धर्म एवं ज्योतिष (ऑर्काइव)
माघ मास के धर्म-कर्म:इस पवित्र महीने में सूर्य के साथ भगवान विष्णु की पूजा भी होती है फलदायी
16 Jan, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू पंचांग का दसवां महीना माघ, 5 फरवरी तक रहेगा। ये महीना पूजा-पाठ के साथ ही पुण्य बढ़ाने और सेहत सुधारने का समय होता है। माघ मास में तीर्थ दर्शन के साथ ही नदियों में स्नान करने की परंपरा भी है। नारद, पद्म और विष्णु धर्मोत्तर पुराण में कहा गया है कि इस पवित्र महीने में भगवान सूर्य के साथ विष्णु जी की पूजा भी करनी चाहिए। ऐसा करने से पुण्य बढ़ता है।
माघ महीने में घर पर गंगाजल व तिल से स्नान कर सूर्य को अर्घ्य दें। रोज गीता पाठ करें। सुबह-शाम तुलसी जी के आगे घी का दीपक जलाएं। विष्णु सहस्रनाम का पाठ शुभकारी रहता है। माघ महीने में आने वाले व्रत-पर्व (गुप्त नवरात्र, वसंत पंचमी, एकादशी, अमावस्या, पूर्णिमा) जीवन में सकारात्मकता बढ़ाते हैं।
नहाने के पानी में गंगाजल मिलाएं
माघ महीने के दौरान अगर तीर्थ या किसी भी पवित्र नदी में स्नान नहीं कर पा रहे हैं तो अपने घर पर ही पानी में थोड़ा सा गंगाजल मिलाकर स्नान कर सकते हैं। ऐसा करने से भी नदी स्नान के समान पुण्य मिल सकता है। माघ मास में भगवान विष्णु, कृष्ण और सूर्य पूजा की परंपरा है। ऐसा करने से जाने-अनजाने में हुए पाप खत्म हो जाते हैं।
सूर्य को अर्घ्य दें
माघ महीने में भगवान सूर्य के सहस्त्रांशु रूप की पूजा करनी चाहिए। यानी हजार किरणों से रोशनी देने वाले भगवान सूर्य के रूप को प्रणाम कर के अर्घ्य देने का विधान पुराणों में बताया गया है। इसके लिए तांबे के लोटे में पानी भरकर उसमें गंगाजल की कुछ बूंदे, तिल, लाल चंदन और लाल फूल डालकर उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए। स्कंद और पद्म पुराण के मुताबिक ऐसा करने से उम्र बढ़ती है और जाने-अनजाने में हुए पाप खत्म हो जाते हैं।
भगवान विष्णु की पूजा
इस महीने में भगवान विष्णु के माधव रूप की पूजा करने का विधान बताया गया है। इसलिए विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए या किसी विद्वान ब्राह्मण से पाठ करवा सकते हैं। किसी मंदिर या घर पर ही शंख में दूध और पानी भरकर ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करते हुए भगवान विष्णु का अभिषेक करना चाहिए। इतना न कर पाएं तो सिर्फ ऊँ माधवाय नमः मंत्र बोलकर ही भगवान को प्रणाम कर सकते हैं।
किसने सिखाई थी भीष्म को शस्त्र विद्या, उन्होंने क्यों ली ब्रह्मचारी रहने की प्रतिज्ञा
16 Jan, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
महाभारत की बात हो और भीष्म पितामाह (Bhishm Jayanti 2023) का वर्णन न हो, ऐसा नहीं हो सकता। माघ मास के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को इनकी जयंती हर साल मनाई जाती है। इस बार ये तिथि 16 जनवरी, सोमवार को है। भीष्म पितामाह से जुड़ी कई ऐसी बातें हैं जो आम लोग नहीं जानते। जैसे उनका जन्म कैसे हुआ, वे कितने दिनों तक कौरव सेनापति रहे और कैसे उनकी मृत्यु हुई। आज हम आपको भीष्म पितामाह से जुड़ी ऐसी ही रोचक बातें बता रहे हैं.
देवनदी गंगा की आठवीं संतान थे भीष्म
हस्तिनापुर के राजा शांतनु का विवाह देवनदी गंगा से हुआ था। गंगा ने राजा शांतनु से वचन लिया था कि वे उनसे कभी कोई प्रश्न नहीं पूछेंगे। विवाह के बाद जब भी गंगा को कोई संतान होती तो वे उसे नदी में बहा देती थीं। लेकिन वचनबद्ध होने के कारण शांतनु कुछ बोल नहीं पाए। जब गंगा अपने आठवें पुत्र को नदी में बहाने ले जा रही थी, तब शांतनु से नहीं रहा गया और उन्होंने इसका कारण पूछा तो गंगा ने कहा कि " मेरे सभी पुत्र वसु (एक प्रकार के देवता) थे जो श्राप के कारण मनुष्य योनि में जन्में थे, मैंने उन्हें श्राप मुक्त किया है, लेकिन आपने अपना वचन तोड़ दिया और इसलिए मैं आपके इस आठवें पुत्र को लेकर जा रही हूं। " इतना कहकर गंगा देवलोक में लौट गई।
परशुराम और देवगुरु बृहस्पति से पाई शिक्षा
गंगा के देवलोक जाने के बाद शांतनु बहुत उदास रहने लगे। बहुत सालों बाद एक दिन उन्होंने देखा कि तीरों के एक बांध से गंगा का प्रवाह रूक गया है। ये दृश्य देकर उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ। जब वे गंगा के किनारे पहुंचे तो उन्हें एक युवक दिखाई दिया। तभी देवनदी गंगा वहां आई और उन्होंने शांतनु को बताया कि ये नवयुवक ही आपका आठवां पुत्र देवव्रत है। इसने परशुराम से शस्त्रों की शिक्षा और देवगुरु बृहस्पति से नीति शास्त्र का ज्ञान प्राप्त किया है। इस तरह देवव्रत को उसके पिता के पास छोड़कर गंगा पुन: अपने लोक में लौट गई।
जब राजा शांतनु को हुआ सत्यवती से प्रेम
राजा शांतनु ने समय आने पर देवव्रत को अपना युवराज घोषित किया। एक बार जब राजा शांतनु कहीं जा रहे थे, तो उन्हें सत्यवती को देखा। उन्हें देखकर राजा शांतनु का मन विचलित हो गया। राजा शांतनु जब सत्यवती के पिता के पास विवाह के प्रस्ताव लेकर गए तो उन्होंने शर्त रखी कि सत्यवती का पुत्र ही हस्तिनापुर का राजा बनेगा। लेकिन राजा शांतनु ने ऐसा करने से इंकार कर दिया क्योंकि वे पहले ही देवव्रत को युवराज बना चुके थे। सत्यवती के वियोग में राजा शांतनु उदास रहने लगे।
देवव्रत का नाम ऐसे पड़ा भीष्म
राजा शांतनु के उदास रहने का कारण जब देवव्रत को पता चला तो वे सत्यवती के पिता से मिलने पहुंचे और उन्होंने वचन दिया कि रानी सत्यवती का पुत्र ही हस्तिनापुर का राजा बनेगा, साथ ही ये प्रतिज्ञा भी ली कि वे जीवनभर विवाह नहीं करेंगे और हस्तिनापुर की सेवा करते रहेंगे। जब ये बात राजा शांतनु को पता चली तो उन्होंने इस भीषण प्रतिज्ञा के चलते, देवव्रत को भीष्म नाम दिया।
चमत्कारों ने किया है अहित
16 Jan, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
जो कुछ सुना जाता है उस पर विश्वास न हो तो सुनने का विशेष अर्थ नहीं हो सकता. गहरे विश्वास के साथ सुनी हुई बात ही दिल को छू सकती है. विश्वास के साथ आवश्यक तत्व है आचरण. तत्व को सुन लिया उस पर विश्वास भी कर लिया पर आचरण नहीं किया तो कोई परिणाम नहीं आ सकेगा. भोजन सामने पड़ा है. मन में दृढ़ विश्वास है कि भोजन करने से भूख समाप्त हो जाएगी पर जब तक भोजन नहीं किया जाता है भूख कैसे मिटेगी. धर्म भी जब तक व्यक्ति के आचरण का विषय नहीं बनता है उससे जीवन में कोई परिवर्तन नहीं आ सकता। श्रुति श्रद्धा और आचरण तीनों हों फिर भी धर्म का असर न हो यह हो ही नहीं सकता।
श्रुति और श्रद्धा के साथ सम्यक आचरण हो जाए तो धर्म के प्रभाव की निश्चित गारंटी दी जा सकती है। स्थिति आज इससे भिन्न है। लोगों का विश्वास धर्म पर नहीं चमत्कार पर है। संतों के दर्शन करें उनसे मंगल पाठ सुने इससे संतति-लाभ हो जाए व्यापार में लाभ हो जाए वर्षों से उलझा हुआ काम सुलझ जाए तो संत अच्छे हैं अन्यथा उनके पास जाने की इच्छा नहीं होती। ऐसे चमत्कारों में मेरा कतई विश्वास नहीं है। इन चमत्कारों ने धर्म और अध्यात्म का जितना अहित किया है शायद ही किसी ने किया हो। चमत्कारों में ही अपनी साधना की सफलता समझने वाला साधक साधना के योग्य हो ही नहीं सकता। चमत्कार में मेरा विश्वास नहीं है इसलिए मैं आपको कोई दिव्य विभूति देने का दावा नहीं करता। मैं अति कल्पना भी नहीं करता कि हर मनुष्य में देवत्व जग जाए।
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (16 जनवरी 2023)
16 Jan, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- प्रत्येक कार्य में बाधा व विलम्ब से कष्ट होगा थकावट व बेचैनी बढ़ेगी।
वृष राशि :- कुटुम्ब की समस्याओं में समय बीतेगा धन का व्यय होगा समय तथा चिन्ता का नाश होगा।
मिथुन राशि :- स्त्री-वर्ग से हर्ष-उल्लास प्रेम प्रसंग सफलता से कार्य अनुकूल होगा।
कर्क राशि :- आर्थिक योजना पूर्ण होगी भाग्य का सितारा प्रबल होगा रुके कार्य बनेंगे।
सिंह राशि :- आर्थिक योजना पूर्ण होगी भाग्य का सितारा प्रबल होगा रुके कार्य बनेंगे।
कन्या राशि :- मान-प्रतिष्ठा प्रभुत्व वृद्धि नवीन योजना फलप्रद बनी रहेगी समय पर कार्य करें।
तुला राशि :- मनोबल उत्साह वर्धक होगा कार्यगति में सुधार होगा विरोधी पराजित होंगे।
वृश्चिक राशि :- लेनदेन के मामले में हानि होगी विरोधी तत्वों से परेशानी अवश्य बनेगी।
धनु राशि :- दैनिक सफलता के साधन सम्पन्न होंगे स्वाभाव में क्रोध व अशांति होगी।
मकर राशिः- दैनिक सम्पन्नता के साधन जुटायें आलस्य-प्रमाद से हानि अवश्य होगी।
कुंभ राशि :- बिगड़े हुये कार्य बनेंगे योजनायें फलीभूत होंगी तथा रुके कार्य बनेंगे।
मीन राशि :- स्त्री वर्ग से हर्ष-उल्लास चिन्ता कम होगी विशेष कार्य स्थगित रखें कार्य कुशलता से संतोष होगा।
क्यों जाते हैं लोग अमलनेर के मंगलदेव मंदिर, क्या होता है मंगलवार को वहां?
15 Jan, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
महाराष्ट्र में जलगांव के पास अमलनेर में स्थित श्री मंगल देव ग्रह का एक प्राचीन मंदिर है। यहां पर हर मंगलवार के दिन लाखों भक्तों मंगलदेव के दर्शन करने जाते हैं। आकिर ऐसा क्या है इस मंदिर में कि लागों श्रद्धालुओं की यहां भीड़ उमड़ती है। क्या खासियत है इस मंदिर की? आओ जानते हैं इस के बारे में।
सर्वजाति और वर्ग के लोग आते हैं हाजरी लगाने : कहते हैं कि इस मंदिर में मंगलवार को हर वर्ग और समाज के लोग आकर मंगल देव के समक्ष हाजरी लगाते हैं। खासकर मंगलिक दोष से पीड़ित लोग, राजनीतिज्ञ, किसान, ब्रोकर, पुलिस, सैनिक, सिविल इंजीनियर के साथ ही जिन लोगों को किसी भी प्रकार का कोई रोग है तो वे भी मंगलदेव के मंदिर में आकर उनकी कृपा प्राप्त करते हैं।
मांगलिक दोष निवारण की शांति हेतु होता है अभिषेक : अमलनेर में श्री मंगल देवता के स्थान को प्राचीन और जागृत स्थान माना जाता है। यहां पर पंचमुखी हनुमानजी के साथ ही भू माता के साथ मंगलदेव विराजमान हैं।मंदिर से जुड़े भक्तों का मानना है कि यह धरती पुत्र मंगल देव का जन्म स्थान है। यहां पर मंगलवार को लाखों भक्त पूजा और दर्शन करने आते हैं। इसी के साथ यहां पर मंगल की शांति हेतु महाभिषेक किया जाता है। जो लोग मांगलिक हैं या जिनका विवाह नहीं हो रहा है उनके लिए यहां पर मंगल की सामूहिक और विशेष पूजा होती है। कहते हैं कि यहां पर मंगलवार को आकर की गई मंगल पूजा और अभिषेक से शर्तिया मंगल दोष से मुक्ति मिल जाती है और जातक सुखी वैवाहिक जीवन यापन करता है।
मंगलदेव हैं इन लोगों के आराध्य देव : इसके अलावा यहां कि एक और खासियत यह है कि कृषि कार्य, राजनीति, पुलिस, सेना से जुड़े लोगों की भी यहां भीड़ उमड़ती है क्योंकि मंगल देव को युद्ध का देवता माना जाता है। कृषि कार्य भी मंगल से जुड़ा कार्य होने के कारण यहां काश्तकार यानी किसान लोग भी हाजरी लगाने आते हैं ताकि उनका कार्य सुचारू रूप से चलता रहे। मंगलदेवता इन सभी के आराध्यदेव हैं, इसीलिए इन ये सभी लोग यहां इसलिए हाजरी लगाते हैं क्योंकि उनपर मंगलदेव की कृपा बनी रहे।
ऋण और रोग मुक्ति के देव : मंगल देव सेहत संबंधी समस्या भी दूर करते हैं इसीलिए भी यहां पर हजारों लोग रोग और ऋण मुक्ति के लिए भी आते हैं। कहते हैं कि हमारे शरीर में दौड़ता खून मंगल का ही प्रतीक है और यदि खून खराब होता है तो कई तरह के रोग उत्पन्न होते हैं। ऐसे में यहां पर मंगल देव की कृपा से रोग मुक्ति का आशीर्वाद पाया जा सकता है।
हिंदू परंपरा में लड़कियां विदाई के दौरान क्यों निभाती हैं चावल फेंकने की रस्म
15 Jan, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में जन्म से ही कई सारे संस्कार और परंपराएं आरंभ हो जाती है जिनका पालन व्यक्ति को करना होता है विवाह भी इन्हीं संस्कारों में से एक है जो व्यक्ति को युवा अवस्था में निभाना होता है हमारे देश में शादी विवाह बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है और इस दौरान कई सारी रस्म और रिवाजों को भी निभाया जाता है जिसमें हल्दी, मेंहदी से लेकर कन्यादान और न जाने कितनी ही परंपराएं और रिवाज शामिल होते है
इन सभी को बेहद महत्वपूर्ण माना गया है वही लड़की की शादी में विदाई का भी एक समय होता है जो हर किसी के लिए बहुत भावुक करने वाला होता है और इस दौरान लड़कियों द्वारा चावल फेंकने की रस्म अदा की जाती है जिसे बहुत ही खास माना जाता है लेकिन बहुत ही कम लोगों को मालूम होगा कि विदाई के दौरान ये रस्म क्यों निभाई जाती है अगर आप भी इस रस्म की अहमियत नहीं जानते है तो आज हम आपको इसके बारे में बता रहे हैं तो आइए जानते है।
हम में से अधिकतर लोग यह जानते है कि चावल फेंकने की रस्म दुल्हन के डोली में बैठने से पहली की जाती है इसमें बिना पीछे देखे दुल्हन को पांच बार चावल फेंकने होते है चावल से जुड़ी इस रस्म को हिंदू धर्म में बहुत ही उपयोगी और महत्वपूर्ण माना जाता है यह रस्म इसलिए अदा की जाती है क्योंकि इसको धन का प्रतीक माना गया है धार्मिक तौर पर अगर देखा जाए तो चावल बहुत ही पवित्र होता है सभी शुभ व मांगलिक कार्यों में इसका प्रयोग किया जाता है अक्षत को सुख समृद्धि का कारक भी माना जाता है।
धार्मिक परंपराओं के अनुसार चावल फेंकने की इस रस्म को प्रार्थना का प्रतीक भी माना जाता है इसका अर्थ होता है कि भले ही कन्या का विवाह हो गया है लेकिन फिर भी वह अपने घरवालों के लिए प्रार्थना करती रहेगी कि उसका घर सुख समृद्धि और धन से हमेशा भरा रहे। ऐसा भी कहते है कि इस रस्म की अदाएगी मायके वालों को बुरी नजर से बचाती है। इस पवित्र रस्म का एक अर्थ यह भी होता है कि दुल्हन अपने माता पिता का धन्यवाद करती है वह इसलिए क्योंकि माता पिता ही है जो अपने बच्चों के लिए सबकुछ करते है ऐसा भी मान्यता है कि इस रस्म को करने से मायके में कभी भी अन्न की कमी नहीं रहती है।
क्या हुआ जब प्रभु श्रीराम की पतंग पहुंच गई इद्रलोक
15 Jan, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में मकर संक्रांति के पर्व को बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है इस दिन पूजा पाठ, स्नान दान और जाप का बहुत महत्व होता है मकर संक्रांति का त्योहार केवल दान पुण्य के लिए नहीं बल्कि पतंग उड़ाने के लिए भी जाना जाता है इस दिन पतंग उड़ाने की विशेष परंपरा होती है
इस दिन लोग दोस्तों, रिश्तेदारों के साथ जमकर पतंगबाजी करते है मगर बहुत कम ही लोग यह जानते होंगे की मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने का संबंध प्रभु श्रीराम से जुड़ा है धार्मिक कथाओं और मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने की परंपरा की शुरुआत प्रभु श्रीराम ने की थी, तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा इससे जुड़ी एक पौराणिक कथा बता रहे है तो आइए जानते है।
तमिल रामायण के अनुसार प्रभु श्रीराम ने कर संक्रांति के शुभ दिन पर पतंग उड़ाने की परंपरा का शुभारंभ किया था। कहा जाता है कि जब श्री राम ने पतंग उड़ाई थी तो वह सीधे स्वर्ग लोक पहुंच गई थी। स्वर्ग लोक में पतंग इंद्र देव के पुत्र जयंत की पत्नी को मिली। उनको पतंग बेहद पसंद आई और उस पतंग को उन्होंने अपने पास रख लिया उधर श्रीराम ने हनुमान जी को पतंग लाने के लिए भेजा। जब श्रीराम भक्त हनुमान ने जयंत की पत्नी से पतंग वापस मांगी तब उन्होंने श्रीराम के दर्शन की इच्छा जताई और कहा कि दर्शन के बाद ही वह पतंग वापस करेंगी।
उनकी इच्छा जानने के बाद श्रीराम ने कहा कि वह मेरे दर्शन चित्रकूट में कर सकती है हनुमान जी स्वर्ग लोक में जयंत की पत्नी को राम का आदेश दिया। जिसके बाद जयंत की पत्नी ने प्रभु राम की पतंग वापस की और तभी से मकर संक्रांति के दिन पतंग डड़ाने की परंपरा चली आ रही है इस पावन दिन पर स्नान दान, पूजा पाठ के अलावा पतंग उड़ाने से घर की दरिद्रता दूर हो जाती है और कई गुना पुण्य की प्राप्ति होती है।
मिथ्या और वास्तविक अहंकार
15 Jan, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मिथ्या अहंकार का अर्थ है इस शरीर को आत्मा मानना। जब कोई यह जान जाता है कि वह शरीर नहीं अपितु आत्मा है तो वह वास्तविक अहंकार को प्राप्त होता है। अहंकार तो रहता ही है। मिथ्या अहंकार की र्भत्सना की जाती है वास्तविक अहंकार की नहीं। वैदिक साहित्य में कहा गया है अहं ब्रह्मास्मि- मैं ब्रह्म हूं मैं आत्मा हूं। ‘मै हं’ ही आत्म भाव है और यह आत्म साक्षात्कार की मुक्त अवस्था में भी पाया जाता है। ‘मै हं’ का भाव ही अहंकार है लेकिन जब ‘ मै हं’ भाव को मिथ्या शरीर के लिए प्रयुक्त किया जाता है तो वह मिथ्या अहंकार होता है। जब इस आत्म भाव (स्वरूप) को वास्तविकता के लिए प्रयुक्त किया जाता है तो वह वास्तविक अहंकार होता है। ऐसे कुछ दार्शनिक हैं जो यह कहते हैं कि हमें अपना अहंकार त्यागना चाहिए। लेकिन हम अपने अहंकार को त्यागे कैसे? क्योंकि अहंकार का अर्थ है स्वरूप। लेकिन हमें मिथ्या देहात्मबुद्धि का त्याग करना ही होगा।
जन्म मृत्यु जरा तथा व्याधि को स्वीकार करने के कष्ट को समझना चाहिए। वैदिक ग्रन्थों में जन्म के अनेक वृत्तान्त है। श्रीमद्भागवत में जन्म से पूर्व की स्थिति माता के गर्भ में बालक के निवास उसके कष्ट आदि का सजीव वर्णन है। चूंकि हम भूल जाते हैं कि माता के गर्भ में हमें कितना कष्ट मिला है अतएवं हम जन्म तथा मृत्यु की पुनरावृत्ति का कोई हल नहीं निकाल पाते। इसी प्रकार मृत्यु के समय भी सभी प्रकार के कष्ट मिलते हैं जिनका उल्लेख प्रामाणिक शास्त्र में हुआ है। इनकी विवेचना की जानी चाहिए। जहां तक रोग तथा वृद्धावस्था का प्रश्न है सबको इनका व्यावहारिक अनुभव है। कोई भी रोगग्रस्त नहीं होना चाहता कोई भी बूढ़ा नहीं होना चाहता लेकिन इनसे बचा नहीं जा सकता। जब तक हम जन्म मृत्यु जरा तथा व्याधि के दुखों को देखते हुए इस भौतिक जीवन के प्रति निराशावादी दृष्टिकोण नहीं बना पाते तब तक आध्यात्मिक जीवन में प्रगति करने के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं रह जाता।
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (15 जनवरी 2023)
15 Jan, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- विशेष कार्य स्थगित रखें लेन-देन के मामले में हानि चिन्ता असमंजस रहेगा।
वृष राशि :- विवाद ग्रस्त होने से बचें उत्तम भावना क्लेश व हानि असमंजस की स्थिति रहेगी।
मिथुन राशि :- व्यग्रता असमंजस में रखे विषय व्यवस्था से बचने की चेष्ठा अवश्य करें।
कर्क राशि :- स्त्री से भोग-ऐश्वर्य की प्राप्ति तथा सुख-समृद्धि के साधन अवश्य ही बनेंगे।
सिंह राशि :- समय और धन नष्ट होगा क्लेश व अशांति विघटनकारी तत्वों से परेशानी बनेगी।
कन्या राशि :- नवीन योजना फलप्रद होगी भावनायें संवेदनशील बनी रहेंगी धैर्य रखकर कार्य करें।
तुला राशि :- धन का व्यर्थ व्यय होगा कार्य कुशलता से संतोष होगा मनोबल बनाये रखें।
वृश्चिक राशि :- भाग्य का सितारा साथ देगा समय अनुकूल नहीं कार्य स्थगित रखें।
धनु राशि :- अधिकारियों का समर्थन फलप्रद होगा व्यवसायिक क्षमता में वृद्धि होगी।
मकर राशिः- मान-प्रतिष्ठा बाल-बाल बचे कार्य कुशलता से संतोष होगा समय स्थिति का ध्यान रखें।
कुंभ राशि :- इष्ट मित्र सुख वर्धक होंगे तथा भाग्य का सितारा प्रबल अवश्य ही होगा।
मीन राशि :- मनोबल उत्साहवर्धक होगा कार्यकर्ता व कार्य कुशलता से संतोष होगा शांति रहेगी।
इस एक फूल को भगवान पर चढ़ाने से दूर होती हैं सभी समस्याएं
14 Jan, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
ज्योतिष में और वास्तु में पेड़ पौधों का बहुत ही विशेष स्थान रहा है. पूजा में फूलों का उपयोग बहुतायत में होता है, कुछ फूलों को विशेष देवता के निमित्त माना जाता है लेकिन कुछ पुष्प ऎसे भी होते हैं जो किसी भी देवी-देवता को चढ़ा देने से हर मनोकामना तुरंत पूरी होती है. कुछ फूल ऐसे होते हैं जिन्हें अगर देवताओं को चढ़ा दिया जाए तो पूजा तुरंत स्वीकार हो जाती है.
आइये जानते हैं ऎसे ही एक फूल के बारे में जो बहुत ही शुभदायक होता है.
हिन्दू धर्म में सभी देवी-देवताओं की पूजा के लिए अलग-अलग कर्मकांड और मंत्र बताए गए हैं. सच्चे मन और भक्ति से देवताओं को जो कुछ भी अर्पित किया जाता है, उसे वे स्वीकार कर लेते हैं. फिर भी कुछ विशेष फूल ऐसे होते हैं जिन्हें देवताओं को अर्पित करने पर पूजा तुरंत स्वीकार हो जाती है, इसी में एक फूल गेंदे फूल है जो बहुत ही विशेष है : -
ज्योतिष में गेंदे के फूल का महत्व
गेंदा पीले-केसरिया रंग का फूल होता है. इनमें डार्क मैरून कलर से लेकर लाइट यलो कलर तक कई तरह की किस्में मिलती है. इस फूल में कई पत्ते होते हैं जो दिखने में बहुत ही बारीक होते हैं. फूल में अनेक पत्तियाँ होने के कारण इसे हजारा के नाम से भी जाना जाता है. गेंदे के फूल के रंग के अनुसार अलग-अलग देवी-देवताओं को चढ़ाया जाता है. जानिए किस देवता को किस रंग के गेंदे का फूल चढ़ाना चाहिए.
अगर हम विष्णुजी या लक्ष्मीजी की पूजा कर रहे हैं तो गहरे पीले, केसरिया या केसरिया रंग के गेंदे के फूल चढ़ाने बहुत ही शुभ होते हैं. पूजा करते समय हल्के पीले रंग के गेंदे के फूल भगवान शिव और पार्वती को अर्पित करने चाहिए. इसी तरह गणेशजी, हनुमानजी और देवी की पूजा करते समय लाल या मैरून रंग या मिश्रित रंग के गेंदे के फूल चढ़ाने से सभी सुखों की प्राप्ति होती है.
पूजा के साथ-साथ आप इस फूल का इस्तेमाल अपने घर को सजाने एवं नकारात्मक ऊर्जा से मुक्त करने के लिए भी कर सकते हैं. चाहें तो इस पौधे को अपने घर के बगीचे में भी उगा सकते हैं. इसमें उगने वाले फूल आपके घर की शोभा बढ़ाएंगे और इसके द्वारा घर में शुभता का आगमन होगा. इस फूल को अपने घर में कहीं भी उगा सकते हैं. इसे आप जहां भी रखेंगे, यह उस जगह की शोभा बढ़ा देगा तथा शुभता का वास होगा.
हल्दी की एक गांठ करेगी घर में पैसों की बरसात, जानिए अचूक टोटका
14 Jan, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भारतीय मसालों में हल्दी को महत्वपूर्ण माना गया है और यह हर घर की रसोई में बड़ी आसानी से मिल जाती है इसका इस्तेमाल भोजन में स्वाद बढ़ाने के लिए किया जाता है वही सेहत के लिहाज से भी हल्दी बड़ी उपयोगी मानी जाती है वही वास्तुशास्त्र और ज्योतिषशास्त्र में हल्दी से जुड़े कई टोटके और उपाय बताए गए है
जिन्हें करने से व्यक्ति रातोंरात मालामाल हो सकता है और उसके कुंडली के भी दोष दूर हो जाते है हल्दी का टोटका नजरदोष को भी दूर करने की क्षमता रखता है तो आज हम आपको हल्दी से जुड़े ऐसे प्रभावी उपाय बता रहे है जिसे करने से घर में पैसों की बरसात होने लगेगी तो आइए जानते है हल्दी से जुड़ा टोटका।
हल्दी से जुड़ा चमत्कारी टोटका-
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हल्दी का प्रयोग पूजा पाठ आदि शुभ कार्यों में किया जाता है और इसे पवित्र भी माना गया है ऐसे में हल्दी की गांठ पर लाल वस्त्र बांधकर इसे घर में धन रखने वाले स्थान या तिजोरी में रख दें और रोजाना सुबह शाम इसकी पूजा करें मान्यता है कि इस उपाय से आर्थिक स्थिति में सुधार होने लगता है और बरकत भी बनी रहती है। अगर किसी जातक की कुंडली में गुरु ग्रह की दशा ठीक नहीं है तो ऐसे में गुरुवार और शुक्रवार के दिन हल्दी और चने का दान करना उत्तम माना जाता है इस उपाय को करने से कुंडली में गुरु की स्थिति मजबूत होती है जिससे वह शुभ प्रभाव डालता है इसके अलावा लक्ष्मी और श्री हरि की पूजा करने से भी गुरु की कृपा प्राप्त होती है।
अगर कार्यों में सफलता नहीं मिल रही है और आए दिन काम काज में बांधाएं आ रही है तो ऐसे में आप भगवान श्री गणेश को हल्दी की माला अर्पित करें इससे कार्य बिना किसी बाधा के पूर्ण हो जाएंगे और परेशानियां भी दूर रहती है जीवन में सुख शांति और समृद्धि के लिए रोजाना हल्दी का टीका लगाना उत्तम होता है ऐसा करने से हर परेशानी आपसे दूर रहेगी। अगर आप शीघ्र विवाह की इच्छा रखते है तो रोजाना माता लक्ष्मी के संग भगवान विष्णु को एक चुटकी हल्दी अर्पित करें इससे विवाह के योग बनते है और आने वाली सभी अड़चने भी दूर रहती है।
क्या होती है गुरु दक्षिणा और सनातन धर्म में क्या है इसका महत्व
14 Jan, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में गुरु को ईश्वर के बराबर माना गया है क्योंकि गुरु ही अपने शिष्य को परमात्मा तक जाने का मार्ग दिखाता है हिंदू धर्म के कई ग्रंथों और पुराणों में गुरु शिष्य के संबंध के बारे में विस्तार से बताया गया है गुरु और शिष्य की परंपरा वैदिक काल से चली आ रही है
गुरु द्वारा अपने शिष्यों को शिक्षा व ज्ञान प्रदान की जाती है जिससे नई पीढ़ी उस ज्ञान को प्राप्त कर विद्वान और श्रेष्ठ बनती है फिर इसके बाद वे इसे औरो तक पहुंचाते है गुरु द्वारा अपने शिष्य को ज्ञान प्रदान करने के बदले में शिष्य गुरु को गुरुदक्षिणा देते है जिस पर आज हम अपने इस लेख द्वारा चर्चा कर रहे है।
आध्यात्मिक और शास्त्र अनुसार गुरु वो होते है जो अपने शिष्य को अंधकार से प्रकाश यानी की ज्ञान की ओर ले जाते है यही कारण है कि हिंदू संस्कृति में गुरु को ईश्वर तुल्य कहा गया है गुरु का अर्थ वेद और गीता पुराणों में विस्तापूर्वक वर्णन किया गया है वही गुरु के ज्ञान की तरह ही सनातन धर्म में गुरु दक्षिणा का भी विशेष महत्व होता है वैदिक और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शिष्यों को गुरु द्वारा गुरुकुल में शिक्षा प्रदान की जाती थी
शिक्षा ग्रहण करने के बाद जब अंत में शिष्यों के घर वापसी का समय आता था तब गुरु अपने शिष्य से गुरु दक्षिणा मांगते थे यहां गुरु दक्षिणा अर्थ धन दौलत आदि नहीं है बल्कि गुरु अपनी इच्छा से अपने शिष्य से गुरु दक्षिणा के रूप में कुछ भी मांगते थे। वही अपने गुरु के आदेशों का पालन करना शिष्य का परम धर्म और कर्तव्य होता है ऐसे में गुरु द्वारा मांगी जाने वाली गुरु दक्षिणा शिष्य को प्रदान करनी ही पड़ती थी इसे ही शिष्य की असली परीक्षा माना जाता था।
श्रद्धा के मुताबिक पूजा
14 Jan, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हरेक व्यक्ति में चाहे वह जैसा भी हो एक विशेष प्रकार की श्रद्धा पाई जाती है। लेकिन उसके द्वारा अर्जित स्वभाव के अनुसार उनकी श्रद्धा उत्तम (सतोगुणी) राजस (रजोगुणी) अथवा तामसी कहलाती है। अपनी श्रद्धा के अनुसार ही वह कतिपय लोगों से संगति करता है। अब वास्तविक तथ्य तो यह है कि जैसा कि गीता के 15 वें अध्याय में कहा गया है कि प्रत्येक जीव परमेर का अंश है। अतएव वह मूलत: इन समस्त गुणों से परे होता है।
लेकिन जब वह भगवान के साथ अपने सम्बन्ध को भूल जाता है और बद्ध जीवन में भौतिक प्रकृति के संसर्ग में आता है तो वह विभिन्न प्रकार की प्रकृति के साथ संगति करके अपना स्थान बनाता है। इस प्रकार से प्राप्त कृत्रिम श्रद्धा तथा अस्तित्व मात्र भौतिक होते हैं। भले ही कोई किसी धारणा या देहात्मबोध द्वारा प्रेरित हो लेकिन मूलत: वह निगरुण या दिव्य होता है। अतएव भगवान के साथ अपना सम्बन्ध फिर से प्राप्त करने के लिए उसे भौतिक कल्मष से शुद्ध होना पड़ता है। यही एकमात्र मार्ग है निर्भय होकर कृष्णभावनामृत में लौटने का।
श्रद्धा मूलत: सतोगुण से उत्पन्न होती है। मनुष्य की श्रद्धा किसी देवता किसी कृत्रिम ईश्वर या मनोधर्म में हो सकती है लेकिन प्रबल श्रद्धा सात्त्विक कार्यो से उत्पन्न होती है। किंतु भौतिक बद्धजीवन में कोई भी कार्य शुद्ध नहीं होता। वे मिश्रित होते हैं। वे शुद्ध सात्त्विक नहीं होते। शुद्ध सत्त्व दिव्य होता है। इसमें रहकर मनुष्य भगवान के स्वभाव को समझ सकता है। जब तक श्रद्धा पूर्णतया सात्त्विक नहीं होती वह प्रकृति के किसी भी गुण से दूषित हो सकती है। ये दूषित गुण हृदय तक फैल जाते हैं। अत: किसी विशेष गुण के सम्पर्क में रहकर हृदय जिस स्थिति में होता है उसी के अनुसार श्रद्धा होती है। यदि किसी का हृदय सतोगुण में स्थित है तो उसकी श्रद्धा भी सतोगुणी है। यदि हृदय रजोगुण में स्थित है तो उसकी श्रद्धा रजोगुणी और तमोगुण में स्थित है तो उसकी श्रद्धा तमोगुणी होती है। पूजा इसीके आधार पर होती है।
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (14 जनवरी 2023)
14 Jan, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- कुटुम्ब की समस्याओं में समय बीतेगा धन का व्यय होगा मन उद्विघ्न रहेगा।
वृष राशि :- मानसिक बेचैनी क्लेश व अशांति के योग बनेंगे तथा कार्य अवश्य बढ़ेगा।
मिथुन राशि :- व्यर्थ भ्रमण से धन हानि आरोप क्लेश से बचें तथा स्थिति संदिग्ध रहेगी।
कर्क राशि :- परिश्रम से कुछ सफलता मिलेगी अर्थ-व्यवस्था कुछ अनुकूल रहेगी ध्यान दें।
सिंह राशि :- मनोबल उत्साहवर्धक होगा कार्यगति में सुधार होगा कार्य आनंद से होगा।
कन्या राशि :- धन लाभ आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा व्यक्तिगत मान-प्रतिष्ठा बढ़ेगी।
तुला राशि :- इष्ट मित्र सुखवर्धक होंगे सामाजिक कार्य में मान-प्रतिष्ठा बढ़ेगी।
वृश्चिक राशि :- भाग्य का सितारा प्रबल होगा कार्यगति में सुधार होगा बिगड़े कार्य बनेंगे।
धनु राशि :- कुटुम्ब में धन का व्यय मानसिक व्यग्रता स्वाभाव में बेचैनी रहेगी।
मकर राशिः- चिन्ता दूर होगी सफलता के साधन जुटायेंगे रुके कार्य अवश्य ही बनेंगे।
कुंभ राशि :- स्त्री वर्ग से हर्ष-उल्लास कार्यगति में अनुकूलता अवश्य ही बनेगी चिन्ता कम होगी।
मीन राशि :- अधिकारियों से तनाव स्थिगित रखें मित्रों से विवाद तथा धोखा होगा।
महात्मा विदुर ने बताया है ईश्वर प्राप्ति का सर्वोत्तम मार्ग, आज की विदुर नीति
13 Jan, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
महाभारत काल के कई ऐसे पात्र है जिन्हें आज भी याद किया जाता है इन्हीं प्रमुख पात्रों में से एक महात्मा विदुर भी है इनका सम्मान मित्र तो क्या शत्रु भी करते हैं महाभारत काल के सबसे अधिक विद्वानों में इनका नाम शामिल है ये बेहद न्यायप्रिय माने जाते थे इनकी शिक्षाएं आज भी उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी महाभारत काल में हुआ करती थी इनकी नीतियों को जो भी अपने जीवन में उतार लेता है
वह सफल और सरल जीवन जीने की ओर अग्रसर हो जाता है महात्मा विदुर की धर्म शीलता को देखते हुए उनहें धर्मराज का अवतार भी माना गया है विदुर हमेशा से ही सत्यवादी रहे महात्मा विदुर ने अपना पूरा जीवन सत्स के राह को समर्पित किया था उनकी यही खूब उन्हें प्रशंसा और सम्मान का पात्र बनाती है महात्मा विदुर और हस्तिनापुर नरेश धृतराष्ट्र के बीच होने वाली वार्तालाप को ही विदुर नीति के नाम से जाना जाता है विदुर नीति में ईश्वर प्राप्ति का भी सरल और सर्वोत्तम मार्ग बताया गया है तो आज हम इसी पर चर्चा कर रहे है तो आइए जानते है।
विदुर जी का सम्मान तो भगवान श्रीकृष्ण भी करते थे एक बार जब हस्तिनापुर नरेश धृतराष्ट्र ने विदुर जी से पूछा की महाभारत के युद्ध का परिणाम क्या होगा। तब विदुर ही पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने कहा कि यह युद्ध केवल विनाश लेकर आएगा इसलिए हे राजन इसे रोक सको तो रोक लो नहीं तो इतिहास कभी क्षमा नहीं करेगा।
विदुर नीति अनुसार ईश्वर प्राप्ति का सबसे उत्तम उपाय सत्य का मार्ग है जिस पर चलकर मनुष्य ईश्वर के दर्शन कर सकता है और स्वर्गगामी होता है। महात्मा विदुर अपनी नीति में कहते हैं कि जिस तरह समुद्र को पार करने के लिए एक नाव की जरूरत होती है ठीक उसी तरह से स्वर्ग की प्राप्ति के लिए मनुष्य को सत्य मार्ग के सिवाए कोई दूसरा मार्ग नहीं है। विदुर नीति अनुसार जो मनुष्य इस बात को नहीं समझता है उसका सम्पूर्ण जीवन व्यर्थ हो जाता है ऐसे मनुष्य का चित सदैव ही भटकता रहता है उसे कहीं पर भी शांति की प्राप्ति नहीं होती है और न ही ये लोग ईश्वर से खुद को जोड़ पाते है।