धर्म एवं ज्योतिष (ऑर्काइव)
दिवाली से पहले बाहर करें ये चीजें, खुलेगा खुशियों का पिटारा
30 Sep, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में कई सारे पर्व त्योहार मनाए जाते हैं लेकिन इन सभी में दिवाली प्रमुख मानी गई हैं जो कि कार्तिक मास की अमावस्या के दिन मनाई जाती है इस दिन धन की देवी माता लक्ष्मी और श्री गणेश की विधि विधान से पूजा की जाती है।
माना जाता है दिवाली पर लक्ष्मी साधना उत्तम फल प्रदान करती है।
ऐसे में अगर आप अपने घर में सदा के लिए लक्ष्मी का वास और आशीर्वाद चाहते हैं तो दिवाली से पहले घर की साफ सफाई करके कुछ चीजों को बाहर कर देना बेहतर होगा। वरना लक्ष्मी नाराज हो जाती है और परिवार को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ सकता है तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा बता रहे हैं कि किन चीजों को दिवाली से पहले घर से बाहर कर देना बेहतर होगा।
दिवाली से पहले करें इन चीजों को बाहर-
इस साल दिवाली 12 नवंबर को मनाया जाएगा। ऐसे में दिवाली से पहले घर की साफ सफाई करते वक्त कुछ चीजों को घर से तुरंत ही बाहर कर देना चाहिए। वास्तु अनुसार घर में टूटा कांच रखना शुभ नहीं माना जाता है इससे परिवार में कलह पैदा होता है ऐसे में दिवाली की सफाई के द्वारा टूटे कांच को घर से बाहर कर देना बेहतर होगा। इसके अलावा टूटे हुए बर्तनों का इस्तेमाल भी घर में शुभ नहीं माना जाता है। इससे घर की सुख समृद्धि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है ऐसे में अगर आप लक्ष्मी व अन्न पूर्णा का आशीर्वाद पाना चाहते हैं तो टूटे हुए बर्तनों को घर से बाहर कर दें। ऐसा करने से देवी की कृपा बनी रहती है।
वास्तुशास्त्र के अनुसार घर में पुराने दीपक रखना अशुभ माना जाता है ऐसे में दिवाली आने से पहले इसे घर से बाहर कर देना बेहतर होगा। आप चाहें तो इन दीपकों को दान भी कर सकते हैं। अगर आप अभी तक टूटे बेड का इस्तेमाल कर रहे हैं तो दिवाली आने से पहले इसे घर से बाहर कर दें। वरना परिवार में कलह, पति पत्नी में तनाव और आर्थिक परेशानियां बनी रहती है। दिवाली की साफ सफाई करते वक्त घर से बंद घड़ी को भी बाहर कर दें। वरना असफलताओं और कष्टों का सामना करना पड़ेगा।
श्राद्ध पक्ष में करें ये उपाय, पितृदोष से मिलेगी राहत
30 Sep, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में वर्ष के 15 दिन पूर्वजों को समर्पित होते हैं जिन्हें पितृपक्ष या श्राद्ध पक्ष के नाम से जाना जाता है इस दौरान लोग अपने मृत परिजनों को याद कर उनका श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करते हैं माना जाता है कि ऐसा करने से पूर्वज प्रसन्न होकर सुख समृद्धि और वंश वृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
पंचांग के अनुसार हर साल पितृपक्ष की शुरुआत भाद्रपद मास की पूर्णिमा से होती है और अश्विन मास की अमावस्या पर खत्म हो जाती है। इस साल पितृपक्ष 29 सितंबर दिन शुक्रवार यानी आज से आरंभ हो चुका है और इसका समापन 14 अक्टूबर को हो जाएगा। मान्यता है कि इस दौरान अगर कुछ खास उपायों को किया जाए तो जातक को पितृदोष से राहत मिलती है और तरक्की व सुख समृद्धि के योग बनने लगते हैं तो आज हम आपको उन्हीं उपायों के बारे में बता रहे हैं।
पितृपक्ष में करें ये खास उपाय-
पितृ दोष से मुक्ति के लिए पितृपक्ष को बेहद शुभ माना गया है ऐसे में अगर आप भी पितृदोष से निवारण चाहते हैं तो घर के बड़े वृद्ध लोगों की सेवा और सम्मान करें। माता पिता की सेवा बिना किसी स्वार्थ के करें। ऐसा करने से पितृदोष दूर हो जाता है। इसके अलावा रोजाना स्नान ध्यान करने के बाद जल में काले तिल और जौ मिलाकर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके पितरों को जल अर्पित करें। साथ ही पितरों को भोजन भी दें।
इस उपाय को करने से पितर प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं और पितृदोष से मुक्ति मिल जाती है। इसके अलावा पितृ दोष के निवारण हेतु अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से लेकर अमावस्या तक हर सोमवार और शुक्रवार के दिन भगवान शिव का रुद्राभिषेक जरूर करें। ऐसा करने से भी पितृ दोष दूर हो जाता है।
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (30 सितम्बर 2023)
30 Sep, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि - किसी को धोखा देने से मनोवृत्ति खिन्न रहेगी, धन का व्यय होगा, सामंजस्य के साथ आगे बढ़ें।
वृष राशि - परिस्थिति अनुकूल नहीं रहेगी, लेन-देन के मामले स्थगित रखें, व्यर्थ विवाद से अवश्य बचें।
मिथुन राशि - समय व्यर्थ नष्ट होगा, यात्रा के प्रसंग में थकावट व बेचैनी बनेगी, समय व धन व्यर्थ नष्ट न करें।
कर्क राशि - प्रयत्नशीलता विफल होगी, परिश्रम करने से ही कुछ सफलता मिलेगी, आलस्य से हानि होगी।
सिंह राशि - परिश्रम से कार्य पूर्ण होंगे, मेहनत से कार्य में विजय मिलेगी, आशानुकूल सफलता से हर्ष होगा।
कन्या राशि - व्यवसायिक कुशलता से संतोष होगा, अर्थ-व्यवस्था अनुकूल रहेगी, समय स्थिति का लाभ अवश्य लें।
तुला राशि - किसी तनावपूर्ण वातावरण से बचें, अवरोध पूर्ण वातावरण से परेशानी बढ़ेगी, धैर्य पूर्वक आगे बढ़ें।
वृश्चिक राशि - परिस्थिति में सुधार होते हुये भी फलप्रद नहीं, कार्य विफलता की चिन्ता रहेगी, लापरवाही से हानि होगी।
धनु राशि - स्त्री वर्ग से उल्लास रहेगा, इष्ट मित्र सुखवर्धक होगा, रुके कार्य परिश्रम से बनेंगे, कार्यगति पर ध्यान अवश्य दें।
मकर राशि - स्वाभाव में क्लेश व अशांति रहेगी, व्यर्थ विभ्रम तथा उद्विघ्नता का वातावरण बनेगा, धैर्य अवश्य रखें।
कुंभ राशि - कार्यगति आशानुकूल रहेगी, चिन्तायें कम होंगी तथा सफलता के साधन अवश्य बनेंगे ध्यान अवश्य दें।
मीन राशि - आशानुकूल सफलता से हर्ष होगा, इष्ट मित्रों का समर्थन फलप्रद होगा, समय रहते कार्य अवश्य पूर्ण कर लें।
सौभाग्य और ऐश्वर्य पाने के लिए जरूर करें ये व्रत, बदल जाएगी किस्मत
29 Sep, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में व्रत-उपवास का विशेष महत्व है, व्रत-उपवास न केवल देवी-देवताओं को प्रसन्न करने और मनचाहे वर की कामना के लिए किया जाता है, व्रत करने से शरीर और मन दोनों शुद्ध होते हैं, इससे जीवन में होने वाले पापों से मुक्ति मिलती है।
सफलता की ओर आगे. यह ध्यान, ईश्वर की आराधना और मनुष्य की आंतरिक शक्तियों को जागृत करने के लिए भी किया जाता है। उपवास के माध्यम से व्यक्ति अपने मन को नियंत्रित करता है और अपनी आदतों और इच्छाओं को सीमित करता है। यही कारण है कि जब कोई व्यक्ति किसी भी तरह की समस्या से घिर जाता है तो वह अपनी समस्या के समाधान के लिए धार्मिक और यहां तक कि ज्योतिषियों से भी व्रत-उपवास के बारे में सलाह लेता है। हर व्रत का अलग-अलग महत्व होता है। व्रत के पालन से आध्यात्मिक प्रगति होती है और व्यक्ति को भगवान और स्वयं के बारे में गहरी समझ प्राप्त होती है।
गुरुवार का व्रत करें
गुरुवार का दिन देवगुरु बृहस्पति के नाम पर है। इस दिन व्रत करने से बृहस्पति देव की कृपा प्राप्त होती है जिससे न केवल धन की स्थिरता बढ़ती है बल्कि यश में भी वृद्धि होती है। इस व्रत को करने से लड़कियां सुयोग्य वर की इच्छा पूरी कर सकती हैं, वहीं विद्यार्थियों के लिए यह व्रत बुद्धि और ज्ञान प्रदान करता है। व्रती को व्रत की संख्या का संकल्प लेकर व्रत पूजा अनुष्ठान प्रारंभ करना चाहिए। व्रत के दिन पीले रंग के कपड़े पहनना शुभ माना जाता है। पूजा में व्रत, कथा और आरती के साथ वैदिक मंत्रों का जाप भी करना चाहिए। जहां तक भोजन की बात है तो शाम की पूजा के बाद बेसन, घी और चीनी से बनी मिठाई या लड्डू ही खाना चाहिए।
व्रत शुक्रवार
शुक्रवार का व्रत शुक्र ग्रह के लिए है। इस दिन व्रत करने से सुख, सौभाग्य और समृद्धि में वृद्धि होती है। शुक्रवार का व्रत करने से मनोवांछित फल मिलता है। व्रत के दिन सफेद वस्त्र पहनें और वैदिक शुक्र मंत्र का जाप करें। भोजन में चावल, चीनी, दूध, दही और घी का ही सेवन करें।
शनिवार व्रत
शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए शनिवार का व्रत रखा जाता है। इस दिन व्रत करने से सभी प्रकार के सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। लड़ाई में जीत हासिल होती है. लोहा, मशीनरी और फैक्ट्री का काम करने वालों के लिए यह व्रत व्यापार में उन्नति लाता है। शनिवार के दिन स्नान आदि के बाद काले कपड़े पहनकर शनिदेव की पूजा करनी चाहिए और मंत्रों का जाप करना चाहिए। जप करते समय एक पात्र में शुद्ध जल, काले तिल, दूध, चीनी और गंगाजल रखें। जाप के बाद इसे किसी पीपल के पेड़ की जड़ में पश्चिम दिशा की ओर मुख करके चढ़ा दें। इस दिन उड़द के आटे से बनी चीजें जैसे पंजीरी, पकौड़े, चीला और बड़ा आदि खाएं। तेल में बनी कुछ चीजें जरूर खाएं। फलों के बीच में केला खाना चाहिए
कब रखा जा रहा करवा चौथ व्रत, इस सरल विधि से करें पूजा
29 Sep, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हर साल कारा चोथ व्रत कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चंद्रोदय व्यापि चतुर्थी के दिन मनाया जाता है। इस बार यह व्रत 1 नवंबर को रखा जाएगा. इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए निर्जला व्रत रखती हैं।
यह व्रत न सिर्फ पति की लंबी उम्र के लिए होता है, बल्कि सौभाग्य भी लाता है। इस दिन महिलाएं सुबह जल्दी व्रत शुरू करती हैं और रात में चांद देखने के बाद ही अपना व्रत खोलती हैं।
व्रत विधि
इस व्रत को करने वाली महिलाओं को सुबह स्नान करने के बाद आचमन करना चाहिए और पति, पुत्र और सौभाग्य के लिए संकल्प लेना चाहिए। इस व्रत में शिव, पार्वती, कार्तिकेय, गणेश और चंद्र की पूजा करने की परंपरा है। चंद्रोदय के बाद चंद्रमा के दर्शन-पूजन और अर्घ्य देने के बाद ही महिलाएं जल और भोजन ग्रहण करती हैं। पूजा के बाद चावल, उड़द दाल, सिन्दूर, चूड़ियाँ, रिबन, सुहाग सामग्री और दक्षिणा में तांबा या मिट्टी का करव दान किया जाता है। इसके बाद अपनी सास को 14 पूरियां या मिठाइयां, सुहाग सामग्री, फल और सूखे मेवे खिलाएं और उनके पैर छूकर आशीर्वाद लें। शादी के बाद नवविवाहित महिला इस व्रत को रखती है, जिसमें वह अपनी सास को 14 खंड का कलश, एक बर्तन, फल, मिठाई, बायन, शादी का सामान और एक साड़ी देती है। व्रत के महत्व पर महाभारत में एक कहानी है, जिसे महिलाएं दीवार पर गाय का गोबर लगाकर और चावल की कलम से लिखकर पूजा करती हैं, लेकिन अब इसके कैलेंडर बाजार में आने लगे हैं।
मिथक
प्राचीन काल में शक प्रशस्तपुर में एक धार्मिक ब्राह्मण वेदधर्मी रहता था जिसके सात बेटे और वीरावती नाम की एक बेटी थी। जब वीरावती बड़ी हुई तो उसकी शादी हो गई और उसने पहली बार करवा चौथ का व्रत लिया। चंद्रोदय से पहले ही वह भूखी थी, इसलिए भाइयों ने उसे पीपल के पेड़ की आड़ से रोशनी दिखाई, जिसे वीरावती ने चंद्रोदय समझकर अर्घ्य दे दिया और खा लिया। जब खाना खाते ही उसका पति मर गया तो वह विलाप करने लगी। संयोगवश कहीं जाते समय इंद्राणी ने उसके रोने की आवाज सुनी और जब वह वहां पहुंची तो उसने वीरावती से इसका कारण पूछा तो उसने बताया कि उसने चंद्रोदय से पहले अपना व्रत तोड़ दिया था, जिसके कारण उसके पति की मृत्यु हो गई। अब यदि तुम बारह महीनों तक प्रत्येक चोथ की विधिपूर्वक पूजा करो और करवा चौथ के दिन शिव परिवार के साथ चंद्रमा की पूजा करो तो तुम्हारा पति पुनर्जीवित हो जाएगा। जब वीरावती ने वैसा ही किया तो उसका पति जीवित हो उठा।
धरती पर हुआ पूर्वजों का आगमन, पिंडदान और तर्पण के जल से पितर होंगे तृप्त
29 Sep, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
गया को भगवान विष्णु का नगर माना जाता है. यह मोक्ष की भूमि भी कहलाती है. इस बात की चर्चा विष्णु पुराण और वायु पुराण में की गयी है.
विष्णु पुराण के अनुसार, गया में पिंडदान करने पर पूर्वज को मोक्ष मिल जाता है और वे सीधे स्वर्ग चले जाते है. माना जाता है कि गया में पितृ देवता के रूप में स्वयं भगवान विष्णु मौजूद है. इसलिए इस जगह को पितृ तीर्थ के नाम से जाना जाता है. गया को मोक्षस्थली भी कहा जाता है.
पितृ पक्ष श्राद्ध सामग्री
पितृ पक्ष
पितृ पक्ष श्राद्ध सामग्री रोली, सिंदूर, छोटी सुपारी, रक्षा सूत्र, चावल, जनेऊ, कपूर, हल्दी, देसी घी, माचिस, शहद, काला तिल, तुलसी के पत्ते, पान, जौ, हवन सामग्री, गुड़, मिट्टी दीया, कपास, अगरबत्ती, दही, जौ का आटा, गंगाजल, खजूर. इसी सामग्री से श्राद्ध पूजा की जाती है. केला, सफेद फूल, उड़द, गाय का दूध, घी, खीर, स्वंक चावल, मूंग, गन्ना का प्रयोग पितरों को प्रसन्न करता है.
पिंडदान और ब्राह्मण भोज का भोग
शास्त्रों के अनुसार पिंडदान और ब्राह्मण भोज का भोग लगाकर पितरों का श्राद्ध करना चाहिए. श्राद्ध में ब्राह्मणों को आदरपूर्वक आमंत्रित करना चाहिए और पैर धोकर आसन पर बिठाना चाहिए. पंचबली भोजन का ब्राह्मण भोजन के साथ विशेष महत्व है.
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा
Pitru Paksha 2023
पितृ पक्ष हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन शुरू होता है जो 15 दिनों तक चलता है. ऐसा माना जाता है कि पितृ पक्ष के दौरान पूर्वज कौवे के रूप में पृथ्वी पर आते हैं. पूर्वजों को अर्पण करने का अर्थ है उन्हें जल देना. पितरों का स्मरण करते हुए हाथ में जल, कुश, अक्षत, पुष्प और काले तिल लेकर उन्हें आमंत्रित करें. इसके बाद उनका नाम लेकर अंजलि का जल 5-7 या 11 बार धरती पर गिराएं. कौवे को पूर्वजों का रूप माना जाता है. पितृ पक्ष में कौवे को भोजन कराना चाहिए.
पितृ पक्ष तर्पण विधि
Pitru Paksha 2023 Pind Daan
हर साल पितरों को समर्पित एक निश्चित समय अवधि में पूर्वजों का तर्पण किया जाता है. इस कर्म में कुश, अक्षत, जौ, काले तिल और जल से तर्पण कर पितरों से अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगनी चाहिए. कहा जाता है सच्चे मन से किया गया तर्पण मनुष्य को कई प्रकार के रोगों से मुक्ति दिलाता है और साथ ही हमेशा पितरों का आशीर्वाद हमारे ऊपर बना रहता है, जिससे जीवन के सभी क्षेत्रों में आसानी से सफलता मिल जाती है. इस अवधि में पितरों की आत्मा की शांति के लिए यथा संभव दान करना चाहिए. इस पूरे अवधि में हमें इस बात का विशेष रूप से ध्यान रखनी चाहिए. पितृ पक्ष के दौरान बाल व दाढ़ी नहीं कटवाना चाहिए, घर में सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए. आपको इस पूरे समय अवधि में किसी भी प्रकार के तामसिक भोजन जैसे- मांस, मछली, मदिरा आदि का सेवन से बचना चाहिए.
श्राद्ध की महत्वपूर्ण तिथियां
29 सितंबर 2023 दिन शुक्रवार- पूर्णिमा श्राद्ध
29 सितंबर 2023 दिन शुक्रवार- प्रतिपदा श्राद्ध
30 सितंबर 2023 दिन शनिवार- द्वितीया श्राद्ध
01 अक्टूबर 2023 दिन रविवार- तृतीया श्राद्ध
02 अक्टूबर 2023 दिन सोमवार- चतुर्थी श्राद्ध
03 अक्टूबर 2023 दिन मंगलवार- पंचमी श्राद्ध
04 अक्टूबर 2023 दिन बुधवार- षष्ठी श्राद्ध
05 अक्टूबर 2023 दिन गुरुवार- सप्तमी श्राद्ध
06 अक्टूबर 2023 दिन शुक्रवार- अष्टमी श्राद्ध
07 अक्टूबर 2023 दिन शनिवार- नवमी श्राद्ध
08 अक्टूबर 2023 दिन रविवार- दशमी श्राद्ध
09 अक्टूबर 2023 दिन सोमवार- एकादशी श्राद्ध
11 अक्टूबर 2023 दिन बुधवार- द्वादशी श्राद्ध
12 अक्टूबर 2023 दिन गुरुवार- त्रयोदशी श्राद्ध
13 अक्टूबर 2023 दिन शुक्रवार- चतुर्दशी श्राद्ध
14 अक्टूबर 2023 दिन शनिवार- सर्व पितृ अमावस्या
पूर्वजों के आशीर्वाद से दूर होती हैं बाधाएं
पितरों का श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है और वे अपने वंशजों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं ऐसा माना जाता है कि पूर्वजों के आशीर्वाद से व्यक्ति पर आने वाली बाधाएं दूर होती हैं और जीवन सुखमय बना रहता है.
तर्पण की सम्पूर्ण विधि
सबसे पहले प्रातः काल उठकर स्नान करके पितरों के चित्र पर फूल चढ़ाएं.
देवताओं के लिए पूर्व दिशा में मुख करके कुश और अक्षत से तर्पण करें.
इसके बाद जौ और कुश लेकर ऋषियों के लिए तर्पण करें.
फिर दक्षिण दिशा में अपना मुख कर लें, उसके बाद कुश और जौ से तर्पण करें.
और दक्षिण दिशा में मुख करके काले तिल व कुश से तर्पण करें.
पितरों के निमित्त यज्ञ स्वरूप है तर्पण
पितरों के निमित्त यज्ञ स्वरूप है तर्पण
पितृ पक्ष में ऐसे करें तर्पण : पितृ पक्ष में हर दिन पितरों के लिए तर्पण किया जाता है. तर्पण के समय सबसे पहले देवों के लिए तर्पण किया जाता है. तर्पण के लिए आपको कुश, अक्षत्, जौ और काला तिल का उपयोग करना चाहिए. तर्पण करने के बाद पितरों से पूर्व में कर चुके गलतियों के लिए प्रार्थना करनी चाहिए, ताकि वे प्रसन्न हो जाए और आपको सुखी रहने का आशीर्वाद दें.
नियमित श्राद्ध करने से जातक को पितरों का आशीर्वाद
मान्यता है कि पितृ पक्ष में पितरों के नियमित श्राद्ध करने से जातक को पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है. इसीलिए हर साल पितृ पक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध कर्म किए जाते हैं. पितृ पक्ष हर साल भाद्रमास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है
पितृ पक्ष में ऐसे करें तर्पण
पितृ पक्ष में हर दिन पितरों के लिए तर्पण किया जाता है. इस समय सबसे पहले देवों के लिए तर्पण किया जाता है. तर्पण के लिए आपको कुश, अक्षत्, जौ और काला तिल का उपयोग करना चाहिए. तर्पण करने के बाद पितरों से पूर्व में कर चुके गलतियों के लिए प्रार्थना करनी चाहिए, ताकि वे प्रसन्न हो जाए और आपको सुखी रहने का आशीर्वाद दें.
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (29 सितम्बर 2023)
29 Sep, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि - दूर की यात्रा सफलता पूर्वक होगी, शत्रु पक्ष कमजोर होगा, कार्य में अवरोध होगा, धैर्य रखें।
वृष राशि - अच्छे गुणों की हानि होगी, स्त्री-संतान के कार्यों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है, सावधान रहें।
मिथुन राशि - आर्थिक कमी के कारण मानसिक क्लेश होगा, संतान पक्ष से कष्ट होगा, समय को ध्यान में रखकर आगे बढ़ें।
कर्क राशि - प्रिय-जनों से भेंट-मिलाप होगा, स्थिति में सुधार होगा, साधनों की प्राप्ति होगी, कार्य पर विशेष ध्यान दें।
सिंह राशि - संतान के स्वास्थ्य पर ध्यान दें, सभी कार्य में प्रगति होगी, रुके कार्य ध्यान देने से बनेंगे, आलस्य से हानि होगी।
कन्या राशि - राजकीय तथा नौकरी के कार्यों में सफलता मिलेगी, परिश्रम से लाभ होगा, कार्य को समय पर पूरा करें।
तुला राशि - यात्रा से हित का अवसर मिलेगा, विचारों का आदान-प्रदान होगा, वरिष्ठ जनों से मेल-मुलाकात होगी।
वृश्चिक राशि - स्वजनों का साथ मिलेगा, प्रयत्न से धन एवं वाहन की प्राप्ति होगी, आलस्य से हानि, कार्य पर ध्यान दें।
धनु राशि - साहसिक कार्यों में रुचि बढ़ेगी, भाग्योन्नति से पत्नी व संतान के दायित्वों की पूर्ति होगी, समय का लाभ लें।
मकर राशि - व्यवसाय में कोई परिवर्तन नहीं होगा, कार्य में बाधा बनेगी, व्यापार-व्यवसाय में ध्यान देने से लाभ होगा।
कुंभ राशि - उद्योग में बाधायें आयेंगी किन्तु यात्रा अवश्य करें, रुके कार्य समय पर पूर्ण करने का प्रयास अवश्य करें।
मीन राशि - अध्ययन में रुचि बढ़ेगी, मानसिक व शारीरिक भ्रम-बाधा बनेगी, कार्य की अधिकता रहेगी, श्रम से लाभ होगा।
अनंत चतुर्दशी व्रत से प्राप्त होते है सभी सुख
28 Sep, 2023 07:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी व्रत रखा जाता है। इस बार 28 सितंबर को अनंत चतुर्दशी है। इस दिन भगवान विष्णु के विराट स्वरुप की पूजा अर्चना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि विधिवत तरीके और पूरी श्रद्धा के साथ यह व्रत करने वाले भक्तों के सभी दुःख दूर होते हैं और वो सुख को प्राप्त होते हैं। शास्त्रों के अनुसार, इसी दिन गणेश चतुर्थी के 10 दिन पूरे होते हैं और भक्त पूजा पाठ के साथ गणेश प्रतिमा का विसर्जन करते हैं। आइए जानते हैं अनंत चतुर्दशी व्रत की पूजा विधि
अनंत चतुर्दशी व्रत की पूजा विधि:
इस दिन व्रत करने वाले भक्तों को तड़के सुबह उठकर स्नान ध्यान के बाद साफ कपड़े धारण करने चाहिए। इसके बाद पूजाघर की साफ सफाई करने के बाद इसे फूलों से सजाना चाहिए। इसके बाद ममाखिलपापक्षयपूर्वकशुभफलवृद्धये श्रीमदनन्तप्रीतिकामनया अनन्तव्रतमहं करिष्ये इस मंत्र को पढ़ते हुए व्रत का संकल्प करना चाहिए। अनंत सूत्र के हल्दी लगे धागे (अनंत दोरक) को स्थापित करना चाहिए। इसके बाद आम की पत्तियों, धूप, दीप, नैवेद्य और आम के पत्तों से पूजा अर्चना करें। इसके साथ ही भगवान को पंचामृत, पंजीरी, केले और मोदक का प्रसाद भी चढ़ाएं। इसके बाद इस मंत्र नमस्ते देव देवेश नमस्ते धरणीधर। नमस्ते सर्वनागेन्द्र नमस्ते पुरुषोत्तम। इस मंत्र का जाप करते हुए व्रत खोल लें।
शनि, यमराज के पिता है सूर्यदेव
28 Sep, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
रविवार को हम सूर्यदेव की पूजा करते हैं, पर क्या आप सूर्यदेव के परिवार को जानते हैं। चलिए मिलते हैं सूर्य की पत्नियों और संतानो से। सूर्य देव का परिवार काफी बड़ा है। उनकी संज्ञा और छाया नाम की दो पत्नियां और दस संताने हैं। जिसमे से यमराज और शनिदेव जैसे पुत्र और यमुना जैसी बेटियां शामिल हैं। मनु स्मृति के रचयिता वैवस्वत मनु भी सूर्यपुत्र ही हैं।
सूर्य की पत्नियां
सूर्य देव की दो पत्नियां संज्ञा और छाया हैं। संज्ञा सूर्य का तेज ना सह पाने के कारण अपनी छाया को उनकी पत्नी के रूप में स्थापित करके तप करने चली गई थीं। लंबे समय तक छाया को ही अपनी प्रथम पत्नी समझ कर सूर्य उनके साथ रहते रहे। ये राज बहुत बात में खुला की वे संज्ञा नहीं छाया है। संज्ञा से सूर्य को जुड़वां अश्विनी कुमारों के रूप में दो बेटों सहित छह संताने हुईं जबकि छाया से उनकी चार संताने थीं।
शिल्पी विश्वकर्मा सूर्य पत्नी संज्ञा के पिता थे और इस नाते उनके ससुर हुए। उन्होंने ही संज्ञा के तप करने जाने की जानकारी सूर्य देव को दी थी।
सूर्य पुत्र यम
धर्मराज या यमराज सूर्य के सबसे बड़े पुत्र और संज्ञा की प्रथम संतान हैं।
यमी
यमी यानि यमुना नदी सूर्य की दूसरी संतान और ज्येष्ठ पुत्री हैं जो अपनी माता संज्ञा को सूर्यदेव से मिले आर्शिवाद के चलते पृथ्वी पर नदी के रूप में प्रसिद्ध हुईं।
वैवस्वत मनु
सूर्य और संज्ञा की तीसरी संतान हैं वैवस्वत मनु वर्तमान (सातवें) मन्वन्तर के अधिपति हैं। यानि जो प्रलय के बाद संसार के पुर्निमाण करने वाले प्रथम पुरुष बने और जिन्होंने मनु स्मृति की रचना की।
शनि देव
सूर्य और छाया की प्रथम संतान है शनिदेव जिन्हें कर्मफल दाता और न्यायधिकारी भी कहा जाता है। अपने जन्म से शनि अपने पिता से शत्रु भाव रखते थे। भगवान शंकर के वरदान से वे नवग्रहों में सर्वश्रेष्ठ स्थान पर नियुक्त हुए और मानव तो क्या देवता भी उनके नाम से भयभीत रहते हैं।
तप्ति
छाया और सूर्य की कन्या तप्ति का विवाह अत्यन्त धर्मात्मा सोमवंशी राजा संवरण के साथ हुआ। कुरुवंश के स्थापक राजर्षि कुरु का इन दोनों की ही संतान थे, जिनसे कौरवों की उत्पत्ति हुई।
विष्टि या भद्रा
सूर्य और छाया पुत्री विष्टि भद्रा नाम से नक्षत्र लोक में प्रविष्ट हुई। भद्रा काले वर्ण, लंबे केश, बड़े-बड़े दांत तथा भयंकर रूप वाली कन्या है। भद्रा गधे के मुख और लंबे पूंछ और तीन पैरयुक्त उत्पन्न हुई। शनि की तरह ही इसका स्वभाव भी सख्त बताया गया है। उनके स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए ही भगवान ब्रह्मा ने उन्हें कालगणना या पंचांग के एक प्रमुख अंग विष्टि करण में स्थान दिया है।
सावर्णि मनु
सूर्य और छाया की चौथी संतान हैं सावर्णि मनु। वैवस्वत मनु की ही तरह वे इस मन्वन्तर के पश्चात अगले यानि आठवें मन्वन्तर के अधिपति होंगे।
अश्विनी कुमार
संज्ञा के बारे में जानकारी मिलने के बाद अपना तेज कम करके सूर्य घोड़ा बनकर उनके पास गए। संज्ञा उस समय अश्विनी यानि घोड़ी के रूप में थी। दोनों के संयोग से जुड़वां अश्विनीकुमारों की उत्पत्ति हुई जो देवताओं के वैद्य हैं। कहते हैं कि दधीचि से मधु-विद्या सीखने के लिये उनके धड़ पर घोड़े का सिर रख दिया गया था, और तब उनसे मधुविद्या सीखी थी। अत्यंत रूपवान माने जाने वाले अश्विनीकुमार नासत्य और दस्त्र के नाम से भी प्रसिद्ध हुए।
रेवंत
सूर्य की सबसे छोटी और संज्ञा की छठी संतान हैं रेवंत जो उनके पुनर्मिलन के बाद जन्मी थी। रेवंत निरन्तर भगवान सूर्य की सेवा में रहते हैं।
माता सरस्वती का ये मंदिर इसलिए है प्रसिद्घ
28 Sep, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
आंध्र प्रदेश के बासर गांव में गोदावरी नदी के तट पर स्थित सरस्वती माता का एक मंदिर है। इस मंदिर के बारे में तरह-तरह की किवदंतियां प्रचलित है। इस मंदिर में केंद्रीय रूप से सरस्वती माता की भव्य प्रतिमा स्थापित है, उनके साथ लक्ष्मी माता भी यहां विराजमान हैं। सरस्वती देवी की मूर्ति लगभग 4 फुट की ऊंची है। यहां वह पद्मासन मुद्रा में है। इस मंदिर की सबसे खास बात है कि मंदिर के एक स्तंभ से संगीत के सातों स्वर सुनाई देते हैं, इसी विशेषता के चलते भक्त यहां खींचे चले आते हैं। कोई भी ध्यानपूर्वक कान लगाकर इस ध्वनि को सुन सकता है।
प्राचीन कथाओं की माने तो मां सरस्वती के मंदिर से थोड़ी दूर दत्त मंदिर स्थित है, जहां से होते हुए गोदावरी नदी तक एक सुरंग जाया करती थी। कहा जाता है कि इसी सुरंग के द्वारा ही राजा महाराजा पूजा के लिए आते थे। कहा जाता है कि बाल्मीकि ऋषि को भी यहीं पर सरस्वती माता से आर्शीवाद मिला था। जिसके बाद उन्होंने रामायण लिखना शुरू किया।
अक्षाराभिषेक की रीति का है रिवाज
यहां एक धार्मिक रीति भी विख्यात है, जिसे अक्षर आराधना कहते हैं। अक्षर आराधना में बच्चों को शिक्षा प्रारंभ करने से पहले अक्षराभिषेक के लिए यहां पर लाया जाता है। मान्यता है कि बच्चे के जीवन के पहले अक्षर यहां लिखवाने से बच्चे का शैक्षिक जीवन सदैव सफल रहता है। इस रीति के बाद हल्दी का लेप प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। सरस्वती माता ब्रह्मदेव की मानस पुत्री भी हैं, साथ ही विद्या की अधिष्ठात्री देवी भी मानी जाती हैं।
वेदव्यास को हुई थी ज्ञान की प्राप्ति
यह मंदिर काफी प्राचीन माना जाता है, मान्यता है कि महाभारत के लेखक वेद व्यास जब मानसिक रूप से परेशान थे तब वह शांति के लिए तीर्थयात्रा पर गए थे। अपने मुनियों के साथ वह उत्तर भारत की तीर्थयात्रा करके बासर पहुंचे। वह गोदावरी नदी के तट को देखने के बाद प्राकृतिक सौंदर्यता से मंत्र-मुग्ध हो कर वहीं रुक गए, कहा जाता है कि उन्हें इसी जगह पर ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और वेदों के रचयिता बने। इस मंदिर के बारे कहा जाता है कि अज्ञान के अंधकार में डूबे कालिदास को भी यहीं ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। वरदराज को भी यहीं आकर ज्ञान मिला था। इसलिए कहते हैं कि यहां आकर अज्ञानी भी ज्ञानी हो जाते हैं।
भगवान शिव के हैं 12 रूद्र अवतार
28 Sep, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भगवान शिव को अनंत कहा गया है और हनुमान जी को इनका रूद्र अवतार माना गया है। शिव के हनुमान रूप में जन्म लेने की कथा इस प्रकार है। भगवान शिव भक्तों की पूजा से जल्द प्रसन्न होने वाले देव हैं और हर युग में अपने भक्तों की रक्षा के लिए अवतार लिए हैं। भगवान शिव ने 12 रूद्र अवतार लिए हैं जिनमें से हनुमान अवतार को श्रेष्ठ माना गया है।
हनुमान के जन्म पर क्या कहते हैं शास्त्र
शास्त्रों में रामभक्त हनुमान के जन्म की दो तिथि का उल्लेख मिलता है। जिसमें पहला तो उन्हें भगवान शिव का अवतार माना गया है, क्योंकि रामभक्त हनुमान की माता अंजनी ने भगवान शिव की घोर तपस्या की थी और उन्हें पुत्र के रूप में प्राप्त करने का वर मांगा था।
तब भगवान शिव ने पवन देव के रूप में अपनी रौद्र शक्ति का अंश यज्ञ कुंड में अर्पित किया था और वही शक्ति अंजनी के गर्भ में प्रविष्ट हुई थी। फिर चैत्र शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को हनुमानजी का जन्म हुआ था।
पौराणिक कथा के अनुसार
पौराणिक कथाओं के अनुसार रावण का अंत करने के लिए भगवान विष्णु ने राम का अवतार लिया था। उस समय सभी देवताओं ने अलग-अलग रूप में भगवान राम की सेवा करने के लिए अवतार लिया था।
उसी समय भगवान शंकर ने भी अपना रूद्र अवतार लिया था और इसके पीछे वजह थी कि उनको भगवान विष्णु से दास्य का वरदान प्राप्त हुआ था। हनुमान उनके ग्यारहवें रुद्र अवतार हैं। इस रूप में भगवान शंकर ने राम की सेवा भी की और रावण वध में उनकी मदद भी की थी।
भगवान विष्णु को इसलिए लगाते हैं चने-गुड़ का भोग
28 Sep, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
जगत के पालनकर्ता भगवान विष्णु की गुरुवार के दिन विधि-विधान से पूजा की जाती है। इस दिन अपने मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए लोग व्रत रहते हैं, केले के पौधे की पूजा करते हैं, पीली वस्तुओं का दान करते हैं और भगवान को चने या चने की दाल और गुड़ का भोग लगाते हैं। चने और गुड़ का भोग लगाने से जुड़ी एक पौराणिक कथा है।
भगवान विष्णु के परमभक्त देवर्षि नारद उनसे आत्मा का ज्ञान व लेना चाहते थे लेकिन वे जब भी श्रीहरि से इसके बारे में अपनी इच्छा प्रकट करते तो भगवान कहते कि पहले उस ज्ञान के योग्य बनना होगा। नारद जी ने स्वयं को उस ज्ञान के योग्य बनाने के लिए कठोर तप किया लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा। इसके पश्चात वे पृथ्वी लोक के भ्रमण पर चले गए।
इस दौरान उन्होंने एक जगह देखा कि भगवान श्रीहरि एक मंदिर में बैठे हैं और वृद्ध् महिला उनको कुछ खिला रही है। भगवान विष्णु के वहां से प्रस्थान करने के बाद नारद मुनि वहां पहुंचे और वृद्ध महिला से जानना चाहा कि वह भगवान को क्या खिला रही थीं।
उस वृद्ध महिला ने बताया कि उसने भगवान विष्णु को गुड़ और चने प्रसाद स्वरुप खिलाए। ऐसा कहा जाता है कि नारद जी वहां पर व्रत करने लगे और लोगों में प्रसाद स्वरुप गुड़-चना बांटने लगे। कुछ समय पश्चात भगवान विष्णु वहां प्रकट हुए और नारद मुनि से कहा कि सच्चे मन से जो भक्ति करता है, वह ज्ञान का अधिकारी होता है।
भगवान ने उस वृद्ध महिला को वैकुण्ठ जाने का आशीर्वाद दिया और कहा कि जो भक्त उनको गुड़ और चना का भोग लगाएगा, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी। ऐसी मान्यता है कि तभी से भगवान विष्णु को गुड़ और चना का भोग लगाते हैं।
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (28 सितम्बर 2023)
28 Sep, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि - राजकीय सम्मान तथा उच्च पद की प्राप्ति संभव है, संतान के कार्य बनेंगे, समय स्थिति का लाभ लें।
वृष राशि - धन लाभ होगा, स्वास्थ्य कुछ नरम-गरम रहेगा, मित्रों से प्रेम सहयोग बढ़ेगा, रुके कार्य ध्यान देने से बनेंगे।
मिथुन राशि - उत्तम विचार रहेंगे, भाग्योन्नति होगी, मानसिक अशांति रहेगी, कष्ट का वातावरण रहेगा, धैर्य रखें।
कर्क राशि - जमीन-जायजाद, मकान का लाभ मिलेगा, शारीरिक कष्ट होगा, निर्णय लेने में सावधानी अवश्य रखें।
सिंह राशि - दाम्पत्य जीवन में उल्लास रहेगा, झगड़े की स्थिति बनेगी, पड़ोसियों से लाभ होगा, वाद-विवाद से बचें।
कन्या राशि - दाम्पत्य में आकस्मिक झगड़े की स्थिति बनेगी, पड़ोसियों से कष्ट होगा, विवादपूर्ण स्थिति में धैर्य रखें।
तुला राशि - भाग्योन्नति होगी, व्यवसायिक जीवन में कमी, लाभ व उन्नति से बिगड़े कार्य बनेंगे, आलस्य से बचें।
वृश्चिक राशि - कार्य सिद्धि, स्त्री सुखादि में कमी, मन अशांत रहेगा, जीवन में सुखा रहेगा।
धनु राशि - सांसारिक सुखों में बाधा आयेगी, अनावश्यक धन व्यय होगा, कष्ट होगा, समय व धन नष्ट करने से बचें।
मकर राशि - शारीरिक स्वास्थ्य में कमी आयेगी, कार्य प्रगति में बाधा आयेगी, धन के अनावश्यक व्यय से कष्ट होगा।
कुंभ राशि - बौद्धिक विकास होगा, चतुराई एवं अधिकांश प्रयासों से लाभ होगा, समय पर कार्य करने से लाभ होगा।
मीन राशि - विभिन्न रोगों से शरीर पीड़ित रहेगा, संतान की शिक्षा में प्रगति होगी, परिश्रम से कार्यों में लाभ होगा।
रोज हजाराें भक्त गणपति बप्पा को लिखते हैं पत्र
27 Sep, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
देश भर में डाक सेवाएं भले ही धीमी गति से चल रही हों, लेकिन लखनऊ के एक गणेश पंडाल में 'मनौतियों के राजा' को हर दिन बोरे भर पत्र मिल रहे हैं।
भक्त हर दिन नौकरी, परीक्षा में अच्छे परिणाम, शादी, विदेश यात्रा सहित कई इच्छाओं को लेकर गणपतिजी को पत्र लिखते हैं।
ऐसा माना जाता है कि यदि कोई भगवान गणेश को पत्र लिखकर उन्हें अर्पित करता है, तो उसकी इच्छा अवश्य पूरी होती है।
युवा सॉफ्टवेयर इंजीनियर राजेश्वर शर्मा कहते हैं, "मैं पिछले सात वर्षों से यहां आ रहा हूं और हर साल मेरी इच्छा पूरी होती है। मेरे पिता गंभीर रूप से बीमार थे और मैंने उनके ठीक होने के लिए प्रार्थना की थी और आज, वह स्वस्थ और स्वस्थ हैं, यहां भगवान के आशीर्वाद के कारण मुझे मेरी नौकरी और मेरा जीवन साथी मिल गया। मैं हर साल एक पत्र लिखने के लिए यहां आता हूं, भले ही यह एक धन्यवाद पत्र हो।''
झूलेलाल पार्क के मनौतियों के राजा पंडाल में आशीर्वाद और कृपा पाने के लिए भगवान गणेश को पत्र लिखना एक परंपरा बन गई है।
हालांकि, भक्तों को भगवान से प्रार्थना करते हुए देखना एक आम दृश्य है, लेकिन उन्हें पत्र लिखना दुर्लभ है।
माना जाता है कि यह परंपरा गुजरात के ढांक मंदिर से प्रेरित है। पंडाल में भक्तों को एक पेन और एक लेटर पैड दिया जाता है, जहां उन्हें पहले 'ओम गं गणपतये नमः' मंत्र को 108 बार लिखना होता है, और फिर अपनी इच्छाएं या शिकायतें लिखनी होती हैं।
प्रबंध समिति के सदस्य भारत भूषण ने पत्र लिखने की प्रथा के बारे में बताते हुए कहा कि ''ओम गं गणपतये नमः'' भगवान गणेश का पसंदीदा मंत्र है।
उन्हाेंने कहा, "हमें आम तौर पर हर साल भक्तों से लगभग 60,000-65,000 पत्र मिलते हैं। एक बार पूजा समाप्त होने के बाद, हम भू-विसर्जन (मूर्ति को मिट्टी में दफनाना) का आयोजन करते हैं। मूर्ति के साथ सभी पत्रों को भी रख दिया जाता है।"
भगवान के किस रूप से संबंधित है वामन जयंती जानिए इसके पीछे की कथा
27 Sep, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
पंचांग के अनुसार वामन जयंती हर साल भाद्रपद माह के शुक्लपक्ष की द्वादशी तिथि को मनाई जाती है. धार्मिक मान्यता है कि त्रेता युग में इसी दिन भगवान विष्णु ने बौने अवतार में धरती पर जन्म लिया था।
वामन देव का अवतार भगवान विष्णु का पांचवां अवतार माना जाता है। इससे पहले भगवान ने मत्स्य, कूर्म, वराह और नरसिंह अवतार में जन्म लिया था। चूँकि इस तिथि पर वामन देव का जन्म हुआ था, इसलिए इसे वामन जयंती के रूप में मनाया जाता है। इसे वामन द्वादशी भी कहा जाता है। इस दिन व्रत रखकर वामनदेव की पूजा की जाती है। इस साल वामन जयंती 26 सितंबर 2023 को मनाई जाएगी. ऐसा माना जाता है कि वामन देव की पूजा करने से जीवन के दुख, दर्द और दरिद्रता दूर हो जाती है।
भगवान विष्णु को क्यों लेना पड़ा बौने का अवतार?
वेदों और पुराणों में भगवान विष्णु के 10 अवतारों का वर्णन है, जिनमें से वामन पांचवां अवतार है। जब भी ब्रह्माण्ड में कोई विपत्ति या संकट आता था तो श्रीहरि अवतार लेकर उसे दूर कर देते थे। भगवान विष्णु का बौना अवतार भी इसी उद्देश्य से बनाया गया था। भगवान विष्णु के बौने अवतार के बारे में यह माना जाता है कि भगवान इंद्र को स्वर्ग का राज्य लौटाने और अत्यंत शक्तिशाली राक्षस राजा बलि का घमंड तोड़ने के लिए भगवान विष्णु को बौना अवतार लेना पड़ा था। आइए जानते हैं भगवान विष्णु के बौने अवतार से जुड़ी पौराणिक कथा।
वामन जयंती 2023 पौराणिक कथा
राक्षस राजा बलि बहुत शक्तिशाली था और उसने अपनी शक्ति से तीनों लोकों पर विजय प्राप्त कर ली थी। यद्यपि राजा बलि क्रूर था, फिर भी उसे अपनी शक्ति पर बहुत घमंड था। लेकिन इसके साथ ही वह भगवान विष्णु का भी परम भक्त था और खूब दान-पुण्य करता था। इस कारण उन्हें इंद्रदेव की जगह स्वर्ग का स्वामी बना दिया गया।
जब बाली ने देवी-देवताओं को परेशान करना शुरू कर दिया
लेकिन जैसे ही बाली को स्वर्ग का स्वामी बनाया गया, उसने अपनी शक्ति और पद का दुरुपयोग किया और सभी देवी-देवताओं को परेशान करना शुरू कर दिया। बाली के अत्याचार से स्वर्ग के सभी देवी-देवता बहुत आहत हुए और इसके बाद उन सभी ने भगवान विष्णु से मदद की गुहार लगाई। इंद्रदेव ने भी स्वर्ग पर पुनः अधिकार प्राप्त करने के लिए भगवान से प्रार्थना की। तब भगवान विष्णु ने सभी देवी-देवताओं को आश्वासन दिया कि वह राजा बलि का घमंड तोड़ देंगे और तीनों लोकों को उसके कब्जे से मुक्त करा देंगे। इस वचन को पूरा करने के लिए, भगवान विष्णु ने त्रेता युग में भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष के बारहवें दिन माता अदिति और ऋषि कश्यप के पुत्र के रूप में पृथ्वी पर जन्म लिया। इन्हें भगवान विष्णु का बौना अवतार कहा जाता है। भगवान विष्णु ने वामन या बटुक ब्राह्मण का रूप धारण किया और राजा बलि के पास गये। इस रूप में उनके एक हाथ में छाता और दूसरे हाथ में छड़ी थी। वामन देव ने बलि से तीन पग भूमि दान करने का अनुरोध किया। बाली अपनी वचनबद्धता और दानशीलता के लिए प्रसिद्ध था। इसलिए दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य ने राजा बलि को किसी भी प्रकार का वादा करने से पहले चेतावनी दी, लेकिन फिर भी राजा बलि ने ब्राह्मण के बेटे को तीन पैसे जमीन देने का वादा किया।
बौने देवता ने दो पग में स्वर्ग और पृथ्वी को नाप लिया।
इसके बाद वामन देव ने विशाल रूप धारण कर लिया और उन्होंने एक पैर से पूरी पृथ्वी और दूसरे पैर से पूरा स्वर्ग नाप लिया। इसके बाद जब तीसरे पैर के लिए कुछ नहीं बचा तो राजा बलि ने अपना सिर आगे किया और वामनदेव से अपने सिर पर पैर रखने को कहा। इस प्रकार भगवान ने त्याग का अभिमान तोड़ दिया। लेकिन वे बलि की वचनबद्धता से बहुत प्रसन्न हुए और इसके बाद उसे पाताल लोक का राजा बना दिया। जैसे ही बौने देवता ने राजा बलि के सिर पर कदम रखा, वह तुरंत पाताल लोक पहुंच गया और भगवान विष्णु की कृपा से बलि ने अनंत काल तक पाताल पर शासन किया।