धर्म एवं ज्योतिष (ऑर्काइव)
कब है सर्व पितृ अमावस्या? यहाँ जानिए शुभ मुहूर्त और इससे जुड़ी जरुरी बातें
6 Oct, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
29 सितंबर से पितृ पक्ष शुरू हो गए हैं तथा 14 अक्टूबर को समाप्त होंगे. सर्व पितृ अमावस्या पितृ पक्ष का अंतिम दिन होता है तथा इस दिन पितरों के लिए खास अनुष्ठान किए जाते हैं. इसके अगले दिन से शारदीय नवरात्रि आरम्भ होती हैं.
सर्वपितृ अमावस्या के दिन महालया अमावस्या, पितृ अमावस्या या पितृ मोक्ष अमावस्या भी बोलते हैं. अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को सर्व पितृ अमावस्या पड़ती है. अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि 13 अक्टूबर 2023 की रात 09 बजकर 50 मिनट पर होगा तथा 14 अक्टूबर की रात 11 बजकर 24 मिनट पर ख़त्म होगी. उदया तिथि के मुताबिक, इस वर्ष सर्व पितृ अमावस्या 14 अक्टूबर 2023 को मनाई जाएगी. सर्वपितृ अमावस्या के दिन तर्पण के 3 शुभ मुहूर्त हैं.
कुतुप मूहूर्त - प्रातः 11:44 बजे से दोपहर 12:30 बजे तक
रौहिण मूहूर्त - दोपहर 12:30 बजे से 01:16 बजे तक
अपराह्न काल - दोपहर 01:16 बजे से 03:35 बजे तक
सर्व पितृ अमावस्या तिथि पर परिवार के उन मृतक लोगों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु अमावस्या तिथि, पूर्णिमा तिथि एवं चतुर्दशी तिथि को हुआ हो. अमावस्या तिथि पर किया गया श्राद्ध परिवार के सभी पूर्वजों की आत्माओं को प्रसन्न करता है इसलिए इस दिन सभी पूर्वजों के निमित्त भी श्राद्ध करना चाहिए. साथ ही जिन पूर्वजों की पुण्यतिथि ज्ञात नहीं है, उनका श्राद्ध भी अमावस्या तिथि पर किया जा सकता है. इसलिए अमावस्या श्राद्ध को सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या बोला जाता है. इसके अतिरिक्त परिवार के लोगों की अकाल मृत्यु हुई हो, उनके निमित्त भी सर्व पितृ अमावस्या के दिन अनुष्ठान कर सकते हैं.
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (06 अक्टूबर 2023)
6 Oct, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष :- अधिकारियों का समर्थन फलप्रद होगा, कार्य-व्यवसाय गति अनुकूल तथा चिन्ता बने।
वृष :- कार्यवृत्ति में सुधार, धन-लाभ, मनोवृत्ति उत्तम उत्साहवर्धक होगी, कार्ययोजना बनेगी।
मिथुन :- आशानुकूल सफलता का हर्ष, बिगड़े कार्य बनेंगे, व्यवसायिक क्षमता अनुकूल रहेगी।
कर्क :- समय की अनुकूलता के कारण बिगड़े कार्य बनेंगे, व्यवसायिक क्षमता अनुकूल होगी।
सिंह :- मनोबल कमजोर होगा, विरोधियें से परेशानी, असफलता, समय नष्ट होगा।
कन्या :- थकावट, बेचैनी, दूसरों के कार्यों में फंसने से तनाव बनेगा, आप असमंजस में रहेंगे।
तुला :- संघर्ष से सफलता, कार्य बनने का हर्ष किन्तु स्थिति को समझकर कार्य अवश्य करें।
वृश्चिक :- सफलता के योग बनें किन्तु समय अनुकूल नहीं, विशेष कार्य स्थगित रखें।
धनु :- कार्यकुशलता से संतोष होगा, सामाजिक कार्य प्रभुत्व वृद्धि होगी, कार्य स्थिगित रखें।
मकर :- कार्य-सिद्धी, चिन्ता-निवृत्ति, योजना फलीभूत हों, बिगड़े कार्य अवश्य ही बन जायेंगे।
कुम्भ :- धन हानि, व्यर्थ क्लेश, अशांति, मानसिक विभ्रम, मन उद्विघ्नता बना ही रहेगा।
मीन :- व्यवसायिक क्षमता मंद होगी, स्त्री शरीर कष्ट, मनोबल उत्साहवर्धक होग ा।
पिंडदान क्यों है जरूरी
5 Oct, 2023 07:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में 16 दिन पूर्वजों के लिए माने जाते हैं। मान्यता है कि अगर पितरों की आत्मा को मोक्ष नहीं मिला है, तो उनकी आत्मा भटकती रहती है। इससे उनकी संतानों के जीवन में भी कई बाधाएं आती हैं, इसलिए पितरों का पिंडदान जरूरी माना गया है।
हिंदू धर्म में पितृपक्ष के दौरान पिंडदान किया जाता है। इस समय अपने पितरों को याद कर उनके नाम पर पिंडदान होता है। पिंडदान के लिए गया में फल्गु नदी के तट को सबसे अच्छा माना जाता है। यहां पिंडदान की प्रक्रिया पुनपुन नदी के किनारे से प्रारंभ होती है। कहा जाता है कि गया में पहले अलग-अलग नामों की 360 वेदियां थी, जहां पिंडदान किया जाता था। इनमें से अब 48 ही बची है। वर्तमान समय में इन्हीं वेदियों पर लोग पितरों का तर्पण और पिंडदान करते हैं। यहां की वेदियों में विष्णुपद मंदिर, फल्गु नदी के किनारे और अक्षयवट पर पिंडदान करना जरूरी माना जाता है। इसके अतिरिक्त वैतरणी, प्रेतशिला, सीताकुंड, नागकुंड, पांडुशिला, रामशिला, मंगलागौरी, कागबलि आदि भी पिंडदान के लिए प्रमुख हैं। आइए आपको बताते हैं कि पिंडदान को हिंदू धर्म में जरूरी क्यों माना गया है और इसकी सही हिंदू मान्यता के अनुसार किसी वस्तु के गोलाकर रूप को पिंड कहा जाता है। प्रतीकात्मक रूप में शरीर को भी पिंड माना गया है। पिंडदान के समय मृतक की आत्मा को अर्पित करने के लिए जौ या चावल के आटे को गूंथकर बनाई गई गोलात्ति को पिंड कहते हैं।
श्राद्ध की मुख्य विधि
श्राद्ध की मुख्य विधि में मुख्य रूप से काम होते हैं- पिंडदान, तर्पण और ब्राह्मण भोज। दक्षिणाविमुख होकर आचमन कर अपने जनेऊ को दाएं कंधे पर रखकर चावल, गाय के दूध, घी, शक्कर एवं शहद को मिलाकर बने पिंडों को श्रद्घा भाव के साथ अपने पितरों को अर्पित करना पिंडदान कहलाता है। जल में काले तिल, जौ, कुशा एवं सफेद फूल मिलाकर उससे विधिपूर्वक तर्पण किया जाता है। मान्यता है कि इससे पितर तृप्त होते हैं। इसके बाद ब्राह्मण भोज कराया जाता है।
पितरों का स्थान
पंडों के मुताबिक, शास्त्रों में पितरों का स्थान बहुत ऊंचा बताया गया है। उन्हें चंद्रमा से भी दूर और देवताओं से भी ऊंचे स्थान पर रहने वाला बताया गया है। पितरों की श्रेणी में मृत पूर्वजों, माता, पिता, दादा, दादी, नाना, नानी सहित सभी पूर्वज शामिल होते हैं। व्यापक दृष्टि से मृत गुरु और आचार्य भी पितरों की श्रेणी में आते है।
पितृपक्ष में पशु-पक्षियों को दें भोजन
5 Oct, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार पितृपक्ष के 16 दिनों तक हमारे पूर्वज धरती पर आकर हमें आशीर्वाद देते हैं। ये पितृ पशु पक्षियों के माध्यम से हमें देखने आते हैं। जिन जीवों तथा पशु पक्षियों के माध्यम से पितृ आहार ग्रहण करते हैं वो हैं - गाय, कुत्ता, कौवा और चींटी।
श्राद्ध के समय इनके लिए भी आहार का एक अंश निकाला जाता है, तभी श्राद्ध कर्म पूर्ण होता है। श्राद्ध करते समय पितरों को अर्पित करने वाले भोजन के पांच अंश निकाले जाते हैं - गाय, कुत्ता, चींटी, कौवा और देवताओं के लिए। इन पांच अंशों का अर्पण करने को पञ्च बलि कहा जाता है।
सबसे पहले भोजन की तीन आहुति कंडा जलाकर दी जाती है1 श्राद्ध कर्म में भोजन के पूर्व पांच जगह पर अलग-अलग भोजन का थोड़ा-थोड़ा अंश निकाला जाता है। गाय, कुत्ता, चींटी और देवताओं के लिए पत्ते पर तथा कौवे के लिए भूमि पर अंश रखा जाता है। फिर प्रार्थना की जाती है कि इनके माध्यम से हमारे पितर प्रसन्न हों।
कुत्ता जल तत्त्व का प्रतीक है ,चींटी अग्नि तत्व का, कौवा वायु तत्व का, गाय पृथ्वी तत्व का और देवता आकाश तत्व का प्रतीक हैं। इस प्रकार इन पांचों को आहार देकर हम पंच तत्वों के प्रति आभार व्यक्त करते हैं। केवल गाय में ही एक साथ पांच तत्व पाए जाते हैं। इसलिए पितृ पक्ष में गाय की सेवा विशेष फलदाई होती है। मात्र गाय को चारा खिलने और सेवा करने से पितरों को तृप्ति मिलती है साथ ही श्राद्ध कर्म सम्पूर्ण होता है।
पितृ पक्ष में गाय की सेवा से पितरों को मुक्ति मोक्ष मिलता है। साथ ही अगर गाय को चारा खिलाया जाय तो वह ब्राह्मण भोज के बराबर होता है1 पितृ पक्ष में अगर पञ्च गव्य का प्रयोग किया जाय, तो पितृ दोष से मुक्ति मिल सकती है। साथ ही गौदान करने से हर तरह के ऋण और कर्म से मुक्ति मिल सकती है।
इसलिए पितृपक्ष में नहीं होते मांगलिक कार्य
पितृपक्ष के दौरान हमारे पूर्वज और पितर धरती पर उतरते हैं और हमें देखते हैं। एक बार पितर खुश हो जाएं तो वो आर्शीवाद देते हैं, जिसे मनोकामना पूर्ति होती है। पितृपक्ष काल को शुभ नहीं मानते। इसलिए इस दौरान हर शुभ कार्य वर्जित है, जैसे कि शादी, घर की खरीदारी या शिफ्टिंग, शादी की खरीदारी आदि। ठीक उसी प्रकार, जैसे कि घर में किसी परिजन की मत्यु के बाद घर में एक खास अवधि के लिए सभी मांगलिक कार्य रोक दिए जाते हैं।
धार्मिक मान्यता के मुताबिक इस दौरान हमारे पितर हमसे आत्मिक रूप से जुड़े होते हैं, पूजन नियम के जरिए हमें उनसे आशीर्वाद लेनी चाहिए।
पितृपक्ष के दौरान अपनी आदतों और शौकों पर थोड़ों नियंत्रण कर पितरों को खुश किया जा सकता है। ऐसी मान्यता है कि इस अवधि में हर तरह के शुभ कार्य से अपना ध्यान हटाकर अपने पितरों से जुड़ाव महसूस करना चाहिए।
गाय की सेवा से मिलता है पितरों का आशीर्वाद
कहा जाता है कि पितृपक्ष में पितृगण पितृलोक से धरती पर आ जाते हैं। इस समयावधि में पितृलोक पर जल का अभाव हो जाता है। इसलिए पितृपक्ष में पितृगण पितृलोक से भूलोक आकार अपने वंशजो से तर्पण करवाकर तृप्त होते हैं। इसलिए जब व्यक्ति पर कर्जा हो तो वो खुशी मनाकर शुभकार्य कैसे सम्पादित कर सकता है। पितृऋण के कारण ही पितृपक्ष में शुभकार्य नहीं किए जाते।
विवेक है शिव का तीसरा नेत्र
5 Oct, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
शिव का अर्थ है कल्याण करने वाला पर उनका दूसरा प्रसिद्ध नाम रुद्र भी है क्योंकि वह दुष्टों को रुलाने वाले हैं। करोड़ों देवी-देवताओं में शिव ही हैं जिन्होंने 3 नेत्र धारण किए हैं। सृष्टि के सृजन, पालन और संहार का दायित्व शिव के पास है। इस प्रकार शिव का एक नेत्र ब्रह्मा अर्थात सृजनकर्ता, दूसरा विष्णु अर्थात पालनकर्ता तीसरा स्वयं रुद्र रूप अर्थात संहारकर्ता। अन्य प्रकार से देखें तो पहला नेत्र धरती, दूसरा आकाश और तीसरा नेत्र बुद्धि के देव सूर्य की ज्योति से प्राप्त ज्ञान-अग्रि का प्रतीक है।
ज्ञान जब खुला तो कामदेव भस्म हुआ। अर्थात जब आप अपने ज्ञान और विवेक की आंख खोलते हैं तो कामदेव जैसी बुराई लालच, भ्रम, अंधकार आदि से स्वयं को दूर कर सकते हैं। इसके पीछे कथा भी है। एक बार पार्वती जी ने भगवान शिव के पीछे जाकर उनकी दोनों आंखें हथेलियों से बंद कर दीं। इससे समस्त संसार में अंधकार छा गया क्योंकि भगवान शिव की एक आंख सूर्य है, दूसरी चंद्रमा।
अंधकार से संसार में हाहाकार मच गया तब भोले भंडारी ने तुरन्त अपने माथे से अग्रि निकाल कर पूरी दुनिया में रोशनी फैला दी। रोशनी इतनी तेज थी कि इससे हिमालय जलने लगा। इस दृश्य को देखकर पार्वती घबरा गईं तथा तुरन्त अपनी हथेलियां शिव की आंखों से हटा दीं। तब शिव जी ने मुस्कुरा कर अपनी तीसरी आंख बंद की। शिव पुराण के अनुसार पार्वती जी को इससे पूर्व ज्ञान नहीं था कि शिव त्रिनेत्रधारी हैं। इनका दायां नेत्र सूर्य के समान तेजस्वी है। जिस प्रकार सूर्य में उत्पन्न करने की विशेष ऊर्जा है और वह पृथ्वी ही नहीं, अनेक ग्रहों को भी प्रकाशमय करता है।
उसी प्रकार शिव का दायां नेत्र भी सृष्टि को जीवन दायक शक्ति प्रदान करता है। स्वयं सूर्य को भी शिव के इसी नेत्र से तेज मिलता है। वैदिक ग्रंथों में शिव एवं चंद्रमा का विशेष संबंध बताया गया है। जलतत्व सोम को अमृततुल्य माना जाता है। जीवन का पोषण जल ही करता है और यही जल तत्व शिव का बायां नेत्र है। शिव का तीसरा नेत्र जो बंद ही रहता है, अग्रि रूप है। यह वही अग्रि है जो सकारात्मक रूप में तो कल्याणकारी है परन्तु यदि इस पर अंकुश न लगाया जाए तो यही विनाश का कारण भी बनती है। शिव अपनी इस शक्ति पर नियंत्रण रखते हैं और इसका इस्तेमाल केवल बुराई के नाश के लिए ही करते हैं।
इस संबंध में एक कथा भी है। सृष्टि के समय जीव में रस की प्राप्ति के लिए कामदेव को जिम्मेदारी दी गई परन्तु जब कामदेव ने शिव पर ही अपनी शक्ति का परीक्षण करना चाहा तो शिव ने अपने तीसरे नेत्र की संहारक शक्ति का प्रयोग कर उसे तत्काल भस्म कर दिया। इसी प्रकार जीव को कर्म करने की स्वतंत्रता है और यदि वह अपने अंदर की बुराइयों (काम, क्रोध, लोभ, मोह व अहंकार) पर अपने तीसरे नेत्र का अंकुश रखे, तो वह सदैव सुखी रहेगा परन्तु यदि वह इन पर अंकुश नहीं रख पाता तो यही उसका विनाश कर देती है।
शिव और शक्ति एक-दूसरे के पर्याय हैं। इसलिए शिव के तीनों नेत्र शिव का ही प्रतीक हैं, जो क्रमश: गौरी के रूप में जीव को मातृत्व का स्नेह देते हैं, लक्ष्मी के रूप में उसका पोषण करते हैं तथा काली के रूप में उसकी आंतरिक तथा बाहरी बुराइयों का नाश करते हैं। भगवान भोले भंडारी के ललाट पर सुशोभित तीसरा नेत्र असल में मुक्ति का द्वार है जो शिव को तो स्वत: प्राप्त है लेकिन मनुष्य अज्ञान के चलते इसे अपने मस्तक पर देख नहीं पाता। यह दोनों नेत्रों के मध्य इसलिए है क्योंकि यह स्थान पवित्र माना गया है। त्राटक के मध्य कुंडलिनी जागरण का भी विशेष महत्व है। यही स्थान सर्वाधिक ऊर्जावान है। इसी स्थान पर विशेष दबाव अपना प्रभाव दिखाता है। दूसरी ओर शिव के अधखुले नेत्र व्यक्ति के कर्म के साक्षी हैं।
इसी कारण शिव को परमयोगी कहा जाता है। गृहस्थ में रह कर भी शिव सृष्टि का नियंत्रण, (सृजन, पालन तथा संहार) स्वतंत्र रूप में करते हैं। स्वयं पर नियंत्रण, अपने कर्मों का सही आकलन ही शिव के तीनों नेत्रों का रहस्य है। शिव का तीसरा नेत्र ही मुक्ति का द्वार है
इन उपायों से सुखमय और खुशहाल होगा जीवन
5 Oct, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सभी लोग सुख और खुशहाली से रहना चाहते हैं और इसके लिए धन सबसे अहम होता है। धन के बिना किसी प्रकार के कामकाज नहीं हो सकते। कई बार धन की कमी के पीछे कुछ ऐसे कारण होते हैं जिन्हें हम ज्योतिष उपायों से ठीक कर सकते हैं। इसका कारण यह है कि जिस घर में कलह होता है, वहां मां लक्ष्मी का वास नहीं होता। हर किसी की अपने गृहस्थ जीवन में सुख और शांति की कामना होती है। घर और जीवन की खुशहाली ही व्यक्ति को जीवन में प्रगति के मार्ग पर ले जाती है। परिवार में व्याप्त कलह यानी की क्लेश से व्यक्ति का जीवन कठिनाइयों से भर जाता है। गृह क्लेश से बचने या उसे कम करने के लिए ज्योतिष में कई प्रकार के उपाय बताए गए हैं। हम आगे आपको ऐसे ही कुछ उपाय बता रहे हैं, जिनके इस्तेमाल से आपका जीवन सुखमय और खुशहाल बनाया जा सकता है।
पूर्व की और सिर रखकर सोए
आप किस दिशा में सिर और पैर करके सोते हैं यह गृह कलह में काफी अहम भूमिका निभाता है। गृह कलह से मुक्ति के लिए रात को सोते समय पूर्व की और सिर रखकर सोए। इससे आपको तनाव से राहत मिलेगी। ऐसा करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
हनुमान जी की पूजा करें
हनुमान जी की नियमित रूप से की गई उपासना आपको सभी प्रकार के संकट और गृह कलह से दूर रखता है। यदि कोई महिला गृह कलह से परेशान हैं तो भोजपत्र पर लाल कलम से पति का नाम लिखकर तथा ‘हं हनुमंते नम:’ का 21 बार उच्चारण करते हुए उस पत्र को घर के किसी कोने में रख दें। इसके अलावा 11 मंगलवार नियमित रूप से हनुमान मंदिर में चोला चढाएं एवं सिंदूर चढाएं। ऐसा करने से परेशानियों से राहत प्राप्त होगी।
शिवलिंग पर जल चढ़ायें
प्रतिदिन सुबह में स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र पहनकर मंदिर या घर पर शिवलिंग के सामने बैठकर शिव उपासना करें। आप ‘ऊँ नम: सम्भवाय च मयो भवाय च नम:। शंकराय च नम: शिवाय च शिवतराय च:।।’ मंत्र का 108 बार उच्चारण कर सकते हैं। इसके बाद आप शिवलिंग पर जलाभिषेक करें। ऐसा नियमित करने से प्पति-पत्नी के वैवाहिक जीवन में सुख शांति बनी रहती है।
गणेश जी की उपासना करें
यदि किसी घर में पति-पत्नी या बाप-बेटे के बीच कलह है या किसी भी बात पर विवाद चल रहा है तो इसमें गणेश उपासना फायदेमंद रहेगी। वैवाहिक जीवन को सुखी बनाने के लिए आप नुक्ति के लड्डू का भोग लगाकर प्रतिदिन श्री गणेश जी और शक्ति की उपासना करे।
चीटियों को शक्कर या आटा डालें
चीटियों के बिल के पास शक्कर या आटा व चीनी मिलाकर डालने से गृहस्थ की समस्याओं का निवारण होता है। ऐसा नियमित 40 दिन तक करें। ध्यान रखें कि इस प्रक्रिया में कोई नागा न हो।
कुमकुम लगाए
एक गेंदे के फूल पर कुमकुम लगाकर उसे किसी देव स्थान में मूर्ति के सामने रख दें। ऐसा करने से रिश्तों में आया तनाव और मतभेद दूर होते हैं। साथ ही छोटी कन्या को शुक्रवार को मीठी वस्तु खिलाने और भेंट करने से आपके संकटों का निवारण होता है।
घर मे व्याप्त कलह क्लेश को कम करने के लिए पति-पत्नी को रात को सोते समय अपने तकिये में सिंदूर की एक पुड़िया और कपूर रखें। सुबह में सूर्योदय से पहले उठकर सिंदूर की पुड़िया घर से बाहर फेंक दें और कपूर को निकालकर अपने कमरे में जला दें। ऐसा करने से लाभ मिलेगा।
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (05 अक्टूबर 2023)
5 Oct, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष :- इष्ट मित्र सुखवर्धक हो, भाग्य का सितारा प्रबल हो, बिगड़े कार्य अवश्य बन ही जायेंगे।
वृष :- मनोवृत्ति संवेदनशील बने, आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा, कार्य पर ध्यान अवश्य रखें।
मिथुन :- आशानुकूल सफलता का हर्ष, व्यवसायिक क्षमता में वृद्धि, बिगड़े कार्य अवश्य बन जायेंगे।
कर्क :- मन अशांत व तनावपूर्ण रहे, मानसिक बेचैनी तथा व्यर्थ धन का व्यय होगा, कार्य रुकेगा।
सिंह :- क्लेश व अशांति, उपद्रव, मानसिक बेचैनी, कार्य रुकेंगे, व्यय अवश्य होगा।
कन्या :- किसी के शुभ कार्य में समय बीते, आशानुकू सफलता का हर्ष, रुके कार्य बनेंगे।
तुला :- स्थिति पर नियंत्रण रखें, कार्य-व्यवसाय क्षमता में वृद्धि होगी, रुके कार्य बनेंगे।
वृश्चिक :- तनाव-क्लेश, अशांति, अर्थलाभ, कार्य-सिद्धी एवं कार्य-प्रयोजन से सुख अवश्य होगा।
धनु :- कुटुम्ब में सुख-ऐश्वर्य, कार्ययोजना फलीभूत अवश्य होगी, सफलता के साधन जुटायें।
मकर :- मानसिक विभ्रम, उद्विघ्नता, धन का व्यय, रुके कार्य बने, कार्य कष्ट अवश्य होगा।
कुम्भ :- आशानुकूल सफलता का हर्ष, बिगड़े कार्य बनेंगे, परिवार में सुख-शांति का ध्यान रखें।
मीन :- अधिकारियों के मेल-मिलाप से लाभ अवश्य होगा, स्त्री वर्ग से प्रसन्नता रहेगी।
निजी जीवन की तबाही का कारण है धन के पीछे भागना
4 Oct, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
आचार्य चाणक्य को भारत के महान ज्ञानियों और विद्वानों में से एक माना गया है इनकी नीतियां देश ही नहीं बल्कि दुनियाभर में प्रसिद्ध हैं जिसे चाणक्य नीति के नाम से जाना जाता है।
चाणक्य ने अपने जीवन के अनुभवों को नीतिशास्त्र में पिरोया है जिसका अनुसरण करने वाला मनुष्य अपने जीवन में सफलता और सुख दोनों ही प्राप्त करता है।
चाणक्य ने मानव जीवन से जुड़े हर पहलु पर अपनी नीतियों का निर्माण किया है चाणक्य ने सफलता हासिल करने के लिए धन के साथ साथ कुछ अन्य चीजो का होना भी जरूरी बताया है ऐसे में आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा इन्हीं के बारे में बता रहे हैं तो आइए जानते हैं आज की चाणक्य नीति।
आज की चाणक्य नीति-
आचार्य चाणक्य ने अपने एक श्लोक के मध्यम से बताया है कि जो लोग संतोष के अमृत से परिपूर्ण होते हैं उन्हें जो सुख और शांति प्राप्त होती है वह सुख शांति धन के पीछे इधर उधर भागने से नहीं मिलती है बल्कि धन के पीछे भागने वाले व्यक्ति को हमेशा ही परेशानियां उठानी पड़ती है और उनकी निजी जिंदगी की तबाही का मुख्य कारण भी यही बनता है।
चाणक्य नीति कहती है कि अगर किसी मनुष्य के पास संतोष है तो वह किसी भी चीज को पाने के लिए उसके पीछे नहीं भागता है बल्कि शांत रहकर उसे समझने का प्रयास करता है। ऐसे लोग हमेशा जीवन में सुखी रहते हैं और इन्हें कभी परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ता है।
पितृ पक्ष में कब है इंदिरा एकादशी? यहाँ जानिए शुभ मुहूर्त और जरुरी बातें
4 Oct, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
पितृ पक्ष का आरंभ 29 सितंबर 2023 से हो चूका है. अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की इंदिरा एकादशी 10 अक्टूबर 2023 को रखा जाएगा. इंदिरा एकादशी के दिन व्रत करने से इंसान को यमलोक की यातना का सामना नहीं करना पड़ता.
इस दिन मघा श्राद्ध किया जाएगा. अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को इंदिरा एकादशी के नाम से जाना जाता है. एकादशी का व्रत मनुष्य को पाप कर्मों से मुक्त करता है. वर्ष की सभी एकादशी अहम है मगर पितृ पक्ष में आने वाली इंदिरा एकादशी का बात विशेष है. ग्रंथों में बताया गया है कि श्राद्ध के दिनों में विष्णु पूजा करने से भी पितर तृप्त हो जाते हैं.
इंदिरा एकादशी 2023 मुहूर्त:-
पंचांग के मुताबिक, अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 9 अक्टूबर 2023 को दोपहर 12 बजकर 36 मिनट पर आरम्भ होगी तथा अगले दिन 10 अक्टूबर 2023 को दोपहर 03 बजकर 08 मिनट पर इसका समापन होगा.
विष्णु पूजा का समय - सुबह 09. 13 - दोपहर 12.08
इंदिरा एकादशी 2023 व्रत पारण समय:-
पितृ पक्ष की इंदिरा एकादशी व्रत का पारण 11 अक्टूबर 2023 को सुबह 06.19 से प्रातः 08 बजकर 39 मिनट तक किया जाएगा. इस दिन द्वादशी तिथि का समापन शाम 05.37 मिनट पर होगा.
इंदिरा एकादशी महत्व:-
इंदिरा एकादशी की विशेष बात यह है कि यह पितृ पक्ष में आती है. इसलिए इसका महत्व बढ़ जाता है. पद्म पुराण के मुताबिक, इस एकादशी का व्रत करने वाले मनुष्य के सात पीढ़ियों तक के पितृ तर जाते हैं विधिपूर्वकपूर्वज के नाम पर दान कर दिया जाए तो उन्हें मोक्ष मिल जाता है तथा व्रत करने वाले को बैकुण्ठ प्राप्ति होती है. इस दिन विधि-विधान तर्पण एवं ब्राह्मण भोजन कराने, दान-दक्षिणा देने से पितर स्वर्ग में चले जाते हैं.
लगने जा रहा है साल का दूसरा चंद्रग्रहण, जानें क्या भारत में दिखाई देगा
4 Oct, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
वर्ष 2023 में 5 मई को प्रथम चंद्र ग्रहण (Chandra Grahan) लग चुका है और दूसरा चंद्र ग्रहण (Lunar Eclipse) 29 अक्टूबर रविवार को लगने वाला है.
Chandra Grahan 2023
इस दिन देर रात एक बजकर छह मिनट से चंद्र ग्रहण शुरू होगा और दो बजकर बाइस मिनट पर समाप्त होगा.
Chandra Grahan 2023
अक्टूबर 2023 में लगने वाला चंद्र ग्रहण भारत समेत एशिया, ऑस्ट्रेलिया, यूरोप, नॉर्थ अमेरिका, साउथ अमेरिका के अधिकतर हिस्सों में और हिंद महासागर, पेसिफिक, अटलांटिक, आर्कटिक और अंटार्कटिका से भी दिखाई देगा.
Chandra Grahan 2023
कहां-कहां दिखाई देगा चंद्र ग्रहण?
Chandra Grahan 2023
इस ग्रहण को भारत में भी देखा जा सकेगा. चूंकि ये चंद्र ग्रहण भारत में भी दिखेगा इसलिए सूतक के नियम भी यहां लागू होंगे. सूतक काल 28 अक्टूबर की शाम 4 बजकर 5 मिनट पर शुरू हो जाएंगे. इसी के साथ सूतक के नियम भी लागू हो जाएंगे और मंदिर वगैरह के कपाट बंद कर दिए जाएंगे.
Chandra Grahan 2023
चंद्र ग्रहण के तीन अलग-अलग रूप पूर्ण चंद्र ग्रहण, आंशिक चंद्र ग्रहण और पेनुमब्रल या उपछाया चंद्रग्रहण हैं. आइए इन तीनों के विषय में विस्तारपूर्वक जानते हैं.
Chandra Grahan 2023
जब सूरज और चांद के बीच पृथ्वी पूरी तरह न आकर केवल इसकी छाया ही चंद्रमा पर पड़ती है तब इसे आंशिक चंद्र ग्रहण कहा जाता है.
Chandra Grahan 2023
जब चंद्र पर पृथ्वी की छाया न पड़कर उपछाया पड़ती है, तो इसे उपच्छाया चंद्रग्रहण कहा जाता है.इस ग्रहण में चंद्रमा के आकार पर किसी प्रकार का प्रभाव नहीं पड़ता है लेकिन चांद की रोशनी में हल्का सा धुंधलापन आ जाता है.
इस दिन है कोजागरी पूजा, जानें व्रत कथा और विधि
4 Oct, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
कोजागरी पूजा को हिन्दू धर्म में बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है. हर वर्ष अश्विन मास के पूर्णिमा तिथि के दिन माता लक्ष्मी को समर्पित विशेष पूजा-पाठ किया जाता है.
बिहार, असम, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में इस पर्व को हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. बिहार में खासकर मैथिल बहुल क्षेत्रों में इसे 'कोजगरा पूजा' के नाम से जाना जाता है.
कोजागर पूजा 2023 मुहूर्त
कोजागरी पूजा 28 अक्टूबर 2023
कोजागरी पूजा निशिता काल (पूजा मुहूर्त) 11:42pm से 12:30 am, 29 अक्टूबर
अवधि 00 घंटे 49 मिनट
कोजागरी पूजा के दिन चंद्रोदय शाम 05:41 pm
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ 28 अक्टूबर 2023 04:17 am
पूर्णिमा तिथि समाप्त 29 अक्टूबर 2023 01:53 pm
कोजागरी व्रत का महत्व
कोजागरी पूर्णिमा के दिन ही शरद पूर्णिमा भी मनाई जाती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा माना गया है कि इस दिन देवी लक्ष्मी अपने भक्तों के घर जाती है. माता लक्ष्मी के आठ स्वरूप है, इनमें से किसी भी स्वरूप का ध्यान करने से माता लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है. देवी लक्ष्मी के आठ स्वरूप धनलक्ष्मी, धन्य लक्ष्मी, राजलक्ष्मी, वैभवलक्ष्मी, ऐश्वर्य लक्ष्मी, संतान लक्ष्मी, कमला लक्ष्मी और विजय लक्ष्मी है. इस दिन विशेष तौर पर खीर बनाई जाती है, इसका इस दिन काफी महत्व है. इसका कारण यह है कि खीर दूध से बनाई जाती है, और दूध को चंद्रमा का प्रतीक माना गया है. इसके अलावा इस व्रत का पालन करने वाले मृत्यु के बाद सिद्धत्व को प्राप्त होते हैं. इस दिन रात्रि जागरण का भी इस दिन विशेष महत्व होता है. कहा जाता है कि देवी इस रात्रि को भक्तों के घर घर जाती है, जो जाग रहा होता है, उस पर देवी लक्ष्मी की कृपा बरसती है.
कोजागरी व्रत की खीर का महत्व
कोजागरी पूर्णिमा की रात को रात भर खीर बनाकर रखने की परंपरा है. इसका वैज्ञानिक महत्व भी बताया गया है. यह बताने की जरूरत नहीं है कि आश्विन मास की पूर्णिमा अन्यथा आश्विन पूर्णिमा वर्षा ऋतु का आखिरी दिन माना जा सकता है. विज्ञान के अनुसार इस दिन चांद धरती के सबसे करीब होता है, जिससे चांद की किरणें जब खीर पर पड़ती है, जिसे खाने से लोगों का मन शांत रहता है, और शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता को बढ़ाती है. सांस की बिमारी वाले लोगों को इससे अच्छा फायदा होता है, इसके अलावा आंखों की रोशनी भी बेहतर होती है.
कोजागरी व्रत की कथा
कोजागरी व्रत को लेकर भी विभिन्न क्षेत्रों में कई कथाएं प्रचलित हैं. इनमें से जो सबसे प्रचलित कथा हैं, हम आपको उसके बारे में बताते हैं. प्राचीन काल में एक साहूकार था. जिसकी दो बेटियां थी, उनकी माता लक्ष्मी बड़ी आस्था थी और दोनों ही पूर्णिमा का उपवास रखती थी. साहूकार की बड़ी बेटी इस व्रत को पूरा करती थी, और पूरे विधि विधान से संपन्न करती थी. लेकिन, उसकी छोटी बेटी अज्ञानतावश व्रत को अधूरा छोड़ देती थी. व्रत को अधूरा छोड़ने के कारण देवी लक्ष्मी उससे रुष्ट हो गई. जिससे साहूकार की छोटी बेटी के पुत्रों की मृत्यु होने लगी. जब भी वह किसी बच्चे को जन्म देती, उसके कुछ ही देर बाद उसके बेटे की मृत्यु हो जाती थी. साहूकार की छोटी बेटी इससे काफी परेशान हो गई, और उसने एक ऋषि को अपनी इस परेशानी के बारे में बताया. ऋषि साहूकार की छोटी बेटी को देखकर सारा माजरा समझ गए थे. उन्हें साहूकार की छोटी बेटी को उसकी गलती के बारे में बताया कि वह पूर्णिमा के व्रत को अधूरा छोड़ देती है, और पूर्ण विधिविधान से उस व्रत को नहीं करती है. उन्होंने साहूकार की बेटी को कहा कि अगर तुम पूर्णिमा का व्रत विधिपूर्वक पूर्ण करती हो, तो तुम्हारी संतान जीवित रह सकती है.
ऋषि की सलाह के बारे उसने पूर्णिना का व्रत विधिविधान से पूरा किया. जिसके फलस्वरूप उसे संतान की प्राप्ति हुई, लेकिन कुछ दिनों बाद उसकी भी मौत हो गई. वह परेशान हो गई, तब उसे अपनी बड़ी बहन की याद आई. उसने लड़के को एक छोटी चौकी के आकार का लकड़ी पर लेटा दिया, और उस पर कपड़ा ढंग दिया. उसके बाद वह अपनी बड़ी बहन को बुलाकर लाई, और बहन को उसी पर बैठने का इशारा किया. बड़ी बहन इस बात से अंजान थी कि वहां पर उस बच्चे की लाश पड़ी हुई है. वह जैसे ही उसे पीढ़ा पर बैठने लगी, उसके लहंगा बच्चे को छू गया और बच्चा अचानक से जीवित हो उठा और रोने लगा. यह माजरा देख बड़ी बहन ने फटकार लगाते हुए कहा कि तू मुझे कलंक लगाना चाहती थी, मेरे बैठने से यह मर जाता. बड़ी बहन की बात सुनकर छोटी बहन ने विनम्र भाव से कहा कि यह पहले ही मर चुका था. तेरे तप और पुण्य से ही यह जीवित हुआ है. तुझ पर माता लक्ष्मी की आसीम कृपा है. इस घटना के बाद साहूकार ने नगर में पूर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया. तभी से इस दिन को उत्सव के रूप में मनाया जाता है, देवी लक्ष्मी की पूजा की जाने लगी.
कोजागरी व्रत की पूजाविधि
कोजागरी पूजा का उल्लेख नारद पुराण में है. इसमें इस व्रत की पूजा विधि को भी बताया गया है. इसके अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा के दिन की जाने वाली इस पूजा में पीतल, चांदी, तांबे या सोने से बनी देवी लक्ष्मी की प्रतिमा की पूजा की जाती है. सबसे पहले इस मूर्ति को कपड़े से ढंक दिया जाया है. कोजागरी व्रत के लिए देवी की पूजा समान्य तरीके करनी चाहिए. इसके बाद रात को चंद्रोदय के बाद विशेष रूप से पूजा की जाती है. रात को आपको मुख्य रूप से खीर बनाना चाहिए, और अगर घर में चांदी का पात्र है, तो उसमें खीर चांद निकालते ही खुले आसमान के नीचे रखना चाहिए. अगर चांदी का पात्र न हो, तो सामान्य बर्तन का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. इसके बाद रात में देवी लक्ष्मी के सामने घी के 100 दीपक जला दें. साथ ही मां लक्ष्मी के मंत्र, आरती के साथ विधिवत पूजन करना चाहिए. कुछ समय बाद चांद की रोशनी में रखी हुई खीर का देवी लक्ष्मी को भोग लगाना चाहिए. अगले दिन देवी लक्ष्मी की पूजा कर खोलना चाहिए.
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (04 अक्टूबर 2023)
4 Oct, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष :- आरोग्य-भय, बाधा से बचें, इष्ट मित्र सुखवर्धक होंगे, आशानुकूल सफलता का लाभ होगा।
वृष :- मान-प्रतिष्ठा बाल-बाल बचे, इष्ट मित्र सुखवर्धक होंगे तथा स्त्री वर्ग से हर्ष होगा।
मिथुन :- लेनदेन के मामलों में अधिक व्यय की सम्भावना है, इष्ट मित्र सुखवर्धक होवें।
कर्क :- अधिकारियों के मेल-मिलाप से सुख-सामर्थ्य में वृद्धि तथा कार्यकुशलता से लाभ होगा।
सिंह :- भाग्य का सितारा प्रबल होगा, बिगड़े कार्य बनें, आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा।
कन्या :- परिश्रम से कुछ सफलता जुटा सकते हैं, कार्यवृत्ति में सुधार अवश्य ही होगा।
तुला :- स्त्री वर्ग से हर्ष-उल्लास, सामाजिक कार्यों में प्रतिष्ठा, प्रभुत्व वृद्धि होगी, कार्य बनेंगे।
वृश्चिक :- इष्ट मित्र सुखवर्धक होंगे, तनाव-क्लेश व अशांति, अरोप व विभ्रम अवश्य ही होगा।
धनु :- स्त्री शरीर कष्ट, मानसिक व्याधि, स्वभाव में उद्विघ्नता बनेगी।
मकर :- धन लाभ, समय पर सोचे हुए कार्य बनेंगे, कार्य वृत्ति में सुधार अवश्य ही होगा।
कुम्भ :- इष्ट मित्र सुखवर्धक होंगे, अधिकारी वर्ग के तनाव से आप अवश्य ही बचें।
मीन :- कार्यगति में अनुकूलता, चिन्ताएW कम होंगी, सफलता के साधन अवश्य ही जुटायेंगे।
पितृ पक्ष में न करें इन चीजों का दान, आएगा बुरा वक्त
3 Oct, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में साल के 15 दिन पूर्वजों को समर्पित किया गया है जिसे पितृपक्ष के नाम से जाना जाता है इस दौरान लोग अपने मृत परिजनों को याद कर उनका श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करते हैं मान्यता है कि इस दौरान पूर्वज स्वर्ग से धरती पर आते हैं और अपने वंशजों द्वारा किए गए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान को स्वीकार कर उन्हें सुख समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
पंचांग के अनुसार पितृपक्ष हर साल भाद्रपद मास की पूर्णिमा से आरंभ हो जाता है और अश्विन मास की अमावस्या पर समाप्त होता है इस साल पितृपक्ष की शुरुआत 29 सितंबर से हो चुकी है और समापन 14 अक्टूबर को हो जाएगा। ऐसे में इस दौरान श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान के अलावा अगर कुछ चीजों का दान गरीबों व जरूरतमंदों को किया जाए तो लाभ मिलता है मगर इस दौरान कुछ चीजों के दान की मनाही है क्योकि इन चीजों का दान पितरों को नाराज़ कर देता है जिससे बुरे वक्त की शुरुआत हो जाती है।
पितृपक्ष में न करें इन चीजों का दान-
पितृपक्ष में अन्न दान को बेहद शुभ माना गया है लेकिन भूलकर भी इस दौरान बासी और जूठा भोजन दान न करें ऐसा करने से पूर्वज नाराज़ हो जाते हैं और कष्ट प्रदान करते हैं इसके अलावा वस्त्रों के दान को भी इस दौरान शुभ बताया गया है लेकिन भूलकर भी गरीबों और जरूरमंदों को पुराने वस्त्रों का दान न करें। ऐसा करने से राहु दोष लगता है और पितर भी नाराज हो जाते हैं।
पितृपक्ष के दौरान भूलकर भी काले वस्त्रों का दान न करें आप इस दौरान सफेद वस्त्रों का दान कर सकते हैं इसे शुभ माना गया है। श्राद्ध पक्ष के दिनों में लोहे के बर्तनों का दान शुभ नहीं माना जाता है ऐसा करने से पितृदोष लगता है इस दौरान स्टील के बर्तन दान करना लाभकारी होता है इस दौरान भूलकर सरसों तेल का दान नहीं करना चाहिए।
रुद्राक्ष को कैसे और कब धारण करें
3 Oct, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में रुद्राक्ष को बेहद शुभ और पवित्र माना गया है, इसका संबंध भगवान शिव से होता है मान्यताओं के अनुसार रुद्राक्ष को धारण करने से शिव कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख समृद्धि आती है।
ऐसे में अधिकतर लोग रुद्राक्ष धारण करते हैं अगर आप भी रुद्राक्ष धारण करना चाहते हैं और इसका लाभ पाना चाहते हैं तो कुछ बातों का ध्यान जरूर रखें तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा रुद्राक्ष धारण करने से जुड़े नियम बता रहे हैं तो आइए जानते हैं।
रुद्राक्ष धारण करने से जुड़े नियम-
भगवान शिव की पूजा के लिए सोमवार का दिन श्रेष्ठ माना गया है ऐसे में अगर आप रुद्राक्ष धारण करने का विचार बना रहे हैं तो सोमवार के दिन ही इसे धारण करें ऐसा करने से शुभता में वृद्धि होती है। इसके अलावा रुद्राक्ष की माला धारण करने से पहले यह देख ले कि उस माला में कम से कम 27 मनके जरूर होने चाहिए। ज्योतिष अनुसार रुद्राक्ष सीधा खरीदकर नहीं धारण करना चाहिए बल्कि पहले माला को लाल रंग के वस्त्र में बांध दें और शिव मंदिर में रख दें।
इसके बाद नमः शिवाय मंत्र का जाप करें। इसके बाद हाथ में थोड़ा सा गंगाजल लें और रुद्राक्ष की माला को धोकर हाथ में गंगाजल लेकर संकल्प लें और फिर रुद्राक्ष की माला को धारण करें। माना जाता है कि इस नियम के साथ अगर रुद्राक्ष की माला को पहना चाहिए तो महादेव की कृपा बनी रहती है। अगर आप रुद्राक्ष माला धारण करने जा रहे हैं तो इसे पहनने से पहले स्नान जरूर करें।
शारदीय नवरात्रि में न करें ये काम, वरना आएगी बड़ी परेशानी
3 Oct, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में कई सारे त्योहार मनाए जाते हैं और सभी का अपना महत्व होता है लेकिन नवरात्रि बेहद ही खास मानी जाती है जो कि मां दुर्गा की पूजा अर्चना को समर्पित होती है।
पंचांग के अनुसार शारदीय नवरात्रि का त्योहार हर साल अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाएगा। इस बार शारदीय नवरात्रि 15 अक्टूबर दिन रविवार को पड़ रहा है और इसका समापन 24 अक्टूबर को हो जाएगा।
नवरात्रि का पर्व पूरे नौ दिनों तक चलता है और इस दौरान भक्त मां दुर्गा के अलग अलग रूपों की विधिवत पूजा अर्चना करते हैं मान्यता है कि ऐसा करने से देवी की अपार कृपा प्राप्त होती है लेकिन इसी के साथ ही नवरात्रि के दिनों में कुछ ऐसे काम हैं जिन्हें भूलकर भी नहीं करना चाहिए वरना इसका फल नहीं मिलता है और माता क्रोधित हो जाती है तो आइए जानते हैं कि वो कौन से काम है।
नवरात्रि में न करें ये काम-
नवरात्रि का पर्व सभी के लिए खास होता है इस दौरान लोग उपवास रखकर माता की आराधना करते हैं ऐसे में मांसाहारी भोजन करने से परहेज करें। साथ ही घर के बाकी सदस्य भी मांसाहार का सेवन न करें। इसके अलावा नवरात्रि भर लहसुन प्याज का भी इस्तेमाल नहीं करना चाहिए ऐसा करने से व्रत पूजा का लाभ नहीं मिलेगा। ज्योतिष अनुसार नवरात्रि के दिनों में भूलकर भी नाखून नहीं काटना चाहिए।
ऐसा करना अशुभ माना जाता है इसलिए नवरात्रि के 9 दिनों तक ऐसा करने से बचें। इस दौरान मदिरा और तंबाकू का भी सेवन करने से परहेज करना चाहिए। वरना देवी क्रोधित हो सकती है। भोजन की बर्बादी किसी भी समय अच्छा नहीं माना जाता है लेकिन भूलकर भी नवरात्रि में भोजन या अन्न की बर्बाद न करें वरना माता क्रोधित हो सकती है। जिससे जातक को जीवन में बड़े संकट उठाने पड़ सकते हैं।