धर्म एवं ज्योतिष (ऑर्काइव)
मकर संक्रांति क्या सिर्फ 14 जनवरी को ही आती है?
13 Jan, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
कई वर्षों से मकर संक्रांति 14 जनवरी को ही मनाई जाती रही है लेकिन 2012 में 15 जनवरी को मकर संक्रांति मनाई गई और इसके कुछ वर्ष पहले भी ऐसा ही हुआ था।
वर्ष 2020 में भी मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनाई गई थे। एक समय ऐसा भी आएगा जबकि मकर संक्रांति फरवरी में भी मनाई जाएगी। आओ जानते हैं इसके पीछे का कारण।
उल्लेखनीय है कि यदि 14 तारीख को सूर्य दोपहर के बाद शाम या रात्रि में मकर राशि में गोचर करता है तो फिर उदयातिथि के अनुसार अगले दिन यानी 15 जनवरी को मकर संक्रांति मनाई जाती है।
ज्योतिष मान्यता के अनुसार सूर्य की गति प्रतिवर्ष 20 सेकेंड बढ़ रही है। इस मान से देखा जाएगा तो करीब 1000 साल पहले 31 दिसंबर को मकर संक्रांति मानाई गई थी और 5000 वर्ष के बाद संभवत: मकर संक्रांति फरवरी की किसी तारीख को मनाई जाए। पिछले 1000 वर्षों में सूर्य दो हफ्ते आगे खिसक गया है। इसीलिए 14 जनवरी को मकर संक्रांति मनाई जाने लगी।
राजा हर्षवर्द्धन के समय में यह पर्व 24 दिसम्बर को पड़ा था। मुगल बादशाह तुर्क अकबर के काल में 10 जनवरी को मकर संक्रांति मनाई गई थी। वीर छत्रपति सम्राट शिवाजी के शासन काल में 11 जनवरी को मकर संक्रांति मनाई गई थी। 2600 में मकर संक्रांति 23 जनवरी को मनाई जाएगी। इसी अनुमान से वर्ष 7015 में मकर संक्रांति 23 मार्च को मनाई जाने लगेगी।
उद्यम में है लक्ष्मी का वास
13 Jan, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
काम का ढेर देखकर कभी घबराना नहीं। मनुष्य काम करने के लिए ही जन्मा है। वह नहीं चाहेगा तो भी उसे काम करना ही पड़ेगा। जो कर्तव्य-कर्म करने में उत्साही है वही दूसरों के लिए उपयोगी होने का सुख भोग सकता है। उद्यम में लक्ष्मी का वास है और आलस्य में अलक्ष्मी का। उद्यमी को देखकर कमनसीबी डरके भाग जाती है। उद्यम करने पर भी कभी ध्येय सिद्ध न हो तो भी उदास न हों क्योंकि पुरुषार्थ अथवा प्रयत्न स्वयं ही एक बड़ी सिद्धि है। दु:ख से कभी डरें नहीं बल्कि उसे देखकर उसके सामने हँसें। आपको हँसते देखकर दु:ख स्वयं ही डरके भाग जाएगा। मानव को दु:ख का शिकार नहीं होना चाहिए न ही सुख में फूलना चाहिए।
सुख सपना दु:ख बुलबुला दोनों हैं मेहमान।
दोनों बीतन दीजिए जो भेजें भगवान?
क्या होता है कन्यादान, विवाह रीति में क्यों निभाई जाती है ये रस्म
13 Jan, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में हर चीज को लेकर कुछ रीति रिवाज और परंपराएं बनाई गई है जिनके अनुसार सभी को चलना होता है हिंदू धर्म में विवाह रीति रिवाजों में कन्यादान की पवित्र रस्म निभाई जाती है है जिसे महत्वपूर्ण बताया गया है इस धर्म में शादी विवाह को केवल एक संस्कार के तौर पर नहीं देखा जाता है बल्कि इसे एक धार्मिक कर्तव्य भी माना जाता है जिसके द्वारा दो व्यक्ति या कह सकते हैं कि दो परिवार, दो गोत्रो का मिलन होता है और वे अपने सांसारिक कर्तव्य को पूरा करते है, और विवाह में कन्या के माता पिता कन्यादान की रस्म को निभाते है तो आज हम अपने इस लेख में आपको बता रहे है कि कन्यादान क्या होता है और यह क्यों जरूरी है तो आइए जानते है।
जानिए क्या होता है कन्यादान-
हिंदू विवाह में जो भी रीति रिवाज या संस्कार निभाए जाते है उन सबका एक धार्मिक महत्व होता है जो हमारे समाज और संस्कृति के प्रति हमारे दायित्व को दर्शााता है अधिकतर हम हिंदू विवाह में कन्यादान की रीति को देखते है जहां वधु के माता पिता या बड़ा भाई कन्यादान की रीति को निभाता है जिसे जरूरी बताया गया है धार्मिक पुराणों और शास्त्रों के अनुसार हर व्यक्ति के जीवन में तीन महिलाओं का प्रमुख स्थान होता है माता, पत्नी और पुत्री। इन्हीं के प्रति वह अपने तीन मूल कर्तव्यों को निभाता है पहला माता जिसे प्रथम गुरु माना जाता है
जो अपने संस्कारों द्वारा शिशु का पोषण करती है इसलिए माता को सम्मान देकर उसकी प्रत्येक आज्ञा का पालन करके अपने कर्तव्य को निभाते है। वही दूसरा कर्तव्य पत्नी का होता है जिसे इस धर्म में व्यक्ति का आधा अंग माना गया है जो पुरुष का आत्मविश्वा होती है जिसकी रक्षा करके वह उसके गौरव की रक्षा करता है।
वही तीसरा और आखिरी कर्तव्य होता है पुत्री जो पुरुष का स्वाभिमान और उसके कुल की प्रतिष्ठा मानी जाती है किसी कुल की प्रतिष्ठा या स्वाभिमान कोई वस्तु नहीं हो सकती है जिसे दान किया जाए यह तो आदर के साथ किसी को सौंपा जाता है कन्यादान के द्वारा व्यक्ति अपने इन्हीं धार्मिक कर्तव्यों को पूरा करता है कन्यादान के रूप में वह एक अंश माता एक अंश पत्नी और एक अंश स्वयं का देकर किसी के जीवन को पूर्णता प्रदान करता है और इसे ही कन्यादान कहा जाता है।
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (13 जनवरी 2023)
13 Jan, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- मान प्रतिष्ठा बाल-बाल बचे कार्य व्यवसाय गति उत्तम स्त्री वर्ग से क्लेश अवश्य होगा।
वृष राशि :- धन प्राप्ति के योग बनेंगे नवीन मैत्री-मंत्रणा प्राप्त होगी ध्यान अवश्य दें।
मिथुन राशि :- इष्ट मित्र सहायक होंगे व्यवसायिक क्षमता में वृद्धि होगी तथा कार्य बनेंगे।
कर्क राशि :- सामाजिक कार्य में प्रतिष्ठा कार्य कुशलता से संतोष तथा रुके कार्य बनेंगे।
सिंह राशि :- सोचे कार्य परिश्रम से समय पर पूर्ण होंगे व्यवसाय गति उत्तम होगी।
कन्या राशि :- अधिकारियों का समर्थन फलप्रद रहेगा कार्य कुशलता से संतोष होगा।
तुला राशि :- दैनिक व्यवसायिक गति उत्तम तथा व्यवसायिक चिन्ता कम होगी समय का ध्यान रखें।
वृश्चिक राशि :- कार्यवृत्ति में सुधार होगा असमंजस तथा सफलता के कार्य अवश्य होंगे।
धनु राशि :- स्थिति अनियंत्रित रहेगी समय स्थिति को ध्यान में रखकर कार्य अवश्य करें।
मकर राशिः- मानसिक खिन्नता से स्वाभाव में उद्विघ्नता बनेगी विचारे कार्याें को धैर्य पूर्वक निपटायें।
कुंभ राशि :- योजना फलीभूत होगी विघटनकारी तत्व परेशान करेंगे समय से कार्य करें।
मीन राशि :- मनोबल उत्साहवर्धक होगा कार्य कुशलता से संतोष तथा लाभ अवश्य ही होगा।
शिरडी के साईं बाबा की झोली में भक्तों ने चढ़ाया करोड़ों का दान
12 Jan, 2023 07:25 PM IST | GRAMINBHARATTV.IN
शिरडी । शिरडी के साईं बाबा की झोली में पिछले साल यानि 2022 में रिकॉर्ड तोड़ दान के बाद इस साल की शुरुआत में ही एक भक्त शिरडी के साईं बाबा को एक करोड़ रुपये का दान कर चुका है। हैदराबाद का यह साईं भक्त राजेश्वर ने साईं बाबा को एक करोड़ रुपये का यह दान दिया है. साईं संस्थान के प्रभारी मुख्य कार्यकारी अधिकारी राहुल जाधव ने कहा कि उन्होंने यह दान चिकित्सा कोष में दिया है. शिरडी के साईं बाबा ने अपने जीवनकाल में स्वास्थ्य देखभाल को अधिक महत्व दिया। वहीं हेल्थकेयर साईं संस्थान भी बाबा की विरासत को सहेज कर रखने की कोशिश कर रहा है. साईंबाबा सुपर और साईनाथ नाम के दो अस्पताल साईं संस्थान द्वारा चलाए जाते हैं। साईनाथ अस्पताल पूरी तरह नि:शुल्क है और प्रदेश भर से जरूरतमंद मरीज यहां इलाज के लिए आते हैं। जबकि साईंबाबा सुपर में 50 फीसदी दान का इलाज किया जाता है. ऐसे साईं बाबा की स्वास्थ्य विरासत में साईं भक्त राजेश्वर ने 25 लाख रुपए के चार डीडी साईं संस्थान को दिए हैं। यानि उन्होंने कुल एक करोड़ रुपए दान में दिए है। साईं संस्थान के सीईओ राहुल जाधव ने यह दान स्वीकार किया है. साथ ही परोपकारी भक्त राजेश्वर को साईं मूर्ति उदी साईं चरित्र देकर सम्मानित किया गया है। वहीं 27 लाख की सोने की आरती एक भक्त ने दान की है।
- पिछले साल 400 करोड़ से अधिक का मिला था दान
साईं बाबा को पिछले साल यानी 2022 में 400 करोड़ 17 लाख रूपये का दान मिला था। नए साल की शुरुआत में महज 11 दिनों के दौरान 17 करोड़ 81 लाख का दान मिल चुका है। इसमें इस साल का सबसे बड़ा 1 करोड़ रुपये का दान शामिल है। वहीं चेन्नई के एक साईं भक्त वी.राजेंद्र ने 27 लाख 77 हजार रुपए की सोने की आरती दान की है। और तो और हैदराबाद के एक भक्त सुब्बाराव ने भी साईं संस्थान को 47 लाख रुपये की एक्स-रे मशीन दान करने का फैसला किया है ऐसा साईं संस्थान ने कहा है।
ईश्वर अराधना की एक विधि है आरती
12 Jan, 2023 07:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
आरती देवी-देवता या अपने आराध्य अपने ईष्ट देव की स्तुति की उपासना की एक विधि है। आरती के दौरान भक्तजन गाने के साथ साथ धूप दीप एवं अन्य सुगंधित पदार्थों से एक विशेष विधि से अपने आराध्य के सामने घुमाते हैं। मंदिरों में सुबह उठते ही सबसे पहले आराध्य देव के सामने नतमस्तक हो उनकी पूजा के बाद आरती की जाती है। इसी क्रम को सांय की पूजा के बाद भी दोहराया जाता है व मंदिर के कपाट रात्रि में सोने से पहले आरती के बाद ही बंद किये जाते हैं। मान्यता है कि आरती करने वाले ही नहीं बल्कि आरती में शामिल होने वाले पर भी प्रभु की कृपा होती है। भक्त को आरती का बहुत पुण्य मिलता है। आरती करते समय देवी-देवता को तीन बार पुष्प अर्पित किये जाते हैं। मंदिरों में तो पूरे साज-बाज के साथ आरती की जाती है। कई धार्मिक स्थलों पर तो आरती का नजारा देखने लायक होता है। बनारस के घाट हों या हरिद्वार प्रयाग हो या फिर मां वैष्णों का दरबार यहां की आरती में बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं। तमिल में आरती को ही दीप आराधनई कहा जाता है।
आरती करते समय भक्त का मन स्वच्छ होना चाहिये अर्थात उसे पूरे समर्पण के साथ आरती करनी चाहिये तभी उसे आरती का पुण्य प्राप्त होता है। माना जाता है कि भक्त इस समय अपने अंतर्मन से ईश्वर को पुकारते हैं इसलिये इसे पंचारती भी कहा जाता है। इसमें भक्त के शरीर के पांचों भाग मस्तिष्क हृद्य कंधे हाथ व घुटने यानि साष्टांग होकर आरती करता है इस आरती को पंच-प्राणों की प्रतीक आरती माना जाता है।
ग्रहों का किस्मत से क्या है संबंध?
12 Jan, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
ग्रहों का व्यक्ति के जीवन पर काफी प्रभाव पड़ता है। ग्रह कई बीमारियों के लिए भी जिम्मेदार होते हैं। आइए जानते हैं किस ग्रह की वजह से कौन सी बीमारी हो सकती है और इससे बचने के लिए क्या करना चाहिए।
शरीर में कुल मिलाकर पांच तत्व और तीन धातुएं होती हैं। ये पांचों तत्व और तीनों धातुएं 9 ग्रहों से नियंत्रित होती हैं। जब कोई तत्व या धातु कमजोर होती है तब शरीर में बीमारियां बढ़ जाती हैं। छोटी हो या बड़ी हर बीमारी इन 9 ग्रहों से संबंध रखती है। इनसे संबंधित ग्रहों को ठीक करके हम शरीर की बीमारियों को दूर कर सकते हैं।
सूर्य और इसकी बीमारियां-
सूर्य ग्रहों का राजा है।
हर ग्रह की शक्ति के पीछे सूर्य ही होता है।
सूर्य के कारण हड्डियों की और आंखों की समस्या होती है।
ह्रदय रोग टीबी और पाचन तंत्र के रोग के पीछे सूर्य ही होता है।
उपाय-
प्रातः जल्दी सोकर उठें।
नित्य प्रातः सूर्य को जल अर्पित करें।
भोजन में गेंहू की दलिया जरूर खाएं।
तांबे के पात्र से जल पीएं।
चंद्रमा और इसकी बीमारियां-
चंद्रमा व्यक्ति के मन और सोच को नियंत्रित करता है।
इसके कारण व्यक्ति को मानसिक बीमारियां होती हैं।
व्यक्ति को चिंताएं परेशान करती रहती हैं।
नींद घबराहट बेचैनी की समस्या हो जाती है।
उपाय-
देर रात तक जागने से बचें।
पूर्णिमा या एकादशी का उपवास रखें।
शिव जी की उपासना करे।
चांदी का छल्ला या चांदी की चेन धारण करें।
मंगल की बीमारियां-
- मंगल मुख्य रूप से रक्त का स्वामी होता है।
- यह रक्त और दुर्घटना की समस्या देता है।
- यह उच्च रक्तचाप और बुखार के लिए भी जिम्मेदार होता है।
- यह कभी कभी त्वचा में इन्फेक्शन भी पैदा कर देता है.
उपाय-
- मंगलवार का उपवास रखें.
- चीनी खाने के बजाय गुड़ का सेवन करें।
- जमीन पर या लो फ्लोर के पलंग पर सोएं।
- घड़े का जल पीना अद्भुत लाभकारी होगा।
बुध और इसकी बीमारियां-
- बुध शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता का स्वामी होता है।
- इसके कारण इन्फेक्शन वाली बीमारियां होती हैं.
- यह कान नाक गले की बीमारियों से संबंध रखता है.
- इसके अलावा त्वचा के रोग भी बुध के कारण ही होते हैं.
उपाय-
- भोजन में सलाद और हरी सब्जियों का प्रयोग करें।
- कुछ देर उगते हुए सूर्य की रौशनी में बैठें।
- प्रातःकाल खाली पेट तुलसी के पत्तों का सेवन करें।
- गायत्री मंत्र का जप भी विशेष लाभकारी होता है।
बृहस्पति की बीमारियां-
- यह व्यक्ति को स्वस्थ भी रखता है।
- साथ ही गंभीर बीमारियां भी देता है।
- कैंसर हेपटाइटिस और पेट की गंभीर बीमारियां यही देता है।
- यह आमतौर पर छोटी मोटी बीमारियां नहीं देता।
उपाय-
प्रातःकाल सूर्य को हल्दी मिलाकर जल अर्पित करें।
शुद्ध सोने का छल्ला तर्जनी अंगुली में धारण करें।
हल्दी का तिलक अवश्य लगाएं.
विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ अवश्य करें।
शुक्र और बीमारियां-
यह शरीर के रसायनों को नियंत्रित करता है।
इसके कारण हार्मोन्स और मधुमेह की समस्या हो जाती है.
कभी-कभी यह आंखों को भी प्रभावित करता है।
उपाय-
दोपहर के भोजन में दही जरूर खाएं।
चावल चीनी और मैदा कम से कम खाएं।
भोर में उठकर जरूर टहलें.
एक सफ़ेद स्फटिक की माला गले में धारण करें।
शनि और बीमारियां-
शनि के कारण लंबे समय तक चलने वाली बीमारियां होती हैं।
यह स्नायु तंत्र और दर्द की समस्या देता है।
यह व्यक्ति का चलना फिरना रोक देता है।
आम तौर पर शरीर को विकृत बना देता है।
उपाय-
सात्विक और सादा भोजन ग्रहण करें।
रहने के लिए हवादार और साफ सुथरे घर का प्रयोग करें।
एक लोहे का छल्ला जरूर धारण करें।
प्रातःकाल पीपल के नीचे कुछ समय जरूर बैठें।
राहु और बीमारियां-
यह हमेशा रहस्यमयी बीमारियां देता है।
इसकी बीमारियां शुरू में छोटी पर बाद में गंभीर हो जाती हैं।
इसकी बीमारियों का कारण अक्सर अज्ञात रहता है।
ये खुद आती हैं और खुद ही चली जाती हैं।
उपाय-
चंदन की सुगंध का खूब प्रयोग करें।
गले में एक तुलसी की माला धारण करें।
आहार को सात्विक रखें।
चमकदार नीले रंग का खूब प्रयोग करें।
केतु और बीमारियां-
केतु भी रहस्यमयी बीमारियां देता है।
आमतौर पर त्वचा की और रक्त की विचित्र बीमारियों के पीछे यही होता है।
इसकी बीमारियों का कारण और निवारण समझ नहीं आता।
यह कल्पना की बीमारियां भी देता है।
उपाय-
नित्य प्रातः स्नान जरूर करें।
धर्मस्थानों या धर्म सभाओं में अवश्य जाएं।
निर्धनों को भोजन कराएं।
माह में कुछ न कुछ गुप्त दान अवश्य करें।
मंत्रों की ध्वनि में होती है शक्ति
12 Jan, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
वैसे तो मंत्रों के अर्थ इतना महत्व नहीं रखते क्योंकि विशेषज्ञों का मानना है कि मंत्रों के अर्थ में नहीं बल्कि ध्वनि में शक्ति होती है। इसका एक कारण यह भी है कि इन मंत्रों की उत्पति के बारे में कहा जाता है कि ये किसी व्यक्ति विशेष द्वारा नहीं लिखे गए हैं बल्कि वर्षों की साधना के बाद ऋषि मुनियों ने इन ध्वनियों को सुना है। विशेषकर बीज मंत्रों के बीजाक्षरों का अर्थ साधारण व्यक्ति के लिए समझना बहुत मुश्किल है उसे ये निर्रथक लगते हैं लेकिन माना जाता है कि ये बीजाक्षर सार्थक हैं और इनमें एक ऐसी शक्ति अन्तर्निहित रहती है जिससे आत्मशक्ति या फिर देवताओं को उत्तेजित किया जा सकता है। ये बीजाक्षर अन्त:करण और वृत्ति की शुद्ध प्रेरणा के व्यक्त शब्द हैं जिनसे आत्मिक शक्ति का विकास किया जा सकता है।
मंत्र का शाब्दिक अर्थ होता है एक ऐसी ध्वनी जिससे मन का तारण हो अर्थात मानसिक कल्याण हो जैसा कि शास्त्रों में कहा गया है ‘मन: तारयति इति मंत्र:’ अर्थात मन को तारने वाली ध्वनि ही मंत्र है। वेदों में शब्दों के संयोजन से इस प्रकार की कल्याणकारी ध्वनियां उत्पन्न की गई।
माना जाता है कि मनुष्य की अवचेतना में बहुत सारी आध्यात्मिक शक्तियां होती हैं जिन्हें मंत्रों के द्वारा प्रयोग में लाया जा सकता है। मंत्र की ध्वनियों के संघर्ष से इन आध्यात्मिक शक्तियों को उत्तेजित किया जाता है हालांकि इसके लिए सिर्फ मंत्रोंच्चारण काफी नहीं है बल्कि दृढ़ इच्छा शक्ति से ध्वनि-संचालन एवं नैष्ठिक आचार भी जरुरी है। तंत्र साधना के मंत्रों में मंत्रोच्चारण की शुद्धि व मंत्रोचार के दौरान विशेष नियमों का पालन करना होता है जो किसी गुरु के मार्गदर्शन में ही संभव है।
अक्सर लोग मंत्रों या बीज मंत्रों का जाप करते हैं या फिर जाप करवाते हैं लेकिन इन मंत्रों के मायने क्या हैं इस पर ध्यान नहीं देते लेकिन हर मंत्र में निहित बीजाक्षर और बीजाक्षर में निहित वर्ण बिंदु एवं मांत्राएं किसी न किसी देवी-देवता का प्रतिनिधित्व करती है। इस बारे में विश्वसनीय जानकारी बहुत कम मिलती है। लेकिन फिर भी हमने कुछ प्रयास किया है इन मंत्रों का अर्थ जानने का। यह भी देखने को मिलता है कि गायत्री और मृत्युंजय मंत्र जैसे लोकप्रिय मंत्रों के सरलार्थ तो हमें मिल जाते हैं लेकिन अन्य मंत्रों के बारे में जानकारी नहीं मिलती।
भगवान श्रीकृष्ण की हर लीला भक्तों के मन को है लुभाती
12 Jan, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भक्ति की परंपरा में भगवान श्रीकृष्ण सबसे ज्यादा आकर्षित करने वाले भगवान हैं। योगेश्वर रूप में वे जीवन का दर्शन देते हैं तो बाल रूप में उनकी लीलाएं भक्तों के मन को लुभाती है।आज पूरब से लेकर पश्चिम तक हर कोई कान्हा की भक्ति से सराबोर है। चैतन्य महाप्रभु के भक्ति आन्दोलन के समय श्रीकृष्ण का जो महामंत्र प्रसिद्ध हुआ वह तब से लेकर अब तक लगातार देश दुनिया में गूंज रहा है। आप भी मुरली मनोहर श्रीकृष्ण की कृपा पाने के लिए उनके मंत्र के जाप की शुरुआत कर सकते हैं।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण
कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम
राम राम हरे हरे॥
१५वीं शताब्दी में चैतन्य महाप्रभु के भक्ति आन्दोलन के समय प्रसिद्ध हुए इस मंत्र को वैष्णव लोग महामन्त्र कहते हैं। इस्कान के संस्थापक के श्री प्रभुपाद जी अनुसार इस महामंत्र का जप उसी प्रकार करना चाहिए जैसे एक शिशु अपनी माता का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए रोता है।
ॐ नमो भगवते श्री गोविन्दाय
भगवान श्रीकृष्ण के इस द्वादशाक्षर (12) मंत्र का जो भी साधक जाप करता है उसे सुख समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। प्रेम विवाह करने वाले अभिलाषा रखने वाले जातकों के लिए यह रामबाण साबित होता है।
कृं कृष्णाय नमः
यह पावन मंत्र स्वयं भगवान श्रीकृष्ण द्वारा बताया गया है। इसके जप से जीवन से जुड़ी तमाम बाधाएं दूर होती हैं और घर-परिवार में सुख और समृद्धि का वास होता है।
ॐ श्री कृष्णाय शरणं मम्।
जीवन में आई विपदा से उबरने के लिए भगवान श्रीकृष्ण का यह बहुत ही सरल और प्रभावी मंत्र है। इस महामंत्र का जाप करने से भगवान श्रीकृष्ण बिल्कुल उसी तरह मदद को दौड़े आते हैं जिस तरह उन्होंने द्रौपदी की मदद की थी।
आदौ देवकी देव गर्भजननं गोपी गृहे वद्र्धनम्।
माया पूज निकासु ताप हरणं गौवद्र्धनोधरणम्।।
कंसच्छेदनं कौरवादिहननं कुंतीसुपाजालनम्।
एतद् श्रीमद्भागवतम् पुराण कथितं श्रीकृष्ण लीलामृतम्।।
अच्युतं केशवं रामनारायणं कृष्ण:दामोदरं वासुदेवं हरे।
श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभं जानकी नायकं रामचन्द्रं भजे।।
श्रद्धा और विश्वास के इस मंत्र का जाप करने से न सिर्फ तमाम संकटों से मुक्ति मिलती है बल्कि सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। सुख समृद्धि और शुभता बढ़ाने में यह महामंत्र काफी कारगर साबित होता है।
अधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरम् ।
हृदयं मधुरं गमनं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ।। 1 ।।
वचनं मधुरं चरितं मधुरं वसनं मधुरं वलितं मधुरम्
चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ।। 2 ।।
वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरः पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ ।
नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ।। 3 ।।
गीतं मधुरं पीतं मधुरं भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरम् ।
रूपं मधुरं तिलकं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ।। 4 ।।
करणं मधुरं तरणं मधुरं हरणं मधुरं रमणं मधुरम् ।
वमितं मधुरं शमितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ।। 5 ।।
गुञ्जा मधुरा माला मधुरा यमुना मधुरा वीची मधुरा ।
सलिलं मधुरं कमलं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ।। 6 ।।
गोपी मधुरा लीला मधुरा युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरम् ।
दृष्टं मधुरं शिष्टं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ।। 7 ।।
गोपा मधुरा गावो मधुरा यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा ।
दलितं मधुरं फलितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ।। 8 ।।
कन्हैया की स्तुति करने के लिए तमाम मंत्र हैं लेकिन यह मंत्र उनकी मधुर छवि का दर्शन कराती है। इस मंत्र की स्तुति में कान्हा की अत्यंत मनमोहक छवि उभर कर सामने आती है। साथ ही साथ योगेश्वर श्रीकृष्ण के सर्वव्यापी और विश्व के पालनकर्ता होने का भी भान होता है।
सूर्यदेव की लकड़ी की प्रतिमा होती है शुभ
12 Jan, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मान्यता है कि भगवान गणेश के साथ-साथ सूर्य देव की उपासना करना बहुत फलदायी माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य देव को सभी ग्रहों का राजा माना जाता है। इसीलिए इसकी शुभ-अशुभ स्थिति व्यक्ति के जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव डालती है। वास्तु शास्त्र के अनुसार सूर्य देव की अलग-अलग प्रतिमाएं रखना शुभ माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अपनी इच्छानुसार घर में सूर्य देव की प्रतिमाएं रखी जा सकती हैं। तो आइए आज जानते हैं कि सूर्य देव की कौन सी प्रतिमा को घर में रखा जा सकता है।
लकड़ी की प्रतिमा
ज्योतिष और वास्तु के अनुसार सूर्यदेव की लकड़ी की प्रतिमा घर रखना बहुत अच्छा माना जाता है। मान्यता है कि इसके निरंतर पूजा-पाठ करने से घर के लोगों का समाज में मान-सम्मान बढ़ता है। इसके साथ ही उन्हें भाग्य का साथ मिल जाता है।
मिट्टी की प्रतिमा
जिस जातक की कुंडली में सूर्य दोष हो और उसके सभी कामों में बार-बार बाधाएं आ रही हो तो वो इंसान घर में पत्थर या मिट्टी की सूर्य प्रतिमा रख सकता है। कहा जाता है कि इसकी पूजा करने से हर कार्य में सफलता मिलती है।
तांबे की प्रतिमा
कहते हैं कि घर में सकारात्मकता बनाए रखने के लिए हर किसी को तांबे से बनी प्रतिमा रखनी चाहिए। इसके शुभ असर से सभी परेशानियों से छुटकारा मिल सकता है।
चांदी की प्रतिमा
कार्य क्षेत्र में अधिकार बनाए रखने के लिए चांदी की सूर्य प्रतिमा रख सकते हैं।
सोने की प्रतिमा
सोने से बनी सूर्य प्रतिमा घर में रखने और उसकी पूजा करने से घर में धन-धान्य बढ़ता है सुख-समृद्धि बनी रहती है।
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (12 जनवरी 2023)
12 Jan, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- समय विफल होगा कार्यगति में बाधा चिन्ता व्यर्थ भ्रमण होगा।
वृष राशि :- इष्ट मित्रों से सुख अधिकारियों से मेल-मिलाप होगा तथा रुके कार्य अवश्य बनेंगे।
मिथुन राशि :- भाग्य का सितारा प्रबल होगा बिगड़े कार्य अवश्य बनेंगे सफलता मिलेगी।
कर्क राशि :- बिगड़े कार्य अवश्य बनेंगे भाग्य का सितारा प्रबल होगा समय का लाभ अवश्य लें।
सिंह राशि :- इष्ट-मित्र सुखवर्धक होंगे कुटुम्ब की समस्यायें सुलझें स्त्री वर्ग से हर्ष होगा।
कन्या राशि :- भावनायें संवेदनशील रहें कुटुम्ब में सुख तथा समृद्धि के साधन बनेंगे।
तुला राशि :- समय की अनुकूलता से लाभ लें स्वास्थ्य नरम रहेगा किसी धारणा की अनदेखी होगी।
वृश्चिक राशि :- स्त्री शरीर कष्ट मानसिक उद्विघ्नता स्वभाव में उद्विघ्नता तथा असमर्थता रहेगी।
धनु राशि :- आशानुकूल सफलता स्थिति में सुधार व्यवसाय गति उत्तम बनी रहेगी।
मकर राशिः- धन का व्यर्थ व्यय होगा मानसिक उद्विघ्नता हानिप्रद होगी ध्यान दें।
कुंभ राशि :- इष्ट मित्रों से सहयोग कार्य बनेंगे कार्यगति अनुकूल बनेगी समय का ध्यान रखें।
मीन राशि :- भाग्य का सितारा प्रबल होगा बिगड़ें कार्य बनेंगे रुके कार्य अवश्य बनेंगे।
अपनी पत्नी से भी छिपाकर रखें ये बातें वरना गृहस्थी बिगड़ते नहीं लगेगी देर
11 Jan, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
आचार्य चाणक्य को भारत के महान विद्वानों में से एक माना जाता है इनकी नीतियां देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में विख्यात है चाणक्य ने अपने जीवन के अनुभवों को नीतिशास्त्र ग्रंथ में पिरोया है जिसे चाणक्य नीति के नाम से जाना जाता है मान्यता है कि जो भी मनुष्य की नीतियों को अपने जीवन में उतार लेता है उसका जीवन सरल और सफल हो जाता है
चाणक्य ने अपनी नीतियों में मानव जीवन से जुड़े हर पहलु पर नीतियों का निर्माण किया है चाणक्य नीति में उन्होंने कहा है कि पुरुषों को कुछ बातें अपनी धर्म पत्नी से भी छिपाकर रखनी चाहिए वरना उनकी गृहस्थी बिगड़ते देर नहीं लगती है तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा बता रहे हैं कि चाणक्य ने किन बातों को राज रखने के लिए कहा है तो आइए जानते है।
चाणक्य की नीति कहती है कि पुरुषों को हमेशा अपनी कमजोरी को पत्नी से छिपाकर ही रखना चाहिए ऐसा न करने पर विभिन्न अवसरों पर वह अपना काम निकलवाने के लिए आपकी कमजोरी का लाभ उठा सकती है जिससे आपको सार्वजनिक जीवन में लज्जित होना पड़ सकता है आचार्य चाणक्य कहते हैं कि पति को अपनी कमाई के बारे में पत्नी को पूरी तरह से नहीं बताना चाहिए पति की सही आमदनी के बारे में जानकर वह उसे अपना धन समझ लेती है और फिर अधिक खर्च करने से रोकने लगती है जिससे पति को एक एक पैसे के लिए तरसना भी पड़ सकता है
वही दान हमेशा ही गुप्त रूप से करना उत्तम होता है यहां त कि अपनी पत्नी को भी इसके बारे में नहीं बताना चाहिए कि आपने कहां और कितना दान किया है ऐसा नहीं करते हैं तो उस दान का कोई लाभ आपको नहीं मिलेगा। अपने अपमान के बारे में भूलकर भी पत्नी या फिर किसी और को नहीं बताना चाहिए क्योंकि कोई भी पत्नी अपने पति का अपमान बर्दाशत नहीं कर सकती है ऐसे में विवाद शांत होने की जगह क्रोण के कारण और अधिक बढ़ सकता है जिसका खामियाजा पूरे परिवार को भुगतना पड़ सकता है ऐसे में भूलकर भी इन बातों को पति या अन्य किसी से नहीं शेयर करना चाहिए।
कब है मकर संक्रांति ? जानें इस त्योहार से जुड़ी धार्मिक और ज्योतिषीय मान्यताएं
11 Jan, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में मकर संक्रांति के त्योहार का विशेष महत्व होता है। मकर सक्रांति का त्योहार धार्मिक,ज्योतिषीय और सांस्कृतिक नजरिए से यह पर्व खास होता है।
हिंदू धर्म में जहां पर सभी त्योहारों की गणना चंद्रमा की गणना पर तिथियों के अनुसार मनाया जाता है, वहीं मकर संक्रांति का त्योहार सूर्य पर आधारित पंचांग की गणना के आधार पर मनाया जाता है। सौर कैरेंडर के अनुसार हर वर्ष मकर संक्रांति का त्योहार 14 जनवरी को मनाई जाती है। हिंदू पंचांग के अनुसार, सूर्य 14 जनवरी 2023 की रात 8 बजकर 21 मिनट पर मकर राशि में गोचर करेंगे। उदया तिथि 15 जनवरी को प्राप्त हो रही है। ऐसे में मकर संक्रांति नए साल में 15 जनवरी 2023 को मनाई जाएगी। ज्योतिष शास्त्र की मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति पर सूर्य धनु राशि की यात्रा को विराम देते हुए मकर राशि में प्रवेश करते हैं। इस कारण से मकर संक्रांति कहते हैं। मकर संक्रांति पर सूर्य उत्तरायण होते हैं। मकर संक्रांति से मौसम में बदलाव शुरू होने लगते हैं। शरद ऋतु जाने लगती है और बसंत ऋतु का आगमन शुरू हो जाता है। मकर संक्रांति के बाद से दिन लंबे होने लगते हैं और रात छोटी होने लगती है। इन सबके अलावा मकर संक्रांति के त्योहार का विशेष महत्व होता है। आइए जानते हैं देशभर में मकर संक्रांति को लेकल क्या है परंपरा और मान्यताएं।
मकर संक्रांति से जुड़ी प्रमुख धार्मिक और ज्योतिषीय मान्यताएं
मकर संक्रांति पर सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर चलते हैं। सूर्य के उत्तरायण होने पर सूर्यदेव की पूजा-पाठ का महत्व बढ़ जाता है। इस दिन पूजा-पाठ और दान करने का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन दान करने से उसका फल कई गुना ज्यादा हो जाता है।
मकर संक्रांति के पर्व का ज्योतिष शास्त्र में विशेष महत्व होता है। मकर संक्रांति पर सूर्य धनु राशि की यात्रा को विराम देते हुए मकर राशि में प्रवेश करते हैं।
मकर संक्रांति पर सूर्य के उत्तरायण होने को देवता का दिन प्रारंभ हो जाता है। शास्त्रों में सूर्य के दक्षिणायन को देवताओं का रात मानी जाती है।
ज्योतिष शास्त्र में सूर्य और शनि दोनों की आपस में शत्रुता का भाव रहता है। मकर संक्रांति पर सूर्यदेव अपने पुत्र शनि की मकर राशि में प्रवेश करते हैं। सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने से सूर्यदेव की उपासना, दान और स्नान का महत्व बढ़ जाता है।
मकर संक्रांति से शरद ऋतु का समापन और बसंत ऋतु का शुभारंभ माना जाता है।
मकर संक्रांति से नई फसलें तैयार हो जाती है। जिसकी कटाई करने के बाद यह त्योहार माना जाता है।
मकर संक्रांति को देश के अलग-अलग राज्यों में कई नामों से इस त्योहार को मनाया जाता है। उत्तर प्रदेश में मकर संक्रांति को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है। दक्षिण भारत में मकर संक्रांति को पोंगल और गुजरात में मकर संक्रांति को उत्तरायण के रूप में मनाया जाता है।
पंजाब में मकर संक्रांति को लोहड़ी के रूप में विशेष तौर पर धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस दिन शाम को लोहड़ी जलाई जाती है जिसमें तिल,गुड़,मक्का और तिल के लड्डू को भोग के रूप में चढ़ाया जाता है।
असम में मकर संक्रांति के त्योहार को माघ बिहू और भोगाली बिहू के रूप मनाया जाता है।
मकर संक्रांति पर सूर्य देव के उत्तरायण होने पर ही भीष्म पितामह ने अपने प्राण त्यागे थे।
मकर संक्रांति पर पवित्र नदियों में स्नान करने के परंपरा होती है। इस त्योहार पर बड़ी संख्या में गंगासागर और प्रयाग में लोग गंगा में डुबकी लगाकर स्नान करते हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति पर जो देह का त्याग करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
महिला नागा साधु कैसी बनती हैं और कब देती हैं दर्शन
11 Jan, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
इससे पहले के लेख में हमने आपको पुरुष नागा साधु के बारे में बताया था लेकिन आज हम आपको महिला नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया से अवगत कराने जा रहे हैं आमतौर पर महिला नागा साधुओं का जिक्र बहुत ही कम होता है क्योंकि महिला नागा साधु दुर्लभ ही दिखाई देती है
कई लोगों को तो यह भी नहीं पता है कि पुरुष नागा साधु की तरह ही महिला नागा साधु भी होती है हिंदू धर्म में नागा साधु को अघोरी के नाम से भी जाना जाता है इनकी दुनिया बड़ी रहस्यमयी होती है ये अपना पूरा जीवन ईश्वर आराधना में लगाते हैं तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा महिला नागा साधु के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातों के बारे में बता रहे हैं तो आइए जानते हैं।
महिला नागा साधु बनने की प्रक्रिया-
ऐसा कहा जाता है कि जिस प्रकार से पुरुष नाग साधु होते है ठीक उसी तरह से ही महिला नागा साधु भी होती है महिला नागा साधु बनने के लिए भी महिलाओं को पुरुषों जितना कड़ा तप करना होता है उन्हें कई कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है इनकी ये परीक्षा कई वर्षों तक चलती है महिला नागा साधु बनने के लिए सख्त ब्रह्मचर्य का पालन करन होता है और जीवित रहते हुए ही अपन पिंडदान किया जाता है ये अपना सिर भी मुंडवाती है फिर पवित्र नदी में स्नान करने के बाद इन्हें महिला नागा साधु का दर्जा प्राप्त होता है।
आपको बता दें कि महिला नागा साधु बहुत ही दुर्लभ अवसरों पर दर्शन देती है कहा जाता है कि ये लोग आम जनजीवन से बहुत दूर और घने जंगलों, पहाड़ों और गुफाओं में ही रहती है इनका अधिक वक्त भगवान की भक्ति में ही गुजर जाता है महिला नागा साधु केवल कुंभ या महाकुंभ में ही नजर आती है और फिर अचानक से ये वहां से भी गायब हो जाती है महिला नागा साधुओं का नाम जरूर नागा साधु होता है लेकिन ये निर्वस्त्र नहीं रहती है महिला नागा साधु वस्त्रधारी होती है और गेरुए रंग के बिना सिले हुए वस्त्र धारण करती है। हिंदू धर्म में इन्हें बहुत सम्मान मिलता है और माता कहकर सबोधित किया जाता है।
सुखी रहना है तो भगवान से शिकायत न करें
11 Jan, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
इंसानों की एक सामान्य आदत है कि तकलीफ में वह भगवान को याद करता है और शिकायत भी करता है कि यह दिन उसे क्यूं देखने पड़ रहे हैं। अपने बुरे दिन के लिए इंसान सबसे ज्यादा भगवान को कोसता है। जब भगवान को कोसने के बाद भी समस्या से जल्दी राहत नहीं मिलती है तो सबसे ज्यादा तकलीफ होती है। इसका कारण यह है कि उसे लगता है कि जो उसकी मदद कर सकता है वही कान में रूई डालकर बैठा है। इसलिए महापुरूषों का कहना है कि दुख के समय भगवान को कोसने की बजाय उसका धन्यवाद करना चाहिए।
इससे आप खुद को अंदर से मजबूत पाएंगे और समस्याओं से निकलने का रास्ता आप स्वयं ढूंढ लेंगे। भगवान किसी को परेशानी में नहीं डालते और न ही वह किसी को परेशानी से निकाल सकते हैं। भगवान भी अपने कर्तव्य से बंधे हुए हैं। भगवान सिर्फ एक जरिया हैं जो रास्ता दिखाते हैं चलना किधर है यह व्यक्ति को खुद ही तय करना होता है। भगवान श्री कृष्ण ने गीता में इस बात को खुद स्पष्ट किया है।
आधुनिक युग के महान संत रामकृष्ण का नाम आपने जरूर सुना होगा। ऐसा माना जाता है कि मां काली उन्हें साक्षात दर्शन देती थी और नन्हें बालक की तरह रामकृष्ण को दुलार करती थीं। ऐसे भक्त की मृत्यु कैंसर के कारण हुई। मृत्यु के समय इन्हें बहुत की कष्ट का सामना करना पड़ा। रामकृष्ण चाहते तो मां काली से कह कर रोग से मुक्त हो सकते थे। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया और पूर्व जन्म के संचित कर्मों को नष्ट करने के लिए दु?ख सहते रहे और अंतत: परम गति को प्राप्त हुए।
ओशो का मत है कि भक्त भगवान की पीड़ा में जितना जलता है उतना ही भगवान के करीब होने लगता है। एक दिन वह घड़ी आती है जब भक्त भगवान में विलीन हो जाता है। रामकृष्ण परमहंस का जीवन इसी बात का उदाहरण है। वर्तमान समय में लोग साढ़ेसाती का नाम सुनकर कांपने लगते हैं। लेकिन प्राचीन काल में लोग साढ़ेसाती का इंतजार किया करते थे। इसका कारण यह था कि साढ़ेसाती के दौरान प्राप्त तकलीफों से उन्हें ईश्वर को प्राप्त करने में मदद मिलती थी। साधु संत शनि को मोक्ष प्रदायक कहा करते थे। वर्तमान में शनि डर का विषय इसलिए बन गये हैं क्योंकि मनुष्य सुख भोगी हो गया है और उसकी सहनशीलता कम हो गयी है।
शास्त्रों में कहा गया है कि व्यक्ति अपने जन्म-जन्मांतर के संचित कर्मों के कारण ही सुख-दुख प्राप्त करता है। जब तक कर्मों का फल समाप्त नहीं होता है तब तक जीवन मरण का चप्र चलता रहता है। जो लोग सुख की अभिलाषा करते हैं उन्हें बार-बार जन्म लेकर दु?ख सहना पड़ता है। इसलिए दु: ख से बचने का एक मात्र उपाय यह है कि दु:ख सह कर भी ईश्वर से शिकायत न करो सुख अपने हिस्से में स्वयं आ जाएगा।