धर्म एवं ज्योतिष (ऑर्काइव)
कैसे पड़ा इस व्रत का नाम हरतालिका तीज? यहाँ जानिए व्रत कथा
18 Sep, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरतालिका तीज मनाई जाती है. इस बार हरतालिका तीज 18 सितंबर, सोमवार को मनाई जाएगी. इसको हरितालिका तीज एवं हरतालिका तीज के नाम से भी जाना जाता है.
इस पर्व का संबंध शिव जी से है और 'हर' शिव जी का नाम हैं इसलिए हरतालिका तीज अधिक उपयुक्त है. महिलाएं इस दिन निर्जल व्रत रखने का संकल्प लेती हैं. मुख्य रूप से ये पर्व मनचाहे तथा योग्य पति को प्राप्त करने का है, हालांकि कोई भी स्त्री ये रख सकती है. इसी दिन हस्तगौरी नामक व्रत को करने का विधान भी है जिसको करने से संपन्नता की प्राप्ति होती है. इस व्रत में महिलाएं मां गौरी और शिव जी की पूजा करती हैं। साथ ही सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद मांगती हैं। शादीशुदा महिलाओं के लिए यह व्रत बेहद ही अहम माना जाता है। इस दिन पूजा के चलते व्रत कथा सुनने से ही पूजा का पूर्ण फल मिलता है। चलिए आपको हैं हरतालिका तीज व्रत कथा के बारे में...
कैसे पड़ा इस व्रत का नाम हरतालिका तीज?
पौराणिक कथा के मुताबिक, पार्वती जी की सखियां उनका अपहरण करके जंगल में ले गई थीं। जिससे पार्वती जी के पिता उनका विवाह इच्छा के विरुद्ध प्रभु श्री विष्णु से न कर दें, क्योंकि पार्वती ने मन ही मन भगवान महादेव को अपना पति मान लिया था। पार्वती जी के मन की बात जानकर उनकी सखियां उन्हें लेकर घने जंगल में चली गईं। जंगल में अपनी सखियों की सलाह से पार्वती जी ने एक गुफा में भगवान महादेव की अराधना की। भाद्रपद तृतीया शुक्ल के दिन हस्त नक्षत्र में पार्वती जी ने मिट्टी से शिवलिंग बनाकर विधिवत पूजा की तथा रातभर जागरण किया। पार्वती जी के तप से खुश होकर भगवान महादेव ने माता पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया था। इस प्रकार सखियों द्वारा उनका हरण कर लेने के कारण इस व्रत का नाम हरतालिका व्रत पड़ा।
हरतालिका तीज व्रत कथा:-
पौराणिक मान्यता के मुताबिक, पिता के यज्ञ में अपने पति शिव का अपमान देवी सती सहन नहीं कर पाई थीं तथा उन्होंने स्वयं को यज्ञ की अग्नि में भस्म कर दिया। वहीं अगले जन्म में उन्होंने राजा हिमाचल के यहां जन्म लिया तथा इस जन्म में भी उन्होंने भगवान महादेव को ही पति के रूप में प्राप्त करने के लिए तपस्या की। देवी पार्वती ने शिव जी को अपना पति मान लिया था तथा वह सदैव भगवान महादेव की तपस्या में लीन रहतीं थीं। उनकी हालत देखकर राजा हिमाचल को चिंता सताने लगी तथा उन्होंने नारदजी से इस बारे में बात की। तत्पश्चात, देवी पार्वती का विवाह प्रभु श्री विष्णु से कराने का निश्चय किया गया। किंतु देवी पार्वती विष्णु जी से विवाह नहीं करना चाहती थीं। उनके मन की बात जानकर उनकी सखियां उन्हें लेकर घने जंगल में चली गईं।
हर सोमवार पूजा में पढ़ें ये आरती, शिव की होगी कृपा
18 Sep, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में सप्ताह का हर दिन किसी न किसी देवी देवता की पूजा अर्चना समर्पित किया गया हैं वही सोमवार का दिन शिव पूजा के लिए उत्तम माना जाता है इस दिन भक्त भोलेबाबा की विधि विधान से पूजा करते हैं और दिनभर का व्रत आदि भी रखते हैं।
मान्यता है कि इस दिन पूजा पाठ करने से भगवान की अपार कृपा प्राप्त होती है लेकिन इसी के साथ ही अगर सोमवार के दिन श्री शिव आरती की जाए तो भोलेनाथ शीघ्र प्रसन्न हो जाते है और अपनी कृपा बरसाते हैं तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं श्री शिव आरती पाठ।
श्री शिव आरती-
ॐ जय शिव ओंकारा,
स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव,
अर्द्धांगी धारा ॥
ॐ जय शिव ओंकारा...॥
एकानन चतुरानन
पंचानन राजे ।
हंसासन गरूड़ासन
वृषवाहन साजे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा...॥
दो भुज चार चतुर्भुज
दसभुज अति सोहे ।
त्रिगुण रूप निरखते
त्रिभुवन जन मोहे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा...॥
अक्षमाला वनमाला,
मुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै,
भाले शशिधारी ॥
ॐ जय शिव ओंकारा...॥
श्वेताम्बर पीताम्बर
बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक
भूतादिक संगे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा...॥
कर के मध्य कमंडल
चक्र त्रिशूलधारी ।
सुखकारी दुखहारी
जगपालन कारी ॥
ॐ जय शिव ओंकारा...॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव
जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर में शोभित
ये तीनों एका ॥
ॐ जय शिव ओंकारा...॥
त्रिगुणस्वामी जी की आरति
जो कोइ नर गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी
सुख संपति पावे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा...॥
लक्ष्मी व सावित्री
पार्वती संगा ।
पार्वती अर्द्धांगी,
शिवलहरी गंगा ॥
ॐ जय शिव ओंकारा...॥
पर्वत सोहैं पार्वती,
शंकर कैलासा ।
भांग धतूर का भोजन,
भस्मी में वासा ॥
ॐ जय शिव ओंकारा...॥
जटा में गंग बहत है,
गल मुण्डन माला ।
शेष नाग लिपटावत,
ओढ़त मृगछाला ॥
जय शिव ओंकारा...॥
काशी में विराजे विश्वनाथ,
नंदी ब्रह्मचारी ।
नित उठ दर्शन पावत,
महिमा अति भारी ॥
ॐ जय शिव ओंकारा...॥
ॐ जय शिव ओंकारा,
स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव,
अर्द्धांगी धारा ॥
हरतालिका तीज व्रत आज, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व
18 Sep, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
आज हरतालिका तीज का त्योहार मनाया जा रहा है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, हर एक साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरतालिका तीज मनाई जाती है। हरतालिका तीज का व्रत मुख्य रूप से उत्तर भारत के कुछ राज्यों की सुहागिन महिलाएं रखती हैं।
हरतालिका व्रत कठिन व्रतों में से एक माना जाता है। इस व्रत में विवाहित महिलाएं और विवाह योग्य युवतियां निर्जला व्रत रखती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हरतालिका व्रत रखने के पीछे जीवन साथी को लंबी आयु प्राप्त हो और उनकी वैवाहिक जीवन सुखमय हो। इसके अलावा कुंवारी युवतियां मनचाहे वर की कामना से भी हरतालिका तीज का व्रत रखती हैं। हरतालिका तीज के पर्व पर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। मान्यता अनुसार मां पार्वती ने शिवजी को पति रूप में पाने के लिए कठिन तप किया था। तब शिवजी ने माता पार्वती के कठोर तप से प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए थे और अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार्य किया था। हरतालिका तीज में महिलाएं दिनभर निर्जला व्रत रखती हैं। तीज की शाम के समय महिलाएं श्रृंगार करते हुए भगवान शिव, माता पार्वती, भगवान गणेश और कार्तिकेय की पूजा करती हैं। हरतालिका तीज व्रत रखने और पूजा करने से सौभाग्य और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (18 सितम्बर 2023)
18 Sep, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि - इष्ट मित्रों से लाभ, स्त्री वर्ग से भोग-एश्वर्य की प्राप्ति होगी, रुके कार्य एक-एक करके बनेगें।
वृष राशि - आज के दिन प्रत्येक काम में बाधा होगी, बने कार्य हाथ से निकल जाये, संभलकर चलें।
मिथुन राशि - धन लाभ, आशानुकूल सफलता का हर्ष, कार्य गति में सुधार, कार्य अनुकूल होवे ध्यान दें।
कर्क राशि - योजनाएW फलीभूत होंगी, दैनिक सफलता के साधन जुटायें, प्रलोभनों से आप बचेगें।
सिंह राशि - प्रतिष्ठा, बाल-बाल बचें, अनेक समस्याएं, असमंजस तथा कार्य में बेचैनी बढ़ेगी।
कन्या राशि - स्त्री वर्ग से तनाव के बाद शांति तथा भाग्य का सितारा साथ दे, चित्त प्रसन्न हो।
तुला राशि - भाग्य का सितारा साथ देगा समय अनुकूल है, कार्यकुशलता से लाभ अवश्य होगा।
वृश्चिक राशि - आर्थिक योजना सफल होगी, समय पर सोचे हुए कार्य बने, कार्य योजना पर विचार हो।
धनु राशि - अर्थ लाभ, कार्य कुशलता में बाधा, स्वास्थ्य नरम रहे, पराक्रम उत्साह वर्धक होवेगा।
मकर राशि - उदविघ्नता बनी ही रहेगी, किसी उत्तम समाचार से हर्ष हागा तथा प्रसन्नता बनी ही रहेगी।
कुंभ राशि - विरोधियें से परेशानी, चिंता, व्याग्रता बनी रहे, विपरीत परिस्थतियें का सामना करना होगा।
मीन राशि - आय-व्यय सामान्य, शारीरिक कष्ट, कार्य-क्षमता कमी, कार्य में रुकावट बने।
लक्ष्मण शेषनाग थे अवतार तो भरत और शत्रुघ्न किसके अवतार थे, जानिए?
17 Sep, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू पौराणिक कथाओं की समृद्ध टेपेस्ट्री में, कई प्रमुख हस्तियां दिव्य प्राणियों के अवतार के रूप में उभरती हैं। लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न, जिन्होंने महाकाव्य रामायण में महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाईं, कोई अपवाद नहीं हैं।
आइए यह समझने के लिए हिंदू पौराणिक कथाओं की आकर्षक दुनिया में उतरें कि ये श्रद्धेय पात्र किसके अवतार थे।
लक्ष्मण: वफादार भाई
भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण को व्यापक रूप से नाग देवता शेषनाग का अवतार माना जाता है। यहां इस दिव्य संबंध पर करीब से नजर डालें:
लक्ष्मण - शेषनाग के अवतार
भगवान राम के प्रति लक्ष्मण की अटूट भक्ति और निस्वार्थ सेवा ने उन्हें नाग देवता शेषनाग का सांसारिक अवतार माने जाने का सम्मान दिलाया, जो भगवान विष्णु के लिए ब्रह्मांडीय बिस्तर के रूप में कार्य करते हैं। यह जुड़ाव लक्ष्मण की अपने बड़े भाई राम के प्रति अटूट निष्ठा और समर्पण को रेखांकित करता है।
शेषनाग - शाश्वत सर्प
शेषनाग, जिन्हें अनंत शेष के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू ब्रह्मांड विज्ञान में एक प्रमुख व्यक्ति हैं। नाग देवता के रूप में, वह कालातीतता और अंतहीनता का प्रतीक है, जो दिव्य समर्थन के रूप में कार्य करता है जिस पर भगवान विष्णु ब्रह्मांड महासागर में विश्राम करते हैं।
भरत: समर्पित सहोदर
भगवान राम के सबसे छोटे भाई भरत का भी हिंदू पौराणिक कथाओं में एक दिव्य संबंध है:
भरत - पाञ्चजन्य शंख के अवतार
भरत - सुदर्शन चक्र के अवतार
शत्रुघ्न की वीरता और अपने विरोधियों को परास्त करने की क्षमता के कारण यह विश्वास पैदा हुआ कि वह भगवान विष्णु के प्रतिष्ठित चक्र, सुदर्शन चक्र का सांसारिक अवतार थे।
सुदर्शन चक्र - दिव्य हथियार
सुदर्शन चक्र दैवीय सुरक्षा और न्याय का प्रतीक है। शत्रुघ्न के इस शक्तिशाली हथियार का अवतार एक निडर योद्धा के रूप में उनकी भूमिका को रेखांकित करता है जिसने धर्म की रक्षा की। हिंदू पौराणिक कथाओं में, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के पात्रों को दिव्य अवतारों का दर्जा दिया गया है, जिनमें से प्रत्येक महत्वपूर्ण विशेषताओं और प्रतीकों का प्रतिनिधित्व करते हैं। लक्ष्मण शेषनाग के अवतार के रूप में निष्ठा के प्रतीक हैं, भरत पांचजन्य शंख के अवतार के रूप में धार्मिकता के प्रतीक हैं, और शत्रुघ्न सुदर्शन चक्र के अवतार के रूप में एक निडर योद्धा के रूप में खड़े हैं। ये संबंध रामायण की महाकाव्य कहानी में गहराई और अर्थ जोड़ते हैं, जो हिंदू पौराणिक कथाओं के गहन प्रतीकवाद को उजागर करते हैं।
शत्रुघ्न:
रामायण के एक अन्य प्रमुख पात्र शत्रुघ्न, भगवान राम के कोई छोटे भाई नहीं थे। उनकी अटूट भक्ति और धार्मिकता ने उन्हें हिंदू पौराणिक कथाओं में एक विशेष स्थान दिलाया:
शत्रुघ्न - पांचजन्य शंख का अवतार
शत्रुघ्न का चरित्र अक्सर पांचजन्य नामक दिव्य शंख से जुड़ा होता है। आइए इस संबंध का पता लगाएं:
पांचजन्य शंख - धार्मिकता का प्रतीक
पांचजन्य शंख हिंदू धर्म में धार्मिकता और धर्म का प्रतीक है। भरत के इन मूल्यों का अवतार इस पवित्र शंख के प्रतीकवाद के साथ संरेखित होता है, जो उनके पुण्य चरित्र को मजबूत करता है।
क्या आपको पता है भाद्रपद तृतीया तिथि का नाम क्यों पड़ा हरतालिका तीज? जानें वजह
17 Sep, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
Hartalika Teej 2023: हरतालिका शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है. पहला हरत और दूसरा आलिका. जिसका अर्थ है 'महिला मित्र का अपहरण'. धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने 108 पुनर्जन्मों के बाद देवी पार्वती से विवाह करने का फैसला किया था.
इसलिए इस दिन को सुखी वैवाहिक जीवन के लिए सबसे शुभ अवसरों में से एक माना जाता है. इस दिन सुहागिनें पति की लंबी आयु और सुख समृद्धि के लिए हरतालिका तीज का व्रत रखती हैं. वहीं कुंवारी कन्याएं मनचाहा वर प्राप्त करने के लिए निर्जला व्रत रखती हैं. ऐसी मान्यता है कि माता पार्वती भी इस व्रत को रखने के बाद ही भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त की थी. इस दिन माता पार्वती और भगवान शिव की विशेष पूजा अर्चना की जाती है. व्रती इस दिन सोलह श्रृंगार करके पूजा करने के बाद कथा पढ़ती है.
हरतालिका तीज व्रत का महत्व
सनातन परंपरा के अनुसार, विवाहित महिलाओं में सोलह श्रृंगार करने का चलन प्राचीन काल से रहा है. हरतालिका तीज मुख्य रूप से माता पार्वती को समर्पित हैं. इसलिए 16 श्रृंगार भी उन्हीं से जुड़े हुए हैं. हरतालिका तीज का पर्व देवी पार्वती और भगवान शिव के अटूट रिश्ते को ध्यान में रखकर मनाया जाता है. इस दिन 16 श्रृंगार करके माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा और व्रत करने से सुहागिन महिलाओं अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है.
हरतालिका तीज की कथा
शिव पुराण के अनुसार, चिरकाल में राजा दक्ष अपनी पुत्री सती के फैसले (भगवान शिव से विवाह) से प्रसन्न नहीं थे. अतः किसी भी शुभ कार्य में भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया जाता था. एक बार राजा दक्ष ने विराट यज्ञ का आयोजन किया. इस यज्ञ में भी भगवान शिव को नहीं बुलाया गया. भगवान शिव के लाख मना करने के बाद भी माता सती नहीं मानी तब भगवान शिव ने उन्हें जाने की अनुमति दे दी.
भगवान शिव स्वप्न में आकर याद दिलाया था पूर्वजन्म की बात
भगवान शिव को भविष्य पता था. विधि के विधान के अनुरूप पति का अपमान सुनने के चलते माता सती ने यज्ञ कुंड में अपनी आहुति दे दी. इससे भगवान शिव का हृदय विदीर्ण हो गया. भगवान विष्णु ने उनके क्रोध को शांति किया. अगले जन्म में माता सती, हिमालय के घर माता पार्वती के रूप में जन्म ली. हालांकि, माता पार्वती को पूर्वजन्म का स्मरण नहीं रहा. एक रात भगवान शिव स्वप्न में आकर माता पार्वती को याद दिलाया.
माता पार्वती ने भगवान शिव को मान लिया था अपना पति
उस समय से माता पार्वती ने भगवान शिव को अपना पति मान लिया, जब माता पार्वती बड़ी हुईं, तो उनके पिता ने विवाह के लिए नारद जी से सलाह ली. उस समय नारद जी के कहने पर माता पार्वती के पिता ने पुत्री की शादी भगवान विष्णु से तय कर दी. उस समय माता पार्वती को रिश्ता पसंद नहीं आया. इसके बाद माता पर्वती की सखियां उन्हें लेकर घने जंगल में चली गईं.
कठोर तपस्या से प्रसन्न हुए महादेव
मान्यता है कि भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि के हस्त नक्षत्र में माता पार्वती ने मिट्टी से शिवलिंग का निर्माण किया और भोलेनाथ की स्तुति में लीन होकर रात्रि जागरण किया. इसके साथ ही उन्होंने अन्न का त्याग भी कर दिया. ये कठोर तपस्या 12 साल तक चली. पार्वती के इस कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर महादेव ने उन्हें दर्शन दिया और इच्छा अनुसार उनको अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया. इसलिए हर साल महिलाएं अखंड सौभाग्य के लिए इस व्रत को करती हैं.
मंत्र, आरती, शुभ मुहूर्त से लेकर बप्पा की स्थापना तक, यहाँ जानिए गणेश चतुर्थी से जुड़े हर सवाल का जवाब
17 Sep, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में कोई भी शुभ कार्य शुरु करने से पहले प्रभु श्री गणेश की पूजा का विधान है। पौराणिक मान्यता है कि प्रभु श्री गणेश की पूजा करने से सारी विघ्न-बाधाएं दूर हो जाती हैं। वही इस बार गणेश चतुर्थी भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाएगी।
अंग्रेजी महीने के मुताबिक, यह सितंबर माह की 19 तारीख को पड़ रही है। 10 दिन चलने वाले इस पर्व की धूम पूरे भारत में देखने को मिलेगी। इस के चलते भक्त गणपति की निरंतर 10 दिन तक पूरे विधि विधान से पूजा-अर्चना करेंगे। फिर 10 दिनों बाद अनंत चतुर्दशी पर गणेश जी की प्रतिमा का विसर्जन कर उन्हें विदा करेंगे।
गणेश चतुर्थी 2023 स्थापना मुहूर्त:-
गणेश चतुर्थी के दिन बप्पा की स्थापना और इसके पश्चात् उनका विसर्जन दोनों ही शुभ मुहूर्त में ही करना चाहिए. आइये बताते हैं गणेश चतुर्थी पर गौरी पुत्र गणेश जी की प्रतिमा की स्थापना का शुभ मुहूर्त.
भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी तिथि प्रारंभ - सोमवार 18 सितंबर 2023, दोपहर 12:39
भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी तिथि समाप्त - मंगलवार 19 सितंबर 2023, दोपहर 01:43
गणेश चतुर्थी 2023 की महत्वपूर्ण तिथियां:-
गणेश चतुर्थी 2023 आरम्भ- मंगलवार, 19 सितबंर 2023
गणेश चतुर्थी 2023 समाप्त - गुरुवार 28 सितंबर 2023
भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि शुरू - सोमवार 18 सितंबर 2023, दोपहर 12 बजकर 39 मिनट से
भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि समाप्त - मंगलवार 19 सितंबर 2023, दोपहर 01 बजकर 43 मिनट तक
गणेश स्थापना समय - 19 सितंबर 2023, सुबह 11:07 - दोपहर 01:34 तक
गणेश चतुर्थी 2023 पूजा मुहूर्त - 19 सितंबर 2023, सुबह 11:01 से दोपहर 01:28 तक
गणेश चतुर्थी पर बन रहे हैं 2 शुभ संयोग:-
पंचांग के मुताबिक, 19 सितंबर को स्वाति नक्षत्र दोपहर 01 बजकर 48 तक रहेगा। तत्पश्चात, विशाखा नक्षत्र रात तक रहेगा। ऐसे में गणेश चतुर्थी के दिन 2 शुभ योग बनेंगे। इसके अतिरिक्त इस दिन वैधृति योग भी रहेगा जो बेहद ही शुभ माना गया है।
इस पूजा विधि के साथ करें भगवान गणेश की स्थापना:-
प्रभु श्री गणेश जी की स्थापना चतुर्थी के दस दिवसीय उत्सव की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है। इसलिए गणेश चतुर्थी 2023 के चलते विधि अनुसार भगवान की पूजा और उनकी स्थापना करनी चाहिएः
प्रभु श्री गणेश के आगमन से पहले घर को अच्छी तरह से साफ कर लें तथा उसे फूलों और रंगोली से सजा दें।
तत्पश्चात, प्रभु श्री गणेश की स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त का चुनाव करें तथा आप किसी पुजारी या ज्योतिषी से सलाह लेकर भी शुभ मुहूर्त का चुनाव कर सकते है।
अपने घर या पंडाल में प्रभु श्री गणेश की प्रतिमा स्थापित करें। आप पर्यावरण के अनुकूल मूर्ति खरीद सकते हैं या घर पर ही बना सकते हैं।
फिर प्रभु श्री गणेश जी का हल्दी, चंदन और सिंदूर से श्रृंगार करें तथा भगवान को दूर्वा घास अवश्य चढ़ाएं।
अब गणेश जी के सामने धूप, दीपक जलाएं तथा इनकी आरती करें।
आरती करने के बाद प्रभु श्री गणेश जी को मोदक व लड्डू का भोग लगाएं।
भगवान को भोग लगाने के पश्चात् भोग का प्रसाद सभी लोगों में अवश्य बांटे।
दसवें दिन, भगवान गणेश की प्रतिमा को किसी जल निकाय में विसर्जित कर दें।
गणेश जी की आरती:-
जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा ॥
एक दंत दयावंत,
चार भुजा धारी ।
माथे सिंदूर सोहे,
मूसे की सवारी ॥
जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा ॥
पान चढ़े फल चढ़े,
और चढ़े मेवा ।
लड्डुअन का भोग लगे,
संत करें सेवा ॥
अंधन को आंख देत,
कोढ़िन को काया ।
बांझन को पुत्र देत,
निर्धन को माया ॥
'सूर' श्याम शरण आए,
सफल कीजे सेवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा ॥
दीनन की लाज रखो,
शंभु सुतकारी ।
कामना को पूर्ण करो,
जाऊं बलिहारी ॥
राशिनुसार करें इन मंत्रों का जाप:-
मेष: मेष राशि के जातकों को गणेश जी की पूजा करते समय एक मंत्र बोलना चाहिए - ॐ वक्रतुण्डाय हुं।।
वृषभ: वृषभ राशि के जातकों को ॐ हीं ग्रीं हीं मंत्र को रोज बोलना है।
मिथुन:- मिथुन राशि के जातक श्रीगणेशाय नमः या ॐ गं गणपतये नमः मंत्र का जाप करें और प्रतिदिन फूल चढ़ाएं।
कर्क:- कर्क राशि के जातकों को ॐ वरदाय नः या ॐ वक्रतुण्डाय हूं मंत्र का जाप करना है।
सिंह:- सिंह राशि के जातकों को गणेश जी का मंत्र ॐ सुमंगलाये नमः का जाप करना है, एक माला रोज करें।
कन्या:- कन्या राशि के जातकों को ॐ चिंतामण्ये नमः मंत्र का जाप करना चाहिए।
तुला:- तुला राशि के जातकों को प्रतिदिन ॐ वक्रतुण्डाय नमः मंत्र का जाप करना चाहिए।
वृश्चिक:- वृश्चिक राशि के जातकों को मंत्र ॐ नमो भगवते गजाननाय का जाप रोज करना चाहिए।
धनु:- धनु राशि के जातक हर रोज ॐ गं गणपते मंत्र का जाप करें।
मकर:- मकर राशि के जातकों को ॐ गं नमः मंत्र का जाप करना चाहिए।
कुंभ:- कुम्भ राशि के जातकों को ॐ गण मुत्कये फट् मंत्र का रोजाना जाप करना चाहिए।
मीन:- मीन राशि के जातकों को ॐ गं गणपतये नमः य ॐ अंतरिक्षाय स्वाहा मंत्र की माला रोजाना करनी चाहिए।
भगवान गणेश की पूजा से जुड़ी कुछ अहम बातें:-
गणेश जी की पूजा में तुलसी को सम्मिलित न करें।
आपको प्रभु श्री गणेश को गुड़ के मोदक और बूंदी के लड्डू, शामी वृक्ष के पत्ते तथा सुपारी अर्पित करनी चाहिए, क्योंकि ये चीजें भगवान को अति प्रिय होती हैं।
गणपति जी की पूजा हमेशा हरे रंग के कपड़े पहनकर करनी चाहिए।
गणेश चतुर्थी में भगवान की स्थापना करने के पश्चात् प्याज और लहसुन का सेवन न लगाएं।
पूजा के चलते भगवान को दूर्वा घास अवश्य चढ़ाएं।
गणेश चतुर्थी की रात चंद्रमा को नहीं देखना चाहिए:-
हिंदू संस्कृति में ऐसी मान्यता है कि गणेश चतुर्थी की रात चंद्रमा को नहीं देखना चाहिए। यह मान्यता पीढ़ियों से चली आ रही है। कहा जाता है कि प्रभु श्री कृष्ण पर एक बहुमूल्य रत्न चोरी करने का झूठा आरोप लगाया गया तथा उन्हें सजा दी गई। तत्पश्चात, भगवान को कोढ़ की बीमारी हो गई, जिससे छुटकारा पाने का सिर्फ एक ही तरीका था, भक्ति-भाव के साथ गणेश चतुर्थी पर भगवान गणपति की पूजा करना। हालांकि, इस त्यौहार की रात जब भगवान ने चंद्रमा को देखा, तो उनकी बीमारी और बढ़ गई। यही वजह है कि इस दिन चंद्रमा को नहीं देखना चाहिए।
10 दिनों में इन 10 चीजों का लगायें भोग:-
प्रभु श्री गणेश को मोदक अति प्रिय है। इस लिए गणेश चतुर्थी यानि प्रभु श्री गणेश के जन्मोत्सव के दिन सबसे पहले मोदक का भोग लगाना चाहिए।
गणेश महोत्सव के दूसरे दिन गणपति को मोतीचूर के लड्डू का भोग लगाना उत्तम होता है।
तीसरे दिन प्रभु श्री गणेश की पूजा में बेसन के लड्डू का भोग लगाएं।
हिन्दू धर्म में प्रभु श्री गणेश को केले का भोग लगाना उत्तम माना जाता है। इस लिए गणेश चतुर्थी पूजा के चौथे दिन केले का भोग लगाना चाहिए।
गणेश जन्मोत्सव के पांचवें के दिन घर में स्वादिष्ट मखाने की खीर बनाकर उसी का भोग लगायें।
गणेश चतुर्थी को पूजा के 6वें दिन गणपति को नारियल का भोग लगाएं।
जन्मोत्सव के 7वें दिन गणेश पूजा में मेवे के लड्डू का भोग लगाएं।
दूध से बना कलाकंद प्रभु श्री गणेश को बहुत प्रिय है। इस लिए पूजा में कलाकंद का भोग लगायें।
केसर से बनाएं गए श्रीखंड बप्पा को भोग के रूप में अवश्य चढ़ाएं।
प्रभु श्री गणेश की पूजा के अंतिम दिन बाजार से या फिर घर में बने तरह-तरह के मोदक का भोग लगाए।
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (17 सितम्बर 2023)
17 Sep, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि - विरोधी तत्वों से परेशानी, अधिकारियों से तनाव तथा इष्ट मित्र कष्टप्रद बने रहेगा।
वृष राशि - कार्य कुशलात से संतोष, व्यवसायिक गति में सुधार तथा कार्य योजना अवश्य बनेगी।
मिथुन राशि - इष्ट मित्रों से लाभ, स्त्री से मन प्रसन्न रहेगा, मनोवृत्ति संवेदनशील बनी ही रहेगी।
कर्क राशि - मनोबल उत्साह वर्धक होवे, कार्य कुशलता से संतोष, हर्ष होवे, कार्य व्यवसाय उत्तम होगा।
सिंह राशि - चोट-चपेट होने का डर है, कार्य गति में बाधा होगी किन्तु अधिकारियों का सहयोग मिले।
कन्या राशि - आकस्मिक मान प्रतिष्ठा प्रभुत्व वृद्धि ाथा स्त्री वर्ग से तनाव तथा वातावरण कष्ट प्रद रहे।
तुला राशि - अधिकारी वर्ग सहायक होगें तथा भाग्य का सितारा साथ देगा, रुके कार्य बन ही जायेगें।
वृश्चिक राशि - किसी के धोखे से विवाद होने की संभावना बने तथा धन हानि व्यर्थ भ्रमण होवेगा।
धनु राशि - मनोवृत्ति संवेदनशील रहे, भोग-एश्वर्य में समय बीते तथा कार्य में बाधा अवश्य होगी।
मकर राशि - स्थिति में सुधार होते हुए भी फलप्रद न हो, कार्य विफलता, चिंता रहेगी।
कुंभ राशि - धन लाभ, आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा तथा कार्य बने अधिकारियों का समर्थन फलप्रद हो।
मीन राशि- समय अनुकूल नहीं, विशेष कार्य स्थिगित रखें तथा कार्य अवरोध अवश्य ही होगा।
गणपति बप्पा के आगमन पर बन रहें कई शुभ योग
16 Sep, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि 18 सितंबर को दोपहर 12:39 बजे शुरू होगी और 19 सितंबर को दोपहर 1:43 बजे तक रहेगी। गणेश चतुर्थी का त्योहार 19 सितंबर को उदया तिथि के अनुसार मनाया जाएगा। इस दिन ब्रह्म, शुक्ल और शुभ योग रहेगा। स्वाति और विशाखा नक्षत्र की उपस्थिति इसे और अधिक शुभ बनाती है। गणपति स्थापना का शुभ समय सुबह 10:50 बजे से दोपहर 12:52 बजे तक है और सबसे शुभ समय दोपहर 12:52 बजे से दोपहर 2:56 बजे तक है.
राशि पर प्रभाव एवं उपाय
गणेश चतुर्थी मेष, मिथुन और मकर राशि के लिए अधिक शुभ रहेगी। अन्य राशियों के लिए यह सामान्य रहेगा, लेकिन भगवान गणेश की पूजा करने से शुभ फल प्राप्त होंगे। भगवान गणेश के 12 नामों का जाप और अथर्वशीर्ष का नियमित पाठ करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी।
चंद्रमा को देखने से बचें
चतुर्थी तिथि के दिन चंद्र दर्शन से बचना चाहिए। यदि कोई चंद्रमा को देखता है, तो उस पर झूठा आरोप लगाया जाता है, जैसे श्रीकृष्ण पर स्यमंतक रत्न चुराने का आरोप लगाया गया था। इसलिए यदि चंद्रमा दिखाई दे तो स्यमंतक मणि की कथा पढ़ने या सुनने से दोष दूर हो जाता है।
गणेश चतुर्थी पूजा विधि
चौकी पर पीली चादर या कपड़ा बिछाकर बप्पा की मूर्ति रखें। उनका गंगा जल से अभिषेक करें। फिर उन्हें वस्त्र, फूल, माला, पवित्र धागे आदि से सजाएं। फिर अक्षत, हल्दी, पान, सुपारी, चंदन, धूप, दीप, नारियल आदि से पूजा करें। बप्पा को दूर्वा चढ़ाएं. मोदक या लड्डू का भोग लगाएं. इस दौरान ऊं गं गणपति नमो नम: मंत्र का जाप करना चाहिए।
हरतालिका तीज पर साड़ी के रंग का रखें खास ध्यान
16 Sep, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हरतालिका तीज 19 सितंबर 2023 को मनाई जाएगी. हरतालिका तीज मुख्य रूप से राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में मनाया जाता है। इस साल हरतालिका तीज पर रवि और इंद योग का संयोग बन रहा है.
यह सुहाग का त्योहार है इसलिए हरतालिका तीज पर महिलाओं को 16 श्रृंगार करके पूजा करनी चाहिए। ऐसे में अगर राशि के अनुसार साड़ी और चूड़ियां पहनी जाएं तो व्रत करने वाले को दोगुना लाभ मिलता है।
हरतालिका तीज 2023, राशि के अनुसार पहनें साड़ी
मेष- मेष राशि की महिलाओं को हरतालिका तीज के दिन लाल रंग की साड़ी पहननी चाहिए. लाल रंग प्रेम का प्रतीक है। इससे पति-पत्नी के बीच प्यार बढ़ता है और मंगल ग्रह की कृपा भी मिलती है।
वृषभ- वृषभ राशि के स्वामी चंद्रमा हैं, जिनका पसंदीदा रंग सफेद है, लेकिन हरतालिका तीज पर सफेद रंग नहीं पहना जाता है, ऐसे में आप चांदी या सुनहरे रंग की साड़ी और चूड़ियां पहन सकती हैं। इससे दम्पति का मानसिक तनाव दूर होता है। शिव बहुत प्रसन्न हैं.
मिथुन- मिथुन राशि का प्रतीकात्मक रंग हरा है. इस राशि की महिलाओं को हरतालिका तीज पर हरी साड़ी, सूट और चूड़ियां पहनकर पूजा करनी चाहिए। मान्यता है कि इससे परिवार में खुशहाली आती है। खाली गोद जल्द ही भर जाती है।
कर्क राशि:- कर्क राशि भी चंद्रमा से प्रभावित होती है, ऐसे में इस राशि की महिलाओं को चांदी और गुलाबी रंग के कपड़े पहनने चाहिए, इससे दांपत्य जीवन में कलह दूर होगी। जीवनसाथी से नजदीकियां बढ़ेंगी।
सिंह - सिंह राशि की सूर्य राशि सिंह है। सूर्य का पसंदीदा रंग लाल और नारंगी है। हरतालिका तीज पर सिंह राशि की महिलाओं को इस रंग की साड़ी और चूड़ियां पहननी चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इससे पति-पत्नी के बीच सम्मान की भावना पैदा होती है। एक दूसरे के विचार मेल खाने लगते हैं.
कन्या - सौभाग्य, सफलता और समृद्धि लाने के लिए कन्या राशि की महिलाओं को हरतालिका तीज पर हरी साड़ी और चूड़ियाँ पहननी चाहिए।
तुला राशि:- तुला राशि की महिलाओं को हरतालिका तीज पर गुलाबी, सिल्वर रंग के कपड़े पहनना शुभ रहेगा। इससे शुक्र की कृपा से सुंदरता बढ़ती है और पति-पत्नी के बीच प्यार बढ़ता है।
वृश्चिक - वृश्चिक राशि का स्वामी भी मंगल है। इस राशि की महिलाओं को आज लाल और मैरून रंग की साड़ी पहनना शुभ रहेगा। इससे आप दोनों के लिए सौभाग्य आएगा।
धनु- धनु राशि की महिलाओं को हरतालिका तीज पर पीला रंग पहनना चाहिए। इससे विवाह के अवसर बनते हैं और विवाहित स्त्री को सुखी वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद मिलता है।
मकर- मकर राशि वालों के लिए काला रंग शुभ है लेकिन वे पूजा के दौरान काले कपड़े नहीं पहनते हैं, इसलिए आज आप नीली या किसी भी गहरे रंग की साड़ी पहन सकती हैं।
कुंभ- कुंभ राशि का स्वामी ग्रह भी शनि है। इसलिए इस राशि की महिलाओं को नीले, बैंगनी, आसमानी रंग की साड़ी भी पहननी चाहिए। इससे पति को जीवन मिलता है। नौकरी में उन्नति होगी।
मीन- मीन राशि का स्वामी बृहस्पति है। ऐसे में आपको हरतालिका तीज पर पीले या नारंगी रंग की साड़ी और चूड़ियां पहनकर पूजा करनी चाहिए। इससे आपको माता पार्वती का आशीर्वाद मिलेगा और आपको मनचाहा वर मिलेगा।
कब है कन्या संक्रांति, जानें डेट और शुभ मुहूर्त
16 Sep, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में कई सारे पर्व त्योहार मनाए जाते है और सभी का अपना महत्व होता है लेकिन कन्या संक्रांति बेहद ही खास मानी गई हैं जो सूर्य पूजा को समर्पित होती है।
ज्योतिष अनुसार जब सूर्य एक राशि से निकलकर दूसरी राशि में प्रवेश करता है तो उसे संक्रांति के नाम से जाना जाता है। इस बार सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करने जा रहा है जिसे कन्या संक्रांति के नाम से जाना जाता है।
इस दिन भगवान सूर्यदेव की पूजा का विधान होता है इस बार कन्या संक्रांति 17 सितंबर को मनाई जाएगी। कन्या संक्रांति के दिन शुभ मुहूर्त में भगवान श्री सूर्य देव की उपासना करने और दान पुण्य देने से जीवन में लाभ ही लाभ मिलता है साथ ही कष्टों में भी कमी आती है तो आज हम आपको कन्या संक्रांति पर शुभ मुहूर्त बता रहे हैं।
कन्या संक्रांति का शुभ समय-
धार्मिक पंचांग के अनुसार कन्या संक्रांति पर ब्रह्म मुहूर्त सुबह 3 बजकर 54 मिनट से सुबह 4 बजकर 41 मिनट तक प्राप्त हो रहा है साथ ही इस दिन हस्त नक्षत्र का भी निर्माण हो रहा है जो सुबह 10 बजकर 2 मिनट तक रहेगा। ऐसे में इस मुहूर्त में पूजा पाठ करने से साधक को दोगुना फल प्राप्त होगा।
कन्या संक्रांति पर दान मुहूर्त-
ज्योतिष अनुसार कन्या संक्रांति के दिन पुण्य काल में पूजा और दान धर्म करने से जातक को विशेष लाभ मिलता है कन्या संक्रांति के दिन पुण्य काल दोपहर 1 बजकर 43 मिनट से शाम 5 बजकर 43 मिनट तक रहेगा। ऐसे में इस अवधि में अगर गरीबों और जरूरतमंदों को दान किया जाए तो देवी देवताओं का आशीर्वाद मिलता है और कष्टों में कमी आती है आप इस दिन गरीबों को अन्न, जल और फल का दान कर सकते है इसके साथ ही वस्त्रों का दान भी उत्तम होगा।
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (16 सितम्बर 2023)
16 Sep, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि - कार्य कुशलता से संतोष, व्यावसायिक गति में सुधार तथा कार्य योजना सफल होगी।
वृष राशि - अपनों से तनाव, प्रत्येक कार्य में बाधा, लाभकारी योजना हाथ से निकल जायेगी।
मिथुन राशि - व्यावसाय गति उत्तम, लाभकारी योजना बने-बिगड़े, कार्य बने तथा लाभ होवेगा।
कर्क राशि - विरोधी तत्वों से परेशानी, अधिकारियों से तनाव, इष्ट मित्र फलप्रद होगें ध्यान दें।
सिंह राशि - अकस्मात लाभ, किसी की आलोचना से मन-मुटाव तथा मन दु:खी होगा।
कन्या राशि - आकस्मिक मान-प्रतिष्ठा, प्रभुत्व वृद्धि तथा स्त्री वर्ग से तनाव बना ही रहेगा, ध्यान रखें।
तुला राशि - धन हानि, व्यर्थ भ्रमण, दूसरों के कार्य में भटकना पड़ेगा, रुके कार्य बने, कष्ट होगा।
वृश्चिक राशि - तर्क-वितर्क, वाद-विवाद, बेचैनी, मानसिक स्वभाव में उग्रता, कार्यों में विघ्न होगा।
धनु राशि - कार्य व्यवसाय में बाधा, किसी विरोध-अवरोध से बचें तथा अधिकारियों से लाभ होगा।
मकर राशि - योजनाए फलीभूत होगीं, व्यावसायिक कार्यक्षमता बनी ही रहेगी, धैर्य से कार्य लेवें।
कुंभ राशि - योजनाओं में उलझन बनेगी तथा कार्य की सफलता न दिखायी देवे, कष्ट होगा।
मीन राशि - कार्यकुशलाता से संतोष, दूसरों के कार्यों में समय व्यतीत होगा, कुछ कार्य रुकेगें।
आदि शंकराचार्य की 108 फीट ऊंची प्रतिमा बनकर तैयार, अद्वैत वेदांत के दर्शन का संदेश देगा 'एकात्म धाम'
15 Sep, 2023 07:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
तीर्थनगरी ओम्कारेश्वर में जगतगुरु आदि शंकराचार्य की 108 फीट ऊंची प्रतिमा "स्टेच्यू ऑफ वननेस" का कार्य अंतिम चरण पर है. नर्मदा किनारे देश का चतुर्थ ज्योतिर्लिंग ओम्कारेश्वर शंकराचार्य की दीक्षा स्थली है, जहां वे अपने गुरु गोविंद भगवत्पाद से मिले और यहीं 4 वर्ष रहकर उन्होंने विद्या का अध्ययन किया.
12 वर्ष की आयु में उन्होंने ओंकारेश्वर से ही अखंड भारत में वेदांत के लोकव्यापीकरण के लिए प्रस्थान किया. इसलिए, ओम्कारेश्वर के मान्धाता पर्वत पर 12 वर्ष के आचार्य शंकर की प्रतिमा की स्थापना की जा रही है. यह पूरी दुनिया में शंकराचार्य की सबसे ऊंची प्रतिमा होगी, जिसका लोकार्पण मुख्यमंत्री शिवराज सिंह 18 सितम्बर को करेंगे.
मध्यप्रदेश की करीब दो हजार करोड़ रुपयों की एक महत्वाकांक्षी धार्मिक एवं आध्यात्मिक योजना खण्डवा जिले के तीर्थस्थल ओम्कारेश्वर में आकार ले रही है. जिसमे ओंकार पर्वत पर 28 एकड़ में अद्वैत वेदांत पीठ और आदि शंकराचार्य की 108 फीट ऊंची भव्य प्रतिमा स्थापित की जा रही है.
इस योजना के प्रथम चरण में आदि शंकराचार्य की 108 फीट ऊंची प्रतिमा " स्टेच्यू ऑफ वननेस" बनकर तैयार हो चुकी है, जबकि शेष कार्यों का भूमिपूजन होना है. सनातन धर्म के पुनरुद्धारक, सांस्कृतिक एकता के देवदूत व अद्वैत वेदांत दर्शन के प्रखर प्रवक्ता 'आचार्य शंकर' के जीवन और दर्शन के लोकव्यापीकरण के उद्देश्य के साथ मध्य प्रदेश शासन द्वारा ओंकारेश्वर को अद्वैत वेदांत के वैश्विक केंद्र के रूप में विकसित किया जा रहा है.
आदि शंकराचार्य मात्र 8 वर्ष की उम्र में अपने गुरु को खोजते हुए केरल से ओमकारेश्वर आए थे और यहां गुरु गोविंद भगवत्पाद से दीक्षा ली. यहीं से उन्होंने फिर पूरे भारतवर्ष का भ्रमण कर सनातन की चेतना जगाई. इसलिए, ओम्कारेश्वर के मान्धाता पर्वत पर यह 108 फीट ऊंची बहुधातु की प्रतिमा है, जिसमें आदि शंकराचार्य जी बाल स्वरूप में हैं.
कलेक्टर अनूप कुमार सिंह ने बताया कि ओंकारेश्वर में मान्धाता पर्वत पर एकात्मधाम प्रोजेक्ट के अंतर्गत आदि गुरु शंकराचार्य जी की 108 फीट ऊंची प्रतिमा की स्थापना का काम चल रहा है. इसमें 54 फीट ऊंचा पेडस्टल था और 108 फीट ऊंची प्रतिमा है. मूर्ति निर्माण का काम अंतिम स्तर पर है. शुक्रवार शाम तक मूर्ति पूरी तरह तैयार हो जाएगी.
इस मूर्ति के अनावरण का कार्य 18 सितम्बर को आयोजित किया जाएगा. इसमें देश के तमाम कोने से साधू संत आएंगे. कलेक्टर अनूप कुमार सिंह ने बताया कि ओंकारेश्वर में मान्धाता पर्वत पर एकात्मधाम प्रोजेक्ट के अंतर्गत आदि गुरु शंकराचार्य जी की 108 फीट ऊंची प्रतिमा की स्थापना का काम चल रहा है. इसमें 54 फीट ऊंचा पेडस्टल था और 108 फीट ऊंचा प्रतिमा है. मूर्ति निर्माण का काम अंतिम स्तर पर है. शुक्रवार शाम तक मूर्ति पूरी तरह तैयार हो जाएगी. इस मूर्ति के अनावरण का कार्य 18 सितम्बर को आयोजित किया जायेगा. इसमें देश के तमाम कोने से साधु-संत आएंगे. 15 सितंबर से तीन दिवसीय अनुष्ठान चलेगा जो 18 को पूर्ण होगा. मुख्यमंत्री अनावरण करेंगे और उनके साथ देश साधू-संत रहेंगे. 18 सितंबर को दो प्रोग्राम होंगे, जो फर्स्ट हॉफ में प्रोग्राम होगा वह मान्धाता पर्वत पर होगा और सेकंड हॉफ में प्रोग्राम सिद्धवरकूट में होगा. मान्धाता पर्वत पर अभी भी एक पूजा चल रही है और 15 सितंबर से भी एक पूजा आरम्भ होगी जो निरंतर तीन दिन जारी रहेगी. सिद्धवरकूट में भी दो तीन हजार साधु संत रहेंगे और वहां भी धार्मिक अनुष्ठान होंगे.
अद्वैत्य लोक का भूमिपूजन होगा तो इसमें म्यूज़ियम, मेडिटेशन सेंटर, नौका विहार और पांच सौ लोगों की क्षमता वाला थिएटर रहेगा. इसके अलावा इसमें अन्नपूर्णा और शिल्पग्राम भी बनेंगे. टेंडर खुलने पर डिटेल जानकारी मिल पाएगी.
बाल शंकर का चित्र मुंबई के विख्यात चित्रकार श्री वासुदेव कामत द्वारा वर्ष 2018 में बनाया गया था. जिसके आधार पर यह मूर्ति सोलापुर महाराष्ट्र के प्रसिद्ध मूर्तिकार भगवान राम पुर द्वारा उकेरी गई. मूर्ति निर्माण हेतु वर्ष 2017-18 में संपूर्ण मध्य प्रदेश में एकात्म यात्रा निकाली गई थी, जिसके माध्यम से 27,000 ग्राम पंचायतों से मूर्ति निर्माण हेतु धातु संग्रहण व जनजागरण का अभियान चलाया गया था.
मुख्यमंत्री इसी दिन इस परियोजना के दूसरे चरण की आधारशिला भी रखेंगे. जिसमें, 'अद्वैत लोक' नाम का एक संग्रहालय तथा आचार्य शंकर अंतर्राष्ट्रीय अद्वैत वेदान्त संस्थान की स्थापना की जाएगी. शंकर संग्रहालय के अंतर्गत आचार्य शंकर के जीवन दर्शन व सनातन धर्म पर विभिन्न वीथिकाएं, दीर्घाएं, लेजर लाइट वॉटर साउंड शो, आचार्य शंकर के जीवन पर फिल्म, सृष्टि नाम का अद्वैत व्याख्या केंद्र, एक अद्वैत नर्मदा विहार, अन्नक्षेत्र, शंकर कलाग्राम आदि प्रमुख आकर्षण रहेंगे. आचार्य शंकर अंतर्राष्ट्रीय अद्वैत वेदान्त संस्थान के अंतर्गत दर्शन, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान तथा कला पर केंद्रित चार शोध केंद्रों के अलावा ग्रंथालय, विस्तार केंद्र तथा एक पारंपरिक गुरुकुल भी होगा. संपूर्ण निर्माण पारंपरिक भारतीय मंदिर स्थापत्य शैली में किया जा रहा है. यह प्रकल्प पर्यावरण अनुकूल होगा. अद्वैत लोक के साथ ही 36 हेक्टेयर में अद्वैत वन नाम का एक संघन वन विकसित किया जा रहा है.
कब से शुरु होगा छठ महापर्व, जानें डेट और मुहूर्त
15 Sep, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में कई सारे व्रत त्योहार पड़ते हैं और सभी का अपना महत्व भी होता है इसी लिस्ट में छठ पर्व भी होता है जिसे महापर्व के नाम से जाना जाता है यह त्योहार भगवान सूर्यदेव की पूजा को समर्पित होता है।
छठ सबसे अधिक बिहा, झारखंड, बंगाल और उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है मान्यता है कि छठ पूजा विधि विधान से करने से पर भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है।
छठ महापर्व को लेकर कई सारे नियम भी बताए गए हैं जिसके अनुसार व्रत करने वाले व्रती को सूर्य उदय और सूर्यास्त के समय सूर्य भगवान का ध्यान कर उन्हें जल अर्पित किया जाता है मान्यता है कि इस व्रत को करने से सभी प्रकार की सुख सुविधाएं मिलती है और कष्टों में कमी आती है। छठ पर्व को स्त्री और पुरुष कोई भी कर सकता है तो आज हम आपको इस पर्व की तारीख और मुहूर्त की जानकारी प्रदान कर रहे हैं।
छठ व्रत की तारीख-
पंचांग के अनुसार छठ पूजा हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर होती है जो कि अक्टूबर और नवंबर महीने के बीच आती है। इस साल छठ पूजा 17 नवंबर से शुरु होकर 20 नवंबर तक चलेगा। नहाय खाए की तिथि 17 नवंबर, खरना की तिथि 18 नवंबर, डूबते सूर्य को जल 19 नवंबर को दिया जाएगा। तो वही उगते सूर्य को जल 20 नवंबर को देना शुभ रहेगा।
पूजन का शुभ समय-
पूजा के लिए डूबते सूर्य को जल देने का उत्तम समय शाम 5 बजकर 26 मिनट और उगते सूर्य को जल देने का शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 47 मिनट का है।
इन आदतों से महिलाएं रहें दूर वरना बर्बाद हो जाएगा घर
15 Sep, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में महिलाओं को देवी का दर्जा प्राप्त है और उन्हें घर की लक्ष्मी कहा गया है कहते है जिस घर की महिलाएं प्रसन्न रहती है वहां पर धन की देवी माता लक्ष्मी का वास होता है लेकिन अगर घर की स्त्री दुखी होती है तो धन भी वहां निवास नहीं करती है।
शास्त्रों में कुछ ऐसी आदतों के बारे में बताया गया है जिनका महिलाओं में होना घर बर्बाद कर सकता है और ऐसे घर में लक्ष्मी भी नहीं आती है जिस कारण परिवार को आर्थिक तंगी व अन्य परेशानियों से गुजरना पड़ता है तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा बता रहे है कि महिलाओं को किन बुरी आदतों से बचना चाहिए।
इन आदतों से महिलाएं रहें दूर-
अधिकतर महिलाएं रोटी के लिए आटा गूंथती है और बाकी बचे आटे को फ्रिज में रखकर दोबार इस्तेमाल करती है। ऐसा करना घर की सुख समृद्धि के लिए अच्छा नहीं माना जाता है इससे माता लक्ष्मी नाराज़ हो जाती है। इसके अलावा घर पर अतिथि के आने पर नाराज़ हो जाने और उनका सत्कार न करने की आदत को भी अच्छा नहीं माना जाता है ऐसा करने से परिवार में अशांति बनी रहती है।
जिस घर की महिलाएं सुबह देर तक सोती है और शाम को सूर्यास्त के तुरंत बाद सोती है उनके घर में हमेशा दरिद्रता का वास होता है। इसके अलावा महिलाओं को कभी भी एकादशी, अमावस्या और गुरुवार के दिन बाल नहीं धोने चाहिए। ऐसा करने से लक्ष्मी नाराज़ हो जाती है जो आर्थिक परेशानी की वजह बनता है।