धर्म एवं ज्योतिष (ऑर्काइव)
कब से शुरू होंगे महालक्ष्मी व्रत? यहाँ जानिए शुभ मुहूर्त
21 Sep, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में महालक्ष्मी व्रत की खास अहमियत है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, महालक्ष्मी व्रत को रखने से मां लक्ष्मी की कृपा से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। महालक्ष्मी व्रत से जीवन की सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं तथा जीवन आनंदमय हो जाता है।
इस व्रत में अन्न ग्रहण नहीं किया जाता है। 16वें दिन महालक्ष्मी व्रत का उद्यापन किया जाता है। इस व्रत को बहुत शुभ माना जाता है। कहा जाता हैं कि विधि-विधान से पूजन करने से सुख-समृद्धि एवं धन की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि जिस घर की स्त्रियां इस व्रत को रखती हैं, उस घर में पारिवारिक शांति हमेशा बनी रहती है। प्रत्येक वर्ष भाद्रपद की शुक्ल अष्टमी के दिन से श्री महालक्ष्मी व्रत आरम्भ होता है। यह 16 दिनों तक चलता है तथा इस व्रत में मां लक्ष्मी का विधि-विधान से पूजन किया जाता है।
महालक्ष्मी व्रत तिथि और शुभ मुहूर्त:-
महालक्ष्मी व्रत प्रारंभ- शुक्रवार, सितम्बर 22, 2023 से
चन्द्रोदय समय - कोई नहीं
महालक्ष्मी व्रत पूर्ण शुक्रवार, अक्टूबर 6, 2023 को
सम्पूर्ण महालक्ष्मी व्रत के दिन - 15
अष्टमी तिथि प्रारम्भ - सितम्बर 22, 2023 को 01:35 PM बजे
अष्टमी तिथि समाप्त - सितम्बर 23, 2023 को 12:17 PM बजे
शारदीय नवरात्रि में करें इन नियमों का पालन, वरना रूठ जाएगीं माता
21 Sep, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में कई सारे व्रत त्योहार पड़ते हैं और सभी का अपना महत्व भी होता है लेकिन नवरात्रि बेहद ही खास मानी जाती है जो कि मां दुर्गा की साधना आराधना का उत्तम समय होता है। इस दौरान भक्त देवी मां की विधि विधान से पूजा करते हैं और व्रत आदि भी रखते हैं नवरात्रि का त्योहार पूरे नौ दिनों तक चलता है जिसमें हर दिन माता के अलग अलग रूपों की पूजा की जाती है। इस साल शारदीय नवरात्रि का आरंभ 15 अक्टूबर दिन रविवार से हो रहा है और समापन 23 अक्टूबर दिन सोमवार को हो जाएगा। इस दौरान पूजा पाठ और व्रत करने से देवी दुर्गा का आशीर्वाद भक्तों को प्राप्त होता है लेकिन इसी के साथ ही अगर नवरात्रि के दिनों में कुछ नियमों का पालन किया जाए तो व्रत पूजन का पूर्ण फल मिलता है, तो आज हम आपको उन्हीं के बारे में बता रहे हैं।
नवरात्रि में करें इन नियमों का पालन-
शास्त्र अनुसार नवरात्रि का समय बेहद पवित्र माना गया हैं ऐसे में इस दौरान घर का माहौल सकारात्मक रखना चाहिए साथ ही घर में सुबह शाम पूजा आरती जरूर करनी चाहिए ऐसा करने से माता का आशीर्वाद मिलता है। इसके अलावा घर में देवी देवताओं की खंडित प्रतिमा को भी नहीं रखना चाहिए क्योंकि इससे नकारात्मकता का संचार होता है जो कष्टों को पैदा करती है ऐसे में नवरात्रि से पहले ही आप घर से खंडित प्रतिमा को जल में प्रवाहित कर दें।
गुरुवार के दिन करें ये उपाय, होगी भाग्य में वृद्धि
21 Sep, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में हफ्ते का हर दिन किसी न किसी देवता की पूजा अर्चना को समर्पित किया गया हैं। वही गुरुवार का दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु और देवों के गुरु बृहस्पति की पूजा आराधना के लिए श्रेष्ठ माना गया हैं।
इस दिन भक्त प्रभु को प्रसन्न करने के लिए उनकी विधि विधान से पूजा करते हैं और व्रत आदि भी रखते हैं लेकिन इसी के साथ ही अगर आज के दिन भगवान बृहस्पति का ध्यान करते हुए प्रभु के 108 नामों का मन ही मन जाप किया जाए तो उत्तम परिणाम की प्राप्ति होती है साथ ही भाग्य भी चमक जाता है तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं भगवान बृहस्पति के 108 नाम।
। अथ श्री बृहस्पति अष्टोत्तर शतनामावली ।
ॐ गुरवे नमः,
ॐ गुणाकराय नमः,
ॐ गोप्त्रे नमः,
ॐ गोचराय नमः,
ॐ गोपतिप्रियाय नमः,
ॐ गुणिने नमः,
ॐ गुणवतां श्रेष्ठाय नमः,
ॐ गुरूणां गुरवे नमः,
ॐ अव्ययाय नमः,
ॐ जेत्रे नमः,
ॐ जयन्ताय नमः,
ॐ जयदाय नमः,
ॐ जीवाय नमः,
ॐ अनन्ताय नमः,
ॐ जयावहाय नमः,
ॐ आङ्गीरसाय नमः,
ॐ अध्वरासक्ताय नमः,
ॐ विविक्ताय नमः,
ॐ अध्वरकृत्पराय नमः,
ॐ वाचस्पतये नमः,
ॐ वशिने नमः,
ॐ वश्याय नमः,
ॐ वरिष्ठाय नमः,
ॐ वागविचक्षणाय नमः,
चित्तशुद्धिकराय नमः,
ॐ श्रीमते नमः,
ॐ चेत्रय नमः,
ॐ चित्रशिखण्डिराजाय नमः,
ॐ बृहद्रथाय नमः,
ॐ बृहद्भानवे नमः,
ॐ बृहस्पतये नमः,
ॐ अभीष्टयाय नमः,
ॐ सुराचार्याय नमः,
ॐ सुराध्यक्षाय नमः,
ॐ सुंरकार्यकृतोद्यमाय नमः,
ॐ गीर्वाणपोषकाय नमः,
ॐ कमण्डलुधराय नमः,
ॐ गीष्पतये नमः,
ॐ गिरिशाय नमः,
ॐ अनघाय नमः,
ॐ धीवराय नमः,
ॐ धिषणाय नमः,
ॐ दिव्यभूषणाय नमः,
ॐ देवपूजिताय नमः,
ॐ धनुर्द्धराय नमः,
ॐ दैत्यहन्त्रे नमः,
ॐ दयासाराय नमः,
ॐ दयाकराय नमः,
ॐ दारिद्यनाशनाय नमः,
ॐ धन्याय नमः,
ॐ दक्षिणायनसंभवाय नमः,
ॐ धनुर्वीराधिपाय नमः,
ॐ देवाय नमः,
ॐ धनुर्बाणधरय नमः,
ॐ हरये नमः,
ॐ आङ्गिः कुलसंभवाय नमः,
ॐ आङ्गिरशाब्दसञजाताय नमः,
ॐ सिन्धुदेशाधिपाय नमः,
ॐ धीमते नमः,
ॐ स्वर्णकायाय नमः,
ॐ चतुर्भुजाय नमः,
ॐ हेमङ्गदाय नमः,
ॐ हेमवपुषे नमः,
ॐ हेमभूषणभूषिताय नमः,
ॐ पुष्यनाथाय नमः,
ॐ सर्ववे दान्तविदुषे नमः,
ॐ पुष्पयरागमणिमण्डनमण्डिताय नमः,
ॐ पुष्पसमानाभाय नमः,
ॐ इन्द्रादिदेवदेवेशाय नमः,
ॐ असमानबलाय नमः,
ॐ सत्वगुणसम्पद्विभावसवे नमः,
ॐ भूसुराभीष्टफलदाय नमः
ॐ भूरियशसे नमः,
ॐ पुण्यविवर्धनाय नमः,
ॐ धर्मरूपाय नमः,
ॐ धनाध्यक्षाय नमः,
ॐ धनदाय नमः,
ॐ धर्मपालनाय नम:,
ॐ सर्वदेवार्थतत्त्वज्ञाय नमः,
ॐ सर्वापद्विनिवारकाय नमः,
ॐ सर्वपापप्रशमनाय नमः,
ॐ स्वमतानुगतामराय नमः
ॐ ऋग्वेदपारगाय नमः,
ॐ ऋक्षराशिमार्गप्रचारवते नमः,
ॐ सदानन्दाय नमः,
ॐ सुराचार्यायनमः,
ॐ सत्यसधाय नमः,
ॐ सर्वागमज्ञायनमः ,
ॐ सर्वज्ञाय नमः,
ॐ ब्रह्मपुत्रय नमः,
ॐ ब्राह्मणेशाय नमः,
ॐ ब्रह्मविद्याविशारदाय नमः,
ॐ समानाधिकनिंर्भुक्ताय नमः,
ॐ सर्वलोक वंशवदाय नमः,
ॐ सुरासुरगन्धर्ववन्दिताय नमः,
ॐ सत्यभाषणाय नमः,
ॐ सुरकार्यहितकराय नमः
ॐ दयावते नमः,
ॐ शुभलक्षणाय नमः,
ॐ लोकत्रयगुरवे नमः ,
ॐ तपोनिधये नमः,
ॐ सर्वगाय नमः,
ॐ सर्वतोविभवे नमः,
ॐ सर्वेशाय नमः,
ॐ सर्वदातुष्टाय नमः,
ॐ सर्वगाय नमः,
ॐ सर्वपूजिताय नमः,
ॐ सत्य संङ्गल्पमानसाय नमः।
। इति श्री बृहस्पति अष्टोत्तर शतनामावली ।
ओंकोरश्वर में आचार्य शंकर की 108 फीट ऊंची मूर्ति का अनावरण
21 Sep, 2023 02:33 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मंधाता पर्वत पर अष्टधातु से निर्मित 108 फीट ऊंची आचार्य शंकर की प्रतिमा का अनावरण मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किया। इससे पहले सैकड़ों संतों ने 21 कुंडीय महायज्ञ में भाग लिया और पूरे विधि विधान से यह कार्य संपन्न हुआ। एकात्मता की मूर्ति का अनावरण और अद्वैत लोक का भूमि एवं शिला पूजन दक्षिणाम्नाय श्रृंगेरी शारदापीठ के मार्गदर्शन में हुआ। सनातन के ध्वजवाहक आचार्य शंकर के व्यक्तित्व और उनके सिद्धांतों को लेकर नया विमर्श ओंकारेश्वर की भूमि से एक बार फिर शुरु हो रहा है।
21 कुंडीय यज्ञ में सैकड़ों संतों की रही भागीदारी
नर्मदा नदी के तट पर मंधाता पर्वत पर आचार्य शंकर की 108 फीट ऊंची मूर्ति के अनावरण से पहले उत्तरकाशी के स्वामी ब्रहोन्द्रानन्द तथा 32 संन्यासियों द्वारा प्रस्थानत्रय भाष्य पारायण और दक्षिणाम्नाय श्रृंगेरी शारदापीठ के मार्गदर्शन में देश के लगभग 300 विख्यात वैदिक आर्चकों द्वारा वैदिक रीति पूजन तथा 21 कुंडीय हवन किया गया।
अद्वैतमय हुआ ओम्कारेश्वर
मुख्यमंत्री ने आदि शंकराचार्य जी की ज्ञान भूमि ओम्कारेश्वर में 108 फीट ऊंची भव्य और दिव्य प्रतिमा ’एकात्मता की मूर्ति’ का अनावरण एवं “अद्वैत लोक” का शिलान्यास किया। अपने संबोधन में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि आध्यात्मिक ऊर्जा से अनुप्राणित आचार्य शंकर के श्रीचरणों में ही शुभता और शुभत्व है। संपूर्ण जगत के कल्याण का सूर्य अद्वैत के मंगलकारी विचारों में ही निहित है।
संपूर्ण विश्व को “एकात्मता“ का संदेश दे रहा मध्यप्रदेश
एकात्मकता का प्रतीक इस प्रतिमा को स्टैच्यू ऑफ वननेस का नाम दिया गया है। आदि शंकराचार्य जी की प्रतिमा में 12 साल के आचार्य शंकर की झलक नजर आ रही है। दरअसल, ओंकारेश्वर आचार्य शंकर की ज्ञान भूमि और गुरु भूमि है। यहीं उनको गुरु गोविंद भगवत्पाद मिले। आचार्य शंकर ने यहां पर चार वर्ष रहकर विद्या अध्ययन किया। चार वर्ष तक ज्ञान अर्जित करने के बाद केवल 12 वर्ष की आयु में वे ओंकारेश्वर से ही अखंड भारत में वेदांत के लोकव्यापीकरण के लिए प्रस्थान किया था। इसलिए मान्धाता पर्वत पर 12 वर्ष के आचार्य शंकर की प्रतिमा की स्थापना की गई।
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (21 सितम्बर 2023)
21 Sep, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष- कही विवाद हेने से बचिए, दैनिक कार्य गति में बाधा बनेगी कार्य रुके ही जायेंगे।
वृष- योजनाएं फलीभूत हेंगी, कुछ नवीन मैत्री, मंत्रणा सुखप्रद अवश्य होवेंगी।
मिथुन- तर्क वितर्क वाद विवाद मानसिक बेचैनी, कार्यवृत्ति में बाधायें अवश्य ही बनेगी।
कर्क- भाग्य का सितारा बुलंद होगा, नई योजना फलीभूत होगी, रुके कार्य अवश्य बनेंगे।
सिंह- आकस्मिक चिताएं धन का व्यय एवं अनेक प्रकार के उपद्रव होंगे उनसे बचकर चलेंगे।
कन्या- मनोवृत्ति रखें तो स्त्री जाति से सुख वृथा भ्रम, दूसरों की उत्तेजना से बचें।
तुला- परिश्रम से सोचे हुए कार्य बनेंगे, कार्य कुशलता से संतोष होगा, रुके कार्य बनेंगे।
वृश्चिक- कार्य व्यवसाय गति में सुधार होगा, योजनाएं फलप्रद रहे, इष्ट मित्र सुखवर्धक होंगे।
धनु- योजनाएं फलीभूत होगी, मनोवृत्ति संवेदनशील रहेगी, रुके कार्य अवश्य ही बनेंगे।
मकर- कार्य व्यवसाय गति में सुधार होगा, चिन्ताएं कम होगी, कार्य पर विचार कर देखें।
कुंभ- तनाव क्लेश, आशांति मानसिक उद्विघ्नता से बचें, किन्तु परिश्रम सफल होंगा।
मीन- मान प्रतिष्ठा के योग बनेंगे, कुटुम्ब की समस्याएं, सुलझे कार्यगति उत्तम होवेगी।
पितृपक्ष में श्राद्ध के लिए तिथियां क्यों होती है महत्वपूर्ण, यहां जानें पिंडदान करने की डेट और दिन
20 Sep, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
पितृ पक्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा से शुरू होता है और अश्विनी मास की अमावस्या पर समाप्त होता है. पितरों को खुश करने के लिए हर साल पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध किए जाते हैं.
इस साल पितृपक्ष 29 सितंबर से शुरू हो रहा है.
पितरों की तृप्ति के लिए किए जाते हैं श्राद्ध
हर साल पितृ पक्ष के 16 दिन पितरों की तृप्ति के लिए श्राद्ध किए जाते हैं जिससे उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है.पितृपक्ष में बहुत से लोग पूरे विधि विधान से अपने पितरों का पिंडदान करते हैं और उनके आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं.
पिंडदान का महत्व
पिंडदान का महत्व
धार्मिक मान्यता अनुसार पितरों का पिंडदान करने से पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त होता है. इससे घर में पितृ दोष से हो रहे परेशानियों से भी छुटकारा मिलता है.
पितरों का श्राद्ध क्यों किया जाता है?
श्राद्ध पूर्वजों की आत्माओं को शांति दिलाने के लिए किया जाता है. ऋण से मुक्ति पाने के लिए श्राद्ध किए जाते हैं. पितृपक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के लिए हम तर्पण, दान,पूजा-पाठ और साथ ही पिंडदान करते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं.
श्राद्ध तिथि क्या है?
मरणोपरांत पूर्वजों की पूजा की जाती है. ये प्रसाद श्राद्ध के रूप में होते हैं, जो पितृपक्ष में पड़ने वाली मृत्यु की तिथि पर किया जाना चाहिए और यदि तिथि ज्ञात नहीं है, तो आश्विन अमावस्या की पूजा की जा सकती है जिसे सर्वव्यापी अमावस्या भी कहा जाता है.
पितृपक्ष 2023
पितृ पक्ष की तिथियां
हर साल पितृ पक्ष में तिथियों के अनुसार पितरों का श्राद्ध किया जाता हैं. 16 दिनों तक चलने वाले पितृ पक्ष में कौन सा श्राद्ध कब है, आइए यहां पर जानते है.
गयाजी में श्राद्ध करते हुए
29 सितंबर 2023, शुक्रवार पूर्णिमा तथा प्रतिपदा का श्राद्ध
30 सितंबर 2023, शनिवार द्वितीया तिथि का श्राद्ध
01 अक्टूबर 2023,रविवार तृतीया तिथि का श्राद्ध
02 अक्टूबर 2023,सोमवार चतुर्थी तिथि का श्राद्ध
03 अक्टूबर 2023,मंगलवार पंचमी तिथि का श्राद्ध
pitru paksha 2023
04 अक्टूबर 2023,बुधवार षष्ठी तिथि का श्राद्ध
05 अक्टूबर 2023,गुरुवार सप्तमी तिथि का श्राद्ध
06 अक्टूबर 2023,शुक्रवार अष्टमी तिथि का श्राद्ध
07 अक्टूबर 2023,शनिवार नवमी तिथि का श्राद्ध
08 अक्टूबर 2023,रविवार दशमी तिथि का श्राद्ध
09 अक्टूबर 2023,सोमवार एकादशी तिथि का श्राद्ध
इन तिथियों पर पिंडदान का है विधान
10 अक्टूबर 2023,मंगलवार मघा श्राद्ध
11 अक्टूबर 2023,बुधवार द्वादशी तिथि का श्राद्ध
12 अक्टूबर 2023, गुरुवार त्रयोदशी तिथि का श्राद्ध
13 अक्टूबर 2023, शुक्रवार चतुर्दशी तिथि का श्राद्ध
14 अक्टूबर 2023, शनिवार सर्व पितृ अमावस्या का श्राद्ध
500 साल पुराना फूलमती माता का ये मंदिर क्यों है प्रसिद्ध? छूमंतर हो जाती है ये बीमारी
20 Sep, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भारत देश में हजारों चमत्कारिक मंदिर हैं। उनमें से कुछ तो ऐसे हैं जिनके रहस्य के बारे में आज तक कोई पता नहीं लगा सका। हालांकि हजारों चमत्कारिक मंदिरों में से एक है फूलमती माता का मंदिर।
इस मंदिर में जाने वालों लोगों की संख्या बहुत अधिक है। यह मंदिर शाहजहांपुर के मोती चौक इलाके में स्थित है।
माता फूलमती मंदिर आस्था का केंद्र बना हुआ है। यहां आने वाले हर भक्त की मनौती अवश्य पूरी होती है। इसलिए लोग शादी विवाह के पूर्व मां को विधिवत आमंत्रण देते हैं। वहां विवाह के बाद वैवाहिक जीवन शुरु करने के पूर्व मां का आर्शीवाद अवश्य लेते हैं। यहां नियमित हवन के अलावा पूरे नवरात्र भर दुर्गा पूजा महोत्सव का भी आयोजन किया जाता है।
500 साल पुराने इस मंदिर में माता की मूर्ति के अलावा अन्य देवी देवताओं की मूर्तियां भी स्थापित हैं। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार बताया जाता है कि इस मंदिर में फूलमती माता के चरणों से निकलने वाले जल को अगर आंखों में लगाया जाए तो आंखें स्वस्थ हो जाती हैं यानी नजर दोष दूर हो जाता है। इसी मान्यता के चलते यहां हजारों की संख्या में लोग माता के दर्शन करने के लिए आते हैं।
इस मंदिर का निर्माण के बारे में कहते हैं कि पंडित सुखलाल जी फूलमती माता के परम भक्त थे। माता जी ने प्रसन्न होकर उनको दर्शन दिए। इसके बाद सुखलाल जी ने कन्नौज स्थित फूलमती माता के चरणों के रूप में मंदिर से एक ईंट अपने सिर पर रखकर लेकर आए और यहां स्थापित कर दी। यहां स्थापित माता के चरणों के दर्शन करने अब दूर-दूर से भक्त आते हैं।
बताया कि माता के चरणों से निकलने वाले जल को आंखों की बीमारी से पीड़ित कोई भी मरीज अपनी आंखों पर लगता है तो आंखें पूरी तरह से स्वस्थ हो जाती हैं।
कहते हैं कि यहां पर लगातार नौ पीढ़ी से एक की परिवार के लोग पूजा कर रहे हैं। वर्तमान में महंत विजय गिरी यहां की देखरेख कर रहे हैं।
घर की इस दिशा में जलाएं कपूर, पैसों की कमी होगी दूर
20 Sep, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में देवी देवताओं की पूजा आराधना में कई सारी चीजें शामिल होती है जिनमें कपूर भी एक है जो बड़ी आसानी से घरों में मिल जाता है क्योंकि इसका प्रयोग रोजाना के पूजा पाठ में अधिक किया जाता है।
धार्मिक तौर पर कपूर को पवित्र माना गया है।
इसकी खुशबू घर के वातावरण को शुद्ध और सकारात्मक बना देती है। साथ ही नकारात्मकता को भी दूर करती है। वास्तु और ज्योतिशास्त्र में कपूर के कई उपाय बताए गए हैं जिन्हें करने से धन व अन्य समस्याओं का समाधान हो जाता है तो आज हम आपको कपूर के आसान उपाय बता रहे हैं।
कपूर के बेहद आसान उपाय-
अगर कर्ज का बोझ बना हुआ है और आप इससे छुटकारा पाना चाहते हैं साथ ही धन लाभ की इच्छा रखते हैं तो घर की दक्षिण पूर्व दिशा में कपूर जरूर जलाएं। ऐसा करने से परिवार पर धन की देवी माता लक्ष्मी की असीम कृपा होती है और धन संबंधी परेशानियां दूर हो जाती है। इसके अलावा वैवाहिक जीवन के तनाव को दूर करने में भी कपूर मददगार साबित होता है इसके लिए रात को सोते वक्त तकिए के नीचे थोड़ा सा कपूर रख दें।
अगले दिन इस कपूर को जलाएं। इससे घर में शांति बनी रहती है और पति पत्नी के बीच होने वाले झगड़े समाप्त हो जाते है। धन की कमी से छुटकारा पाने के लिए आप रात को रसोई का काम समाप्त करके रोजाना एक चांदी की कटोरी में थोड़ा सा कपूर और लौंग जला दें। इससे घर में धन की कमी दूर हो जाती है। ज्योतिष अनुसार पितृदोष से पीड़ित जातक को घर के बाथरुम में रोज कपूर की 2 टिक्कियां रखनी चाहिए ऐसा करने से पितृदोष से मुक्ति मिलती है।
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (20 सितम्बर 2023)
20 Sep, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि - धन का व्यर्थ व्यय, मानसिक अशांति एवं कष्ट मन दुखी रहे, लिम्ब से रुके कार्य बने।
वृष राशि - चिंता ग्रस्त होने से बचें, व्यवसायिक क्षमता अनुकूल अवश्य ही बनेगी, प्रसन्न बने रहे।
मिथुन राशि - तनाव, क्लेश व अशांति असमर्थता का वातावरण कष्टप्रद होगा, ध्यान अवश्य रखेगें।
कर्क राशि - किसी प्रलोभन से बचें, अन्यथा परेशानी में फंस सकते है, समय का ध्यान अवश्य रखें।
सिंह राशि - तनाव, क्लेश व अशांति, असमर्थता का वातावरण कष्टप्रद होगा, विचार कर चलें।
कन्या राशि - विवाद ग्रस्त होने की सम्भावना है, सोचे हुए कार्य समय पर हो जायें, सुख प्राप्त होगा।
तुला राशि - कुटुम्ब की समस्याएW सुलझे, कार्यगति में सुधार कार्य योजना फलीभूत अवश्य होगी।
वृश्चिक राशि - कार्यकुशलता से संतोष, दैनिक समृद्धि के साधन बने, व्यावसाय वृद्धि होवे ध्यान दें।
धनु राशि - अधिकारियों से तनाव, मित्र वर्ग से उपेक्षा से मन अशांत, कार्य में बाधा अवश्य हो।
मकर राशि - मान-प्रतिष्ठा में आंच आने का समय व भय होगा तथा कार्य गति में बाधा होगी।
कुंभ राशि - किसी घटना का शिकार होने से बचें, चोट-कष्ट आदि का भय अवश्य ही बने।
मीन राशि - स्त्री वर्ग से सुख-हर्ष मिले, बिगड़े कार्य बने, समय का लाभ लेवें, कार्य बन ही जायेगें।
घर की कंगाली दूर करेगा मोरपंख
19 Sep, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में मोरपंख को बेहद पवित्र माना गया है क्योंकि इसका संबंध भगवान श्रीकृष्ण से है तो वही वास्तुशास्त्र और ज्योतिष में भी इसे महत्वपूर्ण बताया गया है।
मान्यता है कि मोरपंख को अगर घर में स्थापित कर दिया जाए तो वास्तुदोष दूर हो जाता है और नकारात्मकता से भी मुक्ति मिलती है साथ ही धन धन हानि व अन्य परेशानियों का भी निवारण हो जाता है तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा मोरपंख से जुड़े आसान उपाय बता रहे हैं तो आइए जानते है।
मोरपंख के आसान उपाय-
वास्तु अनुसार अगर घर में मोरपंख स्थापित कर दिया जाए तो नकारात्मकता और वास्तुदोष से मुक्ति मिल जाती है साथ ही सुख समृद्धि आती है। अगर किसी जातक पर राहु की महादशा चल रही है तो उन्हें अपने कमरे में देवी सरस्वती के पास मोरपंख रखना चाहिए ऐसा करने से महादशा से होने वाली पीड़ाओं से छुटकारा मिल जाता है।
अगर आपके घर में किसी को सोते वक्त बुरे सपने आते है तो ऐसे में आप बेडरुम में अपने सिरहाने पर मोरपंख रख सकते है ऐसा करने से राहत मिलती है। इसके अलावा घर के प्रवेश द्वार पर मोरपंख लगाने से दरिद्रता दूर रहती है। लेकिन भूलकर भी मोरपंख को धन स्थान या फिर तिजोरी के उपर नहीं रखना चाहिए।
ऐसा करना अशुभ फल देता है साथ ही धन हानि के योग भी बनने लगते है। वास्तु अनुसार मोरपंख को अगर घर के पूजन स्थल पर रखकर पूजा पाठ की जाए तो आर्थिक तंगी दूर हो जाती है साथ ही साथ गृह क्लेश से भी मुक्ति मिलती है।
80 वर्षों से विराजते आ रहे हैं लाल बाग़ के राजा, जानिए कैसे हुई थी शुरुआत
19 Sep, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
गणेश चतुर्थी, सबसे प्रतिष्ठित हिंदू त्योहारों में से एक, पूरे भारत में भव्य उत्सव मनाया जाता है। मुंबई के हलचल भरे शहर में, "लाल बाग के राजा" के आगमन के साथ उत्साह अपने चरम पर पहुंच जाता है।
यह लेख लाल बाग में मनाए जाने वाले इस प्रतिष्ठित गणेशोत्सव के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व पर प्रकाश डालता है, इसकी उत्पत्ति, महत्व और इसके द्वारा अर्जित की गई भक्ति के वर्षों का पता लगाता है।
लाल बाग में गणेशोत्सव का समृद्ध इतिहास:
गणेशोत्सव, जिसे विनायक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है, दस दिवसीय हिंदू त्योहार है जो ज्ञान और समृद्धि के हाथी के सिर वाले देवता भगवान गणेश के जन्म का जश्न मनाता है। हालाँकि यह त्यौहार पूरे देश में मनाया जाता है, लेकिन यह मुंबईकरों के दिलों में एक अद्वितीय स्थान रखता है, जो इसे अद्वितीय उत्साह और भक्ति के साथ मनाते हैं।
लाल बाग के राजा, जिसका अनुवाद "लाल बाग का राजा" है, मुंबई में सबसे प्रसिद्ध और सम्मानित गणेश मूर्तियों में से एक है। आठ दशकों से अधिक समय से, यह भव्य मूर्ति आस्था, आशा और एकता का प्रतीक रही है, जो शहर भर और बाहर से लाखों भक्तों को आकर्षित करती है।
उत्पत्ति और आरंभ:
लाल बाग के राजा की शुरुआत 20वीं सदी की शुरुआत में हुई थी जब स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने गणेशोत्सव के सार्वजनिक उत्सव की शुरुआत की थी। ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के दौरान, तिलक ने इस उत्सव को दमनकारी औपनिवेशिक शासन के खिलाफ जनता को एकजुट करने के एक साधन के रूप में देखा। उन्होंने लोगों को अपने घरों और सार्वजनिक स्थानों पर भगवान गणेश की मूर्तियां लाने, सामुदायिक संबंधों को बढ़ावा देने और भारतीय संस्कृति में गर्व की भावना पैदा करने के लिए प्रोत्साहित किया।
मुंबई का एक हलचल भरा इलाका, लाल बाग, इस परंपरा को अपनाने वाले पहले लोगों में से एक था। 1934 में, पहले लाल बाग के राजा की स्थापना की गई, जिससे एक ऐसी विरासत की शुरुआत हुई जो दशकों तक निर्बाध रूप से जारी रही।
लाल बाग के राजा का महत्व:
लाल बाग के राजा अपने धार्मिक महत्व से आगे बढ़कर मुंबई की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और एकता की भावना का प्रतीक बन गया है। भक्त, उनकी जाति, पंथ या धर्म के बावजूद, भगवान गणेश का आशीर्वाद लेने के लिए एक साथ आते हैं। यह मूर्ति लाखों लोगों की इच्छाओं को पूरा करने और उनके दिलों को सांत्वना देने के लिए जानी जाती है।
हर साल, लाल बाग के राजा की मूर्ति को सावधानीपूर्वक तैयार किया जाता है, जिसमें कुशल कारीगर एक उत्कृष्ट कृति बनाने में अपना दिल और आत्मा लगाते हैं। मूर्ति को विस्तृत गहनों और कपड़ों से सजाया गया है, जो एक राजा के लिए उपयुक्त ऐश्वर्य को दर्शाता है।
भक्ति के वर्ष:
2023 तक, लाल बाग के राजा का उत्सव लगभग नौ दशकों से मनाया जा रहा है। 80 से अधिक वर्षों से, यह मुंबई की सांस्कृतिक परंपराओं को बनाए रखने के प्रति अटूट विश्वास और प्रतिबद्धता के प्रमाण के रूप में खड़ा है।
लाल बाग के राजा का प्रतीक गणेश चतुर्थी, मुंबई की स्थायी भावना का एक प्रमाण है। यह सिर्फ एक धार्मिक त्योहार नहीं है बल्कि एक सांस्कृतिक घटना है जो जीवन के सभी क्षेत्रों के लोगों को एकजुट करती है। लाल बाग के राजा की विरासत लगातार फल-फूल रही है, जो इस शुभ समय के दौरान भगवान गणेश की दिव्य कृपा चाहने वाले सभी लोगों में खुशी, आशा और आशीर्वाद फैला रही है।
पितृ पक्ष में कैसे करें पितरों को प्रसन्न
19 Sep, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
गणेश उत्सव और अनंत चतुर्दशी के समापन के बाद पितृ पक्ष शुरू होता है। पितृ पक्ष के दौरान वंशज अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध करते हैं। इस वर्ष पितृपक्ष 29 सितंबर 2023 को शुरू होगा और 14 अक्टूबर 2023 को समाप्त होगा।
पितृ पक्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा से शुरू होता है और आश्विन मास की अमावस्या तक चलता है। पितृ पक्ष के इन 16 दिनों में मृत पूर्वजों की तिथि के अनुसार पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध किया जाता है। पितृपक्ष में जल तर्पण करने की भी परंपरा है, जिसे महत्वपूर्ण माना जाता है। लेकिन पितरों को जल चढ़ाते समय कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है। तो जानिए पितृपक्ष के दौरान पितरों को कब और कैसे जल अर्पित किया जाता है।
पितरों को जल देने में तिल और कुश का महत्व |
पितृपक्ष के दौरान पितरों को अर्पित किये जाने वाले जल में कुश और तिल को महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके बिना यह नियम अधूरा है. हिंदू धर्म में कुश को भगवान विष्णु का प्रतीक माना जाता है और भगवान विष्णु ताल में निवास करते हैं। ऐसा माना जाता है कि जब आप अपने पितरों को कुश अर्पित करते हैं तो भगवान विष्णु की कृपा से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके अलावा पितर भी आपसे प्रसन्न होते हैं और आपको आशीर्वाद देते हैं।
इस प्रकार पितरों को जल दिया जाता है
पितृ पक्ष में पिता के साथ-साथ माता और परिवार के ऐसे बुजुर्ग या सदस्य भी शामिल होते हैं जिन्होंने हमारे जीवन, वंश और परिवार के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। पितरों को जल तर्पण करने का एक विशेष विधान है। इसमें पैर के अंगूठे में कुश रखकर जल दिया जाता है। हथेली के अंगूठे पर कुश लगाकर पितरों को तर्पण या श्रद्धा अर्पित की जाती है। इसके पीछे मान्यता यह है कि इस हिस्से को पितृ तीर्थ कहा जाता है और अंगूठे से पितरों को जल अर्पित करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है।
पितरों को जल देने के मंत्र
पितृपक्ष के दौरान पितरों को जल अर्पित करते समय ध्यान करना चाहिए और कहना चाहिए कि मेरे पिता या वसु के रूप में पितर जल ग्रहण करके तृप्त हों। जल देते समय अपने गोत्र के साथ-साथ गोत्र अस्मत्पितामह (दादाजी का नाम) वसुरुपत तृपत्यमिदं तिलोदकम् गंगा जलम् वा तस्मै स्वधा नम:, तस्मै स्वधा नम:, तस्मै स्वधा नम: का नाम अवश्य लेना चाहिए। इस मंत्र का जाप करते हुए 3 बार जल चढ़ाएं।
पितरों को जल तर्पण करने की विधि
जल देने से पहले आवश्यक सामग्री लेकर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके बैठें। फिर हाथ में जल, कुश, अक्षत, पुष्प और काले तिल लेकर हाथ जोड़कर पितरों का ध्यान करें और उन्हें जल ग्रहण करने के लिए आमंत्रित करें। इसके बाद पितरों को जल अर्पित करें। पितरों को जल देते समय श्रद्धापूर्वक जमीन पर 5-7 या 11 बार जल गिराएं। ध्यान रखें कि पितृ पक्ष के दौरान जल देते समय मन, कर्म और वाणी पर नियंत्रण रखना चाहिए।
कैसे पाएं सफलता? आज की चाणक्य नीति से जानें
19 Sep, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
आचार्य चाणक्य को भारत के महान ज्ञानियों और विद्वानों में से एक माना गया है। इनकी नीति देश ही नहीं पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है जिसे चाणक्य नीति के नाम से जाना जाता है।
आचार्य चाणक्य ने अपने जीवन के अनुभवों को नीतिशास्त्र में पिरोया है जिसका अनुसरण करने वाला मनुष्य सफलता के शिखर को प्राप्त करता है।
चाणक्य ने मानव जीवन से जुड़े हर पहलु पर अपनी नीतियां बताई हैं चाणक्य ने अपनी नीतियों में युवााओं को सफलता के कई गुणों के बारे में बताया है तो आज हम इसी विषय पर चर्चा कर रहे हैं तो आइए जानते हैं आज की चाणक्य नीति।
आज की चाणक्य नीति-
चाणक्य नीति अनुसार मनुष्य को ज्ञान अर्जन और अभ्यास को कभी नहीं छोड़ना चाहिए। जो व्यक्ति शास्त्रों का समय समय पर अभ्यास करता है उन्हें जीवन में के हर क्षेत्र में सफलता हासिल होती है। चाणक्य कहते हैं कि जिस प्रकार अच्छा और शुद्ध भोजन स्वस्थ शरीर के लिए लाभकारी होता है और इसे ग्रहण करने से मन प्रसन्न रहता है।
लेकिन जब व्यक्ति शारीरिक रूप से परेशान रहता है या जब उसे बदहजमी की समस्या होती है तब अच्छा भोजन भी उसकी परेशानी को बढ़ा देता है। इसलिए जो लोग शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त करते है और कुछ समय के बाद उसका अभ्यास करना छोड़ देते हैं ऐसे लोगों के पास आधा अधूरा ज्ञान ही बच पाता है जो एक व्यक्ति के लिए विषय के बराबर खतरनाक होता है। मनुष्य को हमेशा ही पूरा ज्ञान रखना चाहिए और इसका अभ्यास भी करते रहना चाहिए तभी वह सफलता को प्राप्त कर सकता है।
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (19 सितम्बर 2023)
19 Sep, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि - इष्ट मित्रों से लाभ होगा, भोग-एश्वर्य की प्राप्ति होगी तथा रुके कार्य बन जायेगें।
वृष राशि - अपनों से तनाव, प्रत्येक कार्य में बाधा बने, लाभकारी योजना हाथ से निकल जायेगी।
मिथुन राशि - धन लाभ, आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा तथा कार्यवृत्ति में सुधार होगा, कार्य बने।
कर्क राशि - कार्य योजना फलीभूत हो, दैनिक सफलता के कार्य संभव हो, तनाव से बचे रहेगें ध्यान दें।
सिंह राशि - इष्ट मित्र सुख वर्धक हो, मनोबल उत्साह वर्धक बना ही रहेगा, कार्यगति में सुधार हो।
कन्या राशि - आशानुकूल सफलता का हर्ष, दैनिक व्यावसाय में सुधार होगा, चिन्ता मुक्त होगें
तुला राशि - आर्थिक योजना सफल होगी, समय पर सोचे कार्य बने तथा किसी के धोखे से बचेगें।
वृश्चिक राशि - दूसरों के कार्य में भटकना पड़ेगा, समय को बचाकर चलने से लाभ अवश्य ही होगा।
धनु राशि - दैनिक कार्य गति में सुधार, कार्य योजना फलीभूत अवश्य ही होगी, कार्य का ध्यान रखें।
मकर राशि - किसी का कार्य बनने से संतोष, चिंता निवृत्ति, व्यावसायिक स्थिति में सुधार होगा।
कुंभ राशि - स्त्री शरीर कष्ट, मानसिक बेचैनी, उदर विकार, विद्या बाधा, कार्य बाधा अवश्य ही होगी।
मीन राशि - भाग्य का सितारा प्रबल हो, बिगड़े कार्य बनेगें, मित्रों के सहयोग से लाभ होगा।
19 सितंबर को गणेश चतुर्थी, जानिए भगवान गणेशजी के जन्म की पौराणिक कथा
18 Sep, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म के त्योहारों में गणेश चतुर्थी एक मुख्य त्योंहार है जो भाद्रपद शुक्लपक्ष चतुर्थी के दिन मनाया जाता है। वैसे तो प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी, गणेश जी के पूजन और उनके नाम का व्रत रखने का विशिष्ठ दिन है, लेकिन भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को गणेश जी के सिद्धि विनायक स्वरूप की पूजा की जाती है।
शास्त्रों के अनुसार इस दिन गणेश जी दोपहर में अवतरित हुए थे, इसलिए यह गणेश चतुर्थी विशेष फलदायी बताई जाती है पूरे देश में यह त्योहार गणेशोत्सव के नाम से प्रसिद्ध है लोक भाषा में इस त्योहार को डण्डा चौथ भी कहा जाता है। हिंदू धर्म में भगवान गणेश को विद्या-बुद्धि के प्रदाता, विघ्न-विनाशक, मंगलकारी, सिद्धिदायक, सुख-समृद्धि और यश-कीर्ति देने वाले देवता माना गया है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार 'ॐ'और स्वास्तिक को भी साक्षात गणेश जी का स्वरूप माना गया है। तभी तो कोई भी शुभ कार्य की शुरुआत इनसे ही होती है।
गणेश जी की जन्म कथा
गणेश चतुर्थी की कथा के अनुसार,एक बार माता पार्वती ने स्न्नान के लिए जाने से पूर्व अपने शरीर के मैल से एक सुंदर बालक को उत्पन्न किया और उसे गणेश नाम दिया। पार्वतीजी ने उस बालक को आदेश दिया कि वह किसी को भी अंदर न आने दे, ऐसा कहकर पार्वती जी अंदर नहाने चली गई। जब भगवान शिव वहां आए ,तो बालक ने उन्हें अंदर आने से रोका और बोले अन्दर मेरी माँ नहा रही है, आप अन्दर नहीं जा सकते। शिवजी ने गणेशजी को बहुत समझाया, कि पार्वती मेरी पत्नी है। पर गणेशजी नहीं माने तब शिवजी को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने गणेशजी की गर्दन अपने त्रिशूल से काट दी और अन्दर चले गये, जब पार्वतीजी ने शिवजी को अन्दर देखा तो बोली कि आप अन्दर कैसे आ गये। मैं तो बाहर गणेश को बिठाकर आई थी। तब शिवजी ने कहा कि मैंने उसको मार दिया। तब पार्वती जी रौद्र रूप धारण क्र लिया और कहा कि जब आप मेरे पुत्र को वापिस जीवित करेंगे तब ही मैं यहाँ से चलूंगी अन्यथा नहीं।शिवजी ने पार्वती जी को मनाने की बहुत कोशिश की पर पार्वती जी नहीं मानी। सारे देवता एकत्रित हो गए सभी ने पार्वतीजी को मनाया पर वे नहीं मानी। तब शिवजी ने विष्णु भगवान से कहा कि किसी ऐसे बच्चे का सिर लेकर आये जिसकी माँ अपने बच्चे की तरफ पीठ करके सो रही हो। विष्णुजी ने तुरंत गरूड़ जी को आदेश दिया कि ऐसे बच्चे की खोज करके तुरंत उसकी गर्दन लाई जाये। गरूड़ जी के बहुत खोजने पर एक हथिनी ही ऐसी मिली जो कि अपने बच्चे की तरफ पीठ करके सो रही थी। गरूड़ जी ने तुरंत उस बच्चे का सिर लिया और शिवजी के पास आ गये। शिवजी ने वह सिर गणेश जी के लगाया और गणेश जी को जीवन दान दिया,साथ ही यह वरदान भी दिया कि आज से कही भी कोई भी पूजा होगी उसमें गणेशजी की पूजा सर्वप्रथम होगी। इसलिए हम कोई भी कार्य करते है तो उसमें हमें सबसे पहले गणेशजी की पूजा करनी चाहिए, अन्यथा पूजा सफल नहीं होती।