धर्म एवं ज्योतिष (ऑर्काइव)
अजा एकादशी पर ऐसे करें पूजा, जानें संपूर्ण विधि
2 Sep, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में एकादशी की तिथि को बेहद ही पवित्र और पूजनीय माना गया हैं जो कि जगत के पालनहार भगवान विष्णु की पूजा को समर्पित होती हैं। एकादशी का पावन व्रत हर माह के दोनों पक्षों में किया जाता हैं ऐसे में वर्षभर में कुल 24 एकादशी व्रत रखे जाते हैं इस दिन भगवान विष्णु की विधिवत पूजा और व्रत करने से साधक के जीवन के दुख दूर हो जाते हैं और सुख समृद्धि में वृद्धि होती हैं।
अभी भाद्रपद मास चल रहा है और इस माह पड़ने वाली एकादशी को अजा एकादशी के नाम से जाना जाता हैं जो कि इस बार 10 सितंबर दिन रविवार को मनाई जाएगी। इस दिन विष्णु और लक्ष्मी की पूजा करने से साधक के जीवन में सुख शांति और समृद्धि आती हैं तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा एकादशी की पूजा की विधि बता रहे हैं तो आइए जानते हैं।
अजा एकादशी की पूजा विधि-
अजा एकादशी का व्रत कर रहे जातक को इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर घर की अच्छी तरह से साफ सफाई करनी चाहिए। इसके बाद सभी कार्यों से निवृत्त होकर पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें। इसके बाद पीले रंग के वस्त्र धारण कर। भगवान सूर्यदेव को जल अर्पित करें अब पूजन स्थल पर भगवान विष्णु की पूजा करें।
सबसे पहले एक चौकी पर लक्ष्मी नारायण की प्रतिमा स्थापित करें इसके बाद पीले रंग के फल, पुष्प, धूप और दीपक से भगवान की विधिवत पूजा करें। अजा एकादशी की पूजा में व्रत कथा का पाठ जरूर करें अब विष्णु मंत्र का जाप करें। इसके बाद पूजा के अंत में भगवान की आरती कर भूल चूक के लिए क्षमा मांगे और अपनी प्रार्थना कहें। मान्यता है कि इस विधि से पूजा पाठ करने से जीवन में खुशहाली आती हैं।
इस बार गणेश चतुर्थी पर बन रहे महायोग, जानिए स्थापना और विसर्जन का समय
2 Sep, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में कोई भी शुभ कार्य शुरु करने से पहले प्रभु श्री गणेश की पूजा का विधान है। पौराणिक मान्यता है कि प्रभु श्री गणेश की पूजा करने से सारी विघ्न-बाधाएं दूर हो जाती हैं। वही इस बार गणेश चतुर्थी भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाएगी।
अंग्रेजी महीने के मुताबिक, यह सितंबर माह की 19 तारीख को पड़ रही है। 10 दिन चलने वाले इस पर्व की धूम पूरे भारत में देखने को मिलेगी। इस के चलते भक्त गणपति की निरंतर 10 दिन तक पूरे विधि विधान से पूजा-अर्चना करेंगे। फिर 10 दिनों बाद अनंत चतुर्दशी पर गणेश जी की प्रतिमा का विसर्जन कर उन्हें विदा करेंगे।
गणेश चतुर्थी 2023 स्थापना मुहूर्त:-
गणेश चतुर्थी के दिन बप्पा की स्थापना और इसके पश्चात् उनका विसर्जन दोनों ही शुभ मुहूर्त में ही करना चाहिए. आइये बताते हैं गणेश चतुर्थी पर गौरी पुत्र गणेश जी की प्रतिमा की स्थापना का शुभ मुहूर्त.
भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी तिथि प्रारंभ - सोमवार 18 सितंबर 2023, दोपहर 12:39
भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी तिथि समाप्त - मंगलवार 19 सितंबर 2023, दोपहर 01:43
गणेश चतुर्थी 2023 की महत्वपूर्ण तिथियां:-
गणेश चतुर्थी 2023 आरम्भ- मंगलवार, 19 सितबंर 2023
गणेश चतुर्थी 2023 समाप्त - गुरुवार 28 सितंबर 2023
भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि शुरू - सोमवार 18 सितंबर 2023, दोपहर 12 बजकर 39 मिनट से
भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि समाप्त - मंगलवार 19 सितंबर 2023, दोपहर 01 बजकर 43 मिनट तक
गणेश स्थापना समय - 19 सितंबर 2023, सुबह 11:07 - दोपहर 01:34 तक
गणेश चतुर्थी 2023 पूजा मुहूर्त - 19 सितंबर 2023, सुबह 11:01 से दोपहर 01:28 तक
गणेश चतुर्थी पर बन रहे हैं 2 शुभ संयोग:-
पंचांग के मुताबिक, 19 सितंबर को स्वाति नक्षत्र दोपहर 01 बजकर 48 तक रहेगा। तत्पश्चात, विशाखा नक्षत्र रात तक रहेगा। ऐसे में गणेश चतुर्थी के दिन 2 शुभ योग बनेंगे। इसके अतिरिक्त इस दिन वैधृति योग भी रहेगा जो बेहद ही शुभ माना गया है।
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (02 सितम्बर 2023)
2 Sep, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि - समृद्धि एवं सफलता के योग बनेंगे, अनिष्टता से बचने की चेष्ठा अवश्य ही करें।
वृष राशि - भाग्य का सितारा प्रबल रहे तथा व्यवसायिक क्षमता अनुकूल होगी, मित्र सहयोग करेंगे।
मिथुन राशि - मानसिक उद्विघ्नता से अशांति, अवरोध बढ़ेगा, असमंजस बना रहे, ध्यान रखे।
कर्क राशि - लेन-देन के मामले में हानि होगी, धन फस सकता है, सतर्कता बनाए रखे, लाभ होवेगा।
सिंह राशि - विशेष कार्य स्थिगित रखे, किसी के चंगुल से बचेंगे अधिक उत्सुकता हानिकारक होगी।
कन्या राशि - क्रोध व आवेश से हानि संभव है। मानसिक तनाव तथा बेचैनी अवश्य ही बढ़ेगी।
तुला राशि - सोचे हुये कार्य पूर्ण होंगे, अधिकारियों से समर्थन प्राप्त होगा, विशेष कार्य ध्यान रखे।
वृश्चिक राशि - अनावश्यक वाद-विवाद से बचिये, बिगड़े हुए कार्य बनेंगे, समय व्यवस्था का ध्यान रखे।
धनु राशि - समय अनुकूल नहीं, अधिकारी मित्रों से सर्तक अनावश्यक वाद विवाद से बचकर चले।
मकर राशि - दैनिक समृद्धि के साधन जुटायें, व्यर्थ समय तथा धन नष्ट न करें, ध्यान रखे।
कुंभ राशि - स्त्री वर्ग से हर्ष-उल्लास, समय अनुकूल नहीं, लेन-देन स्थिगित रखे, कार्य समेटे।
मीन राशि - आशानुकूल सफलता से संतोष होगा, कार्यगति में सुधार तथा धन लाभ होगा।
कब से शुरू हो रहा पितृपक्ष
1 Sep, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में साल के 15 दिन पूर्वजों यानी पितरों को समर्पित होते हैं इस दौरान लोग अपने पूर्वजों को याद कर उनका श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करते हैं जिसे पितृपक्ष के नाम से जाना जाता हैं।
मान्यता है कि पितृपक्ष के दिनों में पितर धरती पर आते हैं और अपने वंशजों द्वारा श्राद्ध तर्पण को स्वीाकर कर प्रसन्न होते हैं और उन्हें सुख समृद्धि व वंश वृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
धार्मिक पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से पितृपक्ष का आरंभ हो जाता है और इसका समापन आश्विन मसय की अमावस्या तिथि पर हो जाता हैं। इस दौरान पिंडदान, तर्पण, श्राद्ध कर्म आदि का विधान होता हैं। तो आज हम आपके लिए अपने इस लेख द्वारा लेकर आए हैं पितृपक्ष राद्ध कैलेंडर।
पितृपक्ष कैलेंडर 2023-
29 सितंबर 2023, शुक्रवार: पूर्णिमा श्राद्ध
30 सितंबर 2023, शनिवार: द्वितीया श्राद्ध
01 अक्टूबर 2023, रविवार: तृतीया श्राद्ध
02 अक्टूबर 2023, सोमवार: चतुर्थी श्राद्ध
03 अक्टूबर 2023, मंगलवार: पंचमी श्राद्ध
04 अक्टूबर 2023, बुधवार: षष्ठी श्राद्ध
05 अक्टूबर 2023, गुरुवार: सप्तमी श्राद्ध
06 अक्टूबर 2023, शुक्रवार: अष्टमी श्राद्ध
07 अक्टूबर 2023, शनिवार: नवमी श्राद्ध
08 अक्टूबर 2023, रविवार: दशमी श्राद्ध
09 अक्टूबर 2023, सोमवार: एकादशी श्राद्ध
11 अक्टूबर 2023, बुधवार: द्वादशी श्राद्ध
12 अक्टूबर 2023, गुरुवार: त्रयोदशी श्राद्ध
13 अक्टूबर 2023, शुक्रवार: चतुर्दशी श्राद्ध
14 अक्टूबर 2023, शनिवार: सर्व पितृ अमावस्या
श्राद्ध पक्ष की इन तिथियों में अगर पूर्वजों क निमित्त तर्पण, श्राद्ध कर्म किया जाए तो वे प्रसन्न होकर अपने वंशजों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं। साथ ही ऐसा करने से पितृदोष भी दूर हो जाता हैं।
कब है भाद्रपद मास की कालाष्टमी
1 Sep, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में पर्व त्योहारों की कमी नहीं हैं एक आता है तो दूसरा जाता हैं इन्हीं में से एक कालाष्टमी व्रत है जो कि बेहद ही खास मानी जाती हैं। धार्मिक पंचांग के अनुसार हर माह के कृष्ण पख की अष्टमी तिथि पर कालाष्टमी का व्रत किया जाता हैं जो कि भगवान शिव के रौद्र रूप कालभैरव की पूजा अर्चना को समर्पित होता हैं।
इस दिन पूजा पाठ और व्रत करने से प्रभु का आशीर्वाद प्राप्त होता हैं इस बार भादों की कालाष्टमी 6 सितंबर दिन बुधवार को पड़ रही हैं मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव और भैरव बाबा की पूजा करने से साधक के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं साथ ही मनोकामना की पूर्ति होती हैं तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा भाद्रपद मास की कालाष्टमी व्रत पूजन का शुभ मुहूर्त बता रहे हैं तो आइए जानते हैं।
कालाष्टमी पूजा का शुभ समय-
धार्मिक पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि दोपहर 3 बजकर 37 मिनट से आरंभ हो रही हैं जो कि अगले दिन यानी 7 सितंबर को संध्यकाल में 4 बजकर 14 मिनट पर समाप्त हो जाएगी। ऐसे में कालाष्टमी का व्रत पूजन 6 सितंबर दिन बुधवार को किया जाएगा।
क्योंकि भैरव बाबा की पूजा के लिए निशा काल शुभ माना गया हैं, मान्यता है कि इस दिन पूजा पाठ और व्रत करने से बाबा का आशीर्वाद मिलता हैं और जीवन के दुख दूर हो जाते हैं। कालाष्टमी के दिन पूजा पाठ और व्रत के साथ ही आप शिव चालीसा, शिव स्तोत्र व मंत्र जाप कर सकते हैं ऐसा करने से सुख समृद्धि और आय में वृद्धि होती हैं साथ ही दुख संकट दूर हो जाते हैं।
चाणक्य विचार: कंगाल को भी धनवान बना देगी आज की चाणक्य नीति
1 Sep, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
आचार्य चाणक्य को भारत के महान ज्ञानियों और विद्वानों में से एक माना गया हैं इनकी नीतियां देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है जिसे चाणक्य नीति के नाम से जाना जाता हैं। आचार्य चाणक्य ने अपने जीवन के अनुभवों को नीति शास्त्र में पिरोया हैं जिसका अनुसरण करने वाला मनुष्य असफलताओं से हमेशा दूर रहता हैं।
चाणक्य ने मानव जीवन से जुड़े हर पहलु पर अपनी नीतियों का निर्माण किया हैं। आचार्य चाणक्य ने अपनी नीतियों के जरिए कुछ ऐसे लोगों के बारे में बताया हैं जो अपनी अच्छी आदतों के कारण बहुत जल्द ही धनवान बन जाते हैं तो आज हम इसी विषय पर आपको चाणक्य नीति बता रहे हैं तो पढ़ें आज की चाणक्य नीति।
आज की चाणक्य नीति-
आचार्य चाणक्य की नीति अनुसार जो लोग कड़ी मेहनत करते हैं उन पर सदा माता लक्ष्मी की कृपा बनी रहती हैं। इसके जो मुश्किल वक्त में भी ईमानदारी से अपना काम पूरा करते हैं उनकी मेहनत बेकार नहीं जाती हैं ऐसे लोग कंगाल से बहुत जल्द ही धनवान बन जाते हैं इनके पास धन की कमी नहीं रहती हैं। चाणक्य नीति कहती हैं कि मनुष्य को अपने लक्ष्य के प्रति हमेशा ही एकाग्र रहना चाहिए इससे लक्ष्य प्राप्ति में आसानी हो जाती हैं साथ ही कार्यों में व्यक्ति को सफलता भी मिलती हैं।
व्यक्ति के कर्म ही उसके अच्छे और बुरे वक्त का कारण होते हैं ऐसे में जब मनुष्य का अच्छा वक्त चल रहा हो तो उसे कभी पद पैसा, शक्ति आदि का घमंड नहीं करना चाहिए बुरे वक्त में धैर्य जो लोग धैर्य से काम लेते हैं उन्हें कभी दुख का सामना नहीं करना पड़ता है। चाणक्य नीति अनुसार व्यक्ति के जीवन में सफलता और असफलता वाणी और व्यवहार में अहम भूमिका अदा करती हैं। ऐसे में हर किसी को अपनी वाणी पर ध्यान देना चाहिए और व्यवहार में भी सुधार करना चाहिए ऐसा मनुष्य जल्द ही सफल और धनवान हो जाता हैं।
कर्ज की समस्या से छुटकारा पाने के आसान उपाय
1 Sep, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हर कोई अपने जीवन में धनवान बनना चाहता है इसके लिए लोग प्रयास भी खूब करते हैं लेकिन फिर भी अगर उन्हें आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा हैं या फिर कर्ज का बोझ बढ़ गया हैं तो इसका मुख्य कारण घर का वास्तुदोष हो सकता हैं।
वास्तुशास्त्र में कई ऐसे उपाय बताए गए हैं जिन्हें करने से वास्तुदोष से छुटकारा पाया जा सकता हैं साथ ही साथ कर्ज की समस्या से भी मुक्ति मिल जाती हैं तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा कर्ज मुक्ति के वास्तु उपाय बता रहे हैं।
कर्ज मुक्ति आसान उपाय-
वास्तुशास्त्र के अनुसार अगर घर का वास्तु खराब हो तो घर में आर्थिक समस्या बनी रहती है साथ ही कर्ज का बोझ भी बढ़ता हैं। ऐसे में अगर आपके घर का शौचालय दक्षिण पश्चिम हिस्से में बना हो तो इससे घर के लोगों पर कर्ज का बोझ चढ़ता जाता हैं। ऐसे में भूलकर भी घर की इस दिशा में शौचालय नहीं बनवाना चाहिए। अगर आप लंबे वक्त से कर्ज पीड़ित है तो इससे मुक्ति पाने के लिए घर में कांच लगवाना शुभ माना जाता हैं।
ऐसे में आप अपने घर या दुकान की उत्तर पूर्व दिशा में कांच लगवा सकते हैं। लेकिन इस बात का ध्यान रखें क यह कांच लाल, सिंदूर या फिर मैरून न हो। अगर आप पर कर्ज का बोझ चढ़ा हुआ है तो ऐसे में आप अपना धन घर या दुकान की उत्तर दिशा में रखें। ऐसा करने से कर्ज से मुक्ति मिल जाती हैं साथ ही धन लाभ के योग बनते हैं। आर्थिक परेशानी व कर्ज से छुटकारा पाने के लिए घर के प्रवेश द्वार के पास एक छोटा स द्वार लगवाना लाभकारी होता हैं इससे धन आगमन के योग बनते हैं।
तुलसी के पास कभी न रखें ये चीजें, दुर्भाग्य पड़ जाएगा पीछे
1 Sep, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में तुलसी के पौधे को बेहद पवित्र और पूजनीय माना गया हैं इस धर्म को मानने वाले अधिकतर घरों में तुलसी लगी होती हैं और लोग इसकी विधिवत पूजा करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार तुलसी में माता लक्ष्मी का वास होता हैं ऐसे में अगर इससे जुड़े कुछ नियमों का पालन किया जाए तो लक्ष्मी कृपा बरसती हैं।
लेकिन अनदेखी समस्याओं को पैदा कर सकती हैं तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा बता रहे हैं कि तुलसी के पौधे के पास किन चीजों को भूलकर भी नहीं रखना चाहिए वरना व्यक्ति के जीवन में सब अशुभ होने लगता हैं तो आइए जानते हैं।
तुलसी के पास न रखें ये चीजें-
वास्तु और ज्योतिष अनुसार तुलसी के पौधे के पास भूलकर भी कूड़ादान या झाड़ू नहीं रखना चाहिए। इसे अशुभ माना जाता है इसके अलावा तुलसी के आस पास साफ सफाई का भी पूरा ध्यान रखना चाहिए वरना लक्ष्मी नाराज़ हो जाती हैं और व्यक्ति को धन संकट का सामना करना पड़ सकता हैं। इसके अलावा भूलकर भी तुलसी के पौधे के पास श्री गणेश की प्रतिमा को भी नहीं स्थापित करना चाहिए और ना ही इनकी पूजा में तुलसी का प्रयोग करना चाहिए इसे अच्छा नहीं माना जाता हैं।
तुलसी के पौधे के आस पास शिवलिंग या शिव प्रतिमा भी नहीं रखनी चाहिए। ऐसा करने से कष्टों का सामना करना पड़ सकता हैं। वास्तु कहता हैं कि तुलसी का पौधा बेहद पवित्र होता हैं और इसकी पूजा आराधना की जाती है ऐसे में इसके आस पास कभी भी जूते चप्पल नहीं रखना चाहिए वरना परिवार को आर्थिक तंगी व कर्ज की समस्या उठानी पड़ सकती हैं। तुलसी के पास कांटेदार पौधो को भी रखने से बचना चाहिए।
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (01 सितम्बर 2023)
1 Sep, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
वृष :- समय अनुकूल नहीं है, लेन-देन के मामले विफल रहेंगे, व्यर्थ विवाद से बचें।
मिथुन :- व्यर्थ समय नष्ट होगा, यात्रा प्रसंग में थकावट व बेचैनी बनी रहेगी, समय समस्या का ध्यान रखें।
कर्क :- प्रयत्नशीलता विफल हो, परिश्रम करने में ही कुछ सफलता अवश्य मिलेगी।
सिंह :- परिश्रम से कार्यपूर्ण होंगे, तर्क-वितर्क से विजय प्राप्त हो, सफलता मिले, धन का लाभ होगा।
कन्या :- व्यवसायिक अनुकूलता से असंतोष किन्तु कार्य-व्यवस्था अनुकूल बनी रहेगी।
तुला :- किसी तनावपूर्ण वातावरण से बचिये, कुछ उदविघ्नता से परेशानी बने, मित्रों से लाभ होगा।
वृश्चिक :- परिश्रम से कार्य में सुधार होते हुए भी फलप्रद नहीं, कार्य विफलत्व की चिन्ता बनेगी।
धनु :- स्त्री वर्ग से उल्लास, इष्ट मित्र सुखवर्धक होंगे तथा रुके कार्य अवश्य ही बन जायेंगे।
मकर :- स्वभाव में क्लेश व अशांति, व्यर्थ विभ्रम, भय तथा उद्विघ्नता अवश्य बनेगी।
कुम्भ :- कार्यगति अनुकूल रहेगी, चिन्ताएW कम होंगी तथा विलासिता के साधन जुटायेंगे।
मीन :- आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा तथा इष्ट मित्रों का समर्थन फलप्रद होगा।
हनुमान जी की तस्वीर दक्षिण दिशा की ओर लगायें
31 Aug, 2023 07:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म वास्तु और ज्योतिष की मानी जाए तो किसी भी प्रकार की तस्वीर या मूर्ति को घर में रखने से पहले कुछ बातों का जानना बहुत ज़रूरी है।वास्तु और ज्योतिष के साथ-साथ हिंदू धर्म के पौराणिक ग्रंथों में भी देवी-देवताओं की प्रतिमाएं को रखने से चमत्कारी प्रभाव देती हैं। इसलिए शास्त्रों में इनकी प्रतिमाओं और तस्वीरों को रखने के बहुत से महत्वपूर्ण नियम बताए गए हैं। वास्तुशास्त्र के अनुसार घर में देवी-देवताओं की तस्वीरें लगाने से सभी परेशानियां दूर होती हैं और घर में सुख-शांति बनी रहती है।हनुमान जी की तस्वीर का महत्व और उससे जुड़े कुछ वास्तु नियम-
शास्त्रों के अनुसार हनुमान जी बाल ब्रह्मचारी हैं और इसी वजह से उनकी तस्वीर बेडरूम में न रखकर घर के मंदिर में या किसी अन्य पवित्र स्थान पर रखना शुभ रहता है।
वास्तु वैज्ञानिकों के अनुसार हनुमान जी का चित्र दक्षिण दिशा की ओर देखते हुए लगाना चाहिए क्योंकि हनुमान जी ने अपना प्रभाव अत्यधिक इसी दिशा में दिखाया है जैसे लंका दक्षिण में है, सीता माता की खोज दक्षिण से आरंभ हुई, लंका दहन और राम-रावण का युद्ध भी इसी दिशा में हुआ। दक्षिण दिशा में हनुमान जी विशेष बलशाली हैं।
इसी प्रकार से उत्तर दिशा में हनुमान जी की तस्वीर लगाने पर दक्षिण दिशा से आने वाली हर नकारात्मक शक्ति को हनुमान जी रोक देते हैं। वास्तु अनुसार इससे घर में सुख और समृद्धि का समावेश होता है और दक्षिण दिशा से आने वाली हर बुरी ताकत को हनुमान जी रोक देते हैं।
जिस रूप में हनुमान जी अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर रहे हों ऐसी तस्वीर को घर में लगाने से किसी भी तरह की बुरी शक्ति प्रवेश असंभव है।
शयनकक्ष में न रखें डरावनी तस्वीरें व वस्तुएं
31 Aug, 2023 07:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
शयनकक्ष आपके घर की वो जगह होती है जहां आप दिन भर की थकान भुलाकर तरोताजा होते हैं। पर कई वस्तुएं रात के समय सिर के पास नहीं होनी चाहिये। वरना नींद में खलल के साथ आपकी रातें भी डरावनी हो जाएंगी।
अक्सर देखने को मिलता है कि लोग आलस्य के चलते अपना पर्स तकिए के नीचे ही रखकर सो जाते हैं। कई बार पर्स नहीं तो पैसे ही लोग अपने तकिए के नीचे दबा देते हैं। वास्तु के हिसाब से ऐसा करने से हर वक्त रुपये पैसे की चिंता लगी रहती है और रात में भी नींद नहीं आती।
बेडरूम में कोई भी डरावनी फोटो या वस्तुएं नहीं होनी चाहिए। ऐसा होने से रात में आपको डरावने सपने आ सकते हैं। यहां तक कि बेडरूम में किसी भी प्रकार का हथियार न रखें। इससे नकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है और दुर्घटना होने की आशंका भी रहती है।
अक्सर देखा गया है कि लोग रात को सोने से पहले किताब पढ़ते हैं और फिर उसे तकिए के पास में ही रखकर सो जाते हैं। ऐसा करने से मन चलायमान और विचलित रहता है और गहरी नींद नहीं आ पाती। किताब पढ़ने के बाद उसे यथा स्थान रख दें।
कभी भी अपने सोने के स्थान पर इलैक्ट्रॉनिक वस्तुएं जैसे मोबाइल, आईपैड या आईफोन आदि गैजेट्स या किसी भी प्रकार के आवाज करने वाले खिलौने या इससे मिलता-जुलता कोई भी सामान न रखें।
अपने बेड के आस-पास या उसके नीचे जूते-चप्पल या अन्य कबाड़ा गलती से भी न रखें। अन्यथा नकारात्मक ऊर्जा आएगी जो कि आपकी नींद को भंग करेगी। कई बार देखा गया है कि लोग कई दिन के पुराने-पुराने अखबार बेडरूम में इकट्ठा करते रहते हैं। ऐसा भूलकर भी न करें।
ये 10 चीजें हो तो माता लक्ष्मी कभी नहीं आती पास
31 Aug, 2023 07:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
व्यक्ति अपने परिवार की खुशी के लिए कड़ी मेहनत करता है ताकि उसके घर में हमेशा सुख और समृद्धि बनी रहे। लेकिन जाने-अनजाने कई बार कुछ छोटी-छोटी गलतियों की वजह से उनके ऊपर माता लक्ष्मी की कृपा नहीं हो पाती। वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में कई बार कुछ ऐसी चीजें होती हैं जिसकी हम अनदेखी कर देते हैं लेकिन यही अनदेखी नुकसान और परेशानी की वजह बन जाती है।
वास्तु शास्त्र में घर पर मकड़ी के जाले को अशुभ माना जाता है इसलिए मकड़ी का जाला घर में न लगने दें। इससे उलझन और परेशानी बढ़ती है।
टूटे हुए आईने से हमेशा नकारात्मक ऊर्जा निकलती रहती है इसलिए घर में जब भी कोई दर्पण या शीशा टूट जाए तो उसे घर से बाहर कर दें।
घर में चमगादड़ का प्रवेश अशुभ माना गया है। वास्तु विज्ञान के अनुसार घर में चमगादड़ का आना सूनेपन की निशानी है। घर में कुछ बुरी घटनाएं होने के संकेत होते हैं।
घर की दीवारों में दरारों का होना अशुभ होता है इसलिए जहां दरार हो उसकी मरम्मत करवाएं, दरार का होना धन के लिए अशुभ माना गया है क्योंकि माता लक्ष्मी उन्हीं घरों में वास करती है जहां पर साफ-सफाई होती है।
वास्तु शास्त्र में नल से पानी टपकते रहने को अशुभ माना गया है। नल से लगातार पानी टपकने से धन की हानि होती है। इसलिए जब भी नल से पानी टपकता हो तो उसकी मरम्मत तुरंत करवाएं।
घर की छत पर कबाड़ और बेकार की चीजों को एकत्र न होने दें।
पूजा घर या घर पर कभी भी में बासी फूल को इकट्ठा करके नहीं रखें।
घर में खराब पड़े बिजली के उपकरणों को नहीं रहने देना चाहिए।
घर में कबूतर का घोंसला बनाना वास्तु विज्ञान के अनुसार अशुभ चिन्ह है। माना जाता है इससे घर पर बड़ी मुसीबत आती है।
घर के दीवारों के कोने में अगर कोई मधुमक्खी या मकड़ी घर में छत्ता लगाए तो इसे हटा दें। इनका घर में होना अशुभ सूचक होता है।
नंदी के बिना शिवलिंग को माना जाता है अधूरा
31 Aug, 2023 07:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भगवान शिव के किसी भी मंदिर में शिवलिंग के आसपास एक नंदी बैल जरूर होता है क्यों नंदी के बिना शिवलिंग को अधूरा माना जाता है। इस बारे में पुराणों की एक कथा में कहा गया है शिलाद नाम के ऋषि थे जिन्होंने लम्बे समय तक शिव की तपस्या की थी। जिसके बाद भगवान शिव ने उनकी तपस्या से खुश होकर शिलाद को नंदी के रूप में पुत्र दिया था।
शिलाद ऋषि एक आश्रम में रहते थे। उनका पुत्र भी उन्हीं के आश्रम में ज्ञान प्राप्त करता था। एक समय की बात है शिलाद ऋषि के आश्रम में मित्र और वरुण नामक दो संत आए थे। जिनकी सेवा का जिम्मा शिलाद ऋषि ने अपने पुत्र नंदी को सौंपा। नंदी ने पूरी श्रद्धा से दोनों संतों की सेवा की। संत जब आश्रम से जाने लगे तो उन्होंने शिलाद ऋषि को दीर्घायु होने का आर्शिवाद दिया पर नंदी को नहीं।
इस बात से शिलाद ऋषि परेशान हो गए। अपनी परेशानी को उन्होंने संतों के आगे रखने की सोची और संतों से बात का कारण पूछा। तब संत पहले तो सोच में पड़ गए। पर थोड़ी देर बाद उन्होंने कहा, नंदी अल्पायु है। यह सुनकर मानों शिलाद ऋषि के पैरों तले जमीन खिसक गई। शिलाद ऋषि काफी परेशान रहने लगे।
एक दिन पिता की चिंता को देखते हुए नंदी ने उनसे पूछा, ‘क्या बात है, आप इतना परेशान क्यों हैं पिताजी।’ शिलाद ऋषि ने कहा संतों ने कहा है कि तुम अल्पायु हो। इसीलिए मेरा मन बहुत चिंतित है। नंदी ने जब पिता की परेशानी का कारण सुना तो वह बहुत जोर से हंसने लगा और बोला, ‘भगवान शिव ने मुझे आपको दिया है। ऐसे में मेरी रक्षा करना भी उनकी ही जिम्मेदारी है, इसलिए आप परेशान न हों।’
नंदी पिता को शांत करके भगवान शिव की तपस्या करने लगे। दिनरात तप करने के बाद नंदी को भगवान शिव ने दर्शन दिए। शिवजी ने कहा, ‘क्या इच्छा है तुम्हारी वत्स’. नंदी ने कहा, मैं ताउम्र सिर्फ आपके सानिध्य में ही रहना चाहता हूं।नंदी से खुश होकर शिवजी ने नंदी को गले लगा लिया। शिवजी ने नंदी को बैल का चेहरा दिया और उन्हें अपने वाहन, अपना मित्र, अपने गणों में सबसे उत्तम रूप में स्वीकार कर लिया।इसके बाद ही शिवजी के मंदिर के बाद से नंदी के बैल रूप को स्थापित किया जाने लगा।
कब है गायत्री जयंती, क्या होता है गायत्री जापम कर्म?
30 Aug, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
श्रावण माह की पूर्णिमा तिथि को गायत्री जयंती मनाते हैं। विचारों में भिन्नता के कारण गायत्री जयन्ती ज्येष्ठ चन्द्र माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर भी मनायी जाती है।
अन्य मतांतर के अनुसार गायत्री जयन्ती अधिकांशतः गंगा दशहरा के अगले दिन मनाते हैं। आधुनिक भारत में, श्रावण पूर्णिमा की गायत्री जयन्ती का दिन संस्कृत दिवस के रूप में मनाया जाता है। उदयातिथि के अनुसार इस बार यह जयंती 31 अगस्त 2023 बृहस्पतिवार को मनाई जाएगी।
वेद माता गायत्री जयन्ती 2023 : समस्त वेदों की देवी होने के कारण देवी गायत्री को वेद माता के रूप में भी जाना जाता है। देवी गायत्री को हिन्दु त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) की देवी के रूप में भी पूजा जाता है। उन्हें समस्त देवताओं की माता एवं देवी सरस्वती, देवी पार्वती एवं देवी लक्ष्मी का अवतार भी माना जाता है।
देवी गायत्री को ब्राह्मण के समस्त अभूतपूर्व गुणों का प्रतिरूप माना जाता है। देवी गायत्री के भक्त इस अवसर पर उन्हें प्रसन्न करने हेतु विशेष प्रार्थना करते हैं तथा गायत्री मन्त्र का निरन्तर जाप करते हैं।
गायत्री जपम कर्म : इसे उत्तर भारत में श्रावणी उपाकर्म कहा जाता है। दक्षिण भारत में अबित्तम कहते हैं। इस दिन वैदिक मन्त्र का जाप करते हुए उपनयन सूत्र यानी जनेऊ यज्ञोपवीत धारण किया जाता है। दक्षिण भारत में इसे जन्ध्यम के नाम से भी जाना जाता है। उपाकर्म अनुष्ठान के पश्चात् ही वेदाध्ययन आरम्भ किया जाता है।
उपाकर्म अनुष्ठान के अगले दिन प्रातःकाल यज्ञोपवीत धारण करने वाला व्यक्ति गायत्री मन्त्र का जाप करता है। जब संख्या 108 से 1008 की हो सकती है, जिसे गायत्री जापम के रूप में जाना जाता है। दक्षिण भारतीय ब्राह्मणों के मध्य गायत्री जापम को गायत्री प्रतिपदा अथवा गायत्री पाद्यमी के रूप में भी जाना जाता है।
कैसे और कब करें मां गायत्री का पूजन?
प्रात: काल नित्यकर्म से निवृत्त होकर माता गायत्री की मूर्ति या तस्वीर को पाट पीले वस्त्र बिछाकर विजराम करें। गंगाजल छिड़कर स्थान को पवित्र करें और सभी देवी और देवताओं का अभिषेक करें।
इसके बाद घी का दीपक प्रज्वलित करें और धूप बत्ती लगाएं।
अब माता की पंचोपचार या षोडशोपचार पूजा करें। पंचोपचार यानी पांच तरह की पूजन सामग्री से पूजा करने और षोडशोपचार यानी 16 तरह की सामग्री से पूजा करने। इसमें गंध, पुष्प, हल्दी, कुंकू, माला, नैवेद्य आदि अर्पित करते हैं।
इसके बाद गायत्री मंत्र का 108 बार जप करें।
पूजा जप के बाद माता की आरती उतारते हैं।
आरती के बाद प्रसाद का वितरण करें।
युगों से होती आ रही है सूर्य की पूजा, जानिए आध्यात्मिक संबंध
30 Aug, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मानव इतिहास की जटिल टेपेस्ट्री में, सूर्य ने शक्ति, दिव्यता और ब्रह्मांडीय व्यवस्था के प्रतीक के रूप में अद्वितीय महत्व अर्जित किया है। सहस्राब्दियों से चली आ रही विभिन्न संस्कृतियों और युगों में, सूर्य की पूजा धार्मिक प्रथाओं और मान्यताओं के एक महत्वपूर्ण पहलू के रूप में उभरी है।
परम जीवनदाता और पालनकर्ता के रूप में सूर्य के प्रति गहरी श्रद्धा ने भौगोलिक सीमाओं को पार किया, सभ्यताओं को एकजुट किया और आकाशीय क्षेत्र के साथ मानवता के आंतरिक संबंध को रेखांकित किया।
सूर्य पूजा की उत्पत्ति:
प्राचीन सूर्य पूजा की जड़ें मानवता की ज्ञात कुछ आरंभिक सभ्यताओं में पाई जाती हैं। प्राचीन मिस्रवासियों से लेकर मेसोपोटामिया और सिंधु घाटी के निवासियों तक, लोगों ने सूर्य की उज्ज्वल उपस्थिति को देखा और दुनिया को प्रकाश, गर्मी और जीवन प्रदान करने में इसकी भूमिका को पहचाना। आकाश में सूर्य की लयबद्ध यात्रा ने जीवन के उतार-चढ़ाव और ब्रह्मांड विज्ञान और आध्यात्मिक विचारधाराओं को आकार देने के लिए एक ठोस प्रमाण के रूप में कार्य किया।
मिस्र की सूर्य पूजा:
फिरौन के साम्राज्य में सूर्य को सर्वोपरि महत्व का स्थान प्राप्त था। रा, सूर्य देवता, सभी जीवन के निर्माता और ब्रह्मांड के शासक के रूप में प्रतिष्ठित थे। रा की सूर्योदय से सूर्यास्त तक की दैनिक यात्रा जन्म, मृत्यु और पुनर्जन्म के शाश्वत चक्र का प्रतीक है। माना जाता है कि सूर्य की जीवन-पोषक किरणें भौतिक और आध्यात्मिक दोनों क्षेत्रों का पोषण करती हैं। प्रसिद्ध अबू सिंबल मंदिर सहित रा को समर्पित मंदिरों ने प्राचीन मिस्रवासियों द्वारा सूर्य की दिव्य शक्ति के प्रति गहरा सम्मान प्रदर्शित किया।
एज़्टेक और इंका सूर्य पूजा:
अटलांटिक के पार, अमेरिका के मध्य में, एज़्टेक और इंकास भी सूर्य को बहुत सम्मान देते थे। एज़्टेक संस्कृति में, देवता हुइत्ज़िलोपोचटली सूर्य से जुड़े थे और युद्ध, बलिदान और धीरज के गुणों को धारण करते थे। जीवन को बनाए रखने और उनकी सभ्यता की निरंतरता सुनिश्चित करने में सूर्य की भूमिका का सम्मान करने के लिए बलिदान से जुड़े अनुष्ठान किए गए। इसी तरह, इंकास एक परोपकारी प्रदाता के रूप में इंति, सूर्य देवता की पूजा करते थे। इंति रेमी त्योहार ने सूर्य की गर्मी और कृषि चक्रों पर उसके प्रभाव का जश्न मनाया, जो प्राकृतिक दुनिया के साथ इंका के सामंजस्यपूर्ण संबंधों को दर्शाता है।
प्राचीन ग्रीस और रोम में सूर्य पूजा:
प्राचीन भूमध्यसागरीय दुनिया में, सूर्य ने देवी-देवताओं के देवताओं के बीच अपना स्थान पाया। प्रकाश, संगीत और भविष्यवाणी के यूनानी देवता अपोलो, सूर्य में सन्निहित प्रतिभा और प्रेरणा का प्रतिनिधित्व करते थे। हेलिओस, रोमन पौराणिक कथाओं में अपोलो का समकक्ष, सूर्य की उज्ज्वल और जीवन-निर्वाह ऊर्जा का प्रतीक है। इन देवताओं ने जीवन के भौतिक और आध्यात्मिक दोनों पहलुओं को आकार देने में सूर्य की अभिन्न भूमिका को समझाया। डेल्फ़ी में अपोलो के मंदिर जैसे मंदिर, सूर्य के प्रभाव का जश्न मनाते थे और भक्ति और ज्ञान के केंद्र थे।
दैनिक जीवन पर प्रभाव:
प्राचीन सूर्य पूजा अनुष्ठानों और मंदिरों तक ही सीमित नहीं थी - यह जीवन के हर पहलू में व्याप्त थी। प्राचीन सभ्यताओं की आधारशिला कृषि, विकास के लिए सूर्य की ऊर्जा पर बहुत अधिक निर्भर थी। सूर्य की मौसमी लय ने रोपण और कटाई का मार्गदर्शन किया, एक ब्रह्मांडीय घड़ी और कृषि मार्गदर्शक के रूप में इसकी भूमिका पर जोर दिया। सन डायल, प्राचीन इंजीनियरिंग का चमत्कार, सूर्य की स्थिति को ट्रैक करके, व्यावहारिक को आध्यात्मिक के साथ जोड़कर समय मापने के लिए तैयार किया गया था।
लौकिक प्रतीकवाद:
अपने भौतिक प्रभाव से परे, सूर्य व्यापक ब्रह्मांडीय अवधारणाओं का एक रूपक बन गया। इसका उदय और अस्त अस्तित्व की चक्रीय प्रकृति-जन्म, मृत्यु और पुनर्जन्म को प्रतिबिंबित करता है। आकाश में सूर्य की दिव्य यात्रा को समय बीतने के साथ जोड़ा गया, जिससे ब्रह्मांडीय संतुलन और सभी जीवन के अंतर्संबंध की धारणा प्रभावित हुई।
प्राचीन सूर्य पूजा की विरासत:
जबकि प्राचीन सूर्य पूजा की विशिष्टताएँ विभिन्न संस्कृतियों में भिन्न थीं, एक सामान्य सूत्र ने सूर्य की जीवन देने वाली क्षमता और सांसारिक और दिव्य के बीच एक पुल के रूप में इसकी भूमिका को स्वीकार किया। प्राचीन सूर्य पूजा की विरासत सांस्कृतिक अवशेषों, वास्तुशिल्प चमत्कारों और आध्यात्मिक प्रथाओं में जीवित है। यह ब्रह्मांड से जुड़ने और आकाश की शोभा बढ़ाने वाले दिव्य चमत्कारों में महत्व खोजने की मानवता की स्थायी खोज की याद दिलाता है।
जैसे-जैसे आधुनिक समाज सूर्य की वैज्ञानिक खोज शुरू कर रहा है, प्राचीन सूर्य पूजा की गूँज हमें याद दिलाती है कि आकाशीय क्षेत्र के प्रति हमारा आकर्षण वैज्ञानिक जिज्ञासा से परे है - यह उस गहरे आध्यात्मिक संबंध की प्रतिध्वनि है जो हमारे पूर्वजों ने उस उज्ज्वल गोले के साथ साझा किया था जो हमारे आकाश को सुशोभित करता रहता है। . सूर्य, प्रकाश और जीवन का स्रोत, महाद्वीपों, सभ्यताओं और सहस्राब्दियों तक फैले मानवता और ब्रह्मांड के बीच स्थायी बंधन के प्रमाण के रूप में खड़ा है।