोई व्यक्ति अनुसरण करता है तो वह हमेशा सफल और सरल जीवन जीता हैं। चाणक्य ने कुछ ऐसे कार्यों को बताया हैं जिन्हें करने वाला मनुष्य समय से पहले बूढ़ा हो जाता हैं तो आज हम इसी विषय पर चाणक्य नीति बता रहे हैं तो आइए जानते हैं आज की चाणक्य नीति।
उम्र को लेकर चाणक्य नीति-
चाणक्य नीति अनुसार व्यक्ति के लिए जितना भोजन महत्वपूर्ण हैं उतना ही शारीरिक सुख भी अहम होता हैं खासकर जिन महिलाओं को समय समय पर शारीरिक सुख की प्राप्ति नहीं होती हैं वे समय से पहले ही बूढ़ी हो जाती हैं ऐसी महिलाओं को समय रहते ही सावधान हो जाना चाहिए।
चाणक्य नीति कहती हैं कि जो लोग अपने जीवन में अधिक यात्राएं करते हैं वे भी समय से पहले बूढ़े दिखने लगते हैं क्योंकि ऐसे लोगों की दिनचर्या ठीक नहीं होती हैं और ये लोग अपने रहन सहन और खान पान का भी ध्यान नहीं रख पाते हैं जिस कारण इनका बुढ़ापा जल्दी आ जाता हैं। चाणक्य नीति कहती हैं कि जिस प्रकार घोड़े का काम दौड़ना और मेहनत करना हैं ऐसे में अगर उसे बांधकर रख दिया जाए तो वह समय से पहले बूढ़ा हो जाएगा। ठीक उसी तरह अगर मनुष्य को बंधन में रखा जाए तो वह भी समय से पहले बूढ़ा हो जाता हैं।
भगवान सूर्यदेव को ऐसे करें प्रसन्न, सुख-समृद्धि और यश की होगी प्राप्ति
24 May, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में हफ्ते का हर दिन किसी न किसी देवी देवता की पूजा को समर्पित होता हैं वही रविवार का दिन भगवान श्री सूर्यदेव की आराधना के लिए श्रेष्ठ माना गया हैं भक्त इस दिन प्रभु को प्रसन्न करने के लिए उनकी विधिवत पूजा करते हैं और व्रत आदि भी रखते हैं।
लेकिन इसी के साथ सूर्यदेव की रोजाना आराधना करना भी उत्तम माना जाता हैं।
मान्यता है कि रोज़ नियमित रूप से अगर भगवान सूर्यदेव को जल अर्पित किया जाए तो भगवान की कृपा साधक पर बरसती है साथ ही साथ भगवान श्री सूर्यदेव को प्रसन्न करने के लिए कुछ उपायों को भी करना उत्तम माना जाता हैं तो आज हम आपको उन्हीं के बारे में बता रहे हैं तो आइए जानते हैं।
सूर्यदेव को प्रसन्न करने के उपाय-
अगर आप भगवान सूर्यदेव का आशीर्वाद पाना चाहते हैं तो ऐसे में आप रविवार के दिन पीपल के वृक्ष के नीचे आटे का चौमुखी दीपक बनाकर जलाएं। मान्यता है कि ऐसा करने से जीवन में सुख समृद्धि और यश की प्राप्ति होती हैं। इसके अलावा अगर नियमित रूप से घर के प्रवेश द्वार पर घी का एक दीपक जलाया जाए तो इससे भगवान सूर्यदेव के साथ साथ माता लक्ष्मी की कृपा भी भक्तों को मिलती हैं और धन लक्ष्मी का घर में वास होता हैं।
ज्योतिष अनुसार अगर मान सम्मान व नौकरी में तरक्की पाना चाहते हैं तो ऐसे में रविवार के दिन सूर्य साधना के समय लाल रंग के वस्त्रों को धारण करें और चंदन का तिलक लगाएं। ऐसा करने से भगवान जल्दी प्रसन्न होकर कृपा करते हैं।
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (24 मई 2023)
24 May, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि - तनाव, उदर रोग, मित्र लाभ, राजभय होगा, विवेक से समय पर कार्य बना लें।
वृष राशि - मनोवृत्ति संवेदनशील रहेगी, कार्यगति में अनुकूलता, चिन्ता कम होगी।
मिथुन राशि - किसी प्रयोजन से हानि, मनोवृत्ति संवेदनशील रहेगी, कार्यगति उत्तम होगी।
कर्क राशि - कार्य व्यवसाय की चिन्ता बनेगी, प्रयास करने से लाभ अवश्य होगा।
सिंह राशि - भोग-ऐश्वर्य की प्राप्ति होगी, उत्तम सुख के साधन अवश्य बनेंगे ध्यान दें।
कन्या राशि - आर्थिक योजना पूर्ण होगी, सोचे कार्य समय पर पूर्ण होंगे, रुके कार्य बनेंगे।
तुला राशि - पारिवारिक बाधायें परेशान करेंगे, विरोधी तत्व कष्टप्रद होंगे, धैर्य रखें।
वृश्चिक राशि - मानसिक बेचैनी, उद्विघ्नता से बचें तथा समय पर कार्य करने से लाभांवित होंगे।
धनु राशि - कुटुम्ब की समस्यायें कष्टप्रद होंगी, व्यर्थ भ्रमण से व्यय होगा, समय का ध्यान रखें।
मकर राशि - योजनायें फलीभूत होंगी, सफलता के साधन जुटायें, कार्य बनेंगे ध्यान दें।
कुंभ राशि - स्वभाव में खिन्नता, मानसिक बेचैनी का अनुभव होगा, शारीरिक पीड़ा से कष्ट होगा।
मीन राशि - तनाव, क्लेश व अशांति की स्थिति बनेगी, परिश्रम विफल होगा, कार्यगति मंद होगी।
हथेली में ये रेखा छोटी हो तो जल्दी होती है मृत्यु, ब्रेन हेमरेज हो सकता है कारण
23 May, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हमारी हथेली में कई सारी छोटी-बड़ी रेखाएं दिखाई देती हैं। इनमें से कुछ रेखाएं ही सबसे ज्यादा स्पष्ट तौर पर दिखाई देती है। मस्तिष्क रेखा भी इन रेखाओं में एक है। ये रेखा हथेली की तीसरी सबसे बड़ी रेखा होती है।
हमारी हथेली में तो अनेक रेखाएं होती हैं, लेकिन इन सभी में मस्तिष्क रेखा बहुत खास होती हैं। (Palmistry) ये रेखा अंगूठे और तर्जनी उंगली के मध्य से में निकलते हुए सीधे आगे बढ़ती है। कभी-कभी इस रेखा में उतार-चढ़ाव की स्थिति देखने को मिलती है। एशियानेट हिंदी ने अपने पाठकों के लिए हस्तरेखा (know future from palm line) की एक सीरीज शुरू की है, हस्तरेखा से जानें भविष्य। इस सीरीज के अंतर्गत पहले हम आपको मस्तिष्क रेखा से जुड़ी कई खास बातें पहले बता चुके हैं। आगे जानिए मस्तिष्क रेखा से जुड़ी कुछ अन्य खास बातें.
जिस व्यक्ति की हथेली में मस्तिष्क रेखा जितनी छोटी होगी, उसका मानसिक विकास उतना ही कम होता है। ये रेखा शनि पर्वत की ओर उठती दिखाई दे तो ऐसे व्यक्ति की सेहत अक्सर खराब रहती है और उसकी शीघ्र मृत्यु के योग भी बनते हैं। मृत्यु का कारण ब्रेन हैमरेज या मस्तिष्क ज्वर हो सकता है।
यदि मस्तिष्क रेखा टेढ़ी-मेढ़ी और लहरदार है तो ऐसे व्यक्ति की विचारधारा कभी एक सी नहीं रह पाती और बदलती रहती है। ऐसे लोगों में एकाग्रता की कमी रहती है। ये लोग अपने लक्ष्य को पाने में प्राय: असफल सावित होते हैं। ये विश्वास करने योग्य नहीं रहते। इनसे दूर रहने में भी भलाई है।
जिसकी हथेली में मस्तिष्क रेखा ऊपर की ओर उठती हुई ह्रदय रेखा के नजदीक पहुंच जाती है। ऐसे लोग भावुक यानी इमोशनल होते हैं। कई बार भावनाओं में बहकर गलत फैसले ले लेते हैं, जिस पर बाद में इन्हें पछतावा होता है। यहां ये बात देखने योग्य होती है ये मस्तिष्क रेखा ह्रदय रेखा के कितनी करीब तक जाती है। इसी के आधार पर अन्य बातें तय होती हैं।
जिसकी हथेली में मस्तिष्क रेखा चंद्र पर्वत की ओर झुकी हुई होती है, ऐसे लोग दार्शनिक प्रवृत्ति के होते हैं। यदि मस्तिष्क रेखा पुन: ऊपर की ओर उठ जाए तो समझें कि मनुष्य पुनः व्यावहारिक बुद्धि संपन्न हो गया है। यदि झुकाव किसी पर्वत विशेष की ओर हो तो व्यक्ति उस पर्वत संबंधी दोष के कारण अव्यावहारिक हो जाता है।
जिस व्यक्ति की हथेली में मस्तिष्क रेखा प्रारम्भ से गहरे झुकाव में पतली एवं झुकाव के बाद शृंखलाकार हो तो ऐसे व्यक्ति अति कामुक होता है। उसका मन इसी तरह के ख्यालों में उलझा रहता है। कई ऐसे लोग गलत रास्ते पर भी चले जाते हैं, इनका भविष्य भी अंधकारय मय रहता है। इन लोगों की बातों पर भी भरोसा नहीं करना चाहिए।
शीघ्र विवाह की इच्छा रखने वाले जरूर करें ये एक काम
23 May, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
शादी विवाह हर किसी के जीवन का अहम फैसला होता हैं और इसे हर धर्म में महत्वपूर्ण बताया गया हैं। कुछ लोगों का विवाह सही उम्र में हो जाता हैं तो वही कुछ ऐसे भी लोग हैं जिनके विवाह में किसी न किसी तरह की बाधा, अड़चन या फिर समस्या आ रही है जिस कारण विवाह में देरी हो रही हैं।
या मनचाहा जीवनसाथी नहीं मिल रहा हैं तो ऐसे में आप रोजाना भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान करते हुए श्री दामोदराष्टकम् स्तोत्र का सच्चे मन से पाठ करें। मान्यता है कि ऐसा करने से शीघ्र विवाह का आशीर्वाद मिलता है और विवाह में आने वाली हर बाधा दूर हो जाती हैं तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं श्री दामोदराष्टकम् स्तोत्र।
श्री दामोदराष्टकम् स्तोत्र-
नमामीश्वरं सच्चिदानन्दरूपं
लसत्कुण्डलं गोकुले भ्राजमानम् ।
यशोदाभियोलूखलाद्धावमानं
परामृष्टमत्यन्ततो द्रुत्य गोप्या ॥ 1 ॥
रुदन्तं मुहुर्नेत्रयुग्मं मृजन्तं
कराम्भोजयुग्मेन सातङ्कनेत्रम् ।
मुहुः श्वासकम्पत्रिरेखाङ्ककण्ठ-
स्थितग्रैव-दामोदरं भक्तिबद्धम् ॥ 2 ॥
इतीदृक् स्वलीलाभिरानन्दकुण्डे
स्वघोषं निमज्जन्तमाख्यापयन्तम् ।
तदीयेषिताज्ञेषु भक्तैर्जितत्वं
पुनः प्रेमतस्तं शतावृत्ति वन्दे ॥ 3 ॥
वरं देव मोक्षं न मोक्षावधिं वा
न चान्यं वृणेऽहं वरेषादपीह ।
इदं ते वपुर्नाथ गोपालबालं
सदा मे मनस्याविरास्तां किमन्यैः ॥ 4 ॥
इदं ते मुखाम्भोजमत्यन्तनीलैर्-
वृतं कुन्तलैः स्निग्ध-रक्तैश्च गोप्या ।
मुहुश्चुम्बितं बिम्बरक्तधरं मे
मनस्याविरास्तां अलं लक्षलाभैः ॥ 5 ॥
नमो देव दामोदरानन्त विष्णो
प्रसीद प्रभो दुःखजालाब्धिमग्नम् ।
कृपादृष्टिवृष्ट्यातिदीनं बतानु
गृहाणेश मां अज्ञमेध्यक्षिदृश्यः ॥ 6 ॥
कुवेरात्मजौ बद्धमूर्त्यैव यद्वत्
त्वया मोचितौ भक्तिभाजौ कृतौ च ।
तथा प्रेमभक्तिं स्वकं मे प्रयच्छ
न मोक्षे ग्रहो मेऽस्ति दामोदरेह ॥ 7 ॥
नमस्तेऽस्तु दाम्ने स्फुरद्दीप्तिधाम्ने
त्वदीयोदरायाथ विश्वस्य धाम्ने ।
नमो राधिकायै त्वदीयप्रियायै
नमोऽनन्तलीलाय देवाय तुभ्यम् ॥ 8 ॥
इति श्रीमद्पद्मपुराणे श्री दामोदराष्टकम् सम्पूर्णम् ॥
घर में लगाएं ये पौधा दिन दुनी रात चौगुनी होगी तरक्की
23 May, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
वास्तुशास्त्र हम सभी के जीवन में अहम भूमिका अदा करता हैं इसमें व्यक्ति के जीवन से जुड़ी हर एक चीज़ को लेकर नियम और उसके रख रखाव के तरीके के बारे में बताया गया हैं जिसके अनुसार चलने से सकारात्मक परिणाम की प्राप्ति होती हैं लेकिन अनदेखी करने वालों को समस्याओं का सामना करना पड़ता हैं।
वास्तुशास्त्र में कई ऐसे पौधे बताए गए हैं जिन्हें घर की सही दिशा और स्थान पर अगर लगा दिया जाए तो धनवान बनने से आपको कोई रोक नहीं सकता हैं तो आज हम आपको एक ऐसे ही पौधे जिसे मोहिनी का पौधा कहा जाता हैं इसके बारे में बता रहे हैं मान्यता है कि इसे घर में लगाने से दिन दुनी रात चौगुनी तरक्की होने लगती हैं साथ ही सभी कष्टों व परेशानियों से मुक्ति मिल जाती हैं तो आइए जानते हैं इस पौधे से जुड़े नियम।
मोहिनी प्लांट से जुड़े नियम-
वास्तुशास्त्र के अनुसार मोहिनी का पौधा वैसे तो कई सारे रंगों में आता है लेकिन गहरा हरा और हरा गुलाबी रंग का ये पौधा घर में लगाना सबसे अच्छा माना जाता हैं। अगर आप इस पौधे को घर में लगाने का विचार बना रहे हैं तो इसे घर की उत्तर या फिर पूर्व दिशा में लगा सकते हैं इस दिशा में लगाना लाभकारी होता हैं इसके अलावा अगर आप आर्थिक समस्याओं से मुक्ति चाहते हैं तो मोहिनी प्लांट को आप घर के प्रवेश द्वार पर भी लगा सकते हैं।
वही अगर इस पौधे को ईशान कोण में लगाया जाए तो इससे घर में हमेशा बरकत बनी रहती हैं और सुख शांति की कमी नहीं रहती हैं इस पौधे को लगाने से नकारात्मकता का नाश हो जाता हैं और सकारात्मक माहौल चारों ओर रहता हैं। आप चाहे तो इस पौधे को घर के लिविंग रुम या फिर बेडरुम में भी रख सकते हैं ऐसा करने से रिश्तों में मिठास हमेशा बनी रहती हैं।
निर्जला एकादशी के दिन करें इन चीजों का दान, दूर होंगे सभी दुख-दर्द
23 May, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
पंचांग के अनुसार हर साल ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को निर्जला एकादशी मनाई जाती है। इस साल 31 मई 2023 को निर्जला एकादशी है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। वैसे तो साल में कुल चौबीस एकादशी तिथि पड़ती हैं, लेकिन ऐसा माना जाता है कि सभी एकादशी तिथियों में निर्जला एकादशी श्रेष्ठ होती है। इस दिन व्रत करने से सभी चौबीस एकादशी का व्रत रखने के समान फल मिलता है। इस दिन पानी पीना भी वर्जित होता है, इसलिए इस व्रत को काफी कठिन माना जाता है। निर्जला एकादशी के दिन व्रत के अलावा कुछ चीजों का दान करने से कई गुना लाभ मिलता है। तो चलिए आज जानते हैं निर्जला एकादशी के दिन किन चीजों का दान करना शुभ रहता है...
नमक का दान
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार नमक का दान करने से घर में कभी भी भोजन की कमी नहीं होती है। इसलिए निर्जला एकादशी के दिन नमक का दान जरूर करें।
तिल का दान
निर्जला एकादशी के दिन तिल का दान करना शुभ होता है। कहा जाता है कि इस दिन तिल का दान करने से पुराने रोगों से मुक्ति मिलती है।
कपड़ों का दान
निर्जला एकादशी के दिन वस्त्र का दान करना शुभ माना जाता है। यदि संभव हो तो निर्जला एकादशी के दिन कपड़ों का दान करें। इस दन ऐसा करने से लंबी आयु का वरदान मिलता है।
अनाज का दान
अनाज का दान करना शुभ माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो लोग अनाज का दान करते हैं, उनके जीवन में किसी भी तरह की कोई कमी नहीं रहती है। ऐसे लोगों को सदैव भगवान विष्णु का आशीर्वाद मिलता है।
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (23 मई 2023)
23 May, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि - कार्य लाभ, आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा, रुके कार्य अवश्य ही बनेंगे।
वृष राशि - कार्य योजना पूर्ण होगी, शुभ समाचार से मन प्रसन्न होगा, सोचे कार्य अवश्य ही बनेंगे।
मिथुन राशि - कार्य व्यवसाय में थकावट व बेचैनी का अनुभव होगा, कार्य में बाधा होगी।
कर्क राशि - दैनिक व्यवसाय गति मंद रहेगी, असमर्थता का वातावरण अवश्य ही बनेगा।
सिंह राशि - आलोचना से बचिये, कार्य कुशलता से संतोष, पूर्ण संतुष्टि का अनुभव होगा।
कन्या राशि - भोग-ऐश्वर्य में समय बीतेगा, शारीरिक थकावट व बेचैनी का अनुभव होगा।
तुला राशि - मित्र वर्ग सहायक होगा, आशानुकूल सफलता से संतोष होगा, हर्षप्रद स्थिति रहेगी।
वृश्चिक राशि - मित्र वर्ग विशेष फलप्रद रहेगा, कार्य में सफलता प्राप्त होगी, रुके कार्य बनेंगे।
धनु राशि - तनाव पूर्ण वार्तालाभ होगा, सुखवर्धक योग बनेंगे, समय का ध्यान रखकर कार्य करें।
मकर राशि - कार्यवृत्ति में सुधार, सामाजिक कार्य में मान-प्रतिष्ठा अवश्य ही बढ़ेगी।
कुंभ राशि - कार्य व्यवसाय गति मंद, चोटादि का भय होगा, मानसिक तनाव बनेगा।
मीन राशि - आशानुकूल सफलता का हर्ष, बिगड़े कार्य की योजना बनेगी ध्यान दें।
भीषण गर्मी नौतपो की शुरुआत, नौ दिनों तक पड़ने वाली है गर्मी....
22 May, 2023 12:41 PM IST | GRAMINBHARATTV.IN
अभी से गर्मी ने अपना प्रचंड रूप दिखाना शुरू कर दिया है। लेकिन ज्योतिष विद्वानों के अनुसार, अभी तापमान में और बढ़ोतरी हो सकती है। क्योंकि जल्द ही नौतपा शुरू होने वाला है। बता दें कि जब ज्येष्ठ मास में सूर्य रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करते हैं तो उस अवधि को नौतपा कहा जाता है। नौतपा के दौरान गर्मी अपने चरम पर होती है और सूर्य की किरणें सीधे धरती पर पड़ती है। सूर्यदेव इस नक्षत्र में 15 दिन के लिए प्रवेश करेंगे और शुरुआत के 9 दिन बहुत ही तेज गर्मी रहेगी। बता दें कि नौतपा 25 मई से शुरू हो रहा है और 8 जून तक रहेगा। ऐसे में मई और जून के महीने में लोगों को विशेष ध्यान रखना होगा।
ज्येष्ठ मास में नौतपा कब से कब तक
हर बार नौतपा मई या जून के महीने के बीच में पड़ता है। इस बार सूर्य देव 25 मई, गुरुवार को रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करेंगे और 8 जून तक इसी नक्षत्र में विराजमान रहेंगे। रोहिणी नक्षत्र में रहने की अवधि 15 दिन की है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, चंद्र रोहिणी नक्षत्र के स्वामी हैं और शीतलता के कारक ग्रह हैं। ऐसे में रोहिणी नक्षत्र में सूर्य के प्रवेश से वातावरन पर विशेष प्रभाव पड़ता है। इस दौरान पृथ्वी को पूर्ण रूप से शीतलता नहीं मिलती है और तपमान में सर्वाधिक बढ़ोतरी हो जाती है। नौतपा का वर्णन श्रीमद्भगवद्गीता में भी किया गया है।
जानिए नौतपा से जुड़ा वैज्ञानिक आधार
नौतपा को न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि वैज्ञानिक रूप से भी बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। विज्ञान में भी बताया गया है कि इस दौरान सूर्य की किरणें सीधे धरती पर पड़ती है, जिससे तापमान में बढ़ोतरी होती है। वहीं मैदानी इलाकों में तापमान में बढ़ोतरी के कारण समुद्री लहरों की अपनी ओर आकर्षित करते हैं। जिससे तटीय क्षेत्रों में बारिश और तूफान की संभावना बढ़ जाती है।
अंगारक चतुर्थी 23 मई को, ये उपाय बचा सकते हैं आपको मंगल के प्रकोप से
22 May, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
23 मई, मंगलवार को ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी रहेगी, जिससे अंगारक चतुर्थी का संयोग बनेगा। जिन की कुंडली में मंगल दोष है, उनके लिए ये दिन बहुत ही खास है।
इस दिन कुछ खास उपाय करने से मंगल दोष की शांति होती है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जिस मंगलवार को चतुर्थी तिथि का संयोग बनता है, उसे अंगारक चतुर्थी कहते हैं। (Angarak Chaturthi 2023 Upay) इस बार 23 मई, मंगलवार को ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी का संयोग बन रहा है, जिसके चलते ये अंगारक चतुर्थी कहलाएगी। जिन लोगों की कुंडली में मंगल दोष है, वे यदि अंगारक चतुर्थी पर कुछ उपाय करें तो उनकी परेशानियां कम हो सकती हैं। आगे जानिए इन उपायों के बारे में.
मंगल दोष की शांति के लिए अंगारक चतुर्थी पर मंगलदेव के मंदिर में जाकर विशेष पूजा करें। अगर आस-पास मंगलदेव का कोई मंदिर नहीं है तो किसी योग्य ब्राह्मण को घर बुलाकर मंगल दोष की शांति के लिए पूजा करवाएं। इस उपाय से आपकी परेशानियां कम हो सकती हैं।
मंगल से संबंधित शुभ फल पाने के लिए मंत्र जाप भी एक आसान उपाय है। अंगारक चतुर्थी पर लाल चंदन की माला से नीचे लिखे मंत्रों का जाप विधि-विधान से करें। अगर स्वयं ये उपाय न कर पाएं तो किसी योग्य ब्राह्मण से भी करवा सकते हैं। ये मंगल के मंत्र-
ऊं धरणीगर्भसंभूतं विद्युतकान्तिसमप्रभम।
कुमारं शक्तिहस्तं तं मंगलं प्रणमाम्यहम।
मंगल की शांति के लिए भात पूजन सबसे अचूक उपाय है। ये पूजा पूरे भारत में सिर्फ उज्जैन स्थित मंगलनाथ मंदिर में होती है। मान्यता के अनुसार, इसी स्थान से मंगल ग्रह की उत्पत्ति हुई थी। इस पूजा में चावल का उपयोग विशेष रूप से किया जाता है, इसलिए इसे भात पूजा कहते हैं।
अंगारक चतुर्थी पर हनुमानजी की पूजा करने भी फायदा होता है। इस दिन हनुमानजी को सिंदूर का चोला चढ़ाएं और विशेष पूजा-पाठ करें। संभव हो तो हनुमान चालीसा या हनुमानजी के मंत्रों का जाप करें। हनुमानजी की पूजा से भी मंगलदेव प्रसन्न होते हैं और सुख-समृद्धि प्रदान करते हैं।
मंगल दोष से छुटकारा पाने के लिए अंगारक चतुर्थी पर मंगल से संबंधित चीजों का दान करना बहुत शुभ रहता है। इससे मंगल ग्रह की स्थिति मजबूत होती है और इसका दो भी शांत होता है। ये हैं मंगल से संबंधित चीजें- मसूर की दाल, गेहूं, गुड़, माचिस, ताम्बा, सोना, दूध देने वाली गाय, लाल चंदन, मिठाई या भूमि।
कलश का उद्भव कब हुआ? धार्मिक अनुष्ठान के लिए बेहद खास माने जाते हैं मिट्टी के घड़ें,
22 May, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सभी जगह गर्मी अपने चरम पर है. इस मौसम में शीतल जल के लिए मिट्टी का कलश ही सर्वथा से उपयोगी रहा है. हालांकि आधुनिक युग में इसका प्रचलन कम जरूर हो गया है, परंतु ग्रामीण इलाकों में आज भी घर-घर में कलश या घड़े का पानी ही लोग पीते हैं.
धार्मिक अनुष्ठान, यथा- पूजा-पाठ, गृहप्रवेश, शादी-ब्याह में आज भी सुसज्जित कलश ही देखे जाते हैं. कलश सागर व जल के देवता वरुण का ही प्रतीक है.
कलश का उद्भव कब हुआ, कहना कठिन है. ऐतिहासिक आधार पर चलें, तो हड़प्पा संस्कृति में भी मृद्भाण्ड मिले हैं. विद्वानों के मत से नवपाषाण युग से ही इसका चलन है. जब चेक गणराज्य में 2900 से 2500 ईपू की छोटी मूर्तियां मिली हैं, तो अवश्य ही हमारे यहां प्राग्वैदिक काल से ही मृण्मय जलपात्रों का प्रचलन रहा है. हां, हमारे यहां पूजा के अवसर पर कलश-स्थापन अवश्य होता है, जिसमें कलशस्तुति की जाती है. उस स्तुति का सार है- ''हे कुंभ! आप देवों और दानवों द्वारा किये गये समुद्र-मंथन से उत्पन्न हुए हैं. आपको स्वयं विष्णु ने धारण किया. आपके जल में समस्त तीर्थ, देवता, सभी प्राणी, प्राण स्थित हैं. आप साक्षात् शिव, विष्णु, ब्रह्मा व प्रजापति हैं. आपमें बारहों सूर्य, आठों वसु, ग्यारहों रुद्र, विश्वेदेव तथा सभी पितर भी विराजमान हैं. आशय यह कि आप विश्वरूप हैं. आपके सान्निध्य में मैं यह पूजा कर रहा हूं. आप सर्वदा प्रसन्न रहें.''
उपर्युक्त स्तुति में आये-
देव-दानव-संवादे मथ्यमाने महोदधौ।
उत्पन्नोsसि तदा कुम्भ विधृतो विष्णुना स्वयम्।।
इस कथन से ज्ञात होता है कि पहले-पहल समुद्र-मंथन के समय विश्वकर्मा जी ने अमृत रखने के लिए कलश का निर्माण किया. इसी तरह एक जगह स्पष्टतः कहा भी गया है कि देवशिल्पी ने अमृत रखने के लिए इसे बनाया था- 'पीयूष- धारणार्थाय निर्मितं विश्वकर्मणा'. लेकिन, एक बात समझ में नहीं आती कि विष्णुजी ने कब धारण किया? हां संभव है कि धन्वन्तरि भी विष्णुजी के ही अवतार माने गये हैं और वह अमृतमय घट के साथ प्रकट हुए थे. पुनः जब दानव अमृत-कलश छीन ले गये, तो मोहिनी बनकर वह आये और देवताओं को सुधापान कराया. 'विधृतो विष्णुना स्वयम्' का संकेत कहीं यही तो नहीं! अधिक संभव है. देवताओं और दानवों के सम्मिलित प्रयास से हुए सागर-मंथन की ओर यहां इशारा है ही, तो धृतकलश मोहिनी व धन्वन्तरि रूप को लेकर भी उक्त कथन चरितार्थ हो जाता है.
पहले पूजा के बाद प्रार्थना की बात की गयी, परंतु इसके पूर्व जल के प्रधान देवता वरुण के आवाहन के बाद कलश के विभिन्न भागों में विष्णु आदि के भी आवाहन का विधान है. जैसे- कलश के मुखभाग में विष्णु, कंठ में रुद्र, मूल में ब्रह्मा, मध्य में मातृगण, कुक्षि में सागरों के साथ पृथ्वी, पूर्वादि क्रम से घेरे के रूप में वेदांगों के साथ ऋग्वेदादि चारों वेद; इसी तरह गायत्री, सावित्री, शांति एवं पुष्टि देवियां; पुनः गंगा आदि नदियां.
हां, तंत्रों ने उत्तमोत्तम कलश का एक परिमाप भी दे दिया है. उदाहरणार्थ उसके लंबाई पचास अंगुल, चौड़ाई व गहराई सोलह अंगुल, मुंह का घेरा आठ अंगुल हो- 'पंचाशदंगुल- व्याम उत्सेधः षोडशांगुलः। कलशानां प्रमाणं तु मुखमष्टांगुलं स्मृतम्'।। इसी तरह छत्तीस, सोलह एवं बारह अंगुल के कलश भी बताये गये हैं.
कलशों को नौ प्रकारों में बांटा है
'कालिका' पुराण (अध्याय-86) ने कलशों को नौ प्रकारों में बांटा है- गोह्य, उपगोह्य, मरुत, मयूख, मनोहर, आटार्यभद्र (कहीं-कहीं कृषिभद्र भी आया है), विजय-तनुशोधक, इन्द्रियघ्न एवं विजय. इन्हें क्रमशः क्षितींद्र, जलसंभव, पवन, अग्नि, यजमान, कोषसंभव, सोम, आदित्य तथा विजय भी कहा गया है.
कलश का उद्भव प्रथमतः अमृत रखने के लिए हुआ
उपर्युक्त विवेचनों से ज्ञात होता है कि कलश का उद्भव प्रथमतः अमृत रखने के लिए हुआ. विकास-क्रम से यह जलसंचय व नित्य प्रयोग से लेकर यज्ञसाधन में भी चल पड़ा. मिट्टी से शुरू हुआ और धातव रूप लेता-लेता लौह, पित्तल, कांस्य, ताम्र, रजत एवं सुवर्ण में भी परिणत होता गया. एक तरह से संपन्नता का प्रदर्शन होता गया. यह भी कहा जा सकता है कि आम से खास तक में अपनी पैठ बनाता गया. इसीलिए ज्ञयीय विधान में भी सोने, चांदी, तांबे, पीतल के बाद ही मिट्टी के कलश को स्थान दिया जाने लगा, लेकिन यज्ञांग होने से प्रत्येक पूजा-पाठ में स्थान पाता ही रहा.
कलश सागर व जल के देवता वरुण का ही प्रतीक
कलश सागर व जल के देवता वरुण का ही प्रतीक है. जैसे सागर में रत्न, औषधियां, अथवा धरती पर पाये जानेवाले सभी पदार्थ नदियों के माध्यम से समाहित होते हैं, वैसे ही इस घट को भी रत्न, सर्वौषधि, सप्तमृत्तिका, पुष्प, आम्र आदि पल्लवों से युक्त देखते हैं. पुनः इसे अन्नमय पूर्णपात्र से एवं फल से युक्त कर सुख-समृद्धिपूरक कर देते हैं. इसलिए यह मंगलकलश कहलाता है. रंगों से अष्टदल कमल, उस पर सप्तधान्य और तब उस पर स्थापित कलश अतिमनोहर दिखता है.
बताने को तो यों ही बता दिया गया, पर पूजा-सामग्री के साथ एक-एक वस्तु मंत्र-विधान के साथ डाली जाती है और तब सविधि पूजन होता है. तब वरुण से लेकर विश्व के समस्त नियामकों का आवाहन, स्थापन एवं पूजन होता है.
धार्मिक-सांस्कृतिक परंपरा का अभिन्न अंग है कलश
हमारे यहां कलश का प्रायः विभिन्न धार्मिक उत्सवों में विभिन्नतया प्रयोग होता है. कहीं अधिक मात्रा में, तो कहीं कम मात्रा में भी. बड़े-छोटे यज्ञों में जलभरी के लिए अधिक मात्रा में भी इसका प्रयोग होता है. 8, 16 से 108 तक का उल्लेख जलयात्रा में मिलता है. लाल-पीले परिधानों में सुहागिनें नदी-तालाब आदि से सस्वर गायन के साथ सिर पर जलपूर्ण कलश लेकर जब एक पंक्ति में यज्ञमंडप की ओर चलती हैं, तो दृश्य मनोरम होता है. विवाह में भी सजा कलश अवश्य रहता है. संक्षेप में, यह हमारी धार्मिक-सांस्कृतिक परंपरा का अभिन्न अंग है.
'केन जलेन लसति शोभते इति कलशः
एक जगह कलश की व्युत्पत्ति में कहा गया है, 'केन जलेन लसति शोभते इति कलशः', अर्थात् जल से भरा रहने से शोभा पाता है. यानी; जल ही इसकी शोभा है. परंतु; आज दुकानों के एक कोने में यह लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा के साथ सूखा-सूखा दिखता है. जलहीन, सूखे पत्तों से युक्त उदास कलश देखकर यह सोचने को बाध्य होना पड़ता है कि आखिर यह आवश्यक है कि अनावश्यक! बिना जल के तो वह मृत ही है न! इससे न तो शोभा बढ़ती है और न इसमें जलाधिदेव वरुण महाराज ही विराज सकते हैं. फिर क्यों? दरअसल; हम सनातनियों के यहां शास्त्रीयता के अतिरिक्त भावनाएं भी प्रभावित करती रहती हैं. भाव में भगवान को प्रतिष्ठित करनेवाली हमारी भावनाएं ही शायद सूखे-रीते कलश में जलदेवता का निवास मानती परंपरा बन गयी. मेरे विचार से रखना ही हो, तो उसमें जल भरते रहना चाहिए और पत्तों को भी बदलते रखना चाहिए.
विदाई से पहले दुल्हन अपने घर की चौखट यानी देहली की पूजा क्यों करती है?
22 May, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में अनेक परंपराएं निभाई जाती हैं। इनमें से कुछ के पीछे धार्मिक तो कुछ के लिए वैज्ञानिक कारण छिपे होते हैं। (Hindu Tradition) विवाह के दौरान निभाई जाने वाली परंपरा भी काफी खास होती हैं।
विवाह के बाद सबसे अंत में दुल्हन द्वारा अपने घर की देहली यानी चौखट की पूजा की जाती है। इस परंपरा के पीछे हमारे पूर्वजों की गहरी मनोवैज्ञानिक सोच छिपी है। आगे जानिए इस परंपरा क्यों निभाई जाती है?
कब की जाती है देहली पूजा?
जब परिवार में किसी लड़की का विवाह होता है तो विदाई के ठीक पहले उसे घर लाया जाता है और घर की चौखट यानी देहली की पूजा करवाई जाती है। इसे ही देहली पूजा कहते हैं। इस परंपरा के दौरान घर की कुछ महिलाएं भी साथ होती हैं। ये महिलाएं देहली पूजन की विधि बताती जाती हैं, उसी के अनुसार दुल्हन पूजा करती है। इसके बाद ही दुल्हन की विदाई होती है।
धर्म ग्रंथों में देहरी यानी चौखट का महत्व
घर के शुरूआत जिस स्थान से होती है, उसे ही देहली यानी चौखट कहते हैं। घर में प्रवेश करने से पहले या बाहर जाने से पहले देहली को लांघना पड़ता है। ये एक तरह की लक्ष्मण रेखा होती है। इसी देहली में लोगों के जीवन बीत जाते हैं। धर्म ग्रंथों में देहली विनायक का वर्णन भी मिलता है। देहली विनायक यानी घर की चौखट पर निवास करने वाले भगवान श्रीगणेश। इसलिए घर की देहरी को बहुत ही खास माना गया है।
क्यों करते है देहली पूजा? (Kyo Karte Hai Dehli Puja)
देहली पूजा के पीछे न तो एक गहरी मनोवैज्ञानिक सोच है। उसके अनुसार, हम जीवन भर जिस घर में रहते हैं, जहां हमारा बचपन बीता होता है वो स्थान हमारे दिल के काफी करीब होता है। जब किसी लड़की का विवाह होता है तो देहरी पूजन के माध्यम से उसे यह अहसास दिलाया जाता है यही वो स्थान है जहां तुम्हारे माता-पिता ने तुम्हारा पालन-पोषण किया और अब तुम इस जगह को छोड़कर दूसरी जगह जा रही है। जाने से पहले इस घर की देहली को प्रणाम कर इसका आशीर्वाद लो ताकि तुम्हारा आने वाला जीवन भी सुख-समृद्धि से भरा रहे।
गंगा दशहरा पर जरूर करें पवित्र गंगा स्तोत्रम का पाठ, मिलेगा शुभ फल
22 May, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा का पर्व मनाया जाता है। इस दिन विधि-विधान से मां गंगा की पूजा की जाती है।
इस साल 30 मई को गंगा दशहरा का पावन पर्व मनाया जाएगा। गंगा दशहरा के दिन गंगा मां की पूजा करने से समस्त पापों से मुक्ति मिलती है। इस दिन गंगा नदी में स्नान का बहुत ज्यादा महत्व होता है, लेकिन यदि आप इस दिन गंगा नदी में स्नान करने का पुण्य लाभ नहीं ले पा रहे हैं तो घर पर ही पानी में गंगा जल डालकर स्नान करें और पवित्र गंगा स्तोत्रम का पाठ करें। यह स्तोत्र आपको कई गुना अधिक फल देगा।
पवित्र गंगा स्तोत्रम
देवि सुरेश्वरि भगति गंगे त्रिभुवनतारिणि तरलतरंगे ।
शंकरमौलिविहारिणि विमले मम मतिरास्तां तव पदकमले ।।1।।
भागीरथि सुखदायिनि मातस्तव जलमहिमा निगमे ख्यात: ।
नाहं जाने तव महिमानं पाहि कृपामयि मामज्ञानम ।।2।।
हरिपदपाद्यतरंगिणि गंगे हिमविधुमुक्ताधवलतरंगे ।
दूरीकुरू मम दुष्कृतिभारं कुरु कृपया भवसागरपारम ।।3।।
तव जलममलं येन निपीतं परमपदं खलु तेन गृहीतम ।
मातर्गंगे त्वयि यो भक्त: किल तं द्रष्टुं न यम: शक्त: ।।4।।
पतितोद्धारिणि जाह्रवि गंगे खण्डितगिरिवरमण्डितभंगे ।
भीष्मजननि हेमुनिवरकन्ये पतितनिवारिणि त्रिभुवनधन्ये ।।5।।
कल्पलतामिव फलदां लोके प्रणमति यस्त्वां न पतति शोके ।
पारावारविहारिणि गंगे विमुखयुवतिकृततरलापांगे ।।6।।
तव चेन्मात: स्रोत: स्नात: पुनरपि जठरे सोsपि न जात: ।
नरकनिवारिणि जाह्रवि गंगे कलुषविनाशिनि महिमोत्तुंगे ।।7।।
पुनरसदड़्गे पुण्यतरंगे जय जय जाह्रवि करूणापाड़्गे ।
इन्द्रमुकुट मणिराजितचरणे सुखदे शुभदे भृत्यशरण्ये ।।8।।
रोगं शोकं तापं पापं हर मे भगवति कुमतिकलापम ।
त्रिभुवनसारे वसुधाहारे त्वमसि गतिर्मम खलु संसारे ।।9।।
अलकानन्दे परमानन्दे कुरु करुणामयि कातरवन्द्ये ।
तव तटनिकटे यस्य निवास: खलु वैकुण्ठे तस्य निवास: ।।10।।
वरमिह: नीरे कमठो मीन: कि वा तीरे शरट: क्षीण: ।
अथवा श्वपचो मलिनो दीनस्तव न हि दूरे नृपतिकुलीन: ।।11।।
भो भुवनेश्वरि पुण्ये धन्ये देवि द्रवमयि मुनिवरकन्ये ।
गंगास्तवमिमममलं नित्यं पठति नरो य: सजयति सत्यम ।।12।।
येषां ह्रदये गंगाभक्तिस्तेषां भवति सदा सुख मुक्ति: ।
मधुराकान्तापंझटिकाभि: परमानन्द कलितललिताभि:
गंगास्तोत्रमिदं भवसारं वांछितफलदं विमलं सारम ।
शंकरसेवकशंकरचितं पठति सुखी स्तव इति च समाप्त: ।।