धर्म एवं ज्योतिष (ऑर्काइव)
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (09 सितम्बर 2023)
9 Sep, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि - किसी के द्वारा धोखा देने से मनोवृत्ति खिन्न रहेगी, धन का व्यय, व्यर्थ परिश्रम होगा।
वृष राशि - समय अनुकूल नहीं, लेनदेन के मामले स्थिगित रखें तथा अपवाद बन सकता है ध्यान दें।
मिथुन राशि - व्यर्थ समय जाये, यात्रा के प्रसंग में थकावट, बेचैनी बनी ही रहेगी, उत्साहहीन कार्य होगें।
कर्क राशि - प्रयत्नशीलता विफल हो, परिश्रम करने पर ही कुछ सफलता मिलेगी, साधन जुटायें।
सिंह राशि - परिश्रम से कार्य पूर्ण होगें, तर्क-वितर्क में विजय होवे, सफलता मिले, धन लाभ होगा।
कन्या राशि - व्यावसायिक कार्यकुशलता से संतोष होगा, अर्थव्यवस्था अनुकूल बनेगी, ध्यान दें।
तुला राशि - किसी तनावपूर्ण वातावरण से बचिये, मन उद्विघ्नता से परेशान रहेगा, मित्रों से लाभ।
वृश्चिक राशि - परिस्थिति में सुधार होते हुए फलप्रद कार्य होगा किन्तु कार्यविफलत्व हो सकेगें ध्यान दें।
धनु राशि - स्त्री वर्ग से उल्लास इष्ट मित्र सुख वर्धक होंगे तथा रुके कार्य अवश्य बन जायेंगे।
मकर - स्वभाव में क्लेश व अशांति, व्यर्थ विभ्रम-भय तथा उद्विघ्नता बनी ही रहेगी।
कुंभ राशि - कार्यगति अनुकूल, चिन्ताए कम होंगी, सफलता के साधन अवश्य ही जुटायें।
मीन राशि - आशानुकूल सफलता से हर्ष होगा, इष्ट मित्रों का समर्थन फलप्रद अवश्य होगा।
शनि, यमराज के पिता है सूर्यदेव
8 Sep, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
रविवार को हम सूर्यदेव की पूजा करते हैं, पर क्या आप सूर्यदेव के परिवार को जानते हैं। चलिए मिलते हैं सूर्य की पत्नियों और संतानो से। सूर्य देव का परिवार काफी बड़ा है। उनकी संज्ञा और छाया नाम की दो पत्नियां और दस संताने हैं। जिसमे से यमराज और शनिदेव जैसे पुत्र और यमुना जैसी बेटियां शामिल हैं। मनु स्मृति के रचयिता वैवस्वत मनु भी सूर्यपुत्र ही हैं।
सूर्य देव की दो पत्नियां संज्ञा और छाया हैं। संज्ञा सूर्य का तेज ना सह पाने के कारण अपनी छाया को उनकी पत्नी के रूप में स्थापित करके तप करने चली गई थीं। लंबे समय तक छाया को ही अपनी प्रथम पत्नी समझ कर सूर्य उनके साथ रहते रहे। ये राज बहुत बात में खुला की वे संज्ञा नहीं छाया है। संज्ञा से सूर्य को जुड़वां अश्विनी कुमारों के रूप में दो बेटों सहित छह संताने हुईं जबकि छाया से उनकी चार संताने थीं।
शिल्पी विश्वकर्मा सूर्य पत्नी संज्ञा के पिता थे और इस नाते उनके ससुर हुए। उन्होंने ही संज्ञा के तप करने जाने की जानकारी सूर्य देव को दी थी।
धर्मराज या यमराज सूर्य के सबसे बड़े पुत्र और संज्ञा की प्रथम संतान हैं।
यमी यानि यमुना नदी सूर्य की दूसरी संतान और ज्येष्ठ पुत्री हैं जो अपनी माता संज्ञा को सूर्यदेव से मिले आर्शिवाद के चलते पृथ्वी पर नदी के रूप में प्रसिद्ध हुईं।
सूर्य और संज्ञा की तीसरी संतान हैं वैवस्वत मनु वर्तमान (सातवें) मन्वन्तर के अधिपति हैं। यानि जो प्रलय के बाद संसार के पुर्निमाण करने वाले प्रथम पुरुष बने और जिन्होंने मनु स्मृति की रचना की।
सूर्य और छाया की प्रथम संतान है शनिदेव जिन्हें कर्मफल दाता और न्यायधिकारी भी कहा जाता है। अपने जन्म से शनि अपने पिता से शत्रु भाव रखते थे। भगवान शंकर के वरदान से वे नवग्रहों में सर्वश्रेष्ठ स्थान पर नियुक्त हुए और मानव तो क्या देवता भी उनके नाम से भयभीत रहते हैं।
छाया और सूर्य की कन्या तप्ति का विवाह अत्यन्त धर्मात्मा सोमवंशी राजा संवरण के साथ हुआ। कुरुवंश के स्थापक राजर्षि कुरु का इन दोनों की ही संतान थे, जिनसे कौरवों की उत्पत्ति हुई।
सूर्य और छाया पुत्री विष्टि भद्रा नाम से नक्षत्र लोक में प्रविष्ट हुई। भद्रा काले वर्ण, लंबे केश, बड़े-बड़े दांत तथा भयंकर रूप वाली कन्या है। भद्रा गधे के मुख और लंबे पूंछ और तीन पैरयुक्त उत्पन्न हुई। शनि की तरह ही इसका स्वभाव भी सख्त बताया गया है। उनके स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए ही भगवान ब्रह्मा ने उन्हें कालगणना या पंचांग के एक प्रमुख अंग विष्टि करण में स्थान दिया है।
सूर्य और छाया की चौथी संतान हैं सावर्णि मनु। वैवस्वत मनु की ही तरह वे इस मन्वन्तर के पश्चात अगले यानि आठवें मन्वन्तर के अधिपति होंगे।
संज्ञा के बारे में जानकारी मिलने के बाद अपना तेज कम करके सूर्य घोड़ा बनकर उनके पास गए। संज्ञा उस समय अश्विनी यानि घोड़ी के रूप में थी। दोनों के संयोग से जुड़वां अश्विनीकुमारों की उत्पत्ति हुई जो देवताओं के वैद्य हैं। कहते हैं कि दधीचि से मधु-विद्या सीखने के लिये उनके धड़ पर घोड़े का सिर रख दिया गया था, और तब उनसे मधुविद्या सीखी थी। अत्यंत रूपवान माने जाने वाले अश्विनीकुमार नासत्य और दस्त्र के नाम से भी प्रसिद्ध हुए।
सूर्य की सबसे छोटी और संज्ञा की छठी संतान हैं रेवंत जो उनके पुनर्मिलन के बाद जन्मी थी। रेवंत निरन्तर भगवान सूर्य की सेवा में रहते हैं।
माता सरस्वती का ये मंदिर इसलिए है प्रसिद्घ
8 Sep, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
आंध्र प्रदेश के बासर गांव में गोदावरी नदी के तट पर स्थित सरस्वती माता का एक मंदिर है। इस मंदिर के बारे में तरह-तरह की किवदंतियां प्रचलित है। इस मंदिर में केंद्रीय रूप से सरस्वती माता की भव्य प्रतिमा स्थापित है, उनके साथ लक्ष्मी माता भी यहां विराजमान हैं। सरस्वती देवी की मूर्ति लगभग 4 फुट की ऊंची है। यहां वह पद्मासन मुद्रा में है। इस मंदिर की सबसे खास बात है कि मंदिर के एक स्तंभ से संगीत के सातों स्वर सुनाई देते हैं, इसी विशेषता के चलते भक्त यहां खींचे चले आते हैं। कोई भी ध्यानपूर्वक कान लगाकर इस ध्वनि को सुन सकता है।
प्राचीन कथाओं की माने तो मां सरस्वती के मंदिर से थोड़ी दूर दत्त मंदिर स्थित है, जहां से होते हुए गोदावरी नदी तक एक सुरंग जाया करती थी। कहा जाता है कि इसी सुरंग के द्वारा ही राजा महाराजा पूजा के लिए आते थे। कहा जाता है कि बाल्मीकि ऋषि को भी यहीं पर सरस्वती माता से आर्शीवाद मिला था। जिसके बाद उन्होंने रामायण लिखना शुरू किया।
अक्षाराभिषेक की रीति का है रिवाज
यहां एक धार्मिक रीति भी विख्यात है, जिसे अक्षर आराधना कहते हैं। अक्षर आराधना में बच्चों को शिक्षा प्रारंभ करने से पहले अक्षराभिषेक के लिए यहां पर लाया जाता है। मान्यता है कि बच्चे के जीवन के पहले अक्षर यहां लिखवाने से बच्चे का शैक्षिक जीवन सदैव सफल रहता है। इस रीति के बाद हल्दी का लेप प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। सरस्वती माता ब्रह्मदेव की मानस पुत्री भी हैं, साथ ही विद्या की अधिष्ठात्री देवी भी मानी जाती हैं।
वेदव्यास को हुई थी ज्ञान की प्राप्ति
यह मंदिर काफी प्राचीन माना जाता है, मान्यता है कि महाभारत के लेखक वेद व्यास जब मानसिक रूप से परेशान थे तब वह शांति के लिए तीर्थयात्रा पर गए थे। अपने मुनियों के साथ वह उत्तर भारत की तीर्थयात्रा करके बासर पहुंचे। वह गोदावरी नदी के तट को देखने के बाद प्राकृतिक सौंदर्यता से मंत्र-मुग्ध हो कर वहीं रुक गए, कहा जाता है कि उन्हें इसी जगह पर ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और वेदों के रचयिता बने। इस मंदिर के बारे कहा जाता है कि अज्ञान के अंधकार में डूबे कालिदास को भी यहीं ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। वरदराज को भी यहीं आकर ज्ञान मिला था। इसलिए कहते हैं कि यहां आकर अज्ञानी भी ज्ञानी हो जाते हैं।
भगवान शिव के हैं 12 रूद्र अवतार
8 Sep, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भगवान शिव को अनंत कहा गया है और हनुमान जी को इनका रूद्र अवतार माना गया है। शिव के हनुमान रूप में जन्म लेने की कथा इस प्रकार है। भगवान शिव भक्तों की पूजा से जल्द प्रसन्न होने वाले देव हैं और हर युग में अपने भक्तों की रक्षा के लिए अवतार लिए हैं। भगवान शिव ने 12 रूद्र अवतार लिए हैं जिनमें से हनुमान अवतार को श्रेष्ठ माना गया है।
हनुमान के जन्म पर क्या कहते हैं शास्त्र
शास्त्रों में रामभक्त हनुमान के जन्म की दो तिथि का उल्लेख मिलता है। जिसमें पहला तो उन्हें भगवान शिव का अवतार माना गया है, क्योंकि रामभक्त हनुमान की माता अंजनी ने भगवान शिव की घोर तपस्या की थी और उन्हें पुत्र के रूप में प्राप्त करने का वर मांगा था।
तब भगवान शिव ने पवन देव के रूप में अपनी रौद्र शक्ति का अंश यज्ञ कुंड में अर्पित किया था और वही शक्ति अंजनी के गर्भ में प्रविष्ट हुई थी। फिर चैत्र शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को हनुमानजी का जन्म हुआ था।
पौराणिक कथा के अनुसार
पौराणिक कथाओं के अनुसार रावण का अंत करने के लिए भगवान विष्णु ने राम का अवतार लिया था। उस समय सभी देवताओं ने अलग-अलग रूप में भगवान राम की सेवा करने के लिए अवतार लिया था।
उसी समय भगवान शंकर ने भी अपना रूद्र अवतार लिया था और इसके पीछे वजह थी कि उनको भगवान विष्णु से दास्य का वरदान प्राप्त हुआ था। हनुमान उनके ग्यारहवें रुद्र अवतार हैं। इस रूप में भगवान शंकर ने राम की सेवा भी की और रावण वध में उनकी मदद भी की थी।
भगवान विष्णु को इसलिए लगाते हैं चने-गुड़ का भोग
8 Sep, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
जगत के पालनकर्ता भगवान विष्णु की गुरुवार के दिन विधि-विधान से पूजा की जाती है। इस दिन अपने मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए लोग व्रत रहते हैं, केले के पौधे की पूजा करते हैं, पीली वस्तुओं का दान करते हैं और भगवान को चने या चने की दाल और गुड़ का भोग लगाते हैं। चने और गुड़ का भोग लगाने से जुड़ी एक पौराणिक कथा है।
भगवान विष्णु के परमभक्त देवर्षि नारद उनसे आत्मा का ज्ञान व लेना चाहते थे लेकिन वे जब भी श्रीहरि से इसके बारे में अपनी इच्छा प्रकट करते तो भगवान कहते कि पहले उस ज्ञान के योग्य बनना होगा। नारद जी ने स्वयं को उस ज्ञान के योग्य बनाने के लिए कठोर तप किया लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा। इसके पश्चात वे पृथ्वी लोक के भ्रमण पर चले गए।
इस दौरान उन्होंने एक जगह देखा कि भगवान श्रीहरि एक मंदिर में बैठे हैं और वृद्ध् महिला उनको कुछ खिला रही है। भगवान विष्णु के वहां से प्रस्थान करने के बाद नारद मुनि वहां पहुंचे और वृद्ध महिला से जानना चाहा कि वह भगवान को क्या खिला रही थीं।
उस वृद्ध महिला ने बताया कि उसने भगवान विष्णु को गुड़ और चने प्रसाद स्वरुप खिलाए। ऐसा कहा जाता है कि नारद जी वहां पर व्रत करने लगे और लोगों में प्रसाद स्वरुप गुड़-चना बांटने लगे। कुछ समय पश्चात भगवान विष्णु वहां प्रकट हुए और नारद मुनि से कहा कि सच्चे मन से जो भक्ति करता है, वह ज्ञान का अधिकारी होता है।
भगवान ने उस वृद्ध महिला को वैकुण्ठ जाने का आशीर्वाद दिया और कहा कि जो भक्त उनको गुड़ और चना का भोग लगाएगा, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी। ऐसी मान्यता है कि तभी से भगवान विष्णु को गुड़ और चना का भोग लगाते हैं।
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (08 सितम्बर 2023)
8 Sep, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि - स्त्री वर्ग से भोग-एश्वर्य की प्राप्ति किन्तु व्यावसायिक तनाव तथा क्लेश प्राप्त होगा।
वृष राशि - धन और समय की सुरक्षा करें, योजनाएं फलीभूत हो तथा सामाजिक सम्मान अवश्य मिलेगा।
मिथुन राशि - आशानुकूल सफलता का हर्ष, बिगड़े हुए कार्य बनेंगे, कार्य कुशलता से संतोष अवश्य होगा।
कर्क राशि - धन लाभ, बिगड़े हुए कार्य बनेंगे, कार्य कुशलता से संतोष होगा, रुके कार्य बन ही जायेंगे।
सिंह राशि - विशेष कार्य स्थिगित रखें, लेन-देन के मामले में सतक्&ैता रखें तथा कार्य बन ही जायेंगे।
कन्या राशि - धन हानि, मानसिक व्यग्रता से बचें तथा भोग-एश्वर्य की प्राप्ति होगी, कार्य सम्पन्न करें।
तुला राशि - मन उद्विघ्नता से परेशानी बनेगी, विघटनकारी तत्व परेशान करेंगे, सतर्कता से कार्य करें।
वृश्चिक राशि- प्रतिष्ठा, बालबाल बचे, विशेष कार्य में हानि हो सकती है, समय का ध्यान अवश्य रखें।
धनु राशि - विभ्रम, उपद्रव से बचें, विशेष कार्य में हानि हो सकती है, समय का ध्यान अवश्य रखें।
मकर राशि - धन का व्यय, असमर्थता का वातावरण रहेगा तथा इष्ट मित्र सुख वर्धक अवश्य ही होंगे।
कुंभ राशि - योजनाए फलीभूत होंगी, सफलता के साधन जुटायें, मन में प्रसन्नता के योग अवश्य बनेंगे।
मीन राशि - आशानुकूल सफलता से हर्ष होगा, इष्ट मित्र व अधिकारियों से समर्थन अवश्य ही मिलेगा।
सप्ताह में एक दिन करें ये पाठ, खुशियों भरा होगा घर संसार
7 Sep, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
गुरुवार का दिन विष्णु पूजा के लिए उत्तम माना जाता है ऐसे में अधिकतर भक्त आज के दिन विष्णु भक्ति में लीन रहते हैं और पूजा पाठ व व्रत आदि भी रखते हैं माना जाता है कि इस दिन पूजा पाठ के साथ ही अगर भगवान विष्णु का गुणगान करने वाली चालीसा का पाठ सच्चे मन से किया जाए तो जीवन के कष्टों का अंत हो जाता हैं और खुशियों से घर संसार भर जाता हैं तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं विष्णु चालीसा का संपूर्ण पाठ।
श्री विष्णु चालीसा-
॥ दोहा॥
विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय ।
कीरत कुछ वर्णन करूं दीजै ज्ञान बताय ।
॥ चौपाई ॥
नमो विष्णु भगवान खरारी ।
कष्ट नशावन अखिल बिहारी ॥
प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी ।
त्रिभुवन फैल रही उजियारी ॥
सुन्दर रूप मनोहर सूरत ।
सरल स्वभाव मोहनी मूरत ॥
तन पर पीतांबर अति सोहत ।
बैजन्ती माला मन मोहत ॥4॥
शंख चक्र कर गदा बिराजे ।
देखत दैत्य असुर दल भाजे ॥
सत्य धर्म मद लोभ न गाजे ।
काम क्रोध मद लोभ न छाजे ॥
संतभक्त सज्जन मनरंजन ।
दनुज असुर दुष्टन दल गंजन ॥
सुख उपजाय कष्ट सब भंजन ।
दोष मिटाय करत जन सज्जन ॥8॥
पाप काट भव सिंधु उतारण ।
कष्ट नाशकर भक्त उबारण ॥
करत अनेक रूप प्रभु धारण ।
केवल आप भक्ति के कारण ॥
धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा ।
तब तुम रूप राम का धारा ॥
भार उतार असुर दल मारा ।
रावण आदिक को संहारा ॥12॥
आप वराह रूप बनाया ।
हरण्याक्ष को मार गिराया ॥
धर मत्स्य तन सिंधु बनाया ।
चौदह रतनन को निकलाया ॥
अमिलख असुरन द्वंद मचाया ।
रूप मोहनी आप दिखाया ॥
देवन को अमृत पान कराया ।
असुरन को छवि से बहलाया ॥16॥
कूर्म रूप धर सिंधु मझाया ।
मंद्राचल गिरि तुरत उठाया ॥
शंकर का तुम फन्द छुड़ाया ।
भस्मासुर को रूप दिखाया ॥
वेदन को जब असुर डुबाया ।
कर प्रबंध उन्हें ढूंढवाया ॥
मोहित बनकर खलहि नचाया ।
उसही कर से भस्म कराया ॥20॥
असुर जलंधर अति बलदाई ।
शंकर से उन कीन्ह लडाई ॥
हार पार शिव सकल बनाई ।
कीन सती से छल खल जाई ॥
सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी ।
बतलाई सब विपत कहानी ॥
तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी ।
वृन्दा की सब सुरति भुलानी ॥24॥
देखत तीन दनुज शैतानी ।
वृन्दा आय तुम्हें लपटानी ॥
हो स्पर्श धर्म क्षति मानी ।
हना असुर उर शिव शैतानी ॥
तुमने ध्रुव प्रहलाद उबारे ।
हिरणाकुश आदिक खल मारे ॥
गणिका और अजामिल तारे ।
बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे ॥28॥
हरहु सकल संताप हमारे ।
कृपा करहु हरि सिरजन हारे ॥
देखहुं मैं निज दरश तुम्हारे ।
दीन बन्धु भक्तन हितकारे ॥
चहत आपका सेवक दर्शन ।
करहु दया अपनी मधुसूदन ॥
जानूं नहीं योग्य जप पूजन ।
होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन ॥32॥
शीलदया सन्तोष सुलक्षण ।
विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण ॥
करहुं आपका किस विधि पूजन ।
कुमति विलोक होत दुख भीषण ॥
करहुं प्रणाम कौन विधिसुमिरण ।
कौन भांति मैं करहु समर्पण ॥
सुर मुनि करत सदा सेवकाई ।
हर्षित रहत परम गति पाई ॥36॥
दीन दुखिन पर सदा सहाई ।
निज जन जान लेव अपनाई ॥
पाप दोष संताप नशाओ ।
भव-बंधन से मुक्त कराओ ॥
सुख संपत्ति दे सुख उपजाओ ।
निज चरनन का दास बनाओ ॥
निगम सदा ये विनय सुनावै ।
पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै ॥40॥
भगवान श्रीकृष्ण को मोरमुकुटधारी क्यों कहा जाता है, क्यों सजता है उनके मुकुट में मोरपंख?
7 Sep, 2023 06:24 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
Janmashtami 2023: हिंदू पंचाग के अनुसार हर साल भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्वस के रूप में कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है। अनेक ग्रंथों में भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी कई लीलाएं और मान्यताएं हैं।
भगवान श्री कृष्ण अपने मुकुट में मोर पंख लगाते थे, इस कारण से कृष्ण भगवान को मोर मुकुटधारी भी कहा जाता है। माता यशोदा अपने कान्हा का खूब श्रृंगार करती थीं और उनके मुकुट पर हमेशा मोर पंख का लगाती थीं। कान्हा के मुकुट पर हमेशा मोर पंख क्यों सजा होता है? इसके पीछे कई कथाएं प्रचलित हैं।
जब मोर को दिया आश्वासन
कथा है कि जब भगवान विष्णु ने त्रेता युग में श्रीराम के रूप में अवतार लिया और जब श्रीराम अपनी पत्नी सीता व भाई लक्ष्मण सहित 14 वर्ष के लिए वनवास गए थे। तभी वन में सीता को रावण हर कर ले गया था। तब राम और लक्ष्मण सीता को खोजते हुए वन वन भटक रहे थे और सभी से सीता का पता पूछ रहे थे कि क्या उन्होंने सीता को कहीं देखा है? तब एक मोर ने कहा कि प्रभु मैं आपको रास्ता बता सकता हूं कि रावण सीता माता को किस ओर ले गया है, पर मैं आकाश मार्ग से जाऊंगा और आप पैदल। लेकिन आप रास्ता भटक सकते हैं इसलिए मैं अपना एक एक पंख गिराता हुआ जाऊंगा जिससे आप रास्ता ना भटके और इस तरह मोर ने श्री राम को रास्ता बताया परंतु अंत में वह मरणासन्न हो गया क्योंकि मोर के पंख एक विशिष्ट मौसम में अपने आप ही गिरते हैं ,अगर इस तरह जानबूझ के पंख गिरे तो उसकी मृत्यु हो जाती है। श्रीराम ने उस मोर को कहा कि वे इस जन्म में उसके इस उपकार का मूल्य तो नहीं चुका सकते परंतु अपने अगले जन्म में उसके सम्मान में पंख को अपने मुकुट में धारण करेंगे और इस तरह श्रीकृष्ण के रूप में विष्णु ने जन्म लिया और अपने मुकुट में मोर पंख को धारण किया।
श्रीकृष्ण को था कालसर्प योग
ज्योतिष मान्यता के अनुसार भगवान श्री कृष्ण की कुंडली में कालसर्प योग था। मोर और सांप की दुश्मनी है। यही वजह है कि कालसर्प योग में मोर पंख को साथ रखने की सलाह दी जाती है। कालसर्प दोष का प्रभाव करने के लिए भी भगवान कृष्ण मोरपंख को सदा साथ रखते थे।
ब्रह्मचर्य का प्रतीक है मोर
श्रीकृष्ण के मोर पंख धारण करने के पीछे एक प्रचलित कहानी है कि मोर ही सिर्फ ऐसा पक्षी है, जो जीवन भर ब्रह्मचर्य रहता है। ऐसा कहा जाता है कि मादा मोर नर मोर के आंसू पीकर गर्भ धारण करती है। इस प्रकार श्री कृष्ण ऐसे पवित्र पक्षी के पंख को अपने माथे पर सजाते हैं।
आज रात घर-घर में जन्मेंगे बाल-गोपाल, इस आरती को पढ़ें बिना पूजा रह जाएगी अधूरी
7 Sep, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
आज मध्यरात में हर घर में कान्हा जन्म लेंगे. आज पूरे देश में भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जा रहा है. क्योंकि आज भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र रात के समय जन्माष्टमी पर पड़ेगा.
मान्यता है कि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था. भक्त भगवान श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने के लिए कई तरह के उपाय करते हैं. इस दिन व्रत रखकर श्रीकृष्ण भक्त बाल गोपाल की विधि-विधान से पूजा-अर्चना करते है. धार्मिक मान्यता है कि पूजा के बाद भगवान श्रीकृष्ण की आरती जरुर करनी चाहिए, नहीं तो कान्हा की पूजा अधूरी रह जाएगी. अगर आप भगवान श्रीकृष्ण की पूजा कर रहे है तो यहां से आरती पढ़ सकते है.
Krishna Ji Ki Aarti: श्रीकृष्ण की आरती
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला
श्रवण में कुण्डल झलकाला,नंद के आनंद नंदलाला
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली
लतन में ठाढ़े बनमाली भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक
चंद्र सी झलक, ललित छवि श्यामा प्यारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की, आरती कुंजबिहारी की.॥
कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं।
गगन सों सुमन रासि बरसै, बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग ग्वालिन संग।
अतुल रति गोप कुमारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की.॥
जहां ते प्रकट भई गंगा, सकल मन हारिणि श्री गंगा।
स्मरन ते होत मोह भंगा, बसी शिव सीस।
जटा के बीच,हरै अघ कीच, चरन छवि श्रीबनवारी की
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥ ॥ आरती कुंजबिहारी की.॥
चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू
हंसत मृदु मंद, चांदनी चंद, कटत भव फंद।
टेर सुन दीन दुखारी की
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की.॥
आरती कुंजबिहारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (07 सितम्बर 2023)
7 Sep, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि - इष्ट मित्र सुख वर्धक होंगे, साधन सम्पन्नता के योग बनेंगे, कार्य सम्पन्नता अवश्य होगी।
वृष राशि - कुटुम्ब की चिन्ता व समस्या अनायस बढ़ेगी, किसी के कष्ट से व्यग्रता अवश्य ही बनेगी।
मिथुन राशि - कार्य व्यवसाय में बाधा, मानसिक, उद्विघ्नता तथा कार्य में व्यर्थ भ्रम बन जायेगा।
कर्क राशि - धन लाभ, बिगड़े हुये कार्य बनेंगे, कार्य कुशलता से संतोष होगा, प्रयास सफल होंगे।
सिंह राशि - असमंजस का वातावरण बना ही रहेगा, अनायास कार्य विफल होंगे तथा सुख होगा।
कन्या राशि - विपरित परिस्थितियों के वातावरण की संरचना होगी तथा व्यवसाय में बाधा बनेगी।
तुला राशि - सुख समृद्धि के योग बनेंगे, कार्य कुशलता से संतोष होगा, ध्यान से कार्य संपन्न कर ले।
वृश्चिक राशि - स्त्री शरीर कष्ट, मानसिक बेचैनी, उद्विघ्नता बने तथा कार्य अवरोध अवश्य होगा।
धनु राशि - अशुद्ध गोचर रहने से विशेष कार्य स्थिगित रखे अन्यथा हानि होने की प्रबल संभावना है।
मकर राशि - भाग्य का सितारा साथ देगा। बिगड़े कार्य बनेंगे तथा विश्sाष कार्य सम्पन्न अवश्य होंगे।
कुंभ राशि - इष्ट मित्र सुखवर्धक होंगे। दैनिक कार्य में अनुकूलता बनी ही रहेगी। समय का ध्यान दें।
मीन राशि - प्रबलता प्रभुत्व वृद्धि, भौतिक सफलता के साधन जुटाए रुके कार्य बन जाएंगे।
भगवान गणेश की पूजा के दौरान रखें इन जरुरी बातों का ध्यान
6 Sep, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में कोई भी शुभ कार्य शुरु करने से पहले प्रभु श्री गणेश की पूजा का विधान है। पौराणिक मान्यता है कि प्रभु श्री गणेश की पूजा करने से सारी विघ्न-बाधाएं दूर हो जाती हैं। वही इस बार गणेश चतुर्थी भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाएगी।
अंग्रेजी महीने के मुताबिक, यह सितंबर माह की 19 तारीख को पड़ रही है। 10 दिन चलने वाले इस पर्व की धूम पूरे भारत में देखने को मिलेगी। इस के चलते भक्त गणपति की निरंतर 10 दिन तक पूरे विधि विधान से पूजा-अर्चना करेंगे। फिर 10 दिनों बाद अनंत चतुर्दशी पर गणेश जी की प्रतिमा का विसर्जन कर उन्हें विदा करेंगे।
भगवान गणेश की पूजा से जुड़ी कुछ अहम बातें:-
गणेश जी की पूजा में तुलसी को सम्मिलित न करें।
आपको प्रभु श्री गणेश को गुड़ के मोदक और बूंदी के लड्डू, शामी वृक्ष के पत्ते तथा सुपारी अर्पित करनी चाहिए, क्योंकि ये चीजें भगवान को अति प्रिय होती हैं।
गणपति जी की पूजा हमेशा हरे रंग के कपड़े पहनकर करनी चाहिए।
गणेश चतुर्थी में भगवान की स्थापना करने के पश्चात् प्याज और लहसुन का सेवन न लगाएं।
पूजा के चलते भगवान को दूर्वा घास अवश्य चढ़ाएं।
हिंदू संस्कृति में ऐसी मान्यता है कि गणेश चतुर्थी की रात चंद्रमा को नहीं देखना चाहिए। यह मान्यता पीढ़ियों से चली आ रही है। कहा जाता है कि प्रभु श्री कृष्ण पर एक बहुमूल्य रत्न चोरी करने का झूठा आरोप लगाया गया तथा उन्हें सजा दी गई। तत्पश्चात, भगवान को कोढ़ की बीमारी हो गई, जिससे छुटकारा पाने का सिर्फ एक ही तरीका था, भक्ति-भाव के साथ गणेश चतुर्थी पर भगवान गणपति की पूजा करना। हालांकि, इस त्यौहार की रात जब भगवान ने चंद्रमा को देखा, तो उनकी बीमारी और बढ़ गई। यही वजह है कि इस दिन चंद्रमा को नहीं देखना चाहिए।
पितृ पक्ष के दौरान खान पान से संबंधित इन बातों का जरूर रखें ध्यान नहीं तो रुठ जाते हैं पितृ
6 Sep, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
पितृ पक्ष एक ऐसा समय होता है जो पूर्वजों की शांति एवं उनके आशीर्वाद को पाने का समय होता है. इस समय किए जाने वाले अच्छे कार्यों से हम अपने पितरों को प्रसन्न कर सकते हैं. अगर इन कुछ दिनों तक नियमों का पालन सही से किया जाए तो निश्चित है पितरों की शुभता हम सभी को मिलेगी.
इस दौरान कई बातों का विशेष ध्यान रखना होता है जिसमें से सबसे अहम खान पान से जुड़ी आदतें भी हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ज्ञात होता है कि पितृपक्ष एक ऐसा समय होता है जब पितर पृथ्वी पर आते हैं ओर लोग उन्हें पितरों को प्रसन्न कर सकते हैं. इसलिए पितृ पक्ष के दौरान कुछ चीजों का सेवन करना वर्जित माना गया है. आइये जानें इन से जुड़े बातें.
सबसे पहले तो इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि, श्राद्ध क्रिया करने वाले व्यक्ति को बाहर का बना हुआ खाना नहीं खाना चाहिए. उस व्यक्ति को सोलह दिनों तक केवल सात्विक भोजन ही करना चाहिए जब तक यह अवधि समाप्त न हो जाए. धार्मिक दृष्टि से बाहर का खाना अशुद्ध माना जाता है. बता दें कि पितृपक्ष 28 सितंबर से शुरू हो रहा है जो 14 अक्टूबर तक चलने वाले हैं तो अभी से इन बातों को ध्यान में रख लेना उचित होगा.
पितृ पक्ष तक खान पान को लेकर रहें सावधान
श्राद्ध के इस 16 दिनों के दौरान लोग अपने मृत पूर्वजों के लिए पूजा का आयोजन करते हैं और उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं. इसके साथ ही पंडितों और ब्राह्मणों को भोजन और वस्त्र आदि का दान किया जाता है. श्राद्ध के दौरान मांस और चिकन आदि का सेवन नहीं किया जाता है. पितरों के अनुष्ठान में कोई बाधा न आए इस बात का ध्यान देने की आवश्यकता होती है. इसलिए इसमें मांस, मछली, अंडा और शराब का सेवन अशुभ माना जाता है इसलिए इन चीजों का सेवन नहीं किया जाता है. ऐसा माना जाता है कि अगर इस दौरान इन रीति-रिवाजों का ठीक से पालन नहीं किया गया तो पितर नाराज हो सकते हैं. जिसके बाद कई बार पितृदोष की स्थिति का सामना करना पड़ता है.
तामसिक भोजन नशे से दूरी रखना जरूरी होता है.
कुछ हिंदू धार्मिक ग्रंथों में इन दिनों प्याज और लहसुन खाना भी वर्जित माना गया है. प्याज और लहसुन तामसिक प्रकृति के होते हैं. जिसे खाने से व्यक्ति की इंद्रियों पर असर पड़ता है. इसलिए श्राद्ध के दौरान बिना प्याज-लहसुन का खाना बनाने की सलाह दी जाती है. इन सभी बातों को खानपान में ध्यान रखने की सख्त जरूरत होती है तभी पितृ पक्ष सफल होता है.
अगर आप भी कर्ज से परेशान हैं ततो जरूर अपनाएं ये अचूक उपाय
6 Sep, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
जीवन में कर्ज की स्थिति जब भी आती है तो वह एक अत्यंत ही कठोर समय होता है. कई बार ऐसे मोड़ आते हैं की किसी न किसी वजह से न चाहते हुए भी कर्ज लेना पड़ता है. अब ऎसे में कर्ज का असर जीवन में सुख शांति को भी कम कर देने वाला होता है.
जब कर्ज लेने के बाद उससे छुटकारा नहीं मिल पाता है तो यह मानसिक वेदना भी बन जाता है. ऎसे में यदि जल्द से जल्द कुछ उपायों को कर लिया जाए तो रहत मिल सकती है. आइये जानते हैं कैसे हमें कर्ज से मुक्ति पाने में सहायता मिल सकती है.
कर्ज से मुक्ति के लिए करें लक्ष्मी पूजन
धन की देवी देवी लक्ष्मी जी का पूजन हर किसी को कर्ज से मुक्ति दिला सकता है. लक्ष्मी जी की विधि-विधान से पूजा करना शुभ होता है. ऐसा माना जाता है कि जिस व्यक्ति पर देवी लक्ष्मी की कृपा होती है उसे जीवन में कभी भी कोई संकट या आर्थिक परेशानी नहीं होती है. देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए शुक्रवार का दिन बहुत खास माना जाता है. यह दिन देवी लक्ष्मी को समर्पित है. लेकिन इसके अलावा भी हर दिन लक्ष्मी पूजन शुभता दिलाता है. धन का सुख पाने के लिए मां लक्ष्मी को प्रसन्न रखना बहुत जरूरी है. हर कोई चाहता है कि उसके घर में मां लक्ष्मी का वास हो. अगर ऎसे में उनकी पूजा करने के साथ-साथ कुछ उपाय अपनाए जाएं तो व्यक्ति को कर्ज संबंधी समस्याओं से मुक्ति मिलती है. आर्थिक लाभ के नए रास्ते खुलते हैं.
कर्ज मुक्ति के उपाय
अगर हम कर्ज से मुक्ति पाना चाहते हैं तो ज्योतिष शास्त्र में बताए गए उपाय में लक्ष्मी पूजन को जरूर अपनाएं. इसके अनुसार लक्ष्मी की विधि-विधान से पूजा करें. साथ ही कुंवारी कन्याओं को घर बुलाकर खीर खिलानी चाहिए.
कार्यों में रुकावटों का सामना करना पड़ता है तो इसके लिए पीले रंग के वस्त्र और दक्षिणा ब्राह्मण को दान करनी चाहिए. इससे मां लक्ष्मी अपनी कृपा बरसाती हैं. ऎसा करने से काम समय पर पूरे होते हैं आर्थिक लाभ बना रहता है.
आर्थिक समस्याओं से मुक्ति के लिए चींटियों को चीनी खिलाने से सारे रुके हुए आर्थिक लाभ दूर हो जाते हैं. काम सुलझ जाते हैं. यह उपाय नियमित रुप से करना शुभ होता है. शुक्रवार के दिन देवी लक्ष्मी की विधि-विधान से पूजा करें और उन्हें कमल का फूल चढ़ाएं. मां लक्ष्मी को कमल का फूल बहुत प्रिय है और वह इससे प्रसन्न होकर अपने भक्तों को आशीर्वाद देती हैं.
वर्षों बाद जन्माष्टमी पर दुर्लभ संयोग, कृष्ण जन्माष्टमी कहीं आज तो कहीं कल
6 Sep, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हर वर्ष देशभर में भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में बहुत हि उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जाता है। कृष्ण जन्माष्टमी पर मथुरा, वृंदावन और इस्कॉन मंदिर में विशेष तरह के आयोजन किए जाते हैं।
लेकिन इस साल अष्टमी तिथि दो दिन होने के कारण जन्माष्टमी का त्योहार 6 और 7 सितंबर दो दिन मनाई जा रही है। गृहस्थ लोगों के लिए जन्माष्टमी 6 सितंबर को जबकि वैष्णव संप्रदाय के लोगों के लिए 7 सितंबर को जन्माष्टमी है। मथुरा, वृंदावन और इस्कॉन मंदिर में जन्माष्टमी 7 सितंबर को मनाई जाएगी।
हिंदू पंचांग के अनुसार आज यानी 06 सितंबर 2023 को भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि है। आज यह सप्तमी तिथि शाम 03 बजकर 36 मिनट तक रहेगी फिर इसके बाद अष्टमी तिथि लग जाएगी। भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि बहुत ही खास मानी जाती है क्योंकि इस तिथि पर भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ था। कृष्ण जन्माष्टमी तिथि पर भगवान कृष्ण के बाल गोपाल स्वरूप की विधिवत पूजा और जन्मोत्सव मनाया जाता है।
इस वर्ष कृष्ण जन्माष्टमी पर दुर्लभ संयोग बना हुआ है। शास्त्रों के अनुसार भगवान कृष्ण का जन्म भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के संयोग में मध्य रात्रि को हुआ था। इस वर्ष भी कृष्ण जन्माष्टमी पर रोहिणी नक्षत्र का योग है, जो एक बहुत ही दुर्लभ संयोग माना जा रहा है।
गर्ग संहिता के अनुसार भगवान कृष्ण का जन्म मां देवकी की कोख से भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र, हर्षण योग और वृषभ लग्न में मध्य रात्रि को हुआ था।
विष्णु और ब्रह्रा पुराण के अनुसार कृष्ण जन्माष्टमी में उल्लेख मिलता है कि भगवान योगनिद्रा से कहते हैं कि भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की मध्यरात्रि में मैं जन्म लूंगा।
भगवान कृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। इस साल कृष्ण जन्माष्टमी का यह पर्व 5250 वां कृष्ण जन्मोत्सव है। कुछ विद्वानों का मत है कि कृष्ण जन्माष्टमी तिथि और नक्षत्र के संयोग होने की वजह से 6 सितंबर की रात को मनानी चाहिए। वहीं द्वारिका, वृंदावन, मथुरा और इस्कान के मंदिरों में जन्माष्टमी 7 सितंबर को मनाई जा रही है।
भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि प्रारंभ- 06 सितंबर 2023 को दोपहर 03 बजकर 37 मिनट से
भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि समापन- 07 सितंबर 2023 को शाम 04 बजकर 14 मिनट पर
कृष्ण जन्माष्टमी 2023 शुभ मुहूर्त (Krishna Janmashtami 2023 Shubh Muhurat)
रोहिणी नक्षत्र प्रारंभ- 06 सितंबर 2023 को सुबह 09 बजकर 20 मिनट से
रोहिणी नक्षत्र समापन- 07 सितंबर 2023 को सुबह 10 बजकर 25 मिनट तक
निशिताकाल पूजा मुहूर्त (गृहस्थ)- 07 सितंबर को रात 11 बजकर 57 मिनट से 12 बजकर 42 मिनट
निशिताकाल पूजा मुहूर्त (वैष्णव)- 08 सितंबर को सुबह 12 बजकर 02 मिनट से 12 बजकर 48 मिनट
भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र में भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ था। हर साल भव्य तरीके से जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाता है। जन्माष्टमी पर कान्हा जी को भोग में पंचामृत जरूर चढ़ाएं। इसके अलावा माखन, मिसरी, मेवा, दही और धनिए की पंजीरी को जरूर अप्रित करें।
इस वर्ष भी जन्माष्टमी का पर्व दो दिन मनाया जा रहा है। गृहस्थ लोग 6 सितंबर को जबकि वैष्णव संप्रदाय के लोग 7 सितंबर को जन्माष्टमी मना रहे हैं। जन्माष्टमी के लिए पूजा का शुभ मुहूर्त 6 सितंबर को रात 11 बजकर 56 मिनट से लेकर रात 12 बजकर 42 मिनट तक रहेगा।
हिंदू धर्म में कृष्ण जन्माष्टमी के त्योहार का विशेष महत्व होता है। पूरे देश में जन्माष्टमी के पर्व को विशेष रूप से मनाया जाता है। इस दिन प्रमुख कृष्ण मंदिरों को भारी भीड़ होती है। इस बार जन्माष्टमी का त्योहार 2 दिन मनाया जा रहा है। हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि आज यानी 06 सितंबर को दोपहर 3 बजकर 37 मिनट से आरंभ हो जाएगी जिसका समापन कल 7 सितंबर को शाम 4 बजकर 14 मिनट पर होगा। इसके अलावा खास बात ये है कि इस तिथि पर रोहिणी नक्षत्र रहेगी। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार इस वर्ष गृहस्थ लोग 6 सितंबर को जन्माष्टमी मनाएं जबकि वैष्णव संप्रदाय के लोग 7 सितंबर को जन्माष्टमी मनाएं।
Krishna Janmashtami 2023: देशभर में कहीं आज तो कहीं कल कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जा रहा है। हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। इस साल भी कृष्ण जन्माष्टमी की तिथि को लेकर भ्रम की स्थिति बनी हुई है कि भगवान कृष्ण का प्राकट्य पर्व किस दिन मनाया जाय। कहीं 6 सितंबर को कृष्ण जन्माष्टमी तो कहीं 7 सितंबर को मनाने की बात हो रही है। आइए विस्तार से जानते हैं कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व कब और कैसे मनाया जाय, पूजा का शुभ मुहूर्त क्या होगा, पूजा विधि, पूजन सामग्री और कौन से दुर्लभ योग बन रहे हैं।
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (06 सितम्बर 2023)
6 Sep, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- योजनाएं फलीभूत हो, सामाजिक कार्य में प्रतिष्ठा बनी रहेगी तथा धन का लाभ होगा।
वृष राशि - तत्परता एवं उदंडता से धन का लाभ, कार्य पूर्ण सफलता व सहयोग से बिगड़े कार्य बनेंगे।
मिथुन राशि - कार्यक्षमता के साधन बने, योजनाएं फलीभूत हो विशेष कार्य निपटा ले, कार्य का ध्यान रखे।
कर्क राशि - कार्य योजना फलीभूत होगी तथा प्रयत्न एवं परिश्रम पूर्णत सफल व संतुष्ट होंगे।
सिंह राशि - दूसरों के कार्य से व्यर्थ भ्रमण करना होगा, धन का व्यय तथा मानसिक बेचैनी बढ़ेगी।
कन्या राशि अशुद्ध गोचर होने से मानसिक बेचैनी बढ़ेगी, विशेष कार्य स्थिगित रखे, लेनदेन में हानि हो।
तुला राशि - बिगड़े कार्य बनें, कार्य सफलता से संतोष होगा तथा धन का विशेष लाभ निश्चय होगा।
वृश्चिक राशि - धन का व्यय होगा, थकावट बेचैनी बनी ही रहेगी किन्तु कार्य वृत्ति में सुधार सफल होंगे।
धनु राशि - योजनाएं फलीभूत हो, स्त्रीवर्ग से उल्लास होगा तथा भ्रम से बचकर चले ध्यान रखे।
मकर राशि - परिश्रम से सोचे कार्य पूर्ण होंगे तथा कार्य गति में निश्चय ही कार्य सुधार होगा।
कुंभ राशि - धन और समय बेकार जाए, समय पर सोचे कार्य पूर्ण हो जाएंगे तथा कार्य अवरोध होगा।
मीन राशि - सुख समृद्धि के साधन बने, रुके व सोचे हुए कार्य पूर्ण अवश्य हो जाएंगे।