धर्म एवं ज्योतिष (ऑर्काइव)
आखिरी बड़ा मंगल पर करें हनुमान बाहुक का पाठ, बजरंगबली की कृपा से सभी संकट होंगे दूर
30 May, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
Hanuman Bahuk : मंगलवार का दिन भगवान हनुमान को समर्पित है। ज्येष्ठ माह में इस दिन का महत्व और अधिक बढ़ जाता है। इस दिन भगवान हनुमान की पूजा की जाती है।
मान्यता है कि हनुमान जी की पूजा से व्यक्ति के जीवन से सभी संकट दूर हो जाते हैं और सब कुछ मंगलमय होता है। इस साल 30 मई को ज्येष्ठ माह का आखिरी बड़ा मंगल है। ऐसे में यदि आपके जीवन में समस्याओं का सिलसिला कभी खत्म नहीं हो रहा है तो आखिरी बड़े मंगल पर बजरंगबली की विशेष आराधना करें। इस दिन आप हनुमान बाहुक का पाठ कर सकते हैं। इससे भी आपको कई चमत्कारिक लाभ मिलेंगे। यहां हनुमान बाहुक पाठ की लिरिक्स दी जा रही है, जिसके जरिए आप आखिरी बड़े मंगल पर इसका पाठ कर सकते हैं...
श्रीगणेशाय नमः
श्रीजानकीवल्लभो विजयते
श्रीमद्-गोस्वामी-तुलसीदास-कृत
छप्पय
सिंधु-तरन, सिय-सोच-हरन, रबि-बाल-बरन तनु ।
भुज बिसाल, मूरति कराल कालहुको काल जनु ।।
गहन-दहन-निरदहन लंक निःसंक, बंक-भुव ।
जातुधान-बलवान-मान-मद-दवन पवनसुव ।।
कह तुलसिदास सेवत सुलभ सेवक हित सन्तत निकट ।
गुन-गनत, नमत, सुमिरत, जपत समन सकल-संकट-विकट ।।१।।
स्वर्न-सैल-संकास कोटि-रबि-तरुन-तेज-घन ।
उर बिसाल भुज-दंड चंड नख-बज्र बज्र-तन ।।
पिंग नयन, भृकुटी कराल रसना दसनानन ।
कपिस केस, करकस लँगूर, खल-दल बल भानन ।।
कह तुलसिदास बस जासु उर मारुतसुत मूरति बिकट ।
संताप पाप तेहि पुरुष पहिं सपनेहुँ नहिं आवत निकट ।।२।।
झूलना
पंचमुख-छमुख-भृगु मुख्य भट असुर सुर, सर्व-सरि-समर समरत्थ सूरो ।
बाँकुरो बीर बिरुदैत बिरुदावली, बेद बंदी बदत पैजपूरो ।।
जासु गुनगाथ रघुनाथ कह, जासुबल, बिपुल-जल-भरित जग-जलधि झूरो ।
दुवन-दल-दमनको कौन तुलसीस है, पवन को पूत रजपूत रुरो ।।३।।
घनाक्षरी
भानुसों पढ़न हनुमान गये भानु मन-अनुमानि सिसु-केलि कियो फेरफार सो ।
पाछिले पगनि गम गगन मगन-मन, क्रम को न भ्रम, कपि बालक बिहार सो ।।
कौतुक बिलोकि लोकपाल हरि हर बिधि, लोचननि चकाचौंधी चित्तनि खभार सो।
बल कैंधौं बीर-रस धीरज कै, साहस कै, तुलसी सरीर धरे सबनि को सार सो ।।४।।
भारत में पारथ के रथ केथू कपिराज, गाज्यो सुनि कुरुराज दल हल बल भो ।
कह्यो द्रोन भीषम समीर सुत महाबीर, बीर-रस-बारि-निधि जाको बल जल भो ।।
बानर सुभाय बाल केलि भूमि भानु लागि, फलँग फलाँग हूँतें घाटि नभतल भो ।
नाई-नाई माथ जोरि-जोरि हाथ जोधा जोहैं, हनुमान देखे जगजीवन को फल भो ।।५
गो-पद पयोधि करि होलिका ज्यों लाई लंक, निपट निसंक परपुर गलबल भो ।
द्रोन-सो पहार लियो ख्याल ही उखारि कर, कंदुक-ज्यों कपि खेल बेल कैसो फल भो ।।
संकट समाज असमंजस भो रामराज, काज जुग पूगनि को करतल पल भो ।
साहसी समत्थ तुलसी को नाह जाकी बाँह, लोकपाल पालन को फिर थिर थल भो ।।६
कमठ की पीठि जाके गोडनि की गाड़ैं मानो, नाप के भाजन भरि जल निधि जल भो ।
जातुधान-दावन परावन को दुर्ग भयो, महामीन बास तिमि तोमनि को थल भो ।।
कुम्भकरन-रावन पयोद-नाद-ईंधन को, तुलसी प्रताप जाको प्रबल अनल भो ।
भीषम कहत मेरे अनुमान हनुमान, सारिखो त्रिकाल न त्रिलोक महाबल भो ।।७
दूत रामराय को, सपूत पूत पौनको, तू अंजनी को नन्दन प्रताप भूरि भानु सो ।
सीय-सोच-समन, दुरित दोष दमन, सरन आये अवन, लखन प्रिय प्रान सो ।।
दसमुख दुसह दरिद्र दरिबे को भयो, प्रकट तिलोक ओक तुलसी निधान सो ।
ज्ञान गुनवान बलवान सेवा सावधान, साहेब सुजान उर आनु हनुमान सो ।।८
दवन-दुवन-दल भुवन-बिदित बल, बेद जस गावत बिबुध बंदीछोर को ।
पाप-ताप-तिमिर तुहिन-विघटन-पटु, सेवक-सरोरुह सुखद भानु भोर को ।।
लोक-परलोक तें बिसोक सपने न सोक, तुलसी के हिये है भरोसो एक ओर को ।
राम को दुलारो दास बामदेव को निवास, नाम कलि-कामतरु केसरी-किसोर को ।।९।।
महाबल-सीम महाभीम महाबान इत, महाबीर बिदित बरायो रघुबीर को ।
कुलिस-कठोर तनु जोरपरै रोर रन, करुना-कलित मन धारमिक धीर को ।।
दुर्जन को कालसो कराल पाल सज्जन को, सुमिरे हरनहार तुलसी की पीर को ।
सीय-सुख-दायक दुलारो रघुनायक को, सेवक सहायक है साहसी समीर को ।।१०।।
रचिबे को बिधि जैसे, पालिबे को हरि, हर मीच मारिबे को, ज्याईबे को सुधापान भो ।
धरिबे को धरनि, तरनि तम दलिबे को, सोखिबे कृसानु, पोषिबे को हिम-भानु भो ।।
खल-दुःख दोषिबे को, जन-परितोषिबे को, माँगिबो मलीनता को मोदक सुदान भो ।
आरत की आरति निवारिबे को तिहुँ पुर, तुलसी को साहेब हठीलो हनुमान भो ।।११।।
सेवक स्योकाई जानि जानकीस मानै कानि, सानुकूल सूलपानि नवै नाथ नाँक को ।
देवी देव दानव दयावने ह्वै जोरैं हाथ, बापुरे बराक कहा और राजा राँक को ।।
जागत सोवत बैठे बागत बिनोद मोद, ताके जो अनर्थ सो समर्थ एक आँक को ।
सब दिन रुरो परै पूरो जहाँ-तहाँ ताहि, जाके है भरोसो हिये हनुमान हाँक को ।।१२।।
सानुग सगौरि सानुकूल सूलपानि ताहि, लोकपाल सकल लखन राम जानकी ।
लोक परलोक को बिसोक सो तिलोक ताहि, तुलसी तमाइ कहा काहू बीर आनकी ।।
केसरी किसोर बन्दीछोर के नेवाजे सब, कीरति बिमल कपि करुनानिधान की ।
बालक-ज्यों पालिहैं कृपालु मुनि सिद्ध ताको, जाके हिये हुलसति हाँक हनुमान की ।।१३।।
करुनानिधान, बलबुद्धि के निधान मोद-महिमा निधान, गुन-ज्ञान के निधान हौ ।
बामदेव-रुप भूप राम के सनेही, नाम लेत-देत अर्थ धर्म काम निरबान हौ ।।
आपने प्रभाव सीताराम के सुभाव सील, लोक-बेद-बिधि के बिदूष हनुमान हौ ।
मन की बचन की करम की तिहूँ प्रकार, तुलसी तिहारो तुम साहेब सुजान हौ ।।१४।।
मन को अगम, तन सुगम किये कपीस, काज महाराज के समाज साज साजे हैं ।
देव-बंदी छोर रनरोर केसरी किसोर, जुग जुग जग तेरे बिरद बिराजे हैं ।
बीर बरजोर, घटि जोर तुलसी की ओर, सुनि सकुचाने साधु खल गन गाजे हैं ।
बिगरी सँवार अंजनी कुमार कीजे मोहिं, जैसे होत आये हनुमान के निवाजे हैं ।।१५।।
सवैया
जान सिरोमनि हौ हनुमान सदा जन के मन बास तिहारो ।
ढ़ारो बिगारो मैं काको कहा केहि कारन खीझत हौं तो तिहारो ।।
साहेब सेवक नाते तो हातो कियो सो तहाँ तुलसी को न चारो ।
दोष सुनाये तें आगेहुँ को होशियार ह्वैं हों मन तौ हिय हारो ।।१६।।
तेरे थपे उथपै न महेस, थपै थिरको कपि जे घर घाले ।
तेरे निवाजे गरीब निवाज बिराजत बैरिन के उर साले ।।
संकट सोच सबै तुलसी लिये नाम फटै मकरी के से जाले ।
बूढ़ भये, बलि, मेरिहि बार, कि हारि परे बहुतै नत पाले ।।१७।।
सिंधु तरे, बड़े बीर दले खल, जारे हैं लंक से बंक मवा से ।
तैं रनि-केहरि केहरि के बिदले अरि-कुंजर छैल छवा से ।।
तोसों समत्थ सुसाहेब सेई सहै तुलसी दुख दोष दवा से ।
बानर बाज ! बढ़े खल-खेचर, लीजत क्यों न लपेटि लवा-से ।।१८।।
अच्छ-विमर्दन कानन-भानि दसानन आनन भा न निहारो ।
बारिदनाद अकंपन कुंभकरन्न-से कुंजर केहरि-बारो ।।
राम-प्रताप-हुतासन, कच्छ, बिपच्छ, समीर समीर-दुलारो ।
पाप-तें साप-तें ताप तिहूँ-तें सदा तुलसी कहँ सो रखवारो ।।१९।।
घनाक्षरी
जानत जहान हनुमान को निवाज्यौ जन, मन अनुमानि बलि, बोल न बिसारिये ।
सेवा-जोग तुलसी कबहुँ कहा चूक परी, साहेब सुभाव कपि साहिबी सँभारिये ।।
अपराधी जानि कीजै सासति सहस भाँति, मोदक मरै जो ताहि माहुर न मारिये ।
साहसी समीर के दुलारे रघुबीर जू के, बाँह पीर महाबीर बेगि ही निवारिये ।।२०।।
बालक बिलोकि, बलि बारेतें आपनो कियो, दीनबन्धु दया कीन्हीं निरुपाधि न्यारिये ।
रावरो भरोसो तुलसी के, रावरोई बल, आस रावरीयै दास रावरो बिचारिये ।।
बड़ो बिकराल कलि, काको न बिहाल कियो, माथे पगु बलि को, निहारि सो निवारिये ।
केसरी किसोर, रनरोर, बरजोर बीर, बाँहुपीर राहुमातु ज्यौं पछारि मारिये ।।२१।।
उथपे थपनथिर थपे उथपनहार, केसरी कुमार बल आपनो सँभारिये ।
राम के गुलामनि को कामतरु रामदूत, मोसे दीन दूबरे को तकिया तिहारिये ।।
साहेब समर्थ तोसों तुलसी के माथे पर, सोऊ अपराध बिनु बीर, बाँधि मारिये ।
पोखरी बिसाल बाँहु, बलि, बारिचर पीर, मकरी ज्यौं पकरि कै बदन बिदारिये ।।२२।।
राम को सनेह, राम साहस लखन सिय, राम की भगति, सोच संकट निवारिये ।
मुद-मरकट रोग-बारिनिधि हेरि हारे, जीव-जामवंत को भरोसो तेरो भारिये ।।
कूदिये कृपाल तुलसी सुप्रेम-पब्बयतें, सुथल सुबेल भालू बैठि कै बिचारिये ।
महाबीर बाँकुरे बराकी बाँह-पीर क्यों न, लंकिनी ज्यों लात-घात ही मरोरि मारिये ।।२३।।
लोक-परलोकहुँ तिलोक न बिलोकियत, तोसे समरथ चष चारिहूँ निहारिये ।
कर्म, काल, लोकपाल, अग-जग जीवजाल, नाथ हाथ सब निज महिमा बिचारिये ।।
खास दास रावरो, निवास तेरो तासु उर, तुलसी सो देव दुखी देखियत भारिये ।
बात तरुमूल बाँहुसूल कपिकच्छु-बेलि, उपजी सकेलि कपिकेलि ही उखारिये ।।२४।।
करम-कराल-कंस भूमिपाल के भरोसे, बकी बकभगिनी काहू तें कहा डरैगी ।
बड़ी बिकराल बाल घातिनी न जात कहि, बाँहूबल बालक छबीले छोटे छरैगी ।।
आई है बनाइ बेष आप ही बिचारि देख, पाप जाय सबको गुनी के पाले परैगी ।
पूतना पिसाचिनी ज्यौं कपिकान्ह तुलसी की, बाँहपीर महाबीर तेरे मारे मरैगी ।।२५।।
भालकी कि कालकी कि रोष की त्रिदोष की है, बेदन बिषम पाप ताप छल छाँह की ।
करमन कूट की कि जन्त्र मन्त्र बूट की, पराहि जाहि पापिनी मलीन मन माँह की ।।
पैहहि सजाय, नत कहत बजाय तोहि, बाबरी न होहि बानि जानि कपि नाँह की ।
आन हनुमान की दुहाई बलवान की, सपथ महाबीर की जो रहै पीर बाँह की ।।२६।।
सिंहिका सँहारि बल, सुरसा सुधारि छल, लंकिनी पछारि मारि बाटिका उजारी है ।
लंक परजारि मकरी बिदारि बारबार, जातुधान धारि धूरिधानी करि डारी है ।।
तोरि जमकातरि मंदोदरी कढ़ोरि आनी, रावन की रानी मेघनाद महँतारी है ।
भीर बाँह पीर की निपट राखी महाबीर, कौन के सकोच तुलसी के सोच भारी है ।।२७।।
तेरो बालि केलि बीर सुनि सहमत धीर, भूलत सरीर सुधि सक्र-रबि-राहु की ।
तेरी बाँह बसत बिसोक लोकपाल सब, तेरो नाम लेत रहै आरति न काहु की ।।
साम दान भेद बिधि बेदहू लबेद सिधि, हाथ कपिनाथ ही के चोटी चोर साहु की ।
आलस अनख परिहास कै सिखावन है, एते दिन रही पीर तुलसी के बाहु की ।।२८।।
टूकनि को घर-घर डोलत कँगाल बोलि, बाल ज्यों कृपाल नतपाल पालि पोसो है ।
कीन्ही है सँभार सार अँजनी कुमार बीर, आपनो बिसारि हैं न मेरेहू भरोसो है ।।
इतनो परेखो सब भाँति समरथ आजु, कपिराज साँची कहौं को तिलोक तोसो है ।
सासति सहत दास कीजे पेखि परिहास, चीरी को मरन खेल बालकनि को सो है ।।२९।।
आपने ही पाप तें त्रिपात तें कि साप तें, बढ़ी है बाँह बेदन कही न सहि जाति है ।
औषध अनेक जन्त्र मन्त्र टोटकादि किये, बादि भये देवता मनाये अधिकाति है ।।
करतार, भरतार, हरतार, कर्म काल, को है जगजाल जो न मानत इताति है ।
चेरो तेरो तुलसी तू मेरो कह्यो राम दूत, ढील तेरी बीर मोहि पीर तें पिराति है ।।३०।।
दूत राम राय को, सपूत पूत बाय को, समत्व हाथ पाय को सहाय असहाय को ।
बाँकी बिरदावली बिदित बेद गाइयत, रावन सो भट भयो मुठिका के घाय को ।।
एते बड़े साहेब समर्थ को निवाजो आज, सीदत सुसेवक बचन मन काय को ।
थोरी बाँह पीर की बड़ी गलानि तुलसी को, कौन पाप कोप, लोप प्रकट प्रभाय को ।।३१।।
देवी देव दनुज मनुज मुनि सिद्ध नाग, छोटे बड़े जीव जेते चेतन अचेत हैं ।
पूतना पिसाची जातुधानी जातुधान बाम, राम दूत की रजाइ माथे मानि लेत हैं ।।
घोर जन्त्र मन्त्र कूट कपट कुरोग जोग, हनुमान आन सुनि छाड़त निकेत हैं ।
क्रोध कीजे कर्म को प्रबोध कीजे तुलसी को, सोध कीजे तिनको जो दोष दुख देत हैं ।।३२।।
तेरे बल बानर जिताये रन रावन सों, तेरे घाले जातुधान भये घर-घर के ।
तेरे बल रामराज किये सब सुरकाज, सकल समाज साज साजे रघुबर के ।।
तेरो गुनगान सुनि गीरबान पुलकत, सजल बिलोचन बिरंचि हरि हर के ।
तुलसी के माथे पर हाथ फेरो कीसनाथ, देखिये न दास दुखी तोसो कनिगर के ।।३३।।
पालो तेरे टूक को परेहू चूक मूकिये न, कूर कौड़ी दूको हौं आपनी ओर हेरिये ।
भोरानाथ भोरे ही सरोष होत थोरे दोष, पोषि तोषि थापि आपनी न अवडेरिये ।।
अँबु तू हौं अँबुचर, अँबु तू हौं डिंभ सो न, बूझिये बिलंब अवलंब मेरे तेरिये ।
बालक बिकल जानि पाहि प्रेम पहिचानि, तुलसी की बाँह पर लामी लूम फेरिये ।।३४।।
घेरि लियो रोगनि, कुजोगनि, कुलोगनि ज्यौं, बासर जलद घन घटा धुकि धाई है ।
बरसत बारि पीर जारिये जवासे जस, रोष बिनु दोष धूम-मूल मलिनाई है ।।
करुनानिधान हनुमान महा बलवान, हेरि हँसि हाँकि फूँकि फौजैं ते उड़ाई है ।
खाये हुतो तुलसी कुरोग राढ़ राकसनि, केसरी किसोर राखे बीर बरिआई है ।।३५।।
सवैया
राम गुलाम तु ही हनुमान गोसाँई सुसाँई सदा अनुकूलो ।
पाल्यो हौं बाल ज्यों आखर दू पितु मातु सों मंगल मोद समूलो ।।
बाँह की बेदन बाँह पगार पुकारत आरत आनँद भूलो ।
श्री रघुबीर निवारिये पीर रहौं दरबार परो लटि लूलो ।।३६।।
घनाक्षरी
काल की करालता करम कठिनाई कीधौं, पाप के प्रभाव की सुभाय बाय बावरे ।
बेदन कुभाँति सो सही न जाति राति दिन, सोई बाँह गही जो गही समीर डाबरे ।।
लायो तरु तुलसी तिहारो सो निहारि बारि, सींचिये मलीन भो तयो है तिहुँ तावरे ।
भूतनि की आपनी पराये की कृपा निधान, जानियत सबही की रीति राम रावरे ।।३७।।
पाँय पीर पेट पीर बाँह पीर मुँह पीर, जरजर सकल पीर मई है ।
देव भूत पितर करम खल काल ग्रह, मोहि पर दवरि दमानक सी दई है ।।
हौं तो बिनु मोल के बिकानो बलि बारेही तें, ओट राम नाम की ललाट लिखि लई है ।
कुँभज के किंकर बिकल बूढ़े गोखुरनि, हाय राम राय ऐसी हाल कहूँ भई है ।।३८।।
बाहुक-सुबाहु नीच लीचर-मरीच मिलि, मुँहपीर केतुजा कुरोग जातुधान हैं ।
राम नाम जगजाप कियो चहों सानुराग, काल कैसे दूत भूत कहा मेरे मान हैं ।।
सुमिरे सहाय राम लखन आखर दोऊ, जिनके समूह साके जागत जहान हैं ।
तुलसी सँभारि ताड़का सँहारि भारि भट, बेधे बरगद से बनाइ बानवान हैं ।।३९।।
बालपने सूधे मन राम सनमुख भयो, राम नाम लेत माँगि खात टूकटाक हौं ।
परयो लोक-रीति में पुनीत प्रीति राम राय, मोह बस बैठो तोरि तरकि तराक हौं ।।
खोटे-खोटे आचरन आचरत अपनायो, अंजनी कुमार सोध्यो रामपानि पाक हौं ।
तुलसी गुसाँई भयो भोंडे दिन भूल गयो, ताको फल पावत निदान परिपाक हौं ।।४०।।
असन-बसन-हीन बिषम-बिषाद-लीन, देखि दीन दूबरो करै न हाय हाय को ।
तुलसी अनाथ सो सनाथ रघुनाथ कियो, दियो फल सील सिंधु आपने सुभाय को ।।
नीच यहि बीच पति पाइ भरु हाईगो, बिहाइ प्रभु भजन बचन मन काय को ।
ता तें तनु पेषियत घोर बरतोर मिस, फूटि फूटि निकसत लोन राम राय को ।।४१।।
जीओं जग जानकी जीवन को कहाइ जन, मरिबे को बारानसी बारि सुरसरि को ।
तुलसी के दुहूँ हाथ मोदक हैं ऐसे ठाँउ, जाके जिये मुये सोच करिहैं न लरि को ।।
मोको झूटो साँचो लोग राम को कहत सब, मेरे मन मान है न हर को न हरि को ।
भारी पीर दुसह सरीर तें बिहाल होत, सोऊ रघुबीर बिनु सकै दूर करि को ।।४२।।
सीतापति साहेब सहाय हनुमान नित, हित उपदेश को महेस मानो गुरु कै ।
मानस बचन काय सरन तिहारे पाँय, तुम्हरे भरोसे सुर मैं न जाने सुर कै ।।
ब्याधि भूत जनित उपाधि काहु खल की, समाधि कीजे तुलसी को जानि जन फुर कै ।
कपिनाथ रघुनाथ भोलानाथ भूतनाथ, रोग सिंधु क्यों न डारियत गाय खुर कै ।।४३।।
कहों हनुमान सों सुजान राम राय सों, कृपानिधान संकर सों सावधान सुनिये ।
हरष विषाद राग रोष गुन दोष मई, बिरची बिरञ्ची सब देखियत दुनिये ।।
माया जीव काल के करम के सुभाय के, करैया राम बेद कहैं साँची मन गुनिये ।
तुम्ह तें कहा न होय हा हा सो बुझैये मोहि, हौं हूँ रहों मौनही बयो सो जानि लुनिये ।।४४।।
गायत्री प्रकटोत्सव 2023 : कौन है मां गायत्री? कैसे और कब करें पूजन?
30 May, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
Mata Gayatri Jayanti 2023 : हिन्दू धर्म में हर देवी के दो रूपों का वर्णन मिलता है एक लौकिक और दूसरा अलौकिक। एक में उन्हें एक सामान्य देवी बताया जाता है और दूसरी में उन्हें प्रकृति की शक्ति आदि शक्ति का स्वरूप बताया जाता है।
इसी तरह मां गायत्री के भी दो मुख्य रूप है। ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी के दिन माता गायत्री का प्रकटोत्सव मनाया जाता है। आओ जानते हैं कि कौन है मां गायत्री? कैसे और कब करें पूजन?
कौन है मां गायत्री?
माता गायत्री का स्वरूप : माता गायत्री को वेदमाता भी कहा जाता है। उनके हाथों में चारों वेद सुरक्षित हैं। वे वेदज्ञ है। मां गायत्री का वाहन श्वेत हंस है। इनके हाथों में वेद सुशोभित है। साथ ही दुसरे हाथ में कमण्डल है।
आद्यशक्ति मां गायत्री : एक गायत्री तो वो थीं जो स्थूल रूप में एक देवी हैं और दूसरी वो जो चैतन्य रूप में इस ब्रह्मांड की आद्यशक्ति हैं। गायत्री माता को आद्याशक्ति प्रकृति के पांच स्वरूपों में एक माना गया है।
ब्रह्मा की पत्नी गायत्री : माना जाता है कि ब्रह्माजी की 5 पत्नियां थीं- सावित्री, गायत्री, श्रद्धा, मेधा और सरस्वती। इसमें सावित्री और सरस्वती का उल्लेख अधिकतर जगहों पर मिलता है जो उनकी पत्नियां थीं लेकिन बाकी का उल्लेख स्पष्ट नहीं है। मान्यता है कि पुष्कर में यज्ञ के दौरान सावित्री के अनुपस्थित होने की स्थित में ब्रह्मा ने वेदों की ज्ञाता विद्वान स्त्री गायत्री से विवाह कर यज्ञ संपन्न किया था। यह गायत्री संभवत: उनकी पुत्री नहीं थी। इससे सावित्री ने रुष्ट होकर ब्रह्मा को जगत में नहीं पूजे जाने का शाप दे दिया था। हालांकि इसके बारे में भी पुराणों में स्पष्ट नहीं है।
सावित्री गायत्री या ब्राह्मणी : हते हैं कि किसी समय में यह सविता की पुत्री के रूप में जन्मी थीं, इसलिए इनका नाम सावित्री भी पड़ा। कहीं-कहीं सावित्री और गायत्री के पृथक्-पृथक् स्वरूपों का भी वर्णन मिलता है। भगवान सूर्य ने इन्हें ब्रह्माजी को समर्पित कर दिया था जिसके चलते इनका एक नाम ब्रह्माणी भी हुआ।
पुराणों की एक अन्य मान्यता के अनुसार भगवान की नाभि से कमल उत्पन्न हुआ। कमल से ब्रह्माजी उत्पन्न हुए। ब्रह्मजी से सावित्री हुई। ब्रह्मा और सावित्री के संयोग से चारों वेद उत्पन्न हुए। वेद से समस्त प्रकार का ज्ञान उत्पन्न हुई। इसके बाद ब्रह्मा ने पंच भौतिक सृष्टि की रचना की। उन्होंने दो तरह की सृष्टि उत्पन्न की एक चैतन्य और दूसरी जड़। ब्रह्मा की दो भुजाएं हैं जिन्हें संकल्प और परमाणु शक्ति कहते हैं। संकल्प शक्ति चेतन सत् सम्भव होने से ब्रह्मा की पुत्री हैं और परमाणु शक्ति स्थूल क्रियाशील एवं तम सम्भव होने से ब्रह्मा की पत्नी हैं। इस प्रकार गायत्री और सावित्री ब्रह्मा की पुत्री और पत्नी नाम से प्रसिद्ध हुई।
कैसे और कब करें मां गायत्री का पूजन?
1. प्रात: काल नित्यकर्म से निवृत्त होकर माता गायत्री की मूर्ति या तस्वीर को पाट पीले वस्त्र बिछाकर विजराम करें।
2. गंगाजल छिड़कर स्थान को पवित्र करें और सभी देवी और देवताओं का अभिषेक करें।
3. इसके बाद घी का दीपक प्रज्वलित करें और धूप बत्ती लगाएं।
4. अब माता की पंचोपचार या षोडशोपचार पूजा करें। पंचोपचार यानी पांच तरह की पूजन सामग्री से पूजा करने और षोडशोपचार यानी 16 तरह की सामग्री से पूजा करने। इसमें गंध, पुष्प, हल्दी, कुंकू, माला, नैवेद्य आदि अर्पित करते हैं।
5. इसके बाद गायत्री मंत्र का 108 बार जप करें।
6 . पूजा जप के बाद माता की आरती उतारते हैं।
7. आरती के बाद प्रसाद का वितरण करें।
संध्याकाल पूजा में करें ये पाठ, सभी पीड़ाओं से मिलेगी मुक्ति
30 May, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
आज सोमवार का दिन हैं और ये दिन शिव पूजा को समर्पित हैं इस दिन भक्त भोलेनाथ की कृपा पाने के लिए उनकी विधिवत पूजा करते हैं और व्रत भी रखते हैं ऐसे में अगर आप भी शिव शंकर की संध्याकाल आराधना कर रहे हैं तो उनके प्रिय शिव कवच का पाठ जरूर करें।
मान्यता है कि श्री अमोघ शिव कवच का सच्चे मन से पाठ करने भोलेबाबा प्रसन्न हो जाते हैं और अपने भक्तों पर कृपा बरसाते हैं साथ ही उनकी सभी पीड़ाओं का नाश करते हैं तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं शिव वकच पाठ।
श्री शिव कवच-
विनियोग:
ॐ अस्य श्रीशिवकवचस्तोत्रमंत्रस्य ब्रह्मा ऋषि: अनुष्टप् छन्द:। श्रीसदाशिवरुद्रो देवता। ह्रीं शक्ति :। रं कीलकम्। श्रीं ह्री क्लीं बीजम्। श्रीसदाशिवप्रीत्यर्थे शिवकवचस्तोत्रजपे विनियोग:।
फलश्रुतिः ॥
ऋषभ उवाच
इत्येतत्कवचं शैवं वरदं व्याहृतं मया ।
सर्वबाधाप्रशमनं रहस्यं सर्वदेहिनाम् ॥ १ ॥
यः सदा धारयेन्मर्त्यः शैवं कवचमुत्तमम् ।
न तस्य जायते क्वापि भयं शम्भोरनुग्रहात् ॥ २ ॥
क्षीणायुः प्राप्तमृत्युर्वा महारोगहतोऽपि वा ।
सद्यः सुखमवाप्नोति दीर्घमायुश्च विन्दति ॥ ३ ॥
सर्वदारिद्र्यशमनं सौमाङ्गल्यविवर्धनम् ।
यो धत्ते कवचं शैवं स देवैरपि पूज्यते ॥ ४ ॥
महापातकसङ्घातैर्मुच्यते चोपपातकैः ।
देहान्ते मुक्तिमाप्नोति शिववर्मानुभावतः ॥ ५ ॥
त्वमपि श्रद्धया वत्स शैवं कवचमुत्तमम् ।
धारयस्व मया दत्तं सद्यः श्रेयो ह्यवाप्स्यसि ॥ ६ ॥
सूत उवाच ।
इत्युक्त्वा ऋषभो योगी तस्मै पार्थिवसूनवे ।
ददौ शङ्खं महारावं खड्गं चारिनिषूदनम् ॥ ७ ॥
पुनश्च भस्म संमन्त्र्य तदङ्गं परितोऽस्पृशत् ।
गजानां षट्सहस्रस्य द्विगुणस्य बलं ददौ ॥ ८ ॥
भस्मप्रभावात्सम्प्राप्त बलैश्वर्य धृतिस्मृतिः ।
स राजपुत्रः शुशुभे शरदर्क इव श्रिया ॥ ९ ॥
तमाह प्राञ्जलिं भूयः स योगी नृपनन्दनम् ।
एष खड्गो मया दत्तस्तपोमन्त्रानुभावतः ॥ १० ॥
शितधारमिमं खड्गं यस्मै दर्शयसि स्फुटम् ।
स सद्यो म्रियते शत्रुः साक्षान्मृत्युरपि स्वयम् ॥ ११ ॥
अस्य शङ्खस्य निर्ह्रादं ये शृण्वन्ति तवाहिताः ।
ते मूर्छिताः पतिष्यन्ति न्यस्तशस्त्रा विचेतनाः ॥ १२ ॥
खड्गशङ्खाविमौ दिव्यौ परसैन्यविनाशिनौ ।
आत्मसैन्यस्वपक्षाणां शौर्यतेजोविवर्धनौ ॥ १३ ॥
एतयोश्च प्रभावेन शैवेन कवचेन च ।
द्विषट्सहस्रनागानां बलेन महतापि च ॥ १४ ॥
भस्मधारणसामर्थ्याच्छत्रुसैन्यं विजेष्यसि ।
प्राप्य सिंहासनं पित्र्यं गोप्ताऽसि पृथिवीमिमाम् ॥ १५ ॥
इति भद्रायुषं सम्यगनुशास्य समातृकम् ।
ताभ्यां सम्पूजितः सोऽथ योगी स्वैरगतिर्ययौ ॥ १६ ॥
इति श्रीस्कान्दपुराणे ब्रह्मोत्तरखण्डे श्रीशिवकवच स्तोत्रप्रभाववर्णनं नाम द्वादशोऽध्यायः ।
कब है जगन्नाथ रथ यात्रा, जानें तिथि, समय और महत्व
30 May, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
Jagannath Rath Yatra 2023: पुरी जगन्नाथ रथ यात्रा एक महत्वपूर्ण त्योहार है जिसे हिंदू भारत में मनाते हैं. यह पुरी, ओडिशा के अलावा भारत के अन्य शहरों में भी धूम धाम के साथ मनाया जाता है.
इस त्योहार में एक भव्य जुलूस निकाला जाता है. जिसमें भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और उनकी बहन सुभद्रा की मूर्तियों को रथ या रथ में ले जाना शामिल होता है, जिसे भक्तों द्वारा खींचा जाता है. यह त्योहार आषाढ़ मास (जून-जुलाई) में शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को होता है.
त्योहार में भाग लेने से सौभाग्य और आशीर्वाद
भक्तों का मानना है कि त्योहार में भाग लेने से सौभाग्य और आशीर्वाद मिलता है. ये त्योहार सभी क्षेत्रों के लोगों को एक साथ लाता है. इस त्योहाचर को रथ यात्रा भी कहा जाता है. बता दें कि रथ यात्रा के पहले ही रथ के सजावट का काम शुरू हो जाता है. और तीनों रथों को भक्तों द्वारा रस्सियों से खींचा जाता है.
45 फीट ऊंचा है भगवान जगन्नाथ का रथ
भगवान जगन्नाथ का रथ 45 फीट ऊंचा है, इसमें 16 पहिए हैं और इसका नाम नंदीघोष है. जबकि भगवान बलभद्र का रथ 14 पहियों वाला 45.6 फीट ऊंचा है और इसका नाम तालध्वज है. वहीं, माता सुभद्रा के रथ को देवदलन कहा जाता है और इसमें 12 पहिए होते हैं. यह 44.6 फीट ऊंचा है. जगन्नाथ रथ यात्रा पूरे 9 दिनों का उत्सव है.
Jagannath Rath Yatra 2023: कब है रथ यात्रा
2023 में जगन्नाथ रथ यात्रा 20 जून को रात 22:04 बजे शुरू होगी. इसकी समाप्ति 21 जून को रात 19:09 बजे होगी.
जगन्नाथ रथ यात्रा की रस्में
जगन्नाथ रथ यात्रा भगवान जगन्नाथ जी के मंदिर से 3 किमी दूर उनकी मौसी के घर तक की यात्रा की याद दिलाती है. आइए जानें इस त्योहार की कुछ रस्में:
रथों के निर्माण के साथ ही तैयारियां शुरू हो जाती हैं, भक्त जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के लिए 3 विशाल रथों का निर्माण करते हैं.
रथ यात्रा के दिन, तीनों देवताओं की मूर्तियों को उनके मंदिरों से ले जाया जाता है और उनके रथों पर रखा जाता है. भक्त रथों को रस्सियों से खींचते हैं और देवता के नामों का जाप करते हैं.
पुरी की सड़कों पर रथा यात्रा को देखने के लिए दूर दराज से लोग जुटते है. इस दौरान शंख, ढोल और झांझ की आवाज से पूरा शहर गूंज उठता है.
रथ विभिन्न स्थानों पर रुकते हैं, जहां भक्त देवताओं का आशीर्वाद लेते हैं और उन्हें फल, मिठाई और फूल जैसी चीजे भेंट करते हैं.
रथ यात्रा को गुंडिचा मंदिर तक पहुंचने में एक दिन लगता है, और देवता यहां 7 दिनों तक रहते हैं. घर लौटने में उन्हें एक दिन का समय लगता है. यह यात्रा गुंडिचा यात्रा या नव दिन यात्रा (9-दिवसीय यात्रा), या घोसा यात्रा है.
9वें दिन की वापसी यात्रा को बहुदा यात्रा कहा जाता है. इस वापसी यात्रा के दौरान, जगन्नाथ का रथ मौसी मां मंदिर (देवता की चाची) में रुकता है. इसके अलावा, देवता को पोडा पीठा, एक केक की पेशकश की जाती है जो उनका पसंदीदा है.
भक्त जगन्नाथ रथ यात्रा में भाग लेने से पहले खुद को शुद्ध करने के लिए महोदधि की पवित्र नदी में डुबकी लगाते हैं.
जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान लोग अपने बेहतरीन कपड़े और गहने पहनते हैं.
जगन्नाथ रथ यात्रा में भाग लेने और रथों को खींचने से जगन्नाथ का सौभाग्य और आशीर्वाद प्राप्त होता है.
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (30 मई 2023)
30 May, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि - सफलता के साधन जुटायेंगे, समय की अनुकूलता से लाभांवित होंगे, चिन्ता होगी।
वृष राशि - विशेष कार्य स्थगित रखें, अचानक घटना का शिकार होने से बचें, समय का ध्यान रखें।
मिथुन राशि - अधिकारियों से लाभांवित होंगे, विवाद, क्लेश संभव है, समय पर कार्य करें।
कर्क राशि - विरोधी प्रबल होंगे, परेशान होने की स्थिति बनेगी, जल्दबाजी से हानि होगी।
सिंह राशि - भाग्य का सितारा प्रबल होगा, धन का व्यय होगा, सुख वृद्धि, कार्य वृद्धि होगी।
कन्या राशि - संतान से सुख तथा सम्पन्नता के योग बनेंगे तथा मान-प्रतिष्ठा बढ़ेगी।
तुला राशि - कार्य कुशलता से संतोष होगा, बिगड़े कार्य बनेंगे, मित्रों से परेशानी बनेगी।
वृश्चिक राशि - सामाजिक कार्यों में मान-प्रतिष्ठा तथा कुटुम्ब की समस्या जटिल होगी।
धनु राशि - स्त्री कष्ट तथा समय और धन नष्ट होगा तथा विरोधी समस्या पैदा करेंगे।
मकर राशि - षड़यंत्र व कष्ट का सामना करना पड़ेगा, कुटुम्ब से लाभ होगा, धैर्य पूर्वक कार्य करें।
कुंभ राशि - षड़यंत्रकारी तथा विरोधी विवाद करने के लिये उग्र होंगे, समझदारी से विवाद को निपटा लें।
मीन राशि - धन लाभ, आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा, व्यवधान होगा, चिन्ता बनेगी।
मान-सम्मान में वृद्धि कराएगा सूर्यदेव से जुड़ा ये उपाय
29 May, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
रविवार का दिन हैं जो सूर्यदेव की आराधना के लिए उत्तम माना जाता हैं। इस दिन हर कोई सूर्य देव की भक्ति में लीन रहता हैं इस दिन भगवान श्री सूर्यदेव की विधिवत पूजा और व्रत करने से साधक को उत्तम फलों की प्राप्ति होती हैं।
इसके साथ ही अगर हर रविवार श्री सूर्य चालीसा का तन मन से किया जाए तो भगवान अतिशीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं और अपनी कृपा बरसाते हैं जिससे साधक को समाज में मान सम्मान की प्राप्ति होती हैं तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं संपूर्ण सूर्य चालीसा।
श्री सूर्य देव चालीसा ॥
॥दोहा॥
कनक बदन कुण्डल मकर, मुक्ता माला अङ्ग,
पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के सङ्ग॥
॥चौपाई॥
जय सविता जय जयति दिवाकर,
सहस्त्रांशु सप्ताश्व तिमिरहर॥
भानु पतंग मरीची भास्कर,
सविता हंस सुनूर विभाकर॥ 1॥
विवस्वान आदित्य विकर्तन,
मार्तण्ड हरिरूप विरोचन॥
अम्बरमणि खग रवि कहलाते,
वेद हिरण्यगर्भ कह गाते॥ 2॥
सहस्त्रांशु प्रद्योतन, कहिकहि,
मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि॥
अरुण सदृश सारथी मनोहर,
हांकत हय साता चढ़ि रथ पर॥3॥
मंडल की महिमा अति न्यारी,
तेज रूप केरी बलिहारी॥
उच्चैःश्रवा सदृश हय जोते,
देखि पुरन्दर लज्जित होते॥4
मित्र मरीचि, भानु, अरुण, भास्कर,
सविता सूर्य अर्क खग कलिकर॥
पूषा रवि आदित्य नाम लै,
हिरण्यगर्भाय नमः कहिकै॥5॥
द्वादस नाम प्रेम सों गावैं,
मस्तक बारह बार नवावैं॥
चार पदारथ जन सो पावै,
दुःख दारिद्र अघ पुंज नसावै॥6॥
नमस्कार को चमत्कार यह,
विधि हरिहर को कृपासार यह॥
सेवै भानु तुमहिं मन लाई,
अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई॥7॥
बारह नाम उच्चारन करते,
सहस जनम के पातक टरते॥
उपाख्यान जो करते तवजन,
रिपु सों जमलहते सोतेहि छन॥8॥
धन सुत जुत परिवार बढ़तु है,
प्रबल मोह को फंद कटतु है॥
अर्क शीश को रक्षा करते,
रवि ललाट पर नित्य बिहरते॥9॥
सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत,
कर्ण देस पर दिनकर छाजत॥
भानु नासिका वासकरहुनित,
भास्कर करत सदा मुखको हित॥10॥
ओंठ रहैं पर्जन्य हमारे,
रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे॥
कंठ सुवर्ण रेत की शोभा,
तिग्म तेजसः कांधे लोभा॥11॥
पूषां बाहू मित्र पीठहिं पर,
त्वष्टा वरुण रहत सुउष्णकर॥
युगल हाथ पर रक्षा कारन,
भानुमान उरसर्म सुउदरचन॥12॥
बसत नाभि आदित्य मनोहर,
कटिमंह, रहत मन मुदभर॥
जंघा गोपति सविता बासा,
गुप्त दिवाकर करत हुलासा॥13॥
विवस्वान पद की रखवारी,
बाहर बसते नित तम हारी॥
सहस्त्रांशु सर्वांग सम्हारै,
रक्षा कवच विचित्र विचारे॥14॥
अस जोजन अपने मन माहीं,
भय जगबीच करहुं तेहि नाहीं ॥
दद्रु कुष्ठ तेहिं कबहु न व्यापै,
जोजन याको मन मंह जापै॥15॥
अंधकार जग का जो हरता,
नव प्रकाश से आनन्द भरता॥
ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाही,
कोटि बार मैं प्रनवौं ताही॥
मंद सदृश सुत जग में जाके,
धर्मराज सम अद्भुत बांके॥16॥
धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा,
किया करत सुरमुनि नर सेवा॥
भक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों,
दूर हटतसो भवके भ्रम सों॥17॥
परम धन्य सों नर तनधारी,
हैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी॥
अरुण माघ महं सूर्य फाल्गुन,
मधु वेदांग नाम रवि उदयन॥18॥
भानु उदय बैसाख गिनावै,
ज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै॥
यम भादों आश्विन हिमरेता,
कातिक होत दिवाकर नेता॥19॥
अगहन भिन्न विष्णु हैं पूसहिं,
पुरुष नाम रविहैं मलमासहिं॥20॥
॥दोहा॥
भानु चालीसा प्रेम युत, गावहिं जे नर नित्य,
सुख सम्पत्ति लहि बिबिध, होंहिं सदा कृतकृत्य॥
लाल-पीले कपड़े में बांध कर रखें सुपारी करें ये काम, भर जाएगी खाली तिजोरी
29 May, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
शास्त्रों में सुपारी को गौरी-गणेश का रूप माना गया है। पूजा में सबसे ज्यादा सुपारी का इस्तेमाल किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र में पूजा के साथ-साथ सुपारी के कुछ उपाय बताए गए हैं।
ऐसा करने से कुंडली में ग्रहों की दशा और दिशा के अशुभ प्रभाव को कम किया जा सकता है। यदि किसी व्यक्ति के वैवाहिक जीवन में बाधाएं आ रही हैं, करियर में उन्नति नहीं हो रही है तो ऐसे व्यक्ति सुपारी से जुड़े इन उपायों को करके सभी समस्याओं से छुटकारा पा सकते हैं। आइए जानते हैं सुपारी के कुछ उपाय।
धन प्राप्ति के लिए सुपारी से करें यह उपाय
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि कोई व्यक्ति धन की समस्या से परेशान है तो उसे गणेश जी की विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए और पूजा में सुपारी का प्रयोग करना चाहिए। अब इस सुपारी को लाल या पीले कपड़े में बांधकर तिजोरी में रख दें। यह धन के मार्ग खोलेगा। यदि कोई व्यक्ति किसी जरूरी काम से जा रहा है और चाहता है कि उसका काम पूरा हो जाए। इसलिए एक लाल कपड़े में एक सुपारी और दो लौंग बांधकर भगवान गणेश के सामने रख दें। अब इस कपड़े को अपने साथ ले जाओ। आपका काम हो जाएगा।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अगर आप लंबे समय से काम को लेकर परेशान हैं. अगर आपको लाख कोशिशों के बाद भी सफलता नहीं मिल रही है तो बुधवार के दिन सुपारी का सेवन करें। इसमें घी और सिंदूर डालकर स्वास्तिक बनाएं। अब एक सुपारी लेकर उसमें कलाव लपेट दें। इस सुपारी को एक सुपारी पर रख दें। अब इसे लाल कपड़े में लपेट कर मंदिर में रख दें और रोजाना इसकी पूजा करें। ऐसा करने से आपका काम शुरू हो जाएगा और सभी समस्याओं का समाधान हो जाएगा। कारोबार में लगातार घाटा हो रहा हो तो शनिवार की रात को पीपल के पेड़ पर एक रुपये का सिक्का और सुपारी चढ़ाएं। अगली सुबह इसे घर लाकर तिजोरी में रख दें। इस उपाय को करने से व्यापार में तरक्की होगी।
दसों दिशाओं के कष्टों को हरती हैं मां गंगा, जानें कब हुआ था मां गंगा का अवतरण
29 May, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में गंगा को मां का दर्जा दिया गया है. ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को हर वर्ष गंगा दशहरा का पावन पर्व मनाया जाता है.
इस दिन लोग गंगा नदी में स्नान कर दान-पुण्य करते हैं. धार्मिक मान्यता है कि ऐसा करने से हर तरह के पाप कट जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है. मां गंगा के आशीर्वाद से जीवन में सुख-शांति का आगमन होता है.
आरती का आशय ही धारण करने से है. संतान की सत-आचरण एवं असत-आचरण सबको सहती, स्वीकारने वाली जननी की तरह मां गंगा का जीवन यद्यपि सहज और सरल नहीं रहा है, लेकिन हर परिस्थितियों में वह निर्मलता, शीतलता का परिवेश बनाते सम-विषम भूमि और पर्वतों से अविरल प्रवाहित इसलिए होती रहती है, क्योंकि वह प्रतिकूलताओं के परिवार के मुखिया भगवान शंकर की अर्धांगिनी जो ठहरी.
कब हुआ मां गंगा का अवतरण
मां गंगा का अवतरण ही उस काल में हुआ, जब राजा सगर के वंशज श्रापित थे. मुक्ति के लिए देवनदी का उन्हें अवलंबन चाहिए था. कथा है कि सगर के शापित वंशजों की मुक्ति के लिए उसी कुल के राजा भगीरथ कठोर तपस्या करते हैं. भगीरथ कोई व्यक्ति नहीं, बल्कि लोकजीवन के हितार्थ विषमताओं से संघर्ष करने वाली व्यवस्था का द्योतक है. किसी एक नहीं, बल्कि साठ हजार तड़पते पूर्वजों के लिए तपस्या का आशय ही है कि एक पूरे समाज की विषमताओं को समता में बदलने के लिए किया गया आंदोलन. इस लोक-कल्याण के भावों पर मुग्ध होते हैं महादेव. असुरों के राजा बलि के अहंकार को मस्तिष्क के चिंतन से रसातल में करते ही भगवान विष्णु का रूप विराट होता है और ढाई पग में एक पग ब्रह्मलोक जाता है. ब्रह्मलोक जाते समय विष्णु के चरण पर अंतरिक्ष में विद्यमान विषाणुओं द्वारा हमला भी होता है. ये पर्यावरण को क्षति पहुंचाने वाले जीवाणुओं की प्रवृत्ति ही होती है संकमण फैलाना. संक्रमित और घायल चरण को ब्रह्मलोक में देवमंडल द्वारा प्रक्षालित तथा संक्रमण-मुक्त किया जाता है. ब्रह्मलोक में जल का आधिक्य होने पर ब्रह्मा अपने कमंडल में ले लेते हैं. ब्रह्मा का कमंडल है, तो जल का विषाणु-तत्व तो नष्ट होना ही था. इस तरह मां गंगा का अस्तित्व ब्रह्मलोक में ही विषमताओं को दूर करने से ही होता है. यही एक विषमता नहीं, बल्कि उन्हें महादेव के कोप की विषमता झेलनी पड़ी. भगीरथ की तपस्या पर गंगा को पृथ्वी पर आने का आदेश होता है. वह आना इसलिए नहीं चाहती थी कि पृथ्वी पर गंगा में विषैले मन और तन के साथ अन्यान्य प्रदूषणों को उन्हें झेलना होगा. इनकार कर दिया और स्पष्ट किया कि पृथ्वी पर यदि गयी, तो हाहाकार मचा देंगी. इस पर उन्हें भगीरथ पर रीझे महादेव के क्रोध की तपिश झेलनी पड़ी.
शिव जी के गंगा को क्यों जटाओं में रखा था
शिव-तांडव स्त्रोत के अनुसार, शिव की जटाओं में गंगा अग्नि ज्वाला की तरह धक-धक-धक कर रही. क्रोध की आग की तरह निकल रही हैं. शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में उलझा लिया और भगीरथ के साथ जाने की आज्ञा दी. यह दिन भी प्रतिकूलताओं वाला था. ज्येष्ठ माह की तपिश का दिन. शुक्ल पक्ष की दशमी. जल के त्राहि-त्राहि का वक्त, लेकिन वह दिन था मंगलवार. यानी पृथ्वी पर मंगल करने के लिए विष्णु के ढाई पग के एवज में गंगोत्री से गंगासागर तक ढाई हजार किमी तक यात्रा के संकल्प का दिन, जिसे मां गंगा स्वीकार करती हैं. मां गंगा ने शिव की जटा से निकलने के पूर्व सहस्त्रों ऋषियों के साथ भगीरथ को देखती हैं, तो वे निश्चिंत भी होती हैं कि नेतृत्व के चिंतन में पवित्रता रहे तो किसी भी प्रदूषण को वह अपनी अविरलता से दूर कर लेंगी.
एक कथा देवी-पुराण की यह भी है कि भगवान शंकर के विवाह में अनेक विसंगतियां आयीं. विवाह की जानकारी देने शंकरजी विष्णुजी के पास गये, तो भगवान विष्णु ने वातावरण को सरस बनाने के लिए कुछ गीत-संगीत सुनाने के लिए कहा. इस पर शंकर जी ने गीत गाना शुरू किया तब विष्णुजी आनंद में इतने द्रवीभूत हुए कि वैकुंठ में जलप्लावन होने लगा, जिसे ब्रह्मा ने अपने कमंडल में एकत्र कर लिया.
कथा से स्पष्ट है कि तनाव के दौर में सांगीतिक माधुर्य की योजना आवश्यक है. मन प्रसन्न होता है तो तन का कष्ट झेलने की सामर्थ्य पैदा होती है. शरीर के रसायन एवं हार्मोंस अनुकूल होते हैं. अगर वास्तविकता देखी जाये, तो धरती प्रसन्नता और विषमताओं दोनों की धरती है. सत्ययुग में विष्णु नारद के श्राप से ग्रसित होते हैं, तो त्रेता में श्रीराम अपनी ही विमाता की कुटिल-नीति से कष्ट पाते हैं और द्वापर में श्रीकृष्ण की वाल्यावस्था मामा कंस को चुनौती देने और आगे चलकर कुरुक्षेत्र में आपसी परिजनों के महाभारत में मारकाट कराने के लिए केंद्रीकृत भूमिका के निर्वहन को भी दर्शाती है.
यह तो तय है कि जीवन द्वंद्व भरा है. मधुवन-सी खुशबू के साथ पतझड़ में सिर्फ पेड़ों का कंकाल दिखता है. वर्तमान दौर भी भगीरथ के पूर्वजों के शाप की तरह का ही युग है. पूर्वजों की तृप्ति के लिए भटकते भगीरथ की तरह चतुर्दिक जनसैलाब के रूप में कोने-कोने में भटकते लोगों के समूह को क्या कहा जाये? जनता के समूह में ही जनार्दन का रूप देखने का ऋषियों का चिंतन रहा है. लग रहा कि यह विष्णु जी का वही विराट पहला पग है, जिसे ढाई पग चलना है. ढाई माह से चलते ये पग यह भी दर्शाता है कि गंगा की तरह विसंगतियों से लड़ते हुए जब पुनः व्यवस्थित होंगे जनसमूह के ये पग तो अदभुत 'पग-पुराण' बन जायेगा.
बचना चाहते हैं मुसीबतों से तो निर्जला एकादशी पर भूलकर भी न करें ये काम
29 May, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
धर्म ग्रंथों में एकादशी तिथि का विशेष महत्व बताया गया है। मान्यता है कि इस दिन व्रत-उपवास करने और भगवान विष्णु की पूजा करने से हर तरह का सुख मिलता है और परेशानियों से मुक्ति मिलती है।
ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi 2023) को साल की सबसे बड़ी एकादशी कहते हैं। इस बार ये एकादशी 31 मई, बुधवार को है। आगे जानिए इस दिन क्या करें-क्या नहीं.
तामसिक भोजन न करें
एकादशी तिथि को धर्म ग्रंथों में बहुत ही पवित्र माना गया है, इसलिए इस दिन भूलकर तामसिक भोजन जैसे मांस, अंडे आदि का सेवन न करें। साथ ही साथ प्याज, लहसुन और गर्म मसालों से बने भोजन का भी त्याग करें। ऐसा भोजन करने से शरीर में उत्तेजना पैदा होती है जो गलत काम करने के लिए प्रेरित करती है।
किसी भी तरह का नशा न करें
एकादशी तिथि पर किसी भी तरह का नशा जैसे शराब, भांग आदि न करें। नशा करने के बाद व्यक्ति को अच्छे-बुरे का भान नहीं रहता और वो ऐसे काम भी कर बैठता है जो उसे नहीं करना चाहिए। इसलिए भूलकर भी निर्जला एकादशी पर किसी भी तरह का नशा न करें।
ब्रह्मचर्य का पालन करें
निर्जला एकादशी पर ब्रह्मचर्य का पालन करें यानी पत्नी से दूर रहें। धर्म ग्रंथों के अनुसार, एकादशी तिथि पर सात्विक आचरण करना चाहिए। इसलिए इस दिन मन, वचन और कर्म से ब्रह्मचर्य का पालन करें। यानी न तो बुरे विचार मन में लाएं और न हीं किसी से भी इस तरह की कोई बात करें।
किसी पर गुस्सा न करें
निर्जला एकादशी पर सात्विक रहते हुए दिन बिताएं। इसके लिए किसी पर भी गुस्सा न करें। अगर किसी से कोई गलती हो भी जाए तो उसे माफ कर दें। साथ ही किसी के लिए अपशब्दों का उपयोग न करें। जो व्यक्ति निर्जला एकादशी पर गलत आचरण करता है, उसे बुरे परिणाम भुगतने पड़ते हैं।
चावल न खाएं
वैसे तो निर्जला एकादशी पर उपवास रखने का नियम है लेकिन जो लोग उपवास न करें, उन्हें इस दिन चावल खाने से भी बचना चाहिए। एकादशी तिथि पर चावल खाना महापाप माना गया है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, एकादशी तिथि पर चावल खाने से अगले जन्म में व्यक्ति को कीड़े की योनि मिलती है।
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (29 मई 2023)
29 May, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि - इष्ट मित्र सुखवर्धक होगा, व्यावसायिक क्षमता में विशेष वृद्धि होगी ध्यान दें।
वृष राशि - सतर्कता से कार्य करें, मनोबल उत्साहवर्धक होगा, कार्य उत्तम बनेंगे ध्यान दें।
मिथुन राशि - कार्य कुशलता से संतोष होगा, समृद्धि के साधन बनेंगे, योजना फलीभूत होगी।
कर्क राशि - भाग्य की प्रबलता-प्रभुत्व वृद्धि तथा शालीनतापूर्ण मेल-मिलाप अवश्य होगा।
सिंह राशि - अधिकारी वर्ग से सफलत के साधन फलप्रद होंगे, अचानक शुभ समाचार मिलेगा।
कन्या राशि - योजनायें फलीभूत होंगी, सफलता से अधिकारी वर्ग से लाभ होगा।
तुला राशि - विघटनकारी तत्व परेशान करेंगे, अग्नि-चोटादि का भय बना रहेगा।
वृश्चिक राशि - तनाव, क्लेश व अशांति, धन का व्यर्थ व्यय होगा, विरोधी तत्व परेशान करेंगे।
धनु राशि - दैनिक समृद्धि के साधन बनेंगे, कार्य योजना फलीभूत होगी, कार्य विशेष से लाभ होगा।
मकर राशि - स्त्री शरीर कष्ट, चिन्ता, व्यग्रता, मानसिक बेचैनी तथा उद्विघ्नता बनेगी।
कुंभ राशि - दैनिक कार्यगति में बाधा होगी, कार्य अवरोध होगा, समय का ध्यान रखें।
मीन राशि - दैनिक कार्यगति में अनुकूलता से कार्ययोजना अवश्य बनेगी ध्यान दें।
ऐसे कमाए धन का विनाश होना तय, आज की चाणक्य नीति
28 May, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
आचार्य चाणक्य को महान ज्ञानियों और विद्वानों में गिना जाता हैं इनकी नीतियां देश ही नहीं बल्कि दुनियाभर में प्रसिद्ध हैं जिसे चाणक्य नीति के नाम से जाना जाता हैं आचार्य चाणक्य ने अपने जीवन के अनुभवों को नीतिशास्त्र में पिरोया हैं जिसका अनुसरण अगर कोई मनुष्य कर लेता है तो उसका पूरा जीवन सरल और सफल हो जाता हैं।
चाणक्य ने व्यक्ति के जीवन से जुड़े हर पहलु पर नीतियां बनाई हैं। चाणक्य ने धन को लेकर ऐसी बातें बताई हैं जिसके अनुसार व्यक्ति की धन संपत्ति का विनाश होना तय होता हैं तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा धन से जुड़ी चाणक्य नीति बता रहे हैं तो आइए जानते हैं।
धन से जुड़ी चाणक्य नीति-
आचार्य चाणक्य की नीति अनुसार जो मनुष्य चोरी, जुआ, अन्याय या किसी को धोखा देकर धन अर्जित करता है तो ऐसा धन शीघ्र ही नष्ट हो जाता है इसलिए मनुष्य को कभी भी गलत तरीको से धन नहीं कमाना चाहिए। इसके अलावा गरीबी, दुख, बंधन और बुरी आदतें ये भी मनुष्य के कर्मों का ही फल होता हैं कहते हैं जिस तरह से बीज बोया जाता हैं उसी तरह का फल भी मिलता हैं इसलिए हमेशा अच्छे कर्म ही करने चाहिए।
चाणक्य नीति के अनुसार किसी भी मनुष्य को धन से हीन नहीं समझना चाहिए। क्योंकि मनुष्य अज्ञान से हीन होता हैं धन से नहीं। जिस मनुष्य के पास विद्या है वह धनवान और ज्ञानवान होता हैं लेकिन जिसके बार विद्या नहीं हैं वही धनहीन कहलाता हैं ऐसे में आपको जहां भी ज्ञान मिले उसे अर्जित जरूर कर लें।
निर्जला एकादशी पर करें ये काम, होगी मनोवांछित फल की प्राप्ति
28 May, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में वैसे तो कई सारे व्रत त्योहार पड़ते हैं और सभी का अपना महत्व भी होता हैं मगर एकादशी का व्रत बेहद ही खास माना जाता हैं जो श्री हरि विष्णु की पूजा को समर्पित होता हैं।
इस दिन भक्त उपवास रखकर भगवान विष्णु की आराधना करते हैं मान्यता है कि इस दिन व्रत पूजन करने से साधक के सभी पापों का नाश हो जाता हैं एकादशी की तिथि जगत के पालनहार श्री हरि विष्णु की प्रिय तिथियों में से एक मानी जाती हैं भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की आराधना करना उत्तम माना जाता हैं।
निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता हैं इस बार निर्जला एकादशी का व्रत 31 मई को किया जाएगा। इस दिन पूजा पाठ और व्रत के अलावा अगर भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए श्री नारायण स्तोत्रम् का पाठ किया जाए तो भगवान जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं और मनोवांछित फल प्रदान करते हैं तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं ये चमत्कारी पाठ।
श्री नारायण स्तोत्रम्-
अस्य श्रीनारायणहृदयस्तोत्रमन्त्रस्य भार्गव ऋषिः, अनुष्टुप्छन्दः, श्रीलक्ष्मीनारायणो देवता, ओं बीजं, नमश्शक्तिः, नारायणायेति कीलकं, श्रीलक्ष्मीनारायण प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ।
करन्यासः ।
ओं नारायणः परं ज्योतिरिति अङ्गुष्ठाभ्यां नमः ।
नारायणः परं ब्रह्मेति तर्जनीभ्यां नमः ।
नारायणः परो देव इति मध्यमाभ्यां नमः ।
नारायणः परं धामेति अनामिकाभ्यां नमः ।
नारायणः परो धर्म इति कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
विश्वं नारायण इति करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।
अङ्गन्यासः ।
नारायणः परं ज्योतिरिति हृदयाय नमः ।
नारायणः परं ब्रह्मेति शिरसे स्वाहा ।
नारायणः परो देव इति शिखायै वौषट् ।
नारायणः परं धामेति कवचाय हुम् ।
नारायणः परो धर्म इति नेत्राभ्यां वौषट् ।
विश्वं नारायण इति अस्त्राय फट् ।
दिग्बन्धः ।
ओं ऐन्द्र्यादिदशदिशं ओं नमः सुदर्शनाय सहस्राराय हुं फट् बध्नामि नमश्चक्राय स्वाहा । इति प्रतिदिशं योज्यम् ।
अथ ध्यानम् ।
उद्यादादित्यसङ्काशं पीतवासं चतुर्भुजम् ।
शङ्खचक्रगदापाणिं ध्यायेल्लक्ष्मीपतिं हरिम् ॥ १ ॥
त्रैलोक्याधारचक्रं तदुपरि कमठं तत्र चानन्तभोगी
तन्मध्ये भूमिपद्माङ्कुशशिखरदलं कर्णिकाभूतमेरुम् ।
तत्रस्थं शान्तमूर्तिं मणिमयमकुटं कुण्डलोद्भासिताङ्गं
लक्ष्मीनारायणाख्यं सरसिजनयनं सन्ततं चिन्तयामि ॥ २ ॥
अथ मूलाष्टकम् ।
ओम् ॥ नारायणः परं ज्योतिरात्मा नारायणः परः ।
नारायणः परं ब्रह्म नारायण नमोऽस्तु ते ॥ १ ॥
नारायणः परो देवो धाता नारायणः परः ।
नारायणः परो धाता नारायण नमोऽस्तु ते ॥ २ ॥
नारायणः परं धाम ध्यानम् नारायणः परः ।
नारायण परो धर्मो नारायण नमोऽस्तु ते ॥ ३ ॥
नारायणः परोवेद्यः विद्या नारायणः परः ।
विश्वं नारायणः साक्षान्नारायण नमोऽस्तु ते ॥ ४ ॥
नारायणाद्विधिर्जातो जातो नारायणाद्भवः ।
जातो नारायणादिन्द्रो नारायण नमोऽस्तु ते ॥ ५ ॥
रविर्नारायणस्तेजः चन्द्रो नारायणो महः ।
वह्निर्नारायणः साक्षान्नारायण नमोऽस्तु ते ॥ ६ ॥
नारायण उपास्यः स्याद्गुरुर्नारायणः परः ।
नारायणः परो बोधो नारायण नमोऽस्तु ते ॥ ७ ॥
नारायणः फलं मुख्यं सिद्धिर्नारायणः सुखम् ।
सेव्योनारायणः शुद्धो नारायण नमोऽस्तु ते ॥ ८ ॥
अथ प्रार्थनादशकम् ।
नारायण त्वमेवासि दहराख्ये हृदि स्थितः ।
प्रेरकः प्रेर्यमाणानां त्वया प्रेरितमानसः ॥ ९ ॥
त्वदाज्ञां शिरसा धृत्वा जपामि जनपावनम् ।
नानोपासनमार्गाणां भवकृद्भावबोधकः ॥ १० ॥
भावार्थकृद्भवातीतो भव सौख्यप्रदो मम ।
त्वन्मायामोहितं विश्वं त्वयैव परिकल्पितम् ॥ ११ ॥
त्वदधिष्ठानमात्रेण सा वै सर्वार्थकारिणी ।
त्वमेतां च पुरस्कृत्य सर्वकामान्प्रदर्शय ॥ १२ ॥
न मे त्वदन्यस्त्रातास्ति त्वदन्यन्न हि दैवतम् ।
त्वदन्यं न हि जानामि पालकं पुण्यवर्धनम् ॥ १३ ॥
यावत्सांसारिको भावो मनस्स्थो भावनात्मकः ।
तावत्सिद्धिर्भवेत्साध्या सर्वथा सर्वदा विभो ॥ १४ ॥
पापिनामहमेवाग्र्यो दयालूनां त्वमग्रणीः ।
दयनीयो मदन्योऽस्ति तव कोऽत्र जगत्त्रये ॥ १५ ॥
त्वयाहं नैव सृष्टश्चेन्न स्यात्तव दयालुता ।
आमयो वा न सृष्टश्चेदौषधस्य वृथोदयः ॥ १६ ॥
पापसङ्घपरिश्रान्तः पापात्मा पापरूपधृत् ।
त्वदन्यः कोऽत्र पापेभ्यस्त्रातास्ति जगतीतले ॥ १७ ॥
त्वमेव माता च पिता त्वमेव
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।
त्वमेव सेव्यश्च गुरुस्त्वमेव
त्वमेव सर्वं मम देव देव ॥ १८ ॥
प्रार्थनादशकं चैव मूलाष्टकमतः परम् ।
यः पठेच्छृणुयान्नित्यं तस्य लक्ष्मीः स्थिरा भवेत् ॥ १९ ॥
नारायणस्य हृदयं सर्वाभीष्टफलप्रदम् ।
लक्ष्मीहृदयकं स्तोत्रम् यदि चेत्तद्विनाकृतम् ॥ २० ॥
तत्सर्वं निष्फलं प्रोक्तं लक्ष्मीः क्रुद्ध्यति सर्वदा ।
एतत्सङ्कलितं स्तोत्रम् सर्वकामफलप्रदम् ॥ २१ ॥
लक्ष्मीहृदयकं चैव तथा नारायणात्मकम् ।
जपेद्यः सङ्कलीकृत्य सर्वाभीष्टमवाप्नुयात् ॥ २२ ॥
नारायणस्य हृदयमादौ जप्त्वा ततः परम् ।
लक्ष्मीहृदयकं स्तोत्रम् जपेन्नारायणं पुनः ॥ २३ ॥
पुनर्नारायणं जप्त्वा पुनर्लक्ष्मीनुतिं जपेत् ।
पुनर्नारायणं जाप्यं सङ्कलीकरणं भवेत् ॥ २४ ॥
एवं मध्ये द्विवारेण जपेत्सङ्कलितं तु तत् ।
लक्ष्मीहृदयकं स्तोत्रम् सर्वकामप्रकाशितम् ॥ २५ ॥
तद्वज्जपादिकं कुर्यादेतत्सङ्कलितं शुभम् ।
सर्वान्कामानवाप्नोति आधिव्याधिभयं हरेत् ॥ २६ ॥
गोप्यमेतत्सदा कुर्यान्न सर्वत्र प्रकाशयेत् ।
इति गुह्यतमं शास्त्रं प्राप्तं ब्रह्मादिकैः पुरा ॥ २७ ॥
तस्मात्सर्वप्रयत्नेन गोपयेत्साधयेसुधीः ।
यत्रैतत्पुस्तकं तिष्ठेल्लक्ष्मीनारायणात्मकम् ॥ २८ ॥
भूतपैशाचवेताल भयं नैव तु सर्वदा ।
लक्ष्मीहृदयकं प्रोक्तं विधिना साधयेत्सुधीः ॥ २९ ॥
भृगुवारे च रात्रौ च पूजयेत्पुस्तकद्वयम् ।
सर्वथा सर्वदा सत्यं गोपयेत्साधयेत्सुधीः ।
गोपनात्साधनाल्लोके धन्यो भवति तत्त्वतः ॥ ३० ॥
इत्यथर्वरहस्ये उत्तरभागे नारायण हृदयं सम्पूर्णम् ।
20 जून से जगन्नाथ यात्रा, जानिए पुरी के अन्य पर्यटन स्थलों की जानकारी
28 May, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
ओडिशा के पुरी में हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जाती है।
अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 20 जून 2023 को यह रथ यात्रा निकलेगी। यदि आप यहां की यात्रा में शामिल होकर भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने के लिए पुरी जा रहे हैं तो पुरी क्षेत्र के अन्य दर्शनीय स्थलों को भी देखना न भूलें।
श्री जगन्नाथ मंदिर पुरी | Shree Jagannatha Temple Puri: गन्नाथ मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण अपनी बहन सुभद्रा और बड़े भाई बलराम के साथ विराजते हैं।
गुंडीचा मंदिर : पुरी में जगन्नाथ मंदिर से कुछ किलोमीटर की दूरी पर आप गुंडीचा मंदिर के दर्शन करना न भूलें। इसके अलावा यहां पर लोकनाथ मंदिर, लिंगराज मंदिर और अलारनाथ मंदिर भी जरूर देखें।
बेड़ी हनुमान मंदिर : जगन्नाथ मंदिर के सामने के समुद्र के पास बेड़ी हनुमानजी मंदिर है जहां पर हनुमानजी पुरी और मंदिर की रक्षा करने के लिए विराजमान हैं।
शक्तिपीठ : भारतीय प्रदेश उड़ीसा के विराज में उत्कल स्थित जगह पर माता की नाभि गिरी थी। इसकी शक्ति है विमला और शिव को जगन्नाथ कहते हैं। विमला शक्तिपीठ जगन्नाथ मंदिर के दक्षिण-पश्चिमी कोने में पूर्व की ओर स्थित है। मार्कण्डेय तालाब के पास पुरी में एक सप्त मातृका मंदिर भी मौजूद है। कुछ लोग इसे शक्तिपीठ कहते हैं, लेकिन, विमला मंदिर मूल है। कुछ लोग इसे विराज शक्ति पीठ भी कहते हैं, जो उड़ीसा के जाजपुर में स्थित है।
सुदर्शन शिल्प संग्रहालय : यहां पर बहुत ही फेमस है यह म्यूजियम। इसे भी जरूर देखें।
समुद्री तट : पुरी में पुरी बीच, मरीन ड्राइव पुरी और बालीघई बीच सबसे फेमस समुद्री तट हैं। इसके अलावा चंद्रभागा बीच, गोल्डन बीच, स्वर्गद्वार बीच और बलिहाराचंडी बीच भी लोकप्रिय बीच है। इन सभी समुद्र तटों में विभिन्न मनोरंजक एक्टिवीटी होती रहती है।
कोणार्क सूर्य मंदिर : पुरी के जगन्नाथ मंदिर से मात्र 34 किलोमीटर दूर है कोणार्क का सूर्य मंदिर। यह विश्व प्रसिद्ध मंदिर जरूर देखने जाएं।
नंदनकानन चिड़ियाघर : यह यहां का फेमस जू है जो भारत का दूसरा सबसे बड़ा चिड़ियाघर माना जाता है। सफेद शोरों के अलावा यहां पर सैकड़ों प्रकार के जंगली जानवरों का यहां बसेरा है।
चिल्का झील : यह यहां की सबसे बेस्ट प्राकृतिक लेक है, जिसे आप समुद्र में मिलते हुए देख सकते हैं। इस संगम तक नाव की सवारी करके जब आप पहुंचेंगे तो वहां का प्राकृतिक दृश्य देखकर आपका मन प्रसन्न हो जाएगा।
नरेंद्र टैंक : नरेंद्र पोखरी जिसे नरेंद्र टैंक भी कहा जाता है। यह एक विशाल और पवित्र तालाब है, जो पुरी के जगन्नाथ मंदिर से 1 किलोमीटर की दूरी पर दंडी माला साही क्षेत्र में बना हुआ है।
पूरी जाने का सबसे अच्छा मौसम कौन सा है?
पुरी में यूं तो जगन्नाथ यात्रा निकलने का समय जून माह में होता है, परंतु तब यहां पर बहुत भीड़ होती है। यदि आप पुरी क्षेत्र में घूमना चाहते हैं तो यहां पर अक्टूबर से मार्च के बीच का समय सबसे अच्छा होता है।
जगन्नाथ पुरी जाने का सही समय कौन सा है?
पुरी रेलवे स्टेशन से जगन्नाथ मंदिर की दूरी कितनी है?
पुरी रेलवे स्टेशन से जगन्नाथ मंदिर की दूरी करीब 2 किलोमीटर है।
पुरी जगन्नाथ मंदिर की छाया क्यों नहीं है?
दिन के किसी भी समय जगन्नाथ मंदिर के मुख्य शिखर की परछाई नहीं बनती। कहते हैं कि इसकी रचना वास्तु के अनुसार इस प्रकार हुई है कि इसके गुंबद की छाया धरती पर कहीं पर भी दिखाई नहीं देती है, क्योंकि जब छाया पड़ती है तो मंदिर के ऊपरी हिस्से ही इससे आच्छादित हो जाते हैं।
पुरी में फेमस क्या है?
पुरी में जगन्नाथ का मंदिर, जगन्नाथ भगवान की रथ यात्रा, यहां पर प्रसाद, छेना पोडा, चुंगडी मलाई, कनिका, पाखरा भाटा, दाल्मा, सनतुला और रसगुल्ला फेमस है। इसके अलावा यहां के बेड़ी हनुमान की मूर्ति और नीलगिरी की पहाड़ियां प्रसिद्ध है।
पुरी के लिए कितने दिन चाहिए?
संपूर्ण पुरी क्षेत्र घुमने के लिए कम से कम 3 रातें और 4 दिन चाहिए।
जगन्नाथ पुरी का किराया कितना है? पुरी कैसे पहुंचें?
- पुरी पहुंचने के लिए सड़क, रेलवे और हवाई तीनों मार्ग उपलब्ध है।
- देश के हर बड़े शहरों से पुरी का रेलवे स्टेशन जुड़ा हुआ है। यहां पर आप सड़क मार्ग से भी पहुंच सकते हैं।
- आपके शहर से डायरेक्ट पुरी के लिए कोई ट्रेन उपलब्ध नहीं है तो आप भुवनेश्वर ट्रेन से पहुंचकर पुरी के लिए ट्रेन पकड़ सकते हैं।
- भुवनेश्वर से पुरी की दूरी मात्र 60 किलोमीटर और पूरी रेलवे स्टेशन से जगन्नाथ मंदिर की दूरी मात्र 2 किलोमीटर है।
- यदि आपका पुरी तक पहुंचने का माध्यम हवाई जहाज है तो इसका नजदीकी एयरपोर्ट भुवनेश्वर है।
पुरी में कहां पर ठहरें?
पुरी जगन्नाथ मंदिर क्षेत्र में ठहरने के लिए 4 विकल्प हैं- 1.मंदिर ट्रस्ट की तरफ से बने भक्ति निवास, 2.धर्मशाला 3. प्राइवेट होटल और 4.पूरी का मरीन ड्राइव लाइन। आप अपनी सुविधा और बजट के अनुसार रुकने की व्यवस्था देख सकते हैं। यात्रा में शामिल होने के लिए आ रहे हैं तो पहले से ही जगह को बुक कराना होगा। ऑफिशियल वेबसाइट पर ट्रस्ट के रूम बुक करा सकते हैं।
पुरी जगन्नाथ मंदिर में प्रवेश कैसे करें?
इस मंदिर में सिर्फ हिन्दू, जैन, बौद्ध और सिख लोग ही दर्शन करने के लिए प्रवेश कर सकते हैं। प्रवेश के लिए सिंह द्वारा ही एकमात्र द्वार है। यहां पर प्रवेश के लिए आधार कार्ड साथ रखें और प्रवेश के नियम जा लें।
जगन्नाथ पुरी का प्रसाद क्या है?
एक सूखा प्रसाद और दूसरा गीला प्रसाद। सूखे प्रसाद में नारियल, लड्डू या सूखी मिठाई होती है जबकि गीले में मिक्स चावल, साग-भाजा और सब्जी होती है। साथ ही मालपुआ भी होता है।
पुरी में कौन सी यात्रा निकाली जाती है?
हर साल आषाढ़ माह में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली जाती है। पुरी रथ यात्रा आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि से शुरू होती हैं। इस रथ यात्रा में तीन रथ होते हैं, पहला श्रीकृष्ण यानी जगन्नाथजी का दूसरा बलभद्र यानी बलरामजी का और तीसरा सुभद्रा जी का।
पुरी में कितने पर्यटन स्थल हैं?
पुरी में जगन्नाथ मंदिर के अलावा कई और दर्शनीय स्थल है। जैसे गुंडिचा मंदिर, बेड़ी हनुमान मंदिर, कोणार्क का सूर्य मंदिर, कई समुद्री तट और संग्रहालय मौजूद है।
पुरी में किसका प्रसिद्ध मंदिर है?
पुरी में भगवान जगन्नाथ का मंदिर प्रसिद्ध है। यह सबसे बड़े हिन्दू मंदिरों में से एक है। यहां पर श्रीकृष्ण भगवान जगन्नाथ के रूप में विराजमान हैं।
इस साल रहेगा 2 महीने का सावन, जानिए तिथि, दुर्लभ संयोग और महत्व
28 May, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में सावन का महीना बहुत ही पवित्र माना गया है। सावन का महीना भगवान भोलेनाथ की पूजा-अर्चना और साधना के लिए समर्पित है। सावन के महीने में पूरे विधि-विधान के साथ भगवान शिव की पूजा की जाती है।
ऐसी मान्यता है कि सावन के महीने में जो भी शिव भक्त भगवान भोलेनाथ की पूजा करता है उसके जीवन में हमेशा ही सुख और समृद्धि आती है। सावन के महीने में शिवलिंग के जलाभिषेक का विशेष महत्व होता है। इस माह भगवान शिव की प्रिय चीजें उन्हें अर्पित किया जाता है। सावन का महीना भगवान शिव को प्रिय महीना होता है। हिंदू पंचांग के अनुसार सावन के महीने की शुरुआत श्रावण कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से होती है। इस वर्ष सावन का महीना बहुत ही खास रहने वाला है क्योंकि सावन का महीना दो माह का होगा। इसके अलावा सावन के महीने में 8 सोमवार होंगे। आइए जानते हैं सावन के महीने का महत्व और शुभ संयोग।
सावन 2023 कब से होंगे शुरू
इस बार सावन के महीने की शुरुआत 4 जुलाई 2023 से होगी। सावन का महीना 4 जुलाई से लेकर 31 अगस्त तक चलेगा। ऐसे में इस बार सावन का महीना कुल मिलाकर 58 दिनों तक रहेगा। लगभग दो महीना का सावन का संयोग 19 वर्षो के बाद बन रहा है। आपको बता दें कि ऐसा इसलिए है क्योंकि इस बार अधिकमास के चलते सावन का महीना 2 माह का होगा। 18 जुलाई से 16 अगस्त तक अधिकमास रहेगा।
हिंदू कैलेंडर के अनुसार इस बार साल 2023 में 12 महीने के बजाय 13 महीने का होगा। दरअसल इस बार अधिकमास के चलते है ऐसा होगा। अधिकमास को मलमास और पुरुषोत्तम के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार हर तीसरे साल एक अतिरिक्त माह प्रगट होता जिसे अधिकमास,मलमास और पुरुषोत्तम माह कहा जाता है। वैदिक कैलेंडर के अनुसार हर माह सूर्य का राशि परिवर्तन होता है जिसे सूर्य संक्रांति के नाम से जाना जाता है। लेकिन तीन साल के अंतराल पर एक माह संक्रांति नहीं है तब इस माह को अधिकमास के नाम से जाना जाता है।
साल 2023 में सावन का महीना
अधिकमास के चलते साल 2023 में सावन का महीने में कुल 8 सावन सोमवार होंगे। ये सावन सोमवार इन तारीखों को पड़ेंगे- 10 जुलाई, 17 जुलाई, 24 जुलाई, 31 जुलाई, 7 अगस्त, 14 अगस्त, 21 अगस्त, और 28 अगस्त। सावन का महीना लंबा होने का कारण शिव भक्तों का अपने आराध्य देव भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए ज्यादा समय मिलेगा। सावन का महीना और सावन सोमवार का दिन भगवान भोलेनाथ को विशेष प्रिय होता है।
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (28 मई 2023)
28 May, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि - आशानुकूल सफलता से हर्ष, व्यावसायिक क्षमता अनुकूल होगी, समय का ध्यान रखें।
वृष राशि - मानसिक खिन्नता से स्वाभाव में बेचैनी, इष्ट मित्रों से लाभ अवश्य होगा।
मिथुन राशि - मानसिक बेचैनी, स्वभाव में चिड़चिड़ापन रहेगा, इष्ट मित्र सहायक होंगे।
कर्क राशि - धन लाभ, तनाव से बचें, व्यावसायिक गति धीमी होगी, धैर्य पूर्वक कार्य करें।
सिंह राशि - लेन-देन के मामले स्थिगित रखें, किसी के चंगुल में फंसने से बचें।
कन्या राशि - बड़े-बड़े लोगों से संपर्क होगा, कार्य सफलता में वृद्धि के योग बनेंगे।
तुला राशि - दूसरों की समस्या में उलझने से बचें, लाभांवित योजना बनेगी ध्यान दें।
वृश्चिक राशि - कार्य व्यवसाय में समृद्धि की योजना फलीभूत होने के योग अवश्य बनेंगे।
धनु राशि - विरोधियों से तनाव व क्लेश, धन का व्यय, मानसिक उद्विघ्नता बनेगी।
मकर राशि - धन लाभ हाथ से होकर जाता रहे, विघटनकारी तत्व आपको परेशान करेंगे।
कुंभ राशि - अनावश्यक विवाद कष्टप्रद होगा, भाग्य का सितारा प्रबल होगा।
मीन राशि - स्थिति पर नियंत्रण रखें, विवाद होने की संभावना, स्वास्थ्य नरम रहेगा।