धर्म एवं ज्योतिष (ऑर्काइव)
ईसाई से बौद्ध धर्म तक कुछ इस तरह निभाई जाती है अंतिम संस्कार की क्रिया
8 Aug, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
अंतिम संस्कार दुनिया भर में महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व रखता है। ये अनुष्ठान किसी व्यक्ति के जीवन के अंत को चिह्नित करते हैं और समुदायों को शोक करने, याद रखने और दिवंगत आत्मा का जश्न मनाने का अवसर प्रदान करते हैं।
विभिन्न धार्मिक मान्यताओं के बावजूद, अंतिम संस्कार मृतक का सम्मान करने और शोक संतप्त को सांत्वना देने का एक सामान्य धागा साझा करते हैं। आइए दुनिया भर के विभिन्न धर्मों में देखे जाने वाले विभिन्न प्रकार के अंतिम संस्कार प्रथाओं का पता लगाएं, जिनमें से प्रत्येक जीवन, मृत्यु और मृत्यु के बाद के जीवन पर अद्वितीय दृष्टिकोण को दर्शाता है।
1. ईसाई धर्म में अंतिम संस्कार प्रथाएं:
ईसाई धर्म, दुनिया के सबसे बड़े धर्मों में से एक, मृत्यु को भगवान के साथ अनन्त जीवन के संक्रमण के रूप में देखता है। मसीही अंतिम संस्कार में आम तौर पर एक उदास लेकिन आशावादी स्वर शामिल होता है, जो पुनरुत्थान और उद्धार में विश्वास पर ध्यान केंद्रित करता है। अंतिम संस्कार सेवाओं में अक्सर प्रार्थना, भजन, शास्त्र पढ़ना, स्तवन और यादों को साझा करना शामिल होता है। दफन एक आम प्रथा है, जिसमें कब्रिस्तान मृतकों के लिए पवित्र मैदान के रूप में कार्य करते हैं।
2. इस्लाम में अंतिम संस्कार के रीति-रिवाज:
इस्लाम में, मृत्यु को जीवन का एक स्वाभाविक हिस्सा माना जाता है, और मृत्यु के बाद का जीवन एक मौलिक विश्वास है। जनाज़ा (अंतिम संस्कार) अनुष्ठान इस्लामी सिद्धांतों द्वारा निर्देशित होते हैं और आमतौर पर मृत्यु के तुरंत बाद होते हैं। शरीर को धोया जाता है, एक साधारण कपड़े में लपेटा जाता है, और एक विशिष्ट प्रार्थना, सलात अल-जनाज़ा, मण्डली में की जाती है। मुसलमान अपने मृतकों को मक्का के सामने दफनाते हैं, मृत्यु में विनम्रता और समानता पर जोर देते हैं।
3. यहूदी अंतिम संस्कार परंपराएं:
यहूदी धर्म, अपनी समृद्ध परंपराओं और रीति-रिवाजों के साथ, आत्मा की यात्रा की निरंतरता के रूप में मृत्यु का सामना करता है। यहूदी अंतिम संस्कार मृतक के शीघ्र दफन को प्राथमिकता देते हैं, अक्सर मृत्यु के 24 घंटे के भीतर। मृतक को अनुष्ठानपूर्वक धोया जाता है (ताहरा) और एक सादे सफेद कफन (तचरीसिम) में पहनाया जाता है। स्तवन से बचा जाता है, और ध्यान प्रार्थनाओं, भजन, और अंतिम संस्कार सेवा के दौरान यादों को साझा करने पर होता है।
4. हिंदू अंतिम संस्कार समारोह:
हिंदू धर्म, एक जटिल और विविध धर्म, मृत्यु को आत्मा के पुनर्जन्म (संसार) के चक्र के हिस्से के रूप में मानता है। अंत्येस्ती, या अंतिम संस्कार, हिंदू परंपराओं में एक महत्वपूर्ण अंतिम संस्कार समारोह है। शव का अंतिम संस्कार किया जाता है, और राख अक्सर एक पवित्र नदी में बिखर जाती है। हिंदू अंतिम संस्कार में अन्य अनुष्ठान भी शामिल हो सकते हैं जैसे कि पिंड दान, आध्यात्मिक मुक्ति के लिए मृतक को चावल के गोले चढ़ाना।
5. बौद्ध अंतिम संस्कार का पालन:
बौद्ध धर्म, जो नश्वरता पर अपनी शिक्षाओं के लिए जाना जाता है, मृत्यु को दूसरे जीवन या राज्य में संक्रमण के रूप में व्याख्या करता है। बौद्ध अंतिम संस्कार विभिन्न संस्कृतियों के बीच भिन्न होते हैं, लेकिन आमतौर पर जप, सूत्र पढ़ना और आत्मा को सकारात्मक पुनर्जन्म की ओर मार्गदर्शन करने के लिए अनुष्ठान करना शामिल होता है। दाह संस्कार एक व्यापक प्रथा है, और कुछ बौद्ध समुदाय भी आकाश दफन या पानी के दफन का अभ्यास करते हैं।
6. सिख अंतिम संस्कार संस्कार:
सिख धर्म शाश्वत निर्माता के साथ आत्मा की एकता पर जोर देता है, और मृत्यु को परमात्मा के साथ आत्मा के विलय के रूप में देखा जाता है। अंतम संस्कार, या अंतिम संस्कार, में शरीर को स्नान करना शामिल है, इसके बाद गुरु ग्रंथ साहिब (सिख ग्रंथों) से प्रार्थना और भजन होते हैं। सिख दाह संस्कार का विकल्प चुनते हैं, इसे जन्म और मृत्यु के चक्र से आत्मा को मुक्त करने का एक तरीका मानते हैं।
7. पारंपरिक चीनी अंतिम संस्कार सीमा शुल्क:
चीनी अंतिम संस्कार परंपराएं पैतृक पूजा और पूजा में गहराई से निहित हैं। चीनी परिवार अपने पूर्वजों का बहुत सम्मान करते हैं और मृत्यु के बाद भी मजबूत पारिवारिक संबंध बनाए रखने में विश्वास करते हैं। अंतिम संस्कार संस्कार में विस्तृत समारोह, प्रसाद और प्रार्थना एं शामिल हैं। क्षेत्रीय और सांस्कृतिक मतभेदों के आधार पर परिवार की कब्रों में दफन, दाह संस्कार और दफन का अभ्यास किया जाता है।
8. मूल अमेरिकी अंतिम संस्कार परंपराएं:
मूल अमेरिकी समुदायों में विविध आध्यात्मिक विश्वास हैं, जिनमें से प्रत्येक अपने अद्वितीय अंतिम संस्कार रीति-रिवाजों के साथ है। मृत्यु की अवधारणा में अक्सर जीवन और पुनर्जन्म का चक्रीय दृष्टिकोण शामिल होता है। अंतिम संस्कार प्रथाओं में अनुष्ठान, नृत्य और समारोह शामिल हैं जो मृतक का सम्मान करते हैं और बाद के जीवन के लिए उनकी आत्माओं का मार्गदर्शन करते हैं। दफन के तरीके अलग-अलग होते हैं, जैसे कि जमीन दफन, पेड़ दफन, या आकाश दफन।
9. अफ्रीकी पारंपरिक अंतिम संस्कार समारोह:
अफ्रीकी पारंपरिक अंतिम संस्कार रीति-रिवाज पूर्वजों की पूजा और आध्यात्मिक दुनिया से गहराई से जुड़े हुए हैं। ये अनुष्ठान महाद्वीप की विविध संस्कृतियों में व्यापक रूप से भिन्न होते हैं। अंतिम संस्कार विस्तृत कार्यक्रम हैं, जो अक्सर कई दिनों तक चलते हैं, और इसमें नृत्य, गायन और दावत शामिल होती है। दफन परिवार के कब्रिस्तान या पवित्र स्थलों में हो सकता है।
10. प्राचीन मिस्र के अंतिम संस्कार अनुष्ठान:
प्राचीन मिस्र के लोग मृत्यु के बाद के जीवन में विश्वास करते थे और मृतक के लिए एक सुचारू संक्रमण सुनिश्चित करने के लिए काफी प्रयास करते थे। ममीकरण अंतिम संस्कार की प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था, जो बाद के जीवन की यात्रा के लिए शरीर को संरक्षित करता था। मृतक का सम्मान करने और मृत्यु के बाद सुरक्षा प्राप्त करने के लिए विस्तृत समारोह और अनुष्ठान आयोजित किए गए थे।
11. आधुनिक धर्मनिरपेक्ष अंतिम संस्कार प्रथाएं:
आधुनिक समय में, धर्मनिरपेक्ष या गैर-धार्मिक अंतिम संस्कार ने लोकप्रियता हासिल की है। ये सेवाएं अक्सर धार्मिक मान्यताओं पर जोर देने के बजाय मृतक के जीवन का जश्न मनाने पर ध्यान केंद्रित करती हैं। उनमें व्यक्तिगत तत्व, संगीत और रीडिंग शामिल हो सकते हैं जो व्यक्ति के हितों और मूल्यों को दर्शाते हैं।
12. अंतिम संस्कार प्रथाओं का तुलनात्मक विश्लेषण:
विभिन्न धर्मों में अंतिम संस्कार प्रथाओं की जांच करते समय, मृतक के प्रति सम्मान और शोक संतप्त को सांत्वना देने के सामान्य विषय उभरते हैं। अनुष्ठानों में अंतर के बावजूद, ये प्रथाएं दिवंगत आत्मा को बंद करने और सम्मान देने के उद्देश्य को साझा करती हैं।
13. मृत्यु के प्रति धारणाएं और दृष्टिकोण:
सांस्कृतिक और धार्मिक विश्वास महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करते हैं कि समाज मृत्यु को कैसे समझते हैं और उससे संपर्क करते हैं। इन मतभेदों को समझना दुःख के समय में सहिष्णुता और करुणा को बढ़ावा देता है। नुकसान से मुकाबला करना एक गहरा मानवीय अनुभव है, जो सांस्कृतिक सीमाओं से परे है। अंतिम संस्कार, धार्मिक संबद्धता की परवाह किए बिना, मानवता के जीवन और मृत्यु के साझा अनुभव का एक प्रमाण है। प्रत्येक प्रकार का अंतिम संस्कार एक समुदाय की मान्यताओं, मूल्यों और परंपराओं का गवाह होता है, शोक संतप्त को सांत्वना प्रदान करता है और दिवंगत के जीवन का जश्न मनाता है। अंतिम संस्कार प्रथाओं की विविधता को गले लगाना मानव यात्रा की हमारी समझ को समृद्ध करता है।
तो इस कारण मनाया जाता है 'नागपंचमी'
8 Aug, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
नाग पंचमी एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है जो भारत और नेपाल के विभिन्न क्षेत्रों में नाग देवताओं के सम्मान और पूजा के लिए मनाया जाता है, जो प्रकृति की कच्ची शक्ति और उर्वरता का प्रतीक है।
यह त्योहार श्रावण के चंद्र माह के शुक्ल पक्ष के पांचवें दिन पड़ता है, जो आमतौर पर ग्रेगोरियन कैलेंडर में जुलाई या अगस्त से मेल खाता है। यह शुभ अवसर न केवल सांपों के प्रति श्रद्धा को उजागर करता है बल्कि मानव और प्रकृति के बीच सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व का भी प्रतीक है। आज आपको बताएंगे नाग पंचमी के इतिहास, महत्व, अनुष्ठानों और सांस्कृतिक महत्व के बारे में...
नाग पंचमी के पीछे की पौराणिक कथा:-
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, जनमेजय अर्जुन के पौत्र राजा परीक्षित के पुत्र थे। जब जनमेजय ने पिता की मृत्यु का कारण सर्पदंश जाना तो उसने बदला लेने के लिए सर्पसत्र नामक यज्ञ का आयोजन किया। नागों की रक्षा के लिए यज्ञ को ऋषि आस्तिक मुनि ने श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन रोक दिया और नागों की रक्षा की। इस वजह से तक्षक नाग के बचने से नागों का वंश बच गया। आग के ताप से नाग को बचाने के लिए ऋषि ने उनपर कच्चा दूध डाल दिया था। तभी से नागपंचमी मनाई जाने लगी। वहीं नाग देवता को दूध चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई।
महत्व और प्रतीकवाद:-
नाग पंचमी हिंदू संस्कृति में एक गहरा प्रतीकात्मक अर्थ रखती है। सनातन धर्म में सांप भय और श्रद्धा दोनों का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे विभिन्न देवताओं से जुड़े हुए हैं, विशेष रूप से भगवान शिव से, जिन्हें अक्सर एक पवित्र आभूषण के रूप में अपने गले में सांप पहने हुए चित्रित किया जाता है। माना जाता है कि नाग भूमिगत खजाने, कृषि उर्वरता और जल स्रोतों के रक्षक हैं। यह त्यौहार पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में नागों की भूमिका को स्वीकार करने का प्रतीक है, और यह लोगों को प्रकृति और उसके प्राणियों के संरक्षण के महत्व की याद दिलाता है।
अनुष्ठान एवं उत्सव:-
नाग पंचमी के उत्सव को विभिन्न अनुष्ठानों और रीति-रिवाजों द्वारा चिह्नित किया जाता है जो भारत और नेपाल के विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न होते हैं। केंद्रीय अनुष्ठान में घरों और मंदिरों में जीवित सांपों या सांप की मूर्तियों की पूजा शामिल है। लोग नाग देवताओं को दूध, फूल, धूप और मिठाई चढ़ाते हैं और उनकी सुरक्षा और आशीर्वाद के लिए प्रार्थना करते हैं। कुछ क्षेत्रों में, महिलाएं गाय के गोबर और पानी के मिश्रण से अपने घरों की दीवारों पर सांपों की तस्वीरें बनाती हैं, जो रक्षक के रूप में सांपों की उपस्थिति का प्रतिनिधित्व करती हैं। भक्त अक्सर इस दिन उपवास करते हैं और नाग देवताओं की पूजा करने के बाद अपना उपवास तोड़ते हैं। नागाओं (नाग देवताओं) को समर्पित मंदिर उत्सव का केंद्र बन जाते हैं, जहां भक्तों की बड़ी भीड़ पवित्र भजनों और भजनों (भक्ति गीतों) में भाग लेती है।
सांस्कृतिक महत्व:-
अपने धार्मिक महत्व से परे, नाग पंचमी का भारतीय उपमहाद्वीप में गहरा सांस्कृतिक महत्व है। यह प्रकृति के प्रति एकता और सम्मान की भावना को बढ़ावा देता है, लोगों के बीच पर्यावरण संबंधी जागरूकता को बढ़ावा देता है। यह त्यौहार व्यक्तियों को जानवरों और पौधों सहित सभी जीवित प्राणियों के साथ सद्भाव से रहने की याद दिलाता है। इस अवधि के दौरान साँप संरक्षण के प्रयासों में तेजी आती है, क्योंकि लोग इन सरीसृपों द्वारा बनाए गए पारिस्थितिक संतुलन के बारे में अधिक जागरूक हो जाते हैं।
नाग पंचमी, एक जीवंत और सार्थक हिंदू त्योहार, नाग देवताओं की विस्मयकारी शक्ति और प्रकृति में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका का जश्न मनाता है। यह उत्सव न केवल बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है, बल्कि पारिस्थितिक संरक्षण और सभी प्राणियों के साथ सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व की आवश्यकता पर भी जोर देता है। इससे लाखों लोगों को नागों और प्राकृतिक दुनिया की महिमा का सम्मान करने की प्रेरणा मिलती है।
हर समस्या का समाधान हैं हरसिंगार के फूल
8 Aug, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में देवी देवताओं की पूजा आराधना में कई तरह के पुष्पों का प्रयोग किया जाता हैं माना जाता हैं कि पूजा पाठ में फूलों का इस्तेमाल देवी देवताओं की कृपा प्रदान करता हैं इन्हीं में से एक हरसिंगार का भी पौधा हैं जो माता लक्ष्मी को बेहद प्रिय होता हैं माना जाता हैं कि हरसिंगार पर धन की देवी वास करती हैं।
मान्यता है कि हरसिंगार के उन्हीं फूलों का इस्तेमाल किया जाता हैं जो स्वयं पेड़ से टूटकर नीचे गिर जाते हैं। ज्योतिष में इन फूलों को लेकर कई उपाय बताए गए हैं जिन्हें अगर सही तरीके से किया जाए तो लाभ ही लाभ मिलता हैं और समस्याओं का समाधान हो जाता हैं तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा हरसिंगार के फूलों से जुड़ा उपाय बता रहे हैं, तो आइए जानते हैं।
हरसिंगार के फूलों का आसान उपाय-
अगर किसी के विवाह आदि में कोई समस्या आ रही हैं या फिर शीघ्र विवाह के योग नहीं बन रहे हैं तो ऐसे में आप मंगलवार के दिन नारंगी वस्त्रों में हरसिंगार के फूलों के साथ हल्दी की गांठ बांधकर घर के मंदिर में मां गौरी की प्रतिमा के पास रख दें।
माना जाता हैं कि इस उपाय को करने से शीघ्र विवाह के योग बनने लगते हैं वहीं इसके अलावा मंगलवार के दिन हरसिंगार के फूलों का गुच्छा लाल वस्त्र में लपेटकर, मंदिर में लक्ष्मी जी के समक्ष रख दिया जाए तो मनचाही नौकरी व नौकरी में तरक्की के योग बनने लग जाते हैं। अगर आप आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं या फिर कर्ज बढ़ता जा रहा हैं तो ऐसे में आप हरसिंगार के पौधे की जड़ का छोटा टुकड़ा लेकर इसे घर में धन रखने वाली जगह पर रख दें। माना जाता हैं कि इस उपाय को करने से धन संबंधी सभी परेशानियां हल हो जाती हैं।
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (08 अगस्त 2023)
8 Aug, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- हर्ष यात्रा, सुख-सफलत, हानि खर्च अधिक होवें, व्यर्थ का विरोध होगा।
वृष राशि :- व्यापार में क्षति, यात्रा, विवाद, गृहकार्य-राजकार्य में व्यवस्था कुछ हानिप्रद होगी।
मिथुन राशि :- विरोध होगा, व्यापार में कष्ट, अशांति, कार्य लाभ की स्थिति संतोषप्रद रहेगी।
कर्क राशि :- शरीर दिव्य, भूमि व राज लाभ, वायु विकार का योग, शरीर कष्ट हेवें।
सिंह राशि :- वाहनादि भय, कष्ट, राज सुख, यात्रा की स्थिति में विकार अवश्य होवें।
कन्या राशि :- व्यय, प्रवास, विरोध होगा, भूमि लाभ, उद्योग-व्यापार में अड़चनें होंगी।
तुला राशि :- कार्य सिद्धी, लाभ, विरोध होगा, प्रगति के साथ कुछ अच्छे कार्य भी होंगे, संतान से प्रसन्नता।
वृश्चिक राशि :- रोगभय, यात्रा दु:ख, कष्ट, यात्रा, गृहकार्य व राज कार्य में रुकावट होगी।
धनु राशि :- राजधर्म में रुचि, यात्रा कार्य में रुकावट बनेगी, भयभीत व्यवस्था बनेगी, धैर्य रखें।
मकर राशि :- विरोध होगा, व्यापार में हानि, शरीर कष्ट, धार्मिक खर्च होंगे, कार्य में रुकावट होगी।
कुंभ राशि :- व्यय, प्रवास, लाभ, प्रतिष्ठा, रोग, सामाजिक कार्य में रुकावट की अनुभूति हो।
मीन राशि :- राजभय, यश लाभ, मान, चोट-चपेट का भय, मित्रों व पारिवारिक लोगों से परेशानी बढ़ेगी।
दीपक का ऎसा उपयोग बन सकता है आपकी आर्थिक परेशानियों का हल
7 Aug, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में दीपक का महत्व बहुत अधिक रहा है. दीपक के बिना पूजा को भी अधूरा सा ही माना जाता है. दीपदान की महता तो कई गुना शुभ फल देने वाली होती है. भक्त लोग पवित्र नदियों में दीपदान करते हैं तो पूजनीय वृक्षों पर दीपक जला कर दीपदान किया जाता है.
दीपक घर की चौखट पर रखा जाता है और जीवन को प्रकाशमय कर देता है. भगवान की पूजा-अर्चना में भी दीपक का होना शुभता का सूचक होता है. दीपक को लेकर भी कई नियम बताए गए हैं.
यह एक छोटा सा दीपक आपके जीवन को भी रोशनी से भर सकता है. आज के समय में जब चिंताएं सभी को घेरे हुए हैं तो हर कोई चाहता है कि उसका जीवन खुशहाल हो और उसे किसी चीज की कमी न हो. मानसिक चिंताएं दूर हों. इस सपने को पूरा करने के लिए लोग कड़ी मेहनत के साथ-साथ पूजा-पाठ भी करते हैं. कई बार हमें अपनी मेहनत के मुताबिक फल नहीं मिल पाता है. इसके अलावा कई बार बेवजह परेशानी आ जाती है. प्रगति में बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है.
इन सभी प्रकार की समस्याओं से निजात के लिए तथा समृद्धि शांति के लिए यदि कुछ वास्तु उपाय कर लिए जाएं तो इनका प्रभाव बहुत मिलता है. इसमें से एक उपाय दीपक के द्वारा बःई हम कर सकते हैं. अगर धन नहीं टिकता, रिश्तों कारण हम कभी-कभी परेशान हो जाते हैं तो दीपक से जुड़ी छोटी बातों का ध्यान रखकर जीवन में सुख-समृद्धि और तरक्की पा सकते हैं.
दीपक के उपाय एवं लाभ
नियमित रुप से दीपक प्रज्जवलित करना
नियमित रूप से पूजा के लिए यदि दीपक को जलाया जाए तो यह बहुत ही शुभ माना जाता है. ऎसा करने से देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त होती है. भगवान की पूजा को लेकर कई नियम भी बताए गए हैं. इन्हीं में से एक है देवताओं को दीपक दिखाना और आरती करना. घर में सुख-शांति के लिए आरती की थाल पूरे घर में घुमाई जाती है. ऐसा करने से घर का वास्तुदोष भी खत्म हो जाता है. घर में खुशनुमा माहौल बना रहता है.
दीपदान से मिलेगी नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति
दीपदान करना यह आप किसी भी रुप में कर सकते हैं घर पर या कहं मंदिर में या फिर तुलसी इत्यादि पर दीपक जलाते हैं तो यह बहुत शुभ होता है. अगर आप भी पूजा के दौरान दीपक जलाते हैं और आरती करते हैं तो नकारात्मकता दूर होने लगती है.
भद्रारहित काल में ही मनाएं रक्षाबंधन का त्योहार, जानें राखी बांधने का शुभ समय
7 Aug, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
रक्षाबंधन का त्योहार हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि के दिन मनाते हैं, इसलिए इसे राखी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है.
पूर्णिमा तिथि
हिंदू पंचांग के अनुसार 31 अगस्त को श्रावण पूर्णिमा की तिथि 07 बजकर 05 मिनट तक रहेगी और इस दौरान भद्रा का साया नहीं रहेगा.
इस कारण 31 अगस्त को सुबह-सुबह राखी बांधना शुभ होगा.
Raksha Bandhan 2023 Date
रक्षाबंधन श्रावण पूर्णिमा तिथि: 30 अगस्त 2023
राखी बांधने का समय: 30 अगस्त 2023 की रात 09 बजकर 03 मिनट के बाद
रक्षाबंधन श्रावण पूर्णिमा तिथि समाप्ति- 31 अगस्त सुबह 07 बजकर 05 मिनट तक
Raksha Bandhan 2023 Muhurat Time
रक्षाबंधन भद्रा समाप्ति समय: 30 अगस्त 2023 की रात 09 बजकर 03 मिनट पर
रक्षाबंधन भद्रा पूंछ: 30 अगस्त की शाम 05:30 बजे से शाम 06:31 बजे तक
रक्षाबंधन भद्रा मुख: 30 अगस्त 2023 की शाम 06:31 बजे से रात 08:11 बजे तक
Raksha Bandhan 2023
राखी बांधने से जान लें नियम
रक्षाबंधन का त्योहार हमेशा भद्रारहित काल में ही मनाएं.
रक्षाबंधन के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और पूरे घर में गंगाजल का छिड़काव करें.
सूर्य पूजा
स्नान के बाद सूर्यदेव को जल देते हुए अपने कुल देवी और देवताओं का स्मरण करें और आशीर्वाद लें.
इसके बाद शुभ मुहूर्त को ध्यान में रखते हुए राखी की थाली को सजाएं.
Raksha Bandhan 2023
राखी की थाली में तांबे या पीतल की थाली में राखी, अक्षत, सिंदूर,मिठाई और रोली जरूर रखें.
अपने कुलदेवता को रक्षाबंधन पर रक्षा सूत्र को समर्पित करते हुए पूजा संपन्न करें.
Raksha Bandhan 2023
राखी बांधते हुए इस बात का ध्यान रखें कि भाई का मुख पूर्व दिशा में हो.
बहनें सबसे पहले भाई के माथे पर तिलक लगाएं और फिर कलाई पर राखी बांधें.
Raksha Bandhan 2023
बहनें भाई के दाहिने हाथ पर राखी बांधे.
इसके बाद बहन-भाई एक दूसरे को मिठाई खिलाएं.
इस दिन है हरियाली तीज, पूजा के दौरान जरूर पढ़ें ये व्रत कथा
7 Aug, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
इस साल 19 अगस्त 2023 हरियाली तीज का व्रत रखा जा रहा है। इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। हरियाली तीज के दिन माता पार्वती और भगवान शिवजी की पूजा करने का विधान है।
इस दिन सुहागिनें निर्जला व्रत रखती हैं और मां गौरी की पूजा करती हैं। सुहागिन महिलाओं के अलावा कुंवारी लड़कियां भी सुयोग्य वर की कामना के साथ हरियाली तीज का व्रत रखती हैं। इस दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं। इस दिन विधि-विधान से पूजा करने के अलावा हरियाली तीज की कथा भी जरूर पढ़नी या सुननी चाहिए। तभी व्रत सफल माना जाता है। हरियाली तीज व्रत की कथा इस प्रकार है...
हरियाली तीज व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार शिव जी माता पार्वती को अपना पूर्व जन्म याद दिलाते हुए कहते हैं कि हे पार्वती ! तुमने मुझे पति के रूप में पाने के लिए वर्षों तक कठोर तप किया। अन्न और जल का भी त्याग कर दिया और सर्दी, गर्मी, बरसात जैसे मौसम की भी कोई फिक्र नहीं की। उसके बाद तुम्हें वर के रूप में मैं प्राप्त हुआ।
महादेव कथा सुनाते हुए कहते हैं कि हे पार्वती ! एक बार नारद मुनि तुम्हारे घर पधारे और उन्होंने तुम्हारे पिता से कहा कि मैं विष्णु जी के भेजने पर यहां आया हूं। भगवान विष्णु स्वयं आपकी तेजस्वी कन्या पार्वती से विवाह करना चाहते हैं। नारद मुनि की बात सुनकर पर्वतराज बेहद प्रसन्न हुए और उन्होंने शादी के इस प्रस्ताव को तुरंत स्वीकार कर लिया। लेकिन जब तुम्हारे पिता पर्वतराज ने ये बात तुम्हें बताई तो तुम बहुत दुखी हुईं।
भोलेनाथ कथा सुनाते हुए आगे कहते हैं कि जब तुमने अपनी सखी को यह बात बताई तो उसने घनघोर जंगल में तुम्हें तप करने की सलाह दी। सखी की बात मानकर तुम मुझे पति के रूप में प्राप्त करने के लिए जंगल में एक गुफा के अंदर रेत की शिवलिंग बनाकर तप करने लगीं। शिवजी माता पार्वती से आगे कहते हैं कि तुम्हारे पिता पर्वतराज ने तुम्हारी खोज में धरती और पाताल एक कर दिया, लेकिन तुम्हें ढूंढ नहीं पाए। तुम गुफा में सच्चे मन से तप करने में लगी रहीं। सावन मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर प्रसन्न होकर मैंने तुम्हें दर्शन दिए और तुम्हारी मनोकामना को पूरा करने का वचन देते हुए तुम्हें पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया। इसके बाद तुम्हारे पिता भी ढूंढते हुए गुफा तक पहुंच गए। तुमने अपने पिता से कहा कि मैं आपके साथ तभी चलूंगी, जब आप मेरा विवाह शिव के साथ करवाएंगे।
तुम्हारी हठ के आगे पिता की एक न चली और उन्होंने ये विवाह करवाने के लिए हामी भर दी। शिव जी आगे कहते हैं कि श्रावण तीज के दिन तुम्हारी इच्छा पूरी हुई और तुम्हारे कठोर तप की वजह से ही हमारा विवाह संभव हो सका। शिव जी ने कहा कि जो भी महिला श्रावणी तीज पर व्रत रखेगी, विधि विधान से पूजा करेगी, तुम्हारी इस कथा का पाठ सुनेगी या पढ़ेगी, उसके वैवाहिक जीवन के सारे संकट दूर होंगे और उसकी मनोकामना मैं जरूर पूरी करूंगा।
सूर्य से बनने वाले 3 शुभ योग, राजा की तरह जिंदगी जीते हैं ऐसे लोग
7 Aug, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सूर्य को ज्योतिष शास्त्र में व्यक्ति की आत्मा माना जाता है. इसका दूषित होना सारे जीवन को अस्त व्यस्त कर देता है. इसके मजबूत होने पर जीवन में वैभव और समृद्धि मिलती है. कमजोर होने पर दरिद्रता और खराब स्वास्थ्य का सामना करना पड़ता है.
सूर्य से मुख्य रूप से तीन तरह के राजयोग बनते हैं, जो व्यक्ति को अपार प्रतिष्ठा देते हैं.
सूर्य का पहला राजयोग- वेशि
कुंडली में सूर्य के अगले घर में किसी ग्रह के स्थित होने से वेशि योग बनता है. लेकिन ये ग्रह चन्द्रमा, राहु या केतु नहीं होने चाहिए. तभी जाकर वेशि योग का लाभ मिलता है. इस योग के होने पर व्यक्ति अच्छा वक्ता और धनवान होता है. ऐसे लोगों को जीवन की शुरुआत में बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. लेकिन आगे चलकर ये लोग खूब धन संपत्ति और यश अर्जित करते हैं. इन लोगों को अपने खान-पान का ध्यान रखना चाहिए और गुड़ जरूर खाना चाहिए.
सूर्य का दूसरा राजयोग- वाशि
सूर्य के पिछले घर में किसी ग्रह के होने पर वाशि योग बनता है. लेकिन ये ग्रह चन्द्र, राहु या केतु नहीं होने चाहिए. तभी जाकर यह योग शुभ फल दे पाएगा. यह योग व्यक्ति को बुद्धिमान, ज्ञानी और धनवान बनाता है. ऐसे लोग राजा की तरह जीवन जीते हैं. इस योग के कारण व्यक्ति बहुत सारी विदेश यात्राएं करता है. इन्हें घर से दूर जाकर खूब सफलता मिलती है. इस योग के होने पर सूर्य को जल जरूर चढ़ाएं. साथ ही, सोने के लिए लकड़ी के पलंग का प्रयोग करें.
सूर्य का तीसरा राजयोग- उभयचारी योग
सूर्य के पहले और पिछले, दोनों भाव में ग्रह हों तो उभयचारी योग बनता है. लेकिन ये ग्रह चन्द्र, राहु या केतु नहीं होने चाहिए. तब यह शुभ योग फलीभूत होता है. इस योग के होने पर व्यक्ति बहुत छोटी जगह से बहुत ऊंचाई तक पंहुचता है. इसके कारण व्यक्ति अपने क्षेत्र में बहुत प्रसिद्धि प्राप्त करता है. इस योग के कारण व्यक्ति हर समस्या से बाहर निकल जाता है. व्यक्ति को राजनीति और प्रशासन में बड़े पद मिल जाते हैं. ऐसे लोग रविवार का उपवास जरूर रखें. साथ ही, एक लाल रंग का रुमाल भी अपने पास रखें.
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (07 अगस्त 2023)
7 Aug, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- यात्रा से लाभ, कुसंग से हानि, गृह कलह तथा मानसिक अशांति अवश्य ही बनेगी।
वृष राशि :- आर्थिक व्यय, स्वजन कष्ट, विवाद अस्थिर व अशांति का वातावरण बनेगा।
मिथुन राशि :- शुभ कार्य भूमि से हानि, कार्य सिद्धी, लॉटरी-सट्टा से हानि की संभावना।
कर्क राशि :- धन हानि, रोग भय, नौकरी में चिन्ता, राजकार्य-गृहकार्य में व्यवस्था बनी रहेगी।
सिंह राशि :- कार्य में निराशा, खेती से लाभ तथा शत्रुभय बना रहेगा, उद्योग-व्यापार में लाभ होगा।
कन्या राशि :- शरीर कष्ट, राजलाभ, व्यय भार बढ़ेगा, दाम्पत्य जीवन में असमंजस की स्थिति बनेगी।
तुला राशि :- चोट अग्नि भय, धार्मिक कार्य, कष्ट, व्यापार में उलझन की स्थिति बनेगी।
वृश्चिक राशि :- बाधा व अचानक धन होगा, यात्रा में कष्ट, गृहकार्य व राजकार्य में रुकावट बनेगी।
धनु राशि :- रोगभय, मुकदमे में जीत, मानसिक परेशानी से अवसादग्रस्त रहेंगे, व्यर्थ की उलझनों से बचें।
मकर राशि :- व्यापार में लाभ, शत्रुभय, धन सुख होगा, कार्य में सफलता के योग, रुके कार्य बनेंगे।
कुंभ राशि :- कलह, व्यर्थ का कष्ट होगा, सफलता प्राप्त होगी, सामाजिक कार्य में रुकावट बनेगी।
मीन राशि :- स्वजन सुख, पुत्र चिन्ता, धन हानि, राजकार्य में विलम्ब होगा, परेशानी बढ़ सकती है।
अधिक मास अमावस्या पर नाराज़ पितरों को ऐसे करें प्रसन्न
6 Aug, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में पूर्णिमा और अमावस्या तिथि को बेहद ही खास माना जाता हैं जो कि हर माह में एक बार आती हैं अभी सावन अधिकमास चल रहा हैं और इस माह पड़ने वाली अमावस्या को अधिक मास अमावस्या के नाम से जानी जा रही हैं इस दिन स्नान दान व पूजा पाठ का खास महत्व होता हैं।
अमावस्या तिथि के देवता पितृ होते हैं ऐसे में अमावस्या तिथि पर पितरों के निमित्त श्राद्ध तर्पण और पिंडदान करने का भी महत्व होता हैं। इस बार अधिक मास की अमावस्या 16 अगस्त को पड़ रही हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अधिक मास की अमावस्या के दिन पूर्वज धरती पर आते हैं और अपने परिजनों से तर्पण की उम्मीद करते हैं माना जाता हैं कि इस दिन श्राद्ध कर्म करने से पूर्वजों की आत्मा तृत्प हो जाती हैं और अपने वंशजों को आशीर्वाद प्रदान करती हैं जिससे सुख समृद्धि और सफलता मिलती हैं, ऐसे में आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा अधिक मास अमावस्या के दिन स्नान दान का मुहूर्त बता रहे हैं, तो आइए जानते हैं।
अधिक मास अमावस्या की तिथि और मुहूर्त-
धार्मिक पंचांग के अनुसार इस साल सावन के अधिकमास की अमावस्या 16 अगस्त को पड़ रही हैं इसके बाद से सावन का शुक्ल पक्ष आरंभ हो जाएगा। 15 अगस्त के दिन दर्श अमावस्या हैं तो वही अधिकमास की अमावस्या के दिन पवित्र नदी में स्नान करने के बाद गरीबों और जरूरतमंदों को दान देने से पुण्य की प्राप्ति होती हैं। अधिकमास की अमावस्या तिथि का आरंभ 15 अगस्त को प्रात: 12 बजकर 42 मिनट से हो रहा हैं वही समापन अगले दिन 16 अगसत को दोपहर 3 बजकर 7 मिनट पर होगा।
ऐसे में स्नान दान का मुहूर्त सुबह 4 बजकर 20 मिनट से सुबह 5 बजकर 2 मिनट तक का रहेगा। जो कि बेहद ही शुभ माना जा रहा हैं। इस दिन पितरों को प्रसन्न करने व उनकी नाराजगी को दूर करने के लिए श्राद्ध,तर्पण और पिंडदान जरूर करें। ऐसा करने से वे प्रसन्न होकर वंशजों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
छोटी दिवाली को नरक चतुर्दशी क्यों कहते हैं
6 Aug, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्मग्रंथों में दिवाली का त्योहार सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है। दिवाली धनतेरस के दिन शुरू होती है और भाई दूज के दिन समाप्त होती है। वहीं दिवाली से एक दिन पहले छोटी दिवाली या नरक चतुर्दशी का त्योहार भी बहुत महत्वपूर्ण होता है.
इस दिन शास्त्रों में हनुमानजी की पूजा करने का विधान है। बता दें कि नरक चौदस को रूप चौदस और काली चौदस के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन यमराज, हनुमान जी और माता लक्ष्मी की पूजा का विधान है। वहीं इस दिन को हनुमान जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। कहा जाता है कि इस दिन बजरंग बली का जन्म हुआ था और इस दिन पूजा करने से भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं.
हनुमानजी के साथ यमराज की भी पूजा की जाती है
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा करने का भी विधान है। मान्यता है कि इस दिन यमराज की पूजा करने से लंबी उम्र का वरदान मिलता है। शास्त्रों में कहा गया है कि नरक चतुर्दशी के दिन अगर सच्चे मन से हनुमान जी की पूजा की जाए तो सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। इससे जीवन में धन की प्राप्ति होती है। नरक चतुर्थी पर जानें हनुमान जी की पूजा विधि.
नरक चतुर्दशी पर ऐसे करें हनुमानजी की पूजा
नरक चतुर्दशी के दिन सबसे पहले स्नान आदि करने के बाद हनुमान जी के सामने दीपक जलाना चाहिए और उनका ध्यान करना चाहिए। इसके बाद उनकी विधि-विधान से पूजा करने के बाद हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए।
अगर किसी के घर के आसपास हनुमानजी का मंदिर है तो उसे वहां जाकर बजरंगबली को प्रसाद चढ़ाना चाहिए।
अगर कोई व्यक्ति अपनी मनोकामना पूरी करना चाहता है तो उसे हनुमानजी को चोला चढ़ाना चाहिए। साथ ही बजरंग बली को सिन्दूर और चमेली का तेल अर्पित करना चाहिए।
अगर कोई व्यक्ति अपनी सभी समस्याओं से छुटकारा पाना चाहता है तो किसी भी हनुमान मंदिर में जाकर 'ओम हं हनुमते नम:' मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करें। इससे वांछित परिणाम मिलेगा.
हरियाली तीज पर महिलाएं क्यों करती हैं 16 श्रृंगार
6 Aug, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हरियाली तीज पर फुलों से श्रृंगार सोलह श्रृंगार में फुलों से श्रृंगार करना शुभ माना गया है. सूर्य और चंद्रमा की शक्ति वर्षा ऋतु में क्षीण हो जाती है. इसलिए इस ऋतु में आलस आता है. मन को प्रसन्नचित रखने के लिए फुलों को बालों में लगाना अच्छा माना गया है.
हरियाली तीज पर माथे पर टीका लगाना
माथे पर बिंदी या टीका लगाना एक श्रृंगार के तौर पर माना गया है. माथे पर सिंदूर का टीका लगाने से सकारात्मक ऊर्जा महसूस होती है. इससे मानसिक शांति भी मिलती है. इस दिन चंदन का भी टीका लगाया जाता है.
हरियाली तीज पर मेहंदी लगाना
हरियाली तीज पर मेहंदी लगाने की परंपरा है. स्त्रियां खास तौर पर इस दिन हाथों में मेहंदी लगाती हैं. ये सोलह श्रृंगार के प्रमुख श्रृंगार में से एक है. मेहंदी शरीर को शीतलता प्रदान करती है और त्वचा संबंधी रोगों को दूर करती है.
हरियाली तीज पर सिंदूर लगाना
मांग में सिंदूर लगाना सुहाग की निशानी है. वहीं इस स्थान पर सिंदूर लगाने से चेहरे पर निखार आता है. इसका अपने वैज्ञानिक फायदे भी होते हैं. मान्यता है कि मांग में सिंदूर लगाने से शरीर में ऊर्जा को नियंत्रित करने में भी मदद मिलती है.
16 श्रृंगार में मंगल सूत्र का महत्व
मोती और स्वर्ण से युक्त मंगल सूत्र या हार पहनने से ग्रहों की नकारात्मक ऊर्जा को रोकने में मदद मिलती है. वहीं इससे प्रतिरोधक क्षमता में भी वृद्धि होती है. मान्यता है कि गले में स्वर्ण आभूषण पहनने से हृदय रोग संबंधी रोग नहीं होते हैं.
कान में आभूषण का महत्व
कान में आभूषण या बाली पहनने से मानसिक तनाव नहीं होता है. कर्ण छेदन से आंखों की रोशनी तेज होती है. यह सिर का दर्द कम करने में भी सहायक होता है.
हाथों में कंगन या चूड़ियां पहनने का महत्व
हाथों में कंगन या चूड़ियां पहनने से रक्त का संचार ठीक रहता है. इससे थकान नहीं नहीं होती है. साथ ही यह हॉर्मोंस को भी नहीं बिगड़ने देती हैं.
बाजूबंद पहनने का महत्व
बाजूबंद पहनने से भुजाओं में रक्त प्रवाह ठीक बना रहता है. मान्यता है कि इससे दर्द से मुक्ति मिलती है. वहीं इससे सुंदरता में निखार आता है.
कमरबंद पहनने का धार्मिक महत्व
कमरबंद पहनने से पेट संबंधी दिक्क्तें कम होती हैं. कई बीमारियों से बचाव होता है. हार्निया जैसी बीमारी होने का खतरा कम होता है.
पायल पहनने का धार्मिक महत्व
पायल पैरों की सुंदरता में चार चांद लगाती हैं. वहीं इनको पहनने से पैरों से निकलने वाली शारीरिक विद्युत ऊर्जा शरीर में संरक्षित होती है. इसका एक बड़ा कार्य महिलाओं में वसा को बढ़ने से रोकना भी है.
बिछिया पहनने का धार्मिक महत्व
बिछिया को सुहाग की एक प्रमुख निशानी के तौर पर माना जाता है. लेकिन इसका प्रयोग पैरों की सुंदरता तक ही सीमित नहीं है. बिछिया नर्वस सिस्टम और मांसपेशियां को मजबूत बनाए रखने में भी मददगार होती है.
नथनी पहनने का धार्मिक महत्व
नथनी चेहरे की सुंदरता में चार चांद लगाती है. यह एक प्रमुख श्रृंगार है लेकिन इसका वैज्ञानिक महत्व भी है. नाक में स्वर्ण का तार या आभूषण पहनने से महिलाओं में दर्द सहन करने की क्षमता बढ़ती है.
अंगूठी पहनने का धार्मिक महत्व
अंगूठी पहनने से रक्त का संचार शरीर में सही बना रहता है. इससे हाथों की सुंदरता बढ़ती है. इससे पहनने से आलस कम आता है.
काजल लगाने का धार्मिक महत्व
काजल आंखों की सुरंदता को बढ़ाता है. वहीं आंखों की रोशनी भी तेज करने में सहायक होता है. इससे नेत्र संबंधी रोग दूर होते हैं.
मुख पर ब्यूटी प्रोडक्ट्स लगाने का महत्व
मुख पर ब्यूटी प्रोडक्ट्स लगाने से चेहरे की सुंदरता बढ़ती है. वहीं इससे महिलाओं के आत्मविश्वास में वृद्धि होती है और ऊर्जा बनी रहती है.
हल्दी का उपयोग दूर कर सकता है आपकी सभी परेशानियां जानें हल्दी के ज्योतिषीय उपाय
6 Aug, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हल्दी का उपयोग खान पान में ही नही अपितु धार्मिक दृष्टिकोण के साथ साथ स्वास्थ्य के लिए भी शुभ माना जाता है. हल्दी को कई तरह से उपयोग में लाया जाता है, हल्दी का उपयोग पूजा एवं धार्मिक अनुष्ठानों को किया जाता है.
हल्दी के कई उपाय ज्योतिष और वास्तु शास्त्र में प्रचलित रहे हैं. इन उपायों को करके हम सभी अपने जीवन को काफी सुखमय भी बना सकते हैं. हल्दी को उपचार हेतु, मानसिक शांति एवं स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा माना जाता है. इसके अलावा इसके कई उपाय आर्थिक पक्ष पर भी शुभ असर डालते हैं. अगर किसी प्रकार की आर्थिक तंगी दूर करना चाहते हैं तो उपाय करके धन लाभ होने की संभावना बहुत अधिक रहती है. हल्दी के कई उपाय भी बताए गए हैं. मान्यता के अनुसार इन उपायों को करने से आर्थिक समृद्धि आती है और घर में शांति का माहौल बना रहता है. आइये जानते हैं की हल्दी आपके जीवन में कैसे शुभता ला सकती है.
घर पर हल्दी से स्वास्तिक बनाना
हम सभी लोग अपने घर के बाहर कुछ शुभ संकेत अवश्य बनाते हैं. ऎसे में यदि इन संकेतों को हल्दी से बनाएं तो इनके द्वारा शुभता का आगमन होता है. मान्यता के अनुसार यदि घर की बाहरी दीवारों पर हल्दी से हम स्वास्तिक एवं शुभ लाभ को निर्मित करते हैं तो इसका बहुत ही शुभ फल हमें मिलता है. इस तरह से हल्दी का उपयोग गृह क्लेश को समाप्त कर देने वाला होता है. इसके अलावा घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश नहीं होता है.
साबुत हल्दी का उपयोग
साबुत हल्दी का उपयोग तंत्र में बहुत होता है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार आर्थिक समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए साबूत हल्दी को पीले कपड़े में बांधकर पूजा स्थान पर रखना बहुत शुभ माना जाता है. इस कार्य को विशेष रुप से बृहस्पतिवार के दिन करना उत्तम होता है. मान्यताओं के अनुरुप इस कार्य को करना अच्छे लाभ के संकेत देने वाला होता है.
कुंडली दोष से मुक्ति दिलाती हल्दी
ज्योतिष अनुसार यदि कुंडली में गुरु ग्रह कमजोर है तो उसके लिए साबुत हल्दी या हल्दी की जड़ को धारण करने से शुभता मिलती है. इसके अलावा कुंडली में गुरु दोष को दूर करने के लिए श्री विष्णु जी को हल्दी अर्पित करना शुभदायक माना जाता है. हल्दी के उपयोग से तनाव एवं चिंताएं भी दूर हो जाती है. मंदिर में हल्दी को रखना शुभता को प्रदान करने वाला होता है.
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (06 अगस्त 2023)
6 Aug, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- यात्रा भय कष्ट, व्यापार बाधा, लाभ, पारिवारिक समस्या उलझती जाएगी।
वृष राशि :- शत्रु भय रोग, स्वजन सुख, लाभ, शिक्षा व लेखन कार्य में सफलता प्रगति का योग है।
मिथुन राशि :- वाहन भय, मातृ कष्ट, अस्थिर अशांति का वातावरण रहेगा, ध्यान अवश्य रखेगे।
कर्क राशि :- सफलता, उन्नति, शुभ कार्य विवाद राजकार्य व मामलें मुकदमें में स्थिति ठीक रहेगी।
सिंह राशि :- शरीर कष्ट, आय व्यय, कार्य में सफलता, आर्थिक सुधार, अर्थलाभ के कार्य बनेंगे।
कन्या राशि :- खर्च विवाद स्त्री कष्ट, विद्या लाभ, धीरे-धीरे सुधार के साथ लाभ की स्थिति अवश्य बनेगी।
तुला राशि :- यात्रा से हानि, राज लाभ, शरीर कष्ट तथा खर्च की अधिकता रहेगी, कार्यों पर ध्यान दें।
वृश्चिक राशि :- कार्य वृत्ति में लाभ, यात्रा, सम्पत्ति से लाभ, व्यापार में सुधार हो, खर्च होगा।
धनु राशि :- अल्प लाभ, चोट अग्नि-शरीर भय, यात्रा, मानसिक परेशानी, अपवाद बनेगा।
मकर राशि :- शत्रु से हानि, अपव्यय होगा, शारीरिक सुख में कमी, व्यवस्थाएं रहेगी।
कुंभ राशि :- शुभ व्यय, संतान सुख, कार्य में सफलता, उत्साह की वृद्धि होगी, कार्य बनें।
मीन राशि :- पदोन्नति, राजभय, न्याय, लाभ, धन हानि, अधिकारियों से मनमुटाव अवश्य ही होगा।
दिवाली के दिन ही घी के दिया क्यों जलाए जाता है
5 Aug, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
दिवाली हिंदू धर्म का सबसे बड़ा त्योहार है। दिवाली के त्योहार की तैयारियां काफी पहले से ही शुरू हो जाती हैं। दिवाली के लिए कई दिन पहले से ही घर और आसपास की साफ-सफाई की जाती है, वहीं दिवाली के दिन सजावट की जाती है, ढेर सारे दीपक जलाए जाते हैं.
दिवाली के दिन हर घर दीयों की रोशनी से जगमगा उठता है। क्या आपने कभी सोचा है कि दिवाली पर दीपक क्यों जलाए जाते हैं या दीपक जलाने के क्या फायदे हैं?
दीपक जलाने के फायदे
दिवाली का त्योहार कार्तक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव अधिक रहता है। इसके साथ ही दिवाली का दिन कार्यसिद्धि के लिए भी खास माना जाता है. दिवाली पर दीपक जलाने के कई फायदे हैं. दरअसल, दिवाली के दौरान साफ-सफाई के कारण कई कीटाणु बाहर आ जाते हैं। दीपक जलाने से पर्यावरण के जीव-जंतु मर जाते हैं। दूसरी ओर, अधिक दीपक जलाने से परिवेश का तापमान बढ़ जाता है। सर्दियों के दौरान हवाएँ तेज़ होती हैं। दीपक जलाने से हवा हल्की और स्वच्छ होती है।
घी और तेल का दीपक जलाना लाभकारी होता है
आपने देखा होगा कि दिवाली पर सभी दीपक तेल से जलाए जाते हैं लेकिन एक दीपक घी से जलाया जाता है। आखिर इसके पीछे क्या वजह है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सरसों की मिट्टी के दीपक में सरसों का तेल डालकर जलाने से शनि और मंगल ग्रह मजबूत होते हैं। इससे जीवन की परेशानियां दूर होती हैं, जीवन में सुख-समृद्धि और धन की वृद्धि होती है। वहीं गाय के घी का दीपक जलाने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। इससे मां लक्ष्मी की बहुत कृपा होती है और धन लाभ मिलता है। इसलिए मां लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए दिवाली पर गाय के घी का दीपक जलाना चाहिए।