धर्म एवं ज्योतिष (ऑर्काइव)
7 जुलाई को शुक्र सिंह राशि में करेंगे प्रवेश, 5 राशियों के लोगों को होगा खूब लाभ
5 Jul, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
Shukra Gochar 2023: सुख-समृद्धि के कारक ग्रह शुक्र 7 जुलाई को सिंह राशि में प्रवेश करेंगे. यहां पहले से विराजमान मंगल के साथ शुक्र की युति बनेगी. इसके कई तरह के परिणाम निकलेंगे. ज्योतिष में शुक्र मंगल की युति शुभ फल देने वाला मानी गई है.
इसका पांच राशियों के लोगों पर विशेष असर पड़ेगा. ज्योतिषियों के अनुसार इनकी उन्नति होगी और खूब धन लाभ होगा.
Shukra Gochar in Leo: पंचांग के अनुसार शुक्र का राशि परिवर्तन 7 जुलाई को सुबह 3.59 बजे हो रहा है. प्रेम, सौंदर्य और भौतिक सुख सुविधा के कारक शुक्र के सिंह राशि में प्रवेश से मंगल के साथ युति बनेगी. इस संयोग से वृष और कर्क समेत 5 राशियों पर बेहद शुभ प्रभाव पड़ेगा, आइये जानते हैं इन राशियों के लोगों को क्या लाभ होने वाला है.
शुक्र गोचर का वृषभ राशि पर प्रभाव
ज्योतिषियों के अनुसार शुक्र गोचर के प्रभाव से वृषभ राशि के जातकों का पारिवारिक जीवन खुशहाल होगा और भाग्य का साथ प्राप्त होगा. घर में खुशियां आएंगी और धन लाभ होगा. इस अवधि में नया वाहन खरीदने का मन बन सकता है. इस समय वृष राशि वाले प्रॉपर्टी में भी निवेश कर सकते हैं. परिवार में सुख सुविधा की चीजों की बढ़त होगी. हालांकि माता के स्वास्थ्य की चिंता रहेगी, लेकिन थोड़े समय में स्थितियां बेहतर भी हो जाएंगी. वृषभ राशि के स्टूडेंट्स के लिए सफलता के योग हैं. कुछ लोग बैंक से लोन लेकर नया कारोबार शुरू कर सकते हैं, नौकरी में भी स्थिति बेहतर ही रहेगी.
कर्क राशि पर प्रभाव
शुक्र गोचर कर्क राशि के लोगों के लिए भी लाभदायक होने वाला है. इस राशि के जातकों के जीवन में आनंद बढ़ेगा और व्यक्तित्व आकर्षक बनेगा. इस समय कर्क राशि के लोगों के लिए धन लाभ के नए योग बनेंगे. इस समय बचत बढ़ेगी, आय के नए स्रोत बनेंगे. इससे आत्मविश्वास भी बढ़ेगा. रोजगार के संबंध में खुशखबरी मिल सकती है. व्यवसाय से जुड़े हैं तो भी यह समय शुभ परिणाम वाला है. हालांकि नौकरीपेशा लोगों को काम पर ध्यान देना होगा, इस अवधि में कर्क राशि वालों को अच्छा भोजन नसीब होगा.
कन्या राशि पर प्रभाव
शुक्र के सिंह राशि में प्रवेश का असर कन्या राशि के लोगों पर भी पड़ेगा. जो शुभ फलदायक होगा. शुक्र का यह राशि परिवर्तन कन्या राशि वालों के लिए सुख समृद्धि बढ़ाने वाला होगा. विशेष रूप से इस राशि के जो लोग विदेश से संबंधित व्यापार करते हैं, उनके लिए यह गोचर बहुत ही लाभदायक माना जा रहा है. इस समय आपकी विदेश जाने की इच्छा पूरी हो सकती है, आप अपने शौक पूरे करने के लिए खर्च करने में सफल होंगे. इस समय खुश रहेंगे, आमदनी बढ़ेगी. जीवन संतुलित रहेगा. परिवार का माहौल खुशनुमा रहेगा.
शुक्र के राशि परिवर्तन का तुला राशि पर प्रभाव
शुक्र के सिंह राशि में प्रवेश का तुला राशि के जातकों पर भी शुभ प्रभाव पड़ने वाला है. इस अवधि में तुला राशि के जातक आर्थिक रूप से मजबूत रहेंगे. काफी समय से लटके जरूरी काम पूरे होंगे, इससे आपका आत्मविश्वास बढ़ेगा. नौकरी में आपकी स्थिति मजबूत होगी, आप अच्छे से काम कर पाएंगे. बॉस प्रसन्न रहेगा.
कुंभ राशि पर प्रभाव
शुक्र गोचर से जिन राशियों की लॉटरी लगने वाली है, उसमें कुंभ भी शामिल है. शुक्र के गोचर से कुंभ राशि के लोगों की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी. अच्छी आमदनी होगी. जीवनसाथी के साथ गलतफहमियां दूर होंगी और एक-दूसरे के करीब आएंगे. यदि आप जीवनसाथी के साथ कोई बिजनेस करते हैं तो इस वक्त लाभ होगा. परिवार के लोगों से सहयोग मिलेगा. पारिवारिक माहौल खुशनुमा रहेगा, किसी यात्रा की भी योजना बन सकती है.
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (05 जुलाई 2023)
5 Jul, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- कार्य उन्नति, वाहन भय, शरीर कष्ट, कार्य में सफलता अवश्य मिलेगी।
वृष राशि :- खर्च, विद्या बाधा, शुभ कार्य खर्च, मानसिक कार्य तथा शुभ समाचार का योग है।
मिथुन राशि :- राजकार्य से हानि, घर में विरोध, अपव्यय, शिक्षा तथा लेखन कार्य में रुकावट बने।
कर्क राशि :- संतान कष्ट, आर्थिक कष्ट, खर्च, शुभ धार्मिक कार्य तथा बाधा का योग है।
सिंह राशि :- हर्ष, भय, तबादला, कुछ प्रसन्नता का योग है, परिवार में सुख रहेगा।
कन्या राशि :- हानि, अपव्यय, मातृ-कष्ट, शिक्षा जगत से लाभ अवश्य होगा, ध्यान दें।
तुला राशि :- लाभ, संतान सुख, रोग, मातृ कष्ट तथा शिक्षा में पद-प्रतिष्ठा प्राप्त होगी, संतोष होगा।
वृश्चिक राशि :- संतान लाभ, शुभ-अभीष्ट कार्य सिद्धी, स्वजन कार्य तथा संतान से कष्ट अवश्य ही होगा।
धनु राशि :- राज कष्ट, भय, स्त्री-कष्ट, कार्यसिद्धी, धन लाभ अवश्य होगा, ध्यान दें।
मकर राशि :- विवाद कष्ट, यात्रा हानि, घर में कष्ट, नौकरी की स्थिति सामान्य बनी रहेगी।
कुंभ राशि :- कार्य योग, बिगड़े कार्य बन जायेंगे, विरोधी से सतर्क रहकर कार्य करें।
मीन राशि :- रुके कार्य अवश्य एक-एक करके बना लेवें, अच्छे समय का आप दोहन कर लेवें।
70 दिनों तक महाकाल गर्भगृह में प्रवेश बंद, भस्मारती का समय भी बदला, क्यों लेना पड़ा ये फैसला?
4 Jul, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
उज्जैन. इस बार सावन मास (Sawan 2023) 4 जुलाई, मंगलवार से शुरू होकर 31 अगस्त तक रहेगा। इस दौरान प्रमुख शिव मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ेगी। लगभग सभी प्रमुख मंदिरों में सावन के लेकर व्यवस्थाओं में बदलाव किया गया है।
उज्जैन का महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर (Mahakal Temple Ujjain) भी इनमें से एक है। यहां मंदिर प्रबंध समिति ने श्रृद्धालुओं की संख्या को देखते हुए रोज होने वाली भस्मारती (Mahakal Bhasmarti) के समय में परिवर्तन किया है।
सावन के दौरान ये रहेगा भस्मारती का समय (Mahakal Bhasmarti Time In Sawan 2023)
सावन मास के दौरान भक्तों की संख्या को देखते हुए महाकाल मंदिर प्रंबंध समिति ने अपनी व्यवस्थाओं में परिवर्तन किए हैं। इसके अंतर्गत रोज सुबह 4 बजे की जाने वाली भस्म आरती सोमवार को छोड़कर तड़के 3 बजे की जाएगी। वहीं प्रत्येक सोमवार को इसका समय रात 2.30 बजे का रहेगा। इसके बाद भक्त दिन भर भगवान महाकाल के दर्शन कर जल-पुष्प चढ़ा सकेंगे।
क्यों खास है भस्मारती? (Why is Bhasmarti special?)
12 ज्योतिर्लिगों में से एक मात्र महाकालेश्वर में ही भस्मारती की परंपरा है। मान्यता है कि किसी समय मुर्दे की भस्म से भस्मारती की जाती थी, लेकिन बाद में ये नियम बदल दिया गया। वर्तमान में कपिला गाय के गोबर से बने कंडे, शमी, पीपल, पलाश, बड़, अमलतास आदि पेड़ की लकडि़यों को जलाकर भस्म तैयार की जाती है। इसे से भस्मारती की जाती है।
आप कैसे कर सकते हैं भस्मारती के दर्शन? (How can you visit Bhasmarti?)
अगर आप भी सावन में महाकाल के भस्मारती के दर्शन करना चाहते हैं तो इसके लिए तीन माध्यम हैं। सबसे पहले है ऑनलाइन, इसके लिए आपको महाकाल मंदिर की वेबसाइट पर जाकर बुकिंग करनी होगी, ये व्यवस्था सशुल्क है। अगर यहां बुकिंग फुल हो जाएं तो फिर आपको मंदिर के समीप बने भस्मारती काउंटर पर जाकर एक फार्म भरना होगा। इसमें अधिकतम 150 लोगों को प्रतिदिन अनुमति दी जाती है। ये व्यवस्था नि:शुल्क है। इसके अलावा प्रोटोकॉल के तहत भी भस्मारती की अनुमति ली जा सकती है।
70 दिनों तक बंद रहेगा महाकाल गर्भगृह में प्रवेश
महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति ने एक निर्णय ये भी लिया है कि सावन मास के दौरान भक्तों का गर्भगृह में प्रवेश बंद रहेगा। ये नियम 4 जुलाई से लागू होगा, जो 11 सितंबर तक रहेगा, यानी लगभग 70 दिनों तक। सावन मास के प्रत्येक सोमवार और भादौ के प्रथम 2 सोमवार को भगवान महाकाल की 10 सवारी इस बार निकाली जाएगी।
सावन मास में अधिकमास कब से कब तक रहेगा
4 Jul, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
Adhik maas 2023 : अधिकमास को पुरुषोत्तम मास भी कहते हैं। इस बार श्रावण मास पूरे दो माह का रहेगा क्योंकि इसमें अधिमास के दिन जुड़ रहे हैं। इसके चलते सावन माह में इस बार 8 सोमवार रहेंगे और अधिमास के सोमवार एवं शिवरात्रि भी रहेगी।
आओ जानते हैं कि सावन मास में अधिकमास कब से कब तक रहेगा।
क्या होता है अधिकमास : हिन्दू चंद्र मास के अनुसार हर तीसरे साल में एक बार आता है। यानी हर तीसरे वर्ष 12 माह की जगह 13 माह होते हैं। अधिक मास किसे कहते हैं और यह कब से प्रारंभ हो रहा है। इस माह में क्या करें और क्या नहीं करना चाहिए।
कब से शुरु होगा अधिक मास | When will more months start : इस बार श्रावण माह के अंतर्गत अधिकमास प्रारंभ हो रहा है। सावन का महीना 4 जुलाई से प्रारंभ होकर 31 अगस्त तक चलेगा जबकि 18 जुलाई से अधिकमास प्रारंभ होगा जो 16 अगस्त को समाप्त होगा। अधिकमास के भी दिन जुड़ जाने के कारण इस बार श्रावण मास 59 दिन होगा जिसमें 8 सोमवार रहेंगे।
अधिक मास में विवाह तय करना, सगाई करना, कोई भूमि, मकान, भवन खरीदने के लिए अनुबंध किया जा सकता है। खरीददारी के लिए लिए भी यह शुभ योग शुभ मुहूर्त देख कर खरीद सकते हैं। इस माह में विवाह, नामकरण, श्राद्ध, कर्णछेदन व देव-प्रतिष्ठा आदि शुभकर्मों का भी इस मास में निषेध है।
सावन मास में करें रुद्रष्टाध्यायी का पाठ, जानें किस द्रव्य से अभिषेक करने से शिव जी की कृपा मिलेगी
4 Jul, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
Sawan 2023 Rudrabhishek: सावन मास शुरू होते ही पूरा माहौल शिव भक्ति में पूर्ण हो जाता है. भगवान शिव को सावन महीना बहुत ही प्रिये है इसलिए इस मास में प्रायः सभी हिन्दू परिवार में भगवान शिव का पूजन किया जाता है.
जानें सावन में किये जाने वाले ऐसे ज्योतिषीय उपायों के बारे में जो थोड़ा कठिन है लेकिन इसके प्रभाव से सभी कष्ट दूर होते हैं. सावन मास में रूद्र पाठ करने का विशेष लाभ है. आशुतोष भगवान सदा शिव की उपासना में रुद्राष्टाध्यायी का विशेष महत्व है .शिव पुराण के अनुसार सनकादि ऋषियों के पूछने पर स्वयं महादेव ने रुद्राष्टाध्यायीके मंत्रों तथा अभिषेक का महत्व बताया है मन ,कर्म तथा वाणी से परम पवित्र तथा सभी प्रकार से अशक्ति से रहित होकर भगवान शिव की प्रसन्नता के लिए रुद्राभिषेक करना चाहिए इससे भगवान शिव की कृपा से सभी कामनाओं की पूर्ति होती है. सावन में रुद्राष्टाध्यायी के द्वारा रुद्राभिषेक करने से मनुष्यों के सभी कष्ट दूर होते हैं. यह पाठ वेद्सम्मित है, परम पवित्र तथा धन, यस और आयु की विद्धि करनेवाला है. जानें रुद्राष्टाध्यायी के पाठ के दौरान अभिषेक में किये जाने वाले द्रव का नाम तथा उसका प्रभाव क्या है...
Sawan 2023: मनोकामना पूर्ति के लिए इन चीजों से करें रुद्राभिषेक
रुद्राभिषेक में प्रयुक्त होनेवाले प्रशस्त द्रव्य अपने कल्याण के लिए भगवान शिव की प्रसन्नता के लिए निष्काम भाव से रुद्राभिषेक करना चाहिए इनका अनंत फल है. शास्त्र में अलग -अलग कामनाओं की पूर्ति के लिए रुद्राभिषेक में अनेक प्रकार के द्रव्य का नियम है :
जल से अभिषेक करने पर वृष्टि होती है.
व्याधि की शांति के लिए कुशोदक से अभिषेक करना चाहिए.
पशु की प्राप्ति के लिए दही से अभिषेक करना चाहिए.
लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए गन्ने के रस से तथा धन प्राप्ति के लिए मधु से अभिषेक करें.
मोक्ष की प्राप्ति के लिए तीर्थ के जल से अभिषेक करें.
दूध के द्वारा अभिषेक करने से संतान की प्राप्ति होती है.
काकबन्ध्या ( एक संतान उत्पन करने वाली )अथवा जिनकी संतान उत्पन होते ही मर जाये या मृत संतान उत्पन करे उसे गाय के दूध से अभिषेक करने से जल्द संतान प्राप्त करती है.
जल की धारा भगवान शिव को अति प्रिय है अतः तेज बुखार हो गया हो उसको शांत करने के लिए जलधारा से अभिषेक करें.
जो लोग गलत प्रेम प्रसंग में पड़ गये हों उसका प्रेम खत्म करने के लिए यानि दूध की धारा से अभिषेक करने से प्रेम प्रसंग समाप्त होते हैं.
भगवान शिव की प्रसन्नता के लिए निष्काम भाव से रूद्रपाठ करना चाहिए जो बहुत ही फलित होता है.
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (04 जुलाई 2023)
4 Jul, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- व्यापार में प्रगति, यात्रा, सुख, खर्च अधिक होगा तथा कार्य बनेंगे।
वृष राशि :- कलह, अभीष्ट सिद्धी, धन लाभ, चिन्ता, शारीरिक सुख, मांगलिक कार्य अवरोध होगा।
मिथुन राशि :- भ्रमण, व्यापार-पद लाभ, रक्त-विकार, सामाजिक कार्य में बाधा तथा व्यावधान होगा।
कर्क राशि :- विद्या बाधा, व्यापार मध्यम, धार्मिक कार्य एवं शुभ कार्य में विशेष ध्यान दें।
सिंह राशि :- स्त्री-संतान सुख, यात्रा बाधा, आर्थिक सुधार एवं कार्य में सुधार होगा।
कन्या राशि :- भूमि लाभ, प्रवास कष्ट, व्यापार बढ़ेगा, शुभ समाचार तथा प्रसन्नता का योग है।
तुला राशि :- कारोबार मध्यम किन्तु सफलता, स्त्री कष्ट, व्यर्थ कार्य में व्यस्तता तथा परेशानी होगी।
वृश्चिक राशि :- थोड़ा लाभ, खेती की चिन्ता, उलझन, शिक्षा की स्थिति सामान्य लाभ दायक होगी।
धनु राशि :- शुरु में सुख, हानि, उन्नति, खेती के योग मध्यम, कुछ अच्छे कार्य अवश्य ही बनेंगे।
मकर राशि :- हर्ष, भूमि लाभ, यश, कारोबार बढ़ेगा, कारोबार में ध्यान दें।
कुंभ राशि :- कार्य हानि, राजभय, स्त्री सुख, कार्य सिद्धी, जमीन-जायजाद तथा गृहकार्य पूर्ण होंगे।
मीन राशि :- विधि बाधा तथा चोर से भय, पारिवारिक लोगों से लाभ तथा सफलता मिलेगी।
छतरपुर के इस मंदिर की है कई सारी अनसुनी बातें
3 Jul, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
छतरपुर मंदिर, भारत के मध्य प्रदेश राज्य के छतरपुर जिले में स्थित एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। यह हिंदू धर्म का प्रमुख तीर्थस्थान है और देशभर से दर्शनार्थी इसे आकर्षित करते हैं।
इस मंदिर का इतिहास गहरी सांस्कृतिक और धार्मिक महत्वपूर्णता के साथ जुड़ा हुआ है। इस लेख में, हम छतरपुर मंदिर के विभिन्न पहलुओं के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।
छतरपुर मंदिर भारत के मध्य प्रदेश राज्य के छतरपुर जिले में स्थित है और यह एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। यहां हम छतरपुर मंदिर से जुड़ी कुछ खास बातें विस्तार से जानेंगे:
भव्य संरचना: छतरपुर मंदिर एक भव्य और आकर्षक संरचना है। इसकी मार्बल से बनी दीवारें, शिखर और मंदिर की सुंदरता इसे विशेष बनाती हैं।
मंदिर का इतिहास: छतरपुर मंदिर की स्थापना 1956 में हुई थी। इसके निर्माण में करीब 20 वर्ष लगे थे। मंदिर का निर्माण मूल रूप से पंडित जी के सपने के आधार पर हुआ था।
प्रमुख मूर्तियाँ: छतरपुर मंदिर में कई प्रमुख मूर्तियाँ हैं। मां शक्ति के रूप में जानी जाने वाली माता वैश्नो देवी के दर्शन के लिए यहां लाखों श्रद्धालु आते हैं।
उत्सव और मेले: छतरपुर मंदिर में विभिन्न उत्सव और मेले आयोजित किए जाते हैं। यहां होने वाले उत्सवों में श्रद्धालुओं की भीड़ बहुत अधिक होती है और यहां के दर्शनार्थियों को धार्मिक और सांस्कृतिक आनंद मिलता है।
प्राकृतिक सुंदरता: मंदिर का आसपास का पर्यावरण भी बहुत प्राकृतिक और सुंदर है। यहां की धरती, वृक्ष, फूलों का आभास देखने योग्य होता है और यहां की शांति और प्रकृति से चित्त तृप्ति मिलती है।
आरामदायक सुविधाएं: छतरपुर मंदिर में आरामदायक सुविधाएं भी हैं। यहां पर्यटक आवास, भोजन सुविधाएं और पार्किंग की व्यवस्था है। इससे आपके यात्रा का अनुकूल और सुखद अनुभव होता है।
धार्मिक सेवाएं: छतरपुर मंदिर धार्मिक सेवाओं को प्रदान करने के लिए भी मशहूर है। यहां पर्यटकों को आध्यात्मिक गाइडेंस और पूजापाठ की सुविधा मिलती है।
छतरपुर मंदिर, मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित है और यह भारतीय संस्कृति और धर्म का एक महत्वपूर्ण स्थल है। इसका निर्माण भगवान वैष्णव देवी को समर्पित है और यह एक प्रमुख पैलेस और मंदिर का समन्वय है। छतरपुर मंदिर का इतिहास गहरी धार्मिक और सांस्कृतिक महत्वपूर्णता से जुड़ा हुआ है।
मंदिर की स्थापना
छतरपुर मंदिर का निर्माण श्रद्धालु और साधक पंडित जी द्वारा किया गया था। उनके स्वप्न में भगवान वैष्णव देवी की आवाज सुनी गई थी, जिसने उन्हें इस मंदिर की स्थापना के लिए प्रेरित किया। इसके निर्माण में कई वर्षों की मेहनत और धैर्य की आवश्यकता थी। निर्माण का कार्य 1956 में शुरू हुआ और लगभग 20 वर्षों तक चला।
मंदिर का विशेषता
छतरपुर मंदिर एक भव्य संरचना है जिसकी विशेषता उसकी शिल्पकारी और स्वर्णिम मुख्यद्वार है। इसके मुख्य भव्य शिखरों में अद्वितीय सांस्कृतिक और धार्मिक महत्त्व को प्रतिष्ठित किया गया है। मंदिर की मार्बल से बनी दीवारें और शिलापट्टों की कला इसे और भी आकर्षक बनाती हैं।
मंदिर के प्रमुख उत्सव और आराधना
छतरपुर मंदिर में वर्षभर में कई धार्मिक उत्सव आयोजित होते हैं। इनमें से प्रमुख उत्सव में नवरात्रि, जन्माष्टमी, नवग्रहों की पूजा, महाशिवरात्रि, दीपावली, होली, और नवदुर्गा पूजा शामिल हैं। ये उत्सव मंदिर में भक्तों की भीड़ आती है और यहां परंपरागत रूप से मनाए जाते हैं।
मंदिर का महत्व
छतरपुर मंदिर भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान है। यहां प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु आते हैं और मां वैष्णवी की कृपा को प्राप्त करते हैं। छतरपुर मंदिर एक धार्मिक और आध्यात्मिक संगम है जहां लोग शांति, समृद्धि और धार्मिकता की खोज में आते हैं।
इस प्रमुख धार्मिक स्थल का इतिहास गहरी आद्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत के साथ जुड़ा हुआ है। छतरपुर मंदिर आपकी आध्यात्मिक यात्रा को और अद्भुत बना सकता है।
गुरू पूर्णिमा पर राशिनुसार करें इन मंत्रों का जाप
3 Jul, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
अर्थात- गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर. गुरु ही साक्षात परब्रह्म है, ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूं.
सनातन धर्म में गुरु के महत्व का खास रूप से वर्णन किया गया है। पौराणिक काल से ही गुरु का स्थान देवताओं से ऊपर बताया गया है। प्रत्येक वर्ष गुरु के प्रति अपनी आस्था दिखाने के लिए आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर गुरु पूर्णिमा का त्योहार मनाया जाता है। इस साल गुरु पूर्णिमा का त्योहार 03 जुलाई, सोमवार के दिन मनाया जाएगा। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, गुरु पूर्णिमा का पर्व महर्षि वेदव्यास की जयंती के तौर पर मनाया जाता है। गुरु की पूजा प्रभु की पूजा के समान है. दीक्षा से मनुष्य दिव्यता प्राप्त करता है. गुरु का ज्ञान हमें कामयाबी का रास्ता दिखाता है. लिहाजा गुरु पूर्णिमा पर विधिवत रूप से गुरु पूजन करना चाहिए. आइए जानते हैं गुरु पूर्णिमा पर राशि अनुसार किन मंत्रों का जाप करने से गुरु की विशेष कृपा प्राप्त हो सकती है.
गुरू पूर्णिमा पर राशि अनुसार मंत्र का जाप करें:-
मेष- मंत्र - ॐ अव्ययाय नम:
वृषभ- ॐ जीवाय नम:
मिथुन- ॐ धीवराय नम:
कर्क- ॐ वरिष्ठाय नम:
सिंह- ॐ स्वर्णकायाय नम:
कन्या- ॐ हरये नम:
तुला- ॐ विविक्ताय नम:
वृश्चिक- ॐ जीवाय नम:
धनु- ॐ जेत्रे नम:
मकर- ॐ गुणिने नम:
कुंभ- ॐ धीवराय नम:
मीन- ॐ दयासाराय नम:
गुरु शिष्य परंपरा का उत्सव है गुरू पुर्णिमा
3 Jul, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
गुरु पूर्णिमा गुरु व शिष्य की परंपरा के लिए विशेष उत्सव होता है। गुरु अपने ज्ञान से शिष्य को सही मार्ग पर ले जाते हैं। इसलिए गुरुओं के सम्मान में हर वर्ष यह पर्व मनाया जाता है। गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु के अलावा भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की भी पूजा की जाती है। आषाढ़ मास की पूर्णिमा के दिन महाभारत के रचयिता महर्षि वेद व्यास का जन्म हुआ था। उनकी जन्मतिथि के उपलक्ष्य में पूजा की जाती है।
गुरु पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने अपने पहले सात शिष्यों सप्तऋषियों को सबसे पहले योग का ज्ञान प्रदान किया था। इस प्रकार आदियोगी शिव इस दिन आदि गुरु यानी पहले गुरु बने। सप्तऋषि इस ज्ञान को लेकर पूरी दुनिया में गए। आज भी धरती की हर आध्यात्मिक प्रक्रिया के मूल में आदियोगी द्वारा दिया गया ज्ञान ही है। गुरु साधक के अज्ञान को मिटाता है। ताकि वह अपने भीतर ही सृष्टि के स्रोत का अनुभव कर सके। पारंपरिक रूप से गुरु पूर्णिमा का दिन वह समय है जब साधक गुरु को अपना आभार अर्पित करते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। योग साधना और ध्यान का अभ्यास करने के लिए गुरु पूर्णिमा को विशेष लाभ देने वाला दिन माना जाता है।
गुरु शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा से हुई है और इसका गहन आध्यात्मिक अर्थ है। इसके दो अक्षरों गुरू में गु शब्द का अर्थ है अज्ञान। रु शब्द का अर्थ है आध्यात्मिक ज्ञान का तेज जो आध्यात्मिक अज्ञान का नाश करता है। संक्षेप में गुरु वे हैं जो मानव जाति के आध्यात्मिक अज्ञान रूपी अंधकार को मिटाते हैं और उसे आध्यात्मिक अनुभूतियां और आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करते हैं ।
गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरम्भ में आती है। इस दिन से चार महीने तक साधु-सन्त एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं। ये चार महीने मौसम की दृष्टि से भी सर्वश्रेष्ठ होते हैं। न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी। इसलिए अध्ययन के लिए उपयुक्त माने गए हैं। जैसे सूर्य के ताप से तृप्त भूमि को वर्षा से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है। वैसे ही गुरु-चरणों में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शान्ति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है।
यह दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मदिन भी है। वे संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे और उन्होंने चारों वेदों की भी रचना की थी। इस कारण उनका एक नाम वेद व्यास भी है। उन्हें आदिगुरु कहा जाता है और उनके सम्मान में गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है। भक्तिकाल के संत घीसादास का भी जन्म इसी दिन हुआ था वे कबीरदास के शिष्य थे।
गुरु तथा देवता में समानता के लिए एक श्लोक में कहा गया है कि जैसी भक्ति की आवश्यकता देवता के लिए है वैसी ही गुरु के लिए भी। सिख धर्म में भी गुरु को भगवान माना जाता है। इस कारण गुरु पूर्णिमा सिख धर्म का भी अहम त्यौहार है। सिख धर्म केवल एक ईश्वर और अपने दस गुरुओं की वाणी को ही जीवन का वास्तविक सत्य मानता है।
आषाढ़ की पूर्णिमा को चुनने के पीछे गहरा अर्थ है कि गुरु तो पूर्णिमा के चंद्रमा की तरह हैं। जो पूर्ण प्रकाशमान हैं और शिष्य आषाढ़ के बादलों की तरह। आषाढ़ में चंद्रमा बादलों से घिरा रहता है जैसे बादल रूपी शिष्यों से गुरु घिरे हों। गुरू अंधेरे में भी चांद की तरह चमक सके। उस अंधेरे से घिरे वातावरण में भी प्रकाश जगा सके तो ही गुरु पद की श्रेष्ठता है। इसलिए आषाढ़ की पूर्णिमा का महत्व है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रति वर्ष गुरु पूर्णिमा उत्सव अपनी सभी शाखाओं पर मनाता है। संघ के छह उत्सवों में से एक गुरु पूर्णिमा भी है। गुरु पूर्णिमा के दिन देश में संघ की सभी शाखाओं पर स्वयंसेवक इस उत्सव को मनाएंगे। संघ के स्वयंसेवक किसी व्यक्ति को नहीं बल्कि भगवा ध्वज को अपना गुरु मानते हैं। उस दिन भगवा ध्वज की पूजा करने के साथ-साथ गुरु के प्रति जो भी बनता है समर्पण भी करते हैं। संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने स्वयंसेवकों के लिए गुरु पूजा प्रारंभ की। यह गुरु कोई व्यक्ति नहीं बल्कि भगवा ध्वज है। संघ तत्व पूजा करता है व्यक्ति पूजा नहीं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने गुरु के स्थान पर भगवाध्वज को स्थापित किया है। भगवाध्वज त्याग, समर्पण का प्रतीक है। स्वयं जलते हुए सारे विश्व को प्रकाश देने वाले सूर्य के रंग का प्रतीक है। संपूर्ण जीवों के शाश्वत सुख के लिए समर्पण करने वाले साधु, संत भगवा वस्त्र ही पहनते हैं। इसलिए भगवा, केसरिया त्याग का प्रतीक है।
महान संत कबीरदास जी ने गुरु के महत्व को इस तरह बताया है-
गुरू गोविन्द दोऊ खड़े काके लागु पांय,
बलिहारी गुरू आपने गोविन्द दियो बताय।
अर्थात यदि भगवान और गुरु दोनों सामने खड़े हो तो गुरु के चरण पहले छूना चाहिये क्योंकि उसने ही ईश्वर का बोध करवाया है। गुरु का स्थान भगवान से भी ऊंचा है। प्रसिद्ध सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य को अपना गुरु बनाकर ही राज सिंहासन पाया था। इतिहास में हर महान राजा का कोई न कोई गुरु जरुर था। गुरु और शिष्य का रिश्ता बहुत मधुर होता है। प्राचीन भारत में आज की तरह स्कूल, कॉलेज नहीं होते थे। उस समय गुरुकुल प्रणाली द्वारा शिक्षा दी जाती थी। समाज के सभी वर्गों के बालक गुरुकुल जाकर शिक्षा प्राप्त करते थे। वो गुरुकुल (आश्रम) में ही रहकर शिक्षा प्राप्त करते थे।
नेपाल में इसे गुहा पूर्णिमा के रूप में मनाते है। छात्र अपने गुरु को स्वादिस्ट व्यंजन, फूल मालाएं, विशेष रूप से बनाई गयी टोपी पहनाकर गुरु का स्वागत करते है। स्कूल में गुरु की मेहनत को प्रदर्शित करने के लिए मेलो का आयोजन किया जाता है। इस दिवस को मनाकर गुरु-शिष्य का रिश्ता और भी मजबूत हो जाता है।
गुरु का आशीर्वाद सबके लिए कल्याणकारी व ज्ञानवर्धक होता है। इसलिए इस दिन गुरु पूजन के उपरांत गुरु का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए। आज के भागदौड़ भरे भौतिकतावादी समाज में हमे गुरु की बहुत अधिक जरूरत होती है। गुरु का महत्व सिर्फ शिक्षा के क्षेत्र में ही नही बल्कि व्यापक अर्थ में देखने को मिलता है। अब तो आध्यात्मिक शांति के लिए अनेक लोग किसी न किसी गुरु की शरण में चले जाते है। इसलिए हर भटके हुए व्यक्ति को सही मार्ग दिखाने का काम गुरु की कर सकता है। इसलिए गुरु का अर्थ बहुत व्यापक और बड़ा है। हम सभी को अपने गुरु जनों को कोटि-कोटि प्रणाम करना चाहिये। उन्होंने जो ज्ञान हमे दिया उनका मूल्य कभी भी नही चुकाया जा सकता है।
गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु यंत्र की स्थापना करने से जीवनभर सौभाग्य में कमी नहीं होती है। हर कार्य पूरे होते हैं। कार्यक्षेत्र में सफलता मिलती है। गुरु पूर्णिमा उन सभी आध्यात्मिक और अकादमिक गुरुजनों को समर्पित परम्परा है। जिन्होंने कर्म योग आधारित व्यक्तित्व विकास को प्रबुद्ध करने, बहुत कम अथवा बिना किसी मौद्रिक खर्चे के अपनी बुद्धिमता को साझा करने के लिए तैयार हों। गुरू पूर्णिमा को भारत, नेपाल और भूटान में हिन्दू, जैन और बोद्ध धर्म के अनुयायी उत्सव के रूप में मनाते हैं। महात्मा बुद्ध ने इस दिन उत्तर प्रदेश के सारनाथ में अपना पहला उपदेश दिया था।
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (03 जुलाई 2023)
3 Jul, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- यात्रा, विवाद, मातृ कष्ट, व्यय तथा विरोध होगा किन्तु मानसिक कष्ट होगा।
वृष राशि :- धन व्यय, व्यापार में प्रगति, शुभ कार्य होगा परिणाम अनुरुप ही रहेगा।
मिथुन राशि :- यात्रा, शत्रुभय, विरोध, लाभ, हर्ष, गृहकार्य, व्यवस्था पूर्ण अवश्य ही बनेगी।
कर्क राशि :- यात्रा शुभ, भूमि-खेती लाभ, हर्ष, दूषित वातावरण अवश्य ही बनेगा, ध्यान दें।
सिंह राशि :- यात्रा, भूमि-खेती लाभ, हर्ष, दूषित वातावरण बनेगा, समय का ध्यान अवश्य रखें।
कन्या राशि :- धन लाभ, नेत्र पीड़ा अवश्य होगी, यात्रा परेशानी युक्त होगी, ध्यान दें।
तुला राशि :- सुख, सफलता, निर्माण कार्य, प्रवास व राजकार्य व्यवस्था से लाभ अवश्य होगा।
वृश्चिक राशि :- मानसिक तनाव अवश्य ही बढ़ेगा तथा स्वजनों की सहानुभूति अवश्य ही होगी।
धनु राशि :- व्यवसाय की उन्नति से आर्थिक विशेष सुधार होगा, विरोध कार्य होगा।
मकर राशि :- विलास सामग्री का संचय होगा, अधिकारी वर्ग की कृपा का लाभ अवश्य मिलेगा।
कुंभ राशि :- इष्ट मित्रों से अच्छा सहयोग मिले, उत्तम लाभ के योग अवश्य ही बनेंगे, ध्यान दें।
मीन राशि :- गृह कलह, हीन मनोवृत्ति, शरीर पीड़ा तथा परदेश जाने की यात्रा अवश्य बनेगी।
श्रावण माह के पावन महीने मं भूलकर भी न करें ये काम, रूठ सकते हैं महादेव; जानें क्या करें क्या न
2 Jul, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
Sawan 2023: हिंदू धर्म में सावन माह या श्रावण माह को बहुत शुभ महीना माना जाता है। यह भगवान शिव का सबसे प्रिय महीना है। हिंदू पंचांग के अनुसार, हिंदू चंद्र कैलेंडर का पांचवां महीना है, जो साल के सबसे पवित्र महीनों में से एक है।
इस बार 4 जुलाई को सावन शुरू हो रहा है जिसकी तैयारियों में भक्त जुटे हुए हैं।
इस अवधि के दौरान प्रत्येक सोमवार को व्रत रखने और भगवान शिव का आशीर्वाद पाने के लिए अत्यधिक शुभ समय माना जाता है। यहां कुछ क्या करें और क्या न करें के बारे में बताया गया है जिसे उपवास के दौरान ध्यान में रखना चाहिए।
हालांकि, इस महीने में भगवान शिव की पूजा करने के अलावा कुछ ऐसी चीजे हैं जो भक्तों को नहीं करनी चाहिए। आइए बताते हैं आपको ऐसे कौन से काम है जो आपके सावन महीने में नहीं करना चाहिए...
- व्रत रखने वाले भक्तों को लहसुन और प्याज खाने से परहेज करना चाहिए।
- भगवान शिव की पूजा करते हुए कभी भी उन्हें केतकी का फूल नहीं चढ़ाना चाहिए। चाहे सावन का महीना हो या अन्य कोई महीना भक्तों को कभी शिव को केतकी का फूल नहीं चढ़ाना चाहिए।
- सावन के दौरान शराब का सेवन करना पाप माना जाता है।
- इस अवधि के दौरान डेयरी मछली और अंडे सहित मांसाहारी वस्तुओं का सेवन करना भी उचित नहीं है क्योंकि वे जीवित चीजों की मृत्यु का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- भगवान शिव की पूजा के दौरान हल्दी और तुलसी के पत्तों का उपयोग भी वर्जित हैं।
- सुबह जल्दी उठने के बाद, भक्तों को स्नान करना चाहिए और अपने पूजा कक्ष को साफ करना चाहिए।
- इसके बाद थोड़ा सा गंगा जल छिड़कें। इसके बाद उन्हें जल, दूध, चीनी, घी, दही, शहद, जनेऊ (पवित्र धागा), चंदन, फूल, बेलपत्र, लौंग, इलायची, मिठाई आदि भगवान शिव को अर्पित करें और विधि विधान से उनकी पूजा करें।
- शिव मंत्रों का जाप करना चाहिए।
- जो भक्त व्रत रखते हैं वे अपना उपवास तोड़ सकते हैं और शाम को 'व्रत भोजन' कर सकते हैं।
बता दें कि इस साल सावन दो महीनों में पड़ रहा है। इससे पहले, लगभग दो महीने लंबी श्रावण अवधि लगभग 19 साल पहले मनाई गई थी। इस वर्ष 10 जुलाई को इस अवधि का पहला व्रत सोमवार है जबकि 28 अगस्त को इस अवधि का आखिरी सोमवार व्रत है।
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, हर तीन साल में एक अतिरिक्त महीना तब जोड़ा जाता है जब सूर्य अपनी राशि बदलता है, या एक राशि से दूसरी राशि में संक्रमण करता है। इस गोचर को संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है।
परिणामस्वरूप, एक सौर वर्ष में 12 संक्रांतियां होती हैं और जिस महीने में कोई संक्रांति नहीं होती, उसे मलमास या अधिकमास कहा जाता है। आमतौर पर इस महीने में कोई भी शुभ या नया कार्य या अनुष्ठान नहीं किया जाता है।
इस वर्ष मलमास 18 जुलाई 2023 को प्रारंभ होकर 16 अगस्त 2023 को समाप्त होगा। इस साल सावन 4 जुलाई से 31 अगस्त तक 58 दिनों तक चलेगा।
गुरु पूर्णिमा से पद्मिनी एकादशी तक, जुलाई में आएंगे ये प्रमुख व्रत-त्योहार
2 Jul, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
July 2023 Vrat Tyohar Full List 2023: जुलाई का महीना शुरू हो चुका है और यह महीना व्रत-त्योहार के लिहाज से बेहद खास रहने वाला है. इस महीने श्रावण मास, गुरु पूर्णिमा, कांवड़ यात्रा, मासिक शिवरात्रि और संकष्टी चतुर्थी जैसे कई प्रमुख त्योहार आने वाले हैं.
कहते हैं कि सावन का महीना भगवान शिव को बेहद प्रिय होता है और इसमें सच्चे मन से महादेव की उपासना करने वालों को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. साथ ही, ग्रहों की चाल के लिहाज से भी जुलाई का महीना बेहद खास रहने वाला है.
जुलाई 2023 व्रत-त्योहार लिस्ट
1 जुलाई 2023: शनि त्रयोदशी
1 जुलाई 2023: जयापार्वती व्रत
1 जुलाई 2023: प्रदोष व्रत
2 जुलाई 2023: कोकिला व्रत
3 जुलाई 2023: गुरु पूर्णिमा/आषाढ़ पूर्णिमा
4 जुलाई 2023: सावन माह आरंभ
4 जुलाई 2023: पहला मंगला गौरी व्रत
6 जुलाई 2023: संकष्टी चतुर्थी
9 जुलाई 2023: भानु सप्तमी
10 जुलाई 2023: पहला सावन सोम व्रत
11 जुलाई 2023: दूसरा मंगला गौरी व्रत
13 जुलाई 2023: कामिका एकादशी
14 जुलाई 2023: प्रदोष व्रत (कृष्ण पक्ष)
15 जुलाई 2023: मासिक शिवरात्रि
16 जुलाई 2023: कर्क संक्रांति
17 जुलाई 2023: श्रावण अमावस्या/सोमवती अमावस्या/हरियाली अमावस्या
18 जुलाई 2023: तीसरा मंगला गौरी व्रत
21 जुलाई 2023: विनायक चतुर्थी
25 जुलाई 2023: चौथा मंगला गौरी व्रत
29 जुलाई 2023: पद्मिनी एकादशी
30 जुलाई 2023: प्रदोष व्रत (शुक्ल पक्ष)
ग्रहों का राशि परिवर्तन
1 जुलाई- मंगल का सिंह राशि में गोचर
7 जुलाई- सिंह राशि में शुक्र का गोचर
8 जुलाई- बुध का कर्क राशि में गोचर
25 जुलाई- बुध का सिंह राशि में गोचर
17 जुलाई- सूर्य का सिंह राशि में गोचर
सावन में पड़ रहा हरियाली व सोमवती अमावस्या का संयोग
2 Jul, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सावन में 59 दिन होंगे, 15 दिन विलंब से होगा रक्षाबंधन
हिंदू धर्म में सावन महीने का विशेष महत्व है। शिव भक्तों को सावन का बेसब्री से इंतजार रहता है। सावन महीने में लोग रोजाना शिवजी का अभिषेक-पूजन करते हैं। सावन सोमवार का व्रत रखते हैं। इस बार तो भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए सावन और भी ज्यादा खास है। इस साल भक्तों को एक नहीं दो सावन महीने मिलेंगे। महादेव के भक्तों को इस बार उनकी उपासना के लिए सावन के 4 नहीं बल्कि 8 सोमवार मिलेंगे। सावन के दूसरे सोमवार को इस बार हरियाली व सोमवती अमावस्या का संगम होगा। इस बार सावन महीने की शुरुआत 4 जुलाई से होने जा रही है। 31 अगस्त को इसका समापन होगा। इस तरह शिव भक्तों को सावन में कुल 59 दिन भगवान शिव की उपासना के लिए मिलेंगे। सावन के महीने में पुरुषोत्तम मास पड़ रहा है। इसका शास्त्रों में काफी महत्व है। इसकी वजह से कई हिन्दू त्योहारों की तिथियों में 15 दिन का अंतर भी आएगा।
18 जुलाई से 16 अगस्त तक अधिकमास-
सावन का पहला कृष्ण पक्ष 18 जुलाई को समाप्त होगा। इसके बाद 18 जुलाई से 16 अगस्त तक पुरुषोत्तम मास होगा। 16 अगस्त से 31 अगस्त तक श्रावण मास का शुक्ल पक्ष होगा।ज्योतिषाचार्य कहते हैं, इस बार के सावन का महत्व कहीं अधिक है। इसका कारण है कि एक तो सावन का महीना 59 दिनों का हो रहा है। दूसरा, सावन मास मणिकांचन योग में होगा।अधिकमास में सावन का पडऩा दुर्लभ संयोग है।
शिव, विष्णु का पूजन साथ साथ-
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार सावन के महीने में भगवान शंकर की पूजा और पुरुषोत्तम मास में भगवान विष्णु की पूजा का महत्व है। सावन के महीने के बीच में ही पुरुषोत्तम माह मनाया जाएगा। इसलिए इस बार भगवान शंकर और भगवान विष्णु की पूजा श्रावण मास के दौरान साथ साथ की जाएगी। हर साल चातुर्मास चार माह का होता है। लेकिन इस साल में सावन माह दो बार होने से चातुर्मास पांच माह का होगा। 29 जून 2023 को देवशयनी एकादशी से चातुर्मास की शुरुआत होगी । 23 नवंबर 2023 को देवउठनी एकादशी पर चातुर्मास का समापन होगा।
एक साल में घटते हैं 11 दिन
ज्योतिषाचार्य जनार्दन शुक्ला के अनुसार कई बार दो तिथि एक ही दिन होती है और कई बार एक तिथि दो दिन पड़ती है। तिथियों की इस घट बढ़ के चलते एक साल में लगभग 11 दिन घट जाते हैं। यानी हिंदू संवत्सर का साल 354 दिन का होता है। इस तरह तीन साल में 30 से 33 दिन का अंतर आ जाता है। इस अंतर को पूरा करने के लिए हर तीसरे साल में हिंदू संवत्सर का कोई न कोई महीना दो बार पड़ता है। इस साल सावन महीना दो बार पड़ेगा।
15 दिन देर से रक्षाबंधन
ज्योतिर्विद शुक्ला ने बताया कि श्रावण माह दो बार पडऩे से कई पर्व सामान्य रूप से मनाए जाने वाले दिनों से 15 दिन आगे, पीछे मनाए जाएंगे। इस साल कुछ पर्व पहले और कुछ बाद में पड़ेंगे। सावन महीने के पहले पखवाड़े में पडऩे वाले त्योहार लगभग 15 दिन पहले आएंगे। दूसरे पखवाड़े के पर्व 15 दिन बाद पड़ेंगे। इस बार रक्षाबंधन 31 अगस्त को है। जबकि यह सामान्यत: अगस्त के पहले पखवाड़े में पड़ता है।
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (02 जुलाई 2023)
2 Jul, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- मान-प्रतिष्ठा बाल-बाल बचे, कार्य-व्यवसाय गति उत्तम बनेगी, समय पर कार्य करें।
वृष राशि :- धन प्राप्ति के योग बनेंगे, नवीन मैत्री मंत्रणा प्राप्त होगी, समय का ध्यान रखें।
मिथुन राशि :- इष्ट मित्र सहायक रहेगा, व्यवसायिक क्षमता में वृद्धि होगी, रुके कार्य बनेंगे।
कर्क राशि :- सामाजिक मान-प्रतिष्ठा प्राप्त होगी, कार्य कुशलता से संतोष, रुके कार्यों पर ध्यान अवश्य दें।
सिंह राशि :- सोचे कार्य परिश्रम से समय पर पूर्ण होंगे, व्यवसाय गति उत्तम होगी, स्वास्थ्य का ध्यान रखें।
कन्या राशि :- अधिकारियों का समर्थन फलप्रद होगा, कार्य कुशलता से संतोष होगा, प्रयास से समस्या का समाधान होगा।
तुला राशि :- दैनिक कार्यगति उत्तम बनेगी तथा व्यवसायिक चिंता अवश्य ही बनेगी, धैर्य पूर्वक कार्य करें।
वृश्चिक राशि :- कार्यवृत्ति में सुधार होगा, असमंजस का वातावरण रहेगा, कार्य अवरोध होगा, सफलता मिलेगी।
धनु राशि :- स्थिति अनियंत्रित रहेगी, धैर्य एवं शांति से कार्य पर नियंत्रण अवश्य करें, समय का ध्यान रखें।
मकर राशि :- मानसिक चिन्ता, स्वाभाव में मानसिक उद्विघ्नता अवश्य ही बनेगी, समय स्थिति को देखकर कार्य करें।
कुंभ राशि :- योजनायें फलीभूत होंगी, विघटनकारी तत्व परेशान करेंगे, कष्टकारी परिस्थिति रहेगी।
मीन राशि :- मनोबल उत्साहवर्धक होगा, कार्यकुशलता से संतोष होगा, परिश्रम से लाभ अवश्य होगा।
नेपाल का पशुपतिनाथ मंदिर स्वर्ण आभूषणों की पुन: स्थापना के बाद फिर खुला
1 Jul, 2023 07:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
काठमांडू : नेपाल के काठमांडू स्थित पशुपतिनाथ मंदिर को बृहस्पतिवार सुबह विशेष पूजा के बाद पुन: खोल दिया गया जिसे शिवलिंगम के चारों ओर 100 किलोग्राम से अधिक सोने के आभूषणों की पुन: स्थापना के लिए अधिकारियों द्वारा बंद कर दिया गया था।
‘जलहरी’ नामक स्वर्ण आभूषणों को फिर से स्थापित करने के लिए बुधवार अपराह्न 3 बजे के बाद मंदिर को बंद कर दिया गया था। ‘जलहरी’ को पहले इसके वजन को लेकर हुए विवाद के बाद जांच के लिए हटा दिया गया था।
प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ ने हिमालयी राष्ट्र के शीर्ष भ्रष्टाचार रोधी निकाय को उस बात की जांच करने का निर्देश दिया जिनमें कहा गया था कि पशुपति क्षेत्र विकास ट्रस्ट (पी.ए.डी.टी.) द्वारा पूर्व में किए गए दावे की तुलना में जलहरी में सोना लगभग 10 किलोग्राम कम है।