धर्म एवं ज्योतिष (ऑर्काइव)
परिवर्तनी एकादशी का व्रत है विशेष फलदाई
24 Sep, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में कई सारे व्रत त्योहार पड़ते हैं लेकिन इन सभी में एकादशी का व्रत बेहद ही खास माना जाता है जो कि भगवान विष्णु की पूजा को समर्पित होता है। इस दौरान भक्त जगत के पालनहार श्री हरि विष्णु की विधि विधान से पूजा करते हैं और व्रत आदि भी रखते हैं माना जाता है कि ऐसा करने से प्रभु की अपार कृपा बरसाती है।
लेकिन इन सभी में परिवर्तनी एकादशी को विशेष बताया गया है।
जो कि हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। परिवर्तनी एकादशी को पद्मा या जलझूलनी एकादशी के नाम से जाना जाता है इस पावन दिन भगवान विष्णु निद्रायोग से करवट लेते है। मान्यता है कि विष्णु जी करवट लेते वक्त प्रसन्न मुद्रा में होते है ऐसे में इस अवधि में भक्ति सभाव और विनयपूर्वक पूजा पाठ करने से भक्तों की मनोकामना पूरी हो जाती है इस दिन भगवान के वामन अवतार की पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है। तो आज हम आपको बता रहे हैं परिवर्तनी एकादशी की तिथि और पूजा विधि बता रहे हैं।
परिवर्तनी एकादशी की तिथि और विधि-
इस साल परिवर्तनी एकादशी का व्रत 25 सितंबर को रखा जाएगा। ऐसे में इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करें इसके बाद भगवान विष्णु के वामन अवतार का ध्यान करते हुए भगवान को पंचामृत से स्नान कराएं। फिर गंगाजल से स्नान कराएं।
इसके बाद कुमकुम अक्षत लगाकर व्रत कथा सुनें और दीपक से आरती उतारें। इसके बाद भगवान को भोग लगाएं और सभी में प्रसाद बांटे। इस दिन तुलसी की माला से ''ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय'' अगर इस मंत्र का जाप किया जाए तो भगवान की कृपा शीघ्र बरसाती है।
जानिए गणेश की सवारी मूषक के बारे में ये चौंकाने वाली बात
24 Sep, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भगवान गणेश का रूप सभी देवताओं से अलग है, भगवान गणेश का रूप दिखने में विशाल है लेकिन ज्ञान और बुद्धि से भरपूर है, उनमें जरा भी अहंकार नहीं है, जिसके कारण उन पर कोई बोझ नहीं पड़ता है।
जिनका कोई भार नहीं होता वे वायु तत्व के भार के बराबर होते हैं और इसीलिए चूहे को उनका वाहक होने पर गर्व होता है।
दाँत
गाजा का दांत कीमती है. पुराणों में दांतों को माया का रूप माना गया है और भगवान गणेश के दांत अनमोल हैं। भगवान गणेश का केवल एक दांत होना दर्शाता है कि भगवान गणेश माया से परे हैं, वे माया से बंधे नहीं हैं बल्कि स्वतंत्र हैं। यहां समझने वाली बात यह है कि गणपतिजी के सामने के दोनों दांत थे। एक बार भगवान परशुराम से युद्ध के दौरान उनका एक दांत टूट गया, जिसके बाद उन्हें एकदंत के नाम से जाना जाने लगा। जब महाभारत लिखने का निर्णय लिया गया, तो इसे गणपतिजी ने लिखा और भगवान वेदव्यास ने सुनाया। गणपति जी ने उसी टूटे दांत से महाभारत लिखी। इस प्रकार गणपति यह भी कहना चाहते हैं कि महाभारत माया और लोभ के कारण हुआ है, इसलिए वे उन भक्तों पर सदैव कृपा करेंगे जिनके मन में माया के प्रति सबसे कम लगाव है।
बड़ा पेट
बड़े पेट का मतलब महत्वपूर्ण होना है। बड़े पेट का मतलब है कि यह कई तरह के ज्ञान और रहस्यों का भंडार है। बड़ा पेट गंभीरता और भव्यता को दर्शाता है। इस माध्यम से उनका भक्तों को संदेश है कि केवल आवश्यक चीजें ही ग्रहण करें और ग्रहण करने के बाद उसे पेट में रख लें।
पवित्र धागा
अनंत नाग भगवान गणेश के पवित्र धागे के रूप में नाग देवताओं में मौजूद हैं। पिता महादेव की तरह गणपतिजी का शरीर भी नागों से सुशोभित है। साँप राहु और केतु के रूप में द्विभाजित है जिसका संबंध मंत्र और तंत्र दोनों से है। तंत्र का मतलब जादू नहीं है. तंत्र का अर्थ है प्रणाली और मंत्र का अर्थ है ऊर्जा जो उस प्रणाली की शक्ति आपूर्ति है। जब मंत्र को तंत्र के साथ जोड़ा जाता है तो एक यंत्र बनता है। गणेश जी सभी प्रकार की इंजीनियरिंग के जानकार हैं। आज के भौतिकवादी युग में मंत्र तंत्र और यंत्र की बहुत आवश्यकता है और इसे गणपति के आशीर्वाद के बिना प्राप्त नहीं किया जा सकता है।
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (24 सितम्बर 2023)
24 Sep, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि - शुभ कार्यों में समय बीतेगा, विरोधी साथ देंगे, कार्य में प्रगति होगी, समय पर कार्य पूर्ण करें।
वृष राशि - मित्रों का सहयोग मिलेगा, भाग्य की उन्नति होगी, प्रयत्न एवं मेल-मिलाप से कार्य पूर्ण होंगे।
मिथुन राशि - मित्रों का सहयोग मिलेगा, भाग्य की उन्नति होगी, पारिवारिक उत्तर दायित्व की प्राप्ति होगी।
कर्क राशि - स्त्री-संतान सुख मिलेगा, नौकरी वालों की पदोन्नति के योग बनेंगे, भाग्योदय होगा।
सिंह राशि - पत्नी के स्वास्थ्य की चिन्ता तथा भोग-ऐश्वर्य में धन व्यय होगा, पारिवारिक कार्यों पर ध्यान दें।
कन्या राशि - कार्य-व्यवसाय में अर्थ लाभ होगा, आलस्य से कार्यों में विलम्ब होगा, समय स्थिति को देखकर आगे बढ़ें।
तुला राशि - आर्थिक सामाजिक-राजनैतिक विकास लाभ होगा, स्त्री पक्ष से सुख प्राप्त होगा, सुख-साधन की वृद्धि होगी।
वृश्चिक राशि - पत्नी-संतान का सुख मिलेगा, आकस्मिक धन लाभ के अवसर प्राप्त होंगे, विवाद अवश्य निपटा लें।
धनु राशि - पुरानी व्यवस्थाओं का लाभ मिलेगा, समस्याओं का समाधान मिलेगा, अच्छे लोगों से सहयोग मिलेगा।
मकर राशि - इष्ट मित्रों से इच्छानुकूल सहयोग की प्राप्ति होगी, दाम्पत्य जीवन सुखी रहेगा, समय सुख में बीतेगा।
कुंभ राशि - विरोध की स्थिति बनेगी, गृह कलह से मन अशांत रहेगा, समय का ध्यान अवश्य रखें।
मीन राशि - व्यर्थ विवाद होने का भय रहेगा, सामान्य व्यवहार का वातावरण रहेगा, अनुकूल समय का लाभ लें।
एकात्म धाम में स्थित अद्वैत लोक आदि गुरू शंकराचार्य के जीवन दर्शन से कराएगा साक्षात्कार
23 Sep, 2023 10:38 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मध्य प्रदेश के दोनों ज्योतिर्लिंग के आसपास धर्म-संस्कृति और रोजगार को विकसित किया जा रहा है। एक ओर जहां उज्जैन के श्री महाकाल महालोक की ख्याति देश-विदेश तक पहुंच चुकी है, वहीं दूसरी ओर ओंकारेश्वर के ओंकार पर्वत पर आध्यात्म लोक ‘एकात्म धाम’ भी विस्तार ले रहा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 21 सितंबर को ओंकारेश्वर में आदि गुरु शंकराचार्य की 108 फीट ऊंची प्रतिमा का उद्घाटन और अद्वैत लोक संग्रहालय का शिलान्यास किया। एकात्म धाम देश-विदेश में सनातन का संदेश प्रसारित करने के साथ ही पर्यटन उद्योग को भी लाभान्वित करेगा, रोजगार के हजारों अवसर पैदा होंगे और सनातनी संस्कृति, कला और परंपराओं का संरक्षण भी होगा। यह प्रदेश की अर्थव्यवस्था को भी मजबूती प्रदान करेगा। इसका प्रमुख कारण है अद्वैत लोक का अनोखपन, जो यहां पर्यटकों और श्रद्धालुओं को खासा आकर्षित करेगा। गौरतलब है कि सरकार इस अनोखे अद्वैत लोक को अंतर्राष्ट्रीय ज्ञान और शोध केंद्र के रूप में विकसित कर रही है। इसके निर्माण में सिद्धस्थ और समर्पित कारीगरों का हुनर और भारत की परंपरागत वास्तुकला का नजारा भी देखने को मिलेगा। यहां आने वाले श्रद्धालु और शोधार्थी भी भारतीय स्थापत्य कला से साक्षात्कार कर सकेंगे।
आचार्य शंकर के जीवन प्रसंगों से होगा साक्षात्कार
एकात्म धाम की स्थापत्य शैली पुरातात्त्विक शैली से प्रेरित होगी और मंदिर की वास्तुकला नागर शैली से प्रभावित होगी। स्तंभों, भित्तिचित्रों और मूर्तियों पर आचार्य शंकर के जीवन प्रसंगों को उकेरा जाएगा। चार दिशाओं में चार मठों की स्थापना करने वाले जगतगुरु शंकराचार्य का मकसद था देश की चारों दिशाओं की संस्कृति और कला की धरोहर को संरक्षित और एकीकृत किया जाए। यही वजह है कि एकात्म धाम में चारो दिशाओं की कला की धरोहर देखने को मिलेगी।
चार शिष्यों के नाम पर शोध केंद्र
अद्वैत लोक में सरकार शोधार्थियों और विद्यार्थियों के लिए चार शोध केंद्र भी स्थापित करने का विचार कर रही है। बता दें कि शोध केंद्र आदि गुरु शंकराचार्य के चार शिष्यों के नाम पर रखे गए हैं। ये केंद्र अद्वैत वेदान्त आचार्य शंकर अंतर्राष्ट्रीय संस्थान के अधीन होंगे।
इस दिन से शुरू होंगे पितृपक्ष, पूजा के दौरान इन बातों का रखें ध्यान
23 Sep, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
पितृ पक्ष पूर्वजों को समर्पित है। इस दौरान पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध किया जाता है। पंचांग के अनुसार पितृ पक्ष भाद्रपद माह की पूर्णिमा से आरंभ होता है और आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को समाप्त होता है।
हिंदू धर्म में पितृपक्ष यानी श्राद्ध का विशेष महत्व है। इस बार पितृ पक्ष 15 दिन देरी से शुरू होगा. जानिए कब शुरू होगा पितृ पक्ष, कब रहेगी शुभ कार्यों पर रोक, श्राद्ध की तिथियां।
पितृ पक्ष 2023 कब शुरू होता है?
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, इस साल पितृ पक्ष 29 सितंबर से शुरू हो रहा है। वहीं इसका समापन आश्विन कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को होता है। इस बार अमावस्या 14 अक्टूबर को आ रही है।
पितृ पक्ष 15 दिन देरी से शुरू होगा
पितृ पक्ष का समापन आश्विन अमावस्या को होता है, इसे सर्व पितृ अमावस्या कहा जाता है। इस वर्ष अधिक मास के कारण सावन दो महीने का था। इसके चलते सभी व्रत और त्योहार 12 से 15 दिन की देरी से आएंगे। आमतौर पर पितृपक्ष सितंबर में समाप्त होता है लेकिन इस वर्ष पितृपक्ष सितंबर के अंत में शुरू होगा और अक्टूबर के मध्य तक चलेगा।
पितृत्व विशेष क्यों है?
पितृ पक्ष के दौरान पूर्वजों को सम्मानपूर्वक याद करने के लिए श्राद्ध कर्म किये जाते हैं। पितृ पक्ष के दौरान पितरों को तर्पण और श्राद्ध कर्म करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दौरान न केवल पितरों की मुक्ति के लिए बल्कि उनके प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए भी श्राद्ध किया जाता है। पितृपक्ष के दौरान अपने पितरों को जल तर्पण करने की परंपरा है।
यमराज 15 दिनों के लिए आत्मा को मोक्ष प्रदान करते हैं
श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धापूर्वक अपने पितरों को प्रसन्न करना। सनातन की मान्यता के अनुसार, शरीर छोड़ चुके परिजनों की आत्मा की तृप्ति के लिए सच्ची श्रद्धा से किए गए प्रसाद को श्राद्ध कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि मृत्यु के देवता यमराज श्राद्ध पक्ष के दौरान जीवित प्राणियों को रिहा कर देते हैं, ताकि वे अपने रिश्तेदारों के पास जा सकें और प्रसाद प्राप्त कर सकें। जिस किसी के परिवार के सदस्य, चाहे विवाहित हों या अविवाहित, बच्चे हों या बूढ़े, पुरुष हों या महिला, की मृत्यु हो गई हो, उसे पूर्वज कहा जाता है। पितृ पक्ष के दौरान, पूर्वज मृत्यु के बाद पृथ्वी पर आते हैं और अपने परिवार के सदस्यों को आशीर्वाद देते हैं। पितृ पक्ष के दौरान पितरों की आत्मा की शांति के लिए उन्हें तर्पण दिया जाता है। जब माता-पिता खुश होते हैं तो घर में शांति रहती है।
पितृपक्ष में श्राद्ध न करने पर क्या होता है?
हर साल पितृपक्ष के दौरान पितरों के लिए पिंडदान, तर्पण और हवन आदि किए जाते हैं। हर कोई अपने पूर्वजों का श्राद्ध उनकी मृत्यु तिथि के अनुसार करता है। ऐसा माना जाता है कि जो लोग पितृ पक्ष के दौरान अपने पितरों को प्रसाद नहीं चढ़ाते हैं वे पितृ दोष से पीड़ित होते हैं। श्राद्ध करने से उसकी आत्मा को संतुष्टि और शांति मिलती है। वह आपसे खुश हैं और पूरे परिवार को आशीर्वाद देते हैं। हर साल लोग अपने पितरों को प्रसन्न करने के लिए जाकर पिंडदान करते हैं।
हमारे शरीर में तीन पीढ़ियाँ होती हैं
अभ्यासकर्ताओं को यह भी जानना चाहिए कि हमारे शरीर में तीन पीढ़ियाँ अप्रत्यक्ष रूप से निवास करती हैं। हमारे माता-पिता, दादा-दादी, परदादा, बूढ़े परदादा और बूढ़ी परदादी, ये तीन सूक्ष्म जीव हमारे शरीर में निवास करते हैं और हमारी सत्ता तीन पीढ़ियों तक कायम रहती है। हमें श्राद्ध केवल दोपहर के समय ही करना चाहिए। वह समय पितरों का समय है। उस समय का पालन करना हमारे लिए अनिवार्य है।
मांगलिक कार्य नहीं हो पाते हैं
पितरों को समर्पित इन दिनों में हर दिन उनके लिए भोजन बनाया जाता है। इसके साथ ही तिथि पर ब्राह्मणों को भोज दिया जाता है। इन 15 दिनों के दौरान गृह प्रवेश, कर्ण छेदन, मुंडन, विवाह आदि कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। साथ ही इन दिनों कोई भी नए कपड़े नहीं खरीदे जाते और न ही पहने जाते हैं। पितृ पक्ष के दौरान लोग अपने पूर्वजों की प्रार्थना के लिए पिंडदान और हवन भी करते हैं।
शास्त्रों में श्राद्ध का महत्व
गरुड़ पुराण के अनुसार पितरों की पूजा से संतुष्ट होकर पितर मनुष्यों को आयु, पुत्र, वैभव, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, वैभव, पशु, सुख, धन और धान्य प्रदान करते हैं। मार्कंडेय पुराण के अनुसार, श्राद्ध से संतुष्ट होकर पितृ श्राद्धकर्ता को आयु, संतान, धन, ज्ञान, सुख, राज्य, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करते हैं। ब्रह्मपुराण के अनुसार जो व्यक्ति शाक-सब्जियों के माध्यम से भी श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करता है, उसके परिवार में किसी को कष्ट नहीं होता। देव स्मृति के अनुसार श्राद्ध की इच्छा रखने वाला व्यक्ति निरोगी, स्वस्थ, दीर्घायु, योग्य संतान को प्राप्त करने वाला, धनवान और धन कमाने वाला होता है। श्राद्ध करने वाले को विभिन्न शुभ लोक तथा संपूर्ण लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
श्राद्ध समारोह
हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार मृत्यु के बाद मनुष्य की आत्मा चंद्रलोक में जाती है और उच्चाटन के बाद पितृलोक में पहुंचती है। इन दिवंगत आत्माओं को अपने गंतव्य तक पहुंचने की शक्ति प्रदान करने के लिए पिंडदान और श्राद्ध की परंपरा है।
इस बार हाथी पर सवार होकर आएंगी मां दुर्गा, जानिए उनके अलग-अलग वाहन का महत्व
23 Sep, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हर साल आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शारदीय नवरात्रि शुरू होती है, जो नवमी तिथि तक चलती है। इसके अगले दिन दशहरा मनाया जाता है. दशहरे के दिन ही दुर्गा प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है।
नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना की जाती है और अखंड ज्योति जलाई जाती है। इस साल शारदीय नवरात्रि पर मां दुर्गा का आगमन और प्रस्थान बेहद खास संकेत दे रहा है।
माँ दुर्गा की आगमन सवारी
मां दुर्गा का वाहन सिंह है, लेकिन हर नवरात्रि मां दुर्गा अलग-अलग सवारियों पर आती और प्रस्थान करती हैं। मातारानी के आगमन और प्रस्थान का समय नवरात्रि के प्रारंभ और समाप्ति दिन पर निर्भर करता है। यदि शारदीय नवरात्रि रविवार या सोमवार को शुरू होती है तो मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आती हैं। धार्मिक शास्त्रों में मां दुर्गा के आगमन के लिए हाथी की सवारी को बहुत शुभ माना गया है। इसे खेती के लिए अच्छा माना जाता है. साथ ही जो व्यक्ति नवरात्रि का व्रत रखता है उसे धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, जब शनिवार या मंगलवार को नवरात्रि समाप्त होती है, तो मां दुर्गा मुर्गे पर सवार होकर प्रस्थान करती हैं। इस वर्ष शारदीय नवरात्रि मंगलवार को समाप्त होगी, इसलिए माता रानी की प्रस्थान सवारी कोक होगी। दुर्गा सप्तशती के वर्णन के अनुसार देवी दुर्गा का वाहन मुर्गा प्राकृतिक आपदाओं का प्रतीक है। यानी यह इस बात का संकेत है कि भविष्य में कोई आपदा आ सकती है। इसलिए बेहतर होगा कि इन आपात स्थितियों से सावधान रहें।
इस साल सुहागिनें कब रखेंगी करवा चौथ का व्रत
23 Sep, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में करवा चौथ का बड़ा ही महत्व है। पंचांग के अनुसार यह व्रत हर साल कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन रखा जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए निर्जला व्रत रखती हैं और शाम के समय पूजा के बाद चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का पारण करती हैं।
करवा चौथ का व्रत बहुत कठिन माना जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक उपवास रखती हैं। यह पर्व पति-पत्नी के अटूट रिश्ते की मिसाल है। कहा जाता है कि करवा चौथ का व्रत रखकर करवा माता की पूजा करने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है और वैवाहिक जीवन सुखमय रहता है। ऐसे में आइए जानते हैं इस साल करवा चौथ कब है और इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है...
करवा चौथ 2023 तिथि
इस साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि की शुरुआत 31 अक्तूबर मंगलवार को रात 9 बजकर 30 मिनट से हो रही है। यह तिथि अगले दिन 1 नवंबर को रात 9 बजकर 19 मिनट तक रहेगी। ऐसे में उदया तिथि और चंद्रोदय के समय को देखते हुए करवा चौथ का व्रत 1 नवंबर 2023, बुधवार को रखा जाएगा।
करवा चौथ पर चंद्रोदय का समय
1 नवंबर को करवा चौथ वाले दिन चंद्रोदय 8 बजकर 26 मिनट पर होगा। वहीं इस दिन शाम 5 बजकर 44 मिनट से 7 बजकर 02 मिनट तक पूजा का शुभ मुहूर्त है।
करवा चौथ पर बन रहा शुभ संयोग
1 नवंबर को करवा चौथ के दिन सर्वार्थ सिद्धि और शिव योग का संयोग बन रहा है। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 06 बजकर 33 मिनट से 2 नवंबर को सुबह 04 बजकर 36 मिनट रहेगा। इसके अलावा 1 नवंबर की दोपहर 02 बजकर 07 मिनट से शिवयोग शुरू हो जाएगा। इन दोनों शुभ संयोग की वजह से इस साल करवा चौथ का महत्व और बढ़ गया है।
करवा चौथ की पूजा विधि
करवा चौथ के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें। इसके बाद मंदिर की साफ-सफाई करके दीपक जलाएं।
फिर देवी-देवताओं की पूजा अर्चना करें और निर्जला व्रत का संकल्प लें।
शाम के समय पुनः स्नान के बाद जिस स्थान पर आप करवा चौथ का पूजन करने वाले हैं, वहां गेहूं से फलक बनाएं और उसके बाद चावल पीस कर करवा की तस्वीर बनाएं।
इसके बाद आठ पूरियों की अठवारी बनाकर उसके साथ हलवा या खीर बनाएं और पक्का भोजन तैयार करें।
इस पावन दिन शिव परिवार की पूजा अर्चना की जाती है। ऐसे में पीले रंग की मिट्टी से गौरी कि मूर्ति का निर्माण करें और साथ ही उनकी गोद में गणेश जी को विराजित कराएं।
अब मां गौरी को चौकी पर स्थापित करें और लाल रंग कि चुनरी ओढ़ा कर उन्हें शृंगार का सामान अर्पित करें।
मां गौरी के सामने जल से भरा कलश रखें और साथ ही टोंटीदार करवा भी रखें जिससे चंद्रमा को अर्घ्य दिया जा सके।
इसके बाद विधि पूर्वक गणेश गौरी की विधिपूर्वक पूजा करें और करवा चौथ की कथा सुनें।
कथा सुनने से पूर्व करवे पर रोली से एक सतिया बनाएं और करवे पर रोली से 13 बिंदिया लगाएं।
कथा सुनते समय हाथ पर गेहूं या चावल के 13 दाने लेकर कथा सुनें।
पूजा करने के उपरांत चंद्रमा निकलते ही चंद्र दर्शन के उपरांत पति को छलनी से देखें।
इसके बाद पति के हाथों से पानी पीकर अपने व्रत का पारण करें।
सबसे पहले क्यों की जाती है भगवान गणेश की पूजा, जानिए इसके पीछे की पौराणिक कथा
23 Sep, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
इन दिनों हर जगह गणपति की धूम देखने को मिल रही है, खासकर बॉलीवुड में हर किसी ने अपने यहां गणपति की स्थापना की है. लोग यह जानने के लिए भी उत्सुक रहते हैं कि जिन लोगों को हम सिनेमा के पर्दे पर देखते हैं वे निजी जीवन में भगवान की पूजा कैसे करते हैं।
आइए पूजा करें.19 सितंबर यानी भाद्रपद माह के शुक्लपक्ष की चतुर्थी को शुरू हुआ गणेश महोत्सव 28 सितंबर को अनंत चतुर्दशी पर संपन्न होगा। आप पाएंगे कि पंडालों में विभिन्न आकार के आकर्षक गणेश मौजूद हैं। आइए उनके स्वभाव को समझने का प्रयास करें। आमतौर पर, गणपति की सूंड बाईं ओर मुड़ी होती है और बाएं हाथ में मोदक या करछुल होता है जबकि दाहिना हाथ वरद मुद्रा में होता है और आशीर्वाद देता है।
गणपति स्वरूप
नैपतिजी का स्वरूप सभी देवताओं से भिन्न है। हाथी का सिर होने के कारण, उनके कान भी नाक के आकार के होते हैं और उनके पास एक बड़ी सूंड, छोटी आंखें, बड़ा सिर, अलग-अलग दिखाई देने वाले दांत और अप्रत्यक्ष कृन्तक होते हैं। बड़े पेट अर्थात उभरे हुए पेट के रूप में एक सनातन नाग देवता। उनके हाथी का सिर होने की कहानी सभी जानते हैं कि भगवान शिव ने उनका सिर अपने त्रिशूल से अलग कर दिया था, तब माता पार्वती की सलाह पर भगवान शिव ने उसके स्थान पर अहंकार-मुक्त गुणों से परिपूर्ण हाथी का सिर लगा दिया। वह फिर से जीवित हो गए यानी एक तरह से ब्रेन ट्रांसप्लांट किया गया।
गज प्रमुख के गुण
गाजा के सिर में कई गुण हैं जिन्हें समझने की जरूरत है। जब तक हम स्वरूप को नहीं समझेंगे, तब तक हममें उसके प्रति सच्ची श्रद्धा और भावना विकसित नहीं होगी। किसी भी जीव का सिर जितना बड़ा होगा, कपाल तंत्रिकाएं उतनी ही लंबी होंगी। ये नसें जितनी घनी और लंबी होंगी, उनकी याददाश्त उतनी ही अधिक होगी। हाथियों की याददाश्त बहुत लंबी होती है। जो लोग जानवरों की प्रकृति को जानते हैं वे जानते हैं कि हाथी अपने जन्म का विवरण भी याद रख सकते हैं। श्री गणपति को यह मुखियापन दिलाने में कानून के शासन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। गणपति जी को बुद्धि का देवता कहा जाता है, उनके सबसे बुद्धिमान होने के पीछे यही कारण है।
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (23 सितम्बर 2023)
23 Sep, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष- व्यावसायिक क्षमता में वृद्धि, किसी शुभ समाचार के मिलने का योग बन जायेगा।
वृष- आकस्मिक बेचैनी, स्वभाव में खिन्नता, थकावट असमंजस की स्थिति बन जायेगी।
मिथुन- बेचैनी से स्वभाव में खिन्नता, मन भ्रमित, मान प्रतिष्ठा में अपमान कमी होवे।
कर्क- दैनिक कार्य वृद्धि में सुधार, योजनाएं फलीभूत होगी, कार्य बनेंगे, ध्यान रखे।
सिंह- विसंगति से हानि, आशानुकूल सफलता से हर्ष, बिगड़े काम बन ही जायेगे।
कन्या- स्त्रीवर्ग से हर्ष उल्लास, सामाजिक कार्यों में मान प्रतिष्ठा नवीन होवेगी, ध्यान दें।
तुला- मान प्रतिष्ठा पर आंच आने का डर, विवाद ग्रस्त होने से बचिएं, ध्यान रखे।
वृश्चिक- सामाजिक कार्यों में प्रभुत्व वृद्धि, संवृद्धि संवर्धन के योग बनेंगे, कार्य करें।
धनु- शुभ समाचार से संतोष, दैनिक कार्य गति अनुकूल, मनोकामना पूर्ण होगी, ध्यान दें।
मकर- विघटनकारी तत्व परेशान करेंगे, अचानक यात्रा के प्रसंग अवश्य ही बनेगें।
कुंभ- स्वभाव में खिन्नता, मानसिक बेचैनी, परिश्रम से व्यवसाय अनुकूल बनेगा।
मीन- समृद्धि के साधन जुटायें, अधिकारियों का समर्थन फलप्रद होवेगा, कार्य बनेंगे।
सनातन को समझना है तो ओंकारेश्वर आएं
22 Sep, 2023 09:20 PM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मध्य प्रदेश के दोनों ज्योतिर्लिंग के आसपास धर्म-संस्कृति और रोजगार को विकसित किया जा रहा है। एक ओर जहां उज्जैन के श्री महाकाल महालोक की ख्याति देश-विदेश तक पहुंच चुकी है, वहीं दूसरी ओर ओंकारेश्वर के ओंकार पर्वत पर आध्यात्म लोक ‘एकात्म धाम’ भी विस्तार ले रहा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 21 सितंबर को ओंकारेश्वर में आदि गुरु शंकराचार्य की 108 फीट ऊंची प्रतिमा का उद्घाटन और अद्वैत लोक संग्रहालय का शिलान्यास किया। एकात्म धाम देश-विदेश में सनातन का संदेश प्रसारित करने के साथ ही पर्यटन उद्योग को भी लाभान्वित करेगा, रोजगार के हजारों अवसर पैदा होंगे और सनातनी संस्कृति, कला और परंपराओं का संरक्षण भी होगा। यह प्रदेश की अर्थव्यवस्था को भी मजबूती प्रदान करेगा। इसका प्रमुख कारण है अद्वैत लोक का अनोखपन, जो यहां पर्यटकों और श्रद्धालुओं को खासा आकर्षित करेगा। गौरतलब है कि सरकार इस अनोखे अद्वैत लोक को अंतर्राष्ट्रीय ज्ञान और शोध केंद्र के रूप में विकसित कर रही है। इसके निर्माण में सिद्धस्थ और समर्पित कारीगरों का हुनर और भारत की परंपरागत वास्तुकला का नजारा भी देखने को मिलेगा। यहां आने वाले श्रद्धालु और शोधार्थी भी भारतीय स्थापत्य कला से साक्षात्कार कर सकेंगे।
आचार्य शंकर के जीवन प्रसंगों से होगा साक्षात्कार
एकात्म धाम की स्थापत्य शैली पुरातात्त्विक शैली से प्रेरित होगी और मंदिर की वास्तुकला नागर शैली से प्रभावित होगी। स्तंभों, भित्तिचित्रों और मूर्तियों पर आचार्य शंकर के जीवन प्रसंगों को उकेरा जाएगा। चार दिशाओं में चार मठों की स्थापना करने वाले जगतगुरु शंकराचार्य का मकसद था देश की चारों दिशाओं की संस्कृति और कला की धरोहर को संरक्षित और एकीकृत किया जाए। यही वजह है कि एकात्म धाम में चारो दिशाओं की कला की धरोहर देखने को मिलेगी।
चार शिष्यों के नाम पर शोध केंद्र
अद्वैत लोक में सरकार शोधार्थियों और विद्यार्थियों के लिए चार शोध केंद्र भी स्थापित करने का विचार कर रही है। बता दें कि शोध केंद्र आदि गुरु शंकराचार्य के चार शिष्यों के नाम पर रखे गए हैं। ये केंद्र अद्वैत वेदान्त आचार्य शंकर अंतर्राष्ट्रीय संस्थान के अधीन होंगे।
भगवान गणेश की आराधना से होंगी सभी मनोकामनाएं पूरीं
22 Sep, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में किसी भी शुभ काम की शुरुआत भगवान गणेश के नाम के साथ ही होती है। मान्यता है कि खुद देवता भी भगवान गणेश का नाम लिए बिना अपने किसी कार्य की शुरूआत नहीं करते। शास्त्रों में वर्णित है कि सभी देवताओं से पहले गणेश की पूजा का प्रावधान है। बिना गणेश की पूजा शुरू किए अगर किसी अन्य देव की पूजा की जाए तो वह फलदायक नहीं होती। गणेश को मोदक और दुर्वा घास अधिक प्रिय है, लेकिन अगर घर में खुद ही प्रतिमा को बनाए और इसकी पूजा करें तो गणपति आवश्य ही प्रसन्न होते हैं और मनवांछित मुराद पुरी करते हैं।
अभीष्ट सिद्धि के लिए बनाएं इस मिट्टी की प्रतिमा
शास्त्रों के अनुसार गणपति की मूर्ति बनाने के लिए कई नियम बताये गए हैं। ऐसा कहा जाता है कि अगर आप भगवान गणपति की मूर्ति इन खास चीजों से बनाते हैं तो आपसे भगवान गणेश जल्दी ही प्रसन्न हो जाते हैं। अगर आपको प्रतिमा बनानी आती है या आप इसकी कोशिश कर रहे हैं तो आप सांप के बांबी की मिट्टी घर ले आए और उससे गणेश की प्रतिमा बनाकर उसकी पूजा करें। यह प्रतिमा आपको अभीष्ट सिद्धि प्रदान करेगी। इसे बेहद ही शुभ माना जाता है। यह प्रतिमा घर में सुख समृद्धि और धन की कमी पूरी करती है। माना जाता है कि सांप की बांबी की मिट्टी सबसे शुद्ध होती है। सांप भगवान शिव के गले में पड़ा रहता है। गणेश जी भगवान शिव के पुत्र हैं।
हनुमान जी की तस्वीर दक्षिण दिशा की ओर लगायें
22 Sep, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म वास्तु और ज्योतिष की मानी जाए तो किसी भी प्रकार की तस्वीर या मूर्ति को घर में रखने से पहले कुछ बातों का जानना बहुत ज़रूरी है।वास्तु और ज्योतिष के साथ-साथ हिंदू धर्म के पौराणिक ग्रंथों में भी देवी-देवताओं की प्रतिमाएं को रखने से चमत्कारी प्रभाव देती हैं। इसलिए शास्त्रों में इनकी प्रतिमाओं और तस्वीरों को रखने के बहुत से महत्वपूर्ण नियम बताए गए हैं। वास्तुशास्त्र के अनुसार घर में देवी-देवताओं की तस्वीरें लगाने से सभी परेशानियां दूर होती हैं और घर में सुख-शांति बनी रहती है।हनुमान जी की तस्वीर का महत्व और उससे जुड़े कुछ वास्तु नियम-
शास्त्रों के अनुसार हनुमान जी बाल ब्रह्मचारी हैं और इसी वजह से उनकी तस्वीर बेडरूम में न रखकर घर के मंदिर में या किसी अन्य पवित्र स्थान पर रखना शुभ रहता है।
वास्तु वैज्ञानिकों के अनुसार हनुमान जी का चित्र दक्षिण दिशा की ओर देखते हुए लगाना चाहिए क्योंकि हनुमान जी ने अपना प्रभाव अत्यधिक इसी दिशा में दिखाया है जैसे लंका दक्षिण में है, सीता माता की खोज दक्षिण से आरंभ हुई, लंका दहन और राम-रावण का युद्ध भी इसी दिशा में हुआ। दक्षिण दिशा में हनुमान जी विशेष बलशाली हैं।
इसी प्रकार से उत्तर दिशा में हनुमान जी की तस्वीर लगाने पर दक्षिण दिशा से आने वाली हर नकारात्मक शक्ति को हनुमान जी रोक देते हैं। वास्तु अनुसार इससे घर में सुख और समृद्धि का समावेश होता है और दक्षिण दिशा से आने वाली हर बुरी ताकत को हनुमान जी रोक देते हैं।
जिस रूप में हनुमान जी अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर रहे हों ऐसी तस्वीर को घर में लगाने से किसी भी तरह की बुरी शक्ति प्रवेश असंभव है।
सनातन रक्षक, धर्म संस्कृति के उपासक मुख्यमंत्री कभी निराश नहीं होते : स्वामी अवधेशानंद जी
21 Sep, 2023 10:01 PM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मध्य प्रदेश के द्वितीय धाम महाकाल लोक के पश्चात ओंकारेश्वर की तस्वीर बदलने अब प्रारंभ हो गई है। पिछले दो वर्षों से अधिक कार्यकाल के दौरान ओंकारेश्वर के ओंकार पर्वत पर बनाई जा रही 108 फीट की आदि गुरु शंकराचार्य की प्रतिमा का आज प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लोकार्पण किया और एकात्म धाम की स्थापना की आधारशिला भी रखी। मध्य प्रदेश में स्थापित दूसरे ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर को अब राष्ट्रीय स्तर पर धर्म-संस्कृति-सनातन की जीवंत तस्वीर वाली पहचान के साथ ही स्थानीय स्तर पर व्यापार की नई सौगात मिलने जा रही है । 5000 संतों ने भव्य आधारशिला को अनावरण तक पहुंचाया
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ओंकारेश्वर में आदि गुरु शंकराचार्य की प्रतिमा का अनावरण किया। इस अनुष्ठान में कर्नाटक, केरल सहित देश के अन्य भागों से 5 हजार से ज्यादा संत शामिल हुए। प्रतिमा के अनावरण के साथ ही मुख्यमंत्री शिवराज ने संतों के साथ इसकी परिक्रमा भी की। इस दौरान प्रस्थानत्रय भाष्य पारायण और दक्षिणाम्नाय श्रृंगेरी शारदापीठ के मार्गदर्शन में देश के करीब 300 विख्यात वैदिक आचार्यों द्वारा वैदिक रीति पूजन और 21 कुंडीय हवन किया गया।
प्रतिमा के अनावरण के बाद स्वामी अवधेशानंद ने कहा कि इस ऐतिहासिक आयोजन में शामिल होकर अभिभूत हूं। उन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को इसका श्रेय देते हुए कहा कि यह सीएम शिवराज के भगीरथ प्रयास से ही संभव हो सका है। उन्होंने इसे शताब्दी का एक महान कार्य बताया और कहा कि इससे अनंतकाल तक मानवता का संदेश मिलता रहेगा।
मुख्यमंत्री के रूप में सनातन के वाहक बने शिवराज
राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित रहने वाले महाकाल लोक के बाद अब ओंकारेश्वर के ओमकार पर्वत पर आदि गुरु शंकराचार्य की 108 फीट की मूर्ति स्थापना एवं अनावरण के साथ अब जिस तरह से मध्य प्रदेश में धर्म, संस्कृति एवं सनातन की एक लंबी श्रृंखला प्रदेश की जनता को संपन्नता प्रदान करेगी एवं धार्मिक भाव से जोड़े रखेगी, आज इसका संपूर्ण योगदान कार्यक्रम में उपस्थित संतों ने प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को दिया ।
मान्धाता पर्वत पर शंकराचार्य की इस प्रतिमा का अनावरण उत्तरकाशी के स्वामी ब्रहोन्द्रानन्द और 32 संन्यासियों के हाथों संपन्न कराया गया। सरकार का कहना है ओंकारेश्वर के एकात्म धाम में स्थापित शंकराचार्य के बाल रूप की 108 फीट की एकात्मता की मूर्ति को अध्यात्म और ऊर्जा के स्रोत के तौर पर स्थापित किया गया है।
मप्र में सनातन संस्कृति के संरक्षण का विशेष ध्यान
बहुधातु से बनी शंकराचार्य की यह प्रतिमा 108 फीट ऊंची है. इसे एकात्मता की मूर्ति का नाम दिया गया है। मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार का कहना है राज्य में सनातन संस्कृति और धार्मिक केंद्रों के संरक्षण विशेष ध्यान दिया जा रहा है. उज्जैन में महाकाल लोक के बाद अब ओंकारेश्वर में एकात्मधाम इसी दिशा में सरकार का बड़ा कदम है।
मुख्यमंत्री कभी निराश नहीं हो सकते : स्वामी अवधेशानंद
धार्मिक, सांस्कृतिक एवं अलौकिक भव्यता के बीच संपन्न हुए इस कार्यक्रम में शामिल स्वामी अवधेशानंद ने इस कार्यक्रम की सराहना करते व प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को आशीर्वाद देते हुए कहा कि जिस प्रदेश के मुख्यमंत्री सनातन संस्कृति के रक्षक एवं प्रचार-प्रसार का दायित्व स्वयं एवं परिजनों के बीच ले चुके हैं। निश्चित रूप से ऐसा मुख्यमंत्री कभी भी निराश नहीं हो सकता। इस कार्यक्रम में उपस्थित कई साधु-संतों ने आशीर्वाद देने के साथ-साथ कहा कि मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज सिंह चौहान को यशस्वी एवं विजयी होने का हम आशीर्वाद देते हैं।
कुंडली से मंगल दोष दूर करेगा गुड़हल
21 Sep, 2023 07:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
वास्तुशास्त्र हर किसी के जीवन में अहम भूमिका अदा करता है इसमें कई ऐसे पेड़ पौधे बताए गए हैं जिन्हें घर की सही दिशा और स्थान पर लगाने से लाभ मिलता है। इन्हीं में से एक गुड़हल का पौधा है जो बेहद उपयोगी माना गया हैं। वास्तु और ज्योतिषशास्त्र में गुड़हल के फूलों के कई अचूक और असरदार उपाय बताए गए हैं जिन्हें करने से जीवन की सभी समस्याओं का समाधान हो जाता है साथ ही साथ कुंडली में व्याप्त मंगल दोष भी दूर होता है तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा गुड़हल के असरदार उपाय बता रहे हैं।
गुड़हल के आसान उपाय-
अगर किसी जातक की कुंडली में मंगल दोष व्याप्त है तो इससे छुटकारा पाने में गुड़हल बेहद मददगार साबित हो सकता हैं। इसके लिए आप अपने घर में श्एक गुड़हल का पौधा लगाएं। इससे मंगल मजबूत होता है और विवाह में आने वाली बाधाएं दूर हो जाती है। समाज में मान सम्मान बढ़ाने के लिए आप सूर्य भगवान की उपासना करते वक्त गुड़हल के पुष्पों का प्रयोग जरूर करें सूर्य को जल देते वक्त पानी में गुड़हल के फूल जरूर डालें ऐसा करने से भगवान सूर्य प्रसन्न होकर आशीर्वाद प्रदान करते हैं। आर्थिक तंगी व कर्ज से छुटकारा पाने के लिए घर में गुड़हल का पौधा लगाएं और इसकी देखभाल करें। ऐसा करने से माता लक्ष्मी की कृपा बरसाती है और आर्थिक परेशानी व कर्ज से मुक्ति मिलती है। घर की नकारात्मकता और वास्तुदोष को दूर करने के लिए आप घर में गुड़हल के ताजे फूल जरूर रखें। ऐसा करने से लाभ मिलता है।
झाड़ू से जुड़ी ये गलतियां बनती हैं कलह कलेश और तनाव की वजह
21 Sep, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
वास्तुशास्त्र हर किसी के जीवन में अहम भूमिका अदा करता है इसमें व्यक्ति के जीवन से जुड़ी हर एक चीज़ को लेकर नियम बताए गए हैं वास्तु में झाड़ू को लेकर भी कुछ नियम बताए गए हैं जिनका पालन लाभकारी माना जाता है लेकिन अनदेखी घर में कलह कलेश और तनाव का कारण बनती है।
तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा उन्हीं नियमों की जानकारी प्रदान कर रहे हैं तो आइए जानते हैं।
ना करें ये गलतियां-
वास्तु और ज्योतिष अनुसार झाड़ू को कभी भी पैर नहीं मारना चाहिए अगर गलती से पैर लग जाए तो हाथ लगाकर क्षमा मांगे। इसे पैर लगाने से माता लक्ष्मी नाराज़ हो जाती है। वास्तु अनुसार झाड़ू को घर में कहीं पर भी नहीं रख देना चाहिए बल्कि इसके लिए एक निश्चित जगह बनानी चाहिए। जहां किसी बाहरी की नजर ना पड़ें। इसके अलावा झाड़ू को पूजा घर, तुलसी, तिजोरी, रसोई और बेडरूम में भी नहीं रखना चाहिए यहां पर झाड़ू रखना अशुभ माना जाता है।
अगर घर की झाड़ू बेकार हो गई हैं तो इसे कभी भी वीरवार या फिर शुक्रवार के दिन बाहर नहीं फेंकना चाहिए। एकादशी और पूर्णिमा के दिन भी ऐसा नहीं करना चाहिए इसे अशुभ माना जाता है। इसके साथ ही कभी भी पुरानी झाड़ू को जलाना नहीं चाहिए ऐसा करने से लक्ष्मी नाराज़ हो जाती है।
शास्त्र अनुसार शाम के वक्त भूलकर भी झाड़ू नहीं लगाना चाहिए ऐसा करने से माता लक्ष्मी नाराज़ हो सकती है जिससे परिवार को दुख दरिद्रता और अन्य परेशानियों का सामना करना पड़ता है।