धर्म एवं ज्योतिष (ऑर्काइव)
बेहद शुभ है इस साल की कर्क संक्रांति; राशि के अनुसार करें दान और सूर्य पूजा, जानें सही डेट
16 Jul, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
Kark Sankranti 2023: कर्क संक्रांति का हिंदुओं में बहुत महत्व है क्योंकि यह श्रावण माह के दौरान होता है जो भगवान शिव को समर्पित है। कर्क संक्रांति से दक्षिणायन काल प्रारंभ होता है।
कर्क संक्रांति को कर्कटक संक्रांति और दक्षिण कर्कटक जयंती भी कहा जाता है। कर्क संक्रांति सावन के महीने में कृष्ण पक्ष के दौरान यानी 16 जुलाई, 2023 को पड़ती है। इस वर्ष कर्क संक्रांति का बेहद खास महत्व है अपनी राशि और ग्रह के अनुसार, दान औऱ पूजा करना बहुत शुभ माना जाता है।
कर्क संक्रांति पुण्य काल - 16 जुलाई, 2023 - दोपहर 12:25 बजे से शाम 07:16 बजे तक
कर्क संक्रांति महा पुण्य काल - 16 जुलाई, 2023 - 04:59 अपराह्न से 07:16 अपराह्न तक
1 मेष राशि: जल में कुमकुम डालकर सूर्य को जल दें और गुड का दान करें।
2 वृषभ राशि: चांदी या सफेद फूल का दान करें और जल में दूध डालकर सूर्य देवता को अर्घ्य दें।
3 मिथुन राशि: सूर्य देव को जल में तिल मिलाकर अर्घ्य दें। किसी जरूरमंद को हरे मूंग का दान करें।
4 कर्क राशि: कर्क राशि वाले जातक किसी जरूरतमंद को चांदी, सफेद तिल चावल या पिर सफेद वस्त्र का दान करें।
5 सिंह राशि: सूर्य राशि वाले लोग कल संक्रांति के दिन लाल फूल डालकर लोटे से जल अर्पित करें और किसी जरूरतमंद को तांबा या नारंगी रंग का वस्त्र अर्पित करें।
6 मीन राशि: सूर्य देव को मंत्रों के साथ भक्ति भाव से मंत्रों का जाप करें और किसी जरूरतमंद को केसर दान करें। वहीं बच्चों को शिक्षा संबंधी चीजें दान करें।
7 कन्या राशि: कर्क संक्रांति के दिन घर में या बाहर पीपल या तुलसी का पौधा लगाएं और जरूरतमंदों को तिल दान करें।
8 तुला राशि: कर्क संक्रांति के दिन तुला राशि वाले जल में मिश्री मिलाकर सूर्य को अर्घ्य दें। किसी जरूरतमंद को शक्कर, छाता दान करें।
9 वृश्चिक राशि: कल वृश्चिक राशि के जातक मसूर दाल और गुड का गरीबों में दान करें ऐसा करने से आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाएगी।
10 धनु राशि: जल में हल्दी डालकर सूर्य देव को जल दें और फल, पीतल के बर्तन या फिल दाल का दान करें।
11 मकर राशि: कल मकर राशि वाले ब्रह्म मुहूर्त में सूर्याष्टकम का पाठ करें। चप्पल, काला तिल का दान करना इस दिन शुभ माना जाता हैं।
12 कुंभ राशि: सुबह स्नान करके सूर्य चालीसा का पाठ करें और छाता, कंबल का दान करें।
कर्क संक्रांति एक वर्ष में आने वाले बारह संक्रांति दिनों में से एक है। संक्रांति तब होती है जब सूर्य किसी राशि के एक भाव से दूसरे भाव में भ्रमण करता है। बस, संक्रांति हिंदू कैलेंडर में नए महीने की शुरुआत का प्रतीक है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार कर्क संक्रांति वर्षा ऋतु की शुरुआत का भी प्रतीक है।
दक्षिणायन छह महीने की अवधि तक रहता है और यह मकर संक्रांति उत्सव के साथ समाप्त होता है। मान्यताओं के अनुसार, इस दिन देशभर में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। कर्क संक्रांति के अवसर पर भक्त खाद्य सामग्री और कपड़े दान करते हैं जिसे अत्यधिक शुभ माना जाता है।
श्रावण मास के दौरान सभी शिव भक्तों द्वारा भगवान शिव की पूजा की जाती है। मानसून काल में शिला पूजन अत्यंत शुभ माना जाता है। कर्क संक्रांति के दिन पितृ तर्पण, पिंड दान और सूर्योदय के समय स्नान करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
कर्क संक्रांति के दिन श्राद्ध भी किये जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि दक्षिणायन के दौरान, यदि परिवार के सबसे बड़े सदस्य द्वारा श्राद्ध किया जाता है, तो पितृ दिव्य शांति और स्थिरता की ओर अपना रास्ता बनाते हैं।
शास्त्रों के अनुसार, इस दिन सूर्योदय से पहले जल्दी उठना चाहिए और स्नान करना चाहिए। कर्क संक्रांति पर भक्तों को भगवान विष्णु, भगवान सूर्य और भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए।
पहली बार पत्नी ने बाँधी थी पति को राखी, जानिए रक्षाबंधन से जुड़ी ये जरुरी बातें
16 Jul, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
रक्षाबंधन, जिसे राखी के नाम से भी जाना जाता है, भारत और दुनिया के अन्य हिस्सों में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है। यह खुशी का अवसर भाइयों और बहनों के बीच प्यार और सुरक्षा के बंधन का प्रतीक है।
इस लेख में, हम रक्षाबंधन के आकर्षक इतिहास और उत्पत्ति का पता लगाएंगे, इसके सांस्कृतिक महत्व पर प्रकाश डालेंगे और यह समय के साथ कैसे विकसित हुआ है।
1. रक्षाबंधन की पौराणिक कथा:-
हिंदू पौराणिक कथाओं में, रक्षाबंधन की जड़ें एक दिलचस्प किंवदंती में पाई जाती हैं। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, जब देवता राक्षसों से युद्ध कर रहे थे, तब भगवान इंद्र की पत्नी शची ने भगवान विष्णु से मार्गदर्शन मांगा। उनकी भक्ति से प्रभावित होकर, भगवान विष्णु ने उन्हें एक पवित्र धागा दिया और उन्हें सुरक्षा के लिए इसे अपने पति की कलाई पर बांधने का निर्देश दिया। इस कृत्य से, भगवान इंद्र विजयी हुए और राखी की परंपरा का जन्म हुआ।
2. राखी का ऐतिहासिक सन्दर्भ:-
पूरे इतिहास में, रक्षाबंधन के त्योहार के कई संदर्भ हैं। कहा जाता है कि महान भारतीय सम्राट अलेक्जेंडर द ग्रेट को रानी रोक्साना से एक राखी मिली थी, जिसमें उन्होंने एक भाई के रूप में उन पर भरोसा जताया था। इसी तरह मुगल काल में राखी को शांति और भाईचारे के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। ये ऐतिहासिक वृत्तांत राखी के प्रेम और एकता के संदेश की सार्वभौमिकता को दर्शाते हैं।
3. रक्षाबंधन मनाने में क्षेत्रीय विविधताएँ:-
रक्षाबंधन भारत के विभिन्न क्षेत्रों में विविध रीति-रिवाजों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र राज्य में, यह त्योहार नारली पूर्णिमा के साथ मेल खाता है, जो सुरक्षा के प्रतीक के रूप में समुद्र में नारियल चढ़ाने के लिए समर्पित दिन है। उत्तरी राज्यों में, इस त्यौहार को बहनों द्वारा अपने भाइयों की कलाई पर रंगीन धागे बांधने के साथ चिह्नित किया जाता है, जिसके बाद हर्षोल्लासपूर्ण पारिवारिक समारोहों और दावतों का आयोजन किया जाता है।
4. राखी की रस्में और रीति-रिवाज:-
रक्षाबंधन के दिन, बहनें अपने भाइयों की कलाई पर एक पवित्र धागा या राखी बांधती हैं, साथ ही उनकी भलाई और सुरक्षा के लिए प्रार्थना करती हैं। बदले में, भाई अपनी बहनों को उपहार देते हैं और उन्हें किसी भी नुकसान से बचाने का वादा करते हैं। यह अनुष्ठान भाई-बहनों के बीच स्थायी बंधन का प्रतीक है और इसमें प्यार, सम्मान और आजीवन समर्थन का वादा किया जाता है।
5. आधुनिक समय में रक्षाबंधन:-
पिछले कुछ वर्षों में, रक्षाबंधन अपनी पारंपरिक सीमाओं से परे विकसित हुआ है। यह एक ऐसा उत्सव बन गया है जो जैविक भाई-बहनों के बीच के बंधन से परे, चचेरे भाई-बहनों, दोस्तों और यहां तक कि पड़ोसियों तक भी फैल गया है। ऐसी दुनिया में जो अक्सर खंडित महसूस होती है, राखी रिश्तों को संजोने, प्रतिबद्धताओं का सम्मान करने और व्यक्तियों के बीच एकता को बढ़ावा देने की याद दिलाती है।
6. राखी का भावनात्मक महत्व:-
रक्षाबंधन भाई-बहन दोनों के लिए अत्यधिक भावनात्मक महत्व रखता है। यह पुनर्मिलन और साझा यादों का दिन है, कृतज्ञता व्यक्त करने और बचपन के क्षणों को याद करने का समय है। यह त्यौहार पारिवारिक बंधनों के महत्व को पुष्ट करता है और आधुनिक जीवन की माँगों के बीच रिश्तों को मजबूत करने के लिए उत्प्रेरक के रूप में कार्य करता है।
7. राखी उपहार और परंपराएँ:-
उपहारों का आदान-प्रदान रक्षाबंधन का अभिन्न अंग है। भाई अपनी बहनों को प्यार और प्रशंसा के प्रतीक के रूप में उपहार देते हैं। ये उपहार पारंपरिक वस्तुओं जैसे कपड़े, गहने, या मिठाई से लेकर व्यक्तिगत और विचारशील इशारों तक हो सकते हैं। हाल के दिनों में, डिजिटल उपहार और ई-कॉमर्स ने उपहार देने की परंपरा में नए आयाम जोड़े हैं, जिससे भाई-बहनों के लिए लंबी दूरी पर भी अपना स्नेह व्यक्त करना आसान हो गया है।
8. दुनिया भर में रक्षाबंधन समारोह:-
हालाँकि रक्षाबंधन की उत्पत्ति भारत में हुई, लेकिन इसकी भावना दुनिया भर में फैल गई है, जो हमारे वैश्विक समाज के बहुसांस्कृतिक ताने-बाने को दर्शाती है। अनिवासी भारतीय और भारतीय मूल के लोग समुदाय और अपनेपन की भावना को बढ़ावा देते हुए समान उत्साह के साथ राखी मनाते हैं। रक्षाबंधन भौगोलिक सीमाओं से परे जाकर हमें प्रेम, सुरक्षा और करुणा के साझा मानवीय मूल्यों की याद दिलाता है।
9. रक्षाबंधन और लैंगिक समानता:-
जबकि परंपरागत रूप से राखी को भाइयों और बहनों के बीच के बंधन से जोड़ा गया है, लैंगिक समानता को अपनाने के लिए त्योहार को पहचानना और अपनाना आवश्यक है। रक्षाबंधन रक्षक के रूप में बहनों और देखभाल प्राप्तकर्ता के रूप में भाइयों की भूमिका को स्वीकार करने का एक मंच हो सकता है। यह समावेशी दृष्टिकोण यह सुनिश्चित करता है कि त्योहार लैंगिक रूढ़िवादिता को मजबूत करने के बजाय आपसी प्रेम और सम्मान का उत्सव बन जाए।
10. रक्षाबंधन: भाई-बहन के प्यार का उत्सव:-
मूल रूप से, रक्षाबंधन भाई-बहन के प्यार का उत्सव है। यह भाइयों और बहनों के बीच अटूट समर्थन, साझा खुशियाँ और बिना शर्त प्यार को स्वीकार करने का एक अवसर है। यह त्यौहार व्यक्तियों को उनके जीवन में उनके भाई-बहनों की महत्वपूर्ण भूमिका के लिए अपना स्नेह और आभार व्यक्त करने की अनुमति देता है।
11. रिश्तों की मजबूती में राखी का महत्व:-
रक्षाबंधन रिश्तों को बनाने और मजबूत करने के लिए उत्प्रेरक का काम करता है। यह भाई-बहनों के बीच के बंधन को संजोने, खुले संचार, क्षमा और सहानुभूति को प्रोत्साहित करने की याद दिलाता है। राखी पर की गई प्रतिबद्धताओं का सम्मान करके, व्यक्ति ऐसे संबंधों का पोषण करते हैं जो समय और प्रतिकूल परिस्थितियों की कसौटी पर खरे उतरते हैं।
12. रक्षाबंधन एक सांस्कृतिक उत्सव के रूप में
अपने व्यक्तिगत महत्व से परे, रक्षाबंधन भारत में एक आवश्यक सांस्कृतिक त्योहार है। यह परंपराओं, रीति-रिवाजों और मान्यताओं की समृद्ध टेपेस्ट्री को प्रदर्शित करता है जो देश की सांस्कृतिक पहचान बनाते हैं। यह त्यौहार समुदायों को एक साथ लाता है, एकता को बढ़ावा देता है और अपनी विविध आबादी की साझा विरासत को मजबूत करता है।
13. राखी और समाज पर इसका प्रभाव:-
प्रेम, सुरक्षा और सहानुभूति के मूल्यों पर जोर देने वाले रक्षाबंधन का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यह जिम्मेदारी की भावना पैदा करता है और व्यक्तियों को एक-दूसरे के लिए खड़े होने, एक सामंजस्यपूर्ण और देखभाल करने वाले समाज को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित करता है। त्योहार के शांति, एकता और पारिवारिक बंधन के संदेशों का दूरगामी प्रभाव होता है जो उत्सव के दिन से परे होता है।
14. राखी का प्रतीक चिन्ह:-
राखी का धागा अपने आप में गहरा प्रतीकवाद रखता है। यह भाइयों और बहनों के बीच अटूट बंधन का प्रतिनिधित्व करता है, जो उनके भावनात्मक संबंध की एक भौतिक अभिव्यक्ति है। यह धागा रक्षाबंधन पर किए गए वादे की याद दिलाता है और अपने साथ बहन का प्यार, आशीर्वाद और सुरक्षा लेकर आता है।
अक्सर पूछे जाने वाले सवालों के जवाब:-
1. रक्षाबंधन की उत्पत्ति कैसे हुई है?
रक्षाबंधन की उत्पत्ति हिंदू पौराणिक कथाओं में पाई जाती है, जहां यह माना जाता है कि भगवान विष्णु ने सुरक्षा के प्रतीक के रूप में भगवान इंद्र की पत्नी शची को एक पवित्र धागा दिया था।
2. रक्षाबंधन कैसे मनाया जाता है?
रक्षाबंधन पर बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी का धागा बांधती हैं, इसके बाद उनकी सलामती के लिए प्रार्थना करती हैं। बदले में भाई भी अपनी बहनों को उपहार देते हैं और उनकी रक्षा का वचन देते हैं।
3. रक्षाबंधन लैंगिक समानता को कैसे बढ़ावा देता है?
बहनों को रक्षक के रूप में मान्यता देकर और त्योहार को प्यार और देखभाल की पारस्परिक अभिव्यक्ति के रूप में मनाकर लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए रक्षाबंधन को अपनाया जा सकता है।
4. क्या रक्षाबंधन भारत के बाहर मनाया जाता है?
हाँ, रक्षाबंधन दुनिया भर में अनिवासी भारतीयों और भारतीय मूल के लोगों द्वारा मनाया जाता है, जो भौगोलिक सीमाओं से परे समुदाय और अपनेपन की भावना को बढ़ावा देता है।
ऐसे धन के कारण उठानी पड़ सकती है मान-सम्मान की हानि
16 Jul, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
आचार्य चाणक्य को भारत के महान ज्ञानियों और विद्वानों में से एक माना गया हैं इनकी नीतियां देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं। आचार्य चाणक्य ने अपने जीवन के अनुभवों को नीतिशास्त्र में पिरोया हैं जिसे चाणक्य नीति के नाम से जाना जाता हैं।
माना जाता हैं कि इनकी नीतियों का अनुसरण अगर कर लिया जाए तो व्यक्ति का जीवन सरल और सफल हो जाएगा।
चाणक्य ने मनुष्य जीवन से जुड़े हर पहलु पर अपनी नीतियां बनाई हैं। चाणक्य ने अपनी नीतियों के जरिए बताया हैं कि मनुष्य को कैसे धन को भूलकर भी हाथ नहीं लगाना चाहिए। वरना मान सम्मान की हानि उठानी पड़ सकती हैं, तो आज हम अपने इस लेख में इसी विषय पर चर्चा कर रहे हैं, तो आइए जानते हैं आज की चाणक्य नीति।
आज की चाणक्य नीति-
चाणक्य नीति अनुसार मनुष्य को भूलकर भी ऐसे धन को हाथ नहीं लगाना चाहिए। जिसके लिए उसे सदाचार का त्याग करना पड़ें। जो लोग धन के लिए सदाचार का त्याग करते हैं उन्हें समाज में सम्मान नहीं मिलता हैं ऐसे लोगों को मान सम्मान की हानि उठानी पड़ती हैं इसके अलावा जो धन शत्रु की चापलूसी करके प्राप्त होता हैं उसके कारण व्यक्ति को हमेशा अपमानति होना पड़ता हैं साथ ही व्यक्ति भीतर ही भीतर आत्मग्लानि को भी महसूस करता हैं।
ऐसे में इस तरह के धन का त्याग करना ही उचित मार्ग हैं। चाणक्य नीति में आगे बताया गया हैं कि जिस धन के कारण यातनाएं सहनी पड़े ऐसे धन को भी कभी हाथ नहीं लगाना चाहिए। वरना मनुष्य हमेशा ही दुखी बना रहता हैं।
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (16 जुलाई 2023)
16 Jul, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- सोचे हुए कार्य पूर्ण हो, सामर्थ्य के योग बने, अधिकारियों से संतोष अवश्य ही बनेगा।
वृष राशि :- अधिकारियों का समर्थन बना रहे, आशानुकूल सफलता से हर्ष अवश्य होगा।
मिथुन राशि :- अधिकारियों के तनाव व विरोध से बचिये, वहीं आरोप कष्ट कारक हो सकते हैं।
कर्क राशि :- अशुद्ध गोचर रहने से विशेष कार्य स्थिगित रखें, व्यापार से हानि होवेगी।
सिंह राशि :- तनाव, क्लेश व अशांति होवे, समय और धन व्यर्थ नष्ट होगा, ध्यान देवें।
कन्या राशि :- व्यर्थ धन का खर्च, दूसरों के कार्य में हस्तक्षेप से तनाव अवश्य ही बनेगा।
तुला राशि :- सतर्कता से कार्य निपटा लेवें, व्यवसायिक चिन्ता कम अवश्य होगी।
वृश्चिक राशि :- आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा, अर्थव्यवस्था विशेष अनुकूल होवेगी।
धनु राशि :- चिन्ता निवृति, योजना फलीभूत होगी, मनोबल उत्साह वर्धक बना रहेगा।
मकर राशि :- मानसिक क्लेश व अशांति व शारीरिक कष्ट, विभ्रम तथा कष्ट होवेगा।
कुंभ राशि :- स्त्री वर्ग से हष, उल्लास एवं दैनिक समृद्धि के साधन अवश्य ही बन जायेंगे।
मीन राशि :- आर्थिक स्थिति में सुधार होगा, आपकी चिंताएं कम होंगी तथा रूके कार्य बनेंगे।
सावन माह की शिवरात्रि के दिन भूलकर भी न करें ये गलतियां
15 Jul, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
इन दिनों महादेव का प्रिय सावन मास चल रहा है। वैसे तो ये पूरा महीना ही शिव पूजा के लिए विशेष माना गया है, लेकिन इस महीने में आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि का महत्व सबसे ज्यादा है।
इस तिथि पर मासिक शिवरात्रि का व्रत किया जाता है। इस बार सावन शिवरात्रि का व्रत 15 जुलाई, शनिवार को किया जाएगा। इस दिन कई शुभ योग भी रहेंगे, जिसके चलते इसकी अहमियत और भी बढ़ गई है। पंचांग के मुताबिक, 15 जुलाई, शनिवार को सावन मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि शाम 07.17 तक रहेगी और इसके बाद चतुर्दशी तिथि आरम्भ होगी। त्रयोदशी तिथि होने से इस दिन शनि प्रदोष व्रत भी किया जाएगा तथा चतुर्दशी तिथि होने मासिक शिवरात्रि व्रत भी। ये दोनों ही व्रत भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किए जाते हैं। सावन में प्रदोष एवं मासिक शिवरात्रि व्रत का एक ही दिन होना एक दुर्लभ संयोग है। इस दिन वृद्धि और ध्रुव नाम के 2 शुभ योग दिन भर रहेंगे।
कहते हैं कि मासिक शिवरात्रि के दिन व्रत रखकर भगवान महादेव को प्रसन्न किया जा सकता है. श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि का व्रत रखा जाता है. यह दिन बहुत विशेष माना जाता है. इस दिन कावड़िए भगवान शिव पर जल चढ़ाएंगे. तो आइए जानते हैं कि सावन की मासिक शिवरात्रि के दिन किन गलतियों से सावधान रहना चाहिए.
मासिक शिवरात्रि के दिन इन गलतियों से रहे सावधान:-
* सावन की पहली शिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर तुलसी नहीं चढ़ानी चाहिए तथा ना तुलसी से बना पंचामृत भोग लगाएं.
* इस व्रत के दिन शिवलिंग पर कुमकुम एवं सिंदूर अर्पित न करें.
* साथ ही मासिक शिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर नारियल का जलाभिषेक न करें.
* इस दिन भगवान महादेव को केतकी और चंपा के फूल नहीं चढ़ाने चाहिए.
* भगवान महादेव की पूजा में भूलकर भी टूटे हुए चावल या अक्षत नहीं चढ़ाने चाहिए. अक्षत मतलब- अटूट चावल, यह पूर्णता का प्रतीक है.
आपकी जिंदगी बदल देंगे भगवान श्रीकृष्ण के ये उपदेश
15 Jul, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
कुरुक्षेत्र के रण में भगवान श्रीकृष्ण ने जो गीता का ज्ञान अर्जुन को दिया था वह संदेश पूरे मानव जाति के लिए उपयोगी है। यदि हम श्रीमद्भगवत गीता के कुछ ज्ञान को हम अपने जीवन में आत्मसात करें तो कई कष्टों से छुटकारा मिल जाएगा।
आप तनाव रहित जीवन का निर्वाह कर पाएंगे।
* कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
(द्वितीय अध्याय, श्लोक 47)
अर्थ: कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, कर्म के फलों में कभी नहीं... इसलिए कर्म को फल के लिए मत करो। कर्तव्य-कर्म करने में ही तेरा अधिकार है फलों में कभी नहीं। अतः तू कर्मफल का हेतु भी मत बन और तेरी अकर्मण्यता में भी आसक्ति न हो।
* हे कौन्तेय (अर्जुन), और निश्चय करके युद्ध करो...
हतो वा प्राप्यसि स्वर्गम्, जित्वा वा भोक्ष्यसे महिम्।
तस्मात् उत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय:॥
(द्वितीय अध्याय, श्लोक 37)
अर्थ: यदि तुम (अर्जुन) युद्ध में वीरगति को प्राप्त होते हो तो तुम्हें स्वर्ग मिलेगा और यदि विजयी होते हो तो धरती का सुख पा जाओगे... इसलिए उठो, हे कौन्तेय (अर्जुन), और निश्चय करके युद्ध करो।
* ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।
सङ्गात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥
(द्वितीय अध्याय, श्लोक 62)
अर्थ: विषय-वस्तुओं के बारे में सोचते रहने से मनुष्य को उनसे आसक्ति हो जाती है। इससे उनमें कामना यानी इच्छा पैदा होती है और कामनाओं में विघ्न आने से क्रोध की उत्पत्ति होती है। इसलिए कोशिश करें कि विषयाशक्ति से दूर रहते हुए कर्म में लीन रहा जाए।
* क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:।
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥
(द्वितीय अध्याय, श्लोक 63)
अर्थ: क्रोध से मनुष्य की मति-बुदि्ध मारी जाती है यानी मूढ़ हो जाती है, कुंद हो जाती है। इससे स्मृति भ्रमित हो जाती है। स्मृति-भ्रम हो जाने से मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि का नाश हो जाने पर मनुष्य खुद अपना ही का नाश कर बैठता है।
* यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥
(तृतीय अध्याय, श्लोक 21)
अर्थ: श्रेष्ठ पुरुष जो-जो आचरण यानी जो-जो काम करते हैं, दूसरे मनुष्य (आम इंसान) भी वैसा ही आचरण, वैसा ही काम करते हैं। श्रेष्ठ पुरुष जो प्रमाण या उदाहरण प्रस्तुत करते हैं, समस्त मानव-समुदाय उसी का अनुसरण करने लग जाते हैं।
* नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक:।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत॥
(द्वितीय अध्याय, श्लोक 23)
अर्थ: आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं, न आग उसे जला सकती है। न पानी उसे भिगो सकता है, न हवा उसे सुखा सकती है। यहां श्रीकृष्ण ने आत्मा के अजर-अमर और शाश्वत होने की बात की है।
* यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥
(चतुर्थ अध्याय, श्लोक 7)
अर्थ: हे भारत (अर्जुन), जब-जब धर्म की ग्लानि-हानि यानी उसका क्षय होता है और अधर्म में वृद्धि होती है, तब-तब मैं श्रीकृष्ण धर्म के अभ्युत्थान के लिए स्वयं की रचना करता हूं अर्थात अवतार लेता हूं।
* परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे॥
(चतुर्थ अध्याय, श्लोक 8)
अर्थ: सीधे साधे सरल पुरुषों के कल्याण के लिए और दुष्कर्मियों के विनाश के लिए...धर्म की स्थापना के लिए मैं (श्रीकृष्ण) युगों-युगों से प्रत्येक युग में जन्म लेता आया हूं।
* श्रद्धावान्ल्लभते ज्ञानं तत्पर: संयतेन्द्रिय:।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥
(चतुर्थ अध्याय, श्लोक 39)
अर्थ: श्रद्धा रखने वाले मनुष्य, अपनी इन्द्रियों पर संयम रखने वाले मनुष्य, साधन पारायण हो अपनी तत्परता से ज्ञान प्राप्त करते हैं, फिर ज्ञान मिल जाने पर जल्द ही परम-शान्ति को प्राप्त होते हैं।
* सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच:॥
(अठारहवां अध्याय, श्लोक 66)
अर्थ: (हे अर्जुन) सभी धर्मों को त्याग कर अर्थात हर आश्रय को त्याग कर केवल मेरी शरण में आओ, मैं (श्रीकृष्ण) तुम्हें सभी पापों से मुक्ति दिला दूंगा, इसलिए शोक मत करो।
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (15 जुलाई 2023)
15 Jul, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- हर्ष, लाभ, सुख, पदोन्नति के योग हैं, वायु विकार, दाम्पत्य जीवन सरल-सुखी रहेगा।
वृष राशि :- वाहन सुख, विद्या कष्ट, राजभय, आर्थिक हानि, विशेष हानि तथा विरोध होगा।
मिथुन राशि :- लाभ के योग बनेंगे, सुयश, कार्य सिद्धी, शत्रुभय, राज-काज में प्रतिष्ठा बढ़ेगी।
कर्क राशि :- कार्य सिद्धी, लाभ, धन व्यय, हर्ष, धार्मिक एवं शुभ कार्यों में सावधानी अवश्य रखें।
सिंह राशि :- शत्रु भय, कलह, लाभ एवं सुयश की प्राप्ति, सामाजिक कार्यों में प्रतिष्ठा मिलेगी।
कन्या राशि :- थोड़ा लाभ, शुभ समाचार की प्राप्ति होगी, प्रबलता के योग बनेंगे, विवाद होगा।
तुला राशि :- हर्ष, पदोन्नति के योग, रुके कार्य प्रयास से बनेंगे, कार्यों में सुधार होगा ध्यान दें।
वृश्चिक राशि :- संतान सुख, यात्रा लाभ, शत्रु हानि, अच्छे कार्यों में सुधार होगा, समय का ध्यान रखें।
धनु राशि :- व्यर्थ चिन्ता से मन परेशान रहेगा, अचानक लाभ के योग बनेंगे, उद्योग-व्यापार में लाभ।
मकर राशि :- सफलता प्राप्ति के योग बनेंगे, भय से मन उद्विघ्न रहेगा, मित्रों का सहयोग मिलेगा।
कुंभ राशि :- सुख, यात्रा भय, यश प्राप्ति, मित्रों का सहयोग मिलेगा, लाभप्रद स्थिति से हर्ष होगा।
मीन राशि :- इष्ट मित्रों सहायक रहेंगे, कार्यगति में अनुकूलता आयेगी, कार्य समय पर करें।
मलमास 2023: मलमास में करें इन नियमों का पालन, मिलेंगे कई लाभ
14 Jul, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में मलमास को बेहद ही खास माना जाता हैं क्योंकि इस दौरान की जाने वाली पूजा अर्चना का फल साधक को कई गुना प्राप्त होता हैं ये पवित्र महीना पूजा पाठ के लिए उत्तम होता हैं इस दौरान भक्त देवी देवताओं की पूजा पाठ, मंत्र जाप व व्रत आदि करते हैं।
लेकिन इसी के साथ ही अगर मलमास में कुछ नियमों का पालन किया जाए तो लाभ मिलता हैं साथ ही साथ जीवन की हर परेशानियां दूर हो जाती हैं, तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा बता रहे हैं कि मलमास के दिन में क्या करें और क्या नहीं।
मलमास में क्या करें क्या नहीं-
हिंदू मान्यताओं के अनुसार मलमास के दिनों मे अधिक से अधिक समय धार्मिक अनुष्ठान व पूजा पाठ में लगाना उत्तम माना जाता हैं। इसके साथ ही इन दिनों में शुद्ध व सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए। साथ ही आचरण भी ऐसा ही रखना चाहिए। माना जाता हैं कि इस दौरान अगर एक ही समय भोजन किया जाए तो सेहत से जुड़े लाभ मिलते हैं।
वही अधिकमास में तिल, चना, मूंगफली, चावल, मटर, ककड़ी, आम, पीपल, जीरा, सुपारी, सेंधा नमक, कटहल, गेहूं, सफेद धान, मूंग, घी धनिया, मिर्च आदि का सेवन करना चाहिए। वही इसके अलावा मलमास में पड़ने वाली प्रमुख तिथियों में उपवास रखना अच्छा माना जाता हैं। लेकिन इस दौरान भूलकर भी मलमास में लहसुन प्याज, मांस मदिरा, अंडे, नशीले पदार्थ, मछली, बासी भोजन,शहद, चावल का मांड, मूंग दाल, मसूर दाल, उड़द दाल, साग सब्जी, तिल का तेल, राई गोभी का सेवन नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से सेहत को हानि पहुंचती है साथ ही साथ व्यक्ति पाप का भागी भी होता हैं।
कब है सावन शिवरात्रि? जानिए पूजन-विधि, मंत्र और आरती
14 Jul, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
इन दिनों महादेव का प्रिय सावन मास चल रहा है। वैसे तो ये पूरा महीना ही शिव पूजा के लिए विशेष माना गया है, लेकिन इस महीने में आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि का महत्व सबसे ज्यादा है।
इस तिथि पर मासिक शिवरात्रि का व्रत किया जाता है। इस बार सावन शिवरात्रि का व्रत 15 जुलाई, शनिवार को किया जाएगा। इस दिन कई शुभ योग भी रहेंगे, जिसके चलते इसकी अहमियत और भी बढ़ गई है। पंचांग के मुताबिक, 15 जुलाई, शनिवार को सावन मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि शाम 07.17 तक रहेगी और इसके बाद चतुर्दशी तिथि आरम्भ होगी। त्रयोदशी तिथि होने से इस दिन शनि प्रदोष व्रत भी किया जाएगा तथा चतुर्दशी तिथि होने मासिक शिवरात्रि व्रत भी। ये दोनों ही व्रत भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किए जाते हैं। सावन में प्रदोष एवं मासिक शिवरात्रि व्रत का एक ही दिन होना एक दुर्लभ संयोग है। इस दिन वृद्धि और ध्रुव नाम के 2 शुभ योग दिन भर रहेंगे।
सावन शिवरात्रि पूजा के शुभ मुहूर्त:-
सावन शिवरात्रि व्रत में रात्रि पूजन का विधान है। यानी 15 जुलाई, शनिवार की रात में सावन शिवरात्रि की पूजा की जाएगी। व्रत का पारणा अगले दिन मतलब 16 जुलाई, रविवार को किया जाएगा।
ये हैं रात्रि पूजा के शुभ मुहूर्त:-
रात्रि पहले प्रहर का पूजा समय- शाम 07:21 से रात 09:54 तक
रात्रि दूसरे प्रहर का पूजा समय- रात 09:54 से 12:27 तक
रात्रि तीसरे प्रहर का पूजा समय- रात 12:27 से 03:00 बजे
रात्रि चौथे प्रहर का पूजा समय - रात 03:00 से सुबह 05:33 तक
सावन शिवरात्रि पूजन सामग्री:-
शुद्ध जल, इत्र, गंध, रोली, फूल, फल, शुद्ध घी, शहद, मौली, जनेऊ, मिठाई, बिल्वपत्र, धतूरा, भांग, बेर, मंदार पुष्प, गाय का कच्चा दूध, कपूर, धूप, दीप आदि।
इस विधि से करें सावन शिवरात्रि का व्रत और पूजा:-
15 जुलाई, शनिवार की प्रातः जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद हाथ में चावल, पानी एवं फूल लेकर व्रत-पूजा का संकल्प लें। जैसा व्रत आप करना चाहें, उसी के अनुरूप संकल्प लें। अगर आप पूरे दिन बिना कुछ खाए व्रत करना चाहते हैं तो वैसा संकल्प लें एवं अगर आप फलाहार खाकर व्रत करना चाहते हैं तो वैसा संकल्प लें। दिन भर सात्विक आचरण करें। यानी किसी पर गुस्सा न करें, किसी को अपशब्द न बोलें। किसी के बारे में बुरा न सोचें और मन ही मन ऊं नम: शिवायं मंत्र का जाप करते रहें। ऊपर बताए गए सबसे पहले शुभ मुहूर्त में घर में साफ जगह पर एक शिवलिंग स्थापित करें तथा इसका शुद्ध जल से अभिषेक करें, फिर पंचामृत से अभिषेक करें एवं फिर एक बार पुन: शुद्ध जल से अभिषेक करें। शिवलिंग के सामने शुद्ध घी का दीपक जलाएं। फिर फूल, रोली, बिल्व पत्र, भांग, धतूरा, आदि चीजें एक-एक करके चढ़ाते रहें। फिर ये मंत्र बोलें-
देवदेव महादेव नीलकण्ठ नमोस्तु ते।
कर्तुमिच्छाम्यहं देव शिवरात्रिव्रतं तव।।
तव प्रसादाद्देवेश निर्विघ्नेन भवेदिति।
कामाद्या: शत्रवो मां वै पीडां कुर्वन्तु नैव हि।।
इस प्रकार पूजा करने के बाद फल और मिठाई का भोग लगाएं। रात्रि के अन्य तीनों प्रहर में भी इसी विधि से भगवान शिव की पूजा करें। रात में सोए नहीं। शिवजी के मंत्रों का जाप करते रहें। अगले दिन मतलब 16 जुलाई, रविवार को सावन शिवरात्रि व्रत का पारणा करें। इस प्रकार जो मनुष्य सावन शिवरात्रि पर विधि-विधान से शिवजी की पूजा करता है, उसे हर सुख प्राप्त होता है तथा हर संकट दूर होता है।
भगवान शिव की आरती:-
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे ।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (14 जुलाई 2023)
14 Jul, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- नेत्र पीड़ा, यात्रा विवाद, कष्ट, पारिवारिक समस्या बनी रहेगी, समय का ध्यान रखें।
वृष राशि :- मित्र कष्ट, यात्रा के योग बनेंगे, भय, लाभ, सामाजिक कार्य में सावधानी रखें, अवरोध होगा।
मिथुन राशि :- धन का व्यय होगा, व्यापार में प्रगति, शुभ कार्य संतोषप्रद रहेगा, कार्य ध्यान से करें।
कर्क राशि :- यात्रा सखुवर्धक होगी, भूमि लाभ से हर्ष, अस्थिरता व अशांति का वातावरण रहेगा।
सिंह राशि :- शत्रु भय, प्रवास, विरोध होगा, चोटादि से बचें, कार्य पर ध्यान दें, समय का ध्यान अवश्य रखें।
कन्या राशि :- चिन्ता, विरोध, चोटादि भय, समय पर कार्य निपटाने का प्रयास करें, धैर्य रखें।
तुला राशि :- सुख-सफलता के योग बनेंगे, निर्माण कार्य होगा, प्रवास योग, शुभ कार्यों का विरोध होगा।
वृश्चिक राशि :- आंशिक नेत्र पीड़ा, अपयश, कारोबार में उथल-पुथल रहेगी, कार्य पर ध्यान अवश्य दें।
धनु राशि :- व्यापार में विवाद की स्थिति बनेगी, चिन्ता कष्टप्रद रहेगी, शुभ समाचार से मन प्रसन्न रहेगा।
मकर राशि :- धन लाभ, स्थानंतरण के योग हैं, नौकरी में स्थिति सामान्य रहेगी, समय का लाभ लें।
कुंभ राशि :- भय, विवाद, चिन्ता, कष्ट, आंशिक लाभ के योग, जमीन-जायजाद का कर्ज चुकाना होगा।
मीन राशि :- संतान सुख, प्रवास, धन लाभ, इष्ट मित्र सुखवर्धक होगा, पारिवारिक लोगों से सावधान रहें।
जानिए माता रानी के पास रहने वाले शस्त्रों का क्या है महत्व
13 Jul, 2023 07:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
माता रानी, जिन्हें देवी या शक्ति के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू पौराणिक कथाओं में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं और उन्हें दिव्य मां और ब्रह्मांड की रक्षक के रूप में सम्मानित किया जाता है।
हिंदू धर्म में, वह स्त्री ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करती हैं और उन्हें करुणा, शक्ति और दिव्य शक्ति का अवतार माना जाता है। माता रानी को अक्सर विभिन्न हथियारों और सहायक उपकरणों के साथ चित्रित किया जाता है, जिनमें से प्रत्येक का प्रतीकात्मक महत्व होता है। इस निबंध में, हम माता रानी के प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व, उनके दिव्य गुणों और उन हथियारों और सामानों के महत्व का पता लगाएंगे जिनके साथ उन्हें अक्सर चित्रित किया जाता है, जिसमें त्रिशूल, कमल और शंख शामिल हैं।
माता रानी का प्रतीकात्मक चित्रण:
माता रानी को अक्सर कई भुजाओं वाली एक सुंदर देवी के रूप में चित्रित किया जाता है, जिनमें से प्रत्येक एक विशिष्ट हथियार या सहायक उपकरण रखती है। यह चित्रण एक साथ अपने भक्तों की रक्षा और पोषण करने की उनकी अपार शक्ति और क्षमता का प्रतिनिधित्व करता है। उनका दिव्य रूप उग्रता और करुणा, विनाश और सृजन के सह-अस्तित्व और ब्रह्मांड में संतुलन बनाए रखने की उनकी क्षमता का प्रतीक है।
माता रानी के दिव्य गुण:
माता रानी विभिन्न दिव्य गुणों का प्रतीक हैं जो सर्वोच्च माँ और रक्षक के रूप में उनकी भूमिका को दर्शाती हैं। वह अक्सर प्रेम, करुणा और मातृ देखभाल से जुड़ी होती है, जो ब्रह्मांड में पोषण शक्ति के रूप में अपनी भूमिका निभाती है। माता रानी का दयालु स्वभाव उनके भक्तों को जरूरत के समय उनका मार्गदर्शन और सुरक्षा प्राप्त करने की अनुमति देता है। इसके अतिरिक्त, ऐसा माना जाता है कि उनके पास अपार शक्ति और शक्ति है, जो दिव्य स्त्री ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करती है जो किसी भी बाधा को दूर कर सकती है।
हथियारों का महत्व:
त्रिशूल (त्रिशूल):
त्रिशूल, जिसे त्रिशूल भी कहा जाता है, माता रानी से जुड़े प्राथमिक हथियारों में से एक है। इसमें तीन शूल शामिल हैं, जो अस्तित्व के तीन मूलभूत पहलुओं - सृजन, संरक्षण और विनाश का प्रतिनिधित्व करते हैं। त्रिशूल माता रानी की जीवन को बनाने और बनाए रखने की शक्ति के साथ-साथ बुरी ताकतों को नष्ट करने की उनकी क्षमता का भी प्रतीक है। यह ब्रह्मांडीय व्यवस्था और संतुलन बनाए रखने वाली अंतिम शक्ति के रूप में उनकी भूमिका को दर्शाता है।
कमल (पद्म):
कमल हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण प्रतीक है और अक्सर पवित्रता, ज्ञान और दिव्य सुंदरता से जुड़ा होता है। माता रानी को कमल पर बैठे हुए दर्शाया गया है, जो भौतिक संसार से ऊपर उनकी श्रेष्ठता का प्रतिनिधित्व करता है। कमल उनकी दिव्य कृपा और पवित्रता का प्रतीक है। यह आध्यात्मिक विकास और किसी की क्षमता के प्रकटीकरण का भी प्रतीक है, जो आत्म-प्राप्ति के मार्ग पर मार्गदर्शक के रूप में माता रानी की भूमिका को दर्शाता है।
शंख (शंख):
शंख, जिसे शंख के नाम से जाना जाता है, हिंदू अनुष्ठानों और पौराणिक कथाओं में बहुत महत्व रखता है। इसे एक पवित्र वस्तु माना जाता है, जो पवित्रता, शुभता और सृष्टि की मौलिक ध्वनि का प्रतिनिधित्व करती है। माता रानी को अक्सर शंख पकड़े हुए चित्रित किया जाता है, जो उनकी दिव्य ध्वनि कंपन के माध्यम से ब्रह्मांड को बनाने और बनाए रखने की उनकी क्षमता को दर्शाता है। शंख की ध्वनि उनके भक्तों को उनकी आध्यात्मिक चेतना को जागृत करने और उनका दिव्य मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए एक अनुस्मारक के रूप में भी काम करती है।
तलवार (खंडा):
तलवार आमतौर पर माता रानी से जुड़ा एक और हथियार है। यह नकारात्मकता और बुरी शक्तियों पर विजय पाने की उसकी शक्ति का प्रतीक है। तलवार अज्ञानता को काटने और अज्ञानता के अंधेरे को नष्ट करने की उनकी क्षमता का प्रतिनिधित्व करती है, जो उनके भक्तों को आध्यात्मिक ज्ञान की ओर ले जाती है। यह एक रक्षक के रूप में उनकी भूमिका, अपने भक्तों को नुकसान से बचाने और उन्हें धार्मिकता के मार्ग पर मार्गदर्शन करने का भी प्रतीक है।
डिस्कस (चक्र):
चक्र, जिसे चक्र के नाम से भी जाना जाता है, माता रानी से जुड़ा एक गोलाकार हथियार है। यह उसके समय के लौकिक चक्र और अज्ञानता को दूर करने और दैवीय न्याय लाने की उसकी क्षमता का प्रतिनिधित्व करता है। चक्र बुराई को नष्ट करने और ब्रह्मांड में व्यवस्था बहाल करने की उसकी शक्ति का प्रतीक है। यह उनकी सर्वज्ञता का भी प्रतीक है, क्योंकि वह अपने भक्तों के हर विचार और कार्य से अवगत रहती हैं।
माता रानी, अपने प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व और दिव्य गुणों के साथ, हिंदू पौराणिक कथाओं में एक प्रमुख स्थान रखती हैं। उनके हथियार और सहायक उपकरण, जिनमें त्रिशूल, कमल, शंख, तलवार और चक्र शामिल हैं, गहरा प्रतीकात्मक महत्व रखते हैं। प्रत्येक हथियार उसकी शक्ति और उद्देश्य के एक विशिष्ट पहलू का प्रतिनिधित्व करता है, जो उसके भक्तों को उनकी रक्षा, पोषण और धार्मिकता के मार्ग पर मार्गदर्शन करने की क्षमता की याद दिलाता है। दिव्य मां और रक्षक के रूप में माता रानी का चित्रण दुनिया भर में लाखों भक्तों के लिए प्रेरणा का काम करता है, जिससे उनमें विश्वास, भक्ति और शक्ति की भावना पैदा होती है। अपने प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व और दिव्य गुणों के माध्यम से, माता रानी को हिंदू धर्म में करुणा, शक्ति और दिव्य शक्ति के अवतार के रूप में सम्मानित किया जाता है।
चाणक्य नीति: कलयुग में सफलता पाने के लिए रामबाण हैं ये नीतियां
13 Jul, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
आचार्य चाणक्य को भारत के महान ज्ञानियों और विद्वानों में से एक माना गया हैं इनकी नीतियां देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं जिसे चाणक्य नीति के नाम से जाना जाता हैं।
चाणक्य ने अपने जीवन के अनुभवों को नीतिशास्त्र में पिरोया हैं जिसका अनुसरण व्यक्ति को सफल जीवन प्रदान करता हैं।
आचार्य चाणक्य ने मानव जीवन से जुड़े हर पहलु पर अपनी नीतियां बनाई हैं जिसका पालन करके मनुष्य सफलता को हासिल कर सकता हैं और मुसीबतों से कोसों दूर रह सकता हैं। चाणक्य ने अपनी नीतियों के जरिए कुछ ऐसी बातें भी कही हैं जो मनुष्य को दूसरों से चार कदम आगे और सफलता के करीब लेकर जाती हैं तो आज हम इसी विषय पर चर्चा कर रहे हैं, तो आइए जानते हैं आज की चाणक्य नीति।
सफलता पाने के लिए चाणक्य नीति-
आचार्य चाणक्य ने अपने एक श्लोक के जरिए बताया हैं कि व्यक्ति को ज्यादा सीधा नहीं होना चाहिए। क्योंकि वन में सीधे पेड़ पहले काटे जाते हैं। क्योंकि टेढ़े पेड़ के मुकाबले सीधे पेड़ों को काटने में अधिक मेहनत नहीं लगती हैं। यही कारण है कि व्यक्ति के सीधेपन का हर कोई लाभ उठा लेता हैं ऐसे में अगर आपको कलयुग में सफलता हासिल करनी है तो थोड़ी चालाकी जरूरी हैं। इसके अलावा अगर आप अपना भविष्य बदलना चाहते हैं तो सही समय, सही मित्र, सही ठिकाना, धन कमाने का सही साधन, पैसे खर्च करने का सही तरीका और अपनी ऊर्जा स्तोत्र पर जरूर ध्यान दें। क्योंकि यही आपको हर मार्ग में सफलता प्रदान कर सकते हैं।
चाणक्य नीति की मानें तो अगर आपको सफलता हासिल करनी है तो हमेशा ही सही मार्ग अपनाना चाहिए। क्योंकि गलत मार्ग को अपनाने से सही चीजें भी गलत मानी जाती हैं। ऐसे में किसी भी तरह का फैसला करने से पहले सही गलत की परख रखें। सफलता और सम्मान पाने के लिए मनुष्य को अपने कर्म और गुणों पर ध्यान देना चाहिए।
समुद्र मंथन से लेकर शिवशक्ति मिलन तक, यहाँ जानिए सावन माह से जुड़ी पौराणिक कथाएं
13 Jul, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सावन, जिसे श्रावण के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू कैलेंडर में एक पूजनीय महीना है जो हिंदू पौराणिक कथाओं और संस्कृति में बहुत महत्व रखता है। यह पवित्र समय, जो भगवान शिव से जुड़ा है, लाखों भक्तों द्वारा किए गए विभिन्न अनुष्ठानों और अनुष्ठानों द्वारा चिह्नित होता है।
आज हम आपको बताएंगे सावन महीने की पौराणिक कथाओं के बारे में...
भगवान शिव और सावन:-
सावन महीना हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक, भगवान शिव से गहराई से जुड़ा हुआ है। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि इस महीने के दौरान, भगवान शिव ने ब्रह्मांड में सद्भाव और संतुलन लाने के लिए "तांडव" नामक दिव्य नृत्य किया था। भक्त इस अवधि को परमात्मा से जुड़ने और आध्यात्मिक विकास, आंतरिक परिवर्तन और अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए भगवान शिव का आशीर्वाद लेने का एक उपयुक्त समय मानते हैं।
समुद्र मंथन की कथा:-
सावन महीने से जुड़ी प्रमुख पौराणिक घटनाओं में से एक ब्रह्मांडीय महासागर का मंथन है, जिसे "समुद्र मंथन" के नाम से जाना जाता है। धर्मग्रंथों के अनुसार, देवताओं (देवों) और राक्षसों (असुरों) ने एकजुट होकर अमरता का अमृत निकालने के लिए समुद्र मंथन किया, जिसे "अमृत" कहा जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान, विभिन्न दिव्य प्राणी और खगोलीय पिंड उभरे, जिनमें कामधेनु, इच्छा पूरी करने वाली दिव्य गाय और पवित्र वृक्ष कल्पवृक्ष शामिल थे। यह मनोरम कथा अच्छाई और बुराई के बीच शाश्वत संघर्ष और आध्यात्मिक ज्ञान की खोज का प्रतीक है।
कांवरियों का शुभ प्रतीक:-
सावन महीने की एक उल्लेखनीय विशेषता कांवरियों की तीर्थयात्रा है, जो समर्पित अनुयायी कांवर यात्रा करते हैं। कांवरिए जल इकट्ठा करने के लिए पवित्र नदियों, मुख्य रूप से गंगा की कठोर यात्रा पर निकलते हैं, जिसे बाद में अपने स्थानीय मंदिरों में भगवान शिव को चढ़ाया जाता है। ये भक्त अपने कंधों पर सजाए गए बर्तन, जिन्हें "कांवर" के नाम से जाना जाता है, लेकर जाते हैं और लंबी दूरी तय करते हैं, रास्ते में भजन गाते हैं और आशीर्वाद मांगते हैं। कांवर यात्रा आध्यात्मिक ज्ञान और दैवीय कृपा की तलाश में भक्तों द्वारा प्रदर्शित प्रबल भक्ति, अनुशासन और बलिदान का प्रतिनिधित्व करती है।
नटराज का आनंदमय नृत्य:-
हिंदू पौराणिक कथाओं में, भगवान शिव को अक्सर ब्रह्मांडीय नर्तक नटराज के रूप में चित्रित किया गया है। भगवान नटराज का मंत्रमुग्ध कर देने वाला नृत्य सृजन, संरक्षण और विघटन के लयबद्ध चक्र का प्रतीक है। यह ब्रह्मांडीय ऊर्जाओं की परस्पर क्रिया और अस्तित्व के निरंतर प्रवाह का प्रतिनिधित्व करता है। भक्तों का मानना है कि सावन महीने के दौरान, भगवान शिव का दिव्य नृत्य अपने चरम पर पहुंच जाता है, और जो लोग इस दिव्य प्रदर्शन को देखते हैं और उससे जुड़ते हैं, उन पर आशीर्वाद की वर्षा करते हैं।
व्रत तथा भक्ति का महत्त्व :-
आध्यात्मिक उन्नति चाहने वाले भक्तों के बीच सावन महीने के दौरान व्रत रखना एक आम बात है। कई भक्त कठोर उपवास करते हैं, कुछ खाद्य पदार्थों से परहेज करते हैं या केवल विशिष्ट भोजन का सेवन करते हैं। माना जाता है कि उपवास शरीर और मन को शुद्ध करता है, आत्म-अनुशासन को बढ़ावा देता है और आध्यात्मिक प्रथाओं के लिए अनुकूल वातावरण बनाता है। भक्त भगवान शिव के दिव्य स्पंदनों में डूबकर प्रार्थना, ध्यान और मंत्रों का जाप करते हैं।
सावन के दौरान मनाये जाने वाले त्यौहार:-
सावन माह को जीवंत त्योहारों द्वारा भी चिह्नित किया जाता है जो दिव्य संबंध का जश्न मनाते हैं और भगवान शिव के प्रति भक्ति व्यक्त करते हैं। ऐसा ही एक त्यौहार है "सावन शिवरात्रि", जो भगवान शिव को समर्पित एक रात है, जिसे उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। भक्त आशीर्वाद और ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करते हैं, अनुष्ठान करते हैं और रात भर भजन (भक्ति गीत) में लगे रहते हैं।
शिवशक्ति का मिलन:-
पौराणिक मान्यता के अनुसार, प्रजापति दक्ष की पुत्री माता सती ने अपने जीवन को त्याग कर कई वर्षों तक श्रापित जीवन व्यतीत किया। इसके बाद उन्होंने हिमालय राज के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया। वहीं शिव जी को पार्वती ने पति रूप में पाने के लिए पूरे सावन महीने में कठोर तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनकी मनोकामना पूरी की। अपनी भार्या से पुन: मिलाप के कारण भगवान शिव को श्रावण का ये महीना अत्यंत प्रिय है। मान्यता के अनुसार, सावन के महीने में भगवान शिव ने धरती पर आकर अपने ससुराल में विचरण किया था जहां अभिषेक कर उनका स्वागत हुआ था। इसलिए इस माह में अभिषेक का महत्व बताया गया है।
श्री अमरनाथ यात्रा करने वाले दो अमेरिकी बने पहले विदेशी तीर्थयात्री
13 Jul, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
कैलिफोर्निया के दो अमेरिकी दक्षिण कश्मीर हिमालय में भगवान शिव की पवित्र गुफा के लिए अमरनाथ यात्रा करने वाले पहले विदेशी तीर्थयात्री बन गए हैं। जम्मू-कश्मीर प्रशासन के सूचना और जनसंपर्क विभाग द्वारा जारी वीडियो में दो विदेशी जिनका नाम नहीं बताया गया है, अपनी यात्रा के बारे में बात करते हैं।
वीडियो में वह कहते हैं कि हम कैलिफोर्निया के एक मंदिर आश्रम में रहते हैं। हमने वर्षों से इस यात्रा के लिए यहां आने का सपना देखा। हम पिछले कुछ वर्षों से प्रतिदिन यूटयूब पर आरती वीडियो देखते हैं। यह वर्णन करना कठिन व असंभव है कि हम कैसा महसूस करते हैं। उनमें से एक ने कहा कि हमारे अंदर अविश्वसनीय कृतज्ञता है और हम बहुत खुश हैं।
भगवा वस्त्र पहने और लंबे बाल वाले दोनों व्यक्तियों ने कहा कि वे स्वामी विवेकानन्द के भक्त हैं। स्वामी विवेकानन्द अमरनाथ आये और उन्हें एक बहुत ही महत्वपूर्ण अनुभव हुआ। उन्हें भगवान शिव के दर्शन हुए और अब 40 वर्षों से मैं सोच रहा हूं कि मुझे यह कहानी पता है। उन्होंने कहा कि यही कारण है कि हम यहां आना चाहते थे। यह एक असंभव सपना जैसा लग रहा था। फिर, अचानक भोलेनाथ की कृपा से सब कुछ ठीक हो गया और हम उनके दर्शन करने के बाद यहां हैं।
दोनों ने कहा कि वे शब्दों में बयां नहीं कर सकते कि वे कैसा महसूस कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हम इस दर्शन व तीर्थयात्रा के लिए कृतज्ञता और खुशी से अभिभूत हैं।
दोनों अमेरिकियों ने 3,888 मीटर की ऊंचाई पर स्थित पवित्र गुफा के दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं के लिए श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड द्वारा की गई व्यवस्था की सराहना की। उनमें से एक ने कहा कि व्यवस्था दोषरहित है। इतने सारे तीर्थयात्रियों के बावजूद श्राइन बोर्ड ने कैसे सब कुछ व्यवस्थित किया है, यह बहुत प्रभावशाली है। उन्होंने कहा कि इन पहाड़ों में एक विशेष प्रकार की शांति है। उन्होंने कहा कि हमें उम्मीद है कि इस तरह की शांति हर जगह बनी रहेगी। यही हमारी प्रार्थना है।
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (13 जुलाई 2023)
13 Jul, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- मानसिक बेचैनी, दुघर्टनाग्रस्त हेने से बचें, अधिकारियों से तनाव होगा।
वृष राशि :- योजनायें फलीभूत होंगी, सफलता के साधन जुटायेंगे, विशेष लाभ होगा।
मिथुन राशि :- किसी अपवाद व दुर्घटना से बचें, विशेष कार्य स्थगित रखें, कार्य अवरोध होगा।
कर्क राशि :- परिश्रम से कुछ सफलता मिले, कार्य व्यवस्था की चिन्ता रहेगी, तनावग्रस्त हेने से बचें।
सिंह राशि :- किसी अपवाद या दुर्घटना से बचें, व्यवसायिक क्षमता में बाधा आयेगी, कार्यगति पर ध्यान दें।
कन्या राशि :- व्यवसायिक गति उत्तम रहेगी, चिन्तायें कम होंगी, अवरोध के बाद कार्य बनेगा ध्यान दें।
तुला राशि :- मानसिक बेचैनी रहेगी, उद्विघ्नता के योग बनेंगे, कुटुम्ब में क्लेश की संभावना।
वृश्चिक राशि :- सामर्थ्य वृद्धि के बाद तनाव, झगड़े के योग बनेंगे तथा कुटम्ब में क्लेश होगा।
धनु राशि :- कुटुम्ब की समस्यायें कष्टप्रद होंगी, तनाव, धन का व्यर्थ व्यय होगा, धैर्य रखें।
मकर राशि :- योजनायें फलीभूत होंगी, सफलता के साधन जुटायेंगे, प्रयास से कार्य बनेंगे।
कुंभ राशि :- स्वभाव में खिन्नता रहेगी, मानसिक बेचैनी से कार्य बिगड़ सकते हैं, सावधानी से कार्य करें।
मीन राशि :- तनाव, क्लेश व अशांति से मानसिक बेचैनी रहेगी, परिश्रम सफल होगा, कार्यगति मंद रहेगी।