धर्म एवं ज्योतिष
कामधेनु गाय देती है शुभ फल
6 Mar, 2025 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हमारे जीवन में वास्तु शास्त्र का महत्व काफी ज्यादा बताया गया है। कहा जाता है अगर किसी भी कार्य को करने से पहले या फिर करने के दौरान वास्तु शास्त्र में बताये गए नियमों का पालन किया जाता है तो इसके परिणाम काफी शुभ और सकारात्मक होते हैं. वहीं, जब इन नियमों को नजरअंदाज किया जाता है तो इसके परिणाम भी उतने ही बुरे हो सकते हैं। सनातन धर्म के अनुसार कामधेनु गाय में देवी-देवताओं का निवास होता है। इसे घर पर रखने से इंसान की हर मनोकामना पूरी होती है। वास्तु शास्त्र की अगर मानें तो जब आप इसे रखते हैं तो इससे सुख समृद्धि का वास आपके घर पर होता है.
किस जगह रखें कामधेनु की मूर्ति?
वास्तु शास्त्र की अगर मानें तो आपको कामधेनु गाय की मूर्ति को अपने घर के ईशान कोण में रखना चाहिए। इसे सबसे ज्यादा शुभ माना जाता है। आप अगर चाहें तो कामधेनु गाय की मूर्ति को घर के पूजास्थल या फिर मुख्य द्वार पर रख सकते हैं। अगर आप मूर्ति नहीं रख पा रहे हैं तो ऐसे में तस्वीर लगाना भी काफी शुभ माना जाता है.
अगर आप अपने घर पर कामधेनु गाय की मूर्ति स्थापित करने जा रहे हैं तो इस बात का ख्याल रखें कि वह सोना, चांदी, पीतल, तांबे या फिर मार्बल की बनी हुई हो। आप अगर चाहें तो चीनी मिटटी से बनी मूर्ति भी अपने घर पर रख सकते हैं। अगर आप अपने घर में सही जगह पर कामधेनु गाय की मूर्ति स्थापित करते हैं तो इससे आपको वास्तु दोषों से छुटकारा मिल सकता है। केवल यहीं नहीं, जब आप इसे अपने घर पर रखना शुरू कर देते हैं तो आपकी आर्थिक स्थिति भी बेहतर हो जाती है।
विजेता बनना है तो धारण करें वैजयंती माला
6 Mar, 2025 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
धर्म में सफल होने के लिए पूजा पाठ और हवन के साथ ही कई अन्य उपाय भी है। धर्म शास्त्रों के अनुसार
वैजयंती माला- एक ऐसी माला जो सभी कार्यों में विजय दिला सकती है। इसका प्रयोग भगवान श्री कृष्ण माता दुर्गा, काली और दूसरे कई देवता करते थे। रत्न के जानकार मानते हैं कि अगर इस माला को सही विधि-विधान के साथ प्राण प्रतिष्ठित करके धारण किया जाए तो इसके परिणाम आपको तत्काल मिल सकते हैं। कोई भी ऐसा कार्य नहीं है जो जिसमें रुकावट आएगी।
वैजयंती माला को धारण करने वाला इंद्र के समान सारे वस्त्रों को जीतने वाला बन जाता है और श्री कृष्ण के समान सभी को मोहित करने वाला बन जाता है और महर्षि नारद के समान विद्वान बन जाता है। इस सिद्ध माला को धारण करने वाला हर जगह विजय प्राप्त करता है। उसके सर्व कार्य अपने आप बनते चले जाते हैं । यदि किसी काम में लंबे समय से बाधा आ रही है तो वह काम आसानी से बन जाता है। यह माला शत्रुओं का नाश भी करती है। वैजयंती माला को सिद्ध करने के लिए इसी विशेषज्ञ की सलाह लेनी चाहिए। पूरा फल पाने के लिए जरूरी है कि माला सही विधि-विधान से प्राण प्रतिष्ठा के बाद ही पहनी चाहिए।
इस तरह के भक्तों के पास रहते हैं भगवान
6 Mar, 2025 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
किसी भी वस्तु की चेतनता की पहचान इच्छा, क्रिया अथवा अनुभूति के होने से होती है। अगर किसी वस्तु में ये तीनों नहीं होते हैं, तो उसे जड़ वस्तु कहते हैं और इन तीनों के होने से उसे चेतन वस्तु कहते हैं। मनुष्य में इन तीनों गुणओं के होने से उसे चेतन कहते हैं। मनुष्य के मृत शरीर में इनके न होने से उसे अचेतन अथवा जड़ कहते हैं।
प्रश्न यह उठता है कि जो मनुष्य अभी-अभी इच्छा, क्रिया अथवा अनुभूति कर रहा था और चेतन कहला रहा था, वही मनुष्य इनके न रहने से मृत क्यों घोषित कर दिया गया जबकि वह सशरीर हमारे सामने पड़ा हुआ है? आमतौर पर एक डॉक्टर बोलेगा कि इस शरीर में प्राण नहीं हैं। शास्त्रीय भाषा में, जब तक मानव शरीर में आत्मा रहती है, उसमें चेतनता रहती है। उसमें इच्छा, क्रिया व अनुभूति रहती है। आत्मा के चले जाने से वही मानव शरीर इच्छा, क्रिया व अनुभूति रहित हो जाता है, जिसे आमतौर पर मृत कहा जाता है।
शास्त्रों के अनुसार स्वरूप से आत्मा सच्चिदानन्दमय होती है। सच्चिदानन्द अर्थात सत्+चित्+आनंद। संस्कृत में सत् का अर्थ होता है नित्य जीवन अर्थात् वह जीवन जिसमें मृत्यु नहीं है, चित् का अर्थ होता है ज्ञान जिसमें कुछ भी अज्ञान नहीं है और आनंद का अर्थ होता है नित्य सुख जिसमें दुःख का आभास मात्र नहीं है। यही कारण है कि कोई मनुष्य मरना नहीं चाहता, कोई मूर्ख नहीं कहलवाना चाहता और कोई भी किसी भी प्रकार का दुःख नहीं चाहता।
अब नित्य जीवन, नित्य आनंद, नित्य ज्ञान कहां से मिलेगा? जैसे सोना पाने के लिए सुनार के पास जाना पड़ता है, लोहा पाने के लिए लोहार के पास, इसी प्रकार नित्य जीवन-ज्ञान-आनंद पाने के लिए भगवान के पास जाना पड़ेगा क्योंकि एकमात्र वही हैं जिनके पास ये तीनों वस्तुएं असीम मात्रा में हैं। प्रश्न हो सकता है कि बताओ भगवान मिलेंगे कहां? ये भी एक बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न है। कोई कहता है भगवान कण-कण में हैं, कोई कहता है कि भगवान मंदिर में हैं, कोई कहता है कि भगवान तो हृदय में हैं, कोई कहता है कि भगवान तो पर्वत की गुफा में, नदी में, प्रकृति में वगैरह।
वैसे जिस व्यक्ति के बारे में पता करना हो कि वह कहां रहता है, अगर वह स्वयं ही अपना पता बताए तो उससे बेहतर उत्तर कोई नहीं हो सकता। उक्त प्रश्न के उत्तर में भगवान कहते हैं कि मैं वहीं रहता हूं, जहां मेरा शुद्ध भक्त होता है। चूंकि हम सब के मूल में जो तीन इच्छाएं- नित्य जीवन, नित्य ज्ञान व नित्य आनंद हैं, वे केवल भगवान ही पूरी कर सकते हैं, कोई और नहीं। इसलिए हमें उन तक पहुंचने की चेष्टा तो करनी ही चाहिए।
भगवान स्वयं बता रहे हैं कि वह अपने शुद्ध भक्त के पास रहते हैं। अतः हमें ज्यादा नहीं सोचना चाहिए और तुरंत ऐसे भक्त की खोज करनी चाहिए जिसके पास जाने से, जिसकी बात मानने से हमें भगवद्प्राप्ति का मार्ग मिल जाए। साथ ही हमें यह सावधानी भी बरतनी चाहिए कि कहीं वह भगवद्-भक्त के वेश में ढोंगी न हो। स्कंद पुराण के अनुसार भगवान शिव माता पार्वती से कहते हैं कि कलियुग में ऐसे गुरु बहुत मिलेंगे जो शिष्य का सब कुछ हर लेते हैं, परंतु शिष्य का संताप हर कर उसे सद्माीर्ग पर ले आए ऐसा गुरु विरला ही मिलेगा।
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
6 Mar, 2025 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- मान-प्रतिष्ठा बाल-बाल बचे, कार्य व्यवसाय गति उत्तम होगी, हर्ष होगा।
वृष राशि :- धन हानि के योग बनेंगे, नवीन मैत्री-मंत्रणा अवश्य ही प्राप्त होगी।
मिथुन राशि :- इष्ट मित्र सहायक रहेंगे, व्यवसायिक क्षमता में वृद्धि होगी, कार्य अवश्य होंगे।
कर्क राशि :- भाग्य का सितारा प्रबल होगा, बिगड़े कार्य अवश्य ही बनेंगे ध्यान दें।
सिंह राशि :- इष्ट मित्र सुखवर्धक होंगे, कुटुम्ब की समस्यायें सुलझेंगे, समय का ध्यान रखें।
कन्या राशि :- भावनायें संवेदनशील रहें तथा रुके कार्य बनेंगे, सोचे कार्यों पर ध्यान दें।
तुला राशि :- समय अनुकूल नहीं स्वास्थ्य का ध्यान रखें, विरोधी तत्व परेशान करेंगे।
वृश्चिक राशि :- स्त्री शरीर कष्ट, मानसिक बेचैनी, मन में उद्विघ्नता अवश्य ही बनेगी।
धनु राशि :- आशानुकूल सफलता, स्थिति में सुधार तथा व्यवसाय गति उत्तम होगी।
मकर राशि :- धन का व्यर्थ व्यय होगा, मानसिक उद्विघ्नता हानिप्रद होगी ध्यान रखें।
कुंभ राशि :- इष्ट मित्रों से सहयोग, कार्य बनेंगे, कार्यगति अनुकूल अवश्य होगी।
मीन राशि :- भाग्य का सितारा प्रबल होगा, कार्य अवश्य बनेंगे ध्यान दें।
कब और कहां लगेगा अगला कुंभ मेला? जानें हर 3 साल में ही क्यों होता है इस पर्व का आयोजन?, बड़ी-बड़ी हस्तियों ने लगाई त्रिवेणी संगम में डुबकी
5 Mar, 2025 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
महाकुंभ मेला, जो दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में से एक माना जाता है, इस बार 2025 में उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में आयोजित किया गया. 45 दिनों तक चला यह भव्य आयोजन 26 फरवरी 2025, दिन बुधवार को संपन्न हुआ और अपनी विशालता के साथ एक नया रिकॉर्ड भी स्थापित किया. इस मेला में लगभग 66 करोड़ श्रद्धालुओं ने पवित्र त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाई. यह संख्या अमेरिका की कुल आबादी से भी ज्यादा थी. इस आयोजन ने न सिर्फ भारतीय श्रद्धालुओं को आकर्षित किया, बल्कि दुनियाभर से लोग यहां आए थे. अब, जब महाकुंभ 2025 समाप्त हो चुका है, तो अगला कुंभ मेला कब और कहां होगा, यह सवाल लोगों के मन में उठ रहा है.
अगला कुंभ मेला कब होगा?
कुंभ मेला भारतीय संस्कृति का एक अहम हिस्सा है, जो चार प्रमुख स्थानों – प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में आयोजित किया जाता है. अगला कुंभ मेला 2027 में महाराष्ट्र के नासिक में आयोजित होगा. यह आयोजन 17 जुलाई से 17 अगस्त तक चलेगा. नासिक में होने वाला यह मेला त्र्यंबकेश्वर के पास स्थित होगा, जो गोदावरी नदी के किनारे बसा हुआ है. यह स्थल पवित्र त्र्यंबकेश्वर शिव मंदिर के लिए प्रसिद्ध है, जो भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है.
महाकुंभ मेला, जो दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में से एक माना जाता है, इस बार 2025 में उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में आयोजित किया गया. 45 दिनों तक चला यह भव्य आयोजन 26 फरवरी 2025, दिन बुधवार को संपन्न हुआ और अपनी विशालता के साथ एक नया रिकॉर्ड भी स्थापित किया. इस मेला में लगभग 66 करोड़ श्रद्धालुओं ने पवित्र त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाई. यह संख्या अमेरिका की कुल आबादी से भी ज्यादा थी. इस आयोजन ने न सिर्फ भारतीय श्रद्धालुओं को आकर्षित किया, बल्कि दुनियाभर से लोग यहां आए थे. अब, जब महाकुंभ 2025 समाप्त हो चुका है, तो अगला कुंभ मेला कब और कहां होगा, यह सवाल लोगों के मन में उठ रहा है. आइए जानते हैं इस विषय में भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा से.
अगला कुंभ मेला कब होगा?
कुंभ मेला भारतीय संस्कृति का एक अहम हिस्सा है, जो चार प्रमुख स्थानों – प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में आयोजित किया जाता है. अगला कुंभ मेला 2027 में महाराष्ट्र के नासिक में आयोजित होगा. यह आयोजन 17 जुलाई से 17 अगस्त तक चलेगा. नासिक में होने वाला यह मेला त्र्यंबकेश्वर के पास स्थित होगा, जो गोदावरी नदी के किनारे बसा हुआ है. यह स्थल पवित्र त्र्यंबकेश्वर शिव मंदिर के लिए प्रसिद्ध है, जो भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है.
कुंभ मेला हर तीन साल में क्यों होता है?
कुंभ मेला एक विशेष धार्मिक आयोजन है जो हर तीन साल में एक शहर में आयोजित होता है. इसे चार प्रमुख स्थानों पर मनाया जाता है – प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन. इन शहरों में हर चार साल में एक कुंभ मेला आयोजित होता है, जबकि हर छह साल में अर्ध कुंभ मेला और हर बारह साल में पूर्ण कुंभ मेला आयोजित किया जाता है. महाकुंभ मेला, जो हाल ही में संपन्न हुआ था, 12 सालों में एक बार आयोजित होता है और इसे 144 साल में एक बार मिलने वाली विशेष धार्मिक घटना माना जाता है.
महाकुंभ मेला 2025 की विशेषताएं
महाकुंभ मेला 2025 ने अपनी विशालता और आकर्षण के कारण पूरी दुनिया का ध्यान आकर्षित किया. इस मेले में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, और अन्य प्रमुख हस्तियों के साथ-साथ बॉलीवुड के कई स्टार्स भी शामिल हुए थे. अक्षय कुमार, कैटरीना कैफ, विक्की कौशल और क्रिस मार्टिन जैसी मशहूर हस्तियां इस आयोजन का हिस्सा बनीं. इसके अलावा, 77 देशों के 118 राजनयिकों ने भी इस धार्मिक अवसर पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई, जो इस मेले की वैश्विक महत्वता को दर्शाता है.
होलिका दहन वाले दिन क्यों लगाते हैं उबटन? आग में जलाते हैं मैल, जानें महत्व, किन सामग्रियों का करें इस्तेमाल
5 Mar, 2025 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
इस साल होलिका दहन 13 मार्च गुरुवार के दिन है. होलिका दहन के अवसर पर लोग उबटन लगाते हैं. उबटन को जहां सुंदरता में सहायक माना जाता है, वहीं इसका संबंध ग्रहों से भी होता है. उबटन लगाने से आपकी त्वचा स्वस्थ्य रहती है, वहीं ग्रहों का दुष्प्रभाव भी दूर हो सकता है. पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार में होलिका दहन पर परिवार के सभी सदस्य उबटन लगाते हैं. फिर शरीर से उतारे गए उबटन या मैल को होलिका दहन के समय आग में डाल देते हैं. यह काम काफी समय से होता आ रहा है. होलिका दहन पर उबटन क्यों लगाते हैं? शरीर से उतारे गए उबटन को आग में क्यों डालते हैं? उबटन में कौन-कौन सी सामग्री डाली जाती है?
होलिका दहन पर क्यों लगाते हैं उबटन?
होलिका दहन के दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक मानते हैं. इस दिन भगवान विष्णु की कृपा से भक्त प्रह्लाद के प्राणों की रक्षा हुई थी और उनको जलाने की कोशिश करने वाली होलिका आग में चलकर मर गई थी. होलिका राक्षसराज हिरण्यकश्यप की बहन थी. होलिका दहन को बुराई का नाश करने वाला माना जाता है, इस वजह से इस दिन शरीर की बुराइयों को दूर करने के लिए उबटन लगाते हैं.
होलिका की आग में जलाते हैं शरीर का उतरा उबटन
होलिका दहन को शरीर में उबटन लगाकर उतार लिया जाता है. फिर उसे ले जाकर होलिका की आग में डाल देते हैं. होलिका के साथ ही शरीर का उतरा हुआ उबटन भी जलकर राख हो जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शरीर का उतरा उबटन होलिका की अग्नि में जलाने से रोग और ग्रह दोष दूर हो जाते हैं. उबटन लगाने से शरीर की नकारात्मकता और दोष भी निकलते हैं, तो आग में जलकर खत्म हो जाते हैं.
कैसे बनाते हैं होलिका दहन का उबटन?
होलिका दहन के दिन सरसों को पीसकर उबटन तैयार किया जाता है. सरसों के पेस्ट में पानी,
सरसों का तेल और हल्दी मिलाते हैं. इससे उबटन बनाकर शरीर पर लगाते हैं. होलिका दहन की शाम या दोपहर में उबटन लगाकर उसके उतारे गए हिस्से को एक जगह रख लेते हैं. होलिका दहन के समय उसे लेजाकर आग में डाल देते हैं.
उबटन का ग्रहों से संबंध
उबटन में हल्दी का संबंध बृहस्पति, तेल का शनि, पानी का संबंध चंद्रमा और शुक्र से होता है. ऐसे में जब आप उबटन लगाते हैं तो इन ग्रहों से जुड़े दोष भी दूर होते हैं और उनका शुभ प्रभाव जीवन में होने लगता है. इनके शुभ प्रभाव से सुख, समृद्धि बढ़ती है, रोग, दोष और दरिद्रता दूर होती है.
इस शुभ योग में रखा जाएगा प्रदोष व्रत, ऐसे करें पूजा, पूरी होगी हर इच्छा, मिलेगी सब रोगों से मुक्ति!
5 Mar, 2025 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में प्रदोष व्रत बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है. साल के हर महीने में प्रदोष का व्रत रखा जाता है. प्रदोष का व्रत भगवान शंकर को समर्पित होता है. ये व्रत हर महीने की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है. प्रदोष व्रत के दिन भगवान शंकर और माता पार्वती की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और उपवास भी उनके निमित्त रखा जाता है.
कब रखा जाएगा व्रत
धार्मिक मान्यता के अनुसार, प्रदोष का व्रत रखने से जीवन में समस्त दुखों का नाश होता है और साथ ही जीवन में सुख, समृद्धि और खुशियों का आगमन होता है. पंचांग के अनुसार, फागुन माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष का व्रत रखा जाएगा. तो चलिए जानते हैं, कब है प्रदोष व्रत, क्या है सही तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
अयोध्या के ज्योतिष पंडित कल्कि राम बताते हैं कि पंचांग के मुताबिक फागुन माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि की शुरुआत 11 मार्च को सुबह 8:13 पर होगी और 12 मार्च को सुबह 9:11 पर खत्म होगी. ऐसे में प्रदोष काल में पूजा मुहूर्त को ध्यान में रखते हुए 11 मार्च, दिन मंगलवार को प्रदोष का व्रत रखा जाएगा, जिसमें प्रदोष काल की पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 6:27 से लेकर रात 8:53 तक रहेगा. इसके अलावा, ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक प्रदोष व्रत के दिन कई दुर्लभ योगों का निर्माण भी हो रहा है, जिसमें इस दिन सुकर्मा योग के साथ सर्वार्थ सिद्धि योग भी बन रहा है.
ऐसे करें पूजा, मिलेगा पूरा फल
प्रदोष व्रत के दिन पूजन सामग्री में बेलपत्र, दही, शहद, कच्चा दूध, भांग, धतूरा, गाय का घी, दीपक, रुई-बत्ती, दूध से बनी मिठाई, आरती के लिए थाली, प्रदोष व्रत कथा की पुस्तक समेत पूजन की सभी सामग्री को एकत्रित कर विधि-विधान पूर्वक माता पार्वती और भगवान शंकर की पूजा-अर्चना करनी चाहिए. पौराणिक मान्यता के अनुसार, कहा जाता है कि प्रदोष का व्रत करने से समस्त रोगों से भी मुक्ति मिलती है और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं
होली पर इस बार चंद्र ग्रहण के साथ भद्रा का भी साया, इन 4 राशि वाले रहें सावधान, हो सकता है भयंकर नुकसान
5 Mar, 2025 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
होली हिंदू धर्म का सबसे बड़ा पर्व माना जाता है और बच्चे, बुजुर्ग सभी इस पर्व का बेसब्री से इंतजार करते हैं. होली का पर्व दो दिन मनाया जाता है, पहले दिन होलिका दहन किया जाता है और दूसरे दिन रंगो वाली होली खेलसी जाती है. लेकिन इस बार होलिका दहन पर भद्रा तो रंगों वाली होली पर चंद्र ग्रहण लगने जा रहा है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, होली पर चंद्र ग्रहण और भद्रा की वजह से कुछ राशियों को समस्या का सामना करना पड़ सकता है. साथ ही इन राशियों को बेहद सावधानी से रहने की भी जरूरत है क्योंकि ग्रहण और भद्रा जीवन के हर क्षेत्र पर प्रभाव डालेंगे. ऐसी स्थिति में आइए जानते हैं किन किन राशियों को सावधान रहने की आवश्यकता है…
कब है होली 2025?
होलिका दहन इस बार 13 मार्च को है, हालांकि इस दिन भद्रा का भी साया माना जा रहा है. भद्रा सुबह 10 बजकर 35 मिनट से रात 11 बजकर 26 तक रहेगी. इसके बाद होलिदा दहन किया जा सकेगा.
रंगो वाली होली 14 मार्च को खेली जाएगी और इस दिन साल 2025 का पहला चंद्र ग्रहण भी लगने जा रहा है.
मिथुन राशि वालों पर चंद्र ग्रहण का साया
होली पर लगने वाले चंद्र ग्रहण से मिथुन राशि वालों को बेहद सावधानी से रहने की आवश्यकता है क्योंकि ग्रहण के प्रभाव से धन, संपत्ति और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. परिवार में परेशानियां लगी रहेंगी और किसी सदस्य से वाद-विवाद या मतभेद होने की भी आशंका बन रही है. नौकरी पेशा जातकों की बात करें तो अधिकारियों के साथ कामकाज को लेकर समस्या से जूझना पड़ सकता है. ग्रहण के प्रभाव की वजह से आपके खर्चे बढ़ सकते हैं, जिसकी वजह से आर्थिक हानि का सामना करना पड़ सकता है.
वृश्चिक राशि वालों पर चंद्र ग्रहण का साया
होली पर लगने वाले चंद्र ग्रहण की वजह से वृश्चिक राशि वालों को लाभ से ज्यादा हानि का सामना करना पड़ सकता है. अगर आप नया बिजनस शुरू या फिर निवेश करना चाहते हैं तो कुछ समय के लिए रुक जाएं अन्यथा हानि की आशंका बन रही है. लव लाइफ वालों के बीच आपसी तालमेल में कमी आने की वजह से पार्टनर के साथ इमोशनल बहसबाजी हो सकती है लेकिन ध्यान रखें जल्दबाजी में कोई बड़ा निर्णय ना लें. इस दौरान अपने और परिवार के सदस्यों की सेहत का ध्यान रखें और कोई भी समस्या होने पर डॉक्टर से सलाह अवश्य लें.
मकर राशि वालों पर चंद्र ग्रहण का साया
होली पर चंद्र ग्रहण का साया होने की वजह से मकर राशि वालों को करियर के क्षेत्र में परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. कार्यक्षेत्र में अधिकारियों और सहकर्मियों के बीच तालमेल में कमी आ सकती है, जिसकी वजह से कई समस्याएं आएंगी और आपके काम का कम ही क्रेडिट मिलेगा. साथ ही व्यापारियों को भी बिजनस में प्रतिद्वंदियों के साथ परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. इस अवधि में आप उतना पैसा कमाने में नाकाम रह सकते हैं, जितना आने सोचा था और यह आपके लिए मानसिक तनाव का कारण बन सकता है.
मीन राशि वालों पर चंद्र ग्रहण का साया
साल का पहला चंद्र ग्रहण आपकी ही राशि में लगने वाला है, ऐसे में मीन राशि वालों को ज्यादा सावधान रहने की आवश्यकता है. अगर आप किसी अच्छे काम की आस लगाए हुए हैं तो आप निराश हो सकते हैं. धन कमाने के मामले में परेशानी का सामना करना पड़ सकता है, फिर भी आप असमर्थ हो सकते हैं और धन की बचत भी मुश्किल कर पाएंगे. ग्रहण की वजह से धन हानि होने की प्रबल आशंका बन रही है इसलिए धन से जुड़े मामलों में योजना बनाकर चलने में ही फायदा है. नौकरी करने वालों की बात करें तो आप पर काम का बोझ बड़ सकता है, जिसकी वजह से कामकाज को लेकर असंतुष्ट महसूस कर सकते हैं.
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
5 Mar, 2025 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- प्रत्येक कार्य में बाधा, विलम्ब कष्टप्रद होगा, तथा रुकावट व बेचैनी अवश्य होगी।
वृष राशि :- कुटुम्ब की समस्याओं में समय बीतेगा, धन का व्यय, समय नष्ट न होने देवें।
मिथुन राशि :- स्त्री वर्ग से हर्ष-उल्लास, प्रेम संबंध विफल हो, रुके कार्य अवश्य हो जायेंगे।
कर्क राशि :- आर्थिक योजना पूर्ण होगी, भाग्य का सितारा प्रबल रहे, कार्य अधिक होंगे।
सिंह राशि :- साधन सम्पन्न के योग बनेंगे, दैनिक व्यवसाय गति उत्तम अवश्य ही होगी।
कन्या राशि :- मान-प्रतिष्ठा, प्रभुत्व वृद्धि के योग बनेंगे, योजना फलप्रद अवश्य ही होगी।
तुला राशि :- मनोबल उत्साहवर्धक ही होगा, कार्यगति में सुधार होगा तथा विरोधी पराजित होंगे।
वृश्चिक राशि :- लेन-देन के मामलें में हानि, विरोधी तत्वों से परेशानी होगी, ध्यान रखें।
धनु राशि :- दैनिक सफलता के साधन सम्पन्न हों, स्वभाव में क्रोध व हानि होगी।
मकर राशि :- दैनिक सम्पन्नता के साधन बने किन्तु विरोधी तत्वों से परेशानी बनें।
कुंभ राशि :- बिगड़े हुये कार्य बनेंगे, योजनायें पूर्ण होगे तथा रुके कार्य बन ही जायेंगे।
मीन राशि :- स्त्री वर्ग से हर्ष चिन्तायें कम होंगी, विशेष कार्य स्थगित अवश्य रखें।
होली में एक दूसरे को क्यों लगाते हैं रंग? कब से हुई इसकी शुरुआत?
4 Mar, 2025 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
साल भर में होने वाले सभी विशेष पर्वों में होली का पर्व बेहद ही खास और महत्वपूर्ण होता है. इस त्यौहार को भाईचारे का प्रतीक माना गया है. इस दिन लोग अपनी पुरानी दुश्मनी भुलाकर एक दूसरे को गले लगाते हैं. होली पर एक दूसरे को रंग लगाकर भाईचारे का यह त्यौहार हर्षो उल्लास और खुशियों के साथ मनाया जाता है. इस दिन लोग एक दूसरे को रंग लगाते हैं. प्राचीन समय में प्राकृतिक रंगों से होली खेली जाती थी, लेकिन बदलते वक्त के साथ केमिकल आदि से यह त्यौहार मनाया जाता है. धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन होलिका नामक राक्षसी अपने कर्मों के कारण आग में जल गई थी. इसलिए हर साल फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होली का पर्व मनाया जाता है. इस त्यौहार को लेकर लोगों के मन में यही सवाल उठता है कि बुराई पर अच्छाई के जीत के इस त्यौहार पर रंगों का प्रचलन कैसे शुरू हुआ?
होली पर रंगों का प्रचलन कैसे शुरू हुआ इस सवाल का जवाब देते हुए हरिद्वार के पंडित श्रीधर शास्त्री बताते हैं कि होली का पर्व हिंदू धर्म में होने वाले विशेष पर्वों में से एक है. यह त्यौहार भाईचारे का प्रतीक और बुराई पर अच्छाई का त्यौहार है. इस दिन लोग एक दूसरे को रंग लगाकर त्यौहार मनाते हैं. इस दिन होलिका नामक राक्षसी का पुतला बनाकर जलाया जाता है और एक दूसरे को रंग लगाकर त्यौहार मनाया जाता है. होली के दिन पुरानी दुश्मनी मतभेद आदि सभी भुलाकर लोग भाईचारे के साथ मिलते हैं और इस त्यौहार को मानते हैं.
धार्मिक ग्रंथो के अनुसार विष्णु भगवान के संपूर्ण कलाओं से संपन्न अवतार श्री कृष्ण का रंग काला था और राधा का रंग गोरा था. इस पर जब श्री कृष्ण ने अपनी माता यशोदा को कहा कि मेरा रंग काला है और राधा का रंग गोरा तो उस पर माता यशोदा ने कृष्ण को कहा कि जो रंग तुम्हारा है वही रंग तुम राधा को भी लगा दो, तो वह भी तुम्हारे जैसी ही हो जाएगी. यह पूरा प्रकरण फाल्गुन मास में ही हुआ था और इसी के कारण होली पर रंगों का प्रचलन शुरू हुआ. प्राचीन समय में प्राकृतिक रंगों से होली खेली जाते थी लेकिन वर्तमान समय में केमिकल आदि से होली खेली जाती है जो त्वचा के लिए बेहद ही हानिकारक होते हैं.
इस दिन महिलाएं नहीं रख सकती रोजा, होती है सख्त मनाही, क्या है वजह?
4 Mar, 2025 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
इस्लाम धर्म में रमजान का महीना बहुत ही पाक महीना माना जाता है. पूरे महीने रोजे रखे जाते हैं और खुदा की इबादत की जाती है. भारत में 02 मार्च से रमजान का पवित्र महीना शुरू हो गया है. इस्लाम धर्म में रमजान के महीने को बहुत ही पवित्र और खास माना जाता है. रमजान के पूरे महीने में मुस्लिम धर्म के लोग खुदा की इबादत करते हैं और रोजा रखते हैं.
मिलता है 70 गुना अधिक सवाब
इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार, रमजान साल का नौवां महीना होता है. रमजान के पूरे महीने में लोग हर दिन रोजा रखते हैं और इस्लामी कैलेंडर के दसवें महीने शव्वाल का चांद दिखाई देने पर शव्वाल की पहली तारीख को खुदा का शुक्रिया अदा करते हुए ईद-उल-फितर यानी ईद का त्योहार बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं. वहीं, रमजान के इस पवित्र महीने में अच्छा काम करने से 70 गुना अधिक सवाब मिलता है.
महिलाएं इन दिनों नहीं रख सकती रोजा
अगर कोई महिला रमजान के महीने में रोजा रख रही है और उसे पीरियड्स हो जाते हैं, तो वह रोजा नहीं रख सकती. साथ ही, उस महिला को रोजे की कजा अदा करनी होगी. रमजान खत्म होने के बाद उन महिलाओं को अपने छूटे हुए रोजे पूरे करने होंगे और अगर वे ऐसा नहीं करेंगी, तो वे शरीयत के हिसाब से गुनहगार ठहरेंगी.
इस महीने में करें नेक काम
मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना कारी इसहाक गोरा ने लोकल 18 से बात करते हुए बताया कि रमजान मुसलमानों के लिए बहुत ही पवित्र महीना है. इसकी फजीलत कुरान और हदीसों में बताई गई है. रमजान इसलिए भी बहुत पवित्र महीना माना जाता है क्योंकि इस महीने में किए गए नेक काम का सवाब 70 गुना बढ़ा दिया जाता है.
महिलाएं रखें इसका ख्याल
रमजान महीने में हर दिन रोजे रखे जाते हैं और हर मुसलमान पर, जो बालिग और समझदार हो, उन पर रोजा फर्ज होता है. साथ ही, रोजा छोड़ने वाला गुनहगार होता है. वहीं, महिलाओं पर भी रोजा फर्ज है, लेकिन वे शरीयत के अनुसार उस दौरान रोजा नहीं रख सकतीं जब उन्हें पीरियड्स हो रहे हों. पीरियड्स के समय महिलाओं की नमाज माफ होती है.
खेले मसाने में होली दिगंबर... मृत्य जश्न, भय भक्ति में तब्दील हो जाता है मणिकर्णिका के महाश्मशान में
4 Mar, 2025 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
बनारस, जहां मृत्यु भी एक उत्सव है, वहां की होली भला आम होली जैसी कैसे हो सकती है? यहां रंगों की जगह चिता की राख उड़ती है, गुलाल की जगह भस्म लगता है और उल्लास में गूंजती हैं तांत्रिक मंत्रों की ध्वनियां. इसे कहते हैं "मसान की होली", जो महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर खेली जाती है.ये केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि शिव की अलौकिक लीला का हिस्सा है, जहां मृत्यु का भय मिट जाता है और आत्मा मोक्ष की ओर बढ़ती है. इसी कड़ी में आइए जानते हैं इस रहस्यमयी और अनोखी होली के 8 दिलचस्प पहलू.
मसान की होली (Masan Holi 2025 Varanasi) काशी के महाश्मशान (मणिकर्णिका घाट) पर खेली जाती है, जहां चिताएं दिन-रात जलती रहती हैं.इसे मृत्यु से जुड़े भय को दूर करने का प्रतीक माना जाता है. इस साल मसान होली 11 मार्च को मनाई जाएगी.
मान्यता है कि काशी में स्वयं महादेव संन्यासियों और औघड़ों के साथ होली खेलते हैं.यहां महाकाल को रंगों की नहीं, बल्कि चिता भस्म की होली पसंद है. आम लोग इसमें शामिल नहीं हो सकते क्योंकि ये सिर्फ तांत्रिक परंपराओं को मानने वाले साधुओं के लिए होती है. बिना तांत्रिक दीक्षा के इसमें शामिल होना अनुष्ठान के नियमों के विरुद्ध माना जाता है.
लोककथाओं के अनुसार, इस होली में अदृश्य शक्तियां, भूत-प्रेत और शिव के गण भी शामिल होते हैं.यहां लोग निडर होकर उल्लास और भक्ति के साथ इस अनोखी होली को मनाते हैं.
रंगों की जगह चिता भस्म का प्रयोग किया जाता है.इसे जीवन-मृत्यु के चक्र को स्वीकारने का प्रतीक माना जाता है, जिससे व्यक्ति मृत्यु का भय त्यागकर जीवन को खुले दिल से जी सके.
इस होली में विशेष रूप से तांत्रिक, अघोरी और नागा साधु हिस्सा लेते हैं, जो मृत्यु को मोक्ष का द्वार मानते हैं.वे शिव की भक्ति में लीन होकर चिता भस्म से खुद को रंगते हैं.
इस खास योग में पड़ रहा है प्रदोष व्रत, इस दिन पूजा से खत्म होंगी सभी बाधाएं, आएगी खुशहाली!
4 Mar, 2025 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
साल भर में त्योहारों का आगमन मानव कल्याण के लिए होता है. कुछ तिथि बेहद ही शुभ और लाभदायक होती हैं. कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दोनों में प्रदोष व्रत का आगमन सुख समृद्धि और सभी मनोकामनाएं पूर्ण करने के लिए होता है. प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित है. प्रदोष काल में भगवान शिव की आराधना, पूजा पाठ, स्तोत्र आदि का पाठ करना बेहद शुभ होता है.
ज्योतिष शास्त्र में कुछ योग बेहद महत्वपूर्ण और लाभ प्रदान करने वाले बताए गए हैं. इन योगों का समय-समय पर आगमन होता रहता है. अगर इन योगों का आगमन किसी वृत्त के दौरान हो तो उसमें की गई पूजा पाठ, मंत्रों का जाप, स्तोत्र आदि का पाठ करने पर विशेष लाभ मिलता है.
इस बार कब होगा व्रत
इस की फाल्गुन शुक्ल पक्ष का प्रदोष व्रत 11 मार्च, मंगलवार को होगा. प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित होता है जिसमें भोलेनाथ की पूजा पाठ, पूजा अर्चना, मंत्रों का जाप, स्तोत्र आदि का पाठ करने पर सभी कामों में सफलता मिलेगी.
संयोग से इस बार प्रदोष व्रत सर्वार्थ सिद्धि योग में पड़ रहा है. प्रदोष व्रत के दौरान सर्वार्थ सिद्धि योग होने से जातकों को इसका कई गुना लाभ मिलेगा. धार्मिक ग्रंथो के अनुसार प्रदोष व्रत में सर्वार्थ सिद्धि योग आने से इसका समय बेहद ही श्रेष्ठ और फलदाई है.
होंगी सभी मनोकामनाएं पूरी
वे आगे बताते हैं कि भगवान शिव की पूजा पाठ इस श्रेष्ठ समय सर्वार्थ सिद्धि योग में करने पर श्रद्धालुओं को सिद्धि मिलेगी और भगवान शिव सभी मनोकामनाएं पूर्ण करेंगे. साथ ही जीवन में चल रही सभी समस्याएं, बाधाएं खत्म हो जाएंगी. ज्योतिष शास्त्र में सर्वार्थ सिद्धि योग में किए गए कोई भी धार्मिक कार्य का करोड़ों गुना फल मिलने की धार्मिक मान्यता है.
अगर श्रद्धालु 11 मार्च को प्रदोष काल के समय भगवान शिव के शिव तांडव, शिव महिम्न, रुद्राष्टक, पशुपत्येष्टक आदि स्तोत्रों का पाठ करता है तो सभी कामों में सफलता, अकाल मृत्यु से मुक्ति, धन, संपत्ति वगैरह की प्राप्त होगी.
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
4 Mar, 2025 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- प्रत्येक कार्य में बाधा, विलम्ब कष्टप्रद होगा, थकावट व बेचैनी बनेगी।
वृष राशि :- कुटुम्ब की समस्याओं में समय बीतेगा, धन का व्यय, चिन्ता बढ़ जायेगी।
मिथुन राशि :- स्त्री वर्ग से हर्ष-उल्लास, प्रेम-प्रसंग सफलता से कार्य अनुकूल अवश्य होंगे।
कर्क राशि :- आर्थिक योजना पूर्ण होगी, भाग्य का सितारा प्रबल होगा, रुके कार्य बनेंगे।
सिंह राशि :- भाग्य की प्रबलता का लाभ लें, रुके कार्य समय पर पूर्ण करने का प्रयास करें।
कन्या राशि :- मान-प्रतिष्ठा, प्रभुत्व वृद्धि, नवीन योजना फलप्रद होगी, कार्य पर ध्यान दें।
तुला राशि :- मनोबल उत्साहवर्धक होगा, कार्यगति में सुधार होगा, विरोधी पराजित होंगे।
वृश्चिक राशि :- लेन-देन के कार्य में हानि होगी, विरोधी तत्वों से परेशानी अवश्य बनेगी।
धनु राशि :- दैनिक सफलता के साधन सम्पन्न होंगे, स्वाभाव में क्रोध व अशांति होगी।
मकर राशि :- दैनिक सम्पन्नता के साधन जुटायेंगे, आलस्य, प्रमाद से हानि होगी।
कुंभ राशि :- बिगड़े हुये कार्य बनेंगे, योजनायें फलीभूत होंगी, रुके कार्य बनेंगे।
मीन राशि :- स्त्री वर्ग से चिन्तायें कम होंगी, विशेष कार्य स्थगित रखें, समय का ध्यान रखें।
होली से पहले घर ले आएं ये 4 खास चीजें, घर से नकारात्मक ऊर्जा हमेशा के लिए होगी छूमंतर
3 Mar, 2025 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदु पंचांग के अनुसार होली का त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है. इस साल 14 मार्च, शुक्रवार को होली खेली जाएगी और होलिका दहन इसके एक दिन पहले यानी 13 मार्च, गुरुवार के दिन किया जाएगा. रंगों के त्योहार होली की जितनी पौराणिक मान्यता है उतना ही वास्तु शास्त्र में भी इसका बहुत अधिक महत्व माना जाता है. वास्तु शास्त्र के अनुसार अगर होली के पहले कुछ चीजें घर लाने से सालभर बरकत बनी रहती है और कभी भी धन-धान्य में कमी नहीं आती है.
वास्तुशास्त्र बताए गए कुछ विशेष चीजों को आप होलाष्टक से लेकर होली तक इन चीजों का घर लेकर आ सकते हैं. इससे ना सिर्फ आपका भाग्योदय होता है बल्कि आपके घर पर सदैव मां लक्ष्मी की कृपा भी बनी रहती है.
होली से पहले घर ले आएं ये चीजें
बांस का पौधा:
होली पर आप अपने घर में बैम्बू ट्री भी ला सकते हैं. वास्तु शास्त्र में बैम्बू ट्री या बांस के पौधे को सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है. मान्यता है कि जिस घर में बांस के पौधे होते हैं वहां नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव नहीं होता और घर में सुख शांती बनी रहती है.
तोरण:
वास्तुशास्त्र के अनुसार, घर के मुख्य द्वार पर तोरण लगाने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है. इसलिए होली पर्व से पहले अपने घर पर मुख्य द्वार पर तोरण लगाने से घर पर सकारात्मकता आती है और इस तोरण को शुभ दिन व त्योहार पर बांधने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और घर में सदैव वास करती है.
चांदी का सिक्का:
होली पर आप चांदी का सिक्का भी घर में लेकर आ सकते हैं. इस चांदी के सिक्के की पूजा करें और फिर इसे लाल या पीले रंग के कपड़े में बांध दें. कपड़े में बंधे इस सिक्के को तिजोरी में रखने से आर्थिक परेशानी दूर होती है.
कछुआ:
कछुए को भगवत स्वरुप माना जाता है. माना जाता है कि अगर आप होली पर्व पर धातु से बना कछुआ घर में लाते हैं तो इससे मां लक्ष्मी की कृपा घर पर बनी रहती है. लेकिन ध्यान रखें कि कछुए की पीठ पर श्रीयंत्र या कुबेर यंत्र बना होना चाहिए.