धर्म एवं ज्योतिष (ऑर्काइव)
क्या यह जरूरी है कि मांगलिक लड़की का विवाह मांगलिक लड़के से ही हो?
12 Jul, 2023 07:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
Manglik ladka non manglik ladki : ऐसा माना जाता है कि जिस लड़की को मंगल हो उसका विवाह भी मंगल के लड़के से ही करना चाहिए अन्यथा वैवाहिक जीवन में बाधा उत्पन्न होती है। क्या यह सही है?
क्या मांगलिक लड़की का विवाह मांगलिक लड़के से ही करना चाहिए?
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुंडली में मंगल तीन प्रकार का माना गया है- सौम्य मंगल, मध्यम मंगल और कड़क मंगल। कहते हैं कि सौम्य मंगल का कोई दोष नहीं, मध्यम मंगल 28 वर्ष की उम्र के बाद उसका दोष समाप्त हो जाता है। कड़क मंगल के दोष की शांति कराना चाहिए और इन्हीं लोगों को विवाह के संबंध में कुंडली मिलान करने की आवश्यकता बताई जाती है।
ज्योतिष मान्यता के अनुसार यदि कोई लड़का मांगलिक है और इसकी शादी गैर मांगलिक लड़की से करनी है तो यह हो सकता है. लेकिन उसके लिए लड़की की कुंडली में राहु, केतु और शनि दूसरे, सातवें, आठवें और बारहवें भाव में बैठे हों।
यदि लड़का या लड़की में से किसी एक को मध्यम मांगलिक है और दोनों की उम्र 28 वर्ष से ऊपर है तो विवाह कर सकते हैं क्योंकि 28 वर्ष के बाद मांगलिक दोष समाप्त हो जाता है। ऐसे में किसी पंडित की सलाह से विवाह पूर्व मांगलिक दोष की शांति करा लें।
यदि किसी जातक की कुंडली में मंगल दोष है और कुंडली में उसी भाव में सामने शनि, बृहस्पति, राहु या केतु बैठे हों तो तो मांगलिक दोष अपने आप समाप्त हो जाता है और गैर मांगलिक से शादी करने की बात कही जाती है।
शास्त्रों के अनुसार जहां कोई कुंडली मांगलिक बनती है वहीं उसी श्लोक के परिहार के कई प्रमाण भी हैं कि पूर्वती कारिका से पर्वती कारिका बलवान होती है। दोष के संबंध में पर्वती कारिका ही परिहार या निवारण है। इसलिए मांगलिक दोष का निवारण मिलता है तो विवाह किया जा सकता है।
यदि मांगलिक कुंडली में मंगल के साथ या मंगल पर शुभ ग्रहों की दृष्टि है या शुभ ग्रह केंद्र में हैं तो मांगलिक दोष नहीं लगता है। इसी के साथ ही यदि लड़का या लड़की कुंडली में जिस स्थान पर मंगल बैठा है उसी स्थान पर किसी एक की कुंडली में शनि, राहु या केतु हो तो मंगल का दोष समाप्त हो जाता है।
मांगलिक का गैर मांगलिक से विवाह तब कर सकते हैं जबकि घट विवाह, अश्वत्थ विवाह, भात पूजा या मंगल देव का अभिषेक कर लिया गया है।
महाराष्ट्र के जलगांव जिले के अमलनेर में स्थित मंगल ग्रह के प्राचीन मंदिर में प्रति मंगलवार को मंगल दोष की शांति के लिए पंचामृत अभिषेक, नित्य प्रभात श्री मंगल अभिषेक, स्वतंत्र अभिषेक, समूह अभिषेक और हवनात्मक अभिषेक किया जाता है। यदि आपका मंगल सौम्य है तो सामूहिक अभिषेक करा सकते हैं और यदि आपका मंगल मध्यम है तो आप स्वतंत्र या एकल अभिषेक करा सकते हैं, परंतु यदि आपका मंगल कड़क है तो आप हवनात्मक पूजा और अभिषेक कराएं।
जानिए कांवड़ यात्रा का महत्व और इतिहास, इन नियमों का करना पड़ता है पालन
12 Jul, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
कावड़ यात्रा एक वार्षिक तीर्थयात्रा है जो भारत में हिंदू भक्तों द्वारा बड़ी भक्ति और उत्साह के साथ आयोजित की जाती है। यह मुख्य रूप से भगवान शिव के भक्तों द्वारा किया जाता है, जिन्हें कावड़ियों या कांवरियों के नाम से जाना जाता है, जो पवित्र गंगा नदी से जल इकट्ठा करने के लिए पैदल यात्रा करते हैं।
फिर वे इस पानी को बर्तनों में ले जाते हैं, जिन्हें कावड़ कहा जाता है, और अपने-अपने घरों या भगवान शिव को समर्पित स्थानीय मंदिरों में वापस जाते हैं।
कावड़ यात्रा प्रतिभागियों के लिए महत्वपूर्ण धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व रखती है। ऐसा माना जाता है कि इसकी जड़ें प्राचीन पौराणिक कथाओं और किंवदंतियों में हैं। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्रसिद्ध समुद्र मंथन (समुद्र मंथन) प्रकरण के दौरान, भगवान शिव ने दुनिया को बचाने के लिए समुद्र से निकले जहर का सेवन किया था। इस कृत्य को सर्वोच्च बलिदान माना जाता है और यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतिनिधित्व करता है। कावड़ यात्रा भक्तों के लिए भगवान शिव को श्रद्धांजलि देने और उनकी उदारता के लिए आभार व्यक्त करने का एक तरीका है।
कावड़ यात्रा मुख्य रूप से भारत के उत्तरी राज्यों, विशेषकर उत्तर प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा में मनाई जाती है। हरिद्वार, गौमुख और अमरनाथ जैसे महत्वपूर्ण शिव मंदिरों तक पहुंचने के लिए भक्त कभी-कभी सैकड़ों किलोमीटर तक की कठिन यात्राएं करते हैं। इन मंदिरों को पवित्र स्थलों के रूप में प्रतिष्ठित किया जाता है जहां से गंगा नदी का उद्गम होता है या जहां माना जाता है कि शिव ने दैवीय कृत्य किए थे।
तीर्थयात्रा आमतौर पर हिंदू माह श्रावण के दौरान होती है, जो जुलाई और अगस्त के बीच आता है। भक्त भगवान शिव से आशीर्वाद लेने और अपनी मन्नत पूरी करने के लिए कठिन यात्रा करते हैं। रास्ते में, वे उपवास, ध्यान और भजन और प्रार्थनाओं सहित विभिन्न अनुष्ठानों का पालन करते हैं। पूरी प्रक्रिया में अनुशासन, आत्म-नियंत्रण और भक्ति का कड़ाई से पालन शामिल है।
कावड़ यात्रा कई सदियों से भारतीय संस्कृति और परंपरा का हिस्सा रही है। यह पीढ़ियों से चला आ रहा है और इसका अत्यधिक सांस्कृतिक महत्व है। समय के साथ, तीर्थयात्रा की लोकप्रियता बढ़ी है, जो देश के विभिन्न हिस्सों से हजारों भक्तों को आकर्षित करती है। यात्रा न केवल भक्त और भगवान के बीच के बंधन को मजबूत करती है बल्कि प्रतिभागियों के बीच एकता और सौहार्द की भावना को भी बढ़ावा देती है।
इस यात्रा को लेकर कुछ नियम भी हैं जो बेहद कठिन होते हैं। कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़िया अपनी कांवड़ को जमीन पर नहीं रख सकता है। इसके अलावा बिना नहाए हुए इसको छूना पूरी तरह से वर्जित है। कांवड़ यात्रा के दौरान कावड़िया मांस, मदिरा या किसी प्रकार का तामसिक भोजन को ग्रहण करना पर्णतः वर्जित माना गया है। इसके अलावा कांवड़ को किसी पेड़ के नीचे भी नहीं रख सकते हैं।
अंत में, कावड़ यात्रा हिंदू भक्तों के लिए गंगा नदी से पानी इकट्ठा करने और भगवान शिव को चढ़ाने के लिए एक पवित्र तीर्थ यात्रा पर जाने के साधन के रूप में आयोजित की जाती है। यात्रा भक्ति और कृतज्ञता के कार्य के रूप में कार्य करती है, जो देवता के प्रति भक्त की प्रतिबद्धता और श्रद्धा का प्रतीक है। अपने गहरे आध्यात्मिक महत्व और सांस्कृतिक विरासत के साथ, कावड़ यात्रा भारत में हिंदुओं के लिए एक पोषित परंपरा बनी हुई है, जो इसके प्रतिभागियों के बीच आध्यात्मिकता और समुदाय की भावना को बढ़ावा देती है।
कब है सावन प्रदोष व्रत, जानिए तारीख, मुहूर्त और पूजा विधि
12 Jul, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में वैसे तो कई सारे व्रत त्योहार हैं जो शिव पूजा को समर्पित होते हैं लेकिन प्रदोष व्रत को बेहद ही खास माना जाता हैं जो कि हर माह में दो बार पड़ता हैं अभी सावन का महीना चल रहा हैं और इस माह पड़ने वाले प्रदोष व्रत को सावन प्रदोष के नाम से जाना जा रहा हैं जो कि शिव साधना के लिए उत्तम दिन माना जाता हैं।
इस दिन भक्त भगवान भोलेनाथ की विधि विधान से पूजा करते हैं और उपवास आदि भी रखते हैं माना जाता हैं कि इस दिन पूजा पाठ और व्रत करने से साधक को उत्तम फलों की प्राप्ति होती हैं तो ऐसे में आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा सावन प्रदोष व्रत की तिथि, मुहूर्त और पूजन विधि बता रहे हैं तो आइए जानते हैं।
प्रदोष व्रत का मुहूर्त-
पंचांग के अनुसार सावन माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 14 जुलाई को रात 7 बजकर 17 मिनट से आरंभ हो रही हैं और 15 जुलाई को रात 8 बजकर 32 मिनट पर समाप्त हो जाएगी। ऐसे में प्रदोष व्रत 14 जुलाई को रखा जाएगा। इस दिन शिव पूजा के लिए रात 7 बजकर 21 मिनट से रात 9 बजकर 24 मिनट तक का समय शुभ रहेगा।
प्रदोष व्रत की पूजा विधि-
सावन प्रदोष व्रत के दिन सुबह उठकर स्नान आदि करें इसके बाद साफ वस्त्रों को धारण कर पूजन स्थल पर दीपक जलाएं और व्रत का संकल्प करें। इसके बाद पूरे दिन व्रत रखते हुए प्रदोष काल में शिव की पूजा करें। भगवान का दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल से अभिषेक करें। फिर भगवान को भांग, धतूरा, बेलपत्र पुष्प और नैवेद्य प्रभु को चढ़ाएं। इसके बाद धूप दीपक जलाकर व्रत कथा का पाठ करें। अंत में शिव की आरती जरूर करें।
मेहनत के बावजूद भी नहीं बचता धन, तो करें सुपारी का उपाय
12 Jul, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हर कोई धनवान बनने की चाह रखता है इसके लिए लोग दिनों रात मेहनत और प्रयास भी करते हैं लेकिन फिर भी अगर उन्हें मनचाहा फल नहीं मिलता हैं या फिर आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता हैं तो ऐसे में व्यक्ति निराश और परेशान हो जाता हैं।अगर आप भी धन संकट झेल रहे हैं और कर्ज लेने की नौबत आ गई हैं तो ऐसे में आप सुपारी से जुड़े उपायों को अपना सकते हैं माना जाता है कि इन आसान उपायों को करने से आर्थिक परेशानियों से छुटकारा मिल जाता हैं और धन आवक बढ़ सकती हैं तो आज हम आपको सुपारी के आसान टोटके बता रहे हैं, तो आइए जानते हैं।
सुपारी के सबसे आसान टोटके-
अगर आप आर्थिक तौर पर परेशान चल रहे हैं या फिर कर्ज के जाल से छुटकारा पाना चाहते हैं तो ऐसे में आप पूजा की सुपारी का उपाय कर सकते हैं इसके लिए नियमित रूप से सुपारी को भगवान श्री गणेश को अर्पित करें इसके बाद सुपारी को लाल वस्त्र में बांधकर अपनी तिजोरी में रख दें। माना जाता हैं कि इस उपाय को करने से आर्थिक परेशानी दूर हो जाती हैं और कर्ज से भी मुक्ति मिलती हैं। वही अगर आपके विवाह में किसी प्रकार की बाधा आ रही हैं या फिर शीघ्र विवाह के योग नहीं बन रहे हैं तो ऐसे में आप सुपारी के साथ कुमकुम, हल्दी और मौली लपेटकर गुरुवार के दिन माता लक्ष्मी के मंदिर में रख दें। माना जाता है कि इस उपाय को करने से विवाह के योग बलवती होने लगते हैं साथ ही रिश्ता पक्का हो जाने के बाद इस सुपारी को जल में प्रवाहित कर दें।
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (12 जुलाई 2023)
12 Jul, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- बेचैनी, उद्विघ्नता से बचें, सोचे कार्य समय पर होंगे, परिश्रम से सफलता मिलेगी।
वृष राशि :- चिन्तायें कम होंगी, सफलता के साधन जुटायेंगे, धन लाभ के योग बनेंगे ध्यान अवश्य दें।
मिथुन राशि :- मित्रों के सहयोग से सफलता मिलेगी, कार्य को समय पर करने का प्रयास करें।
कर्क राशि :- धन का व्यर्थ व्यय होगा, समय व शक्ति नष्ट होगी, विघटनकारी तत्व परेशान करेंगे।
सिंह राशि :- भोग-ऐश्वर्य की प्राप्ति, स्वास्थ्य नरम रहेगा तथा विरोधी वर्ग परेशान करने का प्रयास करेगा।
कन्या राशि :- धन व समय नष्ट होगा, चिन्ता, क्लेश व अशांति का वातावरण रहेगा, यात्रा में कष्ट होगा
तुला राशि :- परिश्रम से सफलता के कार्य अवश्य जुटायें, कार्य बाधा, अवरोध से बचें।
वृश्चिक राशि :- चोटादि से बचिये, क्लेश व अशांति से बचें, व्यर्थ कार्यों में समय नष्ट होगा।
धनु राशि :- भाग्य का सितारा साथ देगा, क्लेश, अशांति से बचने का प्रयास करें, समय नष्ट होगा।
मकर राशि :- स्वास्थ्य नरम रहेगा, यात्रा के योग बनेंगे, चिन्ता से मानसिक अशांति रहेगी, धैर्य रखें।
कुंभ राशि :- अकस्मिक घटनाओं से चोटादि का भय होगा, धन का व्यय होगा, कार्य सावधानी से करें।
मीन राशि :- अधिकारियों से कष्ट, मित्र सहायक होंगे, व्यर्थ भ्रमण में समय नष्ट होगा, धन व्यय होगा।
किस दिन करें कौन-से भगवान की पूजा, मिलेगा लाभ
11 Jul, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भगवान शिव ने जब सप्ताह के सात दिन और उनके स्वामी यानी स्वामियों को निश्चित किया तो उन्होंने यह भी नियम बनाया कि किसी रोग को ठीक करने या किसी विशेष फल की कामना के लिए किस दिन पूजा की जानी चाहिए।
सूर्य भगवान आरोग्य प्रदान करते हैं यानी उनकी पूजा करने वाला स्वस्थ रहता है। चन्द्र शुभ हो तो मंगल रोग दूर करता है। देवगुरु गुरु आयु बढ़ाते हैं। शुक्र पीड़ित देता है. शनिदेव मृत्यु को रोकते हैं। इन देवताओं की विधि-विधान से पूजा करने से भगवान शिव उपासक को मनोवांछित फल देते हैं। नेत्र और माथे संबंधी दोनों रोगों के अलावा कुष्ठ रोग से बचाव के लिए भी सूर्य देव की पूजा करने का विधान है। सूर्य देव की पूजा के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए।
इस तरह के प्रयोग के एक दिन बाद शांत न हो जाएं। जिस प्रकार किसी स्थायी रोग के निदान के लिए डॉक्टर द्वारा बताए गए निश्चित समय तक दवा की खुराक लेनी होती है, उसी प्रकार सूर्य पूजा एक दिन, एक माह, एक वर्ष या तीन वर्ष तक करनी चाहिए। समस्या एक दिन में नहीं.. सोमवार के दिन विद्वान लोग धन के लिए देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं। पूजा के बाद सपत्निक ब्राह्मणों को उनका पसंदीदा भोजन कराएं। रोगों की शांति के लिए मंगलवार के दिन माता काली की पूजा करनी चाहिए। इस पूजा के बाद उबटन, मूंग और तुवेरी दाल आदि से बना भोजन ब्राह्मणों को कराना चाहिए। पुत्र, पत्नी और मित्रों आदि को सुरक्षा और आरोग्य प्रदान करने के लिए बुधवार के दिन विष्णुजी की क्षीरंजित अन्न से पूजा करनी चाहिए।
लंबी आयु की कामना से गुरुवार के दिन घी मिश्रित खीर से देवताओं का तर्पण करना चाहिए। ब्राह्मणों को अपनी भोग-विलास की इच्छा पूरी करने के लिए शुक्रवार के दिन देवी-देवताओं की पूजा करने के बाद उनका पसंदीदा भोजन करना चाहिए। स्त्री सुख के लिए वस्त्र दें। स्वास्थ्य प्राप्ति के लिए शनिवार के दिन तिल से बना भोजन और तिल से बना भोजन ब्राह्मण को दान करना चाहिए।
पद्मिनी एकादशी: जानें, तारीख, शुभ मुहूर्त और पूजन विधि
11 Jul, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में व्रत त्योहारों की कमी नहीं हैं लेकिन एकादशी का व्रत इन सभी व्रतों में श्रेष्ठ माना गया हैं जो कि भगवान विष्णु की पूजा अर्चना को समर्पित होता हैं।
एकादशी का व्रत हर माह में दो बार पड़ता हैं ऐसे साल में कुल 24 एकादशी के व्रत किए जाते हैं अभी श्रावण मास चल रहा हैं और इस माह में पड़ने वाली एकादशी को पद्मिनी एकादशी के नाम से जाना जा रहा हैं जो कि सावन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाएगी।
इस बार पद्मिनी एकादशी का व्रत 29 जुलाई दिन शनिवार को पड़ रहा हैं। इस व्रत को करने से साधक को अमोघ फल की प्राप्ति होती हैं साथ ही पितरों को मोक्ष मिलता हैं। पद्मिनी एकादशी पर भगवान विष्णु के संग अगर माता लक्ष्मी की पूजा अर्चना की जाए तो जीवन में व्याप्त सभी दुख और संकट दूर हो जाते हैं तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा पद्मिनी एकादशी पूजा का मुहूर्त और विधि बता रहे हैं, तो आइए जानते हैं।
पूजन का शुभ समय-
धार्मिक पंचांग के अनुसार सावन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 28 जुलाई को दोपहर 2 बजकर 51 मिनट से आरंभ हो रही हैं और अगले दिन यानी 29 जुलाई को दोपहर 1 बजकर 5 मिनट पर समाप्त हो जाएगा। ऐसे में 29 जुलाई को एकादशी का व्रत करना उत्तम रहेगा। इस दिन सुबह 7 बजकर 22 मिनट से लेकर 9 बजकर 4 मिनट के मध्य पूजा करना फलदायी होगा। वही पारण के लिए 30 जुलाई को सुबह 5 बजकर 41 मिनट से लेकर सुबह 8 बजकर 24 मिनट तक का समय ठीक रहेगा।
पद्मिनी एकादशी की पूजा विधि-
आपको बता दें कि इस दिन जल्दी उठकर स्नान आदि करें इसके बाद साफ वस्त्रों को धारण कर गंगाजल से आचमन कर भगवान सूर्यदेव को जल अर्पित करें। फिर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा फल, पुष्प, धूप, दीपक, अक्षत, दूर्वा, चंदन आदि से करें। पूजा के समय विष्णु चालीसा का पाठ जरूर करें। साथ ही भगवान की आरती करें। अंत में भूल चूक के लिए क्षमा मांगे और अपनी मनोकामना भगवान से कहें। अब दिनभर का उपवास रखें और संध्या पूजन में आरती कर फलाहार ग्रहण करें। अगले दिन पूजा करके पारण करें और गरीबों को दान जरूर दें।
भगवान श्री महाकाल का पहला नगर भ्रमण श्री मनमहेश रूप में हुआ संपन्न, हजारों श्रद्धालुओं ने किए दर्शन
11 Jul, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
उज्जैन: विश्व प्रसिद्ध बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक दक्षिणमुखी भगवान श्री महाकालेश्वर की श्रावण-भाद्रपद माह में निकलने वाली सवारियों के क्रम में श्रावण माह के पहले सोमवार को भगवान श्री महाकालेश्वर ने मन महेश रूप में नगर भ्रमण कर श्रद्धालुओं को दर्शन दिए।
सवारी नगर भ्रमण पर परम्परागत मार्ग से निकाली गई।
श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति के प्रशासक ने बताया कि, भगवान श्री महाकालेश्वर की प्रथम सवारी में रजत पालकी में भगवान मनमहेश स्वरूप में भक्तों को दर्शन देते हुए नगर भ्रमण पर निकले। इससे पूर्व भगवान के श्री मनमहेश स्वरूप का विधिवत पूजन-अर्चन मन्दिर के सभा मण्डप में पं.घनश्याम शर्मा ने किया। पश्चात भगवान श्री मनमहेश स्वरूप को पालकी में विराजित होकर नगर भ्रमण पर निकलेंगे।
सवारी मन्दिर से अपने निर्धारित समय अपरांन्ह 4 बजे निकली। मन्दिर के मुख्य द्वार पर सशस्त्र पुलिस बल के जवानों ने पालकी में सवार भगवान श्री मनमहेश को सलामी (गार्ड ऑफ ऑनर) दिया। यहां से सवारी परंपरागत मार्ग से होती हुई शिप्रा तट रामघाट पहुंची जहां भगवान का जल से अभिषेक किया गया। वापसी परंपरागत मार्ग से हुई।सवारी के साथ पुलिस की प्लाटून एवं बैंड, झांझ, डमरू, भजन मंडलियां साथ चल रहीं थी।
भगवान श्री महाकालेश्वर की पालकी मन्दिर से निकलने के बाद महाकाल रोड, गुदरी चौराहा, बक्षी बाजार और कहारवाड़ी से होती हुई रामघाट पहुंचेगी। जहां शिप्रा नदी के जल से भगवान का अभिषेक और पूजन-अर्चन किया गया। इसके बाद सवारी रामानुजकोट, मोढ़ की धर्मशाला, कार्तिक चौक, खाती का मन्दिर, सत्यनारायण मन्दिर, ढाबा रोड, टंकी चौराहा, छत्रीचौक, गोपाल मन्दिर, पटनी बाजार, गुदरी बाजार से होती हुई पुन: श्री महाकालेश्वर मन्दिर पहुंची।
अधिक मास के चलते इस वर्ष श्री महाकालेश्वर भगवान की 10 सवारी निकलेगी। श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति के प्रशासक के अनुसार इस वर्ष श्रावण माह की चार, अधिक मास की चार, और भाद्रपद माह की दो सवारियां मिलाकर कुल 10 सवारियों में भगवान श्री महाकालेश्वर विविध मोहक रूपों में भक्तो का हाल जानने नगर भ्रमण पर निकलेगे।
दूसरी सवारी 17 जुलाई को निकलेगी। इसमें पालकी में भगवान श्री चन्द्रमौलेश्वर के स्वरूप में और हाथी पर श्री मनमहेश के स्वरूप में भगवान विराजित होंगे। तीसरी सवारी 24 जुलाई को निकाली जायेगी। इस दौरान पालकी में भगवान श्री चन्द्रमौलेश्वर के स्वरूप में रहेंगे, हाथी पर श्री मनमहेश के स्वरूप में और गरूड़ रथ पर शिवतांडव के स्वरूप में विराजित होंगे।
चौथी सवारी 31 जुलाई को निकाली जायेगी, जिसमें पालकी में श्री चन्द्रमौलेश्वर, हाथी पर श्री मनमहेश, गरूड़ रथ पर शिवतांडव और नन्दी रथ पर उमा.महेश के स्वरूप में विराजित होंगे। पंचम सवारी 07 अगस्त को निकलेगी। इस दौरान पालकी में श्री चन्द्रमौलेश्वर, हाथी पर श्री मनमहेश, गरूड़ रथ पर शिवतांडव, नन्दी रथ पर उमा-महेश और डोल रथ पर होल्कर स्टेट के मुखारविंद सम्मिलित रहेगा।
षठम सवारी 14 अगस्त को निकलेगी। इस दौरान पालकी में श्री चन्द्रमौलेश्वर, हाथी पर श्री मनमहेश, गरूड़ रथ पर शिवतांडव, नन्दी रथ पर उमा.महेश और डोल रथ पर होल्कर स्टेट के मुखारविंद के साथ श्री घटाटोप मुखोटा सम्मिलित रहेगा। सप्तम सवारी 21 अगस्त को निकलेगी। इस दौरान पालकी में श्री चन्द्रमौलेश्वर, हाथी पर श्री मनमहेश, गरूड़ रथ पर शिवतांडव, नन्दी रथ पर उमा.महेश और डोल रथ पर होल्कर स्टेट के मुखारविंद ,श्री घटाटोप मुखोटा व श्री सप्तधान मुखारविंद सम्मिलित रहेगा।
अष्टम सवारी 28 अगस्त को निकलेगी। इस दौरान पालकी में श्री चन्द्रमौलेश्वर, हाथी पर श्री मनमहेश, गरूड़ रथ पर शिवतांडव, नन्दी रथ पर उमा, महेश और डोल रथ पर होल्कर स्टेट के मुखारविंद, श्री घटाटोप मुखोटा व श्री सप्तधान मुखारविंद के साथ श्री जटाशंकर मुखारविंद सम्मिलित रहेगा।
नवम सवारी 04 सितम्बर को निकलेगी। इस दौरान पालकी में श्री चन्द्रमौलेश्वर, हाथी पर श्री मनमहेश, गरूड़ रथ पर शिवतांडव, नन्दी रथ पर उमा.महेश और डोल रथ पर होल्कर स्टेट के मुखारविंद ,श्री घटाटोप मुखोटा व श्री सप्तधान मुखारविंद, श्री जटाशंकर मुखारविंद के अतिरिक्त नवीन सप्तधान का मुखारविंद सम्मिलित रहेगा। दसवीं एवं शाही सवारी 11 सितम्बर को निकाली जायेगी।
इस दौरान पालकी में श्री चन्द्रमौलेश्वर, हाथी पर श्री मनमहेश, गरूड़ रथ पर शिवतांडव, नन्दी रथ पर उमा.महेश और डोल रथ पर होल्कर स्टेट के मुखारविंद ,श्री घटाटोप मुखोटा व श्री सप्तधान मुखारविंद, श्री जटाशंकर मुखारविंद, नवीन सप्तधान का मुखारविंद व नवीन रजत मुखारविंद सम्मिलित रहेगा।
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (11 जुलाई 2023)
11 Jul, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- भाग्य का सितारा साथ देगा, इष्ट मित्र सहयोग करेंगे, रुके कार्य बनेंगे ध्यान दें।
वृष राशि :- इष्ट मित्रों से परेशानी होगी, दैनिक कार्य कुशलता से होंगे, समय पर कार्य करें।
मिथुन राशि :- दैनिक कार्य में असहयोग रहेगा, इष्ट मित्र से परेशानी होगी, कार्यगति का ध्यान रखें।
कर्क राशि :- मान-प्रतिष्ठा, प्रभुत्व वृद्धि होगी, स्त्री वर्ग से हर्ष-उल्लास रहेगा, कार्यगति में बाधा।
सिंह राशि :- कार्यगति अनुकूल, दैनिक कार्य में बाधा, सामाजिक कार्य में प्रभुत्व वृद्धि होगी।
कन्या राशि :- कुटुम्ब की परेशानी से चिन्ता एवं व्याग्रता रहेगी, मानसिक उद्विघ्नता से बचकर चलें।
तुला राशि :- धन हानि, शरीर कष्ट, मानसिक बेचैनी, व्यर्थ भ्रमण होगा, विरोध का वातावरण बनेगा।
वृश्चिक राशि :- इष्ट मित्र सुखवर्धक होगा, अधिकारियों का समर्थन फलप्रद बनेगा, समय का ध्यान रखें।
धनु राशि :- कार्यकुशलता से संतोष, दैनिक समृद्धि के साधन जुटायेंगे, स्थिति में सुधार होगा।
मकर राशि :- दैनिक कार्यवृत्ति में सुधार होगा, योजनायें फलीभूत होंगी, रुके कार्य बनेंगे।
कुंभ राशि :- विशेष कार्य स्थगित रखें, मानसिक विभ्रम से उद्विघ्नता रहेगी, धैर्य पूर्वक कार्य करें।
मीन राशि :- कार्य में विलम्ब होगा, प्रयत्न करने पर भी सफलता दिखायी न दे, रुके कार्य पर ध्यान दें।
54 फुट के कांवर को 400 कांवरिया दे रहे बारी-बारी से कंधा, जानें कब पहुंचेंगे बाबाधाम
10 Jul, 2023 07:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
विशाल शिवधारी कांवर संघ मारूफगंज, पटना सिटी के कांवरियों का 54 फुट का कांवर रविवार को कांवरिया पथ पर आकर्षण का केंद्र बना. रविवार को पवित्र उत्तरवाहिनी गंगा जल भर कर कांवरिया बाबाधाम को निकले.
गंगाघाट पर संकल्प पूजन के बाद बाबा के जयकारे लगाते हुए नृत्य करते कांवरिया गंगाधाम से बाबाधाम को प्रस्थान किया. 54 फुट के इस कांवर को बारी-बारी से 400 कांवरिया कंधा देते है. कांवर में छह कलश है. जिसमें सभी 400 कांवरिया का जलपात्र है.
पिछले 15 वर्षों से उठा रहे हैं 251 किलो वजनी कांवर
संघ के अध्यक्ष विनोद कुमार ने बताया कि वर्ष 2008 से 54 फीट का कांवर लेकर हर साल जा रहे है. कांवर का वजन 251 किलो है. इस कांवर को एक साथ नौ कांवरिया लेकर चलते है. 54 घंटा में बाबाधाम पहुंचने का संकल्प रहता है. कांवर में भगवान शिव और मैया पार्वती का आकर्षक मूर्ति शिव और शक्ति का प्रतिबिंब दिखायी पड़ रहा है. कांवर में गणेश, बजरंगबली, मैया पार्वती आदि के मूर्ति है. उन्होंने कहा कि लगातार 15वां वर्ष है, जब 54 फुट का कांवर लेकर हम लोग सुलतानगंज से बाबाधाम जा रहे हैं. यहां आने से पहले पटना सिटी में भी इस कांवर का भ्रमण कराया गया था. कांवर को तीन भाग में बांट कर यहां लाया गया. सुलतानगंज में इसे जोड़ा गया है. विनोद कुमार ने बताया कि संघ की ओर से जगह-जगह भंडारे की भी व्यवस्था की गयी है.
होती है मनोकामना पूरी
कांवरियों ने बताया इस कांवर को कंधा देने वालों की मनोकामना बाबा अवश्य पूरी करते है. हर वर्ष कांवरिया आस्था, श्रद्धा के साथ कांवर को कंधा देकर बाबा पर जलार्पण करते हैं. कांवरियों ने बताया कि बाबा ने उनकी हर मनोकामना पूरी की है. कांवरियों ने कहा कि जब तक 54 फुट का कांवर आयेगा, हमलोग आयेंगे. 54 फुट कांवर को लेकर ढोल, मझीरा के साथ नृत्य करते हुए कांवरिया बाबाधाम की ओर रवाना हुए. बताया गया कि कांवर को कंधा देने के बाद जलार्पण करने से कई को नौकरी बाबा ने दिया. कुछ महिला कांवरिया भी साथ है. बाबा के जयकारे लगाते कांवरिया बाबाधाम को रवाना हुए.
वाल्मीकि रामायण के छह काण्ड के 98 श्लोकों से सजेगा राम चबूतरा, रामलला की प्राण प्रतिष्ठा जनवरी 2024 में!, जानें क्या है तैयारी
10 Jul, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
Ayodhya Ram Temple:अयोध्या में निर्माणाधीन राम मंदिर में वाल्मीकि रामायण को चित्रों के माध्यम से सहेजा जा रहा है। वाल्मीकि रामायण के छह काण्ड (बाल से लेकर लंका काण्ड) के प्रमुख 98 श्लोकों को भित्तिचित्रों के माध्यम से निचले राम चबूतरे पर उकेरा जा रहा है।
राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा जनवरी में करने के लिए अगले 120 दिन में इसके प्रथम चरण के तहत महत्वपूर्ण कार्यों को पूरा करने पर तेजी से काम जारी है। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के एक सदस्य ने बताया, '' श्री राम जन्मभूमि मंदिर के प्रथम तल का निर्माण कार्य जोरशोर से जारी है।
प्रथम चरण के महत्वपूर्ण कार्यों को नवंबर तक पूरा करने का काम जारी है और कोशिश होगी कि यह दीपावली तक हो जाए, तो बेहतर रहेगा।'' उन्होंने बताया कि राम मंदिर में स्तंभों, पीठिका तथा अन्य स्थानों पर आध्यात्मिक पौराणिक ग्रंथों में वर्णित कथाओं के आधार पर मूर्तियों का निर्माण किया जा रहा है।
उन्होंने बताया कि प्रथम चरण के महत्वपूर्ण निर्माण कार्यों में गर्भगृह, पांच मंडप, भूतल, निचला चबूतरा एवं पूर्वी प्रवेश द्वार शामिल हैं। उन्होंने बताया कि निचले चबूतरे पर 'रामकथा' उकेरी जा रही है, जिसमें वाल्मीकि रामायण के 98 प्रमुख श्लोकों के आधार पर 98 भित्तिचित्र शामिल हैं। वाल्मीकि रामायण में कुल 24000 श्लोक हैं।
पिछले महीने मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष नृपेन्द्र मिश्रा ने कहा था कि मंदिर ट्रस्ट को रामलला की प्रतिमा में प्राण प्रतिष्ठा के लिए देश के शीर्ष ज्योतिषियों ने 21, 22, 24 और 25 जनवरी को शुभ मुहूर्त बताया है। वहीं, न्यास के एक अन्य सदस्य परमानंद गिरि जी महाराज ने बताया कि प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम को लेकर किसी भी अनुकूल तारीख के बारे में प्रधानमंत्री से आग्रह किया जायेगा।
सूत्रों ने बताया कि ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय और कोषाध्यक्ष गोविंद गिरि जी महाराज की सदस्यता वाली एक समिति का गठन किया गया है, जिसे इस बात पर विचार करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है कि राम लला की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम में किन्हें आमंत्रित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि इसमें निश्चित तौर पर साधु संतों को महत्व दिया जाएगा।
सूत्रों ने बताया कि देश के गांव में लोग प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम को कैसे देख सकें, विदेशों में इसे कैसे दिखाया जाए.. इस पर भी काम जारी है। उन्होंने बताया कि विदेश में कार्यक्रम को पहुंचाने के लिए दूतावासों से सम्पर्क किया जायेगा।
उन्होंने बताया कि 2024 की जनवरी में मकर संक्राति के बाद से करीब एक सप्ताह तक भजन कीर्तन आदि का आयोजन किया जायेगा, जिसमें देश के गांव, कस्बों आदि से पांच लाख मंदिर एवं मठों को जोड़ने की योजना है।
राम मंदिर में करीब 400 खम्भे होंगे, जिसमें भूतल में करीब 160 खम्भे और प्रथम तल पर 132 खम्भे और दूसरे तल पर 72 खम्भे होंगे। इसमें 46 दरवाजे होंगे, जो सागवान की लकड़ी के बने होंगे। सूत्रों ने बताया, ''खम्भे का निर्माण काफी महीन एवं जटिल काम है, क्योंकि प्रत्येक खम्भे पर 14-16 मूर्तियां बनाई जा रही हैं।'' समझा जाता है कि कुल 3600 मूर्तियों का निर्माण किया जायेगा, जो मंदिर को भव्यता प्रदान करेंगे।
इस साल कब है नाग पंचमी? यहाँ जानिए
10 Jul, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
श्रावण मास की शुक्ल पंचमी को नाग पंचमी का त्योहार मनाया जाता है. हिन्दू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक, इस दिन नागों की पूजा का विधान है. नाग पंचमी पर महादेव के गले में आभूषण के तौर पर मौजूद नाग देव की पूजा होती है.
नाग पंचमी पर पूजा करने से आध्यात्मिक शक्ति, अपार धन और मनोवांछित फल की प्राप्ति हो सकती है. आइए जानते हैं कि इस वर्ष नाग पंचमी का त्योहार किस दिन मनाया जाएगा.
कब है नाग पंचमी?
इस साल सावन शुक्ल पंचमी तिथि 21 अगस्त 2023 को रात 12 बजकर 21 मिनट से आरम्भ होगी तथा इसका समापन 22 अगस्त 2023 को दोपहर 2 बजे होगा. ऐसे में नाग पंचमी का त्योहार 21 अगस्त दिन सोमवार को मनाया जाएगा. सनातन धर्म में सदियों से नागों को पूजने की परंपरा चली आ रही है. ऐसी मान्यताएं हैं कि नाग पंचमी के दिन नाग देवता को दूध चढ़ाएं से पुण्य फल की प्राप्ति होती है. नाग पंचमी के दिन अनंत, वासुकि, पद्म, महापद्म, तक्षक, कुलीर, कर्कट, शंख, कालिया और पिंगल नामक देव नागों की पूजा की जाती है.
नाग पंचमी की पूजन विधि:-
नाग पंचमी के दिन सवेरे जल्दी उठकर स्नानादि के बाद व्रत तथा पूजा का संकल्प लें. एक थाली में हल्दी, रोली, चावल, फूल, दीपक एवं दूध रख लें. फिर मंदिर जाकर ये सभी चीजें नाग देवता को अर्पित करें. ध्यान रहे नाग देवता को कच्चे दूध में घी चीनी मिलाकर ही अर्पित करना चाहिए. तत्पश्चात, नाग देवता की आरती उतारें तथा मन में नाग देवता का ध्यान करें. नाग पंचमी की कथा जरूर सुनें. आखिर में नाग देवता से अपनी इच्छाएं पूर्ण करने की प्रार्थना करें.
सावन सोमवार के दिन लग रहा है पंचक, इस शुभ योग में करें महादेव की उपासना
10 Jul, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में सावन सोमवार की खास अहमियत है। इस दिन साधक सोमवार व्रत का पालन कर महादेव की उपासना करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, सावन सोमवार के दिन महादेव की उपासना करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है।
साथ ही उन्हें जीवन में सुख एवं समृद्धि की प्राप्ति होती है। बता दें कि इस साल सावन का प्रथम सोमवार 10 जुलाई 2023 के दिन पड़ रहा है। इसके साथ इस विशेष दिन पर दो अत्यंत शुभ योग का निर्माण हो रहा है। ज्योतिष के अनुसार, सावन के प्रथम सोमवार के दिन रेवती नक्षत्र और सुकर्मा योग का निर्माण हो रहा है। इस दिन रेवती नक्षत्र शाम 6:59 तक रहेगा तथा सुकर्मा योग दोपहर 12:34 से आरम्भ होगा। महादेव की उपासना के लिए सावन में हर समय शुभ है, लेकिन पूजा का उचित फल प्राप्त करने के लिए महादेव की उपासना सुबह या प्रदोष काल में करने से विशेष लाभ प्राप्त होता है।
सावन सोमवार 2023 के दिन लग रहा है पंचक;-
वैदिक पंचांग के मुताबिक, सावन के प्रथम सोमवार के दिन पंचक लग रहा है। इस दिन पंचक प्रातः 05 बजकर 30 मिनट से शाम 06 बजकर 59 मिनट तक रहेगा। किन्तु इसका प्रभाव भगवान महादेव की उपासना पर नहीं पड़ेगा। इसलिए इस दिन भगवान महादेव की उपासना के लिए कोई भी अशुभ समय मान्य नहीं होगा।
प्रथम सावन सोमवार 2023 पूजा विधि:-
सावन के प्रथम सोमवार के दिन प्रातः या प्रदोष काल में महादेव की उपासना करें। इस दौरान उन्हें अक्षत, गंध-पुष्प, चंदन, दूध, पंचामृत, बेलपत्र इत्यादि अर्पित करें। पंचामृत से अभिषेक करते समय 'ॐ नमः शिवाय' का जाप अवश्य करें। मान्यता है कि इस दिन महादेव का रुद्राभिषेक करने से जीवन में आ रही सभी परेशानियां दूर हो जाती है। साथ ही इस विशेष दिन पर भगवान शिव के स्तोत्र का पाठ करें तथा आखिर में आरती के साथ पूजा संपन्न करें।
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (10 जुलाई 2023)
10 Jul, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- कार्यकुशलता से समृद्धि के योग फलप्रद होंगे तथा रुके कार्य बनेंगे ध्यान दें।
वृष राशि :- कार्य तत्परता से लाभ एवं इष्ट मित्र सुखवर्धक होगा, कार्य पर ध्यान दें।
मिथुन राशि :- व्यवसायिक क्षमता में वृद्धि होगी, कार्य कुशलता से संतोष होगा, बिगड़े कार्य बनेंगे।
कर्क राशि :- सोच समझकर कार्य करें, शांति विचार से लाभ होगा, धैर्य पूर्वक कार्य पर ध्यान दें।
सिंह राशि :- समय की विषमता से विशेष कार्य स्थगित रखें, लेन-देन के कार्य में हानि की संभावना।
कन्या राशि :- मानसिक विभ्रम बनेगा, किसी आरोप में फंस सकते हैं, कार्य अवरोध होगा।
तुला राशि :- भाग्य का सितारा प्रबल होगा, बिगड़े कार्य बनेंगे, कार्य संतोषप्रद होगा।
वृश्चिक राशि :- कार्य कुशलता से संतोष होगा, योजनायें फलीभूत होंगी, विशेष कार्य स्थगित रखें।
धनु राशि :- सफलता के साधन जुटायें, धन लाभ, आशानुकूल सफलता से हर्ष होगा।
मकर राशि :- क्लेश व असमंजस की स्थिति रहेगी, धन लाभ, आशानुकूल सफलता से हर्ष होगा।
कुंभ राशि :- इष्ट मित्र सुखवर्धक होगा, स्त्री शरीर कष्ट, मित्र की चिन्ता से मन असमंजस में रहेगा।
मीन राशि :- इष्ट मित्र सहायक रहेगा, दैनिक कार्यगति अनुकूल रहेगी, कार्य समय पर करें।
भगवान की आरती करने का सही समय कौन सा है?
9 Jul, 2023 07:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
Aarti time : भगवान की पूजा के बाद उनकी आरती की जाती है। आरती को 'आरात्रिक' अथवा 'नीराजन' के नाम से भी पुकारा गया है। आरती को पूजा का समापन माना जाता है।
आरती के बाद सभी को प्रसाद बांटा जाता है। मंदिर में या घर में आरती करने का एक समय नियुक्त है। उसी समय पर आरती करना चाहिए। आओ जानते हैं कि कब-कब की जाती है भगवान की आरती और क्या नाम है उन आरतीयों के।
कुछ प्रसिद्ध मंदिरों में परंपरा अनुसार आरती करने का समय अलग अलग होता है, परंतु एक निश्चित समय के बाद ही आरती करते हैं. जैसे संध्या आरती तब करते हैं जबकि सूर्यास्त के बाद दिन अस्त हो जाता है। यह माना जाता है कि भारत के अधिकतर क्षेत्रों में शाम को 7:15 पर दिन अस्त हो जाता है। इसके बाद ही आरती करते हैं।
आठ प्रहर : आरती का समय से ज्यादा प्रहर से संबंध होता है। 24 घंटे में 8 प्रहर होते हैं। दिन के चार प्रहर- 1.पूर्वान्ह, 2.मध्यान्ह, 3.अपरान्ह और 4.सायंकाल। रात के चार प्रहर- 5. प्रदोष, 6.निशिथ, 7.त्रियामा एवं 8.उषा। एक प्रहर तीन घंटे का होता है। पूर्वान्ह काल में मंगल आरती और सायंकाल में संध्या आरती होती है।
मंगल आरती : Mangal Aarti : 6am
पूजा आरती : Puja Aarti 6:30am
श्रृंगार आरती : Shrigar Aarti 7:30 am
भोग आरती : Bhog Aarti 10:30 am
धूप आरती : Dhoop Aarti 12:00
संध्या आरती : Sandhya Aarti 7:15pm
शयन आरती : Shayan Aarti : 8:30
हर मंदिर में उपरोक्त आरती का समय भिन्न भिन्न होता है। यह अंतर परंपरा से या स्थानीय समयानुसार होता है। हालांकि इसमें समय से ज्यादा प्रहर का ध्यान रखा जाता है। कई जगहों पर धूप आरती और पूजा आरती नहीं होती। श्रृंगार के समय ही पूजा होती है। भोग आरती के समय ही धूप आरती हो जाती है।