धर्म एवं ज्योतिष (ऑर्काइव)
एक ऐसी जगह जहां परंपरा जीवन शैली और संस्कृति मिलती है एक साथ
20 Jul, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
विविधता और समृद्ध विरासत की भूमि भारत अपनी जीवंत जीवन शैली और मनोरम संस्कृति के लिए जाना जाता है। प्राचीन परंपराओं से लेकर आधुनिक समय की प्रथाओं तक, भारतीय जीवन शैली और संस्कृति हजारों वर्षों में विकसित हुई है, जो अपने लोगों के जीवन को आकार दे रही है।
इस लेख में, हम भारतीय जीवन शैली और संस्कृति के सार में उतरेंगे, इसके विभिन्न पहलुओं की खोज करेंगे और उस विशिष्टता को उजागर करेंगे जो इसे वास्तव में उल्लेखनीय बनाती है।
1. विविधता की सुंदरता
भारत एक ऐसा देश है जो अपने सभी रूपों में विविधता को गले लगाता है। विभिन्न धर्मों, भाषाओं, व्यंजनों और परंपराओं से युक्त एक विशाल आबादी के साथ, भारतीय संस्कृति विभिन्न रीति-रिवाजों और प्रथाओं का एक टेपेस्ट्री है। कई जातियों और जीवन शैली का सह-अस्तित्व भारतीय जीवन शैली के आकर्षण और समृद्धि को जोड़ता है।
2. धर्म और आध्यात्मिकता
भारतीयों के जीवन में धर्म का महत्वपूर्ण स्थान है। हिंदू धर्म, इस्लाम, ईसाई धर्म, सिख धर्म, बौद्ध धर्म और जैन धर्म प्रमुख धर्म होने के साथ, आध्यात्मिकता भारतीय समाज के हर पहलू में व्याप्त है। मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारे, और अन्य पूजा स्थल भारतीय परिदृश्य को दर्शाते हैं, जो विश्वास और भक्ति के स्तंभों के रूप में कार्य करते हैं।
3. पारिवारिक मूल्य और सामाजिक संरचना
भारतीय समाज पारिवारिक मूल्यों और सामाजिक संबंधों को अत्यधिक महत्व देता है। संयुक्त परिवार प्रणाली, जहां कई पीढ़ियां एक छत के नीचे एक साथ रहती हैं, अभी भी भारत के कई हिस्सों में प्रचलित है। बड़ों का सम्मान, रिश्तेदारों के बीच मजबूत बंधन और "वसुधैव कुटुम्बकम" (दुनिया एक परिवार है) की अवधारणा भारतीय जीवन शैली का अभिन्न अंग है।
4. व्यंजन: एक गैस्ट्रोनोमिक खुशी
भारतीय व्यंजन अपने स्वाद और विविधता के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है। प्रत्येक क्षेत्र अपनी विशिष्ट पाक परंपराओं का दावा करता है, जो मनोरम व्यंजनों की एक विस्तृत श्रृंखला की पेशकश करता है। उत्तर भारतीय व्यंजनों के सुगंधित मसालों से लेकर दक्षिण भारतीय व्यंजनों के तीखे स्वाद तक, भारतीय भोजन एक गैस्ट्रोनोमिक आनंद है जो स्वाद की कलियों को चकित करता है।
5. त्योहार: जीवन का उत्सव
भारत त्योहारों का देश है, जहां उत्सव जीवन का एक अभिन्न अंग हैं। रोशनी के त्योहार दिवाली से लेकर रंगों के त्योहार होली और ईद, क्रिसमस और नवरात्रि तक, भारतीय इन खुशी के अवसरों की भावना में आनंद लेने के लिए एक साथ आते हैं। त्योहार देश की सांस्कृतिक विविधता को प्रदर्शित करते हैं और समुदायों को करीब लाते हैं।
6. कला, संगीत और नृत्य: रचनात्मकता की अभिव्यक्ति
भारतीय कला, संगीत और नृत्य रूपों ने सदियों से दुनिया को मोहित किया है। भरतनाट्यम और कथक जैसे शास्त्रीय नृत्य रूपों से लेकर हिंदुस्तानी और कर्नाटक जैसे पारंपरिक संगीत तक, भारत की कलात्मक विरासत रचनात्मकता का खजाना है। अभिव्यक्ति के ये रूप न केवल मनोरंजन करते हैं बल्कि गहरी भावनाओं और कहानियों को भी व्यक्त करते हैं।
7. कपड़े और फैशन
भारतीय कपड़े अपने जीवंत रंगों, जटिल डिजाइनों और सांस्कृतिक महत्व के लिए जाने जाते हैं। साड़ी, धोती और कुर्ता-पायजामा जैसी पारंपरिक पोशाक अभी भी व्यापक रूप से पहनी जाती है, खासकर त्योहारों और विशेष अवसरों के दौरान। भारत में फैशन उद्योग भी फल-फूल रहा है, जो आधुनिक शैलियों के साथ पारंपरिक तत्वों का मिश्रण कर रहा है।
8. पारंपरिक चिकित्सा: आयुर्वेद
आयुर्वेद, चिकित्सा की प्राचीन भारतीय प्रणाली, ने स्वास्थ्य और कल्याण के लिए अपने समग्र दृष्टिकोण के लिए वैश्विक मान्यता प्राप्त की है। आयुर्वेदिक प्रथाओं में प्राकृतिक उपचार, योग, ध्यान और संतुलित जीवन शैली शामिल है। निवारक देखभाल पर जोर और मन, शरीर और आत्मा के बीच सामंजस्य आयुर्वेद को स्वास्थ्य देखभाल की दुनिया में एक मूल्यवान योगदान देता है।
9. खेल और खेल
खेल भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, क्रिकेट उनमें से सबसे लोकप्रिय है। क्रिकेट के लिए जुनून लाखों लोगों के दिलों में गहरा है, और खेल ने देश में लगभग एक धार्मिक दर्जा हासिल कर लिया है। इसके अतिरिक्त, कबड्डी, हॉकी, फुटबॉल और शतरंज और कबड्डी जैसे पारंपरिक खेलों का भी अपना समर्पित प्रशंसक आधार है।
10. विवाह और विवाह परंपराएं
भारतीय शादियाँ भव्य मामले हैं, जो अनुष्ठानों, रंगों और उत्सवों से भरे हुए हैं जो कई दिनों तक चल सकते हैं। भारत में प्रत्येक क्षेत्र की अपनी अनूठी शादी के रीति-रिवाज हैं, लेकिन अंतर्निहित विषय एक ही रहता है: दो परिवारों का मिलन और प्यार का उत्सव। जटिल अनुष्ठान, जीवंत पोशाक और पारंपरिक संगीत भारतीय शादियों को इंद्रियों के लिए एक दावत बनाते हैं।
11. शिक्षा और विद्वतापूर्ण खोज
भारत में एक मजबूत शैक्षणिक परंपरा है, जो प्राचीन काल से चली आ रही है। देश सम्मानित शैक्षणिक संस्थानों का घर है जिन्होंने दुनिया के कुछ प्रतिभाशाली दिमागों का उत्पादन किया है। भारतीय समाज में ज्ञान की खोज को अत्यधिक महत्व दिया जाता है, और माता-पिता अक्सर अपने बच्चों को अकादमिक रूप से उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
12. बॉलीवुड का प्रभाव
बॉलीवुड, हिंदी फिल्म उद्योग, एक वैश्विक घटना है और भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। अपनी बड़ी फिल्मों, फुट-टैपिंग संगीत और मनोरम नृत्य दृश्यों के लिए जाने जाने वाले, बॉलीवुड के न केवल भारत में बल्कि दुनिया भर में बड़े पैमाने पर प्रशंसक हैं। इसने भारतीय मनोरंजन और लोकप्रिय संस्कृति को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
13. प्रौद्योगिकी और आधुनिकीकरण
भारत की तेजी से तकनीकी प्रगति ने इसे डिजिटल युग में प्रेरित किया है। एक संपन्न आईटी क्षेत्र के साथ, देश नवाचार और तकनीकी समाधानों के लिए एक केंद्र बन गया है। ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म से लेकर मोबाइल ऐप और डिजिटल भुगतान प्रणाली तक, प्रौद्योगिकी ने लाखों भारतीयों के लिए दैनिक जीवन के विभिन्न पहलुओं को बदल दिया है।
14. भारतीय शिष्टाचार और सामाजिक रीति-रिवाज
भारत में शिष्टाचार और सामाजिक रीति-रिवाज समाज में निहित मूल्यों और परंपराओं को दर्शाते हैं। बड़ों का सम्मान करना, हाथ जोड़कर अभिवादन करना (नमस्ते), और कुछ क्षेत्रों में हाथों से खाने जैसे भोजन शिष्टाचार का पालन करना कुछ सांस्कृतिक मानदंड हैं जो प्रचलित हैं। भारतीय आतिथ्य पौराणिक है, जिसमें मेहमानों को अक्सर देवताओं के रूप में माना जाता है।
15. पर्यावरण चेतना
हाल के वर्षों में, भारत ने पर्यावरण संरक्षण के लिए बढ़ती जागरूकता और चिंता दिखाई है। स्वच्छ भारत अभियान (स्वच्छ भारत अभियान) और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देने जैसी पहल भविष्य की पीढ़ियों के लिए पर्यावरण के संरक्षण के लिए भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाती हैं। भारतीय जीवन शैली और संस्कृति देश की समृद्ध विरासत और गहरी परंपराओं का प्रमाण है। विविधता में एकता से लेकर त्योहारों के उत्सव तक, भारत का सांस्कृतिक ताना-बाना असंख्य रंगों और रीति-रिवाजों के साथ जुड़ा हुआ है। जैसे-जैसे राष्ट्र आधुनिकीकरण के साथ आगे बढ़ता है और नई प्रौद्योगिकियों को गले लगाता है, यह अपनी अनूठी सांस्कृतिक पहचान को संजोना और संरक्षित करना जारी रखता है।
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (20 जुलाई 2023)
20 Jul, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- मानसिक बेचैनी, दुर्घटनाग्रस्त होने से बचें, अधिकारियों से तनाव बनेगा।
वृष राशि :- योजनायें फलीभूत होंगी, सफलता के साधन जुटायेंगे तथा विशेष लाभ अवश्य होगा।
मिथुन राशि :- अचानक हुआ झगड़ा कष्टप्रद होगा, विशेष कार्य स्थगित रखें, कार्य की अधिकता रहेगी।
कर्क राशि :- परिश्रम से कुछ सफलता मिले, कार्य-व्यवसाय की विशेष चिन्ता बनेगी।
सिंह राशि :- किसी अपवाद व दुर्घटना से बचें, व्यवसायिक क्षमता में बाधा बनेगी।
कन्या राशि :- व्यवसायिक गति उत्तम होगी, चिन्ता कम होगी, अवरोध के बाद कार्य बनेंगे।
तुला राशि :- मानसिक बेचैनी, उद्विघ्नता के योग बनेंगे तथा कुटुम्ब में क्लेश होगा।
वृश्चिक राशि :- साम्थर्य वृद्धि के बाद तनाव, झगड़ा व झंझट की स्थिति बनेगी, धैर्य से कार्य करें।
धनु राशि :- कुटुम्ब की समस्यायें कष्टप्रद होंगी, तनाव तथा धन का व्यर्थ व्यय होगा।
मकर राशि :- योजनायें फलीभूत होंगी, सफलता के साधन अवश्य ही जुटायें, कार्य बनेंगे।
कुंभ राशि :- स्वाभव में खिन्नता, मानसिक बेचैनी तथा अनेक कार्य बिगड़ जायेंगे ध्यान दें।
मीन राशि :- तनाव, क्लेश तथा अशांति का वातावरण बनेगा, परिश्रम विफल होगा, कार्यगति मंद होगी।
अधिक मास कैसे बना पुरुषोत्तम मास, पढ़ें पौराणिक कथा
19 Jul, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
Purushottam maas ki katha: अधिकमास को मलमास और पुरुषोत्तम मास भी कहते हैं। इस बार श्रावण माह में 18 जुलाई 2023 को अधिकमास प्रारंभ हो गया है। प्रत्येक 3 वर्ष में यह मास जुड़कर 12 की जगह हिन्दू कैंलेंडर में 13 माह हो जाते हैं।
इस 13वें माह को कोई भी देवता अपनाने को तैयार नहीं थी। इसी से जुड़ी है रोचक पौराणिक कथा।
कहते हैं कि दैत्याराज हिरण्यकश्यप ने अमर होने के लिए तप किया ब्रह्माजी प्रकट होकर वरदान मांगने का कहते हैं तो वह कहता है कि आपके बनाए किसी भी प्राणी से मेरी मृत्यु ना हो, न मनुष्य से और न पशु से। न दैत्य से और न देवताओं से। न भीतर मरूं, न बाहर मरूं।
न दिन में न रात में। न आपके बनाए 12 माह में। न अस्त्र से मरूं और न शस्त्र से। न पृथ्वी पर न आकाश में।
युद्ध में कोई भी मेरा सामना न करे सके। आपके बनाए हुए समस्त प्राणियों का मैं एकक्षत्र सम्राट हूं। तब ब्रह्माजी ने कहा- तथास्थु।
फिर जब हिरण्यकश्यप के अत्याचार बढ़ गए और उसने कहा कि विष्णु का कोई भक्त धरती पर नहीं रहना चाहिए तब श्रीहरि की माया से उसका पुत्र प्रहलाद ही भक्त हुआ और उसकी जान बचाने के लिए प्रभु ने सबसे पहले 12 माह को 13 माह में बदलकर अधिक मास बनाया। इसके बाद उन्होंने नृसिंह अवतार लेकर शाम के समय देहरी पर अपने नाखुनों से उसका वध कर दिया।
इसके बाद चूंकि हर चंद्रमास के हर मास के लिए एक देवता निर्धारित हैं परंतु इस अतिरिक्त मास का अधिपति बनने के लिए कोई भी देवता तैयार ना हुआ।
ऐसे में ऋषि-मुनियों ने भगवान विष्णु से आग्रह किया कि वे ही इस मास का भार अपने उपर लें और इसे भी पवित्र बनाएं तब भगवान विष्णु ने इस आग्रह को स्वीकार कर लिया और इस तरह यह मलमास के साथ पुरुषोत्तम मास भी बन गया।
ऐसी भी मान्यता है कि स्वामीविहीन होने के कारण अधिकमास को 'मलमास' कहने से उसकी बड़ी निंदा होने लगी। इस बात से दु:खी होकर मलमास श्रीहरि विष्णु के पास गया और उनको अपनी व्यथा-कथा सुनाई। तब श्रीहरि विष्णु उसे लेकर गोलोक पहुचें।
गोलोक में भगवान श्रीकृष्ण ने मलमास की व्यथा जानकर उसे वरदान दिया- अब से मैं तुम्हारा स्वामी हूं। इससे मेरे सभी दिव्य गुण तुम में समाविष्ट हो जाएंगे।
मैं पुरुषोत्तम के नाम से विख्यात हूं और मैं तुम्हें अपना यही नाम दे रहा हूं। आज से तुम मलमास के बजाय पुरुषोत्तम मास के नाम से जाने जाओगे। इसीलिए प्रति तीसरे वर्ष में तुम्हारे आगमन पर जो व्यक्ति श्रद्धा-भक्ति के साथ कुछ अच्छे कार्य करेगा, उसे कई गुना पुण्य मिलेगा।
इस प्रकार भगवान ने अनुपयोगी हो चुके अधिकमास को धर्म और कर्म के लिए उपयोगी बना दिया। अत: इस दुर्लभ पुरुषोत्तम मास में स्नान, पूजन, अनुष्ठान एवं दान करने वाले को कई पुण्य फल की प्राति होगी।
मलमास 2023: मलमास के दिनों में इन कामों से करें तौबा
19 Jul, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू पंचांग के अनुसार आज यानी 18 जुलाई दिन मंगलवार से मलमास का आरंभ हो चुका हैं और इसका समापन 16 अगस्त को हो जाएगा। मलमास को अधिकमास, पुरुषोत्तम मास के नाम से भी जाना जाता हैं।
कई वर्षों बाद इस साल मलमास श्रावण मास में लगा हैं जिसके कारण सावन पूरे 59 दिनों का हो गया हैं।
मलमास को पूजा आराधना के लिए उत्तम समय माना जाता हैं ये महीना भगवान विष्णु के स्वरूप श्रीकृष्ण को समर्पित होता हैं ऐसे में इस दौरान भक्त श्रीकृष्ण की पूजा अर्चना करते हैं लेकिन इसी के साथ ही मलमास के दिनों में कुछ ऐसे कार्य बताए गए हैं जिन्हें भूलकर भी नहीं करना चाहिए। वरना जातक को समस्याओं का सामना करना पड़ सकता हैं, तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा बता रहे हैं कि मलमास में किन कार्यों को ना करें।
मलमास में करें इन कामों का त्याग-
शास्त्र अनुसार मलमास के दौरान शहद, चौलाई, राई, प्याज, लहसुन, उड़द, गोभी, गाजर, मूली, दाल और नागरमोथा का सेवन भूलकर भी नहीं करना चाहिए। मलमास में इनका सेवन करने से सेहत संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता हैं। साथ ही पुण्य कर्म भी समाप्त हो जाते हैं। इसके अलावा इस महीने बुरे काम और बुरे विचारों से भी दूरी बना लेनी चाहिए। साथ ही भगवान का स्मरण और पूजन में अधिक समय गुजारना चाहिए। मलमास को शुभ कार्यों के लिए अनुकूल नहीं माना जाता हैं ऐसे में किसी भी तरह का शुभ व मांगलिक कार्य ना करें।
मलमास के दिनों में तामसिक भोजन का त्याग करना उत्तम माना जाता हैं इस दौरान नशा आदि से भी बचना चाहिए। इसके साथ ही इन दिनों में नए कार्य की शुरुआत भी नहीं करनी चाहिए। वरना कार्यों में सफलता नहीं मिलती हैं। मलमास के दिनों में अधिक समय तक सोना उचित नहीं माना जाता हैं ऐसे में इस दौरान सुबह जल्दी सोकर उठना चाहिए। बिस्तर की बजाए भूमि पर सोना अच्छा माना जाता हैं।
कब है नाग पंचमी, इस दिन बन रहे 2 शुभ योग, जानें पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और महत्व
19 Jul, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
Kab Hai Nag Panchami 2023: हिंदू धर्म में नाग पंचमी का विशेष महत्व होता है. नाग पंचमी का पर्व हर साल श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है. नागपंचमी के दिन नाग देवता की पूजा की जाती है.
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पृथ्वी का भार शेषनाग पर है, जबकि सागर मंथन के समय वासुकीनाग से सागर मंथन हुआ था, जिससे अमृत के साथ साथ कई बहुमूल्य वस्तुएं निकलीं. नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा इसलिए करते हैं ताकि सांपों का भय न हो, वे हमारी और परिवार की रक्षा करें. शास्त्रों के अनुसार, शेषनाग की शैय्या पर भगवान विष्णु शयन करते हैं और भगवान शिव के गले का हार वासुकीनाग है. आइए जानते हैं ज्योतिषाचार्य डा. श्रीपति त्रिपाठी से कि नाग पंचमी कब है और नाग पंचमी पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है...
नाग पंचमी 2023 तिथि
ऋषिकेश पंचांग के अनुसार, नाग पंचमी के लिए सावन के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि 20 अगस्त दिन रविवार की रात 09 बजकर 03 मिनट से शुरू हो रही है, और यह तिथि 21 अगस्त सोमवार को रात 09 बजकर 54 मिनट तक पंचमी तिथि है. इस दिन चित्रा नक्षत्र रात में 3 बजकर 47 मिनट तक एवं शुभ योग रात्रि में 09 बजकर 14 मिनट तक है. इस दिन तक्षक पूजा की जाएगी. सूर्योदय की तिथि के आधार पर इस साल नाग पंचमी 21 अगस्त दिन सोमवार को मनाई जाएगी.
नाग पंचमी 2023 पूजा मुहूर्त
21 अगस्त दिन सोमवार को नाग पंचमी की पूजा के लिए पूरे दिन शुभ मुहूर्त है. उस दिन आप नाग पंचमी की पूजा पूरे दिन कर सकते हैं. इस बार नागपंचमी पर दो शुभ योग बन रहे हैं.
शुभ और शुक्ल योग में है नाग पंचमी
इस साल की नाग पंचमी के दिन 2 शुभ योग बन रहे हैं. 21 अगस्त को प्रात:काल से लेकर रात 09 बजकर 04 मिनट तक शुभ योग है. उसके बाद से शुक्ल योग प्रारंभ होगा, जो पूरी रात तक है. इस दिन का अभिजित मुहूर्त सुबह 11 बजकर 55 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 35 मिनट तक है.
नाग पंचमी का महत्व
सांपों से स्वयं की और परिवार की रक्षा करने के लिए नाग पंचमी पर नागों की पूजा की जाती है. यदि किसी की कुंडली में कालसर्प दोष हो तो भी नाग पंचमी पर पूजा करने से लाभ मिलता है. उज्जैन का नागचंद्रेश्वर मंदिर साल में सिर्फ एक बार नाग पंचमी के दिन ही खुलता है. इस दिन यहां पूजा और दर्शन करने से कालसर्प दोष शांत हो जाता है. नाग पंचमी के दिन इस मंदिर में भक्तों की काफी भीड़ होती है.
पूजा विधि
इस दिन गृह द्वार के दोनों तरफ नाग का चित्र बनाकर या गोबर से सर्प आकृति बनाकर घी, दूध एवं जल से तर्पण करें. इसके साथ ही दही दूर्वा, धूप, दीप, पूष्प, माला आदि से विधि पूर्वक पूजन करें. इसके बाद गेहूं, दूध, धान के लावा का भोग लगाना चाहिए. इससे पदम तक्षक नागगण संतुष्ट होते है. पूजन कर्ता सात कुलों तक सर्प भय नहीं होता है.
नागपंचमी के दिन जरूर करें ये काम
नाग पंचमी के दिन नाग को दूध पिलाएं.
हल्दी, कुमकुम, चंदन और रोली से नागदेवता की पूजा करें और आरती उतारें.
यदि आपकी कुंडली में कालसर्प दोष है तो उसे दूर करने के लिए चांदी से बने नाग-नागिन के जोड़े को बहते पानी में प्रवाहित करें.
नाग पंचमी के दिन ब्राह्मण को चांदी के नाग -नागिन का जोड़ा दान करने से धन-धान्य में वृद्धि होती है और सांप के काटने का भी डर भी दूर होता है .
नागपंचमी के दिन व्यक्ति को उपवास रखना चाहिए .
इस दिन नाग देवता की पूजा के बाद नाग पंचमी के मंत्रों का जप करना चाहिए.
इसके अलावा जिन लोगों की कुंडली में राहु और केतु की दशा चल रही है, उन्हें भी नाग देवता की पूजा करनी चाहिए. ऐसा करने से कुंडली में आ रही दिक्कतों से मुक्ति मिलेगी.
साथ ही ख्याल रखें की इस दिन शिवलिंग पर पीतल के लोटे से ही जल चढ़ाएं.
काल सर्प दोष से मुक्ति के लिए करें ये उपाय
इस दिन रुद्राभिषेक करने से कालसर्प दोष से मुक्ति मिलती है. इसलिए इस दिन भगवान शिव का दूध से अभिषेक करना चाहिए.
जिन लोगों की कुंडली में कालसर्प दोष हैं, उन्हें इस दिन काल सर्प दोष की पूजा करनी चाहिए, ऐसा करने से काल सर्प दोष दूर होता है .
इसके अलावा इस दिन चांदी के नाग नागिन किसी नदी में प्रवाहित कर दें. यह उपाय भी काल सर्प दोष से मुक्ति दिलाता है.
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (19 जुलाई 2023)
19 Jul, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- बेचैनी, उद्विघ्नता से बचिये, सोचे कार्य समय पर पूरे होंगे, समय पर कार्य करें।
वृष राशि :- चिन्तायें कम होंगी, सफलत के साधन जुटायें, अचानक लाभ के योग बनेंगे ध्यान दें।
मिथुन राशि :- सफलता के साधन जुटायेंगे, लाभ के योग अवश्य ही बनेंगे, समय का ध्यान रखें।
कर्क राशि :- धन का व्यर्थ व्यय होगा, शांति नष्ट होगी, विघटनकारी तत्व परेशान करेंगे।
सिंह राशि :- भोग-ऐश्वर्य से स्वास्थ्य नरम रहेगा, विरोधी वर्ग अवश्य परेशान करेगा ध्यान रखें।
कन्या राशि :- धन व समय नष्ट होगा, क्लेश व अशांति का वातावरण रहेगा, यात्रा से कष्ट, चिन्ता अवश्य होगी।
तुला राशि :- परिश्रम से सफलत के कार्य अवश्य जुटायेंगे, कार्य बाधा, अवरोध होगा।
वृश्चिक राशि :- चोटादि से बचिये, क्लेश व अशांति से बचिये, समय नष्ट होगा।
धनु राशि :- भाग्य का सितारा साथ देगा, क्लेश व अशांति से बचिये, समय नष्ट होगा।
मकर राशि :- समय नष्ट होगा, चिन्ता व यात्रा से व्यग्रता की स्थिति रहेगी तथा स्वास्थ्य नरम-गरम रहेगा।
कुंभ राशि :- आकस्मिक यात्रा से चोटादि का भय, समय का ध्यान रखें, कार्य समय पर करें।
मीन राशि :- अधिकारियों से कष्ट, इष्ट मित्र सहायक न होंगे, समय व धन नष्ट होगा।
यहाँ 3 बार बदलता है शिवलिंग का रंग, जानिए इस चमत्कारिक मंदिर से जुड़े रहस्य
18 Jul, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
राजस्थान के धौलपुर के मध्य में स्थित, अचलेश्वर महादेव मंदिर परमात्मा के रहस्यमय चमत्कारों के प्रमाण के रूप में खड़ा है। यह प्राचीन हिंदू मंदिर अपनी अनोखी घटना के लिए प्रसिद्ध है जहां भगवान शिव का प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व, शिवलिंग का रंग दिन में तीन बार बदलता है।
आपको बताते है अचलेश्वर महादेव मंदिर में शिवलिंग की रहस्यमय रंग बदलने के बारे में...
अचलेश्वर महादेव मंदिर की पौराणिक कथा:-
स्थानीय किंवदंतियों के अनुसार, अचलेश्वर महादेव मंदिर अत्यधिक ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व रखता है। ऐसा माना जाता है कि मंदिर का निर्माण चौहान वंश के शासनकाल के दौरान किया गया था, और इसकी उत्पत्ति प्राचीन काल से मानी जाती है। "अचलेश्वर" नाम "अचला" से लिया गया है जिसका अर्थ है अचल और "ईश्वर" जिसका अर्थ भगवान शिव है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है, जो हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं।
रंग बदलने वाला शिवलिंग:-
अचलेश्वर महादेव मंदिर का सबसे दिलचस्प पहलू रंग बदलने वाले शिवलिंग की घटना है। ऐसा कहा जाता है कि शिवलिंग का रंग रहस्यमय तरीके से दिन में तीन बार बदलता है - सूर्योदय, दोपहर और सूर्यास्त के दौरान। शिवलिंग सुबह लाल से, दोपहर में केसरिया रंग में और अंत में शाम के समय नीले रंग में परिवर्तित हो जाता है। दूर-दूर से भक्त इस विस्मयकारी दृश्य को देखने और भगवान शिव का आशीर्वाद लेने के लिए इकट्ठा होते हैं।
आध्यात्मिक महत्व:-
अचलेश्वर महादेव मंदिर में शिवलिंग के रंग बदलने की घटना का बहुत आध्यात्मिक महत्व है। यह एक दिव्य संदेश और भगवान शिव की उपस्थिति का एक दिव्य प्रदर्शन माना जाता है। लाल रंग देवता की शक्ति और जीवन शक्ति का प्रतीक है, केसरिया पवित्रता और आध्यात्मिकता का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि नीला रंग शांति और शांति का प्रतीक है। पूरे दिन रंगों के निरंतर परिवर्तन को ब्रह्मांडीय ऊर्जा और अस्तित्व की हमेशा बदलती प्रकृति के प्रतिबिंब के रूप में देखा जाता है।
भक्ति अभ्यास और अनुष्ठान:-
भक्त अचलेश्वर महादेव मंदिर में प्रार्थना करने, आशीर्वाद लेने और रंग बदलते शिवलिंग का दिव्य दृश्य देखने आते हैं। मंदिर परिसर भगवान शिव को समर्पित पवित्र मंत्रों और भजनों से गूंजता है। देवता का सम्मान करने और स्थान की पवित्रता बनाए रखने के लिए मंदिर के पुजारियों द्वारा विशेष अनुष्ठान और समारोह किए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस पवित्र स्थान पर सच्ची भक्ति और प्रार्थना से आध्यात्मिक विकास, आंतरिक शांति और पूर्णता मिल सकती है।
तीर्थयात्रा और सांस्कृतिक महत्व:-
अचलेश्वर महादेव मंदिर भगवान शिव के भक्तों के लिए तीर्थ स्थान के रूप में अत्यधिक महत्व रखता है। यह मंदिर न केवल राजस्थान से बल्कि भारत के विभिन्न हिस्सों से भी बड़ी संख्या में आगंतुकों को आकर्षित करता है। मंदिर से जुड़ी सांस्कृतिक विरासत, इसकी स्थापत्य भव्यता और रंग बदलने वाले शिवलिंग का रहस्य इसे महान सांस्कृतिक महत्व का स्थल बनाता है, जो राजस्थान में धार्मिक विविधता की समृद्धता को जोड़ता है।
संरक्षण और सम्मान
अचलेश्वर महादेव मंदिर की पवित्रता और ऐतिहासिक महत्व को संरक्षित करने का प्रयास किया जाता है। मंदिर अधिकारी, स्थानीय समुदाय के साथ मिलकर यह सुनिश्चित करते हैं कि अनुष्ठानों और परंपराओं को अत्यंत श्रद्धा के साथ बरकरार रखा जाए। चल रहे रखरखाव और जीर्णोद्धार परियोजनाओं का उद्देश्य मंदिर की स्थापत्य सुंदरता और आध्यात्मिक माहौल की रक्षा करना है, जिससे आने वाली पीढ़ियों को इसकी दिव्य आभा का अनुभव जारी रखने की अनुमति मिल सके।
अधूरा लेकिन दुनिया का सबसे बड़ा है ये शिवलिंग, जानिए इसकी कथा
18 Jul, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भोजपुर की पहाड़ियों के ऊपर स्थित, एक भव्य, यद्यपि अधूरा, शिव मंदिर है जिसे भोजेश्वर मंदिर या भोजपुर शिव मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह प्राचीन मंदिर, परमार वंश के प्रसिद्ध राजा भोज द्वारा 1010 ईस्वी से 1055 ईस्वी तक अपने शासनकाल के दौरान बनाया गया था, जो बीते युग की वास्तुकला प्रतिभा और भक्ति का प्रमाण है।
115 फीट (35 मीटर) लंबाई, 82 फीट (25 मीटर) चौड़ाई और 13 फीट (4 मीटर) ऊंचाई के मंच पर स्थापित यह मंदिर अपनी असाधारण विशेषता - एक विशाल शिवलिंग - के लिए प्रसिद्ध है। एक ही पत्थर से बना और चिकने लाल बलुआ पत्थर से बना यह शिवलिंग दुनिया का सबसे बड़ा प्राचीन शिवलिंग माना जाता है, जिससे भोजेश्वर मंदिर को "उत्तर भारत का सोमनाथ" की उपाधि मिलती है।
शिवलिंग की महिमा:-
भोजेश्वर मंदिर का केंद्रबिंदु निस्संदेह विशाल शिवलिंग है। इसका विशाल आकार और अद्वितीय शिल्प कौशल इसे विस्मयकारी दृश्य बनाता है। चिकने लाल बलुआ पत्थर के एक टुकड़े से बना यह प्राचीन शिवलिंग वास्तुशिल्प परिशुद्धता की एक उल्लेखनीय उपलब्धि के रूप में खड़ा है। अपनी प्रभावशाली उपस्थिति और जटिल विवरण के साथ, यह भक्तों और आगंतुकों की कल्पना को समान रूप से आकर्षित करता है। शिवलिंग के आकार और पैमाने ने भोजेश्वर मंदिर को देश के सबसे महत्वपूर्ण शिव मंदिरों में से एक के रूप में अच्छी प्रतिष्ठा दिलाई है।
अधूरा चमत्कार:-
हालाँकि भोजेश्वर मंदिर राजा भोज की भव्य दृष्टि के प्रमाण के रूप में खड़ा है, लेकिन यह आज भी अधूरा है। अपनी अधूरी अवस्था के बावजूद, मंदिर का विशाल आकार और इसके शिवलिंग की महिमा प्रेरित करती रहती है। मंदिर की अधूरी स्थिति के पीछे के कारण रहस्य में डूबे हुए हैं, जिससे अटकलों और कल्पना के लिए जगह बची है। बहरहाल, मंदिर की अधूरी अवस्था इसके आकर्षण को बढ़ाती है और इसके निर्माण में लगी महत्वाकांक्षा और भक्ति को उजागर करती है।
स्थापत्य प्रतिभा:-
भोजेश्वर मंदिर परमार राजवंश की वास्तुकला प्रतिभा को प्रदर्शित करता है। मंदिर के डिज़ाइन में जटिल नक्काशी, स्तंभ और अलंकृत रूपांकन हैं जो उस युग के शिल्पकारों की कलात्मक चालाकी को प्रदर्शित करते हैं। इसके निर्माण में उपयोग किया गया लाल बलुआ पत्थर इसकी दृश्य अपील को और बढ़ाता है। मंदिर की वास्तुकला जटिल विवरणों को भव्यता की भावना के साथ सहजता से जोड़ती है, जिससे एक मंत्रमुग्ध कर देने वाला माहौल बनता है जो आगंतुकों को वास्तुशिल्प चमत्कारों के एक बीते युग में ले जाता है।
सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व
भोजेश्वर मंदिर इस क्षेत्र में अत्यधिक सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व रखता है। यह भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के प्रमाण के रूप में खड़ा है और इसके गौरवशाली अतीत के साथ एक कड़ी के रूप में कार्य करता है। राजा भोज के साथ मंदिर का जुड़ाव ऐतिहासिक महत्व की एक अतिरिक्त परत जोड़ता है, क्योंकि यह कला, वास्तुकला और धार्मिक भक्ति के उनके संरक्षण का प्रतिनिधित्व करता है। भोजेश्वर मंदिर भगवान शिव के भक्तों के लिए तीर्थस्थल और श्रद्धा का स्थान बना हुआ है, जो इसके पवित्र परिसर में आशीर्वाद और आध्यात्मिक सांत्वना चाहते हैं।
संरक्षण और पुनर्स्थापना प्रयास
भोजेश्वर मंदिर को संरक्षित और पुनर्स्थापित करने, भावी पीढ़ियों के लिए इसकी विरासत सुनिश्चित करने के प्रयास चल रहे हैं। विभिन्न संगठन और प्राधिकरण इस वास्तुशिल्प रत्न के संरक्षण में सक्रिय रूप से शामिल हैं। पुनर्स्थापन परियोजनाओं का उद्देश्य मंदिर की संरचनात्मक अखंडता को बनाए रखना, इसकी जटिल नक्काशी की सुरक्षा करना और इसके ऐतिहासिक मूल्य की रक्षा करना है। इन प्रयासों के माध्यम से, मंदिर की भव्यता और आध्यात्मिक महत्व का जश्न आने वाले वर्षों तक मनाया जाता रहेगा।
भोजपुर की पहाड़ियों में बसा भोजेश्वर मंदिर, प्राचीन भारत की भक्ति, कलात्मक प्रतिभा और स्थापत्य कौशल का प्रमाण है। एक ही पत्थर से बना इसका विशाल शिवलिंग एक चमत्कार है जो दूर-दूर से पर्यटकों को आकर्षित करता है। अपनी अपूर्ण अवस्था के बावजूद, मंदिर की भव्यता और ऐतिहासिक महत्व कायम है। जैसे ही हम इसकी भव्यता की प्रशंसा करते हैं, हम बेजोड़ शिल्प कौशल और अटूट भक्ति के युग में पहुंच जाते हैं। भोजेश्वर मंदिर भगवान शिव के पवित्र निवास के रूप में खड़ा है, जो आध्यात्मिकता के साधकों को दिव्य उपस्थिति का अनुभव करने के लिए आमंत्रित करता है।
इस शिवलिंग पर 12 साल में एक बार गिरती है बिजली, टुकड़े हो जाने के बाद फिर हो जाती है ठीक
18 Jul, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भारत के हिमाचल प्रदेश में कुल्लू घाटी के आश्चर्यजनक परिदृश्यों के बीच स्थित, बिजली महादेव मंदिर एक दिव्य आश्चर्य का स्थान है। यह प्राचीन मंदिर एक अनोखी घटना के लिए जाना जाता है जो 12 साल में एक बार घटित होती है जब बिजली शिवलिंग पर गिरती है, जिससे वह टुकड़े-टुकड़े हो जाता है।
आपको बताएंगे बिजली महादेव मंदिर की दिलचस्प कहानी...
बिजली महादेव मंदिर की कहानी:-
ऐसा माना जाता है कि मंदिर का निर्माण कुलंत नामक राक्षस को मारने के पश्चात् हुआ था। कहते हैं कि दानव कुलंत ब्यास नदी के प्रवाह को रोककर घाटी को जलमग्न करना चाहता था। अपने उद्देश्यों को पूरा करने के लिए उन्होंने एक अजगर का रूप धारण किया। वह जमीन पर मौजूद हर जीवन रूप को पानी के नीचे डुबो कर मारना चाहता था। ऐसे में महादेव को उनके उपक्रम के बारे में पता चल गया जिसके बाद वे राक्षस का अंत करने के लिए आए। महादेव ने राक्षस को पीछे मुड़कर देखने के लिए कहा और फिर जैसे ही उसने मुड़कर देखा तो उसकी पूंछ में आग लग गई। कहा जाता है कि जिस पर्वत पर बिजली महादेव मंदिर स्थित है, वह मृत दानव के शरीर से बना था। उनकी मृत्यु के बाद, उनका शरीर आस-पास की भूमि को ढक गया तथा एक पहाड़ के आकार में बदल गया।
बिजली का गिरना और शिवलिंग की पुनर्स्थापना:-
12 में एक बार मानसून के मौसम में बिजली महादेव मंदिर पर बिजली गिरती है। इस प्राकृतिक घटना के कारण शिवलिंग टुकड़ों में टूट जाता है। माना जाता है कि मंदिर के पुजारी हर टुकड़े को इकट्ठा करते हैं और फिर नमक मक्खन और सत्तू के साथ शिवलिंग को वापस एक साथ रखते हैं। ऐसा करने पर शिवलिंग पहले जैसा ही लगने लगता है। पुजारी कुछ अनुष्ठान और प्रार्थनाएँ करते हैं, जिसके बाद एक चमत्कारी घटना घटित होती है - बिजली गिरने से भी बिना किसी क्षति के, शिवलिंग अपने मूल रूप में बहाल हो जाता है।
आध्यात्मिक महत्व और प्रतीकवाद:-
बिजली गिरने और उसके बाद शिवलिंग की पुनर्स्थापना का गहरा आध्यात्मिक महत्व है। यह दिव्य ऊर्जा की शाश्वत प्रकृति और सृष्टि की चक्रीय प्रकृति का प्रतीक है। बिजली, प्रकृति की विनाशकारी शक्तियों का प्रतिनिधित्व करती है, भगवान शिव की परिवर्तनकारी शक्ति को प्रदर्शित करती है। शिवलिंग की पुनर्स्थापना नवीकरण, लचीलेपन और आध्यात्मिक पुनर्जन्म की अनंत संभावनाओं का प्रतीक है।
भक्ति अभ्यास और अनुष्ठान:-
इस विस्मयकारी घटना को देखने और भगवान शिव का आशीर्वाद लेने के लिए भक्त बिजली महादेव मंदिर जाते हैं। मंदिर आध्यात्मिक उत्साह का केंद्र बन जाता है, जहां भक्त दैवीय उपस्थिति का सम्मान करने के लिए प्रार्थना, मंत्रोच्चार और अनुष्ठानों में संलग्न होते हैं। श्रद्धालु वार्षिक बिजली गिरने और उसके बाद शिवलिंग की बहाली को देखने के लिए इकट्ठा होते हैं, जिससे उनकी आस्था और भक्ति की पुष्टि होती है।
परंपरा का संरक्षण:-
मंदिर अधिकारी और स्थानीय समुदाय बिजली महादेव मंदिर की पवित्रता और परंपराओं को संरक्षित करने के लिए समर्पित प्रयास करते हैं। बिजली गिरने और शिवलिंग की पुनर्स्थापना से जुड़े अनुष्ठान और समारोह प्राचीन रीति-रिवाजों और आध्यात्मिक प्रथाओं को जीवित रखते हुए सावधानीपूर्वक किए जाते हैं। यह प्रतिबद्धता सुनिश्चित करती है कि दिव्य संबंध और चमत्कारी घटना आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहे।
तीर्थयात्रा और प्राकृतिक सौंदर्य:-
अपने धार्मिक महत्व के अलावा, बिजली महादेव मंदिर आसपास की प्राकृतिक सुंदरता के मनमोहक दृश्य प्रस्तुत करता है। एक पहाड़ी के ऊपर स्थित, यह सुरम्य कुल्लू घाटी का मनोरम दृश्य प्रदान करता है। भक्त और आगंतुक न केवल आध्यात्मिक वातावरण से मंत्रमुग्ध होते हैं, बल्कि मंदिर के चारों ओर के विस्मयकारी परिदृश्यों से भी मंत्रमुग्ध हो जाते हैं, जो समग्र तीर्थयात्रा के अनुभव को बढ़ाते हैं।
बिजली महादेव मंदिर प्रकृति के चमत्कारों और आध्यात्मिकता का प्रमाण है। वार्षिक बिजली गिरना और शिवलिंग की पुनर्स्थापना शक्तिशाली रूपकों के रूप में काम करती है, जो हमें दिव्य ऊर्जा की परिवर्तनकारी शक्ति की याद दिलाती है। जैसे ही भक्त इस असाधारण घटना को देखने के लिए इकट्ठा होते हैं, वे विस्मय और श्रद्धा से भर जाते हैं, अपने विश्वास की पुष्टि करते हैं और परमात्मा के शाश्वत रहस्यों को अपनाते हैं।
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (18 जुलाई 2023)
18 Jul, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- कार्य बाधा, स्वभाव में उद्विघ्नता तथा दु:ख अवश्य ही बनेगा, कार्य पर ध्यान दें।
वृष राशि :- आरोप से बचें, कार्यगति मंद रहेगी, क्लेश व अशांति अवश्य ही बनेगी, धैर्य रखें।
मिथुन राशि :- योजनायें पूर्ण होंगी, धन लाभ होगा, आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा, समय का ध्यान रखें।
कर्क राशि :- मित्र सुख वर्धक होगा, कार्यगति में सुधार होगा, चिन्तायें कम होंगी, सोच-विचार कर कार्य करें।
सिंह राशि :- साम्थर्य और धन अस्त-व्यस्त रहेगा, सतर्कता से कार्य अवश्य निपटायें, विचार पूर्वक निर्णय लें।
कन्या राशि :- मनोबल उत्साहवर्धक होगा, कार्यगति में सुधार होगा, चिन्ता में कमी होगी, धैर्य रखें।
तुला राशि :- मान-प्रतिष्ठा के साधन बनेंगे, स्त्री से सुख-शांति अवश्य ही रहेगी, मित्र सहयोग करेंगे।
वृश्चिक राशि :- अग्नि, चोटादि का भय, व्यर्थ भ्रमण से धन व्यय होगा, रुके कार्य अवश्य बनेंगे।
धनु राशि :- मानसिक क्लेश व अशांति, मानसिक विभ्रम तथा भय की स्थिति रहेगी, सावधानी से कार्य करें।
मकर राशि :- विवाद ग्रस्त हेने से बचें, तनाव, क्लेश व मानसिक अशांति का वातावरण रहेगा।
कुंभ राशि :- धन लाभ, आशानुकूल सफलत का हर्ष होगा, इष्ट मित्र सुखवर्धक होगा, समय का ध्यान रखें।
मीन राशि :- भोग-ऐश्वर्य की प्राप्ति, समय उल्लास से बीतेगा, मनोवृत्ति उत्तम रहेगी, अति उत्साह से बचें।
जानिए, भगवान विष्णु के दिव्य अवतार
17 Jul, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में प्रमुख देवताओं में से एक भगवान विष्णु को ब्रह्मांड का संरक्षक और रक्षक माना जाता है। माना जाता है कि जब भी खतरा होता है तो संतुलन और धार्मिकता को बहाल करने के लिए वह विभिन्न रूपों या अवतारों में पृथ्वी पर उतरे थे।
इन अवतारों में विभिन्न गुण होते हैं और अद्वितीय विशेषताएं होती हैं जो विशिष्ट दिव्य उद्देश्यों को पूरा करती हैं। इस लेख में, हम भगवान विष्णु के बारह अवतारों का पता लगाएंगे, उनके महत्व, कहानियों और उनके द्वारा प्रदान की जाने वाली गहन शिक्षाओं का पता लगाएंगे।
मत्स्य अवतार - मछली अवतार:
भगवान विष्णु का पहला अवतार मत्स्य है, मछली। इस रूप में विष्णु ने मानव जाति के पूर्वज मनु का उद्धार कर मानवता और वेदों को महाप्रलय से बचाया था। यह अवतार संरक्षण और संरक्षण के महत्व का प्रतीक है।
कूर्म अवतार - कछुआ अवतार:
कछुए कूर्म के रूप में भगवान विष्णु ने अमरत्व का अमृत प्राप्त करने के लिए ब्रह्मांडीय सागर मंथन के दौरान मंदरा पर्वत का साथ दिया था। यह अवतार चुनौतियों का सामना करने में स्थिरता और धैर्य की आवश्यकता को दर्शाता है।
वराह अवतार - सूअर अवतार:
तीसरे अवतार, वराह, भगवान विष्णु को सूअर के रूप में दर्शाता है। विष्णु ने पृथ्वी देवी, भूदेवी को राक्षस हिरण्याक्ष के चंगुल से बचाने के लिए यह रूप धारण किया। यह अवतार धार्मिकता की रक्षा और बुरी शक्तियों के उन्मूलन पर जोर देता है।
नरसिंह अवतार - शेर-आदमी अवतार:
नरसिंह, आधा आदमी और आधा शेर रूप, राक्षस राजा हिरण्यकश्यप को हराने के लिए उभरा, जिसने अजेयता का वरदान प्राप्त किया था। यह अवतार अहंकार के विनाश और बुराई पर अच्छाई की जीत का उदाहरण है।
वामन अवतार - बौना अवतार:
भगवान विष्णु के बौने रूप वामन ने संतुलन बहाल करने के लिए अवतार लिया जब राक्षस राजा बलि एक अनियंत्रित शासक बन गया। विष्णु ने बौने का वेश धारण कर तीन पग भूमि मांगी, जिससे संपूर्ण ब्रह्मांड ढक गया। यह अवतार विनम्रता और धर्मी शासन के महत्व को सिखाता है।
परशुराम अवतार - योद्धा ऋषि अवतार:
परशुराम, योद्धा ऋषि अवतार, पृथ्वी से भ्रष्ट और दमनकारी क्षत्रिय राजाओं को खत्म करने के लिए उठे। उन्होंने न्याय को बनाए रखने और कमजोरों की रक्षा करने के महत्व पर जोर देते हुए एक दुर्जेय कुल्हाड़ी लहराई और व्यवस्था को बहाल किया।
भगवान राम - आदर्श राजा अवतार:
सबसे श्रद्धेय अवतारों में से एक माना जाता है, भगवान राम धार्मिकता, भक्ति और धर्म का प्रतीक हैं। महाकाव्य रामायण में वर्णित उनकी कहानी, अपने कर्तव्यों को पूरा करने, नैतिक मूल्यों को बनाए रखने और बुराई पर अच्छाई की जीत के महत्व पर जोर देती है।
भगवान कृष्ण - दिव्य शिक्षक अवतार:
भगवान कृष्ण, करामाती और करिश्माई अवतार, दिव्य प्रेम, ज्ञान और ज्ञान का उदाहरण देते हैं। भगवद गीता में उनकी शिक्षाएं कर्तव्य, भक्ति और मोक्ष के अंतिम मार्ग की अवधारणाओं का पता लगाती हैं, जो मानवता पर एक अमिट प्रभाव छोड़ती हैं।
बुद्ध अवतार - प्रबुद्ध ऋषि अवतार:
बुद्ध अवतार, भगवान विष्णु की एक अनूठी अभिव्यक्ति, अहिंसा, करुणा और ज्ञान की शिक्षाओं का प्रसार किया। यह अवतार आत्म-साक्षात्कार और जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति के महत्व पर जोर देता है।
कल्कि अवतार - उद्धारकर्ता अवतार:
वर्तमान ब्रह्मांडीय चक्र में अंतिम अवतार, कल्कि अभी तक दिखाई नहीं दिया है। भगवान विष्णु कलियुग के अंत में कल्कि के रूप में उतरेंगे, अंधेरे के युग, धार्मिकता को बहाल करने और शांति और सद्भाव के एक नए युग में प्रवेश करने के लिए।
समाप्ति:
भगवान विष्णु के बारह अवतार दिव्य उद्देश्य, धार्मिकता और अच्छे और बुरे के बीच शाश्वत लड़ाई की गहरी समझ को प्रकट करते हैं। प्रत्येक अवतार एक अद्वितीय संदेश देता है और मूल्यवान सबक प्रदान करता है जो मानवता को आध्यात्मिक विकास और नैतिक जीवन की ओर मार्गदर्शन करता है। इन अवतारों का अध्ययन और चिंतन करके, हम धैर्य, विनम्रता, धार्मिकता और भक्ति जैसे गुणों को विकसित कर सकते हैं, जो परमात्मा के साथ गहरा संबंध बनाते हैं।
अंत में, भगवान विष्णु के अवतार केवल पौराणिक कथाएं नहीं हैं, बल्कि मानवता के लिए कालातीत ज्ञान और मार्गदर्शन रखते हैं। इन अवतारों द्वारा प्रदान किए जाने वाले गुणों और सबक को गले लगाकर, व्यक्ति व्यक्तिगत विकास, धर्मी जीवन और आध्यात्मिक ज्ञान की दिशा में प्रयास कर सकते हैं।
जानिए, गरुड़ पुराण कब पढ़ें: पढ़ने के नियम, लाभ और रहस्य
17 Jul, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
अठारह महापुराणों में से एक गरुड़ पुराण, एक श्रद्धेय हिंदू ग्रंथ है जो अत्यधिक महत्व रखता है। संस्कृत में रचित, इसका श्रेय ऋषि वेदव्यास को दिया जाता है और यह मुख्य रूप से भगवान विष्णु के दिव्य वाहन, गरुड़ के आसपास केंद्रित है।
यह प्राचीन पाठ न केवल गहन आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि प्रदान करता है, बल्कि अनुष्ठानों, नैतिकता, ब्रह्मांड विज्ञान और बाद के जीवन सहित जीवन के विभिन्न पहलुओं पर मार्गदर्शन भी प्रदान करता है। इस लेख में, हम गरुड़ पुराण को पढ़ने के नियमों, लाभों और रहस्यों में उतरेंगे, इसके महत्व और पाठकों पर इसके परिवर्तनकारी प्रभाव पर प्रकाश डालेंगे।
गरुड़ पुराण पढ़ने के नियम:
मन और शरीर की शुद्धता: गरुड़ पुराण पढ़ने की आध्यात्मिक यात्रा शुरू करने से पहले, स्वयं को शुद्ध करना आवश्यक है। इसमें शारीरिक स्वच्छता बनाए रखना और एक शांत, केंद्रित मानसिकता सुनिश्चित करना शामिल है।
वैदिक अनुष्ठानों का पालन: पारंपरिक वैदिक अनुष्ठानों का पालन करना जैसे स्नान करना, साफ कपड़े पहनना, धूप जलाना और प्रार्थना करना गरुड़ पुराण पढ़ने के लिए अनुकूल वातावरण बना सकता है।
समय और स्थान: सुबह के समय या गोधूलि के दौरान गरुड़ पुराण पढ़ने की सिफारिश की जाती है, क्योंकि इन अवधियों को अत्यधिक शुभ माना जाता है। विकर्षण से मुक्त एक शांत और शांत जगह का चयन करने से पढ़ने का अनुभव बढ़ेगा।
श्रद्धा और भक्ति: श्रद्धा और भक्ति की भावना के साथ गरुड़ पुराण के पास जाने से व्यक्ति आध्यात्मिक शिक्षाओं के साथ गहराई से जुड़ सकता है। आध्यात्मिक विकास और समझ के लिए एक ईमानदार लालसा विकसित करने से पढ़ना अधिक उपयोगी हो जाएगा।
गरुड़ पुराण पढ़ने के लाभ:
आध्यात्मिक जागृति: गरुड़ पुराण जीवन, मृत्यु और मृत्यु के बाद की प्रकृति में गहन अंतर्दृष्टि प्रकट करके आध्यात्मिक जागृति के लिए उत्प्रेरक के रूप में कार्य करता है। यह व्यक्तियों को भौतिक दुनिया की नश्वरता को समझने में मदद करता है और परमात्मा के साथ गहरे संबंध को प्रोत्साहित करता है।
एक धर्मी जीवन के लिए मार्गदर्शन: यह पवित्र पाठ एक धर्मी और नैतिक जीवन जीने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है। यह नैतिकता, धर्म और किसी के कार्यों के परिणामों के विभिन्न पहलुओं की पड़ताल करता है, पाठकों को अच्छे विकल्प बनाने और नैतिक मूल्यों को बनाए रखने के लिए प्रेरित करता है।
अनुष्ठानों और समारोहों का ज्ञान: गरुड़ पुराण विभिन्न अनुष्ठानों, समारोहों और संस्कारों को स्पष्ट करता है। यह जन्म, विवाह और मृत्यु जैसे संस्कारों से जुड़े महत्व और प्रक्रियाओं की व्यापक समझ प्रदान करता है। इस तरह का ज्ञान उन व्यक्तियों के लिए अमूल्य हो सकता है जो अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं को संरक्षित और बनाए रखना चाहते हैं।
मृत्यु के बाद के जीवन को समझें: गरुड़ पुराण मृत्यु के बाद अस्तित्व के क्षेत्रों का विस्तृत विवरण प्रदान करता है, स्वर्ग, नरक, पुनर्जन्म और कर्म चक्र की अवधारणाओं पर प्रकाश डालता है। यह किसी के कार्यों के परिणामों में अंतर्दृष्टि प्रदान करता है और आध्यात्मिक मुक्ति की ओर ले जाने वाले जीवन का नेतृत्व करने के लिए दिशानिर्देश प्रदान करता है।
गरुड़ पुराण पढ़ने के रहस्य:
प्रतीकात्मक व्याख्या: गरुड़ पुराण प्रतीकात्मक कथाओं और अलंकारिक प्रतिनिधित्व ों से भरा हुआ है। इन छिपे हुए अर्थों की खोज गहरी अंतर्दृष्टि को अनलॉक कर सकती है और शाब्दिक पाठ से परे गहन सत्य को प्रकट कर सकती है।
ध्यान और चिंतन: पढ़ने के साथ-साथ, ध्यान और चिंतन को शामिल करने से गरुड़ पुराण की शिक्षाओं की समझ और आत्मसात को बढ़ाया जा सकता है। आत्मनिरीक्षण में संलग्न होना और चर्चा की गई गहन अवधारणाओं को प्रतिबिंबित करना व्यक्तिगत परिवर्तन का कारण बन सकता है।
मार्गदर्शन की तलाश: जानकार विद्वानों या आध्यात्मिक शिक्षकों के साथ परामर्श करने से संदेह को स्पष्ट करने और गरुड़ पुराण में गहरी अंतर्दृष्टि प्रदान करने में मदद मिल सकती है। उनका मार्गदर्शन पाठ की बारीकियों को समझने और वास्तविक जीवन स्थितियों में इसकी शिक्षाओं को लागू करने में सहायता कर सकता है।
गरुड़ पुराण आध्यात्मिक ज्ञान का खजाना है जो जीवन, मृत्यु और मृत्यु के बाद के विभिन्न पहलुओं में गहन अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। पढ़ने के नियमों का पालन करते हुए, कोई भी इसमें शामिल परिवर्तनकारी शिक्षाओं को अवशोषित करने के लिए अनुकूल वातावरण बना सकता है। इस प्राचीन ग्रंथ को पढ़ने के लाभों को गले लगाकर, व्यक्ति एक आध्यात्मिक यात्रा शुरू कर सकते हैं जो आत्म-साक्षात्कार और परमात्मा के साथ गहरा संबंध की ओर ले जाती है। गरुड़ पुराण को पढ़ने के रहस्य, जैसे प्रतीकात्मक व्याख्या और ध्यान, इस पवित्र पाठ की परिवर्तनकारी शक्ति को और बढ़ाते हैं। गरुड़ पुराण का पता लगाने के अवसर को गले लगाएं, और इसमें मौजूद आध्यात्मिक धन को अनलॉक करें।
हरियाली अमावस्या और सोमवार का अद्भुत संयोग
17 Jul, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
Hariyali Amavasya 2023: प्रकृति मानव सभ्यता का आधार है, इसलिए प्रकृति के साथ चलने के लिए प्राचीन काल से ही ऋषि-मुनियों ने इस परंपरा को पर्व और त्योहार के माध्यम से प्रकृति के साथ मानव को जोड़ने का कार्य किया है ।
ऋषि-मुनियों ने हरियाली अमावस्या के दिन वृक्षारोपण करने की शुरुआत की, क्योंकि पेड़ पौधे हमारे जीवन का आधार हैं। इसलिए पेड़ पौधों को संरक्षित करने के लिए यह परंपरा तब से लेकर आज तक चली आ रही है ।
ज्योतिषाचार्य पं.मनोज कुमार द्विवेदी ने बताया कि हम साल भर पेड़-पौधों को नुकसान पहुंचाते रहते हैं, लेकिन इस दिन हम प्रकृति को बचाने के लिए एक साथ परंपरिक मान्यता के अनुसार वृक्षारोपण करते हैं । विज्ञान भी यही कहता है कि जो पौधे ऑक्सीजन उत्पन्न करते हैं, उन्हें ज्यादा से ज्यादा लगाना चाहिए । हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भी आम, आंवला, नीम, वट और पीपल जैसे वृक्ष और तुलसी जैसे पौधे हरियाली अमावस्या के दिन लगाने चाहिए । अमावस्या तिथि पितरों को समर्पित है इसलिए हरियाली अमावस्या पर हमको अपने पितरों की याद में उनके नाम का एक पौधा जरूर लगाना चाहिए. इससे देवताओं के साथ-साथ पितृ भी प्रसन्न होते हैं । इस बार हरियाली अमावस्या और सोमवार के संयोग से सोमवती अमावस्या का लाभ भक्तों को मिलेगा ,सावन मास के दूसरे सोमवार में सोमवती अमावस्या पर भगवान शिव की कृपा बरसेगी । वहीं हरियाली अमावस्या पर कर्क संक्रांति भी है, इस दिन सूर्य कर्क राशि में प्रवेश करेंगे। कर्क राशि में बुध पहले से विराजमान है, सूर्य और बुध की युति से बुधादित्य योग बनेगा. इससे व्रती को सूर्य देव का आशीर्वाद भी मिलेगा ।
हरियाली अमावस्या पर लगाएं राशि के अनुसार पेड़-पौधे
मेष राशि: आंवले का पौधा
वृषभ राशि: जामुन का पौधा
मिथुन राशि: चंपा का पौधा
कर्क राशि: पीपल का पौधा
सिंह राशि: बरगद या अशोक का पौधा
कन्या राशि: शिवजी का प्रिय बेल का पौधा, जूही का पौधा
तुला राशि: अर्जुन या नागकेसर का पौधा
वृश्चिक राशि: नीम का पौधा
धनु राशि : कनेर का पौधा
मकर राशि: शमी का पौधा
कुंभ राशि: कदंब या आम का पौधा
मीन राशि: बेर का पौधा
श्रावण के दूसरे सोमवार पर बाबा महाकाल करेंगे नगर भ्रमण, सोमवती अमावस्या का भी संयोग, जुटेगी भारी भीड़
17 Jul, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
उज्जैन। विश्व प्रसिद्ध बाबा महाकाल श्रावण मास के दूसरे सोमवार (कल) को नगर भ्रमण करेंगे। इस बार सोमवार को अमावस्या पर्व भी है। इस वजह से सोमवती अमावस्या स्नान के लिए शिप्रा तट पर करीब तीन लाख श्रद्धालुओं के पहुंचने की संभावना है।
महाकाल मंदिर में सोमवार शाम चार बजे कोटितीर्थ के पास सबसे पहले बाबा महाकाल की पूजा की जाएगी। इसके बाद बाबा रजत पालकी में बैठेंगे। मंदिर के प्रवेश द्वार पर बाबा की पालकी पहुंचेगी। यहां सशस्त्र पुलिस बल बाबा को गार्ड ऑफ ऑनर देंगे। इसके बाद पुलिस बैंड की धुन पर बाबा महाकाल नगर भ्रमण करेंगे।
इस वर्ष श्रावण-भादौ मास की बाबा महाकाल की 10 सवारियां निकलेंगी। कल (सोमवार) बाबा महाकाल की दूसरी सवारी रहेगी। बाबा महाकाल भक्तों को चंद्रमौलेश्वर स्वरूप में दर्शन देंगे। पालकी के पीछे हाथी पर मन-महेश विराजीत रहेंगे। नगर भ्रमण के दौरान बाबा की पालकी रामघाट पहुंचेगी। यहां मां शिप्रा के जल से बाबा का जलाभिषक होगा। परंपरानुसार पालकी सायं सात बजे से पूर्व महाकाल मंदिर पहुंचेगी। स्कंद पुराण के अवंति खंड में सोमवती अमावस्या पर शिप्रा तीर्थ स्नान का महात्म्य है। इसीलिए लाखों श्रद्धालु तीर्थ स्नान करने उज्जैन पहुंचते हैं। शिप्रा तट के समीप ही सोमतीर्थ कुंड भी है। प्रशासन ने श्रद्धालुओं के लिए फव्वारा स्नान की व्यवस्था की है।
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (17 जुलाई 2023)
17 Jul, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- दूसरों के झंझट में फंसने से बचे अथवा विशेष हानि का योग बन रहा है, ध्यान दे।
वृष राशि :- कार्य सिद्ध के योग बने, परिश्रम करने पर भी नए कार्य की सफलता प्राप्त होगी।
मिथुन राशि :- तत्परता से कार्य निपटाना ही उत्तम है, चोट आदि का भय, धन हानि होगी।
कर्क राशि :- स्वभाव में उद्विघ्नता से बचिए, अर्थव्यवस्था अनुकूल रहेगी, समय का ध्यान रखे।
सिंह राशि :- योजना फलीभूत हो, कुटुम्ब से शुभ समाचार प्राप्त होंगे, रुके कार्य अवश्य बनेंगे।
कन्या राशि :- स्त्री वर्ग से हर्ष उल्लास, योजनाएं फलीभूत होगी, सोचे हुए कार्य बन जाएंगे।
तुला राशि :- कुछ कार्यों में स्थाई सामर्थ्य वृद्धि, प्रयत्नशीलता सफल होगी, ध्यान रखे।
वृश्चिक राशि :- कुटुम्ब से परेशानी, स्वभाव में खिन्नता, मानसिक बेचैनी बने, कष्ट होगा।
धनु राशि :- तनाव क्लेश, स्त्री शरीर कष्ट, मानसिक बेचैनी, स्वभाव स्थिर रहेगा।
मकर राशि :- इष्ट मित्र कष्ट प्रद हो, आशानुकूल सफलता का हर्ष तथा विशेष लाभ होगा।
कुंभ राशि :- समय की अनुकूलता से लाभान्वित होगे तथा स्वभाव में खिन्नता बनेगी।
मीन राशि :- व्यर्थ भ्रमण व भय से बचे तथा दैनिक कार्य बाधा अवश्य ही आएगी।