धर्म एवं ज्योतिष (ऑर्काइव)
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (11 अगस्त 2023)
12 Aug, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष :- उन्नति, कार्यसिद्ध, वाहनभय, शरीर कष्ट, घरु प्रवास से सफलता मिल सकती है।
वृष :- खर्च, सिद्धी, बाधा, शुभ कार्य, कष्ट, मानसिक कार्य एवं सफलता का योग है।
मिथुन :- राज से हानि, घरु विरोध, अपव्यय, लेखन कार्य में रुकावट अवश्य होगी।
कर्क :- संतान कष्ट, आर्थिक कष्ट, खर्च शत्रु भय, धार्मिक कार्य एवं शुभ कार्य का योग है।
सिंह :- सफलता का हर्ष, भय-दबाव, विवाद, कुछ प्रसन्नता का योग बनेगा, पारिवारिक सुख होगा।
कन्या :- हानि, अपव्यय योग, रोग, मातृ कष्ट, शिक्षा जगत में संतोष रहेगा।
तुला :- लाभ, संतान सुख, रोगभय, झंझट, लेखन, कार्य सामान्य प्रगति कारक रहेगा।
वृश्चिक :- अभिष्ट सिद्धी, स्वजन कार्य कष्ट, यश, संतान पक्ष अपेक्षाकृत अच्छा रहे, प्रसन्नता बनेगी।
धनु :- राजभय, स्त्रीकष्ट, कार्यसिद्धी, धन लाभ, सामाजिक कार्य में व्यवधान के साथ सफलता मिलेगी।
मकर :- विवाद, कष्ट, बाधा हानि, घरु कष्ट, नौकरी की स्थिति सामान्य अवश्य रहेगी।
कुम्भ :- यश, सुख, कार्य-मुकदमे से लाभ, धार्मिक तथा कुछ अच्छे कार्य भी हो सकते हैं।
मीन :- रोगभय, अभिष्ट सिद्धी, अल्प हानि, नौकरी में अनबन हो सकती है, ध्यान रखें।
हरियाली तीज पर सुहागिन महिलाएं जरूर करें ये काम, बनी रहेगी मां पार्वती की कृपा
11 Aug, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में हरियाली तीज का त्योहार बहुत खास माना जाता है। इस दिन सुहागिनें अपने सुहाग की सलामती के लिए, उसे हर दुख और खतरे से बचाने के लिए कई घंटों तक निर्जला व्रत रखती हैं।
हरियाली तीज 19 अगस्त 2023 को है. शास्त्रों के अनुसार पत्नी के साथ-साथ परिवार को भी पत्नी की पूजा-पाठ का पूरा फल मिलता है। ऐसे में जिन विवाहित महिलाओं के पति पर शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या का प्रभाव है, उन्हें हरियाली तीज पर कुछ विशेष उपाय करने चाहिए, इससे पति के जीवन में शनि का अशुभ प्रभाव कम हो जाएगा और उन्हें आर्थिक, शारीरिक और मानसिक लाभ मिलेगा।
हरी तीज पर करें शनिदेव का सदाचार उपाय
काली गाय का उपाय:- इस बार हरियाली तेज शनिवार को है। ऐसे में शनिदेव को प्रसन्न करने का विशेष संयोग बन रहा है। इस दिन सुहागिन महिलाओं को सुबह स्नान करने के बाद काली गाय और काले कुत्ते को तेल लगी रोटी पर चुपड़कर खिलाना चाहिए। माना जाता है कि इससे शनि की साढ़ेसाती के दुष्प्रभाव से राहत मिलती है।
शिवलिंग पर चढ़ाएं कुछ खास- हरियाली तीज व्रत में शिव और शक्ति की पूजा की जाती है. ऐसे में इस दिन विवाहित महिला को गंगा जल में काले तिल मिलाकर शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिए और एक मुट्ठी उड़द चढ़ाना चाहिए। अब महादेव से पति को शनि की महादशा से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना करें। अगर सच्चे मन से किया जाए तो यह उपाय बहुत प्रभावशाली माना जाता है।
नारियल का आटा - डेढ़ दिन तक पति को आर्थिक हानि हो रही हो और कोई तनावपूर्ण स्थिति हो तो हरे तेज पर पत्नियां पति के ऊपर से पानी वाला नारियल 21 बार वारें। सिर को लेकर मंदिर में जाएं और आग में जला दें। ऐसा 5 शनिवार तक करें, परेशानियों से राहत मिलेगी।
हरियाली तीज विशेष दान - इस दिन किसी निराश्रित और विकलांग व्यक्ति को उड़द की दाल, काला कपड़ा, काले तिल और काले चने का दान करें। ऐसा माना जाता है कि इससे शनिदेव का अशुभ प्रभाव कम हो जाता है।
12 अगस्त को परमा एकादशी, जानें पूजन के शुभ मुहूर्त और पारण समय
11 Aug, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार अधिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी शनिवार, 12 अगस्त को मनाई जा रही है। इस बार एकादशी तिथि की शुरुआत 11 अगस्त से होगी तथा इसका पारण 13 अगस्त को किया जाएगा।
वैसे तो हर एक वर्ष में 24 एकादशियां पड़ती हैं। लेकिन जब अधिक मास या मलमास आता है, तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार अधिक मास या मलमास को जोड़कर उस वर्ष में 26 एकादशियां होती हैं। अधिक मास में 2 एकादशियां होती हैं, जो पद्मिनी एकादशी (शुक्ल पक्ष) और परमा/पुरुषोत्तमी या कमला एकादशी (कृष्ण पक्ष) के नाम से जानी जाती है। अधिक मास के कृष्ण पक्ष में जो एकादशी आती है, वह परमा, पुरुषोत्तमी या कमला एकादशी कहलाती है। कहीं-कहीं इसे पद्मा एकादशी के नाम से भी बोला जाता हैं।
12 अगस्त 2023, शनिवार : परम एकादशी के शुभ मुहूर्त-
श्रावण कृष्ण एकादशी का प्रारंभ- 11 अगस्त 2023, शुक्रवार को 05.06 ए एम से
श्रावण कृष्ण एकादशी का समापन- 12 अगस्त 2023, शनिवार को 06.31 ए एम पर।
परमा एकादशी व्रत पारण (व्रत तोड़ने का) का समय- 13 अगस्त को 05.49 ए एम से 08.19 ए एम पर।
पारण के दिन द्वादशी तिथि की समाप्ति- 08.19 ए एम पर।
योग- हर्षण
खास मुहूर्त एवं चौघड़िया
ब्रह्म मुहूर्त- 04.23 ए एम से 05.05 ए एम
प्रातः सन्ध्या- 04.44 ए एम से 05.48 ए एम
अभिजित मुहूर्त- 11.59 ए एम से 12.53 पी एम
विजय मुहूर्त- 02.39 पी एम से 03.32 पी एम
गोधूलि मुहूर्त- 07.04 पी एम से 07.25 पी एम
सायाह्न सन्ध्या- 07.04 पी एम से 08.08 पी एम
अमृत काल- 09.26 पी एम से 11.12 पी एम
निशिता मुहूर्त- 13 अगस्त 12.05 ए एम से 13 अगस्त 12.48 ए एम तक।
12 अगस्त, शनिवार : दिन का चौघड़िया
शुभ- 07.28 ए एम से 09.07 ए एम
रोग- 09.07 ए एम से 10.47 ए एम
चर- 12.26 पी एम से 02.05 पी एम
लाभ- 02.05 पी एम से 03.45 पी एमवार वेला
अमृत- 03.45 पी एम से 05.24 पी एम
रात्रि का चौघड़िया
लाभ- 07.04 पी एम से 08.24 पी एमकाल रात्रि
शुभ- 09.45 पी एम से 11.06 पी एम
अमृत- 11.06 पी एम से 13 अगस्त को 12.26 ए एम तक।
चर- 12.26 ए एम से 13 अगस्त 01.47 ए एम तक।
लाभ- 04.28 ए एम से 13 अगस्त को 05.49 ए एम तक।
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चाणक्य विचार: पिता और पुत्र के बीच कैसा हो संबंध
11 Aug, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
आचार्य चाणक्य को भारत के महान ज्ञानियों और विद्वानों में से एक माना गया हैं जिनकी नीतियां देश ही नहीं बल्कि दुनियाभर में प्रसिद्ध हैं जिसे चाणक्य नीति के नाम से जाना जाता हैं चाणक्य ने अपने जीवन के अनुभवों को नीतिशास्त्र में पिरोया हैं।
जिसका अनुसरण अगर कोई मनुष्य कर लेता हैं तो उसका पूरा जीवन सरल और सफल हो जाएगा।
आचार्य चाणक्य ने मानव जीवन से जुड़े हर पहलु पर अपनी नीतियों का निर्माण किया हैं चाणक्य ने अपनी नीतियों के द्वारा पिता और पुत्र के संबंधों के बारे में भी बहुत कुछ कहा हैं ऐसे में आज हम आपको आचार्य चाणक्य नीति अनुसार बताने जा रहे हैं कि पिता और पुत्र के बीच संबंध कैसे होने चाहिए। जिससे पुत्र का भविष्य उज्जवल बना रहे।
चाणक्य अनुसार ऐसा हो पिता पुत्र का संबंध-
आचार्य चाणक्य ने अपनी एक नीति के माध्यम से बताया हैं कि व्यक्ति को अपने पुत्र के साथ समय समय पर कैसा व्यवहार करना चाहिए। अगर पुत्र की आयु पांच वर्ष हैं या उससे कम हैं तो उसे भरपूर प्रेम देना चाहिए और कटु व्यवहार व बातों को करने से बचना चाहिए। इस दौरान आपका व्यवहार बहुत मधुर होना चाहिए।
इसके बाद 10 वर्ष तक पुत्र का तारण यानी देखभाल करना चाहिए। जब पुत्र की आयु 16 वर्ष की हो जाए तब उसके साथ मित्र के समान व्यवहार करना चाहिए और जीवन की सभी महत्वपूर्ण बातों को शेयर करना शुरु कर देना चाहिए। ऐसा करने से पुत्र का भविष्य अच्छा होता हैं और उसके सभी सपने पूरे हो सकते हैं।
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (11 अगस्त 2023)
11 Aug, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- व्यापार में प्रगति होगी, यात्रा सुख, व्यय अधिक होगा, व्यर्थ का विरोध होता रहेगा।
वृष राशि :- कलह, अभिष्ट सिद्ध, धन लाभ, चिन्ता, शारीरिक सुख, मांगलिक कार्य होंगे।
मिथुन राशि :- भय, व्यापार लाभ, सामाजिक कार्य में व्यवधान से परेशानी बढ़ेगी।
कर्क राशि :- विद्या बाधा, व्यापार मध्यम, चिन्ता तथा धार्मिक कार्य में विरोध अवश्य होगा।
सिंह राशि :- स्त्री-संतान सुख, यात्रा बाधा विवाद, आर्थिक सुधार होगा, प्रतिष्ठा अवश्य बढ़ेगी।
कन्या राशि :- भूमि लाभ, प्रवास कष्ट, व्यापार बढ़ेगा, शुभ समाचार प्राप्ति से प्रसन्नता होगी।
तुला राशि :- कारोबार मध्यम, सफलता प्राप्ति, स्त्री कष्ट, धन नाश होवे, खर्च से परेशानी होगी।
वृश्चिक राशि :- थोड़ा लाभ, खेती चिन्ता, उलझन, शिक्षा की स्थित सामान्य, लाभदायक बनेंगी।
धनु राशि :- घरेलु सुख, हानि, उन्नत खेती के योग मध्यम, कुछ अच्छे कार्य होंगे, कार्य पर ध्यान अवश्य दें।
मकर राशि :- हर्ष, भूमि लाभ, यश, कारोबार बढ़ेगा, करोबार में लाभ व्यय बढ़ा चढ़ा अवश्य रहेगा।
कुंभ राशि :- भय, हानि, स्त्री सुख, कार्य सिद्धी, जमीन-जायजाद के कार्य में सफलता अवश्य ही मिलेगी।
मीन राशि :- विद्या बाधा, विवाद, चोरों से भय, पारिवारिक लोगों से लाभ व सफलता मिलेगी।
हृदय रेखा छोटी सा फिर हल्की होना अच्छा नहीं
10 Aug, 2023 07:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
विवाह के लिए वर-वधू का योग देखने में हस्तरेखा का बहुत बड़ा योगदान होता है। किसी भी विवाह का भविष्य वर और कन्या की हथेली पर उपस्थित विभिन्न रेखाओं, पर्वतों और चिह्नों की स्थिति पर निर्भर करता है। कुछ ऐसी रेखाओं के बारे में जान लें जो विवाह के मामले में अच्छी साबित नहीं होतीं।
हृदय रेखा
यदि आपकी हृदय रेखा छोटी सा फिर हल्की है तो आपके लिए वैवाहिक संयोग अच्छे नहीं हैं। ऐसे में विवाह होने के बाद भी आपके संबंधों में विच्छेद हो सकता है।
मंगल पर्वत
यदि आपका मंगल पर्वत जरूरत से ज्यादा विकसित हो या फिर मंगल पर दोषपूर्ण चिह्न हो तो ऐसे में विवाह करना आपके लिए सही नहीं होगा।
शुक्र पर्वत हों कम विकसित
शुक्र पर्वत कम विकसित होने पर वैवाहिक जीवन में शारीरिक संतुष्टि नहीं प्राप्त होती। चंद्र पर्वत और बृहस्पति के कम विकसित होने पर भी ऐसा ही होता है।
हृदय रेखा पर काले चिह्न अशुभ
यदि आपकी हृदय रेखा पर किसी प्रकार के काले चिह्न शुभ नहीं है। मस्तिष्क रेखा और जीवन रेखा में जरूरत से ज्यादा दूरी होना सही नहीं है। हाथ का निचला क्षेत्र अत्यधिक विकसित होना अच्छा नहीं माना जाता। ये सभी बातें विवाह पश्चात शारीरिक अनुकूलता के लिए सही नहीं है। ये सभी विकार असंतुष्ट यौन संबंधों को दर्शाते हैं।
संतान सुख नहीं मिल पाता इनको
अगर आपकी हृदय रेखा छोटी है और शुक्र व गुरु पर्वत के उभार भी कम हैं। विवाह रेखा के ऊपर क्रॉस है। जिस स्थान पर मस्तिष्क रेखा बुध रेखा को काटती है, अगर वहां तारा है तो यह शुभ नहीं है।
ऐसे में हो सकता है तलाक भी
विवाह रेखा अंत में दो भागों में बंट रही हो। शुक्र पर्वत पर जाल या फिर एक-दूसरे को काटती हुई रेखाएं हो तो ये शारीरिक अक्षमता को दर्शाता है। विवाह रेखा को कोई रेखा काटे तो तलाक की आशंका बढ़ जाती है।
भगवान श्रीकृष्ण की हर लीला भक्तों के मन को है लुभाती
10 Aug, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भक्ति की परंपरा में भगवान श्रीकृष्ण सबसे ज्यादा आकर्षित करने वाले भगवान हैं। योगेश्वर रूप में वे जीवन का दर्शन देते हैं तो बाल रूप में उनकी लीलाएं भक्तों के मन को लुभाती है।आज पूरब से लेकर पश्चिम तक हर कोई कान्हा की भक्ति से सराबोर है। चैतन्य महाप्रभु के भक्ति आन्दोलन के समय श्रीकृष्ण का जो महामंत्र प्रसिद्ध हुआ, वह तब से लेकर अब तक लगातार देश दुनिया में गूंज रहा है। आप भी मुरली मनोहर श्रीकृष्ण की कृपा पाने के लिए उनके मंत्र के जाप की शुरुआत कर सकते हैं।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण
कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम
राम राम हरे हरे॥
१५वीं शताब्दी में चैतन्य महाप्रभु के भक्ति आन्दोलन के समय प्रसिद्ध हुए इस मंत्र को वैष्णव लोग महामन्त्र कहते हैं। इस्कान के संस्थापक के श्रील प्रभुपाद जी अनुसार इस महामंत्र का जप उसी प्रकार करना चाहिए जैसे एक शिशु अपनी माता का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए रोता है।
ॐ नमो भगवते श्री गोविन्दाय
भगवान श्रीकृष्ण के इस द्वादशाक्षर (12) मंत्र का जो भी साधक जाप करता है, उसे सुख, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। प्रेम विवाह करने वाले अभिलाषा रखने वाले जातकों के लिए यह रामबाण साबित होता है।
कृं कृष्णाय नमः
यह पावन मंत्र स्वयं भगवान श्रीकृष्ण द्वारा बताया गया है। इसके जप से जीवन से जुड़ी तमाम बाधाएं दूर होती हैं और घर-परिवार में सुख और समृद्धि का वास होता है।
ॐ श्री कृष्णाय शरणं मम्।
जीवन में आई विपदा से उबरने के लिए भगवान श्रीकृष्ण का यह बहुत ही सरल और प्रभावी मंत्र है। इस महामंत्र का जाप करने से भगवान श्रीकृष्ण बिल्कुल उसी तरह मदद को दौड़े आते हैं जिस तरह उन्होंने द्रौपदी की मदद की थी।
आदौ देवकी देव गर्भजननं, गोपी गृहे वद्र्धनम्।
माया पूज निकासु ताप हरणं गौवद्र्धनोधरणम्।।
कंसच्छेदनं कौरवादिहननं, कुंतीसुपाजालनम्।
एतद् श्रीमद्भागवतम् पुराण कथितं श्रीकृष्ण लीलामृतम्।।
अच्युतं केशवं रामनारायणं कृष्ण:दामोदरं वासुदेवं हरे।
श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभं जानकी नायकं रामचन्द्रं भजे।।
श्रद्धा और विश्वास के इस मंत्र का जाप करने से न सिर्फ तमाम संकटों से मुक्ति मिलती है, बल्कि सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। सुख, समृद्धि और शुभता बढ़ाने में यह महामंत्र काफी कारगर साबित होता है।
अधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरम् ।
हृदयं मधुरं गमनं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ।। 1 ।।
वचनं मधुरं चरितं मधुरं वसनं मधुरं वलितं मधुरम्
चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ।। 2 ।।
वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरः पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ ।
नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ।। 3 ।।
गीतं मधुरं पीतं मधुरं भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरम् ।
रूपं मधुरं तिलकं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ।। 4 ।।
करणं मधुरं तरणं मधुरं हरणं मधुरं रमणं मधुरम् ।
वमितं मधुरं शमितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ।। 5 ।।
गुञ्जा मधुरा माला मधुरा यमुना मधुरा वीची मधुरा ।
सलिलं मधुरं कमलं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ।। 6 ।।
गोपी मधुरा लीला मधुरा युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरम् ।
दृष्टं मधुरं शिष्टं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ।। 7 ।।
गोपा मधुरा गावो मधुरा यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा ।
दलितं मधुरं फलितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ।। 8 ।।
कन्हैया की स्तुति करने के लिए तमाम मंत्र हैं लेकिन यह मंत्र उनकी मधुर छवि का दर्शन कराती है। इस मंत्र की स्तुति में कान्हा की अत्यंत मनमोहक छवि उभर कर सामने आती है। साथ ही साथ योगेश्वर श्रीकृष्ण के सर्वव्यापी और विश्व के पालनकर्ता होने का भी भान होता है।
सावन माह में भगवान शिव की अराधना करें
10 Aug, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
श्रावण माह में भगवान शिव की अराधना करें । इस माह में सावन सोमवार का विशेष महत्व है। वार प्रवृत्ति के अनुसार सोमवार भी हिमांषु अर्थात चन्द्रमा का ही दिन है। स्थूल रूप में अभिलक्षणा विधि से भी यदि देखा जाए तो चन्द्रमा की पूजा भी स्वयं भगवान शिव को स्वतः ही प्राप्त हो जाती है क्योंकि चन्द्रमा का निवास भी भुजंग भूषण भगवान शिव का सिर ही है।
रौद्र रूप धारी देवाधिदेव महादेव भस्माच्छादित देह वाले भूतभावन भगवान शिव जो तप-जप तथा पूजा आदि से प्रसन्न होकर भस्मासुर को ऐसा वरदान दे सकते हैं कि वह उन्हीं के लिए प्राणघातक बन गया, वह प्रसन्न होकर किसको क्या नहीं दे सकते हैं।
समुद्र से निकला हलाहल पता नहीं कब का शरीरधारियों को जलाकर भस्म कर देता किन्तु दया निधान शिव ने उस अति उग्र विष को अपने कण्ठ में धारण कर समस्त जीव समुदाय की रक्षा की। उग्र आतप वाले अत्यंत भयंकर विष को अपने कण्ठ में धारण करके समस्त जगत की रक्षा के लिए उस विष को लेकर हिमाच्छादित हिमालय की पर्वत श्रृंखला में अपने निवास स्थान कैलाश को चले गए।
हलाहल विष से संयुक्त साक्षात मृत्यु स्वरूप भगवान शिव यदि समस्त जगत को जीवन प्रदान कर सकते हैं। यहाँ तक कि अपने जीवन तक को दाँव पर लगा सकते हैं तो उनके लिए और क्या अदेय ही रह जाता है? सांसारिक प्राणियों को इस विष का जरा भी आतप न पहुँचे इसको ध्यान में रखते हुए वे स्वयं बर्फीली चोटियों पर निवास करते हैं। विष की उग्रता को कम करने के लिए साथ में अन्य उपकारार्थ अपने सिर पर शीतल अमृतमयी जल किन्तु उग्रधारा वाली नदी गंगा को धारण कर रखा है।
उस विष की उग्रता को कम करने के लिए अत्यंत ठंडी तासीर वाले हिमांशु अर्थात चन्द्रमा को धारण कर रखा है। और श्रावण मास आते-आते प्रचण्ड रश्मि-पुंज युक्त सूर्य ( वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़ में किरणें उग्र आतपयुक्त होती हैं।) को भी अपने आगोश में शीतलता प्रदान करने लगते हैं। भगवान सूर्य और शिव की एकात्मकता का बहुत ही अच्छा निरूपण शिव पुराण की वायवीय संहिता में किया गया है। यथा-
दिवाकरो महेशस्यमूर्तिर्दीप्त सुमण्डलः।
निर्गुणो गुणसंकीर्णस्तथैव गुणकेवलः।
अविकारात्मकष्चाद्य एकः सामान्यविक्रियः।
असाधारणकर्मा च सृष्टिस्थितिलयक्रमात्। एवं त्रिधा चतुर्द्धा च विभक्तः पंचधा पुनः।
चतुर्थावरणे षम्भोः पूजिताष्चनुगैः सह। शिवप्रियः शिवासक्तः शिवपादार्चने रतः।
सत्कृत्य शिवयोराज्ञां स मे दिषतु मंगलम्।
अर्थात् भगवान सूर्य महेश्वर की मूर्ति हैं, उनका सुन्दर मण्डल दीप्तिमान है, वे निर्गुण होते हुए भी कल्याण मय गुणों से युक्त हैं, केवल सुणरूप हैं, निर्विकार, सबके आदि कारण और एकमात्र (अद्वितीय) हैं।
यह सामान्य जगत उन्हीं की सृष्टि है, सृष्टि, पालन और संहार के क्रम से उनके कर्म असाधारण हैं, इस तरह वे तीन, चार और पाँच रूपों में विभक्त हैं, भगवान शिव के चौथे आवरण में अनुचरों सहित उनकी पूजा हुई है, वे शिव के प्रिय, शिव में ही आशक्त तथा शिव के चरणारविन्दों की अर्चना में तत्पर हैं, ऐसे सूर्यदेव शिवा और शिव की आज्ञा का सत्कार करके मुझे मंगल प्रदान करें।
शिव पूजन से नवग्रहों को करें शांत
10 Aug, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सावन में शिव पूजन से नवग्रहों की शांति की जा सकती है। शिव ही सृष्टि के नियंत्रक हैं। उनकी उपासना से हर चीज को नियंत्रित किया जा सकता है। किसी भी ग्रह नक्षत्र को आसानी से शांत भी किया जा सकता है। सावन में थोड़े से प्रयास से किसी भी ग्रह की समस्या को आसानी से दूर किया जा सकता है।
सूर्य को कैसे करें शांत
इसके लिए नित्य प्रातः जल में गुड़ मिलाकर शिवलिंग पर अर्पित करें। शिवलिंग पर गुड़हल का पुष्प अर्पित करे। ॐ आदित्याय नमः का जप करें। सावन के किसी भी रविवार को करें।
चंद्र को कैसे करें शांत?
चंद्र को शांत करने के लिए शिवलिंग पर पंचामृत अर्पित करें। इसके बाद सफेद फूल भी अर्पित करें। ॐ सोम सोमाय नमः का जप करें। यह सावन में किसी भी दिन करें।
मंगल को कैसे करें शांत?
मंगल को शांत करने के लिए शिवलिंग पर शहद और जल अर्पित करें। लाल पुष्प भी अर्पित करें। ॐ अं अंगारकाय नमः का जप करें। शिव जी की कपूर से आरती करें। सावन में किसी भी मंगलवार को करें।
बुध को कैसे करें शांत?
सावन पर बुध को शांत करने के लिए शिव लिंग पर बेल पत्र अर्पित करें। साथ ही सुगन्धित जलधारा भी अर्पित करें। ॐ बुं बुधाय नमः का जप करें। सावन में किसी भी बुधवार को करें।
बृहस्पति को कैसे करें शांत?
बृहस्पति को शांत करने के लिए शिवलिंग पर जल अर्पित करें। वेदी पर हल्दी लगाएं ॐ बृं बृहस्पतये नमः का जप करें। पीली मिठाई का भोग भी लगाएं। सावन में किसी भी गुरुवार को करें।
शुक्र को कैसे करें शांत?
सावन पर शुक्र को शांत करने के लिए शिवलिंग पर जरा सा दूध और जल अर्पित करें। सफ़ेद सुगन्धित फूल अर्पित करें। ॐ शुं शुक्राय नमः का जप करें। सावन में किसी भी शुक्रवार को करें।
शनि को कैसे करें शांत?
शनि को शांत करने के लिए शिवलिंग पर गन्ने का रस अर्पित करें। इसके साथ ही नीले फूल अर्पित करें। ॐ शं शनैश्चराय नमः का जप करें। शिव जी के मंदिर में घी का दीपक जलाएं1 सावन में किसी शनिवार को करें।
राहु केतु को शांत करने के उपाय
राहु केतु को शांत करने के लिए सावन के किसी भी दिन शिवलिंग पर जल की धारा अर्पित करें। साथ ही भांग धतूरा अर्पित करें। ॐ रां राहवे नमः तथा ॐ कें केतवे नमः का जप करें। शिव जी के मंदिर में ध्वजा अर्पित करें। सावन में किसी भी बुधवार को करें। शिव की पूजा में कई फूल वर्जित होते हैं और कुछ फूल उन्हें बेहद प्रिय हैं। इन फूलों की दिनों के हिसाब से भी उपयोगिता होती है। वर्जित हैं ये फूल शिव पूजन में शिव जो को कनेर और कमल के अलावा लाल रंग के फूल नहीं अर्पित किए जाते हैं। इसके साथ ही भोलेनाथ पर केतकी और केवड़े के फूल चढ़ाने का भी निषेध किया गया है। शिव जी को तुलसी भी नहीं चढ़ाते हैं। उन्हें अकौड़े, बेलपत्र, धतूरे, भांग और विष्णुकांता चढ़ाने का महत्व है।
शनिवार को चढ़ायें ये फूल
इस बार सावन का पहला शनिवार पड़ेगा इस दिन शिव जी की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन शिव जी की पूजा में नीले रंग का फूल इस्तेमाल करना उत्तम रहता है। इसलिए अगर आप शनिवार को शिव की पूजा में विष्णुकांता का फूल प्रयोग करेंगे तो शिवजी अवश्य प्रसन्न होंगे।
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (10 अगस्त 2023)
10 Aug, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- स्वभाव से पारिवारिक सफलता मिल सकती है, व्यवसाय में उन्नति होगी।
वृष राशि :- कार्यों में सफलता मिलेगी, मान-सम्मान की प्राप्ति होगी, शत्रु कमजोर रहेंगे।
मिथुन राशि :- सप्ताह उत्तम फलकारक है, अधिकारियों का पूर्ण सहयोग व समर्थन प्राप्त होगा।
कर्क राशि :- नौकरी में व्यवधान होगा, व्यवसाय की स्थिति ठीक नहीं रहेगी, धैर्यपूर्वक निर्णय लें।
सिंह राशि :- आप आनंद का अनुभव करेंगे, केतु गृह पीड़ाकारक है, आपसी मतभेद से बचकर चलें।
कन्या राशि :- मनोरंजन से अतिहर्ष होगा, व्यवसाय में लाभ होगा, रुके कार्य अवश्य ही बनेंगे।
तुला राशि :- पारिवारिक उत्तरदायित्व की वृद्धि होगी, आमोद-प्रमोद में विशेष ध्यान देंगे।
वृश्चिक राशि :- मानसिक तनाव आकस्मिक बढ़ेगा, स्वजनों से सहानुभूति अवश्य ही बढ़ेगी।
धनु राशि :- व्यवसाय की उन्नति से आर्थिक स्थिति में विशेष सुधार होगा, समय का ध्यान रखें।
मकर राशि :- विलास सामग्री का संचय होगा, अधिकारी वर्ग की कृपा का लाभ मिलेगा।
कुंभ राशि :- इष्ट मित्रों से अच्छा सहयोग मिलेगा, उन्नति एवं लाभ के योग अवश्य ही बनेंगे ध्यान दें।
मीन राशि :- गृह कलह से मनोवृत्ति, शरीर पीड़ा से परेशानी अवश्य बन जायेंगी।
आखिर क्यों कलियुग को दिया गया है ये नाम...?
9 Aug, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू ब्रह्मांड विज्ञान के विशाल टेपेस्ट्री में, युगों की अवधारणा एक गहरा महत्व रखती है। ये युग चक्रीय युग हैं जो मानव सभ्यता के विभिन्न चरणों की विशेषता हैं। युगों में, कलियुग, जिसे अंधेरे के युग के रूप में भी जाना जाता है, चक्र में अंतिम और सबसे अंधेरे अध्याय के रूप में खड़ा है।
यह नैतिक गिरावट, आध्यात्मिक गिरावट और सामाजिक अराजकता का समय है।
युगों की अवधारणा को समझना
हिंदू ब्रह्मांड विज्ञान में चार युग
प्राचीन हिंदू शास्त्रों के अनुसार, युग में चार अलग-अलग युग शामिल हैं - सत्य युग, त्रेता युग, द्वापर युग और कलियुग। प्रत्येक युग की अपनी अनूठी विशेषताएं और गुण हैं। सत्य युग स्वर्ण युग है, जो धार्मिकता और सच्चाई की विशेषता है, जबकि त्रेता युग पुण्य में गिरावट का प्रतिनिधित्व करता है। द्वापर युग एक और गिरावट का प्रतीक है, और अंत में, कलियुग पतन के शिखर का प्रतीक है।
कलियुग का महत्व
कलियुग हिंदू दर्शन में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है क्योंकि इसे मानवता के लिए तीव्र चुनौतियों और बाधाओं का समय माना जाता है। यह वह उम्र है जब नकारात्मक गुण और विकार सबसे अधिक प्रचलित हैं, और आध्यात्मिक मूल्य अपने निम्नतम स्तर पर हैं। हालांकि, अंधेरे के बीच, यह कहा जाता है कि विकास और आत्म-खोज के अवसर हैं।
कलियुग की विशेषताएं
नैतिक और नैतिक गिरावट
कलियुग में, नैतिक और नैतिक मूल्यों का क्षरण होता है, जिससे एक ऐसा समाज बनता है जहां बेईमानी, लालच और स्वार्थ प्रबल होता है। लोग अपनी आध्यात्मिक जड़ों से डिस्कनेक्ट हो जाते हैं, और भौतिक गतिविधियाँ जीवन का प्राथमिक केंद्र बन जाती हैं।
बौद्धिक और आध्यात्मिक गिरावट
काली की उम्र बौद्धिक गतिविधियों और आध्यात्मिक समझ में गिरावट देखी जाती है। बुद्धि और ज्ञान को कम महत्व दिया जाता है, और लोग गहरी सच्चाइयों की तलाश करने के बजाय तत्काल संतुष्टि में अधिक रुचि रखते हैं।
सामाजिक और पर्यावरणीय अराजकता
कलियुग सामाजिक अशांति, संघर्ष और अन्याय की विशेषता है। प्राकृतिक संसाधनों का दोहन और पर्यावरणीय क्षरण व्यापक हो जाता है, जिससे पारिस्थितिक असंतुलन होता है।
कलियुग से संबंधित भविष्यवाणियां और मिथक
कलियुग की अवधि
हिंदू शास्त्रों के अनुसार, कलियुग 432,000 वर्षों तक रहता है, और यह माना जाता है कि इस अवधि के दौरान, मानव सभ्यता धीरे-धीरे गिरावट से गुजरती है।
कलियुग में दुनिया का अंत
ऐसी भविष्यवाणियां हैं जो बताती हैं कि कलियुग के अंत में दुनिया एक महत्वपूर्ण परिवर्तन से गुजरेगी। यह माना जाता है कि नकारात्मक शक्तियों को अपार शक्ति प्राप्त होगी, जिससे एक बड़ी उथल-पुथल होगी।
कलियुग में दिव्य अवतारों की भूमिका
हिंदू पौराणिक कथाओं में, यह माना जाता है कि दिव्य अवतार, जिन्हें अवतार के रूप में जाना जाता है, कलियुग के दौरान संतुलन को बहाल करने और मानवता को धार्मिकता के मार्ग की ओर मार्गदर्शन करने के लिए पृथ्वी पर उतरते हैं।
कलियुग पर दार्शनिक दृष्टिकोण
विकास के लिए सबक और अवसर
कलियुग की चुनौतियों के बावजूद, इसे व्यक्तियों के लिए अपनी छाया का सामना करने और आध्यात्मिक रूप से बढ़ने के अवसर के रूप में देखा जाता है। प्रतिकूलता व्यक्तिगत परिवर्तन और आत्म-प्राप्ति के लिए एक शक्तिशाली उत्प्रेरक हो सकती है।
कलियुग में धर्म का महत्व
कलियुग में धर्म, या धर्मी कर्तव्य की अवधारणा को अत्यधिक महत्व प्राप्त है। अपने धर्म का पालन करके, व्यक्ति उद्देश्य की भावना पा सकते हैं और युग की जटिलताओं को नेविगेट कर सकते हैं।
आधुनिक समय में कलियुग
कलियुग के सामाजिक प्रतिबिंब
समकालीन समय में, समाज के कुछ पहलुओं में कलियुग की गूँज हैं। भ्रष्टाचार, नैतिक अस्पष्टता, और भौतिक धन की खोज स्पष्ट है, जो इस प्राचीन अवधारणा की प्रासंगिकता को उजागर करती है।
प्रौद्योगिकी और कलियुग
कलियुग में प्रौद्योगिकी में प्रगति के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभाव हैं। जबकि प्रौद्योगिकी लोगों को जोड़ सकती है और जीवन में सुधार कर सकती है, यह आध्यात्मिक मूल्यों से व्याकुलता और अलगाव को भी बनाए रख सकती है।
कलियुग की चुनौतियों का सामना करना
व्यक्ति आंतरिक शक्ति और लचीलापन को बढ़ावा देकर कलियुग की चुनौतियों का सामना कर सकते हैं। ध्यान, योग और आत्म-प्रतिबिंब जैसे अभ्यास अराजकता के बीच सांत्वना और स्पष्टता प्रदान कर सकते हैं।
कलियुग में आध्यात्मिक मार्ग
साधक और चिकित्सक
कलियुग सच्चे साधकों और आध्यात्मिक साधकों का आह्वान करता है जो उदाहरण के साथ नेतृत्व कर सकते हैं और दूसरों को उच्च मूल्यों और सिद्धांतों को अपनाने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।
ध्यान और आत्म-साक्षात्कार
ध्यान और आत्मनिरीक्षण आंतरिक शांति पाने और कलियुग की उथल-पुथल को पार करने की मांग करने वाले व्यक्तियों के लिए आवश्यक उपकरण बन जाते हैं।
करुणा और दया का अभ्यास
प्रचलित अंधेरे के बीच, करुणा और दया के कार्य आशा की किरण के रूप में चमकते हैं, एक बेहतर दुनिया के लिए मार्ग को रोशन करते हैं।
कलियुग के साथ सद्भाव में रहना
भौतिकवाद और उपभोक्तावाद को नेविगेट करना
कलियुग के साथ सद्भाव में रहने में भौतिक संपत्ति और उपभोक्तावाद के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाना शामिल है। भौतिक इच्छाओं के प्रति लगाव को कम करने से अधिक संतोष हो सकता है।
सादगी और संतुलन को फिर से खोजना
सादगी और माइंडफुलनेस को गले लगाने से व्यक्तियों को अपने आंतरिक स्वयं के साथ फिर से जुड़ने और जीवन के सरल सुखों में खुशी पाने में मदद मिल सकती है।
समाज के लिए सकारात्मक योगदान
सेवा के कार्यों में सक्रिय रूप से संलग्न होकर और दूसरों के उत्थान से, व्यक्ति अधिक सामंजस्यपूर्ण और दयालु समाज बनाने में योगदान कर सकते हैं। कलियुग, अंधेरे का युग, मानवता को गहन चुनौतियों और परीक्षणों के साथ प्रस्तुत करता है। फिर भी, इस युग के भीतर, आध्यात्मिक विकास, आत्म-खोज और उच्च सत्य की प्राप्ति का अवसर है। ज्ञान, करुणा और लचीलेपन के साथ कलियुग की जटिलताओं को नेविगेट करके, व्यक्ति प्रकाश के प्रकाशस्तंभ के रूप में उभर सकते हैं, सकारात्मकता और आशा फैला सकते हैं।
जानिए हिन्दू धर्म से जुड़े चारों युगों का महत्त्व
9 Aug, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
"सतयुग" की अवधारणा हिंदू धर्म के समृद्ध टेपेस्ट्री में एक विशेष स्थान रखती है। यह समृद्धि, धार्मिकता और आध्यात्मिक विकास की अवधि है, जिसे अक्सर पूर्णता और दिव्य सद्भाव के युग के रूप में वर्णित किया जाता है।
इस लेख में, हम हिंदू धर्म में सतयुग के महत्व और विरासत का पता लगाएंगे, इसकी विशेषताओं, ऐतिहासिक संदर्भों और हिंदू समुदाय पर स्थायी प्रभाव पर प्रकाश डालेंगे।
1. सतयुग को क्या परिभाषित करता है?
हिंदू धर्म में, सतयुग, जिसे "सत्य युग" के रूप में जाना जाता है, चार युगों या लौकिक युगों में से पहला है। इसे सबसे सदाचारी और आध्यात्मिक रूप से उन्नत युग माना जाता है, जो सत्य, करुणा और बुराई या भ्रष्टता की अनुपस्थिति की विशेषता है। सत्य युग को मानवता और देवत्व के बीच पूर्ण संरेखण का समय माना जाता है, जहां लोग प्रकृति और एक-दूसरे के साथ सद्भाव में रहते थे।
2. बुद्धि का युग - त्रेता युग
सत्य युग के बाद, त्रेता युग दूसरे ब्रह्मांडीय युग का प्रतिनिधित्व करता है। यद्यपि आध्यात्मिक रूप से सतयुग की तरह शुद्ध नहीं है, फिर भी त्रेता युग धार्मिकता और सदाचार का प्रतीक है। यह अक्सर बुद्धिमान और न्यायपूर्ण राजाओं के शासन और संगठित समाजों और सभ्यताओं के आगमन से जुड़ा होता है।
3. द्वापर युग का द्वैत
द्वापर युग, तीसरा ब्रह्मांडीय युग, मानव मूल्यों और नैतिकता में बदलाव द्वारा चिह्नित है। जबकि अभी भी धार्मिकता की उपस्थिति है, भौतिकवाद और अहंकार में भी वृद्धि हुई है। इस युग के दौरान मानव स्वभाव का द्वंद्व अधिक स्पष्ट हो जाता है।
4. कलियुग: अंधेरे का युग
अंतिम और वर्तमान ब्रह्मांडीय युग कलियुग है, अंधकार का युग। इसे आध्यात्मिक पतन, नैतिक गिरावट और सामाजिक संघर्ष का युग माना जाता है। अपनी चुनौतियों के बावजूद, कलियुग व्यक्तियों को आध्यात्मिक रूप से विकसित होने और अराजकता के बीच परमात्मा की तलाश करके मुक्ति प्राप्त करने का अवसर प्रदान करता है।
5. युगों के चक्र को समझना
युग एक चक्रीय पैटर्न बनाते हैं, जिसमें प्रत्येक ब्रह्मांडीय युग हजारों वर्षों तक रहता है। कलियुग के अपने पतन पर पहुंचने के बाद, सत्य युग के साथ चक्र नए सिरे से शुरू होता है, जो हिंदू दर्शन में समय और अस्तित्व की शाश्वत प्रकृति को दर्शाता है।
6. ऐतिहासिक संदर्भ और प्रतीकवाद
सतयुग की अवधारणा हिंदू धर्म तक ही सीमित नहीं है, बल्कि दुनिया भर की विभिन्न संस्कृतियों और धर्मों में पाई जाती है। एक आदर्श अतीत या एक यूटोपियन समाज का विचार एक बेहतर दुनिया के लिए मानवता की जन्मजात लालसा को दर्शाता है।
7. हिंदू शास्त्रों में सतयुग
हिंदू धर्मग्रंथों, जैसे वेदों, पुराणों और रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों में ऐसे आख्यान और भविष्यवाणियां हैं जो सतयुग का उल्लेख करती हैं। ये पवित्र ग्रंथ हिंदुओं के लिए आध्यात्मिक मार्गदर्शन और प्रेरणा के स्रोत के रूप में काम करते हैं, जो सत्य युग के दौरान बनाए गए मूल्यों को मजबूत करते हैं।
8. भीतर सतयुग की तलाश
जबकि सतयुग की भौतिक अभिव्यक्ति दूर लग सकती है, हिंदू शिक्षाएं अपने भीतर आध्यात्मिक विकास और धार्मिकता की तलाश करने के महत्व पर जोर देती हैं। आत्म-साक्षात्कार और आंतरिक सद्भाव की ओर यात्रा हिंदू धर्म का एक मौलिक पहलू है।
9. सतयुग की विरासत
सतयुग की विरासत आज भी हिंदू संस्कृति और मूल्यों को आकार दे रही है। इसका प्रभाव विभिन्न धार्मिक प्रथाओं, त्योहारों और धर्म, या धर्मी जीवन पर अत्यधिक जोर देने में देखा जा सकता है।
10. सतयुग की शिक्षाओं को अपनाना
सतयुग के गुणों और शिक्षाओं को अपने जीवन में शामिल करने से अधिक दयालु और सामंजस्यपूर्ण समाज बन सकता है। सत्य, अहिंसा और निस्वार्थता का अभ्यास करके, व्यक्ति मानवता की सामूहिक भलाई में योगदान कर सकते हैं। हिंदू धर्म में सतयुग की अवधारणा मानव क्षमता और आध्यात्मिक विकास की संभावनाओं की एक कालातीत अनुस्मारक बनी हुई है। इसके महत्व और विरासत को समझकर, हम एक अधिक सामंजस्यपूर्ण और दयालु दुनिया बनाने में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्राप्त कर सकते हैं।
ब्रह्म मुहूर्त जीवन पर पड़ सकता है शुभ असर, उठते ही करें यह कार्य
9 Aug, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
दिन के प्रत्येक समय पर हर पल की गणना मुहूर्त शास्त्र में होती है. दिन का हर भाग बांटा गया है. इसी में एक समय सुबह का होता है. जिसे ब्रह्म मुहूर्त के नाम से जाना जाता है. हिंदू धर्म में ब्रह्म मुहूर्त को बहुत ही शुभ और पवित्र माना जाता है.
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस समय पर किए जाने वाले कार्य बेहद प्रभावी रुप से जीवन पर असर डालते हैं. शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति ब्रह्म मुहूर्त में उठता है, वह उर्जा से भरपुर होता है. प्राण वायु का उनमें संचार बहुत अच्छे से बना रहता है.
यह न केवल सेहत के लिए ही नहीं अपिति आपके मानसिक कल्याण हेतु तथा जीवन में यह समय न केवल स्वास्थ्य जीवन में तरक्की के नए रास्ते खुलते रहते हैं. ब्रह्म मुहूर्त में उठने वाला व्यक्ति हमेशा स्वस्थ और ऊर्जावान रहता है. आपने अक्सर अपने घर के बुजुर्गों से सुना होगा कि मनुष्य को हमेशा ब्रह्म मुहूर्त में ही उठना चाहिए. हिंदू धर्म में ब्रह्म मुहूर्त को आध्यात्मिक और मानसिक रूप से सर्वोत्तम माना जाता है, लेकिन कुछ काम ऐसे भी हैं जिन्हें भूलकर भी ब्रह्म मुहूर्त में नहीं करना चाहिए. इस लिए ब्रहम मुहूर्त पर हर कार्य की अपनी महत्ता होती है.
ब्रह्म मुहूर्त में उठने के लाभ और जीवन पर इसका असर
ब्रह्म मुहूर्त का समय संध्या उपासना से वाला व्यक्ति हमेशा स्वस्थ और ऊर्जावान रहता है. ब्रह्म मुहूर्त में उठने वाला व्यक्ति हमेशा स्वस्थ और ऊर्जावान रहता है. ज्योतिषी बताते हैं कि सुबह का समय उर्जाओं से भरपूर होता है. इस समय पर प्रकृति में होने वाले बदलाव जीवन को काफी बदल देने में सक्षम होता है. ब्रह्म मुहूर्त में उठने से सफलता के रास्ते भी खुलने लगते हैं. ज्योतिषी बताते हैं कि सुबह 03:30 से 5:30 बजे तक का समय ब्रह्म मुहूर्त में गिना जाता है. यह दिन का सबसे अच्छा समय होता है और इसमें कुछ काम करना वर्जित होता है.
प्राण वाय का शुद्ध संचार
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो व्यक्ति ब्रह्म मुहूर्त में जागत है उसके जीवन की उर्जा भी जागृत बनी रहती है. इस समय पर शरीर में श्वास की स्थिति शुद्ध मानी जाती है. इस समय शरीर के भीतर की स्थिति अपने सबसे जागृत आवस्था में मानी जाती है. अपने मन में विचारों की स्थिति भी इस समय अधिक उद्वेलित नहीं होती है ऎसे में विचार नियंत्रित होते हैं. उसका असर व्यक्ति के पूरे दिन पर दिखता है. ब्रह्म मुहूर्त में आने वाले सकारात्मक विचारों के कारण व्यक्ति पूरे दिन शुभता से घिरा रहता है.
मंत्रों का ऊच्चारण शुभ
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार किसी भी व्यक्ति को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर मंत्रों का उच्चारण करना शुभता को दर्शाता है. इस समय पर ऊर्जाएं इतनी तीव्रता के साथ काम करती हैं की उसके द्वारा जीवन में मिलने वाले बदलाव स्पष्ट रुप से देखने को मिलते हैं. इस समय पर ऊं का ऊचारण संपूर्ण शरीर को शुभता देता है. तथा मानसिक नकारात्मकता भी समाप्त होती है. मंत्रों की शक्ति इस समय व्यक्ति के बःईतर ग्राह्य होती है.
विवाह में हो रही है देरी तो हरियाली तीज पर करें ये उपाय, जल्द बजेगी शहनाई
9 Aug, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
इस साल 19 अगस्त 2023 को हरियाली तीज है। हर साल यह पर्व सावन माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। इसे अखंड सौभाग्य की प्राप्ति वाला व्रत माना जाता है।
इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की आरोग्यता और सुखी जीवन के लिए निर्जल व्रत रखती हैं। वहीं कुंवारी लड़कियां भी अच्छे वर की कामना के साथ इस व्रत को रखती हैं। इस दिन मां पार्वती और भगवान शिव की विधिपूर्वक पूजा की जाती है। वहीं यदि आपके वैवाहिक जीवन में किसी तरह की समस्या आ रही है या विवाह में देरी हो रही है तो आपको हरियाली तीज व्रत के दिन कुछ उपाय करना चाहिए। चलिए जानते हैं हरियाली तीज के दिन किन उपायों को करने से शीघ्र विवाह के योग बनते हैं...
यदि किसी शादी योग्य कन्या के विवाह में देरी हो रही है तो उसे हरियाली तीज का व्रत जरूर करना चाहीए। मान्यता है कि हरियाली तीज का व्रत करने से जल्द विवाह के योग बनते हैं।
हरियाली तीज व्रत के दिन हरे रंग के वस्त्र धारण करें। केला व केले के पौधे को मंदिर मे लगाएं। साथ ही मां पार्वती और शिव जी के समक्ष शुद्ध घी का दीपक जलाकर कर अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए प्रार्थना करें।
यदि किसी कन्या की शादी में बार-बार बाधाएं आ रही हैं। बात बनते-बनते बिगड़ जाती है तो हरियाली तीज के दिन आप विधि-विधान के साथ माता गौरी की पूजा करें। पूजन के दौरान मां गौरी को लाल चुनरी और श्रृंगार की सामग्री चढ़ाएं। साथ ही जल्द शादी की कामना करें। बहुत जल्द ही आपकी शादी के योग बनेंगे।
शुक्र ग्रह विवाह से संबंधित होता है। ऐसे में हरियाली तीज के दिन शुक्र मंत्र का जप करना फायदेमंद हो सकता है। इस दिन "ॐ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नमः" मंत्र का जाप करें।
यदि आपकी शादी किसी न किसी कारण से बार-बार टल जा रही है तो हरियाली तीज के दिन विष्णु जी को हल्दी का तिलक लगाएं और अपने मस्तक पर भी तिलक लगाकर पूजा करें। इस उपाय से आपके विवाह की सभी बाधाएं दूर होंगी।
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (09 अगस्त 2023)
9 Aug, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- समय हर्ष-उल्लास से बीतेगा, धन का लाभ होगा, अधिकारी वर्ग का समर्थन प्राप्त होगा।
वृष राशि :- इष्ट मित्रों से धोखे की संभावना, सतर्कता से कार्य करें, कार्य में विशेष लाभ होगा।
मिथुन राशि :- सफलता के साधन जुटायेंगे, तनावपूर्ण स्थिति से बचें, कार्यगति मंद रहेगी।
कर्क राशि :- स्थिति में सुधार होगा, स्त्री वर्ग से हर्ष, व्यवसायिक क्षमतायें अनुकूल बनेंगे ध्यान दें।
सिंह राशि :- आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा, मित्रों का सहयोग मिलेगा, कार्य समय पर करें।
कन्या राशि :- धन का व्यर्थ व्यय होगा, दूसरों के कार्यों में हस्ताक्षेप से बचें, तनाव अवश्य बढ़ेगा।
तुला राशि :- कार्यगति अनुकूल होगी, आशानुकूल सफलता से हर्ष होगा, मित्र सहयोग करेंगे।
वृश्चिक राशि :- सामाजिक कार्यों में प्रतिष्ठा, प्रभुत्व वृद्धि होगी, कार्य कुशलता से संतोष होगा।
धनु राशि :- कार्य कुशलता से संतोष होगा, योजना फलीभूत होगी, रुके कार्य अवश्य ही बनेंगे।
मकर राशि :- अधिकारियों के संपर्क से बचें, व्यर्थ तनाव व क्लेश होगा, मन अशांत रहेगा।
कुंभ राशि :- अविश्वास व असमंजस का वातावरण रहेगा, मन को क्लेशयुक्त रहेगा, धैर्य रखें।
मीन राशि :- बिगड़े हुये कार्य बनेंगे, योजनायें फलीभूत होंगी, सफलत के साधन जुटायेंगे।