धर्म एवं ज्योतिष
चमत्कार से कम नहीं है राजस्थान के इस मंदिर का जलकुंड, हजारों गैलन पानी निकालने के बाद भी नहीं होता कम
4 Feb, 2025 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
राजस्थान के अजमेर में बोराज गांव के पास अरावली की पहाड़ियों पर स्थित मां चामुंडा का ऐतिहासिक और प्राचीन मंदिर है. इस मंदिर की स्थापना सम्राट पृथ्वीराज चौहान द्वारा 11वीं शताब्दी में की गई थी. यह मंदिर सदियों से धार्मिक आस्था का केंद्र बना हुआ है. यहां मंदिर परिसर में जल का एक छोटा सा कुंड है, जो किसी चमत्कार से कम नहीं है. यह कुंड ढाई फीट गहरा और ढाई फीट चौड़ा है. बताया जाता है कि जब से मंदिर की स्थापना हुई है, तब से लेकर आज तक इस कुंड का पानी कभी कम नहीं हुआ.
रोगों से मुक्ति प्रदान करता है कुंड का पानी
मंदिर के पुजारी मदन सिंह ने बताया कि प्रांगण में जो जलकुंड है, वह काफी प्राचीन है. इस कुंड से हजारों गैलन पानी निकाला जाता रहा है, फिर भी यह कभी खाली नहीं होता है. मंदिर में माता का स्नान भी इस कुंड के पानी से होता है. सर्दियों में यह पानी गर्म और गर्मियों में ठंडा रहता है. इस कुंड के जल को गंगा के समान पवित्र माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस कुंड का जल आध्यात्मिक शुद्धि और रोगों से मुक्ति प्रदान करता है.
सिक्के डालकर मांगते है मन्नत
पुजारी मदन सिंह ने आगे बताया कि सम्राट पृथ्वीराज चौहान चामुंडा माता के अनन्य भक्त थे. ग्यारहवीं शताब्दी में इसी कुंड के पानी से समूचे मंदिर का निर्माण कराया गया था. लोग चामुंडा माता मंदिर के दर्शन के साथ-साथ कुंड को भी आस्था केंद्र मानते हुए नमन करते हैं. इसमें सिक्के डालकर मांगते मांगते हैं.
1300 फीट की ऊंचाई पर स्थित मंदिर
मां चामुंडा का मंदिर लगभग 1300 फीट की ऊंचाई पर स्थित है और यहां पूरे देश से श्रद्धालु अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं. मन्नत पूरी होने पर भक्त मां के मंदिर में चुनरी बांधते हैं. पहाड़ी की चोटी पर स्थित इस मंदिर में माथा टेककर हर श्रद्धालु खुद को धन्य महसूस करता है
भगवान शिव अद्भुत मंदिर, दिन में दो बार दिखकर समा जाता है समुद्र की गोद में, जानें इसका रहस्य
4 Feb, 2025 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भारत देश अपने प्राचीन मंदिरों और विविधताओं के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है. यहां कई ऐसे मंदिर हैं जो अपनी अद्भुत और रहस्यमयी विशेषताओं के कारण श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करते हैं. ऐसा ही एक अनोखा मंदिर गुजरात में स्थित है जो दिन में दो बार दिख कर गायब हो जाता है. इस मंदिर का नाम है स्तंभेश्वर महादेव मंदिर।
स्तंभेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास
स्तंभेश्वर महादेव मंदिर गुजरात के वडोदरा जिले के जंबुसर के पास कवी कम्बोई गांव में स्थित है. यह मंदिर अरब सागर के तट पर स्थित है. इस मंदिर का निर्माण लगभग 150 साल पहले हुआ था. इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह दिन में दो बार दिख कर समुद्र में डूब जाता है और फिर थोड़ी देर बाद वापस प्रकट हो जाता है.
क्या है इस मंदिर का रहस्य?
इस मंदिर से जुडी़ कई पौराणिक कथा विद्यमान है. इनमे से एक कथा है ताड़कासुर का अंत और स्तंभेश्वर की स्थापना.
एक समय की बात है ताड़कासुर नाम का एक शक्तिशाली असुर था. उसने अपनी कठोर तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न कर लिया. भगवान शिव ने उससे वरदान मांगने को कहा. ताड़कासुर ने अमर होने का वरदान मांगा लेकिन भगवान शिव ने कहा कि ये संभव नहीं है. तब ताड़कासुर ने वरदान मांगा कि उसे केवल शिव के पुत्र द्वारा ही मारा जा सके और उस पुत्र की आयु भी केवल छह दिन की होनी चाहिए. भगवान शिव ने उसे ये वरदान दे दिया.
वरदान पाकर ताड़कासुर अहंकारी हो गया. उसने देवताओं और ऋषि-मुनियों को परेशान करना शुरू कर दिया. उसके अत्याचारों से त्रस्त होकर सभी भगवान शिव के पास गए और उनसे ताड़कासुर का वध करने की प्रार्थना की. भगवान शिव ने उनकी प्रार्थना सुनी और श्वेत पर्वत कुंड से छह दिन के बालक कार्तिकेय का जन्म हुआ. कार्तिकेय ने ताड़कासुर का वध कर दिया लेकिन जब उन्हें पता चला कि ताड़कासुर शिव का भक्त था तो उन्हें बहुत दुख हुआ.
कार्तिकेय को अपने कृत्य पर पश्चाताप हुआ. उन्होंने भगवान विष्णु से प्रायश्चित का मार्ग पूछा. भगवान विष्णु ने उन्हें सुझाव दिया कि वे उस स्थान पर एक शिवलिंग स्थापित करें जहां उन्होंने ताड़कासुर का वध किया था. कार्तिकेय ने ऐसा ही किया. उन्होंने वहां एक सुंदर शिवलिंग स्थापित किया. यह स्थान बाद में स्तंभेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुआ. माना जाता है कि आज भी कार्तिकेय उस शिवलिंग पर जल अर्पण करने आते हैं.
इस मंदिर के गायब होने के पीछे प्राकृतिक कारण भी है. यह मंदिर एक ऐसे स्थान पर स्थित है जहां ज्वार-भाटा आता है. जब समुद्र में ज्वार आता है तो मंदिर पानी में डूब जाता है. जब भाटा आता है तो पानी कम हो जाता है और मंदिर फिर से दिखाई देने लगता है.
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
4 Feb, 2025 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- कुटुम्ब में तनाव-क्लेश व अशांति, व्यर्थ धन का व्यय, पीड़ा, हानि हो।
वृष राशि :- इष्ट मित्रों से सुख, अधिकारियों से मेल-मिलाप तथा स्थिति लाभप्रद बनी ही रहेगी।
मिथुन राशि :- कार्य-व्यवस्था अनुकूल हो, सफलता के साधन जुटायें तथा कार्य अवश्य बने।
कर्क राशि :- मनोवृत्ति सुन्दर बनाये रखें, तनाव-क्लेश व हानि संभावित होगी ध्यान रखें।
सिंह राशि :- समय नष्ट न करें, व्यवसाय गति मंद हो, असमंजस की स्थिति बनी ही रहेगी।
कन्या राशि :- आर्थिक योजना सफल हो, व्यवसायिक क्षमता अवश्य बनेगी, कार्य का ध्यान रखें।
तुला राशि :- धन का व्यय, व्यर्थ परिश्रम से हानि, मानसिक-उद्विघ्नता से बच कर चलें।
वृश्चिक राशि :- स्त्री के कार्य से क्लेश व हानि, विघटनकारी तत्व आपको परेशान अवश्य करेंगे।
धनु राशि :- कुटुम्ब की समस्या सुलझें, धन का व्यय होगा, व्यर्थ भ्रमण से बचें।
मकर राशि :- अर्थव्यवस्था छिन्न-भिन्न होवे, कार्य-व्यवसाय गति मंद होगी, ध्यान दें।
कुंभ राशि :- दैनिक कार्य गति में सुधार, चिन्ताएं कम होंगी, सफलता मिलेगी, ध्यान दें।
मीन राशि :- मनोबल उत्साहवर्धक हो, कार्यगति अनुकूल अवश्य ही बनेगी।
पूजा में कान्हा को अर्पित करें उनकी प्रिय 5 वस्तुएं, फिर देखें जीवन में चमत्कार, बिना अड़चन के बनेगा हर काम!
3 Feb, 2025 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भगवान कृष्ण की पूजा भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. उनके प्रति भक्तों का श्रद्धा भाव बहुत ज्यादा होता है और यह पूजा जीवन को शांति और समृद्धि से भर देती है. भगवान कृष्ण के प्रति सच्ची भक्ति से जीवन में अनेक सकारात्मक परिवर्तन आते हैं. उनकी पूजा में 5 विशेष वस्तुएं अर्पित करने से भक्तों को उनकी कृपा प्राप्त होती है. ये वस्तुएं कौनसी हैं
1. माखन-मिश्री
प्रचलित मान्यता के अनुसार भगवान कृष्ण का बचपन माखन चुराने में बिता था. उनकी यह माखन-मिश्री के प्रति विशेष श्रद्धा थी और यही कारण है भगवान कृष्ण को माखन-मिश्री का भोग अर्पित किया जाता है. यह भोग उनके बचपन के रूप को दर्शाता है और भक्तों को उनके आशीर्वाद की प्राप्ति होती है.
2. धनिया की पंजीरी
ज्योतिष शास्त्र में धनिया को धन और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. कृष्ण की पूजा में पिसे हुए धनिया से बनी पंजीरी का भोग अर्पित करना अत्यंत शुभ माना जाता है. इस भोग के साथ-साथ यह भी विश्वास किया जाता है कि यह समृद्धि और सुख-शांति का आगमन करता है.
3. मोरपंख
कृष्ण के मुकुट पर हमेशा मोरपंख रहता था और यह उनके रूप को सुंदर बनाता था. मोरपंख को पूजा में रखने से न केवल वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, बल्कि यह घर की नकारात्मकता को भी समाप्त करता है. इस प्रकार, मोरपंख कृष्ण के साथ जुड़ी एक महत्वपूर्ण पूजा वस्तु है.
4. बांसुरी
कृष्ण की बांसुरी उनकी पहचान है और यह उनके संगीत और दिव्य आकर्षण का प्रतीक है. जन्माष्टमी के दिन बांसुरी का पूजन में रखना एक बहुत ही शुभ कार्य माना जाता है. यह माना जाता है कि बांसुरी रखने से कृष्ण अपने भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं.
5. गाय
भगवान कृष्ण का बाल्यकाल गौ माता के साथ बीता था. उन्हें गायों के साथ बहुत लगाव था और उन्होंने बचपन में गायों की सेवा की. इसलिए उनकी पूजा में गाय के शुद्ध घी से बने भोग का अर्पण और गाय की मूर्ति का पूजन विशेष रूप से किया जाता है.
ये है खाटूश्यामजी का मूल स्वरूप, भाग्यशाली लोगों को ही मिलते हैं ऐसे दर्शन! आप भी कर लीजिए
3 Feb, 2025 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
विश्व प्रसिद्ध खाटूश्याम जी मंदिर में भारत से ही नहीं विदेशों से भक्त बाबा श्याम के दर्शन के लिए आते हैं. ऐसे में आज बसंत पंचमी के दिन बाबा का श्रृंगार पीले रंग के फूलों से किया गया है. आज लखदातार श्याम बाबा पूर्ण शालिग्राम (काला रंग) के रूप में भक्तों को दर्शन दे रहे हैं. बताया जाता है, कि इस रूप में बाबा श्याम 7 दिन ही दर्शन देते हैं, ऐसे में आज बसंत पंचमी के दिन क्या कुछ खास होने वाला है, चलिए आपको बताते हैं, और बाबा के दर्शन भी करवाते हैं.
पीले फूलों से सजे बाबा श्याम
खाटूश्याम जी मंदिर के मुख्य पुजारी मंदिर मोहनदास महाराज ने बताया, कि आज बाबा का श्रृंगार पीले रंग के फूलों से किया गया है. बसंत पंचमी के दिन पीले रंग के फूलों से सजे बाबा श्याम भक्तों को बहुत आकर्षित कर रहे हैं. मंदिर महंत ने बताया, कि लखदातार आज श्याम पूर्ण शालिग्राम (काला रंग) के रूप में भक्तों को दर्शन दे रहे हैं. यह बाबा श्याम का मूल स्वरूप है. इस रूप में बाबा श्याम एक महीने में मात्र 7 दिन ही दर्शन देते हैं.
बसंत पंचमी नहीं है कोई पीला वस्त्र बांटने की परंपरा
आपको बता दें, कि आज बसंत पंचमी होने की वजह से खाटूश्याम जी मंदिर में भक्तों की संख्या सुबह से ही बढ़ गई है. मंदिर कमेटी और प्रशासन द्वारा भक्तों की सहूलियत के लिए अनेकों व्यवस्थाएं भी की गई हैं. भीड़ ज्यादा रहने की वजह से भक्त 14 दर्शन लाइनों में लगकर बाबा के दर्शन कर रहे हैं. वहीं शाम को संध्या आरती के समय भी बाबा श्याम का विशेष श्रृंगार किया जाएगा. वहीं मंदिर कमेटी ने पत्र जारी कर बताया है, कि बसंत पंचमी पर किसी प्रकार का पीला वस्त्र वितरण नहीं किया जाएगा. श्री श्याम मंदिर कमेटी के अध्यक्ष पृथ्वी सिंह चौहान ने बताया, कि बसंत पंचमी पर श्री श्याम मंदिर खाटूश्यामजी में पीला वस्त्र बांटने की किसी प्रकार की कोई परंपरा नहीं है, और ना ही बसंत पचंमी पर्व पर पीला वस्त्र बांटने का कोई कार्यक्रम रखा गया है.
कौन हैं बाबा श्याम
आपको जानकारी के लिए बता दें, पौराणिक कथाओं के अनुसार, हारे के सहारे बाबा श्याम को भगवान कृष्ण का अवतार माना जाता है. महाभारत युद्ध के दौरान भीम के पौत्र बर्बरीक कौरवों की तरफ से युद्ध में शामिल होने जा रहे थे. बर्बरीक के पास तीन ऐसी तीर थे, जो पूरे युद्ध को पलट सकते थे. इसी को लेकर भगवान कृष्ण ब्राह्मण के रूप में आए और उनसे शीश दान में मांग लिया. बर्बरीक ने भी बिना संकोच किए भगवान कृष्ण को अपना शीश दान में दे दिया. ऐसी मान्यता है, कि तब भगवान कृष्ण ने प्रसन्न होकर बर्बरीक को कहा कि ” बर्बरीक तुम्हें कलयुग में श्याम के नाम से पूजा जाएगा, तुम्हें लोग मेरे नाम से पुकारेंगे और तुम अपने भक्तों के हारे का सहारा बनोगें
यहां लड्डू नहीं पेन-कॉपी का चढ़ता है प्रसाद, जानें अजब-गजब मान्यता
3 Feb, 2025 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
बुंदेलखंड के सागर जिले में स्थित सरस्वती माता का एक अनोखा मंदिर भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है. इस मंदिर की खासियत यह है कि यहां मां सरस्वती को पारंपरिक मिठाइयों की बजाय पेन, कॉपी, पेंसिल, रजिस्टर, रबर और शॉर्पनर जैसी अध्ययन सामग्री चढ़ाई जाती है. यह अनूठी परंपरा विशेष रूप से विद्यार्थियों के बीच काफी लोकप्रिय है, जो यहां आकर अपने उज्जवल भविष्य और शिक्षा में सफलता की कामना करते हैं.
बसंत पंचमी पर अद्वितीय परंपरा
बसंत पंचमी, जिसे मां सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है, इस मंदिर में धूमधाम से मनाई जाती है. हर साल हजारों की संख्या में विद्यार्थी और श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं और मां सरस्वती से ज्ञान, स्मरण शक्ति, वाणी और बुद्धि की कृपा प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करते हैं. इस दिन कई माता-पिता अपने बच्चों के लिए विद्या आरंभ और अक्षर लेखन संस्कार भी यहां संपन्न करवाते हैं.
मंदिर की खासियत
सागर शहर के इतवारा बाजार में स्थित यह मंदिर प्राचीन उत्तरमुखी सरस्वती प्रतिमा वाला अनोखा मंदिर है. कहा जाता है कि ऐसा मंदिर बुंदेलखंड में तो क्या, पूरे प्रदेश में भी शायद ही कहीं और देखने को मिले.
कैसे होती है विशेष पूजा?
मंदिर के पुजारी पंडित यशोवर्धन चौबे बताते हैं कि बसंत पंचमी पर जो विद्यार्थी अध्ययन सामग्री लाते हैं, वह मां सरस्वती के चरणों में अर्पित की जाती है. इसके बाद पुजारी इन सामग्रियों को आशीर्वाद देकर विद्यार्थियों को वापस प्रसाद रूप में सौंप देते हैं. ऐसा माना जाता है कि इन पवित्र सामग्रियों का उपयोग करने से विद्यार्थियों को मां सरस्वती का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है और वे अपने शैक्षणिक और बौद्धिक क्षेत्र में सफलता पाते हैं.
सरस्वती माता के प्रिय भोग
हालांकि, इस मंदिर में अनार, संतरा और केसर पेड़ा चढ़ाने की परंपरा भी है, लेकिन मुख्य रूप से यहां ज्ञान और शिक्षा से जुड़ी सामग्रियां चढ़ाने का विशेष महत्व है.
विद्यार्थियों की आस्था का केंद्र
जो छात्र प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे होते हैं या शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहते हैं, वे इस मंदिर में विशेष रूप से आकर मां सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. यह मंदिर विद्यार्थियों और विद्वानों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन चुका है.
बसंत पंचमी के दिन जरूर पढ़ें यह पौराणिक कथा, मां सरस्वती की बरसेगी कृपा
3 Feb, 2025 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
बसंत पंचमी का त्योहार हर साल माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है. इस साल आज 2 फरवरी को यह त्योहार मना जा रहा है. बसंत पंचमी वसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक है और इसे ज्ञान, विद्या और कला की देवी सरस्वती की पूजा के रूप में भी मनाया जाता है.
वसंत पंचमी सरस्वती पूजा कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्माजी ने मनुष्य योनि की रचना की, परंतु वह अपनी सर्जना से संतुष्ट नहीं थे. उन्हें लगा कि उनकी सृष्टि में कुछ कमी है. हर तरफ नीरवता छाई हुई थी. तब उन्होंने विष्णु जी से आज्ञा लेकर अपने कमंडल से जल को पृथ्वी पर छिड़क दिया, जिससे पृथ्वी पर कंपन होने लगा और एक अद्भुत शक्ति के रूप में चतुर्भुजी सुंदर स्त्री प्रकट हुई.
यह देवी मां सरस्वती थीं. उनके एक हाथ में वीणा, दूसरे हाथ में माला, तीसरे हाथ में पुस्तक और चौथे हाथ में वर मुद्रा थी. ब्रह्माजी ने उन्हें ज्ञान की देवी के रूप में पूजा और उन्हें वाणी, विद्या और कला की देवी के रूप में स्थापित किया.
कहा जाता है कि जब ब्रह्माजी ने देवी सरस्वती को प्रकट किया, तो वसंत ऋतु का आगमन हुआ. इसलिए, बसंत पंचमी को देवी सरस्वती के प्राकट्य दिवस के रूप में भी मनाया जाता है.
महत्व
बसंत पंचमी का त्योहार ज्ञान, विद्या और कला के महत्व को दर्शाता है. इस दिन लोग देवी सरस्वती की पूजा करते हैं और उनसे ज्ञान, बुद्धि और कला का आशीर्वाद मांगते हैं. यह त्योहार छात्रों, शिक्षकों, कलाकारों और संगीतकारों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है.
इस दिन पीले रंग का विशेष महत्व होता है. लोग पीले वस्त्र धारण करते हैं और पीले रंग के फूल, फल और मिठाई देवी सरस्वती को अर्पित करते हैं. पीले रंग को ज्ञान, पवित्रता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है.
बसंत पंचमी के दिन कई सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं. लोग गीत, संगीत और नृत्य के माध्यम से वसंत ऋतु का स्वागत करते हैं. यह त्योहार प्रकृति के सौंदर्य और जीवन के उत्सव का प्रतीक है.
बसंत पंचमी एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो ज्ञान, विद्या और कला के महत्व को दर्शाता है. यह त्योहार हमें प्रकृति के सौंदर्य का आनंद लेने और जीवन में सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने की प्रेरणा देता है.
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
3 Feb, 2025 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- कार्य-कशुलता से संतोष, योजनाएं फलीभूत होंगी, कार्य का ध्यान रखें।
वृष राशि :- दूसरों की समस्याओं में फंसने से बचिये, किसी के कार्य में हस्तक्षेप न करें।
मिथुन राशि :- सामाजिक कार्यों में प्रभुत्व-प्रतिष्ठा, मानसिक वृद्धि के योग अवश्य ही बनेंगे।
कर्क राशि :- समय की अनुकूलता से लाभांवित होंगे तथा कार्यकुशलता से लाभ होगा।
सिंह राशि :- सामाजिक कार्य में प्रभुत्व वृद्धि, मनोवृत्ति संवेदनशील बनी ही रहेगी।
कन्या राशि :- कार्यकुशलता से संतोष, अधिकारियों का समर्थन फलप्रद होगा।
तुला राशि :- अशुद्ध गोचर रहने से विघटनकारी तत्व परेशानी करेंगे, विरोध हो।
वृश्चिक राशि :- समय की अनुकूलता से लाभांवित होंगे, सामाजिक कार्य में सहयोग करें।
धनु राशि :- धन लाभ, कार्यकुशलता से संतोष, सामाजिक कार्य में मान-प्रतिष्ठा बढ़े।
मकर राशि :- सफलता के साधन सम्पन्न होंगे, बिगड़े कार्य एक-एक करके बन जायेंगे।
कुंभ राशि :- मित्र परेशान करें, मानसिक उद्विघ्नता, व्यर्थ धन का व्यय होगा।
मीन राशि :- चिन्ताएं कम हों, भाग्य का सितारा प्रबल होगा, बिगड़े कार्य बनेंगे।
देवी-देवताओं के संग मंडी में सजेगा 'देव कुंभ', गूंजेगा शाही शंखनाद;
2 Feb, 2025 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिमाचल प्रदेश की छोटी काशी के नाम से मशहूर मंडी शहर में इसका सबसे बड़ा महोत्सव, यानी अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव, जल्द ही सजने वाला है. इसे देव कुंभ भी कहा जाता है. इस महोत्सव के साथ कुछ पुरानी सभ्यताएं और परंपराएं भी जीवित रहती हैं, जो आज भी मंडी में पूरी श्रद्धा के साथ निभाई जाती हैं. दरअसल, मंडी राजवंश द्वारा शिवरात्रि पर्व मनाने की परंपरा शुरू हुई थी. स्थानीय राजा द्वारा आस-पास के देवी-देवताओं को इस महोत्सव में आमंत्रित किया जाता था. समय के साथ भले ही बहुत कुछ बदल गया हो, लेकिन छोटी काशी में शुरू हुई यह सांस्कृतिक सभ्यता और भी समृद्ध होती गई.
आज यह परंपरा इतनी व्यापक हो चुकी है कि मंडी शिवरात्रि महोत्सव में 216 से ज्यादा देवी-देवता शामिल होते हैं. इन देवी-देवताओं के आदर-सत्कार की पूरी व्यवस्था अब जिला प्रशासन, मंडी द्वारा की जाती है.
निकाली जाती हैं शाही जलेब
अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव में सबसे बड़ा पद मंडी के राजा कृष्ण रूप माधव राय का होता है. उनके सम्मान में तीन शाही जलेब निकाली जाती हैं. इस जलेब (शाही जुलूस) में स्कूल के बच्चे, पुलिस बैंड, देवी-देवताओं की शोभायात्रा और राजा माधव राय की पालकी शामिल होती है. यह जुलूस राजमहल से निकलकर पड्डल मैदान (मेला स्थल) तक पहुंचता है. यह प्रक्रिया पुराने समय के शाही जुलूस की परंपरा पर आधारित है. अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव की शुरुआत, मध्य और समापन पर तीन शाही जलेब निकाली जाती हैं. अंतिम जलेब के साथ शिवरात्रि महोत्सव का औपचारिक समापन होता है.
इतिहासकार ने बताया महोत्सव का महत्व
यह रीति-रिवाज मंडीवासियों ने जिला प्रशासन की मदद से संजो कर रखे हैं. इसमें निरंतर व्यवस्थाएं सुदृढ़ होती जा रही हैं और हर साल इस महोत्सव को भव्य बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी जाती. आकाश शर्मा के अनुसार, यह महोत्सव पुरानी संस्कृति को सहेजने का कार्य करता है. इसमें जिले भर से 216 से ज्यादा देवी-देवता भाग लेने पहुंचते हैं, जिनका आदर-सत्कार मंडीवासी सात दिनों तक करते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं.
राम के अलावा दो ऐसे बलशाली योद्धा, जो रावण को मारने का रखते थे दम, जानें उनकी वीरता की गाथा
2 Feb, 2025 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
रामायण में भगवान राम को लंकापति रावण का वध करने वाले महानायक के रूप में दर्शाया गया है. यह सच है कि रावण को मारने के लिए भगवान राम का अवतार हुआ था लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान राम के अलावा दो और योद्धा भी थे जो रावण का वध कर सकते थे? आइए जानते हैं उन दो योद्धाओं के बारे में.
हनुमान
हनुमान जी भगवान शिव के अवतार हैं और वे अपनी शक्ति और भक्ति के लिए जाने जाते हैं. वे रामायण में भगवान राम के सबसे बड़े भक्त और सहायक थे. हनुमान जी ने लंका दहन, संजीवनी बूटी लाना, और रावण के पुत्र मेघनाद को हराने जैसे कई महान कार्य किए थे. उनकी शक्ति और भक्ति को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि वे रावण का वध करने में सक्षम थे.
बाली
बाली सुग्रीव के भाई और एक बहुत ही शक्तिशाली योद्धा थे. उन्हें इंद्रदेव का पुत्र माना जाता है और वे अपने बल और कौशल के लिए प्रसिद्ध थे. बाली को यह वरदान प्राप्त था कि जो भी उनसे युद्ध करने आएगा उसकी आधी शक्ति बाली को मिल जाएगी. एक बार रावण ने बाली को युद्ध के लिए चुनौती दी थी लेकिन बाली ने उसे आसानी से हरा दिया था और उसे अपनी कांख में दबाकर पूरे विश्व में घुमाया था. बाली की शक्ति को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि वे रावण का वध करने में सक्षम थे.
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि रावण का वध भगवान राम के हाथों ही होना था क्योंकि यह उनकी लीला का हिस्सा था. लेकिन हनुमान और बाली जैसे योद्धाओं की शक्ति और क्षमता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.
हनुमान की शक्ति
हनुमान जी की शक्ति का वर्णन रामायण में कई जगह मिलता है. उन्होंने अपनी पूंछ से लंका को जला दिया था और वे संजीवनी बूटी को लाने के लिए पूरे पर्वत को उठा लाए थे. उन्होंने रावण के पुत्र मेघनाद को भी हराया था जो एक बहुत ही शक्तिशाली योद्धा था.
बाली का पराक्रम
बाली के पराक्रम की कहानियां भी रामायण में भरी पड़ी हैं. उन्होंने एक बार रावण को अपनी कांख में दबाकर पूरे विश्व में घुमाया था. उन्होंने दुंदुभि नामक राक्षस को भी हराया था जो हजार हाथियों के बराबर बलशाली था.
यह कहना मुश्किल है कि हनुमान और बाली में से कौन रावण का वध करने में अधिक सक्षम था. दोनों ही योद्धा अपनी-अपनी जगह पर अद्वितीय थे. लेकिन यह निश्चित है कि दोनों ही रावण को हराने की क्षमता रखते थे.
क्या दूल्हा-दुल्हन अपने वचन बना सकते हैं? सनातन धर्म में क्या है शादी की परंपरा जानें ज्योतिष से
2 Feb, 2025 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में शादी के दौरान कई विधि विधान और परंपराएं निभाई जाती हैं. उन्हें में से एक परंपरा होता है सात फेरा. शादी विवाह के दौरान दिए गए सात फेरे को सप्तपदी भी कहा जाता है. दूल्हा दुल्हन अग्नि को साक्षी मानकर सात फेरे लेते हैं. इन फेरों के दौरान पंडित जी के द्वारा दूल्हा दुल्हन को कुछ वचन भी बताए जाते हैं. वचन निभाने के संकल्प लेने के बाद ही शादी विवाह संपन्न होता है. कई लोगों की मन में यह सवाल उठना होगा कि क्या यह वचन खुद से क्या पंडित जी के द्वारा बनाए जाते हैं या फिर यह शास्त्र में उल्लेख है. इन सवालों के जवाब जानते हैं हम देवघर की ज्योतिषाचार्य पंडित नंदकिशोर मुदगल जी से?
क्या कहते है देवघर के ज्योतिषाचार्य :
विवाह एक ऐसा बंधन है जिसमें दो लोग ही नहीं बल्कि दो परिवारों का मिलन होता है. दो अनजान लोग अग्नि को साक्षी मानकर सात फेरे लेते हैं और वचन का संकल्प भी लेते हैं. यह वचन शास्त्र में उल्लेख है. बिना वचन का संकल्प लिए शादी विवाह अधूरी मानी जाती है. वचन का दांपत्य जीवन में बेहद खास महत्व होता है. वचन का अगर महत्व समझ लिया जाए तो वैवाहिक जीवन में आने वाली समस्याओं से बचा जा सकता है.
सनातन धर्म में शादी के दौरान कई विधि विधान और परंपराएं निभाई जाती हैं. उन्हें में से एक परंपरा होता है सात फेरा. शादी विवाह के दौरान दिए गए सात फेरे को सप्तपदी भी कहा जाता है. दूल्हा दुल्हन अग्नि को साक्षी मानकर सात फेरे लेते हैं. इन फेरों के दौरान पंडित जी के द्वारा दूल्हा दुल्हन को कुछ वचन भी बताए जाते हैं. वचन निभाने के संकल्प लेने के बाद ही शादी विवाह संपन्न होता है. कई लोगों की मन में यह सवाल उठना होगा कि क्या यह वचन खुद से क्या पंडित जी के द्वारा बनाए जाते हैं या फिर यह शास्त्र में उल्लेख है. इन सवालों के जवाब जानते हैं हम देवघर की ज्योतिषाचार्य पंडित नंदकिशोर मुदगल जी से?
4 शुभ योग में रविवार, सूर्य अर्घ्य से बढ़ेगा धन-धान्य, जानें मुहूर्त, राहुकाल, दिशाशूल, रविवार के उपाय
2 Feb, 2025 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
फरवरी के पहले रविवार पर 4 शुभ योग बन रहे हैं. इस दिन माघ गुप्त नवरात्रि का चौथा दिन है. माघ शुक्ल चतुर्थी तिथि, उत्तर भाद्रपद नक्षत्र, शिव योग, विष्टि करण, पश्चिम का दिशाशूल और मीन राशि का चंद्रमा है. रविवार को शिव योग, सिद्ध योग, सर्वार्थ सिद्धि योग और रवि योग बने हैं. इस दिन गुप्त नवरात्रि का चौथा दिन है. इस दिन भुवनेश्वरी महाविद्या की पूजा करते हैं. उनकी कृपा से व्यक्ति को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है. सम्मोहन और वशीकरण आदि से मुक्ति मिलती है. रविवार को सूर्य देव की पूजा करते हैं, जिसमें अर्घ्य महत्वपूर्ण है. सूर्य की कृपा से धन और धान्य बढ़ता है, त्वचा रोग से मुक्ति मिलती है.
रविवार के व्रत में नमक का सेवन वर्जित है. आपको मीठा भोजन करना चाहिए. सूर्य के शुभ प्रभाव के लिए आप गुड़, घी, तांबा, सोना, केसर, लाल रंग के कपड़े और फल आदि का दान कर सकते हैं. सूर्य के दोष को दूर करने के लिए आप अपने पिता की सेवा करें. इससे भी आपको लाभ प्राप्त होगा. रविवार को पूरे दिन पंचक है और भद्रा लगेगी. भद्रा का वास स्थान पृथ्वी है, इसलिए भद्रा में कोई शुभ काम न करें. वैदिक पंचांग से जानते हैं सूर्योदय, चंद्रोदय, शुभ मुहूर्त, राहुकाल, दिशाशूल, भद्रा, पंचक, चौघड़िया आदि.
आज का पंचांग, 2 फरवरी 2025
आज की तिथि- चतुर्थी – 09:14 ए एम तक, पंचमी – 06:52 ए एम, फरवरी 03 तक
आज का नक्षत्र- उत्तर भाद्रपद – 12:52 ए एम, फरवरी 03 तक, फिर रेवती
आज का करण- विष्टि – 09:14 ए एम तक, बव – 08:02 पी एम तक, बालव – 06:52 ए एम, फरवरी 03 तक, उसके बाद कौलव
आज का योग- शिव – 09:14 ए एम तक, सिद्ध – 06:06 ए एम, फरवरी 03 तक, फिर साध्य
आज का पक्ष- शुक्ल
आज का दिन- रविवार
चंद्र राशि- मीन
सूर्योदय-सूर्यास्त और चंद्रोदय-चंद्रास्त का समय
सूर्योदय- 07:09 ए एम
सूर्यास्त- 06:01 पी एम
चन्द्रोदय- 09:34 ए एम
चन्द्रास्त- 10:11 पी एम
आज के शुभ मुहूर्त और योग
सर्वार्थ सिद्धि योग: 07:09 ए एम से 12:52 ए एम, फरवरी 03
रवि योग: 12:52 ए एम, फरवरी 03 से 07:08 ए एम, फरवरी 03
ब्रह्म मुहूर्त: 05:24 ए एम से 06:16 ए एम
अभिजीत मुहूर्त: 12:13 पी एम से 12:57 पी एम
विजय मुहूर्त: 02:24 पी एम से 03:07 पी एम
अमृत काल: 08:24 पी एम से 09:53 पी एम
दिन का शुभ चौघड़िया मुहूर्त
चर-सामान्य: 08:30 ए एम से 09:52 ए एम
लाभ-उन्नति: 09:52 ए एम से 11:13 ए एम
अमृत-सर्वोत्तम: 11:13 ए एम से 12:35 पी एम
शुभ-उत्तम: 01:57 पी एम से 03:18 पी एम
रात का शुभ चौघड़िया मुहूर्त
शुभ-उत्तम: 06:01 पी एम से 07:40 पी एम
अमृत-सर्वोत्तम: 07:40 पी एम से 09:18 पी एम
चर-सामान्य: 09:18 पी एम से 10:56 पी एम
लाभ-उन्नति: 02:13 ए एम से 03:51 ए एम, फरवरी 03
शुभ-उत्तम: 05:30 ए एम से 07:08 ए एम, फरवरी 03
अशुभ समय
राहुकाल- 04:40 पी एम से 06:01 पी एम
गुलिक काल- 03:18 पी एम से 04:40 पी एम
यमगण्ड- 12:35 पी एम से 01:57 पी एम
दुर्मुहूर्त- 04:34 पी एम से 05:18 पी एम
भद्रा- 07:09 ए एम से 09:14 ए एम
पंचक- पूरे दिन
दिशाशूल- पूर्व
रुद्राभिषेक के लिए शिववास
क्रीड़ा में – 09:14 ए एम तक, कैलाश पर – 06:52 ए एम, फरवरी 03 तक, फिर नंदी पर.
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
2 Feb, 2025 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- कुटुम्ब की समस्याऐं सुलझें, भाग्य में समय परिवर्तनशील है, लाभ लें।
वृष राशि :- चिन्ताऐं कम हों, स्त्री वर्ग से सुख-वर्धक स्थिति होगी, प्रभुत्व के कार्य बनेंगे।
मिथुन राशि :- आशानुकूल सफलता का हर्ष, बिगड़े हुये कार्य बनेंगे तथा कार्य सिद्ध होंगे।
कर्क राशि :- लेनेदेन के मामले में हानि, व्यर्थ प्रयास व यात्रा के प्रसंग में हानि होगी।
सिंह राशि :- कार्य-कुशलता से संतोष, मनोवृत्ति संवेदनशील रहेगी, ध्यान से कार्य बना लें।
कन्या राशि :- मान-प्रतिष्ठा, प्रभुत्व में वृद्धि, अधिकारियों का समर्थन फलप्रद बना रहेगा।
तुला राशि :- व्यवसाय की चिन्ता, व्यवसाय गति अनुकूल तथा कार्य में सफल होंगे।
वृश्चिक राशि :- प्रत्येक कार्य में बाधा व विलम्ब तथा उत्तेजना की स्थिति बनी रहेगी।
धनु राशि :- आर्थिक चिन्ता मन उद्विघ्न रखे तथा प्रयत्नशीलता से कार्य बनेंगे।
मकर राशि :- धन लाभ, आशानुकूल सफलता का हर्ष तथा कार्य पूर्ति में सुधार अवश्य होगा।
कुंभ राशि :- धन लाभ, आशानुकूल सफलता का हर्ष, कार्यगति में सुधार अवश्य होगा।
मीन राशि :- अधिकारियों से समर्थन फलप्रद रहेगा, कार्य-व्यवसाय गति अनुकूल रहेगी।
सप्तर्षि कौन हैं? जानिए उनकी उत्पत्ति और ब्रह्मांड में उनकी दिव्य भूमिका की पूरी जानकारी!
1 Feb, 2025 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिन्दू धर्म में सप्तर्षियों का महत्वपूर्ण स्थान है. ये सात ऋषि हैं- कश्यप, अत्रि, वशिष्ठ, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और भारद्वाज. इन्हें वेदों और पुराणों में दिव्य ज्ञान और तपस्या के प्रतीक के रूप में वर्णित किया गया है. माना जाता है कि ये सातों ऋषि अपनी तपस्या और दिव्य शक्तियों से ब्रह्मांड के संतुलन को बनाए रखते हैं. हिंदू ग्रंथों में इन्हें अमर और सृष्टि चक्र के हर युग में मार्गदर्शक के रूप में बताया गया है. सप्तर्षियों का उल्लेख महाभारत, रामायण और कई अन्य पुराणों में भी मिलता है.
उत्पत्ति:
सप्तर्षियों की उत्पत्ति के बारे में कई मत हैं. कुछ लोगों का मानना है कि वे ब्रह्मा के मन से उत्पन्न हुए थे, जबकि कुछ अन्य उन्हें देवताओं और ऋषियों के संयुक्त वंशज मानते हैं. एक अन्य मान्यता के अनुसार सप्तर्षि हर मन्वंतर में बदलते हैं. वर्तमान मन्वंतर में ये सात ऋषि हैं.
काम:
सप्तर्षियों को वेदों के ज्ञान को संरक्षित करने और उसे मानव जाति तक पहुंचाने का काम सौंपा गया है. उन्होंने विभिन्न वेदों और उपनिषदों की रचना की है. उन्हें धर्म, नीति और अध्यात्म के मार्ग पर चलने वाले लोगों का मार्गदर्शन करने के लिए भी जाना जाता है. सप्तर्षि ज्योतिष और खगोल विज्ञान के भी ज्ञाता थे। उन्होंने नक्षत्रों और ग्रहों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की है.
घर के बाहर क्यों नहीं लगाना चाहिए कनैल और नींबू का पेड़, क्या पड़ता है
1 Feb, 2025 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
घर के दरवाजे पर या बाहर आसपास नींबू और कनैल का पेड़ नहीं लगना चाहिए. दरअसल बताया जाता है कि नींबू कांटेदार होता है और इससे आप जो जीवन जी रहे हैं उसमें परेशानी आ सकती है कांटे की तरह और दूसरा कनैल जो है उसे अंधकार का प्रतीक माना गया है. ऐसे में घर के बाहर दरवाजे पर नहीं लगाना चाहिए.
वास्तु शास्त्र में घर के दरवाजे पर लगाए जाने वाले पेड़ों का विशेष महत्व है. एक्सपर्ट्स के अनुसार, घर के दरवाजे पर लगाए गए पेड़ सिर्फ घर की सुंदरता को ही नहीं बढ़ाते हैं, जबकि वे समृद्धि और सुख-शांति का भी प्रतीक होते हैं. हालांकि, इस दिशा में कुछ पेड़ों को लगाने से बचना चाहिए, जैसे कि नींबू और कनैल के पेड़.
क्या कहते हैं ज्योतिषी
पंडित और ज्योतिषी गिरिधर झा के अनुसार, नींबू का पेड़ कांटेदार होता है और इसका असर जीवन में नकारात्मक परिवर्तन ला सकता है. नींबू के कांटे घर के अंदर की ऊर्जा को नकारात्मक दिशा में प्रभावित कर सकते हैं. इससे विभिन्न प्रकार की परेशानियों से दो चार होना पड़ सकता है. व्यक्ति के मन में नेगेटिविटी, चिड़चिड़ापन और कार्य के प्रति उदासीनता देखी जा सकती है. इसके अलावा, कनैल का पेड़ अंधकार का प्रतीक माना जाता है, और इसे घर के बाहर दरवाजे के पास लगाने से घर में समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं.बताया जाता है कि इसके फल(बीज) का असर भी बेहद खराब देखने को मिलता है. इसके अलावा इसे शास्त्र के अनुसार देवगनाह में भी माना गया है.
वास्तु शास्त्र के अनुसार, घर के दरवाजे पर तुलसी, अशोक और नारियल के पेड़ लगाए जाने चाहिए. ये पेड़ न केवल घर की सुंदरता में वृद्धि करते हैं, बल्कि घर के निवासियों को सुख, समृद्धि और शांति भी प्रदान करते है. तुलसी के पत्तों को धार्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण माना जाता है, जबकि अशोक का पेड़ अशुभ का नाश करने और सकारात्मक ऊर्जा लाने के लिए प्रसिद्ध है.नारियल का पेड़ भी समृद्धि और ऐश्वर्य का प्रतीक है. इसलिए, घर के दरवाजे पर पेड़ लगाते समय वास्तु शास्त्र के नियमों का पालन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है. नींबू और कनैल जैसे पेड़ घर के दरवाजे पर नहीं लगाने चाहिए, ताकि घर में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहे.