धर्म एवं ज्योतिष (ऑर्काइव)
जन्म कुंडली में चंद्रमा कमजोर है तो करें यह उपाय होगी उन्नति
2 Aug, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा का बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान रहता है, इन्हें मन का कारक माना जाता है. इनकी गति बहुत ही तेज है. सूर्य के समान ही चंद्रमा ग्रह भी बहुत ही विशिष्ट ग्रह है.
आकाश में दिखाई देने वाला सूर्य के बाद चंद्रमा एक ऐसा ग्रह है जो सबसे बड़ा दृष्टिगोचर होता है. कुंडली में चंद्रमा का ठीक होना बहुत ही जरुरी होता है. जन्म कुंडली में चंद्रमा कमजोर होना बहुत ही कष्टकारी होता है जिनकी कुंडली में चंद्रमा ठीक नहीं होता है उनको कई तरह से परेशानी होती है. इनकी गति बहुत ही तेज होती है. एक राशि से दूसरी राशि में गोचर करने में सवा दो से ढाई दिन लगता है चंद्रमा कर्क राशि के स्वामी है तथा रोहिणी, हस्त और श्रवण नक्षत्र के स्वामी चंद्रमा होते हैं.चंद्रमा को पाताल लोक के स्वामी माना गया है, चंद्रमा स्त्री कारक ग्रह है. चंद्रमा का मित्र ग्रह सूर्य तथा बुध है इनके सम ग्रह शनि, शुक्र, गुरु और मंगल हैं. राहु और केतु इनके शत्रु ग्रह होते हैं. चंद्रमा का उच्च राशि वृष राशि है और इनका नीच का राशि वृश्चिक है. यह कुंडली में चौथे भाव का स्वामी होते हैं.
जानें चंद्रमा किस तरह का ग्रह है
चंद्रमा शीतल एवं शांत ग्रह है इसलिए इसे मन का कारक ग्रह कहा जाता है. इनमें मातृत्व तथा प्रेम -प्यार समझने की शक्ति, देख-रेख का दायित्व करते हैं. यह कफकारी और वायु विकार प्राकृतिक वाला ग्रह है.
चंद्रमा कमजोर होने पर क्या होता है ?
(1) चंद्रमा कमजोर होने पर व्यक्ति मानसिक रूप से बहुत ही कमजोर हो जाता है.
(2) गलत भावना में गलत निर्णय ले लेते हैं जिसके कारण कई तरह से तकलीफ होता है.
(3) स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है मानसिक बीमारी से परेशान रहते हैं.
(4) नींद काम लगता है. आस्थमा जुकाम, जल से भय बना रहता है. आत्महत्या करने की कोशिश करता हैकुं
कुंडली में चंद्रमा को मजबूत करने के सामान्य उपाय
(1) भगवान शिव की उपासना तथा आराधना करने से चन्द्र पीड़ा दूर होती है.
(2) सोमवार को व्रत रखने से भी चन्द्र दोष दूर होते हैं.
(3) पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान करें या अन्य कोई नदी में स्नान करें.
(4) पानी की टंकी की सफाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए.
(5) माता- पिता तथा बुजुर्ग, साधू व ब्राह्मण की सेवा करने से चन्द्र पीड़ा से निवारण होता है.
चंद्रमा की शांति के लिए कौन से रत्न और वस्त्र का दान करें
चन्द्र दोष से पीड़ित व्यक्ति को श्वेत मोती तथा श्वेत पुखराज का दान करना चाहिए. सफेद रंग के वस्त्र बांटने तथा सफेद वस्त्र धारण करने से चन्द्रजनित पीड़ा का निवारण होता है.
चांदी की अंगूठी में पांच रती का मोती जड़वा कर दाहिने हाथ की कनिष्ठा उंगली में धारण करें लाभ होगा.
चंद्रमा के शांति के लिए क्या दान करें
चन्द्र ग्रह से सम्बंधित दान सोमवार या चन्द्र के नक्षत्र रोहिणी, हस्त या श्रवण नक्षत्र में दान करना चाहिए. दान अपने वजन के बराबर चावल, सफेद वस्त्र, कपूर, चांदी, सफेद चन्दन, चीनी, मोती, दही दक्षिणा सहित ब्राह्मण को शिव मंदिर में दान करना चाहिए.
वरलक्ष्मी व्रत कब है जानिए व्रत कथा, पूजा विधि एवं शुभ मुहूर्त
2 Aug, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
धर्म शास्त्रों के अनुसार हर शुक्रवार का दिन मां लक्ष्मी को समर्पित होता है लेकिन सावन का आखिरी शुक्रवार मां लक्ष्मी की पूजा के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन को वरलक्ष्मी व्रत के नाम से जाना जाता है।
ऐसा माना जाता है कि इस दिन महालक्ष्मी अपने भक्तों पर विशेष कृपा करती हैं। साधक को धन, ऐश्वर्य, सौंदर्य, सुख और समृद्धि की कभी कमी नहीं होती। आइए जानते हैं इस साल की तिथि, पूजा मुहूर्त, वरलक्ष्मी व्रत का महत्व। वरलक्ष्मी व्रत 2023 तिथि साल 2023 में वरलक्ष्मी व्रत 25 अगस्त 2023, सावन के आखिरी शुक्रवार को मनाया जाएगा। वरलक्ष्मी व्रत उत्तर भारत के साथ-साथ आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र और उड़ीसा में भी बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।
वरलक्ष्मी व्रत 2023 मुहूर्त
सिंह लग्न पूजा मुहूर्त (सुबह) - 05:55 पूर्वाह्न - 07:42 पूर्वाह्न
वृश्चिक लग्न पूजा मुहूर्त (दोपहर) - 12:17 अपराह्न - 02:36 अपराह्न
कुंभ लग्न पूजा मुहूर्त (शाम) - 06:22 अपराह्न - 07:50 अपराह्न
वृषभ विवाह पूजा मुहूर्त (मध्यरात्रि) - रात्रि 10:50 बजे - रात्रि 12:45 बजे, 26 अगस्त
वरलक्ष्मी व्रत का महत्व
शास्त्रों के अनुसार मां लक्ष्मी का वरलक्ष्मी अवतार कलियुग में सभी की मनोकामनाएं पूर्ण करने वाला बताया गया है। वरलक्ष्मी को भगवान विष्णु की पत्नी माना जाता है। मान्यता है कि मां वरलक्ष्मी का यह व्रत करने से अष्टलक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। यहां तक कि व्यक्ति के जीवन से गरीबी का साया भी दूर हो जाता है और उसकी पीढ़ियां भी लंबे समय तक सुखी जीवन व्यतीत करती हैं।
कौन हैं माता वरलक्ष्मी?
पुराणों के अनुसार, देवी वरलक्ष्मी की उत्पत्ति क्षीर सागर से हुई थी। कहा जाता है कि देवी वरलक्ष्मी का स्वरूप अत्यंत आकर्षक है। इसका रंग शुद्ध जल के समान दूधिया है और यह सोलह रत्नों और मणियों से सुशोभित है। यह भी माना जाता है कि यह व्रत उन लोगों के लिए बहुत शुभ माना जाता है जो कर्ज, गरीबी आदि समस्याओं से परेशान हैं।
वरलक्ष्मी व्रत पूजा मंत्र
वरलक्ष्मिर्महादेवी सर्वकाम-प्रदायिनी
यन्मय च कृतं देवी पारुणं कुरुश्व तत्
सीधे शिवलिंग पर नहीं चढ़ाना चाहिए जल
2 Aug, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
दुनिया के सबसे पुराने धर्मों में से एक हिंदू धर्म रीति-रिवाजों और परंपराओं से समृद्ध है। इनमें से भगवान शिव के शिवलिंग पर जल चढ़ाने की प्रथा बहुत महत्व रखती है। भक्तों का मानना है कि यह जल चढ़ाना आध्यात्मिक अर्थ रखता है और दैवीय आशीर्वाद लाता है।
हालांकि, जल चढ़ाने की सही विधि को समझना जरूरी है, क्योंकि सीधे शिवलिंग पर जल चढ़ाने की सलाह नहीं दी जाती है। आज आपको बताएंगे शिवलिंग पर जल चढ़ाने का सही तरीका...
भगवान शिव को जल चढ़ाने का महत्व:
शिवलिंग को सर्वोच्च ईश्वर भगवान शिव का प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व माना जाता है। यह उस ब्रह्मांडीय ऊर्जा का प्रतीक है जिसने ब्रह्मांड को बनाया और बनाए रखा है। भक्त दैवीय शक्ति के प्रति अपनी श्रद्धा, कृतज्ञता और समर्पण व्यक्त करने के लिए शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं। पानी पवित्रता का प्रतीक है, और इसे डालने का कार्य किसी के अहंकार और इच्छाओं को सर्वशक्तिमान को समर्पित करने का प्रतीक है।
सही तरीके से जल चढ़ाने का महत्व:-
भृंगी की कहानी परमात्मा को एक एकीकृत ऊर्जा के रूप में पहचानने के महत्व पर प्रकाश डालती है जिसमें शिवशक्ति दोनों शामिल हैं। इस प्रकार, शिवलिंग पर जल चढ़ाते समय, भक्तों को आमतौर पर पास में देवी पार्वती की प्रतिमा पर भी जल चढ़ाना चाहिए।
इस विधि से शिवलिंग में चढ़ाएं जल
शिव पुराण के अनुसार, महादेव को जल चढ़ाते समय कुछ नियमों का ध्यान जरूर रखना चाहिए। इसलिए कभी भी जल चढ़ाते समय तेज दारा न अर्पित करें, बल्कि धीरे-धीरे चढ़ाएं और शिव मंत्र का जाप करते रहें।
तांबे, कांसे या फिर चांदी के पात्र में जल लेकर सबसे पहले जलहरी के दाईं तरफ चढ़ाएं, जो गणेश जी का स्थान माना जाता है। जल चढ़ाते समय गणेश मंत्र को बोले।
दाएं ओर जल चढ़ाने के बाद बाईं ओर जल चढ़ाएं। इसे भगवान कार्तिकेय का स्थान माना जाता है।
दाएं और बाएं ओर चढ़ाने के बाद जलहरी के बीचों-बीच जल चढ़ाएं। इस स्थान को शिव जी की पुत्री अशोक सुंदरी की मानी जाती है।
अशोक सुंदरी को जल चढ़ाने के बाद जलधारी के गोलाकार हिस्सा में जल चढाएं। इस स्थान को मां पार्वती का हस्तकमल होता है।
अंत में शिवलिंग में आहिस्ता-आहिस्ता शिव मंत्र बोलते हुए जल चढ़ाएं।
भगवान शिव के शिवलिंग पर जल चढ़ाने की प्रथा हिंदू धर्म में एक पवित्र और सार्थक प्रथा है। दैवीय शक्तियों की एकता को स्वीकार करते हुए, सही समझ और भक्ति के साथ इस कार्य को करना आवश्यक है। भृंगी की कहानी एक अनुस्मारक के रूप में कार्य करती है कि देवत्व लिंग से परे है, और शिव शक्ति दोनों ब्रह्मांडीय व्यवस्था के अभिन्न अंग हैं। जल चढ़ाने की सही विधि का पालन करके, भक्त भगवान शिव के साथ अपने आध्यात्मिक संबंध को गहरा कर सकते हैं और आनंदमय और सामंजस्यपूर्ण जीवन के लिए उनका आशीर्वाद मांग सकते हैं।
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (02 अगस्त 2023)
2 Aug, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- समृद्धि एवं सफलता के योग बनेंगे, अनिष्टता से बचने की चेष्ठा बनेगी।
वृष राशि :- कार्य में अशांति व अस्थिरता, मानसिक अवरोध बढ़े, असमंजस में रुकें।
मिथुन राशि :- भाग्य का सितारा प्रबल हो तथा व्यवसायिक क्षमता अनुकूल बनी ही रहेगी।
कर्क राशि :- लेन-देन के मामले में हानि होगी, कोर्ट के मामले स्थगित रखें, किसी के चंगुल में फंसने से बचें।
सिंह राशि :- लेनदेन के मामले में हानि होगी, धन प्राप्ति में बाधा होगी, सतर्कता से कार्य करने पर लाभ होगा।
कन्या राशि :- क्रोध व क्लेश से हानि संभव तनाव व बेचैनी तथा मानसिक परेशानी बनेगी।
तुला राशि :- सोचे हुये कार्य पूर्ण होंगे, अधिकारियों से समर्थन प्राप्त होगा, विशेष कार्य बनें।
वृश्चिक राशि :- अनावश्यक वाद-विवाद से बचें, अधिकारियों से समर्थन अवश्य प्राप्त होगा।
धनु राशि :- बिगड़े हुये कार्य बनेंगे, अनावश्य विवाद से बचें, समय का ध्यान देवें।
मकर राशि :- दैनिक समृद्धि के साधन जुटायें, तथा समय व धन व्यर्थ नष्ट न करें, ध्यान रखें।
कुंभ राशि :- स्त्री वर्ग से हर्ष-उल्लास, समय अनुकूल नहीं, लेन-देन से विचलित न होवें।
मीन राशि :- आशानुकूल सफलता से संतोष होगा, कार्यगति में सुधार अवश्य होगा ध्यान दें।
वे आदतें जो शनि देव को करती हैं नाराज, आज ही बदलें वरना झेलना पड़ सकता है प्रकोप
1 Aug, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
वैदिक ज्योतिष में शनि को बहुत महत्व दिया गया है। कुंडली में शनि की स्थिति काफी हद तक यह तय करती है कि राशि का भविष्य कैसा होगा। यदि शनि शुभ हो तो व्यक्ति राजा के समान जीवन व्यतीत करता है।
वहीं नीच का शनि आर्थिक, शारीरिक और मानसिक परेशानियां देता है। शनि कर्मों के अनुसार फल देते हैं इसलिए बुरे कर्म करने वालों को शनि नहीं छोड़ते। इसलिए अगर आप शनि के प्रकोप से बचना चाहते हैं तो कभी भी ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए जिससे शनि नाराज हो जाएं।
इन कार्यों से शनिदेव नाराज हो जाते हैं
ज्योतिषशास्त्र बताता है कि शनिदेव की कृपा पाने के लिए क्या करना चाहिए। साथ ही यह भी बताया गया है कि कौन से काम करने से शनिदेव नाराज हो जाते हैं। अगर आप भी शनिदेव की नाराजगी से बचना चाहते हैं तो कभी भी ऐसा कुछ न करें जो शनिदेव को पसंद न हो।
कभी भी किसी स्त्री का अपमान न करें। विशेषकर किसी विधवा या असहाय महिला का अपमान करने से शनि का प्रकोप हो सकता है। साथ ही बड़ों का अपमान न करें। इन लोगों पर अत्याचार मत करो. ऐसे असहाय लोगों का अपमान या शोषण करने से शनिदेव बहुत क्रोधित हो सकते हैं।
शनि उन लोगों को कभी माफ नहीं करते जो धोखे से धन ले लेते हैं, किसी का धन हड़प लेते हैं। शनि उन लोगों को बहुत कष्ट देते हैं जो अनैतिक तरीके से धन कमाते हैं और जो दूसरों के धन पर बुरी नियत रखते हैं। ये लोग गलत तरीके से पैसा कमाकर भले ही जल्द ही अमीर बन जाते हैं, लेकिन जल्द ही गरीब भी हो जाते हैं।
शनि उन लोगों को कभी माफ नहीं करते जो कुत्तों, पक्षियों, बेजुबानों पर अत्याचार करते हैं और उन्हें अत्यधिक कष्ट देते हैं।
मैला ढोने वाले, मेहनत मजदूरी करने वाले, उनका अपमान करने वालों को शनिदेव का प्रकोप झेलना पड़ता है। ऐसे लोगों को शनि आर्थिक, मानसिक और शारीरिक परेशानियां देते हैं। उनकी तैयार विरासत ख़त्म होने में देर नहीं लगती.
चाणक्य नीति : संकट में इन 3 लोगों का साथ देता है सबसे बड़ी ताकत
1 Aug, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
इतनी सदियां बीत जाने पर भी चाणक्य के नीति शास्त्र की बातें आज भी प्रासंगिक मानी जाती है। चाणक्य ने अपने ग्रंथों में कहा है कि घोर संकट आए लेकिन यदि 3 लोग आपके साथ खड़े हैं तो आपको घबराने की जरूरत नहीं क्योंकि इन 5 लोगों का साथ आपके लिए सबसे बड़ी ताकत देता है और आपको सफल होने से कोई रोक नहीं सकता है।
श्लोक
संसारातपदग्धानां त्रयो विश्रान्तिहेतवः।
अपत्यं च कलत्रं च सतां संगतिरेव च॥- चाणक्य नीति
1. पत्नी का साथ : घोर संकट में पत्नी का साथ तब बहुत महत्वपूर्ण होता है जबकि वह समझदार भी है। संस्कारी और समझदारी पत्नी या पति सुख दुख में एक दूसरे के साथ देने के लिए प्रतिबद्ध रहते हैं। यदि पति को पत्नी का साथ मिलता है तो संकट का समाधान भी तुरंत ही हो जाता है।
2. संतान का साथ : यदि सकंट काल में संतान आपके साथ नहीं खड़ी है तो फिर दुख के बादल और भी ज्यादा गहरा जाते हैं। ऐसी कई संतानें हैं जो पिता को समझती नहीं है और संकट काल में साथ देने के बजाए संकट काल के लिए पिता को ही जिम्मेदार ठहराकर भला बुरा कहने लगती है। जो बच्चे माता पिता की भावनाओं को समझकर उनका साथ देते हैं उन माता पिता पर कभी संकट नहीं आते हैं।
3. मित्र का साथ : संकटकाल में यदि आपका मित्र आकर खड़ा हो जाए तो उससे बड़ी कोई ताकत नहीं। अच्छी संगत से ही अच्छा मित्र पा सकते हैं। अच्छी संगत हमें कई तरह के बुरे संकटों से बचा लेती है और बुरी संगत से व्यक्ति संकटों में ही घिरा रहता है। कहते हैं कि सज्जनों की संगति से जीवन में कोई संकट नहीं आता है और यदि आता भी है तो उसका तुरंत ही समाधान हो जाता है।
मंगला गौरी व्रत पर करें ये उपाय, विवाह में आने वाली हर बाधा होगी दूर
1 Aug, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
1 अगस्त को सावन का मंगला गौरी व्रत किया जाए तो जो कि माता गौरी की पूजा आराधना को समर्पित होता हैं इस दिन महिलाएं उपवास आदि रखते हुए देवी मां की विधि विधान से पूजा करती हैं माना जाता हैं कि इस दिन पूजा पाठ और व्रत करने से साधक को उत्तम फलों की प्राप्ति होती हैं और कष्टों में कमी आती हैं।
साथ ही साथ सावन के मंगलवार के दिन पड़ने वाले मंगला गौरी व्रत को करने से विवाह आदि में आने वाली समस्याएं दूर हो जाती हैं, शीघ्र विवाह के योग बनते हैं और दांपत्य जीवन में मधुरता आती हैं। इस दिन पूजा पाठ और व्रत के अलावा कुछ उपायों को भी करना लाभकारी माना जाता हैं, तो आज हम आपको मंगला गौरी पर किए जाने वाले कुछ आसान उपाय बता रहे हैं, तो आइए जानते हैं।
मंगला गौरी व्रत पर करें ये उपाय-
अगर आपके विवाह में कोई अड़चन आ रही हैं या फिर शीघ्र विवाह के योग नहीं बन रहे हैं, तो ऐसे में सावन के महीने में पड़ने वाले मंगलवार के दिन मंगला गौरी का व्रत जरूर करें साथ ही पूजा पाठ के बाद गरीबों और जरूरतमंदों को लाल मसूर की दाल के साथ लाल वस्त्र का दान करें। माना जाता हैं कि इस उपाय को करने से विवाह में आने वाली हर बाधा दूर हो जाती हैं साथ ही शीघ्र विवाह के योग बनने लगते हैं इसके अलावा कुंडली का मंगल भी मजबूत होकर शुभ फल प्रदान करता हैं।
वही अधिकमास में पड़ने वाले मंगला गौरी व्रत के दिन पूजा के दौरान 'ओम गौरीशंकराय नम:' इस मंत्र का जाप करें। ऐसा करने से देवी मां गौरी और भोलेनाथ की कृपा प्राप्त होती हैं और शादीशुदा जीवन की परेशानियां दूर हो जाती हैं। मंगला गौरी व्रत वाले दिन अगर रामचरितमानस के सुंदरकांड का पाठ किया जाए तो हनुमान जी की कृपा मिलती हैं साथ ही मंगल दोष का भी निवारण हो जाता हैं इसके अलावा माता गौरी भी प्रसन्न होकर आशीर्वाद प्रदान करती हैं।
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (01 अगस्त 2023)
1 Aug, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- हर्ष, लाभ, सुख, पदोन्नति के योग हैं, वायु विकार, दाम्पत्य जीवन सरल-सुखी रहेगा।
वृष राशि :- वाहन सुख, विद्या कष्ट, राजभय, आर्थिक हानि, विशेष हानि तथा विरोध होगा।
मिथुन राशि :- लाभ के योग बनेंगे, सुयश, कार्य सिद्धी, शत्रुभय, राज-काज में प्रतिष्ठा बढ़ेगी।
कर्क राशि :- कार्य सिद्धी, लाभ, धन व्यय, हर्ष, धार्मिक एवं शुभ कार्यों में सावधानी अवश्य रखें।
सिंह राशि :- शत्रु भय, कलह, लाभ एवं सुयश की प्राप्ति, सामाजिक कार्यों में प्रतिष्ठा मिलेगी।
कन्या राशि :- थोड़ा लाभ, शुभ समाचार की प्राप्ति होगी, प्रबलता के योग बनेंगे, विवाद होगा।
तुला राशि :- हर्ष, पदोन्नति के योग, रुके कार्य प्रयास से बनेंगे, कार्यों में सुधार होगा ध्यान दें।
वृश्चिक राशि :- संतान सुख, यात्रा लाभ, शत्रु हानि, अच्छे कार्यों में सुधार होगा, समय का ध्यान रखें।
धनु राशि :- व्यर्थ चिन्ता से मन परेशान रहेगा, अचानक लाभ के योग बनेंगे, उद्योग-व्यापार में लाभ।
मकर राशि :- सफलता प्राप्ति के योग बनेंगे, भय से मन उद्विघ्न रहेगा, मित्रों का सहयोग मिलेगा।
कुंभ राशि :- सुख, यात्रा भय, यश प्राप्ति, मित्रों का सहयोग मिलेगा, लाभप्रद स्थिति से हर्ष होगा।
मीन राशि :- इष्ट मित्रों सहायक रहेंगे, कार्यगति में अनुकूलता आयेगी, कार्य समय पर करें।
कट्टरपंथियों के बढ़ते प्रभाव के कारण जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पहुंच चुका है ये मंदिर
31 Jul, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
गौरी मंदिर, पाकिस्तान में सिंध प्रांत के थारपारकर जिले में स्थित एक ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण मंदिर है, जो उस समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और धार्मिक विविधता का प्रमाण है जो कभी इस क्षेत्र में पनपती थी।
सदियों से, यह मंदिर हिंदू और जैन दोनों के लिए एक पवित्र निवास के रूप में कार्य करता था, जिसमें कई देवताओं की मूर्तियाँ थीं। हालाँकि, समय बीतने के साथ-साथ पाकिस्तान में कट्टरपंथियों के बढ़ते प्रभाव ने मंदिर के अस्तित्व पर एक काली छाया डाल दी है, जिससे यह जीर्ण-शीर्ण स्थिति में है।
ऐतिहासिक महत्व:-
मध्यकाल में निर्मित गौरी मंदिर का ऐतिहासिक महत्व बहुत गहरा है। यह क्षेत्र में हिंदू धर्म और जैन धर्म के सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व के प्रतीक के रूप में खड़ा है, जो कि थारपारकर के समुदायों के भीतर पनपने वाली विविध धार्मिक प्रथाओं को दर्शाता है। जटिल नक्काशी और उत्कीर्णन से सुसज्जित मंदिर की वास्तुकला, बीते युग की उल्लेखनीय शिल्प कौशल का प्रमाण है।
थारी हिंदू और मंदिर की विरासत:-
थारपारकर में रहने वाले आदिवासी समुदाय, थारी हिंदुओं का पीढ़ियों से गौरी मंदिर के साथ गहरा संबंध रहा है। मंदिर सिर्फ एक पूजा स्थल ही नहीं बल्कि एक सांस्कृतिक केंद्र भी था, जहां त्योहार और समारोह उत्साह और एकता के साथ मनाए जाते थे। इसने एक केंद्र बिंदु के रूप में कार्य किया जिसने समुदाय को एक साथ बांधा, साझा पहचान और विरासत की भावना को बढ़ावा दिया।
गिरावट और जीर्णता:-
दुख की बात है कि एक समय भव्य गौरी मंदिर अब उपेक्षा और क्षय की स्थिति में है। मंदिर के पतन के लिए कई कारक जिम्मेदार हो सकते हैं, जिनमें पाकिस्तान में कट्टरपंथियों का बढ़ता प्रभाव भी महत्वपूर्ण है। जैसे-जैसे देश में उग्रवाद बढ़ता गया, धार्मिक सहिष्णुता जो कभी थारपारकर की विशेषता थी, कम होने लगी, जिससे इस अमूल्य विरासत स्थल को संरक्षित करने में उपेक्षा और अरुचि होने लगी।
धार्मिक तनाव और उपेक्षा:-
धार्मिक समुदायों के बीच तनाव और राजनीतिक उदासीनता ने गौरी मंदिर की जीर्ण-शीर्ण स्थिति में योगदान दिया है। ऐतिहासिक स्थलों के संरक्षण के लिए सरकारी समर्थन और धन की कमी के साथ-साथ असहिष्णुता के प्रचलित माहौल ने मंदिर को क्षय और बर्बरता के प्रति संवेदनशील बना दिया है।
सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण:-
गौरी मंदिर और अन्य सांस्कृतिक स्थलों का संरक्षण न केवल थारी हिंदुओं के लिए बल्कि पाकिस्तान की व्यापक सांस्कृतिक विरासत के लिए भी आवश्यक है। ये ऐतिहासिक स्थल अतीत को वर्तमान से जोड़ने वाले पुल के रूप में काम करते हैं, सहिष्णुता, विविधता और हमारे सामूहिक इतिहास की समृद्धि के बारे में मूल्यवान सबक देते हैं।
कार्रवाई का आह्वान:
गौरी मंदिर के संरक्षण और जीर्णोद्धार के लिए पाकिस्तान में सरकार और नागरिक समाज दोनों से तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। मंदिर के ऐतिहासिक महत्व और इसे और अधिक गिरावट से बचाने की आवश्यकता के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए पहल की जानी चाहिए। इसके अतिरिक्त, अंतरधार्मिक संवाद को बढ़ावा देना और धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा देना ऐसे सांस्कृतिक स्थलों के संरक्षण को सुनिश्चित करने में काफी मदद कर सकता है। गौरी मंदिर और अन्य लुप्तप्राय ऐतिहासिक स्थलों की सुरक्षा के लिए स्थानीय समुदायों, धार्मिक नेताओं और विरासत संगठनों से जुड़े सहयोगात्मक प्रयास आवश्यक हैं।
गौरी मंदिर, जो कभी थारपारकर में धार्मिक सद्भाव और सांस्कृतिक विविधता का प्रतीक था, अब गुमनामी के कगार पर है। इस ऐतिहासिक स्थल का पतन धार्मिक अतिवाद और उपेक्षा के बावजूद अपनी विरासत को संरक्षित करने का प्रयास करने वाले समाजों के सामने आने वाली चुनौतियों की एक स्पष्ट याद दिलाता है। जैसे ही कभी इस समृद्ध मंदिर का सूर्यास्त होता है, यह हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है कि हम एक साथ आएं और गौरी मंदिर की विरासत को पुनर्जीवित करें, न केवल थारी हिंदुओं के लिए बल्कि उन सभी के लिए जो हमारी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के महत्व देते हैं।
पापों से मुक्ति पाना चाहते है तो जाइये पाकिस्तान में स्थित देवी के इस मंदिर
31 Jul, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भारतीय उपमहाद्वीप, अपनी समृद्ध संस्कृति और आध्यात्मिकता के साथ, विभिन्न धर्मों के लोगों द्वारा पूजे जाने वाले कई पवित्र स्थलों का घर है। इनमें से 51 शक्तिपीठों का देवी दुर्गा भवानी के भक्तों के लिए अत्यधिक महत्व है।
ऐसा ही एक शक्तिपीठ पाकिस्तान के सुरम्य बलूचिस्तान प्रांत में स्थित है - हिंगलाज शक्तिपीठ। हिंगोल नदी और चंद्रकूप पर्वत के किनारे स्थित यह प्राचीन मंदिर गहरा आध्यात्मिक महत्व रखता है और न केवल हिंदुओं द्वारा बल्कि स्थानीय मुस्लिम आबादी द्वारा भी पूजनीय है, जो इसे महान चमत्कार और भक्ति का स्थान मानते हैं। हिंगलाज देवी शक्तिपीठ के विषय में ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है कि जो एक बार माता हिंगलाज के दर्शन कर लेता है उसे पूर्वजन्म के कर्मों का दंड नहीं भुगतना पड़ता है।
हिंगलाज शक्तिपीठ की पौराणिक कथा
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, हिंगलाज शक्तिपीठ की कहानी भगवान शिव और देवी सती के युग से जुड़ी है। किंवदंती बताती है कि देवी सती के पिता, राजा दक्ष द्वारा आयोजित एक भव्य यज्ञ (पवित्र अग्नि अनुष्ठान) के दौरान, उन्होंने भगवान शिव, उनके दामाद और एक प्रमुख देवता का अपमान किया था। अपमान सहन करने में असमर्थ सती ने विरोध और आत्म-बलिदान के संकेत के रूप में अग्नि में आत्मदाह कर लिया। अपने प्रिय को खोने से क्रोधित और दुखी होकर, भगवान शिव ने सती के निर्जीव शरीर को अपने कंधों पर लेकर विनाश का नृत्य, तांडव नृत्य किया। इस ब्रह्मांडीय आपदा को समाप्त करने के लिए, भगवान विष्णु ने हस्तक्षेप किया और सती के शरीर को खंडित करने के लिए अपने सुदर्शन चक्र का उपयोग किया। जैसे ही शरीर के अंग पृथ्वी पर बिखरे, शक्तिपीठ अस्तित्व में आए, जिनमें से प्रत्येक में अपार आध्यात्मिक ऊर्जा थी।
हिंगलाज शक्तिपीठ का महत्व:-
माना जाता है कि हिंगलाज शक्तिपीठ वह स्थान है जहां विष्णु के हस्तक्षेप के बाद सती का सिर गिरा था। भक्त इस स्थान को अपार शक्ति का निवास मानते हैं, जहाँ देवी, जिन्हें 'हिंगलाज माता' के नाम से जाना जाता है, सच्ची श्रद्धा से आने वालों को अपना आशीर्वाद प्रदान करती हैं। यह पवित्र मंदिर आध्यात्मिकता और प्राकृतिक सुंदरता का एक अनूठा मिश्रण है। हिंगोल नदी के तट पर स्थित और राजसी चंद्रकूप पर्वत से घिरा यह स्थल मनमोहक दृश्य प्रस्तुत करता है जो आगंतुकों में विस्मय और श्रद्धा की भावना पैदा करता है। शांत वातावरण आध्यात्मिक माहौल को पूरक बनाता है, जो आगंतुकों को प्रार्थना और आत्मनिरीक्षण में डूबने के लिए प्रोत्साहित करता है।
आस्थाओं का सामंजस्य
हिंगलाज शक्तिपीठ का एक उल्लेखनीय पहलू विभिन्न धार्मिक मान्यताओं का सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व है। एक महत्वपूर्ण हिंदू तीर्थ स्थल होने के बावजूद, स्थानीय मुस्लिम आबादी द्वारा इस मंदिर की प्रेमपूर्वक देखभाल और सम्मान किया जाता है। आस्थाओं की यह एकता उस क्षेत्र में मौजूद सांप्रदायिक सद्भाव की भावना का उदाहरण देती है, जहां विविध पृष्ठभूमि के लोग साझा आध्यात्मिक विरासत के सम्मान में एक साथ आते हैं। स्थानीय मुसलमानों का मानना है कि हिंगलाज माता का आशीर्वाद किसी विशेष धर्म तक ही सीमित नहीं है, बल्कि उन सभी को शामिल करता है जो ईमानदारी और भक्ति के साथ उनके पास आते हैं। परिणामस्वरूप, हिंदू और मुस्लिम दोनों को एक साथ प्रार्थना करते हुए देखा जा सकता है, जिससे भाईचारे और समझ की भावना को बढ़ावा मिलता है।
चमत्कार और भक्ति
सदियों से, हिंगलाज शक्तिपीठ के साथ कई चमत्कारी घटनाएं घटी हैं, जिससे इसका आकर्षण और महत्व और भी बढ़ गया है। कई भक्त दावा करते हैं कि मंदिर में आने के बाद उन्होंने अपने जीवन में दैवीय हस्तक्षेप का अनुभव किया है। ऐसा कहा जाता है कि मंदिर और नदी के पवित्र जल के दर्शन से किसी के पाप धुल सकते हैं और धर्म के मार्ग पर नई शुरुआत हो सकती है। हिंगलाज शक्तिपीठ की यात्रा वर्ष के किसी विशेष समय तक सीमित नहीं है। हिंगलाज माता से आशीर्वाद और दैवीय सुरक्षा पाने के लिए दूर-दूर से भक्त अक्सर पैदल चलकर यह आध्यात्मिक यात्रा करते हैं। मंदिर तक की कठिन यात्रा को अटूट भक्ति और तपस्या के रूप में देखा जाता है।
हिंगलाज शक्तिपीठ भारतीय उपमहाद्वीप की कालातीत आध्यात्मिक विरासत के प्रमाण के रूप में खड़ा है। पाकिस्तान के बलूचिस्तान के आश्चर्यजनक परिदृश्यों के बीच स्थित, यह मंदिर धार्मिक सीमाओं से परे दिव्यता की आभा रखता है। हिंगलाज माता के प्रति हिंदू और मुस्लिम दोनों की भक्ति उस सुंदर सद्भाव का उदाहरण है जो तब मौजूद होता है जब आस्था और आध्यात्मिकता लोगों को श्रद्धा और प्रेम में एकजुट करती है। पवित्रता और भक्ति के प्रतीक के रूप में, हिंगलाज शक्तिपीठ तीर्थयात्रियों और आगंतुकों को प्रेरित करता है।
हल्दी के अचूक टोटके, धन संबंधी समस्याओं को दूर करने के लिए ऐसे करें प्रयोग
31 Jul, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हर घर की रसोई में आपको हल्दी जरूर मिलेगी. हल्दी एक विशेष प्रकार की औषधी भी है, जिसमें दैवीय गुण पाए जाते हैं. हिन्दू धर्म में हल्दी को शुभ और मंगलकारी माना जाता है.
यह न केवल खाने का जायका बढ़ाती है, बल्कि जीवन में सम्पन्नता भी लेकर आती है. हल्दी विषरोधक होती है और नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करती है. इसलिए हल्दी का प्रयोग हवन और औषधियों में भी किया जाता है.
ज्योतिष में हल्दी का महत्व
हल्दी कई रंगों की होती है और इन्हीं रंगों के आधार पर इसका ग्रहों से संबंध तय होता है. हल्दी पीले, नारंगी और काले रंग की होती है. पीली हल्दी बृहस्पति से संबंध रखती है. नारंगी मंगल से और काली शनि से संबंध रखती है. ज्योतिष में बृहस्पति को मजबूत करने और इससे जुड़ी समस्याओं को दूर करने के लिए पीली हल्दी का प्रयोग होता है.
हल्दी के चमत्कारी प्रयोग
1. यदि विवाह संबंधी समस्या हो तो नित्य प्रातः जल में हल्दी मिलाकर सूर्य को जल अर्पित करना चाहिए. अगर वाणी की शक्ति बढ़ानी हो तो नित्य प्रातः स्नान के बाद हल्दी का तिलक माथे और कंठ पर लगाएं. अगर धन की बचत करनी हो तो धन स्थान पर हल्दी की दो गांठें रखनी चाहिए.
2. इसी प्रकार, यदि बृहस्पति से लाभ लेना हो तो पीले धागे में हल्दी गले में धारण करें. नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करने के लिए शरीर पर हल्दी लगाकर स्नान करने से लाभ होता है.
3. विष्णु भगवान को हल्दी बेहद प्रिय है. हल्दी का दान करने से श्री हरि प्रसन्न होते हैं. इस उपाय से विष्णु भगवान के साथ-साथ माता लक्ष्मी की भी कृपा होती है और धन संबंधी सारी परेशानी दूर करती हैं.
4. अगर सोते समय आपको बुरे सपने परेशान करते हैं तो हल्दी की एक गांठ पर मौली बांधकर उसे अपने सिरहाने रखकर सो जाएं. ऐसे करने से आपको कभी बुरे सपने नहीं आएंगे.
कब है सावन अधिक मास की पूर्णिमा तिथि, कितने साल बाद बना है ये शुभ संयोग?
31 Jul, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
धर्म ग्रंथों में अधिक मास (Adhik Maas) को स्नान, दान, पूजा आदि के लिए बहुत ही शुभ माना गया है। भगवान विष्णु इस मास के स्वामी है, इसलिए उन्हीं के नाम पर इस महीने का नाम पुरुषोत्तम रखा गया है।
वैसे तो अधिक मास हर तीसरे साल आता है, लेकिन इस बार सावन के अधिक मास का संयोग 19 साल बाद बना है। इसके पहले सावन का अधिक मास साल 2004 में आया था। अधिक मास की पूर्णिमा (Sawan Purnima 2023) तिथि बहुत ही शुभ मानी गई है। इस बार सावन अधिक मास की पूर्णिमा पर कई शुभ योग भी बन रहे हैं। आगे जानिए कब है सावन अधिक मास की पूर्णिमा.
इस दिन है सावन अधिक मास की पूर्णिमा (Sawan Purnima 2023 Date)
पंचांग के अनुसार, सावन अधिक मास की पूर्णिमा तिथि 31 जुलाई, सोमवार की रात 03:52 से 1 अगस्त, मंगलवार की रात 12:01 तक रहेगी। चूंकि पूर्णिमा तिथि का सूर्योदय 1 अगस्त को होगा, इसलिए इसी दिन सावन अधिक मास की पूर्णिमा तिथि मानी जाएगी। पूर्णिमा से संबंधित पूजा, उपाय, उपवास आदि इसी दिन किए जाएंगे।
कौन-कौन से योग बनेंगे इस दिन? (Sawan Purnima 2023 Shubh Yog)
1 अगस्त को उत्तराषाढ़ा नक्षत्र होने से पद्म नाम का शुभ योग बनेगा। इसके अलावा इस दिन प्रीति और आयुष्मान नाम के 2 अन्य शुभ योग भी रहेंगे। इस दिन सिंह राशि में बुध और शुक्र ग्रह एक साथ रहेंगे। इन दोनों ग्रहों की युति से लक्ष्मी नारायण नाम का योग बनेगा। सावन अधिक मास की पूर्णिमा पर इतने सारे शुभ योग होने से इसका महत्व और भी बढ़ गया है।
भगवान शिव-विष्णु की पूजा का शुभ योग
सावन मास भगवान शिव की पूजा के लिए श्रेष्ठ माना गया है और अधिक मास भगवान विष्णु की पूजा के लिए। इस मास की पूर्णिमा तिथि पर इन दोनों देवताओं की पूजा करने का विशेष शुभ फल मिलता है। सावन पूर्णिमा पर भगवान सत्यनारायण की कथा करवाएं और शिवजी को प्रसन्न करने के लिए रुद्राभिषेक करें। इस तरह एक ही दिन इन दोनों देवताओं की पूजा से हर मनोकामना पूरी हो सकती है।
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (31 जुलाई 2023)
31 Jul, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- बढ़िया यात्रा, विवाद, कष्ट, मातृ कष्ट, व्यय, विरोध होगा, आंशिक हानि की संभावना।
वृष राशि :- धन लाभ, व्यापार में प्रगति, शुभ कार्य होगा, आशानुकूल परिणाम से हर्ष होगा।
मिथुन राशि :- पितृ कष्ट, यात्रा योग, व्यय लाभ, अशांति का वातावरण रहेगा, धैर्य रखें।
कर्क राशि :- यात्रा शुभ होगी, भूमि लाभ, हर्ष, कार्य सिद्धी, गृहकार्य की व्यवस्था पूर्ण होगी
सिंह राशि :- शत्रु भय, प्रवास, विरोध, उद्योग-व्यापार में लाभ, लाभ के कार्य सफल होंगे।
कन्या राशि :- लाभ, सिर-नेत्र पीड़ा होगी, यात्रा परेशानीयुक्त होगी, धैर्य के साथ कार्य पूर्ण करें।
तुला राशि :- सुख, सफलता, निर्माण कार्य होगा, प्रवास, राजकार्य में व्यावस्था से लाभ होगा।
वृश्चिक राशि :- मानसिक तनाव आकस्मिक बढ़ेगा, स्वजनों से सहानुभूति अवश्य मिलेगी।
धनु राशि :- व्यवसाय की उन्नति से आर्थिक स्थिति में विशेष सुधार होगा, समय का लाभ लें।
मकर राशि :- विलास सामग्री का संचय होगा, अधिकारी वर्ग की कृपा का लाभ मिलेगा।
कुंभ राशि :- इष्ट मित्रों से लाभ, अच्छा सहयोग मिलेगा, उत्तम लाभ के योग बनेंगे।
मीन राशि :- गृह कलह, हीन मनोवृत्ति रहेगी, शरीर पीड़ा तथा परेशानी अवश्य ही बनेगी।
श्रावण के माह में इन 5 शिव मंदिरों में जरूर जाएं दर्शन करने, बाबा भोलेनाथ की मिलेगी कृपा
30 Jul, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भगवान शिव के यूं तो देश और विदेश में हजारों मंदिर है परंतु यदि हम 12 ज्योतिर्लिंगों को छोड़ दें तो शिव के ऐसे भी चमत्कारिक मंदिर है जहां जाकर हर तरह की मनोकामना पूर्ण हो जाती है और निश्चित ही व्यक्ति सुखी वैवाहिक जीवन यापन करता है।
श्रावण मास में इन 5 शिव मंदिरों में अवश्य दर्शन करने जाना चाहिए।
1. बिजली महादेव मंदिर : यह अनोखा मंदिर हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में स्थित है कुल्लू शहर में ब्यास और पार्वती नदी के संगम स्थल के नजदीक एक पहाड़ पर शिव का यह प्राचीन मंदिर स्थित है। यहां हर 12 साल में एक बार शिवलिंग पर बिजली गिरती है। बिजली गिरने के बाद शिवलिंग चकनाचूर हो जाता है। मंदिर के पुजारी शिवलिंग के अंशों मक्खन में लपेट कर रख देते हैं। शिव के चमत्कार से वह फिर से ठोस बन जाता है। जैसे कुछ हुआ ही न हो।
2. निष्कलंक महादेव : यह मंदिर गुजरात के भावनगर में कोलियाक तट से 3 किलोमीटर अंदर अरब सागर में स्थित है। प्रतिदिन अरब सागर की लहरें यहां के शिवलिंग का जलाभिषेक करती है। ज्वारभाटा जब शांत हो जाता है तब लोग पैदल चलकर इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आते हैं। ज्वार के समय सिर्फ मंदिर का ध्वज ही नजर आता है।
कहते हैं कि यह मंदिर महाभारतकालीन है और जब युद्ध के बाद पांडवों को अपने ही कुल के लोगों को मारने का पछतावा था और वे इस पाप से छुटकारा पाना चाहते थे तब वे श्रीकृष्ण के पास गए। श्रीकृष्ण द्वारिका में रहते थे। श्रीकृष्ण ने उन्हें एक काली गाय और एक काला झंडा दिया और कहा कि तुम यह झंडा लेकर गाय के पीछे-पीछे चलना। जब झंडा और गाय दोनों सफेद हो जाए तो समझना की पाप से छुटकारा मिल गया। जहां यह चमत्कार हो वहीं पर शिव की तपस्या करना।
कई दिनों तक चलने के बाद पांडव इस समुद्र के पास पहुंचे और झंडा और गाय दोनों सफेद हो गया। तब उन्होंने वहां तपस्या की और भगवान शिव को प्रसन्न किया। पांचों पांडवों को शिवजी ने लिंग रूप में अलग अलग दर्शन दिए। वही पांचों शिवलिंग आज तक यहां विद्यमान हैं। पांडवों ने यहां अपने पापों से मुक्ति पाई थी इसीलिए इसे निष्कलंक महादेव मंदिर कहते हैं।
3. लक्ष्मेश्वर महादेव मंदिर : ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर की स्थापना भगवान राम ने खर और दूषण के वध के पश्चात अपने भाई लक्ष्मण के कहने पर की थी। इसकी स्थापना स्वयं लक्ष्मण ने की थी। इस शिवलिंग में एक लाख छिद्र हैं। इसलिए इसे लक्षलिंग भी कहा जाता है। कहते हैं कि इस लाख छिद्रों में से एक छिद्र ऐसा भी है जोकि पातालगामी है। क्योंकि उसमें जितना भी पानी डालो वह सब उसमें समा जाता है और एक छिद्र ऐसा है जिसमें जल हमेशा भरा रहता है जिसे अक्षयकुंड कहते हैं।
4. स्तंभेश्वर महादेव मंदिर : गुजरात में वडोदरा से 85 किमी दूर स्थित जंबूसर तहसील के कावी-कंबोई गांव का यह मंदिर अलग ही विशेषता रखता है। मंदिर अरब सागर के मध्य कैम्बे तट पर स्थित है। इस तीर्थ का उल्लेख 'श्री महाशिवपुराण' में रुद्र संहिता भाग-2, अध्याय 11, पेज नं. 358 में मिलता है। इस मंदिर के 2 फुट व्यास के शिवलिंग का आकार चार फुट ऊंचा है। स्तंभेश्वर महादेव मंदिर सुबह और शाम दिन में दो बार के लिए पलभर के लिए गायब हो जाता है। ऐसा ज्वारभाटा आने के कारण होता है। इस मंदिर से तारकासुर और कार्तिकेय की कथा जुड़ी हुई है। सागर संगम तीर्थ पर विश्वनंद स्तंभ की स्थापना की। यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए खासतौर से परचे बांटे जाते हैं, जिसमें ज्वार-भाटा आने का समय लिखा होता है।
5. भोजेश्वर मंदिर : मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से 32 किलोमीटर दूर भोजपुर (रायसेन जिला) में भोजपुर की पहाड़ी पर स्थित है। यहां का शिवलिंग अद्भुत और विशाल है। यह भोजपुर शिव मंदिर या भोजेश्वर मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हैं। इस प्राचीन शिव मंदिर का निर्माण परमार वंश के प्रसिद्ध राजा भोज (1010 ई-1055 ई) द्वारा किया गया था। चिकने लाल बलुआ पाषाण के बने इस शिवलिंग को एक ही पत्थर से बनाया गया है और यह विश्व का सबसे बड़ा प्राचीन शिवलिंग माना जाता है। कहते हैं कि यहां पहले साधुओं के एक समूह ने गहन तपस्या की थी।
दान नियम: सनातन धर्म में इन चीजों का दान है निषेध
30 Jul, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
दान को हर धर्म में सबसे अधिक पुण्यदायी माना गया हैं। ऐसे में हर तीज त्योहार और खास मौकों पर लोग अपनी क्षमता के अनुसार गरीबों व जरूरतमंदों को दान देकर पुण्य प्राप्त करते हैं।
किसी जरूरतमंद को किया जाने वाला दान व्यक्ति को ईश्वर कृपा दिलाता हैं ऐसे में अधिकतर लोग दान पुण्य के काम करते हैं।
लेकिन शास्त्रों में दान को लेकर कई नियम बताए गए हैं जिनका पालन करना लाभकारी माना जाता हैं धार्मिक तौर पर कुछ चीजों का दान भूलकर भी नहीं करना चाहिए वरना घर परिवार की सुख शांति चली जाती हैं तो आज हम आपको बता रहे हैं कि किन चीजों का दान धार्मिक तौर पर निषेध माना गया हैं।
इन चीजों का दान है निषेध-
धार्मिक तौर पर झाड़ू को धन की देवी मां लक्ष्मी का प्रतीक माना गया हैं ऐसे में भूलकर भी इसका दान नहीं करना चाहिए वरना व्यक्ति को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ सकता हैं इसके अलावा पीतल, चांदी, तांबा आदि को बेहद शुभ माना जाता हैं ऐसे में आप इन धातुओं से निर्मित वस्तुओं व बर्तनों का दान कर सकते हैं लेकिन कभी भी प्लास्टिक, स्टील, एल्युमीनियम और कांच के बर्तनों का दान नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से नौकरी व कारोबार में समस्याएं पैदा होती हैं जिसके कारण घर में मंदी भी आती हैं।
सनातन धर्म में अन्न के दान को शुभ माना गया हैं पर्व त्योहारों में अधिकतर लोग गरीबों व जरूरतमंदों को भोजन आदि कराते हैं लेकिन कभी भी बासी भोजन या फिर झूठे भोजन का दान नहीं करना चाहिए वरना गरीबी और दरिद्रता का सामना करना पड़ सकता हैं। इसके अलावा इस्तेमाल किए हुए तेल का दान भी कभी नहीं करना चाहिए वरना शनिदेव नाराज़ हो जाते हैं।